अंतरराष्ट्रीय
अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने पेंटागन को युद्ध अभियानों में नागरिकों की मौत की संख्या को कम करने के लिए एक "कार्य योजना" विकसित करने का आदेश दिया है.
लॉयड ऑस्टिन ने दर्जनों नागरिकों के खिलाफ अमेरिकी सेना के बल प्रयोग की वैश्विक आलोचना के मद्देनजर गुरुवार को पेंटागन को सेना में सुधार करने का आदेश दिया और नागरिकों हताहतों से बचने को कहा है. ऑस्टिन ने पेंटागन के अधिकारियों को सैन्य अभियानों में नागरिक हताहतों को कम करने और अनुचित अभियानों से बचने के लिए एक योजना विकसित करने के लिए 90 दिनों का समय दिया है. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान और इराक के अनुभवों से सीखने और संस्थागत तरीके से नागरिक हताहतों को कम करने के लिए सुधारों की जरूरत है.
ऑस्टिन के मुताबिक, "नागरिकों की सुरक्षा मूल रूप से अमेरिकी राष्ट्रीय हितों में प्रभावी, कुशल और निर्णायक उपयोग के अनुरूप है." अमेरिकी रक्षा मंत्री ने उन घटनाओं की एक श्रृंखला के बाद आदेश जारी किया है जिसमें अमेरिकी सैनिकों द्वारा नागरिकों को अनावश्यक रूप से मारने के लिए अमेरिका की तीखी आलोचना की गई थी.
पिछले साल अगस्त में अफगानिस्तान में ड्रोन हमले में सात बच्चों समेत कम से कम 10 नागरिक मारे गए थे. इसी तरह से मार्च 2019 में इराक में आईएसआईएस के खिलाफ युद्ध के अंतिम दिनों में अमेरिकी सैन्य बमबारी में लगभग 70 नागरिक मारे गए थे. न्यूयॉर्क टाइम्स में खबर छपने के बाद पेंटागन की तीखी आलोचना हुई थी.
अमेरिकी थिंक टैंक ने भी की आलोचना
इससे पहले पेंटागन ने इस मुद्दे पर अपने प्रस्ताव पेश करने के लिए एक थिंक टैंक, रैंड कॉर्पोरेशन को नियुक्त किया था. रिपोर्ट में प्रक्रियाओं की एक निंदात्मक तस्वीर पेश की गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि हमले की योजना बनाते समय अमेरिकी सेना दुश्मन पर बहुत ज्यादा ध्यान देती है, जो नागरिकों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर देती है. रिपोर्ट में कहा गया कि इस समस्या से बचा जा सकता है.
रैंड कॉर्पोरेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि नागरिक हताहतों पर सेना की अपनी आंतरिक रिपोर्टिंग अविश्वसनीय और अधूरी हो सकती है. नागरिक हताहतों पर काम करने वाले अधिकारियों को अक्सर अपर्याप्त प्रशिक्षण और समर्थन का सामना करना पड़ता है. थिंक टैंक ने कहा कि अमेरिकी सेना को हवाई हमलों से नागरिक समाज को हुए नुकसान के बारे में व्यापक दृष्टिकोण रखने की जरूरत है. जिसमें न केवल हताहतों की संख्या बल्कि अन्य नागरिक बुनियादी ढांचे को भी नुकसान कम होना चाहिए, जो समुदायों और शहरों को चलाने के लिए आवश्यक हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि नागरिक हताहतों में अन्य कमियों के अलावा पेंटागन ने जांच के निष्कर्षों को अधिक व्यापक रूप से सार्वजनिक न करके गलतियों को दोहराने से बचने की अपनी क्षमता को कम कर दिया. यहां तक कि घटना में शामिल लोगों ने भी अक्सर इन जांचों के नतीजे नहीं देखे, इसलिए वे घटनाओं से सीख नहीं ले सके.
मानवाधिकार समूह अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन ने ऑस्टिन के इस कदम का स्वागत किया लेकिन सवाल किया कि क्या यह पर्याप्त है.
अपनी रिपोर्ट में रैंड कॉर्पोरेशन ने सिफारिश की कि अमेरिकी हमलों में मारे गए लोगों के परिवारों को दिए गए "मुआवजे" पर पुनर्विचार किया जाए. रिपोर्ट में कहा गया है कि कोई समान भुगतान नीति नहीं है प्रत्येक फील्ड कमांडर अपने विवेक पर निर्णय लेता है. कुछ पीड़ितों को भुगतान किया जाता है और कुछ को नहीं. रैंड का कहना है कि ऐसे मामले अफगानिस्तान में आम हैं.
एए/सीके (एएफपी, एपी)
कनाडा से अमेरिका में घुसने की कोशिश करते वक्त सर्दी से जमकर मर जाने वाले परिवार की पहचान उजागर कर दी गई है. पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार भी किया है.
कनाडा की सीमा पर सर्दी से जमकर मर जाने वाले भारतीय परिवार के मामले में पुलिस ने अवैध रूप से लोगों को विदेश भेजने की गतिविधियों की जांच शुरू कर दी है. इस संबंध में छह लोगों को हिरासत में लिया गया है.
यह घटना बीते गुरुवार को सामने आई थी जब अमेरिका और कनाडा की सीमा के बीच एक भारतीय परिवार के चार लोगों की मौत हो गई थी. कनाडा के ओटावा स्थित भारतीय उच्चायोग ने बताया है कि यह परिवार गुजरात का रहना वाला था.
मरने वालों में 39 वर्षीय जगदीश बलदेवभाई पटेल, वैशालीबेन जगदीश कुमार पटेल (37), विशांगी जगदीश कुमार पटेल (11) और धार्मिक जगदीश कुमार पटेल (3) शामिल थे. उच्चायोग ने एक बयान में बताया कि इन लोगों के परिजनों को सूचित कर दिया गया है. उच्चायोग ने कहा कि प्रवासन और आवाजाही को वैध और सुरक्षित बनाए जाने की जरूरत है ताकि ऐसे हादसे दोबारा ना हों.
गांधीनगर में पुलिस अधिकारी एके झाला ने बताया कि एक ट्रैवल और टूरिजम एजेंसी के छह लोगों को हिरासत में लिया गया है. उन्होंने कहा, "अब हम उन लोगों को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं जिन्होंने इस परिवार को और अन्य लोगों को अवैध रूप से गुजरात से विदेश भेजा.”
इस मामले में अमेरिकी अधिकारियों ने फ्लोरिडा में स्टीव शैंड नाम के एक व्यक्ति गिरफ्तार किया था. सोमवार को एक स्थानीय अदालत ने शैंड को सशर्त जमानत दी.
‘झकझोर देने वाली घटना'
कनाडा की रॉयल कनेडियन माउंटेड पुलिस का मानना है कि यह परिवार 12 जनवरी को कनाडा आया था. वे लोग पहले टोरंटो पहुंचे थे और 18 जनवरी को वहां से मानीतोबा के इमरसन गए थे. चूंकि उनके पास कोई गाड़ी नहीं मिली थी तो यह अनुमान लगाया जा रहा है कि किसी ने वहां उन्हें छोड़ा था.
अधिकारियों के मुताबिक ये लोग अपने ही गांव के चार अन्य परिवारों के साथ भारत से आए थे. ये लोग अपने 18 लोगों के समूह से अलग हो गए और एक बर्फीले तूफान में फंस गए, जिस कारण इनकी मौत हो गई. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इस त्रासदी को झकझोर देने वाली घटना बताया.
मामला तब प्रकाश में आया जब अमेरिकी अधिकारियों ने बाकी लोगों को पकड़ा. पकड़े गए लोगों के सामान में एक बैग था जिसमें बच्चों का सामान था. लेकिन समूह में कोई बच्चा नहीं था जिससे अधिकारियों को संदेह हुआ. पूछताछ करने पर अलग हो गए लोगों का पता चला और उनकी खोज की गई. अमेरिकी अधिकारियों ने कनाडा के अफसरों को सूचित किया और तब पुलिस ने उन्हें खोजा लेकिन उनके शव बरामद हुए.
गहरी है तस्करी की पैठ
गांधीनगर में झाला कहते हैं कि लोग अमेरिका और कनाडा जाने के लिए अपना घर और जमीन तक बेच रहे हैं. उन्होंने बताया, "मानव तस्करी के गिरोहों की पकड़ बहुत गहरी होती है और अक्सर में स्थानीय नेता तक शामिल होते हैं.”
भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि अवैध रूप से लोगों को विदेश भेजने के मामले की गहन जांच के लिए अमेरिकी और कनाडा के अधिकारियों के साथ संपर्क साधा जा रहा है.
आमतौर पर अमेरिका में घुसने के लिए अवैध प्रवासी कनाडा के रास्ते का इस्तेमाल नहीं करते हैं. अमेरिका में सीमाओं की पहरेदारी करने वाली विभाग के मुताबिक 2009 में कनाडा के रास्ते अमेरिका में घुसने की कोशिश करते 6,806 लोग पकड़े गए थे जिनकी संख्या 2021 में घटकर 916 रह गई थी.
अमेरिकी अधिकारियों ने पिछले साल इस रास्ते से सीमा पार करते 41 भारतीयों को गिरफ्तार किया था. 2020 में 129 और 2019 में 339 भारतीय पकड़े गए थे. मिनेसोटा स्थित इमिग्रेशन लॉ सेंटर की कार्यकारी निदेशक वीणा अय्यर बताती हैं कि पिछले हफ्ते जो सात लोग पकड़े गए हैं उन्होंने अगर स्टीव शैंड को सजा दिलाने में अधिकारियों की मदद की तो उन्हें अमेरिका का वीजा भी मिल सकता है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)
ऑस्ट्रेलियाई खगोलविदों ने आकाशगंगा में एक असामान्य और अनजान वस्तु की खोज की है, जो एक निश्चित अंतराल पर रेडियो तरंग किरण उत्सर्जित करती है. शोधकर्ताओं के मुताबिक इससे पहले कभी ऐसी कोई चीज नहीं दिखी है.
"शायद सफेद बौना"
यह खोज ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी भाग में मर्केशन वाइडफील्ड एरे नामक रेडियोस्कोप से कम आवृत्ति वाली तरंगों का उपयोग करके की गई थी. हार्ले वॉकर के मुताबिक अवलोकन के दौरान वस्तु अंतराल पर दिखाई और गायब होती रही. वे कहती हैं, "यह पूरी तरह से अप्रत्याशित था. यह एक खगोलविद के लिए डरावना था क्योंकि आकाश में ऐसा कुछ भी नहीं है जो ऐसा करता है."
टीम का कहना है कि यह सफेद बौना तारा जिसे मरता हुआ तारा भी कहा जा सकता है, वह हो सकता है. जो तारे बुझने के बाद अपने ही केंद्र में गिर जाते हैं, उन्हें सफेद बौना कहा जाता है. विशेषज्ञों के मुताबिक यह खगोलीय वस्तु हमारे सूरज से 4,000 प्रकाश वर्ष दूर है और इसका चुंबकीय क्षेत्र बहुत मजबूत है. इस खबर ने वैज्ञानिक समुदाय में रुचि की एक नई लहर पैदा कर दी है.
विशेषज्ञों के अनुसार खोजी गई वस्तु को समझने के लिए अभी और शोध की जरूरत है. वॉकर के मुताबिक, "यदि आप सभी अनुमान लगाते हैं, तो आप सोचेंगे कि इस वस्तु में इतनी शक्ति नहीं होनी चाहिए कि हर बीस मिनट में इतनी शक्तिशाली रेडियो तरंगें उत्सर्जित कर सकें. यह संभव नहीं होना चाहिए."
टीम लीडर के मुताबिक संकेत विभिन्न फ्रीक्वेंसियों पर देखा गया था. इसका मतलब था कि यह "एक प्राकृतिक प्रक्रिया" थी और "कृत्रिम संकेत नहीं था."
एए/सीके (एएफपी)
ऑस्ट्रेलिया में शोधकर्ताओं की एक टीम ने आकाशगंगा में एक खगोलीय रहस्य की खोज की है. विश्वविद्यालय के छात्र टायरोन ओ'डोहर्टी पिछले साल जब अपनी स्नातक थीसिस पर काम कर रहे थे, तब उन्होंने पहली बार रेडियो तरंगों की मैपिंग करते हुए रहस्यमयी वस्तु को देखा. एस्ट्रोफिजिसिस्ट नताशा हार्ले वॉकर के मुताबिक यह वस्तु "हर 18.18 मिनट के अंतराल में ऊर्जा फेंक रही है." नताशा प्रारंभिक खोज के विस्तृत शोध दल की सदस्य हैं.
इंटरनेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोनॉमी रिसर्च (आईसीएआर) की एक टीम ने ट्विटर संदेश में लिखा, "रेडियो तरंगों की मैपिंग करने वाली एक टीम ने कुछ असामान्य खोज की है, जो एक घंटे में तीन बार ऊर्जा का एक विशाल विस्फोट करती है. और यह खगोलविदों द्वारा पहले देखी गई किसी भी चीज जैसी नहीं है." (dw.com)
जापान में कीट-पतंगे तो हमेशा से खाए जाते रहे हैं लेकिन अब इनका बाजार बढ़ रहा है. एक तो इनके पोषक तत्वों को लेकर जागरूकता बढ़ी है, और दूसरा इस तरह के प्रोटीन का इस्तेमाल पर्यावरण के लिए अच्छा है.
डॉयचे वैले पर जूलियन रायल की रिपोर्ट-
कीट पतंगे ऐतिहासिक रूप से जापान के खान-पान का हिस्सा रहे हैं. तले हुए या चीनी में लिपटे झींगुरों के पैकेट गांव-गांव में बच्चों के लिए वैसे ही बेचे जाते हैं जैसे भारत में लेमनचूस, कुल्फी या बर्फ के गोले आदि मिलते हैं. अब इस बाजार पर कंपनियों की नजर है. बड़ी कंपनियां बड़े पैमाने पर कीट-फार्म तैयार कर रही हैं और सेहतमंद खाने के रूप में इनकी मार्केटिंग भी की जा रही है.
जापान में जगह-जगह ऐसी विशेष दुकानें मिल जाती हैं जहा झींगुर से लेकर मकड़ियां, सिकाडा और ऐसे ही दूसरे कीट-पतंगे बिकते हैं. रेस्तरां इनसे बने खानों का विशेष प्रमोशन करते हैं ताकि ज्यादा ग्राहकों को आकर्षित कर सकें.
