राष्ट्रीय
मनोज पाठक
पटना, 25 दिसंबर| देश की राजधानी के बाहर हो रहे किसान आंदेालन के वरिष्ठ नेता से लेकर बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव तक बिहार के किसानों से किसान आंदोलन का समर्थन करने की अपील कर चुके है, लेकिन अब तक बिहार के किसान इस आंदोलन को लेकर सडकों पर नहीं उतरे हैं।
बिहार में विपक्षी दल इस आंदोलन के जरिए भले ही गाहे-बगाहे सडकों पर दिखाई दिए, लेकिन विपक्ष की इस मुहिम ने भी किसान आंदोलन के जरिए सरकार पर दबाव नहीं बना पाई। इसके इतर, विपक्ष में टकराव देखने को मिला।
कांग्रेस के विधायक शकील अहमद खान ने पिछले दिनों इशारों ही इशारों में राजद नेता तेजस्वी यादव पर निशाना साधते हुए कहा था कि बिहार में किसानों के नाम पर दिखावटी आंदोलन हो रहा है। इसमें हमें हकीकत में नजर आना चाहिए, तकनीक के सहारे उपस्थिति नहीं चलने वाली है। यदि महागठबंधन के नेता सही में आंदोलन को तेज करना चाहते हैं, तो उन्हें ठोस रणनीति बना कर इसमें खुद भी शामिल होना होगा।
इसके बाद भी अब तक महागठबंधन में इसे लेकर कोई ठोस रणनीति बनती नहीं दिखाई दे रही है। कांग्रेस और राजद के नेता संवाददाता सम्मेलन कर कृषि कानून को लेकर भले ही राज्य और केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं। जन अधिकार पार्टी इस आंदोलन को लेकर मुखर जरूर नजर आई है।
केंद्र सरकार के हाल में बनाए गए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन से जुड़े संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी भी बिहार की राजधानी पटना पहुंचे और यहां के किसानों से किसान आंदोलन में साथ देने की अपील की, इसके बावजूद भी यहां के किसान अब तक सड़कों पर नहीं उतरे।
बिहार में दाल उत्पादन के लिए चर्चित टाल क्षेत्र के किसान और टाल विकास समिति के संयोजक आंनद मुरारी कहते हैं कि यहां के किसान प्रारंभ से ही व्यपारियों के भरोसे हैं, जो इसकी नियति मान चुके हैं। उन्होंने कहा कि यहां के किसान मुख्य रूप से पारंपरिक खेती करते हैं और कृषि कानूनों से उनको ज्यादा मतलब नहीं है।
उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि 2017 में यहां किसान आंदोलन हुआ था, जिसका लाभ भी यहां के किसानों को मिला था। विपक्षी नेताओं के आंदेालन के समर्थन मांगने के संबंध में पूछे जाने पर मुरारी कहते हैं कि बिहार के किसान गांवों में रहते हैं। नेता पटना मंे आकर समर्थन किसानों से मांग रहे हैं।
इधर, औरंगाबाद जिले के किसान श्याम जी पांडेय कहते हैं कि हरियाणा और पंजाब में कृषि में मशीनीकरण का समावेश हो गया तथा वहां किसानों का संगठन मजबूत है। उन्होंने भी माना कि यहां के किसानों के पास पूंजी भी नहीं है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यहां के किसान आंदोलन करेंगे तो खेतों में काम कौन करेगा?
उल्लेखनीय है कि बिहार में एपीएमसी एक्ट साल 2006 में ही समाप्त कर दिया गया है।
जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता राजीव रंजन का दावा है कि बिहार का कृषि मॉडल पूरे देश के लिए नजीर है, इसलिए भी बिहार में कहीं कोई किसान आंदोलन नहीं हो रहा। इससे पहले पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी कह चुके हैं कि यहां के किसान राजग के साथ हैं और उन्हें मालूम है कि किसान हित में क्या है। (आईएएनएस)
-श्रुति मेनन
किसानों के लगातार जारी आंदोलन के बीच भारत सरकार इस बात पर ज़ोर दे रही हैं कि बदलाव किसानों की ज़िंदगी को बेहतर बनाएंगे.
साल 2016 में प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी बीजेपी ने वादा किया था कि 2022 तक वो किसानों की आय को दोगुनी कर देंगे.
लेकिन क्या इस बात का कोई सबूत है कि गांव में रहने वालों कि ज़िंदगी में सकारात्मक बदलाव आए हैं?
ग्रामीण इलाकों में आय की हालत?
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 40 प्रतिशत से अधिक काम करने वाले लोग खेती से जुड़े हुए हैं.
ग्रामीण भारत की घरेलू आय से जुड़े हाल के कोई आंकड़े नहीं है, लेकिव कृषि मजदूरी, जो कि ग्रामीण आय का एक अहम हिस्सा है, उससे जुड़े कुछ आंकड़े मौजूद है. इसके मुताबिक साल 2014 से 2019 के बीच विकास की दर धीमी हुई है.
भारत में महंगाई दर पिछले कुछ सालों में बढ़ी है, वर्ल्ड बैंक के डेटा के मुताबिक उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 2017 में 2.5% से थोड़ी कम थी जो कि बढ़कर 2019 में लगभग 7.7% हो गई
इसलिए मजदूरी में मिले लाभ का कोई फ़यदा नहीं हुआ. ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर इकॉनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलेपमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 से 2016 के बीच सही मायने में किसानों की आय केवल 2 प्रतिशत बढ़ी है.
इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इनकी आय ग़ैर-किसानी वाले परिवारों का एक तिहाई भर है.
कृषि मामलों के जानकार देवेंद्र शर्मा का मानना है कि किसानों की इनकम नहीं बढ़ी है, और मुमकिन है कि पहले से ये कम ही हो गई है.
"अगर हम महंगाई को देखें तो महीने के दो हज़ार रुपये बढ़ जाने से बहुत ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता."
शर्मा खेती से जुड़े सामानों की बढ़ती कीमतों की ओर भी इशारा करते हैं, और बाज़ार में उत्पादन के घटते बढ़ते दामों को लेकर भी चिंतित हैं.
ये भी बताता ज़रूरी है कि हाल के सालों में मौसम ने भी कई जगहों पर साथ नहीं दिया. सूखे के कारण किसानों की आय पर बुरा असर पड़ा है.
क्या सरकार अपना टारगेट पूरा कर पाई है?
2017 में एक सरकारी कमेटी ने रिपोर्ट दी थी कि 2015 के मुकाबले 2022 में आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसानों को 10.4 प्रतिशत की दर से बढ़ना होगा.
इसके अलावा, ये भी कहा गया था कि सरकार को 6.39 बिलियन रुपये का निवेश खेती के सेक्टर में करना होगा.
2011-12 में सरकार का कुल निवेश केवल 8.5 प्रतिशत था. 2013-14 में ये बढ़कर 8.6 प्रतिशत हुआ और इसके बाद इसमें गिरावट दर्ज की गई. 2015 से ये निवेश 6 से 7 प्रतिशत भर ही रह गया है.
कर्ज़ में डूबते किसान
साल 2016 में नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट ने एक सरकारी सर्वे में पाया था कि तीन सालों में किसानों का कर्ज़ करीब दोगुना बढ़ गया था.
केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ़ से पिछले कुछ सालों में कोशिश की गई है कि किसानों को सीधे वित्तीय सहायता दी जाए और दूसरे कदम उठाकर भी मदद की जाए, जैसे कि उर्वरक और बीज पर सब्सिडी और कुछ क्रेडिट स्कीम देना.
2019 में केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि 8 करोड़ लोगों की कैश ट्रांसफर से मदद ली जाएगी.
इस स्कीम के तहत केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि किसानों को हर साल 6000 रुपये की मदद की जाएगी.
देश के 6 राज्य इससे पहले से ही कैश ट्रांसफर स्कीम चला रहे थे.
देवेंद्र शर्मा के मुताबिक इनसे किसानों की आय बढ़ी है.
वो कहते हैं, "सरकार सीधे किसानों को सपोर्ट करने की स्कीम लेकर आई,ये एक सही दिशा में उठाया गया कदम था."
लेकिन इन स्कीम ने काम किया या नहीं, ये बताने के लिए हमारे पास डेटा उपलब्ध नहीं है.
किसानों की आय बढ़ाने के लिए बना सरकार की एक कमेटी के चेयरमेन अशोक दलवाई के मुताबिक सरकार सही दिशा में आगे बढ़ रही है.
वो कहते हैं, "हमें डेटा का इंतज़ार करना चाहिए. लेकिन मैं यह कह सकता हूं कि पिछले तीन सालों में विकास की रफ़्तार तेज़ हुई है, और आने वाले समय में यह और बढ़ेगी."
दलवाई कहते हैं कि उनके 'आंतरिक मूल्यांकन' के मुताबिक वो 'सही दिशा में हैं.' (bbc.com)
-अनंत प्रकाश
साल 2019 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में 16.7 लाख लोगों की मौत हुई है. इतना ही नहीं, वायु प्रदूषण के कारण देश को 260,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का आर्थिक नुकसान हुआ है.
