अंतरराष्ट्रीय
हांग कांग में पुलिस ने लोकतंत्र समर्थक स्टैंड न्यूज के कार्यालय पर छापा मारा और इसके मौजूदा और पूर्व कर्मचारियों को "देशद्रोही प्रकाशन प्रकाशित करने की साजिश" के लिए गिरफ्तार किया.
अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि हांग कांग में पुलिस ने एक ऑनलाइन मीडिया संस्थान के मौजूदा छह पत्रकारों और पूर्व स्टाफ को गिरफ्तार किया है. सरकार ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "देशद्रोही प्रकाशनों को प्रकाशित करने की साजिश" के लिए छह मीडियाकर्मियों को गिरफ्तार किया गया है.
पुलिस ने घर और कार्यालय पर मारे छापे
बुधवार को एक बयान में हांग कांग पुलिस ने कहा कि उन्होंने एक "ऑनलाइन मीडिया कंपनी" की तलाशी ली थी, जिसमें "200 वर्दीधारी और सादे कपड़े में पुलिस अधिकारी" तैनात थे. आधिकारिक पुलिस बयान ने गिरफ्तार किए गए लोगों की पहचान जारी नहीं की, लेकिन कहा कि वे तीन पुरुष और तीन महिलाएं हैं.
हांग कांग के प्रसारक टीवीबी ने कहा कि ये छह लोग लोकतंत्र समर्थक समाचार वेबसाइट स्टैंड न्यूज के वर्तमान या पूर्व कर्मचारी हैं.
डीडब्ल्यू के संवाददाता फोएबे कोंग ने कहा कि हांग कांग पुलिस के राष्ट्रीय सुरक्षा विभाग के अधिकारियों ने हांग कांग पत्रकार संघ के अध्यक्ष रॉनसन चान के घर की तलाशी ली. पुलिस ने एक बयान में कहा कि वह "प्रासंगिक पत्रकारिता सामग्री की तलाशी और जब्ती करने के लिए" अधिकृत वारंट के साथ तलाशी ले रही थी.
स्टैंड न्यूज ने फेसबुक पर पुलिस अधिकारियों का एक वीडियो पोस्ट किया है, जिसमें पुलिस कह रही है कि उनके पास "देशद्रोही सामग्री के प्रकाशन को प्रकाशित करने की साजिश" की जांच के लिए वारंट है. कोंग के मुताबिक पुलिस स्टैंड न्यूज में चान के सहयोगियों के घरों की भी तलाशी ली है.
एक 'खतरनाक चलन'
जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर एशियन लॉ में हांग कांग के कानून फेलो एरिक लाई ने डीडब्ल्यू को बताया कि गिरफ्तारी एक "खतरनाक मिसाल" होगी क्योंकि सरकार लोगों को "पूर्व क्रियाकलाप के मुताबिक" गिरफ्तार कर सकती है. लाई ने कहा, "देशद्रोही प्रकाशन का आरोप कुछ महीने पहले बच्चों की किताब प्रकाशित करने वाले यूनियनों पर भी लगाया गया था."
वे कहते हैं, "यह काफी परेशान करने वाला है क्योंकि हांग कांग में देशद्रोही कानून एक तरह का भाषण अपराध है जिसे सरकार जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल कर सकती है, जब वे सरकार विरोधी किसी भी अभिव्यक्ति या प्रकाशन की व्याख्या करते हैं."
असहमति पर कार्रवाई
यह पहली बार नहीं है जब हांग कांग पुलिस ने पत्रकारों पर छापे मारे हैं. जून में, सैकड़ों पुलिस ने लोकतंत्र समर्थक अखबार एप्पल डेली के परिसरों पर छापा मारा था. एप्पल डेली के अधिकारियों को "एक विदेशी देश के साथ मिलीभगत" के लिए गिरफ्तार किया गया था. हांग कांग के अभियोजकों ने मंगलवार को एप्पल डेली के संस्थापक जिमी लाई के खिलाफ एक अतिरिक्त "देशद्रोही प्रकाशन" आरोप दायर किया था.
एए/सीके (एएफपी, एपी, डीपीए, रॉयटर्स)
ऑस्ट्रेलिया में हुआ एक अध्ययन कहता है कि जब घर महंगे होते हैं तो लोग कम बच्चे पैदा करते हैं. जबकि जिन लोगों के पास घर हो, उनके बच्चे पैदा करने की संभावना किराये पर रहने वालों से ज्यादा होती है.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
ऑस्ट्रेलिया की सिडनी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बीस साल के आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि जब प्रॉपर्टी मार्किट में तेजी आती है तो लोग कम बच्चे पैदा करते हैं. इसका उलटा भी सच है.
इसी अध्ययन का एक अन्य निष्कर्ष यह है कि जिन लोगों के पास घर नहीं होता उनके बच्चे पैदा करने की संभावना कम होती है.
शोधकर्ताओं ने पहली बार ऑस्ट्रेलिया के लोगों की बच्चे पैदा करने की संभावना की तुलना घरों की कीमतों से की है. सिडनी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की यह स्टडी ‘जर्नल ऑफ हाउसिंग इकॉनोमिक्स' में छपी है.
महंगे हो रहे हैं घर
ऑस्ट्रेलिया में पिछले दो साल में प्रॉपर्टी की कीमतें राष्ट्रीय स्तर पर 20 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं. अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता एसोसिएट प्रोफेसर स्टीफेन वीलन के मुताबिक 2001 से 2018 तक के आंकड़ों के आधार पर उन्होंने जो निष्कर्ष निकाले हैं वे अब और ज्यादा वाजिब साबित होंगे.
प्रोफेसर वीलन कहते हैं, "घरों की कीमतों और उनके घर खरीदने की असर को लेकर तो यह बहस काफी होती है कि नीतियां किस तरह की होनी चाहिए. लेकिन घरों की कीमतों का लोगों के बच्चे पैदा करने के फैसलों पर असर के बारे में चर्चा ज्यादा नहीं होती है.”
वह कहते हैं कि तेजी से बढ़ती घरों की कीमतों का असर लोगों की बच्चे पैदा करने की इच्छा और असल में बच्चों के पैदा होने पर सीधा होता है. वह कहते हैं, "यह अध्ययन दिखाता है कि तेजी से बढ़तीं घरों की कीमतों का असर लोगों के बच्चे पैदा करने की मंशा पर भी होता है और उन मंशाओं के नतीजों पर भी.”
हैरतअंगेज नहीं नतीजे
शोध कहता है कि घर की कीमत अगर एक लाख ऑस्ट्रेलियाई डॉलर बढ़ती है तो बच्चे पैदा होने की संभावना 18 प्रतिशत बढ़ जाती है. उन शादीशुदा जोड़ों के बच्चे पैदा करने की संभावना ज्यादा होती है जिन्होंने घर के लिए लोन ले रखा है.
प्रोफेसर वीलन कहते हैं कि उन्होंने और उनके साथियों ने जो तथ्य उभारा है वह जरूरी तो है लेकिन बहुत ज्यादा हैरतअंगेज नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा,"बच्चे पालने के खर्च में घर के खर्च का एक बड़ा हिस्सा होता है. तो घर महंगा होने पर ऑस्ट्रेलिया में बच्चे पालना ज्यादा महंगा होता जा रहा है. इस कारण किराये पर रहने वाले वे लोग बच्चे पैदा करने का फैसला टाल सकते हैं जो आर्थिक रूप से कम सुरक्षित होते हैं.”
ऑस्ट्रेलिया में जन्मदर की कमी विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय रही है. 1970 के दशक से देश में जन्मदर ‘रीप्लेसमेंट रेट' से कम रही है, जिसका अर्थ है कि लंबी अवधि में आबादी कम हो रही है. जबकि, इस दौरान घरों की कीमतें तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ चुकी हैं. (dw.com)
ये मार्कर कई जगह ऐतिहासिक मसलों पर नए सिरे से छिड़ी बहस का हिस्सा बन गए. कई जगह सिविल वॉर के दौर की मूर्तियां गिराई गईं. संस्थानों-सड़कों के नाम या तो बदले गए या फिर उनके नाम के साथ जुड़े इतिहास पर पुनर्विचार हुआ.
करीब एक सदी से पेनसिलवेनिया इतिहास/ऐतिहासिक स्मारकों से जुड़े स्मृति चिह्न लगाता आ रहा है. मगर अगस्त 2017 में जब वर्जिनिया स्थित शर्लोट्सविले शहर में नस्लीय हिंसा हुई, उसके बाद इन ऐतिहासिक प्रतीकों पर नए सिरे से चर्चा छिड़ी. जनता की ओर से पूछा जाने लगा कि सड़कों के किनारे लगाए गए प्रतीकों के माध्यम से आखिरकार किनकी कहानियां सुनाई जा रही हैं. इन कहानियों की भाषा पर भी सवाल उठे.
सैकड़ों मार्करों की समीक्षा
इन सवालों के कारण पेनसिलवेनिया हिस्टोरिकल ऐंड म्यूजियम कमीशन ने सभी ढाई हजार मार्करों की समीक्षा की. इस समीक्षा में तथ्यात्मक गलतियों, अपर्याप्त ऐतिहासिक संदर्भों और नस्लीय भाषा के इस्तेमाल को रेखांकित करने पर विशेष ध्यान दिया गया. इस समीक्षा के कारण अब तक दो मार्कर हटाए जा चुके हैं. दो में सुधार किया गया है और दो अन्य मार्करों के लिए नई पंक्तियां लिखे जाने का आदेश जारी हुआ है.
ये मार्कर कई जगहों पर गुलामी प्रथा, अश्वेत आबादी को अलग रखे जाने की परंपरा और नस्लीय हिंसा जैसे ऐतिहासिक मसलों पर नए सिरे से छिड़ी बहस का हिस्सा बन गए हैं. इसी लहर के चलते कई जगहों पर सिविल वॉर के दौर की मूर्तियां गिराई गईं. और, संस्थानों-सड़कों के नाम या तो बदले गए, या फिर उनके नाम के साथ जुड़े इतिहास पर बहस हुई.
'जितना सच जानेंगे, उतने बेहतर होंगे'
अलबामा स्थित इक्वल जस्टिस इनिशिएटिव ने नस्लीय लिंचिंग के अध्यायों को याद रखने के लिए दर्जनों ऐतिहासिक मार्कर लगवाए हैं. उसका कहना है कि इतिहास के किन पात्रों को याद रखा जाता है, कौन सी घटनाएं याद रखी जाती हैं, कौन सी चीजें लोगों के दिमाग में छप जाती हैं, ये सभी चीजें बताती हैं कि समाज कैसा है.
फिलाडेल्फिया स्थित टेंपल यूनिवर्सिटी का चार्ल्स एल ब्लॉकसन एफ्रो-अमेरिकन कलेक्शन, अमेरिका की ब्लैक हिस्ट्री से जुड़े साहित्य और बाकी चीजों के सबसे बड़े संग्रहों में से एक है. इसके क्यूरेटर डिएन टर्नर का कहना है कि ऐतिहासिक मार्कर लोगों में जागरूकता बढ़ाते हैं. साथ ही, वे संस्थागत नस्लीय भेदभाव से लड़ने में भी मददगार साबित हो सकते हैं.
टर्नर कहते हैं, 'सबकी कहानी सुना सकने लायक होना समाज के लिए अच्छा है. ऐसी कहानियों को जगह मिलनी चाहिए. क्योंकि हम जितना ज्यादा सच जानेंगे, उतना ही हमारे लिए बेहतर है.'
प्रेसिडेंट विल्सन से जुड़ा विवादित इतिहास
पेनसिलवेनिया हिस्ट्री एजेंसी को ब्रिन मार कॉलेज की अध्यक्ष किंबरले राइट कैसिडी का आग्रह मिला था. इसपर अमल करते हुए एजेंसी ने कॉलेज परिसर के किनारे लगे एक मार्कर को हटा दिया. इस मार्कर पर लिखा था कि प्रेसिडेंट वुड्रो विल्सन ने कुछ समय के लिए कॉलेज में पढ़ाया था.
कैसिडी ने एजेंसी को भेजे अपने पत्र में ध्यान दिलाया कि विल्सन महिलाओं की बौद्धिक क्षमता को नकारने वाली टिप्पणियां करते थे. साथ ही, सरकारी नौकरियों में अफ्रीकन अमेरिकन मूल के लोगों को अलग-थलग रखने की उनकी नीति भी नस्लीय थी.
प्रांतीय सरकार ने पिट्सबर्ग के पॉइंट स्टेट पार्क से भी एक मार्कर को हटाया. इसमें वह जगह दर्ज थी जहां 1758 में ब्रिटिश जनरल जॉन फोर्ब्स को एक सैन्य जीत मिली थी. मार्कर पर लिखा था कि इस जीत ने अमेरिका में एंग्लो-सैक्सन सर्वोच्चता कायम की. कमीशन ने केंद्रीय पेंसिलवेनिया के फुलटॉन काउंटी में लगे मार्करों की भी समीक्षा की. ये मार्कर 1863 में हुई गेटीसबर्ग की लड़ाई के बाद हुई कॉन्फेडरेट आर्मी की गतिविधियों से जुड़े थे.
मार्करों से जुड़ी इस समीक्षा पर राजनैतिक बयानबाजी भी हो रही है. हिस्टॉरिकल ऐंड म्यूजियम कमीशन में नियुक्त किए गए रिपब्लिकन स्टेट प्रतिनिधि पार्क वेंटलिंग ने आलोचना करते हुए लिखा, 'मुझे डर है कि यह कमीशन ऐतिहासिक विवादों में न्यायकर्ता की भूमिका निभाने की जगह जॉर्ज ऑरवेल के मिनिस्ट्री ऑफ ट्रूथ की तरह बर्ताव कर रहा है, जिसमें सरकारी अधिकारी सत्ता में बैठे लोगों की सहूलियत के हिसाब से फिट बैठाने के लिए इतिहास में छेड़छाड़ करते थे.'
दिसंबर 2021 में ही सीनियर स्टेट हाउस रिपब्लिकन प्रेस सहयोगी स्टीव मिस्किन ने एक ट्वीट में लिखा, 'क्या स्कूली किताबों से भी कन्फेडरेसी को हटा दिया जाएगा? जिन टीवी कार्यक्रमों और फिल्मों में कन्फेडरेसी का जिक्र है, क्या उसे सेंसर कर दिया जाएगा?'
