पश्चिम में 15वीं शताब्दी में भारत को खोजने की होड़ छिड़ी थी. कई नाविक भटक रहे थे. लेकिन 20 मई 1498 को वास्को डा गामा से कालीकट पहुंच कर भारत को खोज ही निकाला.
यूरोपीय देशों के लिए भारत एक पहेली जैसा था. अरब देशों के साथ यूरोप का व्यापार था. यूरोप अरब जगत से मसाले, खासकर काली मिर्च और चाय खरीदता था. लेकिन अरब कारोबारी उन्हें ये नहीं बताते थे कि ये मसाले और चाय कहां पैदा होते हैं. यूरोप इतना समझ चुका था कि अरब कारोबारी कुछ छुपा रहे हैं. रोमन सभ्यता के इतिहास से उन्हें पता था कि पूर्व में एक अलग संस्कृति वाला समृद्ध देश है.
उस देश को खोजने बड़ी संख्या में यूरोप के नाविक निकल पड़े. इनमें एक नाम था इटली के क्रिस्टोफर कोलंबस का. भारत खोजने निकले कोलंबस अटलांटिक महासागर में भटक गए और अमेरिका की तरफ पहुंच गए. कोलंबस को शुरुआत में लगा कि उन्होंने भारत खोज लिया है, इसीलिए वहां के मूल निवासियों को रेड इंडियंस कहा गया.
कोलंबस की पहली यात्रा के करीब पांच साल बाद जुलाई 1497 में पुर्तगाल के युवा नाविक वास्को डा गामा भारत की खोज में निकले. 1460 में पैदा हुए वास्को डा गामा एक हुनरमंद कप्तान थे. चार जहाजों के साथ यात्रा की शुरुआत पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन से हुई. उनका अपना जहाज सेंट गाब्रियल 200 टन का था.
कहा जाता है कि वास्को डा गामा सीधे दक्षिण अफ्रीका पहुंचे. वहां उन्होंने कई भारतीयों को देखा. उन्हीं के जरिए वास्को डा गामा को पता चला कि भारत अभी और आगे है. दक्षिण अफ्रीका के आखिरी छोर के मोड़ 'कैप ऑफ गुड होप' का मोड़ काटते ही वो हिंद महासागर में दाखिल हो गए. इसके बाद उनके ज्यादातर साथी बीमार पड़ गए. खाना कम पड़ गया. जान बचाने के लिए वो मोजाम्बिक में रुके. मोजाम्बिक के सुल्तान को उन्होंने यूरोपीय उपहार दिए. तोहफों से सुल्तान ऐसे खुश हुए कि उन्होंने वास्को डा गामा की भरपूर मदद की और भारत का रास्ता खोजने में भी मदद की.
ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार 20 मई वर्ष का 140 वां (लीप वर्ष में यह 141 वां) दिन है। साल में अभी और 225 दिन शेष हैं।
आखिरकार 20 मई 1498 को वास्को डा गामा कालीकट के तट पर पहुंच गए. कालीकट के राजा ने उनसे कारोबार करने की हामी भरी. कालीकट में तीन महीने बिताने के बाद वो वापस पुर्तगाल लौटे. उनके 199 नाविकों में सिर्फ 55 जिंदा बचे. 1499 में वास्को डा गामा के लिस्बन पहुंचने के बाद पूरे यूरोप में भारत की खोज की खबर फैलने लगी.
इसके बाद कब्जे का दौर शुरू हुआ. 1502 को पुर्तगाल के राजा ने वास्को डा गामा को 20 नौसैनिक जहाजों के साथ भारत के लिए रवाना किया. पुर्तगाली कालीकट और उसके आस पास के इलाके को अपने नियंत्रण में रखना चाहते थे. पूर्वी अफ्रीका के तट के सहारे वास्को डा गामा ने अरबों पर बर्बर हमले किये. कालीकट पहुंचने पर भी हमले जारी रहे. कालीकट के राजा के आत्मसमर्पण के बाद कोच्चि के राजा से समझौता किया. इसके तहत मसालों का कारोबार बनाए रखने की संधि हुई.
1503 में वास्को डा गामा पुर्तगाल लौट गए. वहां 20 साल रहने के बाद वो फिर भारत आए. 1524 में तीसरी बार भारत पहुंचे वास्को डा गामा की तबियत गड़बड़ा गई. 24 मई 1524 को उनकी मौत हो गई. पहले उन्हें कोच्चि में ही दफनाया गया. बाद में 1538 में कब्र खोदी गई और वास्को डा गामा के अवशेषों को पुर्तगाल लाया गया. लिस्बन में आज भी उस जगह एक स्मारक है जहां से वास्को डा गामा ने पहली भारत यात्रा शुरू की.
