अंतरराष्ट्रीय
काबुल/नयी दिल्ली, 19 जून। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में शनिवार को एक गुरुद्वारे में कई विस्फोट हुए, जिनमें एक सिख सहित दो लोगों की मौत हो गई और सात अन्य घायल हो गए। वहीं, अफगान सुरक्षाकर्मियों ने विस्फोटक लदे एक वाहन को गुरुद्वारे में प्रवेश करने से रोककर एक बड़ी घटना को टाल दिया।
तालिबान द्वारा नियुक्त गृह मामलों के प्रवक्ता अब्दुल नफी ताकोर ने कहा कि अफगानिस्तान में सिख समुदाय के पूजा स्थल पर नवीनतम लक्षित हमले में, शनिवार सुबह काबुल के बाग ए बाला क्षेत्र में कार्ते परवान गुरुद्वारे पर हमला हुआ और आतंकवादियों तथा तालिबान लड़ाकों के बीच कई घंटे तक मुठभेड़ चली।
पझवोक समाचार एजेंसी ने बताया कि तालिबान सुरक्षा बलों ने तीन हमलावरों को मार गिराया।
ताकोर ने पुष्टि की कि इस घटना में इस्लामिक अमीरात बलों का कम से कम एक सदस्य और एक अफगान सिख नागरिक मारा गया तथा सात अन्य घायल हो गए, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
अफगानिस्तान के गृह मंत्रालय के बयान के अनुसार, विस्फोटकों से लदे एक वाहन को लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही रोक दिया गया।
बीबीसी ने बताया कि गुरुद्वारे पर सुबह के समय जब हमला किया गया तो उस समय 30 लोग अंदर थे।
ताकोर ने कहा कि विस्फोटकों से भरे एक वाहन में गुरुद्वारे के बाहर विस्फोट हो गया, लेकिन इसमें कोई हताहत नहीं हुआ।
एसोसिएटेड प्रेस ने गृह मंत्रालय के प्रवक्ता के हवाले से बताया कि पहले बंदूकधारियों ने एक हथगोला फेंका जिससे गुरुद्वारे के गेट के पास आग लग गई।
काबुल पुलिस के प्रवक्ता खालिद जादरान ने कहा कि कई घंटे बाद आखिरी हमलावर के मारे जाने के साथ पुलिस अभियान समाप्त हो गया।
उन्होंने कहा, ‘‘सुरक्षाबल हमले को नियंत्रित करने और कम समय में हमलावरों को खत्म करने के लिए तेजी से कार्रवाई करने में सक्षम थे ताकि और लोग हताहत न हों।’’
नयी दिल्ली में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में स्थित गुरुद्वारा कार्ते परवान पर ‘बर्बर’ आतंकवादी हमले की निंदा की।
मोदी ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘काबुल में कार्ते परवान गुरुद्वारे पर कायरतापूर्ण आतंकवादी हमले से स्तब्ध हूं। मैं इस बर्बर हमले की निंदा करता हूं और श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सलामती के लिए प्रार्थना करता हूं।’’
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस ‘‘कायराना हमले’’ की कड़ी निंदा की और कहा कि सरकार घटना के बाद स्थिति पर करीब से नजर रखे हुए है।
उन्होंने एक ट्वीट में कहा, 'गुरुद्वारा कार्ते परवान पर कायरतापूर्ण हमले की कड़े शब्दों में निंदा की जानी चाहिए। हमले की खबर मिलने के बाद से हम घटनाक्रम पर करीब से नजर रखे हुए हैं। हमारी पहली और सबसे महत्वपूर्ण चिंता समुदाय के कल्याण के लिए है।'
वहीं, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने अपने ट्वीट में कहा, ‘‘हम काबुल में पवित्र गुरुद्वारे पर हमले की खबरों को लेकर अत्यंत चिंतित हैं। हम स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और हो रहे घटनाक्रम पर आगे के ब्योरे की प्रतीक्षा कर रहे हैं।’’
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी हमले की कड़ी निंदा की और केंद्र से अफगानिस्तान की राजधानी में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल सहायता प्रदान करने का आग्रह किया।
भारतीय जनता पार्टी के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने भी हमले की निंदा की और कहा कि इस हमले ने अफगानिस्तान में शांति की सिख समुदाय की उम्मीदें तोड़ दी।
इस हमले की तत्काल किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली है।
अतीत में इस्लामिक स्टेट इन खुरासन (आईएस-के) देशभर में मस्जिदों और अल्पसंख्यकों पर हुए हमलों की जिम्मेदारी ले चुका है।
चीन की समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने एक प्रत्यक्षदर्शी के हवाले से बताया, 'हमने स्थानीय समयानुसार सुबह करीब छह बजे कार्ते परवान इलाके में विस्फोट की आवाज सुनी। पहले विस्फोट के लगभग आधे घंटे के बाद दूसरा विस्फोट हुआ। फिलहाल पूरे इलाके को सील कर दिया गया है।'
उसने बताया कि सुरक्षाबलों ने एहतियात के तौर पर इलाके की घेराबंदी कर दी।
प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक, विस्फोट के कारण आसमान में धुएं का गुबार छा गया। हमले के बाद से पूरे इलाके में दहशत का माहौल हो गया।
समाचार एजेंसी एपी के अनुसार, 2020 के हमले के समय अफगानिस्तान में 700 से कम सिख और हिंदू थे। तब से, दर्जनों परिवार अन्यत्र चले गए हैं, लेकिन कई आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण दूसरे देश नहीं जा पाए हैं और वे अफगानिस्तान में ही, मुख्यतः काबुल, जलालाबाद तथा गजनी में रह रहे हैं।
सिख समुदाय के नेताओं का अनुमान है कि तालिबान शासित अफगानिस्तान में सिर्फ 140 सिख बचे हैं, जिनमें से ज्यादातर पूर्वी शहर जलालाबाद और राजधानी काबुल में हैं।
पिछले साल अगस्त में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से देश में प्रतिद्वंद्वी सुन्नी मुस्लिम आतंकवादी समूह इस्लामिक स्टेट के हमले लगातार जारी हैं।
शनिवार की घटना अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय के पूजा स्थल पर नवीनतम लक्षित हमला है।
इससे पहले, मार्च 2020 में काबुल में एक गुरुद्वारे पर हुए आत्मघाती हमले में कम से कम 25 श्रद्धालु मारे गए थे और आठ अन्य घायल हुए थे। यह हमला अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक सिख समुदाय पर हुए सबसे घातक हमलों में से एक था।
शोर बाजार इलाके में हुए इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी समूह इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने ली थी। (भाषा)
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में गुरुद्वारा 'करत-ए-परवान' पर एक चरमपंथी हमला हुआ है जिसमें अधिकारियों के अनुसार एक आम नागरिक और एक तालिबान सुरक्षाकर्मी की मौत हो गई है और सात अन्य लोग घायल हैं.
उन्होंने बताया कि काबुल पुलिस के प्रवक्ता ख़ालिद ज़दरान ने कहा है कि हमला ख़त्म हो गया है और हमलावरों को मार डाला गया है.
ये हमला शनिवार सुबह हुआ. इससे पहले अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल नफ़ी टकूर ने बीबीसी को बताया कि गुरुद्वारे के बाहर कई धमाके हुए जिसके बाद कई हथियारबंद चरमपंथी गुरुद्वारे परिसर के भीतर चले गए.
वहीं गुरुद्वारे के एक स्थानीय अधिकारी गुरनाम सिंह ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि धमाके के वक़्त गुरुद्वारे के भीतर लगभग 30 लोग मौजूद थे. उन्होंने कहा, "हमें नहीं पता कि कितने लोग जीवित हैं या मारे गए हैं. तालिबान के लोग हमें भीतर नहीं जाने दे रहे."
ये गुरुद्वारा अफ़ग़ानिस्तान में बचा आख़िरी गुरुद्वारा है. अफ़ग़ानिस्तान में सिख समुदाय के लोगों ने हाल ही में बताया था कि वहाँ अभी केवल 140 सिख रह गए हैं, जबकि 1970 के दशक में वहाँ लगभग एक लाख सिख रहा करते थे.
भारत सरकार ने काबुल में गुरुद्वारे पर हमले की निंदा की है और कहा है कि घटना पर नज़र रखी जा रही है.
कैसे हुआ हमला
अफ़ग़ान गृह मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल नफ़ी टकूर ने बताया कि ये यह हमला स्थानीय समयानुसार क़रीब सुबह साढ़े छह बजे हुआ.
टकूर ने बताया कि हमलावरों ने करत-ए-परवान परिसर में घुसने से पहले वहां मौजूद गार्ड्स पर हैंडग्रेनेड से हमला भी किया, जिसकी वजह से आग लग गई और दो लोग घायल हो गए जिन्हें सुरक्षित बाहर निकालकर अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
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प्रवक्ता ने बताया कि हमलावर भीड़-भाड़ वाली जगह पर कार बम विस्फोट भी करना चाहते थे.
उनके मुताबिक़, "धर्म और देश के दुश्मन भीड़-भाड़ वाली जगह पर हमला करना चाहते थे लेकिन वे अपने लक्ष्य तक पहुंच नहीं पाए और उससे पहले ही कार में धमाका कर दिया."
टकूर ने बताया कि हमलावरों को गुरुद्वारे में घेर लिया गया है और जल्दी ही पूरी स्थिति पर काबू पाते हुए इलाक़े को सामान्य करवा लिया जाएगा.
अफ़ग़ानिस्तान के न्यूज़ चैनल टोलो न्यूज़ ने घटना का एक वीडियो शेयर किया है जिसमें विस्फ़ोटकों की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही है.
कुछ प्रत्यदर्शियों ने बताया कि एक के बाद एक कई विस्फोटों की आवाज़ सुनाई दी. धमाकों का धुआँ आसमान में छा गया था.
इसके बाद अफ़गान सुरक्षा बलों ने भी चेतावनी में कई गोलियाँ दागीं. सुरक्षा बलों ने पूरे इलाक़े को अपने कब्ज़े में ले लिया है.