मार्करों की भाषा पर मतभेद
ऐतिहासिक मार्करों की भाषा कैसी हो. उन्हें लगाया जाए भी या नहीं, हालिया सालों में इन सवालों को लेकर काफी मतभेद रहा है. पेनसिलवेनिया में कमीशन ने अपने नियंत्रण वाले सभी ढाई हजार मार्करों की समीक्षा की. इसका फोकस यह देखना था कि इन मार्करों में अफ्रीकी अमेरिकी और मूल अमेरिकी लोगों की जिंदगी, उनकी आपबीतियों को किस तरह पेश किया गया है.
करीब एक साल पहले कमीशन ने 131 ऐसे मार्करों की पहचान की, जिनमें बदलाव की जरूरत है. इनमें से 18 मार्कर ऐसे हैं, जिनपर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत बताई गई. इतिहासकार इरा बैकरमैन ने हाल ही में ब्लैक और मूल अमेरिकी इतिहास से जुड़े पेनसिलवेनिया के मार्करों से जुड़ा एक शोध प्रकाशित किया.
इस मुद्दे पर बात करते हुए उन्होंने कहा, 'किसने कौन सी लड़ाई शुरू की, इसपर बहुत शोर हो रहा है. अगर सेटलरों ने शुरू की, तो वह एक युद्ध था और लड़े जाने योग्य था. अगर मूल निवासियों ने प्रतिक्रिया स्वरूप हिंसा की, तो फिर वह नरसंहार और क्रूरता थी.' बैकरमैन के मुताबिक, पेनसिलवेनिया के 348 मूल निवासी ऐतिहासिक मार्कर नस्लीय भेदभाव और श्वेत राष्ट्रवाद से जुड़ा सटीक इतिहास बताते हैं.
एसएम/वीके (एपी)
कोयले की खेप कहां भेजी जा रही है, इसकी जानकारी कंपनी ने नहीं दी है. ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में स्थित कारमाइकल खान संभावित तौर पर देश में आखिरी नई थर्मल कोयला खान है. ऑस्ट्रेलिया दुनिया का सबसे बड़ा कोयला निर्यातक है.
कानूनी लड़ाइयों के चलते हुई करीब सात साल की देरी के बाद भारत का अडानी ग्रुप ऑस्ट्रेलिया स्थित विवादित कोयला खदान से पहली खेप रवाना करने की तैयारी कर रहा है. कंपनी की ऑस्ट्रेलियाई शाखा 'ब्रावुस माइनिंग एंड रिसोर्सेज' ने एक बयान जारी कर पहली खेप के निर्यात की जानकारी दी.
कंपनी ने बताया कि कारमाइकल खदान से निकाले गए उच्च गुणवत्ता वाले कोयले की पहली खेप उत्तरी क्वींसलैंड एक्सपोर्ट टर्मिनल पर असेंबल की जा रही है. यहीं से इसे एक्सपोर्ट किया जाएगा. यह खेप कहां जाएगी, अभी कंपनी ने यह नहीं बताया है. उसने इतना जरूर कहा है कि कारमाइकल खदान से सालाना जो एक करोड़ टन कोयला निकाला जाएगा, उसके लिए पहले ही बाजार खोजा जा चुका है.
शुरुआती योजना क्या थी?
क्वींसलैंड स्टेट स्थित कारमाइकल खान संभावित तौर पर ऑस्ट्रेलिया में बनी आखिरी नई थर्मल कोयला खान है. ऑस्ट्रेलिया दुनिया का सबसे बड़ा कोयला निर्यातक है. माना जा रहा है कारमाइकल खदान से निकला कोयला भारतीय पावर प्लांट जैसे आयातकों के लिए कोयले की आपूर्ति का बड़ा स्रोत होगा.
अडानी ग्रुप ने 2010 में यह परियोजना खरीदी थी. यह परियोजना गैलिली बेसिन में प्रस्तावित कई प्रोजेक्टों में से एक थी. उस समय अडानी ग्रुप की योजना यहां छह करोड़ टन सालाना क्षमता वाली एक खदान बनाने की थी. साथ ही, इस परियोजना के लिए 400 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन बिछाने का भी प्रस्ताव था. इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत तब करीब 82 हजार करोड़ रुपये आंकी गई थी.
खदान का विरोध
पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस परियोजना के विरोध में 'स्टॉप अडानी' नाम का एक अभियान शुरू कर दिया. इसके चलते निवेशकों, बीमा कंपनियों और बड़े इंजीनियरिंग फर्मों ने प्रोजेक्ट से अपने हाथ खींचने शुरू कर दिए. इसका असर परियोजना पर हुआ. 2018 में इसकी क्षमता घटाकर एक करोड़ टन सालाना कर दी गई.
इस कम क्षमता वाली खदान की लागत क्या है, इसका खुलासा कंपनी ने अभी नहीं किया है. ना ही कंपनी ने अपने द्वारा बिछाई गई 200 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन की ही लागत बताई है. मगर अनुमान है कि इस प्रोजेक्ट की लागत करीब 11 हजार करोड़ रुपये है. कंसल्टिंग ग्रुप एएमई के मैनेजिंग डायरेक्टर लॉयड हेन ने कहा, "यह काफी खुशी की बात है. यह खदान ऑस्ट्रेलिया की आखिरी ग्रीनफील्ड थर्मल कोयला खदान होगी."
विवाद की वजह
अडानी ग्रुप की यह परियोजना विवादों में घिरी रही है. इसकी मुख्य वजह पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं हैं. पर्यावरण कार्यकर्ता खदान परियोजना के चलते होने वाले संभावित कार्बन उत्सर्जन पर चिंता जता रहे हैं. साथ ही, उन्हें ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ को भी नुकसान पहुंचने की आशंका है. इन आशंकाओं की वजह ग्लोबल वॉर्मिंग तो थी ही. साथ ही, ऐबट पॉइंट पोर्ट में ड्रेजिंग से भी खतरा था.
इसके चलते पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने खदान को दी गई सरकारी मंजूरी को चुनौती देते हुए कई मुकदमे दर्ज कर दिए. 2019 में हुए ऑस्ट्रेलियाई चुनाव के समय यह अभियान एक बड़ा मुद्दा बन गया. इस मुद्दे ने नौकरी बनाम पर्यावरण के संघर्ष की शक्ल ले ली. स्कॉट मॉरिसन के नेतृत्व वाला लिबरल-नेशनल गठबंधन वापस सत्ता में लौटा. जानकारों के मुताबिक, इसकी एक बड़ी वजह गठबंधन की कोयला-समर्थक नीतियां थीं.
क्या कह रहे हैं आलोचक?
पर्यावरण कार्यकर्ता सात सालों तक इस परियोजना को लटकाए रखने में सफल रहे. साथ ही, उनके विरोध के चलते अडानी ग्रुप को अपना नाम बदलकर ब्रावुस भी करना पड़ा. इसके बावजूद पर्यावरण कार्यकर्ता खुद को कामयाब नहीं मान रहे हैं.
परियोजना का विरोध करने वाले एक कार्यकर्ता ऐंडी पेने ने बताया, "यह खदान अभी भी काम कर रही है, यह शर्म की बात है. मगर खदान के शुरू होने का मतलब यह नहीं कि जमीन के नीचे दबा सारा कोयला बाहर निकाल लिया जाएगा. जितना अधिक-से-अधिक संभव हो सके, उतना कोयला जमीन में ही दबा रहने देने के लिए हम अभियान चलाते रहेंगे."
कोयला टर्मिनल बनाने में भी हुआ भारी निवेश
कारमाइकल खदान से निकाला गया कोयला ऐबट पॉइंट पोर्ट के एक टर्मिनल से निर्यात किया जाएगा. अडानी ने 2011 में इस टर्मिनल को लगभग 15 हजार करोड़ रुपये में खरीदा था. कंपनी ने इसका नया नाम रखा, नॉर्थ क्वींसलैंड एक्सपोर्ट टर्मिनल. जानकारों के मुताबिक, अडानी का खदान में खुदाई करने का फैसला तर्कसंगत लगता है. कोयला टर्मिनल बनाने में कंपनी ने काफी निवेश किया था. जब से यह टर्मिनल अडानी के पास आया है, तब से यह अपनी क्षमता से आधे पर काम कर रहा है.
ऐसे में खदान के भीतर काम शुरू होने से कंपनी को अपने निवेश पर रिटर्न मिलेगा. इस बारे में बात करते हुए इंस्टिट्यूट ऑफ एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनैंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) के निदेशक टिम बकले ने बताया, "इसका मकसद रेलवे लाइन में किए गए निवेश पर रिटर्न पाना और ऐबट पॉइंट से आने वाले मुनाफे को बढ़ाना है." टिम के अनुसार कोयले की कीमतें गिरने पर कारमाइकल खदान मुनाफे का सौदा नहीं रहेगी. मगर जब टर्मिनल को आपूर्ति करने वाली बाकी खदानों में उत्पादन बंद होने पर शायद अडानी को यह फायदा मिले कि वह बंदरगाह से सामानों की आवाजाही बनाए रखने के लिए खदान का उत्पादन बढ़ाकर दो करोड़ टन सालान कर पाएं.
एसएम/एमजे (रॉयटर्स)
फरवरी 2021 में सत्ता से बर्खास्त म्यांमार की राजनेता आंग सान सू ची पर अवैध तरीके से वॉकी-टॉकी रखने के मुकदमे में अंतिम फैसला फिर टाल दिया गया है. इस बीच ताजा हिंसा में 35 नागरिकों की मौत होने की खबर है.
म्यांमार की एक सैन्य अदालत ने आंग सान सू ची पर सरकार प्रमुख रहते हुए अवैध रूप से वॉकी-टॉकी रखने के एक मामले में अंतिम फैसला कुछ दिनों के लिए टाल दिया है. राजधानी नेपिदाव की एक अदालत में चल रहे इस मामले पर अब 10 जनवरी 2022 को फैसला आ सकता है. मामले से जुड़े एक कानून अधिकारी के मुताबिक, कोर्ट ने फैसला टालने की कोई वजह नहीं बताई है. 1 फरवरी 2021 को सेना ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार का तख्तापलट कर दिया था और सू ची समेत कई राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया था.
क्या है पूरा मामला
म्यांमार के आयात-निर्यात कानून के तहत सू ची पर गलत तरीके से वॉकी-टॉकी सेट आयात करने के आरोप लगे हैं. सू ची को जेल में रखने के लिए शुरुआत में इसी आरोप को आधार बनाया गया था. कुछ समय बाद, सू ची पर अवैध तरीके से रोडियो रखने के आरोप भी लगाए गए. ये रेडियो सेट तख्तापलट के दिन सू ची के अंगरक्षकों और घर के मुख्य दरवाजे से बरामद किए गए थे. बचाव पक्ष ने कोर्ट में दलील दी कि सू ची इन रेडियो सेटों का निजी इस्तेमाल नहीं कर रही थीं, बल्कि उनकी सुरक्षा के लिए वैध तरीके से इनका उपयोग किया जा रहा था. लेकिन कोर्ट ने बचाव पक्ष के तर्क नहीं माने.
सू ची की पार्टी ने 2020 के आम चुनाव में भारी बहुमत से जीत दर्ज की थी. लेकिन सैन्य नेतृत्व ने चुनाव नतीजों को मानने से इनकार कर दिया और चुनाव में धांधली के आरोप लगाए. सेना के इन दावों पर स्वतंत्र पर्यवेक्षक शक जताते हैं. सू ची के समर्थकों और स्वतंत्र पर्यवेक्षकों का मानना है कि सू ची पर लगे सारे आरोप राजनीति से प्रेरित हैं, जिनका मकसद सत्ता हासिल करना और उन्हें दोबारा सत्ता में आने से रोकना है.
सू ची पर चल रहे मुकदमे
तख्तापलट के बाद से सू ची पर कई मुकदमे चलाए गए हैं. एक अनुमान के मुताबिक, अगर सभी आरोप साबित हो जाते हैं तो 76 वर्षीय सू ची को 100 साल कैद की सजा हो सकती है. इसी साल 6 दिसंबर को सू ची पर कोविड-19 पाबंदियां तोड़ने के आरोप में चार साल की सजा हुई थी. जिसे बाद में सैन्य सरकार के प्रमुख सीनियर जनरल मिन आंग हिलांग ने घटाकर 2 साल कर दिया था. सू ची पर भ्रष्टाचार के पांच मामले चल रहे हैं और दोषी पाए जाने पर हर एक मामले में 15 साल की सजा का प्रावधान है. हेलिकॉप्टर खरीद के एक मामले में पूर्व राष्ट्रपति विन मियांट और सू ची, दोनों पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं. इस मामले का ट्रायल अभी बाकी है.
सू ची पर गोपनीयता कानून के उल्लंघन का भी आरोप है. अगर दोषी पाई गईं तो 14 साल की सजा हो सकती है. सैन्य नियंत्रण में काम कर रहे म्यांमार के चुनाव आयोग ने सू ची और अन्य राजनेताओं के खिलाफ चुनाव धांधली के आरोप लगाए हैं. अगर आरोप साबित होते हैं तो सू ची की पार्टी भंग हो सकती है, जिसका दूसरा अर्थ है कि सेना के वादे के मुताबिक, उनके सत्ता संभालने के दो साल के अंदर होने वाले चुनाव में सू ची की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी नहीं लड़ पाएगी.
सरकारी चैनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सैन्य सरकार ने सू ची को एक अज्ञात जगह पर कैद किया हुआ है जहां वो बची हुई सजा भुगतेंगी. सू ची जेल की ओर से दिए गए सादे कपड़े पहनकर ही सुनवाई में शामिल हो रही हैं. अक्टूबर 2021 में सू ची की कानूनी टीम को जानकारियां जारी ना करने के सख़्त आदेश दिए गए थे. सू ची पर चल रहे मुकदमों की मीडिया रिपोर्टिंग पर भी रोक लगा दी गई है.
