अंतरराष्ट्रीय
लैंगिक रूढ़िवादिता महिलाओं को काम पर बनाए रखने से रोकती है लेकिन मुट्ठी भर टेक कंपनियों का कहना है कि उन्होंने ऐसा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विकसित किया जो है भर्ती में पक्षपात को तोड़ने में मदद कर सकता है.
महिलाओं को रोजगार के क्षेत्र में अनेकों चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. पहले तो उन्हें घर संभालना होता है और फिर काम के लिए बाहर जाना पड़ता है. दफ्तर में भी वेतन से लेकर पदोन्नति तक में भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऐसी महिलाओं को रोजगार पाने में पक्षपात को तोड़ने में मदद कर सकता है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से महिला उम्मीदवारों को एक उचित मौका और पदोन्नति मिल सकता है.
कोलोराडो स्थित सॉफ्टवेयर फर्म पाइपलाइन इक्विटी की कातिका रॉय के मुताबिक, "हम कई बार इक्विटी के बारे में बात करते हैं, हम इसके सामाजिक मुद्दे पर बात करते हैं या फिर उचित चीज करने के बारे में. लेकिन वास्तव में यह भविष्य में बड़ा आर्थिक अवसर है."
कंपनियां तेजी से मदद पाने के लिए एआई की ओर रुख कर रही हैं. नियुक्ति संबंधी निर्णय, डिजिटल अधिकार विशेषज्ञों के बीच चिंता का विषय बना हुआ है जो चेतावनी देते हैं कि एल्गोरिदम पूर्वाग्रहों को कायम रख सकते हैं.
अमेजन द्वारा विकसित एक एआई हायरिंग टूल को तब खत्म करना पड़ा जब उसने खुद को सिखाया कि पुरुष उम्मीदवार महिलाओं से बेहतर हैं. लेकिन महिला अधिकार समूहों और डिजिटल विशेषज्ञों का कहना है कि पूर्वाग्रह को लक्षित करने के उद्देश्य से अच्छी तरह से डिजाइन की गई तकनीक "एक प्रकाश की तरह चमक सकती है" और उन कारकों का पता कर सकती है जो महिलाओं को रोजगार हासिल करने से रोकते हैं.
मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय में प्रबंधन स्कूल में प्रोफेसर मोनिदीपा तराफदार कहती हैं, "पूर्वाग्रह उतना ही पुराना है जितना कि मानव स्वभाव. पारंपरिक भर्ती प्रथाओं पर कई अलग-अलग तरीकों से वार किया गया है. मुझे लगता है कि निश्चित रूप से एआई समाधान का हिस्सा हो सकता है. लेकिन मैं कहती हूं कि यह मत सोचो कि यह एकमात्र समाधान हो सकता है."
ये समानता-केंद्रित प्रौद्योगिकी फर्म एआई का उपयोग कर रही हैं. बायोडाटा का विश्लेषण करने या वेतन तय करने जैसे निर्णयों की समीक्षा करना और व्यक्तिगत डाटा-आधारित सलाह प्रदान करना शामिल है.
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
पाकिस्तान की संसद ने मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के इस्तेमाल की अनुमति देने वाला एक विवादास्पद विधेयक पारित किया.
पाकिस्तान की संसद ने बुधवार को मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के इस्तेमाल की अनुमति देने वाला एक विवादास्पद विधेयक पारित किया. विपक्ष इस बिल को लेकर काफी गुस्से में है.
पाकिस्तान की संसद ने बुधवार को विपक्ष के उग्र विरोध के बावजूद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को अनुमति देने वाला एक कानून पारित किय. विपक्ष का कहना है कि सरकार ने अगले चुनाव में धांधली करने के लिए इसे आगे बढ़ाया है. बुधवार को सदन में इस बिल पर चर्चा के दौरान विपक्षी सदस्यों ने बिल की प्रतियां फाड़ दीं, नारे लगाए और बाहर निकलने से पहले प्रधानमंत्री इमरान खान को वोट चोर कहा.
संसद में विपक्ष के नेता शहबाज शरीफ ने कहा, "मेरा मानना है कि यह हमारे संसदीय इतिहास का सबसे काला दिन है. हम इसकी निंदा करते हैं." सरकार को विपक्ष के 203 के मुकाबले 221 वोट मिले. इमरान खान की सरकार महीनों से उस कानून को पारित करने की कोशिश कर रही है जो विदेशी पाकिस्तानियों को अपना मतदान ऑनलाइन करने की अनुमति देगा.
प्रधानमंत्री इमरान खान को विदेशों में रहने वाले लगभग 90 लाख पाकिस्तानियों के बीच व्यापक समर्थन प्राप्त है. देश में अगला आम चुनाव 2023 के लिए निर्धारित है. पाकिस्तान में पिछले आम चुनावों में हुए मतदान में इमरान खान की जीत का बहुत बड़ा श्रेय उनके विदेशी मतदाताओं को जाता है.
चुनाव में धांधली का आरोप
पाकिस्तान में हर चुनाव के बाद वोट में धांधली का आरोप लगाने वाली पार्टियों का इतिहास रहा है. खान का मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटों की गिनती से पारदर्शिता सुनिश्चित होगी. विपक्ष और कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि खान के एक और कार्यकाल हासिल करने की संभावना नहीं है.
कई राजनीतिक पंडितों ने भी भविष्यवाणी की थी कि अगर इमरान खान संसद में हार जाते हैं, तो यह उनकी सरकार के लिए एक बड़ा खतरा होगा. कुछ लोगों ने तो यहां तक कह दिया था कि ऐसे में इमरान खान की सरकार खत्म हो जाएगी.
सरकार एक पुराने आर्थिक संकट से जूझ रही है और बढ़ती मुद्रास्फीति सेना के साथ इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस के एक नए प्रमुख की नियुक्ति को लेकर भी विवाद है. विपक्ष का आरोप है कि सेना ने 2018 के चुनाव में धांधली करके खान को सत्ता में लाई थी. सरकार और सेना दोनों ने इस आरोप से इनकार किया था. अब विपक्ष का कहना है कि वह नए कानून को अदालत में चुनौती देगा.
भारत में भी ईवीएम को लेकर विपक्ष सवाल उठाता रहा है और उसकी विश्वसनीयता पर संदेह जताता आया है. हर चुनाव के बाद भारत में बैलेट से मतदान की मांग उठ जाती है.
एए/वीके (रॉयटर्स, एपी)
पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा सफलता की अद्भुत मिसाल हैं. दस हजार रुपये से शुरुआत करने वाले शर्मा अब 2.4 अरब डॉलर की संपत्ति के मालिक हैं. कैसे तय किया उन्होंने यह सफर, जानिए...
27 साल की उम्र में विजय शेखर शर्मा 10 हजार रुपये महीना कमा रहे थे. उस सैलरी को देखकर उनकी शादी तक में मुश्किल हो रही थी. वह बताते हैं, "2004-05 मे मेरे पिता ने कहा कि मैं अपनी कंपनी बंद कर दूं और कोई 30 हजार रुपये महीना भी दे तो नौकरी ले लूं.” 2010 में शर्मा ने पेटीएम की स्थापना की, जिसका आईपीओ ढाई अरब डॉलर पर खुला.
विजय शेखर शर्मा एक इंजीनियर हैं. 2004 में वह अपनी एक छोटी सी कंपनी के जरिए मोबाइल कॉन्टेंट बेचा करते थे. वह बताते हैं कि जब लड़की वालों को उनकी आय का पता चलता था तो वे इनकार कर देते थे. वह कहते हैं, "लड़की वालों को जब पता चलता था कि मैं दस हजार रुपये महीना कमाता हूं तो वे दोबारा बात ही नहीं करते थे. मैं अपने परिवार का अयोग्य कुआंरा बन गया था.”
2.5 खरब डॉलर की कंपनी
पिछले हफ्ते 43 साल के शर्मा की कंपनी पेटीएम ने इनिशिअल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) के जरिए 2.5 अरब डॉलर यानी लगभग एक खरब 34 अरब रुपये जुटाए हैं. फाइनेंस-टेक कंपनी पेटीएम अब भारत की सबसे मशहूर कंपनियों में से एक बन गई है और नए उद्योगपतियों के लिए एक प्रेरणा भी.
एक स्कूल अध्यापक पिता और गृहिणी मां के बेटे शर्मा उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर के रहने वाले हैं. 2017 में ही वह भारत के सबसे कम उम्र के अरबपति बने थे. लेकिन उन्हें अब भी सड़क किनारे ठेले से चाय पीना पसंद है. वह अक्सर दूध और ब्रेड लेने के लिए चलकर अपने पास की दुकान पर जाते हैं.
वह कहते हैं कि बहुत समय तक उनके माता-पिता को पता ही नहीं था कि उनका बेटा करता क्या है. वह बताते हैं, "एक बार मां ने मेरी संपत्ति के बारे में हिंदी के अखबार में पढ़ा तो मुझसे पूछा कि वाकई तेरे पास इतना पैसा है.”
फोर्ब्स पत्रिका ने विजय शेखर शर्मा की संपत्ति 2.4 अरब डॉलर यानी भारतीय रुपयों में लगभग सवा खरब रुपये आंकी है.
नोटबंदी ने खोली किस्मत
पेटीएम की शुरुआत एक दशक पहले ही हुई है. तब यह सिर्फ मोबाइल रिचार्ज कराने वाली कंपनी थी. लेकिन ऊबर ने भारत में इस कंपनी को अपना पेमेंट पार्टनर बनाया तो पेटीएम की किस्मत बदल गई. पर पेटीएम के लिए पासा पलटा 2016 में जब भारत ने अचानक एक दिन बड़े नोटों को बैन कर दिया और डिजिटल पेमेंट्स को बढ़ावा दिया.
नोटबंदी के बाद तो पेटीएम बड़े बड़े शोरूम से लेकर ठेले-रिक्शा तक पहुंच गया. सबके यहां पेटीएम के स्टिकर नजर आने लगे. सॉफ्टबैंक और बर्कशर जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों के समर्थन वाली पेटीएम अब अपनी शाखाएं दूसरे उद्योगों में भी फैला रही है. यह सोना बेच रही है. फिल्में बना रही है, विमानों की टिकट और बैंक डिपॉजिट भी उपलब्ध करवा रही है.
पेटीएम ने जो डिजिटल पेमेंट का जो काम भारत में शुरू किया था, उसमें अब गूगल, अमेजॉन, वॉट्सऐप और वॉलमार्ट के फोनपे जैसे बड़े बड़े अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी आ चुके हैं. वजह यह है कि भारत में यह बाजार 2025 बढ़कर 952 खरब डॉलर से भी ज्यादा का हो जाने का अनुमान है.
पहली बार डर लगा
अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के भारत में आने से एक बार तो शर्मा को डर लगा था. तब उन्होंने सॉफ्टबैंक के संस्थापक खरबपति उद्योगपति मासायोशी सन को फोन किया. वह बताते हैं, "मैंने मासा को फोन किया और कहा कि अब तो सब लोग यहां आ गए हैं, अब मेरे लिए क्या बचता है. आपको क्या लगता है?”
याहू और अलीबाबा जैसी कंपनियों में शुरुआती वक्त में निवेश करने वाले सन ने बताया कि "ज्यादा पैसा जुटाओ, और अपना सब कुछ लगा दो”. सन ने कहा कि बाकी कंपनियों के लिए यह प्राथमिक बिजनेस नहीं है, पेटीएम को पेमेंट बिजनेस को बनाने में पूरी ऊर्जा लगा देनी चाहिए.
एक बेटे के पिता शर्मा कहते हैं कि उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. वैसे कुछ बाजार विश्लेषकों को संदेह है कि पेटीएम मुनाफा कमा पाएगी, शर्मा को अपनी कंपनी की सफलता पर कोई संदेह नहीं है. 2017 में पेटीएम ने कनाडा में एक पेमेंट ऐप शुरू किया और उसके एक साल बाद जापान में मोबाइल वॉलेट पेश कर दिया.
