दन्तेवाड़ा
केशकाल, 13 जुलाई। केशकाल विधानसभा के आदिवासी पूर्व विधायक कृष्ण कुमार ध्रुव ने राजस्व विभाग एवं प्रशासनिक अधिकारियों पर आदिवासियों के अधिकार एवं हित पर कुठाराघात करते हुए उन्हें उनके अधिकार से वंचित करने का गंभीर आरोप लगाया है।
पूर्व विधायक कृष्ण कुमार ध्रुव ने जारी विज्ञप्ति में कहा है कि राज्य सरकार के स्पष्ट आदेश एवं कठोर नियम कानून होने के पश्चात भी आज तक बहुत बड़ी संख्या में 170ख के मामलों को जानबुझकर उलझाकर लंबित रखा दिया गया है। आदिवासी अपने बड़े बुजुर्गों के द्वारा सहेजे गये जमीन को जल प्रपंच षडयंत्र पूर्वक हड़पे गये जमीन का हक पाने वर्षों वर्षों से चक्कर काट काटकर त्रस्त हो चुके हैं। आदिवासी बाहुल्य बस्तर संभाग में ही बहुसंख्यक आदिवासी समाज को अपने वंशानुगत भूमि से और गांव के सार्वजनिक उपयोग के शासकिय भूमि से बेदखल किया जा रहा है।
पूर्व विधायक ने उदाहरण बतौर केशकाल तहसील के ग्राम पीपरा चिखलाडिह के मामले की तरफ ध्यान आकर्षित करते हुए बताया कि आदिवासी बाहुल्य गांव में पहले असत्य जानकारी दर्ज कर कुछ गैर आदिवासी के नाम से गांव वालों के निस्तार में उपयोग आने वाली सरकारी जमीन का पट्टा बना दिया गया। उसके बाद महज उन्ही गैर आदिवासियों के जमीन का नक्शा काटकर भूमि राजस्व रिकार्ड में चढ़ा दिया गया ताकि शहर के नामी गिरामी नेता एवं धनाढ्य भूमाफिया उस जमीन की खरीद-फरोख्त करके भू स्वामी बन सके।
श्री ध्रुव ने बताया कि 2006 में पटवारी ने गांव में रहने वाले आदिवासियों को दिये गये पट्टो को दरकिनार रखते गांव से बाहर के उन गैर आदिवासियों के पट्टो को जमीन भर का कूटरचित नक्शा कांट छांटकर दस्तावेज तैयार कर दिया गया जिसका 9अगस्त 2007 को रजिस्ट्री कर लिया गया। कूटरचित दस्तावेज तैयार करने से लेकर जमीन खरीद फरोख्त की अनुमति लेने देने का और रजिस्ट्री नामांतरण होने का काम बहुत ही योजनाबद्ध से राजस्व विभाग के पटवारी से लेकर जिला मुख्यालय में बैठे वरिष्ठ अधिकारी तक ने कर दिया। जिसके बाद उक्त क्रेता को काबिज कराने में राजस्व विभाग के लोगों ने और कृषकों को लाभान्वित करने वाली योजना का नाजायज लाभ दिलाने में कृषि विभाग एवं मत्स्य पालन विभाग ने बड़ी प्राथमिकता और उदारतापूर्वक कार्य कर लाभान्वित किया गया। 9 अगस्त 2007 को जिस खसरा नम्बर 1097/8एवं खसरा नम्बर 1097/9का रजिस्ट्री बैनामा हुआ वह जमीन 5जून2012 को फिर दूसरे को रजिष्ट्री बैनामा कर दिया गया।
परन्तु जानकार बताते हैं कि दोनों रजिस्ट्री के नक्शे में बहुत अंतर है।
गांव में बांटे गये पट्टों में से किसी भी हितग्राही किसान के जमीन का न नक्शा काटा गया था न रिकार्ड दुरूस्त किया गया था। गांव के लोग उस जमीन का उपयोग चारागाह के लिए करते आ रहे थे। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सरकार ने रतनजोत लगवाने की योजना क्रियान्वित किया तो वहां पर लाखों रूपया खर्च करके वन विभाग के द्वारा पूरे क्षेत्र में बहुत बड़ी संख्या में रतनजोत का पौधारोपण करवा दिया गया था। रतनजोत का पौधारोपण होने के बाद कूटरचित दस्तावेज तैय्यार करके सरकारी जमीन का खरीद फरोख्त किया गया। फर्जी अभिलेख के सहारे रजिस्ट्री बैनामा नामांतरण होने के बाद सरकारी धनराशि से लगाये गये रतनजोत को तहस नहस कर क्रेता द्वारा उक्त जमीन पर कब्जा किया गया। काबिज होने के बाद कृषि विभाग से सिंचाई हेतु अनुदान वाला ट्यूबवेल भी हो गया । अंधा बांटे रेवड़ी खुद बांटे खुद खाये वाली कहावत को सार्थक सिद्ध करते बोर कराने और मशीन लगाने का काम भी कृषि विभाग ने भूस्वामी को ही प्रदान कर दिया था। इसके बाद 5जून को यह जमीन बिक्री बैनामा कर दिया गया। जिसके बाद कृषि विभाग से और मत्स्य पालन विभाग द्वारा तालाब खोदने व मछली पालन करने बड़ी उदारता से अनुदान दें दिया गया। कृषि कार्य और मछली पालन हेतु अनुदान दें लेने के बाद उसी भूमि का व्यवसायिक प्रयोजन हेतु मद परिवर्तन भी करा लिया गया। इस बीच गांव के आदिवासी तहसीलदार एस डी एम कलेक्टर से जमीन के बारे में हकिकत से वाकिफ कराते उक्त जमीन का रजिस्ट्री बैनामा निरस्त कर गांव वालों के निस्तार सुविधा एवं पशुओं के चारागाह हेतु आरक्षित रखते निवेदन करते आवेदन दिया गया पर अधिकारी इंसाफ करने की बजाय टाल मटोल का रवैय्या अख्तियार कर अप्रत्यक्ष तौर पर आगे वालों को संरक्षण सहयोग प्रदान कर गांव के आदिवासियों को उनके नैसर्गिक एवं संवैधानिक हक से वंचित रखने का कृत्य कर रहे हैं।
इसी कड़ी में पूर्व विधायक का यह भी आरोप लगाया है कि राजस्व विभाग के अधिकारी आदिवासियों के सडक़ किनारे की बहुकिमती जमीनों का गैर आदिवासी भूमाफियाओं को अघोषित भूस्वामी बनाने में लगे हुए हैं। गरीबी रेखा के नीचे रहकर जीवन गुजर बसर करने और गैर आदिवासी के पास काम करने वाले मजदूरों के नाम पर लाखों लाखों की बेनामी खरिदी बिक्री करने में सहभागी बनकर राजस्व अधिकारी अपना स्वार्थ साध रहे हैं। आदिवासी के जमीन के बेनामी खरिदी बिक्री की लिखीत सप्रमांण शिकायत बस्तर कमीश्नर कलेक्टर तक हुई पर जांच के नाम पर जानबूझकर अटकाकर रख दिया ।
पूर्व विधायक कृष्ण कुमार ध्रुव का कहना है कि जब तक राजनीतिक संरक्षण प्राप्त भूमाफियाओं पर नकेल कसते आदिवासियों के जमीन से जुड़े मामलों का समयसीमा के अंदर निपटारा करने का निति निर्धारित नहीं किया जाएगा और मामले में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तौर पर संलिप्त राजस्व कर्मचारियों अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं किया जाएगा, तब तक आदिवासियों को उनके हक से वंचित करने का खेल थमेगा नहीं।