म्यांमार में ताजा हिंसा
म्यांमार में तख्तापलट के बाद से सेना के विरोधियों और कई जातीय समूहों की गुरिल्ला सेनाओं ने हथियार उठा लिए हैं. ये समूह लंबे समय से स्वायत्तता की मांग कर रहे थे. पूर्वी राज्य काया में कथित रूप से हुई एक मुठभेड़ में करीब 35 नागरिकों की मौत होने की खबर आई है. विरोधी इसका इल्जाम सैन्य सरकार पर लगा रहे हैं. वहीं सरकारी मीडिया के जरिये सेना का दावा है कि उसने 'हथियारबंद आतंकियों' को मारा है. सरकारी मीडिया ने नागरिकों की मौत पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
संयुक्त राष्ट्र के मानवीय संकट और आपातकालीन राहत मामलों के संयोजक मार्टिन ग्रिफ्थ ने बताया कि कम से कम एक बच्चे समेत नागरिकों की मौत की जानकारी विश्वसनीय थी. घटना की आलोचना करते हुए उन्होंने नागरिकों पर हो रहे हमलों को अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों का उल्लंघन बताया है. फरवरी में सेना के सत्ता हथियाने के खिलाफ देशभर में लगातार अहिंसक प्रदर्शन हुए थे, जिन्हें सशस्त्र बलों ने क्रूरता से कुचल दिया था. असिस्टेंस असोसिएशन फॉर पोलिटिकल प्रिजनर्स की एक विस्तृत सूची के मुताबिक, इस संघर्ष में अब तक 1400 से ज्यादा नागरिकों की मौत हो चुकी है. 11 हजार से ज्यादा नागरिक आज भी जेल में बंद हैं.
आरएस/एमजे (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
नई दिल्ली, 28 दिसम्बर | चीन ने पिछले 24 घंटों में 162 घरेलू प्रसारण के साथ 200 नए कोविड -19 मामले दर्ज किए, जो लगभग 20 महीनों में सबसे बड़ी दैनिक वृद्धि है। यह जानकारी ग्लोबल टाइम्स ने दी है।
162 घरेलू मामलों में से 150 शांक्सी प्रांत की राजधानी शीआन में दर्ज किए गए।
9 दिसंबर से सोमवार तक, शीआन में पुष्टि किए गए मामलों की कुल संख्या 635 थी। शीआन स्वास्थ्य आयोग के उप निदेशक झांग बो ने सोमवार को एक संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी दी।
सोमवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस के अनुसार, शीआन ने सोमवार को 12 मिलियन लोगों के घर पर न्यूक्लिक एसिड परीक्षण का एक नया दौर शुरू किया, और अपने सभी निवासियों को परीक्षा परिणामों की सटीकता की गारंटी देने के लिए घर पर रहने की आवश्यकता के कारण इसके लॉकडाउन को कड़ा कर दिया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 23 दिसंबर से शहर बंद है, लेकिन प्रत्येक परिवार दैनिक आवश्यकताओं की खरीदारी के लिए हर दो दिन में एक बार एक व्यक्ति को बाहर भेज सकता है।
कोविड का प्रकोप चीन के कई शहरों में फैल गया है, जिसमें डोंगगुआन, ग्वांगडोंग प्रांत और बीजिंग शामिल हैं, जहां 2022 शीतकालीन ओलंपिक 4 फरवरी से शुरू होंगे।
हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि इस कोविड -19 के प्रकोप ने चीन के लिए रोकथाम के दबाव को बढ़ा दिया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा कि देश एक सुरक्षित अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन सुनिश्चित करेगा क्योंकि यह स्थानीय प्रकोपों को रोकने में पिछले अनुभव से सीखे गए सबक पर आकर्षित हो सकता है।
(आईएएनएस)
दुनियाभर में मौसमी आपदाओं की वजह से इस साल 170 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है. करोड़ों लोगों को प्रभावित करने वाली आगजनी, तूफान, चक्रवात, बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं ने दुनिया के हर महाद्वीप में अपना असर दिखाया है.
साल 2021 की 10 बड़ी मौसमी आपदाओं में 170 अरब डॉलर से ज्यादा का आर्थिक नुकासन हुआ है. ब्रिटेन की चैरिटेबल संस्था क्रिश्चियन ऐड के मुताबिक, ये आंकड़ा बीते साल के मुकाबले 20 अरब डॉलर बढ़ा है. क्रिश्चियन ऐड ने आगजनी, बाढ़, तूफान, सूखा और गर्म हवाओं जैसी मौसमी आपदाओं से हुए आर्थिक नुकसान के ये आंकड़े बीमा राशि के आधार पर गिने हैं. यानी असल आर्थिक नुकसान के आंकड़े इससे भी बड़े हैं. क्रिश्चियन ऐड का कहना है कि बढ़ती मौसमी आपदाएं इंसानी दखल से जलवायु में हो रहे परिवर्तनों को दिखाती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल की 10 बड़ी आपदाओं में 1075 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है और 13 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं.
अमेरिका में हरिकेन
अमेरिका के पूर्वी हिस्से अगस्त 2021 में इडा हरिकेन से बुरी तरह प्रभावित हुए थे. ये इस साल की सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान करने वाली मौसमी आपदा थी, जिसमें करीब 65 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है. हरिकेन इडा से न्यूयॉर्क शहर समेत आसपास के इलाके में पानी भर गया था और 95 लोगों की मौत हो गई थी. अमेरिका के ही टेक्सस प्रांत में फरवरी 2021 में सर्द तूफान आया था, जिसने बड़े स्तर पर बिजली का संकट पैदा कर दिया था. इससे करीब 23 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था.
जुलाई 2021 में मध्य और पश्चिमी यूरोप के कई हिस्सों में बाढ़ आई थी. अकेले जर्मनी में बाढ़ से 240 लोगों की मौत हुई थी और करीब 43 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था. इसी समय जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैंड्स, बेल्जियम जैसे देशों में सामान्य से कहीं ज्यादा बारिश हुई थी. वैज्ञानिक वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को इस बाढ़ का कराण मानते हैं.
एशिया में चक्रवात
एशिया में मौसमी आपदाओं से 24 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है. मई 2021 में भारत और बांग्लादेश ने यास चक्रवात का सामना किया था. इससे कुछ ही दिनों में 3 अरब डॉलर का नुकसान हो गया था. इस आपदा की वजह से विस्थापन का बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया था. करीब 12 लाख लोगों को तटीय इलाकों से सुरक्षित इलाकों की ओर ले जाना पड़ा था.
चीन में आई बाढ़ ने 17.6 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान किया था. मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, बाढ़ से 302 लोगों की मौत भी हुई थी. हेनान प्रांत की राजधानी जेंगजाओ में सिर्फ तीन दिन में पूरे साल जितना पानी बरस गया था. भयंकर बाढ़ से यहां का भूमिगत यातायात जलमग्न हो गया था.
इसके अलावा कनाडा में भी बाढ़ से काफी नुकसान हुआ था. फ्रांस में शीतलहर से अंगूरों की फसल को भारी नुकसान पहुंचा था. इस रिपोर्ट ने माना है कि "जुटाए गए आंकड़ों का प्राथमिक आधार बीमा क्लेम की राशि के आंकड़े ही हैं. इसलिए बेहतर बीमा व्यवस्था वाले समृद्ध देशों के नुकसान का मोटामोटी अंदाजा लगाया जा सका है. पिछड़े देशों में हुए आर्थिक नुकसान का सही अंदाजा लगाना मुश्किल है. जैसे कि दक्षिण सूडान में, जहां 8 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हुए, लेकिन आंकड़ों में आर्थिक नुकसान स्पष्ट नहीं है."
रिपोर्ट के मुताबिक, मौसमी आपदाओं का बड़ा नुकसान पिछड़े देशों को सहना पड़ा है, जबकि जलवायु परिवर्तन में उनका नाममात्र योगदान है. लगभग हर साल चक्रवात और बाढ़ की मार सहने वाले बांग्लादेश में क्रिश्चियन ऐड की अधिकारी नुसरत चौधरी ने कहा कि साल 2022 में, खतरे की दहलीज पर खड़े देशों की ओर से आपदा में होने वाले नुकसान और तबाही का खर्च वहन करने के लिए नया फंड बनाने की मांग एक वैश्विक प्राथमिकता होनी चाहिए.
आरएस/एए (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन, एएफपी)
महीनों से चले आ रहे पोलैंड के मीडिया बिल विवाद पर देश के राष्ट्रपति ने सख्त रुख अपनाया है. आंद्रे दूदा ने कहा है कि वह मीडिया बिल को रोकने के लिए वीटो शक्ति का इस्तेमाल करेंगे.
पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रे दूदा ने कहा है कि वह प्रस्तावित विवादित मीडिया बिल को रोकने के लिए अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करेंगे. इस बिल पर महीनों से विवाद चल रहा था जिसे मीडिया की आजादी और असहमति पर लगाम कसने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.
हाल ही में पोलैंड की संसद के निचले सदन से एक बिल पास हुआ है जिसके तहत गैर यूरोपीय कंपनियों को पोलैंड में किसी मीडिया चैनल में 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी रखने पर पाबंदी लगा दी गई है. अमेरिकी कंपनी डिस्कवरी की देश के सबसे बड़े समाचार चैनल टीवीएन में सर्वाधिक हिस्सेदारी है.
अमेरिकी कंपनी पर होता असर
दूदा ने कहा कि यह बिल बहुत से नागरिकों को पसंद नहीं आ रहा है और उनके देश की छवि को नुकसान पहुंचाएगा. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि जब विदेशी पूंजी की बात आती है तो आमतौर पर मीडिया कंपनियों में हिस्सेदारी को सीमित करने की संभावना समझदारी भरी है. मैं इस बात से भी सहमत हूं कि इसे पोलैंड में लागू किया जाना चाहिए, लेकिन भविष्य में.”
इस कानून के चलते डिस्कवरी को समाचार चैनल TVN24 में अपनी हिस्सेदारी का अधिकतर भाग बेचना पड़ सकता है. टीवीएन की अनुमानित कीमत एक अरब अमेरिकी डॉलर यानी लगभग 75 अरब रुपये है, जो पोलैंड में अमेरिका का सबसे बड़ा एकमुश्त निवेश है.
इस कानून को अमेरिका ने मीडिया की आजादी पर हमला बताया था. सत्ताधारी पोलिश पार्टी के विरोधियों ने भी इसे मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने की कोशिश बताया जबकि लॉ एंड जस्टिस पार्टी का तर्क है कि विदेशी कंपनियों का देश के मीडिया उद्योग में बहुत ज्यादा दखल है जिस कारण जनता के बीच चल रही बहस बिगड़ रही है.
अभिव्यक्ति की आजादी का मुद्दा
इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट ने भी पोलैंड के इस कदम को गलत बताते हुए मीडिया अधिकारों पर चिंता जताई थी. दूदा ने कहा कि इस बिल से उन लोगों में भी चिंता है जो पहले से ही देश के बाजार में मौजूद हैं. पोलिश राष्ट्रपति ने कहा, "मीडिया में विविधता और अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता का मुद्दा भी है. अपना फैसला लेते हुए मैंने इस विषय पर भी गंभीरता से विचार किया है.”
इस महीने की शुरुआत में देश के कई शहरों में बड़े विरोध प्रदर्शन हुए थे जिनमें हजारों लोगों ने दूदा से मीडिया लॉ को वीटो करने की मांग की थी. प्रदर्शनकारियों ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा था कि यह टीवीएन24 समाचार चैनल को खामोश करने की कोशिश है. चैनल सरकारी नीतियों को लेकर आलोचनात्मक रहता है.
अमेरिका ने इस बिल की तीखी आलोचना की थी और पोलैंड को इसके खिलाफ चेतावनी भी दी थी. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने अगस्त में कहा था कि वह इस प्रस्ताव से बहुत नाखुश हैं और वॉरसा को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए.
वीके/एए (एपी, रॉयटर्स)
नई दिल्ली, 28 दिसम्बर| सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) के शीर्ष सदस्य जसविंदर सिंह मुल्तान को जर्मनी में लुधियाना जिला अदालत परिसर में 23 दिसंबर को हुए विस्फोट के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है। इस हमले में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी जबकि 5 अन्य घायल हो गए। यह जानकारी सूत्रों ने दी। भारत द्वारा बर्लिन में आतंकवाद रोधी एजेंसियों को सबूत साझा करने के बाद उसे विस्फोट के मुख्य साजिशकर्ता के रूप में गिरफ्तार किया गया।
एक सूत्र ने कहा, "हमने उन सभी सबूतों को साझा किया जो हमने विस्फोट वाली जगह से इक्ठ्ठे किए और यह भी बताया कि कैसे मुल्तान ने साजिश रची थी।"
मुल्तान अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रास्ते भारत में पाकिस्तान से और विस्फोटक लाने की साजिश कर रहा था और देश के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह के विस्फोट करने की योजना बना रहा था।
यह भी आरोप है कि इस साल अक्टूबर में पंजाब के तरनतारन जिले के खेमकरण इलाके में हथियार भेजने के पीछे मुल्तान का भी हाथ था।
पंजाब पुलिस और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने 20 अक्टूबर को खेमकरण इलाके में भारत-पाकिस्तान सीमा के पास हथियारों का एक बड़ा जखीरा बरामद किया था। उन्होंने 22 पिस्तौल, 44 मैगजीन और 100 राउंड गोला-बारूद हथियार और एक किलो हेरोइन भी बरामद की थी।
सूत्र ने कहा कि पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) मुल्तान के संपर्क में थी।
लुधियाना में 23 दिसंबर को दोपहर करीब 12.22 बजे जिला एवं सत्र न्यायालय परिसर की दूसरी मंजिल के एक वॉशरूम में धमाका हुआ था।
घटना की जांच कर रही आतंकवाद रोधी एजेंसियों ने दावा किया कि यह पंजाब पुलिस के पूर्व हेड कांस्टेबल गगनदीप सिंह थे, जिसने अदालत परिसर में बम लगाया था और अचानक विस्फोट के कारण उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
पूर्व पुलिस हेड कांस्टेबल गगनदीप सिंह को ड्रग्स डीलर से संबंध होने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। उस पर एनडीपीएस एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया और इस सिलसिले में 2019 में दो साल के लिए जेल में बंद था।
जांच एजेंसियों ने यह भी पाया है कि विस्फोट के पीछे पाकिस्तानी आईएसआई का हाथ था और गगनदीप सिंह के संपर्क में था। इस जांच के दौरान, पुलिस को एसएफजे सदस्यों हरविंदर सिंह और जसविंदर सिंह मुल्तान की भूमिका की सूचना मिली, जो जर्मनी में रहता है। दोनों एसएफजे के अध्यक्ष अवतार सिंह पन्नू और हरमीत सिंह के संपर्क में भी था। (आईएएनएस)
त्रिपोली, 28 दिसम्बर| लीबिया के तट से बीते सप्ताह 969 अवैध प्रवासियों को बचाया गया और वे सभी लीबिया वापस लौट आए हैं। ये जानकारी इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) ने दी।
आईओएम ने कहा, "दिसंबर 19-25 के बीच 969 प्रवासियों को बचाया गया या उन्हें समुद्र में रोका गया, जिससे सभी लीबिया लौट आए।"
संगठन के अनुसार, इस साल अब तक कुल 32,425 अवैध प्रवासियों को बचाया गया है, जबकि 573 की मौत हो गई और 933 मध्य भूमध्य मार्ग पर लीबिया के तट से लापता हो गए हैं।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, लीबिया 2011 में दिवंगत नेता मुअम्मर गद्दाफी के पतन के बाद से असुरक्षा और अराजकता का सामना कर रहा है, जिससे उत्तरी अफ्रीकी देश अवैध प्रवासियों के लिए प्रस्थान का पसंदीदा स्थान बन गया है, जो भूमध्य सागर को पार करके यूरोपीय तटों की ओर जाना चाहते हैं। (आईएएनएस)
फ़्रांस ने कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट पर चिंताओं के बीच सख़्त कोविड प्रतिबंधों की घोषणा की है.
