‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दंतेवाड़ा, 13 मार्च। दंतेवाड़ा की अनूठी होली दंतेश्वरी देवी के इर्द - गिर्द घूमती है। भैरमनाथ के आदेश से दंतेवाड़ा की होली मनाई जाती है।
मंदिर के सेवादार सेवानिवृत्ति तहसीलदार राजनाथ साय की मुताबिक भैरम लाट से होली की शुरुआत होती है। इस दौरान मंदिर के सेवादारों के शीश पर सजी पगड़ी चोरी की जाती है। इसके पीछे एक मान्यता यह भी है कि भैरमनाथ के समक्ष कोई भी व्यक्ति अपने शीश पर पगड़ी धारण नहीं कर सकता। जो व्यक्ति ऐसा करता है, उसकी पगड़ी को जब्त कर दिया जाता है। उसे पगड़ी छुड़ाने हेतु जुर्माना देना पड़ता है।
आंवरा मार से होली की झलक
इसी क्रम में दंतेश्वरी मंदिर के समक्ष फागुन मंडई के नौवे दिन गुरुवार को आंवरा मार की रस्म आयोजित की जाएगी। जिसमें आंवल के फल को फेंका जाता है। वही मीठे अपशब्दों की भी बौछार की जाती है। उक्त परंपरा नगर के हृदय स्थल जय स्तंभ चौक में भी मनाई जाती है।
4 से 8 बजे तक दहन का मुहूर्त
मंदिर में होली की परंपरा राजा महाराज पुरुषोत्तम देव के शासन काल से मानी जाती है। उक्त परंपरा करीब 500 वर्ष पुरानी है। नगर के गायत्री शक्तिपीठ के समक्ष शनिदेव मंदिर के ताड़ के पत्तों से होलिका मंडप सजाया जाता है। गुरुवार को शाम 4 से 8 बजे के मध्य होलिका दहन का मुहूर्त निर्धारित किया गया है। होलिका दहन के उपरांत सेवादारों द्वारा उक्त राख की रखवाली की जाती है।
दूसरे दिन शुक्रवार को इस राख से मंदिर परिसर के समस्त देवी देवताओं और फागुन मेले में पहुंचे देवी - देवताओं को तिलक लगाया जाता है। इसके उपरांत शंकिनी और डंकिनी नदियों के तट पर स्थित भैरमनाथ के चरण पादुकाओं का पूजन किया जाता है। इस पूजन के उपरांत सेवादारों में भांग धतूरे का प्रसाद वितरित किया जाता है। वातावरण में अबीर- गुलाल उडऩे लगता है। सर्वत्र होली की बयार बहने लगती है।