शर्मा कहते हैं, "मेरा सपना है कि पेटीएम के झंडे को सैन फ्रांसिस्को, न्यू यॉर्क, लंदन, हांग कांग और टोक्यो तक लेकर जाऊं. और जब लोग इसे देखें तो कहें, यह एक भारतीय कंपनी है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
नई दिल्ली, 16 नवंबर | पाकिस्तान के हैकर्स ने तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के दौरान अफगानिस्तान में लोगों और अधिकारियों को टारगेट करने के लिए फेसबुक का इस्तेमाल किया। फेसबुक ने मंगलवार को कहा कि उसने पाकिस्तान से हैकर्स के ऐसे एक ग्रुप को हटा दिया है, जो अफगानिस्तान के लोगों को टारगेट कर रहा था। हैकर्स के समूह ने इसके लिए महिलाओं के नाम पर अकाउंट बनाए। रोमांटिक तरीके के लालच देते हुए हैकर्स ने काल्पनिक रूप से बातें की। यह समूह चैट ऐप्स डाउनलोड करने में भी शामिल रहा।
साइडकॉपी के नाम से जाना जाने वाला समूह, काबुल में पिछली अफगान सरकार, सेना और कानून प्रवर्तन एजेंसियों से जुड़े लोगों को लक्षित करता था।
फेसबुक (अब मेटा) ने कहा, "हमने उनके अकाउंट्स को निष्क्रिय कर दिया है, उनके डोमेन को हमारे प्लेटफॉर्म पर पोस्ट होने से रोक दिया गया है। हमने हमारे उद्योग के साथियों, सुरक्षा शोधकर्ताओं और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ जानकारी साझा की है और उन लोगों को सतर्क किया है, जिनके लिए हम मानते हैं कि इन हैकर्स द्वारा उन्हें लक्षित किया गया था।"
पाकिस्तान के इन हेकर्स ने फर्जी ऐप स्टोर संचालित किए और इसने वैध वेबसाइटों से भी समझौता किया, ताकि लोगों के फेसबुक क्रेडेंशियल्स के साथ हेराफेरी की जा सके।
साइडकॉपी ने लोगों को ट्रोजनाइज्ड चैट ऐप्स (मैलवेयर युक्त, जो लोगों को इसके वास्तविक इरादे के बारे में गुमराह करता है) को स्थापित करने के लिए धोखा देने का प्रयास किया, जिसमें वाइबर और सिग्नल के रूप में प्रस्तुत करने वाले मैसेंजर या कस्टम-निर्मित एंड्रॉएड ऐप शामिल थे। इसमें उपकरणों से समझौता करने के लिए बड़ी चालाकी से मैलवेयर शामिल किए गए थे।
फेसबुक ने कहा कि उनमें से हैप्पीचैट, हैंगऑन, चैटआउट, ट्रेंडबेंटर, स्मार्टस्नैप और टेलीचैट नाम के ऐप थे - जिनमें से कुछ वास्तव में चैट एप्लिकेशन के तौर पर काम कर रहे थे।(आईएएनएस)
रामल्लाह, 17 नवंबर| उत्तरी वेस्ट बैंक शहर तुबास के पास मंगलवार को हुई झड़पों के दौरान इजरायली सैनिकों ने एक फिलिस्तीनी व्यक्ति की हत्या कर दी। फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने मंत्रालय के बयान के हवाले से बताया कि 26 वर्षीय सद्दाम बानी औदा को शहर के पास तम्मुन गांव के प्रवेश द्वार पर हुई झड़पों के दौरान इजरायली सैनिकों ने दिल में गोली मार दी थी।
घटना पर इस्राइली सेना की ओर से तत्काल कोई टिप्पणी नहीं की गई है।
फिलिस्तीनी चश्मदीदों और सुरक्षा सूत्रों ने कहा कि फिलिस्तीनी के वेश में एक विशेष इजराइली सेना इकाई, नागरिक कपड़े पहने हुए एक वांछित फिलिस्तीनी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए तुबास में घुस गई। इस्राइली सैनिकों की खोज के बाद झड़पें शुरू हो गईं।
इजराइली सेना वेस्ट बैंक में रोजाना छापे मारकर फिलिस्तीनियों की गिरफ्तारी करती है। सेना का कहना है कि ये लोग इजरायल के खिलाफ हिंसा मामले में वांछित हैं। (आईएएनएस)
क्राइम की दुनिया में ऐसी कई खबरें हैं, जिन्हें जानने के बाद रुह काँप जाती है. क्राइम की ऐसी वारदातें, जिनके बारे में सोचना भी अजीब सी फीलिंग करवाता है. हाल ही में रुस से ऐसा ही एक शॉकिंग केस सामने आया. यहां रहने वाले 32 साल के व्लदीमिर को तीन लोगों की हत्या के आरोप में उम्रकैद दी गई. ये शख्स न सिर्फ लोगों को मारता था, बल्कि इसके बाद उसके कच्चे मांस के साथ वोडका पीता था.
रुस के गज़ सेल में कुल 17 सौ 21 लोग रहते हैं. इस जनसंख्या में रहता था 32 साल का व्लादिमीर. उसने इस साल मार्च के महीने में एक महिला और उसके दोस्त के साथ बहस होने पर दोनों की हत्या कर दी थी. कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान इन नोसोवा, जो क्राइम ब्रांच के हेड हैं, ने बताया कि दोनों की हत्या के बाद उसके मन में इंसानी मांस खाने की इच्छा थी. ऐसे में उसने दोनों की लाश को घर में रखा और शराब लेने चला गया.
man eats human flesh raw with vodkaसुनवाई के दौरान शख्स ने जुर्म कबूल कर लिया
जिन दो लोगों को शख्स ने मारा था, उनके बीच का रिश्ता सामने नहीं आया. न यही वो हथियार मिला, जिससे ये हत्या की गई. लेकिन चुपचाप से दोनों के मांस को व्लादिमीर खाता रहा. साथ ही उसके साथ वोडका पीता रहा. शख्स ने वोडका के साथ खाने के लिए इंसान के मांस को पकाया भी नहीं था. उसने कच्चे इंसानी मांस लो ही खा लिया. इन दो लोगों के अलावा व्लदीमिर पर एक ने शख्स की हत्या का भी आरोप है.
man eats human flesh raw with vodkaलोगों को मारकर उसकी बॉडी खा जाता था नरभक्षी
रिपोर्ट्स के मुताबिक़, जब पुलिस को पहले दो केस और इस एक केस की जानकारी मिली, तो उन्होंने तार भिड़ाए. इससे पता चला कि व्लादिमीर ही तीसरे शख्स का हत्यारा है. पुलिस में पूछताछ के दौरान तुरंत ही उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, व्लादिमीर को अब उम्र कैद की सजा सुनाई गई है.
डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों का पालन किया गया होता तो 2019 तक यूरोपीय संघ में लगभग दो लाख लोगों को बचाया जा सकता था.
डॉयचे वैले पर अलेक्स बेरी की रिपोर्ट-
यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी का कहना है कि सूक्ष्म कण वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में पूरे यूरोप में सालाना 10 प्रतिशत की गिरावट आई है, लेकिन अदृश्य हत्यारा अभी भी तीन लाख लोगों की मौत का जिम्मेदार है.
यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी ने एक नई रिपोर्ट में कहा कि वायु प्रदूषण के कारण 2019 में यूरोपीय संघ में 3,07,000 से अधिक मौतें हुईं और उनमें से कम से कम आधे को असमय होने वाली मौतों से बचाया जा सकता था. रिपोर्ट में यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के वातावरण में घातक दुःस्वप्न का भी विवरण दिया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि हवा की गुणवत्ता को सूक्ष्म कणों, विशेष रूप से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और फिर जमीन पर ओजोन की मात्रा से मापा जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक यूरोपीय संघ में वायु प्रदूषण 2018 की तुलना में 2019 में निश्चित रूप से कम हुआ है लेकिन यह अभी भी अधिक है. 2018 में 2.5 माइक्रोमीटर या PM2.5 से कम व्यास वाले बारीक विशेष पदार्थ से जुड़ी मौत 3,46,000 थी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस साल वायु प्रदूषण पर अपने नए दिशानिर्देश प्रकाशित किए हैं. यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी के मुताबिक अगर ये दिशानिर्देश पहले से ही उपलब्ध होते और 2019 में ठीक से लागू होते तो कुल मौतों में से कम से कम आधी या लगभग 1,78,000 लोगों को असमय होने वाली मौतों से बचाया जा सकता था.
पूरी दुनिया समेत यूरोप में वायु प्रदूषण भी एक बड़ा खतरा है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार कारखाने की चिमनियों से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जितना कम होगा पर्यावरण प्रदूषण उतना ही कम होगा. डब्ल्यूएचओ ने वायु प्रदूषण में सुधार के लिए मानक निर्धारित किए हैं और इन्हें दिशानिर्देशों में समझाया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन वर्तमान में ब्लॉक में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए यूरोपीय संघ के साथ मिलकर काम कर रहा है.
घातक वायु प्रदूषण इंसानों में फेफड़ों की बीमारी का कारण बनता है, जिसमें कैंसर भी शामिल है. जब सांस लेने से खतरनाक तत्व इंसानों के फेफड़ों में जाते हैं तो यह कैंसर जैसी घातक और संक्रामक बीमारी का कारण बन सकता है.
डब्ल्यूएचओ के विशेषज्ञों के अनुसार वायु प्रदूषण को कम करने के लिए यूरोपीय संघ की प्रतिबद्धता इस बात का प्रमाण है कि यह सही दिशा में बढ़ रहा है. डब्ल्यूएचओ के यूरोपीय कार्यालय के प्रमुख हान्स हेनरी क्लाउस ने यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी की रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा कि स्वच्छ हवा में सांस लेना भी बुनियादी मानवाधिकारों में से एक है. उनके मुताबिक ऐसी स्वस्थ परिस्थितियों का निर्माण आवश्यक है ताकि मानव समाज का निर्माण मजबूत तर्ज पर हो सके. (dw.com)
ऑस्ट्रेलिया की उन महिलाओं ने कतर पर मुकदमा करने का फैसला किया है जिन्हें पिछले साल एयरपोर्ट पर कपड़े उतारकर तलाशी देने को विवश किया गया था. इन महिलाओं ने व्यवस्था में बदलाव की मांग की है.
यह वाकया पिछले साल का है जब अक्टूबर में दोहा के हमाद एयरपोर्ट पर अधिकारियों ने कुछ ऑस्ट्रेलियाई महिलाओं की कपड़े उतारकर तलाशी ली थी. अधिकारियों का कहना था कि वे एक ऐसी महिला की तलाश कर रहे थे जिसने कुछ देर पहले बच्चे को जन्म दिया था.
दरअसल, दोहा हवाई अड्डे पर अधिकारियों को एक कूड़ेदान में तुरंत जन्मा बच्चा मिला था. उसके बाद ऑस्ट्रेलिया जा रहे एक विमान में सवार कई महिलाओं को उतार लिया गया और उनकी तलाशी ली गई. महिलाओं ने उस अनुभव को सरकार द्वारा अधिकृत यौन हमला बताया.
वैसे, कतर ने बाद में इस घटना के लिए माफी मांगी थी और एक अधिकारी को जेल की सजा भी हुई. लेकिन महिलाओं का कहना है कि उनके मामले को तब से नजरअंदाज किया जा रहा है. महिलाओं ने बताया था कि कुल 13 महिलाओं को विमान से उतारा गया था जिनमें से 7 को एंबुलेंस में ले जाया गया जहां उनके कपड़े उतरवाए गए और नर्सों ने उनकी जांच की.
व्यवस्था में बदलाव की मांग
इन महिलाओं का कहना है कि उन्होंने तलाशी के लिए सहमति नहीं दी थी और इसके लिए उन्हें कोई सफाई भी नहीं दी गई. सिडनी स्थित मार्की लॉयर्स में काम करने वाले वकील डेमियन स्टर्जेकर ने बताया कि महिलाओं को मुआवजा मिलना चाहिए.
