इतनी सद्भावना कि क्या कहें, शब्द नहीं हैं...
आज के माहौल में इतनी सद्भावना देखकर दिल भर आया। रायपुर की चौबे कॉलोनी में कृष्ण भक्तों की तरफ से हुए भंडारे में ‘अब्बा हुज़ूर’ ब्रांड के चावल की बोरियों रखी हैं। मिलकर चलेंगे, तो आगे बढ़ेंगे।
रायपुर दक्षिण का हाल
रायपुर दक्षिण में मतदान के पहले तक कांग्रेस, और भाजपा के दिग्गज नेता अपने-अपने दलों के नेताओं से चर्चा कर बूथ प्रबंधन पर जोर देते रहे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज कांग्रेस भवन में डटे रहे, तो प्रभारी सचिन पायलट फोन पर कुछ पार्षदों के सीधे संपर्क में रहे। भाजपा के चुनाव प्रचार की कमान सांसद बृजमोहन अग्रवाल संभाल रहे थे।
बृजमोहन ने प्रभारी शिवरतन शर्मा के साथ मिलकर बूथ स्तर तक प्रचार से लेकर वोटिंग तक की रणनीति बनाई। उनके साथ चुनाव प्रभारी स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल डटे रहे। जायसवाल चुनाव प्रचार को लेकर फीडबैक से पार्टी संगठन को अवगत कराते रहे।
वित्त मंत्री ओपी चौधरी को छोडक़र सरकार के बाकी सभी मंत्रियों ने प्रचार किया है। चौधरी को लेकर यह बताया गया कि वो दीवाली के बाद से झारखंड में डटे हुए हैं। ओपी चौधरी झारखंड के हजारीबाग लोकसभा की विधानसभा सीटों में चुनाव की कमान संभाल रहे हैं। यही वजह है कि वो यहां प्रचार करने नहीं आए। वैसे तो 28 और प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। मगर इनमें से कोई भी प्रचार करते नहीं दिखे।
न आने की चर्चा
रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव में प्रदेश भाजपा प्रभारी नितिन नबीन की गैरमौजूदगी की काफी चर्चा रही। नितिन नबीन प्रदेश भाजपा की चुनाव समिति की बैठक लेने आए थे, लेकिन प्रत्याशी घोषित होने के बाद से रायपुर नहीं आए। जबकि कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने दो सभाएं ली थी।
हल्ला तो यह भी है कि नितिन नबीन, प्रत्याशी चयन से नाखुश रहे हैं। उन्होंने नए चेहरे को प्रत्याशी बनाने का सुझाव दिया था। मगर पार्टी ने उनकी बात नहीं मानी। हालांकि पार्टी नेताओं का कहना है कि नितिन नबीन को हाईकमान ने झारखंड चुनाव में अहम जिम्मेदारी दी है। वो वहां सक्रिय हैं। और झारखंड चुनाव में व्यस्तता की वजह से सुनील सोनी के प्रचार के लिए नहीं आ सके। चाहे कुछ भी हो, नितिन नबीन की गैरमौजूदगी की चुनावी परिदृश्य से गायब रहने की काफी चर्चा हो रही है।
बटालियन और कंस्ट्रक्शन
राज्य पुलिस के एक बटालियन में दो पुलिस अफसरों के बीच विवाद की खूब चर्चा हो रही है। सुनते हैं कि बटालियन में कंस्ट्रक्शन का काम होना है। इसके टेंडर आदि में कमांडेंट विशेष रुचि ले रहे हैं। बड़ा काम है, इसलिए कमांडेंट का रूचि लेना गलत नहीं है। मगर इस प्रक्रिया से राज्य पुलिस सेवा की महिला अफसर जुड़ी हुई हैं, जिन्होंने बारीक नुक्स निकाल दिया है। इसके बाद से कमांडेंट नाराज चल रहे हैं।
चर्चा तो यह भी है कि कमांडेंट और महिला अफसर के बीच एक सीनियर अफसर के कमरे में विवाद भी हुआ। सीनियर अफसर को हस्तक्षेप कर मामला शांत करना पड़ा। हल्ला है कि कमांडेट ने महिला अफसर का सीआर भी खराब कर दिया है। जिसको लेकर महिला अफसर, कानूनी कार्रवाई करने जा रही हैं। यानी पुलिस महकमे का यह विवाद आने वाले दिनों में और बढ़ सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
जमकर हुआ प्रचार
रायपुर दक्षिण में चुनाव प्रचार शांतिपूर्वक हुआ। दोनों ही दल कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेता प्रचार में उतरे थे। प्रचार के आखिरी क्षणों में भाजपा नेताओं ने पूरी ताकत झोंकी है। अलग-अलग इलाकों में छोटी-छोटी सभाएं हुई, और इसमें दिग्गज भाजपा नेताओं के तेवर देखने लायक थे। शहर की एक पॉश कॉलोनी में सोमवार की रात एक छोटा सा कार्यक्रम रखा गया था। इसमें भाजपा के चुनाव के रणनीतिकारों ने शिरकत की।
कार्यक्रम शुरू होने से पहले भाजपा नेता, कॉलोनी वासियों से कहते सुने गए कि जाली टोपी वालों से बचना जरूरी है। इसलिए भाजपा को जिताना चाहिए। सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने खुले तौर पर कहा कि शहर में शांति बनाए रखना जरूरी है, नहीं तो गुंडे मवालियों का राज आ जाएगा। एक उत्साही भाजपा नेता ने तो एक कदम आगे जाकर कार्यक्रम में मौजूद भाजपा प्रत्याशी सुनील सोनी को जीत की अग्रिम बधाई दे दी। उन्होंने कहा कि लड़ाई अब लीड की है।
