सुकमा
3 किमी पगडंडी पर पैदल, खाट पर एंबुलेंस तक
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोंटा, 19 फरवरी। सुकमा जिले के विकासखण्ड कोंटा वन ग्राम मरईगुड़ा में पदस्थ ग्रामीण चिकित्सक डॉ. रुद्रमणि वैष्णव ने प्रसव पीड़ा से तड़प रही गर्भवती की जान बचाने के लिए न सिर्फ पगडंडी रास्ते का सफर किया, बल्कि पहाड़ की चढ़ाई भी की। उन्होंने ड्राइवर के न होने पर खुद एंबुलेंस भी चलाई।
कोंटा ब्लॉक के अतिनक्सल प्रभावित इलाका टेटेबंडा ग्राम की 36 वर्षीय वंजाम कोशी को गुरुवार रात लगभग 11 बजे प्रसव पीड़ा शुरु हुई। परिवार खाट में गर्भवती को बैठाकर स्वास्थ्य केंद्र मरईगुड़ा की तरफ पैदल ही चल पड़े, जो कि टेटेबंडा मरईगुड़ा उप स्वास्थ्य केंद्र से 7 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
इसके पश्चात किसी ग्रामीण ने उप स्वास्थ्य केंद्र के डॉ. रुद्रमणि वैष्णव को दूरभाष के माध्यम से जानकारी दी। डॉक्टर ने तत्काल रात लगभग 11.30 बजे खुद गर्भवती महिला के पास एंबुलेंस में वाहन चालक नहीं होने के बावजूद खुद एंबुलेंस चलाते हुए टेटेबंडा की ओर निकल पड़े, लेकिन टेटेबंडा पहुंचना आसान नहीं था। एंबुलेंस ग्राम टेटेबंडा तक पहुंचने के लिए सडक़ नहीं होने के कारण मराईगुड़ा से मात्र 2 किलोमीटर का सफर तय की।
डॉक्टर खुद पगडंडी रास्ते से टेटेबंडा तक जाने के लिए निकल पड़े। तीन किलोमीटर का सफर तय कर चुके थे, प्रसूता को टेटेबंडा के जंगलों में डॉक्टर ने देखा। गर्भवती की हालत बिगड़ती देख खुद डॉक्टर ने परिजनों के साथ पगडंडी रास्तों से चारपाई को ढोकर पैदल एंबुलेंस तक पहुंचाया व स्वास्थ्य केंद्र मराईगुड़ा में प्रसूता ने रात्रि 2.45 मिनट पर बच्चे को जन्म दिया। अब जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं।
प्रसूता वंजाम कोशी ने बताया कि जब प्रसव का समय आया तो ग्राम में ही देशी तरीके से प्रसव करवाने का प्रयास किया गया था । लगभग एक घण्टा प्रयास करने के बाद प्रसव करवाने आयी महिला ने कहा कि यहां ग्राम में प्रसव करवाना सम्भव नहीं है, इन्हें अस्पताल ले जाएं। प्रसूता ने बताया कि उस वक्त हो रहे दर्द से जीने की पूरी उम्मीद छोड़ दी थी, ऐसी परिस्थिति में रात घोर जंगलों से पैदल पहुंचकर डॉक्टर ने प्रसव करवाया है। यह मेरे लिए पुनर्जन्म है।
मरईगुड़ा में पदस्थ डॉक्टर रुद्रमणि वैष्णव ने बताया कि गुरुवार रात्रि करीब 11 बजे टेटेबंडा ग्रामीण ने फोन में बताया कि महिला को प्रसव पीड़ा हुआ है व पूरी जानकारी दी। इसके पश्चात मैंने तत्काल हर हाल में प्रसूता तक पहुंचने की कोशिश की। परिजनों के साथ मिलकर उन्हें चारपाई में ढोकर एंबुलेंस तक पहुंचाया गया व वहां उपस्वास्थ्य केंद्र मरईगुड़ा पहुंचा कर प्रसव करवाया गया। जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ है।
डॉ. वैष्णव के प्रयासों को सराहते हुए हरीश लखमा ने बताया कि कोरोनकाल में भी डॉक्टर वैष्णव ने अतिसंवेदनशील दर्जनों गांवों में अपनी सेवाएं दी। खुद कोरोना से पीडि़त रहे। उबरने के बाद फिर सेवा में लगे। बंडा अस्पताल के शुरू होने में भी उनका योगदान रहा। सच्चे अर्थों में वो डॉक्टर विदाउट बॉर्डर हैं।