अंतरराष्ट्रीय
-संजीव शर्मा
नई दिल्ली, 10 दिसम्बर | पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में चल रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान 'सरकारी संस्थानों के खिलाफ' बयान देने के आरोप में ग्वादर में पुलिस ने 77 वर्षीय अवामी वर्कर्स पार्टी (एडब्ल्यूपी) के कार्यकर्ता यूसुफ मस्तीखान को गिरफ्तार किया है, जो कि एक कैंसर रोगी हैं।
फ्राइडे टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यूसुफ मस्तीखान को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
मस्तीखान के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई है जिसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि उन्होंने एडब्ल्यूपी कार्यकर्ता को राष्ट्र, सशस्त्र बलों और खुफिया एजेंसियों के खिलाफ भड़काऊ भाषण देते सुना है।
शिकायत में मस्तीखान के हवाले से कहा गया है कि 1947 में बलूचिस्तान को जबरन पाकिस्तान का हिस्सा बनाया गया था और राष्ट्र प्रांत के लोगों को 'गुलाम' मानता है।
प्राथमिकी के अनुसार, मस्तीखान ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान 1953 से प्रांत से गैस की चोरी कर रहा है।
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) ने भी एडब्ल्यूपी कार्यकर्ता की गिरफ्तारी की निंदा की है। एचआरसीपी ने कहा, "उन्होंने इस मांग के अलावा और कुछ नहीं किया है कि राज्य ग्वादर के निवासियों को नागरिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकार दे, जिसके वे हकदार हैं।"
अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी राजनेता की गिरफ्तारी पर चिंता व्यक्त की।
एक सोशल मीडिया यूजर ने कहा, "वास्तव में उनके स्वास्थ्य के बारे में चिंतित हैं, क्योंकि वह वृद्ध हैं और एक एडवांस स्टेज के कैंसर रोगी हैं।"
रिपोर्ट के अनुसार, एक अन्य यूजर ने लिखा कि नेता की गिरफ्तारी को लेकर पूरे बलूचिस्तान में गुस्सा है और नागरिक समाज और प्रगतिशील राजनीतिक आंदोलनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।
ग्वादर में एक महीने से अधिक समय से विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं, प्रदर्शनकारियों ने पीने के पानी तक पहुंच सहित बुनियादी अधिकारों की मांग की है। इसके अलावा भी लोगों की कई मांगे हैं, जिनमें जीवानी से कराची तक तटीय राजमार्ग पर अनावश्यक जांच चौकियों को हटान, सीमा व्यापार पर प्रतिबंध तत्काल हटाना और अन्य चीजों के अलावा ईरान से खाद्य पदार्थों का परिवहन शामिल है। (आईएएनएस)
कोलंबो, 10 दिसम्बर | श्रीलंका सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश करने वालों के लिए कोविड वैक्सीन कार्ड अनिवार्य करने पर विचार कर रहा है। राष्ट्रपति कार्यालय ने शुक्रवार को इसकी घोषणा की। कोविड -19 नियंत्रण पर विशेष समिति ने कहा कि उन्होंने भविष्य में सार्वजनिक स्थानों में प्रवेश करते समय टीकाकरण कार्ड को अनिवार्य बनाने का निर्णय लिया है। हालांकि, इन्होंने कहा कि महामारी के प्रसार को रोकने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश करने से टीका नहीं लेने वालों को रोकने के संबंध में कानूनी सलाह भी मांगी गई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय शारीरिक टीकाकरण कार्ड को मोबाइल एप्लिकेशन से बदलने की भी योजना बना रहा है।
इस बीच, राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने विशेष समिति के सदस्यों को आगामी त्योहारी सीजन के दौरान कोविड-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए अगले दो सप्ताह के भीतर बूस्टर खुराक देने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया है।
शुक्रवार को, द्वीप राष्ट्र ने 30 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए फाइजर-बायोएनटेक बूस्टर खुराक को भी शुरू करना शुरू कर दिया है, जिन्होंने किसी भी कोविड -19 वैक्सीन के दो खुराक लिए हैं। अक्टूबर के बाद से, फ्रंटवर्क लाइन के स्वास्थ्य कर्मियों और 60 वर्ष से ऊपर के लोगों को बूस्टर खुराक दी गई है।
देश ने 16 से 19 साल के बच्चों को दूसरी खुराक और 12 से 15 साल के बीच के सभी बच्चों को पहली खुराक देने को हरी झंडी दे दी है।
देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक गंभीर वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहा है। राष्ट्रपति राजपक्षे ने पर्यटन पर लगाए गए प्रतिबंधों में और ढील देने का निर्देश दिया।
कोविड -19 के नए ओमिक्रॉन वैरिएंट के प्रसार की खबर के बाद, छह अफ्रीकी देशों - दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, नामीबिया, बोत्सवाना, लेसोथो और इस्वातिनी के यात्रियों पर 27 नवंबर को लगाया गया यात्रा प्रतिबंध शुक्रवार को हटा लिया गया है।(आईएएनएस)
सोने के खनन और इलेक्ट्रॉनिक्स में इस्तेमाल होने वाला पारा गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है. लेकिन पारे के व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद किर्गिस्तान उत्पादन बढ़ा रहा है.
डॉयचे वैले पर डायना क्रुजमान की रिपोर्ट-
ऐडारकेन किर्गिस्तान में एक पहाड़ी शहर है. इसके पास में ही खनिक पहाड़ों पर भारी मशीनों की मदद से काम कर रहे हैं. खदान मजदूर धातु खोजने के लिए चट्टानों को अपने हथौड़ों से तोड़ते हैं. चमकदार धातु को पाने के लिए मजदूर कड़ी मशक्कत करते हैं. पारा खतरनाक गुणों वाली धातु है.
ऐडारकेन खदान धरती पर उन अंतिम स्थानों में से एक है जहां अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए कानूनी रूप से नया पारा निकाला जाता है. 2013 में 135 देशों ने मिनामाता कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए, यह एक वैश्विक समझौता है जो नए पारा उत्पादन पर प्रतिबंध लगाता है और इसका उद्देश्य धातु में अधिकांश अंतरराष्ट्रीय व्यापार को समाप्त करना है.
क्या है मिनामाता कन्वेंशन
वैश्विक समझौते के तहत पारा का कारखाना उत्पादन प्रतिबंधित है और अंतरराष्ट्रीय बाजारों से धातु को हटाना समझौते का हिस्सा है. इसका नाम जापान के मिनामाता शहर के नाम पर रखा गया है. यह समझौता 16 अगस्त 2016 को लागू हुआ था.
किर्गिस्तान की अर्थव्यवस्था में पारा खनन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसलिए यह मिनामाता समझौते का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है. किर्गिज स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा संचालित एक प्रयोगशाला के प्रमुख महमूद इसराइलियोव का कहना है, "पारे के पर्यावरण प्रदूषण के लिए हम जिम्मेदार नहीं है क्योंकि यह एक वैश्विक समस्या है."
पारे का अंतरराष्ट्रीय बाजार
किर्गिज शहर ऐडारकेन में पारा खनन 1941 में पूर्व सोवियत संघ के दौरान शुरू हुआ था. साम्यवादी सोवियत संघ के पतन के बाद भी खदान सरकारी नियंत्रण में रही. किर्गिस्तान में प्राप्त पारा चीन, रूस, कजाकिस्तान, यूक्रेन, भारत, फ्रांस और अमेरिका को निर्यात किया जाता है. मिनामाता कन्वेंशन के बाद भी पारा के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार 38 मिलियन यूरो का है. अंतरराष्ट्रीय बाजार से पूंजी किर्गिस्तान की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा सहारा है.
एक और महत्वपूर्ण बिंदु है कि पारे के अवैध खनन से अंतरराष्ट्रीय काला बाजार भी लाभान्वित हो रहा है. यह अवैध खनन भी अमेजन क्षेत्र के लिए एक बड़ी समस्या है.
पारे का हानिकारक प्रभाव
पारा एक जहरीली धातु है. यह कुदरती तौर पर हवा, पानी और मिट्टी में मिलता है. ज्वालामुखियों आदि से यह हवा-पानी में मिल जाता है. हालांकि प्रदूषण ने इसकी मात्रा बढ़ाई है. कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र और सोने का खनन आदि ऐसी गतिविधियां हैं जिन्होंने वातावरण में पारे की मात्रा बढ़ाई है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पारे को 10 ऐसे रसायनों में रखा है, जो इंसानी सेहत के लिए खतरनाक हैं. बहुत कम मात्रा में भी इनका मानव शरीर पर बहुत बुरा असर होता है. यह स्नायुतंत्र, पाचन तंत्र और फेफड़ों, गुर्दों त्वचा व आंखों पर सीधा प्रभाव डालता है.
2013 में ऐडारकेन में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किर्गिज शहर के पास के क्षेत्रों से एकत्र किए गए नमूनों में पारा पाया गया था. ऐडारकेन खदान से पारा को वाष्पित होने से रोकने के सरकार के प्रयासों के अब तक कोई उत्साहजनक परिणाम नहीं मिले हैं. (dw.com)
न्यूजीलैंड की सरकार एक कानून लाने की योजना बना रही है, जिसके तहत 2027 के बाद आने वाली पीढ़ी सिगरेट नहीं पीती होगी.
न्यूजीलैंड ने तंबाकू उद्योग पर दुनिया की सबसे कठिन कार्रवाई में से एक में युवाओं को अपने जीवनकाल में सिगरेट खरीदने पर प्रतिबंध लगाने की योजना बनाई है. देश का तर्क है कि धूम्रपान का सेवन खत्म करने के अन्य प्रयासों में बहुत अधिक समय लग रहा है.
प्रस्तावित कानून के मुताबिक 14 वर्ष और उससे कम्र उम्र के लोग 2027 में कभी भी सिगरेट नहीं खरीद पाएंगे. 50 लाख की आबादी वाले देश में 9 दिसंबर को नया कानून का खाका पेश किया गया. कानून तंबाकू के खुदरा विक्रेताओं की संख्या पर भी अंकुश लगाएगा और सभी उत्पादों में निकोटीन के स्तर में कटौती करेगा.
स्वास्थ्य मंत्री आयशा वेर्रल ने एक बयान में कहा, "हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि युवा कभी धूम्रपान न करें, युवाओं के नए समूहों को धूम्रपान करने वाले तंबाकू उत्पादों को बेचने या आपूर्ति करने के लिए इसे अपराध बना देंगे."
उन्होंने कहा, "अगर कुछ नहीं बदलता है, तो माओरी धूम्रपान की दर 5 प्रतिशत से कम होने तक दशकों लगेंगे और यह सरकार लोगों को पीछे छोड़ने के लिए तैयार नहीं है."
सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में 15 वर्ष से अधिक आयु के सभी न्यूजीलैंड के 11.6 प्रतिशत लोग धूम्रपान करते हैं, यह अनुपात मूल निवासी माओरी वयस्कों में 29 प्रतिशत तक पहुंच जाता है.
2022 के अंत तक इसे कानून बनाने के उद्देश्य से सरकार अगले साल जून में संसद में बिल पेश करने से पहले आने वाले महीनों में माओरी स्वास्थ्य कार्य बल के साथ परामर्श करेगी.
इसके बाद प्रतिबंधों को 2024 से चरणों में शुरू किया जाएगा, जिसकी शुरुआत अधिकृत विक्रेताओं की संख्या में तेज कमी के साथ होगी. 2025 में निकोटीन की आवश्यकता कम हो जाएगी और 2027 से "धूम्रपान-मुक्त" पीढ़ी आने लगेगी. 2027 में न्यूजीलैंड एक ऐसी पीढ़ी चाहता है जो सिगरेट नहीं पीती हो.