स्टर्जेकर ने कहा, "उन महिलाओं को उस वक्त प्रताड़ित किया गया और वह यातना लगातार उनके साथ बनी रही तो सबसे पहले तो उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए. वह बहुत यातनापूर्ण अनुभव था जिससे गुजरने में उन्हें तकलीफ हो रही है.”
वकील के मुताबिक उस दिन दोहा से रवाना हो रहे नौ या दस विमान इसी वजह से देर से उड़े और उनमें से उतारकर महिलाओं की तलाशी ली गई. हालांकि उन्होंने कहा कि अन्य विमानों में सवार महिलाएं इस बारे में कोई कानूनी कार्रवाई कर रही हैं या नहीं, इसकी उन्हें जानकारी नहीं है.
स्टर्जेकर ने कहा, "वे अपने साथ हुए व्यवहार के लिए कतर सरकार से माफी चाहती हैं और वे ये लंबे समय से यह मांग कर रही हैं कि कुछ व्यवस्था बनाई जाए ताकि ऐसा दोबारा ना हो.” 30 से 50 वर्ष के बीच की ये महिलाएं आने वाले हफ्तों में ऑस्ट्रेलिया के राज्य न्यू साउथ वेल्स की सर्वोच्च अदालत में मुकदमा दायर कर सकती हैं. हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि वे मुआवजे में कितनी राशि चाहती हैं.
वकीलों ने महिलाओं की तरफ से कतर सरकार, वहां के नागरिक विमानन प्राधिकरण, एयरपोर्ट और सरकारी एयरलाइन कतर एयरवेज को नोटिस भेजकर सूचित कर दिया है कि ऑस्ट्रेलिया की अदालतें यह मुकदमा सुनने के लिए अधिकृत हैं.
कतर का पक्ष
कतर सरकार ने इस बारे में कोई टिप्पणी तो नहीं की है लेकिन अपने पुराने बयानों की ओर इशार किया जिनमें घटना के लिए माफी मांगी गई थी. इस बयान में कहा गया था कि इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों पर कानूनी कार्रवाई की जा रही है.
पिछले हफ्ते ही ऑस्ट्रेलिया की संघीय पुलिस ने शिकायतकर्ताओं को सूचित किया था कि इस मामले में एक एयरपोर्ट पुलिस अधिकारी पर जुर्माना किया गया और उसे छह महीने की निलंबित जेल की सजा दी गई.
एयरलाइन इस मामले में अपनी जिम्मेदारी को नकारती रही है जबकि स्टर्जेकर ने कहा है कि कतर सरकार उनके दावों पर विचार कर रही है.
मध्य पूर्व के कई देशों की तरह कतर में भी शादी के बाहर यौन संबंध बनाना और बच्चा पैदा करना गैरकानूनी है. पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जबकि प्रवासी महिलाओं ने अपने गर्भ को छिपाया और विदेश जाकर बच्चे पैदा करने की कोशिश की. बहुत सी महिलाओं ने जेल से बचने के लिए अपने बच्चों को त्याग दिया था.
वीके/सीके (एपी)
पश्चिमी देशों ने आरोप लगाया है कि रूस सैन्य जमावड़ा बढ़ा रहा है जबकि पश्चिमी देश यूरोपीय संघ की सीमा पर जारी आप्रवासी संकट से निपटने में लगे हैं.
पोलैंड से लगती बेलारूस की सीमा पर हजारों प्रवासी जमा हो गए हैं जो यूरोपीय संघ में घुसने की कोशिश में हैं. इस कराण यूरोपीय संघ ने बेलारूस पर कड़े प्रतिबंध लगाने का फैसला कर लिया है. रूस के करीबी बेलारूस का कहना है उस पर प्रवासी संकट खड़ा करने के आरोप निराधार हैं.
इस पूरी स्थिति के दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से फोन पर बातचीत की. माक्रों के एक सलाहकार ने मीडिया को बताया, "राष्ट्रपति ने बताया कि हम यूक्रेन की संप्रभुता और हमारी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए तैयार हैं.”
पुतिन ने भी दिया जवाब
माक्रों से फोन पर हुई बातचीत में रूस ने कहा कि ब्लैक सी में अमेरिका और उसके सहयोगियों का सैन्य कदमताल उकसावे की कार्रवाई है. रूस ने कहा, "यह रूस और नाटो के बीच तनाव बढ़ा रहा है.”
दोनों नेताओं ने प्रवासी संकट पर भी बात की. माक्रों के सलाहकार के मुताबिक दोनों नेताओं के बीच इस बात पर सहमति बनी कि दोनों पक्षों को पीछे हटने की जरूरत है. हालांकि रूस ने इस बात पर जोर दिया कि यूरोपीय संघ सीधे बेलारूस से बात करे.
इससे पहले अमेरिका ने भी आरोप लगाया था कि बेलारूस सीमा पर खड़ा किया गया प्रवासी संकट यूक्रेन में रूसी सेना की गतिविधियों से ध्यान बंटाने का तरीका है. रूस के प्रवक्ता दिमित्री पेश्कोव ने इस आरोप को गलत बताते हुए खारिज कर दिया था.
क्या है प्रवासी संकट?
यूरोपीय संघ का कहना है कि बेलारूस अपने ऊपर पहले से लगाए गए प्रतिबंधों का बदला लेने के लिए प्रवासियों को पोलैंड की ओर धकेलने की नीति अपना रहा है. बेलारूस और रूस दोनों ने इन आरोपों को गलत बताया है. पिछले साल बेलारूस के नेता आलेक्जेंडर लुकाशेंको के विवादित चुनाव के बाद यूरोपीय संघ ने प्रतिबंध लगाए थे.
इराक और अफगानिस्तान से आए प्रवासी इस साल की शुरुआत से ही बेलारूस में सीमा पर जमा होना शुरू हो गए थे. वे पहले इस्तेमाल ना किए गए रास्तों के जरिए लिथुआनिया, लातविया और पोलैंड में घुसने की कोशिश कर रहे हैं.
यूरोपीय संघ के वरिष्ठ कूटनीतिक योसेप बॉरेल ने कहा है कि संघ के नेताओं के बीच बेलारूस पर पांचवीं बार प्रतिबंध लगाने पर सहमति बन गई है, इनकी रूपरेखा को आने वाले दिनों में अंतिम रूप दिया जाएगा. इनमें एयरलाइन, ट्रैवल एजेंसियों और प्रवासियों को अवैध रूप से यूरोप में भेजने की कोशिश कर रहे व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाए जाएंगे.
चिंतित है अमेरिका
नाटो महासचिव येन्स स्टोल्टनबर्ग ने सोमवार को कहा था कि हम रूस की मंशा पर कोई अटकल नहीं लगाना चाहते. हालांकि उन्होंने जोड़ा, "हम सेना का एक असामान्य जमावड़ा देख रहे हैं और हम जानते हैं कि यूक्रेन के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई करने से पहले रूस इस तरह की सैन्य क्षमताओं के इस्तेमाल को तैयार रहता है.”
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि यूक्रेन से लगती सीमा पर रूस में असामान्य सैन्य गतिविधियां हो रही हैं. रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता जॉन कर्बी ने कहा कि ये गतिविधियां चिंता का विषय हैं और गुरुवार को अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन य्रूक्रेन में अपने समकक्ष से मुलाकात करेंगे.
2014 में रूस समर्थित अलगाववादियों ने यूक्रेन के पूर्वी डोनबास इलाके पर अधिकार कर लिया था. तब से यह विवाद लगातार जारी है. उसी साल रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया भी छीन लिया था. क्रीमिया से लगते जल-क्षेत्र पर रूस अपना दावा जताता रहा है जबकि ज्यादातर देश उस प्रायद्वीप को आज भी यूक्रेन का हिस्सा मानते हैं.
वीके/एए (डीपीए, रॉयटर्स)
रूस ने एक मिसाइल का परीक्षण कर अपने ही एक उपग्रह को ध्वस्त कर दिया. लेकिन इस परीक्षण ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के अंतरिक्ष यात्रियों की जान को खतरे में डाल दिया. अमेरिका ने इसका जवाब देने की बात कही है.
रूस ने मिसाइल से उपग्रह को ध्वस्त किया है, जिसपर अमेरिका ने कहा है कि अंतरिक्ष में मलबे के कारण अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) के परिचालन में बाधा आई और वहां मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों को आपात स्थिति के लिए तैयार होना पड़ा. इस घटना के लिए अमेरिका ने रूस के एक मिसाइल टेस्ट को जिम्मेदार ठहराते हुए उसकी आलोचना की है.
अमेरिका ने कहा है कि रूस ने एक ‘खतरनाक और गैरजिम्मेदार' मिसाइल परीक्षण कर अपने ही एक उपग्रह को ध्वस्त कर दिया लेकिन इसके मलबे ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र को खतरा पैदा कर दिया. अमेरिका को इस परीक्षण के बारे में पहले से नहीं बताया गया था और इस पर प्रतिक्रिया के लिए वह अपने सहयोगियों से बातचीत करेगा.
इस तरह का यह चौथा परीक्षण था. इससे अंतरिक्ष में मार कर सकने वाले हथियारों की होड़ को बढ़ावा मिल सकता है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने एक बयान जारी कर सोमवार को कहा, "15 नवंबर को रूस ने गैरजिम्मेदाराना तरीके से एक उपग्रह-रोधी मिसाइल का परीक्षण अपने ही एक उपग्रह के खिलाफ किया. इस परीक्षण में मलबे के 1,500 से ज्यादा बड़े टुकड़े और हजारों छोटे-छोटे टुकड़े पैदा हुए."
क्यों खतरनाक था टेस्ट?
आईएसएस पर इस वक्त चार अमेरिकी, एक जर्मन और दो रूसी अंतरिक्ष यात्री काम कर रहे हैं जिन्हें मलबे के कारण अपने वापसी वाहनों में शरण लेनी पड़ी. यह एक आपातकालीन व्यवस्था है जिसमें अंतरिक्ष यात्री किसी तरह का खतरा होने पर उन वाहनों में चले जाते हैं जिनके जरिए उन्हें पृथ्वी पर लौटाया जा सके. रूसी स्पेस एजेंसी रोसकॉसमोस ने ट्वीट कर बताया कि स्टेशन बाद में ग्रीन लेवल यानी खतरे से बाहर आ गया.
इस घटना पर अमेरिका की प्रतिक्रिया में तीखे शब्दों का प्रयोग किया गया है. अपने बयान में ब्लिंकेन ने कहा कि खतरा टला नहीं है. उन्होंने कहा, "इस खतरनाक और गैर जिम्मेदाराना परीक्षण के कारण लंबे समय तक कक्षा में रहने वाला मलब पैदा हुआ है जो उपग्रहों और अंतरिक्ष में अन्य उपकरणों के लिए दशकों तक खतरा बना रहेगा. रूस दावे तो करता है कि वह अंतरिक्ष में हथियार नहीं बढ़ा रहा है लेकिन इन दावों के उलट वह अंतरिक्ष के आने वाले लंबे समय तक खोज और अनुसंधान के प्रयोग को खतरे में डाल रहा है.”
बढ़ रही है होड़
पेंटागन में पत्रकारों से बातचीत में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जॉन कर्बी ने कहा कि अमेरिका को इस परीक्षण के बारे में पहले से नहीं बताया गया था. अंतरिक्ष उद्योग पर नजर रखने वाली कंपनी सेराडाटा के मुताबिक रूसी मिसाइल ने 1982 में भेजे गए उपग्रह कॉसमोस 1408 को निशाना बनाया था. जासूसी के लिए स्थापित किया गया यह उपग्रह दशकों पहले ही काम बंद कर चुका है.
