अंतरराष्ट्रीय
दुबई, 30 सितंबर (आईएएनएस)| 5 महीने पहले आए स्ट्रोक के कारण अस्पताल के बिस्तर पर जिंदगी गुजार रहे एक भारतीय प्रवासी आखिरकार भारत में अपने गृहनगर पहुंच गए हैं। भारतीय दूतावास के सहयोग से प्रवासी को भारत भेजने में मदद करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण कुमार ने कहा, 60 साल के रामचंद्रन कोटककुन्नू ने जब दुबई से उड़ान भरी तब वे व्हीलचेयर पर थे। रामचंद्रन 30 साल से ज्यादा समय तक यूएई में रहे और वहां उन्होंने एक सफल बिजनेस चलाया। फिर एक नुकसान में उन्होंने सब कुछ खो दिया।
खलीज टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, व्यवसाय खत्म होने के बाद उन्होंने नैफ जिले के धीरा में एक दुकान में ढाई हजार दिरहम की सैलरी पर नौकरी कर ली। वह संघर्ष करते रहे क्योंकि उनकी पत्नी और बेटी दोनों बीमार हैं।
कुमार ने बताया, "उनकी पत्नी को कैंसर है और उनकी बेटी को दिल की बीमारी है। उन्हीं की वजह से वह अभी भी संयुक्त अरब अमीरात में रह रहे थे, ताकि वे उनके अस्पताल के बिल भर सकें। फिर उन्हें स्ट्रोक आ गया। वे 5 महीने तक अस्पताल में रहे, जहां उनका बिल 16 लाख दिरहम तक पहुंच गया।"
इसके बाद वाणिज्य दूतावास ने उन्हें भारत आने के लिए फ्लाइट का टिकट और एक व्हीलचेयर दी। प्रवीण ने कहा, "रामचंद्रन अभी भी बोल नहीं पाते हैं। भारत के वाणिज्य दूतावास और मिशन की चिकित्सा टीम के स्वयंसेवकों के हस्तक्षेप के चलते आखिरकार रामचंद्रन को केरल के कासरगोड जिले में उनके गृहनगर में वापस लाया गया। वह अब कर्नाटक के मैंगलोर के एक बड़े अस्पताल में भर्ती हैं।"
श्रम के वाणिज्य दूत जितेंद्र सिंह नेगी ने खलीज टाइम्स को बताया, "रामचंद्रन को हमारे समर्थन से भारत वापस भेज दिया गया है। उन पर अस्पताल का 16 लाख दिरहम का बिल बाकी था लेकिन अस्पताल ने दयालुता दिखाते हुए उन्हें छोड़ दिया।"
काठमांडू, 30 सितम्बर (आईएएनएस)| एक विवादित कदम में, जो भारत और उसकी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को और अधिक नाराज कर सकता है, नेपाल की एक स्थानीय प्रशासन ने 100 बीघा या 40 एकड़ में अयोध्यापुरी धाम का निर्माण कराने का फैसला किया है। चितवन जिले की माडी नगरपालिका, जहां प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के मुताबिक भगवान राम का जन्म हुआ है, ने अयोध्यापुरी धाम के निर्माण के लिए भूमि आवंटित करने का फैसला किया है।
ठाकुर प्रसाद ढकाल ने नेपाल की राष्ट्रीय समाचार एजेंसी को बताया कि मंगलवार को नगरपालिका की कार्यकारी निकाय बैठक ने धाम के निर्माण के लिए 100 बीघा जमीन आवंटित करने का फैसला किया।
ओली ने 14 जुलाई को भगवान राम के जन्म स्थान के बारे में सनसनीखेज टिप्पणी की और दावा किया कि राम का जन्म नेपाल में हुआ था, न कि भारत स्थित उत्तर प्रदेश के अयोध्या में।
ओली ने भारत पर एक फर्जी अयोध्या बनाने का भी आरोप लगाया, जो ओली के अनुसार नेपाल के खिलाफ एक सांस्कृतिक हमला है। ओली के बयान ने भारत और नेपाल दोनों में उस समय हंगामा मचा दिया जब नेपाल-भारत संबंधों में सीमा विवाद और चीन के साथ नेपाल के अति निकटता के कारण दोनों देशों के संबंधों में खटास आ गई थी।
ढकाल ने कहा, "हमने वार्ड 8 और 9 में अयोध्यापुरी धाम के निर्माण के लिए वर्तमान अयोध्यापुरी पार्क की 100 बीघा जमीन आवंटित की है।"
भगवान राम के विवादास्पद जन्म स्थान की घोषणा करने के बाद, ओली ने 9 अगस्त को मेयर ढकाल की अगुवाई में माडी नगरपालिका के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक की और अधिक सबूत इकट्ठा करने के लिए उस क्षेत्र में खुदाई शुरू करने का निर्देश दिया। ओली ने अपनी सरकार से माडी नगर पालिका को हर संभव समर्थन देने का और साथ ही साथ खुदाई के कामों को पूरा करने के लिए मास्टर प्लान तैयार करने में मदद करने और राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों को तुरंत स्थापित करने में सहयोग देने का वादा किया।
ढकाल ने कहा कि हमारे पास अतिरिक्त 50 बीघा जमीन है, जिसका उपयोग हम कोई भी तकनीकी समस्या होने पर कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अयोध्यापुरी धाम के निर्माण के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया गया है और एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट जल्द ही तैयार की जाएगी।
उन्होंने कहा कि नगरपालिका, प्रधानमंत्री के निदेर्शानुसार अयोध्यापुरी धाम निर्माण के कार्यों को सुविधाजनक बनाने और प्रबंधित करने के लिए लगातार काम कर रही है।
ओली के विवादास्पद बयान की उनकी पार्टी के नेताओं के साथ-साथ भारत की सत्तारूढ़ पार्टी, भारतीय जनता पार्टी ने भी आलोचना की थी।
काठमांडू, 30 सितम्बर (आईएएनएस)| एक विवादित कदम में, जो भारत और उसकी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को और अधिक नाराज कर सकता है, नेपाल की एक स्थानीय प्रशासन ने 100 बीघा या 40 एकड़ में अयोध्यापुरी धाम का निर्माण कराने का फैसला किया है। चितवन जिले की माडी नगरपालिका, जहां प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के मुताबिक भगवान राम का जन्म हुआ है, ने अयोध्यापुरी धाम के निर्माण के लिए भूमि आवंटित करने का फैसला किया है।
ठाकुर प्रसाद ढकाल ने नेपाल की राष्ट्रीय समाचार एजेंसी को बताया कि मंगलवार को नगरपालिका की कार्यकारी निकाय बैठक ने धाम के निर्माण के लिए 100 बीघा जमीन आवंटित करने का फैसला किया।
ओली ने 14 जुलाई को भगवान राम के जन्म स्थान के बारे में सनसनीखेज टिप्पणी की और दावा किया कि राम का जन्म नेपाल में हुआ था, न कि भारत स्थित उत्तर प्रदेश के अयोध्या में।
ओली ने भारत पर एक फर्जी अयोध्या बनाने का भी आरोप लगाया, जो ओली के अनुसार नेपाल के खिलाफ एक सांस्कृतिक हमला है। ओली के बयान ने भारत और नेपाल दोनों में उस समय हंगामा मचा दिया जब नेपाल-भारत संबंधों में सीमा विवाद और चीन के साथ नेपाल के अति निकटता के कारण दोनों देशों के संबंधों में खटास आ गई थी।
ढकाल ने कहा, "हमने वार्ड 8 और 9 में अयोध्यापुरी धाम के निर्माण के लिए वर्तमान अयोध्यापुरी पार्क की 100 बीघा जमीन आवंटित की है।"
भगवान राम के विवादास्पद जन्म स्थान की घोषणा करने के बाद, ओली ने 9 अगस्त को मेयर ढकाल की अगुवाई में माडी नगरपालिका के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक की और अधिक सबूत इकट्ठा करने के लिए उस क्षेत्र में खुदाई शुरू करने का निर्देश दिया। ओली ने अपनी सरकार से माडी नगर पालिका को हर संभव समर्थन देने का और साथ ही साथ खुदाई के कामों को पूरा करने के लिए मास्टर प्लान तैयार करने में मदद करने और राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों को तुरंत स्थापित करने में सहयोग देने का वादा किया।
ढकाल ने कहा कि हमारे पास अतिरिक्त 50 बीघा जमीन है, जिसका उपयोग हम कोई भी तकनीकी समस्या होने पर कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अयोध्यापुरी धाम के निर्माण के लिए एक मास्टर प्लान तैयार किया गया है और एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट जल्द ही तैयार की जाएगी।
उन्होंने कहा कि नगरपालिका, प्रधानमंत्री के निदेर्शानुसार अयोध्यापुरी धाम निर्माण के कार्यों को सुविधाजनक बनाने और प्रबंधित करने के लिए लगातार काम कर रही है।
ओली के विवादास्पद बयान की उनकी पार्टी के नेताओं के साथ-साथ भारत की सत्तारूढ़ पार्टी, भारतीय जनता पार्टी ने भी आलोचना की थी।
निखिला नटराजन
न्यूयॉर्क, 30 सितम्बर (आईएएनएस)| अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2020 को लेकर ओहायो के क्लीवलैंड में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन के बीच प्रेसिडेंशियल डिबेट के दौरान जुबानी जंग खूब देखने को मिली। बहस के दौरान 'मसखरा', 'झूठा', 'एक मिनट के लिए चुप हो जाओ', 'भौंकते रहो' जैसी अपमानजनक टिप्पणियां की गईं। फॉक्स न्यूज के एंकर क्रिस वैलेस ने इस बहस को मॉडरेट किया और राष्ट्रपति ट्रंप इस दौरान आक्रामक तेवर में दिखाई दिए।
इस बात लेकर भी बहस छिड़ गई है कि बहस को मॉडरेट करने वाले वैलेस ने ट्रंप को इतना आक्रामक तेवर, ऐसी तीखी टिप्पणियां कैसे करने दी।
ट्रंप ने 90 मिनट की बहस के दौरान काफी तीखी बहस की और एक मोड़ पर कहा," मैं तुम्हें बताता हूं जो, तुम वो काम कभी नहीं कर सके जो हमने कर दिखाया। तुम्हारे खून में यह नहीं है।"
वहीं, बाइडन ने पलटवार करते हुए कहा, "वह यहां जो कह रहे हैं, वह झूठ है।" उन्होंने कहा, "गलत शख्स, गलत रात, गलत समय।"
बाइडन ने कई बार कहा, "यह शख्स नहीं जानता कि वह किस बारे में बात कर रहा है।"
मिसूरी से पूर्व सीनेटर क्लेयर मैककैस्किल ने बहस के बारे में कहा, "मैं 80 प्रतिशत दुखी हूं और 20 प्रतिशत बौखलाई हुई हूं।"
वाशिंगटन पोस्ट के स्तंभकार यूजीन रॉबिन्सन का मानना है कि "अधिकांश देशवासी व्याकुल हैं। मुझे नहीं पता कि हमने क्या बकवास देखा।"
डेमोक्रेटिक रणनीतिकार जेम्स कारविले के अनुसार, 25 मिनट तक यह देखने लायक नहीं था।
10 मिनट से भी कम समय में, बहस ने व्यक्तिगत हमलों का रूप अख्तियार कर लिया, जब मॉडरेटर बाइडन के दो मिनट के टॉक टाइम के दौरान ट्रंप को शांत रखने में विफल रहे। नाराज बाइडन ने ट्रंप से कहा, "क्या तुम चुप रहोगे?"
