अंतरराष्ट्रीय
हिंद महासागर में फ्रांस सरकार के अधीन रीयूनियन द्वीप को दुनिया का एक बड़ा डिजिटल केंद्र बनाने की योजना है. ये दुनिया का छठा डिजिटल सेंटर होगा. डिजिटल कंपनियों के एक समूह का दावा है कि स्थानीय बेरोजगारी कम होगी.
डॉयचे वैले पर लीजा लुईस की रिपोर्ट-
फ्रांस का रियूनियन द्वीप, हिंद महासागर में अपने स्वर्गिक तटों और हरे-भरे लैंडस्केपों के लिए विख्यात है. इस द्वीप का करीब 42 फीसदी हिस्सा यूनेस्को के विश्व विरासत स्थलों में शामिल है. लेकिन ये द्वीप जल्द ही किसी और चीज के लिए प्रसिद्धि हासिल करने वाला है.
डिजिटल कंपनियों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह की योजना इस द्वीप को दुनिया का एक बड़ा डिजिटल केंद्र बनाने की है. इन योजनाओं से स्थानीय स्तर पर बेरोजगारी में एक हद तक कमी आ सकती है. पहला चरण 2021 के वसंत में पूरा हुआ था. इसके तहत द्वीप को एक सुपर-फास्ट इंटरनेट केबल के जरिए मेडागास्कर, मॉरीशस और साउथ अफ्रीका से जोड़ा गया था. 24 टेराबाइट क्षमता वाली ये केबल, रियूनियन द्वीप में मौजूदा इंटरनेट कनेक्शनों से 24 गुना ज्यादा तेज है.
रियूनियन स्थित समूह ओसइंडे के सीईओ नासिर गाउलामाले ने डीडब्ल्यू को बताया कि "रियूनियन द्वीप का इंटरनेट, देश का दूसरा सबसे तेज रफ्तार वाला इंटरनेट है और करीब-करीब राजधानी पेरिस जितना द्रुत है.” ओसइंडे की सहायक कंपनी जियोप ने फ्रांस के अपने व्यापारिक सहयोगियों केनाल प्लस और एसएफआर, मॉरीशस के अपने सहयोगियों सीईबी फाइबरनेट और एमटेल और मेडागास्कर की टेल्मा कंपनी के साथ मिलकर मेटिस्स नाम के नये केबल में पांच करोड़ यूरो (57 मिलियन डॉलर) का निवेश किया है.
इन कंपनियों का ये समूह, रियूनियन द्वीप से भारत को जोड़ने के लिए एक दूसरे केबल पर 12 करोड़ खर्च करने की योजना बना रहा है. इसके अलावा, द्वीप में बहुत सारे विशाल डाटा सेंटर बनाए जाएंगे. गाउलामाले का कहना है कि "हम कंपनियों को एक अरब यूरो तक का खर्च करने के लिए तैयार कर रहे हैं और बहुत सारे इच्छुक निवेशकों से हमारी बातचीत चल रही है.”
हिंद महासागर के बीचो बीच यूरोप की मौजूदगी
गाउलामाले का कहना है कि अपने डाटा हब यानी डाटा केंद्र के रूप में रियूनियन द्वीप को चुनने के लिए इंटरनेट कंपनियों को ज्यादा दिमाग खपाने की जरूरत नहीं है. यहां तक कि गाफा कहलाने वालीं सबसे विशाल कंपनियों को भी नहीं. गाफा यानी जीएएफए- गूगल, एप्पल, फेसबुक और अमेजॉन. गाउलामाले के मुताबिक "दुनिया में इस समय पांच बड़े डाटा केंद्र हैं - दो अमेरिका में, दो एशिया में और एक फ्रांसीसी शहर मारसे में. लेकिन हिंद महासागर में एक खालीपन है- और रियूनियन द्वीप उसे मुकम्मल तौर पर भर सकता है.” आखिरकार ये द्वीप है तो यूरोप का हिस्सा ही. उनके मुताबिक "इसका मतलब ये है कि कंपनियां डाटा सुरक्षा के मुद्दे पर यूरोपीय पैमानों पर भरोसा कर सकती हैं. इसके अलावा उन्हें बड़ा ही काबिल स्टाफ मिलेगा और बेहतरीन स्वास्थ्य देखरेख मिलेगी.”
इस द्वीप की क्षमताओं और खूबियों ने, रियूनियन स्थित लॉजिप्रेन कंपनी की सीईओ और संस्थापक ब्रीएट्रिस गुजों का दिल पहले ही जीत लिया है. लॉजिप्रेन, नवजात शिशुओं की दवाओं की खुराक की सटीक मात्रा की गणना का डिजिटल प्लेटफॉर्म है. पेशे से बाल रोग विशेषज्ञ बीएट्रिस ने 2016 में ये कंपनी बनाई थी. अपनी पूर्व नौकरी में उन्होंने देखा था कि किस तरह बच्चों को दी जाने वाली हर छठी खुराक उनके लिए विषैली बन जाती है. उन्होंने डीडबल्यू को बताया, "अपने सहयोगी के साथ मैंने अपने कंपनी को जानबूझकर रियूनियन द्वीप में स्थापित किया. यहां इंटरनेट स्पीड बहुत तेज है. अच्छे से प्रशिक्षित प्रबंधन और इंजीनियरिंग स्टाफ है और नियोक्ता के शुल्क पर हमें छूट भी मिल रही है.”
कंपनी मुनाफा कमा रही है और 2021 में उसका टर्नओवर 27 लाख यूरो का है. जल्द ही ये इंटरनेट प्लेटफॉर्म, मोरक्को, स्पेन और बेल्जियम में भी लाइव होगा और ब्रिटेन में अस्पतालों से बात चल रही है. लेकिन 2021 में, 40 लोगों के कुल स्टाफ में 15 अतिरिक्त नौकरियां जोड़ पाने के साथ ही- नये प्रोग्रामरों की तलाश का, कंपनी का संघर्ष भी शुरू हुआ है. इसीलिए गुजों के मुताबिक कि रियूनियन द्वीप का दुनिया का एक डिजिटल केंद्र बन जाना एक अच्छी खबर है. वो कहती हैं, "इससे और अधिक आईटी जानकार यहां आएंगे और नये स्टाफ की भर्ती में हमें आसानी होगी.”
निवेशक दिलचस्पी लेने लगे हैं
रियूनियन द्वीप इस बीच डिजिटल कंपनियों के रडार पर आ चुका है. ये मानना है कि डिजिटल रियूनियन नाम के उद्योग संगठन के अध्यक्ष स्टेफाने कोलोम्बेल का. ये समूह 5000 उस सेक्टर का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें करीब 5000 कर्मचारियों वाली 500 कंपनियां शामिल हैं. उन्होंने डीडबल्यू को बताया कि निवेशक रियूनियन द्वीप के बारे में सूचना हासिल करने के लिए हमसे लगातार संपर्क कर रहे हैं. इस बीच वो द्वीप की राजधानी सेंट-डेनिस में सालाना डिजिटल व्यापार मेले- एनएक्सएसई में आगंतुकों का स्वागत भी कर रहे हैं. छह साल पहले शुरू हुए इस मेले में प्रतिभागियों की संख्या तिगुनी होकर 900 पर पहुंच गई है.
कोलोम्बेल मानते हैं कि "विशाल डाटा केंद्रों के निर्माण से द्वीप के प्रति निवेशकों का रुझान बढ़ेगा. रियूनियन द्वीप बाहरी दुनिया से भलीभांति जुड़ा हुआ है लेकिन डाटा को लोकल स्तर पर बैकअप करके रखना भी हमेशा सही रहता है- इससे डाटा सुरक्षा बढ़ती है.” सेंट-डेनिस यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर फिलिप ज्यां पियरे कहते हैं कि, "डिजिटल सेक्टर में अतिरिक्त नौकरियां भी द्वीप की अर्थव्यवस्था और उसके नौ लाख निवासियों के लिए फायदेमंद होंगी. इस समय यहां बेरोजगारी की दर 18 प्रतिशत है और ये राष्ट्रीय औसत की दोगुना से ज्यादा है.
उनके मुताबिक "डिजिटल सेक्टर हजारों अतिरिक्त प्रत्यक्ष नौकरियां सृजित कर सकता है जो दूसरे सेक्टरों में अप्रत्यक्ष रोजगार में तब्दील हो सकती हैं.” लेकिन वो ये भी कहते हैं कि सभी बेरोजगारों का नयी गतिविधियों में समाहित हो पाना मुश्किल है. क्योंकि "ऐसे लोग भी हैं जो अपनी पूरी जिंदगी पारंपरिक क्षेत्रों में काम करते रहे हैं और उन्हें रातोरात एक डिजिटल रोजगार में नहीं ढाला जा सकता है.” (dw.com)
सऊदी अरब की राजकुमारी और उनकी बेटी को तक़रीबन तीन साल तक अति-सुरक्षित जेल में रखने के बाद आख़िरकार रिहा कर दिया गया है. उनकी रिहाई के लिए अभियान चलाने वाले लोगों ने इसकी पुष्टि की है.
राजकुमारी बसमा बिंत सऊद को मार्च 2019 में तब हिरासत में लिया गया था जब वो इलाज के लिए स्विट्ज़रलैंड जाने की तैयारी कर रही थीं.
इसकी वजह नहीं बताई गई थी कि उन्हें क्यों गिरफ़्तार किया गया था. उन पर और उनकी बेटी सुहूद पर किसी भी अपराध का कोई मामला शुरू नहीं किया गया था.
कई लोगों का अनुमान था कि यह शायद मानवीय मुद्दों और संवैधानिक सुधार को लेकर उनकी पैरवी करने के कारण है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक़, उनके परिवार ने संयुक्त राष्ट्र को साल 2020 में एक लिखित बयान में कहा था कि उनके कई बार आलोचना करने के कारण ऐसा किया गया है, ऐसी आशंका है.
कई और उनके समर्थकों का कहना था कि यह उनके पूर्व क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन नायेफ़ के साथ क़रीबी संबंधों के कारण है. ऐसी रिपोर्ट हैं कि नायेफ़ भी नज़रबंद हैं.
सऊदी अरब में मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले समूह ALQST फ़ॉर ह्यूमन राइट्स ने उनकी रिहाई की घोषणा ट्विटर पर की है.
समूह ने लिखा है कि राजधानी के बाहर अल-हैर जेल में हिरासत के दौरान उन्हें ‘इलाज देने से मना कर दिया गया जबकि उनकी जान को ख़तरा था.’
