अंतरराष्ट्रीय
मेक्सिको सिटी, 22 जून | मेक्सिको में पिछले 9 हफ्तों में कोविड 19 के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है, लेकिन इस अवधि में कोई भी मरीज अस्पताल में भर्ती नहीं हुआ है और न ही महामारी से होने वाली मौतों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इसकी सूचना प्रीवेंशन और हेल्थ प्रोमोशन के अंडरसेक्रेटरी ह्यूगो लोपेज गैटेल ने दी। लोपेज गैटेल ने मंगलवार को कहा कि वर्तमान में कोरोना का प्रकोप कुछ महीने पहले संक्रमण की चौथी लहर की तुलना में अधिक मध्यम गति से फैल रहा है। इसके पीछे का कारण ओमिक्रोन बीए.4 और बीए.5 वेरिएंट है।
समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, लोपेज गैटेल ने कहा कि कोरोना वायरस के मामलों में वृद्धि के दौरान अस्पताल में भर्ती होने या मौतों की संख्या में किसी भी तरह की बढ़ोतरी दर्ज नहीं की गई है।
लोपेज गैटेल ने कहा, "देश भर में प्रतिदिन औसतन पांच मौतें होती हैं, जो विशेष रूप से दूसरी लहर के दौरान देखा गया था, लेकिन उसकी तुलना में यह काफी कम है।"
सोमवार तक, मेक्सिको ने 5,877,837 कोविड-19 मामलों की पुष्टि की थी। (आईएएनएस)
लंदन, 22 जून | ब्रिटेन के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि कुछ गे और बायसेक्सुअल पुरुषों, जिनमें मंकीपॉक्स होने का खतरा अधिक है, उन्हें वैक्सीन लगाई जानी चाहिए। बीबीसी के अनुसार, यह कदम ब्रिटेन में मंकीपॉक्स के प्रकोप को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। देश में अब तक इस वायरस से 793 लोग संक्रमित हो चुके हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मंकीपॉक्स को यौन संचारित संक्रमण के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है। हालांकि, यह यौन संबंध के दौरान, बिस्तर, तौलिये और स्किन के साथ संपर्क में आने से भी फैलता है।
यूके स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी (यूकेएचएसए) ने कहा कि चेचक से बचाव के लिए बनाई गई वैक्सीन इम्वेनेक्स मंकीपॉक्स के संपर्क में आए मरीजों को वायरस से उबरने में मदद कर सकती है।
वैक्सीन इम्वेनेक्स मंकीपॉक्स के खिलाफ प्रभावी है। इसको यूके के वैक्सीन विशेषज्ञों, संयुक्त टीकाकरण और प्रतिरक्षा समिति (जेसीवीआई) द्वारा मंजूरी मिल चुकी है। (आईएएनएस)
काबुल, 22 जून | बुधवार तड़के पूर्वी अफगानिस्तान में आए भूकंप में 150 से अधिक लोगों की मौत हो गई, जबकि 250 से अधिक घायल हो गए। कई सूत्रों के अनुसार इसकी जानकारी दी गई है। अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, 6.1 तीव्रता के भूकंप ने अफगानिस्तान के खोस्त से 44 किमी दक्षिण-पश्चिम में झटका दिया।
स्थानीय सूत्रों ने बताया कि भूकंप से क्षेत्र में दर्जनों घर क्षतिग्रस्त हो गए और पूर्वी पक्तिका प्रांत में जमीन खिसक गई। (आईएएनएस)
काबुल, 22 जून | अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत में बुधवार तड़के आए भूकंप में कम से कम 280 लोगों की मौत हो गई और 595 घायल हो गए।
राज्य द्वारा संचालित बख्तर समाचार एजेंसी ने लेटेस्ट स्थानीय स्रोतों का हवाला देते हुए बताया कि सबसे अधिक प्रभावित पूर्वी प्रांत पक्तिका प्रांत के बरमल, जि़रुक, नाका और गयान जिलों में लगभग 255 लोगों की जान चली गई।
प्रभावित इलाकों में हेलीकॉप्टर और बचाव दल पहुंच गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पड़ोसी खोस्त प्रांत में कम से कम 25 लोग मारे गए और 95 अन्य घायल हो गए।
यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक, खोस्त से 44 किमी दक्षिण-पश्चिम में 6.1 तीव्रता का भूकंप आया।
स्थानीय सूत्रों ने बताया कि भूकंप से क्षेत्र में दर्जनों घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं और पक्तिका में जमीन खिसक गई है।
स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि अगर केंद्र सरकार ने आपातकालीन मदद नहीं दी तो मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है।
तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार में उप प्रधानमंत्री, जो राहत और आपदा नियंत्रण प्राधिकरण के प्रमुख हैं, उन्होंने सभी संबंधित पक्षों को जल्द से जल्द प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचने और सभी उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करने का निर्देश दिया। सरकारी समाचार एजेंसी ने उनके हवाले से कहा, "प्रभावित लोगों की जान बचाएं और उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान करें।" (आईएएनएस)
काबुल, 22 जून। अफगानिस्तान के पूर्वी पक्तिका प्रांत में आए शक्तिशाली भूकंप में कम से कम 255 लोगों की जान चली गई। देश की सरकारी समाचार एजेंसी ने यह जानकारी दी।
सरकारी समाचार एजेंसी ‘बख्तर’ ने बुधवार को मृतक संख्या के संबंध में जानकारी दी और बताया कि बचाव कर्मी हेलीकॉप्टर से मौके पर पहुंच रहे हैं।
पक्तिका प्रांत में आए 6 तीव्रता के भूकंप के संबंध में अधिक जानकारी अभी नहीं मिल पाई है।
यह आपदा देश पर ऐसे समय में आई है, जब अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान के देश को अपने नियंत्रण में लेने के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अफगानिस्तान से दूरी बना ली है। इस स्थिति के कारण 3.8 करोड़ की आबादी वाले देश में बचाव अभियान को अंजाम देना काफी जटिल होने की आशंका है।
तालिबान सरकार के उप प्रवक्ता बिलाल करीमी ने ट्वीट किया, ‘‘ पक्तिका प्रांत के चार जिलों में भीषण भूकंप में, हमारे देश के सैकड़ों लोग हताहत हुए हैं और कई मकान तबाह हो गए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ हम सभी सहायता एजेंसियों से आग्रह करते हैं कि स्थिति को संभालने के लिए तुरंत अपने दल मौके पर भेजें।’’
इस बीच, पाकिस्तान मौसम विज्ञान विभाग (पीएमडी) के अनुसार पाकिस्तान के पेशावर, इस्लामाबाद, लाहौर तथा पंजाब के अन्य हिस्सों और खैबर-पख्तूनख्वा के प्रांतों में 6.1 तीव्रता के भूकंप के झटके महसूस किए गए।
यूरोपीय भूमध्य भूकंपीय केंद्र (ईएमएससी) के अनुसार, भूकंप के झटके अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत में महसूस किए गए। (एपी)
पेशावर, 21 जून। पाकिस्तान के आतंकवाद रोधी विभाग (सीटीडी) की खैबर पख्तूनख्वा इकाई ने चेतावनी दी है कि आतंकवादी पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की हत्या की साजिश रच रहे हैं और उन्होंने इसके लिए अफगानिस्तान में एक हत्यारे से मदद मांगी है। यह जानकारी मंगलवार को एक मीडिया रिपोर्ट में दी गयी है।
उर्दू भाषा के समाचार पत्र 'जंग' की रिपोर्ट के अनुसार, आतंकवाद रोधी विभाग ने सभी संबंधित एजेंसियों को पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष इमरान खान की सुरक्षा के लिए हरसंभव उपाय करने का निर्देश दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार, सीटीडी की खैबर पख्तूनख्वा इकाई द्वारा जारी चेतावनी में कहा गया है "आतंकवादी इमरान खान की हत्या करने की साजिश रच रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने अफगानिस्तान में एक हत्यारे से मदद मांगी है।’’
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह चेतावनी विभिन्न मंचों के साथ साझा की गई है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि सीटीडी ने 18 जून को अलर्ट जारी किया था। हालांकि, इस धमकी को गोपनीय रखने और इसे सोशल मीडिया पर लीक होने से रोकने के आदेश दिए गए थे।
पीटीआई नेताओं ने हाल ही में खान के जीवन को खतरा होने की आशंका जतायी थी और दावा किया कि उनकी हत्या के लिए एक हत्यारे को काम पर रखा गया है। शनिवार को, पीटीआई नेता फैयाज चौहान ने कहा कि "कुछ लोगों" ने एक आतंकवादी को खान की हत्या का जिम्मा सौंपा है। (भाषा)
कराची, 21 जून पाकिस्तान के सिंध प्रांत के एक ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र में गंभीर चिकित्सकीय लापरवाही का मामला सामने आया है। स्वास्थ्य केंद्र के गैर-प्रशिक्षित कर्मियों ने एक गर्भवती महिला का प्रसव कराते समय गर्भाशय में बच्चे का सिर काट दिया।
घटना के बाद 32 वर्षीय हिंदू महिला की हालत बेहद नाजुक हो गई थी। सिंध सरकार ने मामले की जांच करने और दोषियों का पता लगाने के लिए चिकित्सकीय जांच बोर्ड का गठन किया है।
जमशोरो स्थित लियाकत यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल एंड हेल्थ साइंसेज (एलयूएमएचएस) में स्त्रीरोग विभाग के प्रमुख प्रोफेसर राहील सिकंदर ने बताया, ‘‘भील हिंदू समुदाय की महिला थारपरकर जिले के एक दूरदराज गांव की रहने वाली है। वह पहले अपने इलाके के ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र (आरएचसी) पहुंची, लेकिन वहां कोई महिला स्त्री रोग विशेषज्ञ नहीं थी और केंद्र के गैर-प्रशिक्षित कर्मियों ने प्रसव के दौरान उसे बहुत तकलीफ पहुंचाई।’’
सिकंदर के मुताबिक, आरएचसी के कर्मियों ने रविवार को सर्जरी की और बच्चे का सिर गर्भाश्य में ही काट दिया। इससे महिला की तबीयत काफी खराब हो गई और उसे मीठी में पास के एक अस्पताल ले जाया गया, जहां उसके उपचार की कोई व्यवस्था नहीं थी।
सिकंदर ने बताया कि इसके बाद महिला के परिजन उसे लेकर एलयूएमएचएस पहुंचे, जहां बच्चे का शेष शरीर बाहर निकाला गया। दरअसल, बच्चे का सिर अंदर फंसा था और मां का गर्भाशय क्षतिग्रस्त हो गया था, जिसके चलते डॉक्टरों को महिला की जान बचाने और बच्चे का सिर निकालने के लिए उसके पेट की सर्जरी करनी पड़ी।
सिंध स्वास्थ्य सेवा के महानिदेशक डॉ. जुमन बहोटो ने जच्चा-बच्चा के जीवन के साथ खिलवाड़ से जुड़ी इस घटना के जांच के आदेश दिए हैं।
उन्होंने कहा, “जांच समिति इस बात का पता लगाएगी कि मामले में क्या हुआ था। वह खासतौर पर यह जानने की कोशिश करेगी कि छाचरो स्थित आरएचसी में कोई महिला स्त्री रोग विशेषज्ञ या कर्मचारी क्यों नहीं थी।”
बहोटो ने बताया कि जांच समिति उन खबरों पर भी गौर करेगी कि महिला जब स्ट्रेचर पर थी, तब उसके वीडियो बनाए गए।
उन्होंने कहा, ‘‘कुछ कर्मचारियों ने स्त्री रोग वार्ड में अपने मोबाइल से महिला की तस्वीरें लीं, वीडियो बनाए और उन्हें लोगों के साथ साझा किया।’’ (भाषा)
इसराइल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट और विदेश मंत्री यायिर लैपिड देश की संसद भंग करने पर सहमत हो गए हैं.
