कोरिया

आदिवासियों के मौलिक अधिकार का हनन है मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना
26-Mar-2021 5:37 PM
आदिवासियों के मौलिक अधिकार का हनन है मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना

राज्यपाल को पत्र लिखने वाले वकील से ‘छत्तीसगढ़’ ने पूछे अहम् सवाल

रंजीत सिंह

मनेन्द्रगढ़, 26 मार्च (छत्तीसगढ़ संवाददाता)। मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना छत्तीसगढ़ में रह रहे आदिवासियों के संविधान प्रदत्त अनुसूचित जनजाति के विशेष मौलिक अधिकार का हनन है। खासकर गरीब आदिवासी मात्र प्रदर्शन एवं मजाक के पात्र बनकर रह गए हैं। यह मानना है अधिवक्ता अभिषेक के. सिंह का, जिन्होंने मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना में अनुसूचित जन जातियों के मौलिक अधिकारों के हनन को लेकर राज्यपाल को पत्र लिखा है। सरकार की यह महती योजना आखिर क्यों उन्हें आदिवासियों के अधिकार का हनन लगती है, इसे लेकर ‘छत्तीसगढ़’ ने अधिवक्ता सिंह से कुछ जरूरी सवालात पूछे जिसका उन्होंने बड़ी बेबाकी से जवाब दिया -