न्यूजीलैंड की तरह यूनाइटेड किंगडम 2030 तक धूम्रपान मुक्त होने का लक्ष्य निर्धारित किया है जबकि कनाडा और स्वीडन ने आबादी के 5 प्रतिशत से भी कम को धूम्रपान के प्रसार को करने का लक्ष्य रखता है.
एए/सीके (रॉयटर्स, एपी)
नासा की जेम्स वेब दूरबीन अंतरिक्ष में भेजी जाने वाली अभी तक की सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली दूरबीन है. इसके जरिए वैज्ञानिक अंतरिक्ष की गहराइयों में और अरबों साल पीछे के समय में झांक पाएंगे.
नासा ने कहा है कि हबल दूरबीन की जगह लेने वाली जेम्स वेब दूरबीन उस समय में झांकने में वैज्ञानिकों की मदद करेगी जब सबसे पहली आकाशगंगाओं का बनना शुरू हुआ था. नासा के शब्दों में यह "अंतरिक्ष का और समय का ऐसा हिस्सा है जिसे कभी देखा नहीं गया."
यानी ब्रह्मांड की जवानी के दिन, बिग बैंग सिर्फ कुछ करोड़ों साल बाद. नासा के गॉडार्ड अंतरिक्ष उड़ान केंद्र में इंस्ट्रूमेंट सिस्टम्स इंजीनियर बेगोनिया विला ने एक वार्ता में बताया कि दूरबीन समय में करीब एक अरब 35 करोड़ साल पीछे देखने की कोशिश करेगी, जो कि "विज्ञान के लिए काफी उत्कृष्ट लक्ष्य" है.
बीते समय में देखना
उन्होंने बताया कि इसका उद्देश्य है वैज्ञानिकों को यह मालूम करने का मौका देना कि आकाशगंगाएं "कैसे बदलीं और वैसी बनीं जिस रूप में आज हम उनमें रहते हैं." टेलिस्कोप सबसे पहले बने सितारों का भी अध्ययन करेगी और "पानी, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन जैसे जीवन का संकेत माने जाने वाले तत्वों" को खोजने की कोशिश करेगी.
रोशनी को यात्रा करने में लगने वाले समय की वजह से अंतरिक्ष की गहराइयों में देखने का मतलब बीते समय में देखना होता है. उदाहरण के तौर पर सूरज की रौशनी को पृथ्वी पर पहुंचने में आठ मिनटों का समय लगता है. हबल एक अरब 34 करोड़ सालों से आगे नहीं जा पाई और उसने जीएन-जेड11 नाम की अभी तक जानी जाने वाली सबसे पुरानी आकाशगंगा की खोज की.
जीएन-जेड11 के बारे में सबसे पहले बताने वाले स्विट्जरलैंड के तारा-भौतिकविद पास्कल ओश का कहना है कि वो प्राचीन आकाशगंगा भले की सिर्फ एक बिंदु थी लेकिन वो "एक आश्चर्य भी थी और उसमें ऐसा प्रकाश था जिसकी किसी ने इतनी दूर से उम्मीद नहीं की थी."
इंफ्रारेड से लैस दूरबीन
1990 में लॉन्च की गई हबल मुख्य रूप से दिखाई देने वाली रोशनी पर काम करती है वेब इंफ्रारेड पर ध्यान केंद्रित करती है. उसे 22 दिसंबर को लॉन्च किया जाएगा. नासा का कहना है कि ब्रह्मांड के सबसे पहले रोशनी वाले पिंडों से जो रोशनी निकली थी वो ब्रह्माण्ड के लगातार होते विस्तार की वजह से आज हम तक इंफ्रारेड के रूप में पहुंचती है.
वेब हबल से काफी ज्यादा संवेदनशील है और उम्मीद की जा रही है कि वो और ज्यादा बारीकियों वाली तस्वीरें उपलब्ध करवाएगी. उसकी इंफ्रारेड क्षमता तारों के बीच मौजूद धूल के बादलों के अंदर भी देख पाएगी को अक्सर सितारों की रोशनी को सोख लेती है.
फ्रेंच अटॉमिक एनर्जी कमीशन में तारा-भौतिकविद डेविड एल्बाज कहते हैं कि इससे "इन बादलों के अंदर, सितारों और आकाशगंगाओं के जन्म को देखना मुमकिन हो पाएगा." वेब को नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और कैनेडियन अंतरिक्ष एजेंसी ने मिल कर बनाया है.
सीके/एए (एएफपी)
जानकार मानते हैं कि भारत के बड़े आकार से अलग इस तरह की प्रवृत्ति के पीछे कई तरह की खींचतान और अनोखी काबिलियत है. प्रॉब्लम सॉल्विंग, अंग्रेजी भाषा का ज्ञान और लगातार कड़ी मेहनत करने की क्षमता भी इसमें अहम रोल निभाती है.
ट्विटर के नए सीईओ पराग अग्रवाल भारत के प्रतिष्ठित आईआईटी संस्थान के भूतपूर्व स्टूडेंट्स के क्रम में नए जुड़ गए हैं, जिन्हें अमेरिका की सबसे बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियों में से एक की कमान सौंपी गई है. अब शिवानी नंदगांवकर उन्हीं के पदचिन्हों पर चलना चाहती हैं.
22 साल की शिवानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे की स्टूडेंट हैं जिस संस्थान से पराग अग्रवाल ने भी पढ़ाई की है. शिवानी को भी गूगल में प्लेसमेंट मिल गया है और वे भी उन हजारों आईआईटी ग्रैजुएट्स में शामिल हो चुकी हैं, जो भारतीय संस्थानों से निकलकर बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियों में जाते हैं.
वे कहती हैं, "जब मैंने पराग के बारे में सुना तो मुझे बहुत खुशी हुई. एक आईआईटीयन गूगल का भी सीईओ है, सुंदर पिचाई. इसलिए अब मेरे लिए सफलता की सीढ़ियों का यही मतलब था."
बड़ी कंपनियों के सबसे बड़े पदों पर
पराग अग्रवाल, एस ऐंड पी 500 में शामिल किसी कंपनी के सबसे कम उम्र के सीईओ हैं. वे अभी मात्र 37 साल के हैं. गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट के 49 साल के सीईओ सुंदर पिचाई की तरह ही उन्होंने भी भारत को अपनी आईआईटी की पढ़ाई पूरी करने के बाद छोड़ दिया था. फिर उन्होंने अमेरिका से ही पोस्टग्रैजुएशन किया और यहां कई कंपनियों में काम भी किया.
अन्य भारतीय, जो ऊंचे कॉरपोरेट पदों पर रहे हैं, उनमें हैं आईबीएम के अरविंद कृष्णा और पॉलो ऑल्टो नेटवर्क्स के निकेश अरोड़ा. ये दोनों भी आईआईटी के ही स्टूडेंट रहे हैं. माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला और अडोबी के शांतनु नारायण का नाम भी इसी क्रम में आता है.
भारतीय सबसे आगे क्यों?
बड़ी कंपनियों के अधिकारी और एक्सपर्ट कहते हैं कि भारत के बड़े आकार से अलग इस तरह की प्रवृत्ति के पीछे कई तरह की खींचतान और अनोखी काबिलियत है. साथ ही प्रॉब्लम सॉल्विंग की संस्कृति, अंग्रेजी भाषा का ज्ञान और लगातार कड़ी मेहनत कर सकने की क्षमता भी इसमें अहम रोल निभाती है.
आईआईटी ग्रैजुएट और सन माइक्रोसिस्टम्स के को-फाउंडर विनोद खोसला मानते हैं कि अलग-अलग समुदायों, रिवाजों और भाषाओं के बीच बड़े होने की वजह से भारतीयों में कठिन परिस्थितियों में भी रास्ता निकाल लेने की समझ होती है.
अरबपति वेंचर कैपिटलिस्ट खोसला कहते हैं, "आईआईटी की कठिन भारत में पढ़ाई में प्रतिस्पर्धा और सामाजिक उठापटक उनकी काबिलियत को बढ़ाने में मदद करती हैं."
भारत से निकले बॉस सफल
सिलिकॉन वैली में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों में टेक्निकल विशेषज्ञता के साथ ही, अलग-अलग समुदायों को संभालने और अनिश्चितता के बीच आंतरप्रेन्योरशिप जैसी विशेषताओं की जरूरत होती है. अकादमिक जगत से जुड़े भारतीय-अमेरिकी विवेक वाधवा कहते हैं, रचनात्मकता दिखाते हुए आपको हमेशा नियम तोड़ने होते हैं, आपको निडर होना चाहिए. और... आप भारत में हर रोज बिना कोई नियम तोड़े, बिना अक्षम नौकरशाही और भ्रष्टाचार से जूझे बिना रह ही नहीं सकते.
वह कहते हैं, "जब आपको सिलिकॉन वैली में रचनात्मकता दिखानी होती है तब ये काबिलियत काफी काम आती हैं क्योंकि आपको हमेशा सत्ता को चुनौती देनी होती है. और ये चीजें कीमती हैं, टैक्सी सेवाएं देने वाली बड़ी कंपनी उबर ने इस महीने आईआईटी बॉम्बे के स्टूडेंट्स को अमेरिका में प्लेसमेंट के दौरान 2.74 लाख डॉलर यानी 2 करोड़ रुपये से ज्यादा का पैकेज दिया है.
अच्छे से अच्छा टैलेंट
130 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाले देश में इस तरह के इनामों का कॉम्पटीशन पढ़ाई पर ध्यान दिए जाने के साथ काफी पहले ही शुरु हो गया था. आईआईटी को भारत की सबसे अच्छी यूनिवर्सिटी के तौर पर देखा जाता है और इसकी 16 हजार सीटों के लिए हर साल 10 लाख से भी ज्यादा स्टूडेंट्स अप्लाई करते हैं.
पिछले डेढ़ साल से नंदगांवकर हफ्ते के सातों दिन 14 घंटों से भी ज्यादा पढ़ाई करती हैं. वे बताती हैं कि कुछ स्टूडेंट्स तो इसके लिए 14-15 साल की उम्र से ही पढ़ाई शुरु कर देते हैं.
विवेक वाधवा कहते हैं, "एक ऐसी प्रवेश परीक्षा के बारे में सोचिए जो एमआईटी और हार्वर्ड से 10 गुना ज्यादा कठिन हो. बस वही आईआईटी है. तो इसमें देश के बेहतर से बेहतर टैलेंट आते हैं."
भारत से बाहर क्यों निकले आईआईटीयन
आईआईटी का नेटवर्क 1950 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्थापित किया गया था, जो 1947 में ब्रिटिश शासन के अंत के बाद नए भारत के निर्माण के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग के ग्रैजुएट्स का एक समूह बनाना चाहते थे.
लेकिन इंजीनियर्स की सप्लाई सीमित घरेलू मांग से आगे निकल गई. तो ये ग्रैजुएट्स भारत के बाहर, खासकर अमेरिका में नौकरी के अवसर ढ़ूंढ़ने लगे, जहां डिजिटल क्रांति के शुरु होने के बाद बेहद काबिल कर्मचारियों की जरूरत थी.