3 जनवरी से देश में रिमोट वर्किंग अनिवार्य हो जाएगी,ये उन सभी पर लागू होगी जो रिमोट वर्किंग कर सकते हैं. इनडोर कार्यक्रमों के लिए सार्वजनिक सभा 2,000 लोगों तक सीमित होगी.
फ़्रांस में शनिवार को 100,000 से अधिक नए संक्रमण दर्ज किए- महामारी शुरू होने के बाद से अब तक ये देश में सबसे अधिक संक्रमण की संख्या है.
लेकिन इसके बावजूद सरकार ने नए साल की पूर्व संध्या पर कर्फ़्यू नहीं लगाने का फ़ैसला लिया है.
प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी ज्यां कास्टेक्स ने संवाददाताओं से कैबिनेट की बैठक के बाद कहा,ऐसा लगता है ये महामारी"कभी ना ख़त्म होने वाली एक फ़िल्म की तरह" है. इस बैठक के बाद उन्होंने नए सुरक्षा उपायों की जानकारी दी.
फ़्रांस के स्वास्थ्य मंत्री ओलिवियर वेरन ने कहा कि कोरोनोवायरस संक्रमण हर दो दिन में दोगुना हो रहा है,उन्होंने देश में कोरोना के "मेगा वेव" की चेतावनी दी.
नए नियमों में आउटडोर होने वाले सार्वजनिक समारोहों की सीमा भी शामिल है,5,000 लोग ही किसी आउटडोर समारोह में शामिल हो सकेंगे और लंबी दूरी के परिवहन के दौरान खाने-पीने की सुविधा पर भी प्रतिबंध लगाया गया है.
अगले आदेश तक नाइट क्लब बंद रहेंगे और कैफ़े व बार में केवल टेबल सर्विस ही दी जा सकेगी. घर से काम करने वाले कर्मचारियों को सप्ताह में कम से कम तीन दिन घर से ही काम करना होगा. शहर में घूमते समय मास्क पहनना अनिवार्य होगा.
सरकार ने आख़िरी टीके के चार महीने बाद बूस्टर लेने की अवधि को छोटा कर दिया है और अब तीन महीने बाद ही बूस्टर दिए जाएंगे.
फ़्रांस वैक्सीन पास बनाने की तैयारी कर रहा है. इसके बाद सार्वजनिक स्थानों पर जाने के लिए वैक्सीन के प्रमाण की आवश्यकता होगी,न कि केवल एकनेगेटिव टेस्ट की. यदि संसद में इस मसौदा विधेयक को मंज़ूरी मिल जाती है तो देश में 15 जनवरी से वैक्सीन पास प्रभावी होगा. (bbc.com)
दमिश्क, 27 दिसम्बर| सीरिया में इस वर्ष बारूदी सुरंग और अन्य विस्फोटक सामग्रियों की चपेट में आने से कुल 241 नागरिक मारे गए हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने यूके स्थित सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के हवाले से कहा कि विस्फोटों की चपेट में आने से 114 बच्चे और 19 महिलाओं की मौत हो गई।
वॉचडॉग ने संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से सीरिया से युद्ध के बचे हुए अवशेषों को हटाने में मदद करने और ऐसी सामग्रियों के खतरे के बारे में सीरियाई लोगों में जागरूकता बढ़ाने का आह्वान किया।
राज्य समाचार एजेंसी सना ने कई घटनाओं की सूचना दी है जिसमें बारूदी सुरंगों से नागरिकों की मौत हो गई थी। (आईएएनएस)
औगाडौगौ, 27 दिसंबर| बुर्किना फासो के उत्तरी लोरम प्रांत में होमलैंड डिफेंस वालंटियर्स (वीडीपी) के नागरिक लड़ाकों के एक स्तंभ के खिलाफ सशस्त्र आतंकवादी समूहों द्वारा किए गए लमले में कम से कम इकतालीस लोग मारे गए। माईगा ने एक बयान में यह घोषणा की। घटना गुरुवार को हुई।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, उसी स्रोत के अनुसार, पीड़ितों की पहचान अभी भी राष्ट्रीय जेंडरमेरी द्वारा की जा रही है।
सरकार ने इस बर्बरता की कड़ी निंदा की है। राष्ट्रपति ने रविवार और सोमवार को अड़तालीस घंटे के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है।
बुर्किना फासो में सुरक्षा 2015 के बाद से खराब हो गई है, जिसमें आतंकवादी हमलों में 1,000 से अधिक लोग मारे गए हैं और पश्चिम अफ्रीकी देश में दस लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। (आईएएनएस)
बच्चों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय समाजसेवी संस्था 'सेव द चिल्ड्रेन' का कहना है कि म्यांमार में उसके दो कर्मचारी पिछले दो दिनों से लापता है.
लंदन स्थित मुख्यालय वाली इस संस्था का आरोप है कि म्यांमार की सेना ने शुक्रवार को काया राज्य में 35 से अधिक आम लोगों को चरमपंथी बताकर मार दिया. सेना पर शव जलाने के भी आरोप लगाए गए हैं.
चैरिटी संस्था का दावा है कि इस घटना में कम से कम 38 लोग मारे गए हैं. इनमें से अधिकांश के शव बरामद हो गए हैं.
संस्था ने अपने बयान में कहा है, काया राज्य में सेना ने लोगों को उनकी कारों से निकालकर, गिरफ़्तार कर और उन्हें मारकर उनके शव जला दिए. मरने वालों में बच्चों और महिलाओं के भी होने का दावा किया गया है.
'घर लौट रहे थे दोनों कर्मचारी'
बयान के अनुसार, उनके दोनों लापताकर्मचारी संस्था के मानवीय काम पूरा करने के बाद छुट्टी बिताने अपने घर जा रहे थे.
संस्था ने बताया कि वे दोनों सेना की कार्रवाई में पकड़े गए और तभी से लापता हैं. संस्था का दावा है कि उनकी निजी गाड़ियों पर हमले हुए और उनमें आग लगा दी गई.
सेव द चिल्ड्रेन का कहना है कि वो आम बेक़सूर लोगों और उनके कर्मचारियों के साथ हुई हिंसा की इन घटनाओं से हतप्रभ है.
हालांकि म्यांमार की सेना का दावा है कि मरने वाले सभी चरमपंथी थे. सेना ने बताया कि उसने इलाक़े में कई हथियारबंद चरमपंथियों को मारा है.
ग़ौरतलब है कि इस साल फ़रवरी में सेना ने अचानक से चुनी हुई नेता आंग सान सू ची को हिरासत में लेकर देश में तख़्तापलट कर दिया.
उस समय से पूरे म्यांमार में आम लोगों का विरोध प्रदर्शन जारी है. इन प्रदर्शनों को दबाने के लिए सेना ने काफ़ी बल प्रयोग किया. सेना पर तब से कई लोगों की हत्या करने के आरोप लगाए गए हैं.
इसी महीने आंग सान सू ची को चार साल की सज़ा सुनाई गई. बाद में उसे घटाकर दो साल कर दिया गया. (bbc.com)
मलेशिया में पिछले कई दशक में आई सबसे भीषण बाढ़ में अब तक 40 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
समाचार एजेंसी एफ़पी ने अधिकारियों के अनुसार, मलेशिया में पिछले कुछ सालों की सबसे भीषण बाढ़ से शनिवार तक मरने वालों की संख्या बढ़कर 46 हो गई है. वहीं पांच लोग अभी तक लापता हैं.
यह आपदा लगातार हुई मूसलाधार बारिश से नदियों के उफान पर पहुंच जाने से आई है. इस आपदा के चलते यहां हज़ारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है. साथ ही, कई शहरों में पानी भर गया और प्रमुख सड़कों के बह जाने से संपर्क कट गया है.
राजधानी कुआलालंपुर के चारों ओर फैला, मलेशिया का सबसे घनी आबादी वाला सेलंगोर राज्यइस बाढ़ से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ है. बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित होने वाला दूसरा राज्य पहांग है.
बाढ़ के कारण हज़ारों लोग पानी में घिर गए हैं. बचाव टीम कई लोगों को बचाने में सफल रही है. हालांकि अधिकारियों का कहना है कि, कई लोग अभी भी लापता हैं.
बाढ़ की चेतावनी जारी करने में विफल रहने और राहत और बचाव प्रयासों के धीमा रहने के लिए मलेशिया की सरकार की काफ़ी आलोचना हो रही है.
दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में नवंबर से फरवरी के बीच मानसून के चलते अच्छी बारिश होती है. यही वजह है कि इस दौरान देश में बाढ़ आती है. जानकारों के अनुसार, इस ताज़ा आपदा की वजह ग्लोबल वार्मिंग हो सकती है. (bbc.com)
जोहान्सबर्ग, 25 दिसंबर| दक्षिण अफ्रीका ने तत्काल प्रभाव से कोविड-19 के पुष्ट मामलों के संपर्को का पता लगाना और उन्हें क्वारंटीन करना बंद कर दिया है। देश के स्वास्थ्य विभाग ने यह जानकारी दी। स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक सैंडिले बुथेलेजी ने कहा, "सभी संपर्क ट्रेसिंग को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाता है, सिवाय सामूहिक सेटिंग्स और क्लस्टर प्रकोप स्थितियों या स्वयं निहित सेटिंग्स को छोड़कर। सभी संपर्कों का परीक्षण तब तक नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि उनमें लक्षण विकसित न हों।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा कि सभी संपर्कों (कोविड मरीज के) को किसी भी शुरुआती लक्षणों की जांच के साथ अपने सामान्य कर्तव्यों के साथ दैनिक तापमान परीक्षण जारी रखना चाहिए।
स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक ने आगे कहा कि यदि संपर्क लक्षण विकसित करते हैं, तो उनका परीक्षण किया जाना चाहिए और लक्षणों की गंभीरता के अनुसार उनका प्रबंधन किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, "सभी क्वारंटीन को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाना है। यह टीकाकरण और बिना टीकाकरण दोनों संपर्कों पर लागू होता है। अगर संपर्क में आए व्यक्ति को कोई लक्षण नहीं है तब तक जोखिम के बावजूद कोविड-19 के परीक्षण की आवश्यकता नहीं है।"
यह कहते हुए कि आइसोलेशन के बाद काम पर लौटने से पहले कोविड-19 परीक्षण करने की कोई आवश्यकता नहीं है, बुथेलेजी ने कहा कि जो लोग संक्रमित हो गए हैं और आइसोलेशन में हैं, वे व्यक्ति की नैदानिक (क्लीनिकल) स्थिति के आधार पर आठ या 10 दिनों के बाद काम पर लौट सकते हैं। (आईएएनएस)
मॉस्को/सैन फ्रांसिस्को, 25 दिसम्बर | एक रूसी अदालत ने देश में अवैध मानी जाने वाले कंटेंट को हटाने में कथित विफलता के लिए गूगल पर 98 मिलियन डॉलर का जुर्माना लगाया है। मॉस्को की एक अदालत ने देश के कानून द्वारा प्रतिबंधित कंटेंट को हटाने में विफल रहने पर मेटा (पूर्व में फेसबुक) पर 27 मिलियन डॉलर का जुर्माना भी लगाया।
रूसी समाचार सेवा इंटरफैक्स ने बताया कि न्यायाधीश ने फेडरल सर्विस फॉर सुपरविजन ऑफ कम्युनिकेशंस, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एंड मास मीडिया (रोसकोम्नाडजोर) द्वारा प्रदान की गई गूगल की वार्षिक आय के बारे में जानकारी के आधार पर जुर्माना राशि की गणना की।
इंटरफैक्स ने शुक्रवार को देर से कहा कि प्रशासनिक अपराध के कैलेंडर वर्ष से पहले के कैलेंडर वर्ष में बैनर कंटेंट को हटाने का अपराध कुल राजस्व के 5 प्रतिशत से 10 प्रतिशत के जुर्माने के साथ दंडनीय है।
गूगल और मेटा पर जुर्माना तब लगा जब रूस ने बड़ी टेक फर्मों और लोगों द्वारा अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित कंटेंट पर अधिक नियंत्रण कर लिया है।
गूगल ने एक बयान में द वर्ज को बताया कि वह 'अदालत के दस्तावेजों का अध्ययन करेगा जब वे उपलब्ध होंगे और फिर अगले चरणों पर निर्णय लेगा।'
इस सप्ताह की शुरूआत में, प्रतिबंधित कंटेंट को ठीक करने में विफल रहने के लिए ट्विटर पर 3 मिलियन रूबल (40,000 डॉलर) का जुर्माना भी लगाया गया था।
रोसकोम्नाडजोर के अनुसार, फेसबुक और इंस्टाग्राम 2,000 कंटेंट को हटाने में विफल रहे हैं और गूगल ऐसी लगभग 2,600 कंटेंट को ठीक करने में विफल रहा है। (आईएएनएस)
कुआलालंपुर, 25 दिसम्बर | मलेशिया में भीषण बाढ़ में मरने वालों की संख्या बढ़कर 41 हो गई है। ये जानकारी अधिकारियों ने दी। पुलिस महानिरीक्षक एक्रिल सानी अब्दुल्ला सानी ने एक मीडिया ब्रीफिंग में बताया कि मृतकों के अलावा, कम से कम 8 अन्य लोगों के लापता होने की सूचना है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, रिपोर्ट किए गए 41 मामलों में से, सेलांगोर में 25 मौतें, पहांग में 15 मौतें और केलंतन में एक मौत हुई, पीड़ितों में 26 पुरुष, 13 महिलाएं और 2 बच्चे शामिल हैं।
मलेशियाई समाज कल्याण विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 6 राज्यों और संघीय क्षेत्र कुआलालंपुर में बाढ़ के कारण विस्थापित लोगों की संख्या घटकर 46,524 रह गई है।
सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य पहांग प्रायद्वीप मलेशिया के पूर्वी तट के साथ बना हुआ है, जिसमें 26,000 से ज्यादा लोगों को बाढ़ राहत केंद्रों में पहुंचाया गया है। इसके बाद सेलांगोर राज्य में 18,000 से ज्यादा लोगों को निकाला गया है।
देश के मौसम विभाग ने शनिवार को बारिश और तूफान के साथ प्रायद्वीप मलेशिया के दक्षिणी हिस्से और उत्तरी बोर्नियो राज्यों सबा और सरवाक में और बारिश होने की चेतावनी दी है। (आईएएनएस)
दक्षिण कोरिया की आबादी तेजी से कम हो रही है. आर्थिक प्रोत्साहन के बावजूद यहां के लोग कम बच्चे पैदा कर रहे हैं. आखिर इसकी वजह क्या है?
