विशेष रिपोर्ट
5 साल में खुले 117 कैंप, 20 में से 6 हजार वर्ग किमी तक सिमटे नक्सली
‘छत्तीसगढ़’ से विशेष बातचीत- प्रदीप मेश्राम
रायपुर, 13 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। बस्तर रेंज आईजी सुंदरराज पी. यह मानकर चल रहे हैं कि नक्सल समस्या के खात्मे के लिए पुलिस सिर्फ मुठभेड़ पर भरोसा नहीं कर रही है। बार-बार नक्सलियों से समर्पण के जरिये मुख्यधारा में लौटने की अपील की जा रही है। आईजी का मत है कि जल-जंगल और जमीन पर आदिवासियों का नारा नक्सलियों का शिगूफ़ा मात्र रह गया है। वक्त के साथ बस्तर की फिजा बदल रही है। बस्तर के अंतिम छोर पर बसे लोग भी आगे बढऩा चाहते हैं।
0 - हाल ही में दंतेवाड़ा-नारायणपुर बार्डर में हुई अब तक की सबसे बड़ी मुठभेड़ पर आपका क्या कहना है ?
00 - पुलिस हर मोर्चे पर पूरी ताकत लगाकर नक्सलियों का सामना कर रही है। दंतेवाड़ा-नारायणपुर बार्डर मुठभेड़ में मिली सफलता पुलिस के बढ़ते हौसले का परिणाम है। ऐसे आपरेशन आगे भी होते रहेंगे।
0 - आईजी के तौर पर आप बस्तर में किस तरह का बदलाव देखते हैं?
00- बीते पांच वर्षों में बस्तर के सातों जि़लों में व्यापक बदलाव हुए हैं। हमने कोर नक्सल इलाकों में सबसे पहले सडक़ों का जाल बिछाया। जिसमें बासागुड़ा-जगरगुंडा, बीजापुर से मिरतूर, सिलेगर से पूवर्ती, भेज्जी से चिंतागुफा, चिंताराम से किस्टाराम जैसे महत्वपूर्ण इलाकों में सडक़ें बनाई। पुलिस की मौजूदगी में कांकेर, नारायणपुर, कोंडागांव इलाकों में भी सडक़ें बनाई गई है। यह बदलाव का पहला चरण है।
0- सुरक्षा कैम्पों को लेकर नक्सली मुखर रहते हैं कि कैम्प आदिवासियों के हित में नहीं हैं, इस पर आप क्या कहेंगे।
00- सुरक्षा कैम्पों के कारण ही आज बस्तर में शांति व अमन कायम हो रहा है। नक्सली आदिवासियों को ढ़ाल बनाकर अपने मंसूबों को पूरा करते हैं। अब बस्तर का हर बाशिंदा नक्सलियों के चाल-चरित्र को समझ गया है।
0- जल-जंगल-जमीन की बस्तर में क्या स्थिति है। तेजी से औद्योगिकीकरण के खिलाफ नक्सली क्यों है?
00- जल-जंगल-जमीन नक्सलियों के लिए एक शिगूफा मात्र है। नक्सलियों की दोहरी नीति उनके सफाए के साथ खात्मे की ओर है। आदिवासियों को भी आगे बढऩे का मौका मिलना चाहिए। औद्योगिकीकरण का विरोध के पीछे नक्सलियों का स्वार्थ है।
0- भीतरी इलाकों में पुलिस की इमेज कैसी रह गई है?
00- बस्तर की जनता के साथ पुलिस का रिश्ता प्रगाढ़ होता चला जा रहा है। भीतरी इलाकों में पुलिस की साख अब बदल गई है। पुलिस मानवीय दृष्टिकोण के तहत पिछड़ेपन के शिकार गांवों को अपने जरिये बुनियादी सुविधाएं मुहैया करा रही है। पुलिस अपने कैम्पों में प्रसूति से लेकर अन्य चिकित्सकीय कार्यों में भी लोगों की मदद कर रही है।
0- लगातार मुठभेड़ों से नक्सली क्या बैकफुट पर हैं। क्या ऐसा लगता है कि यह समस्या चंद दिनों की है?
00- मैं कह सकता हूं कि पुलिस का वर्चस्व अब बस्तर के हर इलाके में है। पिछले 5 सालों में बस्तर के 7 जिलों के 20 हजार वर्ग किमी से नक्सली सिर्फ 6 हजार वर्ग किमी तक सिमटकर रह गए हैं। कोर एरिया कमेटी में सिलसिलेवार खुल रहे कैम्प से नक्सलियों में भगदड़ की स्थिति ही है। यह समस्या जल्द ही सुलझ जाएगी।
0- नक्सलग्रस्त बस्तर में विकास के रास्ते कैसे खुलेंगे?
00- नक्सलियों की स्थिति कमजोर होने के साथ समाप्ति की ओर भी बढ़ रही है। बस्तर एक खूबसूरत इलाका है। इसकी अपनी संस्कृति और वातावरण है, जो कि पर्यटन के लिहाज से पर्यटकों के लिए एक मुफीद वजह है। पर्यटन के साथ-साथ भीतरी इलाकों में बन रही सडक़ों से ट्रांसपोर्टिंग और मैनपावर बढ़ेंगे। एनएमडीसी का उद्योग बस्तर की आर्थिक ताकत को मजबूती देगा। यह तमाम बातें है जो विकास के द्वार खोलने के लिए काफी है।
0- नक्सलियों के लाल गलियारे पर आपका क्या कहना है?
00- नक्सलियों का लाल गलियारा अब एक सपना रह गया है। वजह यह है कि बस्तर में इनकी जड़ें कमजोर हो गई है। भर्तियां नहीं होने से नक्सली संगठन लडख़ड़ा रहा है। वहीं बस्तर के नक्सलियों के साथ तेलुगू कैडर के नक्सल नेताओं का सौतेला व्यवहार सर्वविदित है। पिछले कुछ सालों से नक्सलियों के तेलुगू कैडर के शीर्ष नक्सली अलग-अलग खत्म हो गए हैं। कुल मिलाकर लाल गलियारा तैयार करना दूर की सपना मात्र है।
0- बतौर आईजी आपकी ओर से जनता के लिए क्या संदेश है?