पहली बहस के परफॉर्मेस पर प्रतिक्रिया देते हुए डेमोक्रेटिक पार्टी की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस ने कहा कि "अमेरिका को बहुत स्पष्ट विकल्प मिल गया है।" उन्होंने ट्रंप को अपनी गहराई से बाहर निकलने और अपना बचाव करने वाला शख्स बताया।
बराक ओबामा के पूर्व कैम्पेन मैनेजर डेविड प्लॉफ ने कहा, "आज रात के इस परफॉर्मेस से लोगों को समझ में आ जाएगा कि ट्रंप एक और कार्यकाल के योग्य नहीं हैं।"
डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडन की बहस के दौरान तीखी जुबानी जंग देखने को मिली। ट्रंप के कोरोनवायरस प्रतिक्रिया, नस्लीय न्याय, अर्थव्यवस्था और एक दूसरे की फिटनेस को लेकर निशाना साधा गया।
बाइडन ने कहा, "सच यह है कि उन्होंने अब तक जो कुछ भी कहा है वह सिर्फ एक झूठ है।"
बाइडन पहले पांच मिनट के भीतर ट्रंप पर खूब हावी दिखे और उन्हें आड़े हाथो लिया। उन्होंने ट्रंप से कहा कि वह अपने बंकर से बाहर निकलें। ओवल ऑफिस के अपने गोल्फ कोर्ट जाएं और लोगों को बचाने के लिए एक योजना बनाएं।
जब ट्रंप 2016 और 2017 में संघीय आयकरों में महज 750 डॉलर का भुगतान करने वाली रिपोटरें के बारे में सवालों का ठीक से जवाब नदीं दे पाए तो बाइडन ने कहा, "हमें अपने करों को दिखाएं। अपने करों को दिखाएं।"
उन्होंने ट्रंप के प्रति काफी हमलावर रुख दिखाया, भले ही ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने लाखों डॉलर का आयकर भुगतान किया है।
हालिया सर्वे से पता चलता है कि ट्रंप की लोकप्रियता 2016 के बाद से लुढ़क गई है। बाइडन सभी सर्वे में ट्रंप से आगे हैं, भले ही अंतर ज्यादा न हो।
ट्रंप ने श्वेत वर्चस्ववादियों की निंदा करने से इनकार कर दिया और रात की बहस का समापन इस बात को बताने से इनकार करने के साथ किया कि क्या वह चुनाव परिणामों को स्वीकार करेंगे। ट्रंप की कोरोनोवायरस प्रतिक्रिया इस बहस में छाई रही।
बाइडन ने कोविड-19 प्रतिक्रिया पर ट्रंप को विफल कहा।
सैन फ्रांसिस्को, 30 सितंबर (आईएएनएस)| अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव का समय नजदीक है और फेसबुक ने कहा है कि उसके प्लेटफॉर्म पर करीब एक लाख लोगों ने मतदानकर्मियों के रूप में साइन अप किया है। इस महत्वपूर्ण भूमिका के लिए लोगों को अपने राज्य चुनाव अधिकारियों के साथ साइन अप करने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए फेसबुक ने हाल ही में 18 साल से ज्यादा उम्र वाले लोगों के लिए न्यूज फीड के शीर्ष पर एक संदेश दर्शाया है। इसके बाद करीब 17 लाख से अधिक लोगों ने अपने राज्य चुनाव अधिकारियों के साथ साइन अप करने के लिए फेसबुक ऐप के टॉप पर आ रहे इस संदेश पर क्लिक किया है।
इससे पहले गर्मियों में राज्य के चुनाव अधिकारियों ने मतदानकर्मियों की संख्या में भारी कमी को लेकर चेतावनी दी थी।
कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा, "मतदान कार्यकर्ताओं की कमी का मतलब है मतदान स्थलों पर लोगों को ज्यादा देर तक इंतजार करना पड़ सकता है, जिससे लोगों के लिए इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेना मुश्किल हो जाता है, इसलिए फेसबुक इसका हिस्सा बनकर अपना योगदान दे रहा है।"
इसके अलावा कंपनी ने हर राज्य के चुनाव प्राधिकरण को मुफ्त में विज्ञापन लगाने की भी पेशकश की है ताकि वे इस प्लेटफॉर्म के जरिए मतदान कार्यकर्ताओं की भर्ती कर सके।
इस साल फेसबुक ने 40 लाख से अधिक लोगों को वोट करने के लिए पंजीकरण करने में मदद करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है।
वाशिंगटन, 30 सितंबर (आईएएनएस)| जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के अनुसार दुनिया में कोविड-19 मामलों की कुल संख्या 3.35 करोड़ और मृत्यु संख्या 10 लाख को पार कर गई है। विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) के नए अपडेट के मुताबिक बुधवार तक दुनिया में कुल मामलों की संख्या 3,35,60,877 और मरने वालों की संख्या बढ़कर 10,06,576 हो गई है।
दुनिया में सबसे अधिक 71,90,230 मामलों और 2,05,986 मौतों के साथ अमेरिका लगातार कोरोना का सबसे अधिक प्रकोप झेल रहा है। इसके बाद भारत में 61,45,291 मामलों और 96,318 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर है।
मामलों की संख्या में ब्राजील दुनिया में तीसरे और मौतों की संख्या में दूसरे स्थान पर है। यहां 47,77,522 मामले और 1,42,921 मौतें दर्ज हो चुकी हैं।
सर्वाधिक मामलों की सूची में अन्य शीर्ष देशों में रूस (11,62,428), कोलंबिया (8,24,042), पेरू (8,08,714), स्पेन (7,48,266), मैक्सिको (7,38,163), अर्जेंटीना (7,36,609), दक्षिण अफ्रीका (6,72,572), फ्रांस (5,90,021), चिली (4,61,300), ईरान (4,53,637), यूके (4,48,729), बांग्लादेश (3,62,043), इराक (3,58,290) और सऊदी अरब (3,34,187) हैं।
वायरस के कारण जिन देशों में 10 हजार से ज्यादा मौतें हुई हैं, उनमें मेक्सिको (77,163), यूके (42,162), इटली (35,875), पेरू (32,324), फ्रांस (31,908), स्पेन (31,411), ईरान (25,986), कोलम्बिया (25,828), रूस (20,456), दक्षिण अफ्रीका (16,667), अर्जेंटीना (16,519), चिली (12,725), इक्वाडोर (11,312) और इंडोनेशिया (10,601) हैं।
न्यूयॉर्क, 30 सितम्बर (आईएएनएस)| अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर पहली बहस में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन ने कोरोनावायरस को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को निशाने पर लेते हुए उन्हें 'झूठा' कहा और एक ऐसा शख्स बताया जो कि यह 'नहीं जानता कि वह किस बारे में बात कर रहा है।' देश में 200,000 नागरिक इस बीमारी से जान गंवा चुके हैं और अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2020 के लिए राष्ट्रपति ट्रंप और बाइडन के बीच पहली बहस मंगलवार की रात को क्लीवलैंड, ओहायो में हुई।
90 मिनट के लंबे कार्यक्रम में, कोविड-19 महामारी के लिए ट्रंप का भाषण कोविड-19 पर प्रतिक्रिया पर केंद्रित रहने वाली थी। लेकिन विवाद की शुरुआत ट्रंप द्वारा हालिया सुप्रीम कोर्ट के जज के चुनाव में अपनी पसंद एमी कोनी बैरेट को चुनने को लेकर हुई।
न्यायमूर्ति रूथ बेडर जिन्सबर्ग के निधन के बाद ट्रंप ने बैरेट को चुना, इस बात ने डेमोक्रेट्स के बीच आशंकाओं को जन्म दिया कि ट्रंप देश की सुप्रीम कोर्ट को 6-3 कंजर्वेटिव मेजोरिटी में मूव करने के लिए अपने एजेंडे के माध्यम से जोर दे रहे हैं।
ट्रंप ने बैरेट को चुनने पर कहा, "और हम बस, चुनाव जीत गए और इसलिए हमें उन्हें चुनने का अधिकार है और बहुत लोग जानबूझकर इस बारे में अन्यथा कहेंगे।"
वहीं, बाइडन ने ट्रंप पर तंज कसते हुए कहा, "वह यहां जो कुछ कह रहे हैं, झूठ है। गलत समय पर एक गलत शख्स। "
बाइडन ने ट्रंप के कई दावों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "यह शख्स नहीं जानता कि वह किस बारे में बात कर रहा है।"
बाइडन ने कोरोनोवायरस के संभावित उपाय के रूप में ब्लीच का उपयोग करने पर ट्रंप की विवादास्पद टिप्पणी को लेकर उनका मजाक भी उड़ाया।
ट्रंप के लिए, उनके पुन: चुनाव अभियान में यह निर्णायक क्षण तब आया है जब न्यूयॉर्क टाइम्स की जांच में ट्रंप के करों पर चौंकाने वाला खुलासा सामने आया था। टाइम्स ने रिपोर्ट किया कि, संघीय आय करों में ट्रंप ने सिर्फ 750 डॉलर का भुगतान किया। जिस वर्ष वह राष्ट्रपति के लिए चुनाव लड़े थे और व्हाइट हाउस में अपने कार्यकाल के पहले वर्ष में थे, ट्रंप ने पिछले 15 वर्षों में से 10 वर्ष में कोई संघीय आय करों का भुगतान नहीं किया।
पूर्व विदेश मंत्री हिलरी क्लिंटन ने नेटवर्क टेलीविजन पर कहा कि वह इस बहस को बड़ी दिलचस्पी से देख रही हैं।
फॉक्स न्यूज के एंकर क्रिस वालेस ने इस बहस को मॉडरेट किया है, और बहस को छह भागों में विभाजित किया -- कोरोनोवायरस महामारी, सुप्रीम कोर्ट, ट्रंप और बाइडन के रिकॉर्ड, अर्थव्यवस्था, चुनाव की इंटेग्रिटी और हमारे शहरों में दौड़ और हिंसा।
ट्रंप इस बात को जोरशोर से कह रहे हैं कि वह बाइडन पर ऑल-आउट हमले की तैयारी कर रहे हैं, जैसा कि उन्होंने पहले किया। वह बताएंगे कि बाइडन और उनके बेटे हंटर बाइडन ने भ्रष्टाचार से लाभ कमाया है।
अगले महीने दो और बहस हो रही है, 15 अक्टूबर को मयामी (फ्लोरिडा) और 22 अक्टूबर को नैशविले (टेनेसी) में।
हालिया सर्वे से पता चलता है कि ट्रंप की लोकप्रियता 2016 के बाद से लुढ़क गई है। बाइडन सभी सर्वे में ट्रंप से आगे हैं, भले ही अंतर ज्यादा न हो।
वॉशिंगटन : अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले आयोजित पहले आधिकारिक प्रेसिडेंशिल डिबेट में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस से मौतों को लेकर भारत पर बड़ा आरोप लगाया। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी जो बाइडन के सवाल उठाने पर कहा कि आप नहीं जानते हैं कि भारत, चीन और रूस में कितने लोग मारे गए हैं। भारत, चीन और रूस ने मृतकों की सही संख्या नहीं दी है।
इससे पहले भी डोनाल्ड ट्रंप कई बार अमेरिका की तुलना भारत से टेस्टिंग के मसले पर करते आए हैं. ट्रंप इससे पहले भारत में कोरोना से हो रही मौत, टेस्टिंग की संख्या को लेकर सवाल खड़े कर चुके हैं.