आईआईटी बॉम्बे के डिप्टी डायरेक्टर एस सुदर्शन कहते हैं, "60, 70 और 80 ही नहीं बल्कि 90 के दशक में भी भारतीय उद्योग उतने एडवांस नहीं थे और... जो नई टेक्नोलॉजी पर काम करना भी चाहते थे, उन्हें विदेश जाने की जरूरत महसूस हुई."
अग्रवाल, पिचाई और नडेला ने इन बड़ी कंपनियों में अपना रास्ता बनाने में दशकों का समय गुजारा है और अमेरिकियों की बनाई इन कंपनियों का विश्वास हासिल करते हुए अंदरूनी जानकारियां जुटाई हैं. और सालों तक, अमेरिका के कौशल आधारित इमिग्रेंट वीजा एच-1 बी के आधे से ज्यादा एप्लीकेंट्स भारत से रहे और उनमें भी ज्यादातर टेक सेक्टर से रहे.
भारत ही बन गया टेक हब तब क्या होगा?
जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देवेश कपूर, जो खुद एक आईआईटी ग्रैजुएट हैं, कहते हैं, "इसके उलट भारत से ज्यादा जनसंख्या वाले चीन के इंजीनियरों के पास घर में ही नौकरियां खोजने या अमेरिका में पोस्ट ग्रैजुएशन करने के बाद घर लौटने का ही विकल्प था क्योंकि उनकी घरेलू अर्थव्यवस्था तेजी से फैल रही थी."
यह परिघटना धीरे-धीरे खत्म भी हो सकती है क्योंकि भारत में अब खुद टेक सेक्टर तेजी से तरक्की कर रहा है. जिससे भारत के सबसे अच्छे और होनहार दिमागों को अपने देश में ही अच्छे अवसर मिल जा रहे हैं. लेकिन नंदगांवकर के लिए अग्रवाल या पिचाई जैसा टेक सेक्टर का बॉस बनना कोई बहुत दूर की कौड़ी नहीं है. वे कहती हैं, "क्यों नहीं हो सकता, बड़े सपने देखिए तो."
एडी/वीके (एएफपी)
पहली ‘समिट फॉर डेमोक्रेसी’ के उद्घाटन भाषण में अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि दुनियाभर में आजादियां ऐसे नेताओं के कारण खतरे में हैं जो अपनी ताकत को बढ़ाने में लगे हैं और दमन को सही ठहरा रहे हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दुनिया के सौ से अधिक देशों के नेताओं से अपील की है कि लोकतंत्र को मजबूत करें, मानवाधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा करें क्योंकि मौजूदा दौर में एकाधिकारवादी सरकारें लोकतंत्र को बड़ी चुनौती दे रही हैं.
अपनी तरह के इस पहले सम्मेलन में बाइडेन ने कहा, "हम इतिहास में एक दोराहे पर खड़े हैं. क्या हम अधिकारों और लोकतंत्र को पीछे खिसक जाने देंगे? या हम मिलकर एक सोच और हौसले के साथ इंसान और इंसानी अधिकारों को आगे की ओर ले जाएंगे?”
पहला ऐसा सम्मेलन
अमेरिका ने पहली बार ‘समिट ऑफ डेमोक्रेसी' नाम से इस सम्मेलन का आयोजित किया है जिसमें दुनियाभर से सौ से ज्यादा नेताओं को बुलाया गया है. इस सम्मेलन को बाइडेन के फरवरी में किए एक ऐलान से जोड़कर देखा जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि वह अमेरिका को दुनिया के नेतृत्व की भूमिका में फिर से ले जाएंगे और तानाशाही शासकों को करारा जवाब देंगे.
111 देशों के नेताओं को संबोधित करते हुए बाइडेन ने कहा, "लोकतंत्र कोई हादसा नहीं है. हमें इसे हर पीढ़ी के साथ बदलना होता है. मेरे विचार से यही हमारे वक्त की सबसे बड़ी चुनौती है.” बाइडेन ने चीन या रूस जैसे देशों की ओर सीधे कोई उंगली नहीं उठाई, लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह सम्मेलन ऐसी ही ताकतों के खिलाफ जनमत बनाने का एक जरिया है. इस समझ की वजह यह भी है कि रूस और चीन के नेताओं को इस सम्मेलन में नहीं बुलाया गया है.
यह बात कई मंचों से कही जा चुकी है कि दुनिया इस वक्त सबसे ज्यादा देशों में लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है. हाल ही में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी ऐंड इलेक्टोरल असिस्टेंस ने एक रिपोर्ट में कहा था कि म्यांमार, अफगानिस्ता और माली में हुए तख्तापलट ने तो लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाया ही है, हंगरी, ब्राजील और भारत भी उन देशों में शामिल हैं जहां लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हुई हैं.
कमजोर होते लोकतंत्र
लोकतांत्रिक मूल्यों पर काम करने वाली संस्था आइडिया के मुताबिक ऐसे देशों की संख्या जिनमें लोकतांत्रिक मूल्य खतरे में हैं इस वक्त जितनी अधिक है उतनी कभी नहीं रही. इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक लोक-लुभावन राजनीति, आलोचकों को चुप करवाने के लिए कोविड-19 महामारी का इस्तेमाल, अन्य देशों के अलोकतांत्रिक तौर-तरीकों को अपनाने का चलन और समाज को बांटने के लिए फर्जी सूचनाओं का प्रयोग जैसे कारकों के चलते लोकतंत्र खतरे में है.
आइडिया ने 1975 से अब तक जमा किए गए आंकड़ों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट कहती है, "पहले से कहीं ज्यादा देशों में अब लोकतंत्र अवसान पर है. ऐसे देशों की संख्या इतनी अधिक पहले कभी नहीं रही, जिनमें लोकतंत्र में गिरावट हो रही हो."
रिपोर्ट में ब्राजील, भारत और अमेरिका जैसे स्थापित लोकतंत्रों को लेकर भी चिंता जताई गई है. रिपोर्ट कहती है कि ब्राजील और अमेरिका में राष्ट्रपतियों ने ही देश के चुनावी नतीजों पर सवाल खड़े किए जबकि भारत में सरकार की नीतियों की आलोचना करने वालों को प्रताड़ित किया जा रहा है.
अमेरिका ने कहा है कि दुनिया में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सरकार कांग्रेस के साथ मिलकर काम कर रही है ताकि 42.44 करोड़ डॉलर की राशि उपलब्ध करवाई जा सके. इस राशि का इस्तेमाल कई कदमों के लिए किया जाएगा जिनमें स्वतंत्र न्यू मीडिया को मजबूत करना भी शामिल है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
इस्लामाबाद. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक बार फिर से भारत के खिलाफ बयानबाजी की है. इमरान खान ने इस्लामाबाद कॉन्क्लेव 2021 को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेक संघ की ब्राह्मणों पर आधारित जो विचारधारा है, वह भारत के 50-60 करोड़ अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक मानती है. इतना ही नहीं, इमरान खान ने कश्मीर को दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए खतरा बता दिया.
‘कश्मीर मुद्दे ने दक्षिण एशिया को बंधक बनाया’
इमरान खान ने अपने भाषण में क्षेत्रीय स्थिति पर कहा कि पूरे दक्षिण एशिया को कश्मीर के मुद्दे ने बंधक बनाकर रखा हुआ है. मुझे बहुत अफसोस से कहना पड़ता है कि हमने भारत सरकार से संपर्क की पूरी कोशिश की, लेकिन कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली. हमने पीएम मोदी को फोन भी किए, लेकिन हमें आहिस्ता-आहिस्ता अहसास हुआ कि इसे हमारी कमजोरी समझा जा रहा था.
इमरान बोले- भारत से बाद करना मुश्किल
पाकिस्तान के पीएम ने कहा- ‘दुर्भाग्य से हम एक सामान्य भारत सरकार के साथ नहीं, बल्कि आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की विचारधारा के साथ बातचीत कर रहे थे. इस विचारधारा के साथ बातचीत करना बहुत मुश्किल है. उन्होंने आगे कहा कि जिसने भी आरएसएस की विचारधारा पढ़ ली है, उनके संस्थापक के बयानों को देख लें, तो ऐसे लोगों के साथ मुश्किल है कि वे हमारे साथ सही मायनों में बातचीत करते.’
‘ब्राह्मणों पर केंद्रित है आरएसएस की विचारधारा’
इमरान ने कहा कि हिंदुस्तान में जो हो रहा है वह सिर्फ हमारी बदकिस्मती नहीं है, खासतौर पर कश्मीर की बदकिस्मती भी नहीं है, बल्कि यह हिंदुस्तान के लोगों की बड़ी बदकिस्मती है. एक इतना बड़ा मुल्क हो उसके अंदर कम से कम 50-60 करोड़ तो अल्पसंख्यक हैं. जो ये ब्राह्मण…ब्राह्मणों पर केंद्रित आरएसएस की विचारधारा है वह 50-60 करोड़ लोगों को निकाल रही है. इमरान ने दावा किया कि कुछ सामाजिक वर्गों के हाशिए पर जाने से भारतीय समाज और अन्य पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा.
