अंतरराष्ट्रीय
वाशिंगटन, 26 जनवरी| अमेरिका में कोरोना महामारी की शुरूआत के बाद से अब तक एक करोड़ से ज्यादा बच्चे कोरोना पॉजिटिव हैं। ये जानकारी अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (एएपी) और चिल्ड्रन हॉस्पिटल एसोसिएशन की रिपोर्ट में सामने आई है। सोमवार देर रात प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में 20 जनवरी तक कुल 10,603,034 बच्चे कोरोना संक्रमित हैं।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के कारण बच्चों में कोरोना के मामलों की संख्या बढ़ी है।
एएपी के अनुसार, बीते सप्ताह में 11 लाख से ज्यादा बच्चों में कोरोना के मामले सामने आए, जो पिछले साल की सर्दियों के मुकाबले लगभग 5 गुना अधिक है।
एएपी के अनुसार, एक सप्ताह पहले 981,000 मामले सामने आए, जिससे मामलों की संख्या में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और दो सप्ताह पहले मामलों की संख्या दोगुनी हो गई थी।
बीते दो हफ्तों में 20 लाख से ज्यादा बच्चे कोरोना पॉजिटिव पाए गए।
एएपी के अनुसार, यह लगातार 24वां सप्ताह है जब अमेरिका में बच्चों में कोरोना के मामले 100,000 से ज्यादा हैं। बच्चों में सितंबर के पहले सप्ताह से 56 लाख से ज्यादा मामले सामने आए हैं। (आईएएनएस)
माली और गिनी के बाद बुरकिना फासो तीसरा पश्चिम अफ्रीकी देश है जिसमें बीते 18 महीनों में तख्तापलट हुआ है. ये देश अल कायदा और इस्लामिक स्टेट के हमलों से जूझ रहा है.
पश्चिम अफ्रीकी देश बुरकिना फासो में तख्तापलट हो गया है. तख्तापलट करने वाले सैनिकों ने राष्ट्रीय चैनल पर सोमवार को इसकी घोषणा की. राजधानी औगाडौगू के कुछ इलाकों में रविवार से ही गोलीबारी हो रही थी. लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए राष्ट्रपति रॉक मार्क क्रिश्चियन कोबोगे को तख्तापलट के बाद से किसी अज्ञात जगह पर रखने का दावा किया जा रहा है. माली और गिनी के बाद बीते डेढ़ साल में तख्तापलट देखने वाला ये तीसरा पश्चिम अफ्रीकी देश है. करीब 2 करोड़ की आबादी वाले बुरकिना फासो को कुछ समय पहले तक स्थिर देश माना जाता था. लेकिन साल 2016 से ये चरमपंथी इस्लामिक जिहादियों से जूझ रहा है. इसे सैनिकों ने तख्तापलट करने की एक वजह की तरह पेश किया है.
तख्तापलट की घोषणा करते हुए कैप्टन सिडसो केबर उडारगौ ने कहा, राष्ट्रपति कोबोगे के शासन में सुरक्षा के हालात बिगड़ रहे थे और वो इन्हें संभालने में नाकाम रहे. इसलिए "देशभक्तों के आंदोलन ने ये जिम्मेदारियां संभाल लीं." सेना ने दावा किया है कि ये तख्तापलट बिना किसी हिंसा के हुआ है. गिरफ्त में लिए गए (राष्ट्रपति समेत) लोगों की गरिमा का सम्मान करते हुए उन्हें सुरक्षित स्थानों पर रखा गया है. न्यूज एजेंसी एपी से पहचान जाहिर ना करने की शर्त पर तख्तापलट करने वाले एक सैनिक ने कहा कि राष्ट्रपति कोबोगे ने इस्तीफा दे दिया है. हालांकि, कोबोगे की राजनैतिक पार्टी ने दावा किया है कि तख्तापलट करने वाले सैनिकों ने राष्ट्रपति समेत कई मंत्रियों की हत्या कर दी है. हथियारबंद सैनिकों से घिरे राष्ट्रपति भवन से ये बयान जारी हुआ है.
संविधान रद्द, सड़कों पर जश्न
नए सैन्य शासन ने कहा है कि उन्होंने बुरकिना फासो का संविधान रद्द कर दिया है और संसद भंग कर दी है. तख्तापलट के वक्त देश की सीमाएं बंद थीं. इसके अलावा रात 9 बजे से 5 बजे तक कर्फ्यू लगाया गया था. प्रवक्ता उडारगौ ने कहा कि देश के नए नेता जल्द ही चुनावों के लिए तारीखों का एलान करेंगे. उडारगौ ने जो संदेश पढ़ा, उस पर देश के संभावित सैन्य नेता लेफ्टिनेंट कर्नल पॉल हेनरी सेंडागो डामीबा के हस्ताक्षर थे. डामीबा सरकारी चैनल पर हुई तख्तापलट की घोषणा के वक्त प्रवक्ता के साथ मौजूद थे, लेकिन बोले कुछ नहीं.
तख्तापलट की घोषणा होने के बाद लोग सड़कों पर आ गए और जश्न मनाने लगे. एक प्रदर्शनकारी मेनुअल सिप ने एपी से कहा कि "ये बुरकिना फासो के लिए दोबारा एक होने का मौका है. पिछली सरकार ने हमें डुबो दिया था. रोज लोग मर रहे हैं, सैनिक मारे जा रहे हैं. हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं. सेना को ये पहले ही कर देना चाहिए था." हालांकि सेना ने सड़कों पर जश्न मना रहे लोगों को आंसू गैस का इस्तेमाल करके भगा दिया.
पहले भी हुआ है तख्तापलट
कोबोगे साल 2015 में बुरकिना फासो के राष्ट्रपति बने थे. नवंबर 2020 में वो दोबारा चुने गए थे. लेकिन जिहादी हिंसा पर नकेल कसने में नाकाम रहने की वजह से उनके खिलाफ आक्रोश बढ़ रहा था. बीते 5 सालों में अल कायदा और इस्लामिक स्टेट के हमलों में करीब दो हजार लोग मारे गए हैं और लगभग 15 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं. चरमपंथी हमलों में सेना को काफी नुकसान हुआ है. अकेले दिसंबर 2021 में 59 जवानों की मौत हुई है. तख्तापलट करने वाले सैनिकों का दावा है कि सरकार सेना के साथ संपर्क खो चुकी थी. घायल सैनिकों का बेहतर इलाज और मृतक सैनिकों के परिवारों का ख्याल रखना उनकी मुख्य मांग थी.
ये पहली बार नहीं है जब बुरकिना फासो में तख्तापलट हुआ हो. कोबोगे से पहले देश के राष्ट्रपति रहे ब्लैस कुंपोरे भी साल 1987 में ताकत के बल पर सत्ता में आए थे. भारी विरोध के बाद उनका 27 साल का कार्यकाल 2014 में समाप्त हुआ. अगले ही साल 2015 में कुंपोरे समर्थक सैनिकों ने अस्थायी सरकार का तख्तापलट करने की कोशिश की थी, जिसे आर्मी ने किसी तरह कुचल दिया था.
संयुक्त राष्ट्र ने बुरकिना फासो की स्थिति पर चिंता जताई है. महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने तख्तापलट करने वाले नेताओं से हथियार डालने की बात कही है. अमेरिका के विदेश मंत्रालय और पश्चिमी अफ्रीका के क्षेत्रीय संघ ने बुरकिना फासो की स्थिति को बड़ी चिंता बताया है. बुरकिना फासो के पड़ोसी देशों माली और गिनी में भी इसी तरह से तख्तापलट हुए हैं. वहां भी चुनाव की बात कही गई थी, लेकिन काफी समय बीतने के बाद भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के कोई निशान नहीं दिख रहे हैं.
आरएस/ओएसजे (एपी, एएफपी)
चीन में विदेशी फिल्में को रिलीज किए जाने की अनुमति कई दृश्य काटने के बाद दी जाती है. लेकिन 1999 की हॉलीवुड फिल्म "फाइट क्लब" में पुलिस को विजेता दिखाने के लिए तो कहानी के अंत को ही पूरी तरह से बदल दिया गया है.
चीन में 'फाइट क्लब' के दो नियम हैं. पहला, फिल्म में कहानी का जो अंत दिखाया गया है उसका जिक्र ना करें. दूसरा, अंत को बदल दें ताकि पुलिस की जीत दिखाई जा सके. चीन में सेंसरशिप के नियम दुनिया में सबसे कड़े नियमों में से हैं.
सरकार की सेंसर संस्थाएं हर साल सिर्फ मुट्ठी भर विदेशी फिल्में को देश में रिलीज किए जाने की अनुमति देती हैं और कई बार यह अनुमति कई दृश्य काटने के बाद दी जाती है. इस तरह के व्यवहार का सामने करने वाली ताजा फिल्म है डेविड फिंचर की 1999 की लोकप्रिय क्लासिक "फाइट क्लब", जिसमें ब्रैड पिट और एडवर्ड नॉर्टन मुख्य भूमिका में थे.
कहानी ही बदल दी
बीते सप्ताहांत पर चीन में फिल्म प्रेमियों ने पाया कि स्ट्रीमिंग सेवा टेनसेंट वीडियो पर फिल्म का एक ऐसा संस्करण चल रहा था जिसमें फिल्म के उस अराजकतावादी, पूंजीवाद विरोधी संदेश को ही पूरी तरह से बदल दिया गया है जिसकी वजह से फिल्म पूरी दुनिया में हिट हुई थी.
फिल्म के अंतिम दृश्यों में नॉर्टन का किरदार 'द नैरेटर' अपने काल्पनिक 'ऑल्टर ईगो' टाइलर डरडेन को मार देता है और फिर कई इमारतों में धमाके होते हुए देखता है. सुझाया ये गया है कि आधुनिक सभ्यता को नष्ट करने की उस किरदार की योजना की सफल शुरुआत हो जाती है. डरडेन का किरदार ब्रैड पिट ने निभाया है.
लेकिन चीन में दिखाए जा रहे नए संस्करण में कहानी का अंत अलग है. 'द नैरेटर' डरडेन को मार तो देता है लेकिन इसके इमारतों में विस्फोट के दृश्य की जगह स्क्रीन काली हो जाती है और एक संदेश आता है - "पुलिस ने बड़ी तेजी से पूरी योजना का पता लगा लिया, सभी अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया और बम को फटने से रोक लिया."
संदेश में यह भी जोड़ा गया है कि डरडेन को मनोवैज्ञानिक इलाज के लिए "मानसिक रोगियों के एक एसाइलम" में भेज दिया गया और बाद में वहां से छोड़ दिया गया.
चीन की सेंसर बाधाएं
सरकार की जीत दिखाने वाले इस अंत को देख कर चीन में कई दर्शकों ने अपना सिर खुजा लिया और आक्रोश प्रकट किया. काफी संभावना है कि इनमें से कई ने असली फिल्म के चोरी के संस्करण देख लिए होंगे.
टेनसेंट वीडियो पर एक दर्शक ने लिखा, "यह बहुत ही खराब है." एक और व्यक्ति ने ट्विटर जैसी सेवा वीबो पर लिखा, "टेनसेंट वीडियो पर 'फाइट क्लब' हमें यह बता रही है कि वो सिर्फ दृश्य ही नहीं काटते हैं, बल्कि कथानक में बदलाव भी लाते हैं."
अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि इस वैकल्पिक अंत का सरकारी सेंसरों ने आदेश दिया था या असली फिल्म के निर्माताओं ने ही ये बदलाव किए. टेनसेंट ने इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की.
हॉलीवुड की फिल्म निर्माता कंपनियां अक्सर चीन की सेंसर बाधाओं को पार करने की उम्मीद में वैकल्पिक दृश्य जारी करती हैं. उन्हें उम्मीद रहती है कि ऐसा करके वो अरबों चीनी उपभोक्ताओं तक पहुंच पाएंगी.
"सभ्य और स्वस्थ" माहौल
2019 में भी "बोहेमियन रैप्सडी" फिल्म को चीन में रिलीज करने से पहले उसमें से मशहूर संगीतज्ञ फ्रेड्डी मर्क्युरी की लैंगिकता से जुड़े कई दृश्यों को हटा दिया गया था, जबकि उनकी लैंगिकता उनकी आत्मकथा का बुनियादी हिस्सा है.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल में चीनी सरकारी संस्थाओं ने समाज से ऐसे तत्वों को निकाल बाहर करने के लिए कई कदम उठाए हैं जिन्हें अस्वास्थ्यकर माना जाता है. इनमें फिल्मों, टीवी और कंप्यूटर खेल भी शामिल हैं.
उन्होंने मनोरंजन उद्योग में टैक्स चोरी और कथित अनैतिक व्यवहार के खिलाफ भी कड़े कदम उठाए हैं. इस सिलसिले में देश के सबसे बड़े सेलेब्रिटियों को पहले ही निशाना बनाया जा चुका है.
साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ चीन ने घोषणा की है कि वो लूनर नए साल के अवसर पर इंटरनेट पर एक "सभ्य और स्वस्थ" माहौल बनाने के लिए एक "स्वच्छ" इंटरनेट अभियान शुरू कर रहा है, जो महीने भर चलेगा.
सीके/एए (एएफपी)
जेम्स वेब टेलिस्कोप अंतरिक्ष में उस जगह पहुंच गया है जहां से वह ब्रह्मांड के प्रारंभिक दिनों में आकाशगंगाओं के शुरुआती स्वरूप को देखने की कोशिश करेगा.
