अंतरराष्ट्रीय
फिलहाल दुनिया के सबसे महंगे और महान पेंटर माने जाते हैं पाब्लो पिकासो. उन्होंने पेंटिंग्स को नए तेवर और नई धाराएं दीं और साथ में ऐसे वो प्रयोग किए, जो वाकई अनोखे थे. पाब्लो पिकासो का आज यानि 25 अक्टूबर को जन्मदिन है. वो स्पेन के मलागा में 1881 में पैदा हुए थे. बचपन बहुत अच्छा नहीं था. जवानी भी गुरबत में ज्यादा बीती. बहुत संघर्ष करना पड़ा. फिर जब पहचान बनी तो ऐश्वर्य और धन उनके कदमों में लोटने लगा. पिकासो फितरती थे. बेहद रोमांटिक. जैसे जैसे बूढ़े हुए, ज्यादा रोमानी तबीयत के होते चले गए. यही वजह थी कि 70 साल की उम्र में उनके जीवन में 19 साल की एक लड़की प्रेमिका बनकर आई. वैसे उन्होंने अपने जीवन में घोषित तौर पर 07 प्यार किए और अघोषित तौर पर कहीं ज्यादा.
स्पेन के मशहूर चित्रकार पाब्लो पिकासो की प्रेमिकाएं अलग-अलग समय में उनके चित्रों में छाई रहीं. उन्होंने जिससे प्रेम किया. उसे कैनवस पर भी उतारा. उनकी प्रेमिकाओं में फर्नांदे ओलिवर, रूसी बैले डांसर ओल्गा कोकलोवा, फ्रेंग्सवाज जीलो, जैक़लीन शामिल रहीं. कई महिलाएं कम वक़्त के लिए उनके संपर्क में रहीं. लेकिन ये सवाल जरूर पूछा जाता रहा है कि पिकासो ने भी अपनी पेंटिंग्स में एक मोनालिसा बनाई थी, वो कौन थी. शायद इसका जवाब है सिलवेट डेविड.
ये कहने में कोई हर्ज नहीं कि पाब्लो देखने में सुंदर था. उसकी आंखें खूबसूरत और आर-पार छेदने वाली ओजस्वी सी लगती थीं. देहयष्टि गठी हुई. वह कद में छोटे थे लेकिन आकर्षक. उन्हें पहला प्यार 12 साल 06 महीने की उम्र में ही हो गया. लड़की की उम्र भी इसी के आसपास रही होगी. पाब्लो ने उसका पीछा करना शुरू कर दिया. नतीजतन लड़की को उसके परिवारवालों ने किसी दूसरे शहर भेज दिया.
पिकासो को जल्दी ही प्रेम होता था और जल्दी ही उससे ऊब भी जाते थे. हर बार खुद को प्रेम से दूर कर लेते थे. लेकिन ये सही है कि उनकी सभी प्रेमिकाओं ने उनकी पेंटिंग्स और पेटिंग्स के मूड पर बहुत असर डाला. हर प्यार के अफसाने के बाद पिकासो की पेंटिंग्स ने नया टर्न लिया.
पहली प्रेमिका
वर्ष 1904 में पिकासो 23 साल के थे. संघर्ष कर रहे थे. लोग जानते नहीं थे. तब उनकी पहली प्रेमिका बनीं फर्नांदे ओलिवर. तभी पिकासो ने अपनी मशहूर पेंटिंग्स ‘द रोज़ पीरियड’ पर काम किया. माना जाता है कि तब उन्होंने अपनी पेंटिंग्स में जिस महिला को उकेरा, वो ओलिवर ही थीं. दोनों 09 साल साथ रहे. लेकिन पिकासो का प्रेम बहुत अजीब था.
अगर ओलिवर कुछ देर के लिए बाहर जाती थी तो वो उसके लिए व्याकुल हो जाते थे. उस पर शक करने लगते थे. अगर वो खुद कहीं बाहर जाते थे तो प्रेमिका को ताले में बंद करके जाते थे.
दूसरा प्रेम
हालांकि कुछ सालों में अपनी पेंटिंग्स के साथ पिकासो पहचान बनाने लगे थे. साथ ही पेंटिंग्स में शैली पर भी प्रयोग कर रहे थे. उन्होंने एक नया स्टाइल विकसित किया क्यूबिज्म, जिसे लेकर अब भी उनकी बहुत चर्चा होती है. वह व्यस्त थे. उसी समय उनके जीवन एवा गूल एक नए झोंके की तरह आई. लेकिन वो ओलिवर की तरह पिकासो के सामने हर मामले पर समझौता करने वाली नहीं बल्कि बेधड़क, बोल्ड और टकराने वाली.
ये प्रेम-संबंध बहुत छोटा रहा. एवा ने दूर होने की धमकी दी तो पिकासो ने खुद ही अपने को दूर कर लिया. एवा बर्दाश्त नहीं कर पाई. अवसाद, मनोरोग की वह शिकार हुई. टीबी की बीमारी भी. 1915 में उसकी मृत्यु हो गई. ये बात सही है कि उसकी मौत ने पिकासो को तोड़ दिया. आप जब भी पिकासो की क्यूबिज्म शैली की पेंटिंग्स देखें तो एवा को जरूर याद करें.
फिर रूसी नर्तकी जीवन में आई
फिर खूबसूरत रूसी नर्तकी ओल्गा कोकलोवा उनके जीवन में आई. दोनों के प्रेम संबंध भी अजीब तरीके से बने. दरअसल पिकासो के प्रेम संबंध ओल्गा की कई फ्रेंड्स से थे. उसी दौरान वो ओल्गा की ओर आकर्षित हुए. और इस कदर हुए कि उन्हें लगा कि ऐसा प्रेम उन्हें इससे पहले कभी नहीं हुआ. ओल्गा रूसी नर्तकी थी. यूरोप में बड़े लोगों के बीच उसका उठना बैठना था. उसने पिकासो को भी अभिजात्य सर्किल से रू-ब-रू कराया.
इसका फायदा भी उन्हें हुआ. हालांकि दोनों को कुछ समय बाद लगने लगा कि वो दोनों एक दूसरे के लिए नहीं बने हैं. उनकी शादी 1918 में हुई और अलगाव 1935 में. हालांकि इस बीच भी पिकासो के जीवन में कई लड़कियां आईं और गईं.
पिकासो ने फिर पेंटिंग्स के साथ नया प्रयोग किया. वो सुंदर चीजों को भद्देपन में बदल देते थे. उनका रंगों का इस्तेमाल भी ज्यादा लाउड और आक्रामक हो गया.
हालांकि ओल्गा इस दौरान पिकासो की आदतों औऱ जीवन से इतना परेशान हो गई कि उसे नर्वस ब्रेकडाउन हो गया. वो विक्षिप्त-सी हो गई. हालत ये हो गई कि उसने पिकासो से तलाक मांगा. उन्होंने इसलिए ऐसा नहीं किया क्योंकि संपत्ति के एक बड़े हिस्से से हाथ धो सकते थे. दोनों के एक बेटा हुआ. 17 साल की शादी के बाद ओल्गा तब बेटे के साथ अलग हो गई जब उसने सुना कि पिकासो का अफेयर 17 साल की वाल्टर के साथ चल रहा है. ये खबरें भी आईं कि वो प्रेग्नेंट है. ओल्गा का निधन 1955 में हुआ लेकिन पिकासो ने उसे कभी तलाक नहीं दिया.
एक नई प्रेमिका
पिकासो 45 साल का हो चुका था. उसके पास शोहरत भी थी. पैसा भी. वो दुनिया के बड़े पेंटर्स में शुमार होने लगा था. यूरोप के तमाम देशों में उसकी पेंटिंग्स सराही जा रही थीं. प्रदर्शनी लग रही थी लेकिन पिकासो फिर नई नई लड़कियों की ओर आकर्षित हो रहा था. 1920 के दशक के खत्म होते होते वो 17 साल की फ्रेंच लड़की मैरी थेरेसा वाल्टर के साथ प्रेम की पींगें बढ़ा रहा था. हालांकि दोनों ने शुरू में अपने इस रिश्ते को छिपाने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
पिकासो ने अपने घर के सामने एक मकान किराए पर लेकर मैरी को दिया. कुछ ही बरसों बाद उन्होंने एक महलनुमा स्टूडियो बनाया. मैरी वहां रहने लगी. 1935 में मैरी ने बेटी को जन्म दिया. हालांकि मैरी से रिश्ते के दिनों में पिकासो की पेंटिंग्स में भी खुशी और उत्साह झलकता था. उसकी पेटिंग में इन दिनों जो स्त्री दिखती है वो दरअसल मैरी ही है.हालांकि मैरी भी बहुत दुखी होकर अपनी बेटी के साथ उन्हें छोड़कर चली गई. हालांकि पिकासो ने हमेशा उसकी आर्थिक मदद तो की लेकिन उन्हीं के चलते उसने फांसी लगाकर खुदकुशी भी कर ली.
अब डोरा मार जीवन में आई
एक तरफ तो पिकासो मैरी के साथ रह रहे थे. उसकी बेटी के पिता बन चुके थे लेकिन वह उससे उबने लगे और उनकी आंखें डोरा मार से चार हुईं. ये रिश्ता 1935 से 1943 तक चला. होरा बेइंतिहा खूबसूरत थी. जब वो पिकासो से मिली तो 26-27 की उम्र की थी. कहा जाता है कि पिकासो की महान पेंटिंग गेर्निका डोरा मार से प्यार की परिणति है. इसमें सुंदर सा महिला का चेहरा डोरा का ही है, जो युद्ध की विभीषिका में रो रही है.सात साल बाद पिकासो डोरा मार से भी अलग हो गए. डोरा को इससे गहरा सदमा लगा.
पिकासो की अजीब मानसिकता
पिकासो हमेशा उन हालात को पसंद करते थे जब दो महिलाएं उनके लिए आपस में लड़ जाएं. मैरी और डोरा के बीच उनके सामने जमकर हाथापाई हुई औऱ पिकासो कुर्सी पर बैठकर उसका आनंद लेते रहे.
फिर 30 साल छोटी जीलो पर मरमिटे
पिकासो 63 साल के थे और तब पेंटिंग्स की मेघावी छात्रा 23 वर्षीय जीलो उनपर मरमिटी. वो खुद बहुत शानदार पेंटर थी. अगर वो पिकासो की बजाए स्वतंत्र रहकर काम करती तो ज्यादा बड़ी पेंटर बन सकती थी. हालांकि उसने आर्ट क्रिटिक के तौर पर काफी नाम कमाया. बाद में जीलो की स्थिति भी पागलपन वाली होने लगी. उसने 10 साल साथ रहने के बाद पिकासो को छोड़ दिया
अलग होने के बाद उसने किताब लिखी- लाइफ़ विद पिकासो, जिसकी लाखों प्रतियां बिकीं. पिकासो ने इसका प्रकाशन रुकवाने के लिए कोर्ट का रुख भी किया लेकिन उस मुकदमे में वो हार गए.
1940 और 1950 के दशक में पिकासो के साथ रही फ्रेंग्सवाज जीलो भी पिकासो के बच्चों की मां बनी. जीलो लिखती हैं, “मुझे लगने लगा था कि अगर मैं उसे और करीब से देखूंगी या साथ रहूंगाी तो उनकी आधा दर्जन पूर्व पत्नियों के सिर फंदे से लटके मिलेंगे.फिर 27 साल की जैकलीन के साथ दूसरी शादी की
पिकासो बेशक बूढे हो रहे हों लेकिन दिल से जवान होते जा रहे थे. ज्यादा रोमानियत भरे होते जा रहे थे. अबकी बार उनके जीवन कई छिटपुट संबंधों के बाजद 27 साल की जैकलीन रोके से रिश्ते बने. रोके से उन्हें पहली नजर में प्यार हो गया. वह 06 महीने तक लगातार हर रोके को गुलाब देते रहे. आखिरकार विवाहित रोके भी उनके प्यार में पड़ गई.
फिर पति को तलाक देकर पिकासो से शादी कर ली. ये शादी 1961 में हुई यानि पिकासो की उम्र 80 की होने पर. रोके न केवल उनकी पत्नी थी, बुढ़ापे का भी सहारा, बल्कि उनकी सेक्रेटरी भी. 1973 में पिकासो की मौत के बाद उनकी जायदाद को लेकर विवाद हो गया.वो प्रेमिका कौन थी, जो उनकी मोनालिसा बनी
शायद ये बात तब की जब पिकासो ने दूसरी शादी नहीं की थी. तब उनके जीवन में एक और लड़की आई. जो उनसे 50 साल छोटी थी. उसका नाम था सिलवेट डेविड. दोनों की मुलाकात 1954 में हुई. पिकासो तब अंतरराष्ट्रीय सैलेब्रिटी थे. फ्रांस के वैलेयुरिस में आलीशान महल में रहते थे. 70 बरस से अधिक के हो चले पिकासो की नज़र तब सिलवेट पर पड़ी. 19 साल की सिलवेट के बाल सुनहरे थे और वह सिर पर ऊंची चोटी बांधा करती थीं.
कुछ ही महीने पहले सिलवेट और उनके मंगेतर टोबी जेलीनेक वैलेयुरिस शहर आए थे. उसके पति ने वहीं अपना फर्नीचर का स्टूडियो खोला, जहां से पिकासो ने कुछ कुर्सियां खरीदी थीं. वहां उनकी निगाह पहली बार सिलवेट पर पड़ी. वो मोहित हो गए. उन्होंने उसकी एक पेंटिंग बनाई.बालों की लट और पोनीटेल वाली एक महिला की यह साधारण सी तस्वीर थी.
फिर उन्होंने सिलवेट स्टूडियो में नियमित तौर पर बैठने के लिए मनाया ताकि उसकी कुछ पेंटिंग्स बना सकें. पिकासो ने सिलवेट के 60 से अधिक रेखाचित्र बना डाले, जिसमें 28 कलाकृतियां शामिल थीं. शायद यह पहली बार था कि किसी ख़ास महिला के उन्होंने इतने रेखाचित्र बनाए हों. और यही सिलवेट उनकी मोनालिसा कही जाती हैं.
