सुनील कुमार

यादों का झरोखा-15 : लोगों के लिए साल के हर दिन इतना कुछ करके भी सीएम बनने से एक कदम पीछे ही रह गए...
13-Aug-2020 10:25 PM
यादों का झरोखा-15 : लोगों के लिए साल के हर दिन इतना कुछ करके भी सीएम बनने से एक कदम पीछे ही रह गए...

छत्तीसगढ़ की राजनीति में लिखने को सबसे अधिक अगर किसी राजनेता के बारे में हो सकता है, तो वे बृजमोहन अग्रवाल हैं। लंबी राजनीति, और उससे भी बहुत लंबी महत्वाकांक्षा। कॉलेज के दिनों से ही भाजपा के छात्र संगठन विद्यार्थी परिषद की राजनीति, छात्रसंघ चुनाव लडऩा, और भाजपा संगठन में काम करना। वहां से लेकर विधानसभा चुनाव लडऩे और लगातार जीतने का बृजमोहन का एक गजब का रिकॉर्ड है। छत्तीसगढ़ में 1989 से लगातार विधानसभा चुनाव जीतने वाले बृजमोहन अकेले विधायक हैं। सात बार के और भी विधायक हैं, कांग्रेस के रामपुकार तो आठ बार के विधायक हैं, सत्यनारायण शर्मा, रविन्द्र चौबे सात बार के विधायक हैं, लेकिन इनके खाते में बीच-बीच में हार भी लिखी हुई है। बृजमोहन अग्रवाल का छत्तीसगढ़ की किसी भी पार्टी का यह रिकॉर्ड है, और आगे भी यह टूटे इसकी संभावना कम ही दिखती है। 

बृजमोहन की कई खूबियों में से एक यह है कि उन्होंने कभी पार्टी नहीं बदली, यह एक अलग बात है कि राज्य बनने के बाद जब पहला भाजपा विधायक दल बनना था, तो बीजेपी दफ्तर में भारी हंगामा हुआ। बृजमोहन अग्रवाल और उनके समर्थक पार्टी ऑफिस में थे, बृजमोहन भीतर विधायक दल में थे, और समर्थक बाहर एक रिकॉर्ड हंगामा कर रहे थे। सच कहा जाए तो उतना बड़ा हंगामा छत्तीसगढ़ में किसी पार्टी के ऑफिस में नहीं हुआ कि विधायक दल नेता बनाने के लिए किसी नेता के समर्थक दफ्तर में भारी तोडफ़ोड़ करें, कारों में तोडफ़ोड़ करें, कार जला दें। नतीजा यह हुआ था कि सन् 2000 में बृजमोहन अग्रवाल अपने करीबी दोस्त और पार्टी नेता प्रेमप्रकाश पांडेय के साथ पार्टी से निलंबित कर दिए गए थे, और करीब साल भर निलंबित रहे। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें : यादों का झरोखा-14 : अंग्रेजी राज में सुधीर दादा के जेल जाने की कहानी, किसी और की जुबानी...

दरअसल छत्तीसगढ़ के पहले भी अविभाजित मध्यप्रदेश की भाजपा की राजनीति में बृजमोहन छत्तीसगढ़ के एक दूसरे अग्रवाल नेता लखीराम अग्रवाल के विरोधी कैम्प में थे। लखीराम अग्रवाल अविभाजित मध्यप्रदेश के भाजपा अध्यक्ष रह चुके हैं, और जनसंघ के समय से वे छत्तीसगढ़ में पार्टी का एक खूंटा थे, जिनके इर्द-गिर्द पार्टी चलती थी, जिनके मार्फत चंदा इकट्ठा होता था, और वे खुद भी खानदानी व्यापारी थे, और व्यापारियों को जनसंघ-भाजपा के साथ बनाए रखने में इस इलाके में लखीराम अग्रवाल का बड़ा योगदान था। ऐसा भी माना जाता है कि अर्जुन सिंह ने अविभाजित मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए तेंदूपत्ता का राष्ट्रीयकरण किया, तो छत्तीसगढ़ में उसकी एक चोट लखीराम अग्रवाल पर भी पड़ी जो कि तेंदूपत्ता के एक बड़े व्यापारी थे। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें : यादों का झरोखा-13 : राज्य का ऐसा कम्युनिस्ट नेता, जैसा न पहले हुआ, न बाद में