बीते साल अप्रैल में 57 वर्षीय राजकुमारी बसमा ने सऊदी के किंग सलमान और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से उनको रिहा करने की गुज़ारिश की थी. उन्होंने कहा था कि उन्होंने कुछ भी ग़लत नहीं किया है और उनका स्वास्थ्य लगातार ख़राब हो रहा है.
यह अभी तक साफ़ नहीं है कि 2019 में जब उन्हें हिरासत में लिया गया तो वो किस चीज़ का इलाज कराने जा रही थीं.
राजकुमारी बसमा किंग सऊद की सबसे छोटी बेटी हैं. किंग सऊद ने 1953 से 1964 के बीच सऊदी अरब पर शासन किया था. (bbc.com)
सीपीएन-माओवादी केंद्रीय समिति के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड समेत आधा दर्जन नेताओं के कोरोना वायरस संक्रमित होने की पुष्टि हुई है.
माओवादी पार्टी ऑफ़िस के चीफ़ सेक्रेटरी श्रीराम ढकाल ने बताया कि संक्रमण की पुष्टि होने के बाद, हाल ही में संपन्न माओवादी आम सम्मेलन में शामिल हुए सभी 1700 लोगों को अपना कोरोना वायरस टेस्ट कराने के लिए कहा गया है.
ढकाल के अनुसार, यूसीपीएन (एम) के अध्यक्ष प्रचंड और नारायण काजी श्रेष्ठ समेत आधा दर्जन नेताओं और पार्टी के दस से अधिक पदाधिकारियों के कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि हुई है.
ढकाल ने बताया, “हर किसी को ज़ोर देकर आरटी-पीसीआर टेस्ट कराने की सलाह दी गयी है और हर तरह की गाइडलाइन्स का पालन करने को कहा गया है.”
स्टाफ़ के कोरोना संक्रमित होने का पता चलने के बाद, कोटेश्वर के परिसदंडा के माओवादी पार्टी कार्यालय के सभी ग़ैर-ज़रूरी कामों को गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया है.(bbc.com)
जर्मनी के इतिहास में पहली बार एक खास पद बनाकर उसे महिलाओं और पुरुषों के अलावा अन्य प्रकार की यौन वरीयता और लैंगिक पहचान वालों के लिए काम करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. ग्रीन पार्टी के सांसद स्वेन लेमन बने पहले कमिश्नर.
डॉयचे वैले पर ऋतिका पाण्डेय की रिपोर्ट-
नए साल की शुरुआत जर्मन सरकार ने एक खास पद बना कर की है. इस नए पद पर जिम्मेदारी होगी कि वह समाज में गे, लेस्बियन, बाईसेक्शुअल, ट्रांस, क्वीयर और अन्य लोगों के लिए अनुकूल माहौल बनाए. 'नेशनल एक्शन प्लान फॉर सेक्शुअल एंड जेंडर डाइवर्सिटी' के पहले प्रमुख का पद संभालते हुए ग्रीन पार्टी के नेता स्वेन लेमन ने कहा कि "हर किसी को सुरक्षा और बराबरी के अधिकार के साथ आजादी से जीने लायक होना चाहिए." जर्मनी की संघीय सरकार के इसके लिए कमिश्नर का एक नया पद बनाया है. कमिश्नर सरकार के बाकी मंत्रालयों के साथ LGBTQ समुदाय पर असर डालने वाली सभी नीतियों पर मिल कर काम करेगा.
जर्मनी की नई सरकार में ग्रीन पार्टी के अलावा सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी और कारोबार-समर्थक एफडीपी की गठबंधन सरकार है. गठबंधन के संयुक्त समझौते में ही तीनों दलों ने "जर्मनी को भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में अगुआ बनाने," पर सहमति बना ली थी. लेमन ने अपनी नियुक्ति के बाद कहा कि वह जर्मन संविधान (बेसिक लॉ) के अनुसार "ट्रांस, इंटर या नॉन बाइनरी लोगों के मूल अधिकारों का पूरी तरह से लागू" करने के लिए काम करेंगे. इसके अलावा, उन्होंने लोगों के मन से क्वीयरफोबिया निकालने के लिए रणनीति बनानेकी भी बात कही.
42 साल के नेता सन 2017 से ग्रीन पार्टी की ओर से जर्मन संसद बुंडेसटाग के सदस्य रहे हैं. सन 2018 से 2021 तक वह ग्रीन पार्टी के ही एक संसदीय समूह के प्रवक्ता थे, जिसका काम क्वीयर और सामाजिक नीतियों पर केंद्रित था. इन समूहों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कई सरकारी और गैर सरकारी समूहों के साथ काम करने का अनुभव है. 2021 के संघीय चुनाव में वह कोलोन शहर की संसदीय सीट पर सीधे चुने गए थे. नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के इस शहर में जर्मनी का काफी बड़ा गे समुदाय रहता है.
इनके मुद्दों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने जर्मनी में उठाए गए इस कदम का स्वागत किया है. सन 2018 में जर्मनी विश्व के उन गिने चुने देशों में शामिल हो गया था जहां तीसरे लिंग को आधिकारिक मान्यता मिली. नई सरकार के एजेंडा में आगे चलकर और भी बड़े बदलावों की बात है. जैसे कि जर्मनी में अब भी गे इंसान के रक्तदान करने पर रोक है और ट्रांस लोगों के खुद अपना जेंडर चुनने में भी कुछ कानूनी अड़चनें हैं.
सरकार चाहती हैं कि जब कोई इंसान अपना लिंग बदलने की प्रक्रिया से गुजरे तो उसका पूरा मेडिकल खर्च भी बीमा कंपनियां उठाएं. पहले के कानूनों के कारण जबरन बधिया के शिकार हुए इंटरसेक्स लोगों को मुआवजा दिलाना भी एक मुद्दा है. 2011 में हुए कानूनी सुधारों के ऐसे लोगों का बधियाकरण कर उन्हें एक लिंग की पहचान दी जाती थी. ऐसे पीड़ितों को मुआवजा देने का रास्ता यूरोप के कुछ अन्य देश जैसे स्वीडन और नीदरलैंड पहले ही दिखा चुके हैं. जर्मन सेना में ऐसे कुछ मामलों में मुआवजा भरा गया था.
एक विशेष कमिश्नर को एलजीबीटीक्यू लोगों के लिए नियुक्त कर जर्मनी ने विश्व के तमाम देशों के सामने मिसाल पेश है. हालांकि 1990 के दशक से ही ऐसा करने की मांग उठती रही है लेकिन इतने सालों बाद जाकर वह पूरी हो पाई. नई जर्मन सरकार के लक्ष्यों में केवल लैंगिक और यौन आधार पर ही नहीं बल्कि किसी भी तरह के भेदभाव की कोई जगह बाकी ना रखना शामिल है. (dw.com)
तालिबान शासन को मान्यता न देने के बावजूद भारत ने दवाओं की एक और खेप अफगानिस्तान भेजी है. अंतरराष्ट्रीय मदद बंद होने से अफगानिस्तान में भुखमरी पसर रही है. तालिबान ने भी दुनिया से मानवीय मदद की अपील की है.
भारत से भेजी गई दो टन दवाओं की खेप शुक्रवार को काबुल के इंदिरा गांधी हॉस्पिटल पहुंच गई. इस अस्पताल को 2004 में भारत की मदद से बनाया गया था. अफगानिस्तान में 15 अगस्त 2021 को तालिबान के नियंत्रण के बाद यह तीसरा मौका है जब नई दिल्ली ने दवाएं और मेडिकल सामग्री भेजी है.
इससे पहले दिसंबर 2021 में भी भारत में पांच लाख डोज कोविड वैक्सीन और 1.6 टन मेडिकल सामग्री अफगानिस्तान भेजी थी.
तालिबान का अपील
इस बीच तालिबान के उप प्रधानमंत्री ने अंतराष्ट्रीय समुदाय से अपील करते हुए कहा है कि उनका देश बड़े मानवीय संकट का सामना कर रहा है. अब्दुल गनी बरादर ने अपने वीडियो मैसेज में कहा, "कई जगहों पर अभी लोगों के पास भोजन नहीं है, रहने के लिए जगह नहीं है, गर्म कपड़े भी नहीं है और पैसा भी नहीं है."
इसके बाद बरादर ने कहा, "दुनिया को बिना किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह के अफगान लोगों की मदद करनी चाहिए और अपनी मानवीय जिम्मेदारी निभानी चाहिए."
उत्तरी और मध्य अफगानिस्तान इस वक्त बर्फ से ढका है. वहीं दक्षिणी अफगानिस्तान के कई इलाके बाढ़ से जूझ रहे हैं. तालिबान के मुताबिक वह अंतरराष्ट्रीय मदद को देश भर में बांटने के लिए तैयार है.
कैसे अफगानिस्तान पहुंचेगा भारत का गेहूं
भारत अफगानिस्तान को 50,000 टन गेहूं भी देने का एलान कर चुका है. तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान में अनाज और खाने पीने के सामान की भारी किल्लत हो रही है. गेहूं पाकिस्तान होते हुए अफगानिस्तान भेजा जाएगा. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के मुताबिक पाकिस्तान सरकार के साथ माल ढुलाई को लेकर बातचीत चल रही है.
2014 में भारत में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के संबंध ठंडे पड़े हैं. पाकिस्तान नहीं चाहता है कि भारतीय ट्रक या मालगाड़ियां उसके उसकी सीमा में दाखिल हों.
मदद बंद होते ही अर्थव्यवस्था ठप
युद्ध से घायल अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय मदद पर टिकी थी. पुरानी अफगान सरकार का 80 फीसदी बजट खर्च इसी मदद से चलता था. तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत, अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन समेत ज्यादातर देशों ने अफगानिस्तान में अपने मिशन बंद कर दिए. आर्थिक और साजोसामान से जुड़ी मदद से ही अफगानिस्तान में अस्पताल, स्कूल, फैक्ट्रियां और सरकारी मंत्रालय चलते थे.
भारत की फिलहाल अफगानिस्तान में कोई राजनयिक उपस्थिति नहीं है. लेकिन भारत सरकार के प्रतिनिधियों ने अगस्त 2021 में दोहा में तालिबान के प्रतिनिधियों से बातचीत की. तालिबान भी कह चुका है कि वह भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा नहीं देगा. अपने बयानों में तालिबान ने कश्मीर में दखल न देने की बात कही. लेकिन पाकिस्तान और तालिबान की नजदीकी के कारण भारत संभल संभलकर कदम रख रहा है.
