दयाशंकर मिश्र

नींद का टूटना!
25-Sep-2020 12:00 PM
नींद का टूटना!

जीवन नींद में होने से उतने संकट में नहीं है, जितना नींद का नाटक करने में है। जो नींद में है, संभव है किसी तरह जाग जाए, लेकिन जो नाटक कर रहा है, उसने तो मन के सारे दरवाजे बंद कर लिए हैं। जिसने दरवाजे बंद कर लिए वह कैसे बाहर आएगा?


हम बहुत सारी बातें जानते हैं। सुनते रहते हैं। अनसुना करते रहते हैं। यह ऐसा सिलसिला है, जो जीवनभर चलता ही रहता है। जीवन ऐसे ही गुजर जाए, जैसे किसी गहरी नींद में हम होते हैं। हमें कई बार पता भी होता है कि उठना है, जागना है, लेकिन नींद कहां टूटती है! जिंदगी की कहानी इससे कुछ अलग नहीं! जापान में बौद्ध धर्म की एक शाखा जेन परंपरा के रूप में बहुत लोकप्रिय है। जेन का सारा मामला तुरंत घटने पर है। इसी समय। बिना किसी तैयारी के। वहां जेन परंपरा के दो रूप हैं। इनमें से एक की चर्चा आज दूसरे की फिर किसी दिन। यह परंपरा है, तत्क्षण संबोधि! इसे अंग्रेजी में सडन इनलाइटनमेंट कहते हैं। भाषा को थोड़ा और सरल करें, तो इसी समय। इसी पल जो घटता है वही असल में घटता है।

इस परंपरा के एक ख्यात गुरु को एक बार जापान के सम्राट ने अपने महल में आमंत्रित किया। गुरु का आना हुआ। भव्य आसन बनाया गया उनके लिए। सम्राट उनके चरणों में बैठा। बड़ी संख्या में लोग उनके वचन सुनने के लिए तत्पर बैठे थे। गुरु जी ने थोड़ी देर इधर-उधर देखा, उसके बाद एक टेबल पर जोर से दो-चार मुक्के मारकर चले गए। उनको वहां बुलाने वाले वजीर से सम्राट नाराज हो गया। उसने कहा, ‘मैंने इतने प्रबंध किए। लेकिन यह कैसे गुरु हैं। आए और बिना कुछ कहे चले गए।’ वजीर अनुभवी था। उसने सम्राट से कहा, ‘यह उनका सबसे महत्वपूर्ण भाषण था। इतना सुंदर भाषण, तो उन्होंने कभी दिया ही नहीं।’

सम्राट का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसने कहा, ‘एक टेबल पर दो-चार मुक्के मार देना और बिना कुछ कहे चले जाना। तुम इसे भाषण कह रहे हो!’ वजीर ने कहा, ‘वह ऐसे ही हैं। वह केवल हमें नींद से जगाने की कोशिश करते हैं। मैंने इन गुरु के और भी अनेक व्याख्यान सुने हैं, लेकिन इतना स्पष्ट व्याख्यान कहीं और नहीं था।’

सम्राट को कुछ बात समझ न आई। उसने कहा, ‘मैं नींद में था ही कब। मैं तो बचपन से ही जागा हुआ हूं।’ वजीर समझ गया कि अब संकट उस पर ही है। उसने कहा, ‘आप चिंतित न हों, क्योंकि मैंने इनके बहुत व्याख्यान सुने हैं, लेकिन मैं भी अभी तक जागा नहीं। आपने तो एक ही सुना है! आप पर इसका कोई प्रभाव नहीं होगा।’

सम्राट और वजीर की तरह हम भी गहरी नींद में हैं। जो चला आ रहा है उसकी खुमारी बड़ी प्रिय होती है। उससे प्रिय कुछ नहीं होता। किसी नशे की तरह हमें इसके अलावा कुछ दिखाई नहीं देता। अहंकार को सबसे अधिक ऊर्जा ऐसे ही मिलती है! राजा है या रंक। वर्तमान, वैभव की आकांक्षा में हम इतने अधिक डूबे हुए हैं कि हम में कतई भी जागने की इच्छा नहीं। यह कुछ-कुछ ऐसा है, जैसे कोई बच्चा नींद में नहीं है, लेकिन नींद में होने का नाटक कर रहा है। जो नींद में होने का नाटक कर रहा है, उसे उठाना आसान नहीं होता। हमारे मन और चेतना को इसी तरह का खाद-पानी दिया गया है, जिसमें नींद में होने का हमें गहरा अभ्यास हो चला है।

जीवन नींद में होने से उतने संकट में नहीं है, जितना नींद का नाटक करने में है। जो नींद में है, संभव है किसी तरह जाग जाए, लेकिन जो नाटक कर रहा है, उसने तो मन के सारे दरवाजे बंद कर लिए हैं। जिसने दरवाजे बंद कर लिए, वह कैसे बाहर आएगा?

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं और क्या कर रहे हैं। सारा अंतर इस बात से पड़ता है कि जीवन के प्रति दृष्टि कैसी है। सुख-दुख को लेकर हम कितने सहज हैं। जीवन हमारे कुछ होने से अधिक हमारी जीवन आस्था और ऊर्जा से शक्ति लेता है। कोशिश करें जीवन के अर्थ को उपलब्ध होने की और अपनी बनी हुई दुनिया से बाहर निकलकर जीवन को समझने की। (hindi.news18)
-दयाशंकर मिश्र

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