पिछले कुछ समय से सरकार के मंत्री ताम्रध्वज साहू नाराज चल रहे हैं। वे अपने बेेटे को दुर्ग से टिकट दिलाना चाहते थे, मगर उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी। अभी नाराजगी मंत्रियों के विभाग में छोटे से परिवर्तन को लेकर है। सीएम भूपेश बघेल ने अस्पताल में भर्ती मंत्री रविन्द्र चौबे का विधि-विधायी विभाग मोहम्मद अकबर को दे दिया। सुनते हैं कि ताम्रध्वज इसको लेकर नाराज हो गए।
हल्ला है कि उन्होंने प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया और अन्य नेताओं से इस पर आपत्ति भी जताई है। बाद में उन्हें समझाया गया कि चुनाव आचार संहिता हटने के तुरंत बाद विधि-विधायी विभाग से जुड़े कई अहम फैसले होने हैं। चूंकि रविन्द्र चौबे को पूरी तरह ठीक होने में कुछ वक्त और लग सकता है। ऐसे में अकबर को चौबे के स्वस्थ होने तक विधि-विधायी विभाग का प्रभार दिया गया है। इसमें चौबे की भी सहमति रही है। तब कहीं जाकर वे थोड़े बहुत नरम पड़े। वैसे उनका मिजाज उस समय से और ज्यादा बिगड़ा हुआ है जब प्रतिमा चंद्राकर को दुर्ग से प्रत्याशी बनाया गया। प्रतिमा ने विधानसभा चुनाव में अपनी जगह ताम्रध्वज को टिकट देने का विरोध किया था।
इसके अलावा ट्रांसफर-पोस्टिंग के भी कुछ ऐसे मामले थे जिनमें ताम्रध्वज की बात मुख्यमंत्री ने किन्हीं वजहों से नहीं सुनी, और उन्हें लेकर वे बिफरे हुए रहे। अब लोकसभा चुनाव निपट जाने के बाद कई लोगों के बीच छोटे-छोटे विवाद सामने आ सकते हैं जिनमें कई ऐसे लोगों के मामले भी हैं जिनके खिलाफ चुनाव में कांगे्रस को खासा नुकसान पहुंचाने के सुबूत हैं, लेकिन जो अब तक मजे कर रहे हैं।
रिटायरमेंट के बाद...
प्रदेश में जितने आईएएस-आईपीएस अफसर रिटायर होने वाले हैं, उतनी ही चर्चा चल रही है कि बाद में किसे कौन सी कुर्सी मिलेगी। कुछ रिटायर्ड लोगों ने अपने नाम की चर्चा तरह-तरह से शुरू करवा दी है, और कुछ रिटायर होने वाले लोग मुख्यमंत्री तक अपनी खूबियां पहुंचाने में लगे हुए हैं। कुल मिलाकर कोई भी ऐसे नहीं दिखते जो रिटायर होने के बाद सचमुच रिटायर होना चाहते हों। जाहिर है कि सरकार की ऐसी मेहरबानी पाने के लिए लोग नौकरी के आखिरी एक-दो बरस सरकार की खुशामद में सभी कुछ करने को तैयार रहते हैं। और तो और कुछ कुर्सियों पर रिटायर्ड जजों को ही मनोनीत किया जाता है, और उसके लिए भी लोग चर्चा में रहते हैं कि किसे और क्यों क्या बनाया जाएगा।
आदत क्यों बिगाड़ रहे हैं?
