राजनांदगांव

70 साल बाद नांदगांव के उत्तरी इलाके में दिखी सडक़, जनजातियों की कम होगी मुश्किलें
24-Feb-2021 12:11 PM
70 साल बाद नांदगांव के उत्तरी इलाके में दिखी सडक़, जनजातियों की कम होगी मुश्किलें

प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 24 फरवरी (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)।
राजनांदगांव जिले की भौगोलिक बनावट से दुर्गम पठारी इलाकों में बसे उत्तरी इलाके के बाशिंदों के लिए चमचमाती सडक़ को देखना महज एक काल्पनिक बात रही है। राजनांदगांव कलेक्टर के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल भावे-कांशीबहरा के बीच बन रहा 6 किमी का प्रधानमंत्री सडक़ योजना का मार्ग वनवसियों की बरसों पुरानी परेशानियों को अब कम करेगा।

खैरागढ़ और छुईखदान ब्लॉक के अंदरूनी गांवों में पहुंचना हमेशा से एक कठिनाई भरा सफर रहा है। उत्तरी इलाके के भीतरी गांवों को सडक़ों के जरिये आपस में जोडऩे की मुहिम में प्रशासन लगभग सफल हो गया है। 

धुर नक्सल प्रभावित भावे से कांशीबहरा के बीच नक्सल उपद्रव की परवाह किए बगैर करीब 6.4 किमी की एक सडक़ बन गई है। लगभग 5 करोड़ की लागत से बन रहे इस मार्ग में अब वनवासी शहरी रास्तों का रूख कर सकते हैं। 

भावे और काशीबहरा के साथ-साथ जुरलाखार, लछनाझिरिया समेत मलैदा के भी रहवासी इस रास्ते से होकर छुईखदान और खैरागढ़ से राजनंादगांव पहुंच सकते हैं। वहीं सुगम भरा रास्ता होने से आपातकालीन सेवाओं का ग्रामीण अपनी जरूरत के मुताबिक लाभ उठा सकते हैं। अंदरूनी इलाकों के गांवों के लिए जिला तो दूर ब्लॉक मुख्यालयों में पहुंचना कष्टदायक रहा है। ऊंचेदार पठारी इलाके होने के कारण देश को आजादी मिलने के करीब 70 साल बाद वन बाशिंदों के लिए डामरयुक्त सडक़ें बनी है। 

बकरकट्टा से गातापार तक करीब 2 चरणों में सडक़ का जाल बिछाया गया। प्रशासन के मजबूत इच्छाशक्ति को नक्सलियों का दबाव हमेशा से चुनौती देता रहा। जिन रास्तों में डामर बिछ रही है, वह नक्सलियों का गढ़ रहा है। घुमावदार रास्तों में अक्सर पुलिस पर घात लगाकर हमला करते रहे हैं। नई सडक़ों से ग्रामीणों के जीवनस्तर में भी बदलाव निश्चित तौर पर दिखेगा। 

कलेक्टर पिछले कुछ दिनों से बेधडक़ नक्सल प्रभावित गांवों का मुआयना कर रहे हैं। बीते दिनों कांशीबहरा में ग्रामीणों से रूबरू होकर उन्होंने सडक़ बनने के नफा-नुकसान को लेकर सवाल किए। कांशीबहरा, भावे के साथ-साथ आसपास के ग्रामीणों ने सडक़ को अपने जीवनकाल की सबसे बड़ी सौगात माना। कलेक्टर ने ग्रामीणों को आश्वस्त किया कि प्रशासन के जरिये सरकार की कोशिश है कि अंतिम व्यक्ति विकास की मुख्यधारा से जुड़े। 

गौरतलब है कि नांदगांव का उत्तरी इलाका जनजातियों से बसा हुआ है। आज भी शैक्षणिक, चिकित्सकीय तथा अन्य कार्यों के लिए यहां के बाशिंदे तकलीफ भरे मार्ग से गुजरते रहे हैं। नए रास्ते से स्वाभाविक रूप से विकास की नई इबारद प्रशासन लिखने के लिए आतुर है।

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