पाक पीएम का दावा- हाशिए पर रखे लोग कट्टरपंथी बनते हैं
पाकिस्तानी पीएम ने कहा कि इतिहास हमें बताता है कि जब आप लोगों को बाहर करते हैं तो आप (लोगों) को हाशिए पर रखते हैं और फिर आप उन्हें भी कट्टरपंथी बनाते हैं. इमरान ने कहा कि उनके विचार में, सैन्य साधनों और युद्धों के माध्यम से हल की गई समस्याएं गलत अनुमान के अधीन थीं. जो लोग युद्ध के माध्यम से समस्याओं को हल करने का निर्णय लेते हैं, उनमें दो लक्षण होते हैं: वे इतिहास से नहीं सीखते हैं और उन्हें अपने हथियारों पर गर्व होता है. (ANI इनपुट के साथ)
सियोल, 10 दिसम्बर| मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी फैलने के बाद से दक्षिण कोरिया के युवाओं को वृद्ध लोगों की तुलना में अधिक गंभीर रोजगार का झटका लगा और नए कॉलेज और हाई स्कूल के स्नातकों को नौकरी खोजने में अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ा। शुक्रवार को एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई है। सांख्यिकी कोरिया संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, 15-34 आयु वर्ग के कोरियाई लोगों के लिए रोजगार दर जनवरी में 50.5 प्रतिशत तक पहुंच गई।
योनहाप न्यूज एजेंसी ने रिपोर्ट के हवाले से कहा कि जनवरी में 35-64 आयु वर्ग के लोगों के लिए यह दर 71.2 प्रतिशत थी, जो पिछले वर्ष के 73.6 प्रतिशत से कम थी।
विशेष रूप से, जिन्होंने एक साल से भी कम समय पहले कॉलेज या हाई स्कूल से स्नातक किया था, उन्हें नौकरी खोजने में अधिक कठिनाई हुई है।
उनमें से, कॉलेज या विश्वविद्यालय से स्नातक करने वाले पुरुषों के लिए रोजगार दर में पिछले साल अगस्त और सितंबर में 12.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी, जब देश महामारी की दूसरी लहर की चपेट में था।
एक साल से भी कम समय पहले हाई स्कूल से स्नातक करने वाली महिलाओं के लिए, रोजगार दर मार्च और अप्रैल 2020 में 14.4 प्रतिशत अंक गिर गई और पिछले वर्ष की तुलना में अक्टूबर और नवंबर 2020 में 14.9 प्रतिशत अंक गिर गई। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 9 दिसंबर | टेक दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट कथित तौर पर पायरेटेड वर्जन का इस्तेमाल करने वाले कुछ लोगों को अपने ऑफिस सूट पर 50 फीसदी तक की छूट दे रही है। द वर्ज ने गुरुवार को बताया, "पायरेटेड ऑफिस ऐप पर ऑफिस रिबन बार में एक नया संदेश दिखाई दे रहा है, जो वास्तविक माइक्रोसॉफ्ट 365 सदस्यता पर 50 प्रतिशत की छूट के साथ लोगों को लुभा रहा है।"
संदेश एक आधिकारिक माइक्रोसॉफ्ट वेबसाइट से लिंक करता है, जो दावा करता है कि 'पायरेटेड सॉफ्टवेयर आपके पीसी को सुरक्षा खतरों से बचाता है'।
रिपोर्ट में कहा गया है कि माइक्रोसॉफ्ट ने ऑफिस पाइरेट्स को चेतावनी दी है कि वे वायरस, मैलवेयर, डेटा हानि, पहचान की चोरी कर जोखिम में हैं और अब महत्वपूर्ण अपडेट प्राप्त करने में असमर्थ रहेंगे।
टेक वेबसाइट के अनुसार, छूट से माइक्रोसॉफ्ट365 परिवार सदस्यता की कीमत पहले वर्ष के लिए 49.99 डॉलर या माइक्रोसॉफ्ट 365 व्यक्तिगत सदस्यता की कीमत एक वर्ष के लिए 34.99 डॉलर तक कम हो जाती है।
घक्स नोट के उपयोगकर्ताओं को यह देखने के लिए अपने माइक्रोसॉफ्ट खाते में साइन इन करना होगा कि क्या वे छूट के लिए पात्र हैं। एक बार जब उपयोगकर्ता कीमत में अंतर की पुष्टि कर लेता है, तो वह अपनी खरीदारी पूरी करने के लिए चेकआउट के लिए आगे बढ़ सकता है।(आईएएनएस)
बीजिंग, 10 दिसंबर| चीन-अमेरिका के बीच एक-दूसरे पर हावी होने और रूस के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के आरोपों के बीच खेल के मैदान पर पूर्व-पश्चिम तनाव फैल रहा है, लेकिन वाशिंगटन ने शीतकालीन ओलंपिक के राजनयिक बहिष्कार की घोषणा की है। अगले साल 4 से -20 फरवरी तक बीजिंग में निर्धारित, भू-सामरिक तनावों से गर्म हुए यूलटाइड के मौसम के बीच चीन की ओर से तेज प्रतिक्रिया आई है।
दो महाशक्तियों के बीच तीखे संबंध हाल के दिनों में प्रवाह में रहे हैं, क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने जो बाइडेन के नेतृत्व में चीन पर बयानबाजी तेज कर दी है।
ताइवान, हांगकांग, शस्त्रीकरण और दक्षिण चीन सागर में एक-अपमान की लड़ाई ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को खराब कर दिया है। खेल को हाल के दिनों में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
दोनों देशों के बीच जो कुछ हो रहा है, बहिष्कार उसके साथ तालमेल से बाहर नहीं लगता है। इनमें से एक हमेशा खुद को स्वतंत्र दुनिया का नेता साबित करने के लिए 'आग' लगाता है।
एक पूर्व चीनी खेल पत्रकार ने कहा, "यह तब तक समझ में आता है, जब तक वे एथलीटों को भेज रहे हैं। यह कदम सीधे एथलीटों को प्रभावित नहीं करेगा।"
पत्रकार ने कहा, जर्मनी के थॉमस बाख, 1976 के ओलंपिक तलवारबाजी के स्वर्ण पदक विजेता ने 1980 में अपने ओलंपिक खिताब की रक्षा करने का अवसर खो दिया, जब पश्चिमी ब्लॉक ने मास्को खेलों का बहिष्कार किया।
बाख अब अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के अध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा है कि उन्होंने वाशिंगटन द्वारा बहिष्कार के विरोध में राजनीतिक रूप से तटस्थ रहना चुना।
ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा चीन के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर चिंताओं का हवाला देते हुए शीतकालीन खेलों के राजनयिक बहिष्कार की घोषणा करके अमेरिका की बोली लगा रहे हैं। (आईएएनएस)
संजीव शर्मा
नई दिल्ली, 10 दिसंबर| उइगर ट्रिब्यूनल ने बुधवार को कहा कि चीन ने शिनजियांग में उइगरों के एक महत्वपूर्ण हिस्से को नष्ट करने के इरादे से जन्मों को रोकने के उपायों को लागू कर नरसंहार किया है।
ब्रिटेन स्थित स्वतंत्र न्यायाधिकरण ने कहा कि चीन के कारण उइगरों की यातना उचित संदेह से परे है। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के कारण मानवता के खिलाफ अपराध उचित संदेह से परे स्थापित किए गए हैं : निर्वासन या जबरन स्थानांतरण, कारावास या शारीरिक स्वतंत्रता के अन्य गंभीर अभाव, कष्ट पहुंचाना, दुष्कर्म और अन्य यौन हिंसा, लागू नसबंदी, उत्पीड़न और अन्य अमानवीय कृत्य।
ट्रिब्यूनल सभी उचित संदेह से परे संतुष्ट है कि अन्य अमानवीय कृत्यों की मानवता के खिलाफ अपराध साबित हो गया है।
सैटेलाइट इमेजरी ने इस क्षेत्र में लगभग 16,000 मस्जिदों या पिछले कुल के 65 प्रतिशत के विनाश, या क्षति की पहचान की, गवाहों की प्रत्यक्ष टिप्पणियों से मेल खाने वाले सबूत।
इसके अलावा, कब्रिस्तान और धार्मिक महत्व के अन्य स्थलों को नष्ट कर दिया गया है। उइगरों को धार्मिक पालन के प्रदर्शन के लिए कारावास और यातना से दंडित किया जाता है, जिसमें मस्जिदों में भाग लेना, प्रार्थना करना, सिर पर स्कार्फ और दाढ़ी पहनना और शराब नहीं पीना या सूअर का मांस नहीं खाना शामिल है।
ट्रिब्यूनल संतुष्ट है कि पीआरसी ने भौतिक धार्मिक स्थलों के विनाश की एक व्यापक नीति लागू की है और धार्मिक 'अतिवाद' के उन्मूलन के घोषित उद्देश्य के लिए उइगर धार्मिकता पर एक व्यवस्थित हमला किया है।
ट्रिब्यूनल को सबूत मिले, जिसमें वह इस श्रेणी में शामिल हो सकता है, जिसमें उइगर परिवार के घरों में हान लोगों को जबरन थोपना, पूरे क्षेत्र में व्यापक निगरानी प्रणाली स्थापित करना, इसे एक खुली हवा में जेल बनाना, मस्जिदों और कब्रिस्तानों को नष्ट करना, धार्मिक दमन और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और जबरन या जबरन विवाह।
हिरासत में लिए गए उइगरों की संख्या, मस्जिदों और कब्रिस्तानों की संख्या को नष्ट किया जाना, नसबंदी और गर्भपात, भाषा के उपयोग और धर्म के अभ्यास का दमन, उइगर बच्चों को उनके माता-पिता से अलग करना यह दर्शाता है कि वास्तव में बिना किसी औचित्य के उइगरों पर हमला, भले ही उनमें से कुछ ने चीन से अलग होने की मांग की हो और भले ही कुछ उइगरों ने हिंसा के कृत्यों को अंजाम दिया हो, जैसा कि उदाहरण के रूप में 1997 से 2000 और बाद में 2000 में उरुमची में और 2014 में कुनमिंग में ट्रेन पर हमला हुआ था। (आईएएनएस)
पिता बनने के बाद कोस्ट गार्ड अकैडमी से निकाल दिए गए एक पूर्व कैडेट ने संघीय अदालय में मुकदमा कर स्कूल की नीति को चुनौती दी है. इस कैडेट को 2014 में अकैडमी से निकाला गया था.
आइजैक ऑलसन अमेरिका की कोस्ट गार्ड अकैडमी में पढ़ रहे थे. वह मैकैनिकल इंजीनियरिंग कर रहे थे और पास होकर सेना में कमीशन पाने से सिर्फ दो महीने दूर थे जब उन्हें अकैडमी से निकाल दिया गया. यह फैसला तब लिया गया जब उन्होंने कुछ महीने पहले अपने पिता बनने का खुलासा किया. अमेरिकी के कनेक्टिकट की जिला अदालत में दायर मुकदमे के मुताबिक उनकी मंगेतर ने एक बच्चे को जन्म दिया था. कुछ महीनों बाद जब यह बात स्कूल के प्रशासन को पता चली तो ऑलसन को कॉलेज से निकाल दिया गया.
अकैडमी ने नियमानुसार ऑलसन को निकाला था. मुकदमे के मुताबिक नियम कहता है कि अगर 14 हफ्ते से ज्यादा का गर्भ हो जाने पर कैडेट को खुद अकैडमी छोड़नी होगी या उन्हें हटा दिया जाएगा.
ऑलसन की वकील इलाना बिल्डनर ने बताया कि पिता बनने का फैसला निजी होता है. उन्होंने कहा, "माता या पिता बनने का फैसला बेहद निजी होता है और कोई स्कूल या नौकरी उसके रास्ते में नहीं आनी चाहिए. यूएस कोस्ट गार्ड अकैडमी का यह प्राचीन नियम, जो कि छात्रों को पितृत्व या डिग्री में से कोई एक चुनने का विकल्प देता है, नैतिक रूप से गलत और असंवैधानिक है.”
‘महिला विरोधी है नियम'
इस बारे में यूएस कोस्ट गार्ड या स्कूल ने सवालों के जवाब नहीं दिए. बिल्डनर ने बताया कि यह नियम 1970 के दशक में तब लागू किया गया था जब अकैडमी में महिलाओं को दाखिला मिलना शुरू हुआ था. उन्होंने कहा, "यह कोई हादसा नहीं है कि अकैडमी ने मातृत्व पर यह प्रतिबंध महिलाओं को दाखिला देना शुरू करने के फौरन बाद लागू किया. कनेक्टिकट या कहीं और इस नीति के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. इसे खत्म हो जाना चाहिए.”
अदालत में दायर हलफनामे के मुताबिक ऑलसन को अपने जूनियर ईयर में अप्रैल महीने में पता चला कि उनकी मंगेतर गर्भवती हैं. उन्होंने गर्भ ना गिराकर बच्चे को जन्म देने का फैसला किया. तब ऑलसन ने फैसला किया कि वह अकैडमी नहीं छोड़ेंगे क्योंकि ऐसा करने पर स्कलू को उनकी करीब पांच लाख डॉलर फीस जब्त करने का अधिकार मिल जाएगा.
2013 के अगस्त में ऑलसन की मंगेतर ने बच्चे को जन्म दिया. इसेक बाद मार्च 2014 में एक फॉर्म में ऑलसन ने बताया कि वह एक बच्चे के पिता हैं. ऑलसन के मुताबिक यह पहली बार था जब किसी फॉर्म में उनसे यह जानकारी मांगी गई थी.
वापस चाहिए कमीशन
अपनी डिग्री पूरी करने के लिए ऑलसन ने अपने पितृत्व अधिकार कानून छोड़ भी दिए. लेकिन स्कूल ने उन्हें निकाल दिया. बिल्डनर बताती हैं कि लंबी प्रशासनिक प्रक्रिया के बाद अब ऑलसन ने मुकदमा करने का फैसला किया है.