भारत सरकार ने क्या कहा
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट कर इस हमले की निंदा की है. उन्होंने लिखा है, "गुरुद्वारा करत-ए-परवान में हुए कायरतापूर्ण हमले की कड़े शब्दों में निंदा होनी चाहिए. हमले के बाद से ही घटनाक्रम पर नज़दीकी नज़र रखी जा रही है. हम लोगों की सलामती के लिए चिंतित हैं. "
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस पर बयान जारी किया है. उन्होंने कहा है, " भारत इस हालात पर अपनी नज़र बनाए हुए है और जानकारी मिलने का इंतज़ार कर रहा है."
बीजेपी नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने भी ट्वीट किया है. उन्होंने दावा किया है कि अफ़ग़ानिस्तान सैनिकों ने काबुल के दो चरमपंथियों को मार गिराया है. इस अभियान में तीन सैनिक भी घायल हुए हैं.
तालिबान के नियंत्रण के बाद से बढ़े हैं हमले- अफ़ग़ान राजदूत
काबुल में हुए हमले से एक दिन पहले भारत में अफ़ग़ानिस्तान के राजदूत फ़रीद मामुंदज़े ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के नियंत्रण के बाद से देश में चरमपंथी हमलों में वृद्धि हुई है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार अफ़ग़ान राजदूत ने शुक्रवार को एक कहा कि अफ़ग़ानिस्तान के लोग बीते कुछ सालों के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहे हैं. देश को आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षात्मक संकट का सामना करना पड़ रहा है.
राजदूत फ़रीद मामुंदज़े अफ़ग़ानिस्तान में पिछली अशरफ़ गनी सरकार के दौरान भारत में राजदूत नियुक्त किए गए थे.
उन्होंने कहा, "पिछले साल अगस्त में सत्ता परिवर्तन ने देश में जटिल मानवीय संकट, सुरक्षा के संकट और राजनीतिक संकट को जन्म दिया है. मौजूदा पीढ़ी अभी तक के अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रही है."
उन्होंने तालिबान सरकार पर आरोप लगया कि उनके कई चरमपंथी संगठनों के साथ संबंध हैं.
फ़रीद ने दावा किया कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी और तालिबान के सत्ता नियंत्रण के बाद से देश में चरमपंथी गतिविधियों में वृद्धि हुई है. (bbc.com)
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल के मशहूर गुरुद्वारे करते परवान के परिसर में शनिवार की सुबह ज़बरदस्त हमला होने की ख़बर है.
अभी तक यह साफ़ नहीं हो सका है कि किसने यह हमला किया है. लेकिन आशंका है कि आईएस के चरमपंथियों ने इस हमले को अंजाम दिया है.
अफ़ग़ानिस्तान के गृह मंत्रालय के प्रवक्ता तकूर के अनुसार गुरुद्वारे पर शायद कार बम से हमला किया गया. हमले के बाद आसमान में धुएं का गुबार उठता हुआ पाया गया.
वहीं इस गुरुद्वारे के अध्यक्ष गुरनाम सिंह ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया है कि गुरुद्वारे के परिसर में क़रीब 30 लोग फंसे हैं.
हालांकि अभी तक हताहतों की संख्या की सटीक जानकारी नहीं मिल सकी है. गुरनाम सिंह ने यह भी बताया है कि तालिबान शासन परिसर में किसी को घुसने नहीं दे रहा है.
सोशल मीडिया पर चल रही ख़बरों में दावा किया जा रहा है कि परिसर में बंदी बनाए गए लोग गुरुद्वारे की दूसरी मंज़िल पर हैं.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस हमले के बारे में कहा है कि भारत इस गुरुद्वारे पर हुए हमले से काफ़ी चिंतित है.
उनके अनुसार, भारत इस हालात पर अपनी नज़र बनाए हुए है और जानकारी मिलने का इंतज़ार कर रहा है. (bbc.com)
काठमांडू, 17 जून। नेपाल के लुंबिनी प्रांत में एक नदी में राफ्टिंग के दौरान लापता हुए सात भारतीय पर्यटकों को बचा लिया गया है। स्थानीय मीडिया ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
द राइजिंग नेपाल अखबार के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के भारतीय पर्यटकों की बृहस्पतिवार शाम पालपा जिले में कालीगंडकी नदी में राफ्टिंग के दौरान नाव पलट गयी और वह लापता हो गए थे।
पलपा के मुख्य जिला अधिकारी (सीडीओ) जगन्नाथ पंटा के अनुसार, पर्यटक पल्पा के रानी महल इलाके के पास लापता हो गए थे और घटना के 45 मिनट के भीतर स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें बचा लिया गया था।
सीडीओ ने कहा कि पर्यटकों को कालीगंडकी नदी में राफ्टिंग नहीं करने की सलाह दी गयी है, क्योंकि मानसून के दौरान देश में नदियां तेज धारा के साथ बहती हैं।
कालीगंडकी नदी नेपाल की प्रमुख नदियों में से एक है और भारत में गंगा नदी की एक सहायक नदी है। (भाषा)
चरमपंथी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के नेता अब्दुल रहमान मक्की को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 'वैश्विक आतंकवादी' घोषित करने के अमेरिका और भारत के प्रस्ताव को चीन से झटका मिला है.
चीन ने भारत-अमेरिका के इस साझा प्रस्ताव पर रोक लगवा दिया है.
एक जून को भारत और अमेरिका ने साझा तौर पर मक्की का नाम आगे किया था.
मक्की लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफ़िज़ सईद के क़रीब रिश्तेदार हैं. दोनों देशों में घरेलू क़ानूनों के तहत मक्की चरमपंथी घोषित हैं. इसके अलावा अमेरिका ने उन पर 20 लाख रुपए की ईनामी राशि का घोषणा कर रखी है.
16 जून को इस प्रस्ताव पर चीन ने टेक्निकल रोक लगा दी.
भारत और अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 आईएसआईएल और अल कायदा प्रतिबंध समिति के तहत मक्की को ग्लोबल आतंकवादी घोषित किए जाने के लिए एक साझा प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन चीन ने इस प्रस्ताव को रोक दिया. (bbc.com)
-विनीत खरे
पाकिस्तान के केंद्रीय योजना एवं विकास मंत्री एहसन इक़बाल ने लोगों से देश के आर्थिक हालात में सुधार के लिए कम चाय पीने को कहा है.
एक वायरल वीडियो में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा, "मैं क़ौम से ये भी अपील करूंगा कि हम चाय की एक-एक प्याली, दो-दो प्यालियां कम कर दें, क्योंकि हम जो चाय आयात करते हैं वो भी उधार लेकर आयात करते हैं."
एहसन इक़बाल के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है.
इस बयान से नाराज़ पाकिस्तानी पत्रकार मायिद अली का कहना था, "ये आम आदमी के साथ मज़ाक है. अगर ये कहा जाए कि आप चाय की प्याली कम कर लें, यहां चाय नसीब किसको हो रही है? यहां पेट्रोल और दूसरी कीमतों की वजह से लोगों का बुरा हाल है. उन्होंने जो कहा है वो शर्मनाक है. ये नेता उतने ही दूर हैं अपने लोगों से जितना हम जानते हैं, हम दूर हैं."
एहसन इक़बाल ने दिया जवाब
अपने बया की तीखी आलोचना के बीच एहसन इक़बाल ने ट्विटर पर एक स्क्रीनशॉट शेयर किया जिसके मुताबिक़ पाकिस्तान ने साल 2020 में करीब 590 मिलियन डॉलर की चाय आयात की. इस सूची में पाकिस्तान का नाम सबसे ऊपर था.
साल 2020 में इमरान खान के दौर में भी उनकी पार्टी के सदस्य रियाज़ फातियाना ने लोगों से दाम बढ़ने पर चीनी और ब्रेड की ख़रीद कम करने को कहा था.
- पाकिस्तान पिछले काफ़ी समय से बुरे आर्थिक संकट से गुज़र रहा है.
- पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा कोष बीती जुलाई में 16 अरब डॉलर था जो इस साल जून के पहले हफ़्ते में घटकर 10 अरब डॉलर रह गया है.
- पाकिस्तान लंबे समय से आईएमएफ़ से कर्ज़ लेने की कोशिश कर रहा है.
- कर्ज़ देने से पहले आईएमएफ़ ने पाकिस्तान सरकार से कठोर नीतिगत क़दम उठाने की मांग की है जिनमें ईंधन पर सरकारी सब्सिडी ख़त्म करना शामिल है.
पाकिस्तान दुनिया भर में चाय का सबसे बड़ा आयातक देश है.
पाकिस्तान टी एसोसिएशन के प्रमुख जावेद इक़बाल पराचा के मुताबिक़, पाकिस्तान हर साल 23-24 करोड़ किलो चाय आयात करता है जिस पर पाकिस्तान का सालाना आयात बिल क़रीब 450 मिलियन डॉलर है.
वो कहते हैं, "पाकिस्तान के लोगों के लिए चाय लाइफ़लाइन की तरह है."
केंद्रीय मंत्री एहसन इक़बाल का बयान ऐसे वक्त पर आया है जब पाकिस्तान मुश्किल आर्थिक हालातों का सामना कर रहा है और, वहां खाने-पीने के सामान और दूसरी चीज़ों के दाम बढ़ने से आम लोगों की तकलीफ़ें बढ़ीं हैं.
फ़रवरी में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 16 अरब डॉलर था जो जून के पहले हफ़्ते में घटकर 10 अरब डॉलर पहुंच गया है. ये राशि मात्र दो महीने के आयात बिल को चुका पाएगी. लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की तरफ़ देख रहा है. पाकिस्तान में तेल पर सब्सिडी घटाने के लिए कुछ ही दिनों में तीन बार तेल के दाम बढ़ाए गए हैं.
26 मई से अभी तक वहां पेट्रोल के दाम में 84 पाकिस्तानी रुपये की वृद्धि की जा चुकी है.
आयात पर ख़र्च से चिंता
पाकिस्तान टी एसोसिएशन के प्रमुख जावेद इक़बाल पराचा केंद्रीय मंत्री एहसन इक़बाल के वक्तव्य को राजनैतिक बताते हैं, और उनके मुताबिक़ पाकिस्तान में चाय की ख़पत को घटाना संभव नहीं है.