मॉस्को में तालिबान के साथ बातचीत में हिस्सा लेगा भारत
वैश्विक राहत एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान की आधी से ज्यादा आबादी भुखमरी का सामना कर सकती है. अफगानिस्तान की आबादी 3.8 करोड़ है. तालिबान शासन को अब तक किसी भी देश ने आधिकारिक मान्यता नहीं दी है. कई देश इस उधेड़बुन में हैं कि आम अफगान नागरिकों तक मदद किसी तरह पहुंचाई जाए.
ओएसजे/आरपी (एएफपी, एपी)
परमाणु ऊर्जा संयंत्र में किसी तरह की दुर्घटना होने पर पड़ोसी देशों के प्रभावित होने का खतरा रहता है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि इन संयंत्रों के इस्तेमाल का फैसला सिर्फ एक देश करे या फिर अपने पड़ोसियों से मिलकर करे.
डॉयचे वैले पर स्टुअर्ट ब्राउन की रिपोर्ट-
वर्ष 1986 में चेर्नोबिल परमाणु हादसे के बाद, पूरे यूरोप में रेडियोधर्मी विकिरण फैल गई थी. हादसे के 35 साल बाद भी कुछ कचरा मौजूद है. इस हादसे के बाद परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल को लेकर फिर से मूल्यांकन किया गया. मौजूदा परमाणु संयंत्रों को लेकर कठोर नियम बनाए गए. चेर्नोबिल हादसे के ठीक 25 साल बाद जापान के फुकुशिमा में परमाणु हादसा हुआ. इस हादसे ने दुनिया के कई देशों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का इस्तेमाल जारी रखना चाहिए या इसे चरणबद्ध तरीके से बंद कर देना चाहिए.
जर्मनी ने 2022 तक अपने देश में चल रहे सभी परमाणु संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का फैसला लिया है. बेल्जियम ने भी कहा कि वह 2025 तक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को पूरी तरह बंद कर देगा. हालांकि, फुकुशिमा हादसे के एक दशक बाद भी चीन, फ्रांस और अमेरिका सहित कई अन्य देश परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से पैदा होने वाली बिजली पर निर्भर हैं. इन देशों में कई ऐसे संयंत्र हैं जिनका निर्माण 1960 और 70 के दशक में किया गया था.
परमाणु ऊर्जा पर निर्भर फ्रांस
फ्रांस सबसे ज्यादा परमाणु ऊर्जा पर निर्भर है. यहां 70 फीसदी बिजली परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से पैदा होती है. उसने फरवरी 2021 में पुष्टि की कि उसने अपने 32 सबसे पुराने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के इस्तेमाल की अवधि को और 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया है. इस्तेमाल की अवधि बढ़ने के साथ बढ़ते सुरक्षा जोखिमों के कारण यह सवाल उठने लगा कि क्या कोई भी देश खुद से ऐसे फैसले ले सकता है या उसे अपने पड़ोसी देशों के साथ मिलकर ये फैसले लेने चाहिए.
जब फ्रांस ने फरवरी 2020 में जर्मन सीमा पर फेसेनहाइम में अपने सबसे पुराने परमाणु संयंत्र में रिएक्टर कवर और अन्य कमियों की वजह से एक रिएक्टर को बंद कर दिया था, तो जर्मनी की तत्कालीन पर्यावरण मंत्री स्वेन्या शुल्त्से ने परमाणु नीति को प्रभावित करने की जर्मनी की इच्छा की पुष्टि की थी. उन्होंने कहा था, "हम अपने पड़ोसी देशों में, परमाणु ऊर्जा से दूर जाने के अभियान के अपने प्रयासों में कमी नहीं आने देंगे. जर्मनी में हर हाल में परमाणु संयंत्रों को बंद किया जाएगा."
परमाणु मामलों पर फैसला किसका
द एथिक्स ऑफ न्यूक्लियर पावर के सह-संपादक और नीदरलैंड में डेल्फ्ट यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में ऊर्जा और जलवायु नीति के प्रोफेसर बेहनाम ताएबी कहते हैं कि कई ऐसी संधियां और समझौते हैं जिनके तहत देशों को एक-दूसरे से परामर्श लेना चाहिए. हालांकि, देश की सीमाओं के पार ऐसे स्थानीय समुदायों के साथ विशेष रूप से बातचीत करने के लिए कोई ढांचा नहीं है जो परमाणु दुर्घटना से सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं.
साल 1991 में देश की सीमा से बाहर पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन पर एस्पो सम्मेलन हुआ था. इसके तहत, सम्मेलन में समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशों को अपनी सीमा से बाहर परमाणु हादसे के प्रभावों को रोकना, कम करना और नियंत्रित करना जरूरी है. वहीं, 1998 में आरहुस सम्मेलन हुआ था जो रियो घोषणा के सिद्धांत 10 को लागू करता है. इसमें कहा गया है कि "पर्यावरण संबंधी मामलों को सभी संबंधित नागरिकों की भागीदारी के साथ सबसे अच्छे तरीके से नियंत्रित किया जाता है."
ताएबी के अनुसार, ये सम्मेलन देशों के बीच जोखिमों को स्थानांतरित करने के बारे में हैं और वे पड़ोसी देशों की सीमाओं पर रहने स्थानीय समुदायों के बारे में कुछ नहीं कहते हैं. इसमें यह भी साफ तौर पर नहीं बताया गया है कि इन स्थानीय समुदायों से सलाह लेनी है या नहीं. ताएबी का कहना है कि परमाणु ऊर्जा विकास से संबंधित ऐसी कोई बाध्यकारी प्रक्रिया नहीं है और ऐसा कोई ढांचा नहीं है जो फ्रांस को सीमा पार के गांव और शहरों के साथ संवाद करने और परामर्श करने के लिए मजबूर कर सके.
प्रभावित होने वाले समुदायों की भागीदारी
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के पास राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा नियामकों पर केंद्रित दिशानिर्देश हैं. हालांकि, यह प्रत्येक देश पर निर्भर करता है कि इस दिशा में आगे बढ़ने का निर्णय कैसे लिया जाए. फिनलैंड में लैपलैंड विश्वविद्यालय में आर्कटिक कानून के रिसर्च प्रोफेसर स्टेफान किर्षनर का कहना है कि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय और यूरोपीय संधियों के तहत सीमा पार प्रभावित होने वाले संभावित समुदायों से परामर्श किया जा सकता है.
प्रोफेसर स्टेफान किर्षनर कहते हैं, "सैद्धांतिक रूप से, बेहतर सहयोग से ही अच्छा काम हो सकता है, खासकर यूरोप में जहां एक देश की सीमाएं कई अन्य देशों से जुड़ी हुई हैं." डीडब्ल्यू को दिए बयान में, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की परमाणु ऊर्जा एजेंसी (एनईए) ने कहा कि वैश्विक ऊर्जा प्राधिकरणों ने पिछले दशक में 'संयुक्त कार्रवाई' का एक उच्च स्तर बनाया है, ताकि पहले से अधिक परमाणु सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. इन प्राधिकरणों में वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूक्लियर ऑपरेटर्स भी शामिल हैं. एनईए ने कहा, "दुनिया भर में सामान्य स्तर की समझ और कार्यप्रणाली है. इससे सभी देशों की क्षमता बढ़ी है, ताकि चालू संयंत्रों के लिए उच्च स्तर की परमाणु सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
दुर्घटनाओं के कारणों की जांच
डच सेफ्टी बोर्ड स्वतंत्र रूप से घटनाओं या दुर्घटनाओं के कारणों की जांच करता है. जर्मनी, नीदरलैंड और बेल्जियम का जिक्र करते हुए इस बोर्ड ने 2018 में कहा था कि ‘सीमा पार सहयोग कागजों' पर है, लेकिन अगर सच में कोई परमाणु दुर्घटना होती है, तो संभवत: यह सहयोग उतना प्रभावी नहीं होगा.
ऑस्ट्रिया ने चेक गणराज्य के टेमेलिन परमाणु संयंत्र का विरोध 10 वर्षों तक किया था. यह संयंत्र ऑस्ट्रिया की सीमा के नजदीक वर्ष 2000 में स्थापित गया था. कुछ नेताओं ने चेतावनी दी थी कि चेक गणराज्य को यूरोपीय संघ से बाहर कर दिया जाएगा. हालांकि, बाद में सुरक्षा उपायों को बेहतर और कड़ा करने की सहमति बनने के बाद मामला शांत हुआ. इस विवाद को सुलझाने के लिए यूरोपीय आयोग को आगे आना पड़ा था.
देश की सीमा से बाहर निर्णय लेने की क्षमता
बेहनाम ताएबी के अनुसार, सीमा पार परामर्श अक्सर राष्ट्रीय सरकारों तक सीमित होता है, क्योंकि समुदायों की जगह देश ही इन सम्मेलनों में हिस्सा लेते हैं. वह कहते हैं, "सम्मेलन में या फैसले लेने के समय स्थानीय समुदायों को शामिल किया जाना चाहिए. हम आपातकालीन प्रतिक्रियाओं के संबंध में सीमा पार रहने वाले समुदायों से परामर्श कर सकते हैं. अगर कोई दुर्घटना होती है, तो यह पहल काम आएगी."
अपनी सीमाओं पर परमाणु संयंत्रों का विरोध करने वाले समुदायों को अक्सर नियामकों और नीति-निर्माताओं या यूरोपीय संघ की अदालतों में जाने के लिए छोड़ दिया जाता है. 2016 में जर्मनी, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड और बेल्जियम में सीमा के पास रहने वाले समुदायों ने रिएक्टरों में दरार पाए जाने के बाद लीग के पास टिहांजे 2 परमाणु संयंत्र की सुरक्षा के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए यूरोपीय संसद में याचिका दायर की थी.
याचिकाकर्ता "इस बात को लेकर चिंतित थे कि केवल संबंधित देश ही परमाणु ऊर्जा संयंत्र को बंद करने का निर्णय लेता है." हालांकि, यूरोपीय संघ इस बात से सहमत नहीं हुआ कि संयंत्र को बंद कर देना चाहिए. कुछ एक्टिविस्ट बेल्जियम के संयंत्रों को बंद कराने के लिए यूरोपीय अदालत पहुंचे थे. इस मामले में भी संयंत्र बंद नहीं करने का फैसला सुनाया गया.