झींगुर है संतुलित खाना
तोकुशिमा यूनिवर्सिटी में बायोलॉजी के प्रोफेसर ताकाहितो वातनाबे ने 2019 में ग्रिलस नाम से एक फूड टेक्नोलॉजी कंपनी स्थापित की थी. यह कंपनी झींगुर पालती है और उन्हें खाने में तब्दील करती है. कंपन कहती है कि उसका मकसद एक नई तरह की समरसता बनाना है जिसमें प्रोटीन को व्यर्थ होने से बचाया जाए और सेहतमंत खाना उपलब्ध करवाया जाए.
कंपनी के प्रवक्ता फूमिया ऑकूबू ने डॉयचे वेले को बताया, "लोग बहुत समय से जापान में झींगुर खाते आए हैं. हम उन्हें एक फायदेमंद और जरूरी स्रोत के रूप में देखते हैं. उन्हें पालना पर्यावरण के अनुकूल है. इसके लिए बहुत कम जमीन, पानी या अन्य चीजों की जरूरत पड़ती है. और उनसे जो खाना तैयार होता है वह सूअर, बीफ या चिकन के मुकाबले कहीं बेहतर है.”
वातनाबे और उनकी टीम फिलहाल झींगुर की पोषण मात्रा को समझने पर काम कर रही है, ताकि उन्हें सर्वोत्तम रूप से खाने में इस्तेमाल किया जा सके. ऑकूबू बताते हैं कि अब तक के शोध से पता चला है कि झींगुर में कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंग, आयरन, विटामिन और फाइबर की भरपूर मात्रा होती है. साथ ही इनसे कॉस्मेटिक और दवाओं के अलावा खाद भी बनाई जा सकती है.
ऑकूबू ने बताया, "अभी तो हम झींगुर से तेल और पाउडर बना रहे हैं जिसे खाने में प्रयोग किया जा सकता है. इनसे बिस्किट, तरी और अन्य खाने बनाए जा सकते हैं. हम भविष्य में और कीटों पर भी शोध करने की योजना बना रहे हैं.”
सस्ते और पर्यावरण के हित में
टोक्यो स्थित टेक-नोबो रेस्तरां ऐसे आयोजन करता है जहां लोगों को कीट-पतंगे चखने का मौका मिलता है. कंपनी के एक अधिकारी रायोता मित्सुहाशी कहते हैं, "पिछले एक-दो सालों में लोगों में कीट-पतंगों में दिलचस्पी काफी बढ़ी है. लोग कुछ अलग चखना चाहते हैं, कुछ अनोखा आजमाना चाहते हैं. झींगुर और टिड्डों के बारे में लोग सबसे ज्यादा जानते हैं लेकिन हम लोग मकड़ियां और रेशम के कीड़े भी खूब बेच रहे हैं.”
मित्सुहाशी बताते हैं कि उन्हें खुद भिरड़ के शिशु पसंद हैं. इन्हें मध्य जापान के पहाड़ी कस्बों में खासतौर पर बनाया जाता है. हालांकि उन्हें मकड़ी ज्यादा पसंद नहीं है क्योंकि इससे उन्हें डर लगता है. वह बताते हैं कि ग्राहक तो बहुत हौसले वाले होते हैं और हर लिंग व उम्र के ग्राहक उनके यहां आकर बहुत कुछ आजमाते हैं.
मित्सुहाशी कहते हैं, "सबसे जरूरी संदेश जो हम अपने ग्राहकों तक पहुंचाना चाहते हैं वो ये है कि हमारा खाना बहुत स्वादिष्ट होता है. भले ही यह सस्ता होता है और पर्यावरण व सेहत के लिए अच्छा होता है लेकिन स्वाद में अच्छा नहीं होगा तो लोग नहीं खरीदेंगे.”
बहुत सी और कंपनियां भी कीट-पंतगों पर आधारित खानों में कुछ नया करने की कोशिश में हैं. मसलन, बेकरी पास्को ने झींगुर से बना आटा बेचा है और अब वे रेशम के कीड़ों को भी अपने उत्पादों में शामिल कर रहे हैं. (dw.com)
एथेंस, 28 जनवरी| ग्रीस की मुख्य विपक्षी पार्टी सिरीजा पार्टी ने हाल ही में आए बर्फीले तूफान से निपटने के लिए सरकार के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पेश किया है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, सीरिजा ने कोविड-19 महामारी, अर्थव्यवस्था और पिछली गर्मियों की जंगल की आग के प्रबंधन के लिए सरकार की आलोचना की है।
ग्रीक राष्ट्रीय समाचार एजेंसी एएमएनए की रिपोर्ट के अनुसार, देश की संसद शुक्रवार को तीन दिवसीय बहस शुरू करेगी जिसका समापन एक वोट के रूप में होगा।
सत्तारूढ़ रूढ़िवादी न्यू डेमोक्रेसी पार्टी के पास 300 सदस्यीय संसद में 157 सीटें हैं।
सप्ताहांत के बाद से ग्रीस में गंभीर मौसम की मार पड़ी है, जिससे मुख्य भूमि के बड़े हिस्से और ईजियन द्वीपों पर महत्वपूर्ण यात्रा व्यवधान और कई दिनों तक बिजली गुल रही।
ग्रीक राजधानी को उसके अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से जोड़ने वाले एटिकी ओडोस मोटरवे पर सोमवार को भारी बर्फबारी में 3,500 से अधिक लोग फंसे हुए थे और व्यापक एथेंस क्षेत्र में दर्जनों नगर पालिकाओं को कई घंटों तक बिजली के बिना छोड़ दिया गया था।
एथेंस की राष्ट्रीय वेधशाला ने गुरुवार को कहा कि मंगलवार को रुकी बर्फबारी, 2008 के बाद से ग्रीक राजधानी में देखी गई सबसे भारी बर्फबारी थी।
गुरुवार की सुबह, अटिकी ओडोस मोटरवे फिर से खुल गया, लेकिन मध्य एथेंस में कई घरों में अभी भी बिजली की आपूर्ति नहीं थी।
प्रधानमंत्री क्यारीकोस मित्सोटाकिस ने बुधवार को एक कैबिनेट बैठक के दौरान 'कमियों' के लिए माफी मांगी और राज्य के संकट प्रबंधन तंत्र में सुधार करने का वचन दिया। (आईएएनएस)
न्यूयॉर्क, 27 जनवरी| किसी भी कोविड वैक्सीन की बूस्टर खुराक सुरक्षित होती है और उन लोगों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ावा देती है, जिन्हें पहले कोई भी अधिकृत कोविड-19 वैक्सीन की पूर्ण खुराक मिल चुकी हो।
यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (यूएस-एनआईएच) द्वारा किए गए प्रारंभिक नैदानिक परीक्षण में सामने आए निष्कर्षों से यह जानकारी मिली है।
द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में रिपोर्ट किए गए निष्कर्षों से पता चला है कि प्राथमिक और बूस्टर वैक्सीन के संयोजन से एंटीबॉडी के स्तर में वृद्धि हुई है (जो कि बूस्ट करने से पहले पाए गए स्तर की तुलना में 4.2 से 76 गुना अधिक है)।
इसी तरह, सभी प्राथमिक-बूस्ट संयोजनों ने बाध्यकारी एंटीबॉडी स्तर 4.6 से 56 गुना तक बढ़ा दिया।
नई रिपोर्ट में 458 वयस्कों के निष्कर्षों का वर्णन किया गया है, जिन्हें अमेरिका में तीन अधिकृत कोविड टीकों फाइजर, मॉडर्ना या जॉनसन एंड जॉनसन में से किसी के साथ पूरी तरह से टीका लगाया गया था - नामांकन से कम से कम 12 सप्ताह पहले और जिनके पास सार्स सीओवी-2 संक्रमण का कोई इतिहास नहीं था।
नामांकन के समय, प्रत्येक प्रतिभागी को एक एकल बूस्टर खुराक दी गई: 150 को जॉनसन एंड जॉनसन का टीका मिला; 154 प्राप्त मॉडर्ना और 154 को फाइजर-बायोएनटेक शॉट प्राप्त हुआ।
इस आधार पर कि एक प्रतिभागी को कौन सा प्राथमिक टीका प्राप्त हुआ था, बूस्टर टीका या तो अलग (मिश्रित, या विषमलैंगिक) था या मूल टीका के समान (मैचिंग के साथ या पहले वाला टीका) था।
परीक्षण प्रतिभागियों में तमाम दुष्प्रभाव पर नजर रखी गई। आधे से अधिक प्रतिभागियों ने सिरदर्द, इंजेक्शन वाली जगह पर दर्द, मांसपेशियों में दर्द और अस्वस्थता की सूचना दी।
हालांकि टीका संबंधी प्रतिकूल घटनाओं की कोई गंभीर सूचना नहीं मिली।
प्रत्येक प्राथमिक कोविड वैक्सीन के लिए, एक समरूप बूस्टर की प्रतिक्रियाओं की तुलना में हेटेरोलॉगस बूस्ट ने समान या उच्च एंटीबॉडी प्रतिक्रियाएं प्राप्त कीं।
सरल शब्दों में कहें तो मिक्स एंड मैच यानी कि अलग-अलग वैक्सीन प्राप्त करने वाले लोगों में भी एंटीबॉडी बढ़ी हुई मिली।
अध्ययन से पता चलता है, ये आंकड़े ²ढ़ता से सुझाव देते हैं कि समरूप और विषम बूस्टर वैक्सीन लक्षणों वाले सार्स-सीओवी-2 संक्रमण के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रभावकारिता को बढ़ाएंगे।
ये अंतरिम परिणाम बूस्टर टीकाकरण के बाद के शुरूआती 29 दिनों के दौरान उपलब्ध इम्युनोजेनेसिटी डेटा को कवर करते हैं।
बूस्टर टीकाकरण का दीर्घकालिक प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका आकलन करने के लिए जांचकर्ता एक वर्ष तक प्रतिभागियों का अनुसरण करना जारी रखेंगे। (आईएएनएस)
इसराइल के राष्ट्रपति आइज़क हर्ज़ोग फरवरी में तुर्की की आधिकारिक यात्रा पर जाएँगे. ये जानकारी ख़ुद तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने दी है.
तुर्की के एनटीवी चैनल के साथ एक इंटरव्यू में अर्दोआन ने कहा कि इस यात्रा से तुर्की और इसराइल के बीच रिश्तों का नया अध्याय खुल सकता है. अर्दोआन ने ये भी कहा कि वे प्राकृतिक गैस सहित सभी क्षेत्रों में इसराइल की दिशा में क़दम उठाने के लिए तैयार हैं.
तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन फ़लस्तीनियों के अधिकारों की खुल कर वकालत करते रहे हैं. लेकिन हाल के दिनों में इसराइल को लेकर उन्होंने कई सकारात्मक बयान दिए हैं. उन्होंने इसराइल के कई नेताओं से बातचीत भी की है.
पिछले साल तुर्की ने जासूसी के आरोप में गिरफ़्तार किए गए एक इसराइली दंपती को रिहा कर दिया गया था. उस दौरान अर्दोआन और इसराइली पीएम नफ़्टाली बेनेट के बीच बातचीत भी हुई थी. दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच 2013 के बाद से ये पहली बातचीत थी.
दोनों देशों के बीच रिश्ते तो बहुत पहले से ही उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं. लेकिन 2010 के बाद चीज़ें और ख़राब हुईं. 2010 के मई महीने में मावी मारमारा पोत फ़लस्तीनी समर्थकों के लिए सामान लेकर जा रहा था.
इसी दौरान इसराइली कमांडो ने पोत पर रेड कर दी. यह पोत ग़ज़ा के लिए जा रहा था और इसराइली कमांडो ने अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र में हमला बोला था. इस हमले में तुर्की के 10 लोगों की जान गई थी. तब से ही तुर्की और इसराइल के रिश्तों में ऐसी दरार आई, जो सालों तक नहीं भरी.
लेकिन अर्दोआन के बारे में कहा जा रहा है कि वह अपने राजनीतिक करियर के सबसे मुश्किल दौर में हैं. देश में महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ी है, राष्ट्रीय मुद्रा लीरा भी ऐतिहासिक रूप से कमज़ोर हुई है, विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति बहुत ठीक नहीं है और अमेरिका के बाइडन प्रशासन ने उन्हें अलग-थलग कर रखा है. ऐसे में अर्दोआन पुरानी दुश्मनी भुलाकर इसराइल, सऊदी और यूएई से दोस्ती करने में लगे हैं. (bbc.com)
जापान ने दो साल पहले अपनी सीमाओं को कोरोना वायरस को रोकने के लिए बंद कर दिया. इसके नतीजे में करीब डेढ़ लाख छात्र आज भी देश में नहीं घुस पा रहे हैं.
विदेशी छात्रों और रिसर्चरों की कमी जापान की बड़ी प्रयोगशालाओं से लेकर छोटी, निजी यूनिवर्सिटियों तक महसूस की जा रही है. इससे पता चलता है कि विदेशी हुनर और उनकी ट्यूशन फी सिमटती आबादी वाले देश के लिए कितना जरूरी है. वायरस को रोकने के लिए अपनाई गई इस नीति ने प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा को तो बहुत लोकप्रिय बनाया लेकिन कारोबार जगत के नेता इसके आर्थिक असर के बारे में चेतावनी दे रहे हैं. जापान में श्रम बाजार पहले से ही बहुत मुश्किल में है.
सॉफ्ट पावर
दुनिया भर में जापान की अकादमिक छवि पर भी इसका असर हो सकता है लंबे समय में देश के "सॉफ्ट पावर" पर इसके नतीजे क्या होंगे ये तो कहना फिलहाल मुश्किल है. रिसर्च इंस्टीट्यूट रिकेन के जेनेटिसिस्ट पीयरो कारनिंची का कहना है वो इसके असर को देख रहे हैं. जापान के पास बायोइंफॉर्मेटिक रिसर्चरों की कमी है जो जिनोमिक स्टडीज के लिए बेहद जरूरी हैं लेकिन बीते दो सालों में जापान विदेशी हुनर से इनकी कमी पूरी नहीं कर सका है.
रिकेन के उप निदेशक कारनिची ने बताया, "मेरा लैब निश्चित रूप से धीमा पड़ रहा है और हमारे सेंटर में इस तरह के विश्लेषण के लिए हम संघर्ष कर रहे हैं." के जेनेटिक्स में पुरस्कार विजेता रिसर्च को 60,000 पेपरों में जगह मिली है. उनका कहना है, "विज्ञान का अंतरराष्ट्रीयकरण बेहद जरूरी है. एक ही देश में सारी विशेषज्ञता नहीं हो सकती."