सवाल- मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना में आदिवासी जोड़ों के विवाह के संबंध में आपने गंभीर विचारणीय प्रश्न उठाए हैं। आपत्तियों के संबंध में पाठकों को विस्तृत जानकारी दें।
अभिषेक - यह बात सही है कि मैंने मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना में आदिवासियों की कराई जा रही शादी पद्धति के संबंध में राज्यपाल को अवगत कराया है कि अनुसूचित क्षेत्रों में मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के तहत् शासन के दिशा निर्देश व मार्गदर्शन में विवाह योग्य गरीब जोड़ों का विवाह कराया जा रहा है। विवाह समारोह का पूरा व्यय शासन के मद से किया जाता है। इन सामूहिक विवाह समारोह में आदिवासी जोड़ों की शादी उनके मूल परम्परा एवं रीति-रिवाज के विपरीत वैदिक पद्धति एवं परम्परा से कराया जा रहा है, जो कि गलत है एवं आदिवासियों के मौलिक अधिकारों का हनन है।
सवाल - आपका कहना है कि शासन प्रायोजित सामूहिक समारोह में आदिवासियों के सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा है?
अभिषेक - जी हाँ।
सवाल - कृपया इसे विस्तार से समझाएं।
अभिषेक - इस आपत्ति को समझने के लिए आपको सबसे पहले यह याद करने की जरूरत है कि छत्तीसगढ़ अन्य राज्यों के तुलना में आदिवासी बाहुल्य राज्य है। छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण इस प्रतिबद्धता के साथ किया गया था कि शासन अपनी नीतियों से आदिवासियों के गौरवपूर्ण इतिहास, उनके रीति-रिवाज, उनकी परम्पराओं को संरक्षित एवं संयोजित करेगा, जिसमें अनुसूचित जनजातियों की पीढिय़ों से चली आ रही रीति-रिवाज, परम्पराओं को ध्यान में रखकर नीतियों का निर्माण होगा। छत्तीसगढ़ राज्य में विवाह योजना का ध्येय गरीब परिवार के बेटियों की शादी का व्यय शासन करेगा जिससे बेटियां अपने माता-पिता के लिए बोझ नहीं बनेंगी। ध्येय पूर्ण रूप से श्रद्धेय है, परंतु अनुसूचित क्षेत्र में कई ऐसे जनजाति हैं जो भारत के राष्ट्रपति द्वारा गोद लिए गए हैं। मेरी आपत्ति इस बात पर है कि मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना में सभी जोड़ों की शादी वैदिक परम्परा से कराई जा रही है जो कि गलत है। मालूम हो कि आदिवासी लोग जो इस योजना के तहत् विवाह हेतु अपनी सहमति देते हैं उन्हें शासन की ओर से 25 हजार रूपए एवं घरेलू उपयोग की वस्तुएं उपहार स्वरूप दी जाती हैं। मेरा कहना है कि किसी भी मनुष्य के लिए उसके जीवन काल में विवाह एक सामाजिक एवं उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस स्थिति में गरीब आदिवासियों की शादी अपरिचित वैदिक परम्परा एवं पद्धति से कराए जाने के लिए मजबूर करना गलत है। मूलत: गरीब परिवार अपनी परिस्थितियों को देखते हुए शासकीय मदद की आस में ऐसा करने के लिए मजबूर है। भारत के संविधान ने शासन को पूर्ण दायित्व दिया है कि वह ऐसी नीतियों का निर्माण करे जिसमें आदिवासी समाज के लोग सहायता के प्रलोभन व इस सामूहिक विवाह कार्यक्रम का हिस्सा न बनें, बल्कि आदिवासी अपने विवाह को अपनी मूल पद्धति से कराएं एवं शासन उनको सहायता दे। 
सवाल - क्या आपका मानना है कि मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के सामूहिक आयोजन गलत है?
अभिषेक - नहीं, परंतु मैं चाहता हूँ कि आदिवासियों की परम्परा को संरक्षित एवं सुरक्षित करने का कार्य शासन करे। ऐसे सामूहिक विवाह में हर अनुसूचित जनजाति को अपने मूल विवाह पद्धति के विपरीत नई पद्धति को अपनाने के लिए मजबूर न करे। शासन को आदिवासी परम्पराओं को विलुप्त होने से बचाने के लिए हरेक प्रयास करना चाहिए। यह दायित्व भी शासन का है।
सवाल - क्या ऐसे आयोजनों में वैवाहिक पद्धति थोपना गलत है?
अभिषेक - बिल्कुल सही कह रहे हैं आप। यह अनुसूचित जनजाति के नागरिक के मौलिक, संस्कृति एवं मानव अधिकार का स्पष्ट रूप से हनन है। माननीय उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय ने अधिकारों के संबंध में कई सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं एवं शासन को समय-समय पर कड़ी हिदायतें भी दी है कि मौलिक अधिकारों के साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।
सवाल - विवाह समारोह में वैदिक परम्पराओं को निभाए जाने के संबंध में आपकी आपत्ति क्या है?
अभिषेक - मैंने विस्तृत रूप से बातचीत के दौरान बताया है। आप देखेंगे कि वैदिक परम्परा में रामनवमीं तक विवाह कार्यक्रम वर्जित है, क्योंकि शुक्र नक्षत्र अस्त की स्थिति में है। वैदिक कर्मकाण्ड में शुक्र नक्षत्र अस्त होने पर परिणय संबंध बनाए जाने के कार्यक्रम नहीं किए जाते। इस तरह से जो भी हिंदू विवाह इस योजना के अनुपालन में रामनवमीं से पूर्व कराए जा रहे हैं वह भी शास्त्र सम्मत नहीं हैं। मुझे लगता है कि यह गरीबों के साथ एक भद्दा मजाक है।
सवाल - छत्तीसगढ़ शासन में कई आदिवासी एमएलए हैं। क्या उनके द्वारा इस संबंध में कोई विचार-विमर्श किया जा रहा है?
अभिषेक - मुझे जानकारी नहीं है। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मैं छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के तहसील मनेंद्रगढ़ में 27 फरवरी 2021 को आयोजित विवाह समारोह का प्रत्यक्षदर्शी रहा हूँ जिसमें मुझे इस विसंगति का ज्ञान हुआ। नेताओं को आदिवासी परम्परा से छेड़छाड़ का सहभागी बनते हुए देख मुझे अत्यंत दु:ख हुआ।
सवाल - आदिवासी समाज के लिए आपका क्या संदेश है?
अभिषेक - मैं यही कहूँगा कि आदिवासी समाज का एक गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। उनकी परम्पराएं प्रकृति से जुड़ी हुई हैं इस कारण अन्य पद्धति एवं परम्पराओं से भिन्न हैं।  मुझे लगता है कि आदिवासियों की परम्परा एवं रीति-रिवाज बहुत खूबसूरत एवं ज्ञानप्रद है। आदिवासी समाज के लोगों को अपनी परंपराओं को स्वयं संरक्षित करने के लिए प्रयास करना चाहिए और आगे आना चाहिए।
सवाल - क्या मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के संबंध में आपकी आपत्ति संज्ञान ले स्वीकार की जाएगी?
अभिषेक - मुझे लगता है कि शासन का शीर्ष नेतृत्व मेरी आपत्तियों को गंभीरता से लेगा और इसका निराकरण करेगा, क्योंकि यह छत्तीसगढ़ के लाखों आदिवासियों से जुड़ा एक गंभीर विषय है।

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