डॉयचे वैले पर जूलियान रायल की रिपोर्ट-
दक्षिण कोरिया दशकों से घटती आबादी से जूझ रहा है. एशिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश में दिसंबर में सरकारी आंकड़ा जारी हुआ है. इस आंकड़े से पता चलता है कि लगातार कम होती आबादी से निपटने के लिए किए गए सारे प्रयास विफल होते दिख रहे हैं.
दक्षिण कोरिया के सांख्यिकी विभाग की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, देश की जनसंख्या 2021 के अंत तक 0.18 प्रतिशत कम होकर कुल 5.2 करोड़ रह जाएगी.
सांख्यिकी और जनगणना से जुड़े सरकारी विभाग ने सबसे खराब स्थिति का भी मूल्यांकन किया है. इसके मुताबिक, 2120 तक देश की कुल आबादी कम होकर 1.2 करोड़ हो जाएगी. आज की कुल आबादी का 23 प्रतिशत हो जाएगी. दूसरे शब्दों में कहें, तो अगले 100 साल में दक्षिण कोरिया की आबादी 77 प्रतिशत कम हो जाएगी.
इसके अलावा, सरकारी विभाग ने अनुमान लगाया है कि देश की मौजूदा आबादी की औसत उम्र फिलहाल 43 साल है. 2070 तक यह औसत उम्र 62 साल हो जाएगी.
जनसंख्या में गिरावट की चुनौतियों से लंबे समय से जूझ रहे दक्षिण कोरिया के लिए ये आंकड़े आश्चर्य की बात नहीं हैं. बढ़ती औसत उम्र और घटती जन्म दर की वजह से, देश की कामकाजी आबादी कम होती है और यह परेशानी का बड़ा कारण बन सकता है. इससे देश को स्वास्थ्य से जुड़े क्षेत्र में काफी ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है. साथ ही, देश की आय में भी गिरावट होती है.
सरकार इस चुनौती से निपटने के लिए काफी ज्यादा प्रयास कर रही है. इसके लिए, 2020 तक कुल 225 ट्रिलियन डॉलर खर्च किया जा चुका है. लोगों को एक से ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए आर्थिक रूप से मदद की जा रही है. हालांकि, अब तक इस प्रोत्साहन का ज्यादा असर देखने को नहीं मिला है.
परिवारों पर भारी दबाव
टोक्यो की इंटरनेशनल क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर ओहे हे-ग्योंग कहती हैं, "यह आज की समस्या नहीं है. देश लंबे समय से इस समस्या से जूझ रहा है. मुझे लगता है कि हाल के वर्षों में चीजें बदतर हो गई हैं. कुछ हद तक, महामारी की वजह से भी ऐसा हुआ है."
ग्योंग ने डॉयचे वेले को बताया, "यह एक संरचनात्मक मुद्दा है. कई वर्षों से कोरियाई समाज इससे प्रभावित है. इसके कई कारण हैं. मुझे लगता है कि ‘शिक्षा से जुड़े जुनून' की वजह से सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे हर हाल में सफल हों. जनसंख्या में लगातार हो रही कमी के पीछे यह एक बड़ा कारण है."
उन्होंने कहा कि दक्षिण कोरिया तेजी से विकसित हुआ है. आर्थिक विकास की वजह से आज के स्कूली बच्चों के लिए ऐसे अवसर पैदा हुए हैं जिनके बारे में उनके दादा-दादी के समय कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, क्योंकि 1950-53 के कोरियाई युद्ध के बाद राष्ट्र का पुनर्निर्माण हुआ था. ऐसे में यह धारणा काफी मजबूत हुई है कि बेहतर शिक्षा से ही बच्चों को भविष्य में नौकरी के बेहतर अवसर मिल सकते हैं और उनकी जिंदगी खुशहाल हो सकती है.
ग्योंग आगे बताती हैं, "सभी माता-पिता अपने बच्चों को ‘बेहतर शिक्षा' देना चाहते हैं. इसके लिए वे अपनी कुल आय का 50 प्रतिशत तक शिक्षा पर खर्च करते हैं. यह परिवारों पर बड़ा बोझ है. इसका मतलब यह भी है कि अधिकांश जोड़े केवल एक बच्चा पैदा कर सकते हैं."
सोल नेशनल यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री पार्क सेंग-इन कहते हैं, "अगर कोई युवा स्कूल या विश्वविद्यालय छोड़ देता है, तो उसके ऊपर काफी ज्यादा दबाव पड़ता है. यह कोरिया के कॉर्पोरेट वर्ल्ड और समाज के भीतर का संरचनात्मक मुद्दा है."
वह कहते हैं, "आज की युवा पीढ़ी को सुरक्षित और अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी ढूंढ़ने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. यहां तक कि शीर्ष कंपनियों में सुरक्षित पदों पर काम करने वाले लोग भी वहां करीब 45 साल की उम्र तक काम करते हैं. इसके बाद उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे इस नौकरी को छोड़कर अपना खुद का काम शुरू करें."
युवाओं के बीच असुरक्षा की भावना
इसी तरह, 20 से 30 साल के ऐसे युवा जो सुरक्षित और अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी नहीं ढूंढ पाते हैं, उन्हें कम सुरक्षा वाली पार्ट-टाइम नौकरी करने के लिए मजबूर किया जाता है. सेंग-इन कहते हैं कि इससे अनिश्चितता की भावना बढ़ती है. इसका असर परिवार शुरू करने जैसी भविष्य की योजनाओं पर भी पड़ता है.
जनसंख्या कम होने के पीछे की एक वजह यह भी है कि अब महिलाएं काफी ज्यादा उम्र में बच्चे पैदा कर रही हैं. कुछ महिलाएं बेहतर पढ़ाई करने और अपना करियर संवारने के लिए, बच्चा न पैदा करने का भी फैसला ले रही हैं.
सोल मेट्रोपॉलिटन सरकार की तरफ से 16 दिसंबर को जारी किए गए आंकड़े बताते हैं कि शहर में होने वाली शादियों की संख्या पिछले 20 वर्षों में 43% कम हो गई है. वर्ष 2000 में कुल 78,745 शादियां हुई थीं, जो पिछले साल 2020 में कम होकर 44,746 पर सिमट गईं. 2020 में शादी की औसत उम्र 33 साल थी. वहीं, इससे दो दशक पहले यह औसत उम्र 29 साल थी.
दक्षिण कोरिया में जन्म दर दुनिया में सबसे कम है. यह दर प्रति महिला महज 0.8 बच्चा है. जबकि, जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने के लिए, किसी भी देश में जन्म दर प्रति महिला 2.1 बच्चे की होनी चाहिए.
सेंग-इन ने डीडब्ल्यू को बताया कि ऐसी संभावना बनती दिख रही है कि भविष्य की सरकार कर्मचारियों के लिए अनिवार्य सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ा सकती है. इससे पेंशन पर होने वाले खर्चे में कमी आएगी.
वहीं, दूसरी ओर ग्योंग घटती आबादी को 'बंटते हुए समाज' के तौर पर देखती हैं. उनका मानना है कि ऐसे समाज में लोगों के पास शिक्षा और खुशहाल भविष्य पर खर्च करने के लिए कम पैसे होंगे. (dw.com)
दुनिया भर में, कोयला उत्पादक देश, जीवाश्म ईंधन से निजात पाने के लिए एक न्यायसंगत बदलाव के संघर्ष में लगे हैं. लेकिन यूक्रेन के डोनबास इलाके को लगता है कि बंद हुई खदानें एक पारिस्थितिकीय विनाश की ओर इशारा कर रही हैं.
डॉयचे वैले पर गुइलाउमे प्ताक की रिपोर्ट-
82 साल की पेंशनर ल्युडमिला इवानोव्ना तारासोवा कोमीशुवाखा नदी की ओर निगाह डालते हुए कहती हैं, "युद्ध शुरू होने से पहले, मैं इसी पानी से अपना बागीचा सींच लेती थी. लेकिन अब ये किसी लायक नहीं रहा.” इधर वो ये बता रही होती हैं उधर नदी का पानी नारंगी बेचैनी में बहता जाता है. (विषैले पदार्थो ने पानी का रंग बदल दिया है और उसका इस्तेमाल करना संभव नहीं.)
पूर्वी यूक्रेन में जोलोते के बाहरी हिस्से में एक छोटे से लकड़ी के मकान में तारासोवा रहती हैं. पास में ही बहने वाली कोमीशुवाखा नदी, सेवेरस्की डोनेट्स नदी की सहायक नदी है. वही युद्ध से तबाह डोनबास इलाके में ताजे पानी का प्रमुख स्रोत है. हाल के सप्ताहों में, यूक्रेन का सबसे पूर्वी भाग एक बार फिर सबकी नजरों में आ गया है. सीमा पर सेना के अप्रत्याशित जमावड़े के साथ ही उस पर रूसी हमले का खतरा मंडराने लगा है.
डोनबास में साढ़े 60 लाख निवासियों की रिहाइश है. वो यूक्रेन का सबसे बड़ा औद्योगिक ठिकाना ही नहीं, एक प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र भी है. 200 साल के दरमियान अनुमानतः 15 अरब टन कोयला इस इलाके से निकाला जा चुका है.
सोवियत संघ के पतन के बाद डोनबास की कई खदानों से लाभ मिलना बंद हुआ तो वे बंद होने लगीं. यूक्रेन और रूस से सहायता प्राप्त अलगाववादियों के बीच सात साल पहले संघर्ष छिड़ा, तबसे कई और खदानें बेकार और जर्जर हो चुकी हैं.
पहली नजर में ये भले ही पर्यावरण की जीत नजर आती हो लेकिन वास्तव में ये उस पारिस्थितिकीय विनाश की की लिखित घोषणा है जो बंद खदानों के बहुत खराब प्रबंधन की वजह से अवश्यंभावी हो जाता है.
दूषित पानी की चपेट में लाखों लोग
जब एक खदान काम करना बंद कर देती है, तो पानी को भूमिगत शाफ्टों और चैंबरों के जरिए लगातार निकालना होता है ताकि वो बाढ़ की शक्ल न अख्तियार कर ले. इसके चलते भूजल, भारी धातुओं से दूषित हो सकता है. वो आगे चलकर आसपास की मिट्टी में भी धंसकर उसे खेती के लिहाज से बेकार कर देता है.
यूक्रेन के सामरिक अध्ययनों के राष्ट्रीय संस्थान की 2019 की एक रिपोर्ट ने बाढग्रस्त खदानों के रासायनिक प्रदूषण को अलगाववादियों के प्रभाव वाले इलाकों में रहने वाले कम से कम तीन लाख लोगों के लिए एक आपात खतरा कहा है, जबकि संपर्क रेखा के करीब रहने वाला हर चौथा निवासी- पीने के पानी के भरोसेमंद स्रोत से पहले ही महरूम है. ये संपर्क रेखा, जमीन का वो हिस्सा है जो सरकार और गैर-सरकार नियंत्रित भूभागों को अलग करता है.
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस ऑफ यूक्रेन में सीनियर रिसर्च फेलो जलविज्ञानी एवगेनी याकोवलेव, डोनबास इलाके के सूरतेहाल के हवाले से कहते हैं, "पेट और आंत के गंभीर संक्रमणों वाली बीमारियों के मामले, खासकर चार साल से कम उम्र के बच्चों में, यूक्रेन की औसत से दर्जनों गुना ज्यादा हो चुके हैं.”
2017 में याकोवलेव ने डोनबास मे कोयला खदानों के बाढ़ में डूबने और पानी की गुणवत्ता पर उसके असर को लेकर सबसे ताजा व्यापक सर्वे किया था. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "केंद्रीकृत सप्लाई सिस्टम के बाहर बतौर सैंपल जो 90 फीसदी पानी लिया गया वो पीने लायक नहीं है.”
