राजपथ - जनपथ
संघ वाले, और बिना संघ वाले
रायपुर दक्षिण के दावेदारों में आरएसएस के सबसे निकट कौन है, इस पर भाजपा के अंदरखाने में चर्चा चल रही है। कुछ लोग प्रदेश कोषाध्यक्ष नंदन जैन को आरएसएस के सबसे ज्यादा करीब बता रहे हैं। नंदन के पिता दिवंगत कुंदन जैन आरएसएस के रायपुर महानगर के प्रमुख रहे हैं। नंदन के लिए रायपुर के राममंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने भी सिफारिश की है। मगर सुनील सोनी का बैकग्राउंड भी आरएसएस का रहा है।
पूर्व सांसद सुनील सोनी के पिता आजादी के पहले आरएसएस से जुड़ गए थे। सुनील सोनी को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उनके पिता की वजह से ही जानते थे। सुनील सोनी ने एबीवीपी से जुडक़र राजनीति की शुरूआत की। फिर दुर्गा कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष बने। बाद में पार्षद, दो बार मेयर, आरडीए चेयरमैन और फिर सांसद बने।
विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें प्रदेश चुनाव प्रबंध समिति का मुखिया बनाया था। सोनी विधानसभा चुनाव में चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया के साथ मिलकर काम किया। लोकसभा टिकट कटने के बाद भी वे डटे रहे। और यही वजह है कि सांसद बृजमोहन अग्रवाल और कई प्रमुख नेता उन्हें विधानसभा प्रत्याशी बनाने के पक्ष में हैं।
बाकी दावेदारों में संजय श्रीवास्तव, केदार गुप्ता, मीनल चौबे और मृत्युंजय दुबे का आरएसएस से सीधा वास्ता नहीं रहा लेकिन भाजपा संगठन में काफी सक्रिय रहे हैं। संजय ने विधानसभा चुनाव में सरगुजा संभाग के प्रभारी के तौर पर काम किया था। केदार चुनाव के दौरान मीडिया में पार्टी का चेहरा बने रहे। मीनल और मृत्युंजय की सक्रियता भी कम नहीं रही है। ऐसे में पार्टी किस पर मुहर लगाती है, यह एक दो दिनों में साफ हो जाएगा।
थैले में मोबाइल और छापे
मैडम ने पिछले दिनों आबकारी विभाग के सारे जयचंदों को बदल डाला। हालांकि इसके पीछे उन्हें कड़ी मेहनत मशक्कत करनी पड़ी। कुल 637 दुकानों में से मैडम ने कम से कम 400 दुकानों का औचक निरीक्षण और आनलाइन वेब कास्टिंग भी किया। इसके लिए वो बस्तर कह कर सरगुजा जाती। इसके पीछे भी इन 10 महीनों में ही मैडम का दिलचस्प अनुभव रहा है। होता यह था कि जब भी मैडम जिलों के औचक निरीक्षण पर जाती,वहां सब कुछ नीट एंड क्लीन बिजनेस मिलता। और लौटना पड़ता था। मगर मैडम का मन संतुष्ट नहीं रहता, लगता कुछ गड़बड़ी चल रही है। मालूम चला कि दौरे पर मैडम के साथ तीन अन्य गाडिय़ों में जाने वाले विभाग के ही लोग उस जिले के जिला आबकारी अधिकारियों (डीईओ) और अमले को अलर्ट कर देते। यह बहुत दिनों तक चलता रहा।
फिर मैडम ने तरीका बदला। सरगुजा जाना बताकर बस्तर की ओर निकल पड़ती। कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाने की तर्ज पर। मैडम एक थैली लेकर दौरे पर रवाना होने लगी। बीच रास्ते वह अपने पीछे की तीन गाडिय़ों के एक-एक व्यक्ति का मोबाइल फोन थैली में जमा करवा लेतीं। इससे उस जिले के डीईओ और अमले को मैडम की दबिश का पता नहीं चलता। और मैडम, ओवर रेटिंग, शराब में पानी मिलावट, कोचिया कारोबार, पड़ोसी राज्यों की शराब ढुलाई जैसी गड़बड़ी आन द स्पॉट और वेबकास्टिंग से पकड़तीं रही। ऐसी गड़बडिय़ों को राजधानी जिले से लेकर चांपा जांजगीर,कोरबा,रायगढ़ बिलासपुर, मुंगेली के डीईओ के साथ उडऩदस्ते के अमले ने भी खूब प्रश्रय दिया।
जब मैडम हिसाब करने बैठीं तो अप्रैल से सितंबर तक दो सौ करोड़ की राजस्व हानि निकली। फिर मैडम ने इन सारे जयचंदों को बदल डाला। हालांकि इनमें से रायपुर,बिलासपुर के डीईओ को बचाने कई दिग्गजों ने जोर लगाया। मगर इसमें सीएम साहब ने मैडम को पूरा फ्री हैंड दिया था। और फिर सीएम साहब ने भी किसी की एक न सुनी।