एक तरफ हर सरकार में बहुत से मंत्री भारी कमाई करने के लिए चर्चा में रहते हैं, तो दूसरी तरफ टी.एस. सिंहदेव देश के सबसे संपन्न गिने-चुने अरबपति विधायकों में से एक हैं, और अस्पतालों की जरूरत को पूरा करने के लिए वे अपनी जेब से एसी और कूलर लगवा रहे हैं। अब दूसरे बहुत से नेता यह देखकर परेशान हो रहे हंै जो हैं तो खासे संपन्न लेकिन जो निजी घर का कमोड भी सरकारी खर्च से बदलवा रहे हैं। ऐसे एक सत्तारूढ़ नेता ने कहा कि बाबा (टी.एस. सिंहदेव) के पास ज्यादा पैसा है तो घर पर रखें, सरकारी कामकाज में निजी पैसा खर्च करके जनता की उम्मीद क्यों बढ़ा रहे हैं? ऐसे में हम जनता के पैसों से अपना कुछ भी नहीं कर सकेंगे। अब विधानसभा चुनाव के वक्त से लेकर अब तक टी.एस. सिंहदेव के निजी खर्च को लेकर कई किस्म की कहानियां हवा में हैं जिनकी सच्चाई वे ही बता सकते हैं। कुछ लोगों का कहना और मानना है कि उन्होंने अपनी बहुत सी जमीनें बेचकर विधानसभा चुनाव के वक्त पार्टी को एक बहुत बड़ी रकम दी है, और वे उसी अंदाज में आज भी जनता के कामों पर घर का खर्च कर रहे हैं।
आज का इतिहास भारत के सबसे युवा राष्ट्रपति के नाम है. 1977 में 25 जुलाई के दिन उन्होंने ये पद ग्रहण किया था. आज उनका जन्मदिन है.
नीलम संजीव रेड्डी भारत के छठे राष्ट्रपति बने. उनका जन्म 19 मई को 1913 में मद्रास प्रेसिंडेंसी के इल्लूर गांव में हुआ.
भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल होने के बाद उनका राजनीतिक करियर लंबा चला. वह इस दौरान कई अलग अलग पदों पर रहे. जब तेलंगाना को आंध्र में मिला कर आंध्रप्रदेश बनाया गया था, उस समय नीलम संजीव रेड्डी इसके पहले मुख्यमंत्री बने थे. 1956 से 1960 तक. इसके बाद दूसरी बार भी वह ही इस प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए.
इसके बाद वे दो बार लोकसभा के स्पीकर के पद पर रहे. 25 जुलाई 1977 को वह भारत के छठे राष्ट्रपति बने. चार साल के अंदर उन्होंने तीन सरकारें देखीं. उनके राष्ट्रपति काल में मोरारजी देसाई, चरण सिंह और फिर इंदिरा गांधी की सरकार रही. 1982 में उनका कार्यकाल पूरा हुआ. इसके बाद जैल सिंह राष्ट्रपति बने.
अपने विदाई भाषण में उन्होंने कार्यकाल के दौरान रही तीनों सरकारों की आलोचना की और कहा कि वे देश की जनता के हालात सुधारने में पूरी तरह विफल रहे. उन्होंने अपील की कि मजबूत विपक्ष को खड़ा होना चाहिए ताकि सरकार के कुशासन को काबू में किया जा सके. पहली जून 1996 को उनकी निमोनिया से मृत्यु हो गई.
प्रदेश कांग्रेस के नेता यूपी में चुनाव प्रचार कर लौट आए हैं। पार्टी हाईकमान ने सरकार के मंत्रियों और संगठन के प्रमुख नेताओं को यूपी के मुख्य रूप से अमेठी, रायबरेली और बाराबंकी में चुनाव प्रबंधन का जिम्मा सौंपा था। संकेत साफ था कि उन्हें खाली हाथ नहीं आना है। खैर, प्रदेश का चुनाव निपटते ही सीएम-मंत्रिगण और सारे प्रमुख नेता यूपी पहुंच गए। अमेठी से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में ज्यादातर नेता वहीं डटे रहे।
सुनते हैं कि अमेठी में पार्टी संगठन का हाल ऐसा था कि स्थानीय लोगों को वहां के प्रमुख पदाधिकारियों का नाम तक नहीं मालूम था। किसी तरह खोजबीन कर जिला अध्यक्ष को बुलाया गया। और उनके साथ मिल बैठकर यहां के नेताओं ने चुनाव प्रचार की व्यूह रचना तैयार की। दो दिन बाद प्रियंका गांधी का रोड शो होने वाला था। रोड शो में किसी तरह कमी न रहे, यह सोचकर जिलाध्यक्ष को मंत्रियों की मौजूदगी में साढ़े 3 लाख दे दिए और सभी जरूरी इंतजाम करने कहा गया।
एक साथ लाखों रूपए देखकर जिलाध्यक्ष महोदय की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और वे इंतजामों को लेकर बढ़-चढक़र दावा कर वहां से निकल लिए। अगले दिन तैयारियों पर चर्चा के लिए यहां के नेताओं ने जिलाध्यक्ष को फोन लगाया, तो उनका मोबाइल बंद मिला। जिलाध्यक्ष का कोई पता नहीं चलने पर हैरान-परेशान नेता दूसरे किसी जिम्मेदार स्थानीय पदाधिकारी की खोज में जुट गए। फिर एक नेता को यह कहकर पेश किया गया कि ये ईमानदार हैं और अमेठी में बरसों से पार्टी का झंडा थामे हुए हैं।
दूध से जले नेताओं ने स्थानीय नेता की ईमानदारी का टेस्ट करने के लिए 50 हजार रूपए दिए और उन्हें रोड शो की तैयारियों में जुटने कहा। पचास हजार रूपए मिलते ही इंतजामों का आश्वासन देकर निकल गए और थोड़ी देर बाद उनका भी मोबाइल बंद हो गया। फिर क्या था, प्रदेश के नेताओं ने अमेठी के नेताओं को छोडक़र खुद ही सारे इंतजाम किए। हाल यह रहा कि छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी महापौर और विधायक सहित अन्य बड़े नेता खुद नारेबाजी करते अमेठी की गलियों में घूमने मजबूर रहे। उन्होंने सफलतापूर्वक रोड शो होने पर राहत की सांस ली।
इस मांग से कोर्ट बेहतर...