डोनबास का अधिकांश पानी 300 किलोमीटर लंबी सिवेरस्काई डोनेट्स-डोनबास नहर से आता है. इसकी देखरेख का जिम्मा यूक्रेन की एक सार्वजनिक कंपनी वोडा डोनबासु पर है. लेकिन पानी का ये रास्ता लड़ाई के मोर्चे के ऐन भीतर पड़ता है लिहाजा अक्सर क्षतिग्रस्त भी हो जाता है. इसके चलते विवश लोग कुओं के दूषित पानी का सहारा लेते हैं.
इस अग्रिम पंक्ति के दोनों तरफ के अध्ययनों में याकोवलेव का अध्ययन आखिरी था. और 2017 से यूक्रेन के नियंत्रण से बाहर के इलाकों में पर्यावरणीय क्षति का कोई डाटा उपलब्ध नहीं कराया गया है.
पिछले कुछ साल के दौरान यूक्रेन सरकार, डोनेत्स्क और लुहान्स्क के स्वयंभू जनतांत्रिक राज्यों पर आवश्यक पर्यावरणीय सावधानियों के बगैर खदानों को बंद कर देने का आरोप लगाती रही है.
रेडियोधर्मी नदियां?
विशेष चिंता, येनाकीवे में युनकोम कोयला खदान क्षेत्र से जुड़ी है जहां 1979 में मीथेन गैस को निकालने के लिए सोवियत अधिकारियों ने 0.3 किलोटन का भूमिगत एटमी बम विस्फोट किया था.
2018 में अलगाववादी प्रशासन ने खदान की देखरेख में आ रही महंगी लागत को देखते हुए उसे बंद करने का फैसला किया. यूक्रेन के अधिकारियों ने कहा है कि उस फैसले की वजह से खदान के निचले स्तरों पर पानी रिसने लगा, बम की वजह से भूजल दूषित हो गया और उसके चलते कालमियस और सेवेरस्काई डोनेट्स नदियों में, यहां तक कि काला सागर से आगे भी, सक्रिय रेडियोन्यूक्लाइडों की मौजूदगी की आशंका बढ़ गई.
स्वयंभू डोनेत्स्क पीपल्स रिपब्लिक (डीपीआर) के ऊर्जा मंत्रालय ने इस बीच किसी किस्म की समस्या से इंकार किया है. उसने डीडबल्यू को बताया कि मौजूदा यूक्रेन में कठिन पर्यावरणीय हालात के उलट डीपीआर में कोई पर्यावरणीय क्षति नहीं हो रही है.
कोमीशुवाखा नदी का प्रदूषित पानी
फिर भी कुछ लोग मानते हैं कि यूक्रेन सरकार के लिए अलगाववादियों को जिम्मेदार ठहराना आसान है, लेकिन वो उन समस्याओं का हल नहीं निकाल पा रही जो उसकी अपनी तरफ बनी हुई है. फ्रांसीसी मानवाधिकार एनजीओ एक्टेड के समन्वयक बेनो गेरफोल्ट के मुताबिक, यूक्रेन के सरकारी प्रतिनिधि अक्सर उत्तेजक बयानबाजी में फंसे रहते हैं. और इन मुद्दों का सीमा-पार सहयोग से हल करने में कम रुचि रखते हैं.
खदानों का नेटवर्क आपस में जुड़ा है. इसे देखते हुए संघर्ष रेखा के एक सिरे पर होने वाला नुकसान और नजरअंदाजी एकाएक पूरे देश के लिए समस्या बन सकती है. मई 2018 में, अलगाववादी सीमा के पीछे स्थित बाढ़ग्रस्त रोडीना और होलुबोव्स्का कोयला खदानों का पानी, सरकार अधिकृत भूभाग की जोलोते खदान में 2000 घन मीटर प्रति घंटा की रफ्तार से घुस गया.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस जल प्लावन से निपटने में असमर्थ रहने पर जोलोटे की व्यवस्थाएं तब से दिन रात खदान का दूषित पानी खींच रही हैं और उसे बगैर साफ किए, कोमीशुवाखा नदी में उड़ेल दे रही हैं.
‘ट्रुथ हाउंड्स' नाम के एक खोजी एनजीओ के हालिया विश्लेषण ने पाया कि इस नदी का पानी क्लोराइड, सल्फेट और मैंगनीज के स्तर से जुड़े कानूनी सुरक्षा पैमानों को काफी लांघ चुका है. जोलोते के नागरिक-सैन्य प्रशासन के प्रमुख ओलेकसाई बाबचेन्को कहते हैं, "तकनीकी उद्देश्यो के लिए भी, मवेशियों के लिए भी, पानी नहीं बचा है. फसलों को पानी देना भी मुमकिन नहीं रह गया है.”
नदी का प्रदूषण तेजी से दिखता भी जा रहा है, तो स्थानीय लोग पानी के लिए अन्य जगहों का रुख कर रहे हैं. पेंशनर तारासोवा कहती हैं, "अपने बागीचे के लिए मैं अब बारिश का जमा पानी इस्तेमाल करती हूं.” खाना पकाने के लिए वो एक स्थानीय जल धारा से पानी लाकर उसे उबालती हैं लेकिन पीने के लिए वो जोलोते के एक स्टोर के बोतलबंद पानी पर ही भरोसा करती हैं. 82 साल की महिला के लिए वहां तक आनाजाना भी एक चुनौती है.
वह कहती हैं, "ये आसान तो नहीं है, लेकिन मैं और कर भी क्या सकती हूं?” डोनबास की कोयला खदानों में पानी भर जाने से मीथेन गैस का रिसाव भी हुआ है. उससे विस्फोटों और भूकंपों के खतरे भी बढ़े हैं. भूजल का स्तर बढ़ने पर, दबी हुई मिट्टी की सघनता गिर जाती है और वो खिसकने लगती है, जिससे भूकंपीय हरकत होती है.
बाबचेन्को कहते हैं, "जोलोते की इन खदानो में आएं तो यहां गैस की गंध आती है जैसे किसी ने रसोई में चूल्हे का बटन खुला छोड़ दिया हो.” और फिर धंसाव तो है ही. बड़ी तादाद में खदान वाले इलाकों में शाफ्ट जब बाढ़ आने पर ढह जाते हैं तो उनके ऊपर की जमीन खिसकने और धंसने लगती है. कुछ अनुमानों के मुताबिक डोनबास में 12 हजार हेक्टेयर यानी 29 हजार एकड़ का कुल इलाका धंसाव के खतरे की चपेट में है.
ओएसीसी ने आगाह किया है कि उसके चलते भूस्खलन हो सकते हैं और इंजीनियरिंग और संचार के बुनियादी ढांचे फेल हो सकते हैं- गैस लाइनें, सीवेज और जल-आपूर्ति प्रणालियां भी इनमें शामिल हैं. जलविज्ञानी याकोवलेव कहते हैं कि समूचे शहर रहने लायक नहीं बचेंगे.
जोलोते के बारे में बाबचेंको कहते हैं, "जमीन धंस रही है, तो इमारतों में दरारें उभरने लगी हैं. एक स्थानीय स्कूल को लगातार मरम्मत की जरूरत रहती है.”
युद्ध क्षेत्र और न्यायसंगत परिवर्तन का संकल्प
पिछले महीने ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन में यूक्रेन ने 2035 तक कोयला छोड़ने का संकल्प किया था. लेकिन अधिकारियों का कहना है कि डोनबास में दो सदी पुराने उद्योग को समेटना और कामगारों के अधिकारों और रोजीरोटी की सुरक्षा करते हुए फॉसिल ईंधन से छुटकारा पाकर न्यायसंगत बदलाव को सुनिश्चित करना एक चुनौती है और ये दूसरे कोयला उत्पादक देशों से काफी अलग है.
बाबचेंको के मुताबिक नियमित बमबारी के बावजूद जोलोते की बचीखुची कोयला खदानों में करीब 3500 लोग अब भी काम करते हैं. उनका कहना है कि बड़े पैमान पर निवेश किए बगैर उन्हें बंद करना एक सामाजिक-आर्थिक तबाही की तरह होगा.
वह कहते हैं, "हमें खदानों को बंद करने के लिए पर्यावरणीय लिहाज से सुरक्षित तरीकों में निवेश के साथ साथ कामगारों के लिए सामाजिक और रोजगार कार्यक्रमों में भी निवेश करना होगा.”
बाबचेंको कहते हैं, "बहुत से लोग फ्रांस, जर्मनी और इंग्लैंड के अनुभवों के बारे में हमसे बात करते हैं.” "लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि इनमें से कोई भी देश, सक्रिय सैन्य संघर्ष क्षेत्र नहीं रहा है.” (dw.com)
जेम्स वेब अंतरिक्ष दूरबीन को ये नाम जिस व्यक्ति से मिला है उस पर होमोफोबिया यानी समलैंगिकों से घोर नफरत रखने का आरोप रहा है. आज वैज्ञानिक इस मुद्दे पर बंटे हुए हैं. क्या अगली पीढ़ी इस विवाद से दूर रह पाएगी?
डॉयचे वैले पर जुल्फिकार अबानी की रिपोर्ट-
"नासा का विशाल होमोफोबिक दूरबीन का नाम बदलने से इंकार” – खबरों के ऐसे शीर्षक सामने आते हैं तो उनसे निगाह हटाना मुश्किल हो जाता है. या फिर ऐसे ट्वीटः "तो हमारे पास होगी नाजी-प्रिय एक होमोफोबियाग्रस्त अंतरिक्ष दूरबीन. इसमें भला कैसा ताज्जुब कि हमारा देश कितना गिर चुका है.”
या ये ट्वीटः "नस्ली मुद्दों पर किसी के प्रगतिशील नजरिए की दलील पेश करना, समलैंगिकों के प्रति उनकी नफरत को अनदेखा करने की कोशिश है और ये एंटी-ब्लैक यानी कालों के विरुद्ध है. इसके जरिए विपरीतलिंगी और पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को मानने वाले कालों का इस्तेमाल कवच की तरह किया जाता है और क्वीअर यानी समलैंगिक काले लोगों को मिटा दिया जाता है.”
अमेरिकी खगोलविज्ञान की दुनिया में इन दिनों चल रही तीखी बहस का अंदाजा लगाने के लिए आपको दूरबीन की जरूरत नहीं है. ये बहस है भेदभाव के बारे में, खासकर समलैंगिकों के प्रति नफरत के बारे में, इतिहास के दिग्गजों के बारे में जिनके नाम का इस्तेमाल सम्मान के साथ चीजों, खोजों और स्मारकों में किया जाता है. ये बहस जिम्मेदारी के बारे में भी है और उस चीज के बारे में भी जिसे सच का दर्जा हासिल है.
दिसंबर 2021 में हम इसी नाजुक बहस के मोड़ पर हैं जबकि इसी बीच नासा अंतरिक्ष में हबल के बाद, अपनी सबसे विशाल दूरबीन भेज रहा है. ये विभाजन और विवाद, युवा वैज्ञानिकों को इस फील्ड में आने से रोक रहे हैं. जाहिर है कि ये बहस, मनुष्यता की भलाई के लिए हासिल होने वाले रोमांचक वैज्ञानिक डाटा को खंगालने से भी ध्यान भटका सकती है.
अंतरिक्ष दूरबीन के बारे में
बहस के केंद्र में है जेम्स वेब अंतरिक्ष दूरबीन. 1990 में हबल को अंतरिक्ष में स्थापित करने से पहले ही वैज्ञानिकों ने इस दूरबीन पर काम करना शुरू कर दिया था. लेकिन नासा का कहना है कि जेम्स वेब, हबल की ना तो उत्तराधिकारी है, न ही उसका विकल्प. वो हबल का विस्तार है यानी उसकी रेंज में इजाफा करने के लिए तैयार की गई है. हबल से उलट, वो इंफ्रारेड रेंज में प्रकाश की शिनाख्त करेगी. तभी खगोलविज्ञानी, अंतरिक्ष में धूल और गैस के बादलों के पार देख पाएंगे और उन परिघटनाओं से जुड़ी और साफ स्पष्ट तस्वीरें हासिल कर पाएंगे जिनसे ये पता चलेगा कि आज से साढ़े 13 अरब साल पहले, सबसे प्रारंभिक सितारे और आकाशगंगाएं कैसे निर्मित हुई थीं.
इस दूरबीन को तैयार होने में बहुत लंबा समय लगा है. अंतरिक्ष अनुसंधान के इतिहास में ये सबसे महंगे अभियानों में से भी एक है. संकल्पना से लेकर शुरुआती पंचवर्षीय ऑपरेशन के पूरा होने तक इसकी कीमत करीब दस अरब डॉलर आई है.
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने लॉन्च के लिए दो विज्ञान उपकरण और एक एरियान 5 रॉकेट मुहैया कराया है. लॉन्च 25 दिसंबर के लिए निर्धारित किया गया है. और ईयू ने 70 करोड़ यूरो खर्च किए हैं. कनाडा की स्पेस एजेंसी ने 20 करोड़ कनाडाई डॉलर की कीमत वाले सेंसर और उपकरण मुहैया कराए हैं.
अंतरिक्ष के लिए ये एक बड़ा अवसर है. और इसीलिए ये स्वाभाविक है कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष खोज में दूरबीन को "स्मारक” का दर्जा भी कुछ लोगों ने दिया है.
जेम्स वेब की कहानी
जेम्स वेब नासा के दूसरे प्रशासक थे. यानी उसके प्रमुख या निदेशक थे, और उस पद पर 1961 से 1968 तक कार्यरत रहे थे. उससे पहले वो अमेरिकी विदेश विभाग में अंडर सेकेट्री के पद पर थे. 2002 में नासा के तत्कालीन प्रशासक शॉं ओ कीफे ने वेब के सम्मान में, निर्माणाधीन दूरबीन का नाम "नेक्स्ट जेनरेशन स्पेस टेलिस्कोप” यानी "अगली पीढ़ी की अंतरिक्ष दूरबीन” से बदलकर, जेम्स वेब के नाम पर रखने का फैसला किया.
डीडबल्यू को भेजे ईमेल में एक प्रवक्ता ने बताया कि "नासा के शुरुआती वर्षों में जेम्स वेब ने एक सक्रिय वैज्ञानिक कार्यक्रम को बहाल रखने में अहम भूमिका निभाई थी.” वह शीत युद्ध का दौर था, और अमेरिका में सामाजिक उथल-पुथल का. अमेरिका के चांद अभियानों का भी वो दौर था.
