रायपुर

भाषा का भविष्य हमारे हाथ में है
12-Apr-2021 7:43 PM
भाषा का भविष्य हमारे हाथ में है

मैट्स यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग और सृजन ऑस्ट्रेलिया के अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार में विशेषज्ञों का मत

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 12 अप्रैल।
भाषा का भविष्य हमारे हाथ में है और हम अपनी भाषा के प्रति इपनी जिम्मेदारियों का निवर्हन कर इसे बचा सकते हैं। जिस तरह से साहित्य में हिंग्लिश का प्रयोग हो रहा है, वह उचित नहीं है। हमें हमारी भाषा पर गर्व करना चाहिए। हिन्दी के साथ मीडियाा में भी काफी बदलाव आए हैं। यह तमाम बातें ने मैट्स यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग, न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन, अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका सृजन ऑस्ट्रेलिया और सृजन ऑस्ट्रेलिया छत्तीसगढ़ द्वारा संयुक्त रूप से ’हिन्दी साहित्य और मीडिया का बदलता स्वरूप’ विषय पर ऑनलाइन आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार में विषय विशेषज्ञों ने कहीं।

मैट्स यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. रेशमा अंसारी ने बताया कि इस वेबिनार में ऑस्ट्रेलिया, मॉरिशस सहित देश के विभिन्न राज्यों के 457 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जिनमें प्राध्यापक, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं विशेषज्ञ शामिल थे। देश के वरिष्ठ पत्रकार, हिन्दीसेवी तथा भारतीय भाषाओं के संवर्धन के पक्षधर विशिष्ट वक्ता श्री राहुल देव  ने कहा कि हम अपनी भाषा को बिगडऩे से रोक सकते हैं क्योंकि भाषा का भविष्य हमारे हाथ में है। हम समाज और  संसार को नहीं बदल सकते, अपने को बदलकर अपनी भाषा के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं। उन्होंने कहा कि बदलाव प्रकृति का अटल मियम है। हमारी निजी सोच रोज बदल रही है, परिवार, जीवन शैली, समाज और पूरा संसार बदल रहा है, तकनीक भी संसार को बदल रही है। इन परिवर्तनों को सचेत होकर देखें और विचारकर समझे। स्थितियों को बदलने से पहले उनको समझना जरूरी है।

वेबिनार के विशिष्ट वक्ता मॉरिशस में रेडियो चैनल के समन्वयक श्री विकास गौड़ ने कहा कि वे मॉरिशस में एक रेडियो जॉकी हैं और बॉलीवुड के कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं जिन्हें लोग पसंद करते हैं। भाषा हमें अपनी पहचान देती है और  भाषा की वजह से इतने सारे लोगों से हम मिल पाते हैं। मॉरिशस में फ्रेंच स्कूल के अंदर भी हिन्दी की कक्षाओं को मान्यता मिल गई है। बॉलीवुड के माध्यम से भी लोग जुडक़र हमारे गाने सुन पा रहे हैं, उन्हें किसी न किसी रूप में भाषा सीखने का अवसर मिल रहा है।

वेबिनार के मुख्य वक्ता अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका सृजन ऑस्ट्रेलिया के प्रधान संपादक डॉ. शैलेष शुक्ला ने कहा कि अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करके हिन्दी को बिगाड़ा जाना उचित नहीं है। हम हिन्दी के जिस बदलते परिदृश्य की बात कर रहे हैं उसका एक चिंताजनक पहलु है कि उसमें जबरदस्ती अंग्रेजी के शब्दों को मिलाया जाता है जो उचित नहीं है। न्यू मीडिया के इस दौर में हिन्दी के नामी अखबार भी अंग्रेजी के उन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं जिसके लिए पहले से हिन्दी के सरल व सहज शब्द उपलब्ध हैं। हिन्दी के अखबारों में रोमन लिपि में भी शब्द लिखे जाने लगे हैं। उन्होंने आगे कहा कि आने वाले समय में किसी भी चीज का इतिहास लिखा जाएगा तो उसके निश्चित रूप से दो खंड होंगे। एक होगा कोविड पूर्व और एक होगा कोविड के पश्चात। कोरोना ने हर क्षेत्र में तेजी से परिवर्तन लाया है। हिन्दी पर कोरोना का सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ा है। हिन्दी के वेबीनार में देश-विदेश के लोग दस-पंद्रह सालों से उपलब्ध तकनीक के माध्यम से जुड़ पा रहे हैं और शिक्षा, अकादमी सहित विभिन्न क्षेत्रों में इसका उपयोग होना तथा हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार होना सकारात्मक पहलू है। लेकिन अनेक हिन्दी भाषी मीडिया साथियों को रोजगार का अभाव भी झेलना पड़ा है। हिन्दी व अन्य भाषाओं के कंटेट में पश्चिम की नकल बहुत ज्यादा देखने को मिलती है। इस स्वरूप को तोडऩा होगा। हमारे अपने देश में बहुत सी पारंपरिक कहानियाँ हैं चाहे वे वेदों के प्रसंग हों या पंचतंत्र की कहानियाँ, वेद-पुराण हों, इन पर ध्यान देना होगा। जिससे हम आधुनिक मीडिया अथवा न्यू मीडिया में उसका प्रयोग करते हुए हम परंपरा से भी जुड़े रहें और आधुनिक तकनीक का अधिक से अधिक प्रयोग करते रहें।

अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार की अध्यक्षता  करते हुए छत्तीसगढ़ राज्य की प्रथम महिला डीलिट. उपाधि प्राप्त वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. उर्मिला शुक्ल ने कहा कि भाषा हमारी विरासत है जिसे हमें आगे बढ़ाना है और इसके लिए आवश्यक है हमारी भाषा में ज्यादा से ज्यादा व्यवहार करना और उस पर गर्व करना। हमें हमारी गुलाम मानसिकता को बदलना होगा। अंग्रेजी नहीं आने पर हमें र्शिर्मंदा नहीं होना चाहिए बल्कि हिन्दी नहीं आने पर हमें शर्मिंदा होना चाहिए। साहित्य लेखन में सभी क्षेत्रों के लोग हैं जिसमें डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार आदि भी शामिल हैं। स्थितियाँ बदली हैं तो विषय भी  बदला है। कोरनाकाल की भयावहता भी वर्तमान साहित्य में शामिल हो गई है। साहित्य की शैली में भी पर्याप्त बदलाव हुआ है।

इसके पूर्व मैट्स यूनिवर्सिटी की उपकुलपति डॉ. दीपिका ढांढ ने भाषा के महत्व पर अपने विचार रखे एवं वर्तमान परिदृश्य में हिन्दी साहित्य व मीडिया में आए बदलाव पर सारगर्भित बातें रखीें। मैट्स विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री गजराज पगारिया, माहनिदेशक श्री प्रियेश पगारिया, उपकुलपति डॉ. दीपिका ढांढ, कुलसचवि श्री गोकुलानंदा पंडा ने इस अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार के सभी प्रमुख वक्ताओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए आयोजन की सराहना की। वेबिनार में मैट्स यूनिवर्सिटी के विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष सहित देश के विभिन्न राज्यो ंके प्राध्यापकगण, शोधार्थी, विद्यार्थी ऑनलाइन उपस्थित थे।
 

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