इसके साथ ही इसराइली संसद के लिए नए चुनाव होंगे. इस बीच यायिर लैपिड प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालेंगे.
इसराइली मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इसराइल की संसद में अगले हफ़्ते इस सिलसिले में वोटिंग होगी और इसके बाद यायिर लैपिड प्रधानमंत्री पद का ओहदा संभालेंगे.
यायिर लैपिड और नफ्ताली बेनेट ने पिछले साल जून में गठबंधन बनाया था जिसके बाद बिन्यामिन नेतन्याहू की सरकार सत्ता से बेदखल हो गई थी.
इसराइल की मौजूदा गठबंधन सरकार में धुर-दक्षिणपंथी, लिबरल और मुस्लिम अरब जैसे राजनीतिक धड़े शामिल हैं. ये गठबंधन टिक पाएगा या नहीं, इसे लेकर शुरू से ही सवाल खड़े हो रहे थे. (bbc.com)
पाकिस्तान में ये एक आम घारणा है कि राजनेता, जनरल, न्यायाधीश और नौकरशाह देश के बाहर इलाज कराना ही पसंद करते हैं. इसके पीछे अक्सर ये तर्क दिया जाता है कि यह शासक और जनरल अपने कार्यकाल के दौरान देश में स्वास्थ्य देखभाल में सुधार के लिए काम करते रहे, लेकिन ऐसा करने में कामयाब नहीं हो सके.
हाल के दिनों में पाकिस्तान में टीवी चैनलों की स्क्रीन और सोशल मीडिया पर पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ की स्वदेश वापसी की खबरें गर्म हैं. ये चर्चा हो रही है कि परवेज़ मुशर्रफ़ स्वदेश लौटेंगे या नहीं... पाकिस्तानी सेना की ओर से राजनेताओं को दिए गए बयानों के बाद इस बारे में उनके परिवार का रुख़ सामने आया है.
परवेज़ मुशर्रफ़ के परिवार की ओर से ट्विटर पर जारी एक बयान में कहा गया है कि परिवार को पूर्व राष्ट्रपति की दवा की लगातार आपूर्ति और उपचार की व्यवस्था के बारे में महत्वपूर्ण चिकित्सा, क़ानूनी और सुरक्षा चुनौतियों पर विचार करना होगा. (bbc.com)
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि जब उन्हें पता चला कि उनके ख़िलाफ़ साज़िश रची जा रही है, तो उन्होंने 'न्यूट्रल्स' से कहा था कि अगर इस साज़िश को कामयाब होने दिया गया, तो मुल्क की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी.
पत्रकार आफ़ताब इक़बाल के साथ बातचीत में उन्होंने अर्थव्यवस्था, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंध और पार्टी की आंतरिक राजनीति सहित कई मुद्दों पर चर्चा की.
इमरान ख़ान ने स्पष्ट रूप से पाकिस्तानी सेना की ओर इशारा करते हुए कहा, "मैंने तटस्थ लोगों से कहा था कि हमने बड़ी मुश्किल से अर्थव्यवस्था को संभाला है."
उन्होंने कहा कि उनके शासन काल में पहले कोरोना वायरस आया, फिर बिजली की क़ीमतों में वृद्धि हुई और उसके बाद आर्थिक स्थिति कमज़ोर हुई.
इमरान ख़ान ने कहा कि उन्होंने अपने वित्त मंत्री शौकत तरीन को भी ये समझाने के लिए भेजा था कि अगर आप इस साज़िश को सफल होने देंगे तो ये सब बिखर जाएगा और फिर आप इसे संभाल नहीं पाएँगे.
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से एक दिन पहले इमरान ख़ान रूस के दौरे पर थे, जिसके लिए उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. इस यात्रा का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि रूस ऐसा क़दम उठा सकता है.
इमरान ख़ान ने कहा कि उन्होंने सोचा था कि आजकल ऐसी कोई जंग नहीं लड़ी जाएगी. इमरान ख़ान ने कहा कि हमें तेल, गैस और गेहूं ख़रीदने के लिए रूस की ज़रूरत थी, जबकि सेना को भी उनसे सामान ख़रीदना था.
एक सवाल के जवाब में इमरान ख़ान ने कहा कि अमेरिका के साथ हमेशा अच्छे संबंध होने चाहिए, लेकिन अच्छे रिश्ते और ग़ुलामी में फ़र्क होता है.
उन्होंने कहा कि अमेरिका एक विश्व शक्ति है, पाकिस्तान वहाँ सबसे ज़्यादा निर्यात करता है, पाकिस्तान के कुछ सबसे अमीर लोग अमेरिका में रहते हैं और अमेरिका हमसे ग़ुलामी चाहता है.
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि जो अमेरिका के हित के लिए खड़ा होता है, अमेरिका उसको अहमियत देता है. यही वजह है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उन्हें सम्मानित किया था.
लेकिन इमरान खान ने कहा कि अमेरिका हमें ग़ुलाम बनाने की कोशिश कर रहा है ताकि हम रूस न जाएँ और वो हमें सहारा दे. इमरान खान ने कहा कि तीन घंटे की बैठक के बाद पुतिन ने उन्हें समझाया कि उन्होंने हमला क्यों किया. उन्होंने कहा कि अमेरिका और रूस के अपने-अपने बयानों के संदर्भ में पाकिस्तान को तटस्थ रहना चाहिए. (bbc.com)
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने कहा है कि रोहिंग्या मुसलमान उनके देश में सामाजिक समस्याएं पैदा कर रहे हैं. उन्होंने ये भी कहा कि बांग्लादेश में शरणार्थी बनकर रह रहे अधिकांश रोहिंग्या मुसलमान ड्रग और महिला तस्करी जैसे अपराधों में शामिल हैं.
म्यांमार के रखाइन प्रांत में साल 2017 में रोहिंग्या मुस्लिमों पर हुई कार्रवाई के बाद इस समुदाय के लाख़ों लोगों ने सीमा पार कर के बांग्लादेश में शरण ले ली थी.
पीएम शेख़ हसीना ने हाल ही में बांग्लादेश के लिए नियुक्त हुईं कनाडाई उच्चायुक्त लिली निकोल्स से संसद भवन कार्यालय में मुलाक़ात के दौरान ये बयान दिया.
बांग्लादेशी अख़बार द डेली स्टार के अनुसार प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने कनाडाई अधिकारी से कहा कि बांग्लादेश में रह रहे करीब 11 लाख़ रोहिंग्या मुसलमान लंबे समय के लिए समस्याएं पैदा कर रहे हैं.
रोहिंग्याओं को बताया बोझ
द डेली स्टार की ख़बर के अनुसार पीएम शेख़ हसीना ने सवालिया अंदाज़ में कहा, "बांग्लादेश कितने समय तक इतना बड़ा बोझ सह पाएगा?"
उन्होंने ये भी कहा कि बांग्लादेश सरकार ने करीब एक लाख रोहिंग्याओं को भसानचर में अस्थायी शरण दी है, जहां बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं.
शेख़ हसीना की इस चिंता पर कनाडाई राजदूत ने उन्हें सहयोग का आश्वासन दिया. उन्होंने ये भी कहा कि कनाडा रोहिंग्याओं के लिए चैरिटी के ज़रिए अतिरिक्त फंड का इंतज़ाम कर रहा है.
दूसरी ओर रविवार को ही हज़ारों रोहिंग्याओं ने कॉक्स बाज़ार में ही शांतिपूर्ण रैली निकालकर अपने देश म्यांमार वापस जाने की मांग की.
रोहिंग्याओं ने रखी वतन वापसी की मांग
हाथों में पोस्टर और तख्तियां लिए खड़े इन रोहिंग्या प्रदर्शनकारियों की सबसे बड़ी मांग यही थी कि उन्हें वापस अपने घर जाना है.
इन प्रदर्शनकारियों का कहना था कि दशकों से ये लोग दूसरे देश में रहने को मजबूर हैं लेकिन अब कितना और?
कॉक्स बाज़ार के एक रिफ्यूजी कैंप में रहने वाले मोहम्मद फ़ारूक ने बीबीसी से कहा, "हमारी सबसे बड़ी मांग ये है कि हम अपने देश लौट जाएं. हम म्यांमार के नागरिक के तौर पर पहचान चाहते हैं. हम वहां नागरिकों की तरह रहना चाहते हैं. लेकिन बिना सुरक्षा के हम वहां जा नहीं सकते."
उन्होंने कहा, "हम अब भी वापस जाने से डरते हैं. इसलिए हमें अपने ही देश में गुज़ारा करने के लिए सुरक्षा व्यवस्था की ज़रूरत है. संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय समुदाय और म्यांमार को ये सब सुनिश्चित करने के लिए ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए."
पुलिस के अनुसार, इस प्रदर्शन में हज़ारों रोहिंग्या शरणार्थियों ने हिस्सा लिया.
मोहम्मद फ़ारूक ने कहा, "कोई भी अब इन कैंपों में नहीं रहना चाहता. हम में से बहुत से लोग अपने देश में संपन्न परिवार से थे. मैं यूनिवर्सिटी में पढ़ता था."
कॉक्स बाज़ार के शरणार्थी कैंप में रहने वाले मोहम्मद नूर ने कहा कि इस रैली का मुख्य मकसद रोहिंग्या शरणार्थियों के मसले पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचना था.
उन्होंने कहा, "साल 2017 से अब पाँच साल बीत चुके हैं और ऐसा लगता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय, संयुक्त राष्ट्र ने हमें भुला दिया है. हमें वापस देश भेजने के लिए जो वादे उन्होंने किए थे, शायद भुला दिए गए हैं."
"हमें लगता है कि अगर हम ऐसे ही रहते रहे तो दुनिया हमारे लिए कुछ भी नहीं करेगी. हमारे बच्चों के लिए यहाँ पढ़ना मुश्किल है, यहाँ आज़ाद घूमना-फिरना मुश्किल है. कब तक हम ऐसे ही जीते रहेंगे?"
मोहम्मद नूर ने कहा, "बांग्लादेश ने बहुत लंबे समय तक मानवता दिखाई लेकिन अब वो और कितनी मानवता दिखाएगा."
ये प्रदर्शन अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी दिवस से एक दिन पहले आयोजित किया गया. इससे जुड़े सवाल पर मोहम्मद नूर ने कहा, "रोहिंग्या का रिफ्यूजी डे से कोई लेना-देना नहीं. हमें शरणार्थी के तौर पर भी पहचान नहीं मिली है."
रोहिंग्याओं की मौजूदा स्थिति
ऐसी खबरें आईं कि रोहिंग्या मुसलमानों की वतन वापसी को लेकर म्यांमार और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय वार्ता हो रही है लेकिन हकीकत में ये मुद्दा लंबित है.
साल 2017 में अत्याचार झेलने की वजह से म्यांमार से बांग्लादेश भागने वाले रोहिंग्याओं का मुद्दा शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ज़ोर-शोर से उठाया लेकिन अब उनकी आवाज़ कोई नहीं सुन रहा.
अलग-अलग एजेंसियों से रोहिंग्याओं को मिलने वाली फंडिंग भी बंद हो गई है.
बांग्लादेश ही अकेला ऐसा देश है जिसने रोहिंग्याओं को शरण दी है और करीब 12 लाख रोहिंग्या अब उसके लिए बोझ बनते जा रहे हैं.
म्यांमार और बांग्लादेश के बीच रोहिंग्याओं की वतन वापसी को लेकर एक एमओयू पर भी हस्ताक्षर हुए लेकिन इसके बावजूद म्यांमार की सरकार ने इस समुदाय को सुरक्षा देने के लिए किए अपने कई वादों पर अब तक कोई एक्शन नहीं लिया है.
बल्कि इसके उलट म्यांमार में तख्तापलट के बाद सेना के शासन में रोहिंग्याओं को देश वापस लाने का मुद्दा गौण हो गया है.
