दयाशंकर मिश्र

घबराना !
16-Sep-2020 3:01 PM
घबराना !

एक हरा-भरा पेड़ तने और पत्तियों के सहारे नहीं होता। उसकी शक्ति जड़ में होती है। हमने बचत की भारतीय जीवनशैली के उलट जाकर कर्ज से अपने को लहलहता पेड़ बनाने का प्रयास किया। इसका नतीजा यही होना है। जिसे हम अर्थव्यवस्था समझ रहे हैं उसका हमारे सुख-चैन से कोई रिश्ता नहीं।

एक छोटी-सी कहानी से संवाद शुरू करते हैं। जैन आश्रम में भूकंप आया। पूरा आश्रम कांपने लगा। कुछ कमजोर कुटिया तो गिर ही गईं। थोड़ी देर बाद भूकंप थम गया। आश्रम के सबसे वरिष्ठ साधक सामने आए और उन्होंने कहा, आज आपको यह देखने का मौका मिला होगा कि एक सच्चा जैन साधक संकटकाल में भी विचलित नहीं होता। आपने देखा कि भूकंप शुरू होते ही सब घबरा गए थे, पर मैंने आत्मनियंत्रण बिल्कुल भी नहीं खोया। मैं शांत और स्थिर भाव से सबकुछ देखता रहा। जैसा हमें सिखाया गया है, मैं इसके अनुकूल बना रहा।

मैंने ठंडे दिमाग से सोचा कि सबकी सुरक्षा के लिए क्या करना है और सभी डरे घबराए लोगों को एक साथ आश्रम के बड़े रसोई घर में ले गया, क्योंकि उसकी इमारत काफी पक्की, मजबूत है। उसके गिरने का डर नहीं था, लेकिन मैं यह स्वीकार करता हूं कि आत्मनियंत्रण के बाद भी दूसरों की चिंता में मैं थोड़े तनाव में आ गया था, इसलिए रसोई घर में पहुंचते ही मैंने एक गिलास पानी पिया। जिसकी सामान्य स्थिति में मुझे जरूरत न होती। ऐसा कहकर अपनी अभिमानपूर्ण मुस्कान के साथ उन्होंने सबके चेहरे पर नजर दौड़ाई। तभी पीछे से गुरुजी निकलकर आए और हंसने लगे।

साधक ने अपने गुरुजी से पूछा, आप हंस क्यों रहे हैं? क्या मुझसे कुछ गलती हुई? गुरुजी ने शांत भाव से उत्तर दिया, तुमने जो पिया, वह पानी नहीं सिरके से भरा गिलास था। हम घबराहट के मामले में इस साधक के बहुत नजदीक हैं। संकट में दिखाते तो ऐसे हैं जैसे भीतर कोई खलबली न हो, लेकिन पानी की जगह सिरके से भरा गिलास अक्सर पीते रहते हैं।

संकट आने पर घबराहट स्वाभाविक है। हम बस इतना कर सकते हैं कि धैर्य, सरलता, सहजता बनी रहे। घबराहट गहरे न उतरे। वह आए, लेकिन घर की दहलीज से ही गुजर जाए। भीतर प्रवेश न करने पाए। बीते दस-पंद्रह बरस में समाज में तीन चीजें बहुत तेजी से बढ़ीं। पहली, कर्ज (ईएमआई) को आसान मानना। दूसरी, हर चीज ईएमआई पर खरीदना। तीसरी, वर्तमान में रहने की जगह हर समय भविष्य के आधार पर सपने बुनना। यह सपना बुनते समय भी अपनी बचत से अधिक कर्ज की क्षमता पर भरोसा करना!

अगर आप ध्यान से देखेंगे, तो पाएंगे कि इन तीन चीजों में सबसे बड़ी भूमिका ईएमआई का सामान्य बुद्धि में सहज होते जाना है। ‘जीवन संवाद’ को कोरोनावायरस, लॉकडाउन के हमारे जीवन में आने के बाद से घबराहट, गुस्सा, गहरी चिंता और डिप्रेशन के सवाल बड़ी संख्या में मिल रहे हैं। लोग अपने भविष्य को लेकर बेचैन हो रहे हैं। जिनके सामने संकट नहीं आया है वह उसकी आशंका में अपने दिल को परेशान किए हुए हैं। दूसरी ओर जिनके सामने संकट आ गया है, वह ऐसे पेश आ रहे हैं जैसे यह संकट पहली बार आया हो। वैसे उनकी परेशानी एकदम सही है।

पिछली बार लगभग एक दशक पहले जब आर्थिक मंदी दुनियाभर में अपने पैर पसार रही थी, तो भारत में उसका मुकाबला पारिवारिक शक्ति ने किया था। बचत ने किया था। सांझा चूल्हा ने किया था। घर के बड़े-बुजुर्गों की देखरेख में संकट का सामना किया गया था। अब एक दशक में ही हमारा समाज बचत से अधिक कर्ज की ओर बढ़ गया है। हर चीज़ ईएमआई पर है। वेतन का अस्सी प्रतिशत कर्ज में लौटाने वाला सुखी कैसे हो सकता है!

एक हरा-भरा पेड़ तने और पत्तियों के सहारे नहीं होता। उसकी शक्ति जड़ में होती है। हमने बचत की भारतीय जीवनशैली के उलट जाकर कर्ज से अपने को लहलहता पेड़ बनाने का प्रयास किया। इसका नतीजा यही होना है। जिसे हम अर्थव्यवस्था समझ रहे हैं उसका हमारे सुख-चैन से कोई रिश्ता नहीं। हमारे सुख-चैन में हमारी जीवनशैली की भूमिका कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, इसीलिए भूटान इतना सुखी है। आनंदित है। प्रसन्नता और आनंद के मानकों पर खरा उतरता है।

जीवन सुविधा से नहीं अपने चुनाव से अपनी गति को प्राप्त होता है। मैंने सुना है लोग वहां केवल वर्तमान की छांव में रहते हैं। भूटान जीवन के स्तर को सकल राष्ट्रीय खुशी (जीएनएच) से नापता है, न कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से। सरकार का कहना है कि इसमें भौतिक और मानसिक रूप से ठीक होने के बीच संतुलन कायम किया जाता है। हमें भी अब इन रास्तों पर जाने के बारे में गंभीरता से विचार करना होगा।
-दयाशंकर मिश्र

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