दयाशंकर मिश्र

कर्ज और साहस!
23-Oct-2020 1:45 PM
कर्ज और साहस!

यह कहानी ईमानदार कोशिश के साथ परिवार की शक्ति को बताने वाली है। संकट का सामना करने में वित्तीय समझदारी से अधिक जीवन की आस्था, साहस की भूमिका होती है!

कोरोना के कारण दुनियाभर में छाए संकट के बीच कुछ ऐसी कहानियां जीवन संवाद को मिलीं, जिनमें जीवन की आस्था, मनुष्यता और साहस का गहरा बोध है। आज ऐसी ही एक कहानी के लिए आपको मैं भोपाल लिए चलता हूं। खेती-किसानी से जुड़े खाद-बीज, छोटे-छोटे उपकरण बनाने वाली एक कंपनी के बड़े अधिकारी अमिताभ त्रिवेदी नौकरी छोडक़र अपना काम शुरू करने का फैसला करते हैं। दस बरस पहले लिया गया फैसला सही साबित होता दिख रहा था। तभी उनके एक प्रोडक्ट की असफलता ने उनको भारी कर्ज की ओर धकेल दिया। देनदारियां इतनी बढ़ गईं कि अपना घर उन्हें गिरवी रखना पड़ा। उसके बाद भी बात नहीं बनी, तो बेचकर अपने ही घर में किराएदार बनना पड़ा। इस बीच उनके कारोबार में अहम भूमिका निभाने वाले पारिवारिक सदस्य के भ्रष्टाचार के बारे में जानकारी मिली।

पारिवारिक दृष्टि से वह व्यक्ति इतना महत्वपूर्ण था कि अचानक उस पर संदेह करना संभव नहीं था, लेकिन जांच-पड़ताल के बाद अमिताभ जब इस नतीजे पर पहुंचे कि उसकी गतिविधियां उनके कारोबार को डुबोने की ओर बढ़ रही हैं। उस व्यक्ति पर निर्भरता इतनी अधिक थी कि उसके बिना कारोबार के बारे में सोचना ही संभव नहीं था, लेकिन कड़े फैसले करते हुए अमिताभ ने उसे स्वयं से अलग कर लिया। नए सिरे से कंपनी को खड़ा करने का काम किया। ऐसा करते हुए हर दिन आर्थिक संकट बढ़ता गया। लगभग चार करोड़ रुपए तक!

उन्होंने अपने सभी लेनदारों को इकट्ठा किया। साफ-साफ सब कुछ बताया। जब इतना अधिक कर्ज हो, तो सबसे बड़ी चुनौती मानसिक संतुलन बनाए रखने की होती है। इस काम में उनकी पत्नी ने अपनी भूमिका का निर्वाह बेहद संवेदनशीलता, आत्मीयता से किया। अपने दोनों बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को यथासंभव इस संकट से बचाए रखा। उन्होंने अपनी जीवनशैली को इतनी स्पष्टता और ईमानदारी से पैसा देने वालों के सामने रखा कि हर किसी ने इस बात का भरोसा किया कि अमिताभ का पैसा उनकी किसी लापरवाही, फिजूलखर्ची से नहीं डूबा, बल्कि विशुद्ध रूप से व्यापार में नुकसान के कारण हुआ। इसकी भी बड़ी वजह मौसम और तकनीकी विफलता है।

अमिताभ और उनकी पत्नी के साथ संवाद के दौरान मैंने इस बात को निरंतर महसूस किया कि पति-पत्नी की आपसी समझबूझ से किसी भी संकट को सरलता से सहा जा सकता है। अमिताभ के कर्ज अब धीरे-धीरे समाप्ति की ओर बढ़ रहे हैं। वह जोर देकर कहते हैं कि मृत्यु और शारीरिक बीमारी के अलावा कोई भी ऐसा संकट नहीं, जिसका समाधान न हो।

अपने इस संकट को संभालने की योग्यता उन्हें एक वित्तीय सलाहकार (कंसलटेंट) के रूप में भी बाजार में स्थापित कर रही है। अपने कारोबार के साथ वह नए लोगों को मुश्किल आर्थिक स्थितियों को संभालने की सलाह दे रहे हैं। यह कहानी ईमानदार कोशिश के साथ परिवार की शक्ति को बताने वाली है। संकट का सामना करने में वित्तीय समझदारी से अधिक जीवन की आस्था, साहस की भूमिका होती है!

‘जीवन संवाद’ के पाठकों को याद होगा, पिछले कुछ समय में हमें भोपाल, जयपुर और लखनऊ सहित देश के अनेक शहरों से ऐसी कहानियां मिलीं, जिनमें आर्थिक संकट के कारण आत्महत्या करने, एक शहर से दूसरे शहर चले जाने, अपनी पहचान छुपा लेने की बात है, लेकिन अमिताभ की यह कहानी कुछ और ही कहती है। अगर आपके व्यवहार में ईमानदारी है। आप अपनी कही बात/वादे निभाने का हुनर रखते हैं, तो मुश्किल समय में अगर बहुत से लोग आपका साथ छोड़ भी देते हैं, तो भी कुछ लोग जरूर आपके साथ खड़े रहते हैं! आपको संकट से बाहर निकालने के लिए बहुत से लोगों की नहीं, केवल कुछ लोगों की जरूरत होती है। कई बार तो एक ही व्यक्ति पर्याप्त होता है। हमें अपने सुख के दिनों में हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारा सबसे बड़ा संकटमोचक कौन है। जिनने संकट में मदद की, उनका हमेशा ख्याल रखिए। सुख की व्यस्तता में उनको मत भूलिए। मदद करते वक्त ध्यान रहे कि अपने लिए ही कुछ किया जा रहा है, दूसरों के लिए नहीं। जैसे हम पौधे लगाते हैं! (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र

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