बीजिंग, 25 अक्टूबर | आज से 50 वर्ष पहले, यानी 25 अक्तूबर, 1971 को अंतर्राष्ट्रीय संगठन के इतिहास में एक मील का पत्थर घटना को चिह्न्ति करते हुए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में चीन लोक गणराज्य की कानूनी सीट को बहाल किया गया था।
इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र की कहानी का एक नया अध्याय शुरू करते हुए, चीन ने कसम खाई है कि वह पिछली आधी सदी के उलटफेर के बाद अपनी मूल आकांक्षा पर खरा उतरेगा। उसने मानव जाति के लिए एक साझा भविष्य के साथ एक समुदाय के निर्माण के लिए संयुक्त प्रयासों का आह्वान किया।
चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने सोमवार को इस ऐतिहासिक घटना को चिह्न्ति करने वाली एक स्मारक बैठक में अपने भाषण में कहा कि चीन हमेशा विश्व शांति का निर्माता रहा है, वैश्विक विकास में योगदानकर्ता और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का रक्षक रहा है।
इतना ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र के साथ चीन की शानदार यात्रा की समीक्षा करते हुए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में चीन लोक गणराज्य की सीट की बहाली को चीन के साथ-साथ दुनिया के लोगों की जीत करार दिया।
दरअसल, पिछले 50 वर्षों में चीन के शांतिपूर्ण विकास और सभी मानव जाति के कल्याण के प्रति चीन की प्रतिबद्धता देखी गई है। इस वर्ष, चीन ने पूर्ण गरीबी के खिलाफ अपनी लड़ाई में पूरी जीत हासिल की, सभी तरह से एक मध्यम समृद्ध समाज के निर्माण के लक्ष्य को पूरा किया और एक आधुनिक समाजवादी देश के निर्माण की दिशा में एक नई यात्रा शुरू की।
1971 में संयुक्त राष्ट्र में अपनी कानूनी सीट की बहाली के बाद से, चीन अंतरराष्ट्रीय मामलों में अधिक सक्रिय भूमिका निभा रहा है। उदाहरण के लिए, दुनिया के सबसे बड़े विकासशील देश और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से एक के रूप में, चीन ने संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में 50,000 से अधिक शांति सैनिकों को भेजा है और अब संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में दूसरा सबसे बड़ा वित्तीय योगदानकर्ता है।
यह सक्रिय रूप से सभी देशों को विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने और अपने कार्यों से जीने के लिए प्रेरित कर रहा है। यहां तक कि अपनी संप्रभुता पर लगातार उकसाने के बावजूद, चीन अभी भी सैन्य कार्रवाई को अंतिम उपाय के रूप में मानता है और शांतिपूर्ण संवाद और कूटनीति के माध्यम से समाधान चाहता है।
पिछले 50 सालों में चीन की राष्ट्रीय परिस्थितियों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में महान विकास हुए हैं। वैश्विक व्यवस्था की स्थिरता से सभी को लाभ होता है और इसे बनाए रखना सभी का कर्तव्य है।(आईएएनएस)
बीजिंग, 25 अक्टूबर | चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने 25 अक्टूबर को पेइचिंग में चीन लोक गणराज्य द्वारा संयुक्त राष्ट्र की कानूनी सीट की बहाली की 50वीं वर्षगांठ के लिये स्मारक समारोह में भाग लिया और महत्वपूर्ण भाषण भी दिया।
शी चिनफिंग ने कहा कि 50 वर्ष पहले 26वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में बहुमत से नंबर 2758 प्रस्ताव को पारित कर संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन लोक गणराज्य के सभी अधिकारों की बहाली करने का फैसला किया गया । साथ ही इस बात को भी स्वीकार किया गया कि चीन लोक गणराज्य सरकार संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन का एकमात्र कानूनी प्रतिनिधि है। यह चीनी जनता की विजय है, और विश्व के विभिन्न देशों की जनता की जीत भी है।
शी चिनफिंग ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन की कानूनी सीट की बहाली विश्व के लिये एक बड़ी घटना के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ के लिये एक बड़ी घटना भी है। यह विश्व में सभी शांति को प्यार करने और न्याय का पालन करने वाले देशों की समान कोशिश का फल है। इससे जाहिर हुआ है कि चीनी जनता फिर एक बार संयुक्त राष्ट्र के मंच पर चढ़ी।
शी चिनफिंग ने कहा कि 50 वर्षों में चीनी जनता हमेशा से ²ढ़ता के साथ चीन के आगे बढ़ाने की दिशा पर कायम रही है। चीनी जनता हमेशा से विश्व के विभिन्न देशों की जनता के साथ मिलजुलकर सहयोग करती है, अंतर्राष्ट्रीय न्याय व निष्पक्षता की रक्षा करती है, और विश्व शांति व विकास के लिये महत्वपूर्ण योगदान देती है। चीनी जनता हमेशा संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थान की रक्षा करती है, बहुपक्षवाद का पालन करती है। चीन व संयुक्त राष्ट्र संघ के बीच के सहयोग दिन-ब-दिन गहन हो रहा है।
शी चिनफिंग ने बल दिया कि चीनी जनता हमेशा विश्व के विभिन्न देशों की जनता के साथ एकता व सहयोग कर अंतर्राष्ट्रीय न्याय व निष्पक्षता की सुरक्षा करती है। चीनी जनता ने विश्व शांति व विकास के लिए बड़ा योगदान दिया है। चीनी जनता शांतिप्रिय है और हमेशा स्वतंत्रता तथा शांतिपूर्ण कूटनीति पर कायम रहती है और प्रभुत्ववाद एवं बल की राजनीति का डटकर विरोध करती है। चीनी जनता व्यापक विकासशील देशों द्वारा प्रभुसत्ता ,सुरक्षा और विकास के हितों की सुरक्षा करने वाले न्यायपूर्ण संघर्ष का डटकर समर्थन करती है। चीनी जनता समान विकास में संलग्न है और विकासशील देशों को यथासंभव मदद देती है और चीन के विकास के जरिये विश्व को नये मौके प्रदान करती है।
उन्होंने बल दिया कि चीनी जनता हमेशा संयुक्त राष्ट्र की प्रतिष्ठा और स्थान की सुरक्षा करती है और बहुपक्षवाद पर कायम रहती है। चीन और संयुक्त राष्ट्र का सहयोग दिन ब दिन गहरा हो रहा है। चीन निष्ठा से यूएन सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य के कर्तव्यों का पालन करता है और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में यूएन की केंद्रीय भूमिका की सुरक्षा करता है।
उन्होंने कहा कि चीन ने हमेशा यूएन चार्टर और विश्व मानवाधिकार घोषणा भावना का पालन कर मानवाधिकार की व्यापकता और चीन की वास्तविक स्थिति को जोड़कर समय की धारा और चीनी विशेषता वाले मानवाधिकार विकास का रास्ता निकाला है, जिसने चीन के मानवाधिकार की प्रगति और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कार्य के लिए बड़ा योगदान दिया है।
शी चिनफिंग ने कहा कि वर्तमान में विश्व में बड़ा परिवर्तन हो रहा है। शांति, विकास व प्रगति की शक्ति निरंतर रूप से बढ़ रही है। हमें ऐतिहासिक रुझान से मेल खाना चाहिये, सहयोग पर कायम रहने के साथ विरोध न करना, खुलेपन पर कायम रहने के साथ द्वार बंद न करना, आपसी लाभ व समान जीत पर कायम रहने के साथ जीरो-सम गेम नहीं खेलना चाहिये। साथ ही हमें सभी प्रकार के आधिपत्यवाद का विरोध करना, सभी प्रकार के एकपक्षवाद व संरक्षणवाद का विरोध करना चाहिये।
शी चिनफिंग ने कहा कि हमें शांति, विकास, न्याय, निष्पक्षता, लोकतंत्र, मुक्ति का विकास करना चाहिये, एक साथ ज्यादा सुन्दर दुनिया का निर्माण करना चाहिये। विविधता में मानव सभ्यता की सुन्दरता छिपी हुई है। वह भी विश्व के विकास की शक्ति स्रोत भी है। सभ्यता केवल आदान-प्रदान में प्रगति हासिल कर सकेगी।
शी चिनफिंग ने कहा कि किसी देश का रास्ता काम करेगा या नहीं, इसकी कुंजी इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुकूल है या नहीं? वह युग के विकास से मेल खाता है या नहीं? वह आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, जन जीवन का सुधार, सामाजिक स्थिरता, और जनता से समर्थन प्राप्त करता है या नहीं?
शी चिनफिंग ने कहा कि मानव एक समुदाय है, पृथ्वी एक परिवार जैसी है। कोई व्यक्ति या कोई देश अकेले काम नहीं करेगा। मानव को सहयोग करके मानव साझा नियति समुदाय का निर्माण करना चाहिये, और एक ज्यादा सुन्दर भविष्य बनाना चाहिये।
शी चिनफिंग ने कहा कि जनता के लिये विकास करने का महत्व ज्यादा बड़ा होगा। और जनता पर निर्भर करके विकास करने की ज्यादा शक्ति मिल सकेगी। विश्व के विभिन्न देशों को जनता से केंद्रित होकर ज्यादा उच्च गुणवत्ता वाला, कारगर, न्यायपूर्ण, अनवरत व सुरक्षित विकास प्राप्त करना चाहिये।
शी चिनफिंग ने कहा कि हमें सहयोग को मजबूत करके मानव के सामने मौजूद विभिन्न चुनौतियों व वैश्विक मामलों का मुकाबला करना चाहिये। क्षेत्रीय मुठभेड़, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, इन्टरनेट सुरक्षा, जैव सुरक्षा आदि वैश्विक मामले अब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने मौजूद हैं। केवल ज्यादा सहनशील वैश्विक शासन, ज्यादा कारगर बहुपक्षीय व्यवस्था और ज्यादा सक्रिय क्षेत्रीय सहयोग करके उन मामलों का मुकाबला किया जा सकेगा।
शी चिनफिंग ने कहा कि हमें ²ढ़ता से संयुक्त राष्ट्र संघ की रक्षा करनी और एक साथ वास्तविक बहुपक्षवाद का पालन करना चाहिये। मानव साझा नियति समुदाय के निर्माण को बढ़ावा देने में एक शक्तिशाली संयुक्त राष्ट्र संघ चाहिये, और सुधार व वैश्विक शासन व्यवस्था चाहिये। विभिन्न देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ से केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा करनी चाहिये, और अंतर्राष्ट्रीय कानून के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के बुनियाद नीति-नियमों की रक्षा करनी चाहिये।
शी चिनफिंग ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय नीति-नियम को संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 सदस्य देशों द्वारा एक साथ निश्चित किया जाना चाहिये। साथ ही 193 सदस्य देशों को एक साथ इस का पालन करना चाहिये। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रति विश्व के विभिन्न देशों को इस का सम्मान करना, और इस बड़े परिवार की रक्षा करनी चाहिये। ताकि संयुक्त राष्ट्र संघ मानव की शांति व विकास में ज्यादा सकारात्मक भूमिका अदा कर सके।
शी चिनफिंग ने कहा कि इतिहास की नयी शुरूआत पर चीन शांति व विकास के रास्ते पर कायम रहेगा, हमेशा के लिये विश्व शांति का निमार्ता बनेगा, सुधार व खुलेपन पर कायम रहेगा, वैश्विक विकास का योगदानकर्ता बनेगा, बहुपक्षवाद पर कायम रहेगा, हमेशा के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का रक्षक बनेगा।
शी चिनफिंग ने कहा कि हम हाथ में हाथ डालकर इतिहास की सही दिशा में खड़े होकर मानव की प्रगति की दिशा में खड़े होकर विश्व में दीर्घकालीन शांति व विकास को प्राप्त करने के साथ साथ मानव साझा नियति समुदाय के निर्माण को बढ़ावा देने में पूरी कोशिश करेंगे।(आईएएनएस)
बीजिंग, 25 अक्टूबर | सौ दिन के बाद दुनिया की निगाहें चीन पर टिकी होंगी और पेइचिंग में ऐतिहासिक 2022 शीतकालीन ओलंपिक का आयोजन होगा। पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक मशाल को ओलंपिक खेल के उद्गम स्थल ग्रीस के पेलोपोनिस प्रायद्वीप में प्राचीन ओलंपिया खंडहर में प्रज्वलित किया गया। 19 अक्टूबर को एथेंस के पनाथिनाइको स्टेडियम में ग्रीस ओलंपिक समिति द्वारा औपचारिक तौर पर पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक आयोजन समिति को सौंप दिया गया, और फिर पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक आयोजन समिति इसे चीन में वापस लायी। इसके बाद चीन में पवित्र अग्नि की प्रदर्शनी और रिले शुरू हुई।
31 जुलाई 2015 से पेइचिंग और चांग चिआखो ने 2022 शीतकालीन ओलंपिक और पैरालिंपिक की मेजबानी का अधिकार हासिल किया। छह साल बीत चुके हैं, और शीतकालीन ओलंपिक की तैयारी एक महत्वपूर्ण चरण में प्रवेश कर गई है। पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक आयोजन समिति के ओलंपिक गांव के निदेशक और पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक गांव (शीतकालीन पैरालंपिक गांव) के आयोजन स्थल संचालन टीम के निदेशक शेन छानफान ने परिचय दिया कि शीतकालीन ओलंपिक गांव का आवासीय क्षेत्र पूरी तरह से पूरा हो चुका है और आयोजन स्थल संचालन दल आधिकारिक तौर पर मई में संचालन में चला गया।
पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक निकट आ रहा है, और अधिक से अधिक चीनी तत्व शीतकालीन ओलंपिक के मंच पर खिल रहे हैं, चीनी कहानियों को आगे बढ़ा रहे हैं। ओलंपिक प्रतीकों से लेकर आयोजन स्थलों के निर्माण तक, चीनी संस्कृति को नए सिरे से प्रस्तुत किया गया है और शीतकालीन ओलंपिक मंच पर व्यक्त किया गया है। अद्भुत शीतकालीन ओलंपिक स्थल बड़े पर्दे के खुलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
बीजिंग 2022 शीतकालीन ओलंपिक और शीतकालीन पैरालिंपिक पहले ओलंपिक खेल हैं जिन्होंने ओलंपिक 2020 एजेंडा को बोली लगाने, आयोजन से लेकर मेजबानी तक की पूरी प्रक्रिया में लागू किया है। सस्ती, लाभदायक और अनवरत की ओलंपिक सुधार अवधारणा शीतकालीन ओलंपिक की तैयारी में चलती है। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष थॉमस बाख द्वारा नए ओलंपिक बेंचमार्क के रूप में उनकी अत्यधिक प्रशंसा की गई।
बर्फ और बर्फ के खेल में भाग लेने के लिए 3 अरब लोगों को प्रेरित करना 2022 शीतकालीन ओलंपिक की मेजबानी के लिए पेइचिंग और चांग चिआखो द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए किया गया एक गंभीर वादा है। जैसे-जैसे शीतकालीन ओलंपिक नजदीक आ रहे हैं, चीन के बर्फ और बर्फ के खेलों की मशाल व्यापक क्षेत्र में पहुंचाई जा रही है। पेइचिंग शीतकालीन ओलंपिक की शानदार तस्वीर अधिक से अधिक पूरी तरह से दुनिया के सामने पेश की जाएगी।(आईएएनएस)
टोक्यो, 25 अक्टूबर | टोक्यो और आसपास के तीन प्रांतों कनागावा, सैतामा और चिबा साथ ही पूरे जापान में संक्रमण में जारी गिरावट के बाद भोजनालयों पर से कोविड प्रतिबंध हटा दिया गया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, राजधानी और ओसाका में लगे प्रतिबंध को 11 महीनों में हटा लिया गया था।
टोक्यो ने रविवार को 19 दैनिक संक्रमणों की पुष्टि की, जो 17 जून, 2020 के बाद सबसे कम है।
टोक्यो में, आवश्यक कोविड उपायों के रूप में प्रमाणित लगभग 102,000 भोजनालयों को रात 8 बजे तक ही शराब परोसना की अनुमति दी जाएगी।
हालांकि, लगभग 18,000 अप्रमाणित भोजन प्रतिष्ठानों को पुराने प्रतिबंधों का पालन करना होगा।
इसके अलावा, सभी भोजनालयों से समूह के आकार को प्रति टेबल चार लोगों तक सीमित करना होगा, और बड़े समूहों के लिए टीकाकरण के प्रमाण की आवश्यकता होगी।
टोक्यो मेट्रोपॉलिटन सरकार ने कहा कि वह नवंबर के अंत तक कोविड-विरोधी उपायों को सु²ढ़ करेगी, जिससे संक्रमण को रोकने के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाया जा सके। (आईएएनएस)
सियोल, 25 अक्टूबर | दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन और अमेरिकी के राष्ट्रपति जो बाइडेन इटली में जी20 शिखर सम्मेलन या ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में भाग लेने की संभावना है। योनहाप न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मून और बाइडेन अगले सप्ताह जी20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले है, साथ ही 1 और 2 नवंबर को सीओपी 26 जलवायु वार्ता में भाग लेंगे, जब विश्व के नेता ग्लोबल वामिर्ंग को सीमित करने के लिए पेरिस समझौते के बाद उपलब्धियों का आकलन करेंगे।
अधिकारी ने कहा, हालांकि कोई समय सीमा तय नहीं की गई है, यह औपचारिक द्विपक्षीय वार्ता के बजाय "एक तरफ" बैठक हो सकता है।
जी20 शिखर सम्मेलन में शामिल होने से पहले मून शुक्रवार को वेटिकन में पोप फ्रांसिस से मुलाकात करेंगे और कोरियाई प्रायद्वीप में शांति और महामारी को खत्म करने के प्रयासों पर चर्चा करेंगे।
अधिकारी ने कहा कि मून और पोप दोनों कोरिया के बीच शांति सुनिश्चित करने के लिए अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 25 अक्टूबर | तालिबान के साथ बातचीत के लिए नियुक्त अमेरिका के मुख्य वातार्कार के पद से इस्तीफा देने के बाद अपने पहले साक्षात्कार में राजदूत जलमय खलीलजाद ने अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने के लिए किए गए सौदे का जोरदार बचाव किया। सीबीएस के मुताबि, खलीलजाद ने कहा कि उन्होंने बाइडेन प्रशासन की मौजूदा अफगानिस्तान नीति पर आपत्ति जताई है।
खलीलजाद ने सीबीएस को बताया, "मेरे पद छोड़ने का एक कारण यह है कि बहस वास्तव में नहीं थी, क्योंकि यह वास्तविकताओं और तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए कि क्या हुआ, क्या चल रहा था और हमारे विकल्प क्या थे।"
लंबे समय तक राजनयिक रहे खलीलजाद ने हालांकि राष्ट्रपति बाइडेन की सीधे तौर पर आलोचना करने से परहेज किया, जिन्हें वह अपना मित्र मानते हैं। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि सेना की वापसी के जिस मुद्दे पर उन्होंने बातचीत की, जिसे दोहा समझौते के रूप में जाना जाता है, वह कैलेंडर तिथि से प्रेरित होने के बजाय 'शर्तो पर आधारित' थी।
खलीलजाद ने आरोपों का खंडन किया कि उन्हें तालिबान के राजनीतिक नेताओं द्वारा गुमराह किया गया था।
उन्होंने कहा, "मैं लोगों को मुझे गुमराह करने की अनुमति नहीं देता। मैं अपना होमवर्क करता हूं। यह मैं अकेले नहीं कर रहा था। मेरे पास सेना, बुद्धि सब थे।"
उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आलोचना करने से भी इनकार कर दिया, जिन्होंने उन्हें 2018 में सेना वापस लेने के लिए बातचीत करने की जिम्मेदारी दी थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तक खलीलजाद को वार्ताकार नियुक्त किया गया, तब तक तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था।
खलीलजाद ने तर्क दिया कि अगर गनी ने 15 अगस्त को अचानक काबुल को नहीं छोड़ा होता, तो शायद अमेरिका के लिए अफगानिस्तान में उपस्थिति बनाए रखने की संभावना रहती। तालिबानी बलों के राजधानी शहर में प्रवेश करते ही गनी हेलीकॉप्टर से राष्ट्रपति भवन से भागकर पास के उज्बेकिस्तान चले गए।
खलीलजाद ने कहा कि उन्होंने 14 अगस्त को तालिबान और अफगान सरकार के साथ दो सप्ताह की बातचीत करने के लिए किसी प्रकार की सत्ता-साझाकरण व्यवस्था बनाने के लिए समझौता किया था, लेकिन फिर राष्ट्रपति गनी ने चुनाव कराया, जिस कारण काबुल में सेनाएं बिखर गईं।"
उन्होंने कहा, "मैं पीछे मुड़कर देखने में विश्वास करता हूं, मेरा फैसला यह है कि हम राष्ट्रपति गनी पर और अधिक दबाव डाल सकते थे।"
खलीलजाद ने तर्क दिया, "मैं यह नहीं कह रहा कि यह एक व्यवस्थित वापसी थी। यह एक बदसूरत और अंतिम चरण था। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह बहुत बुरा हो सकता था।"(आईएएनएस)
तेहरान. ईरान में एक व्यक्ति ने प्रांतीय गवर्नर को स्टेज पर चढ़कर सबके सामने थप्पड़ जड़ दिया. लेकिन इसकी वजह जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. शख्स प्रांतीय गवर्नर से इस बात से नाराज था, क्योंकि उसकी पत्नी को एक पुरुष डॉक्टर ने कोरोनावायरस वैक्सीन लगाई थी. यहां गौर करने वाली बात ये है कि प्रांतीय गवर्नर शपथ ले रहे थे. अबेदिन खोर्रम को उत्तर पश्चिमी ईरान में पूर्वी अजरबैजान प्रांत का गवर्नर नियुक्त किया गया. अब इस थप्पड़ कांड का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और बड़े मजे लेकर देखा जा रहा है.