क्या फ्रांस को पुराने संयंत्रों के इस्तेमाल की अवधि बढ़ानी चाहिए?
बेल्जियम के संयंत्रों को बंद करने को लेकर दायर की याचिका के बाद, यूरोपीय आयोग ने राष्ट्रीय बनाम सीमावर्ती क्षेत्राधिकार के मुद्दे अपनी प्रतिक्रिया दी. आयोग ने 2018 में कहा, "परमाणु ऊर्जा संयंत्र को संचालित करने का निर्णय उस देश के पास रहता है. वह देश इसके सुरक्षित संचालन को सुनिश्चित करने के लिए भी जिम्मेदार है." इसी निर्णय को आधार बनाते हुए फ्रांस ने अपने पुराने संयंत्रों के इस्तेमाल की अवधि बढ़ा दी है. साथ ही, राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने हाल ही में घोषणा की है कि CO2 के उत्सर्जन को कम करने की अपनी प्रतिबद्धता को लेकर फ्रांस छोटे माड्यूलर रिएक्टर लगाएगा.
2020 में फ्रांस में परमाणु ऊर्जा उत्पादन 1995 के बाद से सबसे निचले स्तर पर आ गया है. 2021 विश्व परमाणु उद्योग स्थिति की रिपोर्ट के अनुसार, देश में परमाणु ऊर्जा की अपेक्षा नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. वहीं, ओईसीडी की परमाणु ऊर्जा एजेंसी और अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने बताया है कि पुराने परमाणु संयंत्रों के इस्तेमाल की अवधि को बढ़ाना ग्रीनहाउस उत्सर्जन को कम करने का प्रभावी उपाय है. एनईए ने एक बयान में डीडब्ल्यू को बताया, "मौजूदा परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का लगातार संचालन कई क्षेत्रों में कम कार्बन उत्पादन के लिए सबसे अधिक प्रभावी उपायों में से एक है."
परमाणु संयंत्रों पर जर्मनी का रवैया
इस मामले पर, जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने कहा कि वह वह परमाणु को अपनी जलवायु महत्वाकांक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने के लिए फ्रांस के अधिकार का सम्मान करते हैं. वहीं, जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने कहा कि जर्मनी यूरोपीय आयोग द्वारा ‘हरित निवेश' के रूप में परमाणु को मंजूरी देने के लिए फ्रांस के दबाव का विरोध करेगा.
जर्मनी की सीमा के नजदीक पोलैंड ने 2021 की शुरुआत में दो जगहों पर छह रिएक्टरों के निर्माण की मंजूरी दी है. इसमें एक रिएक्टर बाल्टिक सागर के किनारे बनाया जाएगा जो जर्मनी से महज 150 किलोमीटर दूर है.
पर्यावरण पर जर्मन संसद बुंडेस्टाग की कमेटी की अध्यक्ष सिल्विया कोटिंग-ऊल ने मई में डीडब्ल्यू को बताया था, "इस बात की 20 फीसदी संभावना है कि अगर परमाणु ऊर्जा संयंत्र में किसी तरह का हादसा होता है, तो जर्मनी उससे प्रभावित होगा. ‘सबसे खराब स्थिति' में 18 लाख जर्मन प्रभावित होंगे. इसका असर बर्लिन में भी होगा. वहीं, पोलैंड का कहना है कि संयंत्र पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे. (dw.com)
कोरोना वायरस का ओमिक्रॉन वेरिएंट दुनियाभर में तेजी से फैल रहा है. वहीं सर्दियों के मौसम में लोग आम बुखार और फ्लू के शिकार भी होते हैं. तो कैसे पता चले कि जो लक्षण दिख रहे हैं, वो सामान्य बुखार के हैं या कोरोना वायरस के.
दुनिया भर में तेजी से फैलते कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट को अभी तक गंभीर रूप से बीमार करने वाला नहीं माना जा रहा है, पर इसकी रफ्तार डरावनी साबित हो रही है. दूसरी तरफ तमाम देशों में यह सर्दियों के मौसम का वक्त है. ऐसे में लोग सर्दी, जुकाम, बुखार के भी शिकार हो रहे हैं.
कभी लापरवाही, तो कभी गलतफहमी में लोग कोरोना संक्रमण को भी आम बुखार समझ लेते हैं, जिसके नतीजे गंभीर हो सकते हैं. अब बुखार और कोरोना वायरस के लक्षण हैं ही इतने मिलते-जुलते कि डॉक्टर और विशेषज्ञ इसका सटीक पता लगाने के लिए टेस्टिंग कराने का ही सुझाव देते हैं.
कैसे फैलते हैं वायरस और लक्षण
ठंड से बुखार लाने वाला वायरस, फ्लू और कोविड-19 एक ही तरह से फैलते हैं. जब वायरस नाक या मुंह के जरिए हमारे शरीर में चला जाता है. जब तक हमें अहसास होता है, हम संक्रमित हो चुके होते हैं. हां, किसी वायरस से कोई कितने वक्त में बीमार महसूस करना शुरू कर देगा, इसमें अलग-अलग समय लगता है.
कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले कुछ लोग बिल्कुल भी बीमार महसूस नहीं करते, जबकि हो सकता है कि वो दूसरों को वायरस से संक्रमित कर रहे हों. मेरीलैंड यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट रिसर्च प्रोफेसर क्रिस्टन कोलमैन बताती हैं कि फ्लू और कोविड-19, दोनों में ही खांसी, बुखार, थकान और मांसपेशियों में दर्द आम बात है. कोरोना के खास लक्षणों में स्वाद और महक न आना भी शामिल है.
अफवाहों से सावधानी की जरूरत
सामान्य बुखार होने पर ये लक्षण हल्के होते हैं. साथ में नाक बहना या गले में दर्द होने जैसी दिक्कतें भी होती हैं. फ्लू में लगभग हर मरीज को बुखार तो आता ही है. इंटरनेट और सोशल मीडिया पर आपको जो भी अफवाहें देखने-सुनने को मिल रही हों, पर ऐसा नहीं है कि इन दोनों वायरस ने मिलकर कोई नई बीमारी बना दी है. पर यह जरूर मुमकिन है कि आपको फ्लू और कोरोना संक्रमण एक साथ हो जाए. इस परिस्थिति को कुछ लोग 'फ्लूरोना' नाम दे रहे हैं.
आपको कोई भी दो संक्रमण एक साथ हो जाएं, तो यह खतरनाक तो है ही. कोलमैन कहती हैं कि इससे आपको दोनों के लक्षण महसूस होंगे और शरीर की हालत और खराब हो जाएगी. वह बताती हैं, "अगर इन्फ्लुएंजा के मामले बढ़ते रहे, तो अगले कुछ हफ्तों में हमें लोगों के एक साथ दो वायरस से संक्रमित होने के ज्यादा मामले देखने पड़ सकते हैं."
दिसंबर की शुरुआत में हो रहे कुछ शोध में ये अनुमान लगाया गया था कि ओमिक्रॉन वेरिएंट में जब म्यूटेशन हुआ, तो इसने सामान्य बुखार फैलानेवाले वायरस का एक हिस्सा भी खुद में शामिल कर लिया. ऐसी रिपोर्ट्स आने के बाद इंटरनेट पर तमाम ऐसी अफवाहें फैलीं कि ओमिक्रॉन आम फ्लू है, जिसे नया नाम दे दिया गया है. बाद में इसका खंडन करनेवाली तमाम खबरें भी प्रकाशित हुईं. विशेषज्ञों ने मीडिया संस्थानों से बातचीत में कहा कि दोनों वायरस में कुछ समानताएं जरूर पाई जा रही हैं, लेकिन दोनों वायरस बिल्कुल अलग हैं, जिनका असर भी अलग होगा.
सबसे सटीक तरीका
तो अब जब तीन अलग-अलग वायरस से संक्रमित होने के बाद के लक्षण काफी मिलते-जुलते हैं, तो आपको कौन सा संक्रमण हुआ है, इसका पता लगाने के लिए टेस्टिंग ही सबसे अच्छा उपाय है. और सबसे जरूरी है डॉक्टर से सलाह लेना.
फ्लू का पता लगाने के लिए घर से सैंपल लेकर टेस्टिंग की सुविधा अपनी उतनी व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है, जितनी कोरोना की टेस्टिंग के लिए है, लेकिन कुछ फार्मेसी ऐसी भी हैं, जो एक साथ दोनों वायरस की टेस्टिंग की सुविधा भी देती हैं. इससे डॉक्टरों को भी सही सलाह देने में मदद मिलती है.
कोलमैन बताती हैं कि कई लैब एक ही सैंपल से अलग-अलग वायरस का पता भी लगा सकती हैं, लेकिन कोरोना के ज्यादा मामले आने की वजह से इन दिनों वे ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं. वहीं वैक्सीन कोरोना संक्रमण से बचाव का सबसे सही उपाय है. यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन सलाह देता है कि आप फ्लू और कोविड-19 का टीका या बूस्टर डोज एक साथ भी ले सकते हैं.
