गरियाबंद

पंचकोशी यात्रा की थीम पर राजिम कुंभ कल्प मेला नवीन मेला मैदान में बनी पंचकोशी झांकी
14-Feb-2025 7:17 PM
 पंचकोशी यात्रा की थीम पर राजिम कुंभ कल्प मेला नवीन मेला मैदान में बनी पंचकोशी झांकी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

राजिम, 14 फरवरी। राजिम कुंभ कल्प 2025 का आयोजन नए स्वरूप में पहले से अधिक आकर्षक और भव्य रूप में दिखाई दे रहा है। कुंभ मेले की साज-सजावट और आकार मेलार्थियो को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। राजिम कुंभ में आस्था, भक्ति और संस्कृति का अद्भुत समन्वय किया गया है। जहां दिन भर भजन कीर्तन के साथ ही देश के कोने-कोने से आए हुए प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा विशाल मंच में प्रस्तुति देकर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कर रहे है।

इस बार राजिम कुंभ पंचकोशी यात्रा थीम पर बना है। राजिम मेला में सबसे ज्यादा मेलार्थी पंचकोशी यात्रा की झांकी देखकर श्रद्धावान् शीश झुका रहे है। मेलार्थियो को मनोरंजन के साथ ही पंचकोशी यात्रा का लाभ एक ही स्थान पर मिल रहा है। यहां पंचकोशी के पांचों महादेव स्थल पहुंचने का मार्ग और दूरी से अवगत हो रहे हैं।

ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ में कुंभ मेला के एक माह पहले पंचकोशी यात्रा की जाती है। जिसमें हजारों श्रद्धालु क्षेत्र के श्री कुलेश्वर महादेव, पटेश्वर महादेव, चंपेश्वर महादेव, ब्रम्हनेश्वर महादेव, फणीकेश्वर महादेव और कोपेश्वर महादेव की पूजा अर्चना कर अपने आप को धन्य करते हैं। पंचकोशी पदयात्रा का प्रारंभ और समापन राजिम त्रिवेणी संगम के बीचोंबीच स्थित कुलेश्वर मंदिर में पूजा पाठ से होता है। श्रद्धालु पैदल चलकर 5 पड़ाव में 5 शिवलिंगों की दर्शन करते हैं।

पटेश्वर महादेव होता है पहला पड़ाव

पदयात्रा के दौरान श्रद्धालुओं का पहला पड़ाव पटेवा के पटेश्वरनाथ मंदिर में होता है। इसके बाद चंपेश्वरनाथ, बम्हनेश्वरनाथ, फणेश्वरनाथ और कोपेश्वरनाथ के दर्शन के बाद श्रद्धालु कुलेश्वरनाथ मंदिर पहुंचते हैं। राजिम से पांच किलोमीटर दूर ग्राम पटेवा में स्थित पटेश्वर महादेव अन्नब्रम्हा के रूप में पूजे जाते है। सुबह पूजा अर्चना पश्चाल श्रद्धालु अगले पड़ाव चंपेश्वर महादेव के लिए निकल जाते हैं। चंपारण में स्थित चंपेश्वर महादेव राजिम से उत्तर दिशा में 14 किलोमीटर स्थित है। चंपेश्वर महादेव का स्वयंभू-लिंग है। जब प्रतिष्ठित हुआ तब शिव भगवान को ही पूजते थे।

यहां से तीसरा पड़ाव ब्रम्हनेश्वर होता है, जो चम्पारण से 9 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पूर्व की ओर महासमुंद जिले के बम्हनी गांव में स्थित है। जहां ब्रम्हकेश्वर महादेव पर शंभू की अघोर वाली मूर्ति है। उमा देवी इनकी शक्ति है। भक्त ऐसा विश्वास करते है कि इस स्वरूप को जो एक बार पहचान लेते है वे कभी भयभीत नहीं होते। यहां से चौथा पड़ाव गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर में स्थित फणीकेश्वर महादेव है। फणीकेश्वर महादेव में शंभु की इशान वाली मूर्ति इसकी अर्धागिंनी अंबिका है। गांव वालों की मान्यता है कि वे भक्तों को शुभ गति देते है। यहां से अगले पड़ाव कोपेश्वर महादेव मंदिर पड़ता है। गरियाबंद जिले के ग्राम कोपरा में कोपेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। कोपरा गांव के पश्चिम में दलदली तालाब है उसी तालाब में कोपेश्वर मंदिर है।

 यहां वामदेव नाम की मूर्ति है। उसकी पत्नी है भवानी, जो आनंद का प्रतीक है। कोपेश्वर दर्शन के बाद श्रद्धालु त्रिवेणी संगम बीच स्थित भगवान कुलेश्वर महादेव के दर्शन कर यात्रा का समापन करते हैं।

पंचकोशी यात्रा मनोवांछित फल की होती है प्राप्ति

पंचकोशी यात्रा में पहुंचे श्रद्धालुगण सिर में अपने रोजमर्रा के सामान को लादकर महादेव तथा राम सिया राम नाम का उच्चारण करते हुए निकलते हैं। रास्ते भर कहीं पर पथरीले तो कहीं पर रेतीले सडक़ को पार करते हुए आगे बढ़ते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस यात्रा को करने से सभी दुख और दरिद्रता दूर हो जाती है। यात्रा से अध्यात्मिक शांति मिलती है। सभी तीर्थों के दर्शन का लाभ मिलता है। मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। यह पांच विकारो काम, क्रोध, मोह, लोभ और मद से मुक्ति दिलाने में सहायक है।

श्रद्धालु लेते हैं सूखा लहर

पंचकोशी यात्री जैसे ही हथखोज स्थित शक्ति लहरी माता के दरबार में पहुंचे उसके बाद परसा पान चढ़ाकर नारियल अगरबत्ती धूप समर्पित किया। नदी में आकर सूखा लहरा लिया। पहले रेत से शिवलिंग बनाया। आराधना की और दोनों हाथ जोडकऱ नदी में लोट गए। उसके बाद लहराता अलौकिक दृश्य रोमांचित कर दिया।

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