दुनिया का सबसे बड़ा, सबसे ताकतवर अंतरिक्ष टेलिस्कोप 'जेम्स वेब' सूर्य की कक्षा स्थित अपनी मंजिल पर पहुंच गया है. धरती से करीब 10 लाख मील दूर सौर कक्षा में यह जगह वेब स्पेस टेलिस्कोप की पार्किंग की जगह है. यहीं से वह ब्रह्मांड के प्रारंभिक दिनों में आकाशगंगाओं के शुरुआती स्वरूप को देखने की कोशिश करेगा.
कहां पहुंचा है टेलिस्कोप?
जेम्स वेब टेलिस्कोप ग्रेविटेशन इक्विलीब्रियम में जिस पॉजिशन पर पहुंचा है, उसे 'सेकेंड सन-अर्थ लगरानियन पॉइंट' (एल2) के नाम से जाना जाता है. इस पॉइंट की खोज 18वीं सदी के गणितज्ञ जोसेफ लूइस लगरांज ने की थी. लगरानियन पॉइंट, अंतरिक्ष की वे जगहें हैं, जहां भेजी गई चीजें स्थिर रहती हैं.
इन बिंदुओं पर दो बड़े पिंडों का गुरुत्वाकर्षण बल ठीक उस अभिकेंद्रीय बल के बराबर होता है, जिसकी किसी पदार्थ को उन पिंडों के साथ बढ़ने के लिए जरूरत होती है. इस संतुलन के चलते वहां भेजी गई चीजें स्थिर रहती हैं. इन बिंदुओं का इस्तेमाल कर दूरबीन अपनी ईंधन की खपत को घटाकर अपनी जगह पर बने रह सकती है.
लोकेशन का फायदा
अब अपनी जगह से वेब टेलिस्कोप एक खास रास्ते का अनुसरण करेगा. यह रास्ता टेलिस्कोप का धरती के साथ लगातार अलाइनमेंट बनाए रखेगा, लेकिन साथ ही इसे धरती की छाया से भी बचाकर रखेगा. इसके चलते वेब टेलिस्कोप को निर्बाध रेडियो संपर्क मिल सकेगा. साथ ही, उसे लगातार सूरज की रोशनी भी मिलती रहेगी.
वेब टेलिस्कोप की तुलना में इसका 30 साल पुराना पूर्ववर्ती 'हबल स्पेस टेलिस्कोप' करीब 547 किलोमीटर की दूरी से पृथ्वी की परिक्रमा करता है. हर 90 मिनट में वह धरती की छाया से गुजरता है. वेब टेलिस्कोप अपने रास्ते पर बना रहे, इसके लिए ग्राउंड टीम को हर तीन हफ्ते बाद एक बार इसमें लगे रॉकेट के 'कोर्स करेक्टिंग थ्रस्ट' को दागना पड़ेगा.
आकाशगंगाओं की शुरुआत देख सकेंगे
वेब टेलिस्कोप अपने आकार और डिजाइन के चलते गैसों और धूल गुबार के पार बहुत दूरी तक चीजें देख सकता है. इसके चलते वह हबल या किसी भी अन्य टेलिस्कोप के मुकाबले समय में और ज्यादा पीछे देख सकता है. इसी के चलते खगोलशास्त्रियों को वेब टेलिस्कोप से बहुत उम्मीदें हैं.
यह हमें बिग बैंग के 10 करोड़ साल बाद के समय में आकाशगंगाओं के शुरुआती स्वरूप दिखा सकता है. माना जाता है कि बिग बैंग वह बिंदु है, जहां से हमारे ज्ञात ब्रह्मांड के विस्तार की प्रक्रिया शुरू हुई.
कब शुरू करेगा काम?
इतना ही नहीं, वेब टेलिस्कोप की क्षमता इसे दूसरे ग्रहों में संभावित जीवन तलाशने के लिए भी आदर्श उपकरण बनाती है. हालांकि वेब टेलिस्कोप को इसकी खगोलीय निरीक्षण की भूमिकाओं के लिए तैयार करने में अभी समय लगेगा. इसके मुख्य दर्पण के 18 हिस्सों को अभी सटीकता से पंक्तिबद्ध किया जाना है.
ग्राउंड टीम को अभी टेलिस्कोप के कई उपकरण भी सक्रिय करने हैं. अगर सब ठीक रहा, तो वेब टेलिस्कोप इस साल की गर्मियां आते-आते निरीक्षण का काम शुरू कर देगा. उम्मीद है कि जून 2022 में नासा इसके द्वारा की गई शुरुआती निगरानियों की जानकारी सार्वजनिक करे.
यह टेलिस्कोप अंतरराष्ट्रीय सहयोग और अलग-अलग अंतरिक्ष एजेंसियों के सम्मिलित काम का नतीजा है. नासा ने यूरोपीय और कनाडा की अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ मिलकर इसका नेतृत्व किया है.
एसएम/ओएसजे (एपी, रॉयटर्स)
भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार के साथ यात्रा को लेकर अब भी गतिरोध ख़त्म नहीं हुआ है, लेकिन पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल ने पाकिस्तान की सरकार के ज़रिए भारत को एक नया प्रस्ताव भेजा है.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू की पहले पन्ने की लीड ख़बर के अनुसार, पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल ने हिन्दू, मुसलमान और सिख तीर्थयात्रियों को हवाई सेवा के ज़रिए आने देने का प्रस्ताव रखा है.
अख़बार की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग ने पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल के अध्यक्ष रमेश वाल्मीकि के इस प्रस्ताव को भारत के विदेश मंत्रालय के पास भेजा है.
रमेश वंकवानी ने पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (पीआईए) के चार्टर्ड प्लेन से लाहौर और कराची के तीर्थयात्रियों को भारत में आने देने की अनुमति मांगी है.
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल का यह प्रस्ताव सोमवार को मिला है और अभी इसे कई स्तरों पर मंज़ूरी मिलनी बाक़ी है. भारत के विदेश मंत्रालय का इस प्रस्ताव पर क्या रुख़ होगा, अभी तक इस बारे में कुछ कहा नहीं गया है. डायरेक्टरेट जनरल ऑफ़ सिविल एविएशन (डीजीसीए) के एक सीनियर अधिकारी ने अख़बार से कहा है कि अभी तक उन्हें एयरलाइन से कोई अनुरोध नहीं मिला है.
भारत के अधिकारियों ने यह भी कहा कि पिछले साल नवंबर में पाकिस्तान ने श्रीनगर-शारजाह फ़्लाइट को अपने हवाई क्षेत्र से गुज़रने की अनुमति नहीं दी थी. इसके अलावा भारत ने पीआईए के प्लेन को दिसंबर में भारतीय तीर्थयात्रियों को ले जाने की अनुमति नहीं दी थी. अधिकारियों का कहना है कि इस प्रस्ताव पर दोनों देशों की ओर से राजनीतिक पहल की ज़रूरत है.
अगर पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल के प्रस्ताव को भारत सरकार स्वीकार कर लेती है तो 2019 में दोनों देशों के बीच हवाई सेवा निलंबित होने के बाद पहली पीआईए फ़्लाइट भारत आएगी और ये 1947 के बाद दोनों तरफ़ से तीर्थयात्रियों को ले जाने वाली पहली फ़्लाइट होगी. अभी दोनों देशों के तीर्थयात्रियों के समूह 1974 के प्रोटोकॉल एक्सचेंज एग्रीमेंट के तहत वाघा-अटारी बॉर्डर से रोड के ज़रिए जाते हैं.
दिसंबर, 2021 में पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल ने पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस के साथ क़रीब 170 तीर्थयात्रियों के तीर्थाटन को लेकर समझौता किया था. 170 तीर्थयात्रियों में ज़्यादातर मुसलमान और 20 हिन्दू तीर्थयात्री हैं.
पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल ने 'धार्मिक तीर्थाटन' कार्यक्रम के तहत हाल के दिनों में कई क़दम उठाए हैं. पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल ने ब्रिटेन, यूएई, स्पेन और अन्य देशों के हिन्दू समूहों को पिछले कुछ हफ़्तों में पीएआईए चार्टर प्लेन के ज़रिए ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के परमहंस महाराज मंदिर में दर्शन कराया था. भारतीय तीर्थयात्री वाघा-अटारी बॉर्डर पार होकर लाहौर से पेशावर जाते हैं.
रमेश वंकवानी ने द हिन्दू को टेलिफ़ोन इंटरव्यू में कहा, ''मैं इस तरह की आपसी यात्राओं को लेकर बहुत ही आशान्वित हूँ. पाकिस्तान के लोग अजमेर शरीफ़, निज़ामुद्दीन औलिया दरगाह और अन्य धार्मिक स्थानों पर जाने की इच्छा रखते हैं. इस तरह की पहली उड़ान में मैं ख़ुद भी आना चाहता हूँ. तीर्थयात्री इस तरह की चार्टर्ड फ़्लाइट को लेकर बहुत ही उत्साहित हैं और हमें कई तरह के अनुरोध मिले हैं.''
पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल के प्रोग्राम के अनुसार, तीर्थयात्री 29 जनवरी से एक फ़रवरी तक भारत भ्रमण करेंगे. इनमें जयपुर, अजमेर, दिल्ली, आगरा और हरिद्वार शामिल हैं. रमेश वाल्मीकि इमरान ख़ान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ़ के सांसद हैं.
उन्होंने कहा कि इसे लेकर उन्होंने पाकिस्तान के अधिकारियों से बात की है. रमेश वंकवानी ने कहा कि अगर दोनों देशों से हरी झंडी मिल जाती है तो भारत के हिन्दू तीर्थयात्री पेशावर के परमहंस मंदिर और कराची के हिंगलाज माता मंदिर आ सकते हैं. इससे पहले इंडियन एयरलाइंस ने आख़िरी बार 2008 मार्च में पाकिस्तान के लिए उड़ान भरी थी.
रमेश वंकवानी ने द हिन्दू से कहा, ''इस गतिरोध को तोड़ने की ज़रूरत है. हम इस गतिरोध को तीर्थाटन के ज़रिए तोड़ना चाहते हैं. दोनों देशों के लोगों की आवाजाही के बाद सामान्य यात्राएं और कारोबार भी शुरू हो सकेंगे.'' (bbc.com)
ब्रिटेन की कंजरवेटिव पार्टी मुश्किल दौर में है. प्रधानमंत्री जॉनसन की लॉकडाउन पार्टियों पर जांच चल रही है. अब एक पूर्व महिला मंत्री ने आरोप लगाया है कि इस्लाम में विश्वास रखने की वजह से उन्हें मंत्री पद से हटाया गया.
ब्रिटेन की पूर्व यातायात उप मंत्री नुसरत गनी ने दावा किया है कि मुसलमान होने की वजह से उन्हें साल 2020 में मंत्रीपद से हटाया गया था. कंजरवेटिव पार्टी की सांसद गनी का दावा है, "मुझे सरकारी व्हिप ने कहा था कि मेरा इस्लामिक रवैया बाकी सहयोगियों को असहज महसूस करा रहा है. ऐसी भी चिंता थी कि मैं पार्टी के प्रति वफादार नहीं थी और मैंने इस्लामोफोबिया (इस्लाम से भय) जैसे आरोपों से पार्टी को बचाने के लिए पर्याप्त काम नहीं किया."
गनी ने कहा कि "मुझे ये बिल्कुल साफ हो गया था नंबर 10 (ब्रिटिश प्रधानमंत्री का दफ्तर- 10 डाउनिंग स्ट्रीट) और व्हिपों ने मेरी पृष्ठभूमि और आस्था की वजह से बाकियों के मुकाबले मेरे लिए वफादारी के ऊंचे पैमाने रखे थे."
गनी के इस दावे से ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के लिए मुश्किलें और बढ़ गई हैं. कोविड नियमों के खिलाफ घर में पार्टियां आयोजित करने के लिए कड़ी आलोचना झेल रहे बोरिस जॉनसन ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि गनी ने साल 2020 में प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी. प्रधानमंत्री ने आधिकारिक रुप से शिकायत करने के लिए कहा था. लेकिन तब गनी ने शिकायत दर्ज नहीं कराई. इस पर गनी का कहना है कि प्रधानमंत्री ने कंजरवेटिव पार्टी की आंतरिक प्रक्रिया की मदद लेने की बात कही थी. गनी के मुताबिक, ये सरकार से जुड़ा मामला था, जिसे पार्टी के पास ले जाने का कोई तुक नहीं था. उन्होंने कहा, "मैं बस इतना चाहती थी कि इस मामले को उनकी सरकार गंभीरता से ले, सही तरह से जांच हो और सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी अन्य सहयोगी को ये ना सहना पड़े."
पार्टी व्हिप का पक्ष
सरकार के चीफ व्हिप मार्क स्पेंसर ने खुद पहचान जाहिर करते हुए बताया कि "सांसद नुसरत गनी ने मेरा ही जिक्र किया है. लेकिन उनके लगाए आरोप झूठे हैं और मानहानि करने वाले हैं. जो बातें नुसरत बोल रही हैं, वो मैंने कभी नहीं कही. ये निराशाजनक है कि जब इस बारे में गनी से बात हुई थी तो उन्होंने कंजरवेटिव पार्टी में आधिकारिक जांच के लिए मामला आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया था." कंजरवेटिव पार्टी ने एक बयान में कहा है कि वो किसी भी तरह के नस्लभेद या भेदभाव के खिलाफ हैं.
