राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 26 नवंबर | जेल में बंद दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन का जेल के अंदर जेल अधीक्षक से मुलाकात का एक ताजा वीडियो शनिवार को सामने आया। वीडियो 12 सितंबर का बताया जा रहा है। इसमें अधीक्षक के आने पर जैन को चार लोगों के साथ बातचीत करते देखा जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक जेल प्रशासन ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है कि सीसीटीवी फुटेज कैसे लीक हो रहे हैं। जैन ने इस संबंध में कोर्ट का भी रुख किया है।
तिहाड़ प्राधिकरण ने अभी तक इस मामले पर आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है।
ईडी ने संदिग्धों के खिलाफ दर्ज सीबीआई की एफआईआर के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग जांच शुरू की है। इसमें इफको के एमडी उदय शंकर अवस्थी, ज्योति ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के प्रमोटर पंकज जैन और रेयर अर्थ ग्रुप, दुबई के अमरेंद्र धारी सिंह और अन्य शामिल हैं। इस मामले में सत्येंद्र जैन भी आरोपी थे।
सीबीआई ने उन पर कथित तौर पर आपराधिक साजिश रचने, धोखाधड़ी और आपराधिक कदाचार करने का आरोप लगाया था। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 25 नवंबर | रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र न केवल क्षेत्र के लिए बल्कि व्यापक वैश्विक समुदाय के आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण बना हुआ है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र को पार करने वाली सदियों पुरानी समुद्री लेन ने व्यापार को बढ़ाने में मदद की है।
राजनाथ सिंह ने यह सब बातें नई दिल्ली में इंडो-पैसिफिक रीजनल डायलॉग-2022 में अपने भाषण के दौरान कही।
रक्षा मंत्री ने कहा कि वैश्विक समुदाय कई प्लेटफार्मों और एजेंसियों के जरिए आर्थिक विकास की दिशा में काम कर रहा है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद उनमें सबसे प्रमुख है। अब आवश्यकता इस बात की है कि सामूहिक सुरक्षा के प्रतिमान को साझा हितों और सभी के लिए साझा सुरक्षा के स्तर तक बढ़ाया जाए।
मंत्री ने कहा, यह मेरा ²ढ़ विश्वास है कि यदि सुरक्षा वास्तव में सभी की जरूरत बन जाती है, तो हम एक वैश्विक व्यवस्था बनाने के बारे में सोच सकते हैं, जो हम सभी के लिए फायदेमंद है। हम बहु-मार्गरेखा के विचार का भी समर्थन करते रहे हैं। हम एक बहु-मार्गरेखा नीति में विश्वास करते हैं, जिसे कई हितधारकों के साथ विविध जुड़ाव के माध्यम से महसूस किया जाता है, ताकि सभी के समृद्ध भविष्य के लिए सभी के विचारों और चिंताओं पर चर्चा की जा सके और उनका समाधान किया जा सके।
सिंह ने कहा कि मजबूत और समृद्ध भारत का निर्माण दूसरों की कीमत पर नहीं होगा, बल्कि भारत यहां अन्य देशों को उनकी पूरी क्षमता का एहसास कराने में मदद करने के लिए है।
उन्होंने कहा, हमें सभी के लिए जीत की स्थिति बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें संकीर्ण स्वार्थ से निर्देशित नहीं होना चाहिए, जो लंबे समय के लिए फायदेमंद नहीं है।
उन्होंने कहा, एक गहरा जुड़ाव है जो हमें पूरे हिंद प्रशांत क्षेत्र में मानवता के एक आम संदेश को साझा करने की अनुमति देता है। साझा समृद्धि और सुरक्षा के इस मार्ग के साथ, भारत-प्रशांत क्षेत्र के संबंध में हमारे प्रयासों में आसियान की केंद्रीयता को रेखांकित करता है।
हाल ही में जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए बाली में एकत्रित हुए विश्व के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदेश को सराहा कि युद्ध का युग खत्म हो गया है, अब युद्ध का समय नहीं है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि जब मानवता जलवायु परिवर्तन, कोविड महामारी, व्यापक अभाव आदि जैसी समस्याओं का सामना कर रही है, तो ऐसे में आवश्यक है कि युद्ध और संघर्षों जैसे विनाशकारी प्रभावों पर काबू पाने के लिए मिलकर काम करें।
उन्होंने कहा, मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूं कि इस क्षेत्र में रचनात्मक संबंधों में हमारे भागीदारों के साथ काम करने का हमेशा हमारा प्रयास रहा है। हमने बैंकॉक में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में 'इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव' लॉन्च किया है। हमने समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार की दिशा में समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण प्रतिक्रिया पर आसियान-भारत पहल का भी प्रस्ताव दिया है, जो अधिक मानवीय ²ष्टिकोण के माध्यम से प्रभावी संघर्ष समाधान और स्थायी शांति की दिशा में योगदान देगा। (आईएएनएस)|
कोलकाता, 25 नवंबर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की पश्चिम बंगाल इकाई के सचिव एवं पूर्व लोकसभा सदस्य मोहम्मद सलीम ने कहा कि पश्चिम बंगाल में फिर से अपना खोया आधार प्राप्त करने में जुटे मार्क्सवादी अपने ‘मुख्य शत्रु’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर ध्यान केंद्रित करेंगे । हालांकि माकपा का चुनावी मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजप) और तृणमूल कांग्रेस दोनों से होगा।
सलीम ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘ हमने आरएसएस की पहचान देश के लिए सबसे बड़े खतरे के तौर पर की है, क्योंकि हमारा मानना है कि हमारा देश जिन दो सिद्धांतों पर खड़ा है, वे धर्मनिरपेक्षता व लोकतंत्र है। उसने (आरएसएस ने) नफरत के माहौल को बढ़ावा दिया है, छद्म विज्ञान और पौराणिक कथाओं के खतरनाक घालमेल को बढ़ावा दिया। हमारी लड़ाई इसी के खिलाफ है।’’
सलीम ने कहा कि जहां तक चुनाव की बात है तो यह स्पष्ट है कि पार्टी ‘‘ भाजपा और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस दोनों को टक्कर देगी। हम केवल नाम का विपक्ष नहीं हैं। हम उन दोनों का विरोध करेंगे।’’
राज्य में 2011 में तृणमूल कांग्रेस की सरकर बनने से पहले तक 34 साल तक माकपा का शासन था। माकपा के मत प्रतिशत में भी लगातार गिरावट आई है । 2011 विधानसभा चुनाव में 30.1 प्रतिशत, 2016 के विधानसभा चुनाव में 19.75 और 2019 के लोकसभा चुनाव में यह घटकर 6.34 प्रतिशत रह गया था। (भाषा)
नयी दिल्ली, 25 नवंबर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि भारत का इतिहास वीरता का रहा है लेकिन दुर्भाग्य से आजादी के बाद भी वह इतिहास पढ़ाया जाता रहा जो गुलामी के कालखंड में साजिशन रचा गया था।
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद जरूरत थी कि भारत को गुलाम बनाने वाले विदेशियों के एजेंडे को बदला जाता लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
मोदी यहां स्थित विज्ञान भवन में पूर्ववर्ती अहोम साम्राज्य के जनरल लचित बोड़फूकन की 400वीं जयंती पर साल भर आयोजित कार्यक्रमों के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे।
इससे पहले, प्रधानमंत्री ने बोड़फूकन की 400वीं जयंती के उपलक्ष्य में यहां लगाई गई प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया। इस अवसर पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा, राज्यपाल जगदीश मुखी और केन्द्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत का इतिहास सिर्फ गुलामी का इतिहास नहीं है। भारत का इतिहास योद्धाओं का इतिहास है, अत्याचारियों के विरूद्ध अभूतपूर्व शौर्य और पराक्रम दिखाने का इतिहास है। भारत का इतिहास वीरता की परंपरा का रहा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन दुर्भाग्य से हमें आजादी के बाद भी वही इतिहास पढ़ाया जाता रहा जो गुलामी के कालखंड में साजिशन रचा गया था। देश के कोने-कोने में भारत के सपूतों ने आतताइयों का मुकाबला किया लेकिन इस इतिहास को जानबूझकर दबा दिया गया।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद जरूरत थी कि गुलाम बनाने वाले विदेशियों के एजेंडे को बदला जाता लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि ऐसे बलिदानियों को मुख्यधारा में ना लाकर जो गलती पहले की गई उसे सुधारा जा रहा है और लचित बोड़फूकन की जयंती को मनाने के लिए दिल्ली में किया गया यह आयोजन इसी का प्रतिबिंब है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश आज गुलामी की मानसिकता को छोड़ अपनी विरासत पर गर्व करने के भाव से भरा हुआ है और भारत ना सिर्फ अपनी सांस्कृतिक विविधता का उत्सव मना रहा है बल्कि अपनी संस्कृति के ऐतिहासिक नायक-नायिकाओं को भी गर्व से याद कर रहा है।
मोदी ने कहा कि बोड़फकून ऐसे वीर योद्धा थे, जिन्होंने दिखा दिया कि हर आतंकी का अंत हो जाता है लेकिन भारत की अमर ज्योति अमर बनी रहती है।
ज्ञात हो कि लचित बोड़फूकन के 400वें जयंती वर्ष समारोह का उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इसी साल फरवरी में असम के जोरहाट में किया था।
लचित बोड़फूकन असम के पूर्ववर्ती अहोम साम्राज्य में एक सेनापति थे। सरायघाट के 1671 के युद्ध में उनके नेतृत्व के लिए उन्हें जाना जाता है। इस युद्ध में औरंगजेब के नेतृत्व वाली मुगल सेना का असम पर कब्जा करने का प्रयास विफल कर दिया गया था।
इस विजय की याद में असम में 24 नवंबर को लचित दिवस मनाया जाता है। सरायघाट का युद्ध गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के तटों पर लड़ा गया था। (भाषा)
भोपाल, 25 नवंबर मध्य प्रदेश में कांग्रेस को झटका देते हुए पार्टी के प्रदेश मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबी नरेंद्र सलूजा शुक्रवार को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए।
यह घटनाक्रम उस वक्त हुआ, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अगुवाई में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ राज्य से गुजर रही है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने सरकारी आवास पर सलूजा का भाजपा में स्वागत किया। इस अवसर पर वन मंत्री विजय शाह और प्रदेश भाजपा के मीडिया विभाग के प्रभारी लोकेंद्र पाराशर मौजूद रहे।
सलूजा ने कहा कि 1984 के सिख विरोधी दंगों के सिलसिले में आरोपों का सामना कर रहे मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को इस महीने की शुरुआत में इंदौर में सम्मानित किए जाने को लेकर सिख समुदाय के सदस्यों द्वारा उठाए गए सवालों के बाद वह भाजपा में शामिल हुए हैं।
गौरतलब है कि इंदौर के खालसा स्टेडियम में गुरु नानक जयंती के अवसर पर आठ नवंबर को आयोजित एक धार्मिक कार्यक्रम में आयोजकों द्वारा कमलनाथ को सम्मानित किए जाने के बाद विवाद पैदा हो गया था।