00- बस्तर की जनता बेहद भोली-भाली और शांतिप्रिय है। नक्सल विचार से उनका मोहभंग होने लगा है। जनता से लगातार हम बातचीत कर एक उन्मुक्त माहौल बनाकर मुख्यधारा में साथ चलने की अपील करते रहे हैं। निश्चिततौर पर नक्सलियों से जनता अब रिश्ता बनाने में रूचि नहीं है। आने वाला भविष्य बस्तर के लिए काफी उज्जवल है।
नारायणपुर के दुर्गम इलाकों में बढ़ रही पढ़ाई
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट- नारायणपुर से लौटकर प्रदीप मेश्राम
रायपुर 10 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। बस्तर के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के नारायणपुर जिले में पढ़ाई बढ़ाने की प्रशासन की मुहिम को पुलिस की मदद से रफ्तार मिलने के बाद अपनी काबिलियत से अबूझमाड़ के एक छात्र ने विदेशी जमीं पर कदम रखा। पोटा केबिन से पढ़ाई शुरू करने वाले इस छात्र को विदेश भेजने में पुलिस और प्रशासन साझेदार रहे।
नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के रहने वाले छात्र शबीर वड्डे का गांव टिकोनार नक्सलगढ़ के रूप में जाना जाता है। नक्सल डर के साए में रहने वाले इस गांव में महज 5 परिवार ही रहते हैं। तीस लोगों की आबादी वाले इस गांव से निकलकर शबीर ने नारायणपुर के पोटा केबिन में दाखिला लिया। विज्ञान में रूचि रखने की वजह से शबीर ने जापान के नोकोया विश्वविद्यालय में एक विज्ञान प्रदर्शनी में शामिल होने का मौका हासिल किया।
इस साल 16 जून से 22 जून को हुए विज्ञान प्रदर्शनी में शामिल होने वाले शबीर बस्तर रेंज से एकमात्र छात्र थे। शबीर के लिए यह चयन कई मायने में महत्वपूर्ण रहा। शबीर ने पहली बार हवाई सफर का अनुभव हासिल किया। वहीं पहली विदेश यात्रा की खुशी जापान के बुलेट ट्रेन की सवारी से दुगनी हो गई। वर्तमान में 12वीं में अध्ययनरत शबीर को जापान की सफल यात्रा के लिए पुलिस और प्रशासन ने आवश्यक दस्तावेज को तैयार करने में मदद की।
खास बात यह है कि शबीर का गांव पूर्ण रूप से निरक्षर है। नक्सल आतंक के चलते प्रशासनिक मशीनरी का गांव में दखल शून्य है। ऐसे में इस होनहार छात्र ने विदेशी जमीन पर अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में भाग लेकर अबूझमाड़ में एक नए उत्साह का माहौल बनाया है।
इधर नारायणपुर के रामकृष्ण मिशन स्कूल में अध्ययनरत अबूझमाड़ के कई छात्र-छात्राएं तालीम को लेकर काफी गंभीर है। धौड़ाई और ओरछा क्षेत्र के विद्यार्थी तकनीकी शिक्षा के साथ व्यावहारिक ज्ञान को विद्यार्थियों ने चुना है। अबूझमाड़ के विद्यार्थी खेल, संगीत, चिकित्सा, इंजीनियर और अन्य क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। हालांकि नक्सलियों के आतंक के चलते विद्यार्थी अपना नाम छुपाने पर जोर देते हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर कुतुल, अतलानार, सोनपुर, ओरछा क्षेत्र के कई विद्यार्थी बताते हैं कि शिक्षा से ही वह तरक्की की ओर जा सकते हैं। तालीम लेने के बाद उनके जीवन में कई बदलाव आए हैं।
माना जाता है कि इन विद्यार्थियों ने परोक्ष या परोक्ष रूप से नक्सल दंश को झेला है। छात्राएं भी शिक्षा के रास्ते अपना सुनहरा भविष्य गढऩे के लिए पूरी शिद्दत के साथ पढ़ रही हैं। बताया जाता है कि अबूझमाड़ से निकले इन छात्रों को आगे बढ़ाने के लिए सभी तरह की सहूलियत भी दी जा रही है। बहरहाल अबूझमाड़ के गांवों में शिक्षा से बदलाव की बयार चलने लगी है।
शिक्षा से ही बदलाव संभव - आईजी
बस्तर रेंज आईजी सुंदरराज पी. ने नारायणपुर के भीतरी इलाकों में शिक्षा के बदौलत हो रहे परिवर्तन को लेकर कहा कि शिक्षा से ही बदलाव संभव है। उन्होंने कहा कि प्रशासन के साथ पुलिस संयुक्त रूप से शिक्षा को लेकर अभियान चला रही है। जिसके अपेक्षित नतीजे सामने आ रहे हैं। विद्यार्थियों की समझ और बौद्धिक क्षमता में बढ़ोत्तरी इस बात का द्योतक है कि भविष्य अबूझमाड़ के होनहार छात्रों का है।
पुलिस कैपों में प्रसूति और आपातकालीन चिकित्सा
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट- बड़ेसेट्टी कैंप से लौटकर प्रदीप मेश्राम
रायपुर, 8 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। बस्तर के अंदरूनी इलाकों में आमतौर पर खुलने वाले सुरक्षा कैंप अक्सर पुलिस-ग्रामीणों की नोंक-झोंक की वजह से सुर्खियां बंटोरते रहे है, लेकिन एक पहलू यह भी है कि पुलिस कैपों ने बीहड़ इलाकों में एक सुरक्षित माहौल तैयार कर दिया है। परिणामस्वरूप गांवों में पीडीएस, अस्पताल और स्कूल भवनें खड़ी होने लगी है।
सुकमा से लगभग 40 किमी दूर बड़ेसेट्टी में तकरीबन तीन साल पहले खुले कैंप नेे एक बड़े हिस्से से नक्सल प्रभाव को लगभग खत्म कर दिया है। फरवरी 2021 में इस कैंप का नक्सल दबाव में ग्रामीणों ने महीनों विरोध करते आंदोलन किया था। नक्सलियों की इस रणनीति का जवाब देने पुलिस ने ग्रामीणों से नजदीकियां बढ़ाकर कैंप खुलने के फायदे गिनाए।
देर से सही बड़ेसेट्टी में अब पीड़ीएस भवन बनकर तैयार हो गया है। वहीं अस्पताल भवन निर्माणाधीन है। पीडीएस भवन में सप्ताह के एक दिन निश्चित तारीख में दूर-दराज से ग्रामीण सरकारी राशन ले रहे हैं। फूलबगड़ी थाना के अधीन बड़ेसेट्टी में कैंप खुलने से महज तीन साल पहले शीर्ष नक्सल नेताओं और कमांडरों का प्रभाव रहा। कैंप खुलने के करीब छह माह के भीतर बड़ेसेट्टी क्षेत्र के 22 सौ की जनसंख्या को नक्सल आतंक से जहां निजात मिली। वहीं आपातकालीन चिकित्सकीय सुविधा भी आसानी से मिलनेे लगी।
