वियना, 4 नवंबर| इस सप्ताह के शुरू में चार ऑस्ट्रियाई राजधानी वियना में गोलीबारी के सिलसिले में कई पुलिस छापों के बाद कम से कम 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। हमले में चार लोगों की मौत हो गई थी। बीबीसी के मुताबिक, एक बयान में, ऑस्ट्रिया के गृह मंत्री कार्ल नेहमर ने कहा कि 20 वर्षीय इस्लामिस्ट बंदूकधारी कुजतिम फेजजुलई से जुड़े 14 लोगों को वियना एरिया, सेंट पॉल्टन टाउन और लिन्ज सिटी से गिरफ्तार किया गया है।
फेजजुलई को पुलिस द्वारा उस समय गोली मार दी गई थी जब उसने सोमवार शाम को वियना के साइटेनस्टेटेनगास सिनेगॉग (यहूदी उपासना स्थल) के पास राहगीरों पर गोली चलाई थी।
बंदूकधारी अप्रैल 2019 से इस्लामिक स्टेट (आईएस) के जिहादियों में शामिल होने के लिए सीरिया की यात्रा करने की कोशिश कर रहा था।
नेहमर ने कहा कि हालांकि एक दूसरे हमलावर के शामिल होने का कोई संकेत नहीं था, लेकिन संभावना को तुरंत खारिज नहीं किया जा सकता है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 4 नवंबर| अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को कहा कि 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में अमेरिकी जनता के साथ धोखा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वह मंगलवार रात के नतीजों को चुनौती देने के लिए अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। उन्होंने व्हाइट हाउस में अपने समर्थकों और परिवार को संबोधित करने के दौरान यह टिप्पणी की।
बिना कोई सबूत दिए और लाखों वोटों की गिनती के बावजूद, राष्ट्रपति ने कहा, "यह अमेरिकी जनता के साथ एक धोखा है। यह हमारे देश के लिए शर्मनाक है।"
ट्रंप ने कहा, "स्पष्ट रूप से हमने यह चुनाव जीता है।"
उन्होंने कहा कि हम अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे। उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि सभी वोटिंग रुक जाए।
राष्ट्रपति ने कहा कि वह मंगलवार शाम को जीत की घोषणा करने जा रहे थे।
उन्होंने कहा, "हम एक बड़े जश्न के लिए तैयार थे। हम सब कुछ जीत रहे थे। और अचानक ही इसे रद्द करना पड़ा।"
अपने संबोधन में, राष्ट्रपति ने मतगणना पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "लाखों और लाखों लोगों ने हमें वोट दिया। लोगों से उनका मताधिकार छीना जा रहा है।"
बीबीसी के मुताबिक, ट्रंप ने फ्लोरिडा में अपनी जीत का जश्न भी मनाया।
उन्होंने पेन्सिलवेनिया में भी बढ़त का दावा किया, उसी तरह जैसे उनके डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी जो बाइडन ने उनसे पहले चुनाव की रात को किया था।
लेकिन अभी भी राज्य में जीत किसकी होगी, यह कहना मुश्किल है।
ट्रंप ने साउथ डकोटा, यूटा, मिसौरी, लुइसियाना, नेब्रास्का, नॉर्थ डकोटा, अरकांसस, अलबामा, मिसिसिपी, टेनेसी, केंटकी, वेस्ट वर्जीनिया और इंडियाना जीता है।
वहीं, बाइडन ने डेलावेयर, कोलोराडो, न्यू हैम्पशायर, डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया, न्यूयॉर्क, वर्मोंट, कनेक्टिकट, वर्जीनिया, इलिनोइस, मैरीलैंड, मैसाचुसेट्स, न्यू जर्सी, रोड आइलैंड और कैलिफोर्निया जीत लिया है। (आईएएनएस)
न्यूयॉर्क, 4 नवंबर। दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में हुए राष्ट्रपति चुनाव के बाद वोटों की गिनती चल रही है। कई राज्यों के नतीजे आ चुके है, वहीं कई राज्यों रिपब्लिकन कैंडिडेट डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक कैंडिडेट जो बाइडेन के बीच कड़ी लड़ाई चल रही है। कुछ वक्त में साफ हो जाएगा कि अमेरिका की जनता ने डोनाल्ड ट्रंप को एक और मौका दिया है या फिर बाइडेन के हाथों में सत्ता सौंपने का मन बना लिया है।
ट्रंप ने फ्लोरिडा और टेक्सस में बहुत ही कड़े मुकाबले में जीत हासिल कर ली है। आ रहे प्रोजेक्शन्स के मुताबिक, ट्रंप को इंडियाना के अलावा ओक्लाहोमा और केंटकी में जीत मिली। वहीं जो बाइडेन ने वरमॉन्ट के अलावा मैसाचुसेट्स, न्यू जर्सी, मैरीलैंड, टेनेसी और वेस्ट वर्जीनिया राज्य जीत लिया है।
जो बाइडेन को कुल 18 राज्यों में जीत मिलती दिख रही है, जिसमें उनके गृहराज्य डेलावेयर सहित न्यूयॉर्क, कैलिफोर्निया और अमेरिकी राजधानी वॉशिंगटन डीसी शामिल है। बाइडेन को जहां-जहां जीत मिली है, वहां 2016 में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को भी जीत मिली थी।
इसके साथ ही जो बाइडेन के पास 223 इलेक्टोरल वोट्स हैं और ट्रंप के पास अधिकतम 214 वोट हैं। हालांकि, अभी भी एरिज़ोना, जॉर्जिया, मिशीगन, पेन्सिल्वेनिया और विस्कॉन्सिन के रुझान अभी नहीं आए हैं। जीतने के लिए 270 इलेक्टोरल कॉलेज वोट की जरूरत है।
कोविड-19 के बीच हुए इन चुनावों में कई सर्वे के मुताबिक, पूरा अमेरिका दोनों प्रतिद्वंद्वियों के बीच बंट गया है। Edison Research ने कहा कि ट्रंप कंजर्वेटिव राज्य माने जाने वाले इंडियान में जीतेंगे, वहीं Associated Press ने कहा था कि ट्रंप केंटकी में जीत सकते हैं। ट्रंप अब तक की मतगणना में इन दोनों राज्यों को जीत चुके हैं। Fox News ने बताया था कि बाइडेन डेमोक्रेटिक रुझान रखने वाले वरमॉन्ट और वर्जीनिया में जीत सकते हैं।
बाइडेन और हैरिस विलमिंगटन, डेलावेयर से राष्ट्र को संबोधित कर रहे हैं। जबकि, ट्रंप व्हाइट हाउस से चुनाव नतीजों को देख रहे हैं उन्होंने चुनिंदा अतिथियों को व्हाइट हाउस आमंत्रित किया है। चुनाव परिणाम के मद्देनजर व्हाइट हाउस और अन्य महत्वपूर्ण स्थलों की सुरक्षा बढ़ा दी गयी है। इस साल करीब 23.9 करोड़ लोग मताधिकार के योग्य हैं। अमेरिका में करीब 40 लाख भारतीय मूल के लोग हैं जिनमें से 25 लाख मतदाता हैं। यहां 13 लाख से अधिक भारतीय-अमेरिकी टेक्सास, मिशिगन, फ्लोरिडा और पेनसिल्वेनिया जैसे अहम राज्यों के मतदाता हैं।
मंगलवार तडक़े प्रचार से लौटे ट्रंप (74) ने चुनावी रैलियों में खुद के नृत्य के एक छोटे से वीडियो के साथ ट्वीट किया, ‘मतदान करें, मतदान करें, मतदान करें।’ बाइडेन (77) ने भी जनता से मतदान करने की अपील करते हुए कहा, ‘मतदान का दिन है। जाइए, वोट दीजिए अमेरिका।’ उन्होंने ट्वीट किया, ‘2008 और 2012 में आपने इस देश का नेतृत्व करने के लिए बराक ओबामा का साथ देने में मुझ पर भरोसा जताया। आज मैं एक बार फिर आपसे विश्वास जताने के लिए कह रहा हूं। मुझ पर और कमला (हैरिस) पर भरोसा जताइए। हम वादा करते हैं कि आपको निराश नहीं करेंगे।’
उपराष्ट्रपति पद की डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस ने मतदाताओं से कहा कि ‘अगर आपने मतदान कर दिया है तो शुक्रियाय लेकिन हमें अब भी आपकी मदद की जरूरत है।
वाशिंगटन, 4 नवंबर | अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतादाता अपने वोट डाल चुके हैं और सीएनएन एक्जिट पोल में प्रारंभिक परिणामों के अनुसार अमेरिकी मतदाताओं में से एक-तिहाई ने अर्थव्यवस्था को सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बताया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, चुनाव वाले दिन मंगलवार को जारी सर्वेक्षण में पता चला है कि 5 में से 1 ने नस्लीय असमानता को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को चुनने में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बताया।
अर्थव्यवस्था के महत्व के बावजूद, एग्जिट पोल यह भी दशार्ता है कि मतदाताओं का एक स्लिम मेजोरिटी मानता है कि देश की प्राथमिकता अब अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण की बजाय कोरोनोवायरस से निपटने पर होनी चाहिए।
ट्रंप के समर्थकों में से 10 में 6 ने अर्थव्यवस्था को शीर्ष मुद्दा बताया जबकि 5 प्रतिशत ने कोरोनावायरस को अहम मुद्दा बताया। वहीं जो बाइडन के समर्थकों में से 10 में से 3 ने कोरोनावायरस को शीर्ष मुद्दा बताया जबकि 10 में से 1 ने अर्थव्यवस्था को शीर्ष मुद्दा बताया।
पोल, नेशनल इलेक्शन पूल की ओर से एडिसन रिसर्च द्वारा आयोजित किया गया।(आईएएनएस)