वीएस/एमजे (एपी, रॉयटर्स)
वाशिंगटन, 8 जनवरी | दुनियाभर में कोरोनावायरस के मामले बढ़कर 30.26 करोड़ से ज्यादा हो गए हैं। इस महामारी से अब तक कुल 54.7 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई हैं जबकि 9.37 अरब से ज्यादा का वैक्सीनेशन हुआ है। ये आंकड़े जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने साझा किए हैं।
शनिवार की सुबह अपने नए अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने बताया कि वर्तमान वैश्विक मामले, मरने वालों और टीकाकरण की कुल संख्या क्रमश: बढ़कर 302,679,314, 5,478,980 और 9,373,736,128 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे ज्यादा मामलों और मौतों 59,166,756 और 836,477 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
कोरोना मामलों में भारत दूसरा सबसे प्रभावित देश है, जहां कोरोना के कुल 35,226,386 मामलें है। तो वहीं संक्रमितों के 483,178 मामलें हैं जबकि 482,876 लोगों की मौत हुई है, इसके बाद ब्राजील में कोरोना के 22,328,252 मामले हैं जबकि 619,654 लोगों की मौत हुई हैं।
सीएसएसई के आंकड़ों के अनुसार, 50 लाख से ज्यादा मामलों वाले अन्य सबसे प्रभावित देश यूके (14,279,785), फ्रांस (11,618,224), रूस (10,437,471), तुर्की (9,852,458), जर्मनी (7,458,433), स्पेन (7,164,906), इटली (7,083,762), ईरान (6,204,224), अर्जेटीना (6,135,836) और कोलंबिया (5,268,862) हैं।
जिन देशों ने 100,000 से ज्यादा मौतों का आंकड़ा पार कर लिया है, उनमें रूस (308,258), मैक्सिको (299,970), पेरू (202,934), यूके (150,222), इंडोनेशिया (144,121), इटली (138,697), ईरान (131,821), कोलंबिया (130,250), फ्रांस (126,195), अर्जेटीना (117,428), जर्मनी (113,717) और यूक्रेन (103,434) शामिल हैं।(आईएएनएस)
मिन्सक, 8 जनवरी| बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने कजाकिस्तान के प्रथम राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबायेव से टेलीफोन पर बातचीत की। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने प्रेस रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, "बातचीत के दौरान कजाकिस्तान की स्थिति पर विस्तार से चर्चा की गई।"
विभिन्न रिपोटरें के अनुसार, पिछले कुछ दिनों में कजाकिस्तान में हिंसक विरोध प्रदर्शनों में कई मौतें हुई हैं।
कजाकिस्तान के सभी क्षेत्रों में संवैधानिक व्यवस्था को बड़े पैमाने पर बहाल किया गया है, वहां के राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट टोकायव ने शुक्रवार को कहा, आतंकवाद विरोधी अभियान तब तक जारी रहेगा जब तक कि आतंकवादियों का खात्मा नहीं हो जाता। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 7 जनवरी| इस्लामाबाद हाईकोर्ट (आईएचसी) ने इस्लामाबाद में रावल झील के किनारे पाकिस्तान नेवी सेलिंग क्लब को ध्वस्त करने का आदेश दिया है।
फ्राइडे टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने फैसला सुनाया कि नौसेना के पास अचल संपत्ति पर निर्माण करने का अधिकार नहीं है।
आईएचसी ने अगले तीन हफ्तों के भीतर क्लब को गिराने का आदेश दिया और अवैध नौकायन क्लब के निर्माण के लिए पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल (सेवानिवृत्त) जफर महमूद अब्बासी के खिलाफ आपराधिक और कदाचार कार्यवाही को मंजूरी दे दी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अदालत ने नौसेना अधिकारी के क्लब के उद्घाटन को भी असंवैधानिक माना।
मुख्य न्यायाधीश अतहर मिनल्लाह की अध्यक्षता में, आईएचसी ने कहा कि कैपिटल डेवलपमेंट अथॉरिटी (सीडीए) के पास पाकिस्तानी नौसेना को अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) जारी करने का अधिकार नहीं है।
अदालत के अनुसार, नौकायन क्लब राष्ट्रीय उद्यान की भूमि पर बनाया गया था।
रिपोर्ट में कहा गया है, अगर आपको अवैध हाउसिंग सोसाइटी या नेवल सेलिंग क्लब के लिए एनओसी जारी करने का अनुरोध प्राप्त होता है, तो आपको याचिका को शुरू में ही हटा देना चाहिए।
आईएचसी न्यायाधीश ने कहा, नौकायन क्लब अवैध है, और इसलिए, इसे तीन सप्ताह में ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए।
मूल याचिका एक नागरिक, जीनत सलीम द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने दावा किया है कि क्लब ने झील तक सार्वजनिक पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया है और यह उचित अनुमोदन या अप्रूवल के बिना बनाया गया एक अवैध निर्माण है। सेलिंग क्लब को जुलाई 2020 से सील कर दिया गया था। (आईएएनएस)
कज़ाख़स्तान में सरकार के ख़िलाफ़ हिंसक विरोध प्रदर्शनों से निपटने के लिए रूसी सेना को बुलाने का अमेरिका ने कड़ा विरोध करते हुए इस पर कई सवाल खड़े किए हैं.
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि इतिहास दिखाता है कि एक बार रूसी जब आपके घर में घुसते हैं तो फिर उन्हें बाहर निकालना बहुत मुश्किल होता है.
वहीं रूस ने कह दिया है कि उसके सुरक्षाबलों की तैनाती एक साझा सुरक्षा समझौते के तहत है जो कि अस्थाई है.
दूसरी ओर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी कज़ाख़स्तान में स्थिरता कायम करने के लिए ‘कड़े क़दम’ उठाने का समर्थन किया है.
चीन का कज़ाख़स्तान में भारी निवेश है और चीन के शिंजियांग प्रांत से कज़ाख़स्तान की सीमा लगती है. शिंजियांग में ही चीन को वीगर मुसलमानों के व्यवहार के प्रति वैश्विक आलोचनाओं का सामना करना पड़ता रहा है.
महंगाई के ख़िलाफ़ प्रदर्शन
देश में बढ़ते तेल के दामों के ख़िलाफ़ शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों में अब तक दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
कज़ाख़स्तान के राष्ट्रपति कासिम जोमार्त तोकाएव ने बताया है कि सुरक्षाबलों ने अल्माटी शहर को वापस अपने नियंत्रण में ले लिया है.
शहर में मौजूद बीबीसी संवाददाता ने तबाही के मंज़र के बारे में बताया है कि कैसे इमारतों को आग लगाई गई है और लूटा गया है और क्षतिग्रस्त कारों में शव पड़े हुए हैं.
रूस की सेना पहुंची कज़ाख़स्तान
कज़ाख़स्तान के राष्ट्रपति कासिम जोमार्त तोकाएव
राष्ट्रपति तोकाएव ने इस हिंसा के लिए विदेशों में ट्रेनिंग लेने वाले ‘आतंकियों’ को ज़िम्मेदार ठहराया है.
हालांकि, उन्होंने ये नहीं स्पष्ट किया है कि वे इस नतीजे पर कैसे पहुंचे.
इसी बीच कज़ाख़स्तान के अनुरोध पर रूस के नेतृत्व वाली सेना कज़ाख़्स्तान पहुंच चुकी है.
कज़ाख़स्तान के गृह मंत्रालय का कहना है कि 26 हथियारबंद अपराधियों को मार दिया गया है और हिंसा में 18 सुरक्षा अधिकारी भी मारे गए हैं.
गृह मंत्रालय का कहना है कि तीन हज़ार से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया गया है.
हालांकि, प्रभावित क्षेत्र में इंटरनेट बंद है और बहुत कम जानकारी सामने आ रही है.
स्थानीय मीडिया के मुताबिक़ पूरे देश में 70 चेक प्वाइंट्स लगाए गए हैं. (bbc.com)
कज़ाख़स्तान के राष्ट्रपति ने सरकार विरोधी प्रदर्शनों के मद्देनज़र सुरक्षाबलों को बिना चेतावनी दिए गोली मारने का आदेश दिया है.
यहां वैसे तो कई दिनों से प्रदर्शन हो रहे थे, लेकिन गुरुवार को देश के सबसे बड़े शहर अल्माटी की सड़कों पर हिंसा भड़क उठी.
अधिकारियों का कहना है कि हिंसा में 26 लोग मारे गए हैं. अब तक 3000 लोगों को हिरासत में लिया गया. (bbc.com)
अफगान महिलाओं की दुर्दशा के बावजूद देश भर में केवल 24 आश्रय गृह हैं जहां महिलाएं शरण ले सकती हैं. ये केंद्र अंतरराष्ट्रीय संगठनों के वित्तीय सहयोग से चलाए जा रहे हैं.
फातिमा ने बलात्कार, पिटाई और भुखमरी को सहा. जब यह सब सहन के बाहर हो गया तो उसने एक दिन खुद को मारने का फैसला किया. अब 22 साल की फातिमा अफगानिस्तान में पीड़ित महिलाओं के लिए एक आश्रय गृह में रहती है.
जब वह दस साल की थी तो उसे इस कद्र पीटा गया और फिर दीवार की तरफ धकेला दिया गया. वह कहती है, "मेरा सिर एक कील से टकरा गया... मैं लगभग मर गई." वह आश्रय में सुरक्षित महसूस करती है, लेकिन डरती है कि तालिबान सरकार आश्रय को बंद कर सकती है. फातिमा की कहानी लाखों अफगान महिलाओं की कहानी है.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 87 प्रतिशत अफगान महिलाओं ने किसी न किसी रूप में यौन, शारीरिक या मानसिक शोषण का सामना किया है. फातिमा का अपने परिवार से संपर्क टूट गया है और ससुराल वालों ने उसे जान से मारने की धमकी दी है. उसके पास इस आश्रय के अलावा और कहीं जाने के लिए नहीं है.
तालिबान का खौफ
अफगान महिलाओं की दुर्दशा के बावजूद देश भर में केवल 24 आश्रय गृह हैं जहां महिलाएं शरण ले सकती हैं. ये केंद्र अंतरराष्ट्रीय संगठनों के वित्तीय सहयोग से चलाए जा रहे हैं. तालिबान के देश पर कब्जा करने से पहले कुछ केंद्रों ने महिलाओं को प्रमुख शहरों में आश्रयों में स्थानांतरित कर दिया था. जिन महिलाओं ने अपने परिवार को सुरक्षित महसूस किया, उन्हें वापस भेज दिया गया. लगभग 100 महिलाओं को काबुल भेजा गया लेकिन काबुल भी तालिबान के हाथों में आ गया.
फातिमा के शेल्टर होम की निदेशक कहती हैं, ''हमें शुरू से ही सब कुछ करना होगा.'' तालिबान का कहना है कि वे महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है, लेकिन हकीकत कुछ और है. इस युद्धग्रस्त देश में छात्राओं के लिए अधिकांश माध्यमिक विद्यालय बंद हैं. कुछ क्षेत्रों को छोड़कर महिलाएं काम नहीं कर सकती हैं और हाल के आदेशों के मुताबिक महिलाएं पुरुषों के बिना लंबी यात्रा पर नहीं जा सकती हैं.
आशा की किरण
अफगानिस्तान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा ने जबरन विवाह को हतोत्साहित किया है. संयुक्त राष्ट्र के दूत के लिए तालिबान के नामित सोहेल शाहीन ने एमनेस्टी इंटरनेशनल को बताया कि हिंसा की शिकार महिलाएं अदालत जा सकती हैं.