कैंप के प्लाटून कंमाडर देवेन्द्र धीवर ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि कैंप खुलने से अब वनवासी खुद को महफूज मान रहे हैं। कैंप में दवाई से लेकर आपात चिकित्सकीय सुविधा भी प्रदान की जाती है। गर्भवती महिलाओं को गंभीर स्थिति में कैम्पों की सहायता से वाहन उपलब्ध कराकर हायर सेंटर भेजा जा रहा है।
बताते हैं कि ग्रामीणों का अब कैपों को लेकर नजरिया भी बदला है। भले ही ग्रामीण खुलकर कैपों के हिमायती नहीं है, लेकिन गांवों में बुनियादी जरूरतों की परेशानी दूर होने से परिवर्तन दिख रहे हैं। कैंप खोलने के बाद अंदरूनी इलाकों में दौड़ रहे आटो और सवारी गाडिय़ों से मीलों पैदल चलने की मजबूरी से भी ग्रामीणों को छुटकारा मिला है।
बड़ेसट्टी में पढ़ाई को लेकर भी एक उन्मुक्त माहौल बन गया है। बोलचाल से हिचकने वाले ग्रामीण भी अब जवानों से बतियाते दिख जाते हैं। कैंपों की सुरक्षा में तैनात जवान भी ग्रामीणों के बदले रूख के बीच गांवों की पारंपरिक धार्मिक आयोजनों में शरीक हो रहे हैं। बहरहाल कैपों से भीतरी गांवों की बदलती आबो हवा के बीच बड़सेट्टी जैसे कुछ नए कैंप खोलने का पुलिस का अभियान बदस्तूर जारी है।
सुरक्षा कैंप ग्रामीणों के लिए - आईजी
बस्तर में कैंपों को लेकर आईजी सुंदरराज पी. ने कहा कि कैंप ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए है। साथ ही बुनियादी सुविधाओं के लिए कैंप प्रशासन के साथ सहायक की भूमिका में है। निश्चित तौर पर बस्तर में कैपों के खुलने से सुरक्षा के लिए एक बेहतर परिस्थिति बनती दिख रही है।
नए शिक्षा सत्र से दाखिला, हर लोकसभा में एक
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 4 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। छत्तीसगढ़ में भले ही इंजीनियरिंग कॉलेजों की आधे से अधिक सीटें खाली रह गई हैं लेकिन सरकार आईआईटी की तर्ज पर नए इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने की तैयारी कर रही है। सरकार ने नए शिक्षा सत्र से पांच लोकसभा क्षेत्र में सीजीआईटी (छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी) खोलने जा रही है।
तकनीकी शिक्षा सचिव एस भारतीदासन ने ‘छत्तीसगढ’ से चर्चा में कहा कि नए शिक्षा सत्र से रायपुर, कवर्धा, जगदलपुर, रायगढ़, और बस्तर में सीजीआईटी शुरू करने की तैयारी है। इसकी तैयारी चल रही है।
तकनीकी शिक्षा विभाग ने नए सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने की दिशा में कार्रवाई शुरू कर दी है। भाजपा ने अपने विधानसभा चुनाव के घोषणापत्र में आईआईटी की तर्ज पर हर लोकसभा क्षेत्र में एक सीजीआईटी खोलने का वादा किया था। नए सीजीआईटी खोलने के मसले पर सीएम विष्णुदेव साय के साथ तकनीकी शिक्षा विभाग के अफसरों की बैठक भी हो चुकी है। रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में दो इंजीनियरिंग कॉलेज खोले जाएंगे। इनमें से एक जशपुर जिले में हो सकता है। अगले दो साल में प्रदेश के सभी लोकसभा क्षेत्रों में सीजीआईटी शुरू करने की सरकार की योजना है। कुल मिलाकर 11 लोकसभा क्षेत्र में 12 सीआईटी खोलने का प्रस्ताव है।
सूत्रों के मुताबिक पांच लोकसभा क्षेत्र में सीजीआईटी खोलने के प्रस्ताव को मंजूरी भी मिल गई है। यहां कॉलेज बिल्डिंग, और अन्य सुविधाएं जुटाने पर भी तेजी से काम चल रहा है। कहा जा रहा है कि पहले चरण में अस्थाई रूप से उस लोकसभा क्षेत्र के पॉलीटेक्निक कॉलेज की बिल्डिंग को लेकर सीजीआईटी शुरू किया जाएगा। नए शिक्षा सत्र यानी 2025 अप्रैल में यहां प्रवेश के लिए कार्रवाई भी की जाएगी।
बताया गया कि शिक्षकों की नियुक्ति, और ब्रांच आदि को लेकर विचार-विमर्श चल रहा है। कहा जा रहा है कि शिक्षकों की नियुक्ति अस्थाई तौर पर की जाएगी। इसके अलावा अन्य सुविधाएं जुटाने के लिए वित्तीय स्वीकृति ली जा रही है। सरकार के अफसरों का कहना है कि सीजीआईटी उच्च तकनीकी गुणवत्ता संस्थान के रूप में विकसित किया जाएगा। हालांकि प्रदेश में इंजीनियरिंग को लेकर विद्यार्थियों में रूझान कम देखने को मिला है।
प्रदेश में कुल 32 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। इनमें से तीन इंजीनियरिंग कॉलेज रायपुर, बिलासपुर, और जगदलपुर में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। बाकी तीन जगहों पर स्वशासी और 26 निजी इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। कुल मिलाकर 11 हजार 116 इंजीनियरिंग की सीटें हैं। इनमें से 3939 सीटें भर पाई है। बाकी सीटें खाली रह गई है।
पिछले कुछ सालों में आधा दर्जन से अधिक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज बंद भी हो चुके हैं। इसके अलावा सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी शिक्षकों की कमी है। ऐसे में नए इंजीनियरिंग कॉलेज खुलने पर क्या स्थिति रहेगी, इस पर इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। मगर सरकार से जुड़े सूत्रों का दावा है कि ये सभी संस्थान उत्कृष्ट रहेंगे, और ऐसे में यहां प्रवेश के लिए विद्यार्थी आकृष्ट होंगे। यहां पीईटी के माध्यम से प्रवेश दिया जा सकेगा।
हिरौली कैंप और गंगालूर-नेलसनार रोड़ जवानों की शहादत की गवाह
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट : बीजापुर के गंगालूर से लौटकर-प्रदीप मेश्राम