न्यूयॉर्क, 4 नवंबर अमेरिका के चुनाव पर सारी दुनिया की नजरें गड़ी हुई हैं। मगर ऐसा हो सकता है कि हम शायद तीन नवंबर की रात को डोनाल्ड ट्रंप बनाम जो बाइडन के परिणाम को न जान सकें। यह विचित्र नहीं है। सन् 2000 और इससे पहले भी अमेरिका के चुनावी परिणाम में देरी हो चुकी है।
अगर 2000 की बात करें तो चुनाव के एक महीने बाद 12 दिसंबर को अमेरिका और दुनिया के लोगों को चुनावी नतीजों की जानकारी मिल पाई थी। तब अमेरिका सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि फ्लोरिडा को वोटों की गिनती बंद करनी चाहिए और जॉर्ज डब्ल्यू बुश बनाम अल गोर के लिए चुनाव कराया जाए।
वर्ष 1937 तक, अमेरिकी राष्ट्रपति जनवरी के बजाय मार्च महीने में सत्ता की गद्दी संभालते थे, क्योंकि मुख्य रूप से मतगणना में ही लंबा समय बीत जाता था।
1918 में स्पैनिश फ्लू के दौरान चुनाव आयोजित किए गए थे, लेकिन वे राष्ट्रपति चुनाव नहीं बल्कि मध्यावधि चुनाव थे।
अमेरिकी इतिहास की जानकारी रखने वाले इतिहासकारों का मानना है कि थॉमस जेफरसन बनाम जॉन एडम्स की 1800 में हुई चुनावी लड़ाई नौ महीने तक चली थी।
हालांकि वर्तमान चुनाव में नौ महीने का समय किसी और परिदृश में सामने आया है। दरअसल डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन को ठीक नौ महीने पहले ही कोरोनावायरस महामारी के बारे में पता चला और अभी तक महामारी ने अमेरिका में ऐसी तबाही मचाई कि इसकी वजह से 231,000 से अधिक अमेरिकी अपनी जान गंवा चुके हैं।
यह चुनाव कई मायनों में खास है, क्योंकि इसमें कई चीजें पहली बार देखने को मिल रही हैं।
इस बार के चुनाव में एक बात पहली बार देखी जा रही है, वह यह है कि एक अश्वेत और भारतीय अमेरिकी महिला कमला हैरिस एक प्रमुख पार्टी के टिकट पर उप-राष्ट्रपति की दावेदार हैं।
इसके अलावा यह पहली बार है जब दोनों राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों की आयु 70 वर्ष से अधिक है। ट्रंप जहां 74 वर्ष के हैं, वहीं बाइडन 77 साल के हो चुके हैं।
यह भी पहली बार है, जब अमेरिकी चुनाव एक बड़ी वैश्विक महामारी के बीच चल रहा है, जिसने देश के हर एक राज्य में लोगों की जान ली है। अमेरिका ने एक ही दिन में 100,000 कोरोना संक्रमण के मामलों का विश्व रिकॉर्ड भी बनाया है।(आईएएनएस)|
न्यूयॉर्क, 4 नवंबर | भारतीय मूल की कमला हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं, वह मतपत्रों में शीर्ष पर बनी हुई हैं। इसके अलावा मंगलवार को संपन्न होने वाले चुनावों में कई भारतीय-अमेरिकी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (निचला सदन) के चार सदस्य अमी बेरा, रो खन्ना, प्रमिला जयपाल और राजा कृष्णमूर्ति सभी डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से एक और कार्यकाल के चुने जाने के लिए आश्वस्त हैं।
उनके साथ ड्रेमोक्रेटिक पार्टी से ही दो और मजबूत दावेदार भी हैं, जो चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। टेक्सास में प्रेस्टन कुलकर्णी और एरिजोना में हिरल टिपिरनेनी अपने रिपब्लिकन दावेदारों के खिलाफ एक मजबूत लड़ाई लड़ रहे हैं।
कुलकर्णी के पिता भारतीय और मां श्वेत अमेरिकी हैं और वह राजनीति में कदम रखने से पहले राजनयिक रह चुके हैं और टिपिरनेनी डॉक्टर हैं।
रियल एस्टेट एजेंट निशा शर्मा कैलिफोर्निया से रिपब्लिकन पार्टी की ओर से चुनावी मैदान में हैं। यह एक डेमोक्रेटिक निर्वाचन क्षेत्र माना जाता है, इसलिए उनके लिए यहां से जीत पाना बड़ी चुनौती है।
अगर वह वाइस प्रेसिडेंसी जीतती हैं तो हैरिस सीनेट में नहीं होंगी।
रियल क्लीयर पॉलिटिक्स के अनुसार, मेन स्टेट हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की स्पीकर सारा गिदोन, रिपब्लिकन सीनेटर सुसान कोलिन्स के खिलाफ छह प्रतिशत की बढ़त के साथ सीनेट की दौड़ में शामिल हैं।
न्यू जर्सी सीट से रिक मेहता सीनेटर कोरी बुकर के लिए एक रिपब्लिकन चैलेंजर के तौर पर चुनावी मैदान में हैं। इसके अलावा भी कई ऐसे भारतीय मूल के चेहरे हैं, जो कि अमेरिकी चुनाव में बड़ी भूमिका निभाएंगे।(आईएएनएस)
न्यूयॉर्क, 4 नवंबर | अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को कहा कि वह केवल तभी जीत की घोषणा करेंगे, जब वह चुनाव जीत लेंगे।
ट्रंप ने सुबह की फोन कॉल पर फॉक्स न्यूज को बताया, "जब जीत होगी तो जीत की घोषणा करेंगे।"
उन्होंने कहा, "आप जानते हैं, गेम खेलने का कोई कारण नहीं है।"
हालांकि ट्रंप ने अपनी जीत का दावा भी किया है। उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हमारी जीत होगी। आप जानते हैं, मैं इसे एक बहुत हो सकने के तौर पर देखता हूं, आप जानते हैं कि जीतने का एक बहुत सॉलिड मौका है।"
रियलक्लेयर पॉलिटिक्स के अनुसार, ट्रंप अपने डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी जो बाइडन से 7.2 प्रतिशत अंकों से पीछे चल रहे हैं।
हालांकि ट्रंप ने ऐसे पोल की आलोचना भी की है और कहा है कि बाइडन के जीतने की कोई भी संभावना नहीं है।
कुछ मीडिया संस्थानों ने आरोप लगाया है कि ट्रंप औपचारिक अंतिम वोटों की गिनती से पहले ही अपनी जीत की घोषणा करने की योजना बना रहे हैं। इसके बाद काफी विवाद छिड़ गया।
ट्रंप और उनके डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रतिद्वंद्वी बाइडन दोनों शुरुआत में ही मतदान प्रक्रिया के तहत मतदान कर चुके हैं। (आईएएनएस)
न्यूयॉर्क, 4 नवंबर | अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान संपन्न होने के एक घंटे बाद अभी तक जो परिणाम आए हैं उनके मुताबिक, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अलबामा, मिसीसिपी, ओक्लाहोमा, टेनेसी, केंटकी, वेस्ट वर्जीनिया और इंडियाना राज्यों में जीत हासिल की है, जबकि उनके डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी जो बाइडन वर्मोंट, कनेक्टिकट, डेलावेयर, इलिनोइस, मैरीलैंड, मैसाचुसेट्स, न्यू जर्सी और रोड आइलैंड में जीते हैं।
अर्ली वोट को आम तौर पर बाइडन के पक्ष में दिखाया गया। फाइनल दिन में मतों की संख्या रिपब्लिकन के लिए मजबूत होने की संभावना है।
वर्मोंट में बाइडन की जीत अपेक्षित तर्ज पर है क्योंकि डेमोक्रेट्स ने 1992 से राज्य को अपने पक्ष में रखा है। 2016 में हिलेरी क्लिंटन को यहां बड़ी जीत मिली थी।
ट्रंप ने 2016 में वेस्ट वर्जीनिया को 42 अंक और केंटकी में लगभग 30 अंक से जीत हासिल की थी।
आखिरी बार वेस्ट वर्जीनिया में जीत दर्ज करने वाले डेमोक्रेटिक उम्मीदवार बिल क्लिंटन थे, जिन्होंने 1996 में जीता था।(आईएएनएस)
हैदराबाद, 3 नवंबर | अमेरिका के जॉर्जिया में हैदराबाद के 37 वर्षीय एक शख्स की कुछ अज्ञात व्यक्तियों द्वारा चाकू मारकर हत्या कर दी गई है। पीड़ित परिवार के हवाले से यह जानकारी दी गई। यहां ग्रॉसरी स्टोर चलाने वाले मोहम्मद आरिफ मोहिउद्दीन पर थॉम्सटन शहर के क्रॉली स्ट्रीट पर पर उस वक्त चाकुओं से वार किया गया, जब उसने अपने घर का दरवाजा खोला।
घटना 1 नवंबर की है, जिसके बारे में उनके परिवार को सोमवार रात को पता चला, जो हैदराबाद के चंचलगुडा ओल्ड सिटी के रहने वाले हैं।
आरिफ की बीवी मेहनाज फातिमा ने विदेश मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर से अपील की है कि वह उनके और उनके ससुर खाजा मोहिउद्दीन के लिए आपातकालीन वीजा की व्यवस्था करें, ताकि वह अपने पति के अंतिम क्रियाकर्म में शामिल हो सकें।
मंत्री को लिखे अपने पत्र में उन्होंने वॉशिंगटन में भारतीय दूतावास और अटलांटा में भारतीय वाणिज्य दूतावास से इस हत्या की जांच करने को कहा है।
आरिफ 10 साल से अमेरिका में रह रहे हैं। वहां उनकी एक किराने की दुकान है। लगभग दस महीने पहले वह अपने परिवारवालों से मिलने हैदराबाद गए थे। इनका एक दस माह का बच्चा भी है।
मेहनाज ने कहा कि उनके पति का अपने बिजनेस पार्टनर के साथ मतभेद था। आरिफ ने आखिरी बार 1 नवंबर को उनसे बात की थी।
अपने पत्र में मेहनाज ने लिखा, "उन्होंने कहा था कि वह 30 मिनट में घर पहुंच जाएंगे और मुझसे बात करेंगे, लेकिन न ही उन्होंने फिर बात की और न ही मेरे कॉल का जवाब दिया। फिर उनके कुछ दोस्तों से मुझे पता चला कि उनकी चाकू गोदकर हत्या कर दी गई है और पुलिस ने उनकी बॉडी को पास के किसी अस्पताल में पहुंचाया है।"