फारस न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अबेदिन खोर्रम को शपथ ग्रहण कार्यक्रम के दौरान आर्म्ड फोर्स के एक सदस्य ने थप्पड़ मार दिया. खोर्रम आईआरजीसी के एक पूर्व प्रांतीय कमांडर हैं और कथित तौर पर सीरियाई विद्रोही बलों द्वारा पहले उनका अपहरण भी किया जा चुका है.
Today at the introduction ceremony for the new governor of #Iran's East Azerbaijan Province Abedin Khorram, a man went up to the podium and slapped him in the face. pic.twitter.com/vyEFoBy8WA
— Iran International English (@IranIntl_En) October 23, 2021
अपने उद्घाटन भाषण के लिए जैसे ही खोर्रम पोडियम पर चढ़े, वैसे ही वह व्यक्ति स्टेज पर आया और खोर्रम के चेहरे पर जोरदार थप्पड़ मारा. थप्पड़ की आवाज पूरे हॉल में सुनाई दी, क्योंकि इस दौरान पोडियम में लगा माइक ऑन था और उसकी वजह से आवाज को सभी लोगों ने सुना.
थप्पड़ मारने वाले व्यक्ति इस बात को लेकर नाखुश था कि उसकी पत्नी को एक पुरुष हेल्थकेयर वर्कर द्वारा कोविड-19 वैक्सीन लगाई गई थी. वहीं, गवर्नर को थप्पड़ मारने के बाद वहां खड़े सुरक्षा कर्मियों ने आरोपी को पकड़ लिया और घसीटते हुए दरवाजे की ओर ले गए.
वाशिंगटन, 24 अक्टूबर| नासा के विशेषज्ञों के अनुसार, परमाणु ऊर्जा से चलने वाले अंतरिक्ष यान में अधिक निवेश करने से अमेरिका को चीन जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्धा में आगे रहने में मदद मिल सकती है। हाल ही में एक सरकारी सुनवाई में, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और एयरोस्पेस उद्योग के विशेषज्ञों ने विचार-विमर्श किया कि नई परमाणु प्रणोदन तकनीक विकसित करने वाले अन्य देशों के मुकाबले देश कहां खड़ा है।
उन्होंने सुझाव दिया कि अगर अमेरिका को आगे बनाए रखना है तो जल्दी से आगे बढ़ने की जरूरत है।
नासा के बजट और वित्त के वरिष्ठ सलाहकार भव्य लाल ने कांग्रेस कमेटी की सुनवाई में कहा, "चीन सहित सामरिक प्रतियोगी परमाणु ऊर्जा और प्रणोदन सहित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों की एक विस्तृत श्रृंखला में आक्रामक रूप से निवेश कर रहे हैं।"
उन्होंने कहा, "संयुक्त राज्य अमेरिका को प्रतिस्पर्धी बने रहने और वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में एक नेता बने रहने के लिए तेज गति से आगे बढ़ने की जरूरत है।"
नासा ने पहले चर्चा की थी कि कैसे परमाणु प्रणोदन तकनीक एजेंसी को पारंपरिक रासायनिक रॉकेटों की तुलना में मनुष्यों को मंगल ग्रह पर भेजने की अनुमति दे सकती है।
सुनवाई के दौरान विशेषज्ञों के अनुसार, अगर नासा जल्द ही मंगल ग्रह पर पहुंचना चाहता है, तो समय का महत्व है।
समिति की अध्यक्षता करने वाले अमेरिकी प्रतिनिधि डॉन बेयर (डी-वा) ने कहा, "यदि संयुक्त राज्य अमेरिका मंगल ग्रह पर मानव मिशन का नेतृत्व करने के बारे में गंभीर है, तो हमारे पास खोने का समय नहीं है।"
बेयर ने कहा कि पिछले कई वर्षो में कांग्रेस ने भविष्य में अंतरिक्ष में उड़ान परीक्षण करने के लक्ष्य के साथ नासा में परमाणु अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी विकास को निधि देना जारी रखा है।
जबकि परमाणु विद्युत प्रणोदन के कई लाभ हैं, प्रौद्योगिकी के विकास और उपयोग से जुड़े जोखिम भी हैं।
स्पेस न्यूक्लियर प्रोपल्शन टेक्नोलॉजीज की समिति के सह-अध्यक्ष रोजर एम. मायर्स ने सुनवाई के दौरान कहा, "(परमाणु प्रणोदन) से जुड़े जोखिम एक मौलिक सामग्री चुनौती है जो हमें लगता है कि काफी हद तक हल करने योग्य है।"
मायर्स ने कहा कि सामग्री चुनौती में ऐसी सामग्री विकसित करना या खोजना शामिल है जो गर्मी और अंतरिक्ष से जुड़े अन्य चरम तत्वों के संपर्क में आ सकती है, रिपोर्ट में कहा गया है।
यह सुनवाई एक रिपोर्ट और दावों के बाद हुई, जिसमें आरोप लगाया गया था कि चीन ने अगस्त में परमाणु-सक्षम हाइपरसोनिक हथियार का परीक्षण किया था। हालांकि, चीन ने इन दावों का खंडन किया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 24 अक्टूबर| अफगानिस्तान में हाईस्कूल और विश्वविद्यालय की दर्जनों छात्राएं सिलाई और कॉस्मेटोलॉजी सीखने के लिए व्यावसायिक केंद्रों में जाने लगी हैं, क्योंकि देश पर तालिबान के कब्जे के बाद से लड़कियों के स्कूल और युवतियों/महिलाओं को कॉलेज या विश्वविद्यालय में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इन लड़कियों के मुताबिक, घर पर बैठना इनके लिए बहुत मुश्किल होता है, इसलिए ये कोई पेशा सीखने को तैयार रहती हैं।
एक छात्रा समीरा शरीफी ने कहा, "स्कूल और विश्वविद्यालय बंद हुए कुछ महीने हो गए हैं। हमें कोई पेशा या हुनर सीखना है, क्योंकि हम इस तरह घर पर बैठे नहीं रह सकते।"
एक छात्रा महनाज गुलामी ने कहा, "मैं अपने परिवार की मदद करने के लिए अपने भविष्य के लिए एक पेशा सीखना चाहती हं, हम चाहते हैं कि हमारे स्कूल खोले जाएं, ताकि हम अपनी शिक्षा जारी रख सकें।"
व्यावसायिक केंद्रों में अधिकांश प्रशिक्षु हाईस्कूल और विश्वविद्यालयों के छात्र हैं।
पूरे अफगानिस्तान में हाईस्कूल और विश्वविद्यालय बंद होने के बाद, हेरात महिला छात्रों ने प्रांत में व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करना शुरू कर दिया है।
एक छात्र शाकिक गंजी ने कहा, "हमने अपनी शिक्षा के साथ-साथ सिलाई सीखने का फैसला किया है।"
एक शिक्षिका लैली सोफिजादा ने कहा, "हर महिला को अपने परिवार और अपने पति की मदद करने के लिए सिलाई सीखना आवश्यक है, विशेष रूप से इस खराब आर्थिक स्थिति में।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूलों और विश्वविद्यालयों के बंद होने से व्यावसायिक केंद्रों में छात्रों की संख्या हाल के वर्षो की तुलना में दोगुनी हो गई है।
हेरात के श्रम और सामाजिक मामलों के विभाग में तकनीकी व व्यावसायिक मामलों की निदेशक फातिमा तोखी ने कहा, "हमारी कक्षाओं में 20 से 25 छात्रों की क्षमता थी, लेकिन हमने इसे बढ़ाकर 45 छात्रों तक कर दिया, क्योंकि अधिकांश छात्रों ने अपनी आत्मा खो दी है, और उनके स्कूल और विश्वविद्यालय बंद हो गए हैं।"
हेरात के श्रम और सामाजिक मामलों के विभाग ने कहा कि विभाग हेरात की लड़कियों और महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण सीखने के अधिक अवसर देने के लिए काम कर रहा है।
हेरात के श्रम और सामाजिक मामलों के प्रमुख मुल्ला मोहम्मद सबित ने कहा, "कला और पेशेवर क्षेत्र और किंडरगार्टन विभागों ने अपनी गतिविधियां शुरू कर दी हैं, हम उनका समर्थन करते हैं और उनकी गतिविधियों की निगरानी करते हैं।"
पिछले दो महीनों के दौरान, राज्य और निजी संस्थानों में काम करने वाली अधिकांश महिलाओं और लड़कियों ने अपनी नौकरी खो दी है और वे हस्तशिल्प और व्यावसायिक प्रशिक्षण सीखने की कोशिश कर रही हैं। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 25 अक्टूबर| न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार बेन हूबार्ड को जून 2018 से जून 2021 तक तीन साल की अवधि में इजरायल स्थित एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाइवेयर से बार-बार निशाना बनाया गया। यनिनिवर्सिटी टोरंटो की सिटिजन लैब की रिपोर्ट में रविवार को कहा गया कि यह प्रयास तब हुआ, जब वह सऊदी अरब पर रिपोर्टिग कर रहा था और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बारे में एक किताब लिख रहा था।
हबर्ड ने एनवाईटी पर एक लेख में लिखा था, "मुझे हैक किया गया था। मेरे खिलाफ इस्तेमाल किया गया स्पाइवेयर हम सभी को कमजोर बनाता है।"
उन्होंने कहा कि हालांकि यह खबर आश्चर्यजनक नहीं थी, लेकिन यह अभी भी अशांत करने वाली थी।
हबर्ड को पहली बार 2018 में एक संदिग्ध पाठ संदेश के साथ लक्षित किया गया था, जिसे सिटीजन लैब ने एनएसओ समूह के पेगासस नामक सॉफ्टवेयर का उपयोग करके सऊदी अरब द्वारा भेजे जाने की संभावना निर्धारित की थी।
इसी तरह की हैकिंग का प्रयास, उसी वर्ष, अरबी भाषा के व्हाट्सएप संदेश के माध्यम से आया, जिसने हबर्ड को नाम से वाशिंगटन में सऊदी दूतावास में विरोध प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया। दोनों प्रयास सफल नहीं हुए क्योंकि उसने लिंक पर क्लिक नहीं किया।
हूबार्ड ने कहा कि उनका फोन 2020 और 2021 में दो बार फिर से हैक किया गया था तथाकथित 'जीरो-क्लिक' कारनामों के साथ, जिसने हैकर को बिना किसी लिंक पर क्लिक किए मेरे फोन के अंदर जाने की अनुमति दी।(आईएएनएस)
गैबोरोन, 24 अक्टूबर | बोत्सवाना में पिछले तीन वर्षों में शिकारियों द्वारा लगभग 100 गैंडे मारे गए हैं। एक वन्यजीव अधिकारी ने शनिवार को यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बोत्सवाना के पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधन संरक्षण और पर्यटन मंत्रालय में वन्यजीव और राष्ट्रीय उद्यान विभाग के निदेशक काबेलो सेन्यात्सो ने कहा कि देश ने 2018, 2019 और 2020 में 5, 30 और 62 गैंडे खो दिए।
हालांकि, सेन्यात्सो ने यह भी कहा कि अवैध शिकार के कारण दक्षिणी अफ्रीकी देश की गैंडों की आबादी कभी भी विलुप्त होने के स्तर तक नहीं पहुंच पाएगी, क्योंकि बोत्सवाना में शिकारियों से बचाने के लिए गैंडों की प्रजातियों के लिए हमेशा कुछ खास हस्तक्षेप होंगे।
सेन्यात्सो ने कहा, "ओकावांगो डेल्टा के भीतर गैंडों के अवैध शिकार में वृद्धि के बाद, समस्या का समाधान करने के लिए कई पहलों को लागू किया गया था। इस पहल में पैदल और हवाई गश्त में वृद्धि, गैंडों को हटाना और गंभीर रूप से लुप्तप्राय काले गैंडों को बाड़ वाले क्षेत्रों से हटाना शामिल है।
सेन्यात्सो ने कहा, बोत्सवाना में अवैध शिकार विरोधी गतिविधियों के लिए संसाधनों को तैनात करने के लिए प्रतिबद्ध है। बोत्सवाना के उत्तरी भाग में अवैध शिकार विरोधी प्रयासों को बनाए रखते हुए स्वार्थी महत्वाकांक्षा वाले लोगों द्वारा इसके समृद्ध वन्यजीव संसाधनों को नष्ट नहीं किया जाता है।"
पिछले महीने जारी 2021 इंटरनेशनल राइनो फाउंडेशन की स्थिति रिपोर्ट ने संकेत दिया कि बोत्सवाना में गैंडों की आबादी को एक महत्वपूर्ण अवैध शिकार का सामना करना पड़ रहा है, जबकि देश कई पहल करके इस मुद्दे को हल करने के लिए आवश्यक कदम उठा रहा है।(आईएएनएस)
संजीव शर्मा
नई दिल्ली, 23 अक्टूबर| ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि अफगानिस्तान के कई प्रांतों में तालिबान के अधिकारियों ने अपने ही समर्थकों को जमीन बांटने के लिए जबरन विस्थापित कर दिया है।
इनमें से कई निष्कासन में सामूहिक दंड के रूप में हजारा शिया समुदायों के साथ-साथ पूर्व सरकार से जुड़े लोगों को निशाना बनाया गया है।
अक्टूबर 2021 की शुरुआत में तालिबान और उससे जुड़े लड़ाकों ने दक्षिणी हेलमंद प्रांत और उत्तरी बल्ख प्रांत से हजारा परिवारों को जबरन बेदखल कर दिया।
ये पहले दाइकुंडी, उरुजगन और कंधार प्रांतों से बेदखली के बाद हुए। अगस्त में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से उन्होंने इन पांच प्रांतों में कई हजारों और अन्य निवासियों को अपने घरों और खेतों को छोड़ने के लिए कहा है। कई मामलों में केवल कुछ दिनों के नोटिस के साथ और भूमि पर अपने कानूनी दावों को पेश करने का कोई अवसर नहीं दिया है।
संयुक्त राष्ट्र के एक पूर्व राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि उन्होंने निवासियों को बेदखली के नोटिसों को यह कहते हुए देखा कि यदि वे इसका पालन नहीं करते हैं, तो उन्हें 'परिणामों के बारे में शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं है।'
ह्यूमन राइट्स वॉच की एसोसिएट एशिया डायरेक्टर पेट्रीसिया गॉसमैन ने कहा, "तालिबान, जातीयता या राजनीतिक राय के आधार पर तालिबान समर्थकों को इनाम देने के लिए हजारों और अन्य लोगों को जबरन बेदखल कर रहा है। वह भी धमकियों के साथ और बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के किया गया यह निष्कासन, गंभीर दुर्व्यवहार हैं जो सामूहिक दंड की तरह हैं।"
बल्ख प्रांत में मजार-ए-शरीफ के कुबत अल-इस्लाम जिले के हजारा निवासियों ने कहा कि स्थानीय कुशानी समुदाय के हथियारबंद लोग स्थानीय तालिबान सुरक्षा बलों के साथ परिवारों को छोड़ने के लिए मजबूर करने के लिए काम कर रहे थे, और ऐसा करने के लिए उन्हें केवल तीन दिन का समय दिया था। तालिबान अधिकारियों ने दावा किया कि बेदखली एक अदालत के आदेश पर आधारित थी, लेकिन बेदखल निवासियों का दावा है कि उनके पास 1970 के दशक से जमीन का स्वामित्व है। परस्पर विरोधी दावों पर विवाद 1990 के दशक में सत्ता संघर्ष से उत्पन्न हुए।
हेलमंद प्रांत के नवा मिश जिले के निवासियों ने ह्यूूमन राइट्स वॉच को बताया कि तालिबान ने सितंबर के अंत में कम से कम 400 परिवारों को एक पत्र जारी कर उन्हें जमीन छोड़ने का आदेश दिया। इसके लिए इतना कम समय दिया गया कि परिवार अपना सामान लेने या अपनी फसल की पूरी कटाई करने में असमर्थ थे। एक निवासी ने कहा कि तालिबान ने आदेश को चुनौती देने की कोशिश करने वाले छह लोगों को हिरासत में लिया, जिनमें से चार अभी भी हिरासत में हैं।
एक अन्य निवासी ने कहा कि 1990 के दशक की शुरुआत में, स्थानीय अधिकारियों ने अपने रिश्तेदारों और समर्थकों के बीच जमीन के बड़े हिस्से को बांट दिया, जिससे जातीय और आदिवासी समुदायों के बीच तनाव बढ़ गया।
हेलमंद के एक कार्यकर्ता ने कहा कि संपत्ति को आधिकारिक पदों पर बैठे तालिबान सदस्यों के बीच फिर से बांटा जा रहा है। उन्होंने कहा कि वे भूमि और अन्य सार्वजनिक वस्तुओं का भक्षण कर रहे हैं और इसे अपने स्वयं के बलों को फिर से वितरित कर रहे हैं।
एचआरडब्ल्यू ने कहा कि सबसे बड़ा विस्थापन दाइकुंडी और उरुजगन प्रांतों के 15 गांवों में हुआ है, जहां तालिबान ने सितंबर में कम से कम हजारा निवासियों को निकाला था। परिवार अपना सामान और फसल छोड़कर दूसरे जिलों में चले गए।
एक पूर्व निवासी ने कहा, "तालिबान के कब्जे के बाद हमें तालिबान से एक पत्र मिला जिसमें हमें सूचित किया गया कि हमें अपने घरों को छोड़ देना चाहिए, क्योंकि जमीन पर विवाद है। कुछ प्रतिनिधि जिले के लोग अधिकारियों के पास जांच की गुहार लगाने गए, लेकिन उनमें से लगभग पांच को गिरफ्तार कर लिया गया है।"
ह्यूमन राइट्स वॉच यह तय करने में अभी असमर्थ है कि उन्हें रिहा कर दिया गया है या नहीं।
एक पूर्व निवासी ने कहा कि तालिबान ने गांवों से बाहर सड़कों पर चौकियां स्थापित की हैं और किसी को भी अपने साथ अपनी फसल नहीं ले जाने दिया। निष्कासन के मीडिया कवरेज के बाद, काबुल में तालिबान के अधिकारियों ने कुछ दाइकुंडी गांवों के लिए बेदखली के आदेश वापस ले लिए, लेकिन 20 अक्टूबर तक, कोई भी निवासी वापस नहीं आया था।
तालिबान ने कंधार प्रांत में सरकारी स्वामित्व वाले आवासीय परिसर के निवासियों को जाने के लिए तीन दिन का समय दिया। संपत्ति पिछली सरकार द्वारा सिविल सेवकों को वितरित की गई थी। (आईएएनएस)
जापान में कई लोग सेवानिवृत्ति के बाद आराम करने की बजाय अपने कौशल और ज्ञान का उपयोग अपने समाज के हित में करना पसंद करते हैं. ये लोग रिटायरमेंट के बाद फिर काम पर लौट जाते हैं ताकि मानसिक और शारीरिक रूप से फिट बने रहें.