सरकार के समर्थन से रैली?
ज़िला पुलिस का कहना है कि रोहिंग्याओं का विरोध प्रदर्शन अचानक आयोजित किया गया था.
लेकिन कैंप में रहने वाले एक व्यक्ति ने पहचान न बताने की शर्त पर बीबीसी से कहा कि उन्होंने ये रैली सरकार के समर्थन से आयोजित की थी.
उन्होंने बताया, "कैंप में किसी भी तरह की रैली करने पर रोक है. सरकार ने अब तक कभी भी इसकी इजाज़त नहीं दी थी लेकिन इस बार हमसे कहा गया कि हम प्रदर्शन के तौर पर नहीं बल्कि कैंपेन के तौर पर रैली करें. हम उस रैली के लिए इकट्ठा हो सकते थे. रैली के लिए हमारे बैनर और पोस्टर भी बनाए गए."
कैंप में कानून-व्यवस्था के कमांडर मोहम्मद नेमुल हक़ ने कहा, "ये कैंपेन नहीं था. ये एक रैली थी. वो अपने देश वापस लौटना चाहते हैं. अगर वो किसी मुद्दे पर प्रदर्शन करते हैं, तो उन्हें इसके लिए मंज़ूरी लेनी होगी."
25 अगस्त, 2019 को रोहिंग्याओं के म्यांमार से बांग्लादेश आने की दो साल पूरे होने के बाद हुए प्रदर्शन में करीब 20 हज़ार रोहिंग्या मुस्लिमों ने प्रदर्शन किया था. उसके बाद से अब तक इतने बड़े स्तर पर कोई प्रदर्शन नहीं हुआ. (bbc.com)
कोलंबो, 20 जून। श्रीलंका में अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन को लेकर राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने यहां राष्ट्रपति सचिवालय के सभी प्रवेश द्वार को बंद कर दिया, जिसके बाद पुलिस ने सोमवार को एक बौद्ध भिक्षु, और चार महिलाओं सहित 21 लोगों को गिरफ्तार किया।
श्रीलंका में वर्तमान में लगभग 2.2 करोड़ लोगों का परिवार 70 से अधिक वर्षों में अपने सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था अत्यधिक ईंधन की कमी, खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों और दवाओं की कमी का सामना कर रही है। गाले फेस में प्रदर्शन स्थल गोटागोगामा में प्रदर्शन सोमवार को 73वें दिन में प्रवेश कर गया।
प्रदर्शनकारियों ने रविवार रात को राष्ट्रपति सचिवालय के प्रवेश द्वार के अलावा दो प्रवेश बिंदुओं को भी बंद कर दिया था, जिसे वे नौ अप्रैल से लगातार अवरुद्ध कर रहे हैं।
पुलिस ने एक बौद्ध भिक्षु और चार महिलाओं समेत 21 लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने कहा कि प्रदर्शनकारियों की वित्त मंत्रालय और सरकारी खजाने तक पहुंच प्रदान करने वाले दो गेट को अवरुद्ध करने की ये नयी कार्रवाई अनावश्यक थी। पुलिस दोनों गेट को खाली कराना चाहती है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की टीम वित्त मंत्रालय का दौरा करने वाली है।
आईएमएफ की टीम श्रीलंका की आर्थिक सुधार में सहयोग करने के लिए संभावित बेलआउट कार्यक्रम पर चर्चा जारी रखने के लिए कोलंबो का दौरा कर रही है। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग को लेकर गोटागोगामा पर विरोध नौ अप्रैल को शुरू हुआ था। प्रदर्शनकारी अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के लिए सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं, जिससे वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं और देश का भंडार गिरकर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।
व्यापक जन समर्थन के साथ कोलंबो में हुआ विरोध-प्रदर्शन देश के अन्य हिस्सों में फैल गया। श्रीलंका अपने इतिहास में पहली बार कर्ज को नहीं चुका पाया क्योंकि देश 70 से अधिक वर्षों में सबसे खराब वित्तीय संकट से जूझ रहा है। श्रीलंका के विदेशी लेनदारों पर देय 50 बिलियन अमेरीकी डॉलर से अधिक के ऋणों के पुनर्गठन की मांग कर रहा है, ताकि इसे चुकाने के उद्देश्य से और अधिक प्रबंधनीय बनाया जा सके। विदेशी मुद्रा की कमी और बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण दवाओं, ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी हो गई है।
ऊर्जा मंत्री कंचना विजेसेकारा ने शुक्रवार को कहा कि श्रीलंका कर्ज के लिए एक नए क्रेडिट लाइन को लेकर भारत से आधिकारिक पुष्टि का इंतजार कर रहा है, जिससे नकदी की कमी वाले देश को अगले चार महीनों के लिए पेट्रोल और डीजल की आपूर्ति करने की अनुमति मिलेगी।
प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने मंगलवार को कहा कि भारत से नया क्रेडिट लाइन मिलने पर जुलाई से अगले चार महीनों के लिए नकदी की कमी वाले राष्ट्र की ईंधन खरीद में सहयोग मिलेगा, यहां तक कि 3,500 मीट्रिक टन की एलपीजी शिपमेंट श्रीलंका पहुंच गई। (भाषा)
न्यूयॉर्क, 20 जून। हार्लेम में एक सभा में सोमवार तड़के हुई गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गई और आठ अन्य लोग घायल हो गए। न्यूयॉर्क सिटी पुलिस ने यह जानकारी दी।
पुलिस ने प्रारंभिक सूचना का हवाला देते हुए कहा कि एफडीआर ड्राइव के साथ एक फुटपाथ पर गोलीबारी की खबरों पर अधिकारियों ने सुबह करीब 12:40 बजे कार्रवाई की और घटनास्थल पर पांच लोगों को गोली से घायल पाया। उन्हें इलाज के लिए अस्पतालों में ले जाया गया।
पुलिस ने बताया कि गोली लगने से चार अन्य लोग भी इलाज के लिए अस्पताल पहुंचे। पुलिस ने कहा कि एक 21 वर्षीय व्यक्ति को अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया। घायलों में छह अन्य पुरुष और दो महिलाएं शामिल हैं।
पुलिस आयुक्त कीचंत सीवेल ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा 'फादर्स डे सप्ताहांत पर लोग अपने परिवार के साथ आनंद लेते हैं।'
उन्होंने कहा सोमवार को मामले की जांच जारी रही। पुलिस के पास तत्काल इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि भीड़ क्यों लगी और गोली चलने की वजह क्या रही होगी।
संभावित संदिग्धों के बारे में तुरंत किसी जानकारी का खुलासा नहीं किया गया, लेकिन पुलिस ने ट्विटर पर बताया कि घटनास्थल से एक बंदूक बरामद की गयी है। पुलिस जनता से इस बारे में जानकारी एकत्र कर रही है।
सिवेल ने कहा 'इसके लिए वहीं लोग जिम्मेदार हैं जिनसे हमारे अधिकारी हमारे शहर को सुरक्षित बनाने के लिए हर दिन जूझ रहे हैं।' (एपी)
-पॉल किर्बी
इमैनुएल मैक्रों के दोबारा राष्ट्रपति बने दो महीने से भी कम वक़्त हुआ है और वह नेशनल असेंबली में नियंत्रण खो चुके हैं. ऐसा एक वामपंथी और एक अति-दक्षिणपंथी गठबंधन को मिली बड़ी जीत के कारण हुआ है. मैक्रों को दूसरे चरण के चुनावी नतीजों में रविवार को गहरा झटका लगा है.
मैक्रों ने मतदाताओं से ठोस बहुमत की अपील की थी लेकिन सेन्ट्रिस्ट गठबंधन ने चुनाव में दर्जनों सीटे गंवा दीं जिसकी वजह से फ़्रांस की राजनीति कई हिस्सों में बँट गई है.
हाल ही में मैक्रों की ओर से प्रधानमंत्री नियुक्त की गईं एलिजाबेथ बोर्न ने कहा कि स्थिति अभूतपूर्व है.
राष्ट्रपति आवास से एलिज़ाबेथ के अपने घर लौटते ही पेरिस की राजनीति में तूफ़ान आ गया. उन्होंने कहा कि आधुनिक फ़्रांस ने कभी भी इस तरह की नेशनल असेंबली नहीं देखी.
उन्होंने कहा, "ये हालात हमारे देश के लिए जोख़िम भरे हैं. इससे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर समस्या पैदा होगी. हम कल साधारण बहुमत बनाने की कोशिश करेंगे."
इस्लाम पर विवादः अर्दोआन ने की फ़्रांस के उत्पाद न ख़रीदने की अपील
हालाँकि, इस बहुमत की संभावना भी न के बराबर दिखती है क्योंकि संसद में दो अन्य बड़े समूह दूर-दूर तक गठबंधन में रुचि लेते नहीं दिख रहे हैं. अर्थव्यवस्था मंत्री ब्रूनो ली मेयर का कहना है कि बहुमत के लिए काफ़ी सोच-विचार करने की ज़रूरत है.
वहीं, धुर-वामपंथी नेता जीन-लुस मेलेनचोन मुख्यधारा की सभी लेफ्ट पार्टियों को कम्युनिस्ट्स और ग्रीन्स के साथ एक गठबंधन में लाने की अपनी सफलता पर ख़ुश हैं. इस गठबंधन का नाम न्यूप्स दिया गया है.
उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि राष्ट्रपति की पार्टी पूरी तरह हार चुकी है और अब हर संभावना उनके हाथों में है.
इस बीच, मरीन ले पेन और उनकी धुर दक्षिणपंथी राष्ट्रीय रैली पार्टी भी आठ सीटों से 89 पर पहुंचने के बाद ख़ुशी के मूड में थीं. उन्होंने कहा, "इमैनुएल मैक्रों का एडवेंचर ख़त्म हो गया और अब उनकी सरकार को अल्पमत में भेज दिया गया है."
अगर मौजूदा प्रधानमंत्री अब बहुमत पाने के लिए दक्षिणपंथी रिपब्लिकन की ओर रुख़ करेंगे तो इससे अच्छा संदेश नहीं जाएगा. पार्टी चेयरमैन क्रिस्टियन जैकब ने कहा कि ये परिणाम एक राष्ट्रपति के लिए 'चुभने वाली विफलता' जैसी है, जो अब फ्रांस के अतिवादियों को ताक़तवर बनाने का नतीजा भुगत रहे हैं.
संवैधानिक क़ानून के प्रोफ़ेसर डोमिनिक रुसो मैक्रों के लिए कहते हैं, "अब वह मज़बूत नहीं रहे." उन्होंने समाचार एजेंसी एएफ़पी से कहा, "मैक्रों के लिए ये पाँच साल सिर्फ़ मान मनौव्वल और संसदीय स्तर पर समझौते करने में ही बीत जाएंगे."
अप्रैल महीने में माहौल कुछ और था, जब मैक्रों ने मरीन ली पेन को हराया और दूसरी बार राष्ट्रपति बने. उनके पास 300 से अधिक सीटें थीं लेकिन बहुमत बनाए रखने के लिए उन्हें 289 सीटों की ज़रूरत थी. हालाँकि, अब उनके पास केवल 245 सीटें ही हैं.
आधे से अधिक मतदाताओं ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया और वोटिंग प्रतिशत केवल 46.23 फ़ीसदी ही रहा. वोटरों ने धुर-दक्षिणपंथी नेशनल रैली पार्टी और लेफ्ट पार्टियों के गठबंधन न्यूप्स को समर्थन दिया है.