यह जानकारी केंद्र सरकार की संस्था आईसीएमआर की एक रिपोर्ट में सामने आई है. लेकिन क्या ये आँकड़े आपके लिए कुछ मायने रखते हैं?
दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार समेत भारत का एक बड़ा हिस्सा एक लंबे समय से लगातार वायु प्रदूषण की चपेट में है.
बारिश के महीनों को छोड़ दिया जाए तो हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों में रहने वाले लोग लगभग पूरे साल प्रदूषण की मार झेलते हैं.
ये ख़बर लिखे जाते समय दिल्ली में बेहद बारीक प्रदूषक पीएम 2.5 का सूचकांक 462 था जो कि 50 से भी कम होना चाहिए.
ब्रिटेन की राजधानी लंदन में इसी पीएम 2.5 का स्तर 17 है, न्यू यॉर्क में 38 है, बर्लिन में 20 है, और बीजिंग में 59 है.
सरल शब्दों में कहें तो दिल्ली से लेकर लखनऊ (पीएम 2.5 - 440) में रहने वाले लोग इस समय जिस हवा में साँस ले रहे हैं वो स्वस्थ लोगों को भी बीमार बना सकती है और पहले से बीमार लोगों के लिए गंभीर ख़तरे पैदा कर सकती है.
प्रदूषण से हुई मौत...मतलब क्या है?
इंडियन काउंसिल फ़ॉर मेडिकल रिसर्च ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया है कि भारत में साल 2019 में 16.7 लाख लोगों की मौत के लिए वायु प्रदूषण को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है.
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों में 1990 से 2019 तक 64 फ़ीसदी की कमी आई है लेकिन इसी बीच हवा में मौजूद प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों में 115 फ़ीसदी का इज़ाफा हुआ है.
शोधकर्ताओं ने इस रिपोर्ट में लोगों की मृत्यु, उनकी बीमारियों और उनके प्रदूषित वातावरण में रहने की अवधि का अध्ययन किया है.
अंग्रेजी अख़बार द हिंदू में प्रकाशित ख़बरके मुताबिक़, आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने बताया है कि इस अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि वायु प्रदूषण फेंफड़ों से जुड़ी बीमारियों के चालीस फीसदी मामलों के लिए ज़िम्मेदार है. वहीं, इस्केमिक हार्ट डिज़ीज, स्ट्रोक, डायबिटीज़ और समय से पहले पैदा होने वाले नवजात बच्चों की मौत के लिए वायु प्रदूषण 60 फ़ीसदी तक ज़िम्मेदार है.
यह पहला मौका नहीं है जब किसी रिपोर्ट में ये बताया गया हो कि वायु प्रदूषण हानिकारक और जानलेवा है. लेकिन यह पहली बार है जब सरकार ने वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों और आर्थिक नुकसान के सटीक आँकड़े जनता के सामने रखे हैं.
रिपोर्ट यह भी बताती है कि अगर कुछ न किया गया तो वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें, बीमारियां और आर्थिक नुकसान की वजह से भारत का साल 2024 तक पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना टूट सकता है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये रिपोर्ट एक जनआंदोलन को जन्म देगी या दूसरी अन्य रिपोर्ट्स की तरह भुला दी जाएगी?
दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में लंग कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर अरविंद कुमार मानते हैं कि अब वो वक़्त आ गया है जब लोगों को वायु प्रदूषण के ख़तरों के प्रति अवश्य ही सचेत हो जाना चाहिए.
वो कहते हैं, “जब आईसीएमआर की रिपोर्ट में वायु प्रदूषण के ख़तरे स्पष्ट हो गए हैं तो लोगों को ये माँग ज़रूर करनी चाहिए कि सरकार उनके लिए बेहतर शहर बनाए. लेकिन अगर आप पूछें कि क्या लोग ऐसा करेंगे तो मुझे अभी भी पूरा यकीन नहीं है. क्योंकि यह एक रिपोर्ट है. बहुत सारी अन्य रिपोर्ट्स की तरह कुछ दिन तक इस पर अख़बारों में लेख आएंगे, विचार-विमर्श होंगे, कुछ समय के बाद कुछ नयी चीज़ आ जाएगी. कहीं कोई दुर्घटना हो जाएगी और ये रिपोर्ट भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगी.''
''यहाँ पर मैं डॉक्टर्स का बहुत अहम रोल मानता हूँ. मैंने हमारे 'डॉक्टर्स फ़ॉर क्लीन एयर मूवमेंट' से जुड़े डॉक्टरों में ये रिपोर्ट शेयर की है और कहा है कि वे इसे बेहद गंभीरता से लें और लोगों को वायु प्रदूषण के ख़तरों के बारे में रोज सचेत कर सकें.”
वायु प्रदूषण का ख़तरा कितना संगीन?
भारत में वायु प्रदूषण का ख़तरा कितना संगीन है, इस बात का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि साल 2019 में जितनी मौतें प्रदूषण की वजह से हुईं, उतनी मौतें सड़क दुर्घटनाओं, आत्महत्या और आतंकवाद जैसे कारणों को मिलाकर भी नहीं हुईं.
आईसीएमआर की रिपोर्ट बताती है कि साल 2019 में हुई 18 फ़ीसदी मौतों के लिए वायु प्रदूषण को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है.
ऐसे में सवाल उठता है कि अगर इस स्तर पर आकर भी सरकार और समाज की ओर से सही कदम नहीं उठाए गए तो क्या होगा?
डॉक्टर अरविंद का मानना है कि वायु प्रदूषण आने वाले सालों में एक व्यापक समस्या बनकर उभरने जा रहा है.
वो कहते हैं, “हमारे पास सख़्त कदम उठाकर वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के सिवा कोई और रास्ता नहीं है. मैं ये मानता हूँ कि अगर हम ज़मीनी स्तर पर ही कुछ कदम उठाएं तो एक हद तक समाधान निकल सकता है.''
''हमारे नगर निगमों को अपने काम करने के ढंग में मूलभूत बदलाव करना होगा. जिस तरह सड़कें खोदकर छोड़ दी जाती हैं और धूल का अंबार उठता है, वो पार्टिकुलेट मैटर यानी प्रदूषक को हवा में लाने में एक बड़ी भूमिका निभाता है.''
''समस्या का ग्राफ़ धीरे धीरे बढ़ रहा है. मैं बार-बार इस बात को कह रहा हूँ कि पहले मैं लंग कैंसर 50-60 बरस की उम्र वाले मरीज़ों में देखता था. 30 साल पहले जब एम्स में मेरे पास 45 साल की उम्र का लंग कैंसर मरीज आ जाए तो डुगडुगी बज जाती थी कि ये क्या हो रहा है, इतनी कम उम्र के व्यक्ति को लंग कैंसर कैसे हो रहा है. अब गंगाराम हॉस्पिटल में मेरी सबसे युवा लंग कैंसर पेशेंट की उम्र मात्र 28 साल थी.''
डॉक्टर अरविंद कहते हैं, ''सोचने की बात है कि किसी लड़की को 28 साल की उम्र में लंग कैंसर कैसे हो गया? क्योंकि वो जहाँ पर पैदा हुई थी, वो एक प्रदूषित जगह थी. तो उन्होंने अपनी ज़िंदगी के पहले दिन से प्रदूषण झेला. सिगरेट को लंग कैंसर के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है.''
वायु प्रदूषण के ख़तरे को इस तरह समझा जा सकता है कि अगर आज दिल्ली में पीएम 2.5 सूचकांक 300 पर है तो दिल्ली में रहने वाले प्रति व्यक्ति ने 15 सिगरेट पीने के बराबर नुकसान झेला है. इसमें नवजात बच्चे भी शामिल हैं.
ऐसे में जब ऐसे बच्चे अपनी ज़िंदगी के 25 से 30 साल दिल्ली में गुजार लेंगे तो वे 25-30 साल के स्मोकर हो जाएंगे और उनके टिश्यूज़ कैंसरस होने के लिए तैयार हो जाएंगे.
पूरे देश में ज़्यादातर लंग कैंसर एक्सपर्ट ये बता रहे हैं कि उनके 50 फीसदी से ज़्यादा मरीज नॉन-स्मोकर हैं. इनमें महिलाओं की संख्या बढ़ रही है.
डॉक्टर अरविंद बताते हैं, ''युवाओं में लंग कैंसर बढ़ रहा है. मैं ये भी कहना चाहता हूँ कि अगले 10 साल में स्थिति न सुधरी तो भारत में लंग कैंसर का इपिडेमिक (महामारी) आने जा रहा है.”
डॉक्टर अरविंद समेत देश के कई विशेषज्ञ मानते हैं कि लोगों को वायु प्रदूषण के ख़तरे के प्रति ज़्यादा संजीदा होना चाहिए.