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अगर जो बाइडन सरकार में होते तो सिर्फ दो लाख नहीं बल्कि दस लाख से अधिक लोग मर जाते. हमारी कोशिश है कि जल्द से जल्द वैक्सीन बनाई जाए. गौरतलब है कि अमेरिका में कोरोना संकट इस वक्त चुनाव का सबसे बड़ा मसला है, विरोधियों का आरोप है कि डोनाल्ड ट्रंप इस महामारी को सही से संभाल नहीं पाए.
जो बाइडन की ओर से डिबेट में डोनाल्ड ट्रंप पर अर्थव्यवस्था को बंद करने का आरोप लगाया गया, साथ ही वैक्सीन को लेकर झूठी दलीलें देने का आरोप लगाया गया.
दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर मास्क से लेकर वैक्सीन और फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग जैसे मुद्दों पर निशाना साधा.
बाइडन ने ट्रंप पर मास्क पहनने को लेकर गंभीरता न बरतने का आरोप लगाया तो ट्रंप ने बाइडन का मज़ाक उड़ाते हुए कहा, "बाइडन 200 फ़ीट की दूरी पर रहते हैं तो भी बड़ा सा मास्क पहनकर आ जाते हैं."
होस्ट क्रिस वैलेस ने पूछा कि ट्रंप महामारी के दौरान वो भीड़-भाड़ वाली चुनावी रैलियाँ क्यों कर रहे थे? इसके जवाब में ट्रंप ने कहा, "अगर बाइडन इतनी भीड़ जुटा पाते तो भी ऐसा ही करते."
बाइडन ने चुटकी लेते हुए ट्रंप से कहा, "आप अपनी बाँह में ब्लीच का इंजेक्शन लगा लीजिए, शायद इससे कोरोना ठीक हो जाए." इसके जवाब में ट्रंप ने कहा, "मैंने ये बात तंज़ में कही थी और आप यह जानते हैं."
ट्रंप ने कहा कि अगर बाइडन उनकी जगह होते तो अमरीका में कोविड-19 से दो करोड़ लोगों की मौत होती. वहीं, बाइडन ने कहा कि सबको पता है कि ट्रंप झूठे हैं.
अर्थव्यवस्था पर बहस के दौरान टैक्स का मुद्दा सामने आया. होस्ट क्रिस वैलेस ने न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट का हवाला देते हुए ट्रंप से पूछा, "क्या ये सच है कि आपने 2016-17 में सिर्फ़ 750 डॉलर टैक्स भरा था?"
इसके जवाब में ट्रंप ने कहा, "मैंने लाखों डॉलर का टैक्स भरा है. एक साल मैंने 38 मिलियन डॉलर टैक्स भरा और दूसरे साल 27 मिलियन डॉलर." ट्रंप ने न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट को 'फ़ेक न्यूज़' बताया.
जो बाइडन, पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के उप-राष्ट्रपति के तौर पर ज़्यादा मशहूर हैं. हालांकि बाइडन, अमरीका की राजनीति में 1970 के दशक से ही सक्रिय रहे हैं.
जैसे-जैसे मतदान का दिन क़रीब आता जा रहा है, वैसे-वैसे चुनावी सर्वे करने वाली कंपनियाँ इस कोशिश में जुटी हैं कि वो लोगों से उनकी पसंद के उम्मीदवार के बारे में पूछ कर, असली नतीजे आने से पहले जनता का मूड भाँप सकें.
और अब तक के पोल्स में ट्रंप अपने प्रतिद्ंवद्वी और डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी जो बाइडन से पिछड़ते हुए दिख रहे हैं.
सैन फ्रांसिस्को, 29 सितंबर (आईएएनएस)| पूरी दुनिया कोविड-19 वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार कर रही है, लेकिन टेक अरबपति एलन मस्क का कहना है कि जब यह उपलब्ध हो जाएगा, तब भी वह इसे नहीं लेंगे। न्यूयॉर्क टाइम्स के पोडकास्ट स्वे में सोमवार को प्रकाशित एक साक्षात्कार में टेस्ला और स्पेसएक्स सीईओ ने महामारी से निपटने के लिए देशभर में लगाए गए प्रतिबंधों की निंदा की।
जब पोडकास्ट की मेजबान कारा स्वीशर ने उनसे पूछा, "क्या आप वैक्सीन लेंगे? आप अपने परिवार के साथ क्या करेंगे?" इस पर मस्क ने कहा, "नहीं, मैं कोविड के जोखिम में नहीं हूं। न ही मेरे बच्चे हैं।"
उन्होंने कहा कि स्वीपिंग लॉकडाउन लागू करना बहुत बड़ी गलती थी।
उन्होंने कहा, "मेरा मतलब है कि यह एक हॉट बटन मुद्दा है, जहां तर्क को पीछे रखा गया। चीजों को लेकर बनाई गई बड़ी योजना में हमारे पास बहुत कम मृत्युदर और उच्च संक्रमण है।"
उन्होंने आगे कहा, "अनिवार्य रूप से सही बात यही होती कि पूरे देश में लॉकडाउन न लागू कर, इस तूफान के गुजरने तक खतरे में रहे व्यक्ति को क्वारंटीन किया जाता।"
वहीं महामारी को लेकर सार्वजनिक प्रतिक्रिया के बारे में बात करते हुए, मस्क ने कहा कि मानवता में उनका विश्वास 'सामान्य रूप से लोगों की तर्कहीनता' के कारण कम हो गया।
कोविड-19 ने दुनिया में अब तक दस लाख से अधिक लोगों की जान ले ली है, जबकि अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश है, जहां 200,000 से अधिक लोग महामारी के कारण मारे गए हैं।
मस्क शुरुआत से ही लोगों की गतिविधियों पर कठोर प्रतिबंध लगाए जाने की आलोचना करते आ रहे हैं।
वह खुद भी सामान्य रूप से काम कर रहे हैं। उनकी कंपनी स्पेसएक्स ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। स्पेसएक्स नासा के अंतरिक्ष यात्रियों को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर भेजने और महामारी के बीच वापस लाने में सक्षम रही।
मस्क ने स्थानीय लॉकडाउन नियमों की अवहेलना के कारण कैलिफोर्निया में टेस्ला फैक्ट्री खोलने का भी बचाव किया।
नई दिल्ली, 29 सितम्बर | चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वाँग वेनबिन ने कहा है कि है उनका देश भारत द्वारा स्थापित किए गए कथित केंद्र प्रशासित प्रदेश लद्दाख को मान्यता नहीं देता है.
भारत ने चीनी दावे को ख़ारिज कर दिया है.
चीनी सरकार के क़रीब समझे जाने वाले अख़बार ग्लोबल टाइम्स के अनुसार भारत सीमा से लगे इलाक़ों में सड़क निर्माण कर रहा है, इससे जुड़े सवाल पर वाँग वेनबिन ने कहा, "चीन विवादित सीमावर्ती इलाक़े में सैनिक नियंत्रण के इरादे से बुनियादी ढांचे के निर्माण का विरोध करता है."
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आगे कहा, "हाल ही में चीन और भारत के बीच बनी सहमति के अनुसार किसी भी पक्ष को सीमा क्षेत्रों में कोई भी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए जिससे कि स्थिति और पेचीदा हो जाए और हालात को क़ाबू में करने की दोनों पक्षों की कोशिशों पर किसी तरह का असर नहीं पड़े."
भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि भारत भी 1959 के एलएसी को नहीं मानता है.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, "हमनें भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा के बारे में चीन के एक प्रवक्ता के हवाले से आई रिपोर्ट देखी है. भारत ने कभी भी एक तरफ़ा कार्रवाई के तहत 1959 में बनाए गए एलएसी को स्वीकार नहीं किया है. हमारी यह स्थिति हमेशा से रही है, और चीन समेत सभी को इस बारे में पता भी है."
भारत ने अपने बयान में आगे कहा, "2003 तक दोनों तरफ़ से एलएसी के निर्धारण की दिशा में कोशिश होती रही लेकिन इसके बाद चीन ने इसमें दिलचस्पी दिखानी बंद कर दी लिहाज़ा ये प्रक्रिया रुक गई. इसलिए अब चीन का इस बात पर ज़ोर देना कि केवल एक ही एलएसी है, यह उन्होंने ने जो वादे किए थे, उनका उल्लंघन है."
अनुच्छेद 370 ख़त्म
भारत की केंद्र सरकार ने पाँच अगस्त 2019 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत भारत प्रशासित कश्मीर को मिलने वाले विशेष राज्य के दर्जे को समाप्त कर दिया था और राज्य को विभाजित कर उसे दो नए केंद्र शासित प्रदेशों में बाँट दिया था.
एक केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर बना दिया गया था जबकि लद्दाख को उससे निकालकर एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था.
वैसे तो भारत और चीन के बीच सीमा विवाद बहुत पुराना है लेकिन हाल के दिनों में विवाद की शुरुआत हुई जब इसी साल अप्रैल-मई में इस तरह की ख़बरें आने लगीं कि भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर लद्दाख के गलवान घाटी के पास चीनी सैनिक उन इलाक़ों में आकर बैठ गए हैं जिन्हें भारत अपना कहता रहा है.
बातचीत जारी
समस्या को सुलझाने के लिए सीम पर तैनात सैन्य अधिकारियों के बीच कई राउंड की बातचीत भी हुई लेकिन कुछ ख़ास प्रगति नहीं हुई.
स्थिति उस समय और ज़्यादा गंभीर हो गई जब 15-16 जून की रात को दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हो गई जिसमें भारत के एक कर्नल समेत 20 सैन्यकर्मियों की मौत हो गई.
भारत का दावा है कि इसमें चीनी सैनिक भी मारे गए थे लेकिन चीन ने कभी भी इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है.
इस घटना के बाद स्थिति को क़ाबू में करने के लिए सैन्य, राजनयिक और राजनीतिक स्तर पर बातचीत होती रही है.
सीमा पर तैनात शीर्ष सैन्य अधिकारियों के अलावा भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री से मुलाक़ात भी की है.