उपग्रह-रोधी हथियार (ASAT) अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित मिसाइल हैं जो कुछ ही देशों के पास हैं. पिछली बार ऐसा परीक्षण भारत ने 2019 में किया था जिससे बड़ी मात्रा में अंतरिक्षीय मलबा पैदा हुआ था जिसके कारण अमेरिका ने भारत की आलोचना की थी. इससे पहले 2007 में चीन ने और फिर अमेरिका ने 2008 में ऐसा ही परीक्षण किया था.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
एक नए शोध के मुताबिक अमेजन के जंगलों के अनछुए हिस्सों में भी जलवायु परिवर्तन का असर हो रहा है. पक्षियों के शरीर का आकार घट रहा है और उनके पंखों का फैलाव बढ़ रहा है.
साइंस अड्वांसेस पत्रिका में छपे नए शोध के नतीजों में दावा किया गया है कि पिछले चार दशकों में ज्यादा गर्म और सूखे मौसम की वजह से अमेजन के जंगलों के अंदर रहने वाले पक्षियों पर यह असर पड़ रहा है. अनुमान लगाया जा रहा है कि ये बदलाव पोषण संबंधी और अन्य चुनौतियों की प्रतिक्रिया के रूप में आए होंगे.
यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि ऐसा विशेष रूप से जून से नवंबर के सूखे मौसम के दौरान हुआ होगा. इस शोध के मुख्य लेखक वितेक जिरिनेक का कहना है, "मेरे लिए सबसे बड़ी बात यह है कि यह सब दुनिया के सबसे बड़े वर्षावनों के ठीक बीच में ऐसी जगह हो रहा है जहां इंसानों का सीधा हस्तक्षेप भी नहीं है."
वजन में दो प्रतिशत की कमी
जिरिनेक इंटीग्रल इकोलॉजी रिसर्च सेंटर में इकोलॉजिस्ट हैं. अपने सहयोगियों के साथ मिलकर उन्होंने 40 सालों की अवधि में 15,000 से भी ज्यादा पक्षियों को पकड़ा, उनकी लंबाई नापी, उनका वजन लिया और उन्हें टैग किया. उन्होंने पाया कि लगभग सभी पक्षी 1980 के दशक के मुकाबले हल्के हो गए हैं.
अधिकांश प्रजातियों ने हर दशक में औसतन अपने शरीर के वजन का दो प्रतिशत गंवा दिया. इसका मतलब है, कोई प्रजाति जिसका वजन 1980 के दशक में 30 ग्राम रहा होगा उसका अब औसत वजन 27.6 ग्राम होगा. यह डाटा जंगल में किसी एक विशेष स्थान से नहीं लिया गया बल्कि एक बड़े इलाके से लिया गया.
इसका मतलब है कि यह लगभग हर जगह ही हो रहा है. कुल मिलाकर वैज्ञानिकों ने 77 प्रजातियों की पड़ताल की जो जंगल की ठंडी, अंधेरी जमीन से लेकर सूर्य की रौशनी में नहाए वनस्पति के मध्य भाग में रहते हैं.
ऊर्जा की चुनौतियां
इस मध्य भाग में जो पक्षी सबसे ऊपर की तरफ रहते हैं, ज्यादा उड़ते हैं और ज्यादा देर तक गर्मी का सामना करते हैं उनके वजन में और उनके पंखों के आकार में सबसे ज्यादा बदलाव आए. टीम ने अनुमान लगाया कि ऐसा ऊर्जा की चुनौतियों की वजह से हुआ होगा. उदाहरण के तौर पर फलों और कीड़ों की कमी या गर्मी की वजह से होने वाले तनाव के कारण.
जिरिनेक ने कहा, "जलवायु परिवर्तन की वजह से छोटे आकार फायदेमंद होगा इसकी तो अच्छी सैद्धांतिक व्याख्या है, लेकिन पंखों के बड़े होने को समझना ज्यादा मुश्किल है." उन्होंने कहा कि इसीलिए उन्होंने "विंग लोडिंग" की बात कही है. लंबे पंख और कम वजन-पंख अनुपात की वजह से उड़ान ज्यादा अच्छी रहती है.
ठीक वैसे जैसे लंबे पंखों वाले एक पतले जहाज को उड़ने के लिए कम ऊर्जा चाहिए होती है. वजन और पंखों का अनुपात अगर ज्यादा होगा तो पक्षी को उड़ते रहने के लिए पंख और तेजी से फड़फड़ाने पड़ेंगे, उसे और ऊर्जा की जरूरत होगी और वो और ज्यादा मेटाबॉलिक गर्मी पैदा करेगा.
कम समय में बड़ा परिवर्तन
जिरिनेक ने यह भी कहा कि इस अध्ययन को यह पता करने के लिए नहीं बनाया गया था कि ये बदलाव प्राकृतिक चुनाव की वजह से होने वाले जेनेटिक बदलावों की वजह से हो रहे हैं या ये उपलब्ध संसाधनों के आधार पर विकास के अलग अलग पैटर्न के नतीजे हैं.
उन्होंने बताया कि ये दोनों बातें संभव हैं, "लेकिन एवल्यूशन छोटे अंतरालों में भी होता है इसके अच्छे प्रमाण उपलब्ध हैं." इस तरह के तेज एवल्यूशन का एक उदाहरण हैं अफ्रीका में हाल ही में सामने आने वाले बिना दांत के हाथी. अनुमान है कि ऐसा तस्करी की वजह से हुआ है.
इस नए अध्ययन के लेखकों का मानना है कि संभव है दुनिया में और प्रजातियां भी इस तरह के दबावों का सामना कर रही होंगी जिनका अभी तक अध्ययन नहीं किया गया है. अध्ययन के सह-लेखक और लूसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक फिलिप स्टोफर ने कहा, "इसमें कोई शक नहीं है कि यह सिर्फ चिड़ियों के साथ नहीं बल्कि हर जगह हो रहा है."
सीके/एए (एएफपी)
एक समय पर लड़ाई का खामियाजा भुगतने वाले अफगानिस्तान के कई गांवों में तालिबान की जीत ने हवाई हमलों और अंतिम संस्कार के एक चक्र को तोड़ दिया है.
समाचार एजेंसी एएफपी की एक रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार की स्थापना और अमेरिकी सैनिकों की वापसी ने इस संभावना को बढ़ा दिया है कि देश के गांवों में लोगों की दिनचर्या अब पहले जैसी हो सकती है. काबुल पर तालिबान के कब्जे और अगस्त में अमेरिकी सैनिकों की वापसी ने दुनिया को हिला दिया और अफगानों की आजादी को प्रभावित किया. जिसका विशेष रूप से शहरी मध्यम वर्ग द्वारा आनंद लिया जा रहा था.
हिंसा से मिली आजादी
उत्तरी अफगानिस्तान के बल्ख से लगभग 30 किलोमीटर दूर दश्तन गांव की एक अमीर महिला माकी का कहना है कि वह तालिबान को सब कुछ दे देगी क्योंकि गोलियों की आवाज अब थम गई है. माकी अपना समय अपने गांव की कुछ अन्य महिलाओं के साथ कपास की कताई में बिताती है और यही उसकी आजीविका का स्रोत है. माकी जैसे कुछ ग्रामीण सोचते हैं कि युद्ध समाप्त हो गया है और लोग तालिबान से खुश हैं. माकी एएफपी से कहती हैं, "अब फायरिंग की कोई आवाज नहीं आती है. युद्ध खत्म हो गया है और हम तालिबान से खुश हैं."
दश्तन के एक अन्य निवासी हाजीफत खान ने कहा कि गांव में महिलाएं और सभी पुरुष तालिबान समर्थक थे और सत्ता पर तालिबान के कब्जा करने से बहुत खुश थे. 82 वर्षीय हाजीफत का कहना है कि उनके देश में अब शांति है.
अफगानिस्तान के गांवों में गरीबी का स्तर बेहद गंभीर हो गया है. ग्रामीणों के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है और मौसम भी ठंडा हो रहा है. सर्दी से बचने के लिए वे लकड़ी जलाते हैं.
मुश्किल परिस्थितियों में जी रहे लोग
दश्तन गांव कभी आरामदायक था और अधिकांश परिवार आसानी से जिंदगी बिता सकते थे, लेकिन युद्ध के दौरान गरीबी इतनी बढ़ गई कि अधिकांश परिवारों ने अपना घर छोड़ दिया. अब कुछ परिवार मुश्किल परिस्थितियों में रह रहे हैं.
अफगान शहरों में जीवन में कुछ हद तक सुधार हुआ है क्योंकि अरबों डॉलर की मदद का एक छोटा सा हिस्सा किसी तरह निचले इलाकों तक पहुंच जाता है. दूसरी ओर गांवों में जीवन अत्यंत कठिन, परेशान करने वाला और दयनीय है. इन गांवों के लोगों का मानना है कि तालिबान जो इस्लामी आंदोलन के सदस्य होने का दावा करते हैं देश के हर वर्ग में फैले भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए व्यावहारिक उपायों की शुरुआत करते हुए अपनी सरकार को मजबूत करेंगे.
एए/सीके (एएफपी)
वाशिंगटन, 15 नवंबर| अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का संबंध अभी संकट में है। कमला के कर्मचारी इस बात से नाराज हैं कि उन्हें 'साइडलाइन' किया जा रहा है, जबकि राष्ट्रपति की टीम इस बात से काफी निराश है कि कमला अमेरिकी जनता के साथ खेल रही हैं। डेली मेल की रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के महीनों में कमला हैरिस की अनुमोदन रेटिंग बाइडेन की तुलना में और भी नीचे गिर गई है। अफवाह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति एक नए उपराष्ट्रपति का चयन करने और कमला को पिछल्ले दरवाजे से सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त करने पर विचार कर रहे हैं।
व्हाइट हाउस के अंदरूनी सूत्रों ने सीएनएन को बताया कि कमला हैरिस और उनके शीर्ष सहयोगी कथित तौर पर सीमा संकट जैसे 'नो-विन' मुद्दा सौंपे जाने पर बाइडेन से निराश हैं।
उन्होंने उद्धृत किया कि कैसे राष्ट्रपति ने 'श्वेत व्यक्ति' पीट बटिगिएग (परिवहन सचिव) का बचाव किया।
उधर, बाइडेन के कर्मचारी कथित तौर पर कमला हैरिस के साथ आत्म-प्रवृत्त विवादों से निराश हैं, जैसे कि एनबीसी के लेस्टर होल्ट के सीमा पर जाने के बारे में पूछे जाने पर वह 'अजीब' तरह से हंसे थे।
वे चुनावी आंकड़े में गिरावट के लिए सीमा संकट पर उसकी विफलता को दोष देते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि एबीसी न्यूज/ वाशिंगटन पोस्ट के एक नए सर्वेक्षण में बाइडेन को 53 प्रतिशत अस्वीकृति और 41 प्रतिशत अनुमोदन दिखाया गया है, जो अप्रैल से 11 अंक कम है।
व्हाइट हाउस सार्वजनिक रूप से इस बात पर जोर देता है कि बाइडेन और कमला के बीच संबंध सामंजस्यपूर्ण बने रहें।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कमला हैरिस के सहयोगी मानते हैं कि उन्हें विफल करने के लिए एक ऐसा पोर्टफोलियो सौंप दिया गया है, जो उपराष्ट्रपति के पद को संभालने वाली पहली महिला और पहली अश्वेत महिला के रूप में उनकी ऐतिहासिक स्थिति के अनुरूप नहीं है।
कमला हैरिस के एक पूर्व उच्चस्तरीय सहयोगी ने सीएनएन को बताया, "वे लगातार उन्हें गलत परिस्थितियों में सीमा विवाद सुलझाने के लिए भेज रहे हैं।"
आमतौर पर, मौजूदा उपराष्ट्रपति को पार्टी के अगले ओपन-फील्ड प्रेसिडेंशियल प्राइमरी के लिए एक स्वचालित लॉक माना जाता है।
डेमोक्रेट के लिए यह स्पष्ट नहीं है कि क्या वे दिन 2024 में सत्ता में आएंगे या बाइडेन 2028 में 80 की उम्र में फिर से चुनाव लडें़गे या नहीं। (आईएएनएस)
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक देश की आबादी बढ़ाने के लिए ईरान का नया कानून महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ है. समूह ने कहा कि कानून ईरानी महिलाओं की यौन और प्रजनन स्वास्थ्य आवश्यकताओं का उल्लंघन करता है.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने मांग की है कि ईरान बिना किसी देरी के नए कानून को निरस्त करे और इसके उन सभी प्रावधानों को हटा दे, जिससे ईरानी महिलाओं के मौलिक अधिकारों का और उल्लंघन हो सकता है. इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान में नए कानून को 1 नवंबर को शूरा गार्जियन नामक एक राष्ट्रीय निकाय द्वारा अनुमोदित किया गया था. कानून को "देश की आबादी और सहायक परिवारों में युवाओं के अनुपात में वृद्धि" के रूप में करार दिया गया है.