पिछली सरकार में ताकतवर रहे कई अफसर जांच के घेरे में आ गए हैं। इनमें से एक पुलिस अफसर जांच का घेरा तोडऩे की भरसक कोशिश कर रहे हैं। चर्चा है कि अफसर ने कांग्रेस के कई राष्ट्रीय नेताओं से जुगाड़ भी बिठाया, बावजूद इसके उन्हें राहत नहीं मिल पाई है। सुनते हैं कि पुलिस अफसर को अभयदान देने के बदले झीरम कांड का रहस्य लिखित में देने के लिए कहा गया। ऐसी शर्त सुनकर पुलिस अफसर भी हक्का-बक्का रह गए। वे मिन्नतें छोडक़र कानूनी लड़ाई में पूरा ध्यान दे रहे हैं। उन्हें कई और लोगों का साथ मिल रहा है। केन्द्र में एनडीए की सरकार आई, तो उन्हें पूरी राहत मिलने की उम्मीद है। वैसे भी राज्य के आधा दर्जन आईएएस-आईपीएस चुनावी नतीजों की राह देख रहे हैं कि एनडीए लौटे तो वे दिल्ली जाने की अर्जी लगा दें।
पुराना माल रक्खा हुआ है...
दूसरों की निजी जिंदगी में तांकझांक करने के लिए कानूनी और गैरकानूनी दोनों किस्म की फोन टैपिंग का लालच बहुत से नेता-अफसर छोड़ नहीं पाते, और इसका कानूनी इस्तेमाल चाहे न हो, बंद कमरे में ऐसी रिकॉर्डिंग सुनकर वे खुश भी होते हैं, और इसके आधार पर कुछ लोगों से दोस्ती पाल लेते हैं, कुछ से दुश्मनी। कानून तो गैरकानूनी फोन टैपिंग के खिलाफ बड़ा सख्त है, लेकिन छत्तीसगढ़ में यह धड़ल्ले से हुई, और अब कुछ नेताओं, कुछ अफसरों, और कुछ पत्रकारों तक यह बात पहुंचाई जा रही है कि आज वे किसी को मुसीबत में देखकर अधिक खुश न हों, क्योंकि उनकी कई निजी और नाजुक बातचीत अब तक हार्डडिस्क पर कायम है, और गैरकानूनी होने पर भी उसे गुमनाम तरीके से बाजार में फैलाया तो जा ही सकता है।
18 मई 1912 भारतीय सिनेमा का एक बड़ा दिन था. उस दिन भारत में एक ऐसी फिल्म रिलीज हुई, जो भारत में बनी पहली फिल्म साबित हो सकती थी.
इस दिन 'श्री पुंडलिक' नाम की एक फिल्म कोरोनेशन सिनेमैटोग्राफ गिरगांव मुंबई में रिलीज की गई. भारत की पहली मूक फिल्म होने की ये उम्मीदवार है. श्री पुंडलिक नाम की ये फिल्म दादा साहेब तोरणे ने बनाई और निर्देशित की थी.