लेकिन इस बीच सीमा से कभी फ़ायरिंग तो कभी हल्की फुल्की झड़प की भी ख़बरें आती रही हैं.
एस जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वाँग यी के साथ 10 सितंबर को मॉस्को में हुई बातचीत में पाँच बिंदुओं पर सहमति बनी थी.
बैठक के बाद एक संयुक्त बयान जारी कर कहा गया था कि "दोनों नेताओं ने माना कि सीमा को लेकर मौजूदा स्थिति दोनों पक्षों के हित में नहीं है. दोनों पक्ष की सेनाओं को बातचीत जारी रखनी चाहिए, जल्द से जल्द डिस्इनगेज करना चाहिए, एक दूसरे से उचित दूरी बनाए रखना चाहिए और तनाव कम करना चाहिए."
विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात से पहले दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों की भी मॉस्को में मुलाक़ात हुई थी (bbc)
सैन फ्रांसिस्को, 29 सितम्बर (आईएएनएस)| ट्विटर ने अपने नए उपाध्यक्ष और चीफ इंफॉर्मेशन सिक्यूरिटी ऑफिसर (सीआईएसओ) के तौर पर पूर्व आईएमबी एक्जीक्यूटिव रिंकी सेठी को नियुक्त किया है। सेठी इससे पहले आईबीएम के सूचना सुरक्षा विभाग में बतौर उपाध्यक्ष के पद पर कार्यरत थीं। ट्विटर में शामिल होने से पहले वह क्लाउड डेटा मैनेजमेंट कंपनी रूब्रिक में सीआईएसओ का पदभार भी संभाल चुकी हैं।
ट्विटर में प्लेटफॉर्म लीड निक टॉर्नो ने सोमवार देर रात को अपने एक बयान में कहा, " ट्विटर के नए सीआईएसओ के तौर पर रिंकी सेठ का स्वागत करने के लिए मैं बेहद रोमांचित हूं। वह एक बेहद ही प्रेरणादायक और अनुभवी लीडर रही हैं। रिंकी रूब्रिक, आईबीएम और पालो अल्टो नेटवर्क से होकर हमारे यहां आ रही हैं।"
उन्होंने आगे कहा, " ट्विटर पर वह हमारे विकसित होते इंफो सिक्योरिटी टीम का नेतृत्व करेंगी, हमारे ग्राहकों की सुरक्षा करेंगी और विश्वास हासिल करने में हमारी कंपनी की मदद करेंगी।"
सेठी ने खुद एक ट्वीट कर कहा, "टीम का हिस्सा बनने के लिए बेहद उत्साहित हूं।"
-फ़िल मर्सर
सिडनी, 29 सितम्बर : ऊर्जा क्षेत्र की दिग्गज भारतीय कंपनी अडानी के साथ ऑस्ट्रेलिया में एक विवादित कोयला खदान को लेकर एक रिटायर्ड ईसाई पादरी का बेटा क़ानूनी लड़ाई लड़ रहा है. अडानी की कंपनी ने बेन पेन्निंग्स नामक इस शख्स पर अपने कारोबार और इससे जुड़े ठेकेदारों को लगातार धमकाने का मामला दर्ज किया है.
कंपनी और बेन के बीच यह टकराव नॉर्थ गैलिली बेसिन की कारमाइकल खदान को लेकर है. यह ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड राज्य में ब्रिसबेन से उत्तर-पश्चिम में क़रीब 1200 किलोमीटर पर स्थित है. कंपनी कोयले को भारत भेजना चाहती है लेकिन इसे लेकर यहां कई वर्षों से विरोध चल रहा है और हालत ये है कि बीते कुछ वर्षों के दौरान यह ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा विवादास्पद प्रोजेक्ट बन गया है. इस प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों में डर है कि इससे होनेवाला प्रदूषण, औद्योगीकरण और जहाज़ों के अत्यधिक आवागमन से ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ़ को नुकसान पहुंचेगा, जो यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल है. भारी विरोध के बावजूद ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने बीते वर्ष इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी थी. यह कोयला खदान जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा नीति को लेकर ऑस्ट्रेलिया में मतभेद का प्रतीक बन गई है. इसका दुनिया की सबसे बड़ी खदानों में से एक बनना तय है.
कौन हैं पेन्निंग्स?
पेन्निंग्स विरोध कर रहे समूह गैलिली ब्लॉकेज के एक प्रवक्ता थे, जिसने अडानी, इसके सप्लायर्स और निजी ठेकेदारों के कामों को रोकने के लिए आंदोलन चला रखा है. यह समूह बहुराष्ट्रीय खनन कंपनियों के ऐसे प्रोजेक्ट और अन्य फ़र्मों का भी विरोध करती है. पेन्निंग्स खुल कर क़ानून की सविनय अवज्ञा के ज़रिए विरोध के दायरे को और आगे बढ़ाने की वकालत करते हैं. उन्होंने बीबीसी से कहा, "आज महिलाएं वोट दे रही हैं या आदिवासियों को पूरी तरह से मानव के रूप में देखा जा रहा है, तो ये लोगों के क़ानून तोड़ने से ही बने हैं. यह प्रजातंत्र और विकास का एक अहम हिस्सा है."
30 सालों से, वे सामाजिक और पर्यावरणीय कारकों के प्रबल समर्थक रहे हैं. वो ग्रीनपीस रेनबो वारियर टू पर भी कुछ समय के लिए थे. वो पर्यावरण पर केंद्रित एक पार्टी ऑस्ट्रेलिया ग्रीन्स की तरफ से ब्रिसबेन के मेयर के पद का चुनाव भी लड़ चुके हैं.
सोशल साइंस से ग्रेजुएट पेन्निंग्स अब एक ऐसी लड़ाई में व्यस्त हैं, जो असाधारण है.
"अडानी मेरे परिवार को दंड देने पर तुले हैं"
अडानी उनसे कथित धमकी और साजिश के भरपाई के लिए उनसे हर्जाना मांग रहे हैं. एक जज ने एक अस्थायी आदेश दिया है जिससे कारमाइकल खान के ख़िलाफ़ अभियान चलाने की पेन्निंग्स की क्षमता सीमित हो जाती है. उन्होंने आदेश का पालन किया है और अभी तक यह तय नहीं किया है कि वो इसके ख़िलाफ़ अपील करेंगे या नहीं. उन्हें डर है कि ये मामला उन्हें आर्थिक रूप से बर्बाद कर सकता है और वे दिवालिया हो सकते हैं.
पेन्निंग्स कहते हैं, "ऐसा लगता है कि मुझ पर केस करके अडानी मेरे परिवार को दंड देने पर तुले हैं." हालांकि, अपने एक बयान में अडानी समूह ने कहा है कि क़ानूनी कार्रवाई पेन्निंग्स को कष्ट देने के लिए नहीं की गई है, बल्कि अपना कारोबार करने के अधिकार की रक्षा के लिए की गई है.
ब्रिसबेन से बीबीसी से बातचीत में खदान विरोध अभियान चलाने वाले पेन्निंग्स कहते हैं कि पर्यावरण को लेकर उनकी सक्रियता का आधार उनके पिता के ईसाई सिद्धांत हैं. पेन्निंग्स कहते है, "वे अपने सामाजिक कर्तव्यों को निभाते थे. मुझमें भी कुछ वैसा ही है लेकिन एक अलग तरीके से. मैं समझता हूं कि धार्मिक समुदाय की जगह पर्यावरण आंदोलन है और लोग हैं जो न्याय की परवाह करते हैं और जो उस व्यक्ति का समर्थन करने के लिए तैयार हैं जिसे 15 बिलियन डॉलर की स्वामित्व वाली एक कंपनी ने टारगेट कर रखा है."
ऑस्ट्रेलिया में कोयला अभी भी 'किंग'
अक्षय ऊर्जा में संभावनाओं और सोलर, विंड पावर में तेज़ी से हो रही प्रगति के बावजूद ऑस्ट्रेलिया में कोयला अभी भी 'किंग' है. यहां की खदानों से निकाला गया 80 फ़ीसदी कोयला निर्यात किया जाता है खास कर जापान, चीन, कोरिया और भारत में. लेकिन कोरोना महामारी के दौरान इसकी कीमतों में कमी आई है. ऑस्ट्रेलिया में एक दशक पहले तक 80 फ़ीसदी बिजली का उत्पादन कोयले की मदद से होता था जो गैस और अक्षय ऊर्जा के आने के बाद से कम हुआ है. फिर भी आज दो तिहाई बिजली कोयले से ही बनती है. ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कोयले की उपयोगिता को चरणबद्ध तरीके से कम करना महत्वपूर्ण माना जाता है.
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया का उत्सर्जन दुनिया के कुल उत्सर्जन का केवल 1.3 प्रतिशत है, हालांकि संरक्षणवादी इस आंकड़े को विवादित मानते हैं. उत्तर क्वीन्सलैंड के ऊपर अपने विमान से रोबी काटर मतदाता क्षेत्र का सर्वे करते हैं जो कई देशों से बड़ा है. राज्य से सांसद भी काटर की ऑस्ट्रेलियाई पार्टी से ही हैं. इतने बड़े इलाके में अपने क्षेत्र का हवाई सर्वे करना कहीं आसान है और काटर का मानना है कि इस क्षेत्र के संसाधनों का दोहन किया जाना चाहिए. उन्होंने बीबीसी से कहा, "नॉर्थ क्वीन्सलैंड में कोयला खदान नौकरियों का पर्याय है. आप लोगों के समृद्धि के अधिकार के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते हैं. कोरोना वायरस की वजह से यह (कोयला) अर्थव्यवस्था के पुनर्नि पुनर्निर्माण की कोशिश में यह बेहद अहम है."
विरोध के बीच अडानी समूह का क्या है कहना?
अडानी ऑस्ट्रेलिया ने कहा कि उन्होंने 1500 स्थानीय लोगों को क्वीन्सलैंड में नौकरियां दी हैं और कई कंपनियों को क़रीब 1.5 अरब अमरीकी डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट भी दिया है. अडानी के प्रोजेक्ट के ख़िलाफ़ चल रहे अभियान के बारे में पूछने पर वे कहते हैं, "मैं अक्सर लोगों से पूछता हूं कि क्वीन्सलैंड ने कब कोयले से नफ़रत करना शुरू कर दिया? पर्यावरण कार्यकर्ताओं के लिए यह बिजली की छड़ी जैसा बन गया है." "खदान के विरोध में विपक्ष ने कई निरर्थक बातें की है. हम दो हज़ार किलोमीटर दूर रह रहे लोगों से यह सुनकर परेशान हो जाते हैं कि हमें क्या करना चाहिए. और वो भी तब जब इनमें से अधिकतर के पास इस इलाक़े के बारे में कम जानकारी होती है." अडानी ने कहा है कि उनकी खदान सरकारी राजस्व में अरबों डॉलर की कमाई करेगी जिसकी मदद से क्वीन्सलैंड में नए स्कूल, अस्पताल और सड़कें बनाई जा सकती हैं.