ऑलसन और उनकी मंगेतर अब शादीशुदा हैं. अब वह कोस्ट गार्ड में एविएशन टेक्निशियन के तौर पर काम कर रहे हैं और अलास्का में तैनात हैं. अगर वह कमीशन पा जाते तो उन्हें प्रतिमाह लगभग 3,000 डॉलर ज्यादा मिलते. ऑलसन अपना कमीशन वापस चाहते हैं.
बिल्डनर के मुताबिक इस मुकदमे के नतीजे का असर और कई संस्थानों पर भी पड़ेगा जहां इसी तरह के नियम हैं. एएलसीयू विमिंस राइट्स प्रोजेक्ट की लिंडा मॉरिस बताती हैं, "हम मानते हैं कि हर सैन्य अकादमी के लिए इस तरह के प्रतिबंध गलत हैं और अकादमियों को इन्हें अपनी नियमावली से हटा देना चाहिए.”
अमेरिकी सांसदों रिपब्लिकन सेनेटर टेड क्रूज और डेमोक्रैट सेनेटर कर्स्टन गिलीब्रैंड ने सेनेटर में एक बिल पेश किया है जिसके तहत इस तरह के नियमों को सभी अकादमियों के लिए खत्म करने का प्रस्ताव है. क्रूज ने बिल पेश करते हुए कहा, "यह नीति पक्षपात, पुरातन और अस्वीकार्य है.”
वीके/एए (एपी)
यूनिसेफ ने दुनियाभर में मानवीय संकटों और कोविड-19 महामारी से प्रभावित करोड़ों लोगों के लिए रिकॉर्ड फंडिंग की अपील की.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने दुनियाभर में मानवीय संकटों और कोविड-19 महामारी से प्रभावित 17.7 करोड़ बच्चों समेत 32.7 करोड़ से अधिक लोगों तक पहुंचने के लिए रिकॉर्ड 9.4 अरब डॉलर की आपातकालीन फंडिंग अपील शुरू की है.
यूनिसेफ ने दुनियाभर में चल रहे संघर्षों, जलवायु संकट और कोरोना वायरस महामारी के बढ़ने के मुख्य कारणों का हवाला देते हुए 2022 के लिए 9.4 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड परिचालन बजट की घोषणा की. यूनिसेफ की इस साल की फंडिंग पिछले साल की तुलना में 31 फीसदी ज्यादा है.
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर के मुताबिक, "दुनिया भर में लाखों बच्चे घटनाओं और जलवायु संकट के प्रभावों से पीड़ित हैं. जैसे-जैसे कोविड-19 महामारी अपने तीसरे साल के करीब आ रही है लड़खड़ाती अर्थव्यवस्थाओं, बढ़ती गरीबी और बढ़ती असमानता के साथ और भी बदतर हो गई है. हमेशा की तरह, पहले से ही संकट से गुजर रहे बच्चों को तत्काल मदद की जरूरत है."
दुनिया बढ़ाए मदद के हाथ
अपील में अफगानिस्तान में यूनिसेफ की प्रतिक्रिया के लिए 2 अरब डॉलर शामिल हैं, जहां 1.3 करोड़ बच्चों को तत्काल मदद की आवश्यकता है. इनमें 10 लाख बच्चे शामिल हैं, जो ऐसे समय में गंभीर कुपोषण का सामना कर रहे हैं. अफगानिस्तान की यह अब तक की सबसे बड़ी अपील है.
यूनिसेफ ने कहा कि अतिरिक्त 93.3 करोड़ डॉलर कोविड-19 टूल्स एक्सेलेरेटर तक पहुंच के लिए आवंटित किए जाएंगे, जो कोविड-19 परीक्षणों, उपचारों और टीकों के विकास, उत्पादन और समान पहुंच में तेजी लाने का एक वैश्विक प्रयास है.
फंड सीरियाई शरणार्थी संकट के लिए 90.9 करोड़ डॉलर, सीरिया के अंदर संकट के लिए 33.4 करोड़ डॉलर, यमन में प्रतिक्रिया के लिए 48.4 करोड़ डॉलर और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में कार्यक्रमों के लिए 35 करोड़ डॉलर से अधिक की मांग कर रहा है.
इथियोपिया में जहां 1.56 करोड़ बच्चों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है और जहां क्रूर लड़ाई ने उत्तर में लाखों बच्चों को विस्थापित किया है, यूनिसेफ को अपने कार्य के लिए 35.1 करोड़ डॉलर की आवश्यकता होगी. इसी साल गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम ने कहा था कि दुनिया भर में हर एक मिनट में 11 लोगों की मौत भूख के कारण हो जाती है. विश्व में अकाल जैसी परिस्थितियों का सामना करने वालों की संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में छह गुना वृद्धि हुई.
एए/वीके (डीपीए)
बांग्लादेश में 20 यूनिवर्सिटी छात्रों को मौत की सजा सुनाई गई है. सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वाले एक युवा की हत्या के मामले में यह सजा दी गई है.
एक सरकार विरोधी सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर 2019 में युवक की हत्या करने वाले 20 छात्रों को बांग्लादेश में मौत की सजा सुनाई गई है. 21 वर्षीय अबरार फहद जिस छात्र की हत्या हुई थी उसका शव हॉस्टल के उसके कमरे में बुरी तरह क्षत-विक्षत हालत में मिला था. फहद ने हत्या से कुछ ही घंटे पहले एक फेसबुक पोस्ट में अपनी प्रधानमंत्री शेख हसीना की भारत से जल संधि करने के लिए आलोचना की थी.
अबरार फहद को क्रिकेट बैट और अन्य पैनी-नुकीली चीजों से छह घंटे तक पीटा गया था. पीटने वाले ये 25 छात्र सत्तारूढ़ अवामी लीग के छात्र दल ‘बांग्लादेश छात्र लीग' के सदस्य थे. इनमें से 20 आरोपियों को मौत की सजा हुई है जबकि बाकी पांच को उम्रकैद. तीन आरोपी अभी भी फरार हैं.
पिता ने जताई खुशी
जिन छात्रों को सजा-ए-मौत सुनाई गई है वे सभी घटना के वक्त 20 से 22 वर्ष के बीच के थे और फहद के साथ बांग्लादेश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ते थे. कुछ आरोपियों के वकील फारूक अहमद ने कहा कि फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील की जाएगी.
अहमद ने मीडिया से कहा, "मैं इस फैसले से काफी निराश हूं. यह अन्याय है. वे युवा हैं और देश के सबसे होनहार छात्रों में से हैं. उनमें से कुछ के खिलाफ तो समुचित सबूत भी नहीं थे फिर भी उन्हें मौत की सजा सुनाई गई.” सजा सुनाए जाने के बाद फहद के पिता बरकतुल्लाह ने पत्रकारों से कहा, "मैं इस फैसले से खुश हूं. मुझे उम्मीद है कि सजा पर अमल जल्द किया जाएगा.”
सजा के फैसले पर देश के न्याय मंत्री अनीसुल हक ने कहा कि इससे जाहिर होता है कि "ऐसे अपराध करने के बाद कोई भी बच नहीं पाएगा.” छात्रों के एक और अहम संगठन छात्र अधिकार परिषद ने फैसले के समर्थन में प्रदर्शन किया और सजा पर जल्द अमल की मांग की. संगठन के महासचिव अकरम हुसैन ने कहा, "यह फैसला लोगों की जीत है.”
हाल के सालों में बीसीएल का नाम हत्या, हिंसा और उगाही जैसे मामलों में कई बार आया है. 2018 में उसके सदस्यों पर एक सरकार विरोधी आंदोलन को दबाने के लिए हिंसा के प्रयोग के आरोप लगे थे. ऐसी ही एक रैली में एक छात्र की तेज बस के नीचे आ जाने से मौत भी हो गई थी.
मौत की सजा
कत्ल किए गए छात्र फहद ने फेसबुक पर भारत और बांग्लादेश के उस समझौते की आलोचना की थी जिसके तहत भारत को दोनों देशों की सीमा पर बहने वाली नदी से पानी लेने की इजाजत दी गई थी. लीक हुई एक सीसीटीवी फुटेज में फहद को बीसीएल के कुछ कार्यकर्ताओं के साथ हॉस्टल के गलियारे में जाते देखा गया था. इसके छह घंटे बाद उनका शव मिला. उन्हें बुरी तरह पीटा गया था. यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था.
इस घटना के बाद बांग्लादेश में भारी विरोध हुआ था और प्रदर्शनकारियों ने फहद के हत्यारों को सजा के साथ-साथ बीसीएल पर प्रतिबंध की भी मांग की. प्रधानमंत्री हसीना ने तब वादा किया था कि हत्यारों को ‘सर्वोच्च सजा' मिलेगी.
बांग्लादेश में मौत की सजा आम बात है. देश में सैकड़ों लोग मौत की सजा का इंतजार कर रहे हैं. वहां ब्रिटिश राज के समय से ही फांसी के जरिए मौत की सजा दी जाती है. अगस्त में एक अदालत ने जो समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या के लिए छह इस्लामिक कट्टरपंथियों को मौत की सजा सुनाई थी. 2019 में 16 लोगों को 19 वर्षीय एक छात्रा को जिंदा जला देने के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी.
वीके/एए (एएफपी)
भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत की बुधवार को एक हादसे में मौत हो गई. उन्हें उनकी बहादुरी और बेबाकी के अलावा उनके विवादित बयानों के लिए भी याद रखा जाएगा.
भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत खुलकर बोलने वाले और सैनिकों के हिमायती जनरल माने जाते थे. हालांकि बहुत से लोग उन्हें ध्रुवीकरण करने वाले सेना प्रमुख के रूप में भी देखते हैं लेकिन वह ऐसे जनरल थे जिनकी हिम्मत और जज्बे को पूरी दुनिया की सेनाओं में सम्मान मिला.
बुधवार को एक हेलीकॉप्टर हादसे में जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका समेत 13 लोगों की मौत हो गई. तमिलनाडु में सुलुर से वेलिंगटन जाते वक्त कुन्नूर के पास उनका हेलीकॉप्टर हादसे का शिकार हो गया था.
63 वर्षीय जनरल रावत सेना में अपनी सेवाएं देते हुए सीमा पर गोलीबारी में एक बार घायल भी हुए थे और पहले भी एक हेलीकॉप्टर हादसे में बाल-बाल बचे थे.
गोली खाने वाला जनरल
रावत एक सैन्य परिवार से आते थे. उनकी कई पीढ़ियां सेना में सेवा दे चुकी हैं. उन्होंने 1978 में सेकेंड लेफ्टिनेंट के तौर पर सेना में शुरुआत की थी. कश्मीर में एक सीमा चौकी पर तैनाती के वक्त पाकिस्तानी फौज से मुठभेड़ में वह घायल हो गए थे.
इंडिया टुडे पत्रिका को एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, "पाकिस्तान से हम पर भारी गोलीबारी होने लगी. एक गोली मेरे टखने में लगी और एक कील मेरे दाहिने हाथ को छूकर निकल गई.” इसके लिए उन्हें इंडिया वूंड मेडल मिला था.
जनरल रावत ने संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिक के तौर पर डीआर कॉन्गो में भी सेना का नेतृत्व किया. जब उन्होंने 2008 में यूएन की नॉर्थ कीवू ब्रिगेड की कमान संभाली तो वह लेफ्टिनेंट जनरल थे. वहां उन्होंने शांति अभियान का चेहरा ही बदल दिया.