लेकिन क्या ये बात पूरी तरह सही है कि लोग वायु प्रदूषण को लेकर गंभीर नहीं हैं? क्योंकि बीते कुछ सालों में एयर प्यूरीफ़ायर की माँग जिस तेजी से बढ़ी है, वो लोगों में इस ख़तरे के प्रति संज़ीदगी को दिखाती है.
मगर प्यूरीफ़ायर की बात करते ही एक नया सवाल खड़ा होता है कि क्या इस समस्या का हल निजी स्तर पर निकाला जा सकता है?
क्या एयर प्यूरीफ़ायर एक समाधान है?
इस समय बाज़ार में 3,000 रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक का एयर प्यूरीफ़ायर मौजूद है लेकिन एम्स के पल्म्नोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉक्टर अनंत मोहन मानते हैं कि ये समस्या का हल नहीं है.
वो कहते हैं, “अगर लोग वायु प्रदूषण से बचना चाहते हैं तो उन्हें सबसे पहले तो इसके ख़िलाफ़ ही कदम उठाने चाहिए.”
वहीं, डॉक्टर अरविंद मानते हैं कि वायु प्रदूषण एक जन समस्या है और उसका हल निजी स्तर पर नहीं तलाशना चाहिए.
वो कहते हैं, “वायु प्रदूषण का समाधान एयर प्यूरीफ़ायर में तलाशना वैसा ही है, जैसा लोगों ने बिजली की कमी पूरी करने के लिए इनवर्टर का इस्तेमाल किया था. पर्याप्त बिजली देना सरकार की ज़िम्मेदारी थी.''
''सरकार को ये ज़िम्मेदारी पूरी करनी चाहिए थी. लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया और लोगों ने इस समस्या का हल अपने स्तर पर निकाला. उन्होंने घरों में जेनरेटर और इनवर्टर रखना शुरू कर दिए.''
डॉक्टर अरविंद कहते हैं, ''समस्या का सही समाधान ये रहता कि ज़्यादा पावर प्लांट लगाकर सभी को बिजली दी जाती. क्योंकि लोगों ने इस पर बेतहाशा धन खर्च किया. अगर उसे पावर हाउस पर लगा दिया जाता तो संभवत: लोगों को कम दाम पर अच्छी बिजली मिल जाती. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.''
''जनता की यही अप्रोच पानी के मामले में भी देखने को मिली. सरकार को साफ पानी देना था, सरकार नहीं दे पाई. ऐसे में शहर की जल आपूर्ति को साफ करने की बजाए लोगों ने वाटर प्यूरीफायर खरीदने शुरू कर दिए. बोतल बंद पानी पीना शुरू कर दिया.''
ये दो ऐसे उदाहरण हैं जब लोगों ने एक जन समस्या का हल निजी स्तर पर निकाला. और समाधान निकला भी. लेकिन इन दोनों जन समस्याओं का हल चुनाव आधारित था.
इसे ऐसे समझ सकते हैं. मान लीजिए कि आपको प्यास लगी है तो आप साफ पानी के लिए एक घंटे तक भी इंतज़ार कर सकते हैं.
ऐसा करने से आप मर नहीं जाएंगे. लेकिन हवा के मामले में ऐसा नहीं है. हम तीन मिनट से ज़्यादा साँस लिए बिना नहीं रह सकते हैं. ऐसे में इस समस्या का हल निजी स्तर पर नहीं निकल सकता है.”
लेकिन अगर जब इस समस्या का हल निजी स्तर पर नहीं निकल सकता है तो आम लोग क्या कर सकते हैं?
आम लोग आख़िर क्या कर सकते हैं?
सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट से जुड़ीं पर्यावरण विशेषज्ञ अनुमिता रॉय चौधरी मानती हैं कि लोगों को जितना जागरूक इस ख़तरे के प्रति होना चाहिए, उतना ही जागरुक इसके समाधान के लिए होना चाहिए.
वो कहती हैं, “लोगों में जागरुकता ख़तरे के साथ-साथ इसके समाधान को लेकर भी होनी चाहिए. क्योंकि आगे चलकर हमें जो कदम उठाने हैं, वो काफ़ी सख़्त होंगे. अगर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर हम इन कड़े कदमों के प्रति समर्थन नहीं जुटा पाएंगे तो इस समस्या का हल जानते हुए भी उसे अमल में लाना बेहद मुश्किल होगा.''
''क्योंकि हम दिल्ली में प्रदूषण के बारे में बात करते हैं और जब सरकार की ओर से कहा गया कि वो निजी गाड़ियों पर रोक लगाना चाहती है और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ाना चाहती है तो मध्यम वर्ग सरकार के ख़िलाफ़ चला गया.''
इसके साथ ही आजकल मल्टी-सेक्टर क्लीन एयर एक्शन प्लान की बात हो रही है. सरकार की ओर से नेशनल क्लीन एयर एक्शन प्लान बनाया गया है, जिसके तहत वाहनों, उद्योग, पावर प्लांट और भवन निर्माण से जुड़ी गतिविधियों के साथ -साथ कचरा जलाने तक के लिए नियम बनाए गए हैं.
अनुमिता कहती हैं, ''इस एक्शन प्लान को लागू किए जाने में कमी दिखाई पड़ती है. ऐसे में लोगों को कड़े कदमों के लिए भी जागरूक और तैयार होना होगा.”
क्या भारतीय कानून प्रदूषण से बचा सकता है?
इस सवाल के साथ ही प्रदूषण पर जारी बहस धरातल पर उतर आती है. क्योंकि अगर कोई शख़्स आपको शारीरिक या मानसिक स्तर पर नुकसान पहुँचाता है, तो भारतीय कानून के तहत उसके ख़िलाफ़ आपराधिक मुकद्दमा दायर किया जा सकता है.
लेकिन क्या प्रदूषण के मामले में ऐसा करना संभव है? क्या प्रदूषण के मामले में आप किसी शख़्स, संस्था या सरकार के ख़िलाफ़ आपराधिक मुकदमा दाख़िल करा सकते हैं?
पिछले एक दशक से राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में पर्यावरण से जुड़े कानूनी मसले देखने वाले वकील विक्रांत तोंगड़ मानते हैं कि वायु प्रदूषण के मामले में ऐसा करना थोड़ा मुश्किल है.
वो कहते हैं, “डॉक्टर कहते हैं कि वायु प्रदूषण ख़तरनाक है लेकिन उसको हुए नुकसान की वजह दर्ज किए जाते वक़्त किसी बीमारी का नाम लिखा जाता है, वायु प्रदूषण का नाम नहीं लिखा जाता है. अभी ब्रिटेन में सात साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट ने आख़िरकार एक बच्ची की मौत के लिए वायु प्रदूषण को ज़िम्मेदार ठहराया है. लेकिन भारत में ऐसे मामले दिखाई नहीं देते हैं.”
भारत में वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए साल 1981 में एक एयर एक्ट लागू किया गया था. लेकिन ये क़ानून कितना मजबूत है, ये इस बात से तय होता है कि पिछले 40 साल में इस क़ानून के तहत दर्ज किए गए मुकदमों की संख्या न के बराबर है, जबकि पिछले 40 बरसों में भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण गंभीर स्तर पर पहुँच चुका है.
ऐसे में सवाल उठता है कि जब वायु प्रदूषण को लेकर न्यायिक स्तर पर शिकायत समाधान प्रक्रिया आसान और त्वरित नहीं है, सरकारी अमले में एक उदासीनता है तो आम लोगों के पास क्या विकल्प शेष हैं.
अनुमिता रॉय चौधरी मानती हैं कि जब तक वायु प्रदूषण के मुद्दे को चुनावी राजनीति से नहीं जोड़ा जाता है तब तक सरकारी तबके से सक्रियता की उम्मीद करना बेमानी सा है.
वो कहती हैं, “मतदाताओं को ये समझना पड़ेगा कि साफ हवा मिलना एक बहुत बड़ा मुद्दा है और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाए जाने की ज़रूरत है. और ये चुनावी मुद्दा तभी बनेगा जब सरकार और राजनीतिक दल ये समझेंगे कि लोगों के लिए ये मुद्दा अहम है.”