छात्रों के प्रवेश पर सख्ती
कई देशों ने कोरोनावायरस को रोकने के लिए अपनी सीमाएं सील कर दीं. अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या 2020 में उससे पिछले साल के मुकाबले 43 फीसदी गिर गई. पिछले साल करीब प्रवासी मजदूरों के 80000 वीजा बेकार हो गए. हालांकि जापान जी सात समूह के देशों में सबसे सख्त पाबंदी लगाने वाला देश है. जापान ने मार्च 2020 के बा हर तरह के नए गैरनिवासियों को अपने देश में आने से रोक दिया. कोरोना पीड़ितों की संख्या को शून्य रखने के लिए बड़े देशों में सिर्फ चीन ही ऐसा है जिसने जापान से ज्यादा पाबंदी लगाई है.
दांव पर बहुत कुछ लगा है. सरकार से जुड़े एक रिसर्च ने दिखाया है कि अहम वैज्ञानिक शोधपत्रों के प्रकाशन में जापान पिछले साल खिसक कर भारत से नीचे 10वें नंबर पर चला गया है. 20 साल पहले वह चौथे नंबर पर था.
जापान की करीब आधी निजी यूनिवर्सिटियों में जहां चार साल के कोर्स की पढ़ाई होती है वहां पहले साल के सारे कोर्स में 2021 में सीटें नहीं भर पाईं. इससे पहले के साल में यह समस्या सिर्फ 15 फीसदी यूनिवर्सिटियों की यह हालत थी. इसका सबसे बड़ा कारण तो जापानी छात्रों की संख्या में कमी होना है लेकिन विदेशी छात्रों की संख्या भी काफी ज्यादा गिरी है.
सीमा खोलने की मांग
पिछले हफ्ते 100 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय रिश्ते के विशेषज्ञों ने एक पत्र पर दस्तखत किए जिसमें प्रधानमंत्री से सीमाएं खोलने की मांगी की. लोगों ने जापान के दूतावासों के सामने नारेबाजी और प्रदर्शन किए. इनकी मांग है कि छात्रों और मजदूरों को देश में आने दिया जाए. इसमें 33000 से ज्यादा लोगों के दस्तखत हैं.
सरकार ने पिछले हफ्ते कहा कि वह वैकल्पिक व्यवस्था बना कर सरकारी खर्च पर आने वाले 87 छात्रों को देश में आने देगी. समाजशास्त्री वेसले चीक ने रिसर्च के लिए ब्रिटेन का रुख किया है. उनका कहना है, "कई दशकों तक सॉफ्ट पावर का बढ़िया इस्तेमाल करने के बाद अब यह सरकार के लिए अपना ही बड़ा लक्ष्य है. मेरे जैसे लोग जो जापान में रिसर्च के ग्रांट के लिए मांग करते हैं उन्हें निकट भविष्य के लिए कहीं और जाना पड़ रहा है."
अंतरराष्ट्रीय छात्र जापान में पार्ट टाइम काम कर सकते हैं और जापान पारंपरिक रूप से इसके लिए काम मुहैया कराता है. कोरोना वायरस के पहले भी यहां के श्रम बाजार की मांग को पूरा करने के लिए विदेशी छात्र नहीं थे. अंतरराष्ट्रीय नियुक्ति सलाहकार योहइ शिबासाकी का अनुमान है कि पान में महामारी से पहले कारोबार और भाषा के स्कूलों में 170,000 छात्र थे और इनमें से ज्यादातर पार्ट टाइम काम कर रहे थे.
पाबंदियों से नुकसान
ई कॉमर्स ग्रुप राकुटेन विदेशी इंजीनियरों को काम पर रखती है. कंपनी के चीफ एग्जिक्यूटिव हिरोशी मिकितानी का कहना है कि पाबंदियों पर दोबारा विचार होना चाहिए क्योंकि वे बहुत कारगर नहीं हैं और "अर्थव्यवस्था के लिए तो केवल घाटा हैं."
पढ़ाई के लिए इंतजार कर रहे अंतरराष्ट्रीय छात्रों की पुकार दिल को झकझोर देने वाली है. मध्यरात्रि में चलने वाले ऑनलाइन क्लास की फीस, स्कॉलरशिप से हाथ धोने और महीनों तक बदलाव के इंतजार में तनाव की जिंदगी के बारे में वह सोशल मीडिया पर लिखते हैं. कुछ छात्रों की सारी बचत खत्म हो गई है तो कुछ ने हार मान कर कहीं और का रुख कर लिया है.
पूर्वी एशिया में अब जापान पढ़ाई और रिसर्च का मुख्य केंद्र नहीं रहा. विदेश में पढ़ाई को बढ़ावा देने वाली एक एजेंसी के प्रमुख बताते हैं कि ज्यादातर छात्र अब दक्षिण कोरिया जा रहे हैं.
एनआर/आरपी (रॉयटर्स)
जर्मनी की सरकार मेसेजिंग ऐप टेलिग्राम पर प्रतिबंध लगाने की सोच रही है. टेलिग्राम का इस्तेमाल वैक्सीन का विरोध करने के लिए बनाई जा रही खबरों और मौत की धमकियों के प्रसार में हो रहा है.
जर्मन सरकार की कोरना वायरस के बारे में नीतियों के खिलाफ जो सबसे ज्यादा हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए हैं उनके लिए भीड़ जुटाने में भी टेलिग्राम ने अहम भूमिका निभाई है. महामारी की शुरुआत से ही ऐसा हो रहा है. अब सरकार वैक्सीन को जरूरी बनाने पर विचार कर रही है ऐसे में अधिकारियों को आशंका है कि इस विवादित मुद्दे पर विरोध और जोर पकड़ सकता है.
टेलिग्राम टास्कफोर्स
जर्मनी की संघीय पुलिस ने बुधवार को बताया कि उन्होंने एक टेलिग्राम टास्क फोर्स बनाई है. यह टास्कफोर्स टेलिग्राम पर भेजा जा रहे ऐसे सदेशों की जांच करेगी जिनमें मौत की धमकियां और नफरती भाषण हैं. इन्हें भेजने वालों की पहचान करके उनके खिलाफ अभियोग चलाया जाएगा.
संघीय पुलिस बीकेए के प्रमुख होल्गर मुएंष का कहना है, "कोरोना वायरस की महामारी ने टेलिग्राम पर लोगों में कट्टरता बढ़ाने के लिए खासतौर से बड़ी भूमिका निभाई है. लोगों को धमकियां दी जा रही हैं और यहां तक कि हत्या करने की मांग की जा रही है."
गृह मंत्री नैंसी फाएजर ने सुझाव दिया है कि अगर टेलिग्राम गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने में सहयोग देने से इनकार करता है तो सरकार इस सेवा पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा देगी. जर्मन अखबार डी त्साइट से बातचीत में फाएजर ने कहा कि अगर यह स्थानीय कानूनों का पालन करने में नाकाम रहता है और "दूसरे सारे उपाय नाकाम हो जाते हैं" तो टेलिग्राम को जर्मनी में बंद किया जा सकता है.
टेलिग्राम ग्रुप में दो लाख सदस्य
टेलिग्राम चैट ग्रुप में 200,000 तक सदस्य हो सकते हैं. इसका इस्तेमाल वैक्सीन विरोधी प्रदर्शनों, गलत जानकारियों को साझा करने राजनेताओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने के लिए हो रहा है. दिसंबर में जर्मन पुलिस ने पूर्वी शहर ड्रेसडेन में मारे छापों के दौरान हथियार बरामद किए. एक क्षेत्रीय नेता के खिलाफ मौत की धमकियों के बारे में बात करने के लिए टेलिग्राम ग्रुप का इस्तेमाल करने के बाद ये छापे मारे गए थे.
उसी महीने टेलिग्राम का इस्तेमाल सैक्सनी राज्य के स्वास्थ्य मंत्री के घर के बाहर कोरोना वायरस पर आशंका उठाने वाले लोगों की भीड़ जुटाने के लिए किया गया. यहां जुटे लोगों ने हाथों में मशाल ले रखी थी. इसी तरह एक संदेश में कोविड की पाबंदियों का विरोध करने वाले लोगों से "स्थानीय सांसदों, राजनेताओं और दूसरे लोगों" के निजी पते साझा करने की मांग की गई थी. इनके बारे में कहा गया था कि ये लोग कोरोना पाबंदियों से लोगों की जिंदगी तबाह कर रहे हैं. इस संदेश को 25,000 लोगों ने देखा था.
शरणार्थी विरोध
2015 में जब शरणार्थी समस्या अपने उफान पर थी तब धुर दक्षिणपंथियों ने फेसबुक और ट्विटर जैसे नेटवर्किंट टूल का इस्तेमाल कर शरणार्थी विरोधी सामग्रियों का खूब प्रसार किया. 2017 में जर्मनी ने एक कानून पारित कर सोशल नेटवर्किंग कंपनियों के लिए गैरकानूनी सामग्रियों को हटाना और पुलिस को इसकी जानकारी देना जरूरी कर दिया.
फेसबुक ने बीते साल सितंबर में बताया कि उसने "क्वरडेंकर" नाम के एक अकाउंट से जुड़े पेज, और ग्रुप को डिलीट कर दिया है. यह एक अभियान था जो जर्मन सरकार की कोरोना से जुड़ी पाबंदियों के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर हो कर सामने आया था.
हालांकि इसके बाद विरोध करने वालों ने दूसरे प्लेटफॉर्मों का रुख किया जिनमें टेलिग्राम सबसे पसंदीदा बन कर उभरा है. नस्लवाद विरोधी फाउंडेशन अमादे अंटोनियो की डिजिटल मैनेजर सिमोन राफाएल का कहना है, "फेसबुक जैसे बड़े प्लेटफॉर्म नस्लवाद, यहूदी-विरोध और धुर दक्षिणपंथी सामग्रियों जैसे होलोकॉस्ट से इंकार को जगह नहीं देते हैं ऐसे में जो लोग इस तरह की बातें फैलाना चाहते हैं उन्हें नए रास्तों की तलाश है." राफाएल का कहना है कि फिलहाल जर्मनी में सबसे मशहूर टेलिग्राम है.
फेसबुक पीछे छूटा
फेसबुक जर्मनी में अपनी मौजूदगी बनाए रखता है इसलिए वह धीरे धीरे यहां के राष्ट्रीय कानून के आगे समर्पण कर रहा है लेकिन टेलिग्राम के साथ यह बात नहीं है. राफाएल के मुताबिक, "टेलिग्राम न्यायिक या सुरक्षा प्रशासनों के साथ सहयोग नहीं कर रहा है. यहां तक कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी जैसे अविवादित रूप से दंडनीय और कलंकित मामलों में भी नहीं, सरकार के पास तो कार्रवाई का कोई जरिया ही नहीं है."
सरकार के पास एक विकल्प यह है कि वह गूगल या एप्पल से टेलिग्राम को अपने ऐप स्टोर से हटाने के लिए कहे. हालांकि इससे उन यूजरों पर कोई असर नहीं पड़ेगा जिनके पास यह ऐप पहले से मौजूद है. राफाएल तो बस एक ही समाधान देखती हैं कि ऐप पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया जाए. ऐसा हुआ तो जर्मनी टेलिग्राम पर प्रतिबंध लगाने वाले पहला पश्चिमी देश बन जाएगा.
प्रतिबंध की मुश्किलें
टेलिग्राम को 2013 में रूसी भाइयों निकोलाइ और पावेल डुरोव ने बनाया था. रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिने के विरोधी ये दोनों भाई एक ऐसी सेवा चाहते थे जो उनके देश की गुप्तचर सेवा की पहुंच से दूर हो.
कंपनी का मुख्यालय फिलहाल दुबई में है और इसका पैरेंट ग्रुप ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स में. टेलिग्राम को चीन, भारत और रूस में पहले से ही कड़ी शर्तों या प्रतिबंधों में बांध कर रखा गया है. हालांकि इस ऐप के खिलाफ कार्रवाई से जर्मनी में असंतोष और बढ़ेगा. डिजिटल जर्नलिस्ट मार्कुस रॉयटर का कहना है, "एक तरफ तो हम टेलिग्राम के सेंसरशिप की कमी का जश्न मना रहे हैं, बेलारूस और ईरान में लोकतांत्रिक अभियानों के लिए उसका महत्व देख रहे हैं, दूसरी तरफ उसकी सेवा को जर्मनी में बंद कर रहे हैं." रॉयटर का कहना है,"इस तरह के कदमों से गलत संदेश जायेगा."
एनआर/वीके (एएफपी)
जर्मनी की एक अदालत ने 75 वर्षीय व्यक्ति को अपनी बेटी का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में 10 साल जेल की सजा सुनाई है. यौन शोषण का आरोप दशकों पहले शुरू हुआ था, लेकिन इस मामले में केवल हाल के अपराधों को ही सजा के लिए माना गया.
अदालत ने व्यक्ति को 10 साल और छह महीने जेल की सजा सुनाई. अभियोजकों ने कहा कि दोषी ने अपनी बेटी के साथ वर्षों तक यौन उत्पीड़न किया था. उस व्यक्ति पर 2017 और 2020 के बीच बलात्कार के 270 मामलों का आरोप लगाया गया था. इस मामले में केवल जर्मनी में हुए बलात्कार और शारीरिक उत्पीड़न को संबोधित किया गया. जज ने आरोपी पिता से कहा, "आपने अपनी बेटी का जीवन बर्बाद कर दिया है."
आरोपी पिता ने जोर देकर कहा था कि उसने "उसके साथ कभी बलात्कार नहीं किया." पिता ने कहा कि उनका रिश्ता सहमति से था. जर्मन कानून 14 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ यौन कृत्यों या यौन कृत्यों के प्रयास को बच्चों के यौन शोषण के रूप में परिभाषित करता है.
'हिंसा और निराशा'
अभियुक्त पिता ने अपनी बेटी का उत्पीड़न तब शुरू किया जब वह सात साल की थी, अब पीड़ित बेटी 55 वर्ष की है. बेटी ने 1990 के दशक में अभियुक्त के बच्चे को जन्म दिया.
अभियोजकों ने कहा कि अभियुक्त ने बेटी के जीवन को नियंत्रित किया, उसे एक बच्चे के रूप में अलग-थलग कर दिया और उसके चारों ओर "हिंसा और निराशा का माहौल" बनाए रखा. अदालत ने कहा, "यह एक कठोर, ठंडा और बदसूरत पिंजरा था जिसमें आपने अपनी बेटी को रखा था."
अभियोजकों ने दोषी के लिए 12 साल की जेल की सजा की मांग की थी. बुधवार को सुनाई गई सजा अंतिम नहीं है. ब्रॉडकास्टर बायरिशर रुंडफंक के मुताबिक दोषी एक इतालवी व्यक्ति है.
