बीजापुर

संगमतट पर 11वीं सदी कि शिव मंदिर एक स्थान पर दो शिवलिंग
09-Mar-2021 7:01 PM
संगमतट पर 11वीं सदी कि शिव मंदिर  एक स्थान पर दो शिवलिंग

 मुर्गेश कुमार शेट्टी

भोपालपटनम, 9 मार्च (‘छत्तीसगढ़’)।  भोपालपट्नम से 65 किमी पर स्थित तेलंगाना राज्य के कालेश्वर त्रिवेणी संगम के तट पर 11वीं सदी का एक विशाल मंदिर स्थित है। इस शिवमंदिर में एक पानवट(पाना पट्टम)पर दो शिवलिंग स्थापित है। जो अन्य शिवमंदिरों से इस मंदिर को अलग रखती है। रोजाना भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। साल में दो त्यौहारों पर भारी भीड़ इक_ी होती है। एक शिवरात्रि त्यौहार के समय एवं दूसरा कार्तिक मास में।

सिरोंचा नगर से सटी तेलंगाना सीमा पर मौजूद त्रिवेणी संगम तट पर 11वीं सदी में काकतीय नागवंशो द्वारा एक विशाल मन्दिर का निर्माण किया गया है। इस धार्मिक स्थल को भक्तगण देश की दूसरी काशी के रूप में मानते है। जहाँ मंदिर के भीतर एक ही स्थान(पाना पट्टम)दो शिव लिंग विराजमान है। जिन्हें क्रमश: शिव एवं यम के नाम से जाना जाता है। धार्मिक स्थल कालेश्वर पहुंचने वाले भक्त संगम स्थल पर नदी स्नान कर सर्वप्रथम गणेश भगवान का दर्शन के बाद मंदिर के भीतर स्थापित पहले यम का दर्शन कर उसके बाद शिव का दर्शन करते हैं।

इसके पीछे लोग अपनी जानकारी के मुताबिक तरह-तरह के तर्क देते है। इस क्षेत्र को त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है। जहां गोदावरी, प्राणहिता एवं सरस्वती नदी का समावेश है। बताया गया है कि इस संगम स्थल पर गोदावरी एवं प्राणहिता नदियां प्रत्यक्ष रुप में देखे जाते है। वहीं सरस्वती नदी को अंतर्मुखी माना गया है।

कालेश्वर मंदिर प्रशासन से प्राप्त जानकारी के मुताबिक मंदिर के भीतर विराजमान दो शिवलिंगों पर अभिषेक एवं पूजा के दरम्यान चढ़ाया जाने वाले जल लिंगों में मौजूद नासिकाओं के जरिये भू-सुरंग के द्वारा माँ सरस्वती का रूप लेकर संगम स्थल पर अंतर्मुखी बनकर मिलता है। जिससे इस क्षेत्र के त्रिवेणी संगम कहा गया है। ऐसी लोगों में धारणा भी है।।          

 मंदिर का इतिहास एवं विकास का गाथा

कालेश्वर मंदिर प्रशासन से प्राप्त जानकारी के मुताबिक यह मंदिर कलयुग के प्रारंभ से पहले से ही शैव क्षेत्र के रूप में होने की जानकारी कालेश्वर खंड में दर्ज है। ई.पू. 1140 में यह क्षेत्र चालुक्य राजाओ के सानिध्य में रहा था। तब हनक पड़ोसी राज्य के काकतीय राजा प्रोलाराजु ने इस क्षेत्र को अपने राज्य में मिला लिया। 

उससे पूर्व यह धार्मिक क्षेत्र पूरी तरह से विकसित नही किया गया था। जिससे यह सामान्य क्षेत्र के रूप में था। काकतीय राजा रुद्र देव ने अपने मंत्री एल्लाँकी गंगाधर को इस क्षेत्र के शासक के रूप में नियुक्त किया था। तब उसने ई.पू. 1171 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कर इस क्षेत्र को धार्मिक क्षेत्र का प्रसिध्दि दिलाया था। इस मंदिर की विशेषता है कि इसके भीतर एक ही स्थान(पाना पट्टम)पर दो शिव लिंग विराजमान है। जिनमे मुक्तेश्वर स्वामी को दो नासिक रंध्र (छेद) होने की जानकारी है। इन नासिकाओं के जरिये अभिषेक एवं पूजा के दरम्यान चढ़ाए जाने वाली जल भू मार्ग से हो कर  सरस्वती नदी के रुप में संगम स्थल पर बहने वाली गोदावरी एवं प्राणहिता नदी में मिलते है।इसी के चलते इस स्थल को त्रिवेणी संगम कहा गया है।

 इस धार्मिक क्षेत्र में अन्य मंदिर भी मौजूद है। जिनमे श्री शुभानंदा देवी मंदिर, श्री सरस्वती देवी मंदिर, श्री राम मंदिर, श्री अदिमुक्तेश्वर मंदिर ,संगमेश्वर मंदिर, श्री दत्तात्रेय मंदिर, श्री आंजनेय मंदिर, श्री सूर्य मंदिर शामिल है।. पहुंच मार्ग एवं विकल्प, मेले का आकर्षण । इस धार्मिक स्थल पर सडक़ मार्ग के जरिये ही पहुंचा जा सकता है। जहाँ अपनी राज्य से भी सालाना हजारों की संख्या में भक्तगण पहुंचते है। गड़चिरोली की ओर से यहां पर सिरोंचा होते हुए जाया जा सकता है।

पूर्व के समय मे मार्ग पर प्राणहिता नदी पर पुल के निर्मित नहीं होने से नाव के सहारे जाना होता था। मगर हाल ही के वर्षों में राजमार्ग एवं पुल के बन जाने से यहां पहुंचना आसान एवं सुविधाजनक हुआ है। पुल के बन जाने से लोग अब अपनी निजी वाहन से भी यहां पहुंचने लगे है। सालाना हजारों भक्त महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ से यहां पहुंचते है। शिवरात्रि पर यहां पर विशाल मेले का आयोजन होता है। जिसमे सैकड़ों के तादाद में भक्त पहुंचते है।

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