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हिंसानियत में डूबे कुछ हिन्दुस्तानियों के लिए हॉलैंड से आया है एक संदेश
सुनील कुमार ने लिखा है
21-Sep-2025 2:13 PM
हिंसानियत में डूबे कुछ हिन्दुस्तानियों के लिए हॉलैंड से आया है एक संदेश

हॉलैंड की संसद में कल एक महिला सांसद ने खलबली मचा दी जब वे फिलीस्तीन के झंडे के रंगों का ब्लाऊज पहनकर वहां पहुंची। जाहिर तौर पर यह टॉप फिलीस्तीन के साथ हमदर्दी और एकजुटता दिखाने के लिए था। सदन के भीतर स्पीकर वहां की धुर दक्षिणपंथी पार्टी के थे, और उन्होंने इस पर आपत्ति की, और कहा कि सांसदों के कपड़े निष्पक्ष रहने चाहिए। लेकिन यह महिला सांसद सदन से बाहर जाने के पहले कुछ वक्त अपने अधिकार और जिम्मेदारी पर अड़ी रही। उसने स्पीकर को चुनौती भी दी कि अगर वह नियम तोड़ रही है तो उसे शारीरिक रूप से सदन से निकाल दिया जाए, लेकिन फिर वह वहां से बाहर चली गई।

फिर जब वह सदन में लौटी तो उसने तरबूज की तस्वीर वाला टॉप पहन रखा था जो कि फिलीस्तीन का ही प्रतीक माना जाता है। तरबूज का छिलका हरे रंग का होता है, भीतर गूदा लाल होता है, बीज काले होते हैं, और छिलके और गूदे के बीच का रंग सफेद होता है। इस तरह तरबूज फिलीस्तीनी झंडे के हर रंगों वाला होता है। अब इस पर विरोध करने का हक सदन में किसी को नहीं था, और सदन की कार्रवाई का यह पूरा हिस्सा सोशल मीडिया पर उसे पूरी दुनिया की तारीफ दिला रहा है, लगभग पूरी दुनिया की, मुझे यह उम्मीद नहीं करना चाहिए कि फिलीस्तीनियों की मौत का जश्न मनाते हुए लोगों को भी इस महिला का यह हौसला सुहा रहा होगा।

हॉलैंड की डच-पॉलिटिक्स इन दिनों दक्षिणपंथियों के उभार की शिकार है, और सदन में जब कुछ लोगों ने फिलीस्तीनी झंडे वाले पिन अपने कोट या टाई पर लगा रखे थे, दक्षिणपंथी सांसदों ने गाजा में इजराइली बंधकों के समर्थन में पीली रिबीन बांध रखे थे। हॉलैंड में आज सरकार ने गाजा में इजराइली फौजी कार्रवाई को जनसंहार मानने से इंकार कर दिया है, और वहां के कई सांसद इसका विरोध कर रहे हैं। इस सांसद, एस्थर आउवहांड, ने अपने देश की सरकार की नैतिक मुर्दानगी का विरोध करने के लिए फिलीस्तीनियों के साथ ऐसी एकजुटता दिखाई थी।

अपने देश की सरकार की नीतियों के खिलाफ जाकर, देश के बहुसंख्यक ईसाई तबके की नाराजगी का खतरा उठाकर भी एक महिला सांसद ने यह हौसला दिखाया है। अभी मेरे पास यह लिखने की कोई वजह नहीं है कि हॉलैंड की ईसाई बहुसंख्यक जनता इस महिला सांसद के साथ रहेगी, या उसके विरोध करेगी, फिर भी राजनीतिक रूप से मैंने इसे खतरा उठाना लिखा है। अब लिखते-लिखते जब मैं इस बारे में पढ़ रहा हूं तो भरोसेमंद अंतरराष्ट्रीय मीडिया के आंकड़े बता रहे हैं कि हॉलैंड की 65 फीसदी आबादी अपनी सरकार की इजराइल-गाजा नीति के खिलाफ है। हॉलैंड का मीडिया बताता है कि कुल 18 फीसदी लोग सरकारी नीति का समर्थन कर रहे हैं। 60 फीसदी वोटर चाहते हैं कि वहां का मंत्रिमंडल इजराइल के खिलाफ अधिक कड़ा प्रस्ताव पारित करे। 59 फीसदी लोग यह मानते हैं कि इजराइली कार्रवाई अनुपातहीन है। आधे से ज्यादा डच आबादी यह मानती है कि हॉलैंड को, इजराइल को हथियारों की सप्लाई बंद कर देना चाहिए, और इजराइली सामानों का बहिष्कार भी करना चाहिए। 33 फीसदी लोग तुरंत ही एक फिलीस्तीनी राज्य को मान्यता देने के पक्ष में हैं, और इससे भी अधिक लोग वहां पर मानवाधिकार कुचले जाने को लेकर फिक्रमंद हैं। आधी से ज्यादा आबादी यह मानती है कि इजराइल नस्लभेद कर रहा है। आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा, 64 फीसदी यह मानता है कि गाजा में तुरंत युद्धविराम होना चाहिए, और यह भी कि गाजा में जितनी मानवीय मदद की जरूरत है उतनी जाने देने की इजाजत इजराइल दे।

हॉलैंड के आंकड़े बताते हैं कि वहां पर 6 फीसदी आबादी मुस्लिम है, जाहिर है कि मतदाताओं में इससे अधिक अनुपात तो मुस्लिम वोटरों का हो नहीं सकता। फिर भी वहां के बहुत से सांसद और कुछ पार्टियां इजराइली हिंसा और जुल्म के खिलाफ अपने ईसाई, या नास्तिक हो चुके वोटरों के बीच एक तकरीबन सौ फीसदी मुस्लिम गाजा के साथ खड़ी हुई है। जिन पार्टियों ने सार्वजनिक रूप से इजराइल का जमकर विरोध किया है, उनमें आधा दर्जन राजनीतिक दल हैं, और संसद की डेढ़ सौ सीटों में से करीब 45 सांसद इन पार्टियों के हैं।