जिन मंत्रियों ने अपनी सीट गंवाई उनमें स्वास्थ्य मंत्री ब्रिजिट बोरगोईगन भी शामिल हैं. वो अपने धुर-दक्षिणपंथी प्रतिद्वंद्वी से 56 वोटों से हार गईं. इसके अलावा ग्रीन ट्रांज़िशन मंत्री अमेले डे मोंतचालिन को भी हार का सामना करना पड़ा. हालाँकि, यूरोप मंत्री क्लिमेंट बीन ने पहले दौर में पिछड़ने के बावजूद अपनी सीट बचा ली.
क़रीबियों को झटका
इमैनुएल मैक्रों के क़रीबी सहयोगियों में से एक और नेशनल असेंबली के अध्यक्ष रिचर्ड फेरांद भी न्यूप्स गठबंधन के प्रतिद्वंद्वी से हार गए. इसके अलावा ग्वाडुहलूप आइलैंड में सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट जस्टिन बेनिन को भी हार का सामना करना पड़ा है.
जीत के बाद वामपंथी नेता मेलेनचोन ने कहा कि ये नतीजे 'मैक्रों' के लिए नैतिक हार है. मेलेनचोन ने कहा कि अब वो इस लड़ाई में अपनी भूमिका बदल रहे हैं. उन्होंने कहा, 'मेरी प्रतिबद्धता किसी भी पद से ऊपर है और ये आख़िरी दम तक रहेगी.'
पाँच साल पहले इमैनुएल मैक्रों ने आशा की लहर पैदा कर दी थी और उन्होंने नए चेहरों को चुनाव लड़ाया था. इस बार ये नए चेहरे न्यूप्स गठबंधन और नेशनल रैली पार्टी की ओर से दिए गए.
इन परिणामों के कारण अब संसद में मैक्रों की पार्टी को प्रतिद्वंद्वियों के साथ गठबंधन बनाने पर विचार करना होगा. अब मैक्रों के लिए कोई भी नया क़ानून पास करवाना भी मुश्किल हो सकता है.
मैक्रों के किन सुधारों पर ख़तरा?
मैक्रों ने देश में बढ़ती महंगाई को काबू में करने का वादा किया था लेकिन उनके प्रतिद्वंद्वी इस मुद्दे पर एकदम अलग राय रखते हैं. मैक्रों की ओर से लाए बड़े प्रस्तावों में लाभ योजना में सुधार, टैक्स में कटौती और रिटायरमेंट की उम्र को 62 से बढ़ाकर 65 साल करना है.
उनकी पेंशन की उम्र से जुड़े सुधार के प्रस्ताव का रास्ता भी बहुत कठिन है, हालांकि इसपर उन्हें रिपब्लिकन का समर्थन मिल सकता है.
इसके बाद कार्बन न्यूट्र्रैलिटी और पूर्ण रोज़गार के लिए प्रस्ताव भी है. उन्होंने हाल ही में शासन का एक 'नया तरीका' भी सुझाया था, जिसमें उन्होंने नेशनल काउंसिल फॉर रिफाउंडेशन के गठन की मांग की थी. फ़्रांस को अधिक लोकतांत्रिक बनाने के मक़सद से इसमें स्थानीय लोगों को शामिल करने का प्रस्ताव दिया गया था. (bbc.com)
-मीना अल-लामी
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में 18 जून को इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने एक गुरुद्वारे पर हमला किया था.
ऐसा लगता है भारत में पैगंबर मोहम्मद पर भड़काऊ टिप्पणी के बाद फैले गुस्से के बीच किए गए इस हमले के तीन मकसद थे.
दरअसल ये हमला भारत में सत्तारुढ़ पार्टी बीजेपी के दो पदाधिकारियों की पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ 'आपत्तिजनक' टिप्पणी से भड़के गुस्से को भुनाने की कोशिश थी.
इसके साथ ही इस्लामिक स्टेट अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी तालिबान की सत्ता को भी चुनौती देना चाहता था.
ये तालिबान की अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता लाने की प्रतिबद्धता को चुनौती तो है ही. इसके जरिये इसने अपने एक और कट्टर प्रतिद्वंद्वी अल-कायदा को भी चुनौती दी है,जो पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी का बदला लेने के मामले में आईएस से ज्यादा मुखर रहा है.
अल-कायदा ने पैगंबर विवाद में ज्यादा तेजी से प्रतिक्रिया दी और भारत में हिंसा भड़काने की कार्रवाई को समर्थन देने के मामले में भी ज्यादा मुखर रहा. जबकि गुरुद्वारे पर हमले से पहले आईएस ने कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया था.
कुछ आईएस समर्थकों ने इस विस्फोट के बाद इस हमले का श्रेय लिया.
जिहादियों ने पैगंबर मोहम्मद की टिप्पणियों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी और कहा था कि इसका हिंसक जवाब दिया जाएगा. लेकिन आईएस ने सबसे पहले हिंसक प्रतिक्रिया दी.
इस्लामिक स्टेट (आईएसकेपी) के 'खुरासान प्रांत' के केंद्रीय बयान में कहा गया है कि 18 जून का हमला पैगंबर मोहम्मद के 'बचाव' में किया गया था और ऐसा हमला होना भी 'चाहिए'. इसका मतलब जवाब देने का यही माकूल तरीका है. ये शब्द कि 'ऐसा हमला होना चाहिए' दरअसल सांकेतिक तौर पर उन मुस्लिमों और जिहादियों की आलोचना है जिन्होंने पैगंबर पर टिप्पणी के खिलाफ प्रतिक्रिया देने में तेजी तो दिखाई थी और बहिष्कार का नारा दिखाया था लेकिन कोई सीधी कार्रवाई नहीं की थी.
इस्लामिक स्टेट की न्यूज़ एजेंसी अमक ने ही हमले की जिम्मेदारी लेने की खबर को ब्रेक किया था. इसी के जरिये पता चला कि अफ़ग़ानिस्तान में सिखों के गुरुद्वारे पर इस्लामिक स्टेट ने हमला किया है. इस हमले को लेकर अमक का नजरिया साफ था.
अमक ने कहा, '' ये हमला पैगंबर मोहम्मद पर हुए हमले के जवाब में किया गया है. अपने बयान में इसने भारत सरकार के एक अधिकारी की अफगानिस्तान यात्रा की ओर भी इशारा किया है. दरअसल जून की शुरुआत में भारत का एक शिष्टमंडल तालिबान से द्विपक्षीय रिश्तों पर बात करने के लिए काबुल पहुंचा था.
इस्लामिक स्टेट ने सिखों के गुरुद्वारे पर हमला को सही साबित करने के लिए कहा कि उसने यहां मौजूद सिख और हिंदू श्रद्धालुओं, दोनों को निशाना बनाया है.
इस्लामिक स्टेट ने दावा किया है इसने काबुल में किए गए इस हमले में कुल 30 हिंदुओं और सिखों को मार दिया या घायल किया है. इसके अलावा तालिबान के 20 सदस्य भी मारे गए हैं या घायल हुए हैं. मुख्यधारा के मीडिया की खबरों के मुताबिक हमले में एक सिख श्रद्धालु और तालिबान के एक सदस्य की मौत हो गई है. हालांकि कुछ दूसरी रिपोर्टों मे कहा गया है कि तालिबान की वजह से इस्लामिक स्टेट के हमलावर घटनास्थल पर नहीं घुस पाए.
अफगानिस्तान में हिंदुओं और सिखों का एक बहुत छोटा समयुदाय रहता है. इस्लामिक स्टेट लगातार उन पर हमले करता रहा है. 2018 और 2020 पर सिखों पर आत्मघाती दस्तों के जरिये बड़े हमले हुए. हालिया हमले के पहले आईएस के केंद्रीय कमान और मीडिया संगठन ने पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी के मामले में कोई टिप्पणी नहीं की थी. जबकि उसके प्रतिद्वंद्वी अल-कायदा और उसके समर्थकों ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की थी.
हालांकि खुरासान प्रांत की मैसेजिंग पर फोकस रखे हुए अर्द्ध आधिकारिक मीडिया संगठन अल-अजीम ने कुछ दिनों पहले अफगानिस्तान में मौजूद ''हिंदू'' समुदाय पर हमले की चेतावनी दी थी. उसने इससे पहले वहां सिखों पर आईएस के हमले की याद दिलाई थी.
आईएस भारत के अंदर हमले करने में नाकाम रहा है. सिवाय कश्मीर में छोटे-मोटे हमले करने के. लिहाजा इसमें कोई आश्चर्य नहीं है उसने अफगानिस्तान में श्रद्धालुओं को निशाना बना कर सॉफ्ट टारगेट चुना. अफगानिस्तान में आईएस का आईएसकेपी शाखा अभी भी सक्रिय है.
ग्लोबल जिहाद के नेतृत्व को लेकर अल-कायदा और आईएस की मौजूदा प्रतिद्वंद्विता में काबुल में गुरुद्वारे पर हमले को आईएस अलकायदा पर बढ़त की तरह पेश करेगा. वह बताएगा कि हम दस्तावेज जारी करने और ऑनलाइन चेतावनी देने के बजाय सीधी और तुरंत कार्रवाई करते हैं. खुद को तेजी से कार्रवाई करने वाले संगठन के तौर दिखा कर वह जिहादियों के बीच अपनी छवि और मजबूत करना चाहता है. इससे उसे अपने संगठन में जिहादियों की भर्ती में भी मदद मिलेगी.
इंटरनेट पर आईएस के कई समर्थकों ने तुरंत कार्रवाई की उसकी पहल को सराहा है. यह एक तरह से अल-कायदा पर हमला भी है.
इस हमले का एक मकसद ये भी रहा होगा.
तालिबान को नीचा दिखाना चाहता है इस्लामिक स्टेट
जिहादी प्रतिद्वंद्विता के संदर्भ में देखें तो यह एक तरह से तालिबान को भी नीचा दिखाना चाहता था. पिछले साल अफगानिस्तान में सत्ता में आने के बाद वह लगातार तालिबान को कमजोर करने की कोशिश में लगा है.
इस तरह के हमले कर वो ये दिखाना चाहता है कि तालिबान अफगानिस्तान में सुरक्षा और स्थिरता नहीं ला सकता. वह धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में भी नाकाम रहेगा और अफगानिस्तान को जिहादियों का मैदान बनने से भी नहीं रोक सकेगा.
18 जून के हमले को लेकर आईएस ने तालिबान का ये कह कर मजाक उड़ाया को इसे खत्म करने और हालात काबू करने में उसे तीन घंटे लग गए.
आईएस का तीसरा और अहम मकसद ये है कि वह पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी से पूरी दुनिया के मुस्लिमों के बीच फैले गुस्से को भुनाना चाहता है और खुद को इस्लाम के रक्षक के तौर पर पेश करना चाहता है.
हाल में इसने हिंदुओ और सिखों का हवाला देकर तालिबान को 'मूर्तिपूजकों के संरक्षक' कहा था. ये गौर करने वाली बात है कि यह हमला तालिबान सरकार की ओर से भारतीय सरकार के सदस्यों की मेजबानी के कुछ ही दिनों बाद हुआ है. इस तरह ये तालिबान की इस्लामिक विश्वसनीयता पर भी चोट पहुंचाने की कोशिश है.
कुछ जिहादियों ने हाल में तालिबान के उस बयान की निंदा की है, जिसमें अफगानिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता की बात कही गई थी.
हाल में आईएसकेपी समर्थक मीडिया ग्रुप अल-अजीम ने एक लंबा बयान जारी कर तालिबान की इस बात की निंदा की थी कि उसने पैगंबर मोहम्मद मामले में भारत को कमजोर जवाब दिया है. दरअसल दो दिन पहले तालिबान ने पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी की निंदा की थी और भारत को ऐसी कट्टरता को रोकने के लिए कहा था जो इस्लाम का 'अपमान' करती है.
इस हमले के जरिये इस्लामिक स्टेट यह दिखाने की कोशिश कर रहा है वह इस्लाम का एक मात्र असली रक्षक है.