बृजमोहन और लखीराम, दोनों ही व्यापारी परिवारों के, दोनों ही अग्रवाल समाज के, लेकिन दोनों के बीच एक पीढ़ी का फर्क था। और बृजमोहन-प्रेमप्रकाश अविभाजित मध्यप्रदेश में सुंदरलाल पटवा खेमे के माने जाते थे, और लखीराम अपने आपमें एक खेमा थे। जूनियर रहते हुए भी बृजमोहन की खींचतान लखीराम से चलती ही रहती थी, जिनका बेटा अमर अग्रवाल उस समय राजनीति में बृजमोहन से बहुत पीछे-पीछे, संगठन में पिता की फाईलें लेकर चलता था। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें : यादों का झरोखा-12 : सादगी और सहजता से भरा हुआ, गांधीवादी सायकलसवार सांसद

बृजमोहन ने 1989 के विधानसभा चुनाव में रायपुर के कांग्रेस विधायक स्वरूपचंद जैन को हराया जो कि पहले महापौर भी रह चुके थे, उनकी साख भी ठीक थी, और पार्टी की हालत भी बहुत खराब नहीं थी। फिर बृजमोहन के खिलाफ यह बात भी जा रही थी कि जनसंघ के समय के छत्तीसगढ़ के एक बड़े वजनदार नेता, बालूभाई पटेल रायपुर से भाजपा टिकट चाहते थे, और टिकट न मिलने पर उन्होंने पार्टी के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ लिया था। वे उस वक्त सत्तीबाजार वार्ड के पार्षद रह चुके थे, और रायपुर में बहुत बड़े गुजराती समाज के वोटों का भी उनको बड़ा भरोसा था। लेकिन उनके करीब 36 हजार वोटों के अंदाज के खिलाफ उन्हें दो हजार से भी कम वोट मिले, और उनके सामने कल का छोकरा रहे बृजमोहन अग्रवाल विधायक बन गए, पटवा सरकार में राज्यमंत्री बन गए, और कुछ ही समय के भीतर स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री बना दिए गए। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें : यादों का झरोखा-11 : ...न पहले कोई इतना महान मजदूर नेता हुआ, न बाद में

भोपाल में रहते हुए बृजमोहन अग्रवाल छत्तीसगढ़ के सारे ही लोगों के लिए मेजबान रहते थे। तमाम कर्मचारी संगठन के नेता अपने काम के लिए भोपाल ही पहुंचते थे क्योंकि छत्तीसगढ़ की राजधानी भी वही था। यहां से जाने वाले कई कम्युनिस्ट कर्मचारी और मजदूर नेता बिना किसी झिझक के बृजमोहन अग्रवाल के घर रूक जाते थे, वे उनके लौटने का रिजर्वेशन भी करा देते थे, और सरकार में उनके काम के लिए खूब मेहनत भी करते थे। बृजमोहन अग्रवाल भारी यारबाज थे, कॉलेज के समय के अनगिनत साथियों के अलावा छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए वे भोपाल में सबसे बड़े मेजबान रहे। और यह सिलसिला आज भी जारी है जब भोपाल से लोग छत्तीसगढ़ आते हैं, और बृजमोहन अग्रवाल के मेहमान रहते हैं। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें : यादों का झरोखा-10 : हर बड़ी ताकत की आंखों की किरकिरी बन गया था नियोगी... 

कोई अगर यह सोचे कि बृजमोहन अग्रवाल का सात बार विधायक बनना रमेश बैस के सात बार सांसद बनने जैसा ही मामला है, तो यह सोचना गलत होगा। रमेश बैस हालातों और कांग्रेस के बनाए हुए सांसद रहे, और बृजमोहन अग्रवाल हर परिस्थिति में लंबी लीड से जीतने वाले विधायक रहे, जिनको कांग्रेस ने यह मान ही लिया है कि इनको हराना मुमकिन नहीं है। और इस नौबत के पीछे बृजमोहन का योगदान छोटा नहीं है। 365 दिन कम से कम 12 घंटे रोज की राजनीति, जो कि बहुत मायनों में सीधे-सीधे जनसेवा के दर्जे की भी है, उसने बृजमोहन को अजीत बना दिया, जिनसे कोई जीत नहीं पाया। वे सत्ता में रहे, या विपक्ष में, लोगों के काम करवाने, लोगों की मदद करने में उनका कोई सानी नहीं रहा, न सिर्फ भाजपा में, बल्कि किसी भी पार्टी में पूरे प्रदेश के लोगें के लिए इतना करने वाला कोई भी दूसरा नेता इस राज्य में नहीं हुआ। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें : यादों का झरोखा-9 : सोनिया-राहुल के साथ एक नाव में सवार छत्तीसगढ़ से अकेले वोरा