एक संवाददाता को उन्होंने बताया था, "यूएन चार्टर के सातवें अध्याय में हमें कुछ मामलों में बल प्रयोग की इजाजत है. इसके बावजूद हम अपने हथियारों से लड़ ही नहीं रहे थे.” वहां पहुंचने के महीनेभर के भीतर उन्होंने ताकत का इस्तेमाल बढ़ाया जिससे स्थानीय लोगों में भरोसा जगा कि यूएन शांति सैनिक उनकी सुरक्षा कर सकते हैं.
चार दशक लंबे अपने करियर के दौरान जरनल रावत ने भारतीय कश्मीर के अलावा चीन से लगती सीमा पर भी सेवाएं दीं. 2015 में उन्होंने म्यांमार में अलगाववादियों के खिलाफ अभियान का नेतृत्व किया था. यह विदेशी जमीन पर भारत का सार्वजनिक रूप से स्वीकृत पहला हमला था. उसी साल नागालैंड में वह हादसे में बाल-बाल बचे थे जब उनका हेलीकॉप्टर उड़ान भरने के दस सेकेंड बाद जमीन पर आ गिरा था. तब उन्हें मामूली चोटें आई थीं.
अपने सैनिकों के लिए हमेशा खड़े रहने के उनके रवैये के चलते वह भारतीय सैनिकों के बीच खासे लोकप्रिय थे. जनरल बिपिन रावत 2017 से 2019 तक भारतीय थल सेना के प्रमुख रहे थे. इसके बाद उन्हें देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनाया गया, जिस पद के लिए काफी समय से चर्चा चल रही थी.
राजनीतिक जनरल
कई पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार के उलट भारत में सेना अब तक राजनीति से दूर रही है. लेकिन जनरल बिपिन रावत ने सीधे-सीधे सत्तारूढ़ पार्टी की राजनीतिक लाइन पर बयान दिए. इस वजह से उन्हें एक हिंदू राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी के तौर पर भी देखा जाता था. वह विदेश नीति और भूराजनीतिक मुद्दों के अलावा घरेलू राजनीति पर भी बोलते थे.
जनरल बिपिन रावत के कई बयानों पर विवाद हुआ था. सेना प्रमुख रहते हुए उन्होंने कहा था कि देश के नागरिकों को सेनाओं से डरना चाहिए. 2017 में उन्होंने सैनिकों से कहा था, "दुश्मनों को आपसे डरना चाहिए और साथ-साथ आपके अपने लोगों को भी आपसे डरना चाहिए. हम एक दोस्ताना फौज हैं लेकिन जब हमें कानून-व्यवस्था स्थापित करने के लिए बुलाया जाता है तो लोगों को हमसे डरना चाहिए.”
दो साल बाद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं ने जनरल रावत पर अपनी शपथ का उल्लंघन करने का आरोप लगाया जब उन्होंने नए नागरिकता कानून का विरोध कर रहे लोगों की आलोचना की.
जनरल रावत ने कई बार नेपाल में चीन की गतिविधियों पर भी बयान दिए थे. चीन की सेना ने हाल ही में उनके एक बयान पर आपत्ति जताई थी जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है.
विवादित जनरल
कई लोग कहते थे कि रिटायरमेंट के बाद जनरल रावत चुनाव लड़ सकते हैं. समलैंगिकों की भारतीय सेना में भर्ती के मुद्दे पर सेना प्रमुख रहते हुए उन्होंने कहा था, "अपने रूढ़िवादी समाज से भारत की फौज की सोच काफी मिलती है. सेना रूढ़िवादी है. हम ना आधुनिक हुए हैं ना हमारा पश्चिमीकरण हुआ है.”
2017 में रावत ने कश्मीरी आंदोलनकारियों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि वे हमारी फौज पर सिर्फ पत्थर क्यों फेंकते हैं. उन्होंने कहा था कि अगर वे हथियारों का इस्तेमाल करते तो "ज्यादा खुशी होती” क्योंकि तब उन्हें हम जैसा चाहे जवाब दे सकते थे.
सेना प्रमुख के तौर पर उन्होंने उस मेजर तरुण गोगोई को मेडल भी दिया था जिसने एक कश्मीरी नागरिक को जीप पर बांध कर ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया था. उन्होंने कहा था, "यह एक छद्म युद्ध है. और छद्म युद्ध गंदा होता है. इसे गंदे तरीके से ही लड़ा जाता है.”
वीके/एमजे (एएफपी, रॉयटर्स)
जेनेवा, 9 दिसम्बर| विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के प्रमुख ने कहा कि ओमिक्रॉन वैरिएंट की कुछ विशेषताएं, इसके वैश्विक प्रसार और बड़ी संख्या में म्यूटेंट की क्षमता के कारण यह कोरोना के प्रारूप को बदल सकता है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, ओमिक्रॉन वेरिएंट अब 57 देशों में मौजूद है, डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस एडनॉम घेबियस ने एक प्रेस ब्रीफिंग में चेतावनी दी कि यह पिछले वेरिएंट की तुलना में अधिक तेजी से फैल सकता है।
उन्होंने कहा कि अब हम संचरण (दरों) में तेजी से वृद्धि की एक सुसंगत तस्वीर देखना शुरू कर रहे हैं, हालांकि अभी के लिए अन्य वेरिएंट के सापेक्ष वृद्धि की सटीक दर को निर्धारित करना मुश्किल है।
उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका के उभरते आंकड़े बताते हैं कि ओमिक्रॉन के साथ फिर से संक्रमण का खतरा बढ़ गया है, लेकिन मजबूत निष्कर्ष निकालने के लिए अधिक डेटा की आवश्यकता है।
डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञों ने कहा है कि हालांकि कुछ सबूत यह सुझाव दे सकते हैं कि ओमिक्रॉन पहले के डेल्टा वेरिएंट की तुलना में हल्के लक्षणों का कारण बनता है, अभी कोई अंतिम निष्कर्ष निकालने के लिए ये शुरूआती दिन हैं।
डब्ल्यूएचओ के स्वास्थ्य आपात स्थिति कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक माइक रयान के अनुसार, हालांकि वायरस की विकासवादी प्रकृति इसे और अधिक संक्रमणीय बनाती है क्योंकि यह खुद को बदलता है।
जैसा कि नवीनतम कोविड 19 वेरिएंट के अध्ययन विकसित हो रहे हैं, डब्ल्यूएचओ का कहना है कि वैश्विक महामारी विज्ञान के आंकड़ों के आने, विश्लेषण करने और फिर कोई ठोस निष्कर्ष निकालने के लिए इसे अभी भी दिनों या हफ्तों की आवश्यकता है।
डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन के अनुसार, यह कहना अभी भी जल्दबाजी होगी कि ओमिक्रॉन टीके की प्रभावशीलता में उल्लेखनीय कमी ला सकता है।
डब्ल्यूएचओ ने सभी देशों से निगरानी, परीक्षण और अनुक्रमण बढ़ाने और अद्यतन ऑनलाइन केस रिपोटिर्ंग फॉर्म का उपयोग करके डब्ल्यूएचओ क्लिनिकल डेटा प्लेटफॉर्म पर अधिक डेटा जमा करने का आह्वान किया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 8 दिसम्बर| पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) ने बुधवार को प्रधानमंत्री इमरान खान को पेशावर में एक स्वास्थ्य बीमा योजना के उद्घाटन को लेकर उसकी आचार संहिता का उल्लंघन करने के खिलाफ चेतावनी दी।
पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। प्रधानमंत्री इमरान खान ने खैबर पख्तूनख्वा की राजधानी की अपनी दिन भर की यात्रा के दौरान सूक्ष्म स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को लिखे एक पत्र में ईसीपी ने प्रधानमंत्री के प्रांतीय राजधानी के निर्धारित दौरे के बारे में मीडिया रिपोटरें का हवाला दिया और उन्हें आयोग की 4 नवंबर की अधिसूचना की याद दिलाई, जिसमें चुनाव से पहले पार्टियों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए निदेशरें का विवरण दिया गया है।
ईसीपी ने 19 दिसंबर और 16 जनवरी को प्रांत में स्थानीय सरकार के पहले और दूसरे चरण के चुनावों की तारीखें तय की थीं।
ईसीपी ने अपने पत्र में कहा, चुनाव कार्यक्रम जारी होने के बाद, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, अध्यक्ष किसी भी विधानसभा के उपाध्यक्ष और सीनेट के उपाध्यक्ष, संघीय और प्रांतीय मंत्री, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के सलाहकार या सार्वजनिक पद के किसी अन्य धारक किसी भी विकास योजना की घोषणा करने या किसी उम्मीदवार के लिए प्रचार करने के लिए किसी भी स्थानीय परिषद के क्षेत्र का दौरा नहीं करेगा।
ईसीपी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को चुनाव आयोग द्वारा जारी आचार संहिता और निर्देशों के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करने की सलाह दी है और साथ ही चेतावनी भी दी है कि आपके खिलाफ चुनाव अधिनियम, 2017 की धारा-233 (आचार संहिता) और 234 (चुनाव अभियानों की निगरानी) के तहत कानूनी कार्यवाही शुरू की जाएगी।
इस बीच, सूचना मामलों पर खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री के विशेष सहायक कामरान खान बंगश ने स्पष्ट किया है कि पेशावर की प्रधानमंत्री की यात्रा पूरी तरह से एक आधिकारिक यात्रा थी।
रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने एक बयान में कहा, यह (यात्रा) राज्य के दैनिक मामलों का एक हिस्सा है, जिस पर कोई प्रतिबंध नहीं है। (आईएएनएस)
कोलंबो, 9 दिसंबर | स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने जहां कोविड-19 मामलों में संभावित वृद्धि को लेकर आगाह किया है, वहीं श्रीलंकाई लोगों को सार्वजनिक स्थानों पर न थूकने की चेतावनी दी गई है, क्योंकि उन्हें कड़ी कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। पुलिस पर्यावरण प्रभाग के निदेशक, एसएसपी रोशन राजपक्षे ने कहा कि कोविड-19 महामारी की पृष्ठभूमि के खिलाफ कानून प्रवर्तन एजेंसियों को कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की सलाह दी गई है।
इस बीच, त्योहारी सीजन से पहले कोविड-19 महामारी से लड़ते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य निरीक्षकों (पीएचआई) ने जोर देकर कहा है कि उपभोक्ताओं, सार्वजनिक विक्रेताओं और सार्वजनिक परिवहन प्रदाताओं सहित कानूनों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
जन स्वास्थ्य निरीक्षक संघ (पीएचआईयू) के अध्यक्ष उपुल रोहाना ने कहा कि क्षेत्रीय जन स्वास्थ्य निरीक्षकों को स्वास्थ्य दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की सलाह दी गई है।
उन्होंने चेतावनी दी कि बड़ी संख्या में एकत्र होने वाले उपभोक्ताओं और स्वास्थ्य दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वाले विक्रेताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