कानून पुरुषों और महिलाओं की नसबंदी और ईरानी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में गर्भ निरोधकों के मुफ्त वितरण को प्रतिबंधित करता है. अगर गर्भावस्था की स्थिति में किसी महिला के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा होने का जोखिम हो तो इसमें छूट है. कानून वर्तमान में सात साल के लिए प्रभावी है और ईरान ने पहले से ही गर्भपात और गर्भ निरोधकों तक पहुंच पर प्रतिबंध लगा रखा है.
इस महीने लागू हो जाएगा कानून
इस कानून को देश की संसद ने इसी साल 16 मार्च को गार्जियन काउंसिल द्वारा अनुमोदित किए जाने से पहले पारित किया था. जैसे ही इसे अंतिम रूप दिया जाएगा और देश के आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किया जाएगा तब कानून लागू हो जाएगा और इस महीने के अंत में ऐसा होने की संभावना है.
ह्यूमन राइट्स वॉच में ईरान पर एक वरिष्ठ शोधकर्ता तारा सहपहरी फर कहती हैं, "ईरानी सांसद लोगों के सामने आने वाले गंभीर मुद्दों, जैसे कि सरकारी अक्षमता, भ्रष्टाचार और राज्य दमन का समाधान करने के लिए अनिच्छुक हैं. और इसके बजाय महिलाओं के मौलिक अधिकारों पर हमला करते हैं."
आधी आबादी के अधिकारों का सवाल
तारा सहपहरी के मुताबिक, "जनसंख्या वृद्धि कानून ईरान की आधी आबादी को स्वास्थ्य, बुनियादी अधिकार और गरिमा से वंचित करता है. वह महिलाओं को बुनियादी प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल और आवश्यक जानकारी तक पहुंच से भी रोकता है."
ईरान में इस नए कानून के साथ बच्चों वाले परिवारों को कई नए लाभों का वादा किया गया है. उदाहरण के लिए गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए रोजगार लाभ में वृद्धि की गई है. लेकिन इस तथ्य का कोई समाधान नहीं निकला है कि ईरानी महिलाओं को घरेलू नौकरी बाजार का व्यावहारिक हिस्सा बनने से रोक दिया गया है. और रोजगार के मामले में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव समाप्त नहीं हुआ है.
एए/सीके (एएफपी)
सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया के उलेमा काउंसिल ने कहा है कि बिटक्वाइन में कारोबार करना इस्लामी कानून के खिलाफ है.
इंडोनेशिया समेत दुनियाभर में में ट्रेडिंग हाल के सालों में तेजी से बढ़ा है. इंडोनेशियाई उलेमा काउंसिल ने एक नए फतवे में कहा है कि दक्षिण पूर्व एशियाई देश में क्रिप्टोकरंसी या डिजिटल मुद्राओं में लेनदेन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि वे इस्लामी कानून के विपरीत हैं. 27 करोड़ की आबादी वाले दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र में फतवे का कोई कानूनी प्रभाव नहीं है, लेकिन घोषणा संभावित रूप से कई मुसलमानों को क्रिप्टोकरंसी से परहेज करने से मना सकती है.
देश में मुस्लिमों का मार्गदर्शन करने के लिए स्थापित उलेमा काउंसिल को एक शक्तिशाली धार्मिक निकाय माना जाता है. परिषद द्वारा अपनी एक बैठक के बाद जारी किए गए फतवे के मुताबिक क्रिप्टोकरंसी में व्यापार करना जुए के समान है और इस्लाम में जुए की मनाही है.
परिषद के फतवा जारी करने वाले विभाग के प्रमुख असरुन नियाम सलेह ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "इसमें शामिल अनिश्चितता के कारण क्रिप्टोकरंसी की डिजिटल संपत्ति के रूप में बिक्री और खरीद अवैध है. यह पहलू हराम है. यह जुए पर दांव लगाने जैसा है." उन्होंने कहा कि ऐसी मुद्राओं के मूल्य में इतनी तेजी से उतार-चढ़ाव होता है कि यह इस्लामी नियमों और विनियमों के खिलाफ है.
हाल के सालों में दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह इंडोनेशिया में बिटक्वाइन और अन्य क्रिप्टोकरंसी में लेनदेन में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है. इंडोनेशिया के वाणिज्य मंत्री मुहम्मद लोत्फी ने इस साल जून में कहा था कि इस साल के पहले पांच महीनों में देश में डिजिटल मुद्राओं में व्यापार की मात्रा राष्ट्रीय मुद्रा में लगभग 26 अरब डॉलर थी.
इंडोनेशियाई उलेमा काउंसिल ने देश के केंद्रीय बैंक की हालिया घोषणा के बाद फतवा जारी किया है. बैंक डिजिटल मुद्रा जारी करने पर विचार कर रहा है. वहीं उलेमा काउंसिल ने 2019 में आचेह प्रांत में अपनी शाखा के माध्यम और फतवे के रूप में लोगों को वास्तविक जीवन में हिंसा के लिए उकसाने के जोखिम के कारण लोकप्रिय ऑनलाइन गेम PUBG को गैर-इस्लामिक घोषित किया था. इसके अलावा इसी परिषद ने हाल ही में ऑनलाइन ऋण के खिलाफ एक फतवा जारी किया था.
एए/वीके (एएफपी)
भारत पर अमेरिका के प्रतिबंधों के खतरे के बावजूद रूस ने भारत को एस-400 मिसाइलों की सप्लाई शुरू कर दी है. पहली खेप इस साल के आखिर तक भारत पहुंच जाएगी. अमेरिका इस समझौते से नाखुश है.
रूस ने भारत को एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम की सप्लाई शुरू कर दी है. रूसी समाचार एजेंसियों ने रविवार को रूसी सैन्य सहयोग एजेंसी के प्रमुख दिमित्री शुगायेव के हवाले से यह खबर दी. हालांकि भारत सरकार ने अभी कोई टिप्पणी नहीं की है.
हथियारों की रूस से होने वाली यह सप्लाई भारत पर अमेरिकी प्रतिबंध का खतरा बढ़ा देती है. अमेरिका ने 2017 में एक कानून पास किया था जिसके तहत रूस से सैन्य हथियार खरीदने से देशों को हतोत्साहित करने के लिए प्रतिबंधों का प्रावधान है.
55 अरब डॉलर का समझौता
रूसी समाचार एजेंसी इंटरफैक्स को शुगायेव ने दुबई के एयरशो के दौरान कहा, "पहली सप्लाई पहले ही शुरू हो चुकी है." शुगायेव ने कहा कि एस-400 सिस्टम की पहली खेप इस साल के आखिर तक भारत पहुंच जाएगी.
भारत और रूस के बीच इन हथियारों को खरीदने का समझौता 2018 में हुआ था. 55 अरब डॉलर के इस समझौते के तहत लंबी दूरी की जमीन से हवा में मार करने वालीं पांच मिसाइल खरीदे गए थे, जिन्हें भारत ने चीन से खतरे के मद्देनजर जरूरी बताया था.
रूस से ये सिस्टम खरीदने के कारण भारत पर कड़े अमेरिकी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं. काट्सा - काउंटरिंग अमेरिकाज अडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस ऐक्ट (CAATSA) में रूस को उत्तर कोरिया और ईरान के साथ उन देशों की सूची में रखा गया है जिन्हें अमेरिका ने अपना बैरी बताया है. इसकी वजह यूक्रेन में रूस की कार्रवाई, 2016 के अमेरिकी चुनावों में दखलअंदाजी और सीरिया की मदद जैसी रूसी गतिविधियां बताई गईं.
साझेदारी मुश्किल में
भारत का कहना है कि उसकी रूस और अमेरिका दोनों के साथ रणनीतिक साझेदारी है. इस आधार पर उसने अमेरिका से काट्सा कानून से राहत की अपील भी की थी. हालांकि अमेरिका ने भारत को बता दिया था कि राहत मिलने की संभावना कम ही है.
पिछले साल इसी कानून के तहत अमेरिका ने तुर्की पर भी प्रतिबंध लगा दिए थे जब उसने रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदा था. ये प्रतिबंध तुर्की की हथियार खरीदने और विकसित करने वाली संस्था प्रेजीडेंसी ऑफ डिफेंस इंडस्ट्रीज के खिलाफ लगाए गए थे.
साथ ही, अमेरिका ने तुर्की को अपने एफ-35 फाइटर जेट प्रोग्राम से भी बाहर कर दिया था. एफ-35 अमेरिका के बेड़े में सबसे आधुनिक फाइटर जेट है जो सिर्फ नाटो देशों और अमेरिका के साथियों के लिए ही उपलब्ध है.
इन प्रतिबंधों के जवाब में रूस ने कहा था कि वह आधुनिक फाइटर जेट विकसित करने में तुर्की की मदद करेगा. हालांकि इस बारे में अभी कोई समझौता नहीं हुआ है. दिमित्री शुगायेव ने आरआईए न्यूज एजेंसी को बताया, "उस योजना में अभी भी हम मोलभाव के चरण में हैं."
वीके/एए (रॉयटर्स)
पाकिस्तान में कई महिलाएं सामाजिक वर्जनाओं के कारण स्तन कैंसर की जल्द जांच कराने से हिचकिचाती हैं. जब तक कैंसर का पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.
डॉयचे वैले पर एस खान की रिपोर्ट-
पूरे एशिया में स्तन कैंसर की दर सबसे ज्यादा पाकिस्तान में है. और रुझान बताते हैं कि जब तक प्रारंभिक जांच में आने वाली बाधाओं को दूर करने की और कोशिशें नहीं होतीं, तब तक इसके और अधिक बढ़ने की संभावना है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, पाकिस्तान में साल 2020 में करीब 26 हजार महिलाओं में स्तन कैंसर का पता चला था और 13,500 से ज्यादा महिलाओं की इस वजह से मृत्यु हो गई थी.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस उच्च मृत्यु दर की वजह जांच और उपचार केंद्रों की कमी है. हालांकि बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थापना एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन पाकिस्तान में स्तन कैंसर की समस्या में सामाजिक कारण भी योगदान दे रहे हैं.
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर साल 2020 में 23 लाख महिलाओं में स्तन कैंसर का पता चला था और 6 लाख 85 हजार महिलाओं की स्तन कैंसर से मौत हुई थी.
कैंसर की जांच सामाजिक वर्जना कैसे हो सकती है?
कैंसर विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि स्तन कैंसर के गंभीर मामलों को रोकने के लिए शुरुआती जांच बेहद महत्वपूर्ण है. हालांकि, शौकत खानम कैंसर रिसर्च सेंटर के शोध के मुताबिक, पाकिस्तान में कुछ महिलाएं अपने स्वास्थ्य के मुद्दों को दूसरों के साथ साझा नहीं करती हैं और किसी भी प्रकार की स्तन जांच कराने से कतराती हैं.