एए/सीके (डीपीए)
ऐसे लोगों की जरूरत है जो जानबूझकर कोविड से बीमार होने को तैयार हों. ऐसा दुनिया के पहले ऐसे परीक्षण के लिए किया जाएगा जिसे बेहतर वैक्सीन बनाने के लिए मंजूरी दी गई है.
वैज्ञानिक ऐसे स्वयंसेवकों को खोज रहे हैं जो अपने आपको कोरोना वायरस से संक्रमित करवाने को तैयार हों. कोविड के लिए बेहतर वैक्सीन तैयार करने के मकसद से एक परीक्षण को मंजूरी मिली है, जिसके लिए इन स्वयंसेवकों की जरूरत है.
जनवरी 2021 में ब्रिटेन ने कोविड-19 वैक्सीन तैयार करने के लिए इंसानों पर परीक्षण की अनुमति दी थी. इसके तीन महीने बाद अप्रैल में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी का यह परीक्षण शुरू किया गया था. परीक्षण अभी भी अपने पहले चरण में है.
अहम होंगे नतीजे
यूनिवर्सिटी की ओर से जारी एक बयान में बताया गया है कि फिलहाल वैज्ञानिक इस बात पर ध्यान लगा रहे हैं कि संक्रमण के लिए असल में वायरस की कितनी मात्रा काफी होती है. उसके बाद दूसरे चरण में यह जांचा जाएगा कि वायरस से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरोध क्षमता कितनी होनी चाहिए.
यूनिवर्सिटी के अनुसार शोधकर्ता यह पता लगाने के काफी करीब पहुंच चुके हैं कि वायरस की कम से कम मात्रा कितनी हो सकती है जिससे परीक्षण में शामिल आधे लोग संक्रमित हो जाएंगे और उनमें कोविड-19 के मामूली लक्षण नजर आएंगे. उसके बाद वे परीक्षण में हिस्सा ले रहे स्वयंसेवकों को वायरस के मूल वेरिएंट की खुराक देंगे, ताकि पता लगाया जा सके कितनी टी-कोशिकाओं का निर्माण शरीर को संक्रमण से लड़ने में सक्षम कर देगा.
ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में वैक्सीनोलॉजी की प्रोफेसर और इस अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता हेलेन मैक्शेन कहती हैं, "फिर एक नई वैक्सीन के जरिए हम शरीर में प्रतिरोध क्षमता पैदा करेंगे.” उनका कहना है कि इस परीक्षण के नतीजे भविष्य में वैक्सीन को जल्दी और ज्यादा कारगर बनाने में मदद करेंगे.
कोविड के लिए पहली ट्रायल
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी बीमारी से शरीर को बचाने के लिए किसी वैक्सीन को कितनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए. अगर वे इसमें कामयाब होते हैं तो वैक्सीन तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षणों की जरूरत काफी हद तक कम हो जाएगी.
दशकों से वैज्ञानिक संक्रामक रोगों के इलाज खोजने के लिए इंसानों पर परीक्षण करते रहे हैं. लेकिन कोविड-19 के मामले में यह इस तरह का पहला परीक्षण है. इस परीक्षण का खतरा यह है कि स्वयंसेवकों को नुकसान भी पहुंच सकता है. हालांकि शोधकर्ता पूरी एहतियात बरत रहे हैं.
परीक्षण के लिए वैज्ञानिकों को ऐसे स्वस्थ लोगों की जरूरत है जिनकी उम्र 18 से 30 साल के बीच हो. उन्हें कम से कम 17 दिन तक एकांतवास में रहना होगा. जिन स्वयंसेवकों में कोविड के लक्षण पैदा होंगे उन्हें रेजेनेरॉन की दवा रोनाप्रीव दी जाएगी.
वीके/एए (रॉयटर्स)
पूर्वी कालीमंतान प्रांत मूलनिवासियों से जुड़ी अपनी संस्कृति और वर्षावनों के लिए जाना जाता है. यहां कई तरह के वन्यजीवों की मौजूदगी है. आशंका है कि नई राजधानी के चलते यहां का पर्यावरण प्रभावित हो सकता है.
इंडोनेशिया की राजधानी जर्काता में भीड़भाड़ और प्रदूषण है. यह भूकंप आशंकित क्षेत्र है और जावा समुद्र में डूबने की ओर बढ़ रहा है. अब सरकार भी जर्काता छोड़ रही है. अब बोर्नियो को देश की नई राजधानी बनाया जा रहा है.
राष्ट्रपति जोको विडोडो नई राजधानी के निर्माण में दूरदर्शिता बरतना चाहते हैं. उम्मीद है कि राजधानी को दूसरी जगह ले जाने से जर्काता की मुश्किलें कम हो सकेंगी. उस पर से जनसंख्या का दबाव घटाया जा सकेगा. साथ ही, एक नई सस्टेनेबल राजधानी के निर्माण के साथ देश को नई शुरुआत मिल सकेगी.
योजना है कि नई राजधानी में टिकाऊ विकास से जुड़े पक्षों पर ध्यान दिया जाएगा. उसका अपने पर्यावरण और स्वाभाविक आबोहवा के साथ बेहतर सामंजस्य होगा. सार्वजनिक परिवहन की अच्छी व्यवस्था होगी. साथ ही, जर्काता के मुकाबले इस नई राजधानी में प्राकृतिक आपदाओं की आशंका भी कम होगी.
कई चिंताएं भी हैं
पिछले हफ्ते नई राजधानी की योजना को संसद की मंजूरी मिलने से पहले विडोडो ने कहा, "नई राजधानी का निर्माण केवल सरकारी दफ्तरों को जर्काता से हटाकर वहां ले जाने की प्रक्रिया भर नहीं है. हमारा मुख्य लक्ष्य एक नया स्मार्ट शहर बनाना है. एक ऐसा नया शहर, जो कि अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के मुताबिक हो. जहां बदलाव की प्रक्रिया स्वचालित हो. हम ऐसे भविष्य की ओर बढ़ना चाहते हैं, जहां एक हरित अर्थव्यवस्था नई खोज और तकनीक का आधार बन सके."
बेहतर भविष्य की इन योजनाओं के बीच कई जानकार चिंतित भी हैं. कारण है, बोर्नियो द्वीप के पूर्व में स्थित पूर्वी कालीमंतान प्रांत. यह प्रांत मूलनिवासियों से जुड़ी अपनी संस्कृति और वर्षावनों के लिए जाना जाता है. यहां कई तरह के वन्यजीवों की मौजूदगी है.
जानकारों को आशंका है कि नई राजधानी के चलते यहां के पर्यावरण पर प्रभाव पड़ सकता है. साथ ही, सरकार ने नई राजधानी बनाने की महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए 34 अरब डॉलर की राशि देने का ऐलान किया है. महामारी और उसके आर्थिक प्रभावों के बीच इतनी बड़ी राशि के आवंटन को लेकर भी चिंताएं हैं.
पर्यावरण और वन्यजीवन के लिए आशंका
'द इंडोनेशियन फोरम फॉर इनवॉयरनमेंट' (डबल्यूएएलएचआई) नाम की पर्यावरण से जुड़ी एक संस्था है. इसकी एक अधिकारी ड्वी सावुंग ने बताया, "नई राजधानी से जुड़ा पर्यावरणीय शोध बताता है कि इस परियोजना में कम-से-कम तीन बुनियादी दिक्कतें हैं. नदियों, उनके सहायक जल स्रोतों और पानी की व्यवस्था को नुकसान पहुंचने की आशंका है. जलवायु परिवर्तन का खतरा है. और, वनस्पति और जीव जगत के लिए जोखिम हो सकता है. इसके अलावा प्रदूषण और पर्यावरण को होने वाले नुकसान का भी खतरा है."
नई राजधानी से जुड़ा प्रस्ताव 2019 में सामने रखा गया था. इसके तहत नए सिरे से सरकारी इमारतें और आवासीय घर बनाए जाएंगे. शुरुआती अनुमान था कि करीब 15 लाख प्राशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों को नए शहर में ले जाया जाएगा. हालांकि यह संख्या तय नहीं है. मंत्रालय और सरकारी विभाग अभी भी इसपर विचार कर रहे हैं. यह नया शहर कालीमंतान के पूर्वी बंदरगाह 'बलिकपापन' के नजदीक होगा. बलिकपापन की आबादी करीब सात लाख है.
रहा है जर्काता
इंडोनेशिया एक द्वीपीय देश है. इसमें 17 हजार से ज्यादा द्वीप हैं. लेकिन देश की 27 करोड़ से अधिक की आबादी का करीब 54 प्रतिशत हिस्सा जावा में है. यह इंडोनेशिया का सबसे घनी आबादी वाला द्वीप है. जर्काता भी यहीं है. अकेले जर्काता में लगभग एक करोड़ लोग रहते हैं. इसके आसपास के शहरी इलाकों में इससे तीन गुना आबादी बसी है.
जर्काता को सबसे तेजी से समुद्र में समाता जा रहा शहर बताया जाता है. मौजूदा रफ्तार के मुताबिक, 2050 आते-आते जर्काता के एक तिहाई हिस्से के समुद्र में डूब जाने की आशंका है. भूमिगत जल का अनियंत्रित दोहन इसकी एक बड़ी वजह है. जलवायु परिवर्तन के चलते जावा सी के बढ़ते जलस्तर से समस्या और गंभीर हो गई है.
निर्माण समिति में कई अंतरराष्ट्रीय नाम
इन परेशानियों के अलावा एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि यहां की हवा और पानी बहुत प्रदूषित हैं. यहां लगातार बाढ़ आती रहती है. इसकी गलियां और सड़कें बहुत बंद और संकरी हैं. अनुमान है कि इसके चलते इंडोनेशिया की अर्थव्यवस्था को सालाना 4.5 अरब डॉलर का नुकसान होता है. ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए एक नई सुनियोजित राजधानी बसाने का फैसला करने वाला इंडोनेशिया पहला देश नहीं है. पाकिस्तान, ब्राजील और म्यांमार भी ऐसा कर चुके हैं.
नई राजधानी के निर्माण की निगरानी कर रही समिति का नेतृत्व अबु धाबी के क्राउन प्रिंस शेख मुहम्मद बिन जायद अल नहयान कर रहे हैं. उनके पास संयुक्त अरब अमीरात में हुए कई महत्वाकांक्षी निर्माण परियोजनाओं का अनुभव है. इस समिति में मसायोशी सोन भी शामिल हैं. वह जापानी कंपनी सॉफ्टबैंक के प्रमुख हैं. इसके अलावा ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर भी इस समिति का हिस्सा हैं. वह 'टोनी ब्लेयर इंस्टिट्यूट फॉर ग्लोबल चेंज' चलाते हैं.
कहां से आएगा फंड?
इस परियोजना की कुल लागत का 19 फीसदी हिस्सा सरकारी कोष से आएगा. बाकी रकम सरकार और कारोबारी कंपनियों के सहयोग से आएगी. इसके अलावा निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा किए गए सीधे निवेश से भी फंड जमा किया जाएगा.
इंडोनेशिया के 'पब्लिक वर्क्स ऐंड हाउसिंग' मंत्री बासुकी हादिमुलजोनो ने बताया कि शुरुआती योजना के मुताबिक, राष्ट्रपति आवास बनाने के लिए 56,180 हेक्टेयर की जमीन साफ की जाएगी. इसमें राष्ट्रपति आवास, संसद और सरकारी दफ्तर जैसी इमारतें बनेंगी. इनके अलावा राजधानी को पूर्वी कालीमंतान प्रांत के बाकी शहरों से जोड़ने के लिए सड़कें भी बनाई जाएंगी.
कब तक पूरा होगा काम?
योजना है कि सरकारी कामकाज के लिए जितनी जगह चाहिए, वहां 2024 तक काम पूरा कर लिया जाए. इस समय तक लगभग 8,000 नौकरशाहों और सरकारी अधिकारियों को यहां ले जाने की योजना है.
विडोडो ने कहा था कि वह चाहते हैं, 2024 में उनका दूसरा कार्यकाल पूरा होने से पहले ही राष्ट्रपति आवास को नई राजधानी में स्थानांतरित कर दिया जाए. इसके अलावा गृह, विदेश और रक्षा मंत्रालय और सचिवालय भी 2024 तक स्थानांतरित कर लिया जाए. नई राजधानी का तबादला 2045 तक पूरी कर लिए जाने का अनुमान है.
पर क्या असर पड़ेगा?
इस स्थानांतरण से जर्काता और वहां छूटे लोगों पर क्या असर पड़ेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है. 'यूनिवर्सिटी ऑफ इंडोनेशिया' में पब्लिक पॉलिसी के विशेषज्ञ अगुस पंबागियो ने कहा कि वह चाहते हैं कि इस मुद्दे पर विस्तृत अध्ययन के लिए मानवविज्ञानियों की मदद ली जाए.
उन्होंने कहा, "इसके चलते काफी बड़े सामाजिक बदलाव होंगे. इन बदलावों का असर सरकारी कर्मचारियों के तौर पर काम करने वाले लोगों, स्थानीय आबादी और पूरे समाज पर पड़ेगा."