कमलनाथ के कार्यक्रम स्थल से जाने के बाद मशहूर कीर्तनकार मनप्रीत सिंह कानपुरी ने 1984 के सिख विरोधी दंगों की ओर स्पष्ट इशारा किया था और कांग्रेस नेता को आमंत्रित करने के लिए आयोजकों पर तीखे शब्दों में मंच से नाराजगी जताई थी।
वहीं, कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई के मीडिया विभाग के अध्यक्ष के.के. मिश्रा ने कहा कि सलूजा को हाल ही में पार्टी से निष्कासित किया गया है।
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि सलूजा भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों से प्रभावित होने के कारण भाजपा में शामिल हुए हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा में शामिल होने के सलूजा के फैसले से पार्टी मजबूत होगी।
सलूजा ने कहा, ‘‘वर्ष 1984 के सिख विरोधी दंगों में कमलनाथ की भूमिका के मुद्दे पर आठ नवंबर को इंदौर में कमलनाथ के स्वागत-सम्मान के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर मैंने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘1984 के दंगों में कमलनाथ की भूमिका के विरोध में मशहूर कीर्तनकार मनप्रीत सिंह कानपुरी के शब्द तब से मेरे कानों में गूंज रहे हैं। मैं ऐसे नेता के साथ नहीं रह सकता जिसके ऊपर मेरे धर्म के लोगों की हत्या का आरोप हो। इसलिए मैंने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया।’’
कांग्रेस नेता मिश्रा ने दावा किया कि सलूजा को भाजपा के साथ उनके संबंधों के कारण पहले भी उनके पद से हटाया गया था, लेकिन कमलनाथ से माफी मांगने के बाद उन्हें बहाल कर दिया गया था। (भाषा)
अगरतला, 25 नवंबर त्रिपुरा के उनाकोटि जिले में बलात्कार का आरोपी विचाराधीन कैदी उस वक्त फरार हो गया, जब पुलिस उसे जेल ले जा रही थी। यह जानकारी एक अधिकारी ने शुक्रवार को दी।
कैदी बांग्लादेश न भाग सके, इसके लिए पास की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर एक चेतावनी जारी कर दी गई है।
कैलाशहार अनुविभागीय मजिस्ट्रेट प्रदीप सरकार ने कहा कि यह घटना उस समय हुई जब तीन विचाराधीन कैदियों को एक अदालत में पेश करने के बाद बृहस्पतिवार शाम वापस कैलाशहार जेल ले जा रहे थे।
आमतौर पर पुलिस अदालत में मामलों की सुनवाई दोपहर करीब तीन बजे खत्म हो जाती है पर यह बृहस्पतिवार को शाम सात बजे तक चली।
सरकार ने कहा कि जब अदालत से लौटने के बाद जेल के सामने ‘कैदी वाहन’ से उतरे तो अंधेरा था। बलात्कार का आरोपी तब स्थिति का फायदा उठाकर भाग गया।
उन्होंने कहा, “सीमा पर चेतावनी जारी की गई है ताकि वह बांग्लादेश में न घुस सके।”
भगोड़े पर अक्टूबर में पोक्सो अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।
हालांकि, दो अन्य विचाराधीन कैदियों को सुरक्षित रूप से जेल के अंदर ले जाया गया। (भाषा)
सनावद (मध्य प्रदेश), 25 नवंबर पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा कांग्रेस नेता सचिन पायलट को ‘‘गद्दार’’ कहे जाने को शुक्रवार को ‘‘अप्रत्याशित’’ करार दिया।
उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस को दोनों नेताओं की जरूरत है और राजस्थान के मसले का उचित हल व्यक्तियों को देखते हुए नहीं, बल्कि पार्टी संगठन को प्राथमिकता देकर निकाला जाएगा।
कांग्रेस के संचार, प्रचार और मीडिया विभाग के प्रभारी महासचिव रमेश इन दिनों राहुल गांधी की अगुवाई वाली ‘‘भारत जोड़ो यात्रा‘‘ में शामिल हैं।
पायलट को गहलोत द्वारा ‘‘गद्दार’’ कहे जाने को लेकर प्रतिक्रिया मांगे जाने पर उन्होंने सनावद में संवाददाताओं से कहा, ‘‘गहलोत, कांग्रेस के वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं। लेकिन उनके द्वारा एक साक्षात्कार में (पायलट के लिए) जिस शब्द (गद्दार) का इस्तेमाल किया गया, वह अप्रत्याशित था और इससे मुझे भी आश्चर्य हुआ।’’
रमेश ने कांग्रेस को एक परिवार बताया और कहा, ‘‘पार्टी को गहलोत और पायलट, दोनों की जरूरत है। कुछ मतभेद हैं जिनसे हम भाग नहीं रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व द्वारा राजस्थान से जुड़े मसले का उचित हल निकाला जाएगा। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने जोर देकर कहा, ‘‘...लेकिन यह हल कांग्रेस संगठन को प्राथमिकता देते हुए निकाला जाएगा। हम व्यक्तियों के आधार पर कोई हल नहीं निकालेंगे।’’
रमेश ने पायलट की तारीफ करते हुए उन्हें कांग्रेस का ‘‘युवा, ऊर्जावान, लोकप्रिय और चमत्कारी नेता’’ करार दिया।
गौरतलब है कि गहलोत ने एनडीटीवी को दिए साक्षात्कार में पायलट को ‘‘गद्दार’’ करार देते हुए कहा है कि उन्होंने वर्ष 2020 में कांग्रेस के खिलाफ बगावत की थी और गहलोत नीत सरकार गिराने की कोशिश की थी इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता।
पायलट को लेकर गहलोत के इस बयान से राजस्थान में कांग्रेस की आंतरिक कलह बढ़ती नजर आ रही है, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। यह बयान ऐसे वक्त दिया गया, जब राहुल गांधी नीत ‘‘भारत जोड़ो यात्रा’’ की राजस्थान में चार दिसंबर को दाखिल होने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है।
गहलोत की बयानबाजी से कांग्रेस की भारी फजीहत के बीच रमेश ने राजस्थान के मुख्यमंत्री का नाम लिए बगैर कहा, ‘‘कांग्रेस के नेता बिना किसी डर के अपने मन की बात कहते हैं क्योंकि पार्टी आलाकमान तानाशाही के आधार पर कोई निर्णय नहीं लेता। कांग्रेस और भाजपा में यही फर्क है।’’ (भाषा)
श्रद्धा की हत्या हो या ऐसे ही दूसरे मामले, भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की समस्या इतनी विकराल हो चुकी है कि उसके अलग-अलग पहलुओं को समझने की जरूरत है. लेकिन शुरुआत तो सही गिनती से करनी होगी.
डॉयचे वैले पर नेहल जौहरी की रिपोर्ट-
12 नवंबर को खबर आई कि दिल्ली में रहने वाली एक महिला का कथित तौर पर उसके लिव-इन पार्टनर ने बेरहमी से कत्ल कर दिया. पुलिस ने कहा कि कत्ल के बाद शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके दिल्ली में जगह-जगह फेंक दिया गया. दो महीने पहले ही झारखंड में 19 साल की एक लड़की को एक व्यक्ति ने जलाकर मार डाला था. उस घटना के बाद भी बहुत हो-हल्ला हुआ और लोग इंसाफ के लिए सड़कों पर उतर आए थे.
मुंबई स्थित टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की निशी मित्रा ने भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सालाना आंकड़ों को समझने के लिए कई साल तक अध्ययन किया है. हालांकि, आंकड़े इस तरह जमा किए जाते हैं कि कोई यह नहीं जान सकता कि महिलाओं की कितनी हत्याएं हुईं. उन अपराधों को भी सिर्फ हत्याओं के रूप में दर्ज किया जाता है. इसीलिए मित्रा कहती हैं, "आंकड़े सबसे बड़ा मुद्दा हैं. समस्या अब तक भी अदृश्य है.”
मित्रा उन चंद लोगों में से हैं, जिन्होंने अपने शोधपत्र में नारी-हत्या (Femicide) शब्द का प्रयोग किया. उन्होंने इस बारे में 2016 में एक शोधपत्र प्रकाशित किया था. तब इस शब्द की परिभाषा तक स्पष्ट नहीं थी. जब भी पुरुष द्वारा किसी महिला की हत्या की जाए, तो क्या उसे नारी-हत्या कहा जाए? कोई महिला यदि दूसरी महिला की हत्या कर दे, उसे भी क्या नारी-हत्या कहेंगे? क्या हत्या करने की वजह से परिभाषा पर फर्क पड़ना चाहिए? इन सवालों पर भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में ही कोई एक राय नहीं थी.
मित्रा कहती हैं, "इस शब्द का इस्तेमाल इसलिए जरूरी है, क्योंकि उस अपराध को नजरों में लाना जरूरी है, जो न्याय व्यवस्था की आंखों से छिपता रहा है और नारी-हत्या को ठीक से समझा ही नहीं गया. उन जटिल लैंगिक कारकों पर ध्यान नहीं दिया गया, जिनके जरिए हिंसा संस्थागत हो जाती है और छिपी रहती है.”
मार्च 2022 में संयुक्त राष्ट्र ने अपने सदस्य देशों में नारी-हत्या के आंकड़े जमा करने के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया.
क्या कहते हैं आंकड़े?
भारतीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की जो सालाना रिपोर्ट जारी होती है, उसमें पुलिस द्वारा दर्ज हत्याओं के कारण तो जारी किए जाते हैं, लेकिन यह कहीं स्पष्ट नहीं किया जाता कि महिलाओं को खासतौर पर क्यों मारा गया. इसके अलावा कत्ल कर दी गईं महिलाओं की संख्या रिपोर्ट में दर्ज कुल हत्याओं के आंकड़ों से भी मेल नहीं खाती है. बलात्कार के बाद हत्या, दहेज के कारण हत्या और आत्महत्याओं की संख्या ही कुल हत्याओं से ज्यादा निकलती है. इसकी वजह वे श्रेणियां हैं, जिनमें एक से ज्यादा अपराधों के मामलों को दर्ज किया जाता है.
मित्रा कहती हैं कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि साल दर साल की समरूपता नहीं है. वह बताती हैं, "आंकड़े जमा करने के लिए रिपोर्ट में श्रेणियां हर बार बदल दी जाती हैं. इसलिए इस साल के आंकड़ों की पिछले साल से तुलना ही नहीं कर सकते. उदाहरण के लिए बलात्कार के बाद हत्या की श्रेणी 2017 तक थी ही नहीं, जबकि एनसीआरबी का डेटा 1993 से उपलब्ध है.” वैसे नारी-हत्या को दर्ज नहीं किया जाता, लेकिन महिलाओं के खिलाफ हिंसा के आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध हैं.
असम में सबसे ज्यादा हिंसा
एनसीआरबी के मुताबिक पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के सबसे ज्यादा मामले दर्ज होते हैं. 2021 में हर दस लाख पर 800 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए, जबकि राष्ट्रीय औसत 282 का है. दिल्ली में यह आंकड़ा 610 का रहा और उसके बाद ओडिशा (685), हरियाणा (563), तेलंगाना (552) और राजस्थान (512) का नंबर है. महिलाओं के खिलाफ सबसे कम अपराध नगालैंड (25), गुजरात (105) और तमिलनाडु (111) में दर्ज किए गए.
नॉर्थ ईस्ट नेटवर्क (एनईएन) एक समाजसेवी संगठन है, जो कई साल से पूर्वोत्तर में महिला अधिकारों के लिए काम रहा है. संस्था की असम प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर अनुरिता पाठक इन आंकड़ों से जरा भी हैरान नहीं होतीं. वह कहती हैं, "यह तो असली तस्वीर का सिर्फ छोटा सा हिस्सा है. मेरा कहना है कि धरातल के नीचे कहीं ज्यादा मामले हैं. मसलन, वे मामले जो हमारे केंद्र में आते हैं.”
एनईएन ने ग्रामीण महिलाओं के लिए सुरक्षित जगह बनाई हैं, जिन्हें ग्रामीण महिला केंद्र कहा जाता है. वहां घर या अन्य किसी स्थान पर हिंसा की पीड़ितों को मानसिक देखभाल सामाजिक सेवाएं उपलब्ध कराई जाती है. स्थानीय समुदायों को अपने साथ जोड़कर एनईएन ने बड़ी संख्या में ऐसी महिलाओं तक पहुंचने में कामयाबी पाई है. पाठक बताती हैं कि ये महिलाएं एनसीआरबी के आंकड़ों में नजर नहीं आतीं, क्योंकि इन मामलों को पुलिस स्टेशन नहीं ले जाया जाता और सामुदायिक स्तर पर ही हल कर लिया जाता है.
