महासमुन्द
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,11नवंबर। इस साल संचालनालय खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने युवा उत्सव पर रंगमंच,एकांकी, नाटक, शास्त्रीय गायन-वादन तथा नृत्य सहित अनेक विधाओं को आयोजन से बाहर कर दिया है। पिछले 26 सालों से 18 विधाओं में स्पर्धाएं होती आयी हैं। लेकिन इस बार इनमें से 11 विधाओं को बाहर कर देने से महासमुंद जिले में इन कलाओं को जिंदा रखने वाले कलाकार अवनीश वाणी समेत जिले के तमाम कलाकार निराश हैं। उनका कहना है कि रंगमंच से सारे रंग गायब हो जाएंगे और केवल मंच ही बाकी रह जाएगा। यह कैसा दौर है जब कला के पारखी बगैर कलाकार ही रंगमंच सजाएंगे। रंगमंच की सांसें नाटक विधा से चलती हैं। जबकि शास्त्रीय-गायन-नृत्य दर्शकों के रगों में रक्त के प्रवाह को स्थिर रखता है।
मालूम हो कि अवनीश वाणी पेशे से शिक्षक है और उन्होंने मोम की गुडिय़ा,शिव तांडव, बिछुआ समेत अनेक नाटकों को लिखा है, उन्हें रंगमंच दिया है। वर्तमान में वे एक शिक्षण संस्था में प्राचार्य हैं। उन्होंने जिले भर में अनेक मंजे हुए कलाकार तैयार किया है। सरकारी आदेश पर उनका कहना है कि नाटक एक ऐसी विधा है जो जनमानस से जुड़ी हुई वास्तविकता को बहुत ही संजीदगी से प्रस्तुत करता है। नाटक में अभिनय करना अपेक्षाकृत कठिन होता है। समाज की अच्छी बातों एवं बुराईयों से ना सिर्फ दर्शक परिचित होता है, वरन् उसका कलाकार भी बेहतर समाज निर्माण के लिए शिक्षित हो जाता है। अच्छे नाटकों को बारीकियों से देखा जाता है और बुद्धिजीवी वर्ग के लिये अच्छा मानसिक कलेवा प्रस्तुत करता है। अब नाटक विरल हो रहे हैं। इस लुप्त होती कलात्मक विधा को युवक कल्याण विभाग द्वारा प्रतियोगिता से हटाकर जिंदा जलाने की कोशिश हो रही है। मैं विभाग है अनुरोध करता हूं कि इसकी इतिश्री ना करके इसके उत्थान की दिशा में कार्य करें।
गौरतलब है कि खेल एवं युवा कल्याण विभाग हर साल युवा उत्सव के दौरान नाटक विधा प्रतियोगिता भी आयोजित करता था। इसकी सूचना बहुत ही अल्प अवधि में प्राप्त होती थी लेकिन युवा वर्ग इसकी तैयारियां बहुत पहले प्रारंभ कर देता था। सो इस वर्ष भी युवा अपने नाटकों के साथ तैयार थे। अब उनकी आकांक्षाओं पर पानी पिर गया है। इस साल प्रदेश भर में आयोजित होने वाले युवा उत्सव में विकासखंड स्तर पर 30 नवम्बर 2024 तक, जिला स्तर 1 से 15 दिसबंर तक तथा राज्य स्तर पर12 से 14 जनवरी 2024 में मात्र सामूहिक लोक नृत्य, सामूहिक लोकगीत, व्यक्तिगत लोकगीत, व्यक्तिगत लोक नृत्य, कहानी लेखन, चित्रकला, वक्तव्य कला, कविता, विज्ञान मेला, हस्तशिल्प, कृषि उत्पाद, रॉक बैंड पर ही स्पर्धाएं होंगी। जबकि पूर्व में शास्त्रीय विधाओं के कलाकार जिला, राज्य तथा नेशनल स्तर पर पहुंचकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। रंगमंच से जुड़े अनेक कलाकार इन दिनों व छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, ओडिय़ा तथा हिन्दी में अपने अभिनय का प्रदर्शन करते रहे हैं।
इसी तरह शास्त्रीय विधाओं के कलाकार जिला, राज्य तथा नेशनल स्तर पर पहुंचकर अपनी कला का प्रदर्शन करते रहे हैं।
शिøक कलाकार सुरेन्द्र मानिकपुरी का कहना है कि यदि रंगमंच सहित देश की इन पुरानी शास्त्रीय शैलियों को ही मंच से बाहर कर दिया जायेगा तो इन विधाओं का मूल ही नष्ट हो जायेगा।
0 शासन का आदेश है कि इस बार नये सर्कुलर पर ही काम करें। कहा गया है कि आदेश में जो लिखा गया है उसी के आधार पर ही स्पर्धाएं होंगी। बीते 26 साल से 18 विधाओं पर स्पर्धाएं होती रही है- खेल अधिकारी मनोज घृतलहरे खेल एवं युवा कल्याण विभाग।