श्रवण गर्ग

हाथरस कांड का सियासी पंचनामा और हमारी विवशता!
06-Oct-2020 12:10 PM
हाथरस कांड का सियासी पंचनामा और हमारी विवशता!

कार्टूनिस्ट राजेन्द्र धोड़पकर

हाथरस की घटना का केंद्र की मोदी और राज्य की योगी सरकार की राजनीतिक जरूरतों के नजरिए से विश्लेषण किए बिना उसकी गंभीरता का अनुमान लगाना संभव नहीं होगा। इस तरह की घटनाओं में पीडि़त वर्ग और उस पर अत्याचार करने वाले तबके को प्राप्त होने वाले सभी तरह के संरक्षण को सत्तारूढ़ दल की चुनावी आवश्यकताओं के संदर्भों में देखा जाए तो इस बात की आलोचना की निरर्थकता से साक्षात्कार होने लगेगा कि राज्य की कट्टर हिंदूवादी सरकार के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई करने में केंद्र की हुकूमत के हाथ क्यों बंधे हुए हैं।

उत्तर प्रदेश में सिर्फ सोलह महीनों के बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 14 मार्च 1922 को समाप्त होने जा रहा है। अगले चुनाव तक न तो कोरोना का प्रकोप पूरी तरह से समाप्त होना है और न ही प्रदेश की अर्थव्यवस्था ही पटरी पर आने वाली है। भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की आक्रामक तरीके से वापसी इसलिए जरूरी है कि उसके ठीक बाद लोकसभा चुनाव की तैयारियाँ प्रारंभ हो जाएँगी। पिछले लोकसभा चुनाव में 2014 के मुकाबले भाजपा की नौ सीटें राज्य में कम हो गईं थीं। देश को जानकारी है कि एनडीए सरकार के लिए इस बार लोकसभा का चुनाव किस तरह की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बीच होने वाला है और दांव पर क्या कुछ लगने वाला है! भाजपा के लिए उसकी बड़ी उम्मीदों का एकमात्र राज्य उत्तर प्रदेश ही है, जहां सबसे ज्यादा (80) सीटें हैं और वर्तमान में विपक्ष के नाम पर वहाँ घुप्प अंधेरा है। ऐसे हालात और किसी भी राज्य में नहीं हैं। हो सकता है कि बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम चौंकाने वाले प्राप्त हों।

अत: उत्तरप्रदेश को जीतने के लिए साम्प्रदायिक और जातिगत ध्रुवीकरण को और ज्यादा मजबूत करना जरूरी हो गया है। हाथरस कांड के आरोपियों के समर्थन में खुलेआम सभाएँ हो रही हैं, उनसे (आरोपियों) मिलने क्षेत्र के निर्वाचित प्रतिनिधि जेल पहुँच रहे हैं और दूसरी तरफ पीडि़ता के परिजनों को प्रतिबंधों के बीच जीवन जीना पड़ रहा है। राहुल-प्रियंका की यात्रा से कितना फर्क पड़ेगा, वहाँ के डीएम ही बता सकते हैं। इस सबका उद्देश्य यही समझा जा सकता है कि दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों तथा उच्च जाति के मतदाताओं के बीच वैमनस्य के ध्रुवीकरण को किसी दीर्घकालिक रणनीति के तहत ही बढ़ावा दिया जा रहा है। 
उत्तरप्रदेश की अनुमानित चौबीस करोड़ आबादी में लगभग अस्सी प्रतिशत जनसंख्या हिंदुओं की बताई जाती है। हाथरस की घटना को अगर राजनीतिक रूप से सवर्ण समाज के अस्तित्व के लिए दलितों की ओर से चुनौती बना दिया जाए तो उसकी चमत्कारिक चुनावी संभावनाओं को लेकर ओपिनियन पोल भी करवाया जा सकता है।

हाथरस की घटना का एक अन्य पहलू यह है कि प्रियंका और राहुल गांधी के नेतृत्व में जो कांग्रेस अभी तक प्रदेश के सवर्णों के बीच अपनी पैठ बनाने में लगी थी, उसे योगी सरकार ने सफलतापूर्वक मायावती और अखिलेश के वोट बैंक से टक्कर लेने के लिए पीछे धकेल दिया है। मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बीच अपनी पकड़ कांग्रेस पहले ही कमजोर कर चुकी है। उत्तरप्रदेश में लड़ाई को पीडि़ता के प्रति न्याय के बजाय दलित बनाम सवर्णों के बीच शक्ति-परीक्षण में बदला जा रहा है। कथित आरोपियों को सजा दिलाने के संकल्प का मतलब अब यही होगा कि सरकार अपने राजनीतिक अस्तित्व को ही दांव पर लगा दे। और फिर ,सत्ता की राजनीति में प्रत्येक गाड़ी नहीं पलटाई जा सकती।

उत्तर प्रदेश की ओर से हाथरस का संदेश यही माना जा सकता है कि इस तरह की सभी घटनाओं के प्रति उठने वाली आवाज़ों को सख़्ती से दबा दिया जाएगा। साथ ही यह भी मान लिया जाए कि ‘जिन्हें अपराधी बताया जा रहा है, वे तो वास्तव में अपराध को रोकने में लगे थे।अपराध की घटना के लिए अज्ञात लोग जिम्मेदार हैं या फिर सरकार को बदनाम करने के लिए विदेशी आर्थिक मदद से षड्यंत्र रचा गया है।’ कल्पना की जा सकती है कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की रिपोर्ट में (सुशांत सिंह की) हत्या के संदेह की कोई संकरी सी गली भी छोड़ दी जाती तो महाराष्ट्र और बिहार की राजनीति में अब तक कितने बड़े राजनीतिक भूचाल आ जाते। एक प्रिय अभिनेता की कथित आत्महत्या को कथित हत्या में बदलने की निर्मम कोशिशें और एक निर्दोष दलित युवती की ज़्यादतियों के बाद हुई मौत को ‘ऑनर किलिंग’ बताने तथा उसके शव को रात के अंधेरे में असंवेदनशील तरीके से जला देने, दोनों ही घटनाएँ वर्तमान राजनीति के एक अत्यंत ही घिनौने चेहरे को सार्वजनिक रूप से नंगा करती हैं।

हम केवल ऊपरी तौर पर ही अनुमान लगा रहे हैं कि हाथरस जिले के एक गाँव में एक दलित युवती के साथ हुए नृशंस अत्याचार और उसके कारण हुई मौत से सरकार डर गई है। वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। सरकारें इस तरह से डर कर काम नहीं करतीं। ऐसी ही कुछ और घटनाएँ हो जाने दीजिए। हम लोग हाथरस को भूल भी जाएँगे और ज़्यादा डरने भी लगेंगे-अपराधियों और सरकार-दोनों से!

-श्रवण गर्ग 

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