डॉयचे वैले पर आने जूलियान रायल की रिपोर्ट-
अत्सुको कासा 68 साल की हैं. काफी तेज और ऊर्जावान हैं और जीवन की रफ्तार धीमी करने का उनका कोई इरादा भी नहीं है. कासा जापान के शहर योकोहामा में अपने घर के करीब सिल्वर जिनजई सेंटर में तब तक काम करना जारी रखने की योजना बना रही हैं, जब तक वो ऐसा कर सकती हैं.
वह मजाक में कहती हैं कि रिटायरमेंट की उम्र से वह अभी बहुत छोटी हैं. कासा दूसरों की मदद करना चाहती हैं.
कासा एक सौंदर्य प्रसाधन कंपनी के लेखा विभाग में काम करती थीं और वह उन बुजुर्ग जापानी नागरिकों में से एक हैं, जिन्होंने बागवानी, दोस्तों के साथ मिलने-जुलने और पोते-पोतियों की देखभाल करने जैसे पारंपरिक सेवानिवृत्ति शौक अपनाने की बजाय कार्यस्थल पर लौटने का विकल्प चुना है.
कुछ लोगों का तो मानना है कि रिटायरमेंट के बाद वे सिल्वर जिनजई संगठन के जरिए कुछ अतिरिक्त आय अर्जित करते हैं लेकिन ज्यादातर लोग यह काम सिर्फ पैसों के लिए ही नहीं करते. जापान में करीब सात लाख लोग इस देशव्यापी संगठन के साथ पंजीकृत हैं जिसकी शुरुआत साल 1975 में टोक्यो में हुई थी. इन बुजुर्ग लोगों का इसके पीछे मुख्य उद्देश्य खुद को व्यस्त रखना और समाजसेवा करना है.
अन्य लोगों की मदद करना
डीडब्ल्यू से बातचीत में कासा कहती हैं, "जैसे-जैसे मैं बड़ी होने लगी, मुझे लगा कि मेरी दुनिया छोटी होती जा रही है. एक सार्थक जीवन जीने के लिए मैंने एक नौकरी शुरू करने का फैसला किया जहां मैं अन्य लोगों की मदद कर सकूं. मेरे पास कोई विशेष कौशल नहीं है लेकिन मैं हमेशा उदार मन से काम करती हूं.”
कासा योकोहामा में विकलांग लोगों के लिए एक सहायता समूह में काम करती हैं. वह एक कैफे में विशेष सुविधा में भोजन तैयार करने में मदद करती हैं. वह कहती हैं, "मैं ऐसी दुनिया में काम करने की चुनौतियों का सामना करना चाहती थी जिसका मैंने पहले कभी अनुभव न किया हो.”
कासा कहती हैं, "मैं इस नौकरी को पसंद करती हूं. लोग ईमानदार, साफ-सुथरे और दयालु हैं. दरअसल, मैं उनसे प्यार करती हूं. साथ ही, उन कर्मचारियों के साथ काम करना जो आपकी स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं, मेरे जीवन को समृद्ध करते हैं, इसके लिए मैं उन लोगों की आभारी हूं.”
संगठन के अध्यक्ष ताकाओ ओकाडा कहते हैं कि योकोहामा सिल्वर जिनजई केंद्र के साथ काम करने के लिए लगभग दस हजार लोग पंजीकृत हैं और हाल के वर्षों में यह संख्या बढ़ रही है. कार्यालय के दस्तावेजों में सबसे वृद्ध व्यक्ति 100 वर्ष के हैं.
ओकाडा कहते हैं, "ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जो स्वस्थ हैं और काम करने के लिए बहुत उत्साहित हैं. हमारे सदस्य क्यों काम करना चाहते हैं इसके कई कारण हैं. निश्चित तौर पर, कुछ तो आर्थिक जरूरतों के लिए करते हैं लेकिन बहुत से लोग अपने स्वास्थ्य को बनाए रखना चाहते हैं जबकि कुछ अन्य लोग समाज में योगदान देना चाहते हैं या अपने अनुभव और कौशल का अधिकतम लाभ उठाना चाहते हैं.”
रोजगार के अवसर
ओकाडा कहते हैं कि सिल्वर जिनजाई के कार्यकर्ता आमतौर पर सप्ताह में अधिकतम 20 घंटे काम करते हैं यानी करीब दो या तीन दिन. ये लोग आमतौर पर सुपरमार्केट में काम करते हैं जैसे क्लीनर, माली, रिसेप्शनिस्ट, बढ़ई या चाइल्ड केयर असिस्टेंट के रूप में या फिर बुजुर्ग लोगों की देखभाल करने में मदद करने जैसे काम करते हैं.
अन्य लोग कंप्यूटर एडेड डिजाइन में तकनीक का इस्तेमाल करते हैं या शहर की सड़कों पर कूड़ा उठाने में मदद करते हैं. ओकाडा कहते हैं कि विदेशी भाषा कौशल वाले लोगों की खासतौर पर मांग रहती है.
मेहनताने का भुगतान अलग-अलग दरों पर किया जाता है और वे देश भर में अलग-अलग होते हैं. लेकिन घरेलू कामों में सहायता से आमतौर पर सिल्वर जिन्जई कार्यकर्ता प्रति घंटे 870 येन यानी 6.70 यूरो तक कमा लेते हैं. इसके अलावा खिड़कियों की सफाई का मेहनताना 910 येन है और बागवानी का 1,040 येन है. उत्तरी प्रान्त में बर्फ साफ करने जैसे कठिन काम की मजदूरी 1,855 येन प्रति घंटा है.
अतिरिक्त आय प्रदान करने और देश की बुजुर्ग आबादी को काम में व्यस्त रखने के साथ-साथ यह योजना जापान में श्रमिकों की बढ़ती कमी को दूर करने में भी मदद कर रही है.
जापान में श्रमिकों की भारी कमी
जापान में हालांकि देश में काम करने वालों की उम्र सीमा बढ़ रही है लेकिन जन्म दर गिर रही है और बड़ी संख्या में लोग वृद्धावस्था में जी रहे हैं.
मौजूदा समय में, चार में से एक जापानी व्यक्ति की उम्र 65 साल से अधिक है और यह अगले 15 वर्षों में तीन में से एक तक पहुंचने का अनुमान है. इसका मतलब यह हुआ कि जापान की जनसंख्या जर्मनी की तुलना में दोगुनी और फ्रांस की तुलना में चार गुना तेज गति से वृद्ध हो रही है.
सरकार ने इस प्रवृत्ति को बदलने के उपायों की शुरुआत की है, खासतौर पर अप्रैल में अनिवार्य सेवानिवृत्ति की आयु को 65 से 70 तक बढ़ाकर, लेकिन विश्लेषकों का सुझाव है कि जापान में साल 2030 तक 64.4 लाख श्रमिकों की संभावित कमी होगी.
और, हालांकि सिल्वर जिनजाई नेटवर्क मौजूदा श्रम की कमी में मदद कर रहा है लेकिन विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि भविष्य में इस कमी की पूर्ति होने की संभावना है, खासकर अगर बेहतर भुगतान विकल्प उपलब्ध हैं.
तोहोकू विश्वविद्यालय में बुजुर्ग लोगों और समाज पर शोध कर रहे प्रोफेसर हिरोशी योशिदा कहते हैं, "वापस लौटकर 1975 के दौर में आएं तो जब इसे पहली बार स्थापित किया गया था तब ज्यादा से ज्यादा बुजुर्ग लोग थे जो सेवानिवृत्ति के बाद काम करना चाहते थे क्योंकि उन्हें लगा कि यह उन्हें उम्र बढ़ने के साथ फिट रखेगा.”
वह कहते हैं, "हालांकि बुजुर्ग लोग आज पहले की तुलना में ज्यादा स्वस्थ और ऊर्जावान हैं और वह बस खुद को बहुत बूढ़ा नहीं मानते. संस्थान से जुड़े लोगों का समूह काम करना चाहता है लेकिन वे एक बेहतर वेतन भी चाहते हैं, इसलिए वे सिल्वर जिनजाई प्रणाली के बाहर नौकरियों की तलाश कर रहे हैं.” (dw.com)
जर्मनी की सरकार ने पांच साल पहले वेश्यावृत्ति संरक्षण अधिनियम को लागू किया था. इसका मकसद यौनकर्मियों को सुरक्षा प्रदान करना था, लेकिन अब वही इस नियम का विरोध कर रही हैं. आखिर क्यों?
डॉयचे वैले पर इलियट डगलसकी रिपोर्ट-
ओलिविया जर्मनी की राजधानी बर्लिन में रहती हैं. वह पिछले करीब एक दशक से सेक्स वर्कर के तौर पर काम कर रही हैं. इस नए नियम को वह दखलअंदाजी के तौर पर देखती हैं. मुस्कुराते हुए कहती हैं, "यूं ही नहीं लोग कहते हैं कि यह दुनिया का सबसे पुराना पेशा है. लोग हमेशा सेक्स वर्क करने का कोई न कोई तरीका खोज ही लेंगे."
वेश्यावृत्ति को पेशे के तौर पर अपनाने की उनकी कोई योजना नहीं थी. वह तो रोमांचक जीवन की तलाश में देश के एक छोटे से शहर से बर्लिन चली आई थीं. हालांकि, बाद में दोस्त के कहने पर वह वेश्यावृत्ति के पेशे में आ गईं. अब उनकी उम्र 30 साल होने को है.
इस दौरान अब तक उन्होंने करीब हर तरह का सेक्स वर्क किया है. वह लक्जरी एस्कॉर्ट के तौर पर भी सेवा दे चुकी हैं और इरॉटिक मसाज करने वाली के तौर पर भी. उन्होंने वेश्यालय में भी काम किया है और घर पर भी ग्राहकों को सेवा दी है.
ओलिविया विस्तार से बताती हैं, "आय और सुरक्षा के लिहाज से कई तरह के लेवल हैं." उन्होंने अपने काम के दौरान ब्लैक सेक्स वर्कर्स कलेक्टिव के साथ मिलकर एक समुदाय की स्थापना की. ब्लैक सेक्स वर्कर्स अमेरिकी लोगों की एक पहल है. साथ ही, ओलिविया सेक्स वर्कर्स यूनियन की सदस्य भी हैं.
इसके बावजूद, वह जर्मनी की उन हजारों सेक्स वर्कर्स में से एक हैं जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है. पिछले पांच वर्षों से वह मुकदमा होने के खतरे के बीच अपना काम कर रही हैं.
90 प्रतिशत का नहीं है रजिस्ट्रेशन
ओलिविया ने जब सेक्स वर्कर के तौर पर काम करना शुरू किया था, तब जर्मनी में सेक्स वर्कर्स के अधिकारों को आज की अपेक्षा अच्छी तरह से संरक्षित किया गया था. 2002 के वेश्यावृत्ति अधिनियम ने औपचारिक रूप से इसे व्यवस्थित कर रखा था. इसका उद्देश्य सेक्स वर्कर्स की स्वास्थ्य देखभाल और बेरोजगारी बीमा जैसे लाभ तक पहुंच सुनिश्चित करना था.
हालांकि, कुछ सांसदों को चिंता थी कि यह कानून काफी ज्यादा नर्म है. सेंटर लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट्स (एसपीडी) की पूर्व परिवार कल्याण मंत्री मानुएला श्वेजिग ने 2014 में जर्मन अखबार डि त्साइट को बताया था, "इस देश में स्नैक बार से ज्यादा आसान वेश्यालय खोलना है."
इसके एक साल बाद, उनकी गठबंधन की सरकार ने नए कानून का बिल पेश किया. इसके तहत सभी सेक्स वर्कर्स को रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य बनाया गया. यह कानून 21 अक्टूबर 2016 को अधिनियमित किया गया और 1 जुलाई 2017 को लागू हुआ.
इसका मतलब, सेक्स वर्कर्स को अपना पता, संपर्क की जानकारी, असली नाम जैसे निजी डेटा देना और नियमित तौर पर स्वास्थ्य से जुड़ा परामर्श लेना अनिवार्य हो गया. इस स्थिति में अगर कोई सेक्स वर्कर रजिस्ट्रेशन नहीं कराती है, तो वह कानून तोड़ रही है. वजह चाहे गोपनीयता से जुड़ी चिंता हो या जर्मनी में कोई स्थायी या कानूनी पता न होना, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है.
इस अधिनियम के तहत, सेक्स वर्क के दौरान कंडोम का इस्तेमाल करना भी जरूरी होता है. साथ ही, वेश्यालय चलाने के लिए परमिट चाहिए होता है.
2019 के आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि वेश्यावृत्ति संरक्षण अधिनियम के तहत 40 हजार यौनकर्मियों का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है. हकीकत में यह आंकड़ा चार लाख से अधिक हो सकता है. इसका मतलब है कि जर्मनी में 90 प्रतिशत सेक्स वर्कर का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है और वे कानूनी रूप से अवैध हैं.
कानूनी तौर पर वैध सेक्स वर्कर का बड़ा हिस्सा वेश्यालयों में काम करता है. वहीं, जिन्होंने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है उनमें से ज्यादातर अपने घर या गलियों में ग्राहकों को सेवा देती हैं.
गोपनीयता से जुड़ी चिंता
कानून का उद्देश्य सेक्स वर्कर्स की स्थितियों में सुधार करना, मानव तस्करी, शोषण और गुलामी की संभावना को कम करना था. हालांकि, सेक्स वर्कर्स का कहना है कि इसने वास्तव में उनकी स्थिति को और खराब कर दिया है.
हाइड्रा संगठन की प्रवक्ता रूबी रेबेल्डे कहती हैं, "जिन लोगों को सेक्स वर्क के बारे में कोई जानकारी नहीं है, वे कहते हैं कि यह उतना बुरा नहीं है. लेकिन जर्मनी में आज भी सेक्स वर्क को बुरे नजरिए से देखा जाता है. और इसका मतलब है कि बहुत से लोग खुलकर अपनी पहचान जाहिर नहीं कर सकते हैं."
बर्लिन में 40 साल पहले सेक्स वर्कर्स के लिए वकालत और परामर्श सेवा की स्थापना की गई थी. जब से नया कानून बना है, तब से यह संस्था इस कानून का विरोध कर रही है.
जर्मनी में काम करने वाली कई सेक्स वर्कर दूसरे देशों की हैं. वे लंबी प्रक्रिया और उलझनों की वजह से रजिस्ट्रेशन नहीं कराती हैं. रजिस्ट्रेशन कराने वाली गैर-जर्मन सेक्स वर्कर्स में सबसे ज्यादा संख्या यूरोपीय संघ के सदस्य रोमानिया और बुल्गारिया की है. लेकिन रेबेल्डे का मानना है कि जर्मनों की तुलना में विदेशी सेक्स वर्कर्स के रजिस्ट्रेशन की संभावना कम होती है.
रेबेल्डे कहती हैं, "इसका मतलब है कि जो लोग जर्मनी में सेक्स वर्कर के रूप में काम करने के लिए आती हैं, उन्हें वेश्यावृत्ति संरक्षण अधिनियम के तहत ‘अवैध' बना दिया जाता है."
इन सभी बातों के अलावा, इसका यह भी मतलब हुआ कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान जब लॉकडाउन लगाया गया तो उन सेक्स वर्कर्स को सहायता नहीं मिली जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ था. इस दौरान रजिस्टर्ड सेक्स वर्कर्स की संख्या में भी काफी कमी देखी गई.
साथ मिलकर काम करना ज्यादा सुरक्षित
नए कानून के तहत, सेक्स वर्कर एक जोड़े या समूह के तौर पर नहीं रह सकते और न ही काम कर सकते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि तकनीकी रूप से अपार्टमेंट या घर शेयर करने से वह जगह वेश्यालय बन सकती है. और वेश्यालय के लिए परमिट चाहिए होता है जबकि यह एक सामान्य व्यवस्था है कि अगर सेक्स वर्कर समूह में होती हैं, तो ग्राहकों द्वारा हिंसा करने या ब्लैकमेल करने की संभावना कम होती है.