आईएस ने 2020 में सिख श्रद्धालुओं पर हमले करते हुए भी इसी तरह का दावा किया था. उसने कहा था कि कश्मीर में मुस्लिमों के साथ जो हो रहा है वह उसका बदला ले रहा है.(bbc.com)
लॉज एंजिल्स, 20 जून | ऑस्कर विजेता कनाडाई पटकथा लेखक और निर्देशक पॉल हैगिस को इटली के ओस्टुनी में यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। कई इतालवी प्रेस रिपोटरें और ब्रिंडिसि के सरकारी अभियोजक के एक नोट के अनुसार, हैगिस पर एक युवा विदेशी महिला को ओस्टुनी में दो दिनों के दौरान संबंध बनाने के लिए मजबूर करने का आरोप है, जहां वह एलोरा फेस्ट में कई मास्टर क्लास आयोजित करने वाले थ
वैरायटी की रिपोर्ट के अनुसार, लॉस एंजिल्स स्थित इतालवी पत्रकार सिल्विया बिजि़यो और स्पेनिश कला समीक्षक सोल कोस्टेल्स डॉल्टन द्वारा लॉन्च किया जा रहा एक नया फिल्म कार्यक्रम 21-26 जून तक चलेगा।
बिजि़यो ने वैरायटी से पुष्टि की है कि हैगिस को गिरफ्तार कर लिया गया है।
हैगिस की निजी वकील प्रिया चौधरी ने एक बयान में कहा, "इतालवी कानून के तहत, मैं सबूतों पर चर्चा नहीं कर सकती। मुझे विश्वास है कि हैगिस के खिलाफ सभी आरोपों को खारिज कर दिया जाएगा। वह पूरी तरह से निर्दोष हैं और अधिकारियों के साथ पूरी तरह से सहयोग करने को तैयार हैं ताकि सच्चाई जल्दी से सामने आए।"
(आईएएनएस)
शनिवार को अफगानिस्तान के एक गुरुद्वारे पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने 111 सिखों को वीजा दिया है. इस्लामिक स्टेट ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए इसे नुपूर शर्मा के पैगंबर वाले बयान का बदला बताया था.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
भारत ने रविवार को 111 अफगान सिखों को भारत का वीजा दिया. इससे एक दिन पहले ही काबुल के एक गुरुद्वारे पर हुए आतंकी हमले में दो लोगों की मौत हो गई थी और तीन लोग घायल हुए थे. इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट खोरसान प्रोविंस (ISKP) नामक आतंकवादी संगठन ने यह कहते हुए ली थी कि भारत में पैगंबर मोहम्मद के अपमान का बदला लिया गया है.
भारतीय अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने सरकारी सूत्रों के हवाले से लिखा है कि हमले के कुछ घंटों के भीतर ही ई-वीजा देने का निर्णय ले लिया गया था. हमला शनिवार को तब हुआ जब 25-30 सिख और हिंदू काबुल स्थित मुख्य गुरुद्वारे दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह करते परवान में जमा हुए थे. ये लोग सुबह की प्रार्थना या सुखमणि साहब के लिए जमा हुए थे जब करीब चार बंदूकधारी गुरुद्वारे में घुस गए और अंधाधुंध गोलीबारी करने लगे.
तालिबान ने एक बयान में कहा कि बारूद से भरी एक कार को गुरुद्वारे में घुसने से रोक दिया गया जिसके बाद आतंकियों ने उस कार में गुरुद्वारे में पहुंचने से पहले ही धमाका कर दिया. काबुल के सुरक्षा बल के एक प्रवक्ता ने बताया कि एक हमलावर भी मारा गया है.
डर में जीते सिख
गुरुद्वारे के पास रहने वाले एक सिख गुरनाम सिंह ने समाचार चैनल अल जजीरा को बताया, "मैं गुरुद्वारे के पास ही रहता हूं और सुबह काम के लिए तैयार हो रहा था जब मैंने धमाका सुना. उससे पहले कभी मैंने इतना जोर का धमाका महसूस नहीं किया था." मरने वालों में गुरुद्वारे में ही रहने वाले सरदार सविंदर सिंह गजनेची शामिल हैं.
सिखों पर इस्लामिक स्टेट ने पहले भी हमले किए हैं. 2020 मार्च में आईएस-के के सदस्यों ने काबुल के शोर बाजार में हर राय साहिब गुरुद्वारे पर हमला किया और 25 सिखों को मार दिया था. अगस्त में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद सिखों के देश छोड़ने का नया सिलसिला शुरू हो गया था.
गुरनाम सिंह का अंदाजा है कि अब 140 लोग बचे हैं जिनमें से अधिकतर जलालाबाद या काबुल में हैं. काबुल में बचे ये मुट्ठीभर सिख गुरुद्वारे में अरदास के लिए जमा होते हैं. पिछले साल नवंबर में गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब की तीन प्रतियां थीं जिनमें से दो भारत ले जाई जा चुकी हैं.
भारत की योजना पर संदेह के बादल
काबुल में गुरुद्वारे पर हुए इस हमले ने भारत द्वारा वहां दूतावास को फिर से खोलने की योजना को मुश्किल में डाल दिया है. पिछले साल अगस्त में तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद बाकी देशों की तरह भारत ने भी अफगानिस्तान से कूटनीतिक संबंध तोड़ लिये थे. लेकिन इस महीने की शुरुआत में भारत के विदेश मंत्रालय के अधिकारी तालिबान और अफगानिस्तान में मानवीय सहायता पहुंचाने वाले संगठनों से बात करने के लिए काबुल गए थे.
उस दल का नेतृत्व विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान के मामलों के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव जेपी सिंह ने किया था. सिंह ने पहले भी दोहा में तालिबानी अधिकारियों से मुलाकात की थी. भारतीय दल ने काबुल स्थित दूतावास के परिसर का दौरा किया और उसे ‘सुरक्षित' पाया था.
इस दौरे के बाद यह अटकलें तेज हो गई थीं कि भारत काबुल में अपना दूतावास खोल सकता है. विदेश मामलों की भारतीय परिषद यानी आईसीडब्ल्यूए की रिसर्च फेलो अन्वेषा घोष ने कहा था, "वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति शायद तुरंत नहीं होगी लेकिन जूनियर अधिकारियों के साथ दूतावास खोलने पर विचार हो रहा है."
लेकिन शनिवार के हमले के बाद भारत द्वारा खतरे की स्थिति का आकलन बदल सकता है. हालांकि ऐसी रिपोर्ट है कि तालिबान ने भारत को सुरक्षा की तसल्ली दिलाई है लेकिन सरकारी सूत्र बताते हैं कि ‘वास्तविक स्थिति' के आधार पर ही फैसला लिया जाएगा.(रॉयटर्स, एएफपी)
इसराइल के विदेश मंत्री येर लैपिड गुरुवार को तुर्की की यात्रा करने वाले हैं. इससे पहले इसराइल ने तुर्की की यात्रा करने वाले अपने नागरिकों से जल्द से जल्द तुर्की छोड़ने का अनुरोध किया था.
इसराइल ने चिंता जताई थी कि तुर्की में ईरान उसके नागरिकों को निशाना बना सकता है.
तुर्की में येर लैपिड अपने समकक्ष मेवलुत चाउसोलो से मुलाकात करेंगे. उन्होंने भी आर्थिक सहयोग बढ़ाने के प्रयासों के तहत पिछले महीने इसराइल का दौरा किया था.
पिछले हफ़्ते, इसराइल ने अपने नागरिकों को तुर्की की यात्रा करने को लेकर आगाह किया था.
इसराइल ने ईरानी सेना के इस्लामिक रिवॉल्युशनरी गार्ड कोर (IRGC) के क़ुद्स फ़ोर्सेज़ के वरिष्ठ अधिकारी कर्नल हसन सैयद ख़ोदाई की हत्या को देखते हुए अपने नागरिकों पर बदले की कार्रवाई की आशंका जताई थी.
इसराइल के सार्वजनिक प्रसारक कान रेडियो ने पिछले हफ़्ते बताया था कि सुरक्षा अधिकारियों ने पिछले महीने तुर्की में इसराइल के लोगों पर ईरान के हमले की कोशिश को नाकाम कर दिया है.
इसराइल की चेतावनी को लेकर तुर्की ने कहा है कि वो एक सुरक्षित देश है और आतंकवाद से निपटने के लिए उसके पास एक सहयोग प्रणाली है. (bbc.com)
-चंद्रभूषण
अधखुली आंखों वाला एक लेखक था, जो आधी नींद में दुनिया देखता हुआ सा लगता था. उसकी शक्ल मुझे याद थी, नाम भूल गया था. पहली बार मैंने उसे इलस्ट्रेटेड वीकली में पढ़ा था. उसकी पहली ही किताब का एक लंबा हिस्सा. अंग्रेजी के अक्षरों का घालमेल.
'ग्राइमस' का सिमुर्ग हो जाना. सैकड़ों साल उड़ता रहने वाला एक अमर पक्षी, जो असल में एक इंसान है. उसकी उड़ान बाहर चल रही है या भीतर, इसका अंदाज़ा मिलने से पहले ही वह पुस्तक अंश समाप्त हो गया था. कहीं से भी यह किताब जुटाकर पढ़नी है,ऐसा मैंने सोचा. लेकिन यह मौका कभी हाथ नहीं आया. उसकी अगली किताब इलाहाबाद में मेरे हाथ लगी. संयोगवश, छपने के दो ही तीन महीने बाद.
यह एक राजनीतिक यात्रा वृत्तांत था- 'द जैगुआर स्माइल'. तेंदुए पर सवार एक छोटी बच्ची मुस्कुराती हुई जंगल में गई. कुछ देर बाद तेंदुआ वापस लौटा. बच्ची उसके पेट में थी और तेंदुआ मुस्कुरा रहा था. निकारागुआ की यह क्रांति कथा मैंने यही कोई 25 साल पहले पढ़ी थी लेकिन जेहन से उतरी नहीं.
सलमान रुश्दी किस्सागो तो बहुत अच्छे हैं, लेकिन पत्रकार वह असाधारण हैं.
आधुनिक भारतीय इतिहास का दारुण वृत्तांत 'मिडनाइट्स चिल्ड्रेन' पहले ही आ चुका था लेकिन मुझे इसे पलटने का मौक़ा सात साल बाद 1988 में 'सैटेनिक वर्सेज' पर फतवा जारी हो जाने के बाद ही मिला. यह फतवेबाजी भी बड़ी विचित्र थी. उससे विचित्र था जंगल की आग की तरह उसका ईरान से निकलकर भारत समेत एशिया और अफ्रीका के कुल तेरह देशों में फैल जाना.
ईरान और इराक की घिसाव-थकाव वाली आठ साल लंबी लड़ाई 1988 में खत्म हो गई थी. इस सर्वनाशी युद्ध और उसके पहले इस्लामी क्रांति में ईरान के तकरीबन हर घर से एक-दो लोग मारे गए थे. आर्थिक बदहाली में लोगों का दुख दिन दूना रात चौगुना हो रहा था.
अयातुल्ला खुमैनी को अपने थके हुए राष्ट्र में उत्साह की लहर पैदा करने के लिए एक अच्छा बहाना 'सैटेनिक वर्सेज' के रूप में मिला. इसके पहले पाकिस्तान के इर्दगिर्द बुने हुए रुश्दी के उपन्यास 'शेम' का फारसी अनुवाद खूब बिका था. अच्छी किताबें पढ़ने, अच्छी फ़िल्में देखने की संस्कृति ईरान में हमेशा से रही है. सैटेनिक वर्सेज को लेकर भी वहां बढ़िया माहौल बना हुआ था, लेकिन बीच में ही खेल हो गया.