बिना संवादों वाली इस फिल्म के लिए तोरणे और उनके सहयोगी नानासाहेब चित्रे और किर्तीकर ने शूटिंग स्क्रिप्ट लिखी. फिर इसे प्रोसेसिंग के लिए लंदन भेजा गया. ये फिल्म 1,500 फीट लंबी यानी करीब 22 मिनट की थी. लंदन में तैयार होने के बाद इसे मुंबई के गिरगांव के कोरोनेशन सिनेमैटोग्राफ में दिखाया गया. ये फिल्म दो सप्ताह चली.
कुछ लोगों का दावा है कि ये फिल्म पहली भारतीय फिल्म इसलिए नहीं कही जा सकती क्योंकि यह एक मराठी नाटक की फोटोग्राफिक रिकॉर्डिंग थी. और क्योंकि इसके कैमरामैन भारतीय नहीं हो कर ब्रिटेन के जॉन्सन थे.
इसके करीब एक साल बाद भारत के इतिहास में पहली फिल्म के तौर पर गिनी जाने वाली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' रिलीज हुई थी, जिसे दादा साहेब फाल्के ने बनाया था.
इस दिन 'श्री पुंडलिक' नाम की एक फिल्म कोरोनेशन सिनेमैटोग्राफ गिरगांव मुंबई में रिलीज की गई. भारत की पहली मूक फिल्म होने की ये उम्मीदवार है. श्री पुंडलिक नाम की ये फिल्म दादा साहेब तोरणे ने बनाई और निर्देशित की थी.
बिना संवादों वाली इस फिल्म के लिए तोरणे और उनके सहयोगी नानासाहेब चित्रे और किर्तीकर ने शूटिंग स्क्रिप्ट लिखी. फिर इसे प्रोसेसिंग के लिए लंदन भेजा गया. ये फिल्म 1,500 फीट लंबी यानी करीब 22 मिनट की थी. लंदन में तैयार होने के बाद इसे मुंबई के गिरगांव के कोरोनेशन सिनेमैटोग्राफ में दिखाया गया. ये फिल्म दो सप्ताह चली.
कुछ लोगों का दावा है कि ये फिल्म पहली भारतीय फिल्म इसलिए नहीं कही जा सकती क्योंकि यह एक मराठी नाटक की फोटोग्राफिक रिकॉर्डिंग थी. और क्योंकि इसके कैमरामैन भारतीय नहीं हो कर ब्रिटेन के जॉन्सन थे.
इसके करीब एक साल बाद भारत के इतिहास में पहली फिल्म के तौर पर गिनी जाने वाली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' रिलीज हुई थी, जिसे दादा साहेब फाल्के ने बनाया था.
महात्मा गांधी पर भाजपा के अलग-अलग लोग जिस अंदाज में हमला कर रहे हैं, उसे देखकर सब हक्का-बक्का हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने ऐसे लोगों को नोटिस देने की बात कही है, लेकिन भाजपा के नेता हैं कि कूद-कूदकर गांधी पर हमला किए जा रहे हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के भाजपा जिलाध्यक्ष राजीव अग्रवाल शायद भाजपा से ऐसे अकेले नेता हैं जिन्होंने खुलकर साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ सोशल मीडिया पर लिखा है- साध्वी प्रज्ञा का नाथूराम गोडसे को महिमामंडित करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं हैं। नाथूराम गोडसे केवल हत्यारा था, और इसके अलावा कुछ नहीं। साध्वी को देश से माफी मांगनी चाहिए। बीती दोपहर ही उन्होंने यह पोस्ट कर दिया था, हालांकि अमित शाह का बयान खासा बाद में आया है, आज सुबह। अमित शाह के बयान के बाद भी मध्यप्रदेश भाजपा के प्रवक्ता अनिल सौमित्र ने गांधी को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता कहा है। और उनकी इस बात पर देश के बहुत से चौकीदारों ने लिखा है कि जब किसी को राष्ट्रपिता बनाकर दूसरों पर थोपा जाएगा, तो उसकी ऐसी ही प्रतिक्रिया होगी। हालांकि राजनीति में दिलचस्पी लेने वाले लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि चुनाव के बीच में, अभी जब मतदान का एक दौर बाकी है, भाजपा के नेता गांधी को इस तरह कूद-कूदकर लात मारकर आखिर कौन से वोटरों को प्रभावित कर रहे हैं? क्या अब बाकी सीटों पर महज गोडसेवादी वोटर ही बचे हैं?