रायपुर, 3 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। नक्सलियोंं के खिलाफ निर्णायक लड़ाई में बस्तर के दुर्गम इलाकों में सिलसिलेवार खुल रहे सुरक्षा कैंप और सडक़ों के फैलते जाल से नक्सलियों की जड़ें हिल रही हैं। कैंप खोलने और सडक़ बनाने पुलिस की रणनीति कारगर साबित हो रही है। बीजापुर जिले के गंगालूर से तकरीबन 15 किमी दूर हिरौली में पुलिस ने कैंप की शुरूआत कर नक्सलियों को चुनौती दी है। हिरौली कैंप खोलना पुलिस के लिए आसान नहीं रहा। कैंप खुलने के बाद विशेष केंद्रीय सहायता (एससीए) फंड से हिरोली-कांवडगांव के लगभग 1.53 किमी का सडक़ निर्माण किया गया। बीजापुर की जिला निर्माण समिति ने जान जोखिम में डालकर पहली बार इस इलाके के अंदरूनी गांव के लिए डामरयुक्त सडक़ 50 लाख की लागत से तैयार किया गया। इस कैंप में सीआरपीएफ को तैनात किया गया है। साथ ही युवा जवानों की कोबरा टीम नक्सलियों के लिए मुस्तैद है।
बताया जाता है कि कैंपों के जरिए पुलिस नक्सल समस्या का सफाया करने के लिए अलग-अलग तरीका अपना रही है। मसलन गांवों की बुनियादी समस्याओं का हल तलाश कर ग्रामीणों से नजदीकी बढ़ाने व नक्सल आतंक से मुक्त कराने पर जोर दे रही है। हिरौली कैंप की शुरूआत के खिलाफ नक्सलियों ने ग्रामीणों को ढाल बनाकर महीनों आंदोलन को हवा दी थी।
पुलिस का दावा है कि नक्सली कैंपों का विरोध कर अपनी साख को बनाए रखना चाहते हैं। कैंप खुलने के बाद अब कांवडग़ांव और आसपास के इलाकों में नक्सली गतिविधि कम हुई है। कंैप खुलने से आसमान से नजर रखने के लिए जवान हाई-डेफीनेशन के ड्रोन का उपयोग कर रही है। ड्रोन के उपयोग को लेकर भी नक्सली कई तरह के भ्रांति फैलाकर ग्रामीणों को बरगला रहे हैं। इसी तरह गंगालूर-नेलसनार जाने वाली मार्ग में पुलिस को कई जवानों की शहादत झेलनी पड़ी। इस मार्ग के निर्माण होने से नक्सलियों के ठिकाने अब सुरक्षित नहीं रह गए।
गंगालूर के बाद पुलिस अब सडक़ों को आधार बनाकर अंदरूनी इलाकों के पिछड़ेपन को दूर करने तेजी से आगे बढ़ रही है। बताया जाता है कि गंगालूर और नेलसनार के बीच रास्ता बनने से दंतेवाड़ा और बीजापुर की सरहद पर नक्सल घुसपैठ में कमी आने की संभावना है। इस सडक़ पर कई दफे मुठभेड़ के अलावा विस्फोट की घटनाएं हुए। सडक़ निर्माण के दौरान तैनात जवानों पर नक्सलियों ने जानलेवा हमला किया। कई जवानों की शहादत का गवाह बना यह मार्ग अब भी निमार्णाधीन है। इस मार्ग से करीब 5 किमी दूर स्थित हिरौली कैंप तक पहुंचना खतरे से खाली नहीं रहा। इसी तरह नेलसनार की ओर बढ़ते गंगालूर से शुरू हुए इस मार्ग में अब डामर बिछने से सडक़ चमचमाती दिख रही है।
बताया जाता है कि नक्सलियों ने कच्चे मार्ग को पक्की सडक़ बनाने का पुरजोर विरोध किया था। निर्माण के दौरान सडक़ से टिफिन बम और आईईडी कई बार जवानों ने गश्त के दौरान बरामद किया। इसके बावजूद पुलिस ने रोड़ बनाने और कैंप खोलने की मुहिम को बरकरार रखा। हिरौली कैंप खोलकर पुलिस ने अपना इरादा जाहिर कर दिया है। साथ ही सडक़ बनाने को एक अभियान के रूप में लिया है।
प्रदेश की कमिश्नरी में 15 हजार प्रकरण लंबित
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 2 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। सीएम विष्णुदेव साय की फटकार के बाद राजस्व प्रकरणों के निराकरण में थोड़ी तेजी आई है। फिर भी बस्तर, और बिलासपुर कमिश्नरी में राजस्व प्रकरणों के निपटारे में देरी हो रही है। बस्तर में तो सितंबर माह में एक भी प्रकरण नहीं निपटे हैं। हाल यह है कि प्रदेश की कमिश्नरी में अब भी 15 हजार राजस्व प्रकरण लंबित हैं।
प्रदेश में राजस्व प्रकरणों की सुनवाई में देरी हो रही है। सीएम ने कलेक्टर कॉन्फ्रेंस में इस पर नाराजगी जताई थी, और समय सीमा के भीतर राजस्व प्रकरणों के निपटारे के निर्देश दिए थे। बावजूद इसके बिलासपुर, और बस्तर कमिश्नरी में राजस्व प्रकरण की सुनवाई समय पर नहीं हो रही है। बिलासपुर कमिश्नर नीलम नामदेव एक्का के हटने के बाद से रायपुर कमिश्नर महादेव कांवरे बिलासपुर के भी प्रभार में हैं।
बताया गया कि सितंबर माह में बस्तर में एक भी प्रकरण नहीं निपटे हैं। जबकि बिलासपुर में 9 प्रकरणों का निपटारा हुआ है। सबसे ज्यादा दुर्ग में 61 प्रकरण निपटे हैं। रायपुर कमिश्नरी में 47, और सरगुजा में 8 प्रकरण ही निपट पाए हैं। कुल मिलाकर 7 महीने में बस्तर में 26, बिलासपुर में 10, दुर्ग में 445, रायपुर में 116, और सरगुजा में 101 प्रकरणों का निराकरण हुआ है।
बताया गया है कि प्रदेश में सबसे ज्यादा 6089 प्रकरण सरगुजा संभाग में लंबित हैं। जबकि रायपुर में 3278, दुर्ग में 1072, बिलासपुर में 2924, और बस्तर में 1631 प्रकरण लंबित हैं। प्रदेश की कमिश्नरी में कुल मिलाकर 14994 प्रकरण लंबित हैं। कुल मिलाकर अभी भी राजस्व प्रकरणों का निपटारे की रफ्तार काफी धीमी है।
आजादी के बाद पहली बार बीजापुर के कांवडग़ांव में बच्चे पढ़ रहे
बीजापुर के कांवडग़ांव से लौटकर - प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 30 सितंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। दक्षिण बस्तर के दुर्गम जिले बीजापुर के नक्सल प्रभाव वाले कांवडग़ांव गांव में गोला-बारूद के बजाय स्कूल में बच्चों के ककहरे की आवाज गूंज रही है। आजादी के बाद पहली बार खुले प्राथमिक स्कूल में बच्चे अब प्राथमिक शिक्षा की बुनियाद समझ से रूबरू हो रहे हैं। अस्थाई रूप से बांस से निर्मित स्कूल में भले ही गिनती के बच्चे बुनियादी शिक्षा हासिल कर रहे हैं। हालांकि नक्सल खौफ से खुलकर कोई भी खुशी का इजहार नहीं कर रहा है। गांव में स्कूल का मुंह देखने के लिए ग्रामीणों को 70 बरस से ज्यादा का वक्त लग गया।
बीजापुर मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर कांवडगांव में पुलिस की मदद से प्रशासन ने प्राथमिक स्कूल की नींव रखी। इस साल जुलाई में खुले स्कूल में कुल 35 बच्चे इमला सीख रहे हैं। कांवडग़ांव नक्सलियों के कब्जे में रहा है। 300 की जनसंख्या वाला यह गांव अब तक निरक्षर रहा है। गांव की मौजूदा पीढ़ी ने स्कूल का कभी रूख नहीं किया।