बीते वर्ष ऑस्ट्रेलिया में चुनाव अभियान के दौरान ऑस्ट्रेलियाई पर्यावरण के गॉडफादर बॉब ब्राउन के नेतृत्व में एक काफ़िला क्वीन्सलैंड के पूर्वी तट तक गया ताकि "ख़तरनाक और विनाशकारी" अडानी की इस खान से होने वाले खतरे और विनाश से लोगों को आगाह किया जाए. उनका कारवां अपने रास्ते में खान समर्थक और विरोधियों से मिला.
ऑस्ट्रेलियाई ग्रीन्स के पूर्व नेता बीबीसी न्यूज़ को बताते हैं, "सर्वे बताता है कि अधिकतर ऑस्ट्रेलियाई अडानी की खदान को नहीं चाहते हैं लेकिन वहां की राजनीति में यह नहीं दिखता है." उनका मानना है कि ऑस्ट्रेलिया को देश की ओर से आंदोलन करने के लिए बेन पेन्निंग्स जैसे असंतुष्टों की आवश्यकता है.
ब्राउन अडानी की अदालती कार्रवाई की आलोचना करते हैं. वे जानते हैं कि वे बड़े पैमाने पर इस प्रदूषणकारी कोयला खदान के ख़िलाफ़ पर्यावरण के तर्क से अदालत में नहीं जीत सकते, इसलिए उन्हें वैसे लोगों को इससे बाहर निकालना होगा जो ऐसे तर्क दे रहे हैं. वो कहते हैं,"मैं भयभीत हूं क्योंकि यह एक आज़ाद देश में लोगों की बुनियादी लोकतांत्रिक आवश्यकता के अधिकार में कटौती करता है जो सार्वजनिक हित में जानकारी इकट्ठा करने और उसे लोगों तक पहुंचाने के लिए काम करने में सक्षम हैं."
अडानी समूह इस बात पर ज़ोर देता है कि पेन्निंग्स के ख़िलाफ़ अदालती कार्रवाई ऑस्ट्रेलियाइयों की बोलने की स्वतंत्रता को सीमित करना नहीं है.
अडानी समूह ने इस पर बयान दिया, "अदालत और अपने क़ानूनी सलाहकारों के मुताबिक अडानी समूह पेन्निंग्स के साथ बातचीत से पहले मीडिया के माध्यम से कोई टिप्पणी करने में सक्षम नहीं है." फिलहाल अडानी और उसके सबसे कटु आलोचकों में से एक के बीच क़ानूनी गतिरोध जारी है. पेन्निंग्स कहते हैं, "वे एक धनी और मज़बूत प्रतिद्वंद्वी हैं, उनका संकल्प दृढ़ भी है... तो हमारा भी है." (bbc.com/hindi)
काठमांडू, 29 सितंबर (आईएएनएस)| नेपाल आर्मी (एनए) के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (सीओएएस) पूर्ण चंद्र थापा, अपने सरकारी आवास पर स्टाफ के एक सदस्य के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद होम क्वांरटीन में चले गए हैं। द हिमालयन टाइम्स ने सोमवार को अपनी रिपोर्ट में लिखा कि सेना के जनसंपर्क निदेशालय के अनुसार, सीओएएस रविवार को स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रोटोकॉल के अनुसार क्वारंटीन में चले गए हैं। स्टाफ के इस सदस्य का परीक्षण एक दिन पहले ही पॉजिटिव आया था।
थापा और उप प्रधानमंत्री ईशोर पोखरेल एक बार पहले भी क्वारंटीन में रह चुके हैं। उस समय कोविड-19 क्राइसिस मैनेजमेंट मैनेजमेंट सेंटर के स्टाफ के सदस्य को कोरोना संक्रमण हो गया था।
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, नेपाल में 24 घंटे में 1,351 नए मामले आने के बाद सोमवार को कुल संख्या 74,745 हो गई है। वहीं इसी अवधि में 4 नई मौतों के बाद कुल संख्या 481 हो गई है।
मंत्रालय के प्रवक्ता जागेश्वर गौतम ने जनता से आग्रह किया है कि वे महामारी को लापरवाही से न लें और वायरस से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी एहतियात बरतें क्योंकि देश में लगातार इसके मामले सामने आ रहे हैं।
इस्लामाबाद, 29 सितम्बर (आईएएनएस)| पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने सिंध सरकार को 2002 के अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल के अपहरण और हत्या के मुख्य आरोपी उमर शेख को रिहा करने से रोक दिया है, क्योंकि इसने दलीलों को सुनना शुरू किया, जिसमें प्रांतीय हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। डॉन न्यूज के मुताबिक, सिंध सरकार और साथ ही पर्ल के माता-पिता ने सिंध हाईकर्ट (एसएचसी) के 2 अप्रैल के आदेश के खिलाफ अलग-अलग अपील दायर की थी जिसमें शेख की मौत की सजा को 2 लाख पाकिस्तानी रुपया जुर्माने के साथ सात साल के कठोर कारावास की सजा में तब्दील कर दी गई थी।
पर्ल की हत्या के लिए आतंकवाद-रोधी अदालत द्वारा मौत की सजा सुनाए जाने के बाद पहले ही 18 साल जेल में रह चुके शेख को हाईकोर्ट के फैसले के बाद रिहा किए जाने की उम्मीद थी क्योंकि उसकी सात साल की सजा को जेल में पहले ही बिता चुके समय से काउंट किया जाना था।
हालांकि, सिंध सरकार ने शेख और चार अन्य को हिरासत में लेने का आदेश जारी किया।
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक, सोमवार की सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति मुशीर आलम की अगुवाई वाली शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय न्यायाधीश बेंच ने बरी करने की दलीलों में सभी उत्तरदाताओं को नोटिस जारी किया।
कार्यवाही के दौरान, पर्ल के माता-पिता के वकील फैसल सिद्दीकी ने तर्क दिया कि शेख ने एसएचसी रजिस्ट्रार को एक पत्र लिखा था, लेकिन इसने पत्र में अपने ही इकबालिया बयान को नजरअंदाज कर दिया।
वकील ने कहा, "हम चाहते हैं कि ट्रायल कोर्ट के फैसले को फिर से बहाल किया जाए। सबूतों से पता चलता है कि अपहरण फिरौती के लिए था। साजिश के तत्व के बारे में अदालत का सवाल सही है।" उन्होंने कहा कि दो आरोपियों के इकबालिया बयानों ने हत्या की साजिश को साबित कर दिया।
न्यायमूर्ति अमीन ने शेख का नाम एग्जिट कंट्रोल लिस्ट (ईसीएल) के साथ-साथ शेड्यूल-बी पर रखने का सुझाव दिया, जो उन्हें अदालत में पेश होने के लिए बाध्य करेगा।
प्रारंभिक सुनवाई के लिए एसएचसी के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों को स्वीकार करते हुए अदालत ने सुनवाई एक सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक, वॉल स्ट्रीट जर्नल के लिए दक्षिण एशिया ब्यूरो प्रमुख के तौर पर काम करने वाले पर्ल (38) का जनवरी 2002 में कराची में अपहरण किया गया और फिर उनकी हत्या कर दी गई थी।
शेख को फरवरी 2002 में गिरफ्तार किया गया था।
इस्लामाबाद, 29 सितम्बर (आईएएनएस)| पीएमएल-एन की उपाध्यक्ष मरियम नवाज ने अपने चाचा और पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता शहबाज शरीफ की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए कहा है कि उन्हें उनके भाई पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ खड़ा होने और उनका साथ देने की सजा मिली है। लाहौर हाईकोर्ट द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग मामले में शहबाज शरीफ की जमानत याचिका खारिज करने और राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी) द्वारा शहबाज शरीफ की गिरफ्तारी के बाद सोमवार शाम एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मरियम ने यह टिप्पणी की।
शहबाज को अदालत परिसर से हिरासत में लिया गया था, जहां बड़ी संख्या में पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के कार्यकर्ता और समर्थक मौजूद थे।
मरियम ने सम्मेलन में पत्रकारों से कहा, "उनके खिलाफ रेफरेंस चल रहा था और उन्हें बीच में ही गिरफ्तार कर लिया गया।"
मरियम ने कहा, "उन्होंने न केवल अपने भाई का साथ नहीं छोड़ा, बल्कि उन्होंने अपने भाई के प्रति निष्ठा और विश्वसनीयता दिखाई। उनकी पत्नी और बच्चों को फरार बताया गया। (उनके बेटे) हमजा जेल में हैं और कोरोना से संक्रमित हैं।
मरियम ने कहा कि इसके बावजूद, शहबाज अपने भाई के साथ अडिग होकर खड़े रहे।
डॉन न्यूज के मुताबिक, शहबाज की गिरफ्तारी के बाद नवाज शरीफ ने ट्विटर पर इसकी निंदा करते हुए कहा, "इस कठपुतली सरकार ने विपक्ष के (बहुदलीय कॉन्फ्रेंस) द्वारा अपनाए गए संकल्प को एंडोर्स किया है।
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, "शहबाज शरीफ ने पहले ही कहा था कि चाहे वह जेल में हों या बाहर हों (एमपीसी के) सभी फैसलों को लागू किया जाना चाहिए। किसी को यह समझने की भूल नहीं करनी चाहिए कि इस तरह की शर्मनाक चाल हमें झुकाएगी।"
जेनेवा, 29 सितम्बर (आईएएनएस)| एक परीक्षण जो कोविड-19 को मिनटों में पता कर सकता है, नाटकीय रूप से कम और मध्यम आय वाले देशों में मामलों का पता लगाने की क्षमता को बढ़ाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने यह टिप्पणी की है। बीबीसी ने सोमवार को बताया कि 5 डॉलर का परीक्षण उन कम अमीर देशों में कोविड-19 की ट्रैकिंग करने के तरीके को बदल सकता है, जहां स्वास्थ्यकर्मियों और प्रयोगशालाओं की कमी है।
निमार्ताओं के साथ एक सौदा छह महीने में 12 करोड़ परीक्षण प्रदान करेगा।
डब्ल्यूएचओ के प्रमुख ने इसे मील का पत्थर कहा है।
परीक्षण कराने और परिणाम प्राप्त करने के बीच लंबे अंतराल ने कई देशों के कोरोनावायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न की है।
भारत और मेक्सिको सहित उच्च संक्रमण दर वाले कुछ देशों में, विशेषज्ञों ने कहा है कि कम परीक्षण दर उनके प्रकोपों के सही प्रसार को बाधित कर रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस एडहैनम घ्रेब्रेयसस ने सोमवार को एक न्यूज कॉन्फ्रेंस में बताया, "नया, अत्यधिक पोर्टेबल और आसानी से इस्तेमाल किया जाने वाला टेस्ट घंटे या दिनों के बजाय 15-30 मिनट में परिणाम प्रदान करेगा।"