मजलिस बचाओ तहरीक (एमबीटी) के नेता अंजेदुल्लाह खान ने उनके घर पहुंचकर पूरे परिवार को अपनी तरफ से सांत्वना दी है। उन्होंने तेलंगाना के कैबिनेट मंत्री केटी। रामाराव से आग्रह किया कि वे हैदराबाद के वाणिज्य दूतावास से मेहनाज और खाजा मोहिउद्दीन को वीजा जारी करने का अनुरोध करें।
--आईएएनएस
अंकारा, 3 नवंबर | तुर्की के पश्चिमी प्रांत इजमिर में आए एक भीषण भूकंप के 91 धंटे के बाद मंगलवार को बचावकर्मियों ने इमारतों के मलबे से चार साल की एक बच्ची को बाहर निकाला है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, एनटीवी ब्रॉडकास्टर के लाइव फुटेज में बचावकर्मियों द्वारा मलबे से बच्ची को बाहर निकालते हुए दिखाया गया है।
एक बचावकर्मी ने एनटीवी को बताया कि टीम को बच्ची अपने अपार्टमेंट के रसोईघर में मिली और वह अच्छी स्थिति में थी।
तुर्की के आपदा और आपातकालीन प्रबंधन प्राधिकरण (एएफएडी) ने कहा कि भूकंप में मरने वालों की संख्या बढ़कर 102 हो गई है और इसके झटके में कुल 1,026 लोग घायल हुए हैं।
एएफएडी ने कहा कि प्रांत में कुल पांच ध्वस्त इमारतों के मलबे के आसपास दिन-रात खोज और बचाव अभियान चल रहा है।
रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 6.6 मैग्नीट्यूड मापी गई है। भूकंप का केंद्र एजियर सागर में बताया जा रहा है।
--आईएएनएस
वाशिंगटन, 3 नवंबर | अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए मंगलवार को मतदान शुरू हो गया। पहला वोट न्यू हैम्पशायर राज्य के दो छोटे शहरों डिक्सविले नॉच और मिल्सफील्ड में पड़ा। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, मतदाताओं ने राष्ट्रपति पद के अलावा न्यू हैम्पशायर के गवर्नर और संघीय तथा राज्य विधानसभा के लिए अपने पसंदीदा उम्मीदवारों का चयन किया।
डिक्सविले नॉट के बाल्म्स रिजार्ट के 'बैलट रूम' में केवल 5 स्थानीय पंजीकृत मतदाताओं में से एक लेस ओटन ने पहला वोट डाला। उन्होंने खुद को रिपब्लिकन बताया लेकिन अपना वोट डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडन को दिया। ट्विटर पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में ओटन कह रहे हैं, "मैं कई मुद्दों पर ट्रंप से सहमत नहीं हूं।"
डिक्सविले नॉच में अन्य 4 वोट भी बाइडन के खाते में गए, जबकि मिल्सफील्ड 16 में से 5 वोट ट्रंप को मिले।
पूर्वी तट पर कुछ प्रमुख शहरों में मतदान केंद्र मंगलवार को सुबह 6 बजे (स्थानीय समय) से खुलेंगे। अंतिम मतदान अलास्का में होगा। वहीं 9.8 करोड़ मतदाता पहले ही मतपत्र डाल चुके हैं।
चुनाव अधिकारियों और विशेषज्ञों ने कहा है कि देश को इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि मंगलवार को नतीजे नहीं आएंगे। ट्रंप-बाइडन की इस चुनावी दौड़ के अलावा यूएस हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स की सभी 435 सीटों और सीनेट की 100 में से 35 सीटों के उम्मीदवार भी मैदान में हैं। इसके अलावा गवर्नरों के भी चुनाव होने हैं।
चुनाव महामारी के बीच हो रहे हैं और अब तक देश में 92,84,261 मामले और 2,31,507 मौतें दर्ज हो चुकी हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। इसके अलावा मतदाता पक्षपातपूर्ण झगड़ों, हिंसक नस्लीय संघर्ष और बिगड़ते सामाजिक अन्याय को लेकर चिंतित हैं।
--आईएएनएस
इस्लामाबाद, 3 नवंबर | पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान (जीबी) को अपना पांचवां प्रांत घोषित करने की आधिकारिक घोषणा करने की ओर अग्रसर है। इस बीच नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच बयानों की गर्माहट देखी जा रही है।
एक ताजा बयान में, पाकिस्तान ने जीबी के बारे में भारतीय विदेश मंत्रालय (एमईए) के बयान को 'स्पष्ट रूप से खारिज' कर दिया है, जिसमें कहा गया है कि नई दिल्ली के पास इस मुद्दे पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है।
एक प्रेस विज्ञप्ति में विदेश कार्यालय के प्रवक्ता जाहिद हाफिज चौधरी ने कहा, "भारत के पास इस मुद्दे पर कोई भी सुने जाने का अधिकार (लोकस स्टैंडी) नहीं है, चाहे वह कानूनी हो, नैतिक हो या ऐतिहासिक।"
चौधरी ने कहा, "73 से अधिक वर्षो से भारत जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों पर अवैध और जबरन कब्जा किए हुए है।
उन्होंने कहा, "भारत द्वारा झूठे और मनगढ़ंत दावों की पुनरावृत्ति न तो तथ्य को बदल सकती है और न ही भारत के अवैध कार्यो से ध्यान हटा सकती है। अवैध रूप से अधिकृत जम्मू-कश्मीर में सबसे खराब मानवाधिकारों के उल्लंघन के परिणामस्वरूप मानवीय संकट जारी है।"
एमईए के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव की टिप्पणी के जवाब में पाकिस्तान का यह बयान सामने आया है, जिसने भारत ने जीबी में किसी भी प्रकार के भौतिक परिवर्तनों का विरोध करते हुए इसे भारतीय क्षेत्र का हिस्सा होने का दावा किया है।
हालांकि, पाकिस्तान का कहना है कि यह फैसला जीबी के लोगों की दीर्घकालिक मांग का हिस्सा है।
चौधरी ने कहा, "प्रशासनिक, राजनीतिक और आर्थिक सुधार जीबी के लोगों की एक लंबे समय से मांग थी। परिकल्पित प्रांतीय सुधारों ने क्षेत्र की स्वदेशी आबादी की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित किया है।"
उन्होंने कहा, "पाकिस्तान ने भारत से जम्मू-कश्मीर के अवैध और जबरन कब्जे को तुरंत समाप्त करने का आह्वान किया है।"
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने घोषणा की है कि उनकी सरकार कम से कम 20 लाख लोगों की आबादी वाले गिलगित बाल्टिस्तान को प्रांत का दर्जा देगी।
खान ने कहा, "हमने गिलगित-बाल्टिस्तान को अस्थायी प्रांतीय दर्जा देने का फैसला किया है, जो लंबे समय से यहां की मांग रही है।"
दूसरी ओर, भारत ने इस्लामाबाद के फैसले को खारिज कर दिया है।
रविवार को विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान को पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) और गिलगित-बाल्टिस्तान खाली करने की चेतावनी दी थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा था, "पाकिस्तान ने 1947 से गिलगित-बाल्टिस्तान और पीओके पर अवैध कब्जा करके रखा है। पाकिस्तान वहां मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है। पाकिस्तान भारत के इस हिस्से पर अवैध कब्जे को फौरन छोड़े। गिलगित-बाल्टिस्तान और पीओके को तुरंत खाली किया जाए।"
--आईएएनएस
इस्लामाबाद, 3 नवंबर | पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि एक समान शिक्षा प्रणाली देश में वर्ग आधारित प्रणाली को समाप्त कर देगी, क्योंकि सभी बच्चों को समान अवसर मिलेंगे। डॉन न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री खान ने सोमवार को एक समान शिक्षा पाठ्यक्रम पर एक बैठक की अध्यक्षता करते हुए यह टिप्पणी की।
योजना के अनुसार, पाकिस्तान में 2022 में कक्षा छठी से आठवीं तक और 2023 में नौवीं से 12वीं तक समान शिक्षा शुरू की जाएगी।
खान ने कहा कि नई नीति से न केवल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि सभी छात्रों को समान अवसर मिलेंगे।
उन्होंने समान शिक्षा प्रणाली के उचित कार्यान्वयन के लिए शिक्षकों की क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि नई प्रणाली अन्य देशों के लिए भी एक आदर्श होनी चाहिए।
बैठक के बाद डॉन न्यूज से बात करते हुए, संघीय शिक्षा मंत्री शफाकत महमूद ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अप्रैल 2021 में देश के सभी स्कूलों और धार्मिक सेमिनारों में प्राथमिक स्तर पर समान शिक्षा प्रणाली लागू हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि नए पाठ्यक्रम पर आधारित पुस्तकें पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं।
--आईएएनएस
