पुनर्वास के रास्ते
विधानसभा चुनाव के बाद से भाजपा में अलग-थलग हो चुके कई नेता अब रायपुर दक्षिण में काम कर मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं। ये नेता पार्टी प्रत्याशी का प्रचार करने के इच्छुक हैं। इन्हीं में से एक जगदलपुर के पूर्व विधायक संतोष बाफना को शैलेन्द्र नगर बूथ का प्रभारी बनाया गया है।
बाफना ने विधानसभा आम चुनाव में जगदलपुर से किरणदेव को टिकट देने की खिलाफत की थी, और क्षेत्र छोडक़र चले गए थे। किरण देव अब प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बन चुके हैं। इससे परे बाफना को किरणदेव के विरोध की कीमत चुकानी पड़ रही है। उनकी पार्टी में पूछ परख नहीं रह गई है, मगर बृजमोहन अग्रवाल से उनके अच्छे संबंध हैं।
बृजमोहन ने बाफना को बूथ का काम दे दिया है। इसी तरह बड़े व्यापारी नेता, और पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी भी विधानसभा टिकट नहीं मिलने से काफी खफा रहे हैं। उन्होंने भी आम चुनाव के बीच सुनील सोनी, और बृजमोहन अग्रवाल से मिलकर अपने गुस्से का इजहार भी कर दिया था। सुंदरानी की नाराजगी के बाद भी सभी सीटें रायपुर की चारों विधानसभा सीटेें भाजपा की झोली में चली गई।
सुंदरानी को भी सिविल लाइन इलाके में प्रचार का जिम्मा दिया गया है। इसी तरह महासमुंद के पूर्व विधायक डॉ. विमल चोपड़ा भी रायपुर दक्षिण में सक्रिय हो चुके हैं। रायपुर दक्षिण में इन नेताओं का काम बेहतर रहा, तो संभव है कि कुछ को निगम-मंडल में जगह मिल जाए। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
नेताजी की अगली तैयारी
कहा जाता है कि भाजपा, पिछला चुनाव जीतने या हारने के एक वर्ष बाद अगले चुनाव की तैयारी शुरू कर देती है। अपनी इसी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए संगठन ने काम शुरू कर दिया है। संगठन, हर विधायक, मंत्री सांसद के इलाके में टोह ले रही है कि अगला प्रत्याशी कौन होगा। इसी दौरान संगठन प्रमुखों को पता चला एक अजेय पूर्व मंत्री भी तैयारी में जुट गए है।
भाजपा की यह परंपरागत,पारिवारिक सीट रही है। कहा जा है 2028 के लिए नेताजी, अपनी बेटी को तैयार कर रहे हैं। कर्नाटक के प्रोफेशनल कॉलेज से पढक़र आई बेटी इन दिनों ट्रेनिंग ले रही हैं। इसमें भाषण कला, मांग लेकर आई भीड़ से चर्चा, पहनावे, एप्टीट्यूड आदि-आदि सीख रही हैं। इसकी सूचना पर संगठन प्रमुखों का कहना था कि नेताजी को आभास हो गया है कि अगली बार उनकी संभावना कम ही रहेगी। कहा जा रहा है कि नेताजी अपनी बेटी को लता उसेंडी, अंबिका सिंहदेव, भावना बोहरा, ओजस्वी मंडावी, संयोगिता जूदेव की कतार में लाना चाहते हैं । अब इसके लिए पूरे चार वर्ष इंतजार करना होगा। वैसे नेताजी के दो बेटे हैं लेकिन दोनों ही राजनीति से दूर सफल कारोबारी हैं, उनकी इच्छा भी नहीं हैं।
एक माकूल अवसर और खेमेबाजी
कांग्रेस के लिए इससे माकूल अवसर नहीं हो सकता था। पता नहीं क्यों इसका लाभ उठा नहीं पाई। वह यह कि देश की राष्ट्रपति दो दिनों तीस घंटे तक राजधानी में रहीं। लेकिन छोटे-छोटे मुद्दे पर राजभवन कूच करने वाले कांग्रेस नेतृत्व ने महामहिम से मिलकर प्रदेश की स्थिति पर ध्यानाकृष्ट क्यों नहीं कराया? जबकि पहले दिन तो महामहिम जनसंगठनों से मिली भी। महामहिम से मुलाकात को लेकर संगठन के नेता खेमे के अनुसार जवाब दे रहे। बैज समर्थक कह रहे हैं कि मिलने का समय मांगा था, नहीं मिला।
राजीव भवन में सक्रिय रहने वाले विरोधी इसे खारिज कर रहे। सच्चाई और मन की बात बैज ही जानते हैं। लेकिन एक अवसर चूक गए। प्रदेश की राजनीतिक, प्रशासनिक कानून व्यवस्था पर एक असरदार ज्ञापन देकर माइलेज तो लिया ही जा सकता था। खैर कांग्रेस की ओर से कल नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत ने प्रोटोकॉल पूरा किया। राष्ट्रपति के सम्मान में आयोजित दोपहर भोज में आमंत्रण पर वे गए। वहां प्रोटोकॉल की व्यवस्था न देख डॉ. महंत, सबसे पीछे भाजपा संगठन के नेताओं के साथ जा खड़े हुए। उन पर नजर पड़ते ही महामंत्री संगठन पवन साय ने पास गए। और महंत से पीछे के बजाए प्रथम पंक्ति में खड़े होने का आग्रह किया। महंत जी मान नहीं रहे थे। इस पर महामंत्री ने प्रोटोकॉल के तहत व्यवस्था कराई और महंत प्रथम पंक्ति में शामिल हुए।
हाथियों की मौत के लिए कौन जिम्मेदार?
छत्तीसगढ़ में खासकर रायगढ़ और सरगुजा जिले में हाथी हाईटेंशन तार की चपेट में आकर अकाल मौत के मुंह में समा रहे हैं। पराकाष्ठा तब हुई जब तमनार क्षेत्र में 25 अक्टूबर की रात एक शावक सहित तीन हाथियों को एक साथ जान गंवानी पड़ी। बीते 10 सालों में 70 हाथी इसी तरह बेमौत मारे जा चुके हैं। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार के ही दो विभाग एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं। बिजली विभाग चाहता है कि तार ऊंचा और सुरक्षित करने का खर्च उठाए। वन विभाग का कहना है कि बिजली तार को विद्युत विभाग ने बिछाया है, खर्च उसे ही करना चाहिए। इस आनाकानी को लेकर हाईकोर्ट में कुछ वन्यजीव प्रेमियों ने जनहित याचिका दायर की थी। जिसका निराकरण इसी अक्टूबर महीने के पहले सप्ताह में हाईकोर्ट ने किया। इसमें वन विभाग और बिजली विभाग दोनों ने ही शपथ-पत्र दिया है। बिजली विभाग तारों को कम से कम 20 फीट ऊंचा उठाएगा। तीन हाथियों की मौत जिस जगह पर हुई है, ग्रामीणों के मुताबिक वहां तार की ऊंचाई बहुत कम थी। 20 फीट ऊंचा होने से हाथी सूंड उठाकर भी तार को नहीं छू सकेंगे। बिजली पोल पर भी 3 से 4 फीट तक चौड़ी कांटेदार तार खींची जाएगी। तारों को कवर्ड कंडक्टर में बदला जाएगा या फिर अंडरग्राउंड केबल बिछाया जाएगा। यही सब करने की मांग वन्यजीव प्रेमी लगातार कर रहे थे। मगर, सरकारी विभागों ने हामी भरने में 7 साल लगा दिए। याचिका पर सात साल से सुनवाई हो रही थी। अभी भी इन तीन मौतों के बाद दोनों ही विभागों ने चुप्पी साधी हुई है कि हाईकोर्ट में उन्होंने जो शपथ दिया है उसके लिए क्या करेंगे। क्या कोई टाइम लाइन तैयार किया है? या फिर हाईकोर्ट में भरी गई हामी केवल रस्मी है? इस रवैये से तो लगता है कि अभी और हाथियों के जान गंवाने की प्रतीक्षा की जा रही है।
ऐसा होता है डिजिटल अरेस्ट
वीडियो कॉल कर रहा व्यक्ति कितना साफ-सुथरी वर्दी में सौम्य चेहरे वाला पुलिस ऑफिसर जैसा दिखाई दे रहा है। पीछे थाने का पूरा सेटअप भी है। टेबल पर ध्वज लगा है। जो व्यक्ति इस कॉल को अटेंड कर रहा है उसे 12 घंटे के भीतर थाना पहुंचने या फिर वीडियो कॉल पर ही बयान दर्ज कराने कहा जा रहा है। जुर्म यह बताया गया है कि उसके फोन का इस्तेमाल महिला उत्पीडऩ और वित्तीय धोखाधड़ी के लिए किया गया है। आप भयभीत हो जाएंगे और मामला रफा-दफा करने के लिए 5-10 लाख कॉलर के बताए गए अकाउंट में ट्रांसफर कर देंगे। यही डिजिटल अरेस्ट है। एक शख्स ने कॉल आते ही पहचान लिया था कि यह स्कैम चल रहा है। फिर भी भयभीत होने का नाटक करते हुए कॉलर से लंबी बातचीत की है। सोशल मीडिया पर उसने पूरा वृतांत लिख डाला है और बताया है कि किस तरह से डरा-धमकाकर ये जालसाज वसूली करते हैं।