अभी तक तालिबान ने महिला शेल्टर होम को लेकर कोई बयान नहीं दिया है. लेकिन तालिबान अधिकारियों ने उस केंद्र का दौरा किया जहां फातिमा 20 अन्य प्रभावित महिलाओं के साथ रह रही है. शेल्टर होम के एक कर्मचारी ने कहा, "जब वे यहां आए, तो उन्होंने देखा कि कोई पुरुष नहीं हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि यह जगह महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है. उन्हें अपने घरों में होना चाहिए."
एए/सीके (एएफपी)
कोलंबो, 7 जनवरी | श्रीलंका सरकार ने घोषणा की है कि वह दुबई की एक कंपनी के साथ बातचीत कर रही है, जिसने दुनिया के सबसे बड़े प्राकृतिक कोरन्डम ब्लू नीलम के लिए 100 मिलियन डॉलर(10 करोड़ डॉलर) की पेशकश की है, जिसे 'एशिया की रानी' कहा जाता है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, रत्न और आभूषण संबंधित उद्योग राज्य मंत्री लोहान रतवाटे ने स्थानीय डेली मिरर में यह कहते हुए उद्धृत किया कि 'एशिया की रानी' को बेचने की कंपनी की पेशकश पर सरकार द्वारा कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन कंपनी के बीच बातचीत चल रही है।
रतवाटे ने कहा कि इस बात पर भी चर्चा चल रही है कि क्या कोरन्डम नीलम को और अधिक कीमत पर नीलाम किया जाए।
रत्न के मालिक ने हाल ही में कहा था कि फ्रांसीसी रत्न वैज्ञानिकों में से एक ने कोरन्डम नीलम का मूल्य 200 मिलियन डॉलर से अधिक आंका था।
अधिकारियों ने पिछले महीने कहा था कि इस रत्न ने चीन और अमेरिका में संभावित खरीदारों में भी दिलचस्पी पैदा कर दी है।
सिंगल क्रिस्टल ब्लू नीलम का वजन लगभग 310 किलोग्राम है, इसका अनावरण दिसंबर 2021 में रत्नापुरा में एक निजी भूमि से पाए जाने के लगभग तीन महीने बाद किया गया था, जिसे 'रत्नों का शहर' कहा जाता है।
नीलम वर्तमान में श्रीलंका के राष्ट्रीय रत्न और आभूषण प्राधिकरण के स्वामित्व वाली एक प्रयोगशाला में संग्रहित है। (आईएएनएस)
दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ली जाए-म्युंग गंजे नहीं हैं लेकिन उन्हें गंजे मतदाताओं का खूब समर्थन मिल रहा है. ऐसा उनकी एक मांग के कारण हो रहा है.
दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रहे ली जाए-म्युंग को देश के ऐसे मतदाताओं का खूब समर्थन मिल रहा है जिनके सिर पर बाल कम हैं. ली ने सरकार से मांग की है कि सरकार बाल झड़ने का इलाज करवाने के लिए लोगों की आर्थिक मदद करे.
इसी हफ्ते की शुरुआत में ली ने यह प्रस्ताव पेश किया था. उसके बाद से बालों का झड़ना देश में एक बड़ा मुद्दा बन गया है. दक्षिण कोरिया में मार्च में राष्ट्रपति पद के चुनाव होने हैं लेकिन इस बार का यह मुद्दा पहले हुए चुनावों के मुद्दों से पूरी तरह अलग है.
बालों का बोलबाला
आमतौर पर दक्षिण कोरिया के चुनावों में सबसे बड़े मुद्दे उत्तर कोरिया, अमेरिका से संबंध और आर्थिक समस्याएं होती हैं. इस बार ऑनलाइन ग्रुप्स और सोशल मीडिया पर बाल झड़ना ही बड़ा मुद्दा बन गया है. इन समस्याओं से पीड़ित लोगों के सोशल ग्रुप्स में तो ली के प्रस्ताव के समर्थन में संदेशों की बाढ़ आ गई है. लेकिन कुछ लोग इस प्रस्ताव को लोक-लुभावन बताकर इसकी आलोचना भी कर रहे हैं.
सोशल मीडिया पर एक संदेश है, "जाए-म्युंग भाई, मुझे तुमसे प्यार है. मैं तुम्हें ब्लू हाउस में रोप दूंगा.”
एक अन्य संदेश है, "महामहिम राष्ट्रपति जी, आपने पहली बार कोरिया के गंजों को एक उम्मीद दी है.”
ली ने बुधवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि वह मानते हैं बालों को दोबारा उगाने का इलाज राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत कवर किया जाना चाहिए. फेसबुक पर उन्होंने लिखा, "आप लोग कृपया हमें बताएं कि गिरते बालों का इलाज करवाने के लिए आपको किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा है और नीतियों में किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए. मैं बाल झड़ने के इलाज पर एक सटीक नीति पेश करूंगा.”
नाखुश हैं आलोचक
ली एक बड़बोले लिबरल नेता हैं. सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवार ली इस वक्त राष्ट्रीय सर्वेक्षणों में सबसे आगे चल रहे हैं. हालांकि उनके आलोचक उन्हें एक खतरनाक लोकलुभावनवादी नेता कहते हैं.
दक्षिणपंथी अखबार मुनवा लिबो ने गुरुवार को अपने संपादकीय में लिखा, "(ली का विचार) बहुत से ऐसे लोगों के लिए एक जरूरी कदम प्रतीत हो सकता है जो अपने गिरते बालों को लेकर चिंतित हैं लेकिन यह कोई गंभीर समस्या नहीं बल्कि एक गंभीर लोकलुभावनवादी कदम है क्योंकि इससे हमारी बीमा योजना की वित्तीय स्थिरता प्रभावित होगी.”
फिलहाल अनुवांशिक अथवा आयु के कारण बालों का गिरना दक्षिण कोरिया की सरकारी बीमा योजना का हिस्सा नहीं है. अगर किसी विशेष बीमारी के कारण बाल झड़ते हैं तभी उनके इलाज का खर्च बीमा योजना से मिलता है. कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि देश के लगभग 20 प्रतिशत लोग बाल झड़ने की समस्या से पीड़ित हैं.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
जिनेवा, 7 जनवरी | नए कोरोना मामलों की वैश्विक संख्या में बीते सप्ताह की तुलना में 71 प्रतिशत की तेज वृद्धि हुई है, लेकिन नई मौतों की संख्या में 10 प्रतिशत की कमी आई है। ये जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, डब्ल्यूएचओ ने महामारी की स्थिति पर एक साप्ताहिक अपडेट में कहा कि 27 दिसंबर 2021 से 2 जनवरी,2022 तक लगभग 95 लाख नए मामले सामने आए जबकि 41,000 से ज्यादा नई मौतें हुई हैं।
सभी क्षेत्रों ने साप्ताहिक मामलों में वृद्धि दर्ज की, जिसमें अमेरिका ने सबसे ज्यादा (100 प्रतिशत), उसके बाद दक्षिण-पूर्व एशिया (78 प्रतिशत) और यूरोप (65 प्रतिशत) ने रिपोर्ट की है।
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि जहां अफ्रीका में अभी नई मौतों की संख्या में साप्ताहिक वृद्धि दर्ज की गई है, वहीं दुनिया के अन्य सभी क्षेत्रों में पिछले सप्ताह की तुलना में कमी दर्ज की गई है। (आईएएनएस)
दुबई, 7 जनवरी | अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने शुक्रवार को पुरुषों और महिलाओं के टी20 अंतर्राष्ट्रीय मैचों में धीमी ओवर दरों के लिए इन मैच पेनल्टी की शुरुआत की। इसमें यह भी कहा गया है कि पारी के बीच में वैकल्पिक ड्रिंक्स ब्रेक खेल परिस्थितियों का एक हिस्सा होगा। नई खेल परिस्थितियों में खेले जाने वाला पहला पुरुष मैच 16 जनवरी को जमैका के सबीना पार्क में वेस्टइंडीज और आयरलैंड के बीच एकमात्र मुकाबला होगा, जबकि दक्षिण अफ्रीका और वेस्टइंडीज के बीच तीन मैचों की सीरीज का पहला टी20 मैच 18 जनवरी को सेंचुरियन में होगा।
धीमी ओवर गति के लिए मैच के दौरान पेनल्टी का मतलब है कि फिल्डिंग टीम को इसके लिए दंडित किया जाएगा।
आईसीसी ने एक बयान में कहा, "ओवर रेट नियमों को खेल की परिस्थितियों के खंड 13.8 में दर्ज किया गया है, जो यह निर्धारित करता है कि एक फिल्डिंग टीम के अंत के लिए निर्धारित या पुनर्निर्धारित समय तक पारी के अंतिम ओवर की पहली गेंद फेंकने की स्थिति में होना चाहिए।"
आईसीसी ने कहा, "यदि वे ऐसी स्थिति में नहीं हैं, तो पारी के शेष ओवरों के लिए 30 यार्ड सर्कल के बाहर कम से कम एक क्षेत्ररक्षक को अनुमति दी जाएगी। मैच के दौरान दंड अनुच्छेद 2.22 में धीमी ओवर दर के लिए प्रतिबंधों के अतिरिक्त शामिल किया है।"
वैश्विक क्रिकेट शासी निकाय ने कहा कि धीमी ओवर की दरों के लिए इन-मैच पेनल्टी को 2021 में इंग्लैंड में सौ प्रतियोगिता में इसकी प्रभावकारिता को देखने के बाद शामिल किया गया था। (आईएएनएस)
काबुल, 7 जनवरी | इस सप्ताह की शुरूआत में पूरे अफगानिस्तान में भारी बर्फबारी और बारिश के कारण अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 23 अन्य घायल हो गए हैं। ये जानकारी स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट से सामने आई हैं।
खामा प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के नेतृत्व वाली अफगान सरकार के अधिकारियों का हवाला देते हुए, न्यूज एजेंसी बख्तर ने कहा कि देश के 90 प्रतिशत क्षेत्र में बर्फबारी या बारिश होने से वित्तीय नुकसान हुआ है।
हताहतों की रिपोर्ट हेलमंद, निमरोज, फराह, नंगरहार, कंधार, जजजान, तखर और काबुल से आई है।
आपदा प्रबंधन मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने बाढ़ के कारण फंसे कई लोगों को बचाया है।
हाल ही में भारी बर्फबारी और बारिश ने कई राजमार्गो को भी बंद कर दिया है और काबुल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए उड़ानें भी बाधित हो गई हैं।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 7 जनवरी| नेपाल में बगलुंग से 36 किलोमीटर पश्चिम में मध्य-पहाड़ी क्षेत्र में 4.3 तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया। भूकंप गुरुवार रात करीब 12 बजे 15 किमी की गहराई पर आया। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी ने जानकारी दी।