“क्योंकि बीते कुछ दिनों में कई स्तर पर प्रगतिशील नीतियां और एक्शन प्लान बने हैं लेकिन उनके सख़्त अमलीकरण के लिए ज़रूरी है कि स्वच्छ वायु एक राजनीतिक मुद्दे में तब्दील हो. क्योंकि ऐसा होने पर सरकारें जब सही और सख़्त कदम उठाएंगी तो उन्हें पहले से पता होगा कि इन कदमों को उठाते हुए जनता का समर्थन मिलेगा.” (bbc.com)
नई दिल्ली, 25 दिसंबर | कें द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को अटल जयंती पर महरौली के किशनगढ़ गौशाला में संबोधन के दौरान आंकड़ों के जरिए मोदी सरकार को कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार से कहीं ज्यादा किसान हितैषी बताया। शाह ने कहा कि यूपीए सरकार ने दस साल में सिर्फ 60 हजार करोड़ रुपये की कर्जमाफी की, लेकिन मोदी सरकार ने ढाई साल में ही दस करोड़ किसानों के खाते में 95 हजार करोड़ रुपये भेजे। सीधे खाते में धनराशि जाने से बीच में एक पैसा बिचौलियों के पास नहीं गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन सुनने के लिए आयोजित हुए इस कार्यक्रम में गृहमंत्री अमित शाह ने भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनकी जयंती पर याद करते हुए संबोधन शुरू किया। भारत माता की जय के नारे लगवाते हुए उन्होंने किसानों को लेकर मोदी सरकार की संचालित एक-एक योजनाओं का हवाला दिया। इस दौरान उन्होंने किसानों के मुद्दे पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और पूर्व की मनमोहन सरकार पर निशाना भी साधा।
अमित शाह ने कहा, जब प्रधानमंत्री मोदी किसान सम्मान निधि योजना लेकर आए तो राहुल बाबा ने कहा किसानों का कर्ज माफ करो। 10 साल यूपीए की सरकार रही। सिर्फ 60 हजार करोड़ का लोन माफ किया था। नरेंद्र मोदी ने ढाई साल के अंदर ही 10 करोड़ किसानों को 95 हजार करोड़ रुपये सीधे बैंक अकाउंट में दिया। आज और 18 हजार करोड़ रुपया किसानों के खाते में जाएगा। बीच में कोई बिचौलिया नहीं होगा। इसको कहते हैं किसानों का हितैषी होना।
गृहमंत्री अमित शाह ने इस दौरान आंकड़ों के जरिए बताया कि सोनिया-मनमोहन के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की तुलना में मोदी सरकार ने किसानों के लिए कई गुना बजट बढ़ाया है। उन्होंने कहा, किसान हितों की बात करने वाले राहुल बाबा से पूछना चाहते हूं कि उनकी सरकार किसानों को कितना बजट देती थी? 2013-14 में जब यूपीए की सरकार थी, तब किसानों का बजट था 21,900 करोड़ रुपए। अभी प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों के लिए अंतरिम बजट 21,900 करोड़ से बढ़ाकर 1,34,399 करोड़ रुपये किया।
गृहमंत्री अमित शाह ने बताया कि कांग्रेस की यूपीए सरकार में 265 मिलियन टन फसल उत्पादन था, जो आज मोदी सरकार में बढ़कर 296 मिलियन टन हो गया है। गृहमंत्री अमित शाह ने आरोप लगाया कि विपक्ष के नेताओं के पास कोई मुद्दा नहीं बचा है, वो झूठ बोलकर किसानों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।
अमित शाह ने कहा, एमएसपी बंद होने का झूठ फैलाया जा रहा है। पीएम ने स्पष्ट कर दिया है और मैं भी स्पष्ट कर रहा हूं कि एमएसपी थी, है और हमेशा के लिए रहने वाली है। यूपीए वालों को एमएसपी के लिए बोलने का अधिकार नहीं है। नरेंद्र मोदी की सरकार ने वर्ष 2014-19 के बीच किसानों को लागत से डेढ़ गुना भाव दिया। 2009 से 2014 के बीच धान और गेहूं की खरीद के लिए तीन लाख 74 हजार करोड़ रुपया खर्च होता था। जबकि मोदी सरकार ने वर्ष 2014-19 में आठ लाख 22 हजार करोड़ रुपये खर्च किया। मोदी सरकार ने किसानों की बेहतरी के लिए मुद्रा स्वास्थ्य सहित कई योजनाएं संचालित कीं हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 25 दिसंबर | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को पीएम-किसान सम्मान निधि योजना की सातवीं किस्त के तौर पर योजना के एक साथ नौ करोड़ से ज्यादा लाभार्थियों के खाते में 18,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि भेजने के कार्य का बटन दबा कर शुभारंभ किया। इससे पहले कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि योजना के 9.04 करोड़ किसानों के बैंक खाते में दो घंटे के भीतर 18,058 करोड़ रुपये पहुंच जाएंगे।
उन्होंने बताया कि पीएम किसान योजना के तहत 11 करोड़ 4 लाख किसानों का पंजीयन किया जा चुका है और इस योजना के तहत इससे पहले देश के 10 करोड़ 59 लाख किसानों को 96,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि सीधे उनके बैंक खाते में पहुंचाई गई है। पीएम किसान योजना का सालाना बजट लगभग 75,000 करोड़ रुपये है।(आईएएनएस)
चंडीगढ़, 25 दिसंबर | किसानों ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ अपने आंदोलन के तहत शुक्रवार को पूरे हरियाणा में तीन दिनों तक टोल प्लाजाओं पर डेरा जमा लिया है। पड़ोसी राज्य पंजाब में, टोल प्लाजाओं को प्रदर्शनकारी किसानों ने कुछ समय के लिए खोल दिया है।
हरियाणा में, किसानों ने राष्ट्रीय राजमार्ग 44 के बसतारा टोल प्लाजा और करनाल-जिंद राष्ट्रीय राजमार्ग 709ए के पिओंट टोल प्लाजा के पास डेरा जमा लिया है।
इसी तरह से, किसान हिसार-राजागढ़ हाईवे पर शंभू टोल प्लाजा और चौधरी टोल प्लाजा पर वाहनों को जाने दे रहे हैं।(आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 25 दिसंबर कोविड-19 महामारी के बीच, केरल में काफी सावधानी के साथ क्रिसमस मनाया जा रहा है। ईसाई समुदाय के लोगों ने कई कार्यक्रमों में भाग लिया और राज्य भर के चचरें में मध्यरात्रि प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया गया। कोच्चि में मध्यरात्रि 'होली मास' का नेतृत्व आर्कबिशप ऑफ साइरो मालाबार चर्च कार्डिनल जॉर्ज एलनचेरी ने किया।
कार्डिनल जॉर्ज एलनचेरी ने अपने संबोधन में लोगों से एक दूसरे से प्यार करने और यीशु मसीह के संदेश को फैलाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि प्रेम सार्वभौमिक भाषा है और कोविड की मुश्किल घड़ी में, मानव पीढ़ी केवल मनुष्यों के प्रति दिखाए गए प्रेम और करुणा के कारण बच गई।
राज्य की राजधानी में सेंट थॉमस मलंकरा सीरियन कैथोलिक कैथ्रेडल में मध्यरात्रि 'होली मास' का नेतृत्व मेजर आर्कबिशप, कार्डिनल बेसेलियोस मार क्लेमिस ने किया।
उन्होंने लोगों को कठिन मार्ग में जीने और दूसरों के प्रति प्रेम जगाने का आह्वान किया। उन्होंने लोगों को एक-दूसरे की मदद करने के लिए कहा और बताया कि कैसे कोविड महामारी के बीच सहयोग की वजह से लोगों को मदद मिली।
कोझिकोड के सेवानिवृत्त भौतिकी के प्रोफेसर जॉर्ज चेरियन ने कहा, "क्रिसमस ट्री और अंकल सांता और चमकते सितारों के साथ, लोगों के पास कुछ ऐसा है, जिससे वह महामारी के कठिन समय में आनन्दित हो सकते हैं। हालांकि, हम चर्च नहीं जा पा रहे हैं और होली मास में शामिल नहीं हो पा रहे हैं, लेकिन हमने लाइव स्ट्रीम में भाग लिया और प्रार्थना की।(आईएएनएस)
लखनऊ, 25 दिसंबर | उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अपने तीन विधायकों के खिलाफ मुकदमे वापस करने की याचिका दायर की है। सरकर के इस फैसले के बाद से यहां का सियासी तापमान चढ़ गया है। इसी कड़ी में बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने भी सभी विपक्षी पार्टियो के लोगों पर राजनैतिक द्वेष के मुकदमे वापस लेने की मांग उठाई है। मायावती ने शुक्रवार को ट्विटर के माध्यम से लिखा कि, यू.पी. में बीजेपी के लोगों के ऊपर 'राजनैतिक द्वेष' की भावना से दर्ज मुकदमे वापिस होने के साथ ही, सभी विपक्षी पार्टियो के लोगों पर भी ऐसे दर्ज मुकदमे भी जरूर वापिस होने चाहिए। बीएसपी की यह मांग।
ज्ञात हो योगी सरकार ने राजनैतिक द्वेष के कारण अपने तीन विधायकों सहित अन्य नेताओं के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लेने की याचिका दायर की है। इसमें संगीत सोम, सुरेश राणा, कपिल देव अग्रवाल के अलावा हिंदूवादी नेता साध्वी प्राची का भी नाम शामिल है। इन नेताओं के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के अलावा सरकार प्रशासन से भिड़ने आदि का आरोप है। मुजफ्फरनगर के काउंसिल राजीव शर्मा ने बताया कि सभी भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज मामले को वापस लेने की राज्य सरकार ने कोर्ट में याचिका दी है। (आईएएनएस)