गनी के समर्थन में कई मंत्री और नेता
कंजरवेटिव पार्टी के कई सांसदों ने गनी का समर्थन किया है. इनमें शिक्षा मंत्री नदीम जहाबी ने कहा है कि मामले की विस्तृत जांच होनी चाहिए. संसद की महिला एवं समता समिति की अध्यक्ष कैरोलिन नोक्स और स्वास्थ्य मंत्री साजिद जावेद भी गनी के समर्थन में हैं.
गनी 2015 में वीलडन क्षेत्र से संसद के लिए चुनी गई थीं. 2018 में उन्हें उप मंत्री बनाया गया था. तब देश की प्रधानमंत्री थेरेसा मे थीं. उस वक्त कैबिनेट में यातायात मंत्री रहे क्रिस ग्रेलिंग ने गनी के चुने जाने को कंजरवेटिव पार्टी की सफलता बताया था. कहा था कि कंजरवेटिव पार्टी ऐसी पार्टी है जहां मौके मिलते हैं. लेकिन कुछ आलोचक पार्टी को प्रधानमंत्री जॉनसन के कार्यकाल में मुस्लिम-विरोधी पूर्वाग्रह रखने वाला बताते हैं. जॉनसन खुद 2018 में हिजाब के तुलना डाक के डिब्बे से कर चुके हैं.
कंजरवेटिव पार्टी आपस में उलझी
गनी से पहले कंजरवेटिव पार्टी के ही एक अन्य सांसद विलियम राग ने पार्टी व्हिपों पर सांसदों को सरकार का समर्थन करते रहने के लिए धमाकाने का आरोप लगाया है. राग ने कहा कि वो इस मामले में जल्द ही पुलिस से मिलेंगे. बीते कुछ हफ्तों में कंजरवेटिव पार्टी की अंदरूनी दरारें खुलकर सामने आ चुकी हैं. कोविड के दौरान पार्टियां आयोजित करने के बाद कंजरवेटिव पार्टी के कुछ नेताओं ने जॉनसन से इस्तीफे की मांग की है. जॉनसन की पार्टियों की जांच के लिए एक वरिष्ठ नौकरशाह सू ग्रे को नियुक्त किया गया है. अगले हफ्ते तक इस जांच की रिपोर्ट आने की उम्मीद है. अगर इसमें कुछ भी जॉनसन के विरुद्ध पाया जाता है तो उनके इस्तीफे की मांग और तीखी हो सकती है. मामला यहां तक भी बढ़ सकता है कि जॉनसन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आ जाए और उन्हें पद छोड़ना पड़े. नुसरत गनी के मामले में जरूरी कार्रवाई करने भी जॉनसन के लिए चुनौती होगी.
आरएस/ओएसजे (एएफपी, रॉयटर्स)
एक नए सर्वेक्षण में सामने आया है कि जनवरी में ओमिक्रॉन के असर से यूरोजोन में आ रही बेहतरी कमजोर पड़ गई. संकेत मिल रहा है कि जर्मनी की शक्ति के बिना यूरोजोन और लुढ़क सकता था.
कुल मिला कर अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के अच्छे परिचायक के रूप में माने जाने वाले परचेसिंग मैनेजर्स इंडेक्स में दिसंबर के मुकाबले करीब एक प्रतिशत की गिरावट आई. इंडेक्स दिसंबर में 53.3 पर था जबकि जनवरी में वो गिर कर 52.4 पर पहुंच गया. यह पिछली फरवरी की बाद सबसे कम है.
इस पर सबसे ज्यादा असर सेवा क्षेत्र का पड़ा, जो नौ महीनों में सबसे नीचे के स्तर पर गिर गया. बीते कई हफ्तों से कोरोना वायरस का ओमिक्रॉन वेरिएंट यूरोप के कई देशों में फैल रहा है और इसके प्रसार को देखते हुए सभी देशों की सरकारें नागरिकों को घर पर रहने की सलाह दे रही हैं. इसके अलावा बढ़ती महंगाई ने वैसे भी लोगों को खर्च करने से रोका हुआ है.
हावी रही महंगाई
उपभोक्ताओं के घर पर रहने से सेवाओं की मांग में बढ़त लगभग खत्म ही हो गई. नए कारोबार का सूचकांक पिछली अप्रैल के बाद सबसे नीचे स्तर पर पहुंच गया. ऐसा जर्मनी में आर्थिक बेहतरी के बावजूद देखा गया. जर्मनी में सप्लाई चेन की समस्याओं के कम होने से फैक्ट्रियां को फायदा मिला.
लेकिन फ्रांस में भी कोविड-19 और महंगाई का आर्थिक गतिविधियों पर असर रहा और कारोबार में पूर्वानुमान से ज्यादा गिरावट देखने को मिली. यह इस बात का संकेत है कि जर्मनी की शक्ति के बिना यूरोजोन और लुढ़क सकता था.
ब्रिटेन में व्यापारिक गतिविधि 11 महीनों में सबसे नीचे के स्तर पर चली गई लेकिन चीजों के दाम बढ़े, जिसकी वजह से अंदाजा लगाया जा रहा है कि बैंक ऑफ इंग्लैंड अगले सप्ताह ब्याज दरें बढ़ाएगा.
बढ़ा रोजगार
जापान में फैक्ट्री गतिविधि चार सालों में सबसे तेज गति पर बढ़ी लेकिन निजी क्षेत्र में गतिविधि चार महीनों में पहली बार घट गई. वहां भी कोरोनावायरस के मामलों के बढ़ने से सेवा उद्योग को झटका लगा.
उपभोक्ताओं पर बढ़ते दामों की भी मार पड़ी. दाम नवंबर जितने ऊंचे स्तर पर रहे. पिछले महीने महंगाई ने एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया था. संभव है कि इससे यूरोपीय केंद्रीय बैंक पर नीतियों को और सख्त करने का दबाव बढ़ रहा हो.
हालांकि प्रतिबंधों का फैक्ट्रियों पर कम असर पड़ा है और अधिकांश खुली ही रही हैं. यूरोजोन का उत्पादन सूचकांक पांच महीनों में सबसे ऊंचे स्तर 59.0 पर पहुंच गया. मांग बढ़ रही है और इसे पूरा करने के लिए फैक्ट्रियों ने तेजी से नौकरियां दी हैं. रोजगार सूचकांक 55.3 से 57.5 पर पहुंच गया जो जुलाई के बाद सबसे ऊंचा स्तर है.
सीके/एए (रॉयटर्स)
स्थानीय राजनीति, पुलिस और ड्रग्स गिरोहों की सांठगांठ पर रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के मारे जाने या उन पर हमले होने का जोखिम सबसे ज्यादा होता है. पत्रकारों की हत्या के बीच मेक्सिको में पुलिस पर ऐसे आरोप लग रहे हैं.
23 जनवरी को मेक्सिको में फिर से एक पत्रकार की हत्या कर दी गई. एक हफ्ते के भीतर यहां किसी पत्रकार की हत्या का यह दूसरा मामला है. यह वारदात उत्तरी मेक्सिको के सीमांत शहर तिखुआना में हुई. प्रशासन द्वारा जारी बयान के मुताबिक, पत्रकार लुरडेस मालडोनाडो लोपेज अपनी कार में थीं, जब बंदूक से उन पर हमला किया गया. लुरडेस 'प्रीमियर सिसटेमा डे नोटिसियास' (पीएसएन) समेत कई मीडिया संस्थानों के साथ काम कर चुकी थीं. पीएसएन के मालिक जेमी बोनिल्ला 2019 से 2021 तक 'बाजा कैलिफॉर्निया' के गवर्नर रह चुके हैं.
सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल
लुरडेस ने कुछ ही दिन पहले पीएसएन के खिलाफ एक मुकदमा जीता था. करीब नौ साल से वह पीएसएन के खिलाफ अनुचित तरीके से उन्हें नौकरी से निकालने का केस लड़ रही थीं. लुडरेस के मारे जाने की खबर सामने आने के बाद मेक्सिको में सोशल मीडिया पर उनका एक वीडियो सामने आया. यह वीडियो लगभग दो साल पुराना बताया जा रहा है.
इसमें लुरडेस अपनी जिंदगी पर खतरा बताकर मेक्सिको के राष्ट्रपति आंद्रेज मैनुअल लोपेज ओब्रादोर से मदद और न्याय की अपील कर रही हैं. यह वीडियो ओब्रादोर की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बनाया गया था. इसमें लुरडेस पीएसएन के मालिक और तत्कालीन गवर्नर जेमी बोनिल्ला के बारे में कहती हैं, "मैं छह साल से उनके साथ मुकदमा लड़ रही हूं."
'दी कमिटी टू प्रॉटेक्ट जर्नलिस्ट्स' नाम के एक गैर-सरकारी संगठन ने एक ट्वीट में लिखा, "लुरडेस मालडोनाडो की हत्या से हम सदमे में हैं. एक हफ्ते से भी कम समय में टिवाना शहर के भीतर यह दूसरे पत्रकार की हत्या है." संगठन ने प्रशासन से इस मामले की विस्तृत और पारदर्शी जांच करने की अपील की. मेक्सिको में इस संगठन के प्रतिनिधि जैन अल्बर्ट हूटसन ने कहा, "महज दो हफ्ते के भीतर मेक्सिको में पत्रकारों पर चार क्रूर हमले हो चुके हैं. मैं सदमे में हूं और डरा हुआ हूं."
जान का खतरा था, सुरक्षा भी मांगी थी
इससे पहले 17 जनवरी को फोटोजर्नलिस्ट अल्फांसो मार्गरिटो मार्टिनेज को तिखुआना शहर में उनके घर के नजदीक मृत पाया गया. मार्गरिटो 49 साल के थे. करीब दो दशकों से अपराध से जुड़ी खबरों पर काम कर रहे थे. उन्होंने कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों के लिए काम किया था. मार्गरिटो के सिर में गोली मारकर उनकी हत्या की गई थी.
उनकी हत्या के बाद एक स्थानीय पत्रिका के संपादक अडेला नावारो ने 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' से कहा था, "मार्गरिटो क्राइम की खबरें करते थे. अपने काम के चलते अकसर उन्हें पुलिस के साथ दिक्कत होती थी." 2019 में पुलिस ने मार्गरिटो के उपकरण जब्त करने की कोशिश भी की थी. सहकर्मियों का कहना था कि मार्गरिटो को स्थानीय अपराधी गुटों से खतरा था. कई बार उन्हें धमकियां मिली थीं. उन्हें डर था कि उनकी जान ली जा सकती है. इसके चलते उन्होंने प्रशासन से सुरक्षा भी मांगी थी, लेकिन उनके आग्रह पर अमल नहीं किया गया.
चाकू मारकर हत्या
10 जनवरी को वेराक्रूज शहर में होसे लूइस गामबोआ नाम के एक पत्रकार और एक्टिविस्ट की भी हत्या हुई थी. उनके शरीर पर चाकू से कई बार वार किया गया था. गामबोआ का शरीर सड़क पर पड़ा रहा. करीब चार दिन बाद जानकर शव की पहचान हो सकी. गामबोआ की हत्या क्यों हुई, क्या उनके काम की वजह से उन्हें निशाना बनाया गया, अभी यह पता नहीं चल सका है.
पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में मेक्सिको के हालात काफी खराब हैं. यह पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों में गिना जाता है.'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स'के मुताबिक, 2021 में यहां कम-से-कम सात पत्रकारों की हत्या हुई. कई मीडिया खबरों में यह संख्या नौ बताई गई. आरएसएफ द्वारा जारी किए गए 2021 के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम सूचकांक में 180 देशों की सूची में मेक्सिको को 143वें नंबर पर रखा गया था.
पत्रकारों की हत्या पर कोई सख्ती नहीं
मेक्सिको में पुलिस पर अपराधिक गिरोहों और ड्रग कार्टल से सांठगांठ के आरोप लगते हैं. इल्जाम है कि गिरोहों के अलावा भ्रष्ट पुलिसकर्मी भी पत्रकारों को निशाना बनाते हैं. पत्रकारों की हत्याओं पर होने वाली जांच पर भी लीपापोती के इल्जाम लगते आए हैं. राजनैतिक और प्राशासनिक नेतृत्व में भी पत्रकारों की हत्याओं को रोकने और ऐसे मामलों पर सख्त कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति नहीं दिखती है. यही वजह है कि ज्यादातर मामलों में दोषी कभी पकड़े ही नहीं जाते.
जानकारों के मुताबिक, स्थानीय राजनीति, पुलिस और ड्रग्स गिरोहों की सांठगांठ पर रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के मारे जाने या उन पर हमले होने का जोखिम सबसे ज्यादा होता है. मेक्सिको में कानून-व्यवस्था की स्थिति आमतौर पर भी काफी खराब है. यहां हत्याओं का ग्राफ काफी ऊपर है. 2018 में यहां 36,685 हत्याएं दर्ज की गईं. 2019 में यह संख्या 36,661 थी. 2020 में होमिसाइड के 36,773 मामले दर्ज किए गए थे.
एसएम/आरएस (एएफपी)
नाटो ने बड़ी संख्या में फौज, युद्धपोत और लड़ाकू विमान रूस के आस पास तैनात करने शुरू कर दिए हैं. असफल बातचीत के बाद रूस और अमेरिका करीब 30 साल बाद इतने बड़े सैन्य तनाव से गुजर रहे हैं.
यूक्रेन संकट से शुरू हुआ रूस और पश्चिमी देशों का विवाद और गंभीर होता जा रहा है. रूस ने एलान किया है कि वह अगले महीने आयरलैंड के पास समुद्र में सैन्य अभ्यास करेगा. आयरलैंड ने रूस को चेतावनी देते हुए कहा है कि ऐसे सैन्य अभ्यास का स्वागत नहीं किया जाएगा.