वो कहते हैं, "हमारे यहां चाय फूड आइटम है. ये बेवरेज (पीने वाली चीज़) नहीं है, ये भोग-विलास का सामान नहीं है. गरीब आदमी एक कप चाय और रोटी से खाना खाता है."
पाकिस्तान में कई सालों से पर कैपिटा चाय की सालाना खपत एक किलो पर स्थिर है लेकिन हर साल ढाई से तीन फ़ीसदी जनसंख्या बढ़ने से चाय की खपत भी बढ़ी है. पाकिस्तान में चाय की सालाना पैदावार 10 टन है और मात्र 50 हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है. इस वजह से पाकिस्तान को ज़्यादातर चाय आयात करनी पड़ती है.
पाकिस्तान में ज़्यादातर आयातित चाय कीनिया, तंजानिया, युगांडा, और बुरुंडी जैसे पूर्वी अफ्रीकी देशों से आती है. इन देशों से चाय खरीदने के कम दाम के अलावा यहां से चाय आयात करने की एक और वजह है.
जावेद इक़बाल पराचा कहते हैं, "वहां की चाय बनाते वक़्त कम ख़र्च होती है, जो पाकिस्तानी उपभोक्ताओं को अच्छा लगता है. जैसे छह लोगों के लिए चार टी-स्पून चाय काफ़ी है. अगर आप किसी और इलाके में उगाई गई चाय का इस्तेमाल करेंगे तो चाय का दोगुना इस्तेमाल करना पड़ेगा. (पूर्वी अफ़्रीकी देशों में उगाई गई) चाय कम ख़र्च होती है."
आप चाय कम ख़र्च करके पैसे बचा सकते हैं लेकिन पाकिस्तान में महंगाई ने चाय को भी नहीं छोड़ा है.
वहां एक किलो चाय की कीमत 850 पाकिस्तानी रुपये है. जावेद इक़बाल पराचा के मुताबिक़, क़रीब चार महीने पहले कीमत 100 रुपये कम थी.
पाकिस्तान का आर्थिक संकट
ऐसे में कम चाय पीने को लेकर मंत्री एहसन इक़बाल का बयान क्या ये संकेत नहीं देता कि पाकिस्तान की आर्थिक दशा कैसी है और उसके लिए आईएमएफ़ की मदद कितनी महत्वपूर्ण है?
पाकिस्तानी अर्थशास्त्री परवेज़ ताहिर मानते हैं कि एहसन इक़बाल को ये बयान नहीं देना चाहिए था.
वे कहते हैं, "इस वक़्त हालात ये हैं कि आपको आईएमएफ़ की हर बात माननी पड़ेगी. आपके पास कोई चारा नहीं है. मेरे जैसे व्यक्ति जिसने कभी भी आईएमएफ़ का समर्थन नहीं किया, अभी कह रहा है कि ये (आईएमएफ़) जो कह रहे हैं वो करना है. क्योंकि फिस्कल डेफिसिट की बात नहीं है, करेंट अकाउंट डेफिसिट की भी बात है. हमें दुनिया को 16-17 अरब वापस करना है, वो कर्ज़ा लेकर ही वापस करना है."
पाकिस्तान में फ़ेडरल बोर्ड ऑफ़ रेवेन्यू के पूर्व प्रमुख सैयद शब्बार ज़ैदी के मुताबिक़ वो "एहसन इक़बाल को गंभीरता से नहीं लेते, हम इस सरकार को गंभीरता से नहीं लेते."
पीटीआई प्रमुख इमरान ख़ान की सरकार के बहुमत खो देने के बाद शाहबाज़ शरीफ़ के नेतृत्व में विभिन्न पार्टियों के समर्थन से बनी सरकार देश में शासन कर रही है.
सैयद शब्बार ज़ैदी कहते हैं, "हमारी पहली प्राथमिकता अपने आयात के 70 अरब डॉलर के ख़र्च को 65 अरब डॉलर तक नीचे लाना क्योंकि हम 70 अरब डॉलर का आयात ख़र्च बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं. हमें एक-एक डॉलर बचाना है "
शब्बार ज़ैदी के मुताबिक़, "पाकिस्तान का मसला है कि यहां लोग मज़े की ज़िंदगी बिता रहे हैं."
वो कहते हैं, "आप लोगों को गलतफ़हमी है कि पाकिस्तान में ज़िंदगी ख़राब है. मैंने मुंबई, दिल्ली आगरा देखा है. मेरे पिता आगरा से माइग्रेट करके पाकिस्तान गए थे. हम भारत को बहुत अच्छी तरह जानते हैं. पाकिस्तान में मिडिल क्लास बहुत कंफ़र्टेबल है."
पाकिस्तानी अर्थशास्त्री परवेज़ ताहिर बताते हैं कि ऐसे वक्त जब पाकिस्तान की कमाई का 80 प्रतिशत कर्ज़ चुकाने में चला जाता है, इसके बावजूद पाकिस्तान डिफ़ॉल्ट नहीं करेगा.
हाल ही में पाकिस्तान के वित्त मंत्री मिफ़्ताह इस्माइल ने कहा था कि अगर तेल को बढ़ाने जैसे मुश्किल कदम नहीं लिए गए होते तो पाकिस्तान की स्थिति श्रीलंका जैसी होती.
परवेज़ ताहिर कहते हैं, "पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के आउटपुट में आयात का बहुत बड़ा रोल है, और आयात निर्यात से ज़्यादा तेज़ी से बढ़ता है. पाकिस्तान जब 4-5 प्रतिशत की ग्रोथ से ऊपर जाने की कोशिश करते हैं तो बैलेंस ऑफ़ पेमेंट की समस्या पैदा हो जाती है. इसका मतलब मुल्क में वैल्यू चेन नहीं है."
एफ़एटीएफ़ फ़ैसले का पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर असर
इधर बर्लिन में जारी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स या एफ़एटीएफ़ की बैठक 17 जून तक चलने वाली है और पाकिस्तानी मीडिया में कयास लग रहे हैं कि पाकिस्तान टास्क फोर्स की ग्रे लिस्ट से बाहर जा सकता है.
एफ़एटीएफ़ एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो मनी लॉन्डरिंग और आतंकवाद को आर्थिक रूप से सुलभ बनाने जैसे ख़तरों से निपटने का काम करती है.
पाकिस्तान साल 2018 से एफ़एटीएफ़ की ग्रे लिस्ट में है और माना जाता है कि इस सूची में रहने से देश में निवेश या आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ता है.
सैयद शब्बार ज़ैदी को उम्मीद है कि पाकिस्तान इस सूची से बाहर निकल जाएगा "क्योंकि हमसे जो कुछ भी कहा गया था, वो हमने कर दिया है."
अर्थशास्त्री परवेज़ ताहिर की मानें तो एफ़एटीएफ़ का फ़ैसला और आईएमएफ़ का पाकिस्तान की ओर रुख़ आपस में जुड़े हुए हैं.
वो कहते हैं कि अगर पाकिस्तान एफ़एटीएफ़ की ग्रे लस्ट से बाहर जाता है तो ये आईएमएफ़ के लिए इशारा होगा कि पाकिस्तान को ऋण देने जैसे कदमों के साथ आगे बढ़ा जा सकता है.
लेकिन अगर पाकिस्तान इस लिस्ट में बना रहता है तो ये पाकिस्तान के लिए "बहुत मसला होगा". (bbc.com)
न्यूयॉर्क, 17 जून | संयुक्त राज्य अमेरिका के पास 2026 फीफा विश्व कप में 16 मेजबान शहरों में से 11 शहर होंगे, जिसमें मेक्सिको और कनाडा में भी मैच आयोजित किए जाएंगे। यह जानकारी विश्व फुटबॉल शासी निकाय ने दी। विश्व कप का 2026 का सीजन 48 टीमों और तीन मेजबान देशों को शामिल करने के साथ शुरू किया जाएगा। वहीं, फीफा अध्यक्ष गियानी इन्फेंटिनो ने गुरुवार रात कहा कि वह इस चयन प्रक्रिया की प्रतिस्पर्धा से खुश हैं।
सिएटल, सैन फ्रांसिस्को, लॉस एंजिल्स, कैनसस सिटी, डलास, अटलांटा, ह्यूस्टन, बोस्टन, फिलाडेल्फिया, मियामी और न्यूयॉर्क /न्यू जर्सी शहर में एक कार्यक्रम के दौरान नामित अमेरिकी शहर थे।
मेक्सिको सिटी, गुआडालाजारा और मॉन्टेरी में मेक्सिको खेल आयोजित करेगा जबकि कनाडा के वैंकूवर और टोरंटो को भी 22 की प्रारंभिक सूची से चुना गया था।
जो शहर छूट गए थे वे सिनसिनाटी, डेनवर, नैशविले, ऑरलैंडो, वाशिंगटन डीसी/बाल्टीमोर और एडमॉन्टन हैं।
1994 में ऐसा करने के बाद, अमेरिका दूसरी बार इस आयोजन का मंचन करेगा। मेक्सिको ने 1970 और 1986 में टूर्नामेंट की मेजबानी की थी।
इन्फेंटिनो ने कहा, "हम 16 फीफा विश्व कप मेजबान शहरों को उनकी उत्कृष्ट प्रतिबद्धता और जुनून के लिए बधाई देते हैं। फीफा के लिए और उन शहरों और राज्यों में हर किसी के लिए, कनाडा, अमेरिका और मैक्सिको के लिए जो सबसे बड़ा प्रदर्शन करेंगे, हम उनके साथ काम करने के लिए तत्पर हैं जो एक अभूतपूर्व फीफा विश्व कप और एक गेम-चेंजर होगा क्योंकि हम फुटबॉल को वैश्विक स्तर पर ले जाने का काम कर रहे हैं।"
फीफा के उपाध्यक्ष और कॉनकाकफ के अध्यक्ष विक्टर मोंटाग्लिआनी ने कहा, "हम इस चयन प्रक्रिया की अद्वितीय प्रतिस्पर्धा से प्रसन्न थे। हम न केवल उन 16 शहरों के लिए बहुत आभारी हैं जिन्हें चुना गया है। यह हमेशा तीन देशों का फीफा विश्व कप रहा है और निस्संदेह पूरे क्षेत्र और व्यापक फुटबॉल समुदाय पर इसका जबरदस्त प्रभाव पड़ेगा।" (आईएएनएस)
बीजेपी के पूर्व प्रवक्ताओं के पैग़ंबर मोहम्मद को लेकर दिए गए आपत्तिजनक बयान को लेकर अब अमेरिका ने प्रतिक्रिया दी है.
अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा, ''हम बीजेपी के दो अधिकारियों के आपत्तिजनक बयानों की निंदा करते हैं और हमें यह देखकर खुशी हुई कि बीजेपी ने सार्वजनिक रूप से उन टिप्पणियों की निंदा की है.''
उन्होंने कहा, ''हम धर्म या आस्था की स्वतंत्रता सहित मानवाधिकार संबंधी चिंताओं पर भारत सरकार के साथ नियमित तौर पर बातचीत करते हैं और हम भारत को मानवाधिकारों के सम्मान को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.''
नेड प्राइस ने कहा, ''विदेश मंत्री जब पिछले साल नई दिल्ली में थे तो उन्होंने कहा था कि भारतीय और अमेरिकी समान मूल्यों में विश्वास करते हैं. मानवीय गरिमा, मानवीय सम्मान, अवसर की समानता और धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता, ये किसी भी लोकतंत्र में मौलिक सिद्धांत हैं और हम दुनिया भर में इनके लिए बोलते हैं.''
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने भीम सेना के प्रमुख नवाब सतपाल तंवर को बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ अपमानजनक और हिंसक बयान देने के आरोप में गिरफ़्तार किया है. अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में ये ख़बर दी गई है.
साइबर सेल ने नवाब सतपाल तंवर को गुरुवार को उनके घर से गिरफ़्तार किया है. इससे पहले गुड़गांव पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ धार्मिक विद्वेष फ़ैलाने, उकसाने और आपराधिक धमकी देने की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था. इस मामले में शिकायत बीजेपी यूथ विंग की अध्यक्ष सर्वप्रिया त्यागी ने दर्ज कराई थी.
एक फेसबुक वीडियो में तंवर ने नूपुर शर्मा पर एक करोड़ का ईनाम रखा था और धमकियां दी थीं. साइबर सेल के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, ''हमने वीडियो का संज्ञान लिया. एक शख़्स जान से मारने की धमकी दे रहा था और नफ़रत फैलाने की कोशिश कर रहा है. हमने तंवर को गुड़गांव से गिरफ़्तार कर लिया है.'' (bbc.com)
(ललित के झा)
वाशिंगटन, 17 जून। अमेरिका ने कहा है कि वह पैगंबर मोहम्मद को लेकर की गई भाजपा से निलंबित और निष्कासित दो पदाधिकारियों की टिप्पणियों की निंदा करता है और भारत को मानवाधिकारों के सम्मान को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करता है।
भाजपा ने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ विवादित टिप्पणियां करने पर पांच जून को अपनी राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपुर शर्मा को निलंबित कर दिया था और अपनी दिल्ली इकाई के मीडिया प्रमुख नवीन कुमार जिंदल को पार्टी से निष्कासित कर दिया था।
कई मुस्लिम देशों एवं समूहों ने पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ विवादित टिप्पणियों की निंदा की, जिसके बाद पार्टी ने एक बयान जारी कर स्वयं को इन सदस्यों के बयानों से अलग करते हुए अल्पसंख्यकों की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की। पार्टी ने कहा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है और किसी भी धार्मिक हस्ती के अपमान की निंदा करती है।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने बृहस्पतिवार को अपने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में एक पाकिस्तानी पत्रकार के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, ‘‘हमने इसकी निंदा की है। हम भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) के दो (पूर्व) पदाधिकारियों की अपमानजनक टिप्पणियों की निंदा करते हैं और हमें यह देखकर खुशी हुई कि पार्टी ने उनके बयानों की सार्वजनिक तौर पर निंदा की।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम धर्म या आस्था की स्वतंत्रता समेत मानवाधिकार से जुड़ी चिंताओं को लेकर वरिष्ठ स्तर पर भारत सरकार के साथ नियमित संवाद करते रहते हैं।’’
प्राइस ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘हम भारत को मानवाधिकारों के सम्मान को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। (अमेरिका के) विदेश मंत्री जब पिछले साल नयी दिल्ली में थे, तो उन्होंने कहा था कि भारतीय और अमेरिकी लोग समान मूल्यों-मानव की गरिमा, मानव का सम्मान, अवसर की समानता और धर्म या आस्था की स्वतंत्रता- में भरोसा करते हैं।’’
वह अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की पिछल साल जुलाई में की गई भारत यात्रा का जिक्र कर रहे थे। प्राइस ने कहा कि ये लोकतंत्र के उनके मूलभूत मूल्य हैं और अमेरिकी दुनिया भर में इनके समर्थन में आवाज उठाते हैं। (भाषा)
(योषिता सिंह)
संयुक्त राष्ट्र, 17 जून। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2021 में जलवायु परिवर्तन तथा आपदाओं के कारण भारत में करीब 50 लाख लोगों को देश में ही अपना घर छोड़कर कहीं और विस्थापित होना पड़ा।
‘यूएन रिफ्यूजी एजेंसी’ (यूएनएचसीआर) की वार्षिक ‘ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट’ के अनुसार पिछले साल हिंसा, मानवाधिकारों के हनन, खाद्य असुरक्षा, जलवायु संकट, यूक्रेन में युद्ध और अफ्रीका से अफगानिस्तान तक अन्य आपात स्थितियों के कारण वैश्विक स्तर पर 10 करोड़ लोग अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए।
रिपोर्ट में कहा गया, आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (आईडीएमसी) के अनुसार 2021 में आपदाओं के कारण विश्व में 2.37 करोड़ लोग अपने ही देश में अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए। यह संख्या उससे पिछले साल की तुलना में 70 लाख या 23 प्रतिशत कम है। ये मामले संघर्ष एवं हिंसा के कारण आंतरिक रूप से विस्थापित (देश की सीमा से बाहर नहीं जाने वाले) लोगों के अतिरिक्त हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘ 2021 में आपदाओं के कारण चीन में सबसे अधिक 60 लाख लोग, फिलीपीन के 57 लाख और भारत में 49 लाख लोग विस्थापित हुए। इसमें से अधिकतर लोगों ने आपदा के कारण अस्थायी तौर ही अपने घर छोड़े थे।’’
रिपोर्ट में कहा गया कि देश में ही आंतरिक रूप से विस्थापित हुए अधिकतर लोग अपने गृह क्षेत्रों में लौट आए हैं, लेकिन साल के अंत तक दुनियाभर में आपदाओं के कारण विस्थापित हुए 59 लाख लोग अब भी अपने घर नहीं लौट पाए थे।
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने कहा कि पिछले एक दशक में हर साल अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई। 2021 के अंत तक युद्ध, हिंसा, उत्पीड़न और मानवाधिकारों के हनन के कारण विस्थापित हुए लोगों की संख्या 8.93 करोड़ थी, जो एक साल पहले की तुलना में आठ प्रतिशत अधिक और 10 साल पहले के आंकड़े से दोगुने से भी अधिक है। (भाषा)
इस्लामाबाद, 16 जून | पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके पूर्ववर्ती इमरान खान की पत्नियां उनसे ज्यादा अमीर हैं। मीडिया के आधिकारिक दस्तावेजों से यह जानकारी मिली। डॉन न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) के साथ 30 जून, 2020 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए दायर संपत्ति के बयान से पता चला है कि खान के पास 2,00,000 पीकेआर की की चार बकरियां हैं और उनके पास छह संपत्तियां हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख उनका 300-कनाल विला है।
बयानों से पता चलता है कि उनके पास विरासत में मिली संपत्ति भी है, जिसमें लाहौर के जमान पार्क में एक घर, लगभग 600 एकड़ कृषि भूमि के साथ-साथ गैर-कृषि भूमि भी शामिल है।
खान के पास न तो कोई वाहन है और न ही पाकिस्तान के बाहर संपत्ति, कोई निवेश नहीं है और पाकिस्तानी विदेशी मुद्रा खातों में 3,29,196 डॉलर और 518 पाउंड के अलावा बैंक खातों में 60 मिलियन से अधिक पीकेआर मुद्रा है।
डॉन न्यूज ने बताया, उनकी पत्नी बुशरा बीबी की कुल संपत्ति 142.11 मिलियन पीकेआर है, बयानों से पता चला है कि उनके पास बनिगला में एक घर सहित चार संपत्तियां हैं।
मौजूदा प्रधानमंत्री की पहली पत्नी नुसरत शहबाज के पास 230.29 मिलियन पीकेआर की संपत्ति है और उनके पास लाहौर और हजारा डिवीजनों में नौ कृषि संपत्ति और एक-एक घर है।
शहबाज शरीफ के पास 141.78 मिलियन पीकेआर की देनदारी के साथ 104.21 मिलियन पीकेआर की संपत्ति है।
बयानों से पता चलता है कि उनकी दूसरी पत्नी तहमीना दुरार्नी की संपत्ति कई वर्षों से लगभग 5.76 मिलियन है।
इस बीच, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष और विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो-जरदारी घोषित अरबपतियों में शामिल हैं, जिनकी कुल संपत्ति 1.6 बिलियन पीकेआर है।
उनकी संपत्ति का बड़ा हिस्सा देश के बाहर है। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को (अमेरिका), 16 जून। कैलिफोर्निया के उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें ग्राहकों को अमेजन डॉट कॉम पर यह चेतावनी नहीं देने के लिए मुकदमा दर्ज कराने की अनुमति दी गयी है कि उसके कुछ उत्पादों में पारा जैसा खतरनाक पदार्थ हैं।
अदालत ने अमेजन के वकील की निचली अदालत के उस फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया कि अमेजन ने राज्य के प्रस्ताव 65 का उल्लंघन किया। इस प्रस्ताव के तहत कंपनियों को ग्राहकों को उन उत्पादों के बारे में आगाह करना होता है, जिसमें ऐसे रसायन होते हैं जिनसे कैंसर, प्रजनन या जन्म संबंधी दिक्कतें होती हैं।
यह मामला अलमेडा काउंटी में दायर एक मुकदमे से जुड़ा है, जिसमें कहा गया है कि ऑनलाइन रिटेल कंपनी ने जानबूझकर त्वचा को चमकदार बनाने वाली क्रीम वर्षों तक अपनी वेबसाइट पर बिना यह चेतावनी दिए बेची कि ऐसी क्रीम में जहरीले पारे का स्तर कितना ज्यादा होता है।
पारा गर्भवती महिलाओं और उनके भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकता है। अमेजन ने उच्चतम न्यायालय के फैसले पर अभी कोई टिप्पणी नहीं की है। (एपी)
वाशिंगटन, 16 जून। अमेरिका में पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कोविड-19 रोधी टीके उपलब्ध कराने के लिए प्रयास तेज कर दिए गए हैं।
खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) के टीका सलाहकारों ने छोटे बच्चों के लिए ‘मॉडर्ना’ और ‘फाइजर’ के टीकों को अनुमति दे दी है।
विशेषज्ञों ने सर्वसम्मति से मतदान किया कि इन टीकों की खुराक के लाभ पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए किसी भी जोखिम से अधिक हैं।
देश में इस उम्र वर्ग के करीब 1.8 करोड़ बच्चे हैं।
अमेरिका में टीकाकरण के लिए मंजूरी हासिल करने वाला यह अंतिम वर्ग होगा। अगर सभी नियामकीय कदमों को मंजूरी दे दी जाती है, तो इस उम्र वर्ग के लिए खुराक अगले सप्ताह तक उपलब्ध हो सकती है।
कैनसस सिटी में बच्चों के एक अस्पताल से जुड़े जे. पोर्टनॉय ने कहा, ‘‘ लंबे समय से इस उम्र वर्ग के लिए टीकों का इंतजार है। ऐसे बहुत से माता-पिता हैं, जो ये टीके चाहते हैं और मुझे लगता है कि अगर वे चाहते हैं तो हमें उन्हें टीके लगवाने का विकल्प देना चाहिए।’’
‘फाइजर’ का कोविड-19 रोधी टीका छह महीने से चार साल तक के बच्चों के लिए है, जबकि ‘मॉडर्ना’ का टीक छह महीने से पांच साल तक के बच्चों के लिए है।(एपी)
संयुक्त अरब अमीरात ने भारत ने भारतीय गेहूं और गेहूं के आटे के निर्यात पर चार महीने की रोक लगा दी है.
