दयाशंकर मिश्र
एक राजा ने एक बार अपने मंत्रियों, विद्वानों को बुलाया। उनसे कहा, ‘मैं जानना चाहता हूं कि मैं राजा क्यों हूं’। मैं ऐसे अनेक व्यक्तियों से मिलता हूं, जो मुझसे अधिक योग्य दिखते हैं, लेकिन उसके बाद भी मैं ही राजा हूं। मुझे पांच दिन के भीतर इस प्रश्न का उत्तर चाहिए...
हम कई बार कहना कुछ और चाहते हैं, कह दूसरा जाते हैं! एक बार स्वभाव में यह बात बैठ जाए, तो आसानी से दूर नहीं होती। फिर चाहे हम प्रार्थना करें, क्रोध करें या फिर किसी से सामान्य संवाद। शब्दों के अर्थ गहरे होते हैं। जो उनको समझ जाते हैं वह सरलता से जीवन को उपलब्ध होते रहते हैं। अपने शब्दों को कभी व्यर्थ न जाने दें। हम बहुत व्याकुल, गुस्सैल और आत्मकेंद्रित हो रहे हैं। दूसरों के प्रति सहयोग और जीवन के प्रति आस्था को मजबूत कीजिए। प्रेम, अनुराग और सहृदयता जीवन मूल्य हैं। इनको केवल शब्द समझने से बचना होगा।
छोटी-सी कहानी आपसे कहता हूं। संभव है इससे मेरी बात सरलता से आप तक पहुंच जाए। एक राजा ने एक बार अपने मंत्रियों, विद्वानों को बुलाया। उनसे कहा, ‘मैं जानना चाहता हूं कि मैं राजा क्यों हूं’। मैं ऐसे अनेक व्यक्तियों से मिलता हूं, जो मुझसे अधिक योग्य दिखते हैं, लेकिन उसके बाद भी मैं ही राजा हूं। मुझे पांच दिन के भीतर इस प्रश्न का उत्तर चाहिए। आप सभी लोग अगर ऐसा नहीं कर पाए, तो आपके पद समाप्त कर दिए जाएंगे।’
राजा की घोषणा के बाद मंत्रियों और विशेषज्ञों में हडक़ंप मच गया। जिन लोगों को बुलाया गया उनमें राजा का एक माली भी था, जिसकी सहज बुद्धि से राजा प्रभावित था, इसलिए माली होने के बाद भी उसे दरबार में प्रमुख स्थान प्राप्त था। जब चार दिन बीत गए, तो सभी को बड़ी चिंता हुई। माली ने घर पहुंचकर रात भोजन नहीं किया। उसकी बेटी ने पूछा, पिताजी क्या बात है। माली ने चिंता का कारण बता दिया। बेटी ने कहा, कोई बात नहीं।
कल मुझे राजमहल ले चलना। मैं राजा से बात करूंगी! उसकी बेटी से राजा भी परिचित था। माली को उसकी बात पर भरोसा तो न हुआ, लेकिन थोड़ी सांत्वना मिल गई। ठीक वैसे जैसे रेगिस्तान में प्यास से जूझते किसी यात्री को कुछ बूंदें मिल जाएं। माली ने सुकून के साथ भोजन किया और विश्राम को चला गया। अगले दिन वह बेटी को लेकर राजमहल पहुंचा।
बेटी ने राजा से कहा, ‘इस प्रश्न का उत्तर महल में नहीं मिल सकता। आपको मेरे पीछे-पीछे आना होगा’। राजा, मंत्रियों सहित प्रजा भी उसके पीछे चल दी। कुछ किलोमीटर दूर जाने पर एक कुएं के पास एक मेंढक प्यास से तड़प रहा था। माली की बेटी ने पूछा, ‘बताओ मेंढक, राजा राजा क्यों है’! मेंढक ने कहा, ‘यह मेरे बस की बात नहीं। यहां से कुछ मील दूर जाओ। ऐसे ही एक कुएं के पास धूल में लोटता मेंढक मिलेगा, उसके पास तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है’।
गर्मियों के दिन थे, लेकिन चिलचिलाती धूप में भी कारवां अगले कुएं की ओर बढ़ गया। कुएं के पास जाकर धूल में लोटता हुआ मेंढक मिला। इस मेंढक से भी वही प्रश्न दोहराया गया। मेंढक ने कहा, ‘पिछले जन्म की कहानी सुनाता हूं। हम तीन भाई थे। बहुत गरीबी और मुश्किल के दिन थे। किसी तरह हम लोगों को थोड़ा-थोड़ा भोजन मिला। हम लोग भोजन कर ही रहे थे, उसी समय एक भूखा बुजुर्ग व्यक्ति आ गया। हमारे पास बहुत ही थोड़ा भोजन था। मैं सबसे बड़ा था, उसने मुझसे खाना मांगा, तो मैंने उससे कहा, मैं तुम्हें दे दूंगा, तो क्या मैं धूल खाऊंगा।
फिर उसने दूसरे भाई से कहा, तो उसने कहा, तुमको अपना भोजन देकर क्या मैं भूख-प्यास से मर जाऊं। जब उसने तीसरे और सबसे छोटे भाई से भोजन मांगा, तो उसने अपने हिस्से का सारा भोजन चुपचाप भूखे बुजुर्ग को यह कहते हुए दे दिया कि मैंने तो कल भी खाया था! जबकि वह स्वयं दो दिन से भूखा था। यह राजा, इसलिए राजा है, क्योंकि यही वह तीसरा भाई है। इसके शब्दों के अर्थ का महत्व है। कहते तो बहुत से लोग हैं, लेकिन करते नहीं। इसने शब्द के महत्व को व्यर्थ नहीं किया। उसे कर्म में भी बदल दिया’!
यह राजा के राजा होने के कारण से अधिक हमारे व्यवहार और जीवन मूल्य की कहानी है। इसको इसी भाव से स्वीकार कीजिए!
-दयाशंकर मिश्र