राजनांदगांव

कुलबीर की अप्रत्याशित हार से कांग्रेस सदमे में
16-Feb-2025 4:24 PM
कुलबीर की अप्रत्याशित  हार से कांग्रेस सदमे में

नए प्रत्याशी शैंकी ने छाबड़ा के गढ़ में लगाई सेंध

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 16 फरवरी।
राजनांदगांव नगर निगम के चुनावी परिणाम में शहर अध्यक्ष कुलबीर छाबड़ा की अप्रत्याशित हार से कांग्रेस सदमे में है। छाबड़ा को जीत की गारंटी वाले चेहरे के रूप में देखा जाता रहा है। छाबड़ा 25 साल से शीतला माता वार्ड से बतौर कांग्रेस पार्षद चुने जाते रहे हैं। नए नवेले भाजपा प्रत्याशी  शैंकी बग्गा ने उनके अभेद किले को सेंध लगा दिया है। 

उम्मीद से परे छाबड़ा को कल आए चुनावी नतीजों में हार का सामना करना पड़ा। भाजपा ने इस बार शैंकी बग्गा को कुलबीर के खिलाफ खड़ा कर दिया। शुरूआत में बग्गा को कुलबीर के सामने कमजोर माना जा रहा था। चुनावी रणनीति बनाने में माहिर भाजपा के दिग्गज नेताओं ने कुलबीर को घेरने के लिए उनकी कई खािमयों को जनमानस के पटल में रखा। नतीजतन कुलबीर को हार झेलनी पड़ी।

बताया जा रहा है कि शैंकी बग्गा पूर्व सांसद अभिषेक सिंह की पसंद माने जाते हैं। बग्गा को चुनाव मैदान में उतारने से पहले कई दौर की चर्चा के बाद अभिषेक की सिफारिश पर उन्हें चुनावी मैदान में उतारा गया। छाबड़ा अब तक भाजपा के अनुमान को गलत साबित करते रहे हैं, लेकिन शैंकी बग्गा ने इस बार पार्टी की उम्मीद को यकीन में बदल दिया। छाबड़ा का इस बार चुनाव लडऩे का तरीका भी बदला हुआ रहा। बताया जाता है कि छाबड़ा से कुछ युवा मतदाताओं ने दूरी बना ली थी, जिन्हें जोडऩे के लिए सही तरीके से प्रयास नहीं किया गया।

हालांकि इस वार्ड में चुनाव परिणाम मैनेजमेंट का खेल के कारण भाजपा के पक्ष में आया। चर्चा है कि बग्गा ने हर मतदाताओं को बतौर पार्षद सेवादार के रूप में काम करने का भरोसा दिया है। बग्गा के पक्ष में उनका पूरा परिवार भी चुनाव मैदान में था। वहीं सिक्ख समाज के प्रमुख लोगों ने भी पूर्व आईईएस अफसर बग्गा के पक्ष में माहौल बनाया। 

उधर, कुलबीर छाबड़ा की हार से पार्टी सकते में है। ढाई दशक से पार्षद रहे छाबड़ा की अपने वार्ड में धाक थी। छाबड़ा की हार को पार्टी पचा पा नहीं रही है। यह भी चर्चा है कि छाबड़ा के खिलाफ रियल स्टेट कारोबार से जुड़े लोगों ने भी अंदरूनी तौर पर आर्थिक  रूप से घेराबंदी की। बग्गा ने भी लोगों के बीच जाकर  उनके भरोसे को कायम करने का भरोसा दिया। बहरहाल, कुलबीर छाबड़ा की हार ने सियासी पंडितों के अनुमान को भी धराशाही कर दिया।
 

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