यूएई की समाचार एजेंसी डब्ल्यूएएम के मुताबिक़ ये रोक गेहूं की सभी किस्मों पर लागू होगी.
यूएई के अर्थव्यवस्था मंत्रालय का कहना है कि जो कंपनियां भारतीय मूल के गेहूँ या भारतीय गेहूँ से बने आटे को निर्यात या फिर निर्यात करना चाहती हैं, जिन्हें 13 मई से पहले देश में आयात किया गया था उन्हें यूएई से बाहर बेचने के लिए मंत्रालय से इजाजत लेनी होगी.
कंपनियों को सभी दस्तावेज़ और फाइलें जमा करना होगी, जिसमें आयात से जुड़ी सारी जानकारी होगी.
ये फैसला गेहूँ की बढ़ती हुई कीमतों को लेकर लिया गया है. व्यापक आर्थिक साझेदारी पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत ने यूएई को घरेलू इस्तेमाल के लिए गेहूँ के निर्यात को मंज़ूरी दी थी.
रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनियाभर में खाद्य संकट को बढ़ा दिया है. यूक्रेन दुनिया के सबसे बड़े गेहूँ निर्यातकों में से एक है. युद्ध का कृषि और खाद्य आपूर्ति पर भारी असर पड़ा है, जिससे दुनियाभर में गेहूँ की क़ीमतों में उछाल आया है.
वहीं भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अनाज उत्पादक है. भारत ने 13 मई को गेहूँ के निर्यात को फ्री से प्रोहिबिटेड श्रेणी में डाल दिया था जिसके बाद भी गेहूँ की क़ीमतों में वैश्विक स्तर पर उछाल आया है.
इस साल भारत में सरकारी गेहूँ की ख़रीद 15 साल के सबसे निचले स्तर पर है. (bbc.com)
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने भारत में हुए ‘बुल्डोज़र एक्शन’ पर प्रतिक्रिया दी है.
इमरान ख़ान ने ट्वीट किया है, “भारत में पैग़ंबर मोहम्मद के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक बयान देने वाली बीजेपी प्रवक्ता के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करने वाले भारतीय मुसलमामनों के घरों को ढहा दिया गया, यह बेहद चौंकाने वाला है.”
उन्होंने अपने ट्वीट में आगे लिखा है कि अपने मुस्लिम नागरिकों के साथ ही दुनियाभर के मुसलमानों के प्रति संवेदनशीलता दिखाने की जगह पर भारत सरकार मुस्लिम प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाकर उनके घरों को गिरा रही है.
वह आगे लिखते हैं, “यह अमानवीय है. इस फासीवादी कार्रवाई की पूर्णरूप से आलोचना होनी चाहिए और यह बिल्कुल इसराइल की तर्ज पर है.”
भारत में बीते शुक्रवार को जुमे की नमाज़ के बाद उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर समेत देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन हुए थे. पैग़ंबर मोहम्मद के ख़िलाफ़ बयान देने वाली बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ हुए ये प्रदर्शन कई जगहों पर हिंसक भी हो गए थे.
विरोध प्रदर्शनों के बाद सैकड़ों लोगों को गिरफ़्तार किया गया है.
यूपी में प्रयागराज में हिंसक प्रदर्शनों के अभियुक्त जावेद मोहम्मद का घर अवैध निर्माण बताते हुए बुलडोज़र से तोड़ दिया गया है. अब पुलिस विरोध प्रदर्शनों की जांच कर रही है.
इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने सोमवार को कहा था कि "भारत ने मुसलमानों को दबाने, उन्हें धमकाने का कठोर तरीक़ा अपनाया है."
उन्होंने ट्विटर पर कहा, "भारत की योजना मुसलमानों को राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से और हाशिये पर धकेल देने की है. भारत के लोकतांत्रिक चेहरे की असलियत दुनिया के सामने आ गई है."
(योषिता सिंह)
संयुक्त राष्ट्र/जिनिवा, 14 जून । विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक टेड्रोस अधनोम गेब्रेयेसस ने मंगलवार को कहा कि मंकीपॉक्स का वैश्विक प्रकोप ‘स्पष्ट रूप से असामान्य और चिंताजनक’ है।
गेब्रेयेसस ने यह आकलन करने के लिए अगले सप्ताह एक आपातकालीन समिति की बैठक बुलाने की घोषणा की है कि क्या यह प्रकोप अंतरराष्ट्रीय चिंता वाले एक जनस्वास्थ्य आपातकाल की तरफ इशारा करता है।
घेब्रेयसस ने मीडिया ब्रीफिंग में बताया कि इस साल अब तक डब्ल्यूएचओ को 39 देशों से मंकीपॉक्स के 1,600 से अधिक पुष्ट और लगभग 1,500 संदिग्ध मामलों की जानकारी दी गई है, जिनमें सात ऐसे देश शामिल हैं, जहां मंकीपॉक्स के मामले वर्षों से सामने आते रहे हैं, जबकि 32 नये प्रभावित देश हैं। इसके अलावा, इस साल अब तक पहले से प्रभावित देशों से 72 लोगों की मौत की सूचना मिली है।
वहीं, नये प्रभावित देशों में अब तक किसी की मौत नहीं हुई है। हालांकि, डब्ल्यूएचओ ब्राजील से मंकीपॉक्स से संबंधित एक मौत की सूचना को सत्यापित करने का प्रयास कर रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘मंकीपॉक्स का वैश्विक प्रकोप स्पष्ट रूप से असामान्य और चिंताजनक है। यही कारण है कि मैंने अगले सप्ताह अंतराराष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों के तहत आपातकालीन समिति की बैठक बुलाने का फैसला किया है, ताकि यह आकलन किया जा सके कि क्या यह प्रकोप अंतरराष्ट्रीय चिंता वाले एक जनस्वास्थ्य आपातकाल की तरफ इशारा करता है।’’(भाषा)
मैक्सिको में एक राजनीतिक सलाहकार की ग़ुस्साई भीड़ ने हत्या कर दी है. दरअसल मैसेजिंग ग्रुप में उन पर बच्चे के अपहरण का आरोप लगा था. अधिकारियों के मुताबिक़ 31 वर्षीय डेनियल पिकाज़ो पर 200 लोगों की भीड़ ने हमला कर दिया. ये घटना पुएबला में हुई.
उस समय पिकाज़ो पापटलाज़ोलको के दौरे पर थे, जब भीड़ ने उन्हें घेर लिया और उन्हें खींच कर एक खेत में ले गए और फिर आग लगा दी. स्थानीय अधिकारियों ने इस घटना को बर्बर कहा है. डेनियल पिकाज़ो अपने दादा के शहर आए थे, जब स्थानीय वॉट्सऐप ग्रुप पर ये अफ़वाह फैल गई कि वे एक बच्चे के अपहरण में शामिल थे. स्थानीय मीडिया के मुताबिक़ ग़ुस्साई भीड़ ने पिकाज़ो और उनके दो साथियों पर हमला किया और फिर पिकाज़ो को खींच कर खेत में ले गए.