यह कोई धार्मिक विमर्श वाला उपन्यास नहीं है. मुंबइया फिल्मों में हिंदू धार्मिक चरित्र निभाने वाला सुपरस्टार जिबरील फरिश्ता और अपनी देसी पहचान से बचने वाला वॉयसओवर आर्टिस्ट सलादीन चमचा मुंबई से लंदन के रास्ते पर हैं. बीच में जहाज में विस्फोट हो जाता है. दोनों ज़िंदा बच जाते हैं पर उनकी ज़िंदगियां बदल जाती हैं.
मुहम्मद साहब के जीवन से जुड़े कुछ प्रसंग पागलपन की ओर जा रहे जिबरील के सपनों में आते हैं. लेकिन मुस्लिम धर्माचार्यों ने कुछ ऐसा माहौल बनाया जैसे रुश्दी इस्लाम को नष्ट करने के लिए लगाए गए पश्चिमी एजेंट हों.
टूट गए पूरब से आत्मिक जुड़ाव के धागे
पीछे मुड़कर देखें तो सैटेनिक वर्सेज एक लाजवाब फिक्शन है. पूरब और पश्चिम का सांस्कृतिक टकराव अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में तुर्की के उपन्यासकार ओरहान पामुक की रचनाओं में देखने को मिलता है, लेकिन उनके किस्से उस दौर के हैं, जब दोनों समाजों में तकनीक और समृद्धि का इतना फासला नहीं पैदा हुआ था.
इसके बरक्स सलमान रुश्दी ने आज की कहानियां लिखी हैं. जब पूरब का इंसान मजबूर होकर पश्चिम भागता है. बंदरों की तरह हर बात में वहां की नकल करके बेइज्ज़त होता है और थोड़ी भी संवेदना उसके भीतर बची रह गई तो मन ही मन अपना एक प्रति-संसार रचता है. खुमैनी की ओर से अपने सिर पर लाखों डॉलर का इनाम रख दिए जाने के बाद ऊपरी तौर पर रश्दी का कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन उस दौर के अर्ध-भूमिगत जीवन ने पूरब से उनके आत्मिक जुड़ाव के धागे तोड़ दिए.
उनका मास्टरपीस 'मिडनाइट्स चिल्ड्रेन' हिंदुस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश का कोई पाठक जब भी पढ़ेगा, उसे लगेगा कि खुमैनी की मेहरबानी से अपनी तहजीब और तारीख का कितना बड़ा खज़ाना हमने खो दिया.
हिंदी की साहित्यिक गपड़चौथ में विदेशी लेखकों के बीच मुर्गे लड़ाने का खेल खूब खेला जाता है. मुझे कुछ दिन एक ऐसे अख़बार में काम करने का मौका मिला, जिसके माहौल में साहित्य का सिरा कुछ ज्यादा ही घुला हुआ था. एक दिन पता नहीं कैसे बातचीत में सलमान रुश्दी का जिक्र आ गया.
उनके ही संपादकत्व में निकले 'न्यूयॉर्कर' के 'भारतीय कथा साहित्य विशेषांक' में प्रेमचंद और मंटो को छोड़कर सारे के सारे अंग्रेज़ी लेखक ही शामिल कर लेने से हिंदुस्तानी जुबानों में उमड़ा गुस्सा शायद इसकी वजह बना था. मेरे एक सीनियर ने, जो खुद अंतरराष्ट्रीय ख्याति के कवि भी थे, तरंग में आकर कहा- कुछ तो वजह होगी, जिसने रुश्दी को बड़ा लेखक नहीं बनने दिया.
मैंने तुर्शी में कहा, 'वजह पर तो तब सोचूं, जब रुश्दी के बड़ा लेखक होने में मुझे कोई संदेह हो.' बहस-मुबाहिसे का तार यहां आकर टूटा कि मौजूदा कथा लेखन में सलमान रुश्दी भले ही एक बड़ा नाम हों, पर दोस्तोएव्स्की, फ्लॉबैर, डिकेंस या काफ्का के सामने वह कहां खड़ा होते हैं?
इसके आगे कुछ कहने की गुंजाइश नहीं बची. रुश्दी इन महारथियों की बराबरी में भले न आते हों, लेकिन उनको छोटा कहने के लिए यह भी बताना होगा कि अभी दुनिया भर में जो लोग किस्से लिख रहे हैं, उनमें इन महारथियों के सामने खड़े होने लायक कितने हैं?
नोबेल मिल जाना अलग बात है. अपनी भाषा से बाहर भी सदियों-सदियों बिकते रहने लायक कोई चीज़ क्या अभी कोई लिख पा रहा है?
विस्थापन का कथाकार
बहरहाल, अंग्रेज़ी पढ़ना शुरू करने के पहले बीसेक वर्षों में जिस सलमान रुश्दी को मैंने पढ़ा था, उसका नाम कभी धुंधला नहीं पड़ा. समय बीतने के साथ उसकी चमक बढ़ती ही गई. लेकिन किसी को पता भी नहीं चला और उनका जादू उनके सबसे समर्पित पाठकों के लिए किसी अनजानी धुंध में खोता गया. एक लेखक अपनी भाषा-शैली से नहीं, समझ से भी नहीं, अपनी ज़मीन से ज़िंदा रहता है. वह ज़मीन, जहां उसकी कहानियां सांस लेती हैं.
वह कहीं और जा बसे, उसकी मर्ज़ी लेकिन अपनी जड़ों से जुड़े रहने, उन तक बार-बार लौटने, वहां से फीडबैक लेते रहने का हक़ हमेशा उसके पास होना चाहिए. सलमान रुश्दी विस्थापन के कथाकार हैं. लेकिन न तो अपनी छूटी डाल का सम्मोहन उन्हें बांधता है, न ही लिखाई में अपना दुखड़ा रोते रहने का उनका मिजाज है.
दुनिया में कितने किस्सागो हैं, जिन्हें चार मुल्कों के अलावा लंबे अज्ञातवास में भी जीवन गुज़ारने का मौका मिला है. अंग्रेज़ी राज का एक कुलीन कश्मीरी मुसलमान परिवार. आजादी और बंटवारे के साल 1947 में मुंबई की पैदाइश. वहीं स्कूलिंग, फिर ऊंची पढ़ाई ब्रिटेन में. इस बीच परिवार के लोग पाकिस्तान जा चुके हैं तो पढ़ाई पूरी करके कराची में रिहाइश. काम-धंधा और शादी-ब्याह सारा कुछ वापस ब्रिटेन में. साहित्यिक पहचान भी वहीं से.
1989 में खुमैनी के फ़तवे के बाद ब्रिटेन में ही दस साल बदली शक्ल में 'जोसफ एंटन' का जीवन बिताकर इक्कीसवीं सदी के सारे साल अमेरिका में. इससे मिलते-जुलते सीवी आपको मल्टीनेशनल कंपनियों के मैनेजरों में ही देखने को मिलेंगे. लेकिन मैनेजर शब्दों में कम, गिनतियों में ज़्यादा लिखते हैं और उनको हर बार नया नहीं लिखना होता.
रुश्दी और 'गांधी नाउ'
अंत में थोड़ी चर्चा गांधी पर लिखे गए सलमान रुश्दी के लंबे निबंध 'गांधी नाउ' के बारे में. इस निबंध से मेरा साबका अब से कोई बीस साल पहले पड़ा था, जब हम संभवतः उनकी 130 वीं जयंती पर एक पत्रिका का विशेषांक निकाल रहे थे. 'बापू' का अंग्रेज़ीकरण इस निबंध में रुश्दी ने 'द लिटल फादर' किया है.
एक ऐसा बाप, जो पारंपरिक पिता की तरह भारी-भरकम, ताकतवर और गुस्सैल नहीं है. जिसे 'बापू आ, रोटी खा' कहकर बुलाया जा सकता है. यहां खड़े होकर रुश्दी ने ऐपल के लोगो में आई गांधी की तस्वीर के अलावा रिचर्ड अटेनबरो की फ़िल्म 'गांधी' की भी अच्छी खबर ली है. ध्यान रहे, वह दौर तथाकथित 'इंडिया स्टोरी' के उदय के लिए गांधी की ग्लोबल ब्रैंडिंग का था.
रुश्दी ने अपनी इस गहरी मानवीय रचना में बताया है कि मोहनदास करमचंद गांधी कोई इतने दिलचस्प, भविष्यवादी महापुरुष नहीं थे कि उन्हें एक मॉडर्न मिथ में बदल दिया जाए. जो लोग ऐसा कर रहे हैं, उनके अपने मकसद हैं.
अलग-थलग पड़ जाने का ख़तरा उठाकर भी एक मामूली इंसान का दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त के खिलाफ इंसाफ़ के लिए लड़ना ही उनकी ख़ासियत थी, जिसे देखने के लिए हमें अपना चश्मा बदलना पड़ सकता है.
यह भी कि गांधी के वारिस पिछली आधी सदी में भारत से ज़्यादा दूसरे देशों में, मसलन अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में खड़े हुए हैं और 'गांधी ब्रैंड' पर उनका दावा भारतीय राजनेताओं की तुलना में कहीं ज़्यादा मजबूत है.
ऐसा सच्चा और खरा खरा लिखने वाले और अपने साथ विवादों की पोटली लेकर चलने वाले सलमान रुश्दी 75 साल के हो गए हैं.
