‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 5 फरवरी। हिन्दी साहित्य के महाप्राण पंण् सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की जयंती, बसंत पंचमी पर साहित्य समिति आस्था के संयोजन में गोष्ठी. कविताओं में बसंत का आयोजन त्रिमूर्ति कालोनी स्थित जीवन सदन में हुआ। गोष्ठी के प्रारंभ में मुख्य अतिथि समाजसेवी दाऊलाल चंद्राकर, विशिष्ट अतिथि सेवा निवृत प्राचार्य के आर चंद्राकर एवं सभाध्यक्ष सेवा निवृत्त जिला शिक्षा अधिकारी एस.चन्द्रसेन ने मां वाग्देवी व निराला के चित्रों पर पुष्पार्पण कर मंगल दीप जलाया।
साहित्यकार सुरेन्द्र अग्निहोत्री ने सरस्वती वंदना को सुरीले स्वरों में पिरोया। समिति अध्यक्ष आनंद तिवारी पौराणिक ने निराला के जीवन वृत्त पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे जीवन भर अभावों और कष्टों से जूझते रहे पर उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी कविताओं में छायावाद, प्रकृति चित्रण, राष्ट्रप्रेम, आध्यात्म व दीनहीनों, श्रमिकों के प्रति अपार करुणा के स्वर दिखाई देते हैं। मुख्य अतिथि दाऊलाल चंद्राकर ने कहा कि निराला जी महामानव थे। उन्होंने हिन्दी कविता को रुढिय़ों से मुक्त किया।
गोष्ठी का संचालन करते हुए साहित्यकार सरिता तिवारी ने अपनी पंक्तियां टेसू के फूलों से धरा ने किया श्रृंगार प्रियतमा का खत्म हुआ इन्तजार पढ़ीं। उत्तरा विदानी ने कहा-मैं समाज के प्रति निराला जैसे संवेदना नहीं रख पाती। सुरेन्द्र अग्निहोत्री ने मधुमास का स्वागत आगे आगे रे बसंत. कहकर किया। कार्यक्रम में डा. साधना कसार ने निर्झर के प्रवाह व पुरवाई के मधुर संगीत पर कहा झर झर निर्झर बहने लगे, नव पल्लव चमकने लगे। बंधु राजेश्वर खरे ने लोकगीत शैली में कहा. फूल जोड़ी फूल ये दे परसा के फूल कविता पढ़ी। एस चन्द्रसेन ने कहा कि स्वतंत्र चाह चूनर की,अंगड़ाई में पाबन्द है। अशोक शर्मा ने सब्ज पत्तों का इन्हें पहनाइये फिर से लिवास कविता पढ़ी। आनंद तिवारी पौराणिक ने ...बसन्त इस बरस तुम. शीर्षक से कहा कि पलाश पुष्पों को दहकते चरख, सुर्ख रंग देने, इस बरस आना इधर बसंत तुम पढ़ी।