महासमुन्द

धान फसल पर प्रतिबंध लगाना भाजपा सरकार का तुगलकी फरमान-विनोद चंद्राकर
07-Nov-2024 3:05 PM
धान फसल पर प्रतिबंध लगाना भाजपा सरकार का तुगलकी फरमान-विनोद चंद्राकर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

महासमुंद, 7 नवंबर। पूर्व संसदीय सचिव व पूर्व विधायक विनोद सेवन लाल चंद्राकर ने रबी फसलों के लिए भूमिगत जल के उपयोग तथा धान की खेती पर प्रतिबंध लगाने के राज्य के भाजपा सरकार के आदेश को किसान विरोधी तुगलकी फरमान बताया है।

श्री चंद्राकर ने जारी विज्ञप्ति में कहा कि सरकार को  यह आदेश जारी करने से पहले जिले के सिंचाई संसाधनों को वृहद करने पर प्रयास करना चाहिए। उन्होंने बताया कि पूर्व के कांग्रेस शासन काल  तथा मेरे कार्यकाल में मैंने शिकासेर जलाशय गरियाबंद से महासमुंद जिले में पानी लाने की दिशा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से निवेदन किया  था। जिसके परिणाम स्वरूप शिकासेर परियोजना के तहत बजट में राशि का प्रावधान किया गया था। इस परियोजना पर सरकार यदि तेजी से  कार्य करेगी तो जिले के काफी भू-भाग सिंचित हो जाएगा।

               उन्होंंने कहा कि कई दशकों तक किसानों को सूखा व अकाल की चिंता नहीं रहेगी। बागबाहरा ब्लॉक तथा महासमुंद ब्लॉक पूरी तरह सिंचित क्षेत्र हो जायेगा। इसके अलावा जिले के सभी ब्लॉकों में सिंचाई परियोजना पर कार्य किया जाना चाहिए। लेकिन उक्त परियोजनाओं को सरकार द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा। साथ ही अपनी किसान विरोधी मानसिकता का परिचय देते हुए भाजपा की साय सरकार किसानों को रबी सीजन में धान फसल लेने पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। यदि भूमिगत जल की सरकार को इतना ही चिंता है तो बड़े बड़े उद्योगों को बांधों व  जलाशयों का पानी क्यों दिया जा रहा है।

श्री चंद्राकर ने आगे कहा कि जब उद्योगपति बड़े पैमाने पर जल संपदा की लूट कर रहे हैं तो यह आदेश कृषि अर्थव्यवस्था, खाद्यान्न, आत्मनिर्भरता और खेती.किसानी के संबंध में किसानों के निर्णय लेने के अधिकार पर ही सीधे.सीधे हमला है। तथा कॉर्पोरेट हितों से प्रेरित हैं जो  चाहते हैं कि किसान खेती छोडक़र शहरों में सस्ते मजदूरों के रूप में उपलब्ध हों। उन्होंने कहा है कि किसानों को खरीफ फसल में हुए नुकसान की  भरपाई रबी की फसल ही कर सकता है।  लेकिन भाजपा सरकार उन्हें इससे भी वंचित कर रही है। इससे किसानों की हालत और गिरेगी और वे  आत्महत्या के लिए प्रेरित होंगे। श्री चंद्राकर ने मांग की है कि या तो सरकार अपना यह तुगलकी निर्णय वापस लें या फिर किसानों को हो रहे नुकसान की एवज में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर प्रति एकड़ 21 क्विंटल औसत उत्पादन के आधार पर 80 हजार रुपए प्रति एकड़ और रेघा अधिया, ठेका, बंटाई, वनभूमि में खेती करने वाले किसानों को 40 हजार रुपए प्रति एकड़ मुआवजा दें।

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