स्कूल का पट खुलते ही आंगनबाड़ी और प्राथमिक स्कूल के बच्चों को विश्राम सिंह प्रजापति और एक अनुदेशक तालीम दे रहे हैं। स्कूल के पहले सत्र की शुरूआत से पहले बस्तर पुलिस को बारूद से भरे कांवडग़ांव के कच्चे रास्ते को पक्की सडक़ में बदलने के लिए कई दफे नक्सलियों से भिडऩा पड़ा।
स्कूल के शिक्षक प्रजापति ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि आजादी के बाद पहली बार स्कूल खुलने से शिक्षा-दीक्षा के लिए बच्चों के हाथ कॉपी-पुस्तक देखकर सुखद माहौल बना है। कांवडग़ांव का इतिहास नक्सली आतंक के चलते काफी डरावना रहा है। नक्सलियों के कई बड़े कैडर कांवडग़ांव में आए दिन धमकते रहेे हंै, जिस जगह पुलिस की मदद से प्रशासन ने स्कूल का बांस से निर्मित ढांचा तैयार किया है। वहां नक्सलियों की बैठकें और फरमान जारी होता था। स्कूल के जगह को पत्थर के शिलालेख से घेरा गया है। शिलालेखों में हार्डकोर नक्सलियों की मौत की वजह और उनके नक्सल संगठन को दिए योगदान का जिक्र है।
बताया जाता है कि नक्सली मारे गए साथियों के योगदान को ग्रामीणों के लिए खुद को एक त्याग के रूप में पेश करते हंै, ताकि गांवों में बसे ग्रामीणों का संगठन से मोह भंग न हो। स्कूल प्रारंभ होने पहले बस्तर पुलिस की निगरानी में 8 किमी दूर कांवडगांव के कच्चे रास्ते पर पक्की सडक़ का निर्माण किया गया है।
एक ग्रामीण ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि गांव में दाखिल होने से पहले एक बेरियर में लोगों को सवाल-जवाब देना पड़ता था। यानी नक्सली नए चहेरों को सघन जांच के बाद ही गांव में प्रवेश की अनुमति देते थे। पुलिस ने स्कूल खोलने से पहले गांव में नक्सलियों के ठिकानों को ध्वस्त किया। कांवडगांव में अब पीडीएस भवन, जल-जीवन मिशन की पानी टंकी और आंगनबाड़ी का नया भवन निर्माणाधीन है। कांंवडगांव में स्कूल खोलने से शिक्षा का एक उन्मृक्त माहौल बनने से पुलिस अपनेे अभियान को अगले गांव की ओर ले जाने की तैयारी कर रही है।
नक्सलियों को जवाब देने शिक्षा अहम हथियार- आईजी
सुरक्षा के साथ शिक्षा को लेकर पुलिस का एक सकारात्मक अभियान चलाने को लेकर बस्तर रेंज आईजी सुंदरराज पी. का कहना है कि नक्सली नहीं चाहते कि बस्तर के लोग शिक्षित हो। नक्सली सिर्फ वनवासियों को ढ़ाल बनाकर अपने स्वार्थो की पूर्ति कर रहे हैं, इसलिए हमने नक्सलियों के हिंसक रवैये का जवाब देने के लिए शिक्षा को हथियार बनाया है। जिसके बेहतर नतीजे भी सामने आ रहे हैं। पुलिस का शिक्षा के प्रति अभियान आगे भी जारी रहेगा।
500 मिलें लग चुकीं, नई पर रोक लगाने मिलर्स का आग्रह
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 27 सितंबर (छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। प्रदेश में पिछले पांच बरस में करीब पांच सौ नई राइस मिलें खुलीं हैं। हाल यह है कि कई मिलर्स को 60 दिन मिलिंग के लायक धान नहीं मिल पा रहा है। इस पर राइस मिल एसोसिएशन ने सरकार से नई राइस मिल को अनुमति नहीं देने का आग्रह किया है। साथ ही राइस मिल खोलने के लिए सब्सिडी खत्म करने का आग्रह किया है।
प्रदेश में राइस मिलों की संख्या 27 सौ से अधिक हो चुकी है। इसमें से तो पांच सौ राइस मिल पिछले पांच साल में खुलीं हैं। भूपेश सरकार ने राइस मिल उद्योगों को प्रोत्साहित किया था। पिछड़े क्षेत्रों में मिल लगाने पर करीब 60 लाख तक सब्सिडी दे रही है।
सरकार की नई नीति के बाद अब और मिल लगाने के लिए आवेदन आ रहे हैं। इस राइस मिल एसोसिएशन ने चिंता जताई है, और उद्योग सचिव से मिलकर सब्सिडी खत्म करने का आग्रह किया है।
राइस मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश अग्रवाल ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में कहा कि राइस मिलर्स अब परेशान हो रहे हैं। नई मिलें बड़ी संख्या में लग चुकी हैं। इसकी वजह से कई मिलर्स को 60 दिन मिल चलाने लायक धान नहीं मिल पा रहा है। इन सबको देखते हुए सरकार से आग्रह किया गया है कि मिल लगाने के सरकारी सब्सिडी खत्म किया जाए, अथवा नई मिल लगाने की अनुमति नहीं दी जाए।
दूसरी तरफ, उद्योग विभाग के एक अफसर ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में कहा कि अभी सी और डी कैटेगरी वाले इलाकों में मिल लगाने पर 60 लाख तक सब्सिडी दी जाती है। हालांकि अभी नई मिल लगाने पर रोक, या फिर सब्सिडी खत्म करने कोई प्रस्ताव नहीं है। फिर भी मिलर्स की मांग पर विचार किया जा सकता है।
प्रदेश में इस बार 1 करोड़ 45 लाख मीट्रिक टन धान खरीद हुई थी। उस अनुपात में अभी 2 लाख मीट्रिक टन धान का उठाव होना बाकी है। जबकि मिलर्स ने धान के उठाव के एवज में अभी 24 लाख टन चावल जमा नहीं कराए हैं। इसके लिए उन्हें नोटिस जारी किया जा रहा है।
रोक हटी, 35 लाख टन चावल-ब्रोकन निर्यात होता है...
केन्द्र सरकार ने चावल के निर्यात पर रोक को हटा दिया है। साथ ही उसना चावल के निर्यात पर ड्यूटी 20 से घटाकर 10 फीसदी कर दी है। छत्तीसगढ़ से हर साल करीब 35 लाख टन चावल-ब्रोकन का निर्यात होता है।
सरकार के इस फैसले से राईस मिलरों ने खुशी जताई है। पिछले तीन साल से अरवा चावल के निर्यात पर बैन लगी हुई थी। अब बैन को हटाने से निर्यात पहले की तरह सामान्य हो पाएगा।
बृजमोहन के तीखे तेवर
कंपनी पर एफआईआर होगी-जायसवाल
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 1 सितंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। यह एक ऐसा मामला है जिसमें डीकेएस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में लाखों फूंकने के बाद भी गंभीर मरीजों को बेड तक ऑक्सीजन सुविधा मुहैया नहीं कराई जा सक रही है। हुआ यूं कि ऑक्सीजन टैंक तो बनकर तैयार है, लेकिन पिछले तीन साल से कंपनी ने आगे का काम रोक दिया है। अब सांसद बृजमोहन अग्रवाल की नाराजगी के बाद स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने पूरे मामले को संज्ञान में लिया है। जायसवाल ने कंपनी के खिलाफ एफआईआर की चेतावनी दी है।