एसएम/वीके (एपी)
नई दिल्ली, 27 जनवरी| अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने देश में मीडिया संस्थानों को काबुल में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पर रोक लगा दी है। टोलो न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, एक सम्मेलन काबुल में बुधवार को होना था।
अफगानिस्तान जर्निलिस्ट सेंटर ने एक बयान में कहा कि सम्मेलन में विभिन्न मीडिया संगठनों के 11 प्रतिनिधियों को भाग लेना था।
अफगानिस्तान नेशनल जर्नलिस्ट्स यूनियन के प्रमुख अली असगर अकबरजादा ने कहा, "सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया आउटलेट इसे कवर कर रहे थे, हालांकि, दुर्भाग्य से, इस्लामिक अमीरात के अधिकारियों के आदेश के कारण, सम्मेलन रद्द कर दिया गया।"
अफगानिस्तान नेशनल जर्नलिस्ट्स यूनियन के सदस्यों ने कहा कि इस्लामिक अमीरात ने उन्हें अनुमति मिलने तक सम्मेलन आयोजित नहीं करने का निर्देश दिया है।
अकबरजादा ने कहा, "हम इस्लामिक अमीरात से भविष्य में अपने निर्णय को अंतिम रूप देने का आह्वान करते हैं। उन्हें जल्द से जल्द निर्णय लेना चाहिए और हमें एक परमिट देना चाहिए ताकि हम इसके आधार पर अपना सम्मेलन आयोजित कर सकें।"
तालिबान सरकार ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की कि उसने मीडिया आउटलेट्स के सम्मेलन को प्रतिबंधित किया है या नहीं, लेकिन कहा कि वह इस्लामिक नियमों के आधार पर मीडिया का समर्थन करती है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से 43 फीसदी से ज्यादा मीडिया गतिविधियां रोक दी गई हैं और 60 फीसदी से ज्यादा मीडिया कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 26 जनवरी| अमेरिका में कोरोना महामारी की शुरूआत के बाद से अब तक एक करोड़ से ज्यादा बच्चे कोरोना पॉजिटिव हैं। ये जानकारी अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (एएपी) और चिल्ड्रन हॉस्पिटल एसोसिएशन की रिपोर्ट में सामने आई है। सोमवार देर रात प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में 20 जनवरी तक कुल 10,603,034 बच्चे कोरोना संक्रमित हैं।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के कारण बच्चों में कोरोना के मामलों की संख्या बढ़ी है।
एएपी के अनुसार, बीते सप्ताह में 11 लाख से ज्यादा बच्चों में कोरोना के मामले सामने आए, जो पिछले साल की सर्दियों के मुकाबले लगभग 5 गुना अधिक है।
एएपी के अनुसार, एक सप्ताह पहले 981,000 मामले सामने आए, जिससे मामलों की संख्या में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और दो सप्ताह पहले मामलों की संख्या दोगुनी हो गई थी।
बीते दो हफ्तों में 20 लाख से ज्यादा बच्चे कोरोना पॉजिटिव पाए गए।
एएपी के अनुसार, यह लगातार 24वां सप्ताह है जब अमेरिका में बच्चों में कोरोना के मामले 100,000 से ज्यादा हैं। बच्चों में सितंबर के पहले सप्ताह से 56 लाख से ज्यादा मामले सामने आए हैं। (आईएएनएस)
माली और गिनी के बाद बुरकिना फासो तीसरा पश्चिम अफ्रीकी देश है जिसमें बीते 18 महीनों में तख्तापलट हुआ है. ये देश अल कायदा और इस्लामिक स्टेट के हमलों से जूझ रहा है.
पश्चिम अफ्रीकी देश बुरकिना फासो में तख्तापलट हो गया है. तख्तापलट करने वाले सैनिकों ने राष्ट्रीय चैनल पर सोमवार को इसकी घोषणा की. राजधानी औगाडौगू के कुछ इलाकों में रविवार से ही गोलीबारी हो रही थी. लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए राष्ट्रपति रॉक मार्क क्रिश्चियन कोबोगे को तख्तापलट के बाद से किसी अज्ञात जगह पर रखने का दावा किया जा रहा है. माली और गिनी के बाद बीते डेढ़ साल में तख्तापलट देखने वाला ये तीसरा पश्चिम अफ्रीकी देश है. करीब 2 करोड़ की आबादी वाले बुरकिना फासो को कुछ समय पहले तक स्थिर देश माना जाता था. लेकिन साल 2016 से ये चरमपंथी इस्लामिक जिहादियों से जूझ रहा है. इसे सैनिकों ने तख्तापलट करने की एक वजह की तरह पेश किया है.
तख्तापलट की घोषणा करते हुए कैप्टन सिडसो केबर उडारगौ ने कहा, राष्ट्रपति कोबोगे के शासन में सुरक्षा के हालात बिगड़ रहे थे और वो इन्हें संभालने में नाकाम रहे. इसलिए "देशभक्तों के आंदोलन ने ये जिम्मेदारियां संभाल लीं." सेना ने दावा किया है कि ये तख्तापलट बिना किसी हिंसा के हुआ है. गिरफ्त में लिए गए (राष्ट्रपति समेत) लोगों की गरिमा का सम्मान करते हुए उन्हें सुरक्षित स्थानों पर रखा गया है. न्यूज एजेंसी एपी से पहचान जाहिर ना करने की शर्त पर तख्तापलट करने वाले एक सैनिक ने कहा कि राष्ट्रपति कोबोगे ने इस्तीफा दे दिया है. हालांकि, कोबोगे की राजनैतिक पार्टी ने दावा किया है कि तख्तापलट करने वाले सैनिकों ने राष्ट्रपति समेत कई मंत्रियों की हत्या कर दी है. हथियारबंद सैनिकों से घिरे राष्ट्रपति भवन से ये बयान जारी हुआ है.
संविधान रद्द, सड़कों पर जश्न
नए सैन्य शासन ने कहा है कि उन्होंने बुरकिना फासो का संविधान रद्द कर दिया है और संसद भंग कर दी है. तख्तापलट के वक्त देश की सीमाएं बंद थीं. इसके अलावा रात 9 बजे से 5 बजे तक कर्फ्यू लगाया गया था. प्रवक्ता उडारगौ ने कहा कि देश के नए नेता जल्द ही चुनावों के लिए तारीखों का एलान करेंगे. उडारगौ ने जो संदेश पढ़ा, उस पर देश के संभावित सैन्य नेता लेफ्टिनेंट कर्नल पॉल हेनरी सेंडागो डामीबा के हस्ताक्षर थे. डामीबा सरकारी चैनल पर हुई तख्तापलट की घोषणा के वक्त प्रवक्ता के साथ मौजूद थे, लेकिन बोले कुछ नहीं.
तख्तापलट की घोषणा होने के बाद लोग सड़कों पर आ गए और जश्न मनाने लगे. एक प्रदर्शनकारी मेनुअल सिप ने एपी से कहा कि "ये बुरकिना फासो के लिए दोबारा एक होने का मौका है. पिछली सरकार ने हमें डुबो दिया था. रोज लोग मर रहे हैं, सैनिक मारे जा रहे हैं. हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं. सेना को ये पहले ही कर देना चाहिए था." हालांकि सेना ने सड़कों पर जश्न मना रहे लोगों को आंसू गैस का इस्तेमाल करके भगा दिया.
पहले भी हुआ है तख्तापलट
कोबोगे साल 2015 में बुरकिना फासो के राष्ट्रपति बने थे. नवंबर 2020 में वो दोबारा चुने गए थे. लेकिन जिहादी हिंसा पर नकेल कसने में नाकाम रहने की वजह से उनके खिलाफ आक्रोश बढ़ रहा था. बीते 5 सालों में अल कायदा और इस्लामिक स्टेट के हमलों में करीब दो हजार लोग मारे गए हैं और लगभग 15 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं. चरमपंथी हमलों में सेना को काफी नुकसान हुआ है. अकेले दिसंबर 2021 में 59 जवानों की मौत हुई है. तख्तापलट करने वाले सैनिकों का दावा है कि सरकार सेना के साथ संपर्क खो चुकी थी. घायल सैनिकों का बेहतर इलाज और मृतक सैनिकों के परिवारों का ख्याल रखना उनकी मुख्य मांग थी.
ये पहली बार नहीं है जब बुरकिना फासो में तख्तापलट हुआ हो. कोबोगे से पहले देश के राष्ट्रपति रहे ब्लैस कुंपोरे भी साल 1987 में ताकत के बल पर सत्ता में आए थे. भारी विरोध के बाद उनका 27 साल का कार्यकाल 2014 में समाप्त हुआ. अगले ही साल 2015 में कुंपोरे समर्थक सैनिकों ने अस्थायी सरकार का तख्तापलट करने की कोशिश की थी, जिसे आर्मी ने किसी तरह कुचल दिया था.
संयुक्त राष्ट्र ने बुरकिना फासो की स्थिति पर चिंता जताई है. महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने तख्तापलट करने वाले नेताओं से हथियार डालने की बात कही है. अमेरिका के विदेश मंत्रालय और पश्चिमी अफ्रीका के क्षेत्रीय संघ ने बुरकिना फासो की स्थिति को बड़ी चिंता बताया है. बुरकिना फासो के पड़ोसी देशों माली और गिनी में भी इसी तरह से तख्तापलट हुए हैं. वहां भी चुनाव की बात कही गई थी, लेकिन काफी समय बीतने के बाद भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के कोई निशान नहीं दिख रहे हैं.
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चीन में विदेशी फिल्में को रिलीज किए जाने की अनुमति कई दृश्य काटने के बाद दी जाती है. लेकिन 1999 की हॉलीवुड फिल्म "फाइट क्लब" में पुलिस को विजेता दिखाने के लिए तो कहानी के अंत को ही पूरी तरह से बदल दिया गया है.
चीन में 'फाइट क्लब' के दो नियम हैं. पहला, फिल्म में कहानी का जो अंत दिखाया गया है उसका जिक्र ना करें. दूसरा, अंत को बदल दें ताकि पुलिस की जीत दिखाई जा सके. चीन में सेंसरशिप के नियम दुनिया में सबसे कड़े नियमों में से हैं.
सरकार की सेंसर संस्थाएं हर साल सिर्फ मुट्ठी भर विदेशी फिल्में को देश में रिलीज किए जाने की अनुमति देती हैं और कई बार यह अनुमति कई दृश्य काटने के बाद दी जाती है. इस तरह के व्यवहार का सामने करने वाली ताजा फिल्म है डेविड फिंचर की 1999 की लोकप्रिय क्लासिक "फाइट क्लब", जिसमें ब्रैड पिट और एडवर्ड नॉर्टन मुख्य भूमिका में थे.
कहानी ही बदल दी
बीते सप्ताहांत पर चीन में फिल्म प्रेमियों ने पाया कि स्ट्रीमिंग सेवा टेनसेंट वीडियो पर फिल्म का एक ऐसा संस्करण चल रहा था जिसमें फिल्म के उस अराजकतावादी, पूंजीवाद विरोधी संदेश को ही पूरी तरह से बदल दिया गया है जिसकी वजह से फिल्म पूरी दुनिया में हिट हुई थी.
फिल्म के अंतिम दृश्यों में नॉर्टन का किरदार 'द नैरेटर' अपने काल्पनिक 'ऑल्टर ईगो' टाइलर डरडेन को मार देता है और फिर कई इमारतों में धमाके होते हुए देखता है. सुझाया ये गया है कि आधुनिक सभ्यता को नष्ट करने की उस किरदार की योजना की सफल शुरुआत हो जाती है. डरडेन का किरदार ब्रैड पिट ने निभाया है.
लेकिन चीन में दिखाए जा रहे नए संस्करण में कहानी का अंत अलग है. 'द नैरेटर' डरडेन को मार तो देता है लेकिन इसके इमारतों में विस्फोट के दृश्य की जगह स्क्रीन काली हो जाती है और एक संदेश आता है - "पुलिस ने बड़ी तेजी से पूरी योजना का पता लगा लिया, सभी अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया और बम को फटने से रोक लिया."
संदेश में यह भी जोड़ा गया है कि डरडेन को मनोवैज्ञानिक इलाज के लिए "मानसिक रोगियों के एक एसाइलम" में भेज दिया गया और बाद में वहां से छोड़ दिया गया.
चीन की सेंसर बाधाएं
सरकार की जीत दिखाने वाले इस अंत को देख कर चीन में कई दर्शकों ने अपना सिर खुजा लिया और आक्रोश प्रकट किया. काफी संभावना है कि इनमें से कई ने असली फिल्म के चोरी के संस्करण देख लिए होंगे.
टेनसेंट वीडियो पर एक दर्शक ने लिखा, "यह बहुत ही खराब है." एक और व्यक्ति ने ट्विटर जैसी सेवा वीबो पर लिखा, "टेनसेंट वीडियो पर 'फाइट क्लब' हमें यह बता रही है कि वो सिर्फ दृश्य ही नहीं काटते हैं, बल्कि कथानक में बदलाव भी लाते हैं."
अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि इस वैकल्पिक अंत का सरकारी सेंसरों ने आदेश दिया था या असली फिल्म के निर्माताओं ने ही ये बदलाव किए. टेनसेंट ने इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की.
हॉलीवुड की फिल्म निर्माता कंपनियां अक्सर चीन की सेंसर बाधाओं को पार करने की उम्मीद में वैकल्पिक दृश्य जारी करती हैं. उन्हें उम्मीद रहती है कि ऐसा करके वो अरबों चीनी उपभोक्ताओं तक पहुंच पाएंगी.
"सभ्य और स्वस्थ" माहौल
2019 में भी "बोहेमियन रैप्सडी" फिल्म को चीन में रिलीज करने से पहले उसमें से मशहूर संगीतज्ञ फ्रेड्डी मर्क्युरी की लैंगिकता से जुड़े कई दृश्यों को हटा दिया गया था, जबकि उनकी लैंगिकता उनकी आत्मकथा का बुनियादी हिस्सा है.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल में चीनी सरकारी संस्थाओं ने समाज से ऐसे तत्वों को निकाल बाहर करने के लिए कई कदम उठाए हैं जिन्हें अस्वास्थ्यकर माना जाता है. इनमें फिल्मों, टीवी और कंप्यूटर खेल भी शामिल हैं.
उन्होंने मनोरंजन उद्योग में टैक्स चोरी और कथित अनैतिक व्यवहार के खिलाफ भी कड़े कदम उठाए हैं. इस सिलसिले में देश के सबसे बड़े सेलेब्रिटियों को पहले ही निशाना बनाया जा चुका है.
साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ चीन ने घोषणा की है कि वो लूनर नए साल के अवसर पर इंटरनेट पर एक "सभ्य और स्वस्थ" माहौल बनाने के लिए एक "स्वच्छ" इंटरनेट अभियान शुरू कर रहा है, जो महीने भर चलेगा.
सीके/एए (एएफपी)
जेम्स वेब टेलिस्कोप अंतरिक्ष में उस जगह पहुंच गया है जहां से वह ब्रह्मांड के प्रारंभिक दिनों में आकाशगंगाओं के शुरुआती स्वरूप को देखने की कोशिश करेगा.
दुनिया का सबसे बड़ा, सबसे ताकतवर अंतरिक्ष टेलिस्कोप 'जेम्स वेब' सूर्य की कक्षा स्थित अपनी मंजिल पर पहुंच गया है. धरती से करीब 10 लाख मील दूर सौर कक्षा में यह जगह वेब स्पेस टेलिस्कोप की पार्किंग की जगह है. यहीं से वह ब्रह्मांड के प्रारंभिक दिनों में आकाशगंगाओं के शुरुआती स्वरूप को देखने की कोशिश करेगा.
कहां पहुंचा है टेलिस्कोप?
जेम्स वेब टेलिस्कोप ग्रेविटेशन इक्विलीब्रियम में जिस पॉजिशन पर पहुंचा है, उसे 'सेकेंड सन-अर्थ लगरानियन पॉइंट' (एल2) के नाम से जाना जाता है. इस पॉइंट की खोज 18वीं सदी के गणितज्ञ जोसेफ लूइस लगरांज ने की थी. लगरानियन पॉइंट, अंतरिक्ष की वे जगहें हैं, जहां भेजी गई चीजें स्थिर रहती हैं.