संपत्ति के नुकसान का तुरंत कोई विवरण उपलब्ध नहीं है।
यह स्थान भारत में अयोध्या (उत्तर प्रदेश) से 176 किमी और नेपाल की राजधानी काठमांडू से लगभग 300 किमी दूर है।
हिमालय में बसा, पूरा नेपाल एक भूकंप संभावित क्षेत्र, एक उच्च भूकंपीय क्षेत्र में स्थित है। (आईएएनएस)
रोम, 7 जनवरी| इटली में पहली बार कोरोना के दैनिक मामले 2 लाख के आंकड़े को पार गए। ओमिक्रॉन वेरिएंट को इसका कारण माना जा रहा है।
पिछले 24 घंटों में, देश में 219,441 मामले दर्ज किए गए, जिससे शुक्रवार की सुबह तक कुल संक्रमण की संख्या बढ़कर 6,975,465 हो गई।
देश में 30 दिसंबर, 2021 तक एक दिन में कभी भी 100,000 से अधिक नए मामले दर्ज नहीं किए गए थे। लेकिन तब से स्थिति लगभग हर दिन बदतर होती गई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इसी 24 घंटे की अवधि में 198 कोरोनोवायरस मौतों की घोषणा की। मरने वालों की संख्या अब 138,474 हो गई है।
इटली में गहन देखभाल इकाइयों में रोगियों की संख्या में भी वृद्धि जारी है, जो गुरुवार को 1,467 तक पहुंच गई।
लेकिन फिर भी, इंटेंसिव-केयर-यूनिट के रोगियों की संख्या 2020 से अब तक के उच्चतम स्तर से नीचे रही। हेल्थकेयर अधिकारियों ने इसके लिए वायरस से संक्रमित लोगों के लिए कम गंभीर परिणामों और उपचार के बेहतर तरीकों को जिम्मेदार ठहराया।
इटली ने बुधवार को नए नियम जारी किए जिसमें 50 वर्ष से अधिक आयु के सभी निवासियों को टीका लगवाना अनिवार्य है।
प्रधानमंत्री मारियो ड्रैगी ने संवाददाताओं को भेजे एक बयान में कहा कि हम अपवाहों पर ब्रेक लगाना चाहते हैं, और सभी का टीकाकरण करना चाहते है। (आईएएनएस)
संयुक्त राष्ट्र, 7 जनवरी| उत्तरी इथियोपिया को अस्थिर और अप्रत्याशित घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि लगातार बिगड़ती स्थिति राहत आपूर्ति के वितरण को और भी अधिक खराब कर रही है।
मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (ओसीएचए) ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र तत्काल सभी पक्षों से टाइग्रे, अमहारा और अफार में लोगों तक निर्बाध और निरंतर पहुंच की अनुमति देने का आह्वान करता है। खाद्य वितरण जारी है, लेकिन आवश्यक स्तर से काफी नीचे है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने ओसीएचए के हवाले से कहा कि यदि मानवीय आपूर्ति, ईंधन और नकदी जल्द ही टाइग्रे को नहीं पहुंचाई गई तो कई संयुक्त राष्ट्र और गैर-सरकारी सहायता संगठनों को अपना अभियान बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
कार्यालय ने कहा कि टाइग्रे में, मानवीय स्थिति लगातार बिगड़ रही है। 15 दिसंबर के बाद से मानवीय आपूर्ति करने वाला कोई भी ट्रक टाइग्रे में प्रवेश नहीं कर पाया है।
कार्यालय ने कहा कि 12 जुलाई के बाद से केवल 1,338 ट्रक टाइग्रे में दाखिल हुए। रोजाना करीब 100 ट्रकों की आवश्यकता है।
कार्यालय ने कहा कि मानवीय साझेदार यह सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय अधिकारियों के साथ काम कर रहे हैं कि कार्य सुनियोजित, स्वैच्छिक और सम्मानजनक हो। (आईएएनएस)
संयुक्त राष्ट्र, 7 जनवरी| यमन में संयुक्त राष्ट्र का मानवीय अभियान फंड की कमी से बाधित हो गया है। ये चेतावनी मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय (ओसीएचए) ने गुरुवार को दी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने ओसीएचए के हवाले से कहा कि यमन के लिए 2021 की मानवीय प्रतिक्रिया योजना को 1.6 अरब डॉलर के अंतर को छोड़कर, अपनी वित्त पोषण जरूरतों का 58 प्रतिशत प्राप्त हुआ है। इस वजह से सहायता एजेंसियों को महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को कम करने और बंद करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
देशभर में 80 लाख लोगों के लिए आपातकालीन खाद्य सहायता कम की जा रही है। प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं, पानी, सुरक्षा और अन्य कार्यक्रम भी लगभग बंद हो रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र लोगों से यमन में मानवीय प्रतिक्रिया के लिए जितना संभव हो सके, उतना वित्त पोषण बनाए रखने और बढ़ाने का आग्रह करता है, जो तकरीबन 1.6 करोड़ लोगों के लिए एक जीवन दान के बराबर है।
ओसीएचए ने कहा कि 2022 में, संयुक्त राष्ट्र यमन में एक मजबूत अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए सभी हितधारकों के साथ मिलकर काम करेगा, क्योंकि आर्थिक पतन मानवीय जरूरतों के लिए परेशानी का मुख्य सबब बनने वाला है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 7 जनवरी| वैश्विक कोरोनावायरस के मामले बढ़कर 30 करोड़ से ज्यादा हो गए हैं। अब तक कोरोना से 54.7 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है जबकि 9.33 अरब से ज्यादा का वैक्सीनेशन हुआ हैं। ये आंकड़े जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने साझा किए हैं।
शुक्रवार की सुबह अपने नए अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने बताया कि वर्तमान वैश्विक मामले, मरने वालों और टीकाकरण की कुल संख्या क्रमश: बढ़कर 300,095,481, 5,472,039 और 9,336,622,344 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे ज्यादा मामलों और मौतों क्रमश: 58,487,665 और 833,987 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
कोरोना मामलों में भारत दूसरा सबसे प्रभावित देश है, जहां कोरोना के 35,109,286 मामले हैं जबकि 482,876 लोगों की मौत हुई है, इसके बाद ब्राजील में कोरोना के 22,328,252 मामले हैं जबकि 619,654 लोगों की मौत हुई हैं।
सीएसएसई के आंकड़ों के अनुसार, 50 लाख से ज्यादा मामलों वाले अन्य सबसे प्रभावित देश यूके (14,100,303), फ्रांस (11,288,704), रूस (10,420,863), तुर्की (9,789,244), जर्मनी (7,399,015), इटली (6,975,465), स्पेन (6,922,466), ईरान (6,203,046), अर्जेटीना (6,025,303) और कोलंबिया (5,242,672) है।
जिन देशों में 100,000 से ज्यादा लोगों की मौतों का आंकड़ा पार कर लिया है, उनमें रूस (307,488), मैक्सिको (299,842), पेरू (202,904), यूके (149,993), इंडोनेशिया (144,116), इटली (138,474), ईरान (131,802), कोलंबिया (130,191), फ्रांस (126,001), अर्जेटीना (117,386), जर्मनी (113,446) और यूक्रेन (103,225) शामिल हैं। (आईएएनएस)
विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ने कहा है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट की वजह से तेजी से फैल रहे कोरोना संक्रमण ने दुनिया भर की स्वास्थ्य सेवाओं पर दवाब बढ़ा दिया है.
संगठन के प्रमुख डॉक्टर टेड्रोस घेब्रेयियस ने जिनेवा में एक प्रेसवार्ता में चेतावनी दी है कि ओमिक्रॉन के कारण बीमार भले ही डेल्टा वेरिएंट की तुलना में कम गंभीर दिख रही हो लेकिन इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए.
संगठन के प्रमुख ने कहा, "ऐसा लगता है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट, डेल्टा के मुकाबले कम ख़तरनाक है, विशेषकर उन लोगों के लिए जिन्हें टीका लग चुका है. लेकिन इसका ये अर्थ बिल्कुल नहीं है इसे 'माइल्ड' कहा जाए. पहले के वेरिएंट की ही तहर ओमिक्रॉन के कारण भी लोग अस्पतालों में भर्ती हो रहे हैं."
उन्होंने कहा कि इस बार संक्रमण की सूनामी तेज़ी से बढ़ रही है और इसकी वजह से स्वास्थ्य सेवाओं पर दवाब बढ़ रहा है. दुनिया भर में अस्पतालों में भीड़ बढ़ रही है.
गौरतलब है कि भारत में भी पिछले एक हफ़्ते के भीतर संक्रमण की रफ़्तार बेतहाशा बढ़ी है. (bbc.com)
कज़ाखस्तान में गैस की क़ीमतें बढ़ाने के ख़िलाफ़ भारी प्रदर्शन हो रहे हैं. पिछले कुछ दिनों से जारी ये विरोध प्रदर्शन इतने तीखे हो गए कि राष्ट्रपति कासिम जोमार्त तोकायेव ने सरकार बर्ख़ास्त कर दी और गैस की क़ीमतों को जल्दी ही क़ाबू करने का एलान कर दिया.
गुरुवार को एलान किया गया कि ईंधन की कीमत तय सीमा से ज़्यादा बढ़ाने पर पाबंदी छह महीने तक जारी रहेगी. पाबंदी हटाए जाने के बाद एलपीजी की कीमत दोगुनी हो गई थी.
राष्ट्रपति ने पहले ही कीमतें कम करने के एलान कर दिया था लेकिन लोगों का गुस्सा थमा नहीं और वे सड़कों पर डटे रहे.
इस बीच, प्रदर्शन के हिंसक मोड़ ले लेने पर हैरानी जाहिर की गई.
कज़ाखस्तान में हो क्या रहा है?
कज़ाखस्तान पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा रहा है. ये देश तेल और गैस के भंडार से भरा हुआ है. लेकिन पिछले दिनों सरकार ने एलपीजी की क़ीमतों पर लगी सीमा हटा दी. कज़ाखस्तान में लोग एलपीजी का कार के ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. क़ीमतें बढ़ने के साथ ही महंगाई भी बढ़ गई और इससे लोग भड़क गए.