पाठक कहती हैं, "पीटी गई या शोषण का शिकार हुई हर महिला थाने नहीं जाती है.” पुलिस के पास जाने की यह अनिच्छा ऐतिहासिक है. असम में नस्लीय हिंसा और आपसी संघर्षों का लंबा इतिहास, जिनमें महिलाएं निशाने पर रही हैं. कुछ विशेषज्ञ तो कहते हैं कि उन्हें युद्ध के एक औजार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है.
पाठक कहती हैं, "एक वक्त था, जबकि सुरक्षा का मतलब होता था कानून-व्यवस्था बनाए रखना. तब राज्य में बहुत सारे संघर्ष एक साथ चल रहे थे. तब लिंग, महिलाओं और सुरक्षा की बात करने वाला कोई था नहीं.”
हाल के सालों में समाजसेवी संगठनों और संयुक्त राष्ट्र के जुगनू क्लबों की कोशिशों का इतना असर हुआ है कि असम में ज्यादा बड़ी संख्या में महिलाएं लिंग-आधारित हिंसा के बारे में अपने अनुभव साझा करने लगी हैं. उनकी कहानियां दिखाती हैं कि जहां हालत पहले ही देश में सबसे खराब है, उस असम में लैंगिक हिंसा के अधिसंख्य मामले तो दर्ज ही नहीं हो रहे हैं.
यह संयोग है कि असम के पड़ोसी राज्य नगालैंड में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे कम मामले दर्ज हुए. हालांकि, एनईएन के मुताबिक जो लोग लैंगिक हिंसा झेलते हैं, वे परंपराओं के बोझ तले दबे रहते हैं.
पाठक बताती हैं, "ये पारंपरिक कानून लिखित नहीं हैं. ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाते रहते हैं. वहां समाज के बड़े-बुजुर्गों की एक संस्था होती है, जिसमें अधिकतर पुरुष ही होते हैं और वे ही मामलों पर फैसले लेते हैं. इसका महिलाओं को बहुत नुकसान होता है.” इस कारण नगालैंड के बारे में एनसीआरबी के आंकड़े भी संदेह के घेरे में आ जाते हैं.
जटिल है समस्या
जिस स्तर पर भारतीय महिलाएं वित्तीय, पेशेवराना और सामाजिक रूप से सशक्त हुई हैं, उनके खिलाफ हिंसा उस दर से कम नहीं हुई है. 2021 में हुआ एक अध्ययन तो कहता है कि जो महिलाएं अपने जीवनसाथी के बराबर या उससे ज्यादा कमाती हैं, उन्हें ज्यादा घरेलू हिंसा झेलनी पड़ती है.
कैंब्रिज विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग की अध्यक्ष मनाली देसाई कहती हैं, "एक दुष्चक्र है. लैंगिक हिंसा पितृसत्तात्मक भाव है. यह तो पौरुष का संकट है या फिर आर्थिक असुरक्षा जैसी सफाइयों से ऐसी जटिल प्रक्रियाओं को नहीं सुलझाया जा सकता.”
देसाई ऐसी कई परियोजनाएं चलाती हैं, जिनमें दिल्ली में हिंसा के मामलों की तुलना दक्षिण अफ्रीका में जोहानिसबर्ग के मामलों से की जाती है. उन्होंने पाया है कि तेजी से हुए शहरीकरण और दोनों ही क्षेत्रों में बहुत अधिक हिंसा के बावजूद लैंगिक हिंसा के बारे में हो रही चर्चा एकदम अलग है. वह बताती हैं, "दक्षिण अफ्रीका में हमें ऐसा नहीं लगा कि महिलाओं को हिंसा के बारे में बात करने में दिक्कत है.”
इस संगठन के काम से यह पता चलता है कि भारत में हिंसा के मामलों को दबाया जाना इस समस्या को हल कर पाने के उपायों के नाकाम होने ही एक बड़ी वजह है. इस बात के भी सबूत हैं कि कुछ हद तक हिंसा की स्वीकार्यता है.
ताजा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट इसी साल जारी हुई है. यह सर्वे 2019 से 2021 के बीच किया गया था. इसमें लोगों से "पत्नी को पीटने के बारे में” उनकी राय पूछी गई. सर्वे के मुताबिक 45.4 प्रतिशत महिलाओं और 44.2 प्रतिशत पुरुषों ने कहा कि कुछ विशेष कारणों से किसी पुरुष का उसकी पत्नी को पीटना जायज है.
एनसीआरबी के आंकड़े सर्वे के इन नतीजों की पुष्टि करते हैं. घरेलू हिंसा भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का प्रमुख अपराध है. सालाना कुल मामलों में से 35 प्रतिशत घरेलू हिंसा के ही होते हैं.
नारी-हत्या को दर्ज करने की जरूरत
संयुक्त राष्ट्र पूरी दुनिया में नारी-हत्या के मामलों की गिनती का अह्वान कर रहा है लेकिन बहुत से देश उन्हीं चुनौतियों से जूझ रहे हैं जो भारत में देखी जा रही हैं. कई सालों तक आंकड़े ऐसे प्रारूप में दर्ज नहीं किए गए हैं जहां नारी-हत्याओं को गिना जा सके. ऐसे सभी देशों में न्याय व्यवस्था, पुलिस और सरकार में बदलाव की जरूरत है.
मित्री भारत में बदलाव की अगुआई करने की कोशिश कर रही हैं. वह सरकारी एजेंसियों और शोधकर्ताओं के साथ मिलकर नारी-हत्या के मामलों को दर्ज करने की व्यवस्था तैयार करने में जुटी हैं. इस तरह की व्यवस्थाएं इस्राएल, कनाडा और पोलैंड में मौजूद हैं. मित्र कहती हैं कि भारत इन प्रारूपों से सीखकर अपना एक मॉडल तैयार कर सकता है.
वह कहती हैं, "दुनियाभर में हम इस बात को मान रहे हैं कि न्याय व्यवस्था में ऐसे सुधारों की जरूरत है जो महिलाओं के हिंसा से मुक्त जीवन के अधिकार को सुनिश्चित करे. लेकिन समस्या का विशाल आकार पहला ऐसा मुद्दा है जिस पर बात करने की जरूरत है.” (dw.com)
भारत में आदिवासियों का एक समुदाय अलग धर्म के रूप में दर्जा पाने की मांग कर रहा है. सरना धर्म के लोगों की यह मांग एक आंदोलन में तब्दील हो रही है.
ढोल-नगाड़ों के साथ अनुष्ठान की शुरुआत हुई, जिनकी ध्वनि पूरे गांव में सुनी जा रही थी. रंग-बिरंगी साड़ियों में सजी महिलाओं ने इस ध्वनि पर पारंपरिक आदिवासी लोकनृत्य शुरू किया, तो दर्शकों के पांव भी थिरकने लगे.
आखिरी में मिट्टी की झोपड़ी से 12 श्रद्धालु निकले और एक दूसरी झोपड़ी की ओर चले, जहां देवी की मूर्ति रखी है. सरपंच गासिया मरांडा के नेतृत्व में इन श्रद्धालुओं के हाथों में पारंपरिक पवित्र प्रतीक थे. जैसे मटके, तीर-कमान, हाथों से बने पंखे और कुल्हाड़ियां.
ओडिशा के सुदूर गुडुटा गांव में ये अनुष्ठान आदिवासियों के जीवन का अहम हिस्सा हैं. आदिवासी इन अनुष्ठानों को सरना धर्म का हिस्सा मानते हैं. यह वही प्रकृति पूजक मत है, जिसका दुनियाभर के कई आदिवासी समूहों में पालन किया जाता है. इन तमाम आदिवासियों की तरह भारत के जंगलों में बसा विशाल आदिवासी समुदाय प्रकृति की पूजा करता है. इसके लिए इन समुदायों के पास अपनी परंपराएं और अनुष्ठान हैं.
मरांडा कहते हैं कि पूरी प्रकृति में उनके देवता हैं. वह कहते हैं, "हमारे देवता हर तरफ हैं. हम अन्य जगहों की अपेक्षा प्रकृति की ओर देखते हैं.” बस उन्हें एक समस्या है. इस मत को कानूनन किसी धर्म का दर्जा नहीं मिला है और इस बात को लेकर आदिवासी समुदायों में बेचैनी देखी जा सकती है.
भारत में करीब 11 करोड़ आदिवासी हैं, जिनमें से लगभग 50 लाख सरना धर्म को मानते हैं. उनके बीच अपने इस मत यानी सरना धर्म को औपचारिक रूप से एक धर्म के रूप में मान्यता दिलाने का विचार धीरे-धीरे पांव पसार रहा है. उनका कहना है कि इस औपचारिक मान्यता से उन्हें अपनी संस्कृति और इतिहास के संरक्षण में मदद मिलेगी, क्योंकि आदिवासियों के अधिकार खतरे में हैं.
भारत में छह धर्मों को ही औपचारिक मान्यता मिली है. इनमें हिंदू, बौद्ध, ईसाइयत, इस्लाम, जैन और सिख धर्म हैं. इनके अलावा कोई व्यक्ति ‘अन्य' श्रेणी को भी अपना सकता है, लेकिन आमतौर पर अधिकतर प्रकृति-पूजक चाहे-अनचाहे इन छह में से ही किसी एक धर्म के साथ जुड़ते हैं. ये प्रकृति-पूजक अब अपने सरना धर्म को मान्यता दिलाने के लिए सड़कों पर भी उतर रहे हैं. इनकी कोशिश है कि अगली जनगणना में उन्हें धर्म के रूप में अलग से गिना जाए.
मान्यता के लिए अभियान
इस साल द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद से इस अभियान को और बल मिला है. द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली महिला आदिवासी हैं, जो सर्वोच्च पद पर पहुंची हैं. वह खुद को देश के 11 करोड़ आदिवासियों के उत्साह के प्रतीक के रूप में पेश करती हैं. ये आदिवासी देश के अलग-अलग हिस्सों में छितरे हुए हैं. समुदायों में सैकड़ों कबीलों, भाषाओं, परंपराओं और मान्यताओं को लेकर बंटवारा भी है. इसलिए सभी सरना धर्म नहीं मानते.
पूर्व सांसद सलखन मुर्मू उन लोगों में से हैं, जो सरना धर्म को मानते हैं. वह इस धर्म को औपचारिक मान्यता दिलाने वाले अभियान के अगुआ नेताओं में से एक हैं. हजारों समर्थकों की भीड़ के साथ वह देश के कई राज्यों में प्रदर्शन और धरने कर चुके हैं. हाल ही में उन्होंने रांची में ऐसे ही एक प्रदर्शन में कहा, "यह हमारे मान-सम्मान की लड़ाई है.” उनके इस कथन पर भीड़ ने जोर का नारा लगाया, "सरना धर्म की जय.”
मुर्मू अपने इस संघर्ष को शहरी केंद्रों से आगे आदिवासी गांवों तक भी ले जा रहे हैं. उनका संदेश हैः "अगर सरना धर्म खत्म हो गया, तो देश के सबसे शुरुआती बाशिंदों से उसका संपर्क भी खत्म हो जाएगा." मुर्मू कहते हैं, "अगर सरकार ने हमारे धर्म को मान्यता नहीं दी, तो मुझे लगता है कि हम पूरी तरह खत्म हो जाएंगे. यदि हम किसी लोभ के कारण, किसी दबाव की वजह से या फिर किसी जोर-जबर्दस्ती के कारण अन्य धर्मों को अपनाएंगे, तो अपना पूरा इतिहास और जीवनशैली खो बैठेंगे.”