नई दिल्ली/लाहौर, 3 नवंबर| हिंदू समुदाय के खिलाफ अपनी टिप्पणी के लिए सुर्खियों में रहने वाले फैयाजुल हसन चौहान को पंजाब के प्रांतीय सूचना मंत्री के पद से हटा दिया गया है। फिरदौस आशिक अवान, जो पहले सूचना और प्रसारण मामले पर प्रधानमंत्री की विशेष सहायक के रूप में काम कर चुकी हैं, उन्हें मुख्यमंत्री उस्मान बुजदार के लिए सूचना मामले पर विशेष सहायक नियुक्त किया गया है।
पाकिस्तानी समाचार पत्र डॉन के मुताबिक, चौहान, जो पहले उपनिवेश और सूचना एवं प्रसारण का अतिरिक्त प्रभार रखते थे, को सोमवार को हटा दिया गया था और अब केवल पंजाब के उपनिवेश मंत्री के पोर्टफोलियो को संभालेंगे।
स्पष्ट रूप से यह कदम चौहान के लिए हैरान कर देने वाला है। जिन्होंने डॉन द्वारा संपर्क करने पर बताया कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
यह दूसरी बार है जब चौहान को सूचना मंत्री के पद से हटाया गया है।
हिंदू समुदाय के लिए अपमानजनक टिप्पणी को लेकर सोशल मीडिया पर भारी आलोचना का सामना करने के बाद चौहान को पिछले साल मार्च में प्रांतीय सूचना मंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया गया था।
फिर कुछ महीनों बाद उन्हें फिर से नियुक्त कर दिया गया था।
मई 2017 में पीटीआई में शामिल होने से पहले फिरदौस अवान, जो पीपीपी की दिग्गज नेता रही हैं, ने पीटीआई प्रमुख के पद ग्रहण करने के आठ महीने बाद अप्रैल 2019 में सूचना और प्रसारण मामलों पर प्रधानमंत्री इमरान खान की विशेष सहायक बनाई गई।
एक ट्वीट में, अवान ने कहा कि वह सम्मानित महसूस कर रही हैं कि इमरान खान ने उन पर भरोसा दिखाया है। उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री का भी आभार जताया है। (आईएएनएस)
न्यूयॉर्क, 3 नवंबर (आईएएनएस)| न्यूयॉर्क सिटी के मेयर बिल डी ब्लासियो ने मंगलवार को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की वैधता पर संदेह करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर निशाना साधा है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने ट्विटर पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में मेयर के बयान के हवाले से कहा, हम सभी चुनाव की वैधता को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति के सवाल से दुखी हैं। हमने पहले ऐसा कभी नहीं देखा था। हमने कभी भी राष्ट्रपति को इस तरह से मतदाताओं के दमन और उत्पीड़न को प्रोत्साहित करते नहीं देखा है।
रविवार शाम पत्रकारों से बात करते हुए, ट्रंप ने कहा था, मुझे लगता है कि यह आश्चर्यजनक है कि हम चुनाव की रात चुनाव के परिणामों को नहीं जान सकते। जैसे ही चुनाव खत्म हो जाएगा, हम अपने वकीलों के साथ बैठेंगे।
वीडियो में, मेयर ने जोर देकर कहा कि यह अमेरिकियों का फैसला है कि देश कौन चलाएगा।
उन्होंने कहा, ये अमेरिकी लोगों को तय करना है कि राष्ट्रपति कौन होगा। और, जैसे न्यू यॉर्कर्स - एक मिलियन से अधिक न्यू यॉर्कर्स ने जल्दी मतदान किया है - 95 मिलियन से अधिक अमेरिकियों ने जल्दी मतदान किया है, जो आश्चर्यजनक और प्रेरणादायक है।
नौ दिवसीय प्रारंभिक मतदान रविवार को न्यूयॉर्क में संपन्न हुआ।
इस साल अमेरिका के सबसे बड़े शहर में मतदाता संख्या में वृद्धि हुई है, देश के अन्य राज्यों की तरह - 150 मिलियन मतदाताओं के अनुमानित मतदान के लगभग दो-तिहाई ने देशव्यापी शुरूआती मतदान में अपने मतपत्र डाले हैं।
राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अमेरिकी चुनाव की अखंडता पर संदेह जाहिर किया है. रविवार को उन्होंने कहा कि वोटों की गिनती की प्रक्रिया का लंबे समय तक चलना "भयावह" है.
अमेरिका में 3 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव के पहले डॉनल्ड ट्रंप और उनके प्रतिद्वंद्वी ने आखिरी जोर लगा दिया है. जनमत सर्वेक्षणों में जो बाइडेन पिछड़ते नजर आ रहे हैं तो आखिरी समय में महत्वपूर्ण राज्यों में ट्रंप आगे बढ़ते दिख रहे हैं. वहीं बाइडेन ने पेंसिल्वेनिया समेत दो अहम राज्यों के वोटरों को घर से निकलकर मतदान करने का आग्रह किया है.
अमेरिकी मतदाता इस बार रिकॉर्ड मतदान कर रहे हैं और डाक से मतदान के जरिए अब तक छह करोड़ लोगों ने अपना मत डाल दिया है. इनकी गिनती में कई दिन लग सकते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि मंगलवार रात विजयी उम्मीदवार घोषित नहीं हो पाएगा. ट्रंप ने नॉर्थ कैरोलिना में एक रैली के पहले पत्रकारों से कहा, "मुझे नहीं लगता है कि यह उचित है कि चुनाव के बाद लंबे समय के लिए इंतजार करना पड़े."
पेंसिल्वेनिया जैसे कई राज्यों में चुनाव वाले दिन तक मतों की गिनती की प्रक्रिया शुरू नहीं होती है.
ट्रंप बिना तथ्यों के लगातार आरोप लगाते आए हैं कि डाक से मतदान में फर्जीवाड़ा हो सकता है. हालांकि चुनाव से जुड़े विशेषज्ञ कहते हैं कि अमेरिकी चुनाव में ऐसा करना बहुत ही असाधारण बात है. 2016 के चुनाव में हर चार में से एक वोट डाक के जरिए डाले गए थे. कोरोना वायरस महामारी के समय डाक से मतदान को डेमोक्रेट्स वोट डालने के लिए सुरक्षित तरीका बताते रहे हैं जबकि ट्रंप और रिपब्लिकंस चुनाव वाले दिन वैयक्तिक रूप से भारी मतदान की उम्मीद लगाए बैठे हैं.
ट्रंप अपनाएंगे कानूनी रास्ता
ट्रंप ने आगे कोई विवरण नहीं देते हुए कहा, "जैसे ही चुनाव खत्म होगा उसी रात हम अपने वकीलों के साथ जाएंगे." साथ ही ट्रंप ने उस रिपोर्ट को नकार दिया है, जिसमें कहा गया था कि वह चुनाव के बाद मंगलवार को समय से पहले ही अपनी जीत की घोषणा करने की योजना बना रहे हैं, लेकिन ट्रंप ने यह साफ जरूर किया है कि चुनाव के बाद वह कानूनी लड़ाई की तैयारी जरुर कर रहे हैं. एक्सिओस रिपोर्ट पर जब बाइडेन से पूछा गया तो उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति इस चुनाव को चुरा नहीं सकते."
प्रचार के दौरान अपनी पोती के साथ जो बाइडेन.
चुनाव में जीत के लिए इलेक्टोरल कॉलेज के 270 वोट काफी अहम हैं और दोनों नेताओं के बीच टक्कर कड़ी दिख रही है. चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले राज्यों में ट्रंप ने ताड़बतोड़ रैलियां की तो वहीं बाइडेन भी अपनी ओर हवा का रुख करने के लिए लोगों से वोट की अपील कर रहे हैं. फिलाडेल्फिया की एक रैली में बाइडेन ने कहा, "देश को मतदान करने से रोकने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं है. उन्हें पता है कि अगर आपको अपने अधिकार के इस्तेमाल का मौका मिला तो उनके पास कोई विकल्प नहीं होगा. अमेरिकी जनता की आवाज को दबाया नहीं जा सकता है."
एए/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)(dw.com)
वियना, 3 नवंबर | ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में छह अलग-अलग स्थानों पर हुई गोलीबारी की घटनाओं में सात लोगों की मौत हो गई और एक पुलिस अधिकारी सहित कई लोग घायल हो गए। मीडिया ने यह जानकारी दी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, ऑस्ट्रिया के गृह मंत्री कार्ल नेहमर ने बताया कि सोमवार शाम को हुई गोलीबारी की घटनाएं आतंकवादी हमला मालूम पड़ती है।
मंत्री ने ऑस्ट्रियन ब्रॉडकास्टर ओआरएफ से कहा, "हमला अभी भी जारी है।"
स्थानीय मीडिया ने बताया कि हमले में कम से कम सात लोग मारे गए हैं।
वियाना पुलिस ने ट्विटर पर कहा कि कई लोग घायल हुए हैं। मंत्रालय के एक प्रवक्ता के अनुसार, स्वीडनप्लाट्ज के पास गोलीबारी में एक पुलिस अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गए हैं।
एक निजी ब्रॉडकास्टर ओई 24 द्वारा प्रसारित वीडियो में एक नकाबपोश हमनलावर को दिखाया गया जिसने कम से कम दो शॉट फायर किए। एक अन्य वीडियो में एक रेस्तरां के बाहर खूनी मंजर दिखाई दिया।
वियना में यहूदी समुदाय के प्रेसीडेंट ऑस्कर डॉयच ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि अभी स्पष्ट नहीं है कि हमलावरों ने यहूदी धार्मिक स्थल को निशाना बनाया है या नहीं है।(आईएएनएस)
ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में कुछ हथियारबंद बंदूकधारियों ने छह जगहों पर गोलीबारी की है जिसमें पुलिस के अनुसार कम-से-कम दो लोग मारे गए हैं और कई लोग घायल हो गए हैं.
