दयाशंकर मिश्र
दुख का सामना करने की हमारी कोई तैयारी नहीं। काश! जीवन को हमने शिक्षा से इतना अलग न किया होता। अगर हममें तनाव, दुख सहने, संभालने की शक्ति नहीं, तो हमें ऐसी शिक्षा, समाज को बदलने के लिए तैयार होना होगा!
कोरोना वायरस के हमारे सामाजिक-आर्थिक जीवन पर जो प्रभाव पड़ रहे हैं, उनका ठीक-ठीक अध्ययन होना बाकी है, लेकिन इतना तो स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि दुख का सामना करने की हमारी कोई तैयारी नहीं। काश! जीवन को हमने शिक्षा से इतना अलग न किया होता। अगर हममें तनाव, दुख सहने, संभालने की शक्ति नहीं, तो हमें ऐसी शिक्षा, समाज को बदलने के लिए तैयार होना होगा! कोरोना वायरस के कारण हमारी आर्थिक स्थिति पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ रहा है। बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिन पर इसकी छाया पडऩी शुरू हो गई है। व्यापार, नौकरी सबमें कटौती की तलवार लटक रही है। जीवन संवाद को नियमित रूप से ई-मेल और संदेश मिल रहे हैं। जीवन से जुड़े सभी प्रश्नों पर आपके प्रिय कॉलम में नियमित रूप से चर्चा होती रहती है। दुख के बारे में भी हमने बहुत विस्तार से बात की है।
आज दुख पर चर्चा करने का एक बड़ा कारण कोरोना वायरस का हमारे ऊपर पडऩे वाला मानसिक प्रभाव है। हमें इस बात को समझना होगा कि केवल हम ही परेशान नहीं। केवल हमीं दुखी नहीं हैं। पूरी दुनिया पर दुख की छाया है। इस दुख को सहना तब और अधिक मुश्किल हो जाता है जब हम यह मान लेते हैं कि ऐसा केवल मेरे साथ ही हो रहा है। इस बारे में मेरा सुझाव है कि अगर हम इन दो बातों को मन में बैठा लें, तो हमारे बहुत से संकट सुलझ सकते हैं! सबसे जरूरी और पहली बात। यह केवल आपके साथ नहीं हो रहा। कोरोना के कारण करोड़ों लोगों के जीवन में उथल-पुथल है। सब अपने-अपने तरीके से इस संकट से निकलने की कोशिश कर रहे हैं। कोई भी संकट कितना भी गहरा क्यों न हो, बहुत देर तक हमारे साथ नहीं रहता, इसलिए जीवन की आस्था को मजबूत कीजिए। जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण और नजरिए को ठोस और गहरा बनाइए।
दूसरी बात। मैं ही क्यों! मैंने कभी किसी का बुरा नहीं किया! पति के साथ दूसरे शहर में विस्थापित होने के लिए विवश हुई एक युवा कारोबारी की पत्नी ने आंखों में आंसू लिए हुए मुझसे पूछा। मैंने उनके पति की आंखों में देखते हुए कहा, ‘क्या आपने इनके साथ केवल सुख का वादा किया है?’ पत्नी ने तुरंत उत्तर दिया, ‘मैं हर दुख में इनके साथ हूं।’ मैंने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘आप हर दुख में अगर साथ हैं, तो इन शब्दों को अपने जीवन में उतार लीजिए- जीवन बहुत बड़ी संभावना है। यात्रा है। हम परिवार के साथ केवल सुख के लिए नहीं हैं। दुख की तैयारी जीवन में वैज्ञानिकता का प्रमाण है। अगर हम इसके लिए तैयार रहें, तो अवसाद, तनाव और? भीतर की व्याकुलता से सहज दूर रहेंगे। दुख सहने का बोध जीवन की यात्रा में हमारे मन का सबसे बड़ा साथी है!’
एक छोटी-सी कहानी आपसे कहता हूं। गुरु नानक का काफिला एक बार एक गांव के बाहर रुका, तो उनकी शिक्षा से असहमत गांव के कुछ लोगों ने उनको वहां से जाने के लिए विवश किया। स्वागत-सत्कार तो बहुत दूर की बात है। उनके शिष्य ने पूछा, ‘इनके लिए क्या कहेंगे।’ नानक ने आसमान की ओर देखते हुए कहा, ‘इनको मेरा आशीर्वाद है कि यह सदा यही रहें। यहीं बस जाएं और फले फूलें।’
जल्द ही दूसरे गांव के बाहर उनका गहरी आत्मीयता और प्रेम के साथ सत्कार किया गया। ऐसा स्वागत जिसमें प्रेम ही प्रेम टपक रहा था। आनंदित थे, लोग वहां अपने बीच नानक को पाकर! वहां से जाते हुए भी जब उसी शिष्य ने पूछा, ‘इनके लिए क्या आशीर्वाद है।’ नानक ने अपने करुणामयी स्वर में कहा, ‘यह लोग जल्द ही बिखर जाएंगे। गांव का हर व्यक्ति अलग-अलग दिशा में चला जाएगा।’
शिष्य को बात समझ में नहीं आई। उसने कहा, ‘जिन्होंने कष्ट दिया वह वहीं रहें। जिनके मन में प्रेम है वह बिखर जाएं। मुझे यह बात समझ नहीं आ रही’। नानक ने समझाया, ‘अगर ऐसे लोग दुनिया में फैल गए, जो दूसरों को कष्ट देते हैं, तो यह खूबसूरत दुनिया नष्ट हो जाएगी, लेकिन इस दुनिया को खतरा तब भी है, जब सारे प्रेम और करुणा में डूबे लोग एक ही जगह बस जाएं।’
जीवन में आस्था, सबसे बड़ा मानवीय गुण है। मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं कि मैंने जो कुछ सीखा जीवन में, ऐसे लोगों से ही सीखा है जो लगातार संघर्ष करते रहे। लेकिन उनके मन में कभी जीवन के प्रति कठोरता नहीं आई। जीवन के प्रति निराशा नहीं आई। यह जो संकट आया है, जाने के लिए ही आया है। कहना निश्चित रूप से सरल है और इसे भोगना उतना ही अधिक कष्टदायक। लेकिन जीवन की आस्था इसे जीने में ही है। जीवन की शुभकामना सहित... (hindi.news18)
-दयाशंकर मिश्र