(ये लेखक के निजी निचार हैं) (bbc.com)
पेरिस, 19 जून (एपी) फ्रांस के मतदाता अहम संसदीय चुनाव के अंतिम चरण में रविवार को मतदान कर रहे हैं। यह चुनाव राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पार्टी के लिए खासा अहम माना जा रहा है, क्योंकि चुनाव में बहुमत मिलने पर ही उसका (पार्टी का) महत्वाकांक्षी घरेलू एजेंडा लागू हो पाएगा।
पिछले हफ्ते के पहले मतदान में, फायरब्रांड जीन-ल्यूक मेलेनचॉन की अगुवाई में वामपंथियों ने आश्चर्यजनक रूप से मजबूत प्रदर्शन किया, जिससे मैक्रों के सहयोगियों में खलबली मच गई।
उन्हें डर है कि रविवार को हो रहे चुनाव में मेलेनचॉन के गठबंधन ने मजबूत प्रदर्शन किया तो मैक्रों के लिए अपना दूसरा कार्यकाल चलाना आसान नहीं रहेगा और वह बेड़ियों में जकड़े हुए नेता बन जाएंगे।
फ्रांस की संसद की शक्तिशाली इकाई ‘नेशनल असेम्बली’ की 577 सीटों पर चुनाव हो रहा है।
ऐसा अनुमान जताया जा रहा है कि मैक्रों का मध्यमार्गी गठबंधन चुनाव में भले अधिक सीटें जीत लेगा, लेकिन उसे बहुमत नहीं मिलेगा, यानी वह 289 सीटों के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच जाएगा।
ऐसी सूरत में वामपंथी, सोशलिस्ट्स और अन्य का गठबंधन बन सकता है, जिससे मैक्रों की राह में कठिनाई होगी, क्योंकि संसद का निचला सदन कानूनों पर मतदान करने में अहम भूमिका निभाता है।
मैक्रों ने इस हफ्ते के शुरू में लोगों से उनकी पार्टी के पक्ष में मतदान की अपील करते हुए कहा था कि त्रिशंकु संसद आने से राष्ट्र खतरे में पड़ जाएगा।
मई में दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के बाद उनके मध्यमार्गी गठबंधन का लक्ष्य संसद में बहुमत हासिल करने का है, जिससे वह राष्ट्रपति के चुनाव प्रचार के दौरान किये गये अपने वादों को लागू कर सकें, जिसमें कर में कटौती और सेवानिवृत्ति की उम्र 62 साल से बढ़ाकर 65 वर्ष करना शामिल है।
कराची, 19 जून। पाकिस्तान ने सद्भावना दिखाते हुए रविवार को 20 भारतीय मछुआरों को रिहा कर दिया। वे पाकिस्तानी जलक्षेत्र में कथित तौर पर अवैध रूप से मछली पकड़ने को लेकर पिछले पांच वर्षों से कराची की एक जेल में कैद थे।
इन मछुआरों को कराची के लांधी इलाके में मलीर जिला जेल में रखा गया था। वाघा सीमा पर जाने के लिए मछुआरों लाहौर भेजा गया है, जहां उन्हें भारतीय अधिकारियों को सौंपा जाएगा।
जेल अधीक्षक मुहम्मद इरशाद ने बताया कि मछुआरों को संघीय सरकार के आदेश पर रिहा किया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘वे पिछले पांच वर्षों से जेल में थे। आज उन्हें ईधी ट्रस्ट को सौंप दिया गया, जो उन्हें पुलिस सुरक्षा में लाहौर ले जाएगा।’’
इरशाद के मुताबिक, मछुआरों को जून 2018 में समुद्री सुरक्षा बल ने गिरफ्तार किया था।
ईधी ट्रस्ट के प्रमुख फैसल ईधी ने कहा कि भारतीय मछुआरों की यात्रा का सारा खर्च उनकी संस्था उठाएगी।
ईधी ट्रस्ट एक गैर-लाभकारी समाज कल्याण संस्था है। (भाषा)
कोलंबो, 19 जून | श्रीलंका में आर्थिक संकट के बीच पूर्व क्रिकेटर रोशन महानामा ने अपने देशवासियों से कठिन समय में एक-दूसरे की देखभाल करने का आग्रह किया है और साथ ही उन्होंने पेट्रोल पंप पर लंबी कतारों में खड़े लोगों में जरूरत का सामान बांटकर उनकी मदद की। आर्थिक संकट के कारण भोजन, दवा, रसोई गैस और अन्य ईंधन, टॉयलेट पेपर और यहां तक कि माचिस जैसी आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी हो गई है।
देश अत्यधिक आवश्यक ईंधन आयात के भुगतान के लिए एक विदेशी मुद्र के लिए संघर्ष कर रहा है और यहां पेट्रोल और डीजल का मौजूदा स्टॉक कुछ ही दिनों में समाप्त होने का अनुमान है। जबकि देश राहत पैकेज के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ बातचीत कर रहा है। लोग ईंधन और रसोई गैस खरीदने के लिए दुकानों के बाहर घंटों लाइन में लगने को मजबूर हैं।
1996 में वर्ल्ड कप जीतने वाली श्रीलंकाई टीम का हिस्सा रहे, "हमने वार्ड प्लेस और विजेरामा मावथा के आसपास पेट्रोल की कतारों में लोगों के लिए भोजन परोसने का काम किया। कतारें दिन पर दिन लंबी होती जा रही हैं और कतारों में रहने वाले लोगों की स्वस्थ्य रहना भी चुनौती का काम हो गया है।"
उन्होंने कहा, "कृपया, ईंधन की कतारों में एक-दूसरे की देखभाल करें। हर संभव एक-दूसरे की मदद करें, तो कृपया अपने निकटतम व्यक्ति तक पहुंचें और समर्थन करें।"
आजादी के बाद से श्रीलंका सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है। भारत ने कर्ज में डूबे द्वीप राष्ट्र में ईंधन की कमी को कम करने में मदद करने के लिए भोजन और चिकित्सा आपूर्ति के अलावा हजारों टन डीजल और पेट्रोल भेजकर मदद की है।
इस बीच, ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी ने भी उस देश को समर्थन दिया, जो एक सर्पिल संकट का सामना कर रहा है और वर्तमान में एक बहु-प्रारूप श्रृंखला के लिए श्रीलंका का दौरा पर हैं।
कोलंबो में ऑस्ट्रेलियाई राजदूत द्वारा साझा की गई एक तस्वीर में तेज गेंदबाज मिशेल स्टार्क और बल्लेबाज स्टीव स्मिथ ने कहा कि वे 47.2 मिलियन डॉलर के आपातकालीन कोष के लिए संयुक्त राष्ट्र से अपील कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि 2.2 करोड़ की आबादी वाले देश में अब तक 17 लाख लोगों को 'जीवन रक्षक सहायता' की जरूरत है, साथ ही यह भी कहा कि तीन-चौथाई से अधिक आबादी को भोजन की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
स्मिथ ने कहा, "हमें गर्व है कि ऑस्ट्रेलिया अपना काम कर रहा है। हम मिलकर श्रीलंका को इस संकट से उबरने में मदद कर सकते हैं।" (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 19 जून | पाकिस्तान के बिजली मंत्री खुर्रम दस्तगीर ने दावा किया कि इमरान खान विपक्षी पार्टियों के पूरे नेतृत्व को अयोग्य ठहराकर अपने शासन को 15 साल तक बढ़ाने की योजना बना रहे थे।
डॉन न्यूज की रिपोर्ट की मुताबिक, दस्तगीर ने कहा है कि उन्हें जानकारी मिली थी कि इमरान खान ने पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के अध्यक्ष और मौजूदा प्रमुख शहबाज शरीफ से लेकर अहसान इकबाल, शाहिद खाकान अब्बासी और अन्य सभी विपक्षी नेताओं को इस साल के अंत तक अयोग्य घोषित करने का फैसला किया था।
अपने दावे को लेकर मंत्री ने कहा कि खान ने यह भी फैसला लिया था कि वह राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ मामलों में तेजी लाने के लिए 100 न्यायाधीशों की मदद लेंगे।
दस्तगीर ने यह दावा एक निजी टीवी शो के दौरान पूछे गए एक सवाल के जवाब में किया। (आईएएनएस)
-कैथरीन काइट
इंटरनेट पर हम लोग जो कुछ भी देखते हैं, पढ़ते हैं, सुनते हैं, वो सब कुछ किसी के लिए बेशकीमती संसाधन बन जाता है.
गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां इसी डेटा के ज़रिए हर साल अरबों रुपया कमा रही है.
इन कंपनियों की ये कमाई एडवरटिज़मेंट रेवेन्यू या विज्ञापन राजस्व के ज़रिए होती है क्योंकि वे इस डेटा का इस्तेमाल हम तक टारगेटेड विज्ञापन पहुंचाने के लिए करते हैं.
उदाहरण के लिए, आप नई जींस खरीदने की सोच रहे हैं और इसके लिए फ़ैशन स्टोर्स के ईशॉप पर ऑनलाइन नए प्रोडक्ट और डिजाइन चेक रहे हैं तो जल्द ही आप को अपने कम्प्यूटर स्क्रीन पर हर तरफ़ डेनिम ट्राउज़र्स के विज्ञापन दिखने लगेंगे.
हम चाहे कुछ भी खरीदने का प्लान बना रहे हों, ये हमेशा होता है और हमने अपने कम्प्यूटर स्क्रीन पर ये बार-बार देखा है.
इंटरनेट पर गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां जिस तरह से हम पर नज़र रखे हुए हैं, वो कभी-कभी बेचैन कर देने वाला एहसास देता है.
हाल ही में किए गए एक अध्ययन में ये बात सामने आई कि यूरोप के लोग इंटरनेट पर क्या देखते हैं, इससे जुड़ा डेटा दिन भर में 376 बार शेयर किया जाता है.
अमेरिकी लोगों के मामले में ये डेटा लगभग दोगुने की हद तक बढ़ जाता है. औसत अमेरिकियों के इंटरनेट यूसेज की जानकारी 747 बार साझा की जाती है.
लेकिन ज़रा रुकिए. अगर तस्वीर का रुख बदला जा सके तो कैसा रहेगा? आपका जो डेटा शेयर किया जाता है, उस पर न केवल आपका कंट्रोल बढ़ जाए बल्कि आप उससे कुछ पैसा भी कमा सकें.
कमाई का वादा
कनाडा की एक टेक कंपनी 'सर्फ़' ने कुछ ऐसा ही वादा किया है. 'सर्फ़' ने इसी नाम से पिछले साल एक ब्राउज़र एक्सटेंशन लॉन्च किया था.
इंटरनेट सर्फिंग करने वाले लोगों को ये पैसे कमाने का मौका देता है.
हालांकि 'सर्फ़' अभी अमेरिका और कनाडा में काफी सीमित रूप से ही उपलब्ध है. आप बस ये समझिए कि ये गूगल को चकमा देकर काम करता है और आपका डेटा रीटेल कंपनियों को सीधे ही बेचता है.
बदले में 'सर्फ़' आपको प्वॉयंट्स ऑफ़र करता है जिसे आप इकट्ठा कर सकते हैं और गिफ़्ट कार्ड या डिस्काउंट के बदले इसे खर्च कर सकते हैं.
इसके लिए 'सर्फ़' ने अभी तक फुट लॉकर, द बॉडी शॉप, क्रॉक्स और डायसन जैसी कंपनियों के साथ करार भी किया है.
'सर्फ़' का कहना है कि यूज़र के डेटा में उसकी पहचान पूरी तरह से गोपनीय रखी जाती है, न तो यूज़र का ईमेल अड्रेस और न ही उसके टेलीफोन नंबर शेयर किए जाते हैं और न ही साइन अप करने के लिए अपना नाम ही बताना होता है.
हालांकि 'सर्फ़' अपने यूज़र से उनकी उम्र, जेंडर और एड्रेस जैसी जानकारी मांगती है लेकिन यूज़र को ये करना ही होगा, ऐसी कोई शर्त नहीं होती है.
कंपनी का विचार है कि उसके यूज़र का डेटा ब्रैंड्स इस्तेमाल कर पाएंगे. जैसे कि किसी शहर में 18 से 24 साल के नौजवान कौन सी वेबसाइट ज़्यादा देखते हैं. इस जानकारी के आधार पर कंपनियाँ इन कस्टमर तक अपना विज्ञापन पहुंचा सकेंगी.
वैसे 'सर्फ़' ने अभी तक ये नहीं बताया है कि उसका ब्राउज़र एक्सटेंशन इंस्टॉल करने वाला यूज़र सर्फिंग करके कितना पैसा कमा सकता है. हालांकि कंपनी ने ये ज़रूर बताया है कि उसके यूज़र्स को कुल मिलाकर 1.2 मिलियन डॉलर की रकम कमाने का मौका मिला.
'सर्फ़' के यूजर्स को एक सहूलियत ये भी है कि वो किस तरह का डेटा शेयर करना चाहते हैं, इसकी लगाम भी अपने हाथ में रख सकते हैं. जैसे कि कुछ वेबसाइट्स जो वो विज़िट करते हैं, लेकिन उसे गोपनीय रखना चाहते हैं तो वो ऐसा कर सकते हैं.
कनाडा के टोरंटो में यॉर्क यूनिवर्सिटी की छात्रा अमीना अल-नूर 'सर्फ़' की एक यूजर हैं. अमीना को लगता है उनके ऑनलाइन डेटा पर उनका नियंत्रण फिर से स्थापित हो गया है.
21 वर्षीय अमीना कहती हैं, "आप सर्फ़ के साथ क्या शेयर करना चाहती हैं, इसका फ़ैसला आप कर सकती हैं. कई बार मैं अपने प्वॉयंट्स चेक करना भूल जाती हूं लेकिन हफ़्ते भर बाद जब देखती हूं तो पाती हूं कि मेरे प्वॉयंट्स लगातार बढ़ रहे हैं. सभी टेक कंपनियां हमारी जानकारियां इकट्ठा करती हैं लेकिन जो बात मायने रखती है कि टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के अनुभव को बेहतर कैसे बनाया जा सकता है."
यूज़र्स को इनाम
सर्फ़ के सह-संस्थापक और चीफ़ एग़्जिक्यूटिव स्विश गोस्वामी कहते हैं कि उनकी कंपनी इंटरनेट ब्राउंज़िंग करने वाले यूज़र्स को लगातार इनाम देते रहना चाहती है.