ऑस्ट्रिया के चांसलर सेबेल्टियन क्रूज़ ने इसे एक 'आतंकवादी हमला' बताया है और कहा है कि एक हमलावर मारा गया है.
ऑस्ट्रिया के गृह मंत्री कार्ल नेहमा ने बताया है कि अभी कम-से-कम एक और हमलावर की तलाश की जा रही है.
गोलीबारी वियना के सेंट्रल सिनेगॉग (यहूदी उपासना स्थल) के पास हुई मगर ये स्पष्ट नहीं है कि हमले का निशाना यही जगह थी.
वियना के मेयर ने बताया कि एक व्यक्ति की मौत गोलीबारी की जगह ही हो गई जबकि एक अन्य महिला ने घायल होने के बाद अस्पताल में दम तोड़ दिया.
समझा जा रहा है कि अभी 14 लोग अस्पताल में भर्ती हैं जिनमें छह की स्थिति गंभीर है. घायलों में एक पुलिसकर्मी भी शामिल है.
हमला ऑस्ट्रिया में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बाद पूरे देश में नई सख़्तियाँ लागू किए जाने के कुछ ही घंटे पहले हुआ.
उस समय बहुत सारे लोग बारों और रेस्तरां में लुत्फ़ उठा रहे थे जिन्हें अब नवंबर के अंत तक बंद कर दिया गया है.
हमले के बारे में क्या पता है?
पुलिस का कहना है कि गोलीबारी की ये घटना वियना के साइटेनस्टेटेनगास सिनेगॉग के पास हुई जो शहर का मुख्य यहूदी मंदिर है.
यहूदी समुदाय के एक नेता ऑस्कर ड्यूश ने ट्वीट किया कि हमला स्थानीय समयानुसार रात आठ बजे हुआ जब सिनेगॉग बंद था.
ऑस्ट्रियाई मीडिया में बताया गया है कि सिनेगॉग की सुरक्षा कर रहा एक पुलिसकर्मी हमले में घायल हो गया.
अभी ये स्पष्ट नहीं है कि गोलीबारी में कितने हमलावर शामिल थे. स्थानीय मीडिया ने गृह मंत्रालय के हवाले से कहा है कि एक व्यक्ति को गिरफ़्तार कर लिया गया है.
सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए फुटेज में लोग भागते दिख रहे हैं. समाचार एजेंसी एएफ़पी के अनुसार एक चश्मदीद ने सरकारी प्रसारक ओआरएफ़ से कहा कि आवाज़ पटाखे की तरह थी लेकिन बाद में पता चला कि गोलीबारी हुई है.
फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ट्वीट कर कहा है कि वियना में हमला दुखद है. मैक्रों ने कहा, ''फ़्रांस के बाद हमारे क़रीब देश ऑस्ट्रिया को निशाना बनाया गया है. हमारे दुश्मनों को पता होना चाहिए कि हम झुकेंगे नहीं और साथ मिलकर लड़ेंगे.''(bbc)
काबुल, 2 नवंबर : अफ़ग़ानिस्तान के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार काबुल यूनिवर्सिटी पर होने वाले हमले में कम से कम 19 लोगों की मौत हुई है और 22 घायल हैं.
अफ़ग़ानिस्तान के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता तारिक़ आर्यान का कहना है कि तीन बंदूक़धारी यूनिवर्सिटी परिसर में दाख़िल हुए जिसके बाद कैम्पस में भगदड़ मच गई और छात्र-छात्रा चारों तरफ़ भागने लगे. यूनिवर्सिटी परिसर में ईरानी बुक फ़ेयर का उद्घाटन होने वाला था. सुरक्षाकर्मियों ने कैम्पस को घेर लिया और हमलावरों की फ़ायरिंग का जवाब दिया.
तालिबान ने इस हमले में शामिल होने से इनकार किया है और हमले की निंदा की है. अफ़ग़ानिस्तान में शैक्षणिक संस्थानों को पहले भी निशाना बनाया जाता रहा है.
तालिबान ने हमले से इनकार किया
ख़ुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाले चरमपंथी संगठन ने हाल के वर्षों में अफ़ग़ानिस्तान में शिक्षण संस्थानों को निशाना बनाया है. पिछले महीने काबुल के एक ट्यूशन सेंटर पर हमला किया गया था जिसमें 24 लोग मारे गए थे.
आईएस ने 2018 में काबुल यूनिवर्सिटी पर हुए हमले की भी ज़िम्मेदारी ली थी जिसमें दर्जनों लोग मारे गए थे. पिछले कुछ महीनों में जब से तालिबान ने सरकार से दोहा में शांति वार्ता शुरू की है, तब से अफ़ग़ानिस्तान में चरमपंथी हमलों में इज़ाफ़ा देखा जा रहा है.
यूएन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बीबीसी से पिछले हफ़्ते कहा था कि अभी भी तालिबान के अंदर अल-क़ायदा का एक गुट सक्रिय है, हालांकि तालिबान ने अमरीका को आश्वस्त किया था कि वो अल-क़ायदा से हर तरह के संबंध तोड़ देगा.
सोमवार को हुए हमले के बाद अफ़ग़ानिस्तान के एक पत्रकार ने ट्वीट किया, "अफ़ग़ानिस्तान में रोज़ाना होने वाली हिंसा से कोई भी जगह और कोई भी आदमी सुरक्षित नहीं है. अब किताबें, क़लम और छात्र भी सुरक्षित नहीं हैं."
एक हफ़्ते पहले काबुल के एक शिक्षण संस्थान पर हुए चरमपंथी हमले में कम से कम 40 छात्र मारे गए थे. यह संस्थान शिया बहुल इलाक़े में स्थित था. उस समय इस्लामिक स्टेट ने हमले की ज़िम्मेदारी ली थी.
सोमवार को काबुल यूनिवर्सिटी पर हुए हमले की निंदा करते हुए तालिबान ने इशारा किया कि 'अफ़ग़ानिस्तान प्रशासन' से जुड़े 'बुरे तत्व' इस हमले के पीछे हो सकते हैं.
लेकिन अफ़ग़ानिस्तान का मानना है कि इस तरह के हमलों के पीछे कुछ ऐसे हथियारबंद गुटों का हाथ हो सकता है जो कि अफ़ग़ानिस्तान में अफ़रा-तफ़री मचाना चाहते हैं और शांति की तमाम उम्मीदों पर पानी फेरना चाहते हैं.
अफ़ग़ानिस्तान इस समय न केवल इस तरह की हिंसा का शिकार है बल्कि देश के कई इलाक़ों में उसके सुरक्षाकर्मियों और तालिबान लड़ाकों के बीच भी हिंसक झड़पें हो रही हैं. अब सभी लोग यही सोच रहे हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में यह सब कभी ख़त्म भी होगा या नहीं? (bbc.com/hindi)
(DW)
अटलांटिक पार की साझेदारी पर चार साल के ट्रंप के राष्ट्रपति काल की मार पड़ी है. हालांकि कई लोगों का मानना है कि अगर डेमोक्रैटिक उम्मीदवार जो बाइडेन मंगलवार को अमेरिकी चुनाव में जीत जाते हैं तो स्थिति बदल सकती है. ब्रसेल्स के थिंक टैंक यूरोपीयन पॉलिसी सेंटर के निदेशक यानीस इमानुलिदिस का मानना है, "कोई भी इतना सीधा सादा नहीं है जो यह सोचे कि हम एकदम पुरानी स्थिति में लौट जाएंगे. आप पुराने अच्छे दिनों में वापस नहीं जाएंगे. तो अटलांटिक पार के रिश्तों में तब भी समस्याएं होंगी. हालांकि बाइडेन की प्रेसिडेंसी के बारे में उम्मीद की जा सकती है कि चीजें काफी बेहतर होंगी."
यानीस इमानुलिदिस को आशंका है कि अगर बाइडेन ट्रंप को व्हाइट हाउस से हटाने में नाकाम रहे तो अमेरिका और यूरोपीय संघ के रिश्ते और ज्यादा खराब होंगे. इमानुलिदिस ने डीडब्ल्यू से कहा, "बहुत संभव है कि वह (ट्रंप) अपने दूसरे कार्यकाल में यूरोप पर पहले कार्यकाल से ज्यादा दबाव डालेंगे. उन्होंने दूसरे वैश्विक खिलाड़ियों की तुलना में यूरोप को ज्यादा बुरा माना है."
अमेरिका यूरोप सहयोग की जरूरत
यूरोपीय संसद में ग्रीन पार्टी के सांसद और विदेश नीति के विशेषज्ञ राइनहार्ड ब्यूटीकोफर ट्रंप के भूराजनैतिक बयान को ज्यादा महत्व नहीं देते. उनका कहना है, "जब हम राष्ट्रपति ट्रंप को यह कहते सुनते हैं कि यूरोपीय संघ एक दुश्मन है तो इसका मतलब यह नहीं है कि यूरोपीय लोगों के साथ संवाद में अमेरिका मजबूत है." ब्यूटीकोफर का कहना है कि अमेरिका की संसद और राजधानी में अब भी ऐसे बहुत से राजनेता मौजूद हैं जिन्हें चीन, रूस और दूसरे वैश्विक खिलाड़ियों से निबटने के लिए सहयोग की जरूरत होगी.