चांद पर जाना अमेरिका या किसी औऱ देश के लिए कोई आसान काम न था. वह एक तीखा और तपिश भरा राजनीतिक समय था और दुनिया दूसरे विश्व युद्ध से उबर ही रही थी. ऐसे अभियानों में अपार धनराशि खर्च होनी थी जिसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल था.
जेम्स वेब राजनीति के माहिर खिलाड़ी थे और उस सबके केंद्र में विज्ञान को रखने में सफल भी रहे. उनकी इसी सामरिक चतुराई के सम्मान में दूरबीन को उनका नाम देने का विचार बना. लेकिन क्या मौलिक नाम में कोई खास कमी या त्रुटि थी? नासा ने इस पर कुछ नहीं कहा.
नासा के एलिस फिशर ने लिखित जवाब में इतना ही कहा, "अभियान का नाम बदलना वैसा ही है जैसे कि 2017 में सोलर प्रोब प्लस का नाम बदलकर पार्कर सोलर प्रोब कर देना- और ये असामान्य बात नहीं है.”
बात ऐतिहासिक समलैंगिक घृणा की
लेकिन दूरबीन को जेम्स वेब का नाम दिए जाने पर अमेरिका के खगोलविज्ञानियों में दोफाड़ है. कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि वेब समलैंगिकों से घृणा करते थे, और संभवतः विदेश विभाग और नासा की उन कोशिशों में शामिल भी थे जिनके जरिए गे लोगों की उपेक्षा की गई, नौकरी से निकाला गया और उनका "दमन” तक किया गया. इसलिए दूरबीन को वेब का नाम देकर सवाल ये है कि क्या नासा भेदभाव की विरासत का उत्सव मना रहा है और नयी पीढ़ी के खगोलविदों को एक नकारात्मक संकेत दे रहा है.
शिकागो के एडलर प्लेनीटेरियम में खगोलविद् और जेम्स वेब दूरबीन का नाम बदलने वाली याचिका की सह-लेखक लूसियाने वाल्कोविक्ज कहती हैं, "विज्ञान उन सवालों से पिंड नहीं छुड़ा सकता जिनसे समाज जूझ रहा होता है- हमारे समाज में पूर्वाग्रह, नस्लवाद, रंगभेद, लैंगिक भेदभाव, समलैंगिक घृणा व्याप्त हैं.”
वाल्कोविक्ज कहती हैं कि वैज्ञानिक बिरादरी "एलजीबीटीक्यू या हाशिये के लोगों, वंचितों, गैर-गोरों, लिंग-अनुरूपता के प्रतिरोधियों या विकलांगों को अभी भी अवांछित मानती है. ऐसे बहुत से तरीके हैं जिनके जरिए व्यापक तौर पर विज्ञान और खासतौर पर खगोलविज्ञान, बहुत से लोगों के प्रति उदासीन रवैया दिखाता रहा है.”
इसलिए भले ही जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप (जेडब्लूएसटी) एक हाई-प्रोफाइल मिशन की मिसाल है- मानव अभियांत्रिकी का एक उत्सव- लेकिन वाल्कोविक्ज कहती हैं कि "उस दूरबीन का अमेरिका में एक ज्यादा बड़ी खींचतान से संबंध है जो इधर स्मारकों और उनके नामधारियों को लेकर जारी बहस में उत्तेजना की चरम सीमा पर पहुंच चुकी है.”
नासा कहती है कि उसने वेब के खिलाफ आरोपों की जांच की है, और उसे कोई सबूत नहीं मिला है लिहाजा मिशन से उनका नाम हटाने की मांगों को उसने खारिज कर दिया है.
क्या वेब पर लगे आरोप गलत हैं?
‘अ क्वॉन्टम लाइफ' के लेखक और नेशनल सोसायटी ऑफ ब्लैक फिजिसिस्ट्स के निर्वाचित अध्यक्ष हकीम ओलुसेयी ने अपने लोकप्रिय ब्लॉग पोस्ट "नासा के इतिहास पुरुष जेम्स वेब क्या एक वैचारिक कट्टर हैं?”में वेब पर लगे आरोपों की विस्तार से छानबीन की है.
ओलुसेयी इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि वेब पर गलत इल्जाम लगाए गए हैं और आरोप लगाने वाले कई लोग इस सूचना को अनदेखा कर देते हैं कि वेब ने नासा में रहते हुए नस्ली समन्वय और समान अवसरों को प्रोत्साहित किया था.
ओलुसेयी कहते हैं कि "अगर ये सच होता कि जेम्स वेब उन चीजों के दोषी हैं जिनका दावा ये लोग करते हैं - और ये सच है भी नहीं – तो उस स्थिति में तो बेशक इसका कुछ मतलब होता.”
ओलुसेयी की दलील है कि आरोप लगाने वाले, वेब की पोजीशन और उस समय का संदर्भ देने में नाकाम रहे हैं- जैसे कि वेब विदेश विभाग में उच्च स्थान पर कभी थे भी नहीं. अपनी ब्लॉग पोस्ट में ओलुसेयी हैरानी जाहिर करते हुए बताते हैं, "अगर वेब ने सिर्फ एक ‘अच्छा सैनिक' होने के नाते आदेशों का पालन करते हुए गे लोगों का दमन किया था...तो ये न भूलिए कि उसी व्यक्ति ने नासा के ठिकानों में समन्वय बढ़ाने के हुक्म की तामील भी की थी.”
उन्हें गे लोगों के प्रति भेदभाव में दूर दूर तक वेब का हाथ नजर नहीं आता. ओलुसेयी वैसे मानते हैं कि शीत युद्ध के दौर में "सुरक्षा खतरों” के दायरे में गे भी रखे गए थे. वह कहते हैं, "अगर आप संघीय सरकार में लीडरशिप की भूमिका ऐसे समय में निभा रहे थे जब किसी भी समूह के विरोध वाली संघीय नीति अस्तित्व में रही थी तो आप अयोग्य ठहरा दिए जाते हैं.”
काले व्यक्ति के रूप में ओलुसेयी मानते हैं कि उन्हें भेदभाव का पता है कि वो कैसा होता है और कैसा महसूस होता है- एक मनोवैज्ञानिक रडार – वह उच्च अवस्था वाली संवेदनशीलता जो आप सालों से जूझते हुए विकसित कर लेते हैं.
अंध समर्थक और भक्त! कृपया दूर रहें
वाल्कोविक्ज और उनके सहकर्मी कहते हैं कि अगर आप निदेशक के रूप में दूसरे लोगों के अच्छे कामों का श्रेय ले सकते हैं, तो आपको उनकी नागवार हरकतों का उत्तरदायित्व भी लेना चाहिए. वाल्कोविक्ज कहती हैं, "क्या वे ऐसी तस्वीर चाहते हैं कि गे लोगों के लिए जेम्स वेब होने का मतलब क्या है?” उनके मुताबिक, "भेदभाव जैसा दिखता है उस बारे में ये एक कार्टूनी समझ है.”
"और क्या सबूत चाहिए, एक नासा कर्मचारी से पूछताछ की जाती है जिसे आखिरकार अपने यौनिक अनुकूलन के चलते नौकरी गंवानी पड़ती है? क्या जेम्स वेब तभी जिम्मेदार माने जाएंगे जब वो कमरे में खुद मौजूद होंगे. ”
ये बहस अब काफी लिथड़ चुकी है. बाहर से लगता है कि ओलुसेयी और वाल्कोविक्ज जैसे परस्पर पूर्व सहकर्मी एक नशीली झूम के साथ आपस में उलझे हुए हैं, और भावनाओं का ज्वार उफान पर है. ओलुसेयी कहते हैं, "लंबे समय तक हम लोग सहज थे.”
वाल्कोविक्ज इस मुद्दे पर किसी बहस को बेकार मानती हैं. वो कहती हैं, "खगोलविज्ञान में क्वीअर समुदाय के खिलाफ भेदभाव एक अनवरत समस्या है, इसका असर आज फील्ड में तैनात लोगों की जिंदगियों और नतीजों पर पड़ता है, इसमें जूनियर खगोलविद् भी शामिल हैं.”
अगली पीढ़ी पर प्रभाव
इस बहस की प्रकृति कुछ इस किस्म की है कि ये जूनियर खगोलविज्ञानियों के भविष्य को भी बरबाद कर सकती है. किसी भी पृष्ठभूमि के हों, युवा वैज्ञानिक भला उन ट्वीट पोस्ट से क्या नतीजा निकालेंगे जिनमें एक काले अमेरिकी वैज्ञानिक को बेतरह फटकारा जाता है. वो वैज्ञानिक, तथ्यों पर ये कहकर सवाल उठाता है कि आलोचक अपना "मुख्यधारा की पढ़त का चश्मा” साथ रखें.
कुछ लोग मानते हैं कि ऐसी बहस उस डाटा से भी ध्यान हटा सकती है जो वैज्ञानिकों के मुताबिक जेम्स वेब दूरबीन से सबके भले के लिए हासिल होगा. वाल्कोविक्ज कहती हैं, "ये थका देने वाला है. मुझे इसके बारे में सोचने की जरूरत नहीं है. मुझे उस नये डाटा को लेकर अपना रोमांच दिखाना चाहिए जो ये दूरबीन जुटाने वाली है. हम सब लोग बस डाटा को लेकर ही खुश होते रहना चाहते हैं.”
ओलुसेयी भी डीडबल्यू से बात करते हुए थके हुए दिखे. वो कहते हैं कि अपने नाम और प्रतिष्ठा पर सार्वजनिक हमले उन्होंने झेले हैं. यहां पर फिर वो सवाल उठता हैः क्या इसी निगाह से आज युवा वैज्ञानिकों को खगोलविज्ञान को देखना चाहिए?
ओलुसेयी कहते हैं, "तमाम राजनीति की तरह, शोर मचाते चरमपंथी ही ध्यान खींचने में सफल होते हैं, और उन खास दबंग लोगों के संपर्क भी तगड़े हैं और वे काफी स्मार्ट हैं.”
"वो विपक्ष या विरोध की परिभाषा तय करते हैं, लेकिन मैं विरोध में नहीं हूं. मैं उन्हीं की तरह इंसाफ चाहता हूं. मैं इतनी भीषण नाइंसाफी में पला-बढ़ा हूं कि बता नहीं सकता- लेकिन मैं कुछ और सोच रहा हूं. इसे पलट दो और अब मेरी बात सुनो.” (dw.com)
अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के बाद जापान ने भी बीजिंग ओलंपिक खेलों में सरकारी डेलिगेशन नहीं भेजने का फैसला किया है. जापान ने इसे बहिष्कार का नाम नहीं दिया है.
जापान अमेरिका का मित्र देश है और चीन उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. इस वजह से जापान एक कठिन स्थिति में है और उसने चीन के शिनजियांग और हांग कांग जैसे इलाकों में मानवाधिकारों की स्थिति पर अपने पश्चिमी साझेदारों के मुकाबले थोड़ा नरम रुख अपनाया है.
जापान के नए प्रधानमंत्री फुमिओ किशिदा ने मानवाधिकारों को अपनी कूटनीति का एक अहम हिस्सा बनाया है और इसके लिए एक विशेष सलाहकार पद भी बनाया है. उन्होंने यह भी कहा है कि उन्हें चीन के साथ रचनात्मक संबंध बनाने की उम्मीद है.
खेलों पर प्रश्न चिन्ह
हाल के हफ्तों में उनसे कई बार पूछा गया है कि बीजिंग ओलंपिक खेलों के बारे में क्या किया जाना चाहिए लेकिन उन्होंने बस इतना कहा कि वो जापान के राष्ट्र हित में व्यापक फैसला लेंगे.
इसे चीन में मानवाधिकारों के हालात का विरोध करने के लिए अमेरिका द्वारा खेलों का बहिष्कार करने की मांग से जोड़ कर देखा जा रहा है. हालांकि जापान की प्रतिक्रिया मिली जुली है. घोषणा के अनुसार जापानी सरकार के मंत्री खेलों में नहीं जाएंगे लेकिन तीन ओलंपिक अधिकारी खिलाड़ियों के साथ जाएंगे.
मुख्य कैबिनेट सचिव हीरोकाजु मात्सुनो ने एक समाचार वार्ता के दौरान कहा, "एक सरकारी प्रतिनिधि मंडल भेजने की हमारी कोई योजना नहीं है." उन्होंने आगे बताया कि टोक्यो ओलंपिक आयोजन समिति के अध्यक्ष सीको हाशिमोतो, जापानी ओलंपिक समिति के अध्यक्ष यासुहीरो यामाशीता और जापान पैरालंपिक समिति के अध्यक्ष काजूयूकि मोरी जाएंगे.
कूटनीति की दुविधा
मात्सुनो ने बताया कि तीनों अधिकारी अंतरराष्ट्रीय और पैरालंपिक ओलंपिक समितियों के निमंत्रण पर जा रहे हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या यह "कूटनीतिक बहिष्कार" है तो उन्होंने कहा, "हम कैसे उपस्थित रहेंगे इसकी व्याख्या करने के लिए हम एक विशेष शब्द का इस्तेमाल नहीं करते हैं."
मात्सुनो ने कहा, "जापान यह मानता है कि यह महत्वपूर्ण है कि चीन स्वतंत्रता, मूल मानवाधिकारों की इज्जत और विधि का शासन के सार्वभौमिक मूल्यों का विश्वास दिलाए." उन्होंने कहा कि जापान ने इन बिंदुओं पर विचार कर अपना फैसला लिया.
बीजिंग में ओलंपिक खेल 2022 में चार से 20 फरवरी तक होने हैं. जापान के खिलाड़ी इन खेलों में हिस्सा लेंगे. चीन ने अमेरिका और दूसरे देशों की आलोचना की है और कहा है कि उन्होंने राजनीतिक तटस्थता का उल्लंघन किया है जिसकी ओलंपिक चार्टर मांग करता है.