दूसरी तरफ, प्रदेशभर के युवक कांग्रेस और एनएसयूआई के पदाधिकारी आकाश शर्मा के लिए प्रचार में जुटे थे लेकिन कहीं भी उन्होंने अपनी आक्रामकता नहीं दिखाई। हाथ जोडक़र वोट मांगते नजर आए। जबकि सूरजपुर की घटना के बाद कांग्रेस के युवा नेता निशाने पर रहे हैं। यही वजह है कि युवक कांग्रेस और एनएसयूआई के कार्यकर्ताओं ने किसी भी तरह के विवाद से बचने की कोशिश की। अब देखना है कि चुनाव में क्या कुछ होता है।
छत्तीसगढ़ के आईएएस दिल्ली में अहम बने
मोदी सरकार में छत्तीसगढ़ के आईएएस अफसरों को अहम दायित्व मिला है। आईएएस के 95 बैच की अफसर श्रीमती मनिंदर कौर द्विवेदी केंद्रीय कृषि मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव बन गई हैं। मनिन्दर छत्तीसगढ़ में भी कृषि विभाग की प्रमुख सचिव रही हैं। इसी तरह आईएएस के 97 बैच के अफसर सुबोध सिंह भी केन्द्रीय इस्पात मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव हो चुके हैं।
सुबोध सिंह के छत्तीसगढ़ आने की चर्चा रही है। सुबोध रायगढ़ में कलेक्टर रहे हैं, और तत्कालीन सीएम डॉ. रमन सिंह के सचिव रहते स्थानीय प्रमुख नेताओं से अच्छे संबंध रहे हैं। मौजूदा सीएम विष्णुदेव साय से भी उनके अच्छे संबंध है। अब केन्द्र सरकार में अच्छी पोस्टिंग के बाद वे यहां आएंगे, इसको लेकर संशय है। इसी तरह केन्द्र सरकार में संयुक्त सचिव रहे अमित कटारिया ने प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद यहां जॉइनिंग दे दी है। मगर छुट्टी पर जाने की वजह से उनकी पोस्टिंग नहीं हुई है। चर्चा है कि कटारिया छुट्टी बढ़ा भी सकते हैं। देखना है आगे प्रशासन में क्या कुछ बदलाव होता है।
राजधानी में डिजिटल अरेस्टिंग
राजधानी रायपुर में एक महिला को डिजिटल अरेस्ट का शिकार होना पड़ा है। उसे कॉल कर इतना भयभीत किया गया कि वह खुद ही पांच दिनों तक बैंक जाकर ठगों के बताये गए खाते में रकम जमा करती रही। इस तरह से उसने करीब 58 लाख रुपये गवां दिए। रायपुर में इस तरह का पहला मामला है। भिलाई और बिलासपुर में एक-एक मामला पहले सामने आ चुका है। इसके अलावा राजिम में भी एक बच्चे के पिस्तौल के साथ पकड़े जाने की बात कहकर पिता से करीब डेढ़ लाख रुपये ठगों ने अपने एकाउंट में जमा कराये थे। डिजिटल अरेस्टिंग और साइबर ठगी ज्यादातर ऐसे बुजुर्गों के साथ हो रही है, जो अपने जीवन के अंतिम क्षणों में आड़े वक्त पर काम आ सके, इसलिए रकम बैंकों में जमा करके रखते हैं। साइबर ठगों का रिसर्च बड़ा तगड़ा होता है। वे अपना शिकार ढूंढ लेते हैं।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में देशभर में हो रही ऐसी ठगी को लेकर चिंता जाहिर की थी। मन की बात को पुलिस और प्रशासन के अफसरों और नेताओं ने शायद मन लगाकर नहीं सुना। हाल ही में पुलिस मुख्यालय के निर्देश पर प्रत्येक जिले में साइबर ठगी के खिलाफ जन जागरूकता अभियान चलाया गया था। लेकिन अधिकांश स्थानों पर यह जलसा की तरह निपट गया। लगातार हो रही ठगी बताती है कि पुलिस-प्रशासन का संदेश पीडि़तों तक नहीं पहुंच पाया। अब शायद घर-घर दस्तक देकर लोगों को ऐसी ठगी से बचाने के लिए मुहिम छेडऩे की जरूरत है।
खजाने वाली गुफा
यह जगह दो राज्यों को जोड़ती है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़। इसे कबीर चबूतरा कहा जाता है। सडक़ से नीचे उतरते ही झरने से घिरी वह जगह मिलती है, जिसके बारे में कहा जाता है कि कबीर ने कुछ समय यहां बिताया था। मगर, जो तस्वीर दिख रही है वह सिद्ध बाबा का आश्रय रहा है। घुमावदार पहाडिय़ों के खत्म होने के बाद और शुरू होने पर अक्सर इस तरह के आस्था के केंद्र दिखाई देते हैं। इस गुफा नुमा आस्था स्थल पर एक सुराख है। दशकों से यहां से गुजरने वाले लोग उस सुराख में सिक्के डालते हैं और आगे बढ़ते हैं। अब तक हजारों सिक्के इस गुफा के भीतर समा चुके हैं। किसी काल में खुदाई होगी तब पता चलेगा कि ये सिक्के काम के भी हैं या नहीं।
वोटिंग और डिस्काउंट
रायपुर दक्षिण में चुनाव आयोग ने मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए यथासंभव कोशिश की है। आम तौर पर रायपुर की चारों सीटों पर आम चुनाव में 60 फीसदी के आसपास मतदान हुआ था। जबकि इससे सटे अभनपुर, और धरसींवा में भारी मतदान हुआ था। आयोग की पहल पर मतदाताओं को प्रोत्साहित करने के लिए कई होटल-रेस्टॉरेंट ने विशेष छूट का ऐलान किया है। इसमें मतदाताओं को बिल में पांच से 30 फीसदी तक डिस्काउंट देने का ऐलान किया है। इस डिस्काउंट ऑफर का लाभ लेने के लिए मतदाताओं को अपनी उंगली पर लगी स्याही दिखानी होगी। यह ऑफर 19 नवंबर तक रहेगा।