बृजमोहन अग्रवाल के मंत्री रहते हुए उनके दरवाजे सुबह से साधुओं का डेरा डल जाता था, और वे जब भी बाहर आते थे, दर्जनों साधुओं को सौ-सौ रूपए देकर बिदा करते थे। सुबह की इससे बेहतर बोहनी किसी साधू की और नहीं हो सकती थी। लेकिन यह बात एक खुला रहस्य है कि बृजमोहन अग्रवाल ने मंत्री रहते हुए अनगिनत लोगों की हर किस्म की मदद की। उन्होंने बीमार के इलाज के लिए घर और अस्पताल नगदी के लिफाफे भेजे, बच्चों के एडमिशन के लिए नगद मदद की, शादी-ब्याह से लेकर मकान बनवाने तक लोगों को नगद पैसा दिया, तीर्थयात्रा या किसी और काम से किसी को कहीं जाना हो, तो उसका इंतजाम बृजमोहन के बंगले के दफ्तर से लगातार होते रहता था। और तो और रायपुर और छत्तीसगढ़ के मीडिया के लोगों की जितनी निजी जरूरतें रहती थीं, उनमें से जो बृजमोहन से कह सके, या बृजमोहन के सहयोगियों से भी कह सके, वह तमाम पूरी हो जाती थी। यह एक ऐसा दरवाजा रहा जहां से कोई कभी खाली हाथ नहीं लौटा, और हाल के बरसों तक यह दरवाजा आधी रात तक तो खुला रहता ही था। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें : यादों का झरोखा-8 : असंभव सी सादगी, सज्जनता वाले नेता मोतीलाल वोरा... 

बृजमोहन ने निजी संबंधों में किसी पार्टी का कोई फर्क नहीं देखा। आज के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भाजपा में रिश्तेदार बहुत हैं, लेकिन उनका सबसे बड़ा दोस्त बृजमोहन है जिसका 15 बरस का मंत्री वाला बंगला आज विधायक रहते हुए भी जारी है। ऐसी भी चर्चा है कि भूपेश बघेल का कोई काम पिछले 15 बरस रूकता नहीं था, और बृजमोहन अग्रवाल इस बात की गारंटी करते थे कि उनको कोई दिक्कत न हो। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें : यादों का झरोखा-7 : संसद के सात कार्यकालों में मुस्कुराहट के योगदान वाले

लेकिन बृजमोहन अग्रवाल के राजनीतिक जीवन का दिलचस्प दौर छत्तीसगढ़ के 15 बरस का भाजपा राज रहा। इस पूरे दौर में उनको लगातार यह लगता था कि मुख्यमंत्री बनने के लायक वे ही सबसे काबिल नेता हैं। और उन्हें इस बात का मलाल रहा कि पार्टी ऑफिस में तोडफ़ोड़ और आगजनी के चलते उन्हें अगर निलंबित न किया गया होता तो वे पार्टी की पहली पसंद रहते। लेकिन पार्टी की दिक्कत यह थी कि जिस विधायक दल बैठक के दौरान तोडफ़ोड़ और आगजनी हुई थी, उस वक्त भाजपा ने दिल्ली से एक ऐसे नेता को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा था, जिसे खुद पथराव झेलना पड़ा था। बाहर से प्रदर्शन कर रहे भाजपा कार्यकर्ता जो पत्थर चला रहे थे, उससे कमरों की खिड़कियों के कांच टूट गए थे, और दिल्ली से आए पर्यवेक्षक को भीतर आ रहे पत्थरों से बचने के लिए एक टेबिल के नीचे शरण लेनी पड़ी थी। हालांकि उस वक्त नरेन्द्र मोदी पार्टी में इतने बड़े नेता नहीं थे, लेकिन भाजपा में कई लोग पिछले बरसों में इस बात को दिल्ली में उठाते रहे हैं। नरेन्द्र मोदी के साथ उस वक्त कमरे में मौजूद छत्तीसगढ़-भाजपा के एक नेता इस पूरे वाकिये के गवाह हैं। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें : यादों का झरोखा-6 : जिन्हें श्यामला हिल्स से बुलावे की आवाज आना कभी बंद नहीं हुआ...

बृजमोहन की महत्वाकांक्षा के पीछे यह बात रही कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बनाए गए शिवराज सिंह चौहान भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा में बृजमोहन के साथ के नेता थे। साथ-साथ काम किया हुआ था। लेकिन भाजपा ने जो भी समझकर डॉ. रमन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया, तो वे ऐसे बन गए कि पार्टी की सत्ता जाने पर ही कुर्सी से हिले, जबकि इस दौरान मध्यप्रदेश में भाजपा के तीन मुख्यमंत्री बन चुके थे। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें : यादों का झरोखा-5 : विद्याचरण की कभी न लिखी गई जीवनी पर उनसे चर्चाओं का दौर 

