गरियाबंद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम, 4 मार्च। प्रयागराज के मुख्य मंदिर भगवान राजीवलोचन के चारों कोण में चार धाम स्थित है। जिनमें उत्तर-पूर्व में बद्रीनारायण, उत्तर-पश्चिम में नृसिहं अवतार, दक्षिण-पश्चिम में वराह तथा दक्षिण-पूर्व में वामन भगवान विराजमान हैं। करीब दो फीट ऊंची जगती पर मंदिर निर्मित हैं। इसमें मात्रा गर्भगृह हैं महामण्डप व परिक्रमा पथ के लिए कोई स्थान नहीं दिया गया हैं। द्वार के पाश्र्व भित्ती जिनके दायें और बायीं ओर भगवान विष्णु के दशावतार की मूर्तिया उत्कीर्ण हैं। जिनसे चारों युगों का बोध होता है। सतयुग में मत्स्य, कूर्म, वराह अवतार तथा त्रेतायुग में नृसिंह, वामन, परशुराम, राम। द्वापर युग में कृष्ण तथा कलयुग में बुद्ध और कल्कि अवतार को दिखाया गया हैं। साहित्यकार संतोष कुमार सोनकर ने बताया कि भागवत महापुराण पुराण की भविष्यवाणी के आधार पर इस युग के अंत में कल्कि अवतार होगा। मंदिर के ललाट पर भगवान विष्णु शेषनाग के बीच श्यनावस्था में चित्रित किया गया है। जिसमें देवगण स्तुति कर रहे हैं। गर्भगृह में भगवान वामन एवं राजा बली की करीब ढाई फीट उंची प्रतिमा अत्ंयत मनमोहनी परिलक्षित हो रही हैं। वामन भगवान बौने ब्रम्हाण के रूप में श्रृंगारिक हैं। बता दें कि पूरे छत्तीसगढ़ में आठवीं शताब्दी में निर्मित पहला वामन मंदिर राजिम में स्थित हैं। दक्षिण भारत में वामन को उपेन्द्र के नाम से जाना जाता है। वास्तुकला में निर्मित मंदिर ऊपर की ओर संकरा होते हुए गया है। कंगुरे पर कलश चढ़ा हुआ है। ईटों को यह मंदिर प्राचीनता के दृष्टिकोण से उत्कृष्ट कला नक्कासी का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया गया हैं। मंदिर के बाहरी आवरण चतुष्कोणीय हैं तथा उभार व दबाव के बीच ललाट पर ही मंदिर की आकृति प्रदर्शित की गई हैं। जिसमे सीढ़ी दिखाया गया हैं। मंदिर में ही और मंदिर विलक्षण निर्माण शैली का प्रतीक हैं। पुराणोनुसार राजा बली ने सौ यज्ञ पूर्ण किये। उससे पहले भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बली के पास भिक्षा के लिए पहुंच गए और भिक्षाम् देही राजन् ! का टेर लगाए। गुरू शुक्राचार्य विष्णु का छल समझ गए और बली को रोकने का प्रयास किया लेकिन होनी को कौन टाल सकता हैं इसके फेर में शुक्राचार्य के एक आंख फूट गए। राजा बली ने उन्हें तीन पग जमीन दान में दे दी। उन्होंने दो पग में पूरी धरती नाप लिया। तीसरा पग के लिए खुद राजा बली अपने आपको समर्पित कर लिया और इस तरह राजा बली नाम अमर हो गए। वामन अवतार मंदिर में दर्शनार्थी पूजा-अर्चना करना नहीं भूलते। प्रतिदिन दो बार वैदिक विधि से पूजा-अर्चना की जाती हैं तथा भोग लगाया जाता हैं। इस मंदिर की प्रसिद्धि आस्था का प्रागाढ़ करती हैं।