वैसे मुर्मू जिस उद्देश्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उस पर पहले भी ठोस काम हो चुका है. 2011 में आदिवासियों के लिए काम करने वाली एक सरकारी संस्था ने भी सरकार से सरना धर्म को मान्यता देने की सिफारिश की थी. 2020 में झारखंड राज्य की सरकार ने इसी मकसद से एक प्रस्ताव भी पारित किया था. झारखंड की 27 प्रतिशत आबादी आदिवासी है. इस बारे में भारत सरकार ने कोई टिप्पणी नहीं की है.
क्यों मिले अलग धर्म का दर्जा?
रांची यूनिवर्सिटी में पढ़ा चुके मानवविज्ञानी और आदिवासी जीवन का गहन अध्ययन करने वाले करमा ओरांव कहते हैं कि सरना धर्म को औपचारिक मान्यता का एक ठोस तर्क तो इसके मानने वालों की संख्या ही है. वह बताते हैं कि 2011 की राष्ट्रीय जनगणना के मुताबिक सरना धर्म के अनुयाइयों की संख्या जैन धर्म को मानने वालों की संख्या से ज्यादा है. जैन धर्म भारत का छठा सबसे बड़ा धार्मिक समूह है. हिंदू धर्म सबसे बड़ा है, जिसके मानने वाले देश की कुल 1.4 अरब आबादी के 80 प्रतिशत हैं.
2011 की जनगणना में 49 लाख से ज्यादा लोगों ने धर्म के कॉलम में अन्य को चुना था और अन्य के साथ ‘सरना धर्म' लिखा था. जैन धर्म के मानने वालों की संख्या लगभग 45 लाख है. इस तर्क के साथ ओरांव कहते हैं, "हमारी आबादी जैन धर्म को मानने वालों से ज्यादा है. तो हमें एक अलग धर्म के रूप में मान्यता क्यों नहीं मिल सकती?”
भारत में सक्रिय हिंदू संगठन देश के तमाम आदिवासियों को हिंदू धर्म का ही हिस्सा कहते हैं, लेकिन ओरांव इसे गलत बताते हैं. वह कहते हैं, "आदिवासियों और हिंदुओं में कुछ सांस्कृतिक समानताएं हैं, लेकिन हम उनके धर्म में शामिल नहीं हैं.” ओरांव बताते हैं कि उनके धर्म में ना तो जाति-पांति होती है और ना ही मंदिर व ग्रंथ आदि. सरना धर्म में पुनर्जन्म जैसे विश्वास भी नहीं हैं.
सरना धर्म के नेता मानते हैं कि हिंदू और ईसाई धर्म में धर्मांतरण के कारण उनका मत अस्तित्व के खतरे से जूझ रहा है. इसलिए उन्हें औपचारिक मान्यता मिलना उनके वजूद से जुड़ा है.
वीके/वीएस (एपी)
भारतीय जेलों में क्षमता से अधिक कैदी बंद हैं. कई बार उन्हें बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिल पाती हैं. लेकिन जिस तरह की कथित सुविधाएं सत्येंद्र जैन को मिल रही हैं उससे गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन का जेल में फल और सलाद खाते हुए कथित सीसीटीवी फुटेज जारी किया है. इससे पहले भी बीजेपी जैन की मसाज लेने वाला कथित वीडियो जारी कर चुकी है और आरोप लगाया था कि वह जेल में रहते हुए वीआईपी सुविधा पा रहे हैं. जैन के वकील ने निचली अदालत में मंगलवार को दावा किया कि जेल में रहते हुए उनका वजन 28 किलो तक कम हो गया है लेकिन मीडिया रिपोर्टों में तिहाड़ जेल के सूत्रों के हवाले से दावा किया गया कि उनका वजन आठ किलो तक बढ़ गया है.
जेल में "मसाज" पर राजनीतिक घमासान
आप नेता जैन पिछले पांच महीनों से मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में न्यायिक हिरासत में हैं. जैन की मसाज के वीडियो 19 नवंबर को बीजेपी द्वारा जारी किए गए थे. इस वीडियो में जैन एक व्यक्ति द्वारा मसाज लेते हुए दिख रहे हैं. हालांकि, जैन के बचाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा था कि वे डॉक्टरों की सलाह पर फिजियोथेरेपी ले रहे हैं. साथ ही आप नेताओं ने वीडियो के लीक होने पर सवाल उठाए थे और पूछा कि ये वीडियो बीजेपी के पास कैसे पहुंचे.
मसाज वाले वायरल वीडियो में जो व्यक्ति जैन की मसाज कर रहा है वह नाबालिग से बलात्कार के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद है. मीडिया में बताया जा रहा है कि उसे जैन की जेल से हटाकर दूसरे वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया है. मीडिया में तिहाड़ के सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि जैन तिहाड़ की जेल नंबर 7 की एक सेल में अकेले बंद हैं. उन्हें दिए गए अतिरिक्त तकिए, कुर्सी और अन्य कैदियों से मिलने पर रोक लगा दी गई है. बताया जा रहा है कि जैन को जेल में मिले बेड, गद्दे और टीवी जैसी सुविधाओं में कोई कटौती नहीं की गई है. ऐसा कहा जा रहा है कि बेड और गद्दा उन्हें डॉक्टरों की सलाह पर दिया गया है. वहीं टीवी के बारे में कहा जा रहा है इसकी सुविधा सिर्फ जैन को नहीं बल्कि जेल में यह अन्य कैदियों के लिए भी सामान्य तौर पर दी जाती हैं.
इस बीच निचली अदालत में प्रवर्तन निदेशालय ने कहा है कि वीडियो लीक होने के लिए वह जिम्मेदार नहीं है. जैन के वकील राहुल मेहता ने वीडियो लीक होने के बाद कोर्ट में यह मामला उठाया है. जैन के वकील ने ईडी के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल की है और आरोप लगाया है कि जैन का मीडिया ट्रायल चल रहा है. जैन की तरफ से मेहता ने कहा, "वह आतंकी कसाब जितना खतरनाक नहीं है और उसको भी निष्पक्ष और स्वतंत्र सुनवाई मिली थी. मैं निश्चित रूप से इससे बुरा नहीं हूं, मैं केवल निष्पक्ष और स्वतंत्र सुनवाई की मांग करता हूं."
आम कैदी क्या कर सकते हैं
तिहाड़ जेल अधिकारियों का कहना है कि कैदियों को किसी और के "निजी काम" करने की अनुमति नहीं है. तिहाड़ जेल अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि कैदी या विचाराधीन कैदी जेल के भीतर काम तो कर सकते हैं लेकिन वह सिर्फ सार्वजनिक या सेवा कार्य हो सकते हैं.
तिहाड़ के एक अधिकारी ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "पहले, केवल अपराधी ही जेल में काम कर सकते थे. नए नियमों के तहत विचाराधीन कैदी भी काम कर सकते हैं लेकिन उन्हें जेल अधीक्षक से अनुमति लेनी होगी. कुछ कैदी खाना पकाने के लिए वॉलंटियर कर सकते हैं, अन्य सफाई, बागवानी या पीडब्ल्यूडी के काम के लिए. अधिकारियों द्वारा इसकी अनुमति दी जा सकती है, लेकिन किसी की मालिश करना व्यक्तिगत श्रम है, जिसकी अनुमति नहीं है."
इसी अखबार को एक अन्य अधिकारी ने कहा, "यह एक आम बात है- राजनेता, व्यवसायी, प्रभावशाली लोग निजी काम के लिए कैदियों से कहते हैं, हालांकि जेल मैनुअल के तहत यह सख्त वर्जित है. कैदियों को अपना वार्ड छोड़कर दूसरे वार्ड में जाने के लिए अनुमति की आवश्यकता होती है."
जेल मैनुअल के मुताबिक, "किसी भी कैदी को निजी काम के लिए नहीं लगाया जाएगा. किसी भी कैदी को किसी भी समय जेल के किसी अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी भी निजी काम या किसी भी प्रकार की सेवा के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा."
जेलों में भीड़
भारत की जेलों में इस समय जितने कैदी बंद हैं उनमें से 70 प्रतिशत ऐसे ही हैं जिनका अभी तक दोष साबित नहीं हो पाया है. तीन लाख से भी ज्यादा ऐसे कैदियों में 74.08 प्रतिशत यानी करीब 2.44 लाख कैदी एक साल से जेल में बंद हैं. इनके अलावा 13.35 प्रतिशत यानि करीब 44,000 कैदी एक साल से ज्यादा से, 6.79 प्रतिशत यानी करीब 22,000 कैदी दो साल से ज्यादा से, 4.25 प्रतिशत यानी करीब 14,000 कैदी तीन साल से ज्यादा से और 1.52 प्रतिशत यानी करीब 5,000 कैदी पांच साल से भी ज्यादा से जेल में बंद हैं. जेलों में आने वाले कैदियों और आरोपियों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है. कई बार जेलों में भीड़ की वजह से कैदियों को बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिल पाती हैं. (dw.com)
यूपी में मैनपुरी लोकसभा सीट और रामपुर और खतौली विधानसभा सीटों पर आगामी 5 दिसंबर को उपचुनाव हैं. जब यूपी और केंद्र दोनों जगह पूर्ण बहुमत की बीजेपी की सरकार है, तो क्या सपा के इन दोनों गढ़ों को ढहाने में कामयाब हो सकेगी?
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
मैनपुरी में लोकसभा के उपुचनाव इस सीट से सांसद रहे समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधनकी वजह से हो रहे हैं तो रामपुर विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान को कोर्ट से सजा होने के बाद उनकी सदस्यता जाने की वजह से हो रहे हैं. पश्चिमी यूपी की खतौली विधानसभा सीट पर भी बीजेपी विधायक विक्रम सैनी को कोर्ट ने सजा दी और उनकी सदस्यता भी चली गई. वहां भी उपचुनाव हो रहे हैं.
मैनपुरी से समाजवादी पार्टी ने अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी और पूर्व सांसद डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाया है तो रामपुर में समाजवादी पार्टी ने आजम खान के करीबी आसिम रजा को उम्मीदवार बनाया है. पिछले करीब साढ़े चार दशक में यह पहला मौका है जबकि इस सीट पर हो रहे चुनाव में आजम खान के परिवार का कोई भी सदस्य चुनावी मैदान में नहीं है. रामपुर से बीजेपी ने उन आकाश सक्सेना को अपना उम्मीदवार बनाया है जिन्होंने आजम खान को सजा दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
जहां तक मैनपुरी लोकसभा सीट का सवाल है तो बीजेपी ने यहां कभी मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे और समाजवादी पार्टी छोड़कर बीजेपी में आए रघुराज शाक्य को मैदान में उतारा है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनकी टीम लगातार यहां कैंप किए हुए हैं ताकि चुनाव में कोई कसर न रह जाए. उनके सामने पिछले दिनों आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भी हैं जो उनकी पार्टी हार गई थी.
लोकसभा सीटों के लिहाज से देखें तो इन दोनों गढ़ों के बाद मैनपुरी तीसरा गढ़ है जहां उपचुनाव होने हैं और समाजवादी पार्टी किसी भी कीमत पर इसे गंवाना नहीं चाहती. आजमगढ़ और रामपुर में जब लोकसभा के उपचुनाव हो रहे थे तो अखिलेश यादव इन दोनों जगहों पर प्रचार करने भी नहीं गए जबकि आजमगढ़ की सीट खुद उनके इस्तीफे से खाली हुई थी और उनके चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़ रहे थे. रामपुर सीट आजम खान के इस्तीफे से खाली हुई थी. लेकिन मैनपुरी में अखिलेश यादव कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं. यहां तक कि पिछले छह साल से जिन चाचा शिवपाल सिंह यादव से उनकी अदावत चल रही थी, उन्हें भी अब अपने साथ कर लिया है.