दिलचस्प बात यह है कि इस तरह का ऑफर विधानसभा आम चुनाव में भी दिया गया था, तब रायपुर दक्षिण में 61 फीसदी के आसपास ही मतदान हो पाया। इस बार दोनों ही प्रमुख पार्टी कांग्रेस, और भाजपा हर मतदाता तक अपनी पहुंच बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। अकेले उपचुनाव की वजह से दोनों ही पार्टी की पूरी ताकत यहां लगी हुई है। ऐसी स्थिति में मतदान का प्रतिशत बढ़ता है या नहीं, यह तो 13 तारीख को पता चलेगा।
साहू वोट, बड़ा मुद्दा
रायपुर दक्षिण में साहू समाज के वोटरों को कांग्रेस के पक्ष में करने के लिए पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू, और कसडोल विधायक संदीप साहू लगे हुए हैं। इन सबके बीच भाजपा ने साजा विधायक ईश्वर साहू को प्रचार में उतारा है।
भुवनेश्वर साहू हत्याकांड के बाद विधानसभा आम चुनाव में साहू वोटर भाजपा की तरफ शिफ्ट हुए थे। भाजपा ने भुवनेश्वर के पिता ईश्वर को प्रत्याशी बनाया था, जिन्होंने दिग्गज नेता रविन्द्र चौबे को हराया। ईश्वर लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के लिए स्टार प्रचारक साबित हुए।
इस बार उपचुनाव में भी पार्टी ने उन्हें चुनाव मैदान में उतारा है। मगर कांग्रेस ने कवर्धा के लोहारीडीह में सरपंच कचरू साहू की हत्या, और साहू समाज के लोगों को प्रताडि़त करने का मुद्दा बनाया है। ऐसे में ईश्वर उपचुनाव में कितना कारगर साबित होते हैं, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
निजी प्रैक्टिस पर बढ़ती रार
प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक के विरोध में डॉक्टरों का आक्रोश थमने का नाम नहीं ले रहा है। स्वास्थ्य मंत्री ने इस दिशा में कुछ राहत देने के लिए सीमित छूट की घोषणा की है, लेकिन मामला अभी भी गरमाया हुआ है। इसका प्रभाव अब उन निजी अस्पतालों तक भी पहुंच गया है, जहां आयुष्मान कार्ड और अन्य सरकारी योजनाओं के तहत मरीजों का इलाज होता है। स्वास्थ्य विभाग ने इन अस्पतालों से शपथ-पत्र लेने का आदेश दिया है, जिसमें यह प्रमाणित करना होगा कि उनके यहाँ कोई भी सरकारी डॉक्टर, चाहे अंशकालिक हो या ऑन-काल, सेवाएं नहीं देता है।
इस कदम ने अस्पताल संचालकों और सरकारी डॉक्टरों दोनों को नाराज कर दिया है। सवाल यह उठता है कि सरकारी डॉक्टरों से लिखित घोषणा करवाने के बावजूद निजी अस्पतालों से भी शपथ-पत्र क्यों लिया जा रहा है? संचालकों में तो असंतोष है ही, साथ ही डॉक्टर भी नाखुश हैं। खासतौर से विशेषज्ञ डॉक्टरों की नाराजगी अधिक है। उन्हें भी सिर्फ घर से ही प्रैक्टिस करने को कहा जा रहा है। उनका सवाल है कि अगर कोई गंभीर मरीज आता है तो घर में अस्पताल जैसी सुविधाओं के अभाव में उसका इलाज कैसे हो सकेगा?
इसके अलावा, डॉक्टरों को मिलने वाला 'नॉन प्रैक्टिसिंग अलाउंस' भी 25 से 30 हजार रुपये के बीच है। चिकित्सकों का एक वर्ग चाहता है कि उन्हें यह भत्ता तो मिलता रहे, पर सरकार उनकी प्राइवेट प्रैक्टिस में हस्तक्षेप न करे। इस मुद्दे पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन भी सरकार के खिलाफ खड़ा है।
प्राइवेट प्रैक्टिस और अस्पतालों में सेवाएं देने पर रोक का मुद्दा अब राजनीतिक रंग भी लेता जा रहा है। चर्चा है कि भाजपा के भीतर ही कुछ लोग, जो वर्तमान सरकार और मंत्रियों से नाखुश हैं, डॉक्टरों को इस मामले में भडक़ाने का प्रयास कर रहे हैं। कुल मिलाकर, इस पेचीदा मसले का हल ढूंढना स्वास्थ्य मंत्री और सरकार के लिए आसान नहीं दिख रहा है।
स्मार्ट सिटी का कबाड़ होता सिग्नल
चौक-चौराहों पर लगे सीसीटीवी कैमरे सिग्नल तोडऩे, रॉन्ग साइड चलने और ओवरस्पीड वाहनों का रिकॉर्ड दर्ज करते हैं। नियम उल्लंघन करने पर आपके मोबाइल पर चालान आ जाता है। बीते कुछ वर्षों में जुर्माने की रकम भी बढ़ा दी गई है। पहली बार सिग्नल तोडऩे या ओवरस्पीड गाड़ी चलाने पर 1000 रुपये, रॉन्ग साइड जाने पर 2000 रुपये का जुर्माना। हर बार यह जुर्माना बढ़ता जाएगा। इसके बाद वाहन का रजिस्ट्रेशन और ड्राइविंग लाइसेंस भी रद्द हो सकता है। इस ऑटोमैटिक प्रणाली को तैयार करने में 100 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आया है।
लेकिन यह सब क्यों? अगर इसका उद्देश्य लोगों को यातायात नियमों का पालन करवाकर सडक़ दुर्घटनाएं रोकना है तो राजधानी रायपुर के कई चौक-चौराहों पर सिग्नल बंद क्यों हैं? यहां नियम तोडऩे पर भले ही चालान न हो, लेकिन अगर दुर्घटनाएं होती हैं तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? यह तस्वीर सरोना के एक चौक की है। ([email protected])