जो बाइडेन ऐसा नहीं है कि राष्ट्रपति के रूप में हर काम ट्रंप से अलग ही करेंगे, लेकिन यह मानना सही होगा कि वह अमेरिकी सहयोगियों का समर्थन करेंगे, उनकी बात सुनेंगे और साझा आधार तलाशेंगे.
अटलांटिक पार भरोसे में गिरावट
इसी साल गर्मियों में ब्रसेल्स के थिंक टैंक यूरोपीयन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस ने एक स्टडी की. इस रिसर्च ने दिखाया कि यूरोपीय लोगों का भरोसा अमेरिका पर से एक ऐसे सहयोगी के रूप में खत्म हो गया है जिसके साथ उन्होंने करीबी से लंबे समय तक सहयोग किया था. अमेरिका में ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों और कोविड-19 को संभालने को लेकर "घरेलू अव्यवस्था" ने यूरोप में अमेरिका की नकारात्मक छवि बनाने में बड़ा योगदान किया है.
यूरोपीयन काउंसिल के रिसर्चरों का मानना है कि राष्ट्रपति के रूप में बाइडेन का रुख यूरोप के लिए नया होगा. रिसर्चर यह भी मानते हैं कि अमेरिका 2015 के पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते और डब्ल्यूएचओ में दोबारा शामिल होगा और नाटो को भी मजबूत करेगा. हालांकि डेमोक्रैट और रिपब्लिकन यूरोपीय देशों पर सैन्य सहयोग संगठन के बजट में ज्यादा योगदान के लिए दबाव बनाना जारी रखेंगे.
बराक ओबामा समेत ट्रंप के कई पूर्ववर्ती पहले ही यूरोप पर सैन्य खर्च बढ़ाने के लिए दबाव बनाते रहे हैं. अगर ट्रंप दोबारा चुने जाते हैं तो नाटो को आगे आने वाले कठिन वक्त के लिए तैयार रहना होगा. यह भविष्यवाणी ट्रंप के सुरक्षा सलाहकार रहे जॉन बोल्टन ने की है, जिन्हें ट्रंप ने पद से हटा दिया था. बोल्टन के मुताबिक ट्रंप ने नाटो से अमेरिका को बाहर निकालने की भी धमकी दी है जिसका मतलब होगा कि यह गठबंधन ही खत्म हो जाएगा.
बाइडेन यूरोप से क्या चाहते हैं
नाटो की यूरोप में भी आलोचना हो रही है. फ्रेंच राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने एक बार कहा था कि यह गठबंधन "दिमागी रूप से मौत" के दौर से गुजर रहा है और उनका यह भी कहना है कि ज्यादा "यूरोपीय संप्रभुता" की जरूरत है. ऐसा सोचने वाले माक्रों अकेले नेता नहीं हैं, कई और यूरोपीय देशों के सरकार प्रमुख यूरोपीय संघ के लिए ट्रंप के दौर वाले अमेरिका से ज्यादा भूरणनीतिक भूमिका देखते हैं. यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन चाहती हैं कि सबसे पहले नियम आधारित व्यवस्था को लागू किया जाए. सितंबर में यूरोपीय संसद में भाषण के दौरान उन्होंने कहा, "सच्चाई यह भी है कि बहुस्तरीय तंत्र को सुधारने और पुनर्जीवित करने की इतनी अधिक जरूरत पहले कभी नहीं रही. हमारे वैश्विक तंत्र को लकवा मार गया है और वह रेंग रहा है. बड़ी ताकतें या तो संस्थाओं से बाहर निकल रही हैं या फिर उन्हें अपने हितों का बंधक बना ले रही हैं."
यूरोपीय संघ में बहुत से लोगों को उम्मीद है कि बाइडेन का राष्ट्रपति बनना कई सारे बदलाव ले कर आएगा हालांकि इमानुलिदिस भ्रम पालने से खबरदार करते हैं. उनका मानना है कि यूरोप ने चीन के साथ अब तक जो अच्छा रवैया रखा है वह खासतौर से डेमोक्रैटिक राष्ट्रपति को पसंद नहीं आएगा. इमानुलिदिस ने कहा, "उदाहरण के लिए एक चुनौती हो सकती है कि बाइडेन प्रशासन कहे, 'हम बहुपक्षीय मुद्दों पर सहयोग के लिए तैयार हैं, हम जलवायु पर सहयोग के लिए तैयार हैं, हम डब्ल्यूटीओ पर सहयोग के लिए तैयार हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि इसके बदले में आप सख्त हों, उदाहरण के लिए चीन पर."
बाइडेन के शासन में अमेरिका यूरोप से चीन की तकनीकी कंपनियां जैसे कि हुआवे पर प्रतिबंध को बिना किसी अपवाद के लागू करने की मांग करता रह सकता है और यह भी कि वह दक्षिण सागर में सैन्य उकसावे की गतिविधियों पर प्रतिक्रिया दे.
कारोबार के मुद्दे पर एकजुट यूरोपीय संघ
मंगलवार को अमेरिका के चुनाव में कोई भी जीते यूरोपीय देश तुरंत कारोबारी रिश्ते पर चर्चा करना चाहते हैं. यूरोपीय संघ से आयात होने वाली कारों और दूसरी चीजों पर भारी टैक्स लगाने की ट्रंप की धमकी की तलवार अब भी लटक रही है. जुलाई 2018 में यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष के साथ हुई बातचीत में विवाद नहीं सुलझा था और तब दोनों पक्षों ने इस मुद्दे को एक तरह के युद्धविराम जैसे समझौते से रोक रखा है.
उस वक्त ट्रंप ने दुनिया को हैरान करते हुए यूरोपीय संघ को अमेरिका का सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार कहा. बावजूद इसके यह मसला ट्रंप और बाइडेन के चुनाव अभियान से गायब है.
यूरोपीय संघ के नए व्यापार आयुक्त वाल्दिस दोमब्रोव्स्किस का मानना है कि विवाद को दूर किया जाना चाहिए. सितंबर में एक कारोबारी सम्मेलन में उन्होंने कहा, "यह वो समय है जब हमें अपने दोस्तों को करीब रखना चाहिए और उन गठबंधनों को याद करना चाहिए जो जरूरी हैं. अब भी यूरोपीय संघ और अमेरिका के बीच कुछ विवाद हैं और मेरे विचार में हमें यह सलाह मिल रही है कि हम इसे जल्दी से निपटा दें."
विश्लेषकों का मानना है कि यूरोपीय सरकारों के नेता समय के साथ बाइडेन से रिश्ते बेहतर कर सकेंगे क्योंकि उनका झुकाव उदार पक्ष की ओर है और वह नारों से हल्लाबोल नहीं करते हैं. इमानुलिदिस के मुताबिक डॉनल्ड ट्रंप और जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के रिश्तों में भी कोई केमिस्ट्री नहीं दिखती. पोलैंड और दूसरे पूर्वी यूरोपीय देश खासतौर से लोकलुभावन नेता ट्रंप के ज्यादा करीब दिखते हैं.
इन सबके बावजूद इमानुलिदिस मानते हैं कि अमेरिका के सामने अपने हितों की रक्षा के लिए यूरोप एकजुट रहेगा, ओवल ऑफिस में चाहे कोई भी बैठे.
डॉनल्ड ट्रम्प के लगभग चार वर्षों के शासन के बाद, तथ्य समर्थित वस्तुनिष्ठ रिपोर्टिंग और राजनीतिक बहस के लिए बहुत कम गुंजाइश बची है. डॉयचे वेले की इनेस पोल का कहना है कि अगर कुछ नहीं बदला तो अमेरिका के बिखरने का जोखिम है.
संयुक्त राज्य अमेरिका हमेशा विरोधाभासों का देश रहा है, एक ध्रुवीकृत राष्ट्र. केवल दो राजनीतिक पार्टियां हैं, डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन जो राजनीति में वास्तविक भूमिका निभाती हैं. सरकारों को गठबंधन सरकार बनाने के लिए समझौते की जरूरत नहीं होती, या तो वे बहुमत से जीतते हैं, या चुनाव हार जाते हैं.
यह दलगत राजनीति सदियों से मीडिया में झलकती रही है. यहां तक कि 18वीं सदी में पहली बार नियमित रूप से प्रकाशित होने वाले अमेरिकी अखबार भी दिन के महत्वपूर्ण राजनीतिक फैसलों पर स्पष्ट रुख अपनाते थे. आज, प्रसारक, अखबार और अन्य प्रकाशन, दूसरे कई देशों की तरह एक खास राजनीतिक लाइन पर चलते हैं, और लोग को आम तौर पर उन्हीं स्रोतों से खबर पाना चाहते हैं जो उनके राजनीतिक विचारों से मेल खाता हो.
मीडिया अब विश्वसनीय नहीं रहा
डॉनल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद पर लगभग चार वर्षों के बाद, दो चीजें अब मौलिक रूप से अलग हैं:
अमेरिकी मीडिया संगठनों ने वस्तुनिष्ठ राजनीतिक रिपोर्टिंग की कोशिश छोड़ दी है, और अब राजनीतिक खिलाड़ियों में तब्दील हो गए हैं.
ट्रम्प के इन नियमित आरोपों का असर पड़ा है कि मीडिया "झूठ" और "फर्जी खबर" के अलावा कुछ भी नहीं है.