ओलिविया कहती हैं, "अगर मैं घर पर अकेले काम करूं, तो इससे मैं अधिक खतरे में पड़ सकती हूं. नए कानून के लागू होने के बाद, अपार्टमेंट में अकेले में काम करने के दौरान मेरे साथ दुर्व्यवहार और ब्लैकमेल के प्रयास पहले की तुलना में ज्यादा हुए हैं."
रेबेल्डे कहती हैं, "साथ काम करना ज्यादा सुरक्षित है क्योंकि आप एक-दूसरे पर नजर रख सकते हैं. अपने अनुभव साझा कर सकते हैं."
नए कानून का समर्थन
कुछ लोग नए कानून का समर्थन भी करते हैं. समर्थकों का कहना है कि नए कानून ने वाकई में सेक्स वर्कर्स की सुरक्षा बढ़ा दी है. बर्लिन शहर के सेक्स वर्क की प्रवक्ता और एसपीडी की निर्वाचित प्रतिनिधि एन कैथरीन बीवेनर कहती हैं, "वेश्यावृत्ति संरक्षण अधिनियम के अनुसार, रजिस्ट्रेशन कराने से राज्यों के पास इस बात की जानकारी होती है कि कितने लोग यह काम कर रहे हैं. इन आंकड़ों के आधार पर उनके अधिकरों के लिए काम किया जाता है."
कैथरीन पूरे बर्लिन शहर में रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया की देखरेख के लिए जिम्मेदार हैं. वह कहती हैं, "रजिस्ट्रेशन की वजह से, सेक्स वर्क चोरी-छिपे नहीं होता. इससे सेक्स वर्कर्स की स्थिति में सुधार करने में मदद मिलती है."
नॉर्डिक मॉडल
महामारी के दौरान, जब सोशल डिस्टेंसिंग नियमों के तहत सेक्स वर्क पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, तब एसपीडी के सांसदों और तत्कालीन चांसलर अंगेला मैर्केल की सेंटर-राइट क्रिश्चियन डेमोक्रेट पार्टी ने वेश्यालय को और भी लंबे समय तक बंद करने और सेक्स वर्क इंडस्ट्री की पूरी तरह समीक्षा करके इसमें सुधार करने की बात कही थी.
उनके और कई अन्य लोगों ने इसके लिए जो समाधान बताए उसे तथाकथित नॉर्डिक मॉडल कहते हैं. इसके तहत, सेक्स के लिए पैसे देना अवैध है, लेकिन सेक्स बेचना अवैध नहीं है.
हालांकि, ओलिविया यह नहीं मानती हैं कि ऐसी व्यवस्था जर्मनी में काम करेगी और सेक्स वर्क पर लगाम लगा पाएगी. वह कहती हैं, "यहां कुछ भी नहीं रुकेगा. कीमतें और बढ़ जाएंगी. अपराध, हिंसा, मानव तस्करी, और ब्लैकमेलिंग बढ़ जाएगी. मुझे इसमें किसी तरह का सकारात्मक पक्ष नजर नहीं आता है.”
नए अधिनियम का संघीय मूल्यांकन 2025 तक पूरा करने की योजना है. एक अंतरिम रिपोर्ट में सिर्फ 2017 और 2018 की घटनाओं को शामिल किया गया है. अब तक, यह दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि मानव तस्करी को कम करने के लिए अधिनियम का कोई भी कानून सफल रहा है या नहीं.
इस बीच कई राज्यों ने अपने-अपने मूल्यांकन प्रकाशित किए हैं. ब्रेमेन राज्य के दिसंबर 2020 की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है कि रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया जारी है. हालांकि, सेक्स वर्कर और पेशेवर राजनेता आलोचना करते हैं कि यह कानून तस्करी के खिलाफ पर्याप्त रूप से सुरक्षा उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं है. साथ ही, सेक्स वर्कर्स की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है. वे कलंक और भेदभाव की वजह से रजिस्ट्रेशन कराने के लिए अधिकारियों के पास जाने से डरते हैं. यह कानून सेक्स वर्कर्स की सभी जरूरतों को पूरा नहीं करता है.
वहीं, हाइड्रा रेबेल्डे कहती हैं कि अगली बार जब भी हो, सेक्स वर्कर्स की समस्या और उनकी आवाज को सरकार तक पहुंचाया जाएगा, ताकि उनके हिसाब से कानून में संशोधन हो सके. वह कहती हैं, "सेक्स वर्कर्स से बात किए बिना सेक्स वर्कर्स के बारे में बात करना, यह ठीक नहीं है." (dw.com)
नॉर्वे की स्की जंपिंग स्टार मारेन लुंडबी ने प्रतिस्पर्धी खेलों में जानबूझकर कम खाने के बारे में चर्चा को हवा दी है. विशेषज्ञों का कहना है कि जानबूझकर कम खाने से ईटिंग डिसऑर्डर हो सकता है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
डॉयचे वैले पर डेविस ऐली वान ओपडोर्प की रिपोर्ट-
सबरीना मॉकेनहॉप्ट ने डीडब्ल्यू को बताया, "मुझे हमेशा अतीत में भी कहा गया था कि सामने पेंसिल चलती हैं, रबड़ नहीं. यह बात आपको कभी-कभी ही सुनने को मिल सकती है, लेकिन जल्दी ही आपकी दिमाग में बैठ सकती है.Ó 40 वर्षीय मॉकेनहॉप्ट लंबी दूरी की धावक रह चुकी हैं. इन्होंने अपने करियर में 40 जर्मन चैंपियनशिप खिताब जीते हैं.
वह कहती हैं, "मैं कभी बहुत पतली नहीं थी. शायद इसलिए मेरा करियर इतना लंबा था. मुझे नहीं लगता कि 20 साल की उम्र के जो धावक अभी पतले-दुबले हैं वे 35 साल की उम्र तक दौड़ रहे होंगे."
नॉर्वे की स्की जंपिंग स्टार मारेन लुंडबी ने हाल ही में शीर्ष स्तर के खेल में कम खाने की वजह से होने वाले ईटिंग डिसऑर्डर के खतरे के बारे में चर्चा को फिर से हवा दी है. ओलंपिक और विश्व स्तर पर चैंपियन रह चुकीं लुंडबी ने सभी को हैरान करते हुए अक्टूबर की शुरुआत में, चीन में 2022 में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक के पूरे सेशन को छोड़ने का फैसला किया.
27 वर्षीय लुंडबी ने एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा, "मेरा वजन सीमा से कुछ किलो ज्यादा है. मैं वजन कम करने के लिए बेवजह की चीजें नहीं करूंगी."
लुंडबी ने कहा कि वह युवा एथलीटों को भी एक संदेश देना चाहती हैं, "सामान्य तौर पर नियंत्रित वजन कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. आप उसके साथ सब कुछ कर सकते हैं."
खतरनाक है ईटिंग डिसऑर्डर
जर्मनी के ट्यूबिंगेन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में प्रोफेसर और ईटिंग और वेट डिसऑर्डर की विशेषज्ञ कटरीन गील ने डॉयचे वेले को बताया, "मुझे लगता है कि वह बिल्कुल सही काम कर रही हैं. वह स्वस्थ और बेहतर तरीके से व्यवहार कर रही हैं."
गेल ने विस्तार से बताया, "शीर्ष स्तर के खेल में हमेशा बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव होता है. प्रतिस्पर्धी एथलीट बेहतर प्रदर्शन करने के लिए, कुछ हद तक खुद को प्रताड़ित भी करते हैं और दर्द भी सहते हैं. शायद कभी-कभी सीमा से आगे भी निकल जाते हैं. इसमें खाने पर सख्ती से नियंत्रण करना भी शामिल है." वह कहती हैं, "अगर आप ईटिंग डिसऑर्डर की चपेट में आ गए, तो इससे बाहर निकलना काफी मुश्किल हो जाता है."
ट्यूबिंगेन क्लिनिक में अभिजात वर्ग के एथलीटों के लिए रेड-एस (RED-S) परामर्श है. इसमें RED-S का मतलब है, ‘रिलेटिव एनर्जी डेफिसिट इन स्पोर्ट्स'. जो लोग अपने शरीर का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं और पर्याप्त कैलरी नहीं लेते हैं, तो उन्हें स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्या हो सकती है.
इस परामर्श केंद्र की प्रमुख और स्पोर्ट्स मेडिसिन विशेषज्ञ क्रिस्टीन कोप्प कहती हैं, "उदाहरण के लिए, अगर 20 के दशक की उम्र वाली किसी महिला एथलीट को पीरियड नहीं आता है, तो यह उसके लिए खतरे की घंटी है. इसके अलावा अगर उन्हें हाइपोथायरॉयडिज्म है, तो थकान और अवसाद हो सकता है. ऐसा वजन कम होने की वजह से भी हो सकता है."
स्की जंपिंग के अलावा, ईटिंग डिसऑर्डर के ज्यादा खतरे वाले खेलों में जिमनास्टिक, डाइविंग, ट्रायथलॉन, लंबी दूरी की दौड़, बायथलॉन, क्रॉस-कंट्री स्कीइंग वगैरह शामिल हैं.
सोशल मीडिया पर रोल मॉडल
स्की जंपिंग स्टार लुंडबी के साथ साक्षात्कार की तरह ही, ट्यूबिंगेन में परामर्श के दौरान अक्सर अपने बारे में चिंतित लोगों या उनके माता-पिता की आंखों से आंसू बहते हैं. कोप्प ने डॉयचे वेले को बताया, "उन्हें अपने बेटे या बेटी पर गर्व था जिन्होंने खेल में सफलता पाई. लेकिन अचानक घर पर बना हर खाना समस्या बन जाता है."
वह आगे कहती हैं, "कई मामलों में, बच्चों की जान जा सकती है. वहीं, दूसरी ओर उनका बेटा या बेटी खेल के बिना नहीं रह सकते हैं. यह लगभग किसी नशे जैसा हो जाता है. ऐसे में इसका इलाज सिर्फ पेशेवर चिकित्सक ही कर सकते हैं."
कोप्प के रेड-एस परामर्श में सलाह लेने वालों में, औसतन अगर एक पुरुष होता है, तो 10 महिलाएं होती हैं. यह मोटे तौर पर ईटिंग डिसऑर्डर में महिला और पुरुष का अनुपात है.
मनोवैज्ञानिक गील कहती हैं कि रोगी के दृष्टिकोण और व्यवहार के अलावा समाजिक कारण भी बड़ी भूमिका निभाते हैं. वह कहती हैं, "एनोरेक्सिया क्लासिक फीमेल डिसऑर्डर है. स्लिम बने रहना भी एक आदर्श की तरह स्थापित होता जा रहा है. यह स्थिति महिलाओं और लड़कियों पर विशेष रूप से दबाव डाल सकती है. हमारे पश्चिमी देशों में सोशल मीडिया के जरिए भी स्लिम रहने को काफी बढ़ावा दिया जा रहा है."
खेल चिकित्सक कोप्प को भी ऐसा अनुभव हुआ है. वह ‘स्टूपिड इमेज ऑफ ब्यूटी' का दोष देती हैं जिसे सोशल मीडिया के जरिए और अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है.
वह कहती हैं, "मेरे सामने युवा महिला एथलीट बैठी हैं जिनके रोल मॉडल कुछ प्रभावशाली लोग हैं. ये लोग यूट्यूब पर दावा करते हैं कि आपको पतला और चुस्त होना चाहिए, शरीर में फैट नहीं होना चाहिए, एक विशेष तरीके से खाना चाहिए! लड़कियां खुद को आईने में देखती हैं और कहती हैं कि मुझे भी उनके जैसा ही बनना है और वे फिर उसी तरह काम करने लगती हैं."
प्रतिद्वंदियों से तुलना
गेल के मुताबिक, इस प्रक्रिया को अक्सर बाहर से मजबूती दी जाती है. खाने को लेकर शुरू किए गए प्रयोग से शुरुआत में उपलब्धि की भावना मिलती है. जैसे, जब प्रदर्शन में सुधार होता है या जब कोच या टीम के साथी कहते हैं, ‘अरे वाह! आपने तो वजन कम कर लिया है.'
आसपास के माहौल से भी दबाव बन सकता है. जैसे कि लंबी दौड़ की खिलाड़ी मॉकेनहॉप्ट कहती हैं, "जब मुझे एक बार ट्रेनिंग के दौरान पहाड़ पर चढ़ने में परेशानी हुई, तो कोच ने कहा, 'अपने आप को देखो!' जब आपके शरीर के आधार पर कोई ऐसे बोलता है, तो दबाव बढ़ जाता है."
वह कहती हैं कि यह स्थिति उस समय और भी कठिन हो जाती है जब आप अपनी तुलना अपने प्रतिद्वंदियों से करते हैं. व्यक्तिगत उदाहरण के तौर पर वह लंदन में 2012 में हुए ओलंपिक की एक घटना का जिक्र करती हैं.
वह कहती हैं, "मैं वाकई उससे ईर्ष्या करती थी. वह काफी पतली थी, लेकिन वह मुझसे तेज दौड़ सकती थी. मुझे आश्चर्य हुआ कि वह यह कैसे कर सकती है. और उसने यह कहा कि, ‘मैं अभी भी बहुत मोटी हूं.' इससे मैं और असहज महसूस करने लगी."
कोई बदनाम नहीं होना चाहता
मॉकेनहॉप्ट ने कहा कि उस धावक ने लंदन में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन एक साल बाद उसका करियर समाप्त हो गया. खुद मॉकेनहॉप्ट ने अपने करियर में एक बार ज्यादा प्रशिक्षण लेने और कम खाने की कोशिश की थी, लेकिन इसका उल्टा असर हुआ और उनका प्रदर्शन खराब हो गया.
ईटिंग डिसऑर्डर के खतरे के बारे में खेल संघों के बीच हाल के वर्षों में जागरूकता बढ़ी है. यह बात अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति तक पहुंच गई है.
मनोवैज्ञानिक गील कहती हैं, "कई एथलीट ईटिंग डिसऑर्डर की समस्या से जूझते हैं और इसे जाहिर नहीं करना चाहते हैं. वे इसे बदनामी के तौर पर देखते हैं. इससे उनके आसपास मौजूद लोगों को भी इस समस्या के बारे में पता लगाना मुश्किल हो जाता है."
कोप्प भी इस बात से सहमत हैं. वह कहती हैं, "कोई भी मीडिया के सामने यह कहना पसंद नहीं करता है कि मुझे ईटिंग डिसऑर्डर है. और मैं केवल तभी खेल सकता हूं जब मैं बाथरूम जाकर आऊं और पहले से तीन बार ज्यादा थूकूं. कोई भी बदनाम नहीं होना चाहता है." (dw.com)
दो हफ्तों से भी कम समय में ग्लासगो में कॉप 26 शुरू होने वाला है. शताब्दी की पिछली तिमाही में हुए जलवायु बैठकों से क्या हासिल हो पाया है और क्या नहीं- यहां इसका एक जायजा लेते हैं.
डॉयचे वैले पर आने सोफी ब्रैंडलीन की रिपोर्ट-
इस साल 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन शाखा (यूएनएफसीसीसी) के तत्वाधान में 26वां जलवायु सम्मेलन होने जा रहा है. इसे कहा गया है कॉप26 यानी 26वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज.
कॉप की पहली बैठक बर्लिन में 1995 में हुई थी. सदस्य देश तभी से उत्सर्जन में कटौती की जरूरत को देख रहे थे और ग्लोबल वॉर्मिंग पर नियंत्रण बनाए रखने के तरीकों पर चर्चा के लिए हर साल मिलने पर भी राजी हुए थे.
लेकिन इन 25 साल के में कौन से ठोस कदम उठाए जा सके? बहुत से जलवायु परिवर्तन एक्टिविस्टों के मुताबिक, ज्यादा कुछ नहीं. ग्रेटा थनबर्ग ने हाल में द गार्जियन अखबार को बताया, "पिछले कुछ सालों से वास्तव में कुछ नहीं बदला है. हम चाहे जितनी मर्जी कॉप कर लें लेकिन हकीकत में उनसे कुछ निकलने वाला नहीं.”
तो क्या हमें वाकई अब भी सीओपी यानी कॉप कही जाने वाली जलवायु बैठकों की जरूरत है?
पेरिस संधिः जलवायु बैठकों का मील का पत्थर
जानकार इस बात पर सहमत हैं कि इन तमाम सालाना बैठकों में महत्त्वपूर्ण प्रगति नहीं हो पाई थी और निर्णय लेने की गति भी उम्मीद से बहुत कम रही है. फिर भी उनका मानना है कि सीओपी की अभी तक की सबसे जीवंत उपलब्धि कॉप21 के तहत हुआ पेरिस समझौता है. ये जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सबसे बड़ी वैश्विक संधि है.
वहां तक पहुंचने के लिए वार्ताओं के 20 साल खपाने पड़ सकते थे लेकिन 2015 में 196 देशों की मंजूरी से पेरिस समझौता अस्तित्व में आ गया जिसमें औद्योगिक काल पूर्व के स्तरों के मुकाबले ग्लोबल वॉर्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का लक्ष्य घोषित किया गया, वैसे इस कोशिश को प्राथमिकता देने पर सहमति बनी थी कि ये लक्ष्य डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक आ जाए.