दीपावली के बाद अब मिलन
साय सरकार के मंत्रियों ने भले ही मीडिया से दूरी बना रखी है, लेकिन डिप्टी सीएम अरुण साव का मिजाज थोड़ा अलग है। उन्होंने रोड कांग्रेस का कार्यक्रम निपटने के बाद अपने निवास पर मीडिया कर्मियों को हाई-टी पर आमंत्रित किया, और उनसे विभागीय कामकाज से परे अनौपचारिक चर्चा की।
दस महीने में पहली बार किसी मंत्री के बुलावे पर मीडिया कर्मी काफी खुश थे। मीडिया, और बाकी लोगों को बुलाने का सिलसिला चल रहा है।
अभी बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री आए, तो उनका सीएम के घर जाना कई दिन पहले से तय था। लेकिन उनके रायपुर पहुँचते ही उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने उन्हें अपने घर न्यौता दिया, और रात दस बजे से सुबह दो-तीन बजे तक मुलाकाती उनसे मिलते हुए बने रहे। दो दिन बाद धीरेंद्र शास्त्री का मुख्यमंत्री के घर जाना, हफ्ते भर पहले से तय था, लेकिन भाजपा के अधिकतर नेता, कुछ ख़ास पत्रकार, चुनिंदा अफसर विजय शर्मा के बंगले पर दो तारीख की रात ही अचानक हुए कार्यक्रम में उनसे मिल लिए थे।
उम्मीदवारों की उम्मीदें
रायपुर दक्षिण में कांग्रेस संसाधनों की कमी से जूझ रही है। बावजूद इसके पहली बार चुनाव लड़ रहे युवक कांग्रेस अध्यक्ष आकाश शर्मा अपने युवा साथियों के बूते पर कड़ी टक्कर दिख रहे हैं। इन सबके बीच पार्टी नेता संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए कारोबारियों से मेल मुलाकात कर रहे हैं, जिसकी खूब चर्चा भी हो रही है।
प्रदेश में पार्टी की सरकार नहीं है, स्वाभाविक है कांग्रेस को फंड की कमी तो होगी ही। सुनते हैं कि दो प्रमुख नेता, फंड जुटाने के लिए कुछ कारोबारियों से मिले। इनमें एक निगम के पदाधिकारी भी थे। बातचीत शुरू हुई, और चुनाव खर्च के लिए सहयोग की बात आई।
कारोबारी ने उदारता दिखाते हुए प्रत्याशी तक मदद पहुंचाने का वादा किया। मगर पदाधिकारी ने उन्हें प्रत्याशी के बजाए सीधे पार्टी दफ्तर में ‘मदद’ पहुंचाने के लिए कहा। मदद पार्टी दफ्तर तक पहुंच गई, लेकिन बाद में उसे यह कहकर लौटा दिया गया कि मदद उम्मीद से काफी कम है। अब कारोबारी ने आगे मदद की है या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन इसकी कारोबारियों के बीच काफी चर्चा हो
रही है।
दूसरी तरफ, भाजपा का भी हाल इससे अलग नहीं है। दिग्गजों के फोन कारोबारी संस्था के प्रमुखों तक पहुंच रहे हैं। यहां तक कहा गया कि चुनाव जीतने के बाद प्रत्याशी मंत्री बन सकते हैं। ऐसे में संस्था के हितों का ध्यान रखा जाएगा। अब इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो पता नहीं लेकिन कई कारोबारी चुनाव के चलते काफी परेशान हैं। और कुछ ने तो सीधे तौर पर हाथ खड़े कर दिए हैं।
नक्सली पीछे हटे पर खौफ नहीं गया
बस्तर में आमतौर पर नए कैंप खोलने पर सुरक्षाबलों का ग्रामीण विरोध करते हैं, लेकिन इस बार उलटा हो रहा है। कांकेर जिले के लोहत्तर थाना क्षेत्र के जाड़ेकूड़से गांव में छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल का कैंप पिछले एक दशक से है। नक्सल गतिविधियों के सिमट जाने के कारण अब पुलिस इस कैंप को किसी दूसरी जगह ले जाना चाहती है। मगर, ग्रामीणों का कहना है कि कैंप की वजह से आसपास के 10-12 गांवों में सुरक्षा का माहौल बना है। स्कूलों में शिक्षक, अस्पतालों में डॉक्टरों की उपस्थिति दिख रही है, विकास कार्यों को बल मिला है। कैंप हटने से नक्सली फिर से सक्रिय होंगे और युवाओं पर जबरन भर्ती का दबाव बनाएंगे, फिर शांति भंग हो सकती है। कैंप के बने रहने की ग्रामीणों की मांग नक्सली खतरे के प्रति उनकी गहरी चिंता को दर्शा रही है। कैंप खुलने से सडक़, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना आसान होता है। आदिवासी भी इसकी जरूरत महसूस करते हैं।
भाजपा सरकार के हालिया कार्यकाल में बस्तर में नक्सलियों पर दबाव बढ़ा है। मुठभेड़ों के दौरान बड़ी संख्या में नक्सलियों की मौत हुई है। लोहत्तर के ग्रामीणों की मांग बताती है कि नक्सलियों के खदेड़े जाने के बावजूद उनका खौफ अब भी बरकरार है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सुरक्षा कैंप हटाना एक सही कदम होगा या फिर ग्रामीणों का डर दूर होते तक इसे बनाकर रखा जाना।
बैगा चलेंगे, बच्चा होगा...