पुलिस ने इस मामले में हस्तक्षेप करने की कोशिश की और उन्होंने पिकाज़ो को एक पेट्रोल कार में बैठा लिया, लेकिन भीड़ ने पुलिस को वहाँ से जाने नहीं दिया और पिकाज़ो को ले गए और उन पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी. बाद में अधिकारियों को उनका शव मिला. एक बयान में सिटी काउंसिल ने इस हादसे की कड़ी निंदा की है और कहा है कि इस मामले में क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी. इस मामले की आधिकारिक जाँच शुरू हो गई है. लेकिन स्थानीय मीडिया के मुताबिक़ अभी तक किसी की गिरफ़्तारी नहीं हुई है. (bbc.com)
फ्लैगस्टाफ (अमेरिका), 14 जून। पश्चिमी अमेरिका में गर्म, शुष्क मौसम और हवा चलने के कारण सोमवार को भी कैलिफोर्निया से लेकर न्यू मैक्सिको के कर्मी जंगल में लगी आग पर काबू पाने के लिए जद्दोजहद करते नजर आए। आग के कारण सैकड़ों लोग अपना घर छोड़ने के लिये मजबूर हो गए हैं।
जंगल में आग के कारण एरिजोना में फ्लैगस्टाफ की बाहरी सीमा से सैकड़ों लोगों को एहतियाती तौर पर निकाला गया है।
दमकल कर्मियों को 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चलने की आशंका है। रविवार तक किसी भी मकान के आग की चपेट में आने की खबर नहीं थी, हालांकि आग करीब 20 वर्ग किलोमीटर में फैल चुकी थी। करीब डेढ़ महीने पहले यहां लगी आग में दो दर्जन से अधिक घर तबाह हो गए थे।
कोनिनो काउंटी शेरिफ के प्रवक्ता जॉन पैक्सटन ने कहा, ‘‘ यह एकदम उसी भयावह मंजर जैसा है। हम फिर से उसी स्थिति में आ गए हैं और फिर वही सब कर रहे हैं, जो करीब डेढ़ महीने पहले कर रहे थे। ’’
पश्चिमी अमेरिका के कई राज्यों में इस बसंत की शुरुआत में जंगलों में आग लग गई थी, जहां जलवायु परिवर्तन, सूखे जंगल और घास के मैदान के कारण आग तेजी से फैलती है। इस वर्ष अभी तक आग में तबाह हुई जमीन 10 साल के राष्ट्रीय औसत से दोगुने से भी अधिक है।
‘नेशनल इंटरएजेंसी फायर सेंटर’ के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर जंगल की आग बुझाने वाले 6,200 से अधिक दमकल कर्मी लगभग तीन दर्जन से अधिक स्थानों पर जंगल में लगी आग बुझाने के लिए मशक्कत कर रहे हैं। अभी तक 4,408 वर्ग किलोमीटर जमीन आग की घटना में प्रभावित हुयी है। (एपी)
पोर्टलैंड (अमेरिका), 14 जून (एपी)। ‘हाउ टू मर्डर योर हसबैंड’ शीर्षक वाला एक लेख लिखने वाली उपन्यासकार नैंसी क्राम्पटन ब्रॉफी को पति की हत्या के मामले में सोमवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
‘केजीडब्ल्यू’ टीवी की खबर के अनुसार, नैंसी क्राम्पटन ब्रॉफी (71) को सात सप्ताह तक चली सुनवाई के बाद 25 मई को दोषी करार दिया गया था। उन्हें सोमवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 25 साल जेल में बिताने के बाद उन्हें पैरोल मिल सकती है।
अभियोजकों ने कहा कि क्राम्पटन ब्रॉफी ने 63 वर्षीय डैन ब्रॉफी को ‘ओरेगन कलिनरी इंस्टीट्यूट’ के अंदर गोली मार दी थी, क्योंकि वह डैन के जीवन बीमा से मिलने वाले पैसे चाहती थीं। यह इंस्टीट्यूट अब बंद हो चुका है, डैन 2018 में वहां काम करते थे।
अभियोजन पक्ष ने जूरी को बताया कि जिस वक्त डैन की हत्या हुयी उस वक्त दंपती आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे थे। उन्होंने दलील दी कि क्राम्पटन ब्रॉफी ने ऑनलाइन मंचों से ‘घोस्ट गन’ किट के बारे में जानकारी हासिल की, उसे खरीदी और फिर बाद में एक ‘गन शो’ में ग्लॉक 17 हैंडगन भी खरीदी।
हालांकि, क्राम्पटन ब्रॉफी और उनके वकीलों ने इस तथ्य को खारिज कर दिया और कहा कि उन्होंने उपन्यास लिखने की तैयारी के लिए बंदूक खरीदी थी।
मैड्रिड, 13 जून। उत्तरपूर्वी स्पेन में एक क्षेत्रीय यात्री ट्रेन और एक इंजन में आमने-सामने की भिडंत होने से 22 लोग घायल हो गए, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
उत्तर पूर्वी कातालूनिया की क्षेत्रीय सरकार ने बताया कि घायलों में से पांच की हालत गंभीर है।
यह घटना रविवार देर रात विला-सेका शहर में हुई, जो बार्सिलोना के दक्षिण में स्थित है। घटना के वक्त ट्रेन में 75 यात्री सवार थे।
स्पेन की अदिफ रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी ने कहा कि मालवाहक ट्रेन के इंजन में ब्रेक की समस्या थी। इस घटना की जांच की जा रही। इस लाइन पर सोमवार को भी यातायात बाधित रहा। (एपी)
बीते साल दिसंबर में रिलीज़ हुई फ़िल्म 'स्पाइडर मैन - नो वे होम' के लिए सिने प्रेमियों में गज़ब की दीवानगी दिखी.
इस फ़िल्म ने बॉक्स ऑफ़िस पर झंडे लहरा दिए और दो अरब डॉलर यानी करीब एक खरब 55 अरब रुपये से ज़्यादा का कारोबार किया.
इस फ़िल्म को देखने दर्शक थियेटरों में उमड़ पड़े और कोरोना महामारी के साए तले दब से गए फ़िल्म उद्योग को नई उम्मीद मिली.
लेकिन, चीन के दर्शक ये फ़िल्म नहीं देख सके. वहां इस पर पाबंदी लगा दी गई. चीन अर्से से ऐसी किसी भी सामग्री को बैन करता रहा है जो उसकी प्रभुसत्ता को चुनौती देती हो. लेकिन 'स्पाडरमैन' की इस फ़िल्म में ऐसा कुछ नहीं था जिससे चीनी मूल्यों को कोई ठेस लगती. इस फ़िल्म में तो चीन को दिखाया तक नहीं गया. इसके बाद सवाल उठा कि आखिर चीन सरकार और हॉलीवुड के बीच क्या चल रहा है?
क्या चीन के एजेंडा में नकारात्मक प्रचार पर रोक से आगे भी कुछ है? आखिर चीन ने स्पाइडर मैन पर पाबंदी क्यों लगाई?
चीन और हॉलीवुड
साल 1949 के पहले चीन की फ़िल्म इंडस्ट्री बहुत छोटी सी थी. इसका दायरा चीन में बनी फ़िल्मों के अलावा हॉलीवुड की कुछ फ़िल्मों तक सीमित था. लेकिन चेयरमैन माओ (माओत्से तुंग) के उदय और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना के गठन के साथ सब कुछ बदल गया.
साल 1951 से हॉलीवुड और हॉन्ग कॉन्ग में बनी फ़िल्मों के चीन में प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई. चीन में तब सिनेमा दिखाने वाली गाड़ियां पूरे देश में घूमतीं. इनके जरिए किसानों और मजदूरों की कहानियां दिखाई जातीं जिनमें वो कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति अपने समर्पण की बात कर रहे होते.
चीन में तीन दशक तक ऐसी ही फ़िल्में छाई रहीं.
'चाइनाज़ एनकाउंटर विद ग्लोबल हॉलीवुड' नाम की किताब की लेखिका वेंडी सू बताती हैं, " चीन में इन 30 सालों के दौरान सिर्फ़ एक अमेरिकी फ़िल्म दिखाई गई. शायद ही किसी ने इस फ़िल्म के बारे में सुना हो. ये फ़िल्म है 'सॉल्ट ऑफ़ द अर्थ'."
कम्युनिस्ट पार्टी से कथित रिश्तों को लेकर हॉलीवुड ने इस फ़िल्म के निर्माताओं को ब्लैकलिस्ट कर दिया था. चीन के दर्शकों तक इस फ़िल्म के पहुंचने की ये एक अहम वजह थी.
साल 1976 में चेयरमैन माओ की मौत के बाद चीन की फ़िल्म इंडस्ट्री में 'टर्निंग प्वाइंट' आया. दशकों तक सरकार की प्रचार मशीन बने रहे फ़िल्म उद्योग के पास अब ज़्यादा आज़ादी थी. लेकिन सरकार की ओर से मिलने वाली आर्थिक मदद बंद होने से उसकी हालत खस्ता थी.
वेंडी सू बताती हैं, "चीन का फ़िल्म उद्योग गहरे संकट में था. कई फ़िल्म स्टूडियो दीवालिया हो चुके थे. थियेटर जाने वालों की संख्या बेहद कम हो चुकी थी."
वेंडी सू ने बताया, " उन्होंने सरकार के फ़िल्म ब्यूरो को सुझाव दिया कि हमें हॉलीवुड की ऐसी फ़िल्में खरीदनी चाहिए जो हिट हो चुकी हों. चीन के लोगों को भी ये फ़िल्में पसंद आएंगी. वो थियेटर जाएंगे तो हम पैसे बना सकेंगे. इस पैसे से हम चीन में फ़िल्में बनाने में मदद कर पाएंगे. हॉलीवुड की फ़िल्में लाने का विचार यहीं से शुरू हुआ."
साल 1994 में चीन में हॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म 'द फ़्यूजिटिव' रिलीज़ हुई. ये एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो अपनी पत्नी के क़त्ल के इल्ज़ाम में घिरा है और इस आरोप को ग़लत साबित करने की कोशिश कर रहा है.
इस फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएं हैरिसन फोर्ड और टॉमी ली जॉन्स ने निभाई थीं. चीन के दर्शकों पर उन्होंने ग़ज़ब की छाप छोड़ी.
वेंडी सू कहती हैं, " चीन के दर्शकों को लगा कि हॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म इतनी दिलचस्प हो सकती है. एक्शन से भरपूर तेज़ रफ़्तार वाली फ़िल्म. आप कल्पना कर सकते हैं कि उनके लिए ये एक सनसनी, एक सरप्राइज़ की तरह थी. क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उनका तीस साल से ज़्यादा वक़्त से कोई संपर्क नहीं था."