वो कहते हैं, "पहले दिन से ही ये बात स्पष्ट थी कि यूज़र्स के डेटा पर उनका नियंत्रण रहेगा, वे खुद ये तय करेंगे कि वे क्या शेयर करना चाहते हैं और क्या नहीं."
"मुझे लगता है कि अगर आप लोगों के सामने स्पष्ट रहें, और उन्हें ये बताएँ कि अगर आप ब्रांड्स के साथ डेटा शेयर कर रहे हैं, और गुमनाम रहकर कर रहे हैं, यानी कि कभी वो लपेट में नहीं आएँगे क्योंकि हमारे पास ना उनका नाम है ना सरनेम, तो लोग सहज होकर हामी भरेंगे और हमारे साथ ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करेंगे."
सर्फ़ एक ऐसे बड़े होते अभियान का हिस्सा है जिसे कई विश्लेषक "ज़िम्मेदार तकनीक" का नाम दे रहे हैं, जिसका कुछ मक़सद लोगों को अपने डेटा का और ज़्यादा नियंत्रण देना है.
और भी हैं कंपनियाँ
इस क्षेत्र में ऐसी ही एक अन्य टेक कंपनी है कनाडा की ही स्टार्ट अप कंपनी वेवरली. ये लोगों को अपना न्यूज़ फ़ीड जमा करने की सुविधा देती है. इससे लोग गूगल न्यूज़ और ऐप्पल न्यूज़ और ऐसी सेवाओं पर निर्भर नहीं रहते जहाँ विज्ञापनों के हिसाब से तैयार फ़ीड मिलती है.
वेवरली पर, आप अपनी रुचि के टॉपिक डालते हैं, और उसका आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का सॉफ़्टवेयर ऐसे आर्टिकल खोज लेता है जो उसे लगता है कि आप पढ़ना चाहेंगे.
इसके संस्थापक हैं मॉन्ट्रियल स्थित फ़िलिप ब्यूदों जो पहले गूगल में इंजीनियर थे.
इस ऐप के यूज़र अपनी पसंद को नियमित रूप से बदल सकते हैं और उन्हें जो आर्टिकल भेजे जा रहे हैं उनके आधार पर फ़ीडबैक दे सकते हैं.
फ़िलिप ब्यूदों कहते हैं कि यूज़र्स को थोड़ा प्रयास करना होगा, उन्हें ऐप को बताना होगा कि उनकी पसंद क्या है, और इसके बदले में वो "विज्ञापनों के जाल में उलझने से" बच जाएँगे.
वो कहते हैं, "ज़िम्मेदार तकनीक को यूज़र्स को अधिकार संपन्न होने का अहसास देना चाहिए, मगर साथ ही उन्हें उनको ये कहने से भी नहीं हिचकिचाना चाहिए कि वो उनके बदले में कुछ काम करें."
रॉब शैवेल की अमेरिकी कंपनी अबाइन दो ऐप बनाती है जिनसे यूज़र को अपनी प्राइवेसी बढ़ाने की सुविधा मिलती है. इनके नाम हैं - ब्लर और डिलीट मी.
ब्लर ये सुनिश्चित करता है कि आपके पासवर्ड और पेमेंट डिटेल को ट्रैक नहीं किया जा सकता. वहीं डिलीट मी सर्च इंजिन्स से आपने निजी डेटा को डिलीट कर देता है.
शैवेल कहते हैं कि उनके हिसाब से इंटरनेट पर कुछ भी सर्फ़ करने में "अपने आप प्राइवेसी" होनी चाहिए.
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट फ़ॉर एथिक्स इन आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस में एसोसिएट प्रोफ़ेसर कैरिसा वेलिज़ कहती हैं कि टेक कंपनियों को "ऐसे बिज़नेस मॉडल्स को प्रलोभन देना चाहिए जो निजी डेटा के शोषण पर निर्भर नहीं होते".
वो कहती हैं,"ये बात चिंताजनक है कि हमारी ज़िंदगी को चलानेवाले ज़्यादातर ऐल्गोरिदम निजी कंपनियाँ बना रही हैं जिनके ऊपर ना कोई निगरानी है ना जिन्हें कोई गाइडेंस है कि कैसे ये सुनिश्चित किया जाए कि ये ऐल्गोरिदम जनहित और मूल्यों का पालन करें."
"मुझे नहीं लगता कि पारदर्शिता हर चीज़ का समाधान है, या आधे का भी है, मगर नीति निर्माताओं की ऐल्गॉरिदम्स तक पहुँच होनी चाहिए."
वहीं गूगल अपने नए "प्राइवेसी सैंडबॉक्स" प्रयास की ओर ध्यान दिलाता है, जिसका "उद्देश्य नए, ज़्यादा निजी विज्ञापन समाधानों को सामने लाना है".
गूगल के एक प्रवक्ता कहते हैं- "इसलिए हम रेगुलेटर्स और वेब कम्युनिटी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं जिससे कि प्राइवेसी सैंडबॉक्स के ज़रिये ऐसी तकनीकों को तैयार किया जा सके और साथ ही ऑनलाइन सामग्री और सेवाओं को सबके लिए निशुल्क उपलब्ध कराया जा सके."
"इस साल के अंत में, हम माई ऐड सेंटर लॉन्च करेंगे, जो हमारे प्राइवेसी कंट्रोल को बढ़ाएगा ताकि लोगों को जो विज्ञापन दिखाए जाते हैं, उसे वे लोग और ज़्यादा नियंत्रित कर सकें ."(bbc.com)
काबुल/नयी दिल्ली, 19 जून। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में शनिवार को एक गुरुद्वारे में कई विस्फोट हुए, जिनमें एक सिख सहित दो लोगों की मौत हो गई और सात अन्य घायल हो गए। वहीं, अफगान सुरक्षाकर्मियों ने विस्फोटक लदे एक वाहन को गुरुद्वारे में प्रवेश करने से रोककर एक बड़ी घटना को टाल दिया।
तालिबान द्वारा नियुक्त गृह मामलों के प्रवक्ता अब्दुल नफी ताकोर ने कहा कि अफगानिस्तान में सिख समुदाय के पूजा स्थल पर नवीनतम लक्षित हमले में, शनिवार सुबह काबुल के बाग ए बाला क्षेत्र में कार्ते परवान गुरुद्वारे पर हमला हुआ और आतंकवादियों तथा तालिबान लड़ाकों के बीच कई घंटे तक मुठभेड़ चली।
पझवोक समाचार एजेंसी ने बताया कि तालिबान सुरक्षा बलों ने तीन हमलावरों को मार गिराया।
ताकोर ने पुष्टि की कि इस घटना में इस्लामिक अमीरात बलों का कम से कम एक सदस्य और एक अफगान सिख नागरिक मारा गया तथा सात अन्य घायल हो गए, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
अफगानिस्तान के गृह मंत्रालय के बयान के अनुसार, विस्फोटकों से लदे एक वाहन को लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही रोक दिया गया।
बीबीसी ने बताया कि गुरुद्वारे पर सुबह के समय जब हमला किया गया तो उस समय 30 लोग अंदर थे।
ताकोर ने कहा कि विस्फोटकों से भरे एक वाहन में गुरुद्वारे के बाहर विस्फोट हो गया, लेकिन इसमें कोई हताहत नहीं हुआ।
एसोसिएटेड प्रेस ने गृह मंत्रालय के प्रवक्ता के हवाले से बताया कि पहले बंदूकधारियों ने एक हथगोला फेंका जिससे गुरुद्वारे के गेट के पास आग लग गई।
काबुल पुलिस के प्रवक्ता खालिद जादरान ने कहा कि कई घंटे बाद आखिरी हमलावर के मारे जाने के साथ पुलिस अभियान समाप्त हो गया।
उन्होंने कहा, ‘‘सुरक्षाबल हमले को नियंत्रित करने और कम समय में हमलावरों को खत्म करने के लिए तेजी से कार्रवाई करने में सक्षम थे ताकि और लोग हताहत न हों।’’
नयी दिल्ली में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में स्थित गुरुद्वारा कार्ते परवान पर ‘बर्बर’ आतंकवादी हमले की निंदा की।
मोदी ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘काबुल में कार्ते परवान गुरुद्वारे पर कायरतापूर्ण आतंकवादी हमले से स्तब्ध हूं। मैं इस बर्बर हमले की निंदा करता हूं और श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सलामती के लिए प्रार्थना करता हूं।’’
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस ‘‘कायराना हमले’’ की कड़ी निंदा की और कहा कि सरकार घटना के बाद स्थिति पर करीब से नजर रखे हुए है।
उन्होंने एक ट्वीट में कहा, 'गुरुद्वारा कार्ते परवान पर कायरतापूर्ण हमले की कड़े शब्दों में निंदा की जानी चाहिए। हमले की खबर मिलने के बाद से हम घटनाक्रम पर करीब से नजर रखे हुए हैं। हमारी पहली और सबसे महत्वपूर्ण चिंता समुदाय के कल्याण के लिए है।'
वहीं, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने अपने ट्वीट में कहा, ‘‘हम काबुल में पवित्र गुरुद्वारे पर हमले की खबरों को लेकर अत्यंत चिंतित हैं। हम स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और हो रहे घटनाक्रम पर आगे के ब्योरे की प्रतीक्षा कर रहे हैं।’’
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी हमले की कड़ी निंदा की और केंद्र से अफगानिस्तान की राजधानी में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल सहायता प्रदान करने का आग्रह किया।
भारतीय जनता पार्टी के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने भी हमले की निंदा की और कहा कि इस हमले ने अफगानिस्तान में शांति की सिख समुदाय की उम्मीदें तोड़ दी।
इस हमले की तत्काल किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली है।
अतीत में इस्लामिक स्टेट इन खुरासन (आईएस-के) देशभर में मस्जिदों और अल्पसंख्यकों पर हुए हमलों की जिम्मेदारी ले चुका है।
चीन की समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने एक प्रत्यक्षदर्शी के हवाले से बताया, 'हमने स्थानीय समयानुसार सुबह करीब छह बजे कार्ते परवान इलाके में विस्फोट की आवाज सुनी। पहले विस्फोट के लगभग आधे घंटे के बाद दूसरा विस्फोट हुआ। फिलहाल पूरे इलाके को सील कर दिया गया है।'
उसने बताया कि सुरक्षाबलों ने एहतियात के तौर पर इलाके की घेराबंदी कर दी।
प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक, विस्फोट के कारण आसमान में धुएं का गुबार छा गया। हमले के बाद से पूरे इलाके में दहशत का माहौल हो गया।
समाचार एजेंसी एपी के अनुसार, 2020 के हमले के समय अफगानिस्तान में 700 से कम सिख और हिंदू थे। तब से, दर्जनों परिवार अन्यत्र चले गए हैं, लेकिन कई आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण दूसरे देश नहीं जा पाए हैं और वे अफगानिस्तान में ही, मुख्यतः काबुल, जलालाबाद तथा गजनी में रह रहे हैं।
सिख समुदाय के नेताओं का अनुमान है कि तालिबान शासित अफगानिस्तान में सिर्फ 140 सिख बचे हैं, जिनमें से ज्यादातर पूर्वी शहर जलालाबाद और राजधानी काबुल में हैं।
पिछले साल अगस्त में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से देश में प्रतिद्वंद्वी सुन्नी मुस्लिम आतंकवादी समूह इस्लामिक स्टेट के हमले लगातार जारी हैं।
शनिवार की घटना अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय के पूजा स्थल पर नवीनतम लक्षित हमला है।
इससे पहले, मार्च 2020 में काबुल में एक गुरुद्वारे पर हुए आत्मघाती हमले में कम से कम 25 श्रद्धालु मारे गए थे और आठ अन्य घायल हुए थे। यह हमला अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक सिख समुदाय पर हुए सबसे घातक हमलों में से एक था।
शोर बाजार इलाके में हुए इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी समूह इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने ली थी। (भाषा)