इस मान्यता पर कितने लोग भरोसा करते हैं? यहां तो दर्जनों महिलाएं लेटी हुई हैं और हजारों की भीड़ है। बच्चा नहीं हुआ तो महिलाओं को ज़मीन में पीठ के बल दण्डवत होना है फिर बैगा आएंगे महिलाओं के पीठ के ऊपर चलते हुए जाएंगे। फिर बच्चा हो जाएगा ! इसके लिए बस एक नारियल और अगरबत्ती चाहिए। अंधश्रद्धा का यह खेल धमतरी के पास गंगरेल में अंगारमोती माता मंदिर में देखा जा सकता है।
ब्राह्मण अचानक केंद्र में
रायपुर दक्षिण में भाजपा को ब्राम्हण वोटरों की नाराजगी का खतरा है। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल खुद चुनाव लड़ते थे, तो ब्राह्मण समाज के 80 फीसदी वोट उन्हें मिल जाते थे। बृजमोहन के विरोधी ब्राह्मण प्रत्याशियों को अपने समाज का समर्थन नहीं मिल पाता था। मगर इस बार का माहौल बदला-बदला सा है।
इसकी बड़ी वजह यह है कि बृजमोहन अग्रवाल खुद चुनाव मैदान में नहीं है। और आम चुनाव में भारी वोटों से चुनाव जीतने के मंत्री बने, तो बृजमोहन कोई ठोस काम नहीं कर पाए। उनके तीन हजार शिक्षकों के तबादला प्रस्ताव पर कोई फैसला नहीं हुआ। इसके बाद प्रदीप उपाध्याय आत्महत्या प्रकरण पर उनकी चुप्पी से न सिर्फ ब्राम्हण बल्कि अन्य कर्मचारियों में नाराजगी देखी जा रही है।
बताते हैं कि पार्टी संगठन को इसका अंदाजा भी है और इसके बाद डैमेज कंट्रोल के लिए व्यूह रचना तैयार की गई है। महामंत्री (संगठन) पवन साय ने रायपुर दक्षिण, और अन्य इलाकों के ब्राह्मण नेताओं के साथ बैठक की।
बैठक का प्रतिफल यह रहा है कि सरकार ने प्रदीप उपाध्याय आत्महत्या प्रकरण की कमिश्नर से जांच की घोषणा हो गई। यही नहीं, परिवार के एक सदस्य को तुरंत अनुकंपा नियुक्ति सहित कई और कदम उठाए जा रहे हैं।
रायपुर के ब्राह्मण युवाओं के बीच अच्छी पकड़ रखने वाले योगेश तिवारी, नीलू शर्मा, अंजय शुक्ला, मृत्युजंय दुबे सहित अन्य नेताओं को प्रचार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। देखना है कि आगे क्या नतीजा निकलता है।
एक समाज की अहमियत
दक्षिण के दंगल में एक कारोबारी समुदाय की इन दिनों खूब पूछ परख हो रही है। वैसे यह समाज हमेशा से भाजपा का वोट बैंक रहा है। फिर भी इस बार भाजपा को बहुत मेहनत करनी पड़ रही है। क्षेत्र में दूसरा बड़ा वोट बैंक कहे जाने वाले समाज के लिए हर रोज किसी न किसी होटल में दीपावली मिलन का आयोजन हो रहा है। और इसमें यह कहा जा रहा है कि वोट देने जरूर जाए। क्योकिं भाजपा का पुराना अनुभव है कि इनके वोटर पहले दुकान जाते हैं और फिर दोपहर तक बूथ। और वहां लिस्ट में नाम न होने या बूथ बदलने से नाराज होकर लौट जाते हैं।
इस बार ऐसे वोटर की जिम्मेदारी पार्टी के ही सामाजिक नेताओं को दी गई है। इस समाज का कांग्रेस में अनुभव खट्टा ही रहा है । पार्टी ने कभी भी समाज के किसी नेता को बी फार्म नहीं दिया। खेमे में एक पूर्व मुख्यमंत्री कहते रहे हैं कि जितने लोग मुझसे मिलने आए हैं, उतने भी कांग्रेस को वोट नहीं देते । कांग्रेस ने मनभेद-मतभेद भुलाकर एक वर्ष पहले बागी होकर लड़े प्रत्याशी को भी प्रचार में उतार दिया है ।हालांकि बागी बेटे की वजह से पिता पार्टी में लौट नहीं पाए हैं। अब देखना है कि इस बार समाज का वोट स्विंग कैसे रहता है। वैसे समाज दरबार की बात बहुत मानता है।
अब हादसे हुए तो मंत्रीजी को पकड़ें?