ये एक नए युग की शुरुआत थी. सिर्फ़ चीन के दर्शकों के लिए नहीं बल्कि देश की पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री के लिए.
लेकिन चीन ने तय किया था कि हर साल हॉलीवुड की सिर्फ़ 10 फ़िल्में ही प्रदर्शित होंगी. इनमें से हर फ़िल्म से हॉलीवुड को बॉक्स ऑफ़िस की कुल कमाई का दसवां हिस्सा हासिल होता था लेकिन चीन के लोगों के लिए ये फ़िल्में अनमोल थीं.
वो बाहर की दुनिया देखने को बेताब थे लेकिन सरकार सिर्फ़ ऐसी फ़िल्में दिखाकर कमाई करना चाहती थी जो चीन की शासन प्रणाली को चुनौती न देती हों.
पाबंदी और सुलह
साल 1997 में हॉलीवुड की तीन फ़िल्में रिलीज़ हुईं. इनकी कहानियों ने चीन और हॉलीवुड के संबंधों में 'ब्रेकअप' करा दिया. इनमें से दो फ़िल्में थीं 'सेवन ईयर्स इन तिब्बत' और 'कुंडुन'. इसमें तिब्बत के आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा की बात थी.
तीसरी फ़िल्म थी 'रेड कॉर्नर'. इसमें चीन के लीगल सिस्टम की खामियां दिखाई गईं थीं. इनमें से कोई फ़िल्म चीन में दिखाए जाने के लिए नहीं बनी थी.
लेकिन इनकी कहानियों ने चीन के प्रशासन को इस कदर नाराज़ कर दिया कि उन्होंने ये फ़िल्में बनाने वाले तीन स्टूडियो पर पाबंदी लगा दी. तीन बड़े बैनर सोनी, एमजीएम और डिज्नी को अचानक बाहर का रास्ता दिखाए जाते ही हॉलीवुड बैकफुट पर आ गया.
सदर्न कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर स्टेनली रोजन कहते हैं, " उन दिनों हॉलीवुड के लिए चीन का फ़िल्म बाज़ार ज़्यादा बड़ा नहीं था लेकिन चीन ने शुरुआत में ही अपनी धमक दिखा दी. उन्होंने हॉलीवुड के तमाम स्टूडियो को बता दिया कि अगर आप ऐसी फ़िल्म बनाते हैं जिसे आप चीन में नहीं दिखाना चाहते तो वो सिर्फ़ उसी फ़िल्म पर पाबंदी नहीं लगाएंगे बल्कि आपकी सभी फ़िल्मों पर रोक लगा देंगे. चीन ने शुरुआत से ही हॉलीवुड को ये बताने की कोशिश की कि बॉस कौन है?"
तब चीन का बाज़ार छोटा ज़रूर था लेकिन अमेरिकी फ़िल्म निर्माताओं ने यहां मौजूद संभावनाओं को बखूबी परख लिया था. अब सीन में कुछ दिग्गजों ने एंट्री ली.
डिज्नी के बॉस माइकल आइज़नर और अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने चीन का भरोसा बहाल करने की योजना बनाई. इसके बाद हॉलीवुड के तीनों स्टूडियो के दरवाजे चीन के दर्शकों के लिए फिर खुल गए. लेकिन चीन में स्थिति बदलने लगी थी.
स्टेनली रोजन बताते हैं, " उस वक़्त चीन के अख़बार हॉलीवुड फ़िल्मों की समीक्षा कर रहे थे. सेविंग प्राइवेट रायन, टाइटैनिक, स्टार वार्स जैसी फ़िल्मों को चीन में बड़ी कामयाबी मिली थी. लेकिन अख़बार लिख रहे थे कि हॉलीवुड फ़िल्मों से दुनिया के लिए उनकी सोच जाहिर होती है. अगर वो एक रशियन फ़िल्म बनाते हैं तो उसमें बहुत से मसाले होंगे. अगर वो अफ़्रीका पर फ़िल्म बनाएंगे तो उसमें बेढब से लोग दिखेंगे."
इसके बावजूद, चीन में दिखाई जाने वाली हॉलीवुड फ़िल्मों की संख्या लगातार बढ़ रही थी. साल 2001 में चीन में दिखाई जाने वाली हॉलीवुड फ़िल्मों की संख्या 10 से बढ़ाकर 20 हो गई. 2012 में ये संख्या 34 हो गई. चीन से हॉलीवुड को होने वाली कमाई भी 10 से बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई.
लेकिन कुछ वक़्त बाद ये लगने लगा कि चीन के दर्शकों की अमेरिकी फ़िल्मों से मुहब्बत घट रही है.
स्टेनली कहते हैं, " कुछ हद तक ये सही है. इसके पीछे के कई कारण हैं. एक तो चीन के लोग अपनी फ़िल्में बना रहे हैं जिनमें स्पेशल इफ़ेक्ट्स होते हैं. जिनका बड़ा बजट होता है. जिनमें स्टार्स होते हैं. चीन में पहले बड़े फ़िल्म स्टार नहीं थे. हॉन्ग कॉन्ग के जैकी चान, अर्नाल्ड श्वाजनेगर जैसे स्टार थे. अब चीन के पास अपने स्टार हैं. दूसरे हॉलीवुड फ़िल्मों में दुहराव भी दिखता है और चीन के दर्शक अब उन्हें देखकर पहले की तरह अचंभित नहीं होते."
चीन के दर्शकों की पसंद भले ही बदल रही हो लेकिन हॉलीवुड के लिए चिंता का मामला चीनी दर्शक नहीं बल्कि वहां के सेंसर हैं.
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चीन की पसंद अहम
न्यूयॉर्क स्थित संगठन 'पेन अमेरिका' के रिसर्च डायरेक्टर जेम्स टैगर कहते हैं, " जब मैं इस मुद्दे पर रिसर्च कर रहा था तब मुझसे एक व्यक्ति ने कहा कि आधा मामला चीन की सेंसरशिप से जुड़ा है और आधे की वजह है अमेरिका का पूंजीवाद."
जेम्स बताते हैं कि चीन के दर्शकों तक पहुंचने के लिए हॉलीवुड किस तरह के समझौते कर रहा है.
वो कहते हैं कि साल 2020 में चीन का बॉक्स ऑफ़िस दुनिया में सबसे बड़ा हो गया और चीन तक पहुंच हासिल करने से हॉलीवुड की बड़ी फ़िल्मों की आर्थिक तकदीर बन या बिगाड़ सकती है.
जेम्स कहते हैं, " इन बड़ी कंपनियों के लिए चीन के सेंसर को ध्यान में रखने के आर्थिक फायदे हैं. इन दिनों हम देख रहे हैं कि हॉलीवुड स्टूडियो में खुद को सेंसर करने का चलन आम हो गया है. वो ये तय करना चाहते हैं कि उनकी बनाई फ़िल्म चीन में दिखाई जा सके."
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जेम्स कहते हैं कि ये पता करना मुश्किल है कि क्या हॉलीवुड चीन के दर्शकों को ध्यान में रखकर कहानियां तैयार करा रहा है या फिर चीनी सेंसर के आधार पर विवाद पैदा कर सकने वाले दृश्यों को बाद में हटाया जा रहा है.
लेकिन साल 2014 में इसकी एक छोटी सी झलक सामने आई. तब सोनी के प्रतिनिधियों के ईमेल हैक कर लिए गए. इसके जरिए 'पिक्सल्स' नाम की साइंस फिक्शन कॉमेडी को लेकर हुई बातचीत जाहिर हो गई.
इस फ़िल्म में दिखाया गया था कि ताजमहल और वॉशिंगटन के कुछ स्मारकों पर एलियन हमला कर देते हैं. चीन की दीवार भी इस जद में आ जाती है. सोनी के बॉस सोच रहे थे कि क्या इससे जुड़े दृश्य हटा दिए जाएं और आखिर में उन्हें डिलीट कर ही दिया गया.
जेम्स कहते हैं, "हमारे लिए ये शायद ही कभी सामने आने वाली बात थी. इससे हमें जानकारी हुई कि स्टूडियो प्रतिनिधियों के लिए ये कितनी आम बात है. वो आपस में इस पर बहस करते कि चीन के बाज़ार में दाखिल होने के लिए फिल्म के किस हिस्से में बदलाव करना होगा. मेरे कहने का मतलब है कि स्टूडियो के प्रतिनिधि एक दूसरे को लिख रहे हैं कि सेंसर इसे लेकर सख्त है या फिर इस सीन के सेंसर से पास होने में दिक्कत हो सकती है तो इसे काट दिया जाए."
बदलाव कुछ अलग किस्म के भी थे. मसलन गे या फिर लेस्बियन किरदारों के संवादों में बदलाव किया गया. जेम्स कहते हैं कि कई लोगों को ये लग सकता है कि इसमें क्या बड़ी बात है.
लेकिन इसके मायने ये हैं कि दुनिया का सबसे उम्दा केंद्र अपनी कहानियों पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रोपैगेंडा सेंटर की अनुमति लेता है. जेम्स कहते हैं कि ऐसे में फ़िल्म की कहानी में कई राजनीतिक संदेश भी डाले जा सकते हैं.
पिक्चर अभी बाकी है
वर्जीनिया यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफ़ेसर आयन कोकस कहती हैं, "बड़े बजट की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म की चीन में कामयाब रिलीज़ अमेरिकी बॉक्स ऑफ़िस कमाई को दोगुना कर सकती है."
साल 2020 में दुनिया भर में हॉलीवुड फ़िल्मों के सर्वाधिक दर्शकों के मामले में चीन ने अमेरिका को पीछे छोड़ दिया. यहां ये याद रखना होगा कि हॉलीवुड में ग्लैमर की चकाचौंध के पीछे ऐसे लोग हैं जिन पर निवेशकों का दबाव होता है कि वो अलग अलग तरीके से पैसे बनाएं.
