गरियाबंद

छत्तीसगढ़ का ‘प्रयाग’ राजिम के मंदिर, सिर्फ स्थापत्य नहीं, बल्कि आस्था का अमिट प्रमाण...
16-Feb-2025 2:37 PM
छत्तीसगढ़ का ‘प्रयाग’ राजिम के मंदिर, सिर्फ स्थापत्य नहीं, बल्कि आस्था का अमिट प्रमाण...

लीलाराम साहू

नवापारा-राजिम, 16 फरवरी (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता )। छत्तीसगढ़ के हृदय में स्थित राजिम अपनी आध्यात्मिक भव्यता और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। इसे ‘छत्तीसगढ़ का प्रयाग’ कहा जाता है, क्योंकि यहां महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों का संगम होता है। यह पवित्र नगरी न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि अपनी ऐतिहासिक धरोहर और भव्य मंदिरों के कारण पर्यटकों को भी आकर्षित करती है।

राजिम स्थित दर्शनीय स्थल राजीव लोचन मंदिर, अनंत आस्था का केंद्र

राजीव लोचन मंदिर, जिसे भगवान विष्णु को समर्पित किया गया है, 8वीं शताब्दी का एक ऐतिहासिक मंदिर है। इसके शिल्प और वास्तुकला की भव्यता इसे छत्तीसगढ़ के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक बनाती है। मंदिर के विशाल स्तंभों और जटिल नक्काशी में हिंदू देवी-देवताओं की अद्भुत छवियां उकेरी गई हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

त्रिवेणी संगम पर स्थित कुलेश्वर महादेव
त्रिवेणी संगम के मध्य में स्थित कुलेश्वर महादेव मंदिर की महिमा अद्वितीय है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने वनवास काल में यहां अपने कुलदेवता महादेव की आराधना की थी। इसे कमल क्षेत्र भी कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु की नाभि से निकला कमल यहीं स्थित था,और ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी।

मामा-भांजा मंदिर, रहस्यमयी मान्यता से जुड़ा मंदिर
महानदी के किनारे स्थित मामा-भांजा मंदिर की कथा अत्यंत रोचक है। कहा जाता है कि जब वर्षा काल मे त्रिवेणी संगम में बाढ़ के समय कुलेश्वर महादेव का मंदिर जलमग्न हो जाता है, तो वहां से ‘मामा बचाओ’ की आवाजें सुनाई देती थीं।और इस ध्वनि के चलते बाढ़ कम हो जाता है,इस परंपरा के चलते आज भी यहां मामा और भांजा को एक ही नाव पर सवार होने की अनुमति नहीं है।

लोमश ऋषि आश्रम, जहां भगवान श्रीराम ने किया था निवास
राजिम का लोमश ऋषि आश्रम भी एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। मान्यता है कि आज भी लोमश ऋषि सबसे पहले भगवान राजीव लोचन की पूजा करते हैं। कहा जाता है कि श्री राम वनवास के दौरान यहां कुछ समय के लिए ठहरे थे और महानदी की रेत से शिवलिंग बनाकर भगवान शंकर की आराधना की थी, जिसे आज कुलेश्वर महादेव के रूप में पूजा जाता है।

रामचंद्र मंदिर, 400 साल पुराना दिव्य धरोहर
राजिम में स्थित रामचंद्र मंदिर अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण 400 वर्ष पूर्व एक व्यापारी ने कराया था, जो भगवान राम के अनन्य भक्त थे। इसकी दीवारों और खंभों पर दुर्लभ शिलालेख और मूर्तियां उकेरी गई हैं, जो इसकी प्राचीनता को दर्शाती हैं।

अन्य प्रमुख मंदिर और धार्मिक स्थल
राजिम भक्तिन माता मंदिर, सोमेश्वर महादेव मंदिर, दत्तात्रेय मंदिर, बाबा गरीब नाथ,माँ महामाया मंदिर,गुफा वाली काली माता मंदिर ब्रह्मचर्य आश्रम,खंडोबा भवानी मंदिर,लक्ष्मीनारायण मंदिर, शीतला देवी मंदिर,भैरव मंदिर और विश्वकर्मा मंदिर,गायत्री मंदिर के अलावा आकर्षण का केंद्र लक्ष्मण झूला भी आस्था और श्रद्धा के महत्वपूर्ण केंद्र हैं। ये सभी स्थल राजिम की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को और अधिक भव्य बनाते हैं।

त्रिवेणी संगम, छत्तीसगढ़ की पावनधरा
राजिम का त्रिवेणी संगम, जहां महानदी, पैरी और सोंढूर नदियां मिलती हैं, छत्तीसगढ़ का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। महानदी: (जिसे प्राचीन काल में चित्रोत्पला कहा जाता था) धमतरी जिले के सिहावा पर्वत से निकलती है। सोंदुर नदी: गरियाबंद जिले से प्रवाहित होकर महानदी में समाहित होती है। पैरी नदी: भाठीगढ़ (मैनपुर) की पहाडिय़ों से निकलकर राजिम में महानदी से मिलती है,इस प्रकार तीन नदियों का संगम त्रिवेणी संगम कहा जाता है। यहाँ दूर दूर से तर्पण अनुष्ठान के लिए भी आते हैं।

भक्ति और संस्कृति का अद्भुत संगम
हर साल कार्तिक पूर्णिमा,छेरछेरा पुन्नी, एवं माघी पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक 15 दिवसीय भव्य राजिम मेला का आयोजन होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। यह मेला छत्तीसगढ़ के धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है,जहां देशभर से साधु-संत, श्रद्धालु और पर्यटक एवं विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं।

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