इस्लामाबाद पॉलीक्लिनिक अस्पताल में स्तन कैंसर की विशेषज्ञ एरम खान कहती हैं कि स्तन कैंसर के निदान में देरी के पीछे पाकिस्तान की पितृसत्तात्मक संस्कृति और महिलाओं के शरीर से संबंधित वर्जनाएं प्रमुख कारक हैं.
डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहती हैं कि स्तन कैंसर की जांच और उपचार की कोशिश में लगी कुछ महिलाओं को ताना मारा जाता है. वह कहती हैं, "एक मरीज यह बताते हुए रो पड़ी कि जब उसके स्तनों को सर्जरी के जरिए हटा दिया गया तो उसके पति ने कहा कि स्तन हटने के बाद तो वो एक ‘पुरुष' बन गई है.”
डीडब्ल्यू से बातचीत में पाकिस्तान की महिला कार्यकर्ता मुख्तारन माई कहती हैं, "विवाहित महिलाएं सोचती हैं कि अगर उनके पति को इस बीमारी के बारे में पता चल गया तो वे दूसरी महिला से शादी कर सकते हैं जबकि अविवाहित लड़कियों का मानना है कि महज जांच कराने भर से उनकी शादी में मुश्किलें आ सकती हैं.”
ऑनलाइन डेटाबेस बीएमसीविमिंसहेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, पाकिस्तान में महिलाएं शुरुआती जांच कराते समय बेइज्जती महसूस करती हैं, खासकर ऐसे मामलों में जब जांच करने वाला डॉक्टर पुरुष हो और उनके सामने कोई और विकल्प न हो.
रिपोर्ट में उम्र, रोजगार की स्थिति, जागरूकता की कमी, सर्जरी का डर और पारंपरिक उपचारों में विश्वास और आध्यात्मिक उपचार को भी स्तन कैंसर को बढ़ाने वाले कारकों में रूप उल्लेख किया गया है. नतीजतन, पाकिस्तान में स्तन कैंसर के 89 फीसदी रोगियों में स्तन कैंसर की पहचान काफी देर में होती है और 59 फीसदी में तो तब पता चलता है जब कैंसर अपनी चरम यानी उन्नत अवस्था में होता है.
एरम खान कहती हैं कि महिला स्तन कैंसर विशेषज्ञों की अधिक संख्या में भर्ती, महिला कॉलेजों में अधिक जागरूकता अभियान और स्त्री रोग विशेषज्ञों और महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण की जरूरत है ताकि पाकिस्तान में महिलाओं को स्तन कैंसर से बचाने में मदद मिल सके.
खान कहती हैं कि जिन महिलाओं में स्तन कैंसर का पता चलता है, तो यहां एक गलता धारणा यह भी है कि उसके लिए सिर्फ सर्जरी ही एकमात्र रास्ता है. वह कहती हैं कि बहुत से लोग यह नहीं जानते कि कैंसर के पहले और दूसरे चरण में कई बार सर्जरी की जरूरत नहीं होती है.
पाकिस्तान में स्तन कैंसर पर हुए एक शोध के मुताबिक, पाकिस्तानी औरतें स्तनों में गांठों को दर्द न होने के कारण नजरअंदाज कर देती हैं और इसके इलाज में इसलिए भी लापरवाही बरतती हैं क्योंकि स्तन वो एक "गुप्त अंग” समझती हैं.
नजरअंदाजी औरतों को मार रही है
पचास साल की वहीदा नैयर को दो साल पहले पता चला कि उन्हें स्तन कैंसर है और वो इस स्थिति में थीं कि मर्ज बढ़ने से पहले उसका इलाज करा सकें. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहती हैं कि ज्यादातर पाकिस्तानी महिलाएं इतनी भाग्यशाली नहीं हैं. उनके मुताबिक, नजरअंदाजी, अंधविश्वास और कुछ सांस्कृतिक कारणों की वजह से स्तन कैंसर से महिलाओं की मौत हो रही है.
पाकिस्तान के दक्षिणी शहर कराची की रहने वाली वहीदा नैयर कहती हैं, "मैं ऐसी तमाम महिलाओं के संपर्क में आई जो शर्म और संकोच के मारे स्तनों की जांच तक नहीं करातीं. छोटे शहरों से इलाज के लिए आने वाली ज्यादातर महिलाओं में कैंसर अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका था. जब मैंने उनसे देर से जांच कराने के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि इसमें उन्हें शर्म आती थी.”
नैय्यर की बेटी, निमरा उस कैंसर अस्पताल में बार-बार आती थीं, जहां उनकी मां का इलाज होता था. निमरा कहती हैं, "ग्रामीण महिलाओं ने मुझे बताया कि वे अपने पुरुष रिश्तेदारों को इस बीमारी के बारे में बताने की कल्पना भी नहीं कर सकती हैं. हमारे मामले में तो हमारी मां ने मुझे और मेरे भाई को इस बारे में बता दिया था.”
निमरा कहती हैं कि कैंसर के तीसरे स्टेज में पहुंच चुकी कुछ महिलाओं का कहना था कि उनके परिवार में कोई महिला सदस्य ही नहीं थी जिससे वो अपनी बीमारी साझा कर पातीं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहती हैं, "ये महिलाएं अपने बेटों से या परिवार के दूसरे पुरुष सदस्यों से इस बारे में बात करने में शर्माती थीं.”
ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास ने विज्ञान को पछाड़ा
महिला अधिकार कार्यकर्ता मुख्तारन माई कहती हैं कि उन्होंने अपनी 46 वर्षीय भाभी को इस साल की शुरुआत में स्तन कैंसर से खो दिया. मुख्तारन बताती हैं कि उनकी भाभी स्तन कैंसर के बारे में बात करने के लिए एक पुरुष डॉक्टर को देखने से हिचक रही थी, और तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
वह कहती हैं, "कई मामलों में, ग्रामीण पाकिस्तान में महिलाएं धार्मिक मौलवियों से सलाह लेती हैं. ये मौलवी उन्हें सलाह देते हैं कि वे स्तन कैंसर की जांच के लिए पुरुष डॉक्टरों के पास न जाएं.” इससे रोग की जांच में देरी होती है और तब तक प्रभावी उपचार के लिए बहुत देर हो चुकी होती है. मुख्तारन के मुताबिक, "हमें यह भी सलाह दी गई थी कि हम डॉक्टर के पास न जाएं या सर्जरी न कराएं.”
मुख्तारन माई अपनी भाभी को इलाज के लिए डॉक्टर के पास ले गईं, लेकिन जांच इत्यादि में लापरवाही के चलते इतनी देर हो चुकी थी कि उनका जीवन नहीं बचाया जा सका. माई कहती हैं कि वह अपने क्षेत्र की कम से कम छह महिलाओं को जानती हैं जिन्हें डॉक्टरों ने स्तन कैंसर की बायोप्सी कराने की सलाह दी थी, लेकिन वे ऐसा करने से हिचक रही हैं. वह कहती हैं, "स्तन कैंसर पर बात करना हमारे समाज में आज भी वर्जित है.”
पंजाब के ग्रामीण इलाके की एक अन्य युवती ने नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया कि उसके शहर के एक मौलवी ने उसे कहा कि उसके स्तन में तेज दर्द होने के बाद वह डॉक्टर के पास न जाए. युवती का कहना था कि एक पुरुष डॉक्टर के पास जाने से वह ‘शर्मिंदा' महसूस करती है और महिला चिकित्सक के पास जाने में अधिक सहज महसूस करती है.
(dw.com)
अमेरिकी न्याय विभाग (डीओजे) ने यात्रियों से 'वेट टाइम' शुल्क वसूलने के लिए उबर के खिलाफ मुकदमा दायर किया है.
अमेरिका में उबर ऐसे विकलांगों से अधिक पैसे वसूल रहा था जिन्हें कैब में प्रवेश करने के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है. डीओजे ने मुकदमे में आरोप लगाया कि उबर विकलांग लोगों के साथ भेदभाव करता है. न्याय विभाग ने एक बयान में कहा, "उबर की नीतियों और विकलांगता के आधार पर प्रतीक्षा समय शुल्क वसूलने की प्रथाओं ने पूरे देश में कई यात्रियों और संभावित यात्रियों को नुकसान पहुंचाया है."
अधिनियम के उल्लंघन का आरोप
कैलिफोर्निया के उत्तरी जिले के लिए यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दायर मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि उबर ने विकलांग अमेरिकी अधिनियम (एडीए) के टाइटल 3 का उल्लंघन किया है, जो उबर जैसी निजी परिवहन कंपनियों द्वारा भेदभाव को प्रतिबंधित करता है.
अप्रैल 2016 में उबर ने कई शहरों में यात्रियों से प्रतीक्षा समय शुल्क वसूलना शुरू किया, उसके बाद देश भर में नीति का विस्तार किया. प्रतीक्षा समय शुल्क उबर कार के पिकअप स्थान पर आने के दो मिनट बाद शुरू होता है और जब तक कार अपनी यात्रा शुरू नहीं करती तब तक शुल्क लिया जाता है.
न्याय विभाग के नागरिक अधिकार प्रभाग के लिए सहायक अटॉर्नी जनरल क्रिस्टन क्लार्क ने कहा, "यह मुकदमा उबर को विकलांग अमेरिकियों के जनादेश के अनुपालन में लाने का प्रयास करता है, जबकि एक शक्तिशाली संदेश भेजता है कि उबर विकलांग यात्रियों से अधिक शुल्क नहीं ले सकता है क्योंकि उन्हें कार में बैठने के लिए और समय चाहिए."
उबर के एक प्रवक्ता ने द वर्ज को बताया, "हम मौलिक रूप से असहमत हैं कि हमारी नीतियां एडीए का उल्लंघन करती हैं और हर किसी की आसानी से अपने समुदायों में घूमने की क्षमता का समर्थन करने के लिए हमारे उत्पादों में सुधार करती रहेंगी."
विकलांग यात्रियों को विभिन्न कारणों से कार में प्रवेश करने के लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता हो सकती है. मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि जब उबर को पता होता है कि एक यात्री की अतिरिक्त समय की आवश्यकता स्पष्ट रूप से विकलांगता-आधारित है, तो उबर दो मिनट के निशान पर प्रतीक्षा समय शुल्क लेना शुरू कर देता है.
मुकदमा प्रबंधन अदालत से राहत की मांग कर रहा है, जिसमें उबर को विकलांग व्यक्तियों के साथ भेदभाव बंद करने का आदेश देना भी शामिल है.
एए/सीके (आईएएनएस)
बीबीसी को मिली जानकारी के अनुसार विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज को अपनी पार्टनर स्टेला मॉरिस से ब्रिटेन में लंदन स्थित बेलमार्श जेल में शादी करने की इजाज़त मिल गई है.
असांज और स्टेला के गैब्रिएल और मार्क्स नाम के दो बच्चे हैं. स्टेला का कहना है कि दोनों का जन्म असांज के इक्वाडोर के दूतावास में रहने के दौरान हुआ था.
जेल अधिकारियों ने कहा है कि "नियमों के अनुसार ही जेल गवर्नर ने असांज की अर्ज़ी पर विचार किया है."
जेल के प्रवक्ता ने कहा है, "हमें जूलियन असांज की अर्ज़ी मिली थी और जैसे किसी आम कैदी की अर्जी पर विचार किया जाता है उसी प्रकार से उनकी अर्ज़ी पर भी विचार किया गया."
स्टेला मॉरिस ने समाचार एजेंसी प्रेस असोसिएशन से कहा है कि उन्हें "उम्मीद है कि उनकी शादी के मामले में अब और हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा."
मैरेज्स एक्ट 1983 के तहत कैदियों को जेल में ही शादी करने की इजाज़त मिल सकती है बशर्ते शादी का पूरा खर्च वो खुद उठाएं.
दक्षिण अफ्रीका में जन्मी वकील स्टेला मॉरिस ने बीते साल मेल ऑनलाइन को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि 2015 से असांज के साथ उनके संबंध हैं और वो अपने दोनों बच्चों को अकेले पाल रही हैं.