इंडियन रोड कांग्रेस के 87वें अधिवेशन में शामिल होने राजधानी रायपुर पहुंचे केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने ऐसी बड़ी घोषणाएं की है, जो पूरी हुईं तो छत्तीसगढ़ की सूरत सचमुच बदली हुई नजर आएगी। उन्होंने 20 हजार करोड़ रुपये की घोषणाएं की हैं और कहा है कि दो साल के भीतर छत्तीसगढ़ की सडक़ें अमेरिका की तरह हो जाएंगी। अपने भाषण में गडकरी ने माना है कि दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं। हर साल 1.50 लाख से ज्यादा सडक़ दुर्घटनाएं होती हैं। वह पिछले साल बढक़र 1.68 लाख पहुंच गई। उन्होंने यह भी कहा कि यदि भविष्य में रोड इंजीनियरिंग के कारण कोई दुर्घटना होती है तो उसे लिए वे खुद को दोषी मानेंगे। मगर, दोषी मान लेने भर से क्या होगा? किसी को सजा मिले तब तो बात बने। गडकरी के बयान से यह बात ध्यान में आती है कि बिलासपुर से पथर्रापाली जाने वाली नेशनल हाईवे पर, सडक़ बन जाने के बाद रतनपुर से पहले सेंदरी गांव के पास तुरकाडीह बाइपास पर रोजाना दुर्घटनाएं होने लगी थी। एक बार तो एक माह के भीतर रिकार्ड 7 मौतें अलग-अलग दुर्घटनाओं में दर्ज की गई। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रदेशभर की सडक़ों की जर्जर हालत पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान इस सडक़ पर भी संज्ञान लिया। न्याय मित्रों ने सडक़ का निरीक्षण तकनीकी जानकारों के साथ किया। यह पाया कि सडक़ के निर्माण में तकनीकी खामी है। डिजाइनिंग में गड़बड़ी होने के कारण बाइक व हल्के वाहन वाले तेज रफ्तार भारी वाहनों की चपेट में आ रहे हैं। बाद में नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भी इंजीनियरिंग की गड़बड़ी को मान लिया। अब इस रास्ते पर कई बेरिकेट्स और डिवाइडर लगाकर गति को संतुलित किया जा रहा है। अंडरब्रिज बनाने की तैयारी भी है। जब यह हाईवे तैयार हुआ तब भी गडकरी मंत्री थे और ये ही इंजीनियर काम कर रहे थे। इस ब्लैक स्पॉट पर हुई मौतों के लिए कौन जिम्मेदार था। गडकरी की ओर से जिम्मेदारी उठाने के पहले किसकी जिम्मेदारी थी? यह पता नहीं क्योंकि अब तक किसी पर कोई कार्रवाई हुई नहीं है। गडकरी के बयान का सडक़ दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की गंभीरता से शायद ही मतलब निकले।
अशोक स्तंभ के साथ सात फेरे
समय के साथ-साथ सामाजिक परंपराओं में बदलाव आ रहे हैं। पिछले दो तीन वर्षों में छत्तीसगढ़ में हमने देखा कि वैवाहिक समारोह के कार्ड के साथ कई लोगों ने हसदेव अरण्य को बचाने का संदेश दिया था। कुछ ने संविधान की शपथ लेकर शादी की। ऐसा ही पिछले दिनों सूरत में हुआ। एक व्यवसायी परिवार में धूमधाम से एक शादी हुई। मौर्य कुशवाहा समाज के लक्ष्मी और परमानंद मौर्य ने अशोक स्तंभ के फेरे लगाकर विवाह की रस्म पूरी की। वहां मौजूद लोग सम्राट अशोक, भगवान बुद्ध व संविधान का जय-जयकार कर रहे थे। अतिथियों को संविधान की प्रतियां भेंट की गई।
पहले हो चुका है उपचुनाव
रायपुर दक्षिण विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, और भाजपा ने अपनी ताकत झोंक दी है। यहां 13 तारीख को मतदान होगा। बहुत कम लोगों को मालूम है कि रायपुर की सीट पर पहले भी एक बार उपचुनाव हो चुका है। तब रायपुर शहर और ग्रामीण मिलाकर एक सीट ही हुआ करती थी।
आजादी के बाद 1952 में सीपी एंड बरार विधानसभा के पहले चुनाव हुए थे। रायपुर विधानसभा क्षेत्र से प्रजा समाजवादी पार्टी की तरफ से ठाकुर प्यारेलाल विजयी हुए थे। उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी हरि सिंह दरबार को पराजित किया था। बाद में भूदान पदयात्रा के दौरान वर्ष-1954 में जबलपुर के निकट ठाकुर प्यारेलाल सिंह का निधन हो गया। परिणाम स्वरूप यह सीट खाली हो गई।
प्रजा समाजवादी पार्टी ने दिवंगत ठाकुर प्यारेलाल सिंह के पुत्र ठाकुर रामकृष्ण सिंह को प्रत्याशी बनाया। जनवरी 1955 में चुनाव हुए। कांग्रेस की तरफ से पंडित शारदा चरण तिवारी उम्मीदवार बनाए गए। ठाकुर रामकृष्ण सिंह को करीब ढाई हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल हुई थी। उस वक्त सवा 28 हजार वोट पड़े थे।
तब गुढिय़ारी, राजातालाब, रामसागरपारा, ब्राम्हण पारा, बैजनाथ पारा, छोटा पारा, बैरन बाजार, सदर बाजार, तात्यापारा, अमिन पारा, पुरानी बस्ती, गोल बाजार, रेलवे कॉलोनी, टिकरापारा, मौदहापारा रायपुर विधानसभा क्षेत्र का आता था। अब रायपुर चार विधानसभा, उत्तर, दक्षिण, पश्चिम, और ग्रामीण में तब्दील हो चुका है। वर्तमान में अकेले रायपुर दक्षिण में मतदाताओं की संख्या दो लाख 70 हजार पहुंच चुकी है। अब इस उपचुनाव का क्या नतीजा निकलता है, यह तो 20 तारीख को पता चलेगा।
9.15 के बाद पहुंचे तो हाफ-डे
देश भर के अधिकारी कर्मचारियों के लिए ऑफिस पहुंचने की टाइमिंग को लेकर एक नया फरमान जारी हुआ है। अब इन्हें 15 मिनट लेट आने की ही परमिशन होगी। अब असल बात यह है कि यह आदेश मानता कौन है। जो आधे से पौन घंटे देर से आने वालों के लिए तो एडवांटेज मिल जाएगा। सरकार के दिए ये 15 मिनट उस पर अपना टाइम। यानी राष्ट्रपति सचिवालय से लेकर दूर गांव के डाकघरों के केंद्रीय कर्मचारियों को हर हाल में दफ्तर में सुबह 9.15 बजे तक पहुंचकर अपनी उपस्थिति बायोमेट्रिक सिस्टम में पंच करना अनिवार्य होगी।