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में कहा कि गंभीर मरीजों की सुविधा के लिए पाइपलाइन बिछाकर ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की योजना थी। मगर कंपनी ने आगे काम बंद कर दिया है। उन्होंने कहा कि विभागीय अफसरों को कहा गया है कि कंपनी को बुलाकर अधूरे काम को पूरा करा समय सीमा के भीतर ऑक्सीजन सुविधा उपलब्ध कराई जाए। अन्यथा कंपनी के खिलाफ एफआईआर कराई जाएगी।
बताया गया कि पिछली सरकार में डीकेएस सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने के लिए कुछ नई योजनाएं शुरू की गई थी। इसमें गंभीर मरीजों के लिए बेड तक पाइपलाइन के जरिए ऑक्सीजन पहुंचाने का भी योजना थी। स्वास्थ्य विभाग ने सीजीएमसी के जरिए टेंडर बुलाया था, और हैदराबाद की कंपनी को काम भी दिया था। कंपनी ने वहां ऑक्सीजन टेंक भी बना दिया है, लेकिन आगे का काम रोक दिया है। यह काम पिछले तीन साल से अधूरा पड़ा है। कंपनी को करीब 59 लाख का भुगतान भी हो चुका है।
अस्पताल में बेड तक ऑक्सीजन नहीं पहुंचने का काम पूरा नहीं हो पाने के मामले पर पिछले दिनों रायपुर मेडिकल कॉलेज स्वशासी परिषद की बैठक में काफी चर्चा हुई। सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने इस पूरे मामले पर तीखे तेवर दिखाए, और आधे अधूरे काम करने पर कंपनी के खिलाफ एफआईआर करने के लिए कहा। बैठक में स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल भी मौजूद थे। उन्होंने भी इस पूरे मामले पर नाराजगी जताई, और विभागीय अफसरों से सवाल-जवाब किए।
सीजीएमसी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि कंपनी ने यह कहकर आगे का काम करने से मना कर दिया है कि पाइप लाइन बिछाने का काम टेंडर की शर्तों में नहीं था। उन्होंने बकाया राशि के साथ-साथ पाइप लाइन बिछाने के लिए अतिरिक्त राशि देने की मांग की है। स्वास्थ्य मंत्री के सख्त रूख के बाद टेंडर की शर्तों का परीक्षण किया जा रहा है, और पाइप लाइन बिछाने का काम जल्द से जल्द काम शुरू करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
कुछ सूत्रों का यह भी कहना है कि पिछली सरकार में भी तत्कालीन सचिव ने कंपनी पर दबाव भी बनाया था, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। यह भी चर्चा है कि डीकेएस प्रबंधन से जुड़े कुछ लोग कंपनी के पक्ष में रहे हैं। यही वजह है कि काम के लिए दबाव नहीं बन पाया है। बहरहाल, आने वाले दिनों में मामला तूल पकड़ सकता है।
जांच रिपोर्ट में खुलासा, 50 करोड़ के ट्रांसफार्मर हुए थे खाक
8 अफसर-कर्मियों को नोटिस
शशांक तिवारी की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 27 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। गुढिय़ारी में पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी के क्षेत्रीय भंडार गृह चार महीने पहले आगजनी की जांच रिपोर्ट में कई चौकाने वाले खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट में साफ-साफ कहा गया कि भंडार गृह के अफसर, और कर्मचारियों की लापरवाही की वजह से आग लगी। यह भी कहा गया कि आग बुझाने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए। इसलिए बड़ी घटना घटित हुई। जांच रिपोर्ट के आधार पर आठ अफसर, और कर्मियों को नोटिस जारी किया गया है।
गुढिय़ारी में पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी के क्षेत्रीय भंडार गृह में विगत पांच अप्रैल 2024 को आग लगी थी। आग से 7251 ट्रांसफार्मर, और स्क्रैप के सामान जल गए। इससे 50 करोड़ 22 लाख का नुकसान हुआ। आग इतनी भयंकर थी कि गुढिय़ारी इलाका आग की चपेट में आ सकता था, और पूरे शहर की बिजली व्यवस्था चौपट हो सकती थी। मगर दो दिन तक आग बुझाने के लिए चलाए गए प्रयासों से जनहानि आदि को टाला जा सका।
सीएम विष्णुदेव साय ने घटना की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए थे। जांच में सीनियर अफसरों को रखा गया था। इनमें मौजूदा एमडी (तत्कालीन ईडी) भीम सिंह कंवर, ईडी संदीप वर्मा, एडिशनल सीई यशवंत शिलेदार, एजीएम गोपाल मूर्ति, मुख्य सुरक्षा अधिकारी एश्रीनिवास राव और एसई डीडी चौधरी जांच कमेटी के सदस्य थे।
जांच कमेटी को पांच बिन्दुओं पर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया था। इनमें आग लगने के कारण, दुर्घटना के लिए जिम्मेदार अधिकारी, कर्मचारी-एजेंसी, कंपनी को वित्तीय हानि और भंडार गृह के संचालन के लिए वैकल्पिक व्यवस्था, और अन्य दुर्घटनाओं के लिए सुझाव मांगे गए थे।
जांच कमेटी ने गुढिय़ारी पुलिस से सीसीटीवी के फुटेज लिए, और इसकी बारीक पड़ताल की। यह बताया गया कि आग संभवत: 33 केवी के एलआईसी फीडर में हुए फाल्ट से एलटी पोल में उत्पन्न स्पार्किंग में गिरी चिंगारी से लगी, जो कि एलटी खंभें के नजदीक की सूखी, और हरी घास, झाडिय़ों से प्रारंभ हुई, और ऑयली जमीन व स्टोर परिसर में रखे केबल ड्रमों, पुराने और नए ट्रांसफॉर्मर में तेजी से फैली।
सीसीटीवी में स्पष्ट तौर पर स्पार्किंग होने के एक से दो मिनट के बाद एलटी पोल के पास जमीन से धुंआ उठते दिखा, जो कि कुछ समय बाद आग की ज्वाला में तब्दील हो गया। फिर आग धीरे-धीरे बाउंड्रीवाल, और रोड साइड की बाउंड्रीवाल की तरफ बढ़ी, और तेजी से फैलने लगी।
दुर्घटना के लिए जिम्मेदार अफसर-कर्मी...