तूफान के पहले की शांति
राष्ट्रीय वन खेल उत्सव के चलते विभाग में सब कुछ फिलहाल ठीक ठाक चल रहा है। हर अफसर एक दूसरे की और हर कर्मचारी अफसर की बात सुन और काम कर रहा है। क्योंकि इतने बड़े आयोजन से अपनी और प्रदेश की छवि मानकर सक्रिय हैं। लेकिन यह तूफान के पहले की शांति जैसा है। कल रविवार को खेलों का समापन समारोह हो जाएगा। उसके बाद नौ हजार कर्मचारियों का विभागीय संगठन हड़ताल जैसा कदम उठाने की रणनीति बना रहा है। इस संगठन के हाल में चुनाव भी हुए हैं। सभी जोश से भरे हैं जल्द ही बैठकर डेट तय करेंगे। हड़ताल का असर हाल में विभाग देख चुका है। जब 5000 वह भी दैवेभो तूता में 48 दिनों तक डटे रहे तो विभाग पटरी से उतर गया था। फिर ये तो नियमित 9 हजार लोग हैं।
इनका कहना है कि विभाग के पास 10 वर्ष से हमें इंक्रीमेंट देने 5 करोड़ नहीं है। और खेलों के लिए राज्य के बजट से 7.5 करोड़ खर्च किए गए । और यह आयोजन पहली बार नहीं तीसरी बार हो रहे। और हमारी मांग तब से चली आ रही है। वृक्षारोपण के लिए फंड नहीं।
वन विभाग के गार्डन बंद होने कगार पर हैं।
चौकीदारों के वेतन भुगतान में मुश्किल हो रही। खर्च के चलते कृष्ण कुंज, औषधीय उद्यान, आक्सीजोन की देख रेख से विभाग ने हाथ खींच लिया है। और खेल कूद के नाम पर किटी पार्टी की तरह वार्षिक आयोजन के लिए करोड़ों रूपये को पानी की तरह बहाए जा रहे। खेलों से पहले खेल कोटे से विभाग में भर्ती भी कर ली गई। केवल इसलिए कि पदक तालिका में छत्तीसगढ़ सबसे आगे दिखे। सच्चाई यह है कि पिछले वर्षों में हुई भर्तियों के एक भी खिलाड़ी का व्यक्तिगत या टीम स्तर पर भी भारतीय टीम में चयन नहीं हुआ। जो एशियाड, ओलंपिक या अन्य राष्ट्रीय खेलों में गया हो। यही अफसर कहते भी हैं कि खेल कूद तो ठीक है इसके बहाने आईएफएस बैचमेट्स का एन्यूअल गेट टू गेदर हो जाता है। ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि छत्तीसगढ़ में कुल 54 विभाग हैं उन्हें खेलों की जरूरत नहीं है केवल वन विभाग के। इसके पीछे कारण तलाशने होंगे।
बस्तर से एक और संभावना
बस्तर की विषम सामाजिक, राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थितियों के बीच प्रतिभाओं का सामने उभर कर आना और राष्ट्रीय स्तर पर लोहा मनवाने का सिलसिला रुद्र प्रताप देहारी ने आगे बढ़ाया है। अत्यंत पिछड़े और धुर नक्सल प्रभावित कटे कल्याण से रुद्र ने अपनी मेहनत से क्रिकेट में जगह बनाई। वीनू मांकड़ ट्रॉफी के मैच में उन्हें मैन ऑफ द मैच का खिताब मिला, साथ ही नगद पुरस्कार भी।
धान खरीदी में हड़ताल की बाधा
धान उपार्जन केंद्रों के डाटा एंट्री ऑपरेटरों ने अपने को शासकीय सेवा में लेने की मांग पर 18 सितंबर से हड़ताल शुरू की थी, जो आज दो माह पूरे हो गए। इधर सरकार ने धान खरीदी की तिथि तय कर दी है। 31 अक्टूबर तक किसानों का पंजीयन होना चाहिए। पंजीयन का कार्य डाटा एंट्री ऑपरेटरों क जरिये ही होना है। इसके अलावा खाद-बीज के लिए ऋण वितरण की ऑनलाइन एंट्री भी इन ऑपरेटरों के जरिये ही होती है। यह एंट्री भी बंद ही है।
प्रदेश में 2700 से अधिक ऑपरेटर हैं और किसानों की संख्या 25 लाख से अधिक। यदि पंजीयन की तारीख नहीं बढ़ाई गई तो आपाधापी मचना तय है। डाटा एंट्री ऑपरेटर करीब 15-17 साल से काम कर रहे हैं। शायद यदि इनकी मांग न मानकर नई भर्ती पर विचार करेगी तब भी उसमें काफी समय लग सकता है। एक विकल्प यह भी है कि शासकीयकरण की मांग पर बाद में विचार करने का आश्वासन दिया जाए और वर्तमान में मिल रहे मानदेय में वृद्धि कर दी जाए। वैसे इन्हें सोमवार तक काम में लौटने का अल्टीमेटम दिया गया है। उसके बाद ही सरकार का रुख सामने आएगा। ([email protected])