गैर सरकारी पर्यावरणीय और विकास संगठन, जर्मन वॉच में अंतरराष्ट्रीय जलवायु राजनीति के टीम लीडर डेविड राइफिश कहते हैं कि पेरिस संधि जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में एक बड़ा बदलाव लाने में कामयाब रही और इसने हमारे आगे का रास्ता तय कर दिया. उन्होंने डीडब्लू से कहा, "मैं मानता हूं कि पेरिस संधि बदलावों की समूची ऋंखला का प्रारंभिक बिंदु है. ये वो संकेत है जो वास्तविक अर्थव्यवस्था को मिला है, दूसरे अभिप्रेरकों को भी ये संकेत गया है कि देशों की मंशा वास्तविक है और इसके वास्तविक निहितार्थ होंगे.”
रीफिश के मुताबिक कॉप और उसका पेरिस समझौता पहले ही अमल में आ चुका है यानी उसका असर दिख रहा है. साफ ऊर्जा की कीमतों में नाटकीय गिरावट आई है, वित्तीय सेक्टर फॉसिल ईंधनों से दूर जा रहा है और नये कोयला प्रोजेक्टों में अनिच्छा दिखाने लगा है, और देशों में कोयले और ईंधन से निजात पाने की कोशिशें तेज की जा रही हैं.
सीओटू की चुनौती
फिर भी समझौते के सबसे करीबी प्रभावों को वाकई जज्ब कर पाना कठिन है.
पेरिस संधि और कॉप की चुनौती ये है कि वो सीओटू के इर्दगिर्द बुनी गई है. ये वो ग्रीनहाउस गैस है जो आज दुनिया में सबसे ज्यादा गर्मी पैदा करने की जिम्मेदार है.
लैंकास्टर यूनिवर्सिटी में जलवायु वैज्ञानिक पॉल यंग ने डीडब्लू को बताया, "अगर हम जलवायु समस्या से निपटना चाहते हैं तो सीओटू हमारा प्रमुख मुद्दा होना चाहिए. सीओटू हर चीज को अपनी चपेट में ले लेती है, पूरी अर्थव्यवस्था को. और उस तेल के टैंकर को हटाना काफी कठिन हो जाता है. कार्बन डाइऑक्साइड ऐसी कोई चीज नहीं है जिसे हम दूसरे रसायन से जब चाहें बदल दें.”
स्वीडन की उप्पासला यूनिवर्सिटी में राजनीतिविज्ञानी चार्ल्स पार्कर के अध्ययन के केंद्र में जलवायु परिवर्तन की राजनीति, नेतृत्व और संकट प्रबंधन जैसे मुद्दे रहे हैं. वह इस बात से सहमत हैं. वह कहते हैं, "हमें आखिरकार फॉसिल ईंधनों का विकल्प तो देखना ही पड़ेगा और निम्न कार्बन वाले या कार्बन मुक्त ऊर्जा संसाधनों की तलाश करनी पड़ेगी. लेकिन कई सारे स्वार्थ भी जुड़े हैं. वीटो लगाने वाली शक्तियां हैं और ऐसी लॉबियां हैं जो ये सब तो होने नहीं देना चाहेंगी.”
महत्वाकांक्षी लक्ष्यों का निर्धारण आसान नहीं
इसीलिए कॉप में लक्ष्यों को लेकर वार्ताएं इतनी जरूरी और मूल्यवान हैं. पेरिस समझौते पर दस्तखत करने वाले हर देश को वादा करना था, इसे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, एनडीसी भी कहा गया कि अपने उत्सर्जनों को कम करने के लिए उनके पास क्या योजना है, कैसे कम करेंगे.
समय के साथ उन्हें इन लक्ष्यों को और महत्वाकांक्षी बनाना होगा यानी उन्हें और करीब लाना होगा. इस प्रक्रिया को रैचिट प्रविधि भी कहा जाता है. इस तरह हर पांच साल में देशो को अपने नये अपडेटड योगदानों का ब्यौरा जमा करना होगा जिससे ये पता चल पाए कि 2015 मे किए गए वादों को वे किस तरह पूरा करना चाहते हैं.
रीफिश कहते हैं, "2015 और 2020 के दरम्यान हम इन लक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण सुधार आता देख चुके हैं. डेढ़ डिग्री सेल्सियस के हिसाब से तो ये पर्याप्त नहीं हैं लेकिन उल्लेखनीय सुधार तो हैं ही. यह पहला स्पष्ट संकेत है कि कोई चीज काम तो कर रही है.”
कई आलोचक जो समस्या देखते हैं वो ये है कि देश अगर अपने लक्ष्य हासिल न कर पाएं तो उन पर किसी किस्म के वित्तीय या कानूनी प्रतिबंध नहीं हैं. रीफिश कहते हैं ये प्रतिबंध बल्कि जन दबाव से ही आते हैं क्योंकि देशों को अपनी साख भी बचानी होती है. वो कहते हैं, "इस तरह ये पूरा मामला असल में सिविल सोसायटी, युवाओं के आंदोलन और अकादमिक जगत की भूमिका तक आ जाता है कि वे लोग ही अपने अपने देशों में सरकार से जवाब तलब करें. जाहिर है कुछ देशों की अपेक्षा कुछ अन्य देशों में ये तरीका बेहतर काम करता है. लेकिन पेरिस के निष्कर्षों और जमीनी स्तर पर सिविल सोसायटी के पिछले कई वर्षों के दौरान की कार्रवाइयों में एक सहजीविता तो है ही.”
कॉप और जलवायु कार्रवाईः एक सहजीवन
इस सहजीविता की ओर इशारा करने वाला दूसरा संकेत है यूरोप में हाल के दो अदालती मामले. जर्मनी की संघीय अदालत ने फैसला दिया कि युवाओं की आजादी और बुनियादी अधिकारों का हनन, अपर्याप्त जलवायु सुरक्षा के रूप में पहले ही काफी किया जा चुका है.
उधर नीदरलैंड्स में एक अदालत ने गैस कंपनी शेल को अपने विश्वव्यापी सीओटू उत्सर्जन में, 2019 के स्तरों की तुलना में, 2030 तक 45 प्रतिशत की कटौती करने का आदेश दिया है.
रीफिश करते हैं, "अब जबकि हमारे पास कामयाबी की ये कहानियां है, मैं मानता हूं कि और कंपनियां और देश भी अदालतों के कठघरे में खड़े किए जाते रहेंगे.”
वह मानते हैं कि इसके नतीजा एक चेन रिएक्शन के रूप में होगा और अदालतों से बचने के लिए कंपनियों और देशों को कार्रवाई के लिए मजबूर करेगा.
वह कहते हैं, "सीओपी यानी कॉप के बिना ये सब बिल्कुल भी मुमकिन नहीं होता.”
तो अपनी कमियों के बावजूद, जानकारों को उम्मीद है कि वैश्विक सरकारों की आगामी जलवायु बैठक भविष्य के लिए बहुत ही अहम है.
रीफिश कहते हैं, "मैं पक्के तौर पर मानता हूं कि हमें सीओपी की जरूरत है. हम लोग एक निर्णायक दशक में हैं जहां हम डेढ़ डिग्री सेल्सियस की हद में अभी भी रह सकते हैं. ग्लासगो की बैठक को दिखाना होगा कि सीमा तो डेढ़ डिग्री की ही है.”
लेकिन वहां तक पहुंचना आसान नहीं होगा. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, अगरचे संपन्न देश उत्सर्जनों में कटौती को लेकर प्रतिबद्ध नहीं होते हैं तो इस शताब्दी के अंत तक दुनिया 2.7 डिग्री सेल्सियस गर्मी के विनाशकारी रास्ते पर होगी.
दुनिया की सरकारों के सामने चुनौती
विशेषज्ञों का मानना है कि सीओपी बैठकें निरर्थक नहीं हैं और लक्ष्यों तक पहुंचने के साफ-स्पष्ट रास्ते की स्थापना के लिए आने वाले वर्षों में उनकी जरूरत बनी रहेगी.
रीफिश के मुताबिक विकसित देश उत्सर्जन में कटौती के अपने वादे पूरे नहीं कर पाए- ये देखते हुए उन्हें भरपाई का एक ऐसा तरीका खोजना होगा ताकि विकासशील देशों को ही सारा खामियाजा न भुगतना पड़े.
वह कहते हैं, "हमें समझना होगा कि कई देशों को विकास की जरूरत है लेकिन इसके लिए वे फॉसिल ईंधन का वही भयंकर रास्ता नहीं अख्तियार कर सकते जो एक दौर में अमीर देशों ने किया था.”
राजनीतिविज्ञानी चार्ल्स पार्कर इस बात से सहमत हैं कि इसीलिए विकसित देशों के लिए ये अत्यधिक महत्त्व की बात होनी चाहिए कि वो विकासशील देशों के साथ एकजुटता दिखाएं और उनकी वित्तीय सहायता करें.
वह कहते हैं, "तो पेरिस का ये दूसरा इम्तहान है.”रीफिश आशावादी हैं कि पेरिस समझौता इस इम्तहान को पास कर लेगा. वह कहते हैं, "पिछले वर्षों में मैंने नये मोड़, क्रांतिकारी बदलाव देखे हैं. मैंने कार्रवाई में आती तेजी देखी है और देखा है कि चीजें घटित हो पा रही हैं और आखिरकार, कॉप वो सब डिलीवर कर रहा है जिसकी हम यूं उम्मीद कर रहे होते कि वो पिछले दशकों पहले ही दे चुका था.” (dw.com)
कोलंबिया में ‘हवाना सिंड्रोम’ के पांच मामले सामने आए हैं. अगस्त महीने में, अमेरिकी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस की वियतनाम यात्रा में भी इसी वजह से देरी हो गई थी. सिंड्रोम कैसे आया, यह स्पष्ट नहीं है.
डॉयचे वैले पर कार्ला ब्लाइकर की रिपोर्ट-
कोलंबिया में बोगोटा स्थित अमेरिकी दूतावास में कथित हवाना सिंड्रोम के कई मामले सामने आए हैं. वॉल स्ट्रीट जर्नल में रिपोर्ट किए जाने के बाद, कोलंबिया के राष्ट्रपति इवान ड्यूक ने एएफपी समाचार एजेंसी से इस तथ्य की पुष्टि की. न्यूयॉर्क की यात्रा के दौरान उन्होंने कहा, "बेशक हमें इस स्थिति की जानकारी है, लेकिन मैं इसे अमेरिकी अधिकारियों पर छोड़ना चाहता हूं, जो खुद इसकी जांच में लगे हैं और यह मामला उनके अपने कर्मचारियों से संबंधित है.”
ऐसा माना जा रहा है कि कोलंबिया में अमेरिकी दूतावास से जुड़े कम से कम पांच परिवारों ने इस रहस्यमयी सिंड्रोम के लक्षणों का अनुभव किया है. बोगोटा का अमेरिकी मिशन दुनिया के सबसे बड़े मिशनों में से एक है. राजनयिकों और कर्मचारियों के अलावा, कई खुफिया एजेंट और ड्रग प्रवर्तन प्रशासन के अधिकारी भी वहां तैनात हैं.
अगस्त में हनोई में भी कई मामले सामने आए
वियतनाम में यह सिंड्रोम इसी साल अगस्त महीने में चर्चा में आया. अमेरिकी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस 24 अगस्त को सिंगापुर से वियतनाम के लिए उड़ान भरने वाली थीं, जहां वियतनाम के राष्ट्रपति गुयेन जुआन फुक के साथ उनकी एक बैठक थी. लेकिन वियतनाम की राजधानी में हवाना सिंड्रोम के दो संभावित मामलों के बारे में उनकी टीम को सूचित किए जाने के बाद उनकी उड़ान में तीन घंटे से अधिक की देरी हुई.
हनोई में अमेरिकी दूतावास के एक बयान में कहा गया कि हैरिस के कार्यालय ने पूरी समीक्षा के बाद फैसला किया था कि उप राष्ट्रपति यात्रा कर सकती हैं और उसमें किसी भी तरह की सुरक्षा का कोई संकट नहीं है. उसके बाद हैरिस ने हनोई में योजना के अनुसार बात की.
दूतावास के बयान ने हाल ही में ‘असंगत स्वास्थ्य घटना' की बात की. हवाना सिंड्रोम के बारे में बात करते समय अमेरिकी राजनयिक हमेशा भारी-भरकम शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन वास्तव में इसका क्या मतलब है?
पहली बार क्यूबा में दिखा
इस सिंड्रोम के बारे में पहली बार साल 2016 में पता चला था जब क्यूबा की राजधानी में अमेरिका और कनाडा के राजनयिकों और उनके परिवार के सदस्यों के बीच ऐसे दर्जनों मामलों का पता चला था. प्रभावित लोगों को सुस्ती, थकान, सिरदर्द और सुनने और देखने संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा. पीड़ित लोगों में से कुछ की सुनने की क्षमता भी स्थाई रूप से चली गई.
क्यूबा में ऐसी घटनाओं के बाद रूस, चीन, ऑस्ट्रिया और हाल ही में बर्लिन में भी अमेरिकी राजनयिकों और खुफिया अधिकारियों में ऐसे लक्षणों की बार-बार सूचना दी गई है.
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा है कि घटना से प्रभावित लोगों ने उलटी, चक्कर आना, गंभीर सिरदर्द, कान दर्द और थकान की सूचना दी और उनमें से कुछ तो काम करने में भी असमर्थ दिखे.
अखबार के मुताबिक, हवाना सिंड्रोम वाले अमेरिकी प्रतिनिधियों को अन्य यूरोपीय देशों में भी पंजीकृत किया गया है. प्रभावित लोगों में से कुछ गैस निर्यात, साइबर सुरक्षा और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसे मुद्दों से जुड़े थे.
कंपकंपी जैसे लक्षण
ये लक्षण अचानक प्रकट होते हैं. जीक्यू मैगजीन की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 में मॉस्को में रात में बिस्तर पर लेटे हुए एक मरीज प्रभावित हुआ था. चक्कर आने के कारण उसने शुरू में सोचा कि उसे फूड पॉइजनिंग हुई है, लेकिन फिर उसे इतना चक्कर आया कि वह बाथरूम में जाने की कोशिश करते हुए गिर पड़ा.
सीआईए के एक कर्मचारी ने मैगजीन को बताया, "उस व्यक्ति को ऐसा महसूस हुआ कि जैसे वो एक ही उलटी आने और बेहोश होने का सामना कर रहा हो.”
हालांकि, साल 2016 में हवाना में दूतावास में कुछ अमेरिकी नागरिकों के विपरीत, उस व्यक्ति का कहना था कि उसने कोई तेज आवाज नहीं सुनी.
पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर ब्रेन इंजरी एंड रिपेयर के विशेषज्ञों ने क्यूबा में घायल हुए कुछ अमेरिकी नागरिकों का अध्ययन किया और साल 2018 में अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में इससे संबंधित एक रिपोर्ट को प्रकाशित किया.
रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने लिखा है कि इसमें रोगी अपना संतुलन और विवेक खो बैठते हैं. साथ ही पीड़ित लोगों में चालक और संवेदी तंत्रिकाओं में भी विकार आ जाता है. ये लक्षण काफी कुछ उसी तरह होते हैं जैसे गंभीर चोट लगने के बाद कुछ लोगों में देखे जाते हैं.
लेकिन मस्तिष्काघात के विपरीत, ये लक्षण गायब नहीं हुए बल्कि कुछ समय के लिए शांत हो गए लेकिन जब वापस दिखे तो और भी ज्यादा तीव्रता के साथ दिखे.
कारण अज्ञात है
अमेरिकी खुफिया समन्वयक एवरिल हैन्स ने हाल ही में कहा था कि अधिकारी इस बारे में दुविधा में हैं कि इस तरह की ‘असामान्य स्वास्थ्य घटनाएं' किस वजह से हो रही हैं. लेकिन अनुमान लाजिमी है, स्पष्ट है.
अमेरिका में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, इंजीनियरिंग और मेडिसिन के विशेषज्ञों ने दिसंबर 2020 में सुझाव दिया कि इन लक्षणों के पीछे रेडियो-फ्रीक्वेंसी ऊर्जा के लक्षित आवेग भी एक वजह हो सकते हैं.
अन्य शोधकर्ताओं का मानना है कि हवाना सिंड्रोम माइक्रोवेव हथियारों के कारण होता है जो अमेरिका के विरोधी, खासतौर पर राजनयिकों, खुफिया अधिकारियों और उनके परिवारों को लक्षित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. उच्च-आवृत्ति विकिरण को नियोजित करने वाले ऐसे हथियार पहले ही विकसित किए जा चुके हैं.
माइक्रोवेव एक से 300 गीगाहर्ट्ज की रेंज में काम करते हैं. घरों में भोजन को गर्म करने वाला माइक्रोवेव ओवन, भोजन को 2.5 गीगाहर्ट्ज की आवृत्ति पर गर्म करता है. जैसे-जैसे आवृत्ति बढ़ती है, विकिरण में ऊर्जा भी बढ़ती जाती है. सही उपकरणों का उपयोग करके और आवृत्ति को मैनेज करके, इसे लोगों पर लक्षित किया जा सकता है. ऐसी स्थिति में किरणें शरीर में गहराई तक प्रवेश कर जाती हैं और वहां नुकसान पहुंचा सकती हैं.
उदाहरण के लिए, अमेरिकी रक्षा विभाग ने एक हथियार प्रणाली विकसित की है जो 95 गीगाहर्ट्ज की आवृत्ति पर माइक्रोवेव का उपयोग करती है.
लक्षण का एक अन्य संभावित कारण जिसे माना गया है वह ध्वनि हथियार है. इसके पीछे तर्क यह है कि हवाना सिंड्रोम से पीड़ित कुछ लोगों ने अपने लक्षणों के शुरू होने से पहले एक तेज आवाज सुनी. हालांकि हवाना सिंड्रोम के ही अन्य पीड़ितों ने ऐसा कुछ नहीं सुना.