जांच रिपोर्ट में बताया गया कि आग एलटी खंभें के नजदीक की सूखी और हरी घास, झाडिय़ों से शुरू हुई, और ऑयली जमीन व स्टोर परिसर में रखे केबल ड्रमों, पुराने व नए ट्रांसफार्मरों में तेजी से फैली। सीसीटीवी के फुटेज में यह स्पष्ट हुआ है कि उस वक्त तेजी से हवा चल रही थी। जिसके कारण आग फैलने लगी। उसने स्टोर परिसर में रखे कंडक्टर ड्रमों, शेड में रखे मीटरों और अन्य सामानों को अपने चपेट में ले लिया।
आग लगने के समय स्टोर का कोई भी नियमित कर्मचारी उपस्थित नहीं था। यह बताया गया कि घटना के दिन सुबह 6 बजे से 2 बजे तक ही शिफ्ट ड्यूटी में नियमित कर्मचारी अभिषेक अवधिया की ड्यूटी थी, लेकिन वह भी किसी को सूचित किए बिना अनुपस्थित हो गया। अफसरों-कर्मियों के बयानों से पता चलता है कि स्टोर परिसर में उगी हुई घास, झाडिय़ों की नियमित कटाई और कटी हुई घास-झाडिय़ों का निस्तारण नहीं होने के कारण दुर्घटना घटी।
रिपोर्ट में बताया गया कि सुरक्षा सैनिकों को प्रारंभिक समय में सजक रहते हुए आग बुझाने के लिए उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करना चाहिए था, लेकिन उनके द्वारा कोई सारथक प्रयास नहीं किया गया। यह कहा गया कि आग लगने के प्रारंभिक समय पर आग बुझाने के उचित प्रयास नहीं होने से आग फैली, और आग बुझाने के लिए उपलब्ध संसाधनों का तुरंत उपयोग नहीं करने पर आग अनियंत्रित हो गई। कार्यपालन यंत्री स्टोर, स्टोर कीपर, नियमित कर्मचारी अवधिया के अलावा सुरक्षा सैनिक व सुरक्षा एजेंसी घटना के जिम्मेदार हैं।
जांच रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कार्यपालन यंत्री नगर संभाग उत्तर द्वारा मांगी गई जानकारी न देकर अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर न होने का बतलाया गया। जो कि पॉवर कंपनी के प्रक्रिया के विपरीत है। इस तरह एलटी लाइन के रखरखाव में कार्यपालन यंत्री, सहायक यंत्री एसटी मेनटेंस, सहायक यंत्री गुढिय़ारी, और कनिष्ठ यंत्री द्वारा लापरवाही बरती गई। जिसके फलस्वरूप दुर्घटना घटी। जिसके लिए उपरोक्त अफसर जिम्मेदार हैं।
इन अफसर-कर्मियोंं को नोटिस
जिन अफसरों को नोटिस जारी की गई है। उनमें कार्यपालन यंत्री अजय कुमार गुप्ता, स्टोर कीपर, बंसत कुमार देवांगन, परिचायक अभिषेक अवधिया, कार्यपालन यंत्री अमित कुमार, सहायक यंत्री दिनेश कुमार सेन, कनिष्ठ यंत्री अभिषेक गहरवार, सहायक यंत्री नवीन एक्का, कनिष्ठ यंत्री नरेश बघमार हैं।
सुझाव
जांच समिति ने भंडार गृह संचालन के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने का भी सुझाव दिया है। यह कहा है कि स्टोर के पुर्नसंचालन किसी फायर प्रोटेक्शन विशेषज्ञ, एजेंसी से ड्राइंग डिजाइन और फायर प्रोटेक्शन प्रणाली संबंधी सलाह और अनुशंसा के आधार पर किया जाना चाहिए।
स्टोर परिसर के भीतर से जा रही डबल सर्किट 33 केवी लाइन और अन्य सभी ओवर हेडलाइनों को परिसर के बाहर शिफ्ट किया जाना चाहिए।
0 आकाशीय बिजली से सुरक्षा के लिए समुचित रेंज के मेटल ऑक्साइट लाइटिंग अरेस्टर लगाया जाए।
0 क्षेत्रीय भंडार गृह निश्चित अवधि के अंतराल में फायर आडिट कराया जाना चाहिए।
0 क्षेत्रीय भंडारों में बहुमूल्य सामाग्रियों और उपकरणों के फायर अथवा चोरी का इंश्योरेंस भी होना चाहिए।
0 जांच समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि डिपो स्टोरों को अधीक्षण यंत्री स्टोर, और कार्यपालन यंत्रियों और अन्य स्टाफ पूर्णत: मुख्य अभियंता के प्रशासनिक नियंत्रण में होना चाहिए।
ग्रामीणों ने कहा पहाड़ में जगह-जगह पड़ रही है दरार
अभिनय साहू की विशेष रिपोर्ट
अम्बिकापुर/उदयपुर, 27 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लॉक अंतर्गत विश्व की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला रामगढ़ एवं पहाड़ के ऊपरी हिस्से पर भगवान राम का काफी पुराना मंदिर है। कहा जाता है कि महाकवि कालिदास के मेघदूत में वर्णित रामगिरि पर्वत यही है, जहाँ उन्होंने बैठकर अपनी कृति मेघदूत की रचना की थी। यहाँ पर विश्व की प्राचीनतम गुफा नाट्य शाला स्थित है। इसे रामगढ़ नाट्य शाला के नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय मान्यता है कि 14 बरस वनवास के दौरान एक लंबा समय राम, लक्ष्मण, सीता का यहां व्यतीत हुआ था।
ग्रामीणों ने बताया कि अब विश्व की यह प्राचीनतम नाट्यशाला आस-पास के कोल माइंस के लिए किए जा रहे विस्फोट के कारण खतरे में पड़ गया है,जगह-जगह दरारें पड़ रही है। जानकारी के मुताबिक़ पुरातत्व,धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से देश भर में प्रसिद्ध रामगढ़ से महज 5 से 7 किलोमीटर की दूरी पर परसा ईस्ट एवं केते बासेन की खुली कोल खदान है। खदान में कोयला निकालने हेतु बारूद का उपयोग किया जाता है और बड़ी चट्टानों को तोडऩे के लिए बड़ी मात्रा में यहां बड़े विस्फोट होते हैं। रामगढ़ पहाड़ी के आसपास के लोगो ने बताया कि जब बड़े विस्फोट होते हैं तो रामगढ़ की पहाड़ी पर हल्की कंपन्न उत्तपन्न होती है। इन विस्फोटों से रामगढ़ की पहाड़ी को लगातार क्षति हो रहा है।जबकि प्रबन्धन यह मानने को तैयार ही नहीं है कि उनके कोल उत्पादन हेतु किये जा रहे बारूद विस्फोट का प्रभाव अगल-बगल के क्षेत्रों में पड़ रहा है।
बदातुर्रा के आधा दर्जन से अधिक पहाड़ी कोरवा की बस्ती में कभी भी हो सकता है गंभीर हादसा
हसदेव बचाओ आंदोलन से जुड़े रामलाल ने बताया कि रामगढ़ पहाड़ी पर कई हिस्से इस स्थिति में धीरे-धीरे पहुंच रहे हैं कि कभी भी कोई गंभीर हादसा हो सकता है। कई पत्थर बीच से टूट रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर कोल खनन हेतु किये जाने वाले विस्फोट के प्रभाव से जब धरती के अंदरूनी क्षेत्र में हलचल होती है तो उसके प्रभाव से कई हिस्से नीचे की ओर दब रहे हैं। जिसे समय के साथ भूस्खलन एवं प्राकृतिक प्रभाव बता कर स्थानीय वन विभाग के अधिकारी भी मौन साध लेते हैं।
उन्होंने कहा कि बदातुर्रा एक मुहल्ला है जहां पर कुछ पहाड़ी कोरवा परिवार रहते हैं और वहां सोलर सिस्टम भी लगाये गए हैं। इसके ऊपरी हिस्से पर रामगढ़ का एक हिस्सा लगातार क्षतिग्रस्त हो रहा जो यहां कभी भी गिर सकता है। इससे न सिर्फ सोलर सिस्टम क्षतिग्रस्त होगा बल्कि 7-8 लोगों की यह बस्ती भी प्रभावित होगी। कभी भी कोई गंभीर हादसा हो सकता है।
स्थानीय निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता क्रांति कुमार रावत कहते हैं-मैंने इसकी मौखिक शिकायत कई बार वन विभाग को की है लेकिन उस ओर उनका कोई ध्यान नहीं है। यदि कोई गंभीर घटना-दुर्घटना हुई तो जवाबदेही कौन लेगा। आगे क्रांति बताते हैं बड़े विस्फोट से रामगढ़ के ऊपर आने के लिए स्थानीय लोगों द्वारा बनाया गया पैदल रास्ता जिससे जानकार स्थानीय ही अधिकतर आते हैं वह भी किसी भी दिन बंद हो जाएगा। लगातार उसे क्षति पहुंच रही है। अब सवाल तो यह भी उठता है कि किसी प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थल के नजदीक कोल खदान को पर्यावरणीय स्वीकृति कैसे मिल गई?