बातचीत और कूटनीति के सहारे तनाव कम करने कोशिशें नाकाम होने के बाद अब नाटो ने भी बड़ी संख्या में रूस के आस पास पूर्वी यूरोप में सैन्य तैनाती शुरू कर दी है. अमेरिका की अगुवाई वाले नाटो का कहना है कि युद्ध भड़काने वाली किसी भी कार्रवाई को रोकने के इरादे से यह किया जा रहा है.
नाटो का सदस्य देश, डेनमार्क अपने लड़ाकू नौसैनिक जहाज और एफ-16 फाइटर जेट लिथुएनिया भेज रहा है. स्पेन भी अपने वॉरशिप बाल्टिक सागर में भेज रहा है. यह संभावना भी है कि स्पेन अपने लड़ाकू विमान बुल्गारिया भेज सकता है. फ्रांस का कहना है कि वह भी अपनी सेना बुल्गारिया भेजने के लिए तैयार है. नीदरलैंड्स ने भी अपने फौज और नौसेना को स्टैंडबाइ में रखा है.
नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग के मुताबिक, नाटो "अपने सभी साझेदारों की सुरक्षा और उनके बचाव के लिए सारे जरूरी कदम उठाएगा.
नाटो के अहम सदस्य ब्रिटेन ने रूस को चेतावनी देते हुए कहा कि यूक्रेन में घुसने की कोशिश एक विध्वंसक कदम होगी. ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने फौज को यूक्रेन भेजने से इनकार किया लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा, यूक्रेन में घुसना रूस के लिए "दर्दनाक, हिंसक और खून खराबे वाला सौदा होगा."
रूस ने कहा, ये तैनाती भड़काऊ
नाटो की तैनाती के बाद रूस की तरफ से भी कड़ी प्रतिक्रिया आई है. रूसी सरकार ने अमेरिका और नाटो पर तनाव भड़काने का आरोप लगाया है. रूसी राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता दिमित्री पेशकोव ने कहा कि मॉस्को समर्थक अलगाववादियों पर यूक्रेनी सेना के हमले का जोखिम बहुत ज्यादा है. रूस सरकार का कहना है कि यूक्रेनी सेना 2014 की तरह ही रूस समर्थक अलगाववादियों से लड़ने की योजना बना रही है. 2014 में इसी तर्क का हवाला देते हुए रूस ने क्रीमिया पर हमला कर उसे अपने नियंत्रण में ले लिया. मॉस्को कई बार कह चुका है कि अगर यूक्रेनी सेना ने रूस समर्थक अलगाववादियों पर कार्रवाई की तो अंजाम बुरा हो सकता है.
असमंजस में यूरोपीय संघ
नाटो की सैन्य तैनाती के एलान में यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों के लिए भी एक संदेश है. बैठक की अध्यक्षता कर रहे यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल का कहना है, ''हम यूक्रेन की स्थिति को लेकर एक अभूतपूर्व एकता का प्रदर्श कर रहे हैं.'' तनाव के इस दौर में यूरोपीय संघ ने यूक्रेन को 1.2 अरब यूरो की आर्थिक मदद भी दी है.
बोरेल से जब यह पूछा गया कि क्या यूरोपीय संघ के देश यूक्रेन स्थित अपने दूतावासों में तैनात कर्मचारियों के परिवारों को वापस बुलाएंगे? इसके जवाब में बोरेल ने कहा, "हम बिल्कुल उसी तरह का कदम नहीं उठाएंगे." अमेरिका और ब्रिटेन यूक्रेन से अपने दूतावासकर्मियों के परिवारों को वापस बुला चुके हैं.
नाटो के कई सदस्य देश अमेरिका को फॉलो करने के साफ संकेत दे रहे हैं. लेकिन यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश जर्मनी असमंजस में है. तमाम उतार चढ़ावों के बीच जर्मनी और रूस संबंध दोस्ताना हैं. एकीकरण से पहले पश्चिमी जर्मनी पश्चिमी देशों के साथ था तो पूर्वी जर्मनी सोवियत संघ के साथ. रूस के मौजूदा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन खुद पूर्वी जर्मनी में सोवियत खुफिया एजेंसी केजीबी के एजेंट रह चुके हैं. जर्मनी रूसी गैस का बड़ा खरीदार भी है.
जर्मनी पर दबाव क्यों
एक लाख से ज्यादा रूसी सैनिकों के यूक्रेन को तीन तरफ से घेरने के बाद जर्मनी दबाव में है. द्वितीय विश्वयुद्ध के तथ्य और उसके बाद जर्मनी का दो भागों में बंटना, बर्लिन के लिए इन स्मृतियों को भुलाना आसान नहीं है. जर्मन नेता जानते हैं कि अगर युद्ध भड़का तो जर्मनी भी उसकी आंच से नहीं बच सकेगा. जर्मनी में हाल ही सत्ता में आई नई सरकार के लिए भी यह परिस्थितियां इम्तिहान लेने वाली हैं. 16 साल तक देश की कमान संभालने वाली अंगेला मैर्केल के राजनीतिक संन्यास के बाद नए चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के लिए इन जटिलताओं को हल करना आसान नहीं है.
यूक्रेन संकट ने जर्मनी को साझेदार बनाम पड़ोसी की लड़ाई में ला खड़ा किया है. इसकी बानगी पिछले हफ्ते भी देखने को मिली जब जर्मनी के नौसेना प्रमुख वाइस एडमिरल काय आखिम शोनबाख को पुतिन संबंधी बयान के लिए इस्तीफा देना पड़ा. भारत यात्रा के दौरान शोनबाख ने कहा कि पुतिन "सिर्फ सम्मान चाहते हैं." नौसेना प्रमुख का यह बयान वायरल हो गया और रक्षा मंत्रालय ने फौरन उनका त्याग पत्र स्वीकार कर लिया.
जर्मनी की नई विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक यूक्रेन और मॉस्को का दौरा भी कर चुकी हैं. बढ़ते तनाव के बीच बेयरबॉक ने कहा है, "हमें हालात को और बुरा बनाने में हिस्सा नहीं लेना चाहिए. हमें पूरी तरह यूक्रेन की सरकार को समर्थन देने की जरूरत है और इन सबके ऊपर देश में स्थिरता बनाए रखने की जरूरत है."
नाटो फौजों की तैनाती के बीच यूक्रेन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ओलेग निकोलेंको ने अमेरिकी कदमों को जल्दबाजी बताया है. निकोलेंको ने कहा, रूस यूक्रेन को अस्थिर करने के लिए यूक्रेनी जनता और विदेशियों के भीतर भय का माहौल बनाना चाहता है. गंभीर होते तनाव के बीच फ्रांस की सरकार ने अपने नागरिकों से कहा है कि अगर जरूरी न हो तो वे यूक्रेन जाने से बचें.
ओएसजे/आरपी (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन कैमरा पर एक पत्रकार को "स्टुपिड सन ऑफ अ बिच" कहते हुए पकड़े गए हैं. इसे लेकर बाइडेन के मीडिया के प्रति व्यवहार को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
सोमवार 24 जनवरी को ऐसा उस समय हुआ जब व्हाइट हाउस में आयोजित एक फोटो ऑप के बाद सभी पत्रकार बस जा ही रहे थे. फॉक्स न्यूज के पत्रकार पीटर डूसी ने जाते जाते बाइडेन से महंगाई पर एक सवाल पूछ लिया जिसका जवाब राष्ट्रपति ने कटाक्ष में दिया और उसके बाद दबी आवाज में पत्रकार को गाली भी दे दी.
डूसी ने पूछा था, "क्या आप महंगाई पर सवाल लेंगे. क्या आपको लगता है कि मध्यावधि चुनावों से पहले महंगाई आप के लिए राजनीतिक रूप से एक बोझ है?" बाइडेन ने जवाब में कहा, "नहीं, ये एक फायदे की चीज है. और ज्यादा महंगाई होनी चाहिए."
गाली से नहीं इंकार
सोशल मीडिया पर मौजूद एक वीडियो में बाइडेन यह कहने के तुरंत बाद सवाल पूछने वाले पत्रकार को "स्टुपिड सन ऑफ अ बिच" भी कहते हुए नजर आते हैं.
बाइडेन के साथ इससे पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन अक्सर व्हाइट हाउस के अधिकारी या तो उनकी टिप्पणी के बारे में समझाने या उसका खंडन करने के लिए आगे आते हैं.
लेकिन इस बार ना सिर्फ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बल्कि कार्यक्रम के बाद व्हाइट हाउस ने जो लिखित प्रतिलिपि जारी की उसमें गाली समेत बाइडेन की पूरी टिप्पणी मौजूद है.
इसका मतलब एक अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा पत्रकार को दी गई गाली अब इतिहास के लिए व्हाइट हाउस के आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज हो चुकी है. न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार की व्हाइट हाउस संवाददाता केटी रोजर्स ने प्रतलिपि के इस अंश की एक तस्वीर ट्वीट की.
अमेरिका में महंगाई इस समय चालीस सालों में सबसे ऊंचे स्थान पर है और इस वजह से बाइडेन की अप्रूवल रेटिंग को नुकसान पहुंचा है. डूसी का नेटवर्क बाइडेन की लगातार आलोचना करता आया है.
बाइडेन का व्यवहार
डूसी फॉक्स न्यूज के लिए काम करते हैं, जिसे विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी का पसंदीदा समाचार चैनल माना जाता है. डूसी ने बाद में अपने ही चैनल पर कहा कि बाइडेन ने बाद में उन्हें फोन भी किया और कहा, "इसे व्यक्तिगत तौर पर मत लेना दोस्त."
बाइडेन ने इससे पहले भी यह दिखाने की कोशिश की है फॉक्स न्यूज और डूसी जैसे जिन मीडिया संगठनों और
पत्रकारों को वो उनके प्रति ज्यादा आलोचनात्मक समझते हैं उन्हें चुनौती देने में उन्हें कोई झिझक नहीं है.
पिछले सप्ताह की अपनी समाचार वार्ता में बाइडेन ने डूसी पर कटाक्ष करते हुए कहा था, "तुम हमेशा मुझसे सबसे ज्यादा सुहावने सवाल पूछते हो." पत्रकार ने जवाब दिया था, "मेरे पास एक पूरी फाइल इनसे भरी हुई है." बाइडेन ने कहा था, "मुझे यह मालूम है. उनमें से कोई भी मुझे समझदार सवाल नहीं लगता है. पूछना शुरू करो."
(एपी, एएफपी से जानकारी के साथ)
कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के आने के बाद धनी देशों ने गरीब देशों से नर्सों की भर्ती को तेज कर दिया है. अंतरराष्ट्रीय संगठनों का कहना है कि यह चलन गरीब देशों को भारी पड़ रहा है.
कनाडा के टोरंटो में पिछले एक साल से अस्पताल के इमरजेंसी विभाग में काम कर रहीं एमी एरहार्ट ने पिछले हफ्ते नौकरी छोड़ दी. वह अस्थायी नौकरी करने अमेरिका के फ्लोरिडा जा रही हैं, जिसके बाद उनकी अन्य योजनाएं हैं.
एरहार्ट बताती हैं, "हम हर वक्त बुरी तरह थके रहते हैं. मैं अपने सहकर्मियों को याद तो करूंगी लेकिन काम के हालात बेहतर होते तो मैं रुक जाती.”
कोविड महामारी ने अमीर और गरीब सभी देशों में स्वास्थ्यकर्मियों की भयानक परीक्षा ली है. इसलिए लगभग सभी देश स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से जूझ रहे हैं. हालत ऐसी है कि अस्पताल अपने कर्मचारियों की छुट्टियों पर ना जाने और ज्यादा देर काम करने की गुजारिश करते रहते हैं, जो पिछले दो साल से चल रहा है. इस परेशानी का हल धनी देशों ने गरीब देशों में खोजा है.
इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज (ICN) ने कहा है कि धनी देश बड़ी संख्या में गरीब देशों से नर्सों को भर्ती कर रहे हैं जिसका असर गरीब देशों की स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ रहा है जहां स्वास्थ्यकर्मी पहले ही काम के बोझ की अति से जूझ रहे हैं. ओमिक्रॉन वेरिएंट के कारण संक्रमण के मामलों में उफान आने के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से जूझ रही है.
जेनेवा स्थित इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज 130 देशों के राष्ट्रीय संगठनों का प्रतिनिधित्व करता है जिनमें 2.7 करोड़ से ज्यादा सदस्य हैं. संगठन के सीईओ हॉवर्ड कैटन ने कहा कि बीमारी, काम के बोझ और स्वास्थ्यकर्मियों के देश छोड़कर चले जाने के कारण ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के बीच इतनी ज्यादा संख्या में नर्सें काम से गैरहाजिर हैं, जितना दो साल की महामारी के दौरान पहले कभी नहीं देखा गया.
स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी
धनी देशों में भी स्वास्थ्यकर्मियों की कमी देखी जा रही है जिसे पूरा करने के लिए ये देश स्वयंसेवियों और सेवानिवृत्त कर्मियों का रुख कर रहे हैं. लेकिन कैटन कहते हैं कि बहुत से देशों ने अंतरराष्ट्रीय भर्तियां भी तेज कर दी हैं जिसके कारण असमानता बढ़ रही है.