विकिलीक्स के यूट्यूब चैनल पर पोस्ट किए एक वीडियो संदेश में स्टेला ने कहा था कि असांज से उनकी पहली 2011 में हुई थी जब वो विकिलीक्स के लीगल टीम का हिस्सा बनी थीं.
मॉरिस का कहना था कि वो दूतावास में रोज़ाना असांज से मिलने जाती थीं और इस दौरान वो "असांज को बहुत अच्छे से जानने लगी थीं".
2015 में दोनों को प्यार हो गया जिसके बाद दो साल बाद दोनों ने सगाई कर ली थी.
स्टेला का कहना था कि जुलियन असांज ने वीडियो लिंक के ज़रिए दोनों बच्चों के जन्म को देखा था जिसके बाद वो बच्चों को असाज से मिलाने के लिए उन्हें लेकर दूतावास भी गई थीं.
50 साल के असांज पर जासूसी के आरोप हैं वो अपने अमेरिका प्रत्यर्पण से जुड़ा मामला लड़ रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ युद्ध से जुड़े हजारों लीक्ड दस्तावेजों के विकीलीक्स पर छपने के बाद, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करने और छापने की साजिश के आरोप में अमेरिका असांज पर मामला चलाना चाहता है.
अप्रैल 2010 को जो जानकारी विकिलीक्स पर छपी थी उसमें इराक़ में एक हेलीकॉप्टर से अमेरिकी सैनिकों के आम नागरिकों को गोली मारने का फुटेज शामिल था.
असांज ने 2012 में स्वीडन में एक यौन अपराध मामले में प्रत्यर्पण से बचने के लिए लंदन में मौजूद इक्वाडोर के दूतावास में शरण ले ली. वो मामला अब ख़त्म हो गया है. वो खुद पर लगे यौन अपराध के आरोपों से इनकार करते रहे हैं.
जमानत की शर्तों का उल्लंघन करने के आरोप में असांज को 2019 में इक्वाडोर के दूतावास से जबरन निकाला गया था जिसके बाद उन्हें बेलमार्श जेल में रखा गया है. (bbc.com)
नई दिल्ली, 11 नवंबर| चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) ने राजनीतिक इतिहास में शी जिनपिंग की स्थिति को मजबूत करते हुए एक 'ऐतिहासिक प्रस्ताव' पारित किया है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, सीसीपी की उच्च स्तरीय बैठक में पार्टी के गत 100 वर्षो की अहम उपलब्धियों और भविष्य की दिशाओं को संबोधित करते हुए यह प्रस्ताव पारित किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पार्टी की स्थापना के बाद से यह अपनी तरह का केवल तीसरा प्रस्ताव है - पहला माओ जेडॉन्ग उर्फ माओत्से तुंग द्वारा 1945 में और दूसरा देंग शियाओ पिंग द्वारा 1981 में पारित किया गया था।
चीन की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक बैठकों में से एक, छठे पूर्ण सत्र में गुरुवार को प्रस्ताव पारित किया गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह का प्रस्ताव जारी करने वाले केवल तीसरे चीनी नेता के रूप में, इस कदम का उद्देश्य शी को पार्टी के संस्थापक माओ और उनके उत्तराधिकारी देंग के बराबर स्थापित करना है।
रिपोर्ट के अनुसार, कुछ पर्यवेक्षक इस प्रस्ताव को चीनी नेताओं द्वारा दशकों के विकेंद्रीकरण को वापस करने के लिए शी के नवीनतम प्रयास के रूप में देख रहे हैं, जो देंग के तहत शुरू हुआ और जियांग जेमिन जैसे अन्य नेताओं के माध्यम से जारी रहा।
चार दिवसीय बंद दरवाजे के सत्र में देश के शीर्ष नेतृत्व पार्टी की 19वीं केंद्रीय समिति में 370 से अधिक पूर्ण और वैकल्पिक सदस्य शामिल हुए।
अगले साल राष्ट्रीय कांग्रेस से पहले पार्टी नेताओं की यह आखिरी बड़ी बैठक थी, जहां शी के राष्ट्रपति के रूप में एक ऐतिहासिक तीसरे कार्यकाल की तलाश करने की उम्मीद है।
पार्टी की 19वीं केंद्रीय समिति के छठे पूर्ण अधिवेशन में लिए गए ऐतिहासिक फैसले के साथ ही अगले साल राष्ट्रपति शी चिनफिंग के रिकॉर्ड तीसरे कार्यकाल के लिए भी रास्ता साफ हो गया है।
2018 में, चीन ने राष्ट्रपति पद पर दो कार्यकाल की सीमा को समाप्त कर दिया था, जिससे उन्हें प्रभावी रूप से सत्ता में बने रहने की अनुमति मिल गई थी।
विशेषज्ञों ने बीबीसी को बताया कि अनिवार्य रूप से, यह सत्ता पर शी की पकड़ को मजबूत करेगा।
चीनी करेंट अफेयर्स पर एक न्यूजलेटर चाइना नीकन के संपादक एडम नी ने कहा, "वह (शी) चीन की राष्ट्रीय यात्रा के महाकाव्य में खुद को नायक के रूप में कास्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।"
रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने आगे कहा, "एक ऐतिहासिक प्रस्ताव को आगे बढ़ाते हुए, जो खुद को पार्टी और आधुनिक चीन के भव्य आख्यान के केंद्र में रखता है, शी अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन दस्तावेज उन्हें इस शक्ति को बनाए रखने में मदद करने के लिए एक टूल (उपकरण) भी है।"
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के चोंग जा इयान ने कहा कि ताजा कदम ने शी को अन्य पिछले चीनी नेताओं से अलग कर दिया है।
चोंग ने कहा कि पूर्व नेताओं हू जिंताओ और जियांग जेमिन के पास शी जितना समेकित अधिकार कभी नहीं रहा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 11 नवंबर | अफगानिस्तान के हालात पर भारत की मेजबानी में हुए सम्मेलन के बयान पर प्रतिक्रिया में अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात ने कहा कि उसने सम्मेलन में उल्लिखित सभी मांगें पहले ही पूरी कर दी है। टोलो न्यूज के मुताबिक, विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता इनामुल्ला समांगानी ने कहा, "इस्लामिक अमीरात भारत की बैठक का स्वागत करता है। हम शासन में ठोस कदम उठाने की कोशिश कर रहे हैं और दुनिया के देशों को किसी के खिलाफ अफगानिस्तान की धरती के इस्तेमाल से चिंतित नहीं होना चाहिए।"
भारत सम्मेलन में रूस, ईरान और पांच मध्य एशियाई राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। उन्होंने अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार के गठन का आह्वान किया जो आतंकवाद का मुकाबला करेगी और अफगान की जमीन का इस्तेमाल दूसरे देशों के खिलाफ होने से रोकेगी।
राजनीतिक विश्लेषक सैयद हारून हाशिमी ने कहा, "दुनिया के देश तालिबान के साथ बातचीत के जरिए संकट का हल तलाशने की कोशिश कर रहे हैं और इन बैठकों का अफगानिस्तान के लिए सकारात्मक परिणाम है।"
कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी बैठकें स्थिरता और आर्थिक विकास सुनिश्चित करने में कारगर हो सकती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध विश्लेषक सैयद हकीम कमाल ने कहा, "भारत की बैठक अफगानिस्तान के लिए प्रभावी है, क्योंकि भारत अफगानिस्तान की मदद करने वाले देशों में से एक है और अब यह उस देश का समर्थन करने में भी रुचि रखता है।"
अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात को भारत सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया था। चीन और पाकिस्तान ने भी इसमें भाग नहीं लिया। (आईएएनएस)
भारत और मध्य एशिया के देशों ने अफगानिस्तान के मौजूदा हालात पर चिंता जताई है. वहां के हालात सुधारने के लिए आठ देशों ने दिल्ली में बुधवार को बैठक की.
भारत ने बुधवार को पड़ोसी देश में खराब स्थिति पर चर्चा के लिए अफगानिस्तान पर एक क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन की मेजबानी की. उच्च स्तरीय शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने की. वार्ता में ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों ने भाग लिया.
एनएसए अजीत डोभाल ने सम्मेलन में क्षेत्रीय देशों के बीच घनिष्ठ परामर्श और अधिक सहयोग का आह्वान किया. दिल्ली में अफगानिस्तान पर आठ देशों की एनएसए-स्तरीय बैठक की अध्यक्षता करते हुए, उन्होंने कहा, "हम सब अफगानिस्तान में हो रही घटनाओं को गौर से देख रहे हैं. अफगानिस्तान के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि उसके पड़ोसी देशों और क्षेत्र के लिए भी इसके महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं."
डोभाल ने कहा कि यह क्षेत्रीय देशों के बीच घनिष्ठ परामर्श और अधिक सहयोग का समय है. उन्होंने कहा, "मुझे विश्वास है कि हमारे विचार-विमर्श फलदायी व उपयोगी होंगे और अफगानिस्तान के लोगों की मदद करने और हमारी सामूहिक सुरक्षा बढ़ाने में योगदान देंगे.
साथ आए आठ देश
आठ देशों ने क्षेत्र में कट्टरपंथ, आतंकवाद, अलगाववाद और मादक पदार्थों की तस्करी के खतरे के खिलाफ सामूहिक सहयोग को दोहराया. सहभागी देशों ने एक खुली और सही मायने में समावेशी सरकार बनाने की आवश्यकता पर बल दिया जो अफगानिस्तान के सभी लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है और उनके समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करती है और प्रशासनिक व्यवस्था में समाज के सभी वर्गों को शामिल करती है.
वार्ता में भाग लेते हुए तुर्कमेनिस्तान की सुरक्षा परिषद के सचिव चारमिरत अमानोव ने कहा, "यह बैठक हमें अफगानिस्तान में मौजूदा स्थिति का समाधान खोजने और इस क्षेत्र में शांति स्थापित करने का अवसर देती है."
इस क्षेत्र में शांति बहाल करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उज्बेकिस्तान की सुरक्षा परिषद के सचिव विक्टर मखमुदोव ने कहा, "अफगानिस्तान और इस क्षेत्र में पूरी तरह से शांति बहाल करने के लिए हमें एक सामूहिक समाधान खोजना होगा. यह संयुक्त प्रयासों से ही संभव है."
बैठक में रूस और ईरान के साथ पांच मध्य एशियाई देशों- ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान के डोभाल के समकक्षों ने भाग लिया.
एए/वीके (आईएएनएस की जानकारी के साथ)
सोशल मीडिया वीडियो प्लैटफॉर्म यूट्यूब ने कहा है कि वीडियो पर डिसलाइक की कुल संख्या अब लोगों को नजर नहीं आएगी. कंपनी ने ऐसा वीडियो बनाने वालों को प्रताड़ना और हमलों से बचाने के लिए किया है.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
यूट्यूब पर वीडियो को कितने लोगों ने डिसलाइक किया है, यह अब लोगों को नजर नहीं आएगा. कंपनी ने कहा है कि वीडियो पोस्ट करने वालों को निशाना बनाकर किए गए हमलों से बचाने के लिए यह फैसला लिया गया है.
वीडियो अथवा सोशल मीडिया पोस्ट पर लाइक और डिसलाइक की संख्या को लेकर आलोचक पहले भी बोलते रहे हैं. उनका कहना है कि इन आंकड़ों का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. इसीलिए कुछ देशों में फेसबुक और इंस्टाग्राम ने भी लोगों को यह फीचर बंद करने का विकल्प दे रखा है.