इन बिंदुओं पर दो बड़े पिंडों का गुरुत्वाकर्षण बल ठीक उस अभिकेंद्रीय बल के बराबर होता है, जिसकी किसी पदार्थ को उन पिंडों के साथ बढ़ने के लिए जरूरत होती है. इस संतुलन के चलते वहां भेजी गई चीजें स्थिर रहती हैं. इन बिंदुओं का इस्तेमाल कर दूरबीन अपनी ईंधन की खपत को घटाकर अपनी जगह पर बने रह सकती है.
लोकेशन का फायदा
अब अपनी जगह से वेब टेलिस्कोप एक खास रास्ते का अनुसरण करेगा. यह रास्ता टेलिस्कोप का धरती के साथ लगातार अलाइनमेंट बनाए रखेगा, लेकिन साथ ही इसे धरती की छाया से भी बचाकर रखेगा. इसके चलते वेब टेलिस्कोप को निर्बाध रेडियो संपर्क मिल सकेगा. साथ ही, उसे लगातार सूरज की रोशनी भी मिलती रहेगी.
वेब टेलिस्कोप की तुलना में इसका 30 साल पुराना पूर्ववर्ती 'हबल स्पेस टेलिस्कोप' करीब 547 किलोमीटर की दूरी से पृथ्वी की परिक्रमा करता है. हर 90 मिनट में वह धरती की छाया से गुजरता है. वेब टेलिस्कोप अपने रास्ते पर बना रहे, इसके लिए ग्राउंड टीम को हर तीन हफ्ते बाद एक बार इसमें लगे रॉकेट के 'कोर्स करेक्टिंग थ्रस्ट' को दागना पड़ेगा.
आकाशगंगाओं की शुरुआत देख सकेंगे
वेब टेलिस्कोप अपने आकार और डिजाइन के चलते गैसों और धूल गुबार के पार बहुत दूरी तक चीजें देख सकता है. इसके चलते वह हबल या किसी भी अन्य टेलिस्कोप के मुकाबले समय में और ज्यादा पीछे देख सकता है. इसी के चलते खगोलशास्त्रियों को वेब टेलिस्कोप से बहुत उम्मीदें हैं.
यह हमें बिग बैंग के 10 करोड़ साल बाद के समय में आकाशगंगाओं के शुरुआती स्वरूप दिखा सकता है. माना जाता है कि बिग बैंग वह बिंदु है, जहां से हमारे ज्ञात ब्रह्मांड के विस्तार की प्रक्रिया शुरू हुई.
कब शुरू करेगा काम?
इतना ही नहीं, वेब टेलिस्कोप की क्षमता इसे दूसरे ग्रहों में संभावित जीवन तलाशने के लिए भी आदर्श उपकरण बनाती है. हालांकि वेब टेलिस्कोप को इसकी खगोलीय निरीक्षण की भूमिकाओं के लिए तैयार करने में अभी समय लगेगा. इसके मुख्य दर्पण के 18 हिस्सों को अभी सटीकता से पंक्तिबद्ध किया जाना है.
ग्राउंड टीम को अभी टेलिस्कोप के कई उपकरण भी सक्रिय करने हैं. अगर सब ठीक रहा, तो वेब टेलिस्कोप इस साल की गर्मियां आते-आते निरीक्षण का काम शुरू कर देगा. उम्मीद है कि जून 2022 में नासा इसके द्वारा की गई शुरुआती निगरानियों की जानकारी सार्वजनिक करे.
यह टेलिस्कोप अंतरराष्ट्रीय सहयोग और अलग-अलग अंतरिक्ष एजेंसियों के सम्मिलित काम का नतीजा है. नासा ने यूरोपीय और कनाडा की अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ मिलकर इसका नेतृत्व किया है.
एसएम/ओएसजे (एपी, रॉयटर्स)
भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार के साथ यात्रा को लेकर अब भी गतिरोध ख़त्म नहीं हुआ है, लेकिन पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल ने पाकिस्तान की सरकार के ज़रिए भारत को एक नया प्रस्ताव भेजा है.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू की पहले पन्ने की लीड ख़बर के अनुसार, पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल ने हिन्दू, मुसलमान और सिख तीर्थयात्रियों को हवाई सेवा के ज़रिए आने देने का प्रस्ताव रखा है.
अख़बार की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग ने पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल के अध्यक्ष रमेश वाल्मीकि के इस प्रस्ताव को भारत के विदेश मंत्रालय के पास भेजा है.
रमेश वंकवानी ने पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (पीआईए) के चार्टर्ड प्लेन से लाहौर और कराची के तीर्थयात्रियों को भारत में आने देने की अनुमति मांगी है.
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल का यह प्रस्ताव सोमवार को मिला है और अभी इसे कई स्तरों पर मंज़ूरी मिलनी बाक़ी है. भारत के विदेश मंत्रालय का इस प्रस्ताव पर क्या रुख़ होगा, अभी तक इस बारे में कुछ कहा नहीं गया है. डायरेक्टरेट जनरल ऑफ़ सिविल एविएशन (डीजीसीए) के एक सीनियर अधिकारी ने अख़बार से कहा है कि अभी तक उन्हें एयरलाइन से कोई अनुरोध नहीं मिला है.
भारत के अधिकारियों ने यह भी कहा कि पिछले साल नवंबर में पाकिस्तान ने श्रीनगर-शारजाह फ़्लाइट को अपने हवाई क्षेत्र से गुज़रने की अनुमति नहीं दी थी. इसके अलावा भारत ने पीआईए के प्लेन को दिसंबर में भारतीय तीर्थयात्रियों को ले जाने की अनुमति नहीं दी थी. अधिकारियों का कहना है कि इस प्रस्ताव पर दोनों देशों की ओर से राजनीतिक पहल की ज़रूरत है.
अगर पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल के प्रस्ताव को भारत सरकार स्वीकार कर लेती है तो 2019 में दोनों देशों के बीच हवाई सेवा निलंबित होने के बाद पहली पीआईए फ़्लाइट भारत आएगी और ये 1947 के बाद दोनों तरफ़ से तीर्थयात्रियों को ले जाने वाली पहली फ़्लाइट होगी. अभी दोनों देशों के तीर्थयात्रियों के समूह 1974 के प्रोटोकॉल एक्सचेंज एग्रीमेंट के तहत वाघा-अटारी बॉर्डर से रोड के ज़रिए जाते हैं.
दिसंबर, 2021 में पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल ने पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस के साथ क़रीब 170 तीर्थयात्रियों के तीर्थाटन को लेकर समझौता किया था. 170 तीर्थयात्रियों में ज़्यादातर मुसलमान और 20 हिन्दू तीर्थयात्री हैं.
पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल ने 'धार्मिक तीर्थाटन' कार्यक्रम के तहत हाल के दिनों में कई क़दम उठाए हैं. पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल ने ब्रिटेन, यूएई, स्पेन और अन्य देशों के हिन्दू समूहों को पिछले कुछ हफ़्तों में पीएआईए चार्टर प्लेन के ज़रिए ख़ैबर पख़्तूनख़्वा के परमहंस महाराज मंदिर में दर्शन कराया था. भारतीय तीर्थयात्री वाघा-अटारी बॉर्डर पार होकर लाहौर से पेशावर जाते हैं.
रमेश वंकवानी ने द हिन्दू को टेलिफ़ोन इंटरव्यू में कहा, ''मैं इस तरह की आपसी यात्राओं को लेकर बहुत ही आशान्वित हूँ. पाकिस्तान के लोग अजमेर शरीफ़, निज़ामुद्दीन औलिया दरगाह और अन्य धार्मिक स्थानों पर जाने की इच्छा रखते हैं. इस तरह की पहली उड़ान में मैं ख़ुद भी आना चाहता हूँ. तीर्थयात्री इस तरह की चार्टर्ड फ़्लाइट को लेकर बहुत ही उत्साहित हैं और हमें कई तरह के अनुरोध मिले हैं.''
पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल के प्रोग्राम के अनुसार, तीर्थयात्री 29 जनवरी से एक फ़रवरी तक भारत भ्रमण करेंगे. इनमें जयपुर, अजमेर, दिल्ली, आगरा और हरिद्वार शामिल हैं. रमेश वाल्मीकि इमरान ख़ान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ़ के सांसद हैं.
उन्होंने कहा कि इसे लेकर उन्होंने पाकिस्तान के अधिकारियों से बात की है. रमेश वंकवानी ने कहा कि अगर दोनों देशों से हरी झंडी मिल जाती है तो भारत के हिन्दू तीर्थयात्री पेशावर के परमहंस मंदिर और कराची के हिंगलाज माता मंदिर आ सकते हैं. इससे पहले इंडियन एयरलाइंस ने आख़िरी बार 2008 मार्च में पाकिस्तान के लिए उड़ान भरी थी.
रमेश वंकवानी ने द हिन्दू से कहा, ''इस गतिरोध को तोड़ने की ज़रूरत है. हम इस गतिरोध को तीर्थाटन के ज़रिए तोड़ना चाहते हैं. दोनों देशों के लोगों की आवाजाही के बाद सामान्य यात्राएं और कारोबार भी शुरू हो सकेंगे.'' (bbc.com)
ब्रिटेन की कंजरवेटिव पार्टी मुश्किल दौर में है. प्रधानमंत्री जॉनसन की लॉकडाउन पार्टियों पर जांच चल रही है. अब एक पूर्व महिला मंत्री ने आरोप लगाया है कि इस्लाम में विश्वास रखने की वजह से उन्हें मंत्री पद से हटाया गया.
ब्रिटेन की पूर्व यातायात उप मंत्री नुसरत गनी ने दावा किया है कि मुसलमान होने की वजह से उन्हें साल 2020 में मंत्रीपद से हटाया गया था. कंजरवेटिव पार्टी की सांसद गनी का दावा है, "मुझे सरकारी व्हिप ने कहा था कि मेरा इस्लामिक रवैया बाकी सहयोगियों को असहज महसूस करा रहा है. ऐसी भी चिंता थी कि मैं पार्टी के प्रति वफादार नहीं थी और मैंने इस्लामोफोबिया (इस्लाम से भय) जैसे आरोपों से पार्टी को बचाने के लिए पर्याप्त काम नहीं किया."
गनी ने कहा कि "मुझे ये बिल्कुल साफ हो गया था नंबर 10 (ब्रिटिश प्रधानमंत्री का दफ्तर- 10 डाउनिंग स्ट्रीट) और व्हिपों ने मेरी पृष्ठभूमि और आस्था की वजह से बाकियों के मुकाबले मेरे लिए वफादारी के ऊंचे पैमाने रखे थे."
गनी के इस दावे से ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के लिए मुश्किलें और बढ़ गई हैं. कोविड नियमों के खिलाफ घर में पार्टियां आयोजित करने के लिए कड़ी आलोचना झेल रहे बोरिस जॉनसन ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि गनी ने साल 2020 में प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी. प्रधानमंत्री ने आधिकारिक रुप से शिकायत करने के लिए कहा था. लेकिन तब गनी ने शिकायत दर्ज नहीं कराई. इस पर गनी का कहना है कि प्रधानमंत्री ने कंजरवेटिव पार्टी की आंतरिक प्रक्रिया की मदद लेने की बात कही थी. गनी के मुताबिक, ये सरकार से जुड़ा मामला था, जिसे पार्टी के पास ले जाने का कोई तुक नहीं था. उन्होंने कहा, "मैं बस इतना चाहती थी कि इस मामले को उनकी सरकार गंभीरता से ले, सही तरह से जांच हो और सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी अन्य सहयोगी को ये ना सहना पड़े."
पार्टी व्हिप का पक्ष
सरकार के चीफ व्हिप मार्क स्पेंसर ने खुद पहचान जाहिर करते हुए बताया कि "सांसद नुसरत गनी ने मेरा ही जिक्र किया है. लेकिन उनके लगाए आरोप झूठे हैं और मानहानि करने वाले हैं. जो बातें नुसरत बोल रही हैं, वो मैंने कभी नहीं कही. ये निराशाजनक है कि जब इस बारे में गनी से बात हुई थी तो उन्होंने कंजरवेटिव पार्टी में आधिकारिक जांच के लिए मामला आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया था." कंजरवेटिव पार्टी ने एक बयान में कहा है कि वो किसी भी तरह के नस्लभेद या भेदभाव के खिलाफ हैं.
गनी के समर्थन में कई मंत्री और नेता
कंजरवेटिव पार्टी के कई सांसदों ने गनी का समर्थन किया है. इनमें शिक्षा मंत्री नदीम जहाबी ने कहा है कि मामले की विस्तृत जांच होनी चाहिए. संसद की महिला एवं समता समिति की अध्यक्ष कैरोलिन नोक्स और स्वास्थ्य मंत्री साजिद जावेद भी गनी के समर्थन में हैं.
गनी 2015 में वीलडन क्षेत्र से संसद के लिए चुनी गई थीं. 2018 में उन्हें उप मंत्री बनाया गया था. तब देश की प्रधानमंत्री थेरेसा मे थीं. उस वक्त कैबिनेट में यातायात मंत्री रहे क्रिस ग्रेलिंग ने गनी के चुने जाने को कंजरवेटिव पार्टी की सफलता बताया था. कहा था कि कंजरवेटिव पार्टी ऐसी पार्टी है जहां मौके मिलते हैं. लेकिन कुछ आलोचक पार्टी को प्रधानमंत्री जॉनसन के कार्यकाल में मुस्लिम-विरोधी पूर्वाग्रह रखने वाला बताते हैं. जॉनसन खुद 2018 में हिजाब के तुलना डाक के डिब्बे से कर चुके हैं.
कंजरवेटिव पार्टी आपस में उलझी
गनी से पहले कंजरवेटिव पार्टी के ही एक अन्य सांसद विलियम राग ने पार्टी व्हिपों पर सांसदों को सरकार का समर्थन करते रहने के लिए धमाकाने का आरोप लगाया है. राग ने कहा कि वो इस मामले में जल्द ही पुलिस से मिलेंगे. बीते कुछ हफ्तों में कंजरवेटिव पार्टी की अंदरूनी दरारें खुलकर सामने आ चुकी हैं. कोविड के दौरान पार्टियां आयोजित करने के बाद कंजरवेटिव पार्टी के कुछ नेताओं ने जॉनसन से इस्तीफे की मांग की है. जॉनसन की पार्टियों की जांच के लिए एक वरिष्ठ नौकरशाह सू ग्रे को नियुक्त किया गया है. अगले हफ्ते तक इस जांच की रिपोर्ट आने की उम्मीद है. अगर इसमें कुछ भी जॉनसन के विरुद्ध पाया जाता है तो उनके इस्तीफे की मांग और तीखी हो सकती है. मामला यहां तक भी बढ़ सकता है कि जॉनसन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आ जाए और उन्हें पद छोड़ना पड़े. नुसरत गनी के मामले में जरूरी कार्रवाई करने भी जॉनसन के लिए चुनौती होगी.