आंदोलन से जुड़े आनंद कुसरो कहते हैं ऐसा होने से एक गांव जो घाटबर्रा नाम का है उसका पूरा अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। भविष्य में वह गांव रहेगा ही नहीं। इससे आमजनमानस में नाराजग़ी है यदि इतने क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई शुरू हुई और कोल उत्पादन शुरू हुआ तो इस पुरातात्विक स्थल रामगढ़ के आसपास के क्षेत्र लगातार प्रभावित होंगे।
क्षेत्र में खदान नहीं खुलने देने को लेकर लगातार आंदोलन कर रहे स्थानीय लोगों में वहां के युवा काफी जागरूक हैं। युवा कहते हैं फिलहाल गांव, बस्ती, घर, जंगल के बाद अब लोगों की बड़ी चिंता यह है कि अब रामगढ़ का अस्तित्व भी संकट में है।खैर स्थानीय लोग वर्षों से आंदोलनरत हैं और लगातार आवाज़ उठा रहे हैं।
मैं मौके पर जाकर जांच करता हूं-एसडीएम
रामगढ़ पहाड़ी में आ रही दरार को लेकर छत्तीसगढ़ द्वारा उदयपुर एसडीएम बन सिंह नेताम सिंह से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि मैं तहसीलदार के साथ स्वयं मौके पर जाकर देखता हूं और जहां मीईनिंग के लिए ब्लास्ट हो रहा है उसकी डिस्टेंस कितनी है इसकी भी जांच करवाता हूं।साथ ही एसडीएम ने कहा कि पहाड़ के नीचे जहां पहाड़ी कोरवा लोग रह रहे है मैं वहां भी जाऊंगा।
दिनेश आकुला की विशेष रिपोर्ट
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) का संभावित इंडिया गठबंधन में शामिल होना भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम हो सकता है। यह कदम विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए राज्यसभा में चुनौतियाँ पैदा कर सकता है।
वाईएसआरसीपी की मांग और संकेत
वाईएसआरसीपी ने हाल ही में लोकसभा के डिप्टी स्पीकर पद को विपक्षी इंडिया गठबंधन को आवंटित करने की मांग उठाई। पार्टी के महासचिव और राज्यसभा के नेता वी विजय साई रेड्डी ने एक सर्वदलीय बैठक में इस मांग को उठाते हुए कहा कि यह लोकतांत्रिक भावना को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। रेड्डी ने इस बात पर जोर दिया कि परंपरा के अनुसार, डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया जाना चाहिए। यह पद काफी समय से खाली है और इसे विपक्ष के एक आम उम्मीदवार को दिया जाना चाहिए।
इंडिया गठबंधन के समर्थन के संकेत
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने हाल ही में दिल्ली के धरना स्थल पर वाईएसआरसीपी के साथ एकजुटता व्यक्त की। यादव ने वाईएसआरसीपी कार्यकर्ताओं पर हुए कथित हमलों की निंदा की और कहा कि वह इंडिया गठबंधन की ओर से जगन के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए वहां मौजूद थे। इसके अतिरिक्त, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने भी वाईएसआरसीपी को अपना समर्थन व्यक्त किया।
इंडिया गठबंधन में शामिल होने का संभावित प्रभाव
वाईएसआरसीपी के इंडिया गठबंधन में शामिल होने से राज्यसभा में विपक्ष की संख्या बढ़ जाएगी। वाईएसआरसीपी के पास राज्यसभा में 11 सांसद और लोकसभा में 4 सांसद हैं। यदि वाईएसआरसीपी इंडिया गठबंधन में शामिल होती है, तो राज्यसभा में विपक्ष की संख्या बढक़र 98 हो जाएगी, जो मोदी सरकार के लिए किसी भी बिल को पास करना मुश्किल बना सकती है।
बीजेपी के लिए संभावित चुनौतियाँ
राज्यसभा में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के पास बहुमत से 13 सीटें कम हैं। फिलहाल एनडीए के पास कुल 101 सांसद हैं, जबकि विपक्ष के पास 87 सांसद हैं। ऐसे में यदि वाईएसआरसीपी इंडिया गठबंधन में शामिल होती है, तो विपक्ष की संख्या बढक़र 98 हो जाएगी, जिससे राज्यसभा में भाजपा के लिए स्थिति कठिन हो जाएगी।
वाईएस जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी का इंडिया गठबंधन में शामिल होना भाजपा के लिए राज्यसभा में एक महत्वपूर्ण चुनौती साबित हो सकता है। यह कदम भाजपा के लिए बिल पास करने में कठिनाई पैदा कर सकता है और विपक्ष को मजबूत बना सकता है। हालांकि, जगन मोहन रेड्डी ने अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन वर्तमान संकेत और घटनाक्रम इस दिशा में इशारा कर रहे हैं।
पंद्रह दिनों पहले कलेक्टर ने कहा-जल्दी ही भिजवाने की कोशिश करता हूं
उत्तरा विदानी की विशेष रिपोर्ट
महासमुंद, 24 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। महासमुंद जिला प्रशासन की लापरवाही देखिये कि लोकसभा चुनाव के दौरान मतगणना के लिए स्कूलों में बच्चों के बैैठने के लिए रखी गई सैकड़ों कुर्सियां-टेबलों और कई स्कूलों से प्रधान पाठक तक के बैठने की रिवाल्विंग कुर्सियां उठा तक ले गए और मतगणना निपटने बाद उन्हें स्कूलों तक लौटाना भूल गए।
जानकारी अनुसार मतगणना के बाद स्कूलों के प्राचार्य और शिक्षक जिला प्रशासन से लगातार कुर्सी टेबलों को वापस करने की मांग करते रहे, पत्र व्यवहार भी किया। लेकिन किसी ने भी इस पर कोई पहल नहीं। स्कूल खुलने के बाद भी किसी का ध्यान इस ओर नहीं रहा। अब हालात यह है कि बारिश जारी है और बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। इस बारिश में बच्चों के जमीन पर बैठने का श्रेय जिला प्रशासन को जाता है।
इस मामले की खबर ‘छत्तीसगढ़’ को पंद्रह दिनों पहले लगी थी। ‘छत्तीसगढ़’ ने खबर मिलते ही पहले कलेक्टर प्रभात मलिक को इसकी जानकारी दी और कुर्सी टेबलों को स्कूलों तक पहुंचाने की मांग की। इस पर कलेक्टर ने कहा कि जल्दी ही विभागीय अफसरों से इस बारे में बात करता हूं। इसके तुरंत बाद ‘छत्तीसगढ़’ ने जिला शिक्षा अधिकारी मोहन राव से बात की तो उन्होंने कहा था-मैं बाहर हूं आप हमारे विभाग के अफसर नंदकुमार सिन्हा जी से बात कर लीजिएगा।
अत: ‘छत्तीसगढ़’ ने शिक्षा विभाग के अधिकारी नंदकुमार सिन्हा से बात की तो उन्होंने कहा कि मुझे पता नहीं है फिर भी कोशिश करता हूं। एक अधिकारी ने तो यह भी कहा कि स्कूलों तक टेबल कुर्सियां पहुंच जाएंगी, आप इसे अखबार में प्रकाशित मत कीजिए, बेकