नाम भी सही नहीं
छत्तीसगढ़ राज्य गठन को 25 साल पूरे हो रहे हैं, लेकिन अभी भी कुछ संस्थानों में राज्य के नाम को लेकर मात्रात्मक त्रुटियां सामने आ जा रही है। इन्हीं में से एक रायपुर के सबसे पुराने कॉलेज शासकीय जे योगानन्दम् छत्तीसगढ़ महाविद्यालय में आंतरिक/प्रायोगिक परीक्षा की उत्तर पुस्तिका में छत्तीसगढ़ का नाम गलत छपा है।
छत्तीसगढ़ महाविद्यालय की जगह छत्तसीगढ़ महाविद्यालय छप गया है। हाल यह है कि हजारों उत्तर पुस्तिकाओं में नाम गलत छपे हैं, लेकिन इसको सुधारने के लिए कॉलेज प्रबंधन ने कोई कदम नहीं उठाया है। ऐसा नहीं है कि कॉलेज के प्राचार्य, और अन्य प्रोफेसरों को इस बड़ी चूक की जानकारी नहीं है। कुछ विद्यार्थियों ने भी कॉलेज प्रबंधन का ध्यान इस तरफ आकृष्ट कराया है, लेकिन किसी ने इसको गंभीरता से नहीं लिया।
कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अमिताभ बनर्जी भी रायपुर में पले-बढ़े हैं, और रायपुर विज्ञान महाविद्यालय से स्नातक हैं। वो पूर्व सीएम भूपेश बघेल के कॉलेज के सहपाठी रहे हैं। अब जब उत्तरपुस्तिकाओं में त्रुटि सामने आई है, तो कई ने अलग-अलग स्तरों पर इसकी शिकायत भी की है। देखना है कि त्रुटि सुधारने के लिए कोई पहल होती है, अथवा नहीं।
निगम मंडल की बैलेंस शीट
भाजपा के गलियारों में फिर चर्चा चल पड़ी है कि निगम मंडलों में नियुक्तियां फरवरी के बाद। निकाय-पंचायत चुनावों में नेताओं के परफार्मेंस देखकर सरकारी कुर्सियां भरी जाएंगी। यह तो हुई कार्यकर्ताओं और मीडिया सबको बताने वाली बात। जो न बताने वाली बात है वो यह है कि भार साधक मंत्री ही नहीं चाहते कि अपने विभाग के बड़े बजट के उपक्रमों पर दूसरा सक्षम प्राधिकार बैठे। सही है, उपक्रमों की गाडिय़ां, निजी घरेलू, काम के लिए स्टाफ खर्च के लिए बजट आदि-आदि। जो हाथ से निकल जाएगा। ऐसे बड़े उपक्रम हैं-भवन सन्निर्माण कर्मकार मंडल, श्रम कल्याण मंडल, आबकारी निगम, ब्रेवरेज निगम, पर्यटन मंडल, बीज निगम नान, मार्कफेड, सडक़ विकास निगम, क्रेडा, वन विकास निगम आदि। इसलिए जब जब प्रभारी जी के साथ नियुक्ति पर रायशुमारी होती मंत्री तपाक से औचित्य के प्रश्न उठा देते हैं। और भार साधक मंत्री होने के नाते काम करने से हो रहे स्थापना व्यय की बचत का लाभ हानि का बैलेंस शीट, पटल पर रख देते। वह भी कांग्रेस शासन काल का। ऐसी तीन बैठकें हो चुकी हैं और हर बार मंत्रियों की जीत होती रही।
तबादले और इमोशनल जस्टिफिकेशन
पिछले दशक में एक फिल्म आई थी देव-डी। इस फिल्म को हीरो अभय देयोल (सुपुत्र धर्मेन्द्र ) एक गाना गाते हैं तौबा तेरा जलवा तौबा तेरा प्यार, तेरा इमोशनल अत्याचार। यह पंक्ति इसलिए याद कर रहे कि आज सरकार के मंत्रियों की हालत, गिटार लेकर गाने वाले अभय देयोल जैसी ही है। बस वे गा नहीं पा रहे। सभी मंत्री, एक सचिव मैडम से कुछ ऐसे ही परेशान हैं। मंत्री तबादले की बात या हुए तबादले रद्द करने कॉल करते हैं तो मैडम के इमोशनल स्पीच, तर्क सुनकर स्विच आफ करने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं रहता। पड़ोस के जिले के पहली बार बने एक मंत्री के साथ ऐसा ही हुआ। मंत्रीजी ने डीईओ साहब का तबादला रद्द करने मैडम को कॉल किया। शुरूआती शिष्टाचार के बाद मंत्री ने कॉल करने का मुख्य सबब बताया। इस पर मैडम ने जो कहा, उसे यहां पढ़ें और महसूस करें--
