‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
मनेन्द्रगढ़, 22 नवम्बर। देवगढ़ और कैमूर पहाडिय़ों से घिरे जनकपुर (भरतपुर) विकासखंड घघरा में हजारों वर्ष पुराने मंदिर की जर्जर स्थिति पर अंचल की सांस्कृतिक संस्था संबोधन साहित्य एवं कला विकास संस्थान मनेन्द्रगढ़ ने चिंता व्यक्त करते हुए कलेक्टर मनेन्द्रगढ़ को ज्ञापन सौंपा है।
संस्था ने ज्ञापन में उल्लेख किया है कि घघरा में हजारों वर्ष पुराना यह मंदिर अपनी प्राचीन शिल्प कला एवं अद्भुत इंजीनियरिंग का उत्तम उदाहरण है, जो एमसीबी जिले के वर्तमान घनघोर जंगलों के बीच पुरातन कालीन सभ्यता के अवशेष का साक्ष्य है। दबी जुबान में मौर्य कालीन सिक्कों की इस अंचल से प्राप्ति के कारण किवदंतियों में यह मौर्यकालीन मंदिर कहा जाता है। पुरातत्ववेत्ता डॉ. वर्मा के अनुसार यह 13वीं शताब्दी का मंदिर है तथा राज्य सरकार के रिकॉर्ड में विगत 50 वर्षों से दर्ज है, लेकिन जिले में प्राचीन सभ्यता के इस प्रमाण को संरक्षित करने का अब तक कोई प्रयास नहीं किया जाना अंचल की उपेक्षा को दर्शाता है।
विगत 5 दशक से सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण हेतु प्रयासरत संस्था संबोधन ने कलेक्टर से इसे संरक्षित करने एवं आसपास की भूमि में चहारदीवारी बनाकर एक पार्क विकसित करने का अनुरोध किया है, ताकि जनकपुर से कोटाडोल श्रीराम वनगमन मार्ग के मध्य स्थित इस मंदिर से आने वाले पर्यटक परिचित हो सकें और इस अंचल की प्राचीन सभ्यता को जान सकें। संरक्षण कार्य से आसपास की भूमि के अनधिकृत कब्जे से मुक्त इस स्थल से स्थानीय ग्रामीणों को जहां रोजगार मिलेगा वहीं नगर समितियों को देखरेख का जिम्मा सौंपने से उन्हें भी रोजगार के संसाधन उपलब्ध होंगे। कलेक्टर डी. राहुल वेंकट ने संरक्षण हेतु संस्था को विश्वास दिलाया है।
पर्यावरण एवं धरोहर चिंतक बीरेंद्र श्रीवास्तव द्वारा अंचल के धरोहरों पर साप्ताहिक लेखों के प्रकाशन से घाघरा मंदिर के संरक्षण की दास्तान वर्तमान में लोगों की चर्चा का विषय बना हुआ है। अलग-अलग स्तर पर सामाजिक संस्थायें इसे बचाने एवं संरक्षित करने हेतु प्रयासरत हैं। जनप्रतिनिधियों एवं सामाजिक संगठनों द्वारा सही समय पर आवाज उठाने और प्रयासों से ही हजारों साल की सभ्यता के प्रतीक इन मंदिरों को बचाया जा सकेगा, जो आज समय की मांग है।