सपा का लक्ष्य, मैनपुरी
वरिष्ठ पत्रकार अमिता वर्मा कहती हैं कि समाजवादी पार्टी और उसके अध्यक्ष अखिलेश यादव का पूरा जोर इसी सीट पर है क्योंकि यह सीट न सिर्फ मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई है, सपा का मजबूत गढ़ रही है. उपचुनाव में भी उनकी पत्नी उम्मीदवार हैं और इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली पांच सीटों में से तीन पर समाजवादी पार्टी का ही कब्जा है. इनमें से एक सीट करहल से अखिलेश यादव और दूसरी, जसवंतनगर से शिवपाल यादव विधायक हैं.
अमिता वर्मा कहती हैं, "बीजेपी का मुख्य लक्ष्य रामपुर विधानसभा सीट है क्योंकि मुस्लिम बहुल और आजम खान के प्रभाव वाली उस सीट को जीतकर वो बड़ा संदेश देना चाहती है. लेकिन मैनपुरी में भी वो कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. जिस तरह से भारी-भरकम स्टार प्रचारकों की फौज को बीजेपी ने उतार रखा है, उसे देखते हुए गंभीरता को समझा जा सकता है लेकिन कई कारण हैं जिनकी वजह से यह सीट सपा के पक्ष में ही जाने की संभावना दिख रही है. पहली बात तो यह कि मुलायम सिंह के प्रति संवेदना है, उन्हीं की बहू और अखिलेश की पत्नी चुनाव मैदान में हैं. शिवपाल यादव भी साथ आ गए हैं और जातीय समीकरण सपा के पक्ष में हैं. दूसरी ओर सपा पूरी ताकत भी यहीं झोंक रही है क्योंकि पिछले उपचुनावों से वो इतनी हतोत्साहित सी है कि रामपुर में जीतने की कोशिश भी नहीं कर रही है.”
दरअसल, मैनपुरी की सीट न सिर्फ समाजवादी पार्टी की प्रतिष्ठा से जुड़ी है बल्कि अखिलेश यादव का राजनीतिक भविष्य भी काफी कुछ यहां से तय होता है. यह सीट सपा का गढ़ जरूर है और पार्टी की स्थापना के बाद से समाजवादी पार्टी को छोड़कर कोई दूसरी पार्टी यहां से चुनाव नहीं जीत पाई लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में जब खुद मुलायम सिंह इस सीट से चुनाव लड़ रहे थे और बहुजन समाज पार्टी का भी उसके साथ गठबंधन था, तब भी उनकी जीत का अंतर एक लाख से कम रह गया था और बीजेपी उम्मीदवार को उनसे महज 94 हजार वोट ही कम मिले थे.
इस साल हुए विधानसभा चुनाव में भी सपा के इस मजबूत गढ़ में बीजेपी ने जमकर सेंध लगाई और दो सीटें जीतने में कामयाब रही. यही नहीं, आस-पास की और भी सीटें उसने जीतीं और लोकसभा चुनाव में भी यादव परिवार के कई सदस्यों को भी हार का मुंह देखना पड़ा जिनमें डिंपल यादव भी शामिल हैं. जातीय समीकरणों के लिहाज से भी बीजेपी ने उस शाक्य समुदाय के उम्मीदवार पर दांव लगाया है जिसकी संख्या यादव मतदाताओं की तुलना में थोड़ी ही कम है. अब तक शाक्य जाति के लोग ज्यादातर समाजवादी पार्टी के ही समर्थक हुआ करते थे लेकिन अपनी जाति के उम्मीदवार होने के कारण शायद यह स्थिति पहले जैसी न रहे.
बीजेपी का जोर
राज्य के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पूरे आत्म विश्वास से कहते हैं कि उनकी पार्टी न सिर्फ मैनपुरी बल्कि रामपुर और खतौली विधानसभा सीटें भी भारी बहुमत से जीतेगी. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं, "समाजवादी पार्टी महज एक परिवार की पार्टी है. उनके कार्यकर्ता से लेकर नेता तक यह बात जानते हैं. चुनाव में हार के डर के कारण अखिलेश यादव कहीं प्रचार करने नहीं जा रहे हैं ताकि बाद में हार का ठीकरा उनके ऊपर न फूटे.”
दूसरी ओर रामपुर विधान सभा सीट भी राजनीतिक गलियारों में हॉट सीट के रूप में देखी जा रही है. पिछले 45 साल में यह पहला मौका है जबकि इस सीट पर आजम खान के परिवार का कोई व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ रहा है. 1980 से लेकर अब तक खुद आजम खान यहां से 10 बार चुनाव जीत चुके हैं. उनके सांसद होने पर उनकी पत्नी यहां से चुनाव जीतीं. समाजवादी पार्टी ने जिन आसिम रजा को टिकट दिया है वो आजम खान के करीबी माने जाते हैं लेकिन समाजवादी पार्टी के बड़े नेताओं ने अब तक चुनाव प्रचार से जिस कदर दूरी बना रखी है और दूसरी ओर बीजेपी ने अपने बड़े नेताओं को यहां प्रचार में उतार रखा है, उसे देखते हुए आसिम रजा की राह आसान नहीं दिख रही है.
दूसरी ओर, गैर बीजेपी नेता भी बीजेपी के समर्थन का जिस तरह से ऐलान कर रहे हैं, वह आसिम रजा की मुश्किलें बढ़ाने वाली ही दिख रही हैं. कांग्रेस के नेता नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां, गन्ना विकास परिषद के पूर्व अध्यक्ष बाबर अली खां राष्ट्रीय लोकदल के पूर्व जिलाध्यक्ष मोहम्मद उसमान बीजेपी को समर्थन देने की घोषणा कर चुके हैं.
रामपुर में स्थानीय पत्रकार मुजस्सिम खान कहते हैं, "आजम खान के करीबी और मीडिया प्रभारी रहे फसाहत अली खां के बीजेपी में शामिल होने के बाद समाजवादी पार्टी के नेताओं का मनोबल और भी ज्यादा कमजोर हुआ है. वहीं बीजेपी ने कई मंत्रियों के अलावा मुख्यमंत्री के भी कार्यक्रम यहां लगा रखे हैं. और नेता भी लगातार प्रचार कर रहे हैं. इन सब को देखते हुए तो यही लगता है कि जैसे समाजवादी पार्टी ने पिछले कुछ उपचुनावों में बिना लड़े ही हार मान ली, कुछ ऐसा ही रामपुर में भी कर रही है. बीजेपी के नेताओं का उत्साह और समाजवादी पार्टी के नेताओं की मायूसी को देखकर तो यही लगता है कि बीजेपी का पलड़ा भारी है.”
मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी ने अपने सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकदल को दे रखी है जहां से उसने मदन भैया को अपना उम्मीदवार बनाया है जबकि बीजेपी ने पूर्व विधायक विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी को टिकट दिया है.मुजफ्फरनगर दंगों में शामिल होने के मामले में सजा पाने के बाद विक्रम सैनी की सदस्यता चली गई थी. (dw.com)
असम और मेघालय के बीच मंगलवार को हुई ताजा हिंसा की प्रथम दृष्टया वजह भले लकड़ी के तस्करों के साथ कथित मुठभेड़ हो, इसकी जड़ें दोनों राज्यों के सीमा विवाद में छिपी हैं.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
कुछ महीने पहले ही असम व मेघालय ने 12 में से छह विवादित इलाकों को सुलझाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षरकिए थे. तब उसके सीमा विवाद के समाधान का मॉडल बनने का दावा किया गया था. लेकिन अब मंगलवार को तड़के भड़की ताजा हिंसा ने छह लोगों की बलि ले ली है. हिंसा का सिलसिला बुधवार को भी जारी रहा. दोनों राज्यों के बीच वाहनों की फिलहाल आवाजाही ठप है. मेघालय में सात जिलों में इंटरनेट बंद कर दिया गया है. इस हिंसा के बाद यह सवाल उठने लगा है कि आखिर कब तक बेकसूर लोग सीमा विवाद की बलि चढ़ते रहेंगे और क्यों केंद्र व राज्य सरकार इस विवाद के शीघ्र समाधान की दिशा में ठोस कदम नहीं उठातीं.
असम का इलाके के कम से कम चार राज्यों - मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम के साथ सीमा विवाद चल रहा है. यह विवाद असम से काट कर इन चारों को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने के समय से ही है. इन तमाम विवादों में अक्सर हिंसा होती रही है. अभी बीते साल ही मिजोरम के साथ सीमा विवाद में असम पुलिस के छह जवानों की हत्या कर दी गई थी.
ताजा मामला
असम के वन विभाग के सुरक्षाकर्मियों ने मेघालय सीमा पर मंगलवार को कथित रूप से तस्करी की लकड़ी ले जाने वाले एक ट्रक को रोकने का प्रयास किया था और इसके लिए फायरिंग की थी. लेकिन उसके बाद सीमा पार से सैकड़ों लोगों ने उन सबको घेर लिया. बाद में असम पुलिस के जवानों के मौके पर पहुंचने के बाद वहां हुई हिंसक झड़प में एक सुरक्षाकर्मी समेत छह लोगों की मौत हो गई. इससे महीनों से दबा सीमा विवाद एक बार फिर उभर आया है. दरअसल, दोनों राज्य सरकारों ने छह विवादित इलाकों पर जो समझौता किया था वह स्थानीय लोगों को मंजूर नहीं था. कई विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी उस समझौते को खारिज करने की मांग उठाई थी. इस वजह से स्थानीय लोगों में असम के लोगों के प्रति भारी नाराजगी थी. ऐसा लगता है कि लकड़ी के तस्करों का मामला तो महज इस नाराजगी को चिंगारी देने की वजह बन गया.
इस घटना के बाद दोनों राज्यों में वाहनों की आवाजाही तत्काल रोक दी गई और मेघालय के सात जिलों में इंटरनेट बंद कर दिया गया. इस घटना के बाद मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा से फोन पर बातचीत की. फिर भी तनाव बढ़ रहा है. बुधवार को मेघालय के लोगों ने असम वन विभाग के दफ्तर और असम की नंबर प्लेट वाले कुछ वाहनों में आग लगा दी. मेघालय सरकार ने इस घटना की न्यायिक जांच का आदेश दिया है. इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग में मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल 24 नवंबर को दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करेगा. संगमा ने बताया कि प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से भी मुलाकात करेगा और आवश्यक कार्रवाई के लिए घटना पर रिपोर्ट सौंपेगा.
दूसरी ओर, इस घटना से पैदा तनाव कम करने के लिए असम के मुख्यमंत्री ने जिले के पुलिस अधीक्षक को हटा दिया है और कई वन अधिकारियों को निलंबित कर दिया है. उन्होंने भी घटना की न्यायिक जांच की बात कही है. हिमंता ने बुधवार को पत्रकारों से कहा, "मुझे इस मामले की जांच सीबीआई से कराने पर कोई आपत्ति नहीं है. इस घटना में मृत लोगों के परिजनों को सरकार 5-5 लाख का मुआवजा देगी."