कोरोना काल के बाद से अधिकांश सरकारी कर्मचारी बायोमेट्रिक पंच नहीं कर रहे थे, जिससे उपस्थिति की समस्या उत्पन्न हुई? इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने आदेश जारी किया है कि सभी कर्मचारी अब नियमित रूप से बायोमेट्रिक उपस्थिति सुनिश्चित करें। डीओपीटी के आदेश में यह भी कहा गया है कि अगर कर्मचारी सुबह 9.15 बजे तक दफ्तर नहीं आए, तो उनका हाफ-डे लगा दिया जाएगा। सभी विभाग प्रमुख अपने स्टाफ के दफ्तर में मौजूदगी और समय पर आने-जाने की निगरानी भी करेंगे।
समय की इसी पाबंदी को लेकर छत्तीसगढ़ कैडर की एक अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटना चाहती थीं। प्रतिष्ठित रक्षा मंत्रालय में पदस्थ थीं। फिर तोड़ निकालकर साउथ ब्लॉक से बाहर के विभाग में पोस्टिंग करा लिया। अब बात महानदी और इंद्रावती भवन से तहसील तक के लेट कमर्स की करें। वो तो नवा रायपुर के लिए मुफ्त की स्टाफ बस की सुविधा न मिली होती तो कोई भी 11 बजे के पहले नहीं पहुंचते। वैसे जीएडी चाहे तो पुराना मंत्रालय से 11 बजे निकलने वाली बीआरटीएस बस को चेक कर लें तो 72 सीटर बस ओवरलोड में 150 लेट कमर्स हर रोज मिलेंगे। ऐसे ही लोग बायोमेट्रिक का विरोध करते हैं ।
वहां हंगामा, यहां सब चंगा जी
अस्पताल में फर्श पर तड़पते मरीज की जिस तस्वीर से हमारी सरकार, डॉक्टर और नर्स ने नजर चुरा ली, कोई भी विचलित नहीं हुआ, उसी को गुजरात ने नाक का सवाल बना लिया। हाल ही में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने बिलासपुर के जिला अस्पताल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया था। इसमें अस्पताल के बरामदे पर एक घायल मरीज तड़प रहा था, जिसे डॉक्टर, नर्स और दूसरे स्टाफ नजरअंदाज कर आगे बढ़ जा रहे थे। इसी वीडियो पर गुजरात साइबर सेल ने बैज के खिलाफ भ्रामक खबर फैलाने के आरोप में मामला दर्ज किया है ऐसी खबर उड़ गई। यह कहते हुए कि इस वीडियो को गुजरात के अस्पतालों की स्थिति बताकर जनता को भ्रमित किया गया। हालांकि, यह बाद में साफ हुआ कि इस वीडियो क्लिप का गुजरात की तस्वीर बताते हुए किसी अन्य महिला ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर पोस्ट कर दी है। पुलिस ने उस महिला के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।
छत्तीसगढ़ में साइबर सेल या सरकार के किसी दूसरे महकमे को इस वीडियो ने विचलित नहीं किया। शायद यह मानकर कि, छत्तीसगढ़ है- यहां तो सब ऐसा ही है। मगर, गुजरात में इसी वीडियो क्लिप ने इतनी सनसनी फैला दी कि वहां एक जांच एजेंसी को सक्रिय होना पड़ गया। इसका मतलब क्या है? मतलब यह है कि गुजरात के अस्पतालों की दशा, छत्तीसगढ़ जैसी नहीं है। ऐसी तुलना भी की गई तो यह प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया जाएगा। भले ही दोनों जगह मोदी की गारंटी वाली सरकार क्यों न हो।
इस बार सचमुच उम्मीद से?
रायपुर दक्षिण चुनाव के नतीजे चाहे जो भी हो, लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज मेहनत में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। खुद प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने बुधवार को अनौपचारिक बैठक में बैज की सराहना भी की।
चर्चा के बीच एक-दो नेताओं ने संसाधनों की कमी का रोना रोया, और कहा कि आगामी दिनों में कार्यकर्ताओं को संसाधन उपलब्ध कराने की जरूरत है। इस पर पायलट ने साफ शब्दों में कहा बताते हैं कि संसाधनों से चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा के पास असीमित संसाधन हैं, और संसाधनों में उनसे कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता है। पायलट ने आगे कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं के हौसले पर चुनाव लड़ रही है, और भरोसा जताया कि अंतत: जीत कांग्रेस को ही मिलेगी। कुल मिलाकर पायलट इस बार उम्मीद से हैं। देखना है आगे क्या होता है।
जंगल में मंगल !!
सरकार के विभागों की तरफ से अलग-अलग प्रकरणों पर हाईकोर्ट में जवाब समय पर दाखिल नहीं हो पाता है। इसकी वजह से कई प्रकरणों पर सुनवाई लंबी खिंच जा रही है। एजी ऑफिस ने सिंचाई विभाग के एक प्रकरण पर तो ईई के खिलाफ कार्रवाई की भी सिफारिश कर दी थी।
ताजा मामला वन विभाग से जुड़ा हुआ है। हाईकोर्ट में हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स पद पर पदोन्नति से जुड़े विवाद पर सुनवाई चल रही है। इस पूरे मामले में एसीएस की हिदायत के बावजूद जवाब दाखिल नहीं हुआ था। इसके बाद अब एसीएस (वन) ने कड़ा रुख दिखाते हुए सीधे तौर पर ओआईसी को दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी दे दी है। इसके बाद से विभाग में हडक़ंप मचा हुआ है। प्रकरण पर अगले हफ्ते सुनवाई है। देखना है आगे क्या होता है।
समिति बनेगी या आमसभा होगी?