लगभग छह महीने के लंबे यात्रा प्रतिबंधों में ढील देते हुए 1 नवंबर को श्रीलंका सरकार ने सार्वजनिक परिवहन के संचालन की अनुमति दी थी, लेकिन निर्देश दिया था कि यात्रियों को बैठने की क्षमता को सख्ती से सीमित किया जाना चाहिए।
पीएचआई ने कहा है कि भले ही कोविड-19 के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन ने दुनिया के लिए खतरा पैदा कर दिया हो, लेकिन श्रीलंकाई लोगों ने स्थिति को हल्के में लिया है। शुक्रवार (3 दिसंबर) को श्रीलंका में पहला ओमिक्रॉन संक्रमित कोविड रोगी पाया गया, जो नाइजीरिया से आया था।
द्वीप देश में बुधवार रात तक, 24 घंटे की अवधि में 757 नए संक्रमित पाए गए। साथ ही 28 मौतों की सूचना दी गई। नवीनतम आंकड़ों से कुल मृत्युदर बढ़कर 14,533 तक पहुंच गई है।(आईएएनएस)
अरुल लुइस
न्यूयॉर्क, 9 दिसंबर| अमेरिकी सरकार की एक एजेंसी तमिलनाडु में एक सौर पैनल कारखाने के लिए 50 करोड़ डॉलर तक का ऋण देने जा रही है, ताकि भारत में कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में हर साल 3.3 गीगावाट (जीडब्ल्यू) की क्षमता वाले मॉड्यूल का उत्पादन किया जा सके।
एजेंसी ने मंगलवार को सौदे की घोषणा करते हुए कहा, "अमेरिकी कंपनी फस्र्ट सोलर द्वारा स्थापित कारखाने के लिए ऋण, यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (डीएफसी) का सबसे बड़ा ऋण है।"
डीएफसी के कार्यवाहक सीईओ देव जगदेसन ने कहा कि एजेंसी भारत में फस्र्ट सोलर के नए उद्यम का समर्थन करने की स्थिति में होने के लिए रोमांचित है, जो एक प्रमुख सहयोगी के लिए सौर पैनल निर्माण क्षमता को बढ़ावा देगा और उद्योग को बेहतर मानकों को अपनाने में मदद करेगा जो अमेरिकी मूल्य के साथ संरेखित हों।"
यह सौदा भारत सरकार के 2030 तक अक्षय स्रोतों से 450 गीगावॉट बिजली उत्पादन के लक्ष्य और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के अमेरिकी लक्ष्य को पूरा करता है।
संयंत्र, जो फोटोवोल्टिक (पीवी) सौर मॉड्यूल का निर्माण करेगा, चीन पर निर्भरता को कम करने में भी मदद करेगा, जो सौर पैनल बनाने में वैश्विक नेता है।
जगदेसन ने कहा, "यह लेनदेन वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखलाओं को चलाने के संयुक्त राज्य के प्रयास में एक और मील का पत्थर दशार्ता है।"
एरिजोना में स्थित फस्र्ट सोलर ने कहा था कि उसे तमिलनाडु संयंत्र में 68.4 करोड़ डॉलर का निवेश करने की उम्मीद है।
कंपनी के सौर पैनल पतली फिल्म प्रौद्योगिकी पर आधारित हैं, जिसमें यह सिलिकॉन आधारित पैनल बाजार के चीनी प्रभुत्व के विपरीत एक विश्व नेता है।
डीएफसी के अनुसार, "देश के अद्वितीय परिचालन वातावरण के लिए अनुकूलित, नई सुविधा के अधिकांश उत्पादन भारत में तेजी से बढ़ते सौर बाजार में बिकने की उम्मीद है, जो भारत-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के लिए एक क्वाड सहयोगी और प्रमुख भागीदार है।"
जलवायु परिवर्तन के भूत से प्रेरित, भारत में संयंत्र के लिए अमेरिकी सरकारी एजेंसी की सहायता सौर पैनलों को लेकर दोनों देशों के बीच विवादों से एक मोड़ है।
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने 2019 में भारत की एक शिकायत को सही ठहराया कि आठ अमेरिकी राज्यों में सब्सिडी और स्थानीय सामग्री नियम अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मानदंडों का उल्लंघन है।
हालांकि, 2016 में एक अन्य मामले में, डब्ल्यूटीओ ने इस शिकायत पर अमेरिका के लिए फैसला सुनाया था कि भारत अपनी घरेलू सामग्री आवश्यकताओं के माध्यम से अमेरिकी निमार्ताओं के साथ भेदभाव करता है। (आईएएनएस)
नासा ने निकट भविष्य के अपने अंतरिक्ष मिशनों के लिए 10 नए नामों की घोषणा की है, जिनमें एक भारतीय मूल के डॉक्टर भी शामिल हैं. ये लोग चांद और मंगल ग्रह पर जाने वाले मिशनों का हिस्सा बनेंगे.
45 वर्षीय डॉक्टर अनिल मेनन स्पेसएक्स के पहले फ्लाइट सर्जन थे. उसके पहले वो नासा के लिए भी इसी भूमिका में अंतरिक्ष मिशन पर यात्रियों के स्वास्थ्य की देखभाल कर चुके हैं. वो इससे भी चार बार आवेदन कर चुके थे. उनका पांचवां आवेदन सफल रहा.
अनिल के माता पिता भारत और यूक्रेन से अमेरिका जा कर बस गए थे. अनिल का जन्म अमेरिका में ही हुआ और वो वहीं पले बढ़े. उन्हें आपात स्थितियों में भी काम करने का अनुभव है. 2010 में उन्होंने हैती में आये विध्वंसकारी भूकंप के बाद पीड़ित लोगों की मदद की थी.
"आर्टेमिस पीढ़ी"
फिर 2015 में वो संयोग से नेपाल में आए एक बड़े भूकंप से बस कुछ ही मिनटों पहले वहां पहुंचे थे. वहां भी उन्हें भूकंप पीड़ितों की मदद करने का मौका मिला.
नवंबर में स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल के सदस्य जब अंतरिक्ष में छह महीने बिता कर धरती पर वापस लौटे थे, तब फ्रांसीसी अंतरिक्ष यात्री थॉमस पेस्के को अनिल ने ही समुद्र में तैर रहे उनके कैप्सूल से बाहर निकाला था. उन्होंने कहा, "इसे खुद महसूस करना एक अविश्वसनीय अनुभव होगा."
अनिल और बाकी नौ लोग जिस टीम में शामिल होंगे उसे नासा "आर्टेमिस पीढ़ी" कहती है. इसका नाम संस्था के आर्टेमिस कार्यक्रम के नाम पर रखा गया है जिसका उद्देश्य है कुछ ही सालों में चांद पर और फिर मंगल ग्रह पर कदम रखना.
इन 10 लोगों को 12,000 आवेदकों में से चुना गया. यह सब विविध पृष्ठभूमि के हैं और इन्हें मानव इतिहास के अभी तक से सबसे कठिन खोजी मिशनों को पूरा करने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए चुना गया है.
दो साल लंबा प्रशिक्षण
इनमें उच्च स्तरीय वैज्ञानिक भी शामिल हैं. 38 साल के क्रिस विलियम्स एक मेडिकल फिजिसिस्ट और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. उनका शोध कैंसर के इलाज के लिए इमेज गाइडेंस के तरीके ईजाद करने पर केंद्रित था.
35 वर्षीय क्रिस्टीना बर्च ने एमआईटी से बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट की है. अंतरिक्ष के जाने की प्रेरणा उन्हें अपने ही उस काम से मिलीं जो वो अपनी प्रयोगशाला में कर रही थीं. वो एक सफल ट्रैक साइक्लिस्ट भी रह चुकी हैं. उन्होंने ओलंपिक्स के लिए क्वालीफाई भी कर लिया था और विश्व कप में मेडल भी जीते हैं.
नासा का लक्ष्य है 2025 में अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर उतारना. लेकिन अपोलो युग की तरह इस बार संस्था यह काम अकेले नहीं करेगी और स्पेसएक्स जैसी निजी कंपनियों की भी मदद लेगी.
जनवरी में सभी लोग टेक्सास के ह्यूस्टन स्थित जॉनसन अंतरिक्ष केंद्र पहुंचेंगे और उसके बाद वहां उनका दो साल लंबा प्रशिक्षण शुरू होगा.
उन्हें अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को चलाने और उसकी देखरेख करने, स्पेसवॉक करने, रोबॉटिक कौशल, एक ट्रेनिंग जेट को सुरक्षित तरीके से चलाने और अपने रूसी सहयोगियों से बात करने के लिए रूसी भाषा का प्रशिक्षण दिया जाएगा.
सीके/एए (एएफपी)
लोकतंत्र एक बार फिर हाशिये पर है, सेना देश पर अपना दबदबा बनाने की कोशिश में लगी है, और देश में गृह युद्ध की स्थिति है. त्रासदी यह कि यह सब कोविड महामारी के दौरान हो रहा है.
डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र की रिपोर्ट-
म्यांमार में अब तक 300 से अधिक बड़े नेताओं को जेल भेजा गया है और कुछ को तो फांसी की सजा भी सुनाई जा चुकी है. फरवरी के तख्तापलट से बाद से अब तक 1,300 आम नागरिक मारे जा चुके हैं. देश में गृह युद्ध का माहौल है और दर्जनों अलगाववादी जनजातीय गुटों ने तात्मादाव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. कोविड की मार झेल रहे आम म्यांमार नागरिक के लिए यह कठिन दिन हैं क्योंकि अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को भी कोविड से निपटने के प्रयासों में मदद से रोका जा रहा है.
इसी सिलसिले में सोमवार को नोबेल पुरस्कार विजेता और देश में लोकतंत्र की मूर्ति मानी जाने वालीं आंग सान सू ची को अदालत ने चार साल की सजा सुनाई. हालांकि बाद में सेनाध्यक्ष मिन आंग लाई ने उनकी सजा को घटाकर 2 साल कर दिया. महीनों से हिरासत में रह रहीं आंग सान सू ची पर म्यांमार की सैन्य सरकार ने एक दर्जन अभियोग दायर किये हैं. यह संभवतः पहला केस था जिस पर अदालती कार्यवाही के बाद उन्हें दोषी पाया गया है.
सधे कदम रख रही है सेना
सू ची को देश में हिंसा भड़काने और कोविड-19 संबंधी प्रोटोकॉल के उल्लंघन का दोषी पाया गया है. सू ची पर लगाए गए आरोपों में शायद यह सबसे कमजोर था. उन पर लगाए अन्य आरोपों में स्टेट सीक्रेट एक्ट का उल्लंघन, भ्रष्टाचार और सत्ता का दुरुपयोग जैसे गंभीर आरोप हैं जिनमें कुल मिलाकर 100 साल तक की सजा हो सकती है. यांगून के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और सू ची के सहयोगी फ्यो मेन थिएन की इसी तरह के मामलों में 20 साल की सजा सुनाई गई है.
सू ची की तर्ज पर म्यांमार के भूतपूर्व राष्ट्रपति विन म्यिंन को भी म्यांमार की अदालत ने चार साल की सजा सुनाई थी लेकिन बाद में उसे घटाकर 2 साल कर दिया गया. राजधानी नेपीदाव में चली इस सुनवाई से मीडिया को दूर रखा गया. सू ची के वकील को भी आम जनता या मीडिया से बातचीत करने की अनुमति नहीं दी गयी.
म्यांमार की सेना को पता है कि सू ची को जेल भेजने से देश की जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में और गहरा असंतोष भड़क सकता है. शायद इसीलिए सेना ने घोषणा की है कि सू ची और विन म्यिंन समेत नेशनल लीग फार डेमोक्रेसी के तमाम बड़े नेताओं को वहीं सजा काटनी होगी जहां उन्हें फिलहाल हिरासत में रखा गया है. गौरतलब है कि सेना यह बताने से कतरा रही है कि इन नेताओं को कहां रखा गया है. संयुक्त राष्ट्र समेत मानवाधिकार संरक्षण संबंधी कई संस्थाओं ने सू ची के साथ हो रहीं ज्यादतियों और म्यांमार में सैन्य तानाशाही पर चिंता जताई है और वहां की सरकार पर दबाव बनाने की वकालत की है.