हिंसा पहली बार नहीं
राज्यों के सीमा विवाद पर हिंसा का यह कोई पहला मौका नहीं है. असम और दूसरे राज्यों, जिनकी सीमा उसके साथ सटी है, के बीच अक्सर हिंसक झड़पें होती रही हैं. खासकर मेघालय के साथ तो कई बार ऐसी झड़पें हो चुकी हैं. उसकी 884.9 किमी लंबी सीमा असम के साथ लगी है. इस साल मेघालय के गठन को 50 वर्ष पूरे हो गए हैं. वर्ष 2010 में ऐसी ही एक घटना में लैंगपीह में पुलिस गोलीबारी में चार लोग मारे गए थे. उसके बाद शायद ही कोई साल ऐसा बीता है जब सीमा पर हिंसा नहीं भड़की हो.
सीमा विवाद के चलते ही बीते साल मिजोरम पुलिस के हाथों असम पुलिस के छह जवानों की मौत हो गई थी. असम के साथ मिजोरम की करीब 165 किमी लंबी सीमा सटी है. असम-मिजोरम सीमा विवाद को सुलझाने के लिए वर्ष 1995 से कई दौर की बातचीत हो चुकी है. लेकिन तमाम दावों के बावजूद उसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका है. इसी तरह असम और अरुणाचल प्रदेश बीच सीमा पर सबसे पहले वर्ष 1992 में हिंसक झड़प हुई थी. उसी समय से दोनों पक्ष एक-दूसरे पर अवैध अतिक्रमण और हिंसा भड़काने के आरोप लगाते रहते हैं. उस सीमा पर भी रह-रह कर हिंसा भड़क उठती है.
सीमा विवाद के मुद्दे पर असम और नगालैंड में भी अक्सर हिंसा होती रही है. दोनों राज्यों की सीमा 434 किलोमीटर लंबी है. वर्ष 1979, 1985, 1989, 2007 और 2014 में विभिन्न घटनाओं में नगालैंड से सशस्त्र बलों के हमलों में कई लोग मारे जा चुके हैं. इनमें से ज्यादातर असम के थे. पांच जनवरी, 1979 को असम के जोरहाट जिले के नागालैंड सीमा से लगे गांवों पर हथियारबंद लोगों के हमले में 54 लोग मारे गए थे और करीब 24 हजार लोगों ने भाग कर राहत शिविरों में शरण ली थी. वर्ष 1985 में मेरापानी में असम और नागालैंड के बीच भी ऐसी ही हिंसा हुई थी, जिसमें 28 पुलिसकर्मी समेत 41 लोग मारे गए थे. इसके चार साल बाद यानी वर्ष 1989 में गोलाघाट जिले में हुई हिंसक झड़प में दोनों पक्षों के कम से कम 25 लोग मारे गए थे.
राजनीतिक पर्यवेक्षक धीरेन गोहांई डीडब्ल्यू से कहते हैं, "पूर्वोत्तर में नए राज्यों के गठन के बाद इलाके में उग्रवाद की समस्या ने जिस गंभीरता से सिर उठाया, उससे बाकी तमाम मुद्दे हाशिए पर चले गए. केंद्र की उपेक्षा और इन राज्यों में सत्ता संभालने वाली राजनीतिक पार्टियां सीमा विवाद जैसे गंभीर मुद्दों को सुलझाने की बजाय अपने हितों को साधने में ही जुटी रहीं. यही वजह है कि यह विवाद अब नासूर बन कर जब-तब रिसता रहता है.” वह कहते हैं कि केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों को सीमा विवाद को शीघ्र सुलझाने के लिए एक ठोस कवायद शुरू करनी चाहिए. ऐसा नहीं होने तक इस विवाद के नाम पर अक्सर भड़कने वाली हिंसा में बेकसूर लोगों की बलि चढ़ती रहेगी. (dw.com)
पिछले कुछ महीनों में भारत में हजारों लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं. छंटनी करने वालों में वे टेक कंपनियां सबसे आगे हैं जिनमें कोविड के दौरान जमकर भर्तियां हुई थीं.
डॉयचे वैले पर मुरली कृष्णन की रिपोर्ट-
नेहा सेतिया मुंबई में एक मल्टीनेशनल टेक कंपनी में सीनियर मैनेजर थीं. पिछले महीने जब उनके कई दोस्तों को कंपनी ने नोटिस थमा दिए तो उनके मन में भी आशंकाएं घर करने लगीं. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, "मुझे पता था कि कोविड के दौरान ई-कॉमर्स का विस्फोट हुआ था और तब निवेशक उस ओर आकर्षित हुए थे. बाजार की अस्थिरता के बीच जैसे ही महामारी खत्म हुई, टेक कंपनियों के सामने संकट खड़ा होने लगा. लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि संकट इतनी जल्दी आ जाएगा.”
प्रज्ञा कपूर दिल्ली में एक कंपनी में काम करती हैं. वह कहती हैं कि उनके वरिष्ठों ने उन्हें बता दिया है कि वैश्विक संकट के कारण लोगों की छंटनी की जा रही है. कपूर ने कहा, "मुझे बताया गया कि अब मेरी जरूरत नहीं है. इसका मेरे काम से कोई लेना देना नहीं था. एकाएक उन्होंने मुझे छंटनी की एवज में पैसा दे कर बाहर का रास्ता दिखा दिया.”
मंदी की गड़गड़ाहटः टेस्ला ने कम कर दी हैं भर्तियां
नेहा और प्रज्ञा जैसी कहानियां हजारों भारतीय युवाओं की हैं जिन्होंने पिछले कुछ महीनों में अपनी नौकरियां गवाईं हैं. ये लोग बड़ी टेक कंपनियों से निकाले गए हैं. आमतौर पर माना जाता है कि ये कंपनियां खूब पैसा खर्च करती हैं लेकिन अब ये बड़े पैमाने पर कटौती कर रही हैं.
बड़ी कंपनियों में छंटनी
शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वालीं टेक कंपनियां जैसे कि यूनिकॉर्न बायजू जैसी कंपनियों ने बड़े पैमाने पर छंटनी की है. बायजू तो भारत के सबसे अमीर स्टार्ट-अप में से एक है जिसने पिछले कुछ महीनों में 2,500 लोगों को निकाला है. उद्योग जगत पर नजर रखने वाले लोग बताते हैं कि भारत में 44 स्टार्ट-अप कंपनियों ने अपने यहां छंटनी की है.
अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी छंटनी कर रही हैं.एप्पल, मेटा और एमेजॉन ने या तो नई भर्तियां बंद कर दी हैं या फिर लोगों को निकाला है.
एक जॉब पोर्टल में वरिष्ठ पद पर काम करने वाले एक व्यक्ति ने नाम ना छापने की शर्त पर डॉयचे वेले को बताया, "जब अगस्त में वैश्विक टेक जगत में छंटनियां शुरू हुईं, तभी यह साफ हो गया था कि यह तूफान भारत तक भी पहुंचेगा. यह भी सच है कि अमेरिका में बढ़ती महंगाई के कारण कई कंपनियां अब भारत में भी विज्ञापन पर खर्च नहीं करना चाहतीं. नतीजा छंटनी के रूप में सामने आ रहा है.”
रिपोर्ट बताती हैं कि इलॉन मस्क के कमान संभालने के बाद ट्विटर ने तो अपने लगभग आधे कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया है. उसका असर फेसबुक की कंपनी मेटा पर भी दिखाई दिया जिसने करीब 11,000 लोगों को निकालने की बात कही है. इसका असर भारत में काम करने वाले लोगों पर भी होगा. अन्य कंपनियों में माइक्रोसॉफ्ट, सेल्सफोर्स और ऑरैकल शामिल हैं जहां से लोगों की नौकरियां गई हैं या जा रही हैं.
वैश्विक संकट
पिछले हफ्तों में हुई छंटनी इन कंपनियों के इतिहास की सबसे बड़ी छंटनी कही जा रही है. इसकी वजहों में कोविड महामारी के कारण पैदा हुआ आर्थिक संकट और यूक्रेन युद्ध भी शामिल है. आलम यह है कि अब ऐसी आशंकाएं जताई जा रही हैं कि आईटी कंपनियों के लिए एक अंधेरा युग आने वाला है. भारत को हमेशा आईटी उद्योग में विकास के बड़े रास्ते के रूप में देखा जाता है, इसलिए इस अंधकार का असर भारतीय बाजार पर होना लाजमी है.
यूनिकॉर्न बिजनेस मॉडल और टेक कंपनियों की बर्बादी जैसी आशंकाओं के बीच यह देखा जा रहा है कि स्टार्ट-अप कंपनियों पर दबाव बहुत ज्यादा है और कई कंपनियों ने अपने यहां बड़े बदलाव का ऐलान किया है, जिसका एक हिस्सा लोगों को हटाना भी होगा.
टेक स्टार्ट-अप कंपनियों को कानूनी सलाह-मश्विरा उपलब्ध कराने वाली कंपनी लीगलविज के संस्थापकों में से एक श्रीजय सेठ कहते हैं, "महामारी के दौरान टेक कंपनियों में उछाल आया और अतिरिक्त भर्तियां हुई थीं. जाहिर है, उसका नतीजा उम्मीद के उलट निकला.”
सेठ कहते हैं कि अब कंपनियों के सामने बढ़ी हुई ब्याज दरें भी हैं, जिसके कारण उधार लेने की क्षमता घट गई है. डीड्ब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "वैश्विक आर्थिक संकट के कारण पूरी दुनिया में कंपनियों के लिए तेजी से बदलते हालात का सामना करना मुश्किल हो गया है. भारत भी उस आंच को महसूस कर रहा है. चीजों को शांत होने में एक से दो तिमाहियां लग सकती हैं.” (dw.com)
भारतीय अरबपति गौतम अडाणी के उस मेगा पोर्ट का मछुआरा समुदाय लंबे समय से विरोध कर रहा है, जिसके निर्माण की योजना केरल के विझिंजम में है.
डॉयचे वैले परआमिर अंसारी, आदिल बट की रिपोर्ट-
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में गौतम अडाणी के निर्माणाधीन विझिंजम मेगा पोर्ट की मुख्य सड़कों पर मछुआरे लंबे समय से डटे हुए हैं. यहां ईसाई मछुआरा समुदाय द्वारा बनाए गए शेल्टर की वजह से मुख्य प्रवेश द्वार ब्लॉक हो गया है. इस वजह से पोर्ट का निर्माण कार्य रुका हुआ है. अगस्त महीने से यहां मछुआरे विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. यह शेल्टर लोहे की छत से बना है और करीब 1,200 वर्ग फीट में फैला हुआ है. देश के पहले कंटेनर ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह के निर्माण कार्य के बीच अगस्त के बाद से यह बाधा बनकर खड़ी है.
प्रदर्शनकारियों ने यहां बैनर लगाए हैं और विरोध प्रदर्शन में शामिल होने वाले लोगों के बैठने के लिए 100 के करीब कुर्सियां रखी गईं हैं. यहां बैनर भी लगाए हैं जिनपर लिखा है, "अनिश्चित दिन और रात का विरोध." हालांकि किसी एक दिन धरना में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों की संख्या आमतौर पर बहुत कम ही होती है.
डीडब्ल्यू की टीम ने इस इलाके का दौरा किया था और वहां प्रदर्शन कर रहे मछुआरों से बात की. 49 साल के जैक्सन थुम्बक्करन हर रोज अपने परिवार के साथ प्रदर्शन में शामिल होते हैं.
जैक्सन ने डीडब्ल्यू से कहा, "मेरा घर समुद्र के किनारे पर स्थित है और पिछले साल हमने बोरी में रेत भरकर किसी तरह से अपना घर बचाया था. अब, अगर इस बंदरगाह के कारण पानी बढ़ता है तो मैं अपना घर और परिवार खो दूंगा. इसलिए हम यहां विरोध कर रहे हैं."
सड़क की दूसरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सत्ताधारी पार्टी के सदस्यों और दक्षिणपंथी समूहों सहित बंदरगाह के समर्थकों ने अपने खुद के टेंट लगाए हुए हैं. बीजेपी शुरू से ही अडाणी ग्रुप की इस परियोजना के समर्थन में है.