सामान्य प्रशासन विभाग ने एक लंबे अर्से बाद संयुक्त परामर्शदात्री समितियों (जेसीसी) की सुध ली है। अवर सचिव ने सभी विभागों और कलेक्टरों को निर्देश जारी किया है। इसमें कहा है कि अपने अपने जिलों, विभागों में मान्यता प्राप्त कर्मचारी संघों के एक एक सदस्य को शामिल कर संयुक्त परामर्शदात्री समितियों का गठन किया जाए। यह तो हुई व्यवस्थागत आदेश की बात। और यहां से शुरू होगा कर्मचारी संगठनों में राजनीतिक द्वंद्व।
प्रदेश में तीन सौ से अधिक मान्यता प्राप्त अधिकारी कर्मचारी संगठन। इनमें 110 से अधिक फेडरेशन से सम्बद्ध है। इनके अलावा महासंघ, बीएमएस संबंद्ध, पेंशनर्स ये संघ भी हैं। जीएडी ने कहा है इनमें से हर जिले की जेसीसी में एक एक संघ के एक एक प्रतिनिधि को शामिल किया जाए। ऐसा होने पर हर जिले की जेसीसी भी तीन सौ सदस्यीय हो जाएगी। लेकिन जीएडी और कलेक्टर विभाग प्रमुख ऐसा नहीं करते। वे मात्र दर्जन डेढ़ दर्जन सदस्य ही लेते हैं।
ऐसे में कर्मचारी नेताओं में सदस्य बनने होड़ मचेगी। और जो नहीं बन पाएगा उसकी भूमिका 'फूफा’ जैसी होनी निश्चित है। इतना ही नहीं ऐसे नाराज लोगों का पाला बदलना या विभीषण बनना भी तय है। निहारिका बारिक सिंह कमेटी की बैठक में जेसीसी गठन की मांग उठाकर कर्मचारी राजनीति के शांत समुद्र में कंकड़ मारकर, नेताओं में अपने ही लिए समस्या खड़ी कर ली है। जीएडी ने भी मांग और मौके का फायदा उठाकर गठन के आदेश जारी कर दिए। अब कर्मचारी राजनीति की धार देखना है।
क्या चल रहा है स्वास्थ्य विभाग में ?
राज्य के प्रमुख मंत्रालय जैसे स्वास्थ्य, और गृह न केवल आकार में बड़े हैं बल्कि राज्य में सुशासन सुनिश्चित करने के लिए इनका चुस्त-दुरुस्त रहना बेहद आवश्यक है। प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बिगड़ रही है। हत्या, चाकूबाजी के अलावा सीधे पुलिस और प्रशासन के खिलाफ उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन इस पूरी स्थिति को गृह मंत्री और डिप्टी सीएम विजय शर्मा की चूक कहना सही नहीं होगा; हालात काबू में करने में जरूर कुछ कमियां दिखाई दे रही हैं।
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल का मामला अलग है। कुछ दिन पहले उन्होंने सिम्स मेडिकल कॉलेज, बिलासपुर में समीक्षा बैठक बुलाई, जिसमें डीन अनुपस्थित थे। इस पर बिना देरी किए, मंत्री ने निलंबन का आदेश जारी कर दिया। परंतु, यह आदेश जल्द ही हाईकोर्ट में ध्वस्त हो गया, क्योंकि डीन डॉ. सहारे परिवारिक शोक के चलते विधिवत अवकाश पर थे। इसके बाद स्थिति विकट हो गई। अब कॉलेज में हाईकोर्ट के आदेश से लौटे डॉ. सहारे और स्वास्थ्य विभाग द्वारा नियुक्त डॉ. रणमेश मूर्ति के बीच पदभार को लेकर लड़ाई चल रही है। स्टाफ में भ्रम फैला हुआ है और व्यवस्थाएं डगमगा रही हैं।
इधर, स्वास्थ्य विभाग में निजी प्रैक्टिस पर रोक लगाने के निर्णय ने डॉक्टरों में असंतोष भडक़ा दिया है। राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज के 22 डॉक्टर इस्तीफा दे चुके हैं, और पूरे प्रदेश में यह संख्या 30 तक पहुँच गई है। सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर रोक हमेशा एक पेचीदा मुद्दा रहा है। ऐसी स्थिति में, जब राज्य के सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सकों की भारी कमी है, हर इस्तीफा एक नई चुनौती खड़ी कर रहा है।
मंत्री जायसवाल द्वारा झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आदेश भी शुरुआती दिखावे तक सीमित रह गया। बलौदाबाजार में जब पत्रकारों ने झोलाछाप डॉक्टरों को कुछ स्वास्थ्य अधिकारियों का संरक्षण मिलने का आरोप लगाया, तो मंत्री भडक़ उठे और सबूत की मांग करने लगे। मंत्री का यह रवैया, मानो वे आलोचना सुनना ही नहीं चाहते, उनके कामकाज के तरीकों पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है। पहली बार विधायक बनने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय जैसा बड़ा दायित्व संभालने वाले जायसवाल के स्वास्थ्य क्षेत्र में कई चुनौतियाँ हैं। उनके सामने मोतियाबिंद ऑपरेशन के दौरान आंख गंवाने वाले मरीजों को न्याय दिलाने जैसे संवेदनशील मुद्दों का समाधान करने की चुनौती भी तो है। ([email protected])