ट्रेडोस ने बताया कि दवा निमार्ता एबॉट और एसडी बायोसेंसर ने चैरिटेबल बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के साथ मिलकर 12 करोड़ टेस्ट प्रोड्यूस करने के लिए सहमति व्यक्त की है।
डील में 133 देशों को शामिल किया गया है, जिसमें लैटिन अमेरिका के कई देश शामिल हैं जो वर्तमान में कोरोना से बुरी तरह प्रभावित हैं।
ट्रेडोस ने कहा कि यह परीक्षण को बढ़ाएगा, विशेष रूप से कठिन पहुंच वाले क्षेत्रों में, जिनके पास प्रयोगशाला सुविधाएं नहीं हैं या परीक्षण करने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता नहीं है।
नई दिल्ली, 29 सितंबर (आईएएनएस)| आज 'विश्व हृदय दिवस' मनाया जा रहा है। इस दिन का उद्देश्य लोगों को हृदयरोग के बारे में जागरूक करना है। हृदयरोग के मरीजों की संख्या दुनियाभर में लगातार बढ़ती जा रही है। डॉक्टरों का मानना है कि कोरोना महामारी समय में दिल की बीमारी लोगों को ज्यादा नुकसान पंहुचा रही है, जिसकी वजह से कोविड-19 के डर से दिल के मरीज घर में ही रहने के लिए मजबूर हैं। वहीं मरीज अपने रेगुलर चेकअप के लिए भी नहीं जा पा रहें हैं। गलत खानपान, हर वक्त तनाव में रहना और समय पर एक्सरसाइज न करने की वजह से ये बीमारी अक्सर होती है। दुनियाभर में अलग-अलग संस्थाएं इस दिन लोगों को जागरूक करती हैं।
35 से ज्यादा उम्र के युवाओं में भी इनएक्टिव लाइफस्टाइल और खाने की खराब आदतों के कारण दिल की बीमारी होने का खतरा बढ़ रहा है। पिछले 5 साल में दिल की समस्याओं से पीड़ित लोगों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। इनमें से अधिकांश 30-50 साल आयु वर्ग के पुरुष और महिलाएं हैं। लोगों के पास अपने शरीर और मन को स्वस्थ और शांत रखने के लिए समय ही नहीं है, जिस वजह से लोगों में कई तरह की बीमारियां देखने को मिल रही हैं।
हालांकि अब अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई है, डॉक्टरों का कहना है कि अब लोगों को कम से कम आधे घंटे की एक्सरसाइज करनी चाहिए, थोड़ा बाहर घूमना चाहिए लेकिन कोविड से बचने के उपाय के साथ, वहीं नमक, चीनी और ट्रांस फैट वाली चीजें खाने से बचें। इससे दिल की बीमारी होने का खतरा कम होता है।
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. डी.के. झांम्ब ने बताया, "लॉकडाउन के दौरान, देखा गया कि लोग तरह-तरह के खाना पकाने और खाने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे थे। नतीजतन, उनका वजन भी बढ़ रहा है। चूंकि कोरोनवायरस की वैक्सीन या इलाज आने में अभी कुछ महीने लग सकते हैं, इसलिए हमें आने वाले महीनों में अपने हार्ट को स्वस्थ रखने के लिए सभी सावधानियों का पालन करना होगा।"
हृदयरोग की गंभीरता को समझते हुए आपको उन आहारों को चुनना चाहिए, जो आपके दिल के साथ-साथ पूरे शरीर के लिए सही हो। फास्ट फूड, जंक फूड, सिगरेट और शराब से दूरी बनाकर रखना चाहिए।
सीनियर कार्डियोलोजिस्ट डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया, "हार्ट की बीमारी के लिए कोई विशेष उम्र नहीं होती है, लेकिन हमारी गतिहीन यानी इनएक्टिव लाइफस्टाइल के कारण हमने 22 साल के व्यक्ति में हार्ट अटैक का केस देखा है। लेकिन जो लोग कम उम्र में हार्ट अटैक का सामना करते हैं, उनमें बहुत ज्यादा रिस्क फैक्टर होते हैं। इसलिए हार्ट अटैक को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है 45 मिनट रोज एरोबिक फिजकल एक्टिविटी, ताजा फल और सब्जियों से भरपूर डाइट और धूम्रपान से बचने सहित हेल्थी लाइफस्टाइल को अपनाएं।"
अगर आप हृदयरोग से पीड़ित हैं, तो यह ध्यान दीजिए कि आपके पास हृदय से जुड़ी दवाइयों का स्टॉक हो। जरूरत हो तो अतिरिक्त दवाई मंगाकर रखें। आपको यह ध्यान देने की जरूरत है कि आप दवा डॉक्टर की सलाह से लें और बिना उनकी सलाह के दवा को बंद न करें।
आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच दशकों पुराना सीमा विवाद रविवार को एक बार फिर भड़क उठा.
आर्मीनिया और अज़रबैजान विवादित नागोर्नो-काराबाख को लेकर एक बार फिर लड़ाई के मैदान में हैं, वहाँ हेलिकॉप्टर और टैंकों को मार गिराने की रिपोर्ट मिली है.
दोनों ही तरफ सैनिक और नागरिक हताहत हुए हैं. अब तक 23 लोगों के मारे जाने की ख़बर है.
रविवार को नियंत्रण रेखा पर जिस तरह से भारी हथियारों का इस्तेमाल हुआ है वो पिछले कुछ वर्षों में हुई सबसे बड़ी झड़प मानी जा रही है.
अर्दोआन का समर्थन, ईरान की मध्यस्थता की पेशकश
दोनों देशों के बीच छिड़े इस ताज़ा विवाद पर दुनिया भर से देशों से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.
रविवार को तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने अज़रबैजान का समर्थन करने की घोषणा की वहीं रूस ने आर्मीनिया और अज़रबैजान से तत्काल संघर्षविराम करने, दोनों पक्षों को संयम बरतने और बातचीत से मसले को सुलझाने को कहा है.
Azerbaycan'a yönelik saldırılarına bir yenisini ekleyen Ermenistan, bölgede barışın ve huzurun önündeki en büyük tehdit olduğunu bir kere daha göstermiştir. Türk Milleti her zaman olduğu gibi bugün de tüm imkanlarıyla Azerbaycanlı kardeşlerinin yanındadır.
— Recep Tayyip Erdoğan (@RTErdogan) September 27, 2020
दूसरी ओर अमरीका ने कहा कि उसने दोनों देशों से तुरंत लड़ाई बंद करने के साथ ही विवादित बयानों, कार्रवाइयों से बचने का आग्रह किया है.
वहीं फ़्रांस ने दोनों देशों से संघर्षविराम और बातचीत का आग्रह किया है. फ़्रांस में बड़ी संख्या में आर्मीनियाई समुदाय रहता है.
ईरान ने, जिसकी सीमा अज़रबैजान और आर्मीनिया दोनों से ही सटी है, दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने के लिए मध्यस्थ की भूमिका निभाने की पेशकश भी की है.
इधर अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने रविवार को कहा कि उन्हें पूरा यकीन है कि वो इस इलाक़े पर फिर से अपना नियंत्रण स्थापित करने में कामयाब होंगे.
क्या कहते हैं कॉकेशस में बीबीसी संवाददाता रेहन दिमित्री?
दशकों से चले आ रहे दोनों देशों के विवाद में किसने पहले गोली चलाई, इस तरह के आरोप एक दूसरे पर मढ़ना आम बात है.
वो कहते हैं कि यह केवल सैन्य कार्रवाई नहीं है बल्कि सूचना युद्ध भी है, क्योंकि स्वतंत्र रूप से ख़बरों की पुष्टि करना मुश्किल है.
अज़रबैजान का दावा है कि उसने आर्मीनियाई नियंत्रण वाले इलाके को मुक्त करवा दिया है, तो आर्मीनियाई अधिकारी इसे ख़ारिज करते हैं.
इसी तरह आर्मीनिया दावा करता है कि अज़रबैजान को काफी नुकसान पहुंचा है तो अज़रबैजान की तरफ से इसका खंडन किया जाता है.
इसके अलावा अज़रबैजान ने देश में इंटरनेट के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है, ख़ास कर सोशल मीडिया पर.
रूस पारंपरिक रूप से आर्मीनिया का मित्र राष्ट्र रहा है, लिहाज़ा तुर्की का समर्थन अज़रबैजान को साहस दे सकता है क्योंकि अगस्त में ही अज़रबैजान के रक्षा मंत्री ने कहा था कि तुर्की की सेना की मदद से अज़रबैजान अपने 'पवित्र धर्म' को पूरा करेगा- दूसरे शब्दों में वो अपने गंवाए हुए क्षेत्रों को वापस ले सकेगा.
इस बार कैसे शुरू हुई लड़ाई?
आर्मीनिया के रक्षा मंत्री ने रविवार की सुबह 8.10 बजे (भारतीय समयानुसार सुबह 9.40 बजे) ने कहा कि नागोर्नो-काराबाख में वहाँ की राजधानी स्टेपनेकर्ट समेत कई बस्तियों पर हमला हुआ है.
इसके बाद अधिकारियों ने बताया कि एक महिला और एक बच्चे की मौत हो गई है. नागोर्नो-काराबाख में अलगाववादी समूहों ने कहा कि उनके क़रीब 16 लोग मारे गए और सौ के क़रीब घायल हैं.
आर्मीनिया ने कहा कि उसने दो हेलिकॉप्टर और तीन ड्रोन मार गिराए हैं, साथ ही तीन टैंकों को भी नष्ट कर दिया.
इसके बाद आर्मीनिया की सरकार ने नागोर्नो-काराबाख में मार्शल लॉ लगाने की घोषणा के बाद पूरे देश में ही मार्शल लॉ की घोषणा कर दी और सैनिकों को तैनात कर दिया.
आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिनियन ने अज़रबैजान पर सुनियोजित हमले का आरोप लगाते हुए लोगों से कहा कि 'अपनी पवित्र मातृभूमि की रक्षा के लिए तैयार हो जाओ'.
उन्होंने चेतावनी दी कि यह इलाक़ा एक बड़े युद्ध के कगार पर है, उन्होंने तुर्की पर आक्रामक व्यवहार का आरोप लगाते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदायों से इलाक़े में आगे किसी भी अस्थिरता को रोकने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया.
अज़रबैजान के रक्षा मंत्री ने एक हेलिकॉप्टर के नुकसान की पुष्टि की है लेकिन बताया कि चालक बच गया है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आर्मीनिया को 12 एयर डिफेंस सिस्टम का नुकसान हुआ है. हालांकि आर्मीनिया ने और जिस नुक़सान का दावा किया उसका अज़रबैजान के रक्षा मंत्री ने खंडन किया है.
राष्ट्रपति अलीयेव ने देश को संबोधित करते हुए कहा कि उन्होंने आर्मीनियाई सेना के हमलों के जवाब में बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई का आदेश दिया है.
टीवी पर प्रसारित संबोधन में उन्होंने बताया, "जवाबी कार्रवाई में आर्मीनिया के कब्ज़े वाला अज़रबैजान का रिहाइशी इलाका अब मुक्त हो गया है."
