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वन-रेत माफियाओं के बढ़ते हौसले...
कभी पुलिस पर हमला, कभी पत्रकारों की पिटाई, और कभी वनकर्मियों को बंधक बना लेना..। छत्तीसगढ़ में इन दिनों रेत और जंगल माफिया कानून को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं।
पिछले महीने बलरामपुर में एक सिपाही को रेत माफियाओं ने ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाला। कुछ दिन पहले राजिम में रेत खनन की रिपोर्टिंग करने गए पत्रकारों पर जानलेवा हमला हुआ, जबकि राजनांदगांव में जब ग्रामीणों ने अवैध उत्खनन का विरोध किया, तो माफियाओं ने गोलियां चला दीं। इसी महीने रतनपुर में वनकर्मियों पर जानलेवा हमला हुआ और अब गरियाबंद में न सिर्फ हमला किया गया, बल्कि उन्हें बंधक भी बना लिया गया।
ये घटनाएं अचानक शुरू नहीं हुईं। कांग्रेस शासनकाल में भी रेत माफिया बेखौफ थे। तब भी वनकर्मियों को बंधक बनाने और जानलेवा हमलों की घटनाएं सामने आई थीं। आज भी परिस्थितियां नहीं बदली हैं।
हर बार आरोप के तार अफसरों और जनप्रतिनिधियों तक पहुंचते हैं। बस चेहरे बदल जाते हैं। बलरामपुर की घटना में चेहरा भी नहीं बदला। भाजपा के पूर्व मंत्री ने सीधे कलेक्टर पर आरोप लगाया कि माफियाओं को उनका संरक्षण पहले भी था, आज भी है। राजनांदगांव में एक पार्षद की गिरफ्तारी हुई है। वहीं राजिम में हो रहे अवैध खनन और हमलों पर सत्तारूढ़ दल के वे जनप्रतिनिधि चुप हैं, जो विपक्ष में रहते हुए इन्हीं मुद्दों पर मुखर थे।
जब किसी बड़े उद्योग या संयंत्र का नाम आता है, तब तो लोगों का ध्यान जाता है कि छत्तीसगढ़ की नदियों और जंगलों का विनाश हो रहा है। मगर माफियाओं, अफसरों और जनप्रतिनिधियों के गठजोड़ से जो टुकड़ों-टुकड़ों में तबाही मच रही है, वह कम गंभीर नहीं है।
17 साल बाद खुशी का दिन आया
करीब 17 साल बाद ढाई सौ से अधिक सहायक प्राध्यापकों को पदोन्नति दी गई। ये सभी प्राध्यापक बने हैं। हालांकि ये पदोन्नति हाईकोर्ट की दखल के बाद ही हो पाई है। बावजूद इसके करीब 40 से अधिक सहायक प्राध्यापक पदोन्नति से रह गए हैं।
बताते हैं कि कुछ के सीआर मिसिंग थे, तो कई ऐसे भी हैं जिनके सारे दस्तावेज होने के बावजूद पदोन्नति से रह गए हैं। पदोन्नति से वंचित सहायक प्राध्यापकों की एक शिकायत ये भी है कि कुछ सहायक प्राध्यापक, पदोन्नति के लिए पात्र नहीं थे उन्हें पदोन्नति मिल गई। जबकि पात्र सहायक प्राध्यापक पदोन्नति से रह गए।
पदोन्नति से वंचित सारे सहायक प्राध्यापक विभागीय सचिव को एक साथ अभ्यावेदन देने की तैयारी कर रहे हैं। विभागीय सचिव एस भारतीदासन 16 तारीख तक अवकाश में हैं। उनके लौटने के बाद सहायक प्राध्यापक अभ्यावेदन देंगे। इसके बाद भी पदोन्नति नहीं मिली, तो वो फिर अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
सींग गौर की शान और सुरक्षा का हथियार!
इस खूबसूरत तस्वीर में दो गौर (इंडियन बाइसन) घास चरते नजर आ रहे हैं और सबसे पहले नजऱ जाती है – उनके बड़े, मजबूत और मुड़े हुए सींगों पर।
गौर के यही सींग उसकी पहचान हैं। नुकीले और ताकतवर। यही उसकी सुरक्षा का हथियार भी हैं। खतरा सामने हो, तो यही सींग उसे बचाने के लिए सबसे आगे आते हैं। खासकर नर, इन सींगों से घातक हमला भी कर सकता है।
बस्तर के जनजातीय समाज में गौर को खास स्थान प्राप्त है। वहाँ की ‘बाइसन हॉर्न मारिया’ जनजाति अपने पारंपरिक मुकुट (हेडगियर) में गौर के सींगों जैसी आकृति सजाती है, जो गौरव और ताकत का प्रतीक मानी जाती है। गौर के नर और मादा – दोनों के सींग होते हैं, लेकिन झुंड के ‘अल्फा नर’ के सींग सबसे बड़े और मजबूत होते हैं। मादा गोरों के लिए यह एक आकर्षण भी होता है।
पहले जब शिकार प्रतिबंधित नहीं था, तब गौर और जंगली भैंसे के सींगों को दीवारों पर सजाने के लिए ट्रॉफी के रूप में लगाया जाता था। लेकिन अब यह पूरी तरह प्रतिबंधित है और इन अद्भुत जीवों को सिर्फ जंगलों में, उनके प्राकृतिक आवास में देखकर ही सराहा जा सकता है। वन्यजीव प्रेमी प्राण चड्ढा ने अचानकमार टाइगर रिजर्व में अपने कैमरे में इस विचरण को कैद किया है।