सर मैं आपकी बहुत इज्जत करती हूं। आप कांग्रेस की लहर जैसे माहौल में जीतकर आए। जनता आप में विकास पुरुष देखती है। आपने चुनावों में वादे (निर्माण कार्य गिनाते हुए) भी किए हैं। इनमें से एक महिलाओं को सुरक्षा और राहत देने शराब की अवैध बिक्री, कोचियों को समाप्त करना भी है। सीएम साहब इसी पर प्लानिंग के साथ काम कर रहे हैं। ये तबादले पूरी जांच के बाद किए गए हैं। डीईओ पर बहुत सी शिकायतें रहीं, मैने स्वयं छापेमारी में पकड़ा है। ऐसे ही अवैध धंधे को खत्म कर खजाने में राजस्व लाना है। अप्रैल से सितंबर तक खजाने को 200-200 करोड़ की चपत लग चुकी है। ये पैसे आते तो आपके क्षेत्र में सडक़, पुल पुलिया, सीसी रोड़, व्यपवर्तन योजना,आगजनी के शिकार भवन बन जाते। आपके किए कुछ वादे अभी 6-8 महीने में ही पूरे हो जाते। लेकिन डीईओ की वजह से राजस्व हानि हुई, और वित्त विभाग ने आपके प्रस्ताव अगले बजट के लिए आगे बढ़ा दिया है। अब आप ही बताइए ऐसे विकास रोधी अफसर का तबादला रद्द करना ठीक रहेगा क्या?
इसके बाद तो मंत्री जी के पास कोई किंतु-परंतु का भी अवसर नहीं रह गया था। मैडम को अब तक अलग-अलग डीईओ के तबादले रुकवाने सरकार के आधे मंत्री ऐसे कॉल कर चुके हैं।
तकनीक से पीछे हटने का सवाल
डिजिटल क्रांति आने के बाद अनेक नए काम धंधे लोगों को मिले हैं तो कई का कामकाज चौपट भी हो गया है। ऐसा ही खतरा जमीन का पंजीयन कराने वाले दस्तावेज लेखकों और स्टाम्प वेंडर्स के सामने मंडरा रहा है। छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य होगा जहां जमीन, मकान, दुकान की रजिस्ट्री घर बैठे करने की सुविधा दी जा रही है। सारे दस्तावेज, शुल्क ऑनलाइन जमा हो जाएंगे, यहां तक कि गवाहों को भी रजिस्ट्री दफ्तर जाने की जरूरत नहीं। इसी महीने 10 अक्टूबर को मध्यप्रदेश में यह सुविधा वहां के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने एक समारोह में किया था। वहां इसे संपदा 2.0 नाम दिया गया है। छत्तीसगढ़ में सुगम ऐप लॉंच किया गया है। दस्तावेज लेखकों, स्टांप वेंडरों की चिंता जायज है लेकिन जब इंटरनेट और स्मार्ट फोन आने के बाद पेपरलेस काम सभी क्षेत्रों में बढ़ रहा है। बहुत सी सरकारी सेवाएं अब ऑनलाइन हो चुकी है। पटवारी रिकार्ड डिजिटली उपल्ध हैं। लोगों के खाते में सीधे पैसे ट्रांसफर हो रहे हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मितानिन अपनी रिपोर्ट ऑनलाइन जमा कर रहे हैं। कुछ जगहों पर शिक्षकों की उपस्थिति भी ऑनलाइन दर्ज की जा रही है। उनके विभागीय आवेदनों को तो पूरी तरह ऑनलाइन कर ही दिया गया है। पिछली सरकार के समय बताया गया था कि करीब 100 तरह की सेवाएं ऑनलाइन हो चुकी हैं। एक समय एसटीडी-पीसीओ बूथ में कतारें लगती थीं लेकिन सस्ती मोबाइल कॉलिंग सुविधा मिलने के बाद यह कारोबार बैठ गया। अब जब लोग टीवी चैनल सेटअप बॉक्स में देखने के आदी हो रहे हैं तो केबल तार का जाल सिमट रहा है। प्रदेश में करीब 25 हजार वेंडर और दस्तावेज लेखक हैं। कुछ लोग तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी यही काम करते आ रहे हैं। कुछ इतने बुजुर्ग हो चुके हैं कि नया काम शुरू नहीं कर सकते। हड़ताल के बावजूद इस बात के आसार कम दिख रहे हैं कि सरकार अपने कदम वापस लेगी। वेंडरों की एक मांग जरूर है कि ऑनलाइन रजिस्ट्री के लिए भी लाइसेंस सिस्टम हो और आईडी देकर उनके माध्यम से काम कराया जाए।