मुख्यमंत्री की मेज लबालब
चुनाव प्रचार से मुक्त होकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एक बार फिर सरकारी कामकाज पर बैठे हैं, तो उनके टेबिल और कमरे सभी फाइलों से लबालब बताए जा रहे हैं। बहुत से मामलों पर फैसले लेने हैं, और बहुत से नाम भी निगम-मंडल के लिए छांटने हैं। विधानसभा चुनाव को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में भूपेश ने जिस खूबी से जीता है, उसके चलते वे मंत्रिमंडल तो पूरी तरह अपनी मर्जी का बना गए, लेकिन अब निगम-मंडल में मनोनयन में पार्टी के दिग्गज विधायकों से लेकर संगठन के वजनदार लोगों तक सबके बीच संतुलन बनाना उतना आसान नहीं रहेगा। लोगों की बड़ी-बड़ी उम्मीदें हैं क्योंकि पन्द्रह बरस बाद पार्टी सत्ता में है, ऐसे में हर कोई सत्ता की बस में सवार हो जाना चाहते हैं। एक बार फिर धर्म, जाति, जिला, और गुट, इन सभी का ख्याल रखते हुए लोगों के नाम छांटने होंगे, और यही मौका मुख्यमंत्री के सामने सरकारी फिजूलखर्ची को घटाने का भी रहेगा कि ऐसे नाम के कागजी निगम-मंडल, आयोग खत्म किए जाएं जो कि मुफ्तखोरी के लिए बनाए गए थे। यह एक कड़ा और कड़वा फैसला हो सकता है, लेकिन कामयाब लीडरशिप ऐसा जरूर कर सकती है क्योंकि इतने बहुमत से आने के बाद भूपेश बघेल के सामने मध्यप्रदेश की तरह सरकार पलटने का खतरा नहीं है।
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16 मई 2013 को अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पहली बार क्लोन किए गए इंसानी भ्रूण से स्टेम सेल यानि मूल कोशिका निकालने में सफलता पाई. पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से वैज्ञानिक मानव के क्लोन किए गए भ्रूण से स्टेम सेल निकालने की कोशिश कर रहे थे. पहले माना जा रहा था कि इलाज के लिए बनाए जाने वाले कृत्रिम भ्रूण का विकास कोशिकाएं बनने की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही रुक जाता है. मूल कोशिकाएं यानि स्टेम सेल खुद को शरीर की किसी भी कोशिका में ढाल सकते हैं.
वैज्ञानिक काफी समय से कोशिश कर रहे हैं कि पार्किंसन, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, रीढ़ में चोट और आंखों में रोशनी के इलाज में इनका इस्तेमाल हो सके. चूंकि प्रत्यारोपण में शरीर के बाहरी अंग को स्वीकार नहीं करने की आशंका बहुत ज्यादा होती है, इसलिए वैज्ञानिकों ने मरीज के खुद के डीएनए क्लोनिंग करके स्टेम सेल बनाने का फैसला किया. इस प्रक्रिया के तहत सोमेटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर तकनीक के जरिए मरीज का डीएनए खाली अंडाणु में डाला जाता है. 1996 में इसी तकनीक का डॉली भेड़ का क्लोन बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया था. डॉली पहली स्तनपायी प्राणी थी, जिसे क्लोन करके बनाया गया था.
अब चुनावी नतीजों को करीब हफ्ता भर बाकी है, और लोग उम्मीद कर रहे हैं कि चुनाव आयोग की रोक खत्म होते ही टीवी चैनलों और अखबारों पर एक्जिट पोल के अंदाज आने लगेंगे। ऐसे में कांग्रेस के डेटा एनालिटिक्स विभाग के मुखिया प्रवीण चक्रवर्ती की एक ट्वीट पर ध्यान देने की जरूरत है जिसमें कहा गया है कि 2014 से लेकर अब तक जिन बड़े राज्यों में सीटों की भविष्यवाणी की गई थी, वह भारी गड़बड़ी निकली थी। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, हरियाणा, कर्नाटक, पंजाब, बिहार, उत्तरप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल, दिल्ली, केरल, और तमिलनाडु में पिछले 5 बरस के विधानसभा चुनावों के नतीजों के एक्जिट पोल में सीटों की संख्या का हिसाब चार अलग-अलग एजेंसियों का इस प्रकार रहा- एक्सिस-38 फीसदी सहित, चाणक्य- 25 फीसदी, सी वोटर- 15 फीसदी, और सीएसडीएस- 0 फीसदी। अब जो लोग एक्जिट पोल देखना चाहते हैं, वे इस बात को ध्यान में रखकर आगे अपना मनोरंजन कर सकते हैं।