बीजापुर

बच्चों ने मेहनत कर पिता का नाम किया रौशन
16-Feb-2025 10:42 PM
बच्चों ने मेहनत कर पिता का नाम किया रौशन

  दो बेटे बने डॉक्टर, एक का पीजी में चयन

मो. इमरान खान 
भोपालपटनम, 17  फरवरी (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)।
बीजापुर जिले के गोल्लागुड़ा के तीन भाइयों ने अपने पिता का नाम रौशन किया, साथ ही समाज को एक प्रेरणा भी दी है। बड़े भाई डॉ. चंद्रशेखर, डॉ. राजशेखर, और छोटे भाई जय ने फार्मासिस्ट की पढ़ाई कर ली है।

गोल्लागुड़ा के पी. लक्ष्मीनारायण एक छोटे से गांव में रहकर बच्चों की अच्छी परवरिश कर उनको एक अच्छे मुकाम तक पहुंचाया है। लक्ष्मीनारायण ने बहुत ही संघर्ष कर अपनी छोटे सी किराना दुकान लगाकर अपने तीनों बेटों को उच्च शिक्षा दिलाई।

उनके इस संघर्ष का नतीजा है कि आज उनके बड़े बेटे डॉ. चंद्रशेखर बीएएमएस किए हैं। उनकी पांच वर्ष की पढ़ाई बेंगलुरु में पूर्ण हुई। 2015 में चिरायु योजना के अंतर्गत नौकरी कर रहे हैं।
पिता की परवरिश ऐसी है कि वे बीजापुर जिले में चिरायु योजना में अव्वल दर्जे का काम भी कर रहे हैं। हमेशा से जिले के चारों ब्लॉकों में कार्य के प्रति अव्वल रहते हैं। 

उन्होंने गरीब परिवारों को योजना के माध्यम से उपचार कराया। जन्मजात बीमारी से ग्रसित बच्चों का उपचार कराकर भोपालपटनम में उन बच्चों की जिंदगी को रोशन किया है, वहीं दूसरे बेटे डॉ. राजशेखर ने अपनी मेहनत और लगन से नवोदय विद्यालय जगदलपुर में बारहवी तक शिक्षा हासिल की। 2015 में एमबीबीएस मेडिकल कॉलेज जगदलपुर के लिए चयनित हुए। 

29 साल की उम्र में डॉ. राजशेखर का एमएस जनरल सर्जरी में चयन
एमबीबीएस की पढ़ाई पूर्ण कर उन्होंने डिमरापाल हॉस्पिटल जगदलपुर में बांड पूरा किया, उसके बाद 2 साल उन्होंने कड़ी मेहनत कि अब 29 साल की उम्र में एमएस जनरल सर्जरी रायपुर मेडिकल कॉलेज के लिए चयनित हुए हैं। इनके तीसरे बेटे पी. जय शेखर ने फार्मेसी की पढ़ाई पूर्ण की है। एक निर्धन परिवार से पिता का कठिन संघर्ष कर अपने तीनों बेटों को अच्छी शिक्षा एवं अच्छी जीवन प्रदान किया है।

गरीबी में पिता ने बच्चों को पढ़ाने दिन-रात एक किया
बच्चों की पढ़ाई के लिए डॉक्टरों के पिता को बड़ी कठिनाईयां उठानी पड़ी है। पहले वे प्रेस करने का काम किया करते थे, तब बच्चे छोटे थे। उसके बाद उन्होंने उस काम से कुछ पैसे इकठ्ठा किए, फिर अपने गांव में छोटी सी किराना दुकान खोली। दुकान में दिन रात एक कर वे पाई-पाई जमा करते थे।

तंगी हालत में रहकर भी बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसा इकठ्ठा करते थे, फिर 12वीं पास हुए बड़े बेटे चंद्रशेखर को डॉक्टरी करवाई। मंझला बेटा भी पढ़ाई में तेज था, उसका नवोदय विद्यालय जगदलपुर में चयन हुआ, उसकी मेहनत आज मुकाम तक पहुंचा दी है।

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