दयाशंकर मिश्र

टूटने से पहले मन को संभालना!
15-Sep-2020 10:43 PM
टूटने से पहले मन को संभालना!

आत्महत्या, उदासी के खयाल मन को सताएं, तो सबसे पहले अकेलेपन की दीवार तोडि़ए। बात शुरू कीजिए। मन की गिरह खोलिए। मत सोचिए आंसुओं से आपको कमजोर समझा जाएगा। यह दुनिया कोमलता, आंसू पर ही टिकी है!

संतोष, आनंद और थोड़े को बहुत समझने वाले भोपाल से आत्महत्या की खबरों का बढऩा, जीवन का गहरे संकट की ओर बढ़ जाना है। हमें समझना होगा कि बाढ़ का पानी बहुत दूर नहीं है, बस घर तक पहुंचने ही वाला है! मध्य प्रदेश के सुपरिचित पत्रकार, लेखक और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दीपक तिवारी ने मंगलवार की सुबह भोपाल में तनाव और आत्महत्या से जीवन पर उपजे संकट के बारे में सोशल मीडिया पर जरूरी टिप्पणी की है। ‘जीवन संवाद’ का उन्होंने सहृदयता और आत्मीयता से उल्लेख किया है। इसके लिए उनका आभार।

मध्य प्रदेश से छपने वाले अखबारों में भोपाल में आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को आसानी से देखा जा सकता है। मैं अपने सभी पाठकों को बताना चाहूंगा कि लगभग दस दिन पहले देर रात मुझे भोपाल से एक फोन आया था। फोन करने वाले मित्र गहरे आर्थिक संकट से घिरे हुए थे। फोन पर वह लगभग आधा घंटा रोते रहे। अपने कर्ज में फंसे व्यापार, व्यक्तिगत लेनदारों का दबाव उनके ऊपर बहुत भारी पड़ता जा रहा था। लगभग एक सप्ताह के संवाद के बाद मुझे यह कहते हुए संतोष हो रहा है कि वह तनाव, आत्महत्या के खतरे से काफी हद तक दूर हैं! अब वह रास्ते तलाशने पर ध्यान दे रहे हैं, जीवन को समाप्त करने पर नहीं!

हम सबको यह समझने की जरूरत है कि जब कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो निश्चित रूप से उसके भीतर बहुत कुछ टूट रहा होता है। वह अकेला पड़ता जाता है। संघर्ष, रास्ता तलाशने की कोशिश में। हम सब जो उसके आसपास हैं, कई बार साथ रहकर भी उसके भंवर में होने को नहीं समझ पाते।

कोरोना वायरस के हमारे जीवन में संक्रमण से पहले एक-दूसरे से मिलना इतना मुश्किल नहीं था, लेकिन उस मिलने के दौरान भी हमारी निकटता में दरार तो पड़ ही गई थी। कोरोना वायरस के हमले ने हमारी सामाजिकता, प्रेम, स्नेह को खुली चुनौती दी है।

हम इस चुनौती को स्वीकार करने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकते। मैं ऐसे सभी लोगों से यह बात दोहराता हूं कि जिसे हम जीकर नहीं बदल सकते, वह हमारे मरने से नहीं बदलेगा। लोग आत्महत्या का निर्णय ऐसे मोड़ पर आकर करते हैं, जहां से दूसरा उपाय दिखाई नहीं देता। बस यहीं आकर हमें अपने लोगों का खयाल रखना है। खयाल रखने का मतलब केवल सांत्वना नहीं है, बल्कि सांझा चूल्हे, संयुक्त परिवार और मिल-जुलकर एक ही रोटी के दो हिस्से कर लेना है। यह जो आर्थिक संकट आ रहा है। यकीन मानिए थोड़े समय में जाने वाला नहीं। यह रुकेगा, ठहरेगा और मनुष्यता की परीक्षा लेगा। इसलिए अपने खर्चों को ध्यान से देखिए। अपनी संचित निधि को केवल अपने लिए नहीं, उनके लिए भी बचाइए जिनके साथ आप जीवित रहना चाहते हैं!

आत्महत्या, उदासी के खयाल मन को सताएं, तो सबसे पहले अकेलेपन की दीवार तोडि़ए। बात शुरू कीजिए। मन की गिरह खोलिए। मत सोचिए आंसुओं से आपको कमजोर समझा जाएगा। यह दुनिया कोमलता, आंसू पर ही टिकी है! इसलिए, जितना संभव हो अपनों को संवाद के दायरे में लाइए। जिनको आप हर कीमत पर अपने जीवन में रखना चाहते हैं, उनसे नियमित संवाद कीजिए। कोरोनावायरस का टीका पता नहीं कब आएगा, लेकिन प्रेम का टीका तो हमारे पास ही है। (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र

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