जानकारों के मुताबिक, ऐसी प्रणालियां भी हो सकती हैं जो अश्रव्य सीमा में हमलों की अनुमति देती हैं लेकिन इनके बारे में बहुत कम जानकारी है, सिवाय इसके कि सैन्य अधिकारी उन पर शोध कर रहे हैं. अब तक, विशेषज्ञों ने उनके अस्तित्व को अत्यधिक असंभाव्य के रूप में वर्गीकृत किया है.
हवाना सिंड्रोम के लिए कौन जिम्मेदार है, यह सवाल उतना ही अस्पष्ट है जितना कि इसके पीछे के कारण हैं.
मई महीने में, अमेरिकी सरकार के अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर पोलिटिको पत्रिका से बातचीत में कहा था कि उन्हें रूस की जीआरयू सैन्य खुफिया एजेंसी पर हमलों के पीछे होने का संदेह था. हालांकि वाइट हाउस ने फिलहाल आधिकारिक तौर पर ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया है.(dw.com)
बीजिंग, 23 अक्टूबर | चीन के भीतरी मंगोलिया स्वायत्त क्षेत्र में एक केमिकल प्लांट में हुए विस्फोट में चार लोगों की मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गए। स्थानीय अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार की रात को करीब 11 बजे अल्क्सा लीग (प्रान्त) में बायन ओबो औद्योगिक पार्क में एक केमिकल प्लांट की एक कार्यशाला में धमाका हुआ था।
विस्फोट के कारण लगी आग शनिवार की सुबह बुझा दिया गया।
फर्म का कानूनी प्रतिनिधि स्थानीय सार्वजनिक सुरक्षा अधिकारियों के पास है और कंपनी उत्पादन रोक रही है।
दुर्घटना के कारणों की जांच के लिए क्षेत्रीय सरकार ने एक टीम का गठन किया है।(आईएएनएस)
लंदन, 23 अक्टूबर | यूके हेल्थ सिक्योरिटी एजेंसी (यूकेएचएसए) ने पुष्टि की है कि डेल्टा वैरिएंट सब-लाइनेज (डेल्टा एवाई.4.2) को 20 अक्टूबर को वैरिएंट अंडर इन्वेस्टिगेशन (वीयूआई) नामित किया गया था और इसे आधिकारिक नाम वीयूआई-21अक्टूबर-01 दिया गया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, यूकेएचएसए ने कहा कि यह पदनाम इस आधार पर बनाया गया था कि यह हाल के महीनों में देश में आम हो गया है और कुछ शुरूआती सबूत हैं कि डेल्टा की तुलना में ब्रिटेन में इसकी वृद्धि दर बढ़ सकती है।
20 अक्टूबर तक, इंग्लैंड में 15,120 पुष्ट मामले थे। यहां पहली बार जुलाई में इसका पता चला था।
पिछले सप्ताह के दौरान सभी मामलों में यह लगभग 6 प्रतिशत था। इंग्लैंड के सभी नौ क्षेत्रों में पूरे जीनोम अनुक्रमण के माध्यम से मामलों की पुष्टि की गई है।
यूकेएचएसए ने कहा कि वह इसकी बारीकी से निगरानी कर रहा है। हालांकि मूल डेल्टा वैरिएंट देश में 'अत्यधिक प्रभावी' है, जो कुल मामलों का लगभग 99.8 प्रतिशत है।
अभी तक यह सामने नहीं आया है कि यह वैरिएंट अधिक गंभीर बीमारी का कारण बनता है या वर्तमान में तैनात टीकों को कम प्रभावी बनाता है।
यूकेएचएसए के मुख्य कार्यकारी जेनी हैरिस ने कहा, "वायरस अक्सर अपनी मर्जी से फैलते हैं और यह अप्रत्याशित नहीं है कि महामारी के चलते नए वैरिएंट पैदा होते रहेंगे, खासकर जब मामले की दर अधिक रहती है।"
नए आंकड़ों से पता चलता है कि ब्रिटेन में 12 वर्ष और उससे अधिक आयु के 86 प्रतिशत से अधिक लोगों को टीके की पहली खुराक मिली है और लगभग 79 प्रतिशत ने दोनों खुराक प्राप्त की हैं।(आईएएनएस)
आइजोल, 23 अक्टूबर | सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने उत्तरी मिजोरम के कोलासिब जिले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है और उसके पास से छह करोड़ रुपये की हेरोइन बरामद की है। अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी। बीएसएफ के एक प्रवक्ता ने कहा कि एक गुप्त सूचना पर कार्रवाई करते हुए, अर्ध-सैनिक बलों ने शुक्रवार शाम को राष्ट्रीय राजमार्ग -306 के किनारे छिनलुआंग गांव में जाल बिछाया और 47 वर्षीय ड्रग तस्कर रामनीथांगा को हिरासत में लिया। उसके कब्जे से 808.6 ग्राम हेरोइन बरामद की गई।
नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस (एनडीपीएस) एक्ट के तहत आगे की कानूनी कार्रवाई के लिए पकड़े गए व्यक्ति को जब्त किए गए मादक पदार्थ के साथ आबकारी और नारकोटिक्स विभाग को सौंप दिया गया है।
अधिकारियों को संदेह है कि ड्रग्स की तस्करी पड़ोसी देश म्यांमार से की गई थी। ड्रग्स विशेष रूप से हेरोइन और अत्यधिक नशे की लत वाली मेथामफेटामाइन टैबलेट है, जिसे आमतौर पर 'याबा' या 'पार्टी टैबलेट' या 'डब्ल्यूवाई' (वल्र्ड इज योर) के रूप में भी जाना जाता है। यह एक सिंथेटिक दवा है जिसमें मेथामफेटामाइन और कैफीन और कई अन्य नशीले पदार्थो का मिश्रण होता है। (आईएएनएस)
सुमी खान
ढाका, 23 अक्टूबर | बांग्लादेश के डिजिटल सुरक्षा कानून (डीएसए) के तहत सोशल मीडिया के जरिए लोगों को भड़काने के आरोप में मोहम्मद फैयाज को जेल भेज दिया गया है। कमिला जिले के पुलिस सुपर ऑफ सीआईडी खान मोहम्मद रेजवान ने कहा कि वरिष्ठ न्यायिक मजिस्ट्रेट मिथिला जजन निपा ने शुक्रवार को बयान दर्ज किया, जिसके बाद फैयाज को जेल भेज दिया गया।
रेजवान ने आईएएनएस को बताया, "फैयाज ने मजिस्ट्रेट के सामने कबूल किया कि पवित्र कुरान को वहां रखे जाने की बात सुनकर वह 13 अक्टूबर को कुमिला शहर के नानुआ दिघिर पर पूजा मंडप में पहुंचा था। इसके बाद उसने फेसबुक लाइव के जरिए इसका प्रसार किया।"
पुलिस अधिकारी ने कहा कि फैयाज ने मजिस्ट्रेट को बताया कि पवित्र कुरान को नीचा दिखाया गया था, वह लोगों को उकसाने के लिए फेसबुक पर लाइव हो गया था, लेकिन यह नहीं जानता था कि इससे देश भर में व्यापक सांप्रदायिक हिंसा भड़केगी।
यह पूछे जाने पर कि क्या घटना में फैयाज के साथ कोई मिलीभगत थी, जांच अधिकारी ने कहा, "जो लोग फैयाज से जुड़े हैं, उनकी जांच तकनीक की मदद से की जा रही है।"
13 अक्टूबर को, पुलिस ने नानुआर दिघी पर पूजा मंडप में फैयाज को गिरफ्तार किया, जिसमें उसके लाइवस्ट्रीम के बाद तोड़फोड़ की गई थी।
बाद में पुलिस ने उसके खिलाफ कोमिला कोतवाली मॉडल थाने में डिजिटल सुरक्षा कानून के तहत मामला दर्ज किया।
17 अक्टूबर को मामला पुलिस से सीआईडी को ट्रांसफर कर दिया गया था। कोर्ट ने पूछताछ के लिए दो दिन की रिमांड मंजूर कर ली है।(आईएएनएस)
-सारा अतीक़
तालिबान ने 2011 में काबुल के जिस पाँच सितारा इंटरकॉन्टिनेंटल होटल में आत्मघाती हमला किया था, नौ साल बाद तालिबान के आत्मघाती हमलावरों के परिवारों को उसी पाँच सितारा इंटरकॉन्टिनेंटल होटल में आमंत्रित किया गया और उन्हें पैसे और तोहफ़े बांटे गए.
हक़्क़ानी नेटवर्क के प्रमुख और अफ़ग़ानिस्तान के गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक़्क़ानी ने इस समारोह में भाग लिया और उन आत्मघाती हमलावरों की प्रशंसा करते हुए कहा, "वे देश के और हमारे हीरो हैं."
तालिबान ने आत्मघाती हमलावरों के परिवारों को 10 हज़ार अफ़ग़ानी रुपयों के साथ-साथ एक प्लॉट देने का भी वादा किया था.
हालांकि अफ़ग़ान तालिबान युद्ध रणनीति में आत्मघाती हमलावरों का इस्तेमाल करने वाला पहला और एकमात्र समूह नहीं है, जापान सहित दुनिया भर की विभिन्न सेनाओं ने, सैन्य और चरमपंथी समूहों ने दुश्मन ताक़तों के ख़िलाफ़ आत्मघाती हमलों का सहारा लिया है. लेकिन तालिबान का अपने आत्मघाती हमलावरों को खुले तौर पर प्रोत्साहित करने से, जहां बहुत से लोग हैरान हो गए, वहीं बहुत से लोगों ने इस पर नाराज़गी भी ज़ाहिर की.
इस नाराज़गी का मुख्य कारण यह था कि इन आत्मघाती हमलों में मारे गए लोगों में ज़्यादातर आम अफ़ग़ान नागरिक थे, और यह कोई संयोग नहीं है कि जिस होटल में आत्मघाती हमलावरों को 'राष्ट्र का हीरो' कहा गया है, उस पर तालिबान ने एक बार नहीं बल्कि दो बार हमला किया था जिसमे दर्ज़नों अफ़ग़ान नागरिकों की मौत हुई थी.
जब तालिबान की तरफ़ से इस समारोह की तस्वीर सोशल मीडिया पर जारी की गई, तो बहुत से अफ़ग़ान नागरिकों ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि तालिबान द्वारा आत्मघाती हमलावरों की प्रशंसा इसलिए भी दुःखद है, क्योंकि इन हमलों में विदेशी सैनिकों के अलावा बहुत से आम अफ़ग़ान नागरिक भी मारे गए थे.
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब तालिबान ने सत्ता में आने के बाद अपने आत्मघाती हमलावरों की इस तरह से तारीफ़ की है. काबुल पर क़ब्ज़ा करने के बाद, तालिबान नेता अनस हक़्क़ानी ने एक आत्मघाती हमलावर की क़ब्र पर 'फ़ातिहा' पढ़ी (श्रद्धांजलि) और उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी पोस्ट की थी.
इसके अलावा तालिबान ने हमलावरों की प्रशंसा में एक वीडियो भी जारी किया है, जिसमें तालिबान के लिए आत्मघाती हमला करने वालों की तस्वीरें और नाम थे. इसके बाद, तालिबान से जुड़े सोशल मीडिया अकाउंट्स से एक ऐसा वीडियो भी जारी किया गया, जिसमें उन हमलों में इस्तेमाल होने वाली आत्मघाती जैकेट्स को दिखाया गया है.
दुनिया चाहे कुछ भी कहे 'आत्मघाती हमलावर हमारे हीरो हैं'
एक तरफ़, जहां अफ़ग़ान तालिबान की कोशिश है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नज़र में उनकी चरमपंथी समूह वाली छवि बदले और उन्हें एक ज़िम्मेदार राज्य के रूप में स्वीकार किया जाये, वहीं दूसरी तरफ़ चरमपंथ की निशानी समझे जाने वाले आत्मघाती हमलों की प्रशंसा क्या उनकी परेशानी की वजह बन सकती है?
तालिबान के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता क़ारी सईद ख़ोस्ती ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सेना के ख़िलाफ़ युद्ध में मारे गए लोगों की वजह से ही उन्हें यह सफलता मिली है.
"ये आत्मघाती हमलावर हमारे हीरो हैं, अपने हीरो की प्रशंसा करना हमारा कर्तव्य है और यह हमारा आंतरिक मामला है, इसलिए किसी को भी हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है."
क़ारी सईद ने आत्मघाती हमलावरों की प्रशंसा की आलोचना को ख़ारिज करते हुए दावा किया कि इन हमलों में अफ़ग़ान नागरिक नहीं मारे गए हैं.
हालांकि, सिर्फ़ 2011 में काबुल के इंटरकॉन्टिनेंटल होटल में होने वाले आत्मघाती हमले में 11 अफ़ग़ान नागरिक मारे गए थे, और 20 साल तक चली इस जंग में ऐसे सैकड़ों हमले हुए, जिनमें लाखों अफ़ग़ान नागरिक मारे गए.
तालिबान सरकार ने ट्वीट किया कि अमेरिका और नेटो बलों के ख़िलाफ़ आत्मघाती हमलावर इस्लाम और हमारे देश के हीरो हैं. हालांकि, इस फ़ोटो में गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक़्क़ानी का चेहरा छुपाया गया है.
इमेज स्रोत,@REALEMARTISLAMI
तालिबान सरकार ने ट्वीट किया कि अमेरिका और नेटो बलों के ख़िलाफ़ आत्मघाती हमलावर इस्लाम और हमारे देश के हीरो हैं. हालांकि, इस फ़ोटो में गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक़्क़ानी का चेहरा छुपाया गया है
सार्वजनिक तौर पर आत्मघाती हमलावरों की प्रशंसा करने का क्या उद्देश्य है?
काउंटर टेररिज़म विशेषज्ञ अब्दुल सईद का कहना है, "तालिबान के यहां आत्मघाती हमलावरों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. जैसे कि सिराजुद्दीन हक़्क़ानी ने इस समारोह को संबोधित करते हुए भी कहा, कि आत्मघाती हमलावर अमेरिका और उसके सहयोगियों के ख़िलाफ़ तालिबान की कामयाबी के असली हथियार हैं.
इसलिए, यह तालिबान की ओर से उनके लड़ाकों के लिए संदेश था, कि भले ही वो ज़िंदा न रहें, लेकिन फिर भी तालिबान नेतृत्व के लिए उनकी बहुत अहमीयत और सम्मान हैं."
हक़्क़ानी ने यह भी कहा कि मारे गए सभी आत्मघाती हमलावरों के परिवारों को तालिबान की तरफ़ से विशेष कार्ड दिए जाएंगे, ताकि देश में उनके साथ विशेष सम्मानजनक बर्ताव किया जाए.
अब्दुल सईद का कहना है कि तालिबान के इस क़दम ने उनकी सरकार को मान्यता दिलाने की कोशिशों को नुक़सान पहुँचाया है.
अब्दुल सईद कहते हैं, "अंदरूनी तौर पर तो तालिबान समर्थक और सदस्य इस समारोह के आयोजन के लिए, सिराजुद्दीन हक़्क़ानी की काफ़ी सराहना कर रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ़ बाहरी दुनिया में इससे तालिबान की बहुत आलोचना हुई है, जिससे उनकी राजनीतिक परेशानी बढ़ने की आशंका है."
उनका कहना है कि तालिबान दुनिया को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके साथ भाईचारे वाला बर्ताव किया जाये, जिसके लिए दुनिया तालिबान से अपने हिंसक अतीत से बाहर आने की उम्मीद करती है. लेकिन तालिबान के लिए यह मुमकिन नहीं है, कि वो उन लोगों से रिश्ता ख़त्म कर ले, जिन्होंने उनके लिए मानव बम की भूमिका निभाई है, और तालिबान अपनी सफलता का श्रेय उन्हें देते हैं.
तालिबान की इस हरकत से पश्चिमी मीडिया में ये सवाल उठना शुरू हो गए हैं कि क्या तालिबान को अपने इस हिंसक अतीत पर गर्व करते हुए एक ज़िम्मेदार राज्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है?
तालिबान ने 2011 में काबुल के जिस पाँच सितारा इंटरकॉन्टिनेंटल होटल में आत्मघाती हमला किया था, नौ साल बाद तालिबान के आत्मघाती हमलावरों के परिवारों को उसी पाँच सितारा इंटरकांटिनेंटल होटल में आमंत्रित किया गया.
तालिबान का रवैया शासकों के जैसा नहीं बल्कि चरमपंथियों जैसा है
अफ़ग़ानिस्तान के रहने वाले राजनीतिक विश्लेषक अज़ीज़ अमीन का कहना है कि तालिबान में भी तीन तरह के समूह हैं.
उनके अनुसार एक समूह उदारवादी है, जो दोहा में राजनीतिक परामर्श और कूटनीति में लगा हुआ है, दूसरा समूह चरमपंथियों का है, जिनमें हक़्क़ानी नेटवर्क भी शामिल है, जो मानते हैं कि उनकी सफलता उनकी युद्ध रणनीति के कारण है, इसलिए तालिबान को अपने कट्टर रुख़ से नहीं हटना चाहिए.
तीसरा समूह वह है, जो बहुत ही ध्यान से इन दोनों की ताक़त की समीक्षा कर रहा है ताकि सही समय आने पर फ़ैसला करे कि उन्हें किसका साथ देना है.
अज़ीज़ अमीन के अनुसार, "जहां एक समूह कूटनीति के ज़रिए अफ़ग़ान तालिबान को दुनिया के सामने एक उदार और शांतिप्रिय समूह के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरा समूह अपनी विचारधारा के अनुरूप सख़्त क़दम उठा रहा है. जिससे यह संकेत मिलता है कि तालिबान में एक समान नीति पर सहमति नहीं है."
