दुर्ग

रसमड़ा के गरीब परिवारों को पक्का मकान व स्थानीय उद्योगों में नौकरी देने व प्रदूषण रोकने मांग
05-Dec-2024 3:09 PM
रसमड़ा के गरीब परिवारों को पक्का मकान व स्थानीय उद्योगों में नौकरी देने व प्रदूषण रोकने मांग

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

दुर्ग, 5 दिसंबर। औद्योगिक ग्राम रसमड़ा के लगभग 600 गरीब हितग्राहियों को प्रधानमंत्री आवास देने, स्थानीय लोगों यहां स्थापित उद्योगों में स्थाई नौकरी दिलाने एवं रसमड़ा सहित आस-पास के क्षेत्रो में उदयोगो द्वारा फैलाये जा रहे अंधाधुंध प्रदूषण पर रोक लगाने मांग की गई है। मुख्यमंत्री विष्णुदेवसाय एवं उप-मुख्यमंत्री गृहमंत्री व जिले के प्रभारीमंत्री विजय शर्मा के नाम कलेक्टर को पूर्व संरपंच एवं पूर्व उपाध्यक्ष दुर्ग ग्रामीण मंडल भाजपा रामखिलावन यादव के नेतृत्व में ग्रामीणों द्वारा ज्ञापन सौपा गया है। इसकी प्रतिलिपि लोकसभा सांसद विजय बघेल एवं क्षेत्रीय विधायक ललित चंद्राकर को भी मिलकर सौंपा गया है।

ज्ञापन में कहा गया है कि गरीबी आवासहिनों की सूची नवम्बर 2020 को ग्राम पंचायत एवं ग्राम सभा (जी.पी.डी.पी.) में अनुमोदित कर जनपद पंचायत एवं जिला पंचायत को प्रेषित की जा चुकी है, लेकिन खेद का विषय है कि 2011-12 से लेकर आज 2024 तक भी जिला एवं राज्य शासन प्रशासन में यह सूची स्वीकृति में पंजीकृत नहीं हो पाई है ऐसे में जहां लगभग 600 गरीब हितग्राही केंद्र एवं राज्य शासन की इस महत्वाकांयोजना से वंचित हो चुके है। उनका कहना है कि यहां के सैकड़ों किसानों ने हजारों एकड़ कृषि भूमि उद्योग विकास के लिए शासन को दे दिए थे कि जमीन के बदले उनके परिवारों को अच्छी नौकरी मिलेगी जिंदगी संवरेगा, लेकिन इस गांव के होनहार आई.टी.आई. डिप्लोमा इंजिनियरिंग आदि शिक्षित-प्रशिक्षित होकर भी यहां कई उद्योग होने के बावजुद रोजगार की तलाश में यहां वहा भटक रहे है। वहीं अन्य जिलो एवं राज्यो से लाकर 50-60 हजार रुपये तक के वेतनमान मे रोजगार दिया गया है।

उन्होंने सवाल उठाया है कि क्या यहां के स्थानीय बेरोजगार जिनके गांव में उद्योग लगा है, जिन्होंने उद्योग के लिए अपने पुश्तैनी जमीन दे दी है उन्हें 15-20 हजार रुपये महीने की स्थाई नौकरी के हकदार नहीं है यहां पर कुछ लोगों को कंपनी ठेकेदारों के माध्यम से काम तो मिला है, लेकिन शासन द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन, भविष्यनिधि स्वास्थ्य बीमा सुरक्षा तक की सुविधा नहीं दी जा रही है कई श्रमिक सेवा देते सेवानिवृत्त हो चुके है, लेकिन उसके आश्रित परिवारों को 2000 रुपये तक की महिने में पेंशन नहीं मिल पा रहा। स्वास्थ्य बीमा जिसमें कार्यरत श्रमिक उनके पत्नि बच्चे सहित कार्यरत श्रमिक के माता-पिता का भी इलाज का प्रावधान है, लेकिन यहां के कंपनी मालिक ठेकेदार उनके स्वास्थ्य बीमा की राशि जमा ही नहीं करते जिससे श्रमिक स्वयं के राशि में अपने व अपने परिवार का ईलाज कराने मजबूर होते है। यहां विशेषकर महिला श्रमिकों को कई कंपनी में प्रतिदिन 150 रु. से 200 रु. तक की कम मेहनताना दी जाती है महीने में पांच से छ हजार रुपये तक की कार्यरत इन महिला श्रमिकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे उद्योग संचालक एवं ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई किया जाना चाहिए वहीं यहां के उद्योग संचालक प्रदूषण के प्रति जरा भी गंभीर नहीं है बिना प्रदूषण नियंत्रण मशीन के उपयोग किये अंधाधुंध प्रदूषण फैला रहे हैं।

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