पहले कभी भी पत्रकारिता के पेशे की विश्वसनीयता इतनी कम नहीं रही. दोनों बातें निश्चित रूप से एक दूसरे से जुड़ी हैं, और सोशल मीडिया ने इसमें बढ़ावा देने वाले की भूमिका निभाई है. अमेरिका में विवादास्पद राजनीतिक अवधारणाओं और संभावित समाधानों पर चर्चा के लिए कम ही स्थान बचे हैं. इस चुनाव अभियान ने हमें इसका परिणाम दिखाया है, अधिक से अधिक लोग केवल अपने छोटे से सोशल मीडिया संपर्कों पर जानकारी के लिए भरोसा कर रहे हैं. इसके भयानक नतीजे हुए हैं, और साजिश की बात करने वालों और लोकतंत्र के दुश्मनों के लिए दरवाजा खुल गया है.
एकतरफा होने में चरम पर पहुंचने के कारण अब मीडिया को भी विश्वसनीय स्रोत के रूप में नहीं देखा जाता. तीखी और ध्रुवीकरण करने वाली सुर्खियों को महत्व देकर, अल्गोरिदम अब मजबूती से दोनों राजनीतिक खेमों में बहस को नियंत्रित कर रहे हैं.
तथ्यों और वैज्ञानिक निष्कर्षों में इन बुलबुलों को भेदने का दम नहीं रहा, जो ट्रम्प के दावों से दब गए हैं. पिछले कुछ हफ्तों में मैंने औसत अमेरिकियों से बातचीत में खुद इस ताकत को देखा है, जो दावा करते हैं कि हिलेरी क्लिंटन युवा बच्चों को अपने तहखाने में बंद रखती हैं या कि COVID-19 एक मनहूस समूह का दुनिया का नियंत्रण करने के प्रयास से ज्यादा कुछ नहीं.
अमेरिका के बिखड़ने का खतरा
राजनीतिक परिदृश्य के दूसरी तरफ उदासीन, समृद्ध शहर वासी हैं जो पीढ़ियों के लिए फैक्टरी की नौकरियों पर निर्भर परिवारों का वैश्विक नजरिया मानने को तैयार नहीं हैं, नौकरियां जो लगातार कम होती जा रही हैं. या ऐसे लोग कोयला खनन पर निर्भर थे, जिनका अब कोई भविष्य नहीं है. स्थिति डरावनी है, और डरावनी होनी भी चाहिए. अमेरिका इस समय कमजोर है और कई कारणों से वह बिखर सकता है.
आंशिक रूप से शिक्षा प्रणाली के कारण, लेकिन आबादी के विकास के कारण भी. इस तथ्य ने बहुत सारे लोगों को नर्वस कर दिया है कि अल्पसंख्यक आबादी बढ़ रही है और करीब दो दशक में श्वेत प्रभुत्व खत्म हो जाएगा, कम से कम संख्या के लिहाज से. इसने देश के कई भागों में अभी भी मौजूद गहरे बैठे नस्लवाद को उभार दिया है.
तथ्य और वस्तुनिष्ठता की चाह
लोकतंत्र बातचीत और बहस से चलता है, बेहतरीन समाधान पर गर्मागर्म चर्चा से और ये सिर्फ अमेरिका में ही नहीं. लेकिन ये सब केवल कुछ खास शर्तों के तहत मौजूद रह सकते हैं, और उनमें एक यह है कि तथ्यों को हमेशा एक भूमिका निभानी चाहिए. उचित चर्चा संभव ही नहीं है अगर हर तर्क का मुकाबला "फेक न्यूज" के आरोप से हो.
यदि इस प्रवृत्ति को रोकना है, तो यह स्कूलों में स्पष्ट प्राथमिकताएं तय करके ही होगा. बच्चों को सोशल मीडिया से निपटना सीखना होगा, प्रोपेगैंडा को पहचानना होगा और एक्टिविज्म के बारे में जानना होगा. उन्हें पता होना चाहिए कि कौन सी वेबसाइटें विश्वसनीय हैं, और कौन से समूह नहीं हैं.
यहां मीडिया प्रोफेशनल एक भूमिका निभा सकते हैं. हमें खोई विश्वसनीयता फिर से हासिल करने और लोकतांत्रिक समाज में प्रासंगिक बने रहने के लिए वस्तुनिष्ठता पर जोर देना होगा.
फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा है कि वो मुस्लिमों की भावनाओं को समझते हैं लेकिन कट्टर इस्लाम सभी के लिए ख़तरा है.
इमैनुएल मैक्रों ने ये बातें कतर के न्यूज़ चैनल अल जज़ीरा को दिए एक इंटरव्यू के दौरान कहीं. उन्होंने इंटरव्यू में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाने के बाद हुई हत्याओं, उनके बयान और मुस्लिम देशों के विरोध पर बात की.
राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा, ''मैं मुसलमानों की भावनाओं को समझता हूं जिन्हें पैगंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाए जाने से झटका लगा है. लेकिन, जिस 'कट्टर इस्लाम' से वो लड़ने की कोशिश कर रहे हैं वो सभी लोगों खासतौर पर मुसलमानों के लिए ख़तरा है.''
''मैं इन भावनाओं को समझता हूं और उनका सम्मान करता हूं. पर आपको अभी मेरी भूमिका समझनी होगी. मुझे इस भूमिका में दो काम करने हैं: शांति को बढ़ावा देना और इन अधिकारों की रक्षा करना.''
उन्होंने कहा कि वो अपने देश में बोलने, लिखने, विचार करने और चित्रित करने की आज़ादी का हमेशा बचाव करेंगे.
क्या कहा था मैक्रों ने
इसी महीने फ़्रांस में पैग़ंबर मोहम्मद के एक कार्टून को दिखाने वाले टीचर सैमुअल पेटी पर हमला कर एक व्यक्ति ने उनका गला काट दिया था. इसके बाद फ़्रांस में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. ये कार्टून एक फ़्रांसीसी पत्रिका शार्ली हेब्दो में प्रकाशित किए गए थे.
फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने पैग़ंबर मोहम्मद के विवादित कार्टून दिखाने के टीचर के फ़ैसले का बचाव किया और कहा कि वे मुसलमान कट्टरपंथी संगठनों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करेंगे.
उन्होंने कहा फ़्रांस के अनुमानित 60 लाख मुसलमानों के एक अल्पसंख्यक तबक़े से "काउंटर-सोसाइटी" पैदा होने का ख़तरा है. काउंटर सोसाइटी या काउंटर कल्चर का मतलब एक ऐसा समाज तैयार करना है जो कि उस देश के समाज की मूल संस्कृति से अलग होता है.
इमैनुएल मैक्रों के इस फ़ैसले पर कुछ मुसलमान बहुल देश में नाराज़गी ज़ाहिर की गई. कई देशों ने फ़्रांसीसी सामान के बहिष्कार की भी अपील की. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने कहा था कि अगर फ़्रांस में मुसलमानों का दमन होता है तो दुनिया के नेता मुसलमानों की सुरक्षा के लिए आगे आएं. फ़्रांसीसी लेबल वाले सामान न ख़रीदें.
इसके बाद फ़्रांस में नीस शहर के चर्च नॉट्रे-डेम बैसिलिका में एक व्यक्ति ने चाकू से हमला कर दो महिलाओं और एक पुरुष की जान ले ली.
इस पर राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा था, ''मेरा ये संदेश इस्लामिक आतंकवाद की मूर्खता झेलने वाले नीस और नीस के लोगों के लिए है. ये तीसरी बार है जब आपके शहर में आतंकवादी हमला हुआ है. आपके साथ पूरा देश खड़ा है. अगर हम पर फिर से हमला होता है तो यह हमारे मूल्यों के प्रति संकल्प, स्वतंत्रता को लेकर हमारी प्रतिबद्धता और आतंकवाद के सामने नहीं झुकने की वजह से होगा. हम किसी भी चीज़ के सामने नहीं झुकेंगे. आतंकवादी ख़तरों से निपटने के लिए हमने अपनी सुरक्षा और बढ़ा दी है.''
ग़लत तरीक़े से पेश हुआ बयान
राष्ट्रपति मैक्रों ने उनकी दिए बयानों को ग़लत तरीके से पेश किए जाने का भी आरोप लगाया.
उन्होंने कहा, ''मुझे लगता है कि मेरे शब्दों को लेकर बोले गए झूठ और उन्हें तोड़मरोड़ कर पेश करने के चलते ही इस तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं. इससे लोगों को लगा कि मैं उन कार्टून का समर्थन करता हूं.''
''वो कार्टून सरकारी प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं थे नहीं थे बल्कि स्वतंत्र और आज़ादा अख़बारों में दिए गए थे जो सरकार से जुड़े नहीं हैं.''
इमैनुएल मैक्रों ने इंटरव्यू में ये भी कहा कि इस्लाम को गलत तरीके से पेश करने से सबसे ज़्यादा नुक़सान मुसलमानों को ही होता है.
उन्होंने कहा, ''आज दुनिया में कई लोग इस्लाम को तोड़-मोरड़ रहे हैं. इस्लाम के नाम पर वो अपना बचाव करते हैं, हत्या करते हैं, कत्लेआम करते हैं. इस्लाम के नाम पर आज कुछ अतिवादी आंदोलन और व्यक्ति हिंसा कर रहे हैं. ये इस्लाम के लिए एक समस्या है क्योंकि मुस्लिम इसके पहले पीड़ित होते हैं. आतंकवाद के 80 प्रतिशत से ज़्यादा पीड़ित मुस्लिम होते है और ये सभी के लिए एक समस्या है.''
इस्लाम से नहीं आतंकवाद से लड़ाई
इमैनुएल मैक्रों ने इस इंटरव्यू के कुछ हिस्से अपने ट्वीटर अकाउंट पर पोस्ट करते हुए कुछ ट्वीट्स भी किए.