उन्होंने कहा, "मुझे पूरा यकीन है कि हमारी जवाबी कार्रवाई, 30 सालों से जो अन्याय हो रखा है, उसे हमेशा के लिए ख़त्म कर देगी."
आर्मीनियाई सेना के शुरुआती इनकार के बाद नागोर्नो-काराबाख के राष्ट्रपति अराइक हरतुन्यान ने इस बात की पुष्टि की कि वो कुछ इलाके अज़रबैजान के हाथों हार चुके हैं.
नागोर्नो-काराबाख
नागोर्नो-काराबाख 4,400 वर्ग किलोमीटर में फैला इलाक़ा है जहां आर्मीनियाई ईसाई और मुस्लिम तुर्क रहते हैं.
सोवियत संघ के अस्तित्व के दौरान यह अज़रबैजान के भीतर ही एक स्वायत्त क्षेत्र बन गया था.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे अज़रबैजान के हिस्से के तौर पर ही जाना जाता है लेकिन यहां अधिकतर आबादी आर्मीनियाई है.
1980 के दशक से अंत में शुरू होकर 1990 के दशक तक चले युद्ध के दौरान 30 हज़ार से अधिक लोगों को मार दिया गया और 10 लाख से अधिक लोग यहां से विस्थापित हुए.
उस दौरान अलगावादी ताक़तों ने नागोर्नो-काराबाख के कुछ इलाक़ों पर कब्ज़ा जमा लिया, हालांकि 1994 में युद्धविराम के बाद भी यहां गतिरोध जारी है.(BBCNEWS)
नई दिल्ली, 28 सितंबर (आईएएनएस)| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि कोविड 19 ने दिखाया है कि ग्लोबल सप्लाई चेन्स का किसी भी सिंगल सोर्स (एकमात्र स्त्रोत) पर अत्याधिक निर्भर होना खतरे से भरा है। हम जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर सप्लाई चेन में विविधता और लचीलापन लाने के लिए काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने एक समान सोच वाले देशों से इस कोशिश से जोड़ने की अपील की। प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसेन के साथ द्विपक्षीय वर्चुअल शिखर सम्मेलन में कहा, "मेरा मानना है कि हमारी वर्चुअल समिट ना सिर्फ भारत-डेनमार्क संबंधों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी, बल्कि वैश्विक चुनौतियों के प्रति भी एक साझा अप्रोच बनाने में मदद करेगी।"
दोनों देशों के बीच परस्पर संबंध को मजबूत करने के लिए आयोजित इस वर्चुअल सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसेन से कहा, "कुछ महीने पहले फोन पर हमारी बहुत प्रोडक्टिव बात हुई। हमने कई क्षेत्रों में भारत और डेनमार्क के बीच सहयोग बढ़ाने के बारे में चर्चा की थी। यह प्रसन्नता का विषय है कि आज हम इस वर्चुअल समिट के माध्यम से इन इरादों को नई दिशा और गति दे रहे हैं।"
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पिछले कई महीनों की घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हमारे जैसी एक सोच रखने वाले देशों का, जो एक नियम आधारित, पारदर्शी, मानवीय और लोकतांत्रिक मूल्य साझा करते हैं, साथ मिलकर काम करना कितना आवश्यक है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत की क्षमताओं का दुनिया को लाभ होता है।
--आईएएनएस
काठमांडू, 28 सितम्बर (आईएएनएस)| कोरोनावायरस महामारी के कारण बने खतरों के बीच चार दिनों में कम से कम 22 हजार नेपाली श्रमिकों ने नेपालगंज सीमा से पड़ोसी देश भारत में प्रवेश किया है। इसकी जानकारी मीडिया रिपोर्ट से मिली।
रविवार को द हिमालयान टाइम्स ने नेपालगंज के जमुनहा क्षेत्र पुलिस थाना के सब-इंस्पेक्टर विष्णु गिरी का हवाला देते हुए कहा कि मजदूरों ने लंबे समय तक लगे लॉकडाउन और कोविड-19 महामारी के चलते भारत के लिए रवाना हो रहे हैं, क्योंकि यहां उनकी आजीविका चलाना मुश्किल हो गया है।
सब-इंस्पेक्टर गिरी के अनुसार, कुल 76,048 प्रवासी श्रमिक नेपालगंज सीमा बिंदु से होकर 15 सितंबर तक नेपाल लौट आए थे। उसी दौरान लगभग 40,000 भारतीय नागरिक सीमा बिंदु के माध्यम से अपने देश को लौट गए थे।
गिरि ने कहा कि राशन कार्ड रखने वाले नेपाली भारत वापस जाने लगे हैं।
--आईएएनएस
हमजा अमीर
इस्लामाबाद, 28 सितंबर (आईएएनएस)| पाकिस्तान हिंदू काउंसिल (पीएचसी) के प्रमुख संरक्षक रमेश कुमार वांकवानी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार से भारतीय शहर जोधपुर में 11 पाकिस्तानी हिंदुओं की मौत के मामले को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में ले जाने में मदद करने की अपील की है।
इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग (आईएचसी) के बाहर दो दिन के धरने के बाद एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए वांकवानी ने कहा, "हत्याकांड को लेकर भारत के खिलाफ मैं जल्द ही आईसीजे का रुख करूंगा।"
पीड़ितों के परिवारों के सदस्यों के साथ पाकिस्तान में हिंदू समुदाय ने विरोध करते हुए धरना दिया। उन्होंने भारत के दावों को खारिज कर दिया, जिसमें सामूहिक आत्महत्या करने का दावा किया गया था।
प्रदर्शनकारियों ने मामले को आईसीजे में ले जाने की मांग के साथ धरना समाप्त किया।
वांकवानी ने कहा, "विरोध प्रदर्शन के दौरान, हमने भारतीय उच्चायोग को एक प्रस्ताव सौंपा जिसमें कहा गया कि भारत जोधपुर त्रासदी की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच सुनिश्चित करने के लिए पाकिस्तान को शामिल करे।"
उन्होंने कहा कि प्रस्ताव में भारत से नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) रद्द करने का भी आग्रह किया।
उन्होंने कहा, "जोधपुर में 11 पाकिस्तानी हिंदुओं की हत्या ने सीएए को बेनकाब कर दिया है। यह हत्या इस सवाल को उठाती है कि क्या यह नागरिकता देने के लिए वास्तविक कार्रवाई है या लोगों को मूर्ख बनाने के लिए है।"
राजस्थान राज्य के जोधपुर में 9 अगस्त को 11 पाकिस्तानी हिंदू रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाए गए थे।
मृतक परिवार की जीवित सदस्य श्रीमती मुखी ने भी मीडिया को संबोधित किया और आरोप लगाया कि भारतीय अधिकारियों ने उनके रिश्तेदारों को उनके परिजनों के शवों को देखने की अनुमति नहीं दी।
उन्होंने कहा, "हम मांग करते हैं कि भारत इस बात का सबूत दे कि मेरे परिवार ने आत्महत्या की है। जब तक मुझे न्याय नहीं मिलता मैं विरोध करना बंद नहीं करूंगी।"
वांकवानी ने यह भी कहा कि उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन जमीनी समारोह में भाग लेने के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया था।
वाशिंगटन, 28 सितंबर (आईएएनएस)| जॉन्स हॉपकिन्स विश्वद्यिालय के अनुसार, सोमवार को वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस मामलों की कुल संख्या 3.3 करोड़ से अधिक हो गई है। वहीं मौतों की संख्या बढ़कर 9.97 लाख से अधिक हो गई है। विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने अपने ताजा अपडेट में खुलासा किया है कि अब मामलों की कुल संख्या 33,081,725 और मृत्यु संख्या 9,97,777 हो चुकी है।
71,15,338 मामलों और 2,04,758 मौतों के साथ अमेरिका दुनिया में सबसे बुरा कोरोना प्रकोप झेल रहा है। इसके बाद 60,74,702 मामलों के साथ भारत दूसरे स्थान पर है। भारत में मरने वालों की संख्या 95,542 हो गई है।
वहीं मौतों की संख्या के मामले में ब्राजील 1,41,741 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर है।
मामलों की अधिकतम संख्या वाले वाली सूची में शीर्ष 15 देशों में ब्राजील (47,32,309), रूस (11,46,273), कोलम्बिया (8,13,056), पेरू (8,00,142), मैक्सिको (7,30,317), स्पेन (7,16,481), अर्जेंटीना (7,11,325), दक्षिण अफ्रीका (6,70,766), फ्रांस (5,52,473), चिली (4,57,901), ईरान (4,46,448), यूके (4,37,517), बांग्लादेश (3,59,148), इराक (3,49,450) और सऊदी अरब (3,33,193) हैं।
ऐसे देश जिनमें कोरोनावायरस के कारण 10 हजार से अधिक मौतें हुई हैं, उनमें मेक्सिको (76,430), यूके (42,077), इटली (35,835), पेरू (32,142), फ्रांस (31,675), स्पेन (31,232), ईरान (25,589), कोलम्बिया (25,488), रूस (20,239), दक्षिण अफ्रीका (16,398), अर्जेंटीना (15,749), चिली (12,641), इक्वाडोर (11,279) और इंडोनेशिया (10,386) हैं।
लंदन, 28 सितंबर (आईएएनएस)| पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लंदन स्थित आवास के बाहर 20 से अधिक प्रदर्शनकारी इकट्ठा हुए और उन्होंने शरीफ के खिलाफ नारेबाजी भी की। यह जानकारी एक मीडिया रिपोर्ट के जरिए मिली है। डॉन न्यूज के पास उपलब्ध फुटेज के अनुसार, रविवार की शाम को शरीफ के निवास के बाहर 20 से अधिक युवक चेहरे पर मास्क और हुड लगाकर जमा हुए और उन्होंने 'गो नवाज गो' के नारे लगाए।
उनमें से कई ने अपने हाथ में तख्तियां भी रखी हुईं थीं, जिनमें लिखा है, 'हम पाक सेना के साथ हैं' और 'नवाज शरीफ चोर है'।
शरीफ के पारिवारिक सूत्रों ने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने पंजाबी भाषा में गालियां दी और नारे लगाए। शाम को 4 बजे शहर की पुलिस को इस घटना के बारे में सूचना दी गई। लेकिन जब तक पुलिस पहुंची भीड़ तितर-बितर हो चुकी थी, हालांकि वे तख्तियों को वहीं छोड़ गए थे।
सूत्रों ने बताया कि मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई है।
डॉन न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, रविवार को यह विरोध शरीफ के उस वीडियो संबोधन के बाद हुआ है जिसमें पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) सुप्रीमो ने राजनीतिक मामलों में सेना के कथित हस्तक्षेप की आलोचना की थी।
पद से हटाए गए प्रधानमंत्री शरीफ नवंबर 2019 से चिकित्सा आधार पर मिली जमानत पर ब्रिटेन में हैं। इसके लिए उन्होंने पाकिस्तान की तहरीक-ए-इंसाफ सरकार से भी अनुमति ली थी।
इस्लामाबाद उच्च न्यायालय (आईएचसी) ने इसी महीने की शुरूआत में अल-अजीजिया और एवेनफील्ड संपत्तियों के मामले में शरीफ की उस अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने सुनवाई के दौरान व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट की मांग की थी।
- सायरा आशर
पिछले दिनों अपने बच्चों के साथ रास्ते में फंसी महिला के साथ गैंगरेप की एक घटना ने पूरे पाकिस्तान को हिलाकर रख दिया है.