आयन कोकस कहती हैं, " डिज्नी जैसी कंपनी की बात करें तो पाएंगे कि वो अपनी फ़िल्म के जरिए चीन के बाज़ार में दाखिल होने की कोशिश करते हैं. उनका मकसद सिर्फ फ़िल्म से कमाई का नहीं होता. वो ऐसी बौद्धिक संपदा भी तैयार करना चाहते हैं जिसकी चीन के बाज़ार में वकत हो. जिनका इस्तेमाल सामान बेचने, थीम पार्क तैयार करने, वीडियो गेम्स, कपड़े और खिलौने जैसे दूसरे उत्पाद बेचने में किया जा सके."
हालांकि, चीन के सेंसर को लेकर कोई गारंटी के साथ कुछ नहीं कह सकता है.
बीते साल मार्वल की सुपर हीरो फ़िल्म 'शांग ची एंड द लेजेंड ऑफ़ द टेन रिंग्स' रिलीज़ हुई. इस फ़िल्म को चीन में रिलीज़ करने की इजाज़त नहीं मिली. इसका प्रमुख कारण ये बताया गया कि फ़िल्म के प्रमुख कलाकार ने अतीत में चीनी प्रशासन की आलोचना की थी.
स्पाइडरमैन की हालिया फ़िल्म 'नो वे होम' पर रोक के लिए भी ऐसा ही मामूली कारण बताया गया. दिक्कत की वजह ये है कि हॉलीवुड इस बात का अंदाज़ा नहीं लगा पा रहा है कि चीन किस बात पर आपत्ति जता सकता है.
आयन कोकस कहती हैं, " ये चुनौती का नया पहलू है. ऐसा नहीं है कि आगे कभी सुपरहीरो फ़िल्म नहीं बनेगी. ये लगातार चलने वाली खींचतान है जहां स्टूडियो को ये देखना होगा कि उनकी फ़िल्म को चीन में किस तरह देखा जाएगा. ये मानक कई बार उन लोगों के लिए भी स्पष्ट नहीं होते जो स्टूडियो से बातचीत करते हैं और उन्हें दिशा निर्देश देते हैं, ऐसी स्थिति में स्टूडियो को सोचना होता है कि वो जो बना रहे हैं आगे उसका प्रभाव क्या होगा?"
साल 1997 से मिले सबक भी सामने हैं. तब स्टूडियो को वो फ़िल्में बनाने की सज़ा दी गई जो चीन में रिलीज़ तक नहीं होनी थीं.
आयन कोकस कहती हैं, "निश्चित तौर पर इस सवाल का कोई साफ़ जवाब नहीं है. मुझे लगता है कि एक बात समझना ज़रूरी है कि एक वक़्त ऐसा आ सकता है जब हॉलीवुड स्टूडियोज़ सोचें कि बड़े बजट की फ़िल्मों के लिए चीन के बाज़ार पर निर्भर रहना भरोसेमंद कारोबारी फ़ैसला नहीं है. लेकिन लगता ये है कि तमाम अनिश्चितता के बाद भी वो प्रयास जारी रखे हुए हैं."
लौटते हैं उसी सवाल पर कि चीन ने 'स्पाइडर मैन' पर पाबंदी क्यों लगाई?
संक्षेप में जवाब है कि इसके जरिए अमेरिका की छवि एक गौरवशाली और शक्तिशाली देश की बनती है जो चीन के लिए नाकाबिल ए बर्दाश्त था.
दूसरी बात है कि चीन की सरकार देश की विचारधारा को बढ़ाने वाली चीनी फ़िल्मों के ज़्यादा जगह चाहती है. अब सवाल ये भी है कि अगर हॉलीवुड चीन के दर्शकों के पीछे भागता रहा तो फ़िल्म की कहानियों पर कितना असर होगा?
हमारे तीसरे एक्सपर्ट जेम्स टैगर कहते हैं कि अगर कोई लेखक यातना शिविर की कहानी बताना चाहता है तो उसे शायद ही इसकी अनुमति मिले क्योंकि ऐसी कोई फ़िल्म चीन में नहीं दिखाई जा सकती है क्योंकि अभी वो वीगरों को यातना शिविरों में रख रहे हैं.
यानी ऐसी फ़िल्म कभी नहीं बन सकेगी. (bbc.com)
कीव, 13 जून | एमनेस्टी इंटरनेशनल ने रूस पर यूक्रेन में युद्ध अपराधों का आरोप लगाते हुए कहा है कि खारकिव में हुए हमलों में कई लोग प्रतिबंधित क्लस्टर बमों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसमें सैकड़ों नागरिक मारे गए हैं। द गार्जियन ने बताया कि अधिकार समूह ने सोमवार को प्रकाशित 'एनीवन कैन डाई एट एनी टाइम' टाइटल वाली एक रिपोर्ट में यह टिप्पणी की।
रिपोर्ट में कहा गया है, "खारकिव के रिहायशी इलाकों में बमबारी हमले हो रहे हैं, जिसमें सैकड़ों नागरिक मारे गए और घायल हुए हैं। यह युद्ध अपराध हैं।"
रिपोर्ट में कहा गया कि आबादी वाले नागरिक क्षेत्रों में इस तरह के गलत विस्फोटक हथियारों का निरंतर उपयोग से बड़ी संख्या में नागरिक हताहत हो रहे हैं।
द गार्जियन के अनुसार, एमनेस्टी ने कहा कि उन्होंने रूसी बलों द्वारा खारकिव में 9एन210 और 9एन235 क्लस्टर बमों के उपयोग के सबूत का खुलासा किया है, जो सभी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के तहत प्रतिबंधित हैं।
गार्जियन रिपोर्ट में बताया गया कि खारकीव के सैन्य प्रशासन ने एमनेस्टी को बताया कि युद्ध शुरू होने के बाद से इस क्षेत्र में 606 नागरिक मारे गए हैं और 1,248 घायल हुए हैं। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 13 जून | पाकिस्तानी राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने कहा है कि उनका देश बाल श्रम की रोकथाम के प्रति अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के लिए प्रतिबद्ध है।
समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, अल्वी ने हितधारकों से बाल श्रम को रोकने का आग्रह किया है।
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस पर एक संदेश में राष्ट्रपति ने कहा, बाल श्रम दुनिया में, विशेष रूप से विकासशील देशों में एक बढ़ता हुआ अभिशाप है। पाकिस्तान इस बढ़ती वैश्विक घटना का शिकार है।
अल्वी ने कहा कि पाकिस्तान के संविधान ने गारंटी दी है कि 14 साल से कम उम्र के बच्चे को किसी भी तरह के रोजगार में नहीं लगाया जाएगा।
अल्वी ने कहा, बाल श्रम बच्चों को बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित करता है। उनके स्वतंत्रता के मूल अधिकारों को छीन लेता है।
अल्वी ने इस बात पर जोर दिया कि हर एक बच्चे को शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य प्राप्त करने का अधिकार है।
राष्ट्रपति ने कहा कि यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि बच्चों को भी उनके आसपास एक सुरक्षित वातावरण प्रदान किया जाए। (आईएएनएस)
फ्लैगस्टाफ (अमेरिका), 13 जून। अमेरिका के फ्लैगस्टाफ से करीब नौ किलोमीटर उत्तर में स्थित जंगल में रविवार को आग लग गई जो लगातार बढ़ रही है, इसके बाद उत्तरी एरिजोना के कुछ हिस्सों से लोगों को निकाला जा रहा है । अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
‘कोनीनो नेशनल फॉरेस्ट’ के अधिकारियों ने बताया कि सुबह करीब सवा दस बजे हमें आग लगने की सूचना मिली। उन्होंने बताया कि एरिजोना स्नोबोवल और पश्चिम शुल्त्स पास रोड क्षेत्र में रहने वाले लोगों को वहां से निकाला गया है और डोनी पार्क तथा माउंट एल्डन के पास के क्षेत्र के निकट रहने वाले लोगों को घर छोड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए।
‘अमेरिकन रेड क्रॉस एरिजोना’ ने इन स्थानीय निवासियों को सिनागुआ मिडिल स्कूल में आश्रय दिया है।
अधिकारियों ने बताया कि अग्निशमन का एक दल एक बुलडोजर, एक पानी के टेंडर, तीन गश्ती इकाइयों और छह इंजनों के साथ जंगल में लगी आग बुझाने के लिए रवाना हो चुका है।
उन्होंने बताया कि चार एयर टैंकर और एक हेलीकॉप्टर के साथ-साथ एक ‘इंसिडेंट मैनेजमेंट टीम’ को भी मौके पर जाने का आदेश दिया गया है, जो अगले कुछ दिनों में वहां पहुंच जाएंगे।
वहीं, एरिजोना परिवहन विभाग ने ‘यूएस रूट 89’ को बंद कर दिया है। विभाग ने ट्विटर पर कहा कि इसे दोबारा कब खोला जाएगा इस संबंध में अभी कोई जानकारी नहीं दी जा सकती।
जंगल में आग लगने की वजह अभी पता नहीं चल पाई है।(एपी)
पाकिस्तान के विदेश मंत्री और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ने कहा है कि दहशतगर्दी से जुड़े सभी मामलों के बारे में अंतिम फ़ैसला संसद में होना चाहिए.
डॉन अख़बार के अनुसार, पीपीपी ने दहशतगर्दी के मुद्दे पर बातचीत करने के लिए वरिष्ठ नेताओं की बैठक की. इस दौरान अफ़ग़ानिस्तान के ताज़ा घटनाक्रम और चरमपंथी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और तहरीक-ए-तालिबान अफ़ग़ानिस्तान (टीटीए) के बारे में भी बातचीत हुई.
बाद में बिलावल भुट्टो ने ट्वीट किया, "पीपीपी का मानना है कि सारे फ़ैसले संसद में लिए जाने चाहिए. इस मामले में आम सहमति बनाने के लिए सहयोगी दलों से संपर्क करूंगा."
पाकिस्तान की सरकार और टीटीपी काबुल में बातचीत कर रहे हैं और काबुल की तालिबान सरकार इस बातचीत में मदद कर रही है.
पिछले महीने पाकिस्तान की सरकार और टीटीपी ने अनिश्चित काल के लिए युद्धबंदी का ऐलान किया था और सीमावर्ती क़बायली इलाक़ों में पिछले दो दशकों से जारी चरमपंथी गतविधियों को ख़त्म करने के लिए बातचीत जारी रखने का फ़ैसला किया था. (bbc.com)