माना जा रहा है कि बहिष्कार की मांग के प्रति ऐसी मिली जुली प्रतिक्रिया देना जापान द्वारा चीन के नेतृत्व को सीधे नाराज ना करने की कोशिश है.अगले साल दोनों एशियाई पड़ोसी देशों के बीच कूटनीतिक रिश्तों के सामान्य होने की पचासवीं वर्षगांठ भी है.
सीके/एए (एपी, डीपीए)
जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर ने कहा है कि महामारी को मिटाने की जिम्मेदारी सरकार के साथ साथ, हर एक नागरिक पर है. अपने क्रिसमस भाषण में उन्होंने इस साल जर्मनी में आई भीषण बाढ़ का भी जिक्र किया.
डॉयचे वैले पर रिचर्ड कोनोर की रिपोर्ट-
क्रिसमस के मौके पर जर्मन राष्ट्रपति फ्रांस वाल्टर श्टाइनमायर मे जनता से अपील की है कि कोरोना जैसी महामारी को हराने के संदर्भ में वे आजादी, भरोसा और जिम्मेदारी के मायने एक बार फिर से समझने की कोशिश करें. शनिवार को जर्मन टीवी पर प्रसारित होने वाले उनके संदेश की लिखित प्रति से यह पता चला है. राष्ट्रपति ने कहा है कि सरकारें अकेले इस महामारी को खत्म नहीं कर सकतीं बल्कि इसे हराना का जिम्मा हर एक को निजी तौर पर लेना होगा. राष्ट्रपति ने उन लोगों का खास तौर पर शुक्रिया अदा किया जिन्होंने कोविड के टीके लिए हैं और सभी तरह के नियम कायदों का पालन कर अपनी जिम्मेदारी निभाई है.
'सरकार की अकेले की जिम्मेदारी नहीं'
महामारी के दौरान बढ़ चढ़ कर भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, नर्सों, सरकारी अधिकारियों और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को प्रशंसा और धन्यवाद ज्ञापन करते हुए श्टाइनमायर ने कहा, "सरकार का तो यह कर्तव्य है और उसे करना ही होगा, लेकिन केवल सरकार ही नहीं. हमारी जगह सरकार तो अपने ऊपर मास्क नहीं लगा सकती है और ना ही हमारी जगह खुद टीका लगवा सकती है. यानि यह हममें से हर एक के ऊपर है कि अपना फर्ज निभाएं."
जर्मनी में टीका लेना सभी के लिए अनिवार्य नहीं है लेकिन फिलहाल इसे अनिवार्य बनाने पर विचार हो रहा है. टीके के पक्ष और विपक्ष वाले लोगों में लंबी बहस चलती आई है. इस पर टिप्पणी करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, "हम समझते हैं कि दो साल के बाद लोग तंग आ गए हैं, सब परेशान हैं, इसके कारण कई बार हमें अलगाव की भावना और कभी कभी तो खुलेआम गुस्सा भी देखने को मिल रहा है."
श्टाइनमायर ने अपील की है कि लोगों को अपने वैचारिक मतभेद के कारण आपस में फूट नहीं पड़ने देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि एक लोकतंत्र में हर किसी की एक ही राय होना जरूरी नहीं है लेकिन यह याद रखना चाहिए कि "हम एक देश हैं. महामारी बीत जाने के बाद भी हमें एक दूसरे की आंखों में देखने की हालत में होना चाहिए."
पुरानी अवधारणाओं की याद
श्टाइनमायर ने उम्मीद जताई है कि "बेशकीमती पुराने शब्दों" का फिर से वजन बढ़ेगा. उन्होंने कहा, "भरोसे का क्या मतलब होता है? जाहिर है कि अंधविश्वास नहीं. लेकिन इसका मतलब यह तो हो सकता है कि ढंग की सलाह पर यकीन करें, भले ही मन की कुछ शंकाएं उस समय तक दूर नहीं हो पाई हों?"
राष्ट्रपति ने आजादी और जिम्मेदारी को लेकर अपनी समझ पर फिर से विचार करने की अपील की. उन्होंने कहा, "आजादी का मतलब क्या हर नियम के खिलाफ जोर शोर से विरोध प्रदर्शन करना है? क्या कभी इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि मैं खुद पर काबू रखूं ताकि सबकी आजादी को बचाया जा सके?" उन्होंने कहा कि इस तरह रवैया जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर सहमति बनाने में भी बहुत काम आएगा.
सकारात्मक बने रहें
अपने भाषण की शुरुआत में राष्ट्रपति इसी साल जर्मनी में आई भीषण बाढ़ का जिक्र करेंगे. जुलाई में देश के पश्चिमी हिस्से ने बाढ़ की तबाही झेली और अब तक हालात सामान्य नहीं हुए हैं. इसके अलावा इसी साल पश्चिमी सेनाओं ने अफगानिस्तान को छोड़ा जिसके बाद तालिबान ने फिर से वहां अपना कब्जा जमा लिया. ऐसे सभी घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, "जब हम इस साल पर नजर डालते हैं तो ऐसी कई चीजों को देख कर दुख होता है."
लेकिन बाढ़ की विभीषिका के दौरान और उसके कहीं बाद तक जिस तरह आम लोगों, स्वयंसेवियों ने आगे आकर बाढ़ पीड़ितों की मदद की उस पर राष्ट्रपति ने संतोष जताया. उन्होंने कहा, "मैं उन तमाम लोगों के बारे में सोच रहा हूं जिन्होंने बाढ़ पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाते हुए, दान और दूसरे तरीकों से मदद पहुंचाई." इस मौके पर जर्मन राष्ट्रपति ने देश के युवाओं के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अडिग रहने की प्रशंसा की. (dw.com)
जर्मनी और फ्रांस का कहना है कि पूर्वी यूक्रेन में युद्धविराम बना रहना चाहिए. नए साल में सुरक्षा वार्ता को लेकर रूस और अमेरिका अभी भी एक साथ नहीं आ पाए हैं.
जर्मनी और फ्रांस ने गुरुवार को यूक्रेन की सेना और रूस समर्थक अलगाववादी ताकतों से पूर्वी यूक्रेन में नए सिरे से संघर्ष विराम की प्रतिज्ञा का सम्मान करने का आग्रह किया है. बर्लिन और पेरिस ने एक संयुक्त बयान में कहा, "हम पक्षों से युद्धविराम का सम्मान करने और मानवीय क्षेत्र में आगे के कदमों पर चर्चा जारी रखने का आग्रह करते हैं, जैसे कि क्रॉसिंग पॉइंट खोलना और बंदियों की अदला-बदली."
साझा बयान ऐसे समय में आया है जब यूक्रेन द्वारा दावा किया गया कि गुरुवार को "रूसी संघ के सशस्त्र बलों" ने तीन बार ताजा संघर्ष विराम का उल्लंघन किया था. युद्धविराम के पहुंचने से पहले यूक्रेन और रूस ने एक दूसरे पर अलगाववादी डोनबास क्षेत्र में सैन्य कार्रवाई के लिए सेना के जमावड़े का आरोप लगाया था.
अमेरिका, रूस सुरक्षा वार्ता
हालांकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यह कहा है कि मॉस्को यूक्रेन के साथ संघर्ष नहीं चाहता है. एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान बोलते हुए पुतिन ने कहा कि नाटो के पूर्वी विस्तार को रोकने के उद्देश्य से रूस के सुरक्षा प्रस्तावों पर चर्चा करने की अमेरिका की इच्छा "सकारात्मक" थी. पुतिन ने कहा, "अमेरिकी साझेदारों ने हमें बताया कि वे इस चर्चा, इन वार्ताओं को अगले साल की शुरुआत में शुरू करने के लिए तैयार हैं." राष्ट्रपति जो बाइडेन की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा कि अमेरिका ने अभी तक पुतिन के साथ नए सिरे से बातचीत के समय और स्थान पर सहमति नहीं जताई है.
रूस ने हाल के महीनों में यूक्रेनी सीमा के पास अपने सैनिकों को तैनात किया है. यूक्रेन और उसके पश्चिमी सहयोगी लंबे समय से रूस पर यूक्रेन के अलगाववादियों को हथियारों की आपूर्ति करने का आरोप लगाते रहे हैं. यूक्रेन के मुताबिक उन्हीं अलगाववादी समूहों ने 2014 में रूस को क्रीमिया पर कब्जा करने में मदद की थी. रूस ने उन आरोपों से इनकार किया था. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने पिछले महीने कहा था कि वॉशिंगटन रूस की "असाधारण" गतिविधियों के बारे में चिंतित है. उन्होंने मॉस्को को 2014 की गंभीर गलती करने से बचने की चेतावनी दी. रूस पश्चिमी देशों के आरोपों से इनकार करता आया है. मॉस्को के मुताबिक इस साल के वसंत में रूस के बारे में इसी तरह की चिंता व्यक्त की जा रही थी, लेकिन रूस द्वारा ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई.
पुतिन के आरोप क्या हैं
पुतिन ने अपने संवाददाता सम्मेलन के दौरान पश्चिम पर यूक्रेन को "रूस विरोधी, लगातार आधुनिक हथियारों से लैस करने और आबादी का ब्रेनवॉश करने" के प्रयास करने के आरोप लगाए थे. इस बीच साकी ने कहा, "तथ्य यह है कि वह हास्यजनक है, तथ्य स्पष्ट करते हैं कि रूस और यूक्रेन की सीमा पर हम जो एकमात्र आक्रामकता देख रहे हैं, वह रूसियों द्वारा सैन्य तैनाती है और रूस के नेता द्वारा युद्ध की बयानबाजी है."
ब्रिटेन की विदेश मंत्री लिज ट्रस ने कहा कि उन्होंने यूक्रेन के प्रति रूस की आक्रामकता के बारे में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन से बात की है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि वे सहमत हैं कि रूसी घुसपैठ "एक बड़ी रणनीतिक गलती होगी और इसके गंभीर परिणाम होंगे." इस बीच ब्लिंकेन ने नाटो महासचिव येन्स स्टोल्टनबर्ग के साथ यूक्रेन की सीमा पर स्थिति पर चर्चा की.
पिछले दिनों रूस ने पश्चिम पर काला सागर में सैन्य अभ्यास करने और यूक्रेन को आधुनिक हथियार मुहैया कराने का आरोप लगाया था. रूस ने यह भी मांग की है कि नाटो गारंटी दे कि उसकी सैन्य महत्वाकांक्षाएं पूर्व की ओर नहीं फैलेंगी.
एए/सीके (एपी, एएफपी, डीपीए, रॉयटर्स)
नॉर्वे में क्रिसमस वाले एक विज्ञापन में सैंटा क्लॉज को समलैंगिक दिखाया गया है. इसे लेकर नॉर्वे में ज्यादातर भावुक तो कई और देशों से मिली जुली प्रतिक्रिया सामने आई है.
डॉयचे वैले पर ब्रैंडा हास की रिपोर्ट-
नॉर्डिक देश नॉर्वे में एक ही लिंग के लोगों के बीच संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर निकाले हुए पचास साल हो गए हैं. उस अहम कदम की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर देश के डाक विभाग ने एक खास विज्ञापन जैरी किया है. क्रिसमय के समय नए वीडियो प्रकाशित करने की परंपरा रही है. लेकिन इस बार लगभग चार मिनट लंबे ऐड में सैंटा क्लॉज को ही गे यानि समलैंगिक दिखाना बिल्कुल नया है.
वीडियो का शीर्षक है - "वेन हैरी मेट सैंटा... " और इसे 'पोस्टन' नाम के अकाउंट से यूट्यूब पर पोस्ट किया गया है. चार हफ्तों में 20 लाख से ज्यादा बार देखे गए इस ऐड में अहम किरदार है हैरी. हैरी नाम का आदमी हर साल एक दिन सैंटा से मिलता और उसकी याद में बाकी साल काट देता. साल दर साल यह सिलसिला चलता रहता है और आखिरकार एक साल हैरी सैंटा को चिट्ठी लिख कर अपने दिल की बात बता ही देता है. उसकी भावनाओं की कद्र होती है और सैंटा की तरफ से भी प्यार ही वापस आता है. इस साल सैंटा तोहफे बांटने का काम डाक विभाग को सौंप आते हैं और खुद हैरी से मिलने के लिए वक्त निकालते हैं.
पोस्टन ने ना केवल 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए बल्कि अपनी कंपनी में डाइवर्सिटी का संदेश देने के लिए भी यह आइडिया चुना. ऐड एक संदेश के साथ खत्म होता है: "2022 में उस बात को 50 साल हो जाएंगे जब से नॉर्वे में कानून ने हर किसी को किसी से भी प्यार करने की छूट दी थी."
कंपनी की ओर से मार्केटिंग निदेशक मोनिका सोलबेर्ग ने एलजीबीटीक्यू नेशन नाम की पत्रिका से बातचीत में कहा, "पोस्टन के लिए डाइवर्सिटी बहुत अहम है. यह पूरी तरह से दिल का मामला है." उन्होंने बयान दिया कि "हर किसी को महसूस होना चाहिए कि उसका स्वागत है, वह सबको नजर आता है, सब उसको सुन सकते हैं और वह समाज में शामिल है. इसी भावना को इस साल के क्रिसमस ऐड में रखा गया है."
इस विज्ञापन पर देश के ज्यादातर लोगों ने काफी प्यारी और भावुक टिप्पणियां की हैं. वहीं ट्विटर पर इसे लेकर कुछ आलोचनात्मक लेकिन ज्यादातर प्रशंसात्मक प्रतिक्रियाएं ही मिल रही हैं. इस पर डेनमार्क में अमेरिकी दूत रह चुके रफल गिफर्ड ने भी ट्वीट कर अपनी भावनाएं जताईं. वह खुद भी समलैंगिक हैं.
एक साल पहले कंपनी ने "एंग्री वाइट मैन" नाम का वीडियो जारी किया था. उसमें पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर चुटकी ली गई थी. उस ऐड में दिखाया गया था कि सैंटा जलवायु परिवर्तन में विश्वास नहीं करते और उन्हें लगता है कि उत्तरी ध्रुव पर तापमान का बढ़ना "बिल्कुल प्राकृतिक" है. इस तरह कंपनी हर साल किसी ताजा सामाजिक मुद्दे पर अपने खास अंदाज में टिप्पणी कर लोगों का ध्यान खींच रही है. (dw.com)