राजनांदगांव
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 31 दिसंबर। 2020 वैश्विक महामारी कोरोना के जद में रहा। दुनियाभर में जानलेवा रूप में सामने आए इस बीमारी से राजनंादगांव शहर भी कराहता रहा। जून में हुई इस बीमारी से पहली मौत के बाद कई नामचीन हस्तियों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी। शहर ने अपने बीच मौजूद हस्तियों के असमय गुजर जाने का दर्द सहा।
अगस्त-सितंबर में कोरोना ने चौतरफा लोगों को घेरते हुए नांदगांव को हॉटस्पॉट बना दिया। इस बीमारी ने राजनांदगांव शहर की पूर्व महापौर शोभा सोनी की भी जान ले ली। 2 सितंबर को भाजपा नेत्री श्रीमती सोनी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। इसी तरह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल अग्रवाल भी 22 सितंबर को कोरोना से लड़ते इस दुनिया से चले गए। वह भी इस बीमारी को मात नहीं दे पाए।
शहर ने पत्रकार बिरादरी से भी युवा पूरन साहू को कोरोनाकाल में असमय दुनिया छोड़ते हुए देखा। वहीं इस बीमारी से रायपुर में पदस्थ राजनंादगांव के रहने वाले डीएसपी लक्ष्मणराम चौहान को भी अपनी जान गंवानी पड़ी। 24 सितंबर को सेवानिवृत्त से एक साल पहले डीएसपी को कोरोना ने चपेटे में ले लिया। जिससे उनका निधन हो गया। मार्च में शुरू हुए लॉकडाउन के बाद धीरे-धीरे कोरोना ने अपना पैर पसारना शुरू किया।
लॉकडाउन की मार झेलते लोगों को बाघनदी बार्डर में अपने गृहराज्य वापसी के दौरान कई तरह की मुसीबतें झेलनी पड़ी। दीगर राज्यों के लोगों की जिले में दाखिले को लेकर लगी रोक ने कई परिवारों को भटकने मजबूर कर दिया। दिहाड़ी मजदूरों को मीलों पैदल चलते हुए इस काल में देखा गया। प्यासे-भूखे और शारीरिक रूप से कमजोर तबके को तपती दोपहरी में सडक़ों में पैदल चलते देखकर लोगों की आंखे भर आई। जून में हुई पहली मौत के बाद शहर में खलबली मच गई।
धीरे-धीरे 2020 के आखिरी दिन तक मौतों का आंकड़ा 166 के आसपास पहुंच गया। वहीं कोरोना के गिरफ्त में रहे पूरे जिले की आवाजाही बंद रही। बसें और ट्रेनें महीनों तक खड़ी रही। यात्री बसों से जुड़े कामगारों को तंगहाली और गरीबी से जूझना पड़ा। बार्डर के करीब मजदूरों के लिए अस्थाई रूप से कैम्प बनाया गया। जिसमें तत्कालिन कलेक्टर जेपी मौर्य ने अप्रवासी मजदूरों के लिए बेहतर बंदोबस्त किया। स्थिति यह रही कि कैम्प में रहते हुए मजदूरों को बेहतर व्यवस्था मिलने से राहत मिली। मजदूरों का कैम्पों में स्वास्थ्य जांच कर प्रशासनिक मदद से उन्हें गृह राज्य भेजा गया। इस दौरान पूरे जिले में कलेक्टर होने के नाते उन्होंने स्थिति को बेकाबू होने की दिशा में पूरी ताकत लगाई।
हालांकि संक्रमित बीमारी होने के कारण कोरोना के सामने सभी बंदोबस्त टिक नहीं पाए। इस बीच जिले में लोगों को बेरोजगारी और आर्थिक तंगी की स्थिति से भी लड़ते देखा गया। स्थानीय समाजसेवियों और दानवीरों की बदौलत काफी हद तक स्थिति को सम्हाला गया। साल 2020 का पूरा वक्त कोरोना से लड़ते और बचाव में ही गुजर गया। राजनांदगांव शहर के लिए यह साल एक दर्दनाक हादसे जैसा रहा।