लगे हाथों विधायक दल की बात पूरी कर लेना ठीक होगा। सन् 2000 में भाजपा विधायक दल में लखीराम अग्रवाल ने अपने खेमे के नंदकुमार साय को विधायक दल का नेता बनवा दिया। साय बहुत पुराने, खालिस जनसंघ-आरएसएस के नेता रहे, वे आदिवासी भी थे, जो कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी होने का दावा करते थे। नंदकुमार साय एक बड़े नेता इस मायने में भी थे कि वे अविभाजित मध्यप्रदेश में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी बनाए गए थे। फिर छत्तीसगढ़ में उन्हें लेकर मजाक में एक नारा चलता था, नंदकुमार साय, लखीराम की गाय। तमाम बातों को देखते हुए साय को नेता प्रतिपक्ष चुन लिया गया था, और जोगी के पहले साल में बृजमोहन पार्टी से निलंबित रहे। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें : यादों का झरोखा-4 : छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा नेता, सबसे बड़ा मीडिया-खलनायक

यह भी बड़ा दिलचस्प है कि जिस वक्त जोगी रायपुर में कलेक्टर थे, उस वक्त बृजमोहन अग्रवाल छात्र नेता थे, और अजीत जोगी के बारे में यह बात मशहूर थी कि वे तमाम छात्र नेताओं को जीप-टैक्सी का परमिट, और गिट्टी क्रशर का लाइसेंस देकर प्रशासन के कब्जे में रख लेते थे, और उस वक्त के बहुत सारे छात्र नेताओं के लिए यह रोजी-रोटी जुट गई थी। अब बृजमोहन की जीप-टैक्सी या क्रशर किसी को याद नहीं है, लेकिन मुख्यमंत्री अजीत जोगी से बृजमोहन के संबंध बहुत अच्छे थे, लेकिन यह कहते हुए यह कहना भी जरूरी है कि किसी गैरभाजपाई दल में किसी नेता से बृजमोहन के संबंध खराब नहीं थे, भाजपा के भीतर ही उनका कुछ मनमुटाव था, और कुछ मुकाबला था। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें : यादों का झरोखा-3 : कुएं के मेंढक सरीखे तरूण चटर्जी, ध्यान रखें यह गाली नहीं तारीफ है.. 

2000 में पार्टी से निलंबित होने के बाद जब 2003 में विधानसभा चुनाव में जोगी की कांग्रेस को टक्कर देने की बात आई, तो निलंबन ताजा-ताजा था। बृजमोहन भाजपा में ले तो लिए गए थे, लेकिन शीशे में आई दरार भरी नहीं थी। इसलिए पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए उनका नाम सोचने का सवाल ही नहीं उठता था। पार्टी में दफ्तर वैसे गंभीर तोडफ़ोड़ की घटना को राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत गंभीरता से लिया गया था, और छत्तीसगढ़ के भाजपा के सबसे अच्छे चुनाव रणनीतिकार होते हुए भी बृजमोहन की कोई संभावना उस वक्त नहीं बनी। रमेश बैस के बारे में लिखते हुए इसी जगह लिखा भी था कि जब दिल्ली में उन्हें अटल सरकार में राज्यमंत्री रहते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव दिया गया, तो उन्होंने साफ-साफ मना करके मंत्री रहना तय किया। उस वक्त रमन सिंह उसी दर्जे के केन्द्रीय राज्यमंत्री का पद छोडक़र राज्य में आ गए, और अपार ताकतवर दिख रहे अजीत जोगी के मुकाबले एक कमजोर दिखती भाजपा के अध्यक्ष बने, और पार्टी को सत्ता तक लेकर आए। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें  : यादों का झरोखा-2 : एक सांसारिक सन्यासी पवन दीवान

रमन सरकार में बृजमोहन का बड़े मंत्री बनना तो तय था क्योंकि वे डॉ. रमन सिंह के मुकाबले भी वरिष्ठ विधायक थे, और भोपाल से रायपुर आते हुए जब बृजमोहन कुछ बार के विधायक हो चुके थे, और रमन सिंह हारे हुए विधानसभा उम्मीदवार थे, तो ट्रेन में रमन सिंह को ऊपर की बर्थ पर जाना पड़ता था, और बृजमोहन, उनके दोस्त नीचे की बर्थ पर सोते थे। खैर, मंत्रिमंडल तो किसी भी पार्टी का हाईकमान से तय होता है, और बृजमोहन अग्रवाल मंत्री बनाए गए। लेकिन इसके बाद के कई दिलचस्प मोड़ हैं, जिनको लिखने के लिए आज वक्त कम पड़ेगा, इसलिए वे तमाम बातें कल की किस्त में। जैसा कि टीवी पर कहा जाता है, कहीं जाईयेगा मत, हम जल्द लौटकर आ रहे हैं, कल इसी जगह राह देखिए। 

क्लिक करें और यह भी पढ़ें : यादों का झरोखा-1 : शुरुआत दिग्विजय से


-सुनील कुमार

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news