जब यहां प्रदर्शनकारियों की संख्या कम होती है, तब भी स्थिति की सावधानीपूर्वक निगरानी के लिए 300 पुलिसकर्मी हर वक्त मौजूद रहते हैं. केरल हाईकोर्ट द्वारा बार-बार आदेश देने के बावजूद कि निर्माण बिना रुके आगे बढ़ना चाहिए, पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने से बच रही है, इस डर से कि ऐसा करने से बंदरगाह पर सामाजिक और धार्मिक तनाव की आग भड़क जाएगी.
दुनिया के तीसरे सबसे अमीर शख्स अडानी के लिए 7,500 करोड़ रुपये की लागत वाली यह परियोजना इस विरोध प्रदर्शन के चलते लंबे समय से विवादों में है, जिसका कोई साफ और आसान समाधान नहीं मिल पाया है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बंदरगाह के विरोधियों और उसके समर्थकों के इंटरव्यू लिए हैं. अडाणी समूह की इस परियोजना का विरोध का नेतृत्व कैथोलिक पादरी और स्थानीय लोग कर रहे हैं. विरोध करने वाले लोगों का आरोप है कि दिसंबर 2015 से बंदरगाह के निर्माण के परिणामस्वरूप तट का महत्वपूर्ण क्षरण हुआ है और आगे का निर्माण मछली पकड़ने वाले समुदाय की आजीविका पर असर डाल सकता है. मछुआरे समुदाय का कहना है कि यहां उनकी संख्या करीब 56,000 है. वे चाहते हैं कि सरकार समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर बंदरगाह के निर्माण से होने वाले प्रभाव के अध्ययन का आदेश दे.
अदाणी समूह ने एक बयान में कहा कि यह परियोजना सभी कानूनों का पालन करती है और हाल के वर्षों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और अन्य संस्थानों द्वारा किए गए कई अध्ययनों ने तटरेखा क्षरण के लिए परियोजना की जिम्मेदारी से संबंधित आरोपों को खारिज कर दिया है.
विझिंजम पोर्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राजेश झा ने डीडब्ल्यू से कहा कि यह बंदरगाह राज्य और देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है. झा के मुताबिक, "अब यहां सभी रोजगार, स्थानीय रोजगार का एक बड़ा हिस्सा मछुआरा समुदाय के पास जाएगा, इसलिए वे रोजगार के मामले में और आर्थिक लाभ के मामले में अहम लाभार्थी होंगे."
केरल सरकार जो प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत कर रही है उसका तर्क है कि चक्रवात और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण क्षरण हुआ है. (dw.com)
टोरंटो, 25 नवंबर | सरे के एक स्कूल की पाकिर्ंग में चाकू मारकर मौत के घाट उतारे गए 18 वर्षीय महकप्रीत सेठी के पिता ने एक समाचार चैनल से कहा है कि उन्हें अपने बच्चों के साथ कनाडा आने का पछतावा है। मंगलवार को न्यूटन क्षेत्र के तमनाविस माध्यमिक विद्यालय के 17 वर्षीय छात्र ने द्वारा महकप्रीत सेठी पर चाकू से हमला कर दिया था, जिसकी बाद में अस्पताल में मौत हो गई थी।
महकप्रीत के पिता हर्षप्रीत सेठी ने ओमनी पंजाबी को बताया, जब मैं अस्पताल गया, तो डॉक्टरों ने मुझे बताया कि चाकू सीधे उसके दिल में घुस गया, जिससे उसकी मौत हो गई।
परिवार आठ साल पहले दुबई से कनाडा चला गया था। चैनल ने बताया कि वे पंजाब के फरीदकोट जिले के रहने वाले हैं।
हर्षप्रीत ने कहा, मैं इस उम्मीद के साथ कनाडा आया था कि मेरे बच्चों का भविष्य बेहतर होगा, वे सुरक्षित रहेंगे, लेकिन अब मुझे पछतावा हो रहा है कि मैं अपने बच्चों के साथ इस देश में क्यों आया।
हर्षप्रीत ने स्थानीय टीवी चैनल को बताया कि हमलावर उनके बेटे की जान लेने के बजाय उसे थप्पड़ मार सकता था, उसके हाथ या पैर पर वार कर सकता था।
पुलिस ने संदिग्ध को हिरासत में ले लिया है।
हरप्रीत ने कहा कि 18 साल तक बच्चों को पालना और फिर इस तरह की घटना में उन्हें खो देना आसान नहीं होता है, उसके माता-पिता ने उसे (संदिग्ध) किस तरह की परवरिश दी है?
तमनाविस माध्यमिक विद्यालय के कार्यवाहक प्रधानाचार्य द्वारा जारी एक बयान के अनुसार महकप्रीत स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले अपने छोटे भाई भवप्रीत को लेने गया था।
महकप्रीत की बहन ने ओमनी पंजाबी को बताया कि उसने जन्मदिन पर भवप्रीत के लिए नए कपड़े खरीदने की योजना बनाई थी, इसलिए वह लंच ब्रेक के दौरान उसे लेने गया था।
इंटीग्रेटेड होमिसाइड इन्वेस्टिगेशन टीम के सार्जेंट टिमोथी पिएरोटी ने एक बयान में मामले में गवाहों से आगे आने और जानकारी साझा करने का अनुरोध किया है। (आईएएनएस)|
बरेली (उत्तर प्रदेश), 25 नवंबर | बरेली की एक अदालत ने 33 वर्षीय नि:संतान महिला को उम्रकैद की सजा सुनाई है, जिसने तांत्रिक के नाम पर अपने पड़ोसी के 10 वर्षीय बेटे की हत्या कर उसका खून पी लिया था। महिला का मानना था कि इससे उसे संतान पैदा करने में मदद मिलेगी।
महिला के प्रेमी और अपराध में उसकी मदद करने वाले उसके चचेरे भाई को भी उम्रकैद की सजा दी गई है।
वारदात 5 दिसंबर, 2017 को रोजा थाना क्षेत्र के जमुका गांव में हुई थी।
धन देवी ने अपने प्रेमी सूरज और चचेरे भाई सुनील कुमार की मदद से अपने पड़ोसी के बेटे का अपहरण कर लिया और उसकी हत्या कर दी थी।
घटना के तीन दिन बाद 8 दिसंबर को उसे गिरफ्तार किया गया था।
अतिरिक्त जिला सरकारी वकील विनोद शुक्ला ने कहा, यह एक भयानक अपराध था। महिला ने पहले बच्चे का खून निकाला, उसे अपने चेहरे पर लगाया और उसे मारने से पहले खून की कुछ बूंदें पी लीं।
अपनी गिरफ्तारी के बाद महिला ने जांच अधिकारी को बताया कि शादी के छह साल बाद भी गर्भधारण करने में विफल रहने के बाद एक तांत्रिक के कहने पर ऐसा किया।
ससुराल में तानों से तंग आकर धन देवी पीलीभीत जिले के माधोटांडा निवासी अपने पति धर्मपाल को छोड़कर शाहजहांपुर में अपने रिश्तेदारों के यहां रहने लगी थी, जहां तांत्रिक से उसकी मुलाकात हुई.
बच्चे के परिवार ने आरोपी के लिए मौत की सजा की मांग की थी। (आईएएनएस)|
श्रीनगर, 25 नवंबर | पिछले 24 घंटों के दौरान न्यूनतम तापमान में और गिरावट के साथ जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पारा लगातार गिर रहा है। मौसम विभाग (एमईटी) कार्यालय ने शुक्रवार को मौसम शुष्क रहने का अनुमान जताया है। अगले 24 घंटों के दौरान जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में मौसम शुष्क रहने की उम्मीद है। रात के तापमान में और गिरावट आने की संभावना है।
मौसम विभाग के एक अधिकारी ने कहा, घाटी और लद्दाख क्षेत्र में न्यूनतम तापमान आज हिमांक बिंदु से नीचे रहा।
श्रीनगर में न्यूनतम तापमान शून्य से 1.4, पहलगाम में शून्य से 3.6 और गुलमर्ग में शून्य डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।
लद्दाख क्षेत्र के द्रास कस्बे में न्यूनतम तापमान माइनस 12.7, कारगिल में माइनस 11.3 और लेह में माइनस 8.8 रहा।
जम्मू और कटरा दोनों में न्यूनतम तापमान 9.8, बटोटे 5.6, बनिहाल 5 और भद्रवाह 3.4 डिग्री सेल्सियस रहा। (आईएएनएस)|
गाजियाबाद, 25 नवंबर (आईएएनएस)| गाजियाबाद के विजयनगर इलाके में बीती रात बदमाशों ने एक फैक्ट्री पर धावा बोलकर डकैती डाली। पुलिस अब इस मामले की जांच कर रही है। गाजियाबाद के विजय नगर थाना क्षेत्र के इंडस्ट्रियल एरिया में बने गुप्ता मेटल वर्क्स में बीती रात करीब 3 बजे बदमाशों ने धावा बोलकर डकैती की घटना को अंजाम दिया। घटना में मौजूद तीन से चार बदमाशों ने फैक्ट्री के अंदर धावा बोलकर गार्ड को बंधक बना लिया और उसके बाद कॉपर और लेड का स्क्रैप लूट कर ले गए।
पुलिस अधिकारियों ने बताया है कि मामले की सूचना मिलते ही मौके पर पुलिस की टीम पहुंची है और छानबीन कर रही है। इस मामले में विजयनगर थाने में मामला दर्ज कर लिया गया है और पुलिस की 5 टीमें बनाई गई हैं, जो इन बदमाशों को पकड़ने का प्रयास कर रही हैं। पुलिस के मुताबिक जल्द ही इस केस को वर्क आउट कर लिया जाएगा।
नई दिल्ली, 25 नवंबर (आईएएनएस)| झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा में स्तिथ बूढ़ा पहाड़ पर चल रहे नक्सल विरोधी अभियान ऑपरेशन ऑक्टोपस के तहत गुरुवार को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) को एक बार फिर बड़ी सफलता हाथ लगी है। सीआरपीएफ और पुलिस के संयुक्त अभियान में बूढ़ा पहाड़ के जंगलों में नक्सलियों द्वारा छुपाए गए करीब 12 आईईडी बरामद किए गए। सीआरपीएफ ने बताया कि नक्सलियों के कभी गढ़ रहे और अब सुरक्षा बलों के कब्जे में आए बूढ़ा पहाड़ के बलरामपुर के जंगल से एक गुप्त सूचना के आधार पर गुरुवार को सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन और छत्तीसगढ़ पुलिस के संयुक्त अभियान के दौरान जंगल में नक्सलियों द्वारा लगाए गए 12 आईईडी बम बरामद किए गए।
बरामद सभी आईईडी को मौके पर ही डिफ्यूज कर दिया गया। इसके बाद तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। पूरी कार्यवाही को सीआरपीएफ की 203 कोबरा बटालियन सहित छत्तीसगढ़ पुलिस के साथ मिलकर अंजाम दिया गया। गौरतलब है कि इसके पहले 19 नवंबर को भी बूढ़ा पहाड़ से करीब 120 आईईडी बरामद किए गए थे।
दरअसल पिछले महीने बूढ़ा पहाड़ को नक्सल मुक्त करने के लिए चलाए गए ऑक्टोपस नामक अभियान के दौरान जब से बूढ़ा पहाड़ पर सीआरपीएफ की बटालियन ने अस्थाई कैंप स्थापित किया है, तब से नक्सली अपने इस सुरक्षित ठिकाने को छोड़कर भाग खड़े हुए हैं। जवानों द्वारा काफी बड़े इलाके में फैले इस जंगल के क्षेत्रों में लगातार सर्च अभियान चलाकर विस्फोटक सामग्री बरामद की जा रही है। (आईएएनएस)|