आरएस/ओएसजे (एएफपी, रॉयटर्स)
एक नए सर्वेक्षण में सामने आया है कि जनवरी में ओमिक्रॉन के असर से यूरोजोन में आ रही बेहतरी कमजोर पड़ गई. संकेत मिल रहा है कि जर्मनी की शक्ति के बिना यूरोजोन और लुढ़क सकता था.
कुल मिला कर अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के अच्छे परिचायक के रूप में माने जाने वाले परचेसिंग मैनेजर्स इंडेक्स में दिसंबर के मुकाबले करीब एक प्रतिशत की गिरावट आई. इंडेक्स दिसंबर में 53.3 पर था जबकि जनवरी में वो गिर कर 52.4 पर पहुंच गया. यह पिछली फरवरी की बाद सबसे कम है.
इस पर सबसे ज्यादा असर सेवा क्षेत्र का पड़ा, जो नौ महीनों में सबसे नीचे के स्तर पर गिर गया. बीते कई हफ्तों से कोरोना वायरस का ओमिक्रॉन वेरिएंट यूरोप के कई देशों में फैल रहा है और इसके प्रसार को देखते हुए सभी देशों की सरकारें नागरिकों को घर पर रहने की सलाह दे रही हैं. इसके अलावा बढ़ती महंगाई ने वैसे भी लोगों को खर्च करने से रोका हुआ है.
हावी रही महंगाई
उपभोक्ताओं के घर पर रहने से सेवाओं की मांग में बढ़त लगभग खत्म ही हो गई. नए कारोबार का सूचकांक पिछली अप्रैल के बाद सबसे नीचे स्तर पर पहुंच गया. ऐसा जर्मनी में आर्थिक बेहतरी के बावजूद देखा गया. जर्मनी में सप्लाई चेन की समस्याओं के कम होने से फैक्ट्रियां को फायदा मिला.
लेकिन फ्रांस में भी कोविड-19 और महंगाई का आर्थिक गतिविधियों पर असर रहा और कारोबार में पूर्वानुमान से ज्यादा गिरावट देखने को मिली. यह इस बात का संकेत है कि जर्मनी की शक्ति के बिना यूरोजोन और लुढ़क सकता था.
ब्रिटेन में व्यापारिक गतिविधि 11 महीनों में सबसे नीचे के स्तर पर चली गई लेकिन चीजों के दाम बढ़े, जिसकी वजह से अंदाजा लगाया जा रहा है कि बैंक ऑफ इंग्लैंड अगले सप्ताह ब्याज दरें बढ़ाएगा.
बढ़ा रोजगार
जापान में फैक्ट्री गतिविधि चार सालों में सबसे तेज गति पर बढ़ी लेकिन निजी क्षेत्र में गतिविधि चार महीनों में पहली बार घट गई. वहां भी कोरोनावायरस के मामलों के बढ़ने से सेवा उद्योग को झटका लगा.
उपभोक्ताओं पर बढ़ते दामों की भी मार पड़ी. दाम नवंबर जितने ऊंचे स्तर पर रहे. पिछले महीने महंगाई ने एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया था. संभव है कि इससे यूरोपीय केंद्रीय बैंक पर नीतियों को और सख्त करने का दबाव बढ़ रहा हो.
हालांकि प्रतिबंधों का फैक्ट्रियों पर कम असर पड़ा है और अधिकांश खुली ही रही हैं. यूरोजोन का उत्पादन सूचकांक पांच महीनों में सबसे ऊंचे स्तर 59.0 पर पहुंच गया. मांग बढ़ रही है और इसे पूरा करने के लिए फैक्ट्रियों ने तेजी से नौकरियां दी हैं. रोजगार सूचकांक 55.3 से 57.5 पर पहुंच गया जो जुलाई के बाद सबसे ऊंचा स्तर है.
सीके/एए (रॉयटर्स)
स्थानीय राजनीति, पुलिस और ड्रग्स गिरोहों की सांठगांठ पर रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के मारे जाने या उन पर हमले होने का जोखिम सबसे ज्यादा होता है. पत्रकारों की हत्या के बीच मेक्सिको में पुलिस पर ऐसे आरोप लग रहे हैं.
23 जनवरी को मेक्सिको में फिर से एक पत्रकार की हत्या कर दी गई. एक हफ्ते के भीतर यहां किसी पत्रकार की हत्या का यह दूसरा मामला है. यह वारदात उत्तरी मेक्सिको के सीमांत शहर तिखुआना में हुई. प्रशासन द्वारा जारी बयान के मुताबिक, पत्रकार लुरडेस मालडोनाडो लोपेज अपनी कार में थीं, जब बंदूक से उन पर हमला किया गया. लुरडेस 'प्रीमियर सिसटेमा डे नोटिसियास' (पीएसएन) समेत कई मीडिया संस्थानों के साथ काम कर चुकी थीं. पीएसएन के मालिक जेमी बोनिल्ला 2019 से 2021 तक 'बाजा कैलिफॉर्निया' के गवर्नर रह चुके हैं.
सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल
लुरडेस ने कुछ ही दिन पहले पीएसएन के खिलाफ एक मुकदमा जीता था. करीब नौ साल से वह पीएसएन के खिलाफ अनुचित तरीके से उन्हें नौकरी से निकालने का केस लड़ रही थीं. लुडरेस के मारे जाने की खबर सामने आने के बाद मेक्सिको में सोशल मीडिया पर उनका एक वीडियो सामने आया. यह वीडियो लगभग दो साल पुराना बताया जा रहा है.
इसमें लुरडेस अपनी जिंदगी पर खतरा बताकर मेक्सिको के राष्ट्रपति आंद्रेज मैनुअल लोपेज ओब्रादोर से मदद और न्याय की अपील कर रही हैं. यह वीडियो ओब्रादोर की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बनाया गया था. इसमें लुरडेस पीएसएन के मालिक और तत्कालीन गवर्नर जेमी बोनिल्ला के बारे में कहती हैं, "मैं छह साल से उनके साथ मुकदमा लड़ रही हूं."
'दी कमिटी टू प्रॉटेक्ट जर्नलिस्ट्स' नाम के एक गैर-सरकारी संगठन ने एक ट्वीट में लिखा, "लुरडेस मालडोनाडो की हत्या से हम सदमे में हैं. एक हफ्ते से भी कम समय में टिवाना शहर के भीतर यह दूसरे पत्रकार की हत्या है." संगठन ने प्रशासन से इस मामले की विस्तृत और पारदर्शी जांच करने की अपील की. मेक्सिको में इस संगठन के प्रतिनिधि जैन अल्बर्ट हूटसन ने कहा, "महज दो हफ्ते के भीतर मेक्सिको में पत्रकारों पर चार क्रूर हमले हो चुके हैं. मैं सदमे में हूं और डरा हुआ हूं."
जान का खतरा था, सुरक्षा भी मांगी थी
इससे पहले 17 जनवरी को फोटोजर्नलिस्ट अल्फांसो मार्गरिटो मार्टिनेज को तिखुआना शहर में उनके घर के नजदीक मृत पाया गया. मार्गरिटो 49 साल के थे. करीब दो दशकों से अपराध से जुड़ी खबरों पर काम कर रहे थे. उन्होंने कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों के लिए काम किया था. मार्गरिटो के सिर में गोली मारकर उनकी हत्या की गई थी.
उनकी हत्या के बाद एक स्थानीय पत्रिका के संपादक अडेला नावारो ने 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' से कहा था, "मार्गरिटो क्राइम की खबरें करते थे. अपने काम के चलते अकसर उन्हें पुलिस के साथ दिक्कत होती थी." 2019 में पुलिस ने मार्गरिटो के उपकरण जब्त करने की कोशिश भी की थी. सहकर्मियों का कहना था कि मार्गरिटो को स्थानीय अपराधी गुटों से खतरा था. कई बार उन्हें धमकियां मिली थीं. उन्हें डर था कि उनकी जान ली जा सकती है. इसके चलते उन्होंने प्रशासन से सुरक्षा भी मांगी थी, लेकिन उनके आग्रह पर अमल नहीं किया गया.
चाकू मारकर हत्या
10 जनवरी को वेराक्रूज शहर में होसे लूइस गामबोआ नाम के एक पत्रकार और एक्टिविस्ट की भी हत्या हुई थी. उनके शरीर पर चाकू से कई बार वार किया गया था. गामबोआ का शरीर सड़क पर पड़ा रहा. करीब चार दिन बाद जानकर शव की पहचान हो सकी. गामबोआ की हत्या क्यों हुई, क्या उनके काम की वजह से उन्हें निशाना बनाया गया, अभी यह पता नहीं चल सका है.
पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में मेक्सिको के हालात काफी खराब हैं. यह पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों में गिना जाता है.'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स'के मुताबिक, 2021 में यहां कम-से-कम सात पत्रकारों की हत्या हुई. कई मीडिया खबरों में यह संख्या नौ बताई गई. आरएसएफ द्वारा जारी किए गए 2021 के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम सूचकांक में 180 देशों की सूची में मेक्सिको को 143वें नंबर पर रखा गया था.
पत्रकारों की हत्या पर कोई सख्ती नहीं
मेक्सिको में पुलिस पर अपराधिक गिरोहों और ड्रग कार्टल से सांठगांठ के आरोप लगते हैं. इल्जाम है कि गिरोहों के अलावा भ्रष्ट पुलिसकर्मी भी पत्रकारों को निशाना बनाते हैं. पत्रकारों की हत्याओं पर होने वाली जांच पर भी लीपापोती के इल्जाम लगते आए हैं. राजनैतिक और प्राशासनिक नेतृत्व में भी पत्रकारों की हत्याओं को रोकने और ऐसे मामलों पर सख्त कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति नहीं दिखती है. यही वजह है कि ज्यादातर मामलों में दोषी कभी पकड़े ही नहीं जाते.
जानकारों के मुताबिक, स्थानीय राजनीति, पुलिस और ड्रग्स गिरोहों की सांठगांठ पर रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के मारे जाने या उन पर हमले होने का जोखिम सबसे ज्यादा होता है. मेक्सिको में कानून-व्यवस्था की स्थिति आमतौर पर भी काफी खराब है. यहां हत्याओं का ग्राफ काफी ऊपर है. 2018 में यहां 36,685 हत्याएं दर्ज की गईं. 2019 में यह संख्या 36,661 थी. 2020 में होमिसाइड के 36,773 मामले दर्ज किए गए थे.
एसएम/आरएस (एएफपी)
नाटो ने बड़ी संख्या में फौज, युद्धपोत और लड़ाकू विमान रूस के आस पास तैनात करने शुरू कर दिए हैं. असफल बातचीत के बाद रूस और अमेरिका करीब 30 साल बाद इतने बड़े सैन्य तनाव से गुजर रहे हैं.
यूक्रेन संकट से शुरू हुआ रूस और पश्चिमी देशों का विवाद और गंभीर होता जा रहा है. रूस ने एलान किया है कि वह अगले महीने आयरलैंड के पास समुद्र में सैन्य अभ्यास करेगा. आयरलैंड ने रूस को चेतावनी देते हुए कहा है कि ऐसे सैन्य अभ्यास का स्वागत नहीं किया जाएगा.
बातचीत और कूटनीति के सहारे तनाव कम करने कोशिशें नाकाम होने के बाद अब नाटो ने भी बड़ी संख्या में रूस के आस पास पूर्वी यूरोप में सैन्य तैनाती शुरू कर दी है. अमेरिका की अगुवाई वाले नाटो का कहना है कि युद्ध भड़काने वाली किसी भी कार्रवाई को रोकने के इरादे से यह किया जा रहा है.
नाटो का सदस्य देश, डेनमार्क अपने लड़ाकू नौसैनिक जहाज और एफ-16 फाइटर जेट लिथुएनिया भेज रहा है. स्पेन भी अपने वॉरशिप बाल्टिक सागर में भेज रहा है. यह संभावना भी है कि स्पेन अपने लड़ाकू विमान बुल्गारिया भेज सकता है. फ्रांस का कहना है कि वह भी अपनी सेना बुल्गारिया भेजने के लिए तैयार है. नीदरलैंड्स ने भी अपने फौज और नौसेना को स्टैंडबाइ में रखा है.
नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग के मुताबिक, नाटो "अपने सभी साझेदारों की सुरक्षा और उनके बचाव के लिए सारे जरूरी कदम उठाएगा.
नाटो के अहम सदस्य ब्रिटेन ने रूस को चेतावनी देते हुए कहा कि यूक्रेन में घुसने की कोशिश एक विध्वंसक कदम होगी. ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने फौज को यूक्रेन भेजने से इनकार किया लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा, यूक्रेन में घुसना रूस के लिए "दर्दनाक, हिंसक और खून खराबे वाला सौदा होगा."
रूस ने कहा, ये तैनाती भड़काऊ
नाटो की तैनाती के बाद रूस की तरफ से भी कड़ी प्रतिक्रिया आई है. रूसी सरकार ने अमेरिका और नाटो पर तनाव भड़काने का आरोप लगाया है. रूसी राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता दिमित्री पेशकोव ने कहा कि मॉस्को समर्थक अलगाववादियों पर यूक्रेनी सेना के हमले का जोखिम बहुत ज्यादा है. रूस सरकार का कहना है कि यूक्रेनी सेना 2014 की तरह ही रूस समर्थक अलगाववादियों से लड़ने की योजना बना रही है. 2014 में इसी तर्क का हवाला देते हुए रूस ने क्रीमिया पर हमला कर उसे अपने नियंत्रण में ले लिया. मॉस्को कई बार कह चुका है कि अगर यूक्रेनी सेना ने रूस समर्थक अलगाववादियों पर कार्रवाई की तो अंजाम बुरा हो सकता है.
असमंजस में यूरोपीय संघ
नाटो की सैन्य तैनाती के एलान में यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों के लिए भी एक संदेश है. बैठक की अध्यक्षता कर रहे यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल का कहना है, ''हम यूक्रेन की स्थिति को लेकर एक अभूतपूर्व एकता का प्रदर्श कर रहे हैं.'' तनाव के इस दौर में यूरोपीय संघ ने यूक्रेन को 1.2 अरब यूरो की आर्थिक मदद भी दी है.
बोरेल से जब यह पूछा गया कि क्या यूरोपीय संघ के देश यूक्रेन स्थित अपने दूतावासों में तैनात कर्मचारियों के परिवारों को वापस बुलाएंगे? इसके जवाब में बोरेल ने कहा, "हम बिल्कुल उसी तरह का कदम नहीं उठाएंगे." अमेरिका और ब्रिटेन यूक्रेन से अपने दूतावासकर्मियों के परिवारों को वापस बुला चुके हैं.
नाटो के कई सदस्य देश अमेरिका को फॉलो करने के साफ संकेत दे रहे हैं. लेकिन यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश जर्मनी असमंजस में है. तमाम उतार चढ़ावों के बीच जर्मनी और रूस संबंध दोस्ताना हैं. एकीकरण से पहले पश्चिमी जर्मनी पश्चिमी देशों के साथ था तो पूर्वी जर्मनी सोवियत संघ के साथ. रूस के मौजूदा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन खुद पूर्वी जर्मनी में सोवियत खुफिया एजेंसी केजीबी के एजेंट रह चुके हैं. जर्मनी रूसी गैस का बड़ा खरीदार भी है.
जर्मनी पर दबाव क्यों
एक लाख से ज्यादा रूसी सैनिकों के यूक्रेन को तीन तरफ से घेरने के बाद जर्मनी दबाव में है. द्वितीय विश्वयुद्ध के तथ्य और उसके बाद जर्मनी का दो भागों में बंटना, बर्लिन के लिए इन स्मृतियों को भुलाना आसान नहीं है. जर्मन नेता जानते हैं कि अगर युद्ध भड़का तो जर्मनी भी उसकी आंच से नहीं बच सकेगा. जर्मनी में हाल ही सत्ता में आई नई सरकार के लिए भी यह परिस्थितियां इम्तिहान लेने वाली हैं. 16 साल तक देश की कमान संभालने वाली अंगेला मैर्केल के राजनीतिक संन्यास के बाद नए चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के लिए इन जटिलताओं को हल करना आसान नहीं है.
यूक्रेन संकट ने जर्मनी को साझेदार बनाम पड़ोसी की लड़ाई में ला खड़ा किया है. इसकी बानगी पिछले हफ्ते भी देखने को मिली जब जर्मनी के नौसेना प्रमुख वाइस एडमिरल काय आखिम शोनबाख को पुतिन संबंधी बयान के लिए इस्तीफा देना पड़ा. भारत यात्रा के दौरान शोनबाख ने कहा कि पुतिन "सिर्फ सम्मान चाहते हैं." नौसेना प्रमुख का यह बयान वायरल हो गया और रक्षा मंत्रालय ने फौरन उनका त्याग पत्र स्वीकार कर लिया.
जर्मनी की नई विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक यूक्रेन और मॉस्को का दौरा भी कर चुकी हैं. बढ़ते तनाव के बीच बेयरबॉक ने कहा है, "हमें हालात को और बुरा बनाने में हिस्सा नहीं लेना चाहिए. हमें पूरी तरह यूक्रेन की सरकार को समर्थन देने की जरूरत है और इन सबके ऊपर देश में स्थिरता बनाए रखने की जरूरत है."
नाटो फौजों की तैनाती के बीच यूक्रेन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ओलेग निकोलेंको ने अमेरिकी कदमों को जल्दबाजी बताया है. निकोलेंको ने कहा, रूस यूक्रेन को अस्थिर करने के लिए यूक्रेनी जनता और विदेशियों के भीतर भय का माहौल बनाना चाहता है. गंभीर होते तनाव के बीच फ्रांस की सरकार ने अपने नागरिकों से कहा है कि अगर जरूरी न हो तो वे यूक्रेन जाने से बचें.
ओएसजे/आरपी (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन कैमरा पर एक पत्रकार को "स्टुपिड सन ऑफ अ बिच" कहते हुए पकड़े गए हैं. इसे लेकर बाइडेन के मीडिया के प्रति व्यवहार को लेकर सवाल उठ रहे हैं.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
सोमवार 24 जनवरी को ऐसा उस समय हुआ जब व्हाइट हाउस में आयोजित एक फोटो ऑप के बाद सभी पत्रकार बस जा ही रहे थे. फॉक्स न्यूज के पत्रकार पीटर डूसी ने जाते जाते बाइडेन से महंगाई पर एक सवाल पूछ लिया जिसका जवाब राष्ट्रपति ने कटाक्ष में दिया और उसके बाद दबी आवाज में पत्रकार को गाली भी दे दी.
डूसी ने पूछा था, "क्या आप महंगाई पर सवाल लेंगे. क्या आपको लगता है कि मध्यावधि चुनावों से पहले महंगाई आप के लिए राजनीतिक रूप से एक बोझ है?" बाइडेन ने जवाब में कहा, "नहीं, ये एक फायदे की चीज है. और ज्यादा महंगाई होनी चाहिए."
गाली से नहीं इंकार
सोशल मीडिया पर मौजूद एक वीडियो में बाइडेन यह कहने के तुरंत बाद सवाल पूछने वाले पत्रकार को "स्टुपिड सन ऑफ अ बिच" भी कहते हुए नजर आते हैं.
बाइडेन के साथ इससे पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन अक्सर व्हाइट हाउस के अधिकारी या तो उनकी टिप्पणी के बारे में समझाने या उसका खंडन करने के लिए आगे आते हैं.
लेकिन इस बार ना सिर्फ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बल्कि कार्यक्रम के बाद व्हाइट हाउस ने जो लिखित प्रतिलिपि जारी की उसमें गाली समेत बाइडेन की पूरी टिप्पणी मौजूद है.
इसका मतलब एक अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा पत्रकार को दी गई गाली अब इतिहास के लिए व्हाइट हाउस के आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज हो चुकी है. न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार की व्हाइट हाउस संवाददाता केटी रोजर्स ने प्रतलिपि के इस अंश की एक तस्वीर ट्वीट की.
अमेरिका में महंगाई इस समय चालीस सालों में सबसे ऊंचे स्थान पर है और इस वजह से बाइडेन की अप्रूवल रेटिंग को नुकसान पहुंचा है. डूसी का नेटवर्क बाइडेन की लगातार आलोचना करता आया है.
बाइडेन का व्यवहार
डूसी फॉक्स न्यूज के लिए काम करते हैं, जिसे विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी का पसंदीदा समाचार चैनल माना जाता है. डूसी ने बाद में अपने ही चैनल पर कहा कि बाइडेन ने बाद में उन्हें फोन भी किया और कहा, "इसे व्यक्तिगत तौर पर मत लेना दोस्त."
बाइडेन ने इससे पहले भी यह दिखाने की कोशिश की है फॉक्स न्यूज और डूसी जैसे जिन मीडिया संगठनों और
पत्रकारों को वो उनके प्रति ज्यादा आलोचनात्मक समझते हैं उन्हें चुनौती देने में उन्हें कोई झिझक नहीं है.
पिछले सप्ताह की अपनी समाचार वार्ता में बाइडेन ने डूसी पर कटाक्ष करते हुए कहा था, "तुम हमेशा मुझसे सबसे ज्यादा सुहावने सवाल पूछते हो." पत्रकार ने जवाब दिया था, "मेरे पास एक पूरी फाइल इनसे भरी हुई है." बाइडेन ने कहा था, "मुझे यह मालूम है. उनमें से कोई भी मुझे समझदार सवाल नहीं लगता है. पूछना शुरू करो."
(एपी, एएफपी से जानकारी के साथ)
कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के आने के बाद धनी देशों ने गरीब देशों से नर्सों की भर्ती को तेज कर दिया है. अंतरराष्ट्रीय संगठनों का कहना है कि यह चलन गरीब देशों को भारी पड़ रहा है.
कनाडा के टोरंटो में पिछले एक साल से अस्पताल के इमरजेंसी विभाग में काम कर रहीं एमी एरहार्ट ने पिछले हफ्ते नौकरी छोड़ दी. वह अस्थायी नौकरी करने अमेरिका के फ्लोरिडा जा रही हैं, जिसके बाद उनकी अन्य योजनाएं हैं.
एरहार्ट बताती हैं, "हम हर वक्त बुरी तरह थके रहते हैं. मैं अपने सहकर्मियों को याद तो करूंगी लेकिन काम के हालात बेहतर होते तो मैं रुक जाती.”
कोविड महामारी ने अमीर और गरीब सभी देशों में स्वास्थ्यकर्मियों की भयानक परीक्षा ली है. इसलिए लगभग सभी देश स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से जूझ रहे हैं. हालत ऐसी है कि अस्पताल अपने कर्मचारियों की छुट्टियों पर ना जाने और ज्यादा देर काम करने की गुजारिश करते रहते हैं, जो पिछले दो साल से चल रहा है. इस परेशानी का हल धनी देशों ने गरीब देशों में खोजा है.
इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज (ICN) ने कहा है कि धनी देश बड़ी संख्या में गरीब देशों से नर्सों को भर्ती कर रहे हैं जिसका असर गरीब देशों की स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ रहा है जहां स्वास्थ्यकर्मी पहले ही काम के बोझ की अति से जूझ रहे हैं. ओमिक्रॉन वेरिएंट के कारण संक्रमण के मामलों में उफान आने के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से जूझ रही है.
जेनेवा स्थित इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज 130 देशों के राष्ट्रीय संगठनों का प्रतिनिधित्व करता है जिनमें 2.7 करोड़ से ज्यादा सदस्य हैं. संगठन के सीईओ हॉवर्ड कैटन ने कहा कि बीमारी, काम के बोझ और स्वास्थ्यकर्मियों के देश छोड़कर चले जाने के कारण ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के बीच इतनी ज्यादा संख्या में नर्सें काम से गैरहाजिर हैं, जितना दो साल की महामारी के दौरान पहले कभी नहीं देखा गया.
स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी
धनी देशों में भी स्वास्थ्यकर्मियों की कमी देखी जा रही है जिसे पूरा करने के लिए ये देश स्वयंसेवियों और सेवानिवृत्त कर्मियों का रुख कर रहे हैं. लेकिन कैटन कहते हैं कि बहुत से देशों ने अंतरराष्ट्रीय भर्तियां भी तेज कर दी हैं जिसके कारण असमानता बढ़ रही है.
कैटन ने कोविड-19 के दौरान अंतरराष्ट्रीय नर्सों की स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार की है. इस बारे में उन्होंने कहा, "हमने यूके, जर्मनी, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में अंतरराष्ट्रीय भर्तियों में उछाल देखा है. मुझे यह रफू करने वाला हल लगता है. ऐसा ही हमने पीपीई किट और वैक्सीन के मामले में भी देखा था जबकि अमीर देशों ने अपनी ताकत के बल पर खरीदने और जमा करने का काम किया था. अगर वे नर्सों के साथ भी वैसा ही करते हैं तो यह असमानता को बदतर बनाएगा.”
आईसीएन के आंकड़ों के मुताबिक महामारी के आने से पहले भी दुनिया में कम से कम 60 लाख नर्सों की कमी थी और इस कमी का 90 प्रतिशत शिकार गरीब और मध्य आय वाले देश थे. धनी देशों ने हाल ही में जो भर्तियां की हैं, वे ज्यादातर नाइजीरिया, कैरेबिया और अन्य अफ्रीकी क्षेत्रों से हुई हैं. कैटन कहते हैं कि ज्यादा तन्ख्वाह और बेहतर परिस्थितियां इन नर्सों को अपना देश छोड़कर विदेश जाने को प्रोत्साहित कर रही हैं.
बड़े निवेश की जरूरत
आईसीएन की रिपोर्ट कहती है कि नर्सों को इमिग्रेशन में प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे इस प्रक्रिया को और तेजी मिली है. कैटन कहते हैं, "कुल जमा बात यह है कि कुछ लोग इस पूरी प्रक्रिया को देखेंगे और कहेंगे कि अमीर देश नई नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों को शिक्षित और प्रशिक्षित करने का खर्च बचा रहे हैं.”
कैटन यह चेतावनी भी देते हैं कि दुनिया जिस तरह स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से जूझ रही है, अंततः अमीर देशों को भी नुकसान झेलने पड़ेंगे. वह कहते हैं कि कार्यबल को बढ़ाने के लिए दस वर्षीय योजना और बड़े निवेश की जरूरत है. कैटन ने कहा, "हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक संयोजित, सहयोगी और केंद्रित प्रयास की जरूरत है ना कि सिर्फ तालियों और गर्मजोशी भरे शब्दों की.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
जर्मनी की हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी में एक बंदूकधारी ने गोलियां चलाकर कई लोगों को घायल किया. पुलिस के मुताबिक गोलियां चलाने वाला हमलावर मारा गया है.
फायरिंग कांड सोमवार को हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी के कैंपस में मौजूद नॉएनहाइमर फेल्ड एरिया में हुआ. दक्षिण पश्चिमी जर्मन शहर मानहाइम की पुलिस ने एक बयान जारी कर कहा, "एक लंबी बंदूक के जरिए एक लेक्चर हॉल में एक अकेले हमलावर ने कई लोगों को घायल कर दिया. हमलावर मारा गया है."
पुलिस ने यह जानकारी नहीं दी है कि कितने लोग घायल हुए हैं और हमलावर कौन था. यूनिवर्सिटी के प्रेस विभाग ने भी वारदात पर कोई टिप्पणी करने से इनकार किया है. जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए ने एक सुरक्षा सूत्र के हवाले से कहा है कि फायरिंग के बाद हमलावर ने खुद को गोली मार ली.
पुलिस के मुताबिक हमलावर ने एक लंबी नाल वाली बंदूक इस्तेमाल की. जर्मन मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक लेक्चर हॉल में गोलियां चलाने वाला हमलावर यूनिवर्सिटी का ही छात्र था.
यूरोप में सबसे कड़े गन कंट्रोल कानूनों वाला जर्मनी बीते कुछ सालों में जिहादियों और दक्षिणपंथी उग्रवादियों के निशाने पर रहा है. लेकिन स्कूल या कॉलेजों में इस तरह की वारदातें जर्मनी में बहुत कम नजर आती हैं. आखिरी बार स्कूल में ऐसी घटना 2009 में हुई थी जब एक पूर्व छात्र ने नौ छात्रों, तीन टीचरों और तीन राहगीरों को गोली मारी थी. 2002 में स्कूल से बर्खास्त करने पर एक पूर्व छात्र ने 12 टीचरों समेत 16 लोगों की हत्या कर दी. दोनों मौकों पर हमलावरों ने खुद को गोली मार ली.
ओएसजे/आरपी (डीपीए, एएफपी)