गोपालगंज (बिहार), 25 दिसंबर | बिहार के गोपालगंज जिले के सिधवलिया थाना क्षेत्र में एक सिरफिरे आशिक ने कथित प्रेमिका के शादी से इनकार करने पर उसकी चाकू मारकर हत्या कर दी। घटना के बाद आक्रोशित लोगों ने आरोपी की जमकर पिटाई कर दी, जिससे वह बुरी तरह घायल हो गया। इस मामले में पुलिस ने आरोपी के एक दोस्त को गिरफ्तार किया है।
पुलिस के एक अधिकारी ने शुक्रवार को बताया कि जलालपुर गांव के रहने वाले अनिल यादव की बातचीत गांव की एक लडकी से होता था। आरोप है कि इसी दौरान अनिल ने उसे अपने प्रेमजाल में फंसा लिया और उस पर शादी करने का दबाव बनाने लगा।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, बुधवार की देर रात अनिल लडकी के घर पहुंचा और शादी का प्रस्ताव रखा। लडकी के इनकार करने के बाद उसे चाकू मार दिया। आनन फानन में घायल लड़की को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हेा गई।
इधर, ग्रामीणों ने आरोपी अनिल की पकड़ कर जमकर मारपीट की, जिससे वह बुरी तरह घायल हो गया।
गोपालगंज के पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार तिवारी ने बताया कि आरोपी को पुलिस ने हिरासत में ले लिया और और उसका इलाज पटना में कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस मामले में संलिप्त आरोपी अनिल के दोस्त धीरज को गुरुवार को गिरफ्तार किया गया है तथा पूरे मामले की छानबीन की जा रही है। (आईएएनएस)
भोपाल, 25 दिसंबर मध्य प्रदेश में अब सरकारी कार्यक्रमों की शुरुआत बेटी पूजन से हेागी। इस संदर्भ में सामान्य प्रशासन विभाग ने आदेश जारी किए हैं। सामान्य प्रशासन विभाग के उप सचिव डी.के. नागेंद्र द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि अब सभी शासकीय कार्यक्रम बेटियों की पूजा से आरंभ किए जाएंगे। राज्य शासन ने यह निर्णय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की 15 अगस्त 2020 को की गयी घोषणा के संदर्भ में लिया है।
शासन की ओर से समस्त विभागों एवं जिलों को उक्त निर्णय का कड़ाई से पालन करने के निर्देश जारी किए गए हैं। (आईएएनएस)|
शाहजहांपुर (उप्र), 25 दिसंबर | पांच पुरुषों द्वारा कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म की शिकार एक महिला ने दावा किया है कि जब वह पुलिस स्टेशन में मामले की शिकायत दर्ज कराने गई तो वहां भी एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर ने उसके साथ दुष्कर्म किया। 35 वर्षीय महिला ने कहा कि 30 नंवबर को जब वह मामले की शिकायत करने के लिए जलालाबाद पुलिस स्टेशन गई तो सब-इंस्पेक्टरउसे शिकायत दर्ज कराने के बहाने बगल के कमरे में ले गया और वहां उसका यौन उत्पीड़न किया।
बरेली के एडीजी अविनाश चंद्र ने महिला की शिकायत पर जांच के आदेश दे दिए हैं। वहीं एसपी (सिटी) संजय कुमार ने कहा कि आरोप गंभीर हैं और पुलिस इसकी जांच कर रही है।
महिला जो कि विधवा है, उसने कहा, "30 नवंबर को पांचों आरोपियों ने मुझे जबरन कार के अंदर खींच लिया और मुझे पास के एक खेत में लेकर गए। वहां मेरे साथ पांचों ने दुष्कर्म किया। मैं तुरंत भागकर जलालाबाद पुलिस थाने में गई। वहां सब-इंस्पेक्टर ने भी मेरे साथ दुष्कर्म किया।"
उसने आगे कहा कि जब स्थानीय पुलिस ने मामला दर्ज करने से इनकार कर दिया, तो उसने वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया। वह एडीजी अविनाश चंद्र से मिलीं। फिर उन्होंने महिला थाना की एसएचओ को जांच करने का आदेश दिया।
एक वरिष्ठ पुलिसकर्मी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "महिला का इस्तेमाल कुछ मामलों को निपटाने के लिए किया जा रहा है। उसने पहले ही शाहजहांपुर में यौन उत्पीड़न के 4 मामले दर्ज कराए थे और अब तक 2 दर्जन से अधिक शिकायतें दे चुकी हैं। एक सर्कल अधिकारी उसकी हालिया शिकायतों की पहले से ही जांच कर रहा है।"
शाहजहांपुर के एसएसपी एस. आनंद ने कहा, "महिला ने सब-इंस्पेक्टर के खिलाफ शिकायत लेकर कभी हमसे संपर्क नहीं किया। वह सीधे एडीजी के पास गई। वह पहले ही यौन उत्पीड़न की कुछ शिकायतें दर्ज करा चुकी है और सभी मामलों की जांच चल रही है।" (आईएएनएस)
भोपाल, 25 दिसंबर | मध्य प्रदेश शासन द्वारा हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में स्थापित राष्ट्रीय तानसेन सम्मान वर्ष 2020 विख्यात सन्तूर वादक पं. सतीश व्यास को प्रदान किया जाएगा। इसी प्रकार संस्कृति के क्षेत्र में कार्य कर रही संस्थाओं को प्रदान किया जाने वाला राष्ट्रीय राजा मानसिंह तोमर सम्मान अभिनव कला परिषद संस्था, भोपाल को प्रदान किया जायेगा। आधिकारिक तौर पर दी गई जानकारी के अनुसार, तानसेन सम्मान के अन्तर्गत पंडित सतीश व्यास को दो लाख रुपए की आयकरमुक्त राशि, सम्मान पट्टिका, शॉल व श्रीफल प्रदान किए जायेंगे। इसी प्रकार राजा मानसिंह तोमर सम्मान के अन्तर्गत संस्था को एक लाख रुपए की आयकरमुक्त राशि, सम्मान पट्टिका, शॉल व श्रीफल प्रदान किए जायेंगे।
तानसेन सम्मान से सम्मानित होने वाले कलाकार पंडित सतीश व्यास यशस्वी संगीतज्ञ हैं जिनके परिवार में शास्त्रीय संगीत की गहरी परंपरा रही है। उनके पिता पंडित सी.आर. व्यास गायक थे, जिनको 1999 में इसी सम्मान से सम्मानित किया गया था।
इन सम्मानों का चयन समिति द्वारा सर्वसम्मत निर्णय के आधार पर किया गया। इनमें तानसेन सम्मान जूरी में शोभा चौधरी, सुश्री कल्पना झोकरकर एवं पं. बलवंत पुराणिक थे जबकि राजा मानसिंह तोमर सम्मान जूरी में राजीव वर्मा, अभिषेक निगम और रासबिहारी शरण शामिल थे।
पं. सतीश व्यास और अभिनव कला परिषद को 26 दिसंबर को ग्वालियर में तानसेन संगीत समारोह के शुभारंभ अवसर पर इस सम्मान से विभूषित किया जाएगा। इसी के साथ पांच दिवसीय तानसेन संगीत समारोह आरम्भ होगा जिसमें देश-विदेश के प्रतिष्ठित कलाकारों की भागीदारी हो रही है, जिसमें राजन मिश्र-साजन मिश्र भी शामिल हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 25 दिसंबर | देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले किसानों के आंदोलन को शुक्रवार को एक महीना पूरा हो गया। आंदोलनकारी किसानों का कहना है कि जब तक सरकार नए कृषि कानूनों को वापस नहीं लेगी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद की गारंटी के साथ-साथ उनकी अन्य मांगें नहीं मानेगी, तब तक उनका प्रदर्शन जारी रहेगा। पंजाब और हरियाणा देश के दो ऐसे राज्य हैं जहां सरकारी एजेंसियां किसानों से एमएसपी पर धान और गेहूं की पूरी खरीददारी करती हैं। फिर भी हरियाणा के किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी कहते हैं कि सरकार को एमएसपी की गांरटी देने के लिए कानून बनाना चाहिए।
चढ़ूनी ने कहा कि उनके आंदोलन का शुक्रवार को 30वां दिन है और सरकार जब तक उनकी तमाम मांगों का कोई ठोस समाधान नहीं करेगी तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा।
आईएएनएस से बातचीत में उन्होंने कहा कि एमएसपी पूरे देश के किसानों का मसला है और इस पर कानून बनना चाहिए क्योंकि किसी फसल की पैदावार होने पर किसानों को औने-पौने भाव पर अपनी फसल बेचने को मजबूत होना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि इसलिए तीनों कानूनों की वापसी से भी बड़ा मसला एमएसपी का है जिस पर सरकार को विचार करना चाहिए।
उत्तर प्रदेश के किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत भी कहते हैं कि एमएसपी पर फसल खरीद की गारंटी किसानों की बड़ी मांग है और सरकार को इस पर कानून बनाना चाहिए।
बता दें कि सरकार ने प्रदर्शनकारी किसान संगठनों को एमएसपी पर फसलों की खरीद की मौजूदा व्यवस्था आगे भी जारी रखने का लिखित आश्वासन देने की बात कही है। मगर, भाकियू नेता राकेश टिकैत कहते हैं कि इस पर नया कानून बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि पराली दहन समेत कुछ अन्य मसले भी हैं जिनका वह समाधान चाहते हैं।
उधर, कुछ ऐसे भी किसान संगठन हैं कि जो नये कानूनों के समर्थन में रोज केंद्रीय कृषि एंव किसान कल्याण मंत्री से मिलते हैं। इनमें ज्यादातर उत्तर प्रदेश के किसान संगठन हैं। इस संबंध में पूछे गए सवाल पर राकेश टिकैत ने कहा, उत्तर प्रदेश में भारतीय किसान यूनियन के सिवा कोई किसान संगठन नहीं है। अगर कोई किसान संगठन है तो मैं उनसे मिलना चाहूंगा और यह पूछना चाहूंगा कि किस तरह ये कानून किसानों के हित में हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिन पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान पीएम-किसान सम्मान निधि योजना के नौ करोड़ लाभार्थियों के बैंक खाते में योजना की सातवीं किश्त के तौर पर करीब 18,000 करोड़ रुपये भेज रहे हैं।
