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एक नए सर्वे से पता चला है कि अमेरिका में तीन चौथाई टीनएजर्स ने कभी ना कभी एआई साथी का इस्तेमाल किया है. इनमें से आधे युवाओं ने तो चैटबॉट के साथ अपनी वर्चुअल रिलेशनशिप को नियमित रूप से आगे बढ़ाया.
डॉयचे वैले पर ऋतिका पाण्डेय की रिपोर्ट-
दुनिया के ज्यादातर बच्चे टीनएज में विपरीत सेक्स में और एलजीबीटीक्यू+ स्पेक्ट्रम के युवा समान सेक्स में रुचि लेने लग जाते हैं. इस कच्ची उम्र में उन्हें सही गलत का अंतर सिखाने और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए माता पिता काफी चिंता भी किया करते हैं. लेकिन अब तो इस चिंता में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस यानी एआई की बढ़ती उपलब्धता ने नए आयाम जोड़ दिए हैं. अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को में हुए एक सर्वे से पता चला है कि इसमें शामिल हर चार में से तीन टीनएजर ने कोई ना कोई एआई साथी बनाया है.
यहां एआई साथी से मतलब ऐसे चैटबॉट्स से है जिन्हें बनाया ही पर्सनल बातचीत के लिए गया हो. आजकल ऐसे सबसे लोकप्रिय चैटबॉट्स में कैरेक्टर डॉट एआई, रेप्लिका और नोमी की गिनती हो रही है. इन्हें किसी आम चैटबॉट की तरह कोई टास्क पूरा करने के लिए नहीं बनाया जाता.
प्रॉम्ट यानी आदेश देने पर कोई काम करके देने वाले चैटबॉट पारंपरिक एआई असिस्टेंट माने जाते हैं. इससे उलट, एआई कम्पैनियन सिस्टम को ऐसे प्रोग्राम किया जाता है कि वे यूजर के साथ भावनात्मक संबंध स्थापित करें. पहले से ही ऐसे एआई 'कम्पैनियन' से मानसिक सेहत के लिए पैदा होने वाले जोखिमों पर चिंता जताई जाने लगी थी. अब इस सर्वे के नतीजों से वो चिंताएं और गहरा गई हैं.
किसने कराया सर्वे
सर्वे कराने वाली संस्था 'कॉमन सेंस मीडिया' अमेरिका का एक गैरलाभकारी संगठन है जो बच्चों के लिए बने मीडिया और टेक्नॉलजी को रिव्यू करती है और उन्हें रेटिंग देती हैं. इनकी अच्छी रेटिंग का मतलब हुआ कि वो मीडिया बच्चों के इस्तेमाल के लिए उचित है.
इस राष्ट्रीय प्रतिनिधि सर्वे में 13 से 17 साल की उम्र के 1,060 टीनएजर्स को शामिल किया गया. सर्वे कराने वाली संस्था 'कॉमन सेंस मीडिया' ने पाया कि इसमें से कम से कम 72 फीसदी किशोरों-किशोरियों ने कम से कम एक बार एआई कम्पैनियन का इस्तेमाल किया है. वहीं, 52 फीसदी ने तो महीने में कुछ बार के औसत से इनसे चैटिंग की.
करीब 30 फीसदी युवाओं ने इनका इस्तेमाल अपने मनोरंजन के लिए किया, वहीं 28 फीसदी ने इन्हें इसलिए आजमाया क्योंकि वे इस टेक्नॉलजी को लेकर काफी उत्सुक थे.
इनके इस्तेमाल में समस्या क्या है
असली समस्या इन चैटबॉट्स को इस्तेमाल करने के बाद सामने आई. इनका इस्तेमाल करने वाले एक तिहाई लोगों को जीवन में जब भी किसी गंभीर मुद्दे पर बात करने की जरूरत महसूस हुई तो उन्होंने असल लोगों के बजाय उसपर एआई साथी से चर्चा की. ऐसे अपना दिल खोलकर रखने के दौरान इनमें से 24 फीसदी युवाओं ने अपने असली नाम, पते समेत कई अहम जानकारियां भी साझा कीं.
ऐसा नहीं कि एआई साथी से बातचीत हमेशा सुखद या मनोरंजक ही रही हो. सर्वे में शामिल करीब 34 फीसदी टीनएजर्स ने बताया कि एआई साथी के किसी जवाब या हरकत से वे कई बार असहज हुए. उन्होंने बताया कि ऐसा कम बार बार नहीं हुआ लेकिन कभी ना कभी तो हुआ है. रिपोर्ट में बताया गया, "सच्चाई ये है कि तीन चौथाई टीनएजर्स ने इन प्लेटफॉर्मों का इस्तेमाल किया है, और आधों ने तो अक्सर किया है. ऐसे में अगर आबादी के एक छोटे से हिस्से को भी इससे नुकसान पहुंच रहा है तो इसका मतलब हुआ कि अच्छी खासी तादाद में युवाओं पर इसका खतरा है."
वैसे तो आधे टीन्स ने एआई साथी की सलाह को सीधे भरोसे लायक नहीं माना. लेकिन सर्वे में ये भी पता चला कि 13-14 साल के टीनएजर्स ने एआई पर ज्यादा विश्वास कर लिया, जबकि थोड़े बड़े यानी 15-17 साल वालों ने इस सिस्ट्म्स की सलाह कम ही मानी.
ऐसा नहीं माना जा सकता कि अब एआई सिस्ट्म्स इतने शानदार हो गए हैं कि युवाओं को असल लोगों ने बातचीत करना अच्छा ही नहीं लगेगा. दो तिहाई टीनएजर्स ने बताया कि किसी दूसरे इंसान से बातचीत के मुकाबले एआई से बातचीत में संतुष्टि नहीं मिलती. वहीं 80 फीसदी टीनएजर्स अब भी एआई साथी से ज्यादा समय अपने असली दोस्तों के साथ बिता रहे हैं. हालांकि सर्वे कराने वाली संस्था ने मांग की है कि 18 साल से कम उम्र के किसी युवा को ऐसे एआई चैटबॉट्स का इस्तेमाल नहीं करने देना चाहिए, जब तक और कड़े सुरक्षा इंतजाम नहीं जोड़े जाते.