मैं फिलीस्तीन के मुद्दे पर इतनी बारीकी से इसलिए पढ़ और लिख रहा हूं कि गाजा पर इजराइली जुल्म, अवैध कब्जे, और फौजी हमलों के खिलाफ जख्मी फिलीस्तीनियों से एकजुटता दिखाने के लिए एशिया से गाजा गए हुए एक अमन-कारवां में कोई 15 बरस पहले मैं भी शामिल था। मैं उस वक्त बीबीसी-लंदन, और कुछ दूसरे मीडिया संस्थानों के लिए साथ-साथ रिपोर्टिंग भी कर रहा था, और अपने हुनर से फोटोग्राफी भी कर रहा था। मैंने इजराइलियों के जुल्म के शिकार लोगों को रूबरू देखा हुआ है, उनकी बातें सुनी हुई हैं। हमारे ठीक पहले एक दूसरा शांति-कारवां वहां गया था, और उस पर इजराइली हमले में करीब 12 लोग मारे गए थे। हमारे कारवां पर भी फौजी हमले, या किसी और किस्म के हमले की आशंका बनी हुई थी, लेकिन इजराइल ने ऐसा कोई हमला इसलिए नहीं किया कि हममें 50 से अधिक हिन्दुस्तानी थे, और भारत इजराइली निर्यात का आधे से अधिक का अकेला खरीददार है। दुनिया का कोई समझदार कारोबारी इतने बड़े ग्राहक देश के बहिष्कार का खतरा नहीं उठाता।

लेकिन हॉलैंड की इस बहादुर महिला सांसद, और हमारे सरीखे कारवां की याद से परे आज की हिन्दुस्तान की एक और वजह है जिससे इस बारे में यहां लिखना हो रहा है। आज इस देश में मुस्लिमों से नफरत करने वाले बहुत से ऐसे लोग हैं जो कि इस बात पर खुश हैं कि गाजा में हो, या कहीं और, मुस्लिम जहां भी मारे जा रहे हैं, वे धरती पर से घट तो रहे हैं। यह एक अलग बात है कि ऐसी हिंसक और नफरती सोच रखने वाले लोग आज एक अखंड भारत की कल्पना भी करते हैं जिससे बांग्लादेश, पाकिस्तान सब आज के भारत में मिल जाएंगे। उन्हें यह समझ नहीं पड़ता कि इन दोनों मुस्लिम-बहुल देशों को मिलाकर बने अखंड भारत में मुस्लिमों का अनुपात तो बहुत अधिक बढ़ जाएगा, और इसके साथ-साथ न तो नफरतियों को नापसंद लोगों को पाकिस्तान धकेला जा सकेगा, और न ही आज जिन्हें बांग्लादेशी घुसपैठिया कहा जाता है, उन्हें कहीं निकाला जा सकेगा।

मुस्लिमों की मौत की कामना तो सार्वजनिक रूप से करने में भी बहुत से लोगों को हिचक नहीं है, और न ही अखंड भारत के सपने से ऐसे लोग अभी तक जाग रहे हैं। ऐसे ही लोगों को बताने के लिए आज का यह लिखना जरूरी है कि 6 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले हॉलैंड में एक गैरमुस्लिम महिला सांसद सत्ता की मर्जी के खिलाफ जाकर, संसद के स्पीकर की चेतावनी को अनदेखा करके फिलीस्तीनियों का साथ देने इस तरह कपड़े बदल-बदलकर भी अपनी नीतियां कायम रख रही है। आज की दुनिया में जो शक्ति संतुलन है, उसमें फिलीस्तीन और इजराइल के बीच कुछ भी करने में भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं रह गई है। और जब इस देश की उस मोर्चे पर कोई ताकत नहीं है, कोई अहमियत नहीं है, तो इस देश में इजराइल के पक्ष में हवन करने, और फिलीस्तीनी बच्चों की लाशों की पोटलियों की तस्वीरों पर खुशियां मनाने वाले लोगों की भी इजराइल को कोई जरूरत नहीं है।

दुनिया में नस्लवादी जनसंहार करने के लिए इतिहास के एक सबसे बड़े मवाली और गैंगस्टर डोनल्ड ट्रम्प की अगुवाई में इजराइल अकेला काफी है। लेकिन इतिहास ऐसे लोगों को दर्ज करता है जिन्होंने ऐतिहासिक मानवीय चुनौतियों के दौर में क्या कहा था, और क्या किया था। पौन सदी-एक सदी पहले का भारत का इतिहास गवाह है कि गांधी ने फिलीस्तीनियों के हक के बारे में, और इजराइलियों के अवैध कब्जे के बारे में क्या लिखा था। आज मासूम और बेकसूर फिलीस्तीनियों की मौत पर जो हिन्दुस्तानी मुस्लिम घटने की खुशी मना रहे हैं, उन्हें भी इतिहास दर्ज करते चल रहा है। मैं अभी यह कहने की हालत में नहीं हूं कि इंसानियत की बर्बादी के बेगाने जश्न में नाचते हुए ये हिन्दुस्तानी दीवाने गिनती या अनुपात में कितने है, लेकिन ये दर्ज अच्छी तरह हो रहे हैं। जिस तरह किसी कब्र के पीछे लगे पत्थर में यह दर्ज होता है कि वहां कौन दफन हैं, इन लोगों के नाम इंसानियत की कब्र के पीछे के पत्थर पर दर्ज रहेंगे।

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