गैस महंगी होने से भड़के लोगों का प्रदर्शन सोमवार को देश के एक इलाक़े में शुरू हुआ. लेकिन मंगलवार तक लगभग हर शहर में विरोध की यह आग फैल गई.
लोगों के इस प्रदर्शन ने जल्द ही हिंसक रूप ले लिया और पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े. कज़ाखस्तान के प्रमुख शहर और पूर्व राजधानी अल्माटी में सड़क पर आए हजारों प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हुई. इसमें दोनों तरफ़ के कई लोग घायल हुए.
बुधवार तक कज़ाखस्तान के कई हिस्सों में इमरजेंसी लगा दी गई. फिर भी हज़ारों की तादाद में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए. देश के कई इलाक़ों में इंटरनेट पर पाबंदी लगाने की ख़बरें मिलीं.
इसके बाद राष्ट्रपति कासिम तोकायेव ने सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया. उन्होंने सरकार पर ढिलाई का आरोप लगाया और कहा उसके चलते ही देश में प्रदर्शन हो रहे हैं. उन्होंने गैस की क़ीमतें घटाने का वादा किया. लेकिन लोगों का ग़ुस्सा शांत नहीं हुआ. विरोध कर रहे लोगों ने अल्माटी के मेयर के दफ़्तर में घुसकर उसमें आग लगा दी.
साल 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद कज़ाखस्तान स्वतंत्र हो गया. इसके बाद कई सालों तक यहां नूरसुल्तान नज़रबायेव का शासन रहा. वे 1984 में ही प्रधानमंत्री बन गए थे. उस वक्त कज़ाखस्तान, सोवियत संघ का ही हिस्सा था.
बाद में वे निर्विरोध राष्ट्रपति चुन लिए गए. उन्हें करिश्माई नेता माना जाता था. पूरे देश और इसकी नई राजधानी में उनकी कई मूर्तियां खड़ी हो गई थीं.
आख़िरकार 2019 में एक अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन के बाद उन्हें गद्दी छोड़नी पड़ी. लेकिन उसके तुरंत बाद हुए एक चुनाव में उनकी पसंद के नेता तोकायेव राष्ट्रपति चुन लिए गए. माना गया कि चुनाव में धांधली हुई थी. अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने उस चुनाव की आलोचना की.
तोकायेव के राष्ट्रपति बनने के बावजूद सत्ता पर नज़रबायेव की पकड़ बनी हुई है. विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा विरोध प्रदर्शन दरअसल उन्हीं के ख़िलाफ़ है.
नजरबायेव को इस्तीफ़ा दिए तीन साल हो गए हैं, लेकिन देश में बहुत कम बदलाव हुए हैं. सुधारों की धीमी गति से कज़ाखस्तान के लोग ख़फ़ा हैं. देश में लोगों का जीवन स्तर गिरता जा रहा है और नागरिक आज़ादी घटती जा रही है.
रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल अफ़ेयर्स (चैटहैम हाउस) की केट मेलिनसन ने बीबीसी रशियन से कहा, "नजरबायेव का कज़ाखस्तान के लोगों के साथ एक तरह का सामाजिक समझौता था. लोग उनके शासन के प्रति वफ़ादार थे, क्योंकि उनके अपने आर्थिक हालात सुधरते नजर आ रहे थे."
लेकिन वो कहती हैं कि साल 2015 से हालात बिगड़ने लगे और पिछले दो साल से ये बद से बदतरीन होते चले गए. इस बीच, कोविड के दौरान देश में महंगाई आसमान पर पहुंच गई.
कज़ाखस्तान में ज़्यादातर चुनाव सत्ताधारी पार्टी ही जीतती रही है. उसके पक्ष में सौ फ़ीसदी तक मतदान हुए हैं. देश में कोई असरदार विपक्ष भी नहीं है. लोग बढ़ती महंगाई से परेशान हैं. ऐसे में हाल में बढ़ी गैस की क़ीमतों ने आग में घी का काम किया और लोग बुरी तरह से भड़क गए.
कज़ाखस्तान में तरल गैस का इस्तेमाल सार्वजनिक परिवहन और निजी ट्रांसपोर्ट में होता है. इसकी क़ीमतों पर लगी सीमा हटने से महंगाई ने और ज़ोर पकड़ लिया और लोग विरोध में सड़कों पर उतर गए.
लोगों के सवाल
राष्ट्रपति की ओर से की गई सरकार की बर्ख़ास्तगी और गैस की क़ीमतें कम करने के लिए उठाए जा रहे क़दमों के बावजूद प्रदर्शनकारियों का विरोध थमा नहीं है. सड़कों पर उतरे लोग वापस जाने को तैयार नहीं हैं.
लोगों ने 2019 से सबक सीखा है. वे नज़रबायेव का इस्तीफ़ा चाहते हैं. उन्हें लगता है कि सिर्फ़ सरकार बदल देने से बात नहीं बन जाती. देश में हर जगह लोग पूछ रहे हैं कि आख़िर सत्ता में बैठे लोगों ने पिछले 30 साल में हमारे लिए किया क्या है?
दक्षिण-पश्चिम कज़ाख़स्तान के मंगिस्ताऊ प्रांत का झानाओजेन शहर फ़िलहाल चल रहे आंदोलन के प्रमुख केंद्रों में से एक है. 2011 के आंदोलन का भी यह शहर एक अहम केंद्र था. उस दौरान यहां पुलिस के साथ भिड़ंत में 14 लोग मारे गए थे.
पहली ये कि सरकार में सही तरीके से बदलाव हो. दूसरी मांग है कि स्थानीय गवर्नरों का सीधा चुनाव हो. (इस वक़्त उन्हें राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं). तीसरी मांग है कि 1993 के संविधान की वापसी हो, जिसमें राष्ट्रपति का कार्यकाल और उनके अधिकार सीमित थे.
प्रदर्शनकारियों की चौथी मांग है कि नागरिकों ख़िलाफ़ दर्ज मुक़दमे ख़त्म हों और पांचवीं मांग है कि ऐसे लोगों को शासन में लाया जाए, जिनका फ़िलहाल सत्ता में बैठे नेताओं से कोई संबंध न हो.
देश में चल रहे इन विरोध प्रदर्शनों का कोई सर्वमान्य नेता नहीं है. विश्लेषकों का कहना है कि देश में दशकों से असहमतियों को दबाया जाता रहा है. यहां चुनावी लोकतंत्र लगभग नदारद है.
सेंट पीटर्सबर्ग यूरोपियन यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञानी ग्रिगोरी गोलोसोव ने बीबीसी रशियन से कहा कि लोग अपनी आवाज़ उठाने सड़कों पर उतरे हैं.
"तानाशाही सरकारों के दौरान जब सत्ता अलोकप्रिय आर्थिक फ़ैसले लेती है, तो स्वाभाविक प्रतिक्रिया के तौर पर जनता सड़कों पर उतरकर ही अपनी नाराज़गी जताती है."
आगे क्या हो सकता है?
कज़ाखस्तान में अशांति बढ़ती ही जा रही है. प्रदर्शनकारी वापस जाने को तैयार नहीं हैं, लेकिन पुलिस कड़ाई करने से बच रही है. ऐसा लगता है कि सत्ता में बैठे लोग प्रदर्शनकारियों को सख़्ती से कुचलने के बजाय मामले को शांति से सुलझाने की कोशिश में लगे हैं.
गोलोसोव कहते हैं, "ऐसा लगता है कि तोकायेव अपना दबदबा और मज़बूत करना चाहते हैं, लेकिन साथ ही वह उदार भी बने रहना चाहते हैं. वे एक साथ ये दोनों काम कैसे कर पाएंगे!''
हालांकि मास्को कार्नेगी सेंटर से जुड़े विशेषज्ञ एलेक्जेंडर बाउनोव का नज़रिया अलग है. उनकी राय में कज़ाखस्तान एक ऐसा देश है, जो पारंपरिक तौर पर पश्चिमी देशों का सहयोगी नहीं रहा. ऐसे में पश्चिमी देश कज़ाखस्तान की अशांति की व्याख्या तानाशाही सरकार के ख़िलाफ़ लोकतांत्रिक विद्रोह के तौर पर करेंगे.
बाउनोव का कहना है कि पश्चिमी देशों के लिए कज़ाखस्तान के प्रदर्शनकारियों की अनदेखी मुश्किल होगी. वे इनका समर्थन करेंगे और कज़ाखस्तान की सत्ता में बैठे नेता भी पश्चिम के इस संभावित रुख़ का जवाब देंगे. अगर इस प्रदर्शन को लेकर पश्चिमी देशों और कज़ाखस्तान के बीच टकराव हुआ, तो निश्चित तौर पर यह देश आगे जाकर रूस के और क़रीब हो जाएगा.
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की रिसर्च फ़ेलो डायना कुदायबर्गनोवा के मुताबिक़, ऐसे संकेत हैं कि कज़ाखस्तान के आला अधिकारी इस समस्या को शांति से सुलझाने की कोशिश करेंगे. एक तरीक़ा तो यही है कि राष्ट्रपति कुछ प्रदर्शनकारियों को बातचीत के लिए बुलाएं. लोगों को लगना चाहिए कि उनकी आवाज़ सुनी जा रही है.
कज़ाखस्तान गैस, तेल और कुछ खनिजों का प्रमुख निर्यातक है. लिहाज़ा उसे इसका भी ध्यान रखना होगा कि देश की अर्थव्यवस्था में निवेशकों का भरोसा बना रहे. इसके लिए राजनीतिक स्थिरता बहुत ज़रूरी है.
इसके साथ एक और अहम बात यह है कि देश में काफ़ी लोग पूर्व राष्ट्रपति नजरबयेव के साये में रहते हुए उकता चुके हैं. वे असल बदलाव के लिए लड़ने को तैयार दिखते हैं. लेकिन इतना तय है कि अगर कज़ाखस्तान में उथलपुथल का दौर और तेज़ हुआ तो पूरा मध्य एशिया इससे प्रभावित होगा.
शायद इसीलिए रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर उम्मीद जताई है कि कज़ाखस्तान में बातचीत से मसला सुलझा लिया जाएगा और हालात पटरी पर आ जाएंगे. हालांकि उसने कहा है कि यह कज़ाखस्तान का अंदरुनी मामला है. लेकिन रूसी मीडिया के एक हिस्से में कहा जा रहा है कि पश्चिम ताकतों ने इन प्रदर्शनकारियों को भड़काया है. (bbc.com)