जिस देश में महिलाओं के साथ यौन हिंसा आम बात है, वहां इस घटना की वजह से लोग सड़कों पर आकर बदलाव की मांग कर रहे हैं.
पाकिस्तान में महिलाओं को अक्सर परिवार वाले या रिश्तेदार सलाह देते हैं कि वो देर रात बाहर ना जाएं, या अपनी सुरक्षा के लिए किसी पुरुष को साथ लेकर ही जाएं.
लेकिन जब हमलावरों को ढूंढने की ज़िम्मेदारी संभाल रहे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने अपराध का दंश झेलने वाली महिला पर ही सवाल उठा दिया कि वो देर रात अकेली बाहर क्यों गई, तो इससे लोगों का गुस्सा फूट बड़ा.
इस तरह की टिप्पणियों पर पहले सार्वजनिक तौर पर सवाल नहीं उठते थे, लेकिन इस बार इस पर नाराज़गी जताते हुए इसे 'विक्टिम-ब्लेमिंग' कहा जा रहा है.
एक नारीवादी समूह से जुड़ी मोनेज़ा अहमद कहती हैं, "विक्टिम पर ही आरोप लगाना, एक महिला के चरित्र पर सवाल उठाना और कहना कि वो पीड़िता है भी या नहीं, ऐसी बात हमारा समाज दशकों से कहता रहा है. इसलिए अब ये प्रतिक्रिया संकेत है कि हमारा समाज सुन रहा है, बदल रहा है और बहुत सी महिलाएं आवाज़ उठा रही हैं."
'हाइवे पर बलात्कार' की घटना क्या थी?
9 सितंबर को देर रात क़रीब 3 बजे शिकार महिला लाहौर से जा रही थी जब हाइवे पर उनकी कार का पेट्रोल ख़त्म हो गया था. उनके दो बच्चे उनके साथ थे.
उन्होंने गुजरांवाला के अपने रिश्तेदारों को फ़ोन किया, जिन्होंने उन्हें पुलिस हेल्पलाइन पर फ़ोन करने के लिए कहा और वो ख़ुद भी मदद के लिए निकल पड़े.
महिला के एक रिश्तेदार ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसके मुताबिक़ दो लुटेरे आए जिन्होंने कार का शीशा तोड़ा. हमलावरों की उम्र क़रीब 30 साल बताई जा रही है. शिकायत के मुताबिक़ उन्होंने महिला से पैसे और गहने छीन लिए. इसके बाद वो महिला को पास के खेत में ले गए और दोनों बच्चों के सामने बलात्कार दिया और फिर वहां से भाग गए.
पुलिस ने घटना के बाद कहा कि महिला सदमे में थी, हालांकि उन्होंने कुछ जानकारी दी है कि हमलावर कैसे दिखते थे.
दूसरे दिन लाहौर के सबसे वरिष्ठ अधिकारी उमर शेख मीडिया के सामने आए और कहा कि इसमें महिला की भी ग़लती है. उन्होंने सवाल उठाया कि महिला बच्चों के साथ अकेली थी तो वो व्यस्त रास्ते से क्यों नहीं गई या निकलने से पहले पेट्रोल चेक क्यों नहीं किया.
उन्होंने कई बार टीवी पर इन बातों को दोहराया, साथ ही कहा कि महिला फ्रांस की रहने वाली है, इसलिए उसे लग रहा होगा कि पाकिस्तान भी फ्रांस जितना ही सुरक्षित है.
इस पर देश भर से जैसी प्रतिक्रियाएं आईं, वो पहले कभी नहीं आई थीं और ये प्रतिक्रिया हर तरफ से आई हैं.
सोशल मीडिया पर लोगों ने उनकी ये कहकर आलोचना की कि वो 'विक्टिम-ब्लेमिंग' कर रहे हैं.
केंद्रीय मानवाधिकार मंत्री शिरीन मजारी ने ट्विटर पर कहा, "ये स्वीकार नहीं किया जा सकता कि एक अधिकारी ये कहते हुए महिला को ही गैंग-रेप के लिए दोषी ठहराए कि उसे जीटी रोड से जाना चाहिए था या वो बच्चों के साथ रात को बाहर क्यों गई. हमने इस मामले को संज्ञान में लिया है. बलात्कार के अपराध को कभी भी तर्कसंगत नहीं बनाया जा सकता."
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने भी पुलिस अधिकारी के बयान की आलोचना की है.
मोनेज़ा अहमद कहती हैं कि वो और दूसरी महिलाएं "एक पितृसत्तात्मक सोच के ख़िलाफ़ लड़ रही हैं, जिसमें महिला को ही बलात्कार के लिए दोषी ठहराया जाता है या कहा जाता है कि वो अपने बच्चों के साथ रात में बाहर नहीं जा सकती, अगर जाती है तो उसे ग़लत कहा जाता है."
बदलाव की मांग कर रही हैं 'बहादुर महिलाएं'
पुलिस प्रमुख ने इसी हफ़्ते अपने बयान के लिए माफ़ी मांग ली थी लेकिन इसके बावजूद लोगों को गुस्सा ठंडा होता नहीं दिख रहा है.
न्यायविदों की अंतरराष्ट्रीय समिति के दक्षिण एशिया कार्यक्रम की क़ानूनी सलाहकार रीमा ओमर कहती हैं, "सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद टीवी पर एक ही बात कह रहे हैं. बहादुर महिलाएं बहुत ही खूबसूरती से सामने आ रही हैं."
देश भर के बड़े शहरों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. साथ ही पुलिस, क़ानून, अदालत और सज़ा से जुड़ी प्रणालियों में सुधार की मांग हो रही है.
मगर बलात्कार की शिकार महिलाओं को इस सब से ना के बराबर मदद मिलती है. पाकिस्तान में बलात्कार के बहुत कम मामलों में मुक़दमा चलाया जाता है और इससे भी बहुत कम मामलों में न्याय मिल पाता है.
केंद्रीय मंत्री फवाद चौधरी ने पिछले हफ़्ते नेशनल असेंबली में कहा कि हर साल औसतन पांच हज़ार बलात्कार के मामले दर्ज किए जाते हैं और इनमें से सिर्फ पांच प्रतिशत में दोषी को सज़ा मिल पाती है.
हालांकि महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले समूह कहते हैं कि असल आंकड़े तो इससे भी कम हैं और बहुत से रेप के मामले तो पुलिस तक पहुंचते ही नहीं.
महिलाओं को डर होता है कि पुलिस में जाकर उन्हें अपमान सहना होगा और सार्वजनिक तौर पर बताने पर समाज की नज़रें उनपर उठेंगी.
बीबीसी उर्दू से बात करते हुए वक़ील और सामाजिक कार्यकर्ता हिना जिलानी ने कहा कि पुलिस और न्यायतंत्र को बलात्कार जैसे अपराध के प्रति संवेदनशील बनाए जाने की ज़रूरत है. साथ ही फोरेंसिक साक्ष्यों को इकट्ठा करने के तरीक़े और जांच की कार्यप्रणाली को सुधारने की ज़रूरत है.
2002 में मुख्तार माई का मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा था. दरअसल उन्होंने उन पुरुषों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कदम उठाने का फैसला लिया था, जिन्होंने एक ग्राम सभा के आदेश पर उनके साथ गैंग-रेप किया था.
उन्होंने एक लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ी. जो पाकिस्तान में असामान्य बात थी क्योंकि यहां महिलाएं अपने साथ हुए बलात्कार को रिपोर्ट करने के बजाए अपनी जान ले लेती हैं. लेकिन इस लंबी लड़ाई के बावजूद मुख्तार माई के साथ बलात्कार करने वाले छह अभियुक्तों को 2011 में सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया.
लेकिन इस बार के 'हाइवे पर बलात्कार' मामले में लोग मुखर होकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं और विक्टिम-ब्लेमिंग की मानसिकता पर सवाल उठा रहे हैं.
हाल के सालों में पाकिस्तान में ज़्यादा मुखर और सोशल मीडिया पर सक्रिय नारीवादी समूहों का उभार हुआ है, जो महिलाओं की आज़ादी पर प्रतिबंध लगाने वाली सामाजिक बेढ़ियों को चुनौती दे रही हैं.
ओमर कहती हैं, "अब कई ऐसी महिलाएं है जो सोशल मीडिया पर अपनी बात रख रही हैं और मेनस्ट्रीम मीडिया में बोल रही हैं और हमारी कोशिशों को मज़बूत कर रही हैं."(bbc)
ढाका, 28 सितंबर (आईएएनएस)| बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने रविवार को 1971 में देश के मुक्ति संग्राम में भारत के योगदान को याद किया, जिसके तहत तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान एक स्वतंत्र देश बना था।
उन्होंने यह बात भारतीय उच्चायुक्त रीवा गांगुली दास के समक्ष उनके आधिकारिक आवास गानाभवन में कही।
गांगुली ने यह भी कहा कि "भारत के लोग और सभी राजनीतिक पार्टियों ने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को अपार समर्थन दिया और साथ ही हम पड़ोसी देश के साथ ऐतिहासिक लैंड बाउंड्री समझौते को भी समर्थन देते हैं।"
भारतीय राजदूत ने हसीना को यह भी बताया कि दोनों देशों के विदेश मंत्री मंगलवार को संभवत: वर्चुअली वार्ता करेंगे।
उन्होंने साथ ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक पत्र उन्हें सौंपा, जिसमें उनके 74वें जन्मदिवस पर शुभकामनाएं दी गई हैं।
हसीना ने मोदी और गांगुली दोनों को उन्हें शुभकामनाएं देने के लिए शुक्रिया कहा।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने क्षेत्र के विकास के लिए दोनों देशों के बीच बेहतर सहयोग की जरूरत पर बल दिया।
उन्होंने कहा कि पड़ोसी देश अपनी सुविधा के हिसाब से बांग्लादेश के चट्टग्राम, सियालहाट और सैयदपुर एयरपोर्ट का प्रयोग कर सकते हैं।
हसीना ने कहा, "हमारी विदेश नीति 'सबके साथ दोस्ती और किसी के साथ दुश्मनी' नहीं है। हम हमेशा सोचते हैं कि पड़ोसी देशों के साथ बेहतर सहयोग क्षेत्र के विकास के लिए जरूरी है।"
प्रधानमंत्री और भारतीय उच्चायुक्त ने बैठक में द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की, जहां हसीना की मुख्य सचिव डॉ. अहमद कईकौस और ढाका में भारत के उप उच्चायुक्त बिश्वदीप डे भी मौजूद थे।