जयपुर, 25 नवंबर | राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में फायरिंग की घटना के बाद तनाव फैल गया, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई। हत्या के विरोध में लोगों के सड़कों पर उतरने के बाद पुलिस ने इंटरनेट सेवाओं को 48 घंटे के लिए बंद कर दिया गया। पुलिस अधीक्षक (एसपी) आदर्श सिद्धू ने शुक्रवार को कहा कि दो आरोपियों को हिरासत में लिया गया है। गुरुवार को दो बाइक पर आए चार बदमाशों ने एक युवक की गोली मारकर हत्या कर दी। घटना के तुरंत बाद सड़क पर अफरातफरी मच गई। पुलिस ने सड़कों को जाम कर दिया, लेकिन हत्यारे पकड़े नहीं गए. प्रशासन ने माहौल बिगड़ने की आशंका को देखते हुए जिले में 48 घंटे के लिए इंटरनेट पर रोक लगा दी है।
एएसपी ज्येष्ठा मैत्रेयी ने बताया कि मुंशी खान पठान के दो भाई अपराह्न् लगभग 3.30 बजे इब्राहिम पठान उर्फ भूरा (34) और कमरुद्दीन उर्फ टोनी (22) भीलवाड़ा के बदला चौराहे से हरनी महादेव की ओर जा रहे थे। गुरुवार को दो बाइक पर सवार चार बदमाश आए और इमामुद्दीन व इब्राहिम पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. उन्होंने तीन राउंड फायरिंग की। एक गोली इब्राहिम पठान को लगी, जिसकी मौत हो गई। उसका भाई टोनी भी घायल हो गया। आसपास के लोग कुछ समझ पाते इससे पहले ही बदमाश भाग गए। सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची और दोनों को महात्मा गांधी अस्पताल ले गई।
युवक की मौत के बाद उसके परिजनों व अन्य लोगों ने अस्पताल के अंदर हंगामा कर दिया। भीड़ ने जैसे ही संपत्ति में तोड़फोड़ शुरू की, पुलिस को सूचित किया गया। परिवार ने 50 लाख रुपये मुआवजा, सरकारी नौकरी और घायलों को 10 लाख रुपये देने की मांग की है। करीब आधे घंटे तक चले हंगामे के बाद पुलिस ने उन्हें अस्पताल से खदेड़ दिया।
महात्मा गांधी अस्पताल, बदला चौराहा, भीमगंज, सीटी कोतवाली सहित शहर में जगह-जगह पुलिस बल तैनात रहा और प्रशासन ने अगले 48 घंटे के लिए इंटरनेट पर रोक लगा दी है। (आईएएनएस)|
पटना, 25 नवंबर | बिहार में खासकर राजधानी पटना में लुटेरों के निशाने पर अब आभूषण दुकानें हैं। कुछ मामलों को लेकर पुलिस खुलासा करने का दावा करती है और अपराधियों की गिरफ्तारी भी होती है, लेकिन कई मामलों में पुलिस के हाथ खाली हैं। पटना के बिहटा में गुरुवार को सुबह हथियारबंद अपराधियों ने गुप्ता ज्वेलर्स को निशाना बनाया। लुटेरों ने करीब 15 लाख रुपए के आभूषण तथा डेढ़ से दो लाख रुपये की नकद लूट ली और फरार हो गए। अपराधियों की संख्या तीन बताई जा रही है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
पटना के बाकरगंज में भी लुटेरों ने 19 नवंबर को एक सरार्फा व्यापारी से 10 लाख रुपए नकद लूट लिए थे।
आंकड़ों पर गौर करें तो इस वर्ष लुटेरों के निशाने पर आभूषण व्यापारी रहे हैं। जनवरी में राजीव नगर के सुहागन ज्वेलर्स में घुसकर दुकानदार को गोली मारी गई थी। साल के पहले महीने में ही अनीसाबाद के आईआईएफएल गोल्ड लोन कंपनी के कार्यालय से करीब पांच करोड़ से अधिक का सोना लूटकर आरोपी फरार हो गए थे।
जनवरी में ही बाकरगंज में एसएस ज्वेलर्स में लुटेरों ने बड़ी लूट की घटना को अंजाम दिया था। लुटेरों ने करीब 10 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य के आभूषण लूट लिए थे।
पुलिस के अधिकारी कहते हैं घटना के बाद पुलिस मामले की छानबीन करती है और अपराधियों की गिरफ्तारी भी की जाती है। (आईएएनएस)|
चेन्नई, 25 नवंबर | तमिलनाडु के किसान जल्द ही आधुनिक कृषि तकनीक हासिल करेंगे। राज्य सरकार 100 किसानों को प्रशिक्षण के लिए इजराइल भेजेगी। तमिलनाडु के कृषि मंत्री एम.आर.के. पन्नीरसेल्वम ने कहा कि 100 किसानों को प्रशिक्षण के लिए इजराइल भेजा जाएगा।
महिला सशक्तिकरण पर दो दिवसीय भारत-इजराइल सम्मेलन में भाग लेने के दौरान मंत्री ने यह बात कही।
दो दिवसीय सम्मेलन में देश भर से 100 से अधिक महिला बागवानी अधिकारियों ने भाग लिया।
गौरतलब है कि इजराइल कृषि तकनीक में विश्व में अग्रणी है और राज्य सरकार ने चुनिंदा किसानों को नवीनतम तकनीक में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए इजराइल भेजने का फैसला किया है।
तमिलनाडु सरकार प्रशिक्षण का खर्च वहन करेगी। (आईएएनएस)|
चिक्काबल्लापुर (कर्नाटक), 25 नवंबर | कर्नाटक पुलिस ने शुक्रवार को कहा कि बीएसएफ के एक पूर्व कमांडेंट को एक पुलिसकर्मी के घर में डकैती के मामले में गिरफ्तार किया गया है। राज्य के चिक्काबल्लापुर जिले में घटना के दौरान लुटेरों ने फायरिंग कर दी जिसमें पुलिसकर्मी का बेटा घायल हो गया।
उत्तर प्रदेश का रहने वाला वीरेंद्र सिंह ठाकुर पूर्व फौजी है, जो डकैती का मास्टरमाइंड निकला। पुलिस ने इस मामले में उसके दत्तक बेटे 25 वर्षीय हैदर को भी गिरफ्तार किया है।
उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश के अंतरराज्यीय लुटेरों के गिरोह ने दो सप्ताह पहले पुलिसकर्मी के घर में लूटपाट की थी और उसके बेटे को गोली मार दी थी।
गिरोह ने एक सहायक पुलिस उप-निरीक्षक (एएसआई) नारायण स्वामी के घर में घुसकर उनके बेटे को गोली मार दी और पारसंद्रा गांव में सोने के आभूषण और नकदी लूट ली।
लुटेरों ने एएसआई नारायणस्वामी के बेटे शरथ को तीन गोलियां मारी। उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया और उसकी हालत अब भी गंभीर बनी हुई है।
जांच से पता चला कि हैदर वह व्यक्ति था जिसने गोली चलाई। आरोपी व्यक्तियों की गिरफ्तारी के लिए 10 दिनों तक पुलिस टीम उत्तर प्रदेश में तैनात रही।
पुलिस ने इससे पहले मामले के संबंध में उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के बहिराम शहर से तीन आरोपियों, आरिफ (35), रामपुर जिले के चिंतामन खाटे गांव निवासी जमशेद खान (27) और आंध्र प्रदेश के सत्य साईं जिले के कादिरी शहर के पठान मोहम्मद हैरिस खान (30) को गिरफ्तार किया है।
पुलिस ने आरोपियों के पास से तीन बंदूकें, 46 गोलियां, 3.41 लाख रुपये नकद, सोने की मांगल्या की चेन, 21 चांदी की वस्तुएं और अपराध में प्रयुक्त कार बरामद की। मामले में अन्य आरोपियों की तलाश की जा रही है। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 25 नवंबर | केंद्र ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में अलग-अलग पदों पर तीन अधिकारियों की नियुक्ति की है। कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा जारी एक आदेश के अनुसार, 1998 बैच के आईएफएस अधिकारी दीपक मित्तल को विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) के रूप में नियुक्त किया गया है।
इसी तरह, विपिन कुमार, आईएफएस (2013) की तीन साल के कार्यकाल के लिए उप सचिव के रूप में नियुक्ति और निधि तिवारी, आईएफएस (2014) की प्रधानमंत्री कार्यालय में तीन साल के कार्यकाल के लिए अवर सचिव के रूप में नियुक्ति को कैबिनेट की नियुक्ति समिति द्वारा अनुमोदित किया गया है।
इसके अलावा, एसीसी ने पीएमओ में संयुक्त सचिव रुद्र गौरव श्रेष्ठ के कार्यकाल में 9 फरवरी, 2023 से दो महीने की अवधि के लिए या मित्तल के ओएसडी के रूप में शामिल होने के तीन सप्ताह बाद तक के विस्तार को मंजूरी दे दी है। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 25 नवंबर | दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशालय (डीओवी) ने 193 स्कूलों में 2,405 कक्षाओं के निर्माण में कथित 'अनियमितता और भ्रष्टाचार' के एक मामले में अपनी रिपोर्ट मुख्य सचिव को सौंप जांच की सिफारिश की है। शिक्षा विभाग और पीडब्ल्यूडी की जांच-पड़ताल के बाद तैयार की गई डीओवी रिपोर्ट प्रथमदृष्टया एक बड़े घोटाले की ओर इशारा करती है। मामले में एक विशेष एजेंसी द्वारा जांच का सुझाव दिया है।
डीओवी ने इस साल 22 अगस्त को की गई एक शिकायत के बाद मामले में रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इसमें केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की 17 फरवरी, 2020 की रिपोर्ट के संबंध में दिल्ली के विभिन्न स्कूलों में अतिरिक्त कक्षाओं के निर्माण में गंभीर अनियमितताओं को उजागर किया गया है। सीवीसी ने मामले पर टिप्पणी के लिए डीओवी को रिपोर्ट भेजी थी।
सतर्कता विभाग ने शिक्षा विभाग और पीडब्ल्यूडी के संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारियों को तय करने की भी सिफारिश की है, जो लगभग 1,300 करोड़ रुपये के घोटाले में शामिल थे। शुक्रवार को एक सूत्र ने बताया कि इसने पीडब्ल्यूडी और शिक्षा विभाग के जवाबों के साथ अपने निष्कर्षों को सीवीसी को विचार के लिए भेजने की भी सिफारिश की है।
निविदा प्रक्रिया के साथ छेड़छाड़ करने के लिए कई प्रक्रियात्मक खामियों, नियमों के उल्लंघन के अलावा डीओवी ने अपनी रिपोर्ट में विशेष रूप से निजी व्यक्तियों की भूमिका को रेखांकित किया है। मैसर्स बब्बर एंड बब्बर एसोसिएट्स ने अवैध रूप से न केवल 21 जून, 2016 को तत्कालीन पीडब्ल्यूडी मंत्री के कक्ष में आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग लिया, बल्कि पोस्ट-टेंडर के लिए मंत्री को भी प्रभावित किया।
रिपोर्ट में सचिव (सतर्कता) ने लिखा है कि गैर संवैधानिक एजेंसियां/व्यक्ति (जैसे मैसर्स बब्बर और बब्बर एसोसिएट्स) प्रशासन चला रहे थे और नियम व शर्तें निर्धारित कर रहे थे। इस तरह के ²ष्टिकोण से प्रशासनिक अराजकता पैदा होगी। (आईएएनएस)|