गूगल के वीडियो शेयरिंग प्लैटफॉर्म यूट्यूब पर दर्शक अब भी किसी वीडियो को डिसलाइक तो कर पाएंगे लेकिन उन्हें ये नजर नहीं आएगा कि बाकी कितने लोगों ने उसे डिसलाइक किया है. एक बयान में यूट्यूब ने कहा, "दर्शकों को रचनाकारों के बीच एक स्वस्थ संवाद को बढ़ाना देने के लिए हमने डिसलाइक बटन के साथ प्रयोग किया था ताकि आंका जा सके कि इस बदलाव से रचनाकारों को परेशान करने वालों से बचाया जा सकता है और डिसलाइक के रूप में होने वाले हमलों को टाला जा सकता है या नहीं.”
कंपनी ने कहा कि इस प्रयोग के आंकड़ों से पता चला कि डिसलाइक हमलों में कमी आ गई. वैसे, रचनाकार और मीडिया स्टार या इन्फ्लुएंसर देख पाएंगे कि कुल कितने लोगों ने उनके वीडियो को डिसलाइक किया है. यूट्यूब ने कहा कि छोटे या नए रचनाकारों ने शिकायत की थी कि लोग उनके वीडियो पर डिसलाइक की संख्या बढ़ाकर जानबूझकर उन्हें निशाना बना रहे हैं.
ऑनलाइन यातनाओं के बढ़ते मामले
डिजिटल सुरक्षा सलाहकार कंपनी ‘सिक्यॉरिटी' के मुताबिक ऑनलाइन परेशान किए जाने के तरीकों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल बुरी टिप्पणियों का होता है. 18 वर्ष की आयु तक पहुंचने से पहले 70 प्रतिशत लोग ऑनलाइन यातना झेल चुके होते हैं.
22.5 प्रतिशत लोगों ने ऐसी टिप्पणियों की शिकायत की है. 35 प्रतिशत लोगों ने किसी का मजाक बनाने के लिए उसके स्टेटस का स्क्रीनशॉट शेयर किया. किशोरों के बीच सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात उनके रूप-रंग को लेकर उड़ाया गया मजाक रहा. परेशान किए गए 61 प्रतिशत टीनएजर ऐसी शिकायत करते हैं. परेशान किए जाने वालों में 56 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें फेसबुक पर परेशान किया गया.
कंपनियों की जिम्मेदारी
यूट्यूब ने ये बदलाव तब किए हैं जबकि दुनियाभर में ऑनलाइ हरासमेंट यानी सोशल मीडिया या इंटरनेट के जरिए किसी को परेशान करने के मामलों में तेज बढ़त देखी गई है. राजनेता, अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता लगातार शिकायत कर रहे हैं कि सोशल मीडिया साइट चलाने वाली कंपनियां इस बारे में कोई गंभीर कदम नहीं उठा रही हैं.
इन्हीं विवादों के चलते फेसबुक को हाल ही में कई बड़े हमले झेलने पड़े हैं. उसकी एक पूर्व कर्मचारी ने कंपनी के दस्तावेज लीक करते हुए दावे किए कि कंपनी जानती है कि उसका बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. उस पर जानबूझ कर नफरत फैलाने वाली सामग्री को बढ़ावा देने का भी आरोप लगा. फेसबुक की पूर्व कर्मचारी फ्रांसिस हॉगन ने कहा है कि बड़ी टेक कंपनियां मुनाफा कमाने के लिए मानसिक यातनाओं और हेट स्पीच जैसे मामलों को नजरअंदाज कर रही हैं.
कई अन्य सोशल वीडियो कंपनियां जैसे टिकटॉक, स्नैपचैट आदि भी खतरनाक सामग्री को बढ़ावा देने के आरोप झेल रही हैं. बीते महीने इन कंपनियों ने अमेरिकी सांसदों को यकीन दिलाने की कोशिश की थी कि वे युवा ग्राहकों के लिए सुरक्षित हैं. (dw.com)
लालच देकर भारत से अमेरिका मजदूरों की तस्करी करने के आरोप में फंसे एक हिंदू संगठन का मामला अब चार राज्यों में फैल गया है. आरोप है कि बीएपीएस स्वामी नारायण संस्था 1.20 डॉलर प्रतिदिन की मजदूरी देकर मंदिर बनवा रही थी.
अमेरिका के न्यू जर्सी में स्वामी नारायण संस्था पर चल रहा मानव तस्करी का मुकदमा अब चार और राज्यों में फैल गया है. पहली बार संस्था पर मई में तब मुकदमा दर्ज हुआ था जब न्यू जर्सी के रॉबिन्सविल में कथित तौर पर बन रहे मंदिर में लोगों से अमानवीय हालात में काम कराने का आरोप लगा. बाप्स के अधिकारियों पर आरोप था कि उन्होंने मंदिर निर्माण में लगे मजदूरों से जबरन कॉन्ट्रैक्ट पर साइन कराए. बताया गया कि सुरक्षा गार्डों की निगरानी में मजदूरों से 12-12 घंटे काम करवाया जा रहा था और छुट्टी भी नहीं दी जा रही थी.
मुकदमे के मुताबिक इन मजदूरों को आर-1 वीजा पर न्यू जर्सी ले जाया गया था. यह वीजा धार्मिक पेशों जैसे पुजारी आदि के लिए होता है. पिछले महीने मुकदमे में संशोधन किया गया और अन्य राज्यों के मजदूरों को भी इसमें जोड़ा गया. मुकदमे के मुताबिक ये मजदूर भारत के हाशिये पर रहने वाले समुदायों से हैं. मजदूरों का दावा है कि उन्हें कैलिफॉर्निया, शिकागो, टेक्सस और अटलांटा के मंदिरों में भी प्रताड़ित किया गया.
आरोप निराधारः बाप्स
बाप्स ने इन सारे आरोपों को गलत बताया है. संस्था के वकील पॉल फिशमैन ने एक ईमेल से भेजे बयान में कहा, "अमेरिका में सरकारी अधिकारियों ने आर-1 वीजा को पिछले बीस साल से पत्थर पर नक्काशी करने वाले कलाकारों के लिए अधिकृत किया हुआ है. संघीय, राज्य और स्थानीय स्तर के अधिकारी सभी निर्माण स्थलों पर लगातार दौरा करते रहे हैं, जहां इन कलाकारों ने स्वयंसेवा दी.”
अन्य राज्यों के मजदूरों का कहना है कि उनसे उतने घंटे काम नहीं कराया गया जितना न्यू जर्सी में काम कर रहे मजदूरों से कराया गया, लेकिन उन्हें न्यूनतम मजदूरी से कहीं कम पैसा दिया गया. मुकदमे में वादी बने कई मजदूर ऐसे हैं जिन्होंने एक से ज्यादा मंदिरों के निर्माण में काम किया है. आरोप पत्र के मुताबिक कुछ मजदूरों ने तो आठ-नौ साल काम किया है.
'धमकियां भी दी गईं'
न्यू जर्सी के बाहर रॉबिन्सविल में बन रहे मंदिर में काम करने वाले मजदूरों की तरह अन्य राज्यों के मजदूरों ने भी आरोप लगाया है कि उन्हें उनके पासपोर्ट रखने की इजाजत नहीं थी, उन्हें बड़े हॉल में सुलाया जाता था और सुरक्षा गार्ड उनकी निगरानी करते थे.
मुकदमे में कहा गया, "रॉबिन्सविल मंदिर और अन्य जगहों पर भी बचाव पक्ष ने मजदूरों को जानबूझ कर ऐसा यकीन दिलाया कि यदि वे काम और मंदिर के परिसर को छोड़ने की कोशिश करेंगे तो उन्हें गंभीर शारीरिक नुकसान पहुंच सकता है.”
जिन सारे हिंदू मंदिरों का जिक्र मुकदमे में है, वे बीएपीएस से जुड़े हैं, जो डेलावेयर में एक कॉरपोरेशन के तौर पर रजिस्टर्ड है. यह संस्था भारत में अक्षरधाम मंदिर के लिए जानी जाती है.
वीके/एए (एपी)
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चेताया है कि दुनिया एक बार फिर शीत युद्ध की ओर लौट सकती है. अगले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से होने वाली वर्चुअल मुलाकात से पहले शी जिनपिंग का यह बयान आया है.
न्यूजीलैंड में हो रही एशिया पैसिफिक इकॉनोमिक कोऑपरेशन (APEC) के दौरान सीईओ फोरम में दिए एक रिकॉर्डेड भाषण में शी जिनपिंग ने कहा कि भूराजनीतिक आधार पर छोटे-छोटे दायरे बनाने या वैचारिक सीमाएं खींचने की कोशिशें कामयाब नहीं हो पाएंगी.
शी ने कहा, "एशिया प्रशांत क्षेत्र को शीत युद्ध जैसे बंटवारे और विवाद में ना तो पड़ना चाहिए, और ना वो पड़ सकता है.” शी के इस बयान को अमेरिकी की एशिया प्रशांत क्षेत्र में बढ़तीं गतिविधियों से जोड़कर देखा जा रहा है. अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत को मिलाकर बने क्वॉड नामक संगठन की गतिविधियां बढ़ा दी हैं, जिसे एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन के अधिपत्य को टक्कर के तौर पर माना जा रहा है.
विवाद टालने की कोशिश
मंगलवार को चीनी सेना ने कहा कि उसने ताइवान खाड़ी में पैट्रोलिंग की है. इससे पहले चीनी रक्षा मंत्रालय ने एक अमेरिकी संसदीय प्रतिनिधिमंडल के ताइवान दौरे की आलोचना की थी. स्वायत्तशासी लोकतांत्रिक क्षेत्र ताइवान को चीन अपना हिस्सा बताता है.
पिछले कुछ महीनों में चीन के साथ अमेरिका के कूटनीतिक विवादों ने बाइडेन प्रशासन के कई अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों को भी परेशान किया है. अब अमेरिकी अधिकारी मानते हैं कि शी जिनपिंग के साथ सीधा संवाद ही दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच किसी विवाद को टालने का सबसे अच्छा तरीका है.
शी जिनपिंग और बाइडेन के बीच होने वाली वर्चुअल मुलाकात की कोई तारीख तय नहीं हुई है लेकिन कहा जा रहा है कि यह अगले हफ्ते हो सकती है. अपने वीडियो संदेश में शी ने कहा कि महामारी से उबरना और आर्थिक बहाली को साधना क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती रही है और टीकाकरण में अंतर को पाटने के लिए सभी देशों को मिलकर काम करना चाहिए.
उन्होंने कहा, "वैक्सीन एक वैश्विक सार्वजनिक वस्तु है, इस सहमति को हमें ठोस कदमों में बदलना होगा ताकि समान और समतामूलक बंटवारा हो सके.” एपेक सदस्यों ने जून में एक विशेष बैठक में वादा किया था कि वे कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन और बंटवारे को बढ़ाएंगे और दवाओं के व्यापार पर लगीं रुकावटें दूर करेंगे.
ताइवान बढ़ा सकता है पारा
न्यूजीलैंड द्वारा आयोजित 21 एपेक देशों की सालाना फोरम शुक्रवार को सभी देशों के नेताओं की ऑनलाइन बैठक के साथ खत्म होगी. फोरम में शी वीडियो संदेश के जरिए शामिल हुए. उन्होंने पिछले 21 महीनों से चीन से बाहर कदम नहीं रखा है क्योंकि देश में कोविड-19 के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस पॉलिसी लागू है और आने-जाने पर कड़ी पाबंदियां लगी हुई हैं.
ताइवान कॉम्प्रहेंसिव ऐंड प्रोग्रेसिव अग्रीमेंट फॉर ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी) नाम के एक क्षेत्रीय व्यापार समझौते में शामिल होने की कोशिश कर रहा है, जो एपेक नेताओं के बीच होने वाली बैठक में तनाव का विषय बन सकता है.
चीन ने भी सीपीटीपीपी की सदस्यता के लिए आवेदन किया है लेकिन वह ताइवान की सदस्यता का विरोध करता है. उसने ताइवान के इर्द-गिर्द अपनी सैन्य गतिविधियां भी बढ़ा दी हैं. हालांकि, अमेरिका ने पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में इस संधि को छोड़ दिया था.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)