अज़ीज़ अमीन का कहना है कि तालिबान का यह क़दम सिर्फ़ अपने लड़ाकों को ख़ुश करने की कोशिश है, भले ही इससे उनकी आंतरिक और बाहरी विश्वसनीयता प्रभावित हो जाये.
अमीन कहते हैं, "तालिबान का रवैया शासकों जैसा नहीं है, बल्कि चरमपंथियों जैसा है, इसलिए उन्हें इस बात से फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि आम जनता को इससे कितना दुःख पहुँचता है, क्योंकि इन हमलों में मारे गए लोगों में ज़्यादातर अफ़ग़ान नागरिक थे."
आत्मघाती हमलावरों की प्रशंसा से क्षेत्र में उग्रवाद को बढ़ावा मिलेगा
इस समारोह की मेज़बानी हक़्क़ानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक़्क़ानी ने की. ध्यान रहे कि हक़्क़ानी नेटवर्क को अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक आतंकवादी संगठन घोषित किया हुआ है और अफ़ग़ानिस्तान में 20 साल तक चले युद्ध में नेटो और अमेरिकी सेना पर सबसे विनाशकारी हमलों के पीछे हक़्क़ानी नेटवर्क का हाथ रहा है.
इसके अलावा हक़्क़ानी नेटवर्क दुनिया भर में लड़ाकों और आत्मघाती हमलावरों को प्रशिक्षण देने और इस्तेमाल करने के लिए भी जाना जाता है, यहां तक कि ओसामा बिन लादेन और अब्दुल्लाह यूसुफ़ अज़्ज़ाम जैसे लड़ाकों को हक़्क़ानी नेटवर्क ने भर्ती किया और प्रशिक्षण दिया है.
काउंटर टेरररिज़म विशेषज्ञ अब्दुल सईद का कहना है कि तालिबान की ओर से आत्मघाती हमलावरों की खुले तौर पर प्रशंसा करने से क्षेत्र में चरमपंथ को बढ़ावा मिलेगा. अब्दुल सईद का मानना है कि इस तरह के उपाय आतंकवादी समूहों के लिए अपनी जनशक्ति बढ़ाने और अपने सदस्यों का विश्वास जीतने के लिए बहुत उपयोगी हैं.
अब्दुल सईद कहते हैं, "जिस सम्मान के साथ इन मारे गए आत्मघाती हमलावरों को जिहादियों के गौरवशाली हीरो के रूप में पेश किया गया है, यह निश्चित रूप से अन्य युवाओं के लिए भी अपने समाज या दोस्तों के सर्कल में इस तरह के सम्मान प्राप्त करने के लिए आकर्षित करता है. ख़ास तौर से वो युवा जो ज़िंदगी में सभी प्रकार की निराशाओं और नाउम्मीदियों का सामना कर रहे हैं. जो आसानी से ज़्यादातर ऐसे समूहों का हिस्सा बन जाते हैं."
-सलमान रावी
अफ़ग़ानिस्तान को लेकर भारत अपनी नीति में बदलाव के स्पष्ट संकेत मिलने शुरू हो गए हैं. पहले दोहा में भारतीय राजदूत की तालिबान प्रतिनिधि से मुलाक़ात और अब मॉस्को में विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव की तालिबान प्रतिनिधियों के साथ बैठक.
भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में मानवीय सहायता की बात भी स्वीकार की. साथ ही आर्थिक और कूटनीतिक संबंघ बेहतर करने पर भी ज़ोर दिया गया.
अमेरिका, तालिबान, चीन, इसराइल, भारत और कश्मीर पर क्या बोले इमरान ख़ान
तालिबान के 'दोस्तों' की पड़ताल वाले अमेरिकी बिल पर पाकिस्तान को भारत पर शक़
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत तालिबान से 'एंगेज' न करने की नीति पर चलता आया था.
लेकिन जानकारों का कहना है कि सामरिक दृष्टि से भारत की नीति में बदलाव आवश्यक है. नीति में बदलाव के संकेत उस समय आना शुरू हुए, जब क़तर की राजधानी दोहा में तालिबान के प्रतिनिधियों से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था.
हालाँकि भारत ने खुले तौर पर 'बैक डोर चैनल' से तालिबान के साथ बातचीत करने की बात कभी स्वीकार नहीं की, लेकिन 31 अगस्त को दोहा में भारत के राजदूत से तालिबान के शीर्ष नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्टैनिकज़ई की मुलाक़ात हुई.
तालिबान के नेता ख़ुद भारतीय दूतावास गए थे और इस दौरान भारत के राजदूत दीपक मित्तल से उनकी लंबी बातचीत हुई. स्टैनिकज़ई दोहा में स्थित तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख भी रहे हैं. तालिबान के साथ भारत की ये पहली औपचारिक बातचीत थी.
भारत के विदेश मंत्रालय ने इस बातचीत के बारे में जो बयान दिया, उसमें कहा गया कि ये बैठक तालिबान के अनुरोध पर हुई थी, जिसमे मूलतः अफ़ग़ानिस्तान में रह रहे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और वहाँ रह रहे अल्पसंख्यकों को भारत आने की अनुमति पर बात हुई.
भारत ने तालिबान के शीर्ष नेता के साथ सामरिक मुद्दे को भी उठाया, जिसमें आश्वासन भी मिला कि तालिबान अफ़ग़ानिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत के ख़िलाफ़ नहीं होने देगा.
तालिबान के साथ दूसरी औपचारिक बैठक 21 अक्तूबर को हुई, जब मॉस्को में विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में भारत का एक प्रतिनिधिमंडल तालिबान के प्रतिनिधियों से मिला. तालिबान के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व उनके उप प्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनफ़ी कर रहे थे.
ये प्रतिनिधिमंडल रूस के निमंत्रण पर अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर आयोजित 'मोस्को फ़ॉर्मेट' सम्मेलन में शामिल होने गया था और सम्मेलन के इतर भारत और तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत हुई.
तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहउल्लाह मुजाहिद के हवाले से अफ़ग़ानिस्तान की समाचार एजेंसी 'टोलो' का कहना था कि दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने एक दूसरे की चिंताओं को ध्यान में रखने पर विचार किया. इसके अलावा दोनों देशों के बीच आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों को बेहतर बनाने की बात पर ज़ोर भी दिया गया.
सम्मलेन के समापन के दौरान इसमें शामिल भारत सहित 10 देशों ने अफ़ग़ानिस्तान को मानवीय सहायता देने के साझा प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए. अगस्त की 15 तारीख़, यानी वो दिन जब तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर नियंत्रण कर लिया था, तब से लेकर 21 अक्तूबर तक अफ़ग़ानिस्तान को लेकर भारत की नीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला.
पहले भारत कह रहा था कि वो तालिबान की सरकार को मान्यता नहीं देगा और विश्व समुदाय से भी अपील की थी कि तालिबान के शासन को मान्यता देने में कोई जल्दबाज़ी नहीं की जानी चाहिए. भारत के तब के रुख़ और अब के रुख़ में बड़ा बदलाव है.
इतना ही नहीं भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर चार देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक आयोजित करने का प्रस्ताव भी रखा है. इन देशों में चीन, रूस और पाकिस्तान भी शामिल हैं. इस प्रस्तावित बैठक की कोई तारीख़ पक्की नहीं की गई है.
लेकिन विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि ये 10 या 11 नवंबर को दिल्ली में आयोजित हो सकती है और इन सभी देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इसमें ख़ुद मौजूद रहेंगे. सूत्रों का कहना है कि इस सम्मलेन के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ़ को भी औपचारिक रूप से न्योता भेजा गया है.
अफ़ग़ानिस्तान को लेकर भारत की कभी 'कोई एक नीति' नहीं रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत ने अमेरिका और नेटो की फ़ौजों पर सुरक्षा और सामरिक मुद्दों को छोड़ दिया था और अपना पूरा 'फ़ोकस' अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण तक ही रखा.
चाहे वो छात्रवृति देने की बात हो, नए संसद और डैम का निर्माण हो या फिर बिजली और सड़क की योजनाएँ हों. भारत ने सिर्फ़ इसी तक अपना दायरा सीमित रखा और भारी निवेश भी किया.
लेकिन सामरिक मामलों के विशेषज्ञों को लगता है कि अफ़ग़ानिस्तान के मामले में भारत बहुत दिनों तक 'मैदान से बाहर बैठकर' सब कुछ नहीं देखता रह सकता है. वो ये भी मानते हैं कि 'तालिबान अपना शासन नियम से चलाए' कहते रहने से और उसका इंतज़ार करते रहने से भारत को कुछ हासिल भी नहीं हो सकता है.
'थिंक टैंक' ऑब्ज़ेर्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन की चयनिका सक्सेना मानती हैं कि भारत के लिए ये सही नहीं होगा कि वो अफ़ग़ानिस्तान में बदलते हुए हालात से ख़ुद को दूर रखे और उस देश में जो हो रहा है, उसे भाग्य भरोसे छोड़ दे. खास तौर पर तब, जब वो क्षेत्रीय ताक़तें या देश, जिनके साथ भारत के संबंध अच्छे नहीं है, वे वहाँ बड़े सक्रिय दिख रहे हैं.
अपने एक शोध में चयनिका सक्सेना लिखती हैं, "भारत को अफ़ग़ानिस्तान में एक पैर हमशा दरवाज़े के अंदर ही रखना होगा. तालिबान से संपर्क रखने को कहीं से भी इस दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए कि भारत उसे मान्यता दे रहा है. इसे इस रूप में देखा जाना चाहिए कि भारत ऐसी सरकार से डील कर रहा है जो अपने निर्णय लेने में कमज़ोर है. भारत को अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की ख़ातिर वहाँ अपनी मौजूदगी बनाए रखनी चाहिए."
विशेषज्ञ मानते हैं कि जिस तरह से पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान के मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है, उससे भारत को भी अपनी नीति पर पुनर्विचार करने के ज़रूरत है.
हाल ही में बीबीसी से इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए भारत के उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके अरविंद गुप्ता का कहना था कि भारत को अभी सब्र के साथ ही काम लेना चाहिए. उनका ये भी मानना था कि तालिबान से भारत को कुछ हासिल होने वाला नहीं है.
बीबीसी से बातचीत के क्रम में अरविंद गुप्ता ने ये भी कहा था कि तालिबान के असली चेहरे से सब परिचित हैं जो अभी तक एक 'घोषित चरमपंथी गुट' ही है. उनके अनुसार 'चरमपंथ और रूढ़िवाद' बड़ी समस्या बने रहेंगे. क्योंकि वो सोच कहीं से ख़त्म नहीं होने वाली है. तालिबान के सत्ता पर दख़ल से जिहादी सोच और भी विकसित होगी, जिसके दुष्परिणाम पूरी दुनिया ने पहले ही देख लिए हैं.
लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान और चीन के बढ़ते प्रभाव और हस्तक्षेप की वजह से सामरिक मामलों के विशेषज्ञ अब मानने लगे हैं कि भारत को भी अपने अफ़ग़ानिस्तान नीति की समीक्षा और उस पर पुनर्विचार करना चाहिए.
शायद यही वजह है कि तालिबान से दशकों तक दूरी बनाए रखने के बाद अब भारत भी आगे क़दम बढ़ा रहा है. चाहे दोहा के दूतावास में तालिबान के प्रतिनिधि से राजदूत दीपक इत्तल की मुलाक़ात हो या फिर मॉस्को फ़ॉर्मेट सम्मलेन के इतर भारत और तालिबान के प्रतिनिधिमंडल के बीच हुई मुलाक़ात हो. अफ़ग़ानिस्तान को लेकर भारत के रुख़ में बदलाव या नीति में बदलाव स्पष्ट रूप से झलकता है.
अगले महीने चार देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की दिल्ली में प्रस्तावित बैठक को भी राजनयिक हलकों में बड़े क़दम के रूप में ही देखा जा रहा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि चीन अगर ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिका ताइवान का बचाव करेगा. राष्ट्रपति बाइडन ने ताइवान पर अमेरिका के पुराने रुख़ से अलग लाइन लेते हुए यह बयान दिया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति से पूछा गया था कि क्या अमेरिका ताइवान की रक्षा करेगा तो बाइडन ने कहा, ''हाँ, ऐसा करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं.''
लेकिन बाद में व्हाइट हाउस के एक प्रवक्ता ने अमेरिकी मीडिया से कहा कि इस टिप्पणी को नीति में बदलाव के तौर पर नहीं लेना चाहिए.
उधर ताइवान ने कहा है कि बाइडन के बयान से चीन को लेकर उसकी नीति में कोई बदलाव नहीं आएगा. अमेरिका में एक क़ानून है जिसके तहत ताइवान की सुरक्षा में मदद की बात कही गई है. लेकिन अमेरिका में इस बात को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है कि चीन ने ताइवान पर हमला किया तो वह क्या करेगा. अमेरिका के रुख़ को 'रणनीतिक पेच' कहा जाता है.
बाइडन और व्हाइट हाउस ने क्या कहा?
अमेरिकी न्यूज़ चैनल सीएनएन के टाउनहॉल प्रोग्राम में एक प्रतिभागी ने हाल में चीन के कथित हाइपसोनिक मिसाइल परीक्षण की रिपोर्ट का ज़िक्र किया और पूछा किया क्या बाइडन ताइवान की रक्षा को लेकर प्रतिबद्ध हैं? बाइडन चीन की सेना का सामना करने के लिए क्या करेंगे?
इन सवालों के जवाब में बाइडन ने कहा, ''हाँ और हाँ. इसे लेकर निराश होने की ज़रूरत नहीं है कि वे और मज़बूत हो रहे हैं क्योंकि चीन, रूस और बाक़ी दुनिया को पता है कि दुनिया के इतिहास में हमारी सेना सबसे ताक़तवर है.''
बाइडन से सीएनएन एंकर एंडर्सन कूपर ने एक और सवाल किया कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो क्या अमेरिका मदद के लिए सामने आएगा? इस पर बाइडन ने कहा, ''हाँ, ऐसा करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं.''
लेकिन बाद में बाइडन की टिप्पणी पर व्हाइट हाउस के एक प्रवक्ता ने स्पष्टीकरण दिया और कहा कि अमेरिका ने अपनी नीति में किसी भी तरह के बदलाव की घोषणा नहीं की है. यह कोई पहली बार नहीं है जब ऐसा हुआ है.
इससे पहले अगस्त महीने में भी बाइडन ने एबीसी न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में ताइवान पर इसी तरह का बयान दिया था. उस वक़्त भी व्हाइट हाउस ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा था कि अमेरिका की ताइवान पर नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
ताइवान के राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा कि हम न तो दबाव में झुकेंगे और न ही कोई समर्थन मिलने पर जल्दबाज़ी में कोई क़दम उठाएंगे. ताइवान की राष्ट्रपति के प्रवक्ता ज़ेवियर चेंग ने कहा, ''ताइवान मज़बूती से आत्मरक्षा करेगा.''
चेंग ने माना कि अमेरिका के बाइडन प्रशासन ने लगातार ताइवान को ठोस समर्थन दिया है. चीन ने बाइडन के बयान पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
लेकिन टाउन हॉल में बाइडन के बयान से पहले गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत चांग जुन ने ताइवान पर अमेरिकी रुख़ को ख़तरनाक बताया था.
हाल के हफ़्तों में ताइवान और चीन में तनाव बढ़ा है. चीन के दर्जनों लड़ाकू विमानों ने ताइवान के हवाई क्षेत्र में अतिक्रमण किया था.
चीन ने ताइवान को अपने में मिलाने की कोशिश की तो यह भीषण होगा और यह एक मुश्किल टास्क है. इसका मतलब ये नहीं है कि ये कभी नहीं होगा लेकिन जो भी चीनी नेता हमले का आदेश देगा, वह अपनी ही नस्ल हान चीनियों को आपस में ख़तरनाक हथियारों से लड़ने पर मजबूर करेगा.
इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि चीनी सरकार ने अपने यहाँ लोगों को इस संघर्ष के लिए कितना तैयार किया है. भले ताइवान को लेकर अलगाववादी होने का प्रॉपेगैंडा फैलाया गया हो.
यह भी बहुत मायने नहीं रखता है युद्ध के लिए हमेशा भड़काने वाला ग्लोबल टाइम्स अख़बार ताइवान के ख़िलाफ़ युद्ध को गौरव से किस हद तक जोड़ता है. जब एक ही नस्ल के सैनिकों की लाशें बिछेंगी तो उस पर पर्दा डालना आसान नहीं होगा.
अगर चीन ताइवान पर कब्ज़ा कर भी लेता है तो उस पर नियंत्रण को लेकर कई चुनौतियां होंगी. 2.40 करोड़ की आबादी वाले ताइवान के ज़्यादातर लोग चीन के कम्युनिस्ट शासन को स्वीकार नहीं करेंगे.
ताइवान पर हमले के लिए जो भी नेता आदेश देगा वो पूरे इलाक़े में अस्थिरता के लिए भी ज़िम्मेदार होगा. चीन अगर हमला करता है तो अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की सेना भी शामिल हो सकती हैं.
शी जिनपिंग अपने नेतृत्व में ताइवान को मिलाने की चाहत रखते हैं लेकिन ऐसा करेंगे तो बहुत कुछ दाँव पर लग जाएगा. चीन मीडिया में हमले का शोर चाहे जितना मचे लेकिन चीन की सरकार में ऐसे तमाम लोग होंगे जो हमले के पक्ष में नहीं होंगे. हालाँकि चीन की बढ़ती सैन्य ताक़त की वजह से अगले कुछ सालों में ये सारे समीकरण बदल भी सकते हैं. (bbc.com)