कैटन ने कोविड-19 के दौरान अंतरराष्ट्रीय नर्सों की स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार की है. इस बारे में उन्होंने कहा, "हमने यूके, जर्मनी, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में अंतरराष्ट्रीय भर्तियों में उछाल देखा है. मुझे यह रफू करने वाला हल लगता है. ऐसा ही हमने पीपीई किट और वैक्सीन के मामले में भी देखा था जबकि अमीर देशों ने अपनी ताकत के बल पर खरीदने और जमा करने का काम किया था. अगर वे नर्सों के साथ भी वैसा ही करते हैं तो यह असमानता को बदतर बनाएगा.”
आईसीएन के आंकड़ों के मुताबिक महामारी के आने से पहले भी दुनिया में कम से कम 60 लाख नर्सों की कमी थी और इस कमी का 90 प्रतिशत शिकार गरीब और मध्य आय वाले देश थे. धनी देशों ने हाल ही में जो भर्तियां की हैं, वे ज्यादातर नाइजीरिया, कैरेबिया और अन्य अफ्रीकी क्षेत्रों से हुई हैं. कैटन कहते हैं कि ज्यादा तन्ख्वाह और बेहतर परिस्थितियां इन नर्सों को अपना देश छोड़कर विदेश जाने को प्रोत्साहित कर रही हैं.
बड़े निवेश की जरूरत
आईसीएन की रिपोर्ट कहती है कि नर्सों को इमिग्रेशन में प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे इस प्रक्रिया को और तेजी मिली है. कैटन कहते हैं, "कुल जमा बात यह है कि कुछ लोग इस पूरी प्रक्रिया को देखेंगे और कहेंगे कि अमीर देश नई नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों को शिक्षित और प्रशिक्षित करने का खर्च बचा रहे हैं.”
कैटन यह चेतावनी भी देते हैं कि दुनिया जिस तरह स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से जूझ रही है, अंततः अमीर देशों को भी नुकसान झेलने पड़ेंगे. वह कहते हैं कि कार्यबल को बढ़ाने के लिए दस वर्षीय योजना और बड़े निवेश की जरूरत है. कैटन ने कहा, "हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक संयोजित, सहयोगी और केंद्रित प्रयास की जरूरत है ना कि सिर्फ तालियों और गर्मजोशी भरे शब्दों की.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
जर्मनी की हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी में एक बंदूकधारी ने गोलियां चलाकर कई लोगों को घायल किया. पुलिस के मुताबिक गोलियां चलाने वाला हमलावर मारा गया है.
फायरिंग कांड सोमवार को हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी के कैंपस में मौजूद नॉएनहाइमर फेल्ड एरिया में हुआ. दक्षिण पश्चिमी जर्मन शहर मानहाइम की पुलिस ने एक बयान जारी कर कहा, "एक लंबी बंदूक के जरिए एक लेक्चर हॉल में एक अकेले हमलावर ने कई लोगों को घायल कर दिया. हमलावर मारा गया है."
पुलिस ने यह जानकारी नहीं दी है कि कितने लोग घायल हुए हैं और हमलावर कौन था. यूनिवर्सिटी के प्रेस विभाग ने भी वारदात पर कोई टिप्पणी करने से इनकार किया है. जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए ने एक सुरक्षा सूत्र के हवाले से कहा है कि फायरिंग के बाद हमलावर ने खुद को गोली मार ली.
पुलिस के मुताबिक हमलावर ने एक लंबी नाल वाली बंदूक इस्तेमाल की. जर्मन मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक लेक्चर हॉल में गोलियां चलाने वाला हमलावर यूनिवर्सिटी का ही छात्र था.
यूरोप में सबसे कड़े गन कंट्रोल कानूनों वाला जर्मनी बीते कुछ सालों में जिहादियों और दक्षिणपंथी उग्रवादियों के निशाने पर रहा है. लेकिन स्कूल या कॉलेजों में इस तरह की वारदातें जर्मनी में बहुत कम नजर आती हैं. आखिरी बार स्कूल में ऐसी घटना 2009 में हुई थी जब एक पूर्व छात्र ने नौ छात्रों, तीन टीचरों और तीन राहगीरों को गोली मारी थी. 2002 में स्कूल से बर्खास्त करने पर एक पूर्व छात्र ने 12 टीचरों समेत 16 लोगों की हत्या कर दी. दोनों मौकों पर हमलावरों ने खुद को गोली मार ली.
ओएसजे/आरपी (डीपीए, एएफपी)
सोमवार को तालिबान नेताओं और यूरोपीय संघ के विशेष दूतों और अन्य सात देशों के उच्चाधिकारियों के बीच बैठक हुई.
अफ़ग़ानिस्तान को अपने नियंत्रण में लेने के बाद यह पहला मौक़ा है जब तालिबान के सदस्य पश्चिमी देशों के अधिकारियों से मुलाक़ात कर रहे हैं.
तीन दिवसीय बैठक की पहली मुलाक़ात सोमवार को हुई.
हालांकि इससे पहले तालिबान सदस्यों ने कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से भी मुलाक़ात की थी.
टोलो न्यूज़ ने विदेश मंत्रालय के हवाले से लिखा है कि सोमवार को अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार के अंतरिम विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताक़ी और उनके प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने ओस्लो में यूरोपीय संघ और सात देशों के दूतों से मुलाक़ात की. (bbc.com)
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल क़हर ने ट्विटर पर बैठक की पुष्टि करते हुए लिखा है कि प्रतिनिधिमंडल ने यूरोपीय संघ के विशेष दूतों और अमेरिका, ब्रिटेन, नॉर्वे, जर्मनी, इटली, फ़्रांस और क़तर के उच्चाधिकारियों के साथ मुलाक़ात की.
“यह बैठक अर्थव्यवस्था, मानवीय सहायता, सुरक्षा, सेंट्रल बैंक, स्वास्थ्य और दूसरे महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित थी.”
अफ़ग़ानिस्तान के लिए अमेरिका के विशेष दूत थॉमस वेस्ट ने इससे पहले रविवार को इस संबंध में कई ट्वीट किए थे.
अपने ट्वीट में उन्होंने स्पष्ट किया था कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश अफ़ग़ानिस्तान के मानवीय संकट से निपटने और उसे दूर करने के लिए रास्ते तलाश रहे हैं.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस तरह की बैठकें अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा समस्याओं का समाधान तलाशने में मददगार साबित हो सकती हैं.
काबुल, 25 जनवरी| अफगानिस्तान के 15 प्रांतों में भारी बर्फबारी के कारण पिछले 20 दिनों में कम से कम 42 लोगों की मौत हो गई है और 118 अन्य घायल हो गए हैं।
इस बीच, 2,000 से अधिक घर भी नष्ट हो गए हैं, आपदा प्रबंधन मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि प्रभावित लोगों को आपातकालीन सहायता पहुंचाई जा रही है।
मंत्रालय के डिप्टी इनायतुल्ला शुजा ने कहा कि भारी बर्फबारी के कारण कई राजमार्गों पर फंसे सैकड़ों लोगों को बचा लिया गया है और आगे का अभियान अभी भी जारी है।
शुजा ने आगे कहा कि वे प्रभावित लोगों को आपातकालीन सहायता पहुंचाने के लिए विभिन्न सहायता एजेंसियों के साथ काम कर रहे हैं।
कड़ाके की ठंड और भारी बर्फबारी ने अफगानिस्तान में चल रहे मानवीय संकट को बढ़ा दिया है।
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के आधार पर, अफगान की आधी से अधिक आबादी, को जीवन रक्षक सहायता की आवश्यकता है। (आईएएनएस)
मापुटो, 25 जनवरी| मोजाम्बिक के प्रांतीय अस्पताल में 5 साल बच्चे की मौत के बाद मध्य प्रांत जाम्बेजिया में मिनीवैन दुर्घटना में मरने वालों की संख्या बढ़कर 28 हो गई है। ये जानकारी मध्य मोजाम्बिक में स्वास्थ्य अधिकारियों ने दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी टेलीविजन टीवीएम की रिपोर्ट के अनुसार, सड़क दुर्घटना शनिवार को जाम्बेजिया के मोपिया जिले में हुई, जिसमें यात्रियों को ले जाने वाला एक मिनीवैन और एक भारी ट्रक आपस में टकरा गए।
रिपोर्ट में कहा गया कि दुर्घटना के कारणों की जांच के लिए एक जांच आयोग का गठन किया जा चुका है। (आईएएनएस)
19 साल की एक महिला पायलट ने पांच महीने की चुनौतीपूर्ण यात्रा करते हुए अकेले विमान उड़ाकर पूरी दुनिया घूम ली. इस तरह वे ऐसा करने वाली सबसे कम उम्र की महिला बन गई हैं.
ज़ारा रदरफ़ोर्ड ने ख़राब मौसम के चलते तय समय से दो महीने बाद अपनी यात्रा पूरी की. उनका विमान अपना लक्ष्य पूरा करके बेल्जियम के कॉर्ट्रिज्क-वेवेलगेम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचने में सफल रहा.
सुपरलाइट विमान से पूरी की गई इस यात्रा में, वे एक महीने तक अलास्का के नोम में और 41 दिनों तक रूस के अयान में फंसी रहीं. तूफ़ान के चलते उन्हें कोलंबिया में भी रुकना पड़ा.
लौटने पर हुआ ज़ोरदार स्वागत
बेल्जियम लौटने पर उनके परिजनों, पत्रकारों और समर्थकों ने उनका हवाई अड्डे पर ज़ोरदार स्वागत किया. उनके विमान के साथ बेल्जियम रेड डेविल्स एरोबेटिक डिस्प्ले टीम के चार विमान भी वहां उतरे.
विमान से उतरने के बाद, उन्होंने ख़ुद को ब्रिटेन और बेल्जियम के झंडों में लपेट लिया.
पत्रकारों से उन्होंने कहा, "वाक़ई यह अनुभव पागल करने वाला रहा. मुझे यक़ीन ही नहीं हो रहा."
एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि 51 हज़ार किलोमीटर विमान उड़ाने की चुनौती पूरी करके वे बहुत ख़ुश हैं.
उन्होंने कहा, "सफ़र में सबसे ज़्यादा कठिनाई साइबेरिया में आई. वहां बहुत ठंड थी. यदि इंजन वहां बंद हो जाता तो बच पाना बहुत मुश्किल था. लोगों को वाक़ई मैं अपना अनुभव बताना चाहती हूं. साथ ही ये भी चाहती हूं कि लोगों को अपने जीवन में कुछ रोमांचक काम करने को प्रोत्साहित करूं."
ज़ारा ने कहा, "यदि आपके पास मौक़ा है, तो ऐसा ज़रूर करें."
अल्ट्रालाइट विमान से दुनिया घूमने वाली पहली महिला
पिछले साल 18 अगस्त को शुरू हुई अपनी यात्रा में उन्होंने पांच महाद्वीपों के 60 से अधिक जगहों पर पड़ाव डाला.
ब्रिटिश-बेल्जियम पृष्ठभूमि की ज़ारा रदरफ़ोर्ड के माता-पिता दोनों पायलट हैं. उन्होंने बताया कि वे दूसरी लड़कियों को एसटीईएम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित) के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती हैं.
ज़ारा के अनुसार, उनकी इस यात्रा को सफल बनाने में उनके प्रायोजकों का अच्छा साथ मिला. साथ ही, ब्रिटेन में हैंपशायर के उनके स्कूल और शार्क अल्ट्रालाइट विमान बनाने वाली स्लोवानिया की कंपनी शार्क का भी अहम योगदान रहा.
इस उपलब्धि को हासिल करने पर उन्हें सबसे पहले बधाई देने वालों में उनका स्कूल भी शामिल था.
उनके स्कूल ने ट्वीट करते हुए लिखा कि उन्हें उनकी उपलब्धि पर "बहुत गर्व" है.
ज़ारा के नाम कई उपलब्धियां
ज़ारा रदरफ़ोर्ड के पहले, पूरी दुनिया में अकेले उड़ान भरने वाली सबसे कम उम्र की महिला अमेरिका की शाइस्ता वैज़ थीं. क़रीब पांच साल पहले 2017 में उन्होंने जब ऐसा किया था, तब उनकी उम्र 30 साल थी.
हालांकि पुरुष के मामले में यह रिकॉर्ड फ़िलहाल 18 साल के पायलट ट्रैविस लुडलो के नाम दर्ज़ है.
ज़ारा ने इस बारे में अपनी वेबसाइट पर लिखा कि पुरुष और महिला पायलट के बीच के 11 साल के पहले के अंतर को घटाकर केवल 11 महीने करने को उन्होंने लक्ष्य बनाया था.
इस चुनौती को पूरा करने वाली सबसे कम उम्र की महिला होने के साथ-साथ ज़ारा रदरफ़ोर्ड किसी अल्ट्रालाइट विमान से पूरी दुनिया का चक्कर लगाने वाली पहली महिला भी बन गई हैं.
साथ ही, विमान से अकेले दुनिया घूमने वाली बेल्जियम की पहली नागरिक भी हो गई हैं.
तीन के बजाय लगे पांच महीने
यात्रा से पहले उम्मीद थी कि इस मिशन को पूरा होने में तीन महीने लगेंगे. लेकिन कई जगहों पर मौसम ख़राब होने से उनके सफ़र में काफ़ी विलंब हुआ. साइबेरिया में तो रूस का उनका वीज़ा भी समाप्त हो गया.
जब वे अलास्का के नोम शहर पहुंचीं तो 39 में से केवल तीन उड़ानें ही तय समय पर चल रही थीं. ऐसे में वहां उन्हें इंतज़ार करना पड़ा.
असल में, उनका पासपोर्ट एयरमेल के ज़रिए ह्यूस्टन के रूसी वाणिज्य दूतावास को भेजा गया था. लेकिन नया वीज़ा भी बेरिंग स्ट्रेट पार करने से तीन हफ़्ते पहले ख़त्म हो चुका था.
इंस्टाग्राम पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में उन्होंने कहा था: "यहां का तामपान -18 डिग्री है और मेरे हाथ वाक़ई ठंड से जम रहे हैं. मैं यहां लगभग एक महीने से रुकी हूं."
उन्होंने कहा, "मैं विमान को उड़ान भरने लायक तैयार कर के रख रही हूं. यहां का मौसम अच्छा नहीं है. हर बार जब मैं निकलना चाहती हूं, तो कभी रूस में तो कभी नोम में मौसम बहुत ख़राब हो जाता है."
सफ़र में आई कई बाधाएं
ज़ारा जब साइबेरिया में थीं तो एक बार वहां का तापमान सतह पर -35 डिग्री और हवा में -20 डिग्री तक पहुंच गया. और तब एक मैकेनिक ने भयानक ठंड में इंजन गर्म रखने के लिए विमान में जाने वाली हवा को बंद कर दिया.
काफ़ी कोशिश करने के बाद भी ज़ारा रदरफ़ोर्ड को एक हफ़्ते तक मगदान में और फिर तीन हफ़्ते तक अयान में रुकना पड़ा.
वहीं इंडोनेशिया के बंदार उदारा रहादी उस्मान हवाई अड्डे पर ख़राब मौसम के कारण उन्हें दो रातों तक वहां के टर्मिनल में सोना पड़ा क्योंकि उनके पास हवाई अड्डे से बाहर निकलने के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ नहीं थे.
इतनी मुश्किलों और क्रिसमस और नए साल के मौक़े पर अपने घर से दूर होने के बाद भी इंस्टाग्राम पर पोस्ट किए जाने वाले मैसेजों में वो मुस्कुराती नज़र आ रही थीं.
इतना ही नहीं उन्हें एक और चुनौती का सामना करना पड़ा. उन्हें कैलिफ़ॉर्निया के जंगल में लगी आग से फैले धुएं के बीच अपने विमान को उड़ाना पड़ा.
न्यू मैक्सिको में पिटोट ट्यूब के ब्लॉक होने के चलते उनका विमान ख़राब हो गया. वहीं टायर फटने पर क्रिसमस के दौरान उन्हें सिंगापुर में रुकना पड़ा. जब वे मैक्सिको के वेराक्रूज़ के होटल में थीं, तो उन्होंने भूकंप के झटके भी झेले.
वे बताती हैं, "अचानक पूरी इमारत हिलने लगी. मुझे नहीं लगता कि मैं कभी इतनी तेज़ी से सीढ़ियों से नीचे उतरी हूं.''
उनका स्कूल कर रहा उन पर गर्व
उनके स्कूल की प्रिंसिपल जेन गांडी ने बताया कि रदरफ़ोर्ड के इस सफ़र की काफ़ी तारीफ़ वहां के विद्यार्थी और कर्मचारी कर रहे थे.
उन्होंने बताया कि केवल विमान उड़ाना ही कठिन नहीं था, उन्हें ख़राब मौसम और जटिल ब्यूरोक्रेसी से भी निपटना पड़ा.
वो कहती हैं, "ज़ारा से प्रेरित होकर हमारे 50 विद्यार्थी विमान उड़ाना सीखने के लिए प्रोत्साहित हुए. मुझे पूरा यक़ीन है कि उनसे दुनिया के कई और युवा महिलाएं प्रेरित होंगी." (bbc.com)
जिनेवा, 24 जनवरी । विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि यह मानना अभी खतरनाक है कि ओमिक्रोन अंतिम वेरिएंट है या कोराना समाप्ति की राह पर है क्योंकि विश्व में कोरोना के अन्य वेरिएंट उभरने के लिए स्थितियां काफी अनुकूल हैं।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस अधानोम गेब्रेसियस ने संगठन की कार्यकारी बोर्ड की 150वीें बैठक को संबोधित करते हुए सोमवार को कहा कि ओमिक्रोन का पता नबंबर में चला था और अब यह विश्व के 171 देशों में फैल चुका है।
उन्होंने कहा कि कोरोना के अत्यधिक संक्रामक रूप ओमिक्रोन के आठ करोड़ से अधिक मामले डब्ल्यूएचओ के सामने आए हैं, जो 2020 में दर्ज किए गए कोविड मामलों से अधिक हैं।
उन्होंने कहा कि मामलों में जोरदार बढ़ोत्तरी होने के बावजूद मौतों में वृद्धि नहीं हुई है। गेब्रेसियस ने कहा कि महामारी खत्म होने वाली नहीं है, बल्कि इसके नए रूप सामने आएंगे।
डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा, यह सच है कि हम निकट भविष्य के लिए कोविड के साथ रहेंगे लेकिन यह मान लेना खतरनाक है कि ओमिक्रोन अंतिम वेरिएंट होगा, या कि यह समाप्ति की तरफ है।
उन्होंने कहाइसके विपरीत, विश्व स्तर पर स्थितियां इसके अधिक रूपों के उभरने के लिए आदर्श है और हम एक ऐसे विषाणु को लेकर कोई जुआ भी नहीं खेल सकते हैं जिसकी उत्पत्ति या नियंत्रण के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है।
उन्होंने कहा कि दुनिया को इसके साथ रहना सीखना चाहिए, जिसका मतलब यह नहीं है कि हमें इसे फैलने का अवसर देना होगा।
उन्होंने कहा कि महामारी से लडने के लिए हर देश की 70 फीसदी आबादी के टीकाकरण का लक्ष्य हासिल करना जरूरी है।
उन्होंने अफसोस जताया कि अफ्रीका की लगभग 85 प्रतिशत आबादी को अभी तक टीके की एक भी डोज नहीं मिली है।
उन्होंने कोरोना मरीजों की देखभाल, इसके निदान प्रबंधन, ऑक्सीजन और एंटीवायरल दवाओं तक सबकी समान पहुच की सिफारिश करते हुए वायरस के नए रूपों की निगरानी के लिए विश्व स्तर पर परीक्षण और सिक्वेंसिंग को बढ़ाव देने पर जोर दिया।(आईएएनएस)
स्कीइंग से जुड़ा खेल 'नॉर्डिक कंबाइंड' इकलौता ऐसा ओलंपिक खेल है जिसमें आज भी महिलाएं हिस्सा नहीं ले सकती हैं. इस खेल में भी महिलाओं की हिस्सेदारी की अनुमति के लिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति से उम्मीद की जा रही है.
स्की जंपिंग और क्रॉस-कंट्री स्कीइंग का मिला जुला खेल 'नॉर्डिक कंबाइंड' इकलौता ऐसा ओलंपिक खेल है जिसमें लैंगिक बराबरी नहीं है. कई देशों में यह खेल महिलाएं भी खेलती हैं लेकिन ओलंपिक खेलों में इसमें महिलाओं के लिए कोई प्रतियोगिता है ही नहीं.
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के कार्यकारी बोर्ड को 2018 में एक आवेदन दिया था जिसमें अनुरोध किया गया था कि बीजिंग में होने वाले ओलंपिक खेलों में इस खेल में भी महिलाओं को भाग लेने दिया जाए. बोर्ड ने आवेदन पर विचार किया लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्की फेडरेशन से चर्चा करने के बाद उसे नामंजूर कर दिया.
ओलंपिक समिति की झिझक
समिति के खेल निदेशक किट मैककॉनेल के 2018 में कहा था, "ओलंपिक खेलों में महिलाओं के लिए किसी भी खेल का शामिल किया जाना लैंगिक बराबरी को बढ़ावा देने के लिए बेहद जरूरी है, लेकिन उन खेलों का ऐसे स्तर पर होना जरूरी है जो ओलंपिक खेलों में शामिल होने के लिए और ओलंपिक पदक हासिल करने की प्रतियोगिता के लिए उचित स्तर होना चाहिए."
मैककॉनेल ने यह भी कहा था, "मुझे लगता है कि यह महसूस किया गया कि इस खेल की सर्वव्यापकता, प्रतियोगितात्मकता, आकर्षण और लोकप्रियता को अभी और देखने की जरूरत है...तब जाकर 2026 के लिए इस पर दोबारा चर्चा की जा सकती है."
बातचीत इस साल दोबारा शुरू होगी. उम्मीद है कि जून में बोर्ड 2026 में इटली में होने वाले खेलों में महिलाओं को भी शामिल करने के आवेदन पर फैसला लेगा. महिला खिलाड़ी और उन्हें शामिल किए जाने की मांग के समर्थक आशावान हैं.
इस खेल का विश्व कप पिछले साल ही शुरू हुआ. इस साल दूसरे विश्व कप में 30 से भी ज्यादा महिला खिलाड़ी हिस्सा ले रही हैं. लेकिन फिलहाल जब बीजिंग में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक खेल शुरू होंगे तो समिति को सवालों और आलोचना के एक और दौर का सामना करना पड़ेगा.
चैंपियन ने छोड़ा खेल
हालांकि समिति ने बड़े गर्व से लैंगिक बराबरी की दिशा में उठाए गए उसके कदमों की तरफ इशारा किया है. समिति के मुताबिक बीजिंग में महिला खिलाड़ियों और महिलाओं के खेलों के लिए नए मानदंड रचे जाएंगे. खेलों में महिलाओं की हिस्सेदारी 45 प्रतिशत हो जाएगी. चार साल पहले यह 41 प्रतिशत थी.
महिलाओं को और अवसर देने के लिए स्की जंपिंग जैसे खेलों में मिश्रित टीम फॉर्मैट भी जोड़े गए हैं. स्पीड स्केटिंग जैसे खेलों में पहली बार अब पुरुष और महिला खिलाड़ी बराबर संख्या में खेल रहे हैं.
लेकिन नॉर्डिक कंबाइंड खिलाड़ी तारा गेराटी-मोएट्स जश्न मनाने के मूड में बिल्कुल नहीं है. पहले उन्होंने दो बार इस खेल का कॉन्टिनेंटल कप जीता और फिर दिसंबर 2020 में वो विश्व कप जीत गईं. लेकिन बाद में जब महामारी की वजह से महिलाओं के खेल रद्द होने के बाद फिर से नहीं आयोजित किए गए जबकि पुरुषों के खेल दोबारा हुए, तब वो निराश हो गईं.
उन्होंने इस खेल को छोड़ कर बाईएथलन अपना लिया. वो कहती हैं, "नार्डिक कंबाइंड में होने से मैंने ओलंपिक खेलों का असली चेहरा देखा, जो कि कोई सुन्दर छवि नहीं है. स्कीइंग संघ के पास ज्यादा ताकत नहीं है और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की जवाबदेही कोई नहीं तय करता है."
सीके/एए (एपी)
अफगानिस्तान में अगस्त 2021 के बाद से तालिबान का शासन है, जिसे अभी तक किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है. अफगानिस्तान में लगातार गहराते मानवीय संकट के बीच यूरोपीय संघ, अमेरिका और तालिबान के बीच बातचीत हो रही है.
अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता संभालने के बाद से तालिबान अंतरराष्ट्रीय संबंध सुधारने और मान्यता हासिल करने की कोशिशों में लगा है. इसी कड़ी में तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुतक्की के नेतृत्व में एक दल ने पश्चिमी देशों के प्रतिनिधियों और अफगान सिविल सोसाइटी के लोगों से मुलाकात की है. नॉर्वे के राजधानी ओस्लो में हुई ये मुलाकात, पहला मौका है जब तालिबान की यूरोप में पश्चिमी देशों से आधिकारिक स्तर पर बातचीत हुई हो. इस मुलाकात की तालिबान के लिए खासी अहमियत है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता हासिल करने के अलावा वे अमेरिका और यूरोप में फ्रीज किए गए अफगान सरकार के कई बिलियन डॉलर वापस हासिल करना चाहते हैं. अफगानिस्तान इस वक्त एक बड़े मानवीय संकट से जूझ रहा है. भोजन की कमी और सर्दी ने हालात और खराब बना दिए हैं.
इस मुलाकात के बारे में तालिबानी प्रतिनिधि सैफुल्लाह आजम ने कहा, ये "अफगान (तालिबान) सरकार को मान्यता देने की ओर एक कदम है." हालांकि मेजबान नॉर्वे ने ऐसे दावों को खारिज किया है. नॉर्वे की विदेश मंत्री अन्नीकेन हुइटफेल्ट ने स्पष्ट किया कि इस मुलाकात का मतलब तालिबान को मान्यता या वैधता देना नहीं है. अभी तक दुनिया के किसी भी देश ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है.
देश चलाने के लिए पैसा नहीं
अफगानिस्तान के बजट का 80 प्रतिशत हिस्सा अंतरराष्ट्रीय मदद से आता है. 24 जनवरी से तालिबान के प्रतिनिधि- अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों से मिलेंगे. उनका लक्ष्य होगा कि इन देशों में अफगान सरकार का फ्रीज किया गया पैसा, उन्हें वापस मिल पाए. अकेले अमेरिका ने करीब 10 बिलियन डॉलर फ्रीज किए हुए हैं. तालिबानी प्रतिनिधि सैफुल्लाह आजम ने कहा, भुखमरी और जानलेवा सर्दी से अफगानिस्तान में पैदा हुए संकट में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मदद के लिए आगे आना चाहिए और अफगानियों को राजनैतिक मसलों की वजह से ये सब सहने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए. कुछ समय पहले तालिबान प्रशासन को संयुक्त राष्ट्र की ओर से कुछ राहत मिली थी. उन्होंने तालिबान को आयात और बिजली आपूर्ति के लिए पैसा चुकाने की अनुमति दे दी थी.
तालिबान को फंड देने की एवज में पश्चिमी देश भी कुछ शर्तें रखेंगे. माना जा रहा है कि महिलाओं के अधिकार और अफगानिस्तान की सत्ता में अल्पसंख्यक धार्मिक और कबाइली समूहों को हिस्सा देने की शर्तों मुख्य होंगी. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी कहा है कि तालिबन से नई राजनैतिक व्यवस्था, मानवीय संकट, आर्थिक संकट और महिला अधिकारों पर बातचीत की जाएगी. सत्ता में आने के बाद से तालिबान ने अफगान महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं. स्वास्थ्य और शिक्षा के अलावा किसी भी अन्य क्षेत्र में महिलाओं को काम करने की इजाजत नहीं है. लड़कियों के छठी कक्षा से आगे पढ़ने पर पाबंदी है. सत्ता में आने के बाद से तालिबान लगातार नागरिक अधिकार समूहों और पत्रकारों को निशाना बनाता रहा है.
कुछ को उम्मीद, कुछ विरोध में
पश्चिमी देशों और तालिबान की इस मीटिंग का कुछ लोगों ने नॉर्वे के विदेश मंत्रालय के बाहर इकट्ठा होकर विरोध भी किया है. एक प्रदर्शनकारी शाला सुल्तानी ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि "आप आतंकवादियों से बातचीत नहीं करते. ये मुलाकात उन लोगों का मुंह पर मजाक बनाना है, जिन्होंने अपने परिजनों को (अफगानिस्तान में) खोया है."
गौरतलब है कि इस बैठक में तालिबान से जुड़े सबसे हिंसक गुट- हक्कानी नेटवर्क के नेता अनस हक्कानी भी शामिल रहे. अनस को अमेरिका ने कुछ साल तक बगराम डिटेंशन सेंटर में बंद रखा था और साल 2019 में बंदियों की अदला-बदली के दौरान रिहा किया गया था. अफगानिस्तान सरकार में खदान और पेट्रोल मंत्री रहीं और अब नॉर्वे में रह रहीं नरगिस नेहान ने एएफपी से कहा कि उन्होंने बातचीत का न्यौता स्वीकारने से इनकार कर दिया. उनका मानना है कि ये तालिबान के पक्ष में माहौल बनाएगा और तालिबान का सामान्यीकरण कर देगा, जबकि तालिबान खुद नहीं बदलेंगे.
तालिबान ने रविवार को सिविल सोसाइटी और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं से मुलाकात भी की है. हालांकि इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. महिला अधिकार कार्यकर्ता जमीला अफगान ने एएफपी से बातचीत में कहा, "ये मुलाकात सही दिशा में रही. तालिबान ने नेक नीयत दिखाई है. आगे देखते हैं कि क्या उनके काम यहां बोली बातों के मुताबिक होते हैं."
आरएस/ओएसजे(एपी, एएफपी)
आरोप है कि चीन की सरकार के निर्देश पर प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का 'वी चैट' अकाउंट छीन लिया गया है. मॉरिसन इस अकाउंट के द्वारा चीनी मूल के ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों से संवाद करते थे.
चीन पर ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का 'वी चैट' अकाउंट हाइजैक करने का आरोप लगा है. इस अकाउंट पर मॉरिसन के करीब 76 हजार फॉलोअर थे. इस महीने उन्हें नोटिफिकेशन आया कि मॉरिसन के पेज का नाम बदलकर 'ऑस्ट्रेलियन चाइनीज न्यू लाइफ' कर दिया गया है. पेज के प्रोफाइल में लगी मॉरिसन की फोटो भी हटा दी गई है.
ऑस्ट्रेलियाई मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, मॉरिसन और उनकी सरकार की जानकारी के बिना 'वी चैट' खाते से छेड़छाड़ की गई है. 'वी चैट' चीन का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है. इस पर चीन की टेक कंपनी 'टेनसेंट' का मालिकाना हक है. हालांकि चीन में सोशल मीडिया पर सरकार का सख्त नियंत्रण है. आशंका है कि यह प्रकरण ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच जारी तनाव को और बढ़ा सकता है.
चुनाव में दखलंदाजी का आरोप
इस मामले पर अब तक मॉरिसन या उनके कार्यालय की ओर से कोई बयान नहीं आया है. लेकिन इंटेलिजेंस और सुरक्षा से जुड़ी साझा संसदीय समिति के प्रमुख जेम्स पैटरसन ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पर आरोप लगाया है. उन्होंने इल्जाम लगाया कि चीन मई 2022 में होने जा रहे ऑस्ट्रेलियाई चुनावों के मद्देनजर मॉरिसन को सेंसर कर रहा है.
पैटरसन का कहना है कि चाइनीज मूल के करीब 12 लाख ऑस्ट्रेलियाई नागरिक 'वी चैट' इस्तेमाल करते हैं. मॉरिसन का खाता बंद किए जाने के चलते वे प्रधानमंत्री से जुड़ी खबरें 'वी चैट' पर नहीं देख सकेंगे. मगर विपक्षी नेता एंथनी अल्बानिज सरकार द्वारा की जाने वाली सरकार की आलोचनाएं लोगों तक पहुंचेंगी.
बहिष्कार की अपील
पैटरसन, मॉरिसन की 'कंजरवेटिव लिबरल पार्टी' के सदस्य हैं. उन्होंने सभी सांसदों से 'वी चैट' का बहिष्कार करने की अपील करते हुए कहा, "एक ऑस्ट्रेलियाई खाते को बंद करके चीन की सरकार ने जो किया है, वह चुनावी साल में ऑस्ट्रेलिया के लोकतंत्र में विदेशी दखलंदाजी है."
पैटरसन का यह भी कहना है कि ऑस्ट्रेलियाई सररकार ने 'वी चैट' से मॉरिसन का अकाउंट वापस बहाल करने का आग्रह किया था. मगर 'वी चैट' ने अब तक इस पर कोई जवाब नहीं दिया है. खबरों के मुताबिक, इस घटना के बाद लिबरल पार्टी के कई सांसदों ने 'वी चैट' का इस्तेमाल बंद करने की बात कही है.
चीनी ऑस्ट्रेलियाई समुदाय में 'वी चैट' लोकप्रिय
चीनी मूल के ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों के बीच 'वी चैट' लोकप्रिय है. ऐसे में उनसे जुड़ने और संवाद कायम करने के लिए मॉरिसन ने फरवरी 2019 में 'वी चैट' पर अपना खाता खोला था. तब ऑस्ट्रेलिया में चुनाव होने वाले थे.
उसी साल कुछ पत्रकारों ने मॉरिसन से सवाल पूछा था कि क्या उन्हें चीन की सरकार द्वारा उनके 'वी चैट' अकाउंट को सेंसर करने की आशंका दिखती है. इस पर मॉरिसन ने कहा था कि इस तरह की सेंसरशिप अभी तक दिखी तो नहीं है.
और भी खातों में छेड़छाड़ के आरोप
मॉरिसन ऑस्ट्रेलिया के अकेले नेता नहीं हैं, जिनके 'वी चैट' अकाउंट में यह बदलाव हुआ हो. फारगस रेयान नाम के एक चीनी सोशल मीडिया विशेषज्ञ द्वारा किए गए ट्वीट के मुताबिक, मॉरिसन समेत कम-से-कम एक दर्जन ऑस्ट्रेलियाई नेताओं के 'वी चैट' खाते अब चीनी नागरिकों के नाम पर दर्ज हो गए हैं. रेयान 'ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटजिक पॉलिसी इंस्टिट्यूट' नाम के एक थिंक टैंक से भी जुड़े हैं.
लिबरल पार्टी के एक और सांसद और पूर्व राजनयिक डेव शर्मा ने भी आरोप लगाया कि मॉरिसन के खाते में हुई दखलंदाजी को संभवत: चीनी सरकार ने ही मंजूरी दी. शर्मा ने कहा, "संभावना है कि यह निर्णय सरकार प्रायोजित था और इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति बीजिंग के रवैये का पता चलता है."
चुनाव में दखलंदाजी के आरोपों पर दूसरी राय
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में चीनी मामलों के विशेषज्ञ ग्रीम स्मिथ ने बताया कि मॉरिसन का खाता अब जिस चीनी नागरिक के नाम पर है, वह फूजियान प्रांत का रहने वाला है. स्मिथ ने 'ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्प' को बताया, "चीन के भीतर किसी अकाउंट को हैक करना बहुत मुश्किल नहीं है. इस घटना के पीछे कौन है, मुझे नहीं लगता कि हम यह जानते हैं. हम इतना कह सकते हैं कि कम-से-कम यह चीन की सरकार द्वारा प्रेरित है."
स्मिथ ने कहा कि मॉरिसन के 'वी चैट' से हुई छेड़छाड़ से वह यह नहीं मानते कि चीन अगले ऑस्ट्रेलियाई चुनाव में विपक्षी सेंटर-लेफ्ट लेबर पार्टी का समर्थन करेगा. स्मिथ ने कहा, "उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि चुनाव कौन जीतता है. जब तक लोग लोकतंत्र पर अविश्वास करते रहेंगे, तब तक उन्हें किसी के जीतने से फर्क नहीं पड़ता."
पहले भी 'वी चैट' ने किया था सेंसर
खबरों के मुताबिक, मॉरिसन 'वी चैट' को बहुत इस्तेमाल नहीं करते थे. पिछले साल उन्होंने इसपर करीब 20 पोस्ट किए. इनमें ज्यादातर पोस्ट मॉरिसन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्तियों का चीनी भाषा में अनुवाद और कोविड-10 से जुड़े अपडेट थे.
यह पहली बार नहीं है, जब मॉरिसन के 'वी चैट' अकाउंट में कोई समस्या आई हो. इससे पहले दिसंबर 2020 में भी 'वी चैट' ने मॉरिसन का एक पोस्ट हटा दिया था. इसमें ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों द्वारा किए गए कथित युद्ध अपराधों की जांच का समर्थन किया गया था. इस पोस्ट में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान की आलोचना भी की गई थी. लिजियान ने एक ऑस्ट्रेलियाई सैनिक की फर्जी तस्वीर पोस्ट की थी.
दोनों देशों के बीच तल्खियां
मॉरिसन सरकार और चीन के बीच पिछले कुछ समय से लगातार विवाद चल रहा है. कोविड-19 की शुरुआत और इसमें चीन की कथित भूमिका पर मॉरिसन सरकार द्वारा तीखी टिप्पणियां की गईं. इससे तनाव गहराया.
ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के साथ बढ़ते सामरिक सहयोग से भी चीन को आपत्ति है. सितंबर 2021 में इस पार्टनरशिप के तहत ऑस्ट्रेलिया को परमाणु क्षमता वाली पनडुब्बियां देने का एलान किया गया था. चीन ने इस पर भी विरोध जताया था.
एसएम/ (एपी, एएफपी)
माइनस 40 से डिग्री से भी कम तापमान और ना के बराबर ऑक्सीजन, वो भी कई घंटों तक. विमान के पहिए में छिपकर एम्सटर्डम पहुंचे एक शख्स को देखकर अधिकारी भी हैरान हैं और एक्सपर्ट भी.
कॉर्गोलक्स का विमान रविवार को अफ्रीका से नीदरलैंड्स की राजधानी एम्सटर्डम पहुंचा. 17 घंटे लंबी उड़ान भरने के बाद विमान जब पार्किंग पर खड़ा हुआ तो उसके अगले पहिये के पास एक शख्स मिला. उसकी हालत खराब थी, लेकिन वह बोल पा रहा था. नीदरलैंड्स के बॉर्डर कंट्रोल विभाग के मुताबिक, "जिस तरह के हालात हैं, उन्हें देखा जाए तो वह काफी बेहतर हैं और उन्हें अस्पताल ले जाया गया है."
नीदरलैंड्स के अधिकारियों ने उसकी पहचान, राष्ट्रीयता और उम्र सार्वजनिक नहीं की है. अधिकारियों के मुताबिक उनकी प्राथमिकता उस व्यक्ति की सेहत है. डच बॉर्डर कंट्रोल विभाग की अधिकारी योआना हेलमॉन्डस कहती हैं, "यह निश्चित रूप से बहुत ही असामान्य है कि कोई उस ऊंचाई पर, इतनी ठंड में कैसे जिंदा रह सकता है. ये बहुत ही ज्यादा असाधारण है."
अभी यह पता नहीं चला है कि विमान के अगले पहियों में छुपकर नीदरलैंड्स पहुंचा ये शख्स कहां से आया है. बोइंग 747 मॉडल का यह कार्गो विमान दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहानिसबर्ग से उड़ा और कुछ घंटों के लिए केन्या की राजधानी नैरोबी में रुका. लेकिन उसके बाद विमान करीब साढ़े आठ घंटे की नॉन स्टॉप उड़ान भर एम्सटर्डम पहुंचा. इस दौरान विमान ने करीब 6680 किलोमीटर की दूरी पूरी की.
लंबी दूरी तय करने वाले बड़े विमान आम तौर पर 9,000 से 11,000 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं. इतनी ऊंचाई पर हवा का तापमान माइनस 43 डिग्री से माइनस 54 डिग्री के बीच होता है. इतनी ठंड में वो भी कई घंटे तक रहने पर इंसान के जिंदा बचने की संभावना ना के बराबर होती है. ठंड के अलावा इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा भी बहुत कम होती है. यही कारण है कि 8,000 मीटर के बाद की ऊंचाई को डेथ जोन भी कहा जाता है.
मालवाहक विमान ऑपरेट करने वाली इटली की कंपनी कार्गोलक्स इटालिया ने भी अफ्रीका से नीदरलैंड्स पहुंचे इस शख्स की पुष्टि की है. कंपनी के प्रवक्ता ने कहा, "प्रशासन और एयरलाइन की जांच पूरी होने तक हम इस बारे में और कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकते हैं."
ओएसजे/एमजे (रॉयटर्स, एपी)
ताइवान के अधिकारियों का कहना है कि दर्जनों चीनी लड़ाकू विमान उसके हवाई क्षेत्र में फिर से दाखिल हुए. ताइवान ने भी विमानों को घेरने और अपनी मिसाइल रक्षा प्रणाली को सक्रिय करने के लिए लड़ाकू विमान आसमान में उड़ाए.
ताइवान ने रविवार को एक बमवर्षक सहित अपने दक्षिण-पश्चिमी वायु रक्षा क्षेत्र (ADIZ) में 39 चीनी लड़ाकू विमानों के एक साथ प्रवेश की खबर दी है. ताजा घटनाक्रम पर बीजिंग की ओर से तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
द्वीप का एडीआईजेड प्रादेशिक हवाई क्षेत्र के समान नहीं है, बल्कि स्व-घोषित हवाई क्षेत्र है जिसकी निगरानी राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों के लिए की जाती है. चीन ताइवान को अपना क्षेत्र मानता है और अगर जरूरी हो तो बलपूर्वक द्वीप को अपने क्षेत्र में एकीकृत करने का प्रण लिया है.
ताइवान ने क्या रिपोर्ट दी?
ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि घुसपैठ में 34 लड़ाकू विमान और एक एच-6 बमवर्षक शामिल था. रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा फाइटर जेट्स के उड़ान पथ रिकॉर्ड पर पोस्ट किए गए एक ऑनलाइन बयान के अनुसार, चीनी लड़ाकू विमानों ने ताइवान-नियंत्रित द्वीप प्रतास के उत्तर-पूर्व में उड़ान भरी.
रक्षा मंत्रालय ने एक ट्विटर पोस्ट में कहा कि जवाब में ताइवान ने भी उनका पीछा करने के लिए अपने लड़ाकू विमान भेजे और रेडियो चेतावनी प्रसारित करते समय उनकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए तुरंत अपनी वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली सक्रिय कर दी.
पिछले साल अक्टूबर में एडीआईजेड क्षेत्र में लगभग 56 लड़ाकू विमानों के प्रवेश करने के बाद से यह अपनी तरह की अब तक की सबसे बड़ी घटना है. ताइवान को चीनी वायु सेना से अपने क्षेत्र में घुसपैठ के बारे में शिकायतें मिल रही हैं, आमतौर पर देश के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में प्रतास द्वीप समूह के पास, जिसे वह नियंत्रित करता है. ताइवानी रक्षा अधिकारियों ने बीजिंग पर ताइवान की सेना पर दबाव बढ़ाने के लिए "ग्रे जोन" रणनीति का उपयोग करने का आरोप लगाया है.
नवंबर में ताइवान ने 27 चीनी विमानों के एडीआईजेड में प्रवेश करने के बाद फिर से अपने लड़ाकू जेट विमानों को उड़ाया था.
अमेरिका और चीन के बीच एक लंबे समय से चले आ रहे समझौते के तहत, वॉशिंगटन "एक-चीन" नीति का अनुसरण कर रहा है. इस राजनीतिक स्थिति के मुताबिक अमेरिका ताइवान की राजधानी ताइपे को आधिकारिक रूप से मान्यता देने के बजाय बीजिंग के साथ सभी मुद्दों को निपटाने के लिए बाध्य है.
ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है, लेकिन चीन इसे अपने देश का हिस्सा मानता है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल ही में ताइवान के साथ "पूर्ण एकीकरण" के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है. इस बीच ताइवान के उपराष्ट्रपति लाइ चिंग ते उर्फ विलियम लाई इसी हफ्ते अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले हैं. वह होंडूरास की अपनी यात्रा के दौरान अमेरिका जाकर वहां नेताओं से बातचीत करेंगे. ताइवान और चीन के बीच बढ़े तनाव के बीच विलियम लाई की यह यात्रा अहम मानी जा रही है.
एए/वीके (डीपीए, रॉयटर्स)
राष्ट्रपति आर्मन सार्किस्यान ने अजरबाइजान के साथ संघर्ष से संबंधित फैसलों पर अपना असंतोष जाहिर किया और इस्तीफा दे दिया.
आर्मन सार्किस्यान ने रविवार को घोषणा की कि वे संकट के समय में नीति को प्रभावित करने में असमर्थता के कारण अर्मेनिया के राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे रहे हैं. वे पिछले चार साल से देश के राष्ट्रपति के पद पर थे.
लंबे समय से अर्मेनिया एक राजनीतिक संकट में उलझा हुआ है जो दक्षिण और उत्तर पूर्व के विवादित नागोर्नो काराबाख क्षेत्र पर अजरबाइजान के साथ युद्ध के मद्देनजर भड़क उठा है.
सार्किस्यान ने इस्तीफा क्यों दिया?
अजरबाइजान के साथ युद्ध और विरोध प्रदर्शनों के बीच चीफ ऑफ जनरल स्टाफ के प्रमुख को हटाने के अपने फैसले पर सार्किस्यान प्रधानमंत्री निकोल पाशनियान से असहमत थे. पाशनियान ने मार्च 2021 में अर्मेनिया के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ को हटा दिया, उन्होंने दावा किया था कि सेना तख्तापलट की योजना बना रही है.
अजरबाइजान के साथ युद्ध को समाप्त करने वाले शांति समझौते के बाद से पाशनियान दबाव में हैं, नियमित रूप से सड़क पर होने वाले विरोध प्रदर्शनों में उनसे पद छोड़ने की मांग की जाती रही है. रूस द्वारा 2020 में कराए गए समझौते के तहत अजरबाइजान ने 1990 के दशक की शुरुआत में एक युद्ध के दौरान अपने खोए हुए क्षेत्र को फिर से हासिल कर लिया. जिस समय शांति समझौते पर बातचीत हो रही थी, सार्किस्यान ने इस तथ्य की आलोचना की कि उन्हें विचार-विमर्श में शामिल नहीं किया गया था.
अर्मेनिया के राष्ट्रपति की वेबसाइट पर एक बयान में सार्किस्यान ने कहा, "यह भावनात्मक रूप से प्रेरित फैसला नहीं है और यह एक विशिष्ट तर्क से लिया गया है." उन्होंने अपने बयान में कहा, "राष्ट्रपति के पास लोगों और देश के लिए कठिन समय में विदेश और घरेलू नीति की महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को प्रभावित करने के लिए आवश्यक साधन नहीं हैं."
अर्मेनिया में राष्ट्रपति का पद काफी हद तक औपचारिक होता है और कार्यकारी शक्ति मुख्य रूप से प्रधानमंत्री के पास होती है. 2015 के जनमत संग्रह के बाद अर्मेनिया एक संसदीय गणराज्य बन गया जिसने राष्ट्रपति की शक्तियों को काफी सीमित कर दिया. उन्होंने अपने बयान में कहा, "हम एक अनूठी वास्तविकता में रह रहे जिसमें राष्ट्रपति युद्ध और शांति के मामलों को प्रभावित नहीं कर सकता है. वह उन कानूनों को वीटो नहीं कर सकता, जिन्हें वह राज्य और लोगों के लिए हानिकारक मानते है."
निवर्तमान राष्ट्रपति 2018 में चुने गए थे जिन्होंने पहले युनाइटेड किंग्डम में अर्मेनिया के राजदूत के रूप में कार्य किया था. 1996-1997 में सार्किस्यान ने प्रधानमंत्री का पद भी संभाला.
एए/वीके (एफपी, रॉयटर्स, डीपीए)
अमेरिका ने यूक्रेन में तैनात अपने राजनयिकों के परिवारों को वापस लौट आने का आदेश दिया है. यूक्रेन में मौजूद सभी अमेरिकी नागरिकों को तुरंत देश छोड़ने की हिदायत दी गई है. क्या युद्ध का खतरा बहुत नजदीक है?
यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई के खतरे का हवाला देते हुए अमेरिका ने अपने राजनयिकों के परिजनों को फौरन देश छोड़ने का आदेश दिया है. रविवार को अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने आदेश जारी कर कहा कि सभी परिजनों को तुरंत निकलना शुरू करना है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अपने नागरिकों को यूक्रेन की यात्रा ना करने की भी हिदायत दी है. यात्रा संबंधी एक सार मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित की गई है. इसमें कहा गया है कि ऐसी सूचनाएं मिली हैं कि रूस यूक्रेन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की तैयारी कर रहा है.
अमेरिका ने कीव स्थित अपने दूतावास के कर्मचारियों को भी कहा है कि अगर वे चाहें तो लौट सकते हैं. समाचार एजेंसी एपी के अनुसार कर्मचारियों का लौटना उनकी इच्छा पर छोड़ा गया है लेकिन वे लौटने का फैसला करते हैं तो सरकार इसका खर्च देगी.
मदद जारी रहेगी
विदेश मंत्रालय की एडवाइजरी के मुताबिक, "रूस अधिकृत क्रीमिया और रूसी नियंत्रण वाले पूर्वी यूक्रेन में सुरक्षा हालात काफी नाजुक हैं और बहुत कम समय में स्थिति बिगड़ सकती है. यूक्रेन में नियमति रूप से होने वाले प्रदर्शन अक्सर हिंसक हो सकते हैं.”
समाचार एजेंसी एपी ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि दूतावास खुला रहेगा और इस घोषणा का अर्थ वहां से लोगों को बचाकर निकाला जाना नहीं है. यह भी स्पष्ट किया गया है कि इस घोषणा के बावजूद अमेरिका की यूक्रेन को मदद जारी रहेगी.
रविवार देर रात जारी एक अन्य अडवाइजरी में अमेरिका ने अपने नागरिकों को रूस ना जाने की भी सलाह दी है. लोगों को रूस से यूक्रेन सड़क के रास्ते यात्रा ना करने की भी हिदायत दी गई है.
यूक्रेन में कैसे हैं हालात?
अमेरिका की यह घोषणा तब हुई है जबकि यूक्रेन पर रूसी हमले का खतरा लगातार बना हुआ है. शनिवार को ही ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय ने दावा किया था कि रूस यूक्रेन में अपनी कठपुतली सरकार स्थापित करना चाहता है. हालांकि रूस ने इस दावे को गलत बताया है.
जर्मनी की विदेश मंत्री क्रिस्टीन लांब्रेष्ट ने शनिवार को दिए एक इंटरव्यू में सभी पक्षों से संयम बरतने और तनाव घटाने की अपील की थी. उन्होंने यह भी कहा कि जर्मनी यूक्रेन को हथियार सप्लाई नहीं करेगा.
शुक्रवार को अमेरिका और रूस के बीच हुई बातचीत में कोई विशेष तरक्की नहीं हुई थी.
वीके/एए (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
वाशिंगटन, 24 जनवरी| दुनिया भर में कोरोनावायरस के मामले बढ़कर 35.09 करोड़ से ज्यादा हो गए हैं। इस महामारी से अब तक कुल 55.9 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है जबकि 9.79 अरब से ज्यादा का वैक्सीनेशन हुआ है। ये आंकड़े जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने साझा किए हैं। यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने सोमवार सुबह नए अपडेट में बताया कि वर्तमान वैश्विक मामले, मरने वालों और टीकाकरण की कुल संख्या बढ़कर क्रमश: 350,909,728, 5,595,929 और 9,795,554,434 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे ज्यादा मामलों और मौतों 70,699,416 और 866,540 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
कोरोना मामलों में दूसरा सबसे प्रभावित देश भारत है, जहां कोरोना के 39,237,264 मामले हैं जबकि 489,409 लोगों की मौत हुई है, इसके बाद ब्राजील में कोरोना के 24,054,405 मामले हैं जबकि 623,370 लोगों की मौत हुई हैं।
सीएसएसई के आंकड़े के अनुसार, 50 लाख से ज्यादा मामलों वाले अन्य सबसे प्रभावित देश फ्रांस (16,807,733), यूके (15,966,838), तुर्की (10,947,129), रूस (10,923,494), इटली (9,923,678), स्पेन (8,975,458), जर्मनी (8,717,091), अर्जेटीना (7,862,536), ईरान (6,250,490) और कोलंबिया (5,740,179) हैं।
जिन देशों ने 100,000 से ज्यादा मौतों का आंकड़ा पार कर लिया है, उनमें रूस (319,536), मेक्सिको (303,085), पेरू (204,141), यूके (154,374), इंडोनेशिया (144,220), इटली (143,523), कोलंबिया (132,240), ईरान (132,230) , फ्रांस (129,620), अर्जेटीना (119,168), जर्मनी (116,723), यूक्रेन (105,791) और पोलैंड (103,844) शामिल हैं। (आईएएनएस)