उन्होंने लिखा कि हिंसा को सही ठहराना मैं कभी स्वीकार नहीं करूंगा. मैं मानता हूं कि हमारा मकसद लोगों की आज़ादी और अधिकारों की रक्षा करना है. मैंने देखा है कि हाल के दिनों में बहुत से लोग फ़्रांस के बारे में अस्वीकार्य बातें कह रहे हैं. हमारे बारे में और मेरे बयान को लेकर कहे गए झूठों का समर्थन कर रहे हैं और बुरी स्थिति की तरफ़ बढ़ रही है.
इमैनुएल मैक्रों ने ट्वीट किया, "हम फ्रांस में इस्लाम से नहीं बल्कि इस्लाम के नाम पर किए जा रहे आतंकवाद से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं. इस आतंकवाद ने हमारे 300 लोगों की जान ले ली है.'' (bbc)
सैन फ्रांसिस्को, 2 नवंबर | एंड्रॉयड पर डार्क मोड फीचर को अपने करोड़ों की संख्या में यूजर्स के लिए लॉन्च करने के बाद फेसबुक ने अब आईओएस पर भी इसे लागू कर दिया है। मैकरूमर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, फेसबुक का इस पर काम काफी लंबे समय से जारी था। पहले अप्रैल में और फिर जून में कुछ यूजर्स तक इस फीचर को उपलब्ध कराया गया। यह एक टेस्टिंग प्रॉसेस था, जिसमें इस ओर इशारा किया गया कि कंपनी धीरे-धीरे इसे लागू करने की दिशा में काम कर रही है।
आईओएस पर इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए सबसे पहले ऐप स्टोर पर जाकर फेसबुक के हालिया संस्करण को अपडेट करे, इसके बाद इसे ओपन करें और फिर नेविगेशन बार के नीचे दाईं ओर मौजूद तीन लाइनों पर टैप करें।
आखिर में डार्क मोड के लिए 'सेटिंग्स और प्राइवेसी' पर क्लिक करें और ऑन, ऑफ या सिस्टम में से किसी एक का चुनाव करें।
इंस्टाग्राम, व्हाट्सअप और मैसेंजर पर 'डार्क मोड' सपोर्ट पहले ही मौजूद है।
--आईएएनएस
ढाका, 2 नवंबर| बांग्लादेश के कुमिल्ला शहर में इस्लाम धर्म के खिलाफ एक कथित फेसबुक पोस्ट के जरिए फैलाई गई अफवाह के चलते हिंदुओं के तीन घर जला दिए गए। मीडिया रिपोर्ट में इस हादसे की पुष्टि की गई है।
बीडीन्यूज 24 की रिपोर्ट के मुताबिक, यह हमला रविवार को शहर के मुरादनगर इलाके में हुआ।
बांगरा पुलिस स्टेशन के ओसी कमरुजमन तालुकदार ने कहा कि धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें से एक का नाम पुरबो धर है, जो एक किंडरगार्डेन स्कूल के हेडमास्टर हैं।
घटनास्थल का दौरा करने के बाद कुमिल्ला जिले के डिप्टी कमिश्नर मोहम्मद अब्दुल फजल मीर ने बीडीन्यूज 24 को बताया, "स्थिति अब नियंत्रण में है।"
डिप्टी कमिश्नर ने कहा कि स्थानीय लोगों ने तीनों घरों पर आगजनी की, जिनमें से दो गिरफ्तार व्यक्ति भी शामिल हैं। पुलिस के मुताबिक, फिलहाल फ्रांस में रहने वाले एक बांग्लोदेशी शख्स ने 'अमानवीय विचारधाराओं' के खिलाफ कदम उठाने के लिए फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन की प्रशंसा की।
एक स्थानीय निवासी के हवाले से बीडीन्यूज 24 ने बताया, स्कूल के हेडमास्टर पुरबो धर ने इस पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए मैक्रॉन की कार्रवाई पर अपना समर्थन जताया। हंगामा उस वक्त हुआ जब उस पोस्ट और उस पर की गई टिप्पणी के एक स्क्रीनशॉट को इस दावे के साथ फैलाया गया कि हेडमास्टर ने पैगंबर के बने एक कार्टून का समर्थन किया है।
जैसे-जैसे यह स्क्रीनशॉट वायरल होता गया, वैसे-वैसे तनाव बढ़ता गया और आखिरकार घरों में तोड़फोड़ और आगजनी की घटना घट गई। (आईएएनएस)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 2 नवंबर| डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडन के प्रचार अभियान के लिए जुटाए गए धन में योगदान करने वालों में भारतीय मूल के कम से कम 21 लोग शामिल हैं। हरेक ने कम से कम 100,000 डॉलर से अधिक की रकम जुटाई।
शनिवार को कैम्पेन द्वारा जारी 100,000 डॉलर जुटाने वाली लिस्ट में 820 स्वयंसेवकों के नाम से पता चला है कि भारतीय-अमेरिकियों का हिस्सा कुल डोनेशन का 2.5 प्रतिशत है, जो देश में समुदाय की आबादी के मुकाबले दोगुना है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शीर्ष योगदान देने वालों की ऐसी कोई सूची जारी नहीं की है।
कुल मिलाकर ट्रंप ने पिछले महीने 1.57 अरब डॉलर जुटाए थे। ट्रंप ने बाइडन से पहले अपना कैंपेन शुरू किया था। बाइडन ने कुल 1.51 अरब डॉलर जुटाए।
लेकिन हाल के महीनों में बाइडन ट्रंप से आगे निकल गए हैं। अक्टूबर के पहले पखवाड़े में उन्होंने ट्रंप के 8.2 करोड़ डॉलर के मुकाबले 16.7 करोड़ डॉलर जुटाए।
2016 के चुनाव में, तत्कालीन डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलरी क्लिंटन का संग्रह 1.2 अरब डॉलर था, जो ट्रंप के 60 करोड़ डॉलर के मुकाबले दोगुना था।
बाइडन की सूची में अजय भूटोरिया, स्वदेश चटर्जी, फ्रैंक इस्लाम, नील मखीजा, शेखर नरसिम्हन, एम. रंगास्वामी और प्रमिला जयपाल जैसे प्रमुख एक्टिविस्ट शामिल हैं।
सूची में कई भारतीय-अमेरिकी प्रौद्योगिकी और संबंधित क्षेत्रों में उद्यमी हैं।
बाइडन कैम्पेन ने यह नहीं बताया कि स्वयंसेवकों ने कितना धन एकत्र किया है।
फेडरल इलेक्शन कमीशन (एफईसी) के अनुसार, अमेरिकी कानूनों के तहत एक व्यक्ति उम्मीदवार को सीधे तौर पर केवल 2,800 डॉलर का अधिकतम चंदा दे सकता है।
सूची में शामिल लोगों ने मित्रों, रिश्तेदारों, परिचितों और सहयोगियों से चंदा इकट्ठा किया।
अभियानों को एफईसी को मिलने वाले सभी योगदानों की जानकारी देनी होती है, जो उन्हें सार्वजनिक करता है।
सूची में कम से कम दो अन्य लोग शामिल हैं जो भारतीय मूल के हो सकते हैं।
कैलिफोर्निया के एक उद्यमी, भूटोरिया ने कहा कि उन्होंने मार्च में बाइडन की पत्नी जिल के साथ एक फंडरेजर कार्यक्रम आयोजित किया था।
उन्होंने हिंदी की हिट फिल्म 'लगान' के एक गीत के आधार पर अभियान का वीडियो 'चले चलो, बाइडन-हैरिस को वोट दो' का निर्माण किया।
मखीजा इंडियन अमेरिकन इम्पैक्ट फंड के कार्यकारी निदेशक हैं। उन्होंने कहा कि इसने चुनाव लड़ रहे भारतीय अमेरिकी और एशियाई अमेरिकी उम्मीदवारों का समर्थन करने के लिए तीन महीने में 1 करोड़ डॉलर जुटाए।
नरसिम्हन डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी की इंडो-अमेरिकन काउंसिल के सह-अध्यक्ष और एशियन अमेरिकन पेसिफिक आइलैंडर (एएपीआई) विक्ट्री फंड के कार्यकारी निदेशक हैं जो एथ्निसिटी के उम्मीदवारों का समर्थन करते हैं।
रंगास्वामी इंडियास्पोरा के संस्थापक हैं, जो भारतीय-अमेरिकी सक्रियता को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया एक संगठन है।
चटर्जी, जिन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था, राजनीतिक शिक्षा के लिए भारतीय अमेरिकी फोरम के अध्यक्ष रहे हैं, और पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल के दौरान भारत और अमेरिका के बीच परमाणु समझौते को कराने के सामुदायिक प्रयासों में शामिल हुए थे।
इस्लाम एक पार्ट एक्टिविस्ट हैं जिन्होंने फ्रैंक इस्लाम और डेबी ड्रिसमैन फाउंडेशन की स्थापना की।
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की सदस्य जयपाल भारत की बहुत आलोचना करती हैं और तब सुर्खियों में आई थीं जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सदन की विदेश मामलों की समिति के साथ बैठक रद्द कर दी जब वो इसका सदस्य नहीं होने के बावजूद इसमें शामिल थीं।
उप-राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस ने तब जयशंकर की आलोचना की थी।
सूची में बेला बजरिया, शैलेन भट्ट, स्वदेश चटर्जी, शेफाली राजदान दुग्गल, किरण जैन, सोनी कलसी, रमेश कपूर, देवेन पारेख, सत्य पटेल, राहुल प्रकाश, दीपक डी. राज, एरिक रामनाथन, राधिका शाह, राज शाह, राजन शाह, जिल और राज सिंह, और निधि ठाकर शामिल हैं। (आईएएनएस)