फंसी चुकी हैं सू ची
वैसे तो सू ची ने इन तमाम आरोपों से इंकार किया है लेकिन उन्हें भी मालूम है कि वह सेना के कानूनी चक्रव्यूह में फंस चुकी हैं. अब कोई चमत्कार ही उन्हें इन तमाम आरोपों से बरी करवा सकता है. यहां सवाल कानून और न्याय व्यवस्था से ज्यादा राजनीतिक दांवपेंच का है. सेना का मानना है कि सत्ता में बने रहने के लिए सू ची का हिरासत में रहना जरूरी है. कानूनी दांवपेंच के पीछे कहीं न कहीं सेना यह भी कोशिश कर रही है कि उसके इन कदमों को चीन जैसे देशों का समर्थन भी मिल जाए. आखिरकार दक्षिणपूर्व के लगभग हर देश में कोई न कोई मानवाधिकार उल्लंघन का मामला उभरता ही रहा है.
जहां तक सू ची का सवाल है, तो उनके लिए इस परिस्थिति से निकलने के दो ही रास्ते हैं - या तो सैन्य सरकार उन्हें खुद माफ कर दे (जो वह कुछ वर्षों बाद ही करेगी) या फिर राजनीतिक परिस्थितियों में किसी बाहरी दखल से आमूलचूल परिवर्तन आये. फिलहाल इन दोनों में से कोई भी संभावना निकट भविष्य में मूर्त रूप लेती नहीं दिखती है. दस दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान से सम्बद्ध आसियान पार्लियामेंटेरियंस फॉर ह्यूमन राइट्स) ने इस घटना को न्यायव्यवस्था के उपहास की संज्ञा दी है. आसियान ने फरवरी में म्यांमार में तख्तापलट के बाद से ही अपनी चिंताएं जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
आसियान शिखर वार्ता के पहले भी जनरल लाई को भाग लेने से मना करने के पीछे भी म्यांमार पर दबाव बनाने की मंशा थी लेकिन आसियान का यह कदम कारगर नहीं हुआ. अभी तक आसियान के विशिष्ट दूत को म्यांमार के सभी राजनीतिक घटकों खास तौर पर सू ची से मिलने तक की अनुमति नहीं दी गई है. अगले साल कंबोडिया से आसियान की अध्यक्षता संभालने के बाद तो स्थिति और भी खराब होने की संभावना है जिसके आसार अभी से दिख रहे हैं. (dw.com)
चिली के सांसदों ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने वाले विधेयक के पक्ष में भारी मतदान किया है. रूढ़िवादी लैटिन अमेरिकी देश में समानता के लिए कानून को "एक कदम आगे" कहा जा रहा है.
सीनेट और निचले सदन दोनों ने इस विधेयक के पक्ष में भारी मतदान किया है. मंगलवार को विधेयक के पारित होने की अधिकार समूहों, समान विवाह अधिकार अधिवक्ताओं और समान-लिंग वाले जोड़ों द्वारा सराहना की गई. संसद के बाहर खड़े रेमन लोपेज ने बताया कि वह कानून के पारित होने की प्रतीक्षा कर रहे थे ताकि वह अपने 21 साल के साथी से शादी कर सकें.
लोपेज ने कहा, "यह कुछ बहुत महत्वपूर्ण है. एक व्यक्ति के रूप में मैं वास्तव में सम्मानित महसूस कर रहा हूं. यह दरवाजे खोलता है और उन सभी पूर्वाग्रहों को तोड़ देता है." मतदान के बाद चिली की सामाजिक विकास मंत्री कार्ला रुबिलर ने कहा कि यह "न्याय के मामले में एक और कदम आगे है, समानता के मामले में और यह पहचान देता है कि प्यार प्यार होता है."
रूढ़िवादी चिली के लिए मील का पत्थर
इसका मतलब यह भी है कि बच्चों के साथ समान-लिंग वाले जोड़े को पूर्ण कानूनी मान्यता प्राप्त मिलेगी. विधेयक के पारित होने के साथ चिली लैटिन अमेरिका में अर्जेंटीना, ब्राजील, कोलंबिया, कोस्टा रिका और उरुग्वे सहित दुनिया भर के 20 से अधिक देशों में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने वालों में शामिल हो गया है.
19 दिसंबर को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में चिली को एक महत्वपूर्ण फैसला करना है. चिली के लोग प्रगतिशील उम्मीदवार गेब्रियल बोरिक और सामाजिक रूप से रूढ़िवादी जोस एंटोनियो कास्ट के बीच चयन करेंगे.
रूढ़िवादी मूल्यों को धारण करने के लिए लंबे समय से प्रतिष्ठा के बावजूद, अधिकांश चिली समान-लिंग विवाह अधिकारों का समर्थन करते हैं.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
रूस और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्षों के बीच वीडियो कॉल के जरिए दो घंटे तक हुई बातचीत में खरी-खरी बातें हुईं. अमेरिका ने प्रतिबंधों की धमकी दी तो रूस ने अपनी मांगें साफ-साफ रख दीं.
मंगलवार को रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से एक वीडियो कॉल के जरिए हुई बातचीत में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने खरी-खरी बातें करते हुए कहा कि अगर यूक्रेन पर किसी तरह की सैन्य कार्रवाई होती है तो अमेरिका करारा जवाब देगा.
अमेरिकी सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि लगभग दो घंटे चली बैठक में बाइडेन ने पुतिन को स्पष्ट तौर पर कहा कि यदि यूक्रेन पर चढ़ाई की गई तो "सख्त आर्थिक प्रतिबंधों और अन्य तरीकों से" जवाब दिया जाएगा.
व्हाइट हाउस की ओर से जारी बयान में कहा गया, "राष्ट्रपति बाइडेन ने अमेरिका और हमारे यूरोपीय सहयोगियों की तरफ से रूस के यूक्रेन पर चढ़ाई को लेकर गंभीर चिंताएं जाहिर की हैं. राष्ट्रपति बाइडेन ने यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति समर्थन दोहराया और आक्रामक रवैया छोड़कर कूटनीति की ओर लौटने की बात कही.”
रूस क्या चाहता है?
रूस ने अमेरिका की प्रतिबंधों की धमकी को खारिज कर दिया. पुतिन के विदेश मामलों के सलाहकार यूरी यूशाकोव ने मीडिया से कहा, "अमेरिकी राष्ट्रपति ने संभावित प्रतिबंधों की बात की तो हमारे राष्ट्रपति ने बताया कि हम क्या चाहते हैं. प्रतिबंधों में कुछ नया नहीं है. वे बहुत समय से चल रहे हैं और उनका कोई असर नहीं पड़ेगा.”
यूक्रेन का आरोप है कि रूस उस पर आक्रमण की तैयारी कर रहा है. रूस इन आरोपों को बेबुनियाद बताता है और उसका कहना है कि पश्चिमी देश काला सागर में युद्धाभ्यास जैसी उकसावे की कार्रवाइयां कर रहे हैं.
बैठक के बाद क्रेमलिन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि पुतिन ने मांग की कि उन्हें भरोसा दिलाया जाए कि पूर्व सोवियत देश यूक्रेन भविष्य में नाटो का हिस्सा नहीं बनेगा. क्रेमिलन ने कहा, "रूस इस बात को लेकर ठोस और कानूनी तौर पर बाध्यकारी गारंटी चाहता है कि नाटो पूर्व में अपना विस्तार नहीं करेगा और रूस के साथ लगते इलाकों में आक्रामक हथियार तैनात नहीं किए जाएंगे.”
किलेबंदी मजबूत करेगा अमेरिका
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा कि पुतिन की किसी भी मांग पर कोई वादा नहीं किया गया है. पुतिन-बाइडेन बैठक के बाद सुलिवन ने कहा कि अगर पुतिन यूक्रेन पर हमला करते हैं तो वह नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन परियोजना को भी संकट में डालेंगे.
इस बैठक से कुछ ही घंटे पहले यूक्रेन ने आरोप लगाए थे कि रूस युद्ध-पीड़ित पूर्वी यूरोप में टैंक और निशानेबाज बंदूकधारी भेजना जारी रखे है और ‘जवाबी गोलीबारी के लिए उकसा रहा है.' यूक्रेन के रक्षा मंत्री ने आरोप लगाया कि रूस "अपनी सेना के अफसरों के नेतृत्व में ट्रेनिंग कैंप चला रहा है.” रूस ने इन आरोपों पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
ऐसा माना जाता है कि रूस ने दसियों हजार सैनिक यूक्रेनी सीमा के पास जमा कर लिए हैं. जेक सुलिवन ने स्पष्ट किया कि अमेरिका यूक्रेन को अतिरिक्त रक्षा उपकरण उपलब्ध करवाएगा और नाटो पूर्वी सीमा पर किलेबंदी मजबूत करेंगे ताकि किसी भी आक्रामक कार्रवाई का जवाब दिया जा सके.
वीके/एए (एएफपी, एपी)
वाशिंगटन, 8 दिसम्बर| अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कई द्विपक्षीय मुद्दों के साथ-साथ यूक्रेन संकट और ईरान परमाणु समझौते पर वीडियो कॉल पर बात की। व्हाइट हाउस ने बैठक के बाद एक रीडआउट में कहा, "यूक्रेन के आसपास रूस की ताकतों के बढ़ने के बारे में बाइडेन ने यूरोपीय सहयोगियों को स्पष्ट किया कि अमेरिका और हमारे सहयोगी सैन्य वृद्धि की स्थिति में मजबूत आर्थिक और अन्य उपायों के साथ जवाब देंगे।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने रीडआउट के हवाले से कहा, "बाइडेन ने यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए अपना समर्थन देने की बात कही और कूटनीति में वापसी का आह्वान किया।"
बयान में कहा गया कि "दोनों राष्ट्रपतियों ने अपनी टीमों को फॉलोअप करने का काम सौंपा। साथ ही अमेरिका सहयोगियों और भागीदारों के साथ निकट समन्वय में ऐसा करेगा।"
रीडआउट में कहा गया कि राष्ट्रपतियों ने सामरिक स्थिरता पर अमेरिका-रूस संवाद, रैंसमवेयर पर एक अलग संवाद, साथ ही ईरान जैसे क्षेत्रीय मुद्दों पर संयुक्त कार्य पर भी चर्चा की।
क्रेमलिन ने एक बयान में कहा कि नेताओं ने छह महीने में अपनी दूसरी वार्ता के दौरान मुख्य रूप से यूक्रेन में आंतरिक संकट पर ध्यान केंद्रित किया।
पुतिन ने विशिष्ट उदाहरणों का उपयोग करते हुए, बाइडेन को यूक्रेनी अधिकारियों की नीति के बारे में बताया और अपनी "डोनबास के खिलाफ कीव की उत्तेजक कार्रवाई के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की।"
पुतिन ने जोर देकर कहा कि यह उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) है जो यूक्रेनी क्षेत्र को प्राप्त करने के लिए खतरनाक प्रयास कर रहा है और रूसी सीमाओं के पास अपनी सैन्य क्षमता का निर्माण कर रहा है।
पुतिन ने बाइडेन से गारंटी मांगी कि नाटो पूर्वी दिशा में विस्तार नहीं करेगा और रूस के पास आक्रामक हथियार तैनात नहीं करेगा।
द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के लिए स्थितियां बनाने के लिए पुतिन ने बाइडेन को रूसी और अमेरिकी राजनयिक मिशनों के कामकाज पर सभी संचित प्रतिबंधों को हटाने की पेशकश की। (आईएएनएस)