मालूम हो कि गुरुवार को केंद्र सरकार ने फिर प्रदर्शनकारी किसान संगठनों को अगले दौर की वार्ता के लिए पत्र भेजकर उनसे वार्ता की तारीख व समय बताने का आग्रह किया। पत्र में कहा गया है कि आंदोलनकारी किसान संगठनों द्वारा उठाए गए सभी मौखिक और लिखित मुद्दों पर सरकार सकारात्मक रुख अपनाते हुए वार्ता करने के लिए तैयार है।
संसद के मानसून सत्र में कृषि से जुड़े तीनों अध्यादेशों से संबंधित तीन अहम विधेयकों संसद में पेश किए गए और दोनों सदनों की मंजूरी मिलने के बाद इन्हें कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 के रूप सितंबर में लागू किए गए। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले करीब 40 किसान संगठनों के नेताओं की अगुवाई में किसान इन तीनों कानूनों को निरस्त करवाने की मांग को लेकर 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं। (आईएएनएस)
बरेली (उप्र), 25 दिसंबर | बरेली के सुभाष नगर इलाके में रहने वाले 11वीं के छात्र ने खुद को गोली मार कर जिंदगी समाप्त कर ली। 17 साल के लड़के ये यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि उसके रेलवे टेक्नीशियन पिता ने उसे ऑनलाइन परीक्षा न देने पर डांट दिया था। पुलिस ने कहा कि लड़के ने खुद को अपने घर के स्टोर रूम में बंद कर लिया और फिर खुद को गोली मार ली। अब ये पता किया जा रहा है लड़के को यह देसी पिस्तौल कहां से मिली थी।
सुभाष नगर के एसएचओ सुनील कुमार ने कहा, "घटना के समय स्टोर रूम अंदर से बंद कर लिया गया था। यह आत्महत्या का मामला है। पिता ने कहा है कि परीक्षा में न बैठने के कारण उन्होंने लड़के को डांटा था।"
उन्होंने आगे कहा, "हम मामले की जांच कर रहे हैं और जल्द ही पता लगा लेंगे कि लड़के को पिस्तौल कहां से मिली थी। मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है क्योंकि परिवार ने कहा है कि वे मामले में कोई कार्रवाई नहीं चाहते हैं।" (आईएएनएस)
बागपत, 25 दिसंबर | अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ताओं द्वारा बागपत के दिगंबर जैन कॉलेज से जैन धर्म की विद्या की देवी श्रुतदेवी की मूर्ति को हटाने की धमकी को लेकर मचे बवाल के बाद आखिरकार मामला हल हो गया है। एबीवीपी के बागपत जिला समन्वयक अंकुर चौधरी ने माफी मांगी है जिसके बाद विवाद खत्म हो गया है। चौधरी ने कहा, "हमने दिगंबर जैन समुदाय से माफी मांगी और जो हुआ वह हमारी अज्ञानता के कारण हुआ। भविष्य में देवी श्रुतदेवी की मूर्ति को लेकर कोई विरोध नहीं होगा।"
जैन समुदाय के नेताओं ने मंगलवार को कॉलेज में प्रवेश करने वाले एबीवीपी कार्यकर्ताओं की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की थी, जिन्होंने मूर्ति हटाने की धमकी दी थी।
पुलिस ने तुरंत कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया, हालांकि उसी दिन कॉलेज के प्रिंसिपल वीरेंद्र सिंह द्वारा शिकायत दर्ज की गई थी।
बागपत के पुलिस अधीक्षक अभिषेक सिंह ने कहा कि कॉलेज के प्राचार्य डॉ. वीरेंद्र सिंह और कुछ अज्ञात कार्यकर्ताओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 504, 506 और 427 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
इससे पहले, बड़ौत पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर अजय कुमार शर्मा ने कहा कि एबीवीपी के कार्यकर्ता जैन देवी की मूर्ति को लेकर भ्रमित थे।
उन्होंने कहा, "उन्होंने सोचा कि जैनियों ने हिंदू देवी सरस्वती की एक छवि को मोडिफाई किया है। इस मामले को अब दोनों पक्षों के बीच बैठक में सुलझा लिया गया है।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 25 दिसंबर | कांग्रेस ने गुजरात के लिए विभिन्न समितियों की घोषणा की है और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया को प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया है। राज्यसभा चुनावों से पहले विधायकों के पलायन और हाल के उपचुनावों में मिली करारी हार के बाद, कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर अमित चावड़ा और विधायक दल के नेता के पद पर परेश धनानी को बरकरार रखा है।
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री भारत सिंह सोलंकी को रणनीति समिति प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया है, जबकि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सिद्धार्थ पटेल चुनाव प्रबंधन समिति के प्रमुख होंगे। तुषार चौधरी को मीडिया अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है और कादिर पीरजादा को कार्यक्रम कार्यान्वयन समितियों का अध्यक्ष बनाया गया है।
पार्टी ने प्रदेश प्रभारी राजीव सातव को समन्वय समिति प्रमुख नियुक्त किया है। जिस कांग्रेस ने 2017 के गुजरात चुनावों में भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी, उसके कई विधायक पार्टी छोड़ कर चले गए हैं और भाजपा में शामिल हो गए हैं।
पार्टी अगली लड़ाई के लिए कमर कस रही है और यही कारण है कि इसने पुराने चेहरों पर भरोसा जताया है। 2009 के लोकसभा चुनाव में सोलंकी और मोढवाडिया को जीत का श्रेय दिया गया था। अब अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस को उन पर भरोसा करने के अलावा कोई चारा नहीं है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 25 दिसंबर | देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की शुक्रवार को 96वी जयंती पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित केंद्र सरकार के सभी मंत्रियों ने सदैव अटल स्मारक पहुंचकर श्रद्धांजलि दी। इस दौरान प्रार्थना सभा का भी आयोजन हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहुंचने पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह ने उनकी अगवानी की। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला भी मौजूद रहे। इस दौरान प्रार्थना सभा भी हुई।
इससे पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अटल जयंती पर एक संदेश में कहा, पूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को उनकी जन्म-जयंती पर शत-शत नमन। अपने दूरदर्शी नेतृत्व में उन्होंने देश को विकास की अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर पहुंचाया। एक सशक्त और समृद्ध भारत के निर्माण के लिए उनके प्रयासों को सदैव स्मरण किया जाएगा। (आईएएनएस)
एटा (उप्र), 25 दिसंबर | एटा में ठंडी 'रोटी' परोसने पर एक युवक ने कथित तौर पर सड़क किनारे ढाबा चलाने वाले को गोली मार दी। आरोपी और उसके साथी को गिरफ्तार कर लिया गया है। खबरों के मुताबिक यह घटना गुरुवार को बस स्टैंड के सामने स्थित एक ढाबे (भोजनालय) में हुई।
पुलिस ने कहा कि 2 युवक ढाबे में रात लगभग साढ़े 11 बजे खाना खाने आए थे, उस समय ढाबा बंद होने वाला था। तब भी ढाबा मालिक ने उन्हें खाना परोसा, लेकिन युवाओं ने उन्हें ठंडी रोटी परोसे जाने पर आपत्ति जताई। मालिक अवधेश यादव ने उन्हें समझाने की कोशिश कि यह ढाबे के बंद होने का समय है लेकिन युवकों ने उनके साथ बहस की और इसी दौरान कथित तौर पर एक युवक ने यादव को गोली मार दी। यादव को दाहिनी जांघ पर गोली लगी है।
ढाबा मालिक को अस्पताल ले जाया गया और गोली निकाली गई। बताया जा रहा है कि वह खतरे से बाहर है।
एसएसपी सुनील कुमार सिंह ने कहा, "दोनों आरोपी अमित चौहान और कसुसताब सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है। उनके पास से 2 लाइसेंसी पिस्तौल जब्त किए गए हैं। दोनों के खिलाफ आईपीसी की धारा 307, 386 और 506 के तहत मामला दर्ज कर कोर्ट में पेश किया गया। इसके बाद दोनों को जेल भेज दिया गया है।" (आईएएनएस)
जुलाई 2020 में कश्मीर के शोपियां जिले के आम्शीपूरा गांव में भारतीय सेना के दो कर्मियों पर तीन व्यक्तियों को फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने का आरोप लगा था. सेना ने आरोपों की जांच शुरू कर दी थी जो अब पूरी हो गई है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय का लिखा
भारतीय सेना ने 18 जुलाई को एक बयान में कहा था कि आम्शीपूरा गांव में एक मुठभेड़ में तीन आतंकवादियों को मार गिराया गया है. लेकिन घटना के लगभग एक महीने बाद जब मीडिया पर मुठभेड़ में मारे गए तीनों व्यक्तियों की तस्वीरें आईं तो उन तस्वीरों को देख कर राजौरी के तीनों परिवारों ने बताया कि तस्वीर में दिख रहे तीनों लड़के उनके परिवारों के हैं और वो 17 जुलाई से लापता हैं.
परिवारों ने लड़कों के नाम मोहम्मद इबरार (उम्र 25 साल), इम्तियाज अहमद (20) और इबरार अहमद (16) बताए थे. परिवारों का कहना था कि तीनों 16 जुलाई को काम के सिलसिले में कश्मीर गए थे और उसके अगले दिन से उनकी कोई खबर नहीं मिली थी. परिवारों ने मांग की थी कि पूरे मामले की उच्च-स्तरीय जांच हो, जिसके बाद सेना ने मुठभेड़ की जांच शुरू कर दी थी.
पहले तो सेना ने बड़े विस्तार से बताया था कि किस तरह उन तीनों युवकों ने सेना पर गोली चलाई थी और किस तरह उनके मारे जाने के बाद उनके पास गोलाबारूद और विस्फोटक पदार्थ मिले थे. लेकिन राजौरी के परिवारों के बयानों के बाद सेना की पूरी कहानी संदिग्ध लगने लगी. जांच के दौरान जब तीनों युवकों के दफनाए हुए शवों को बाहर निकाल कर उनकी डीएनए जांच कराई गई तो परिवारों के दावे सच साबित हुए.
गुरूवार 24 दिसंबर को सेना की चिनार कोर इकाई ने बताया कि जांच में सबूतों को दर्ज करने की प्रक्रिया पूरी हो गई है और आगे की कार्रवाई के लिए सबूतों का निरीक्षण किया जा रहा है. चिनार कोर ने यह नहीं बताया कि जांच किस नतीजे पर पहुंची है लेकिन मीडिया में आई कई खबरों में यह दावा किया जा रहा है कि मुठभेड़ फर्जी पाई गई है और उसमें शामिल सेना के कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो सकती है.
इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने दावा किया है कि मेजर रैंक के सेना के एक अधिकारी को फर्जी मुठभेड़ का दोषी पाया गया है और अब उनके कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया शुरू होगी. द ट्रिब्यून अखबार ने कहा है कि सेना के दो कर्मियों को दोषी पाया गया है और अब इनका कोर्ट मार्शल किया जा सकता है. अखबार ने सेना के अधिकारियों के हवाले से यह भी कहा है कि सेना को उन तीनों युवकों को संदिग्ध बताने वाले चार व्यक्तियों की भूमिका की जांच पुलिस को करनी चाहिए.
नई दिल्ली, 25 दिसंबर | किसान सेना ने नए कृषि कानूनों को किसानों के लिए लाभदायक बताते हुए सरकार से इन्हें नहीं बदलने की गुहार लगाई है। किसान सेना के बैनर तले उत्तर प्रदेश के 15 जिलों के किसानों के प्रतिनिधियों ने गुरुवार को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात कर नए कानून का समर्थन किया। प्रतिनिधिमंडल में शामिल आगरा के उत्तम सिंह ने कहा कि सरकार अगर नए कृषि कानूनों को वापस लेगी तो किसान सेना बड़ा आंदोलन करेगी।
केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानूनों के विरोध में एक तरह दिल्ली की सीमाओं पर एक महीने से करीब 40 किसान संगठनों का धरना-प्रदर्शन चल रहा है। वहीं दूसरी ओर, कानून का समर्थन करने वाले किसान संगठनों का रोज केंद्रीय कृषि मंत्री से मिलने का सिलसिला जारी है।
इसी कड़ी में गुरुवार को किसान सेना से पहले किसान मजदूर संघ, बागपत (उत्तर प्रदेश) के प्रतिनिधियों ने यहां कृषि भवन में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलकात की। दोनों संगठनों के प्रतिनिधियों ने नए कृषि सुधारों को मोदी सरकार का ऐतिहासिक कदम बताया।
इस अवसर पर किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से एक स्वर में कहा कि कृषि सुधार कानून किसानों की दशा एवं दिशा बदलने वाले हैं और इन्हें किसी भी स्थिति में वापस नहीं लिया जाए।
किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए तोमर ने कहा कि जो विपक्षी दल लंबे समय तक सरकार में रहने के बावजूद किसानों के कल्याण और उनके सशक्तीकरण के लिए कोई भी महत्वपूर्ण कार्य नहीं कर पाए वो आज सवाल उठा रहे हैं।
इस अवसर पर बागपत के सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह, किसान मजदूर संघ के अध्यक्ष चौधरी प्रकाश तोमर, उपाध्यक्ष ठाकुर राजेंद्र सिंह, महामंत्री बाबूराम त्यागी, किसान सेना के राष्ट्रीय संयोजक गौरीशंकर सिंह सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थिति थे।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 25 दिसंबर | केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने गुरुवार को कहा कि उसने पोंजी योजनाओं से संबंधित दो अलग-अलग मामलों में दो कंपनियों के पूर्व प्रबंध निदेशकों को गिरफ्तार किया है। सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा कि पहले मामले में एजेंसी ने सन प्लांट एग्रो लिमिटेड के तत्कालीन प्रबंध निदेशक (एमडी) अवधेश सिंह को गिरफ्तार किया है। सीबीआई ने सन प्लांट एग्रो लिमिटेड, उसके निदेशकों और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया है।
अधिकारी ने कहा कि यह आरोप है कि अवधेश सिंह ने दूसरों के साथ मिलकर एक साजिश के तहत उच्च रिटर्न देने के आश्वासन पर विभिन्न धोखाधड़ी योजनाओं के तहत निवेशकों से 697.72 करोड़ रुपये की अवैध वसूली की।
आरोपी ने उक्त निवेशकों को धोखा दिया और निवेश किए गए पैसे का दुरुपयोग किया।
अधिकारी ने कहा कि दूसरे मामले में एजेंसी ने निवेशकों को धोखा देने के लिए न्यू लैंड एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड के तत्कालीन प्रबंध निदेशक दीपांकर दे को 139 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के लिए गिरफ्तार किया।
उन्होंने कहा कि यह आरोप लगाया गया है कि न्यू लैंड एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अन्य निदेशकों के साथ साजिश के तहत प्रबंध निदेशक ने विभिन्न धोखाधड़ी योजनाओं के तहत निवेशकों से अवैध रूप से 139 करोड़ रुपये एकत्र किए हैं।
आरोपी ने निवेशकों को धोखा दिया और इसके बाद फरार हो गया। अधिकारी ने कहा कि दोनों गिरफ्तार आरोपियों को संबंधित अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 25 दिसंबर | दिल्ली के हुमायूं मकबरे में दाराशिकोह की कब्र मिलने के सच का पता जानने के लिए गुरुवार को संस्कृति मंत्रालय की ओर से गठित कमेटी की बैठक में एक बार फिर साइट देखने का निर्णय लिया गया। अब 11 जनवरी को संस्कृति मंत्रालय की कमेटी हुमायूं मकबरे का दौरा कर दिल्ली नगर निगम के इंजीनियर संजीव कुमार सिंह के दावे का अंतिम तौर पर सच जानेगी, जिसमें उन्होंने मकबरे में दाराशिकोह की कब्र खोजने का दावा किया है। खास बात है कि जिस हुमायूं मकबरे में दाराशिकोह की कब्र खोजने का दावा किया गया है, उससे साढ़े पांच किलोमीटर की दूरी पर ही दाराशिकोह रोड भी है। मुगल शासक शाहजहां के चार बेटों में से एक दाराशिकोह की 1659 में उसके ही भाई औरंगजेब ने राजगद्दी के लिए हत्या कर दी थी। दाराशिकोह भारतीय उपनिषद और भारतीय दर्शन का विद्वान होने के साथ उदारवादी भी था। उदारवादी नजरिए के कारण ही मुगलशासकों में सिर्फ दाराशिकोह के चरित्र को भाजपा का मातृसंगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पसंद करता है। ऐसे में वर्तमान सरकार में दाराशिकोह की कब्र की चल रही इस खोज के काफी मायने हैं।
हुमायूं मकबरे में दाराशिकोह की कब्र का पता लगाने के लिए गुरुवार को हुई बैठक के बाद कमेटी के सदस्य बीआर मणि ने आईएएनएस को बताया, "आज की बैठक में तय हुआ है कि जनवरी में कमेटी के सदस्य साइट विजिट करेंगे। दिल्ली नगर निगम के इंजीनियर संजीव कुमार सिंह को भी बुलाया जाएगा। उसके बाद ही दाराशिकोह की कब्र पर कोई निर्णय होगा। कमेटी के दौरे के बाद रिपोर्ट मिनिस्ट्री को जाएगी। कुछ मेंबर इससे पूर्व भी साइट का विजिट कर चुके हैं।"
सूत्रों का कहना है कि दिल्ली नगर निगम के इंजीनियर संजीव कुमार सिंह ने हुमायूं मकबरे में जिस कब्र को दाराशिकोह की बताई है, उस दावे से कमेटी के अधिकांश सदस्य सहमत हैं। संजीव कुमार सिंह के दावे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के अनुमानों से भी मैच करते हैं।
दरअसल, संस्कृति मंत्रालय ने हुमायूं के मकबरे में दफन दाराशिकोह की कब्र ढूंढने के लिए इस साल जनवरी में कमेटी बनाई थी। इस कमेटी में आरएस बिष्ट, बीआर मणि, केएन दीक्षित, डॉ. केके मुहम्मद, सैयद जमाल हसन, बीएम पांडेय शामिल हैं। यह कमेटी कब्र खोजने में जुटी हुई थी कि दक्षिणी नगर निगम के इंजीनियर संजीव कुमार सिंह ने एक रिपोर्ट पेश कर सबको चौंका दिया।
उन्होंने औरंगजेब के जमाने में आधिकारिक इतिहास लिखने वाले मोहम्मद काजिम की फारसी में लिखी पुस्तक आलमगीरनामा का अनुवाद कराया तो पता चला कि उसमें दाराशिकोह के कत्ल और लाश दफ्न करने के बारे में पूरी जानकारी है। किताब में लिखा गया है कि दारा की लाश को हुमायूं के मकबरे में गुंबद के नीचे बने तहखाने में दफ्न किया गया, जहां पहले से अकबर के बेटों डानियल और मुराद दफ्न हैं।
संजीव कुमार सिंह ने आईएएनएस को बताया, "पिछले चार वर्षों के प्रयास के बाद वह कब्र खोजने में सफल रहे। हर जमाने की कब्रों की शैली के अध्ययन के बाद दाराशिकोह की कब्र तक पहुंचे। आलमगीरनामा पुस्तक ने उन्हें रास्ता दिखाया। उन्होंने शौकिया यह कार्य करते हुए कमेटी के सामने अपनी रिपोर्ट रखी, जिसकी सभी ने प्रशंसा की। जो चीज अंधेरे में रही, उसे रोशनी में लाने की खुशी है।"
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 25 दिसम्बर | केरल सरकार ने सबरीमाला मंदिर में तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ाकर 5,000 प्रतिदिन करने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसमें दलील दी गई है कि इससे कोरोनावायरस महामारी के बीच अधिकारियों पर काफी भार पड़ेगा। अधिवक्ता जी. प्रकाश के माध्यम से दायर राज्य सरकार की याचिका में दलील दी गई है कि हाईकोर्ट ने किसी भी रिपोर्ट या अन्य दस्तावेज पर विचार किए बिना तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि का आदेश दिया है। याचिका में यह दलील भी दी गई है कि हाईकोर्ट का यह आदेश महामारी के समय पर धार्मिक स्थल पर तैनात पुलिसकर्मियों एवं स्वास्थ्य अधिकारियों पर भी भारी दबाव डालेगा।
राज्य सरकार की याचिका में कहा गया है कि सबरीमाला मंदिर में कोविड-19 से प्रभावित पुलिस अधिकारियों, स्वास्थ्य अधिकारियों और तीर्थयात्रियों की संख्या काफी है।
हाईकोर्ट ने 18 दिसंबर को इस मुद्दे पर रिट याचिकाओं का निपटारा किया था और मंदिर में दैनिक तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ाकर 5,000 करने का निर्णय लिया था।
20 दिसंबर से 14 जनवरी के बीच सबरीमाला मंदिर फेस्टिवल की अवधि की ओर इशारा करते हुए, केरल सरकार ने दलील दी कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली एक उच्च-स्तरीय समिति ने स्वास्थ्य विभाग की सलाह के अनुसार, सप्ताह के दिनों में 2,000 और सप्ताहांत पर 3,000 तीर्थयात्रियों की संख्या निर्धारित की थी।
ब्रिटेन में नए कोरोनावायरस स्ट्रेन का पता लगने और वहां से आने और जाने वाली उड़ानों को रद्द करने के सरकार के फैसले का हवाला देते हुए, राज्य की याचिका में कहा गया है, "इस तरह की स्थिति होने पर केरल सरकार इस फैसले में इस अदालत का तत्काल हस्तक्षेप चाहती है।"
केरल सरकार ने शीर्ष अदालत से अंतरिम राहत के रूप में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया।
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बेंगलुरु, 25 दिसंबर | बेंगलुरु पुलिस ने दो नाइजीरियाई नागरिकों को गिरफ्तार कर उनसे 3,300 नशीली गोलियां और 600 ग्राम एमडीएमए (मेथिलेंडिकॉक्सी-मेथैम्फेटामाइन) पाउडर बरामद किया है जिसकी कीमत 1 करोड़ रुपये है। पुलिस ने बताया कि ड्रग्स के अलावा पुलिस ने उनके पास से एक हाई-एंड कार भी जब्त की है।
पुलिस के अनुसार, आरोपियों की पहचान डोनचक्स ओकेके उर्फ टैम (39) और सेलेस्टीन अनुगवा उर्फ ओमा (40) के रूप में हुई है।
पुलिस ने बताया कि दोनों आरोपी पिछले कुछ सालों से बेंगलुरु में रह रहे थे और उन्होंने अभी तक अपना लीगल पासपोर्ट और वीजा पेश नहीं किया है। पुलिस ने कहा, दोनों ने कहा कि उनके पासपोर्ट की अवधि समाप्त हो गई है और वे अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं।
बेंगलुरु ईस्ट डिवीजन पुलिस ने अपने बयान में कहा कि इस जोड़ी को शहर के बायप्पनहल्ली में बागमाने टेक पार्क के पीछे सड़क किनारे चाय के स्टॉल पर इस मादक पदार्थ को बेचने की कोशिश करते हुए गिरफ्तार किया गया।
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अगरतला, 25 दिसंबर | त्रिपुरा में भारत-बांग्लादेश सीमा के पास स्थित एक गांव से प्रतिबंधित नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (एनएलएफटी) के आंतकियों द्वारा अगवा किए गए तीन मजदूरों को 17 दिनों की कैद के बाद रिहा कर दिया गया है। हालांकि एक व्यापारी 35 वर्षीय लितन नाथ का अभी भी पता नहीं लग पाया है, जिन्हें 27 नवंबर को त्रिपुरा-मिजोरम सीमा के साथ लगते उत्तरी त्रिपुरा के एक दूरदराज के गांव मालदा कुमार पाड़ा से आदिवासी गुरिल्लाओं द्वारा बंदूक की नोक पर उठा लिया गया था। अपहरण के 28 दिनों के बाद भी नाथ का पता नहीं चल सका है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि सीमा सुरक्षा बल और अन्य अर्धसैनिक बलों और राज्य बलों के बढ़ते दबाव का सामना करते हुए, एनएलएफटी आतंकवादियों ने बुधवार रात तीन अपहृत व्यक्तियों को भारत-बांग्लादेश सीमा के साथ लगती जगह पर एक पहाड़ी वन क्षेत्र में छोड़ दिया है।
सुपरवाइजर सुभाष भौमिक (48), जेसीबी चालक सुबल देबनाथ (37) और मजदूर गण मोहन त्रिपुरा (37) को गत सात दिसंबर को अगवा कर लिया गया था।
दरअसल, नेशनल प्रोजेक्ट कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनपीसीसी) गंगानगर थाना क्षेत्र के दलाई जिले के मालदा कुमार पाड़ा गांव में सीमा पर तारबंदी का काम करवा रही है। इसी दौरान सात दिसंबर को इन मजदूरों को बंदूक की नोक पर अगवा कर लिया गया था।
पुलिस अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, बांग्लादेश के सुरक्षा बलों ने भारतीय सुरक्षा बलों के अनुरोध के बाद तीन भारतीय बंधकों का पता लगाने और त्रिपुरा कंट्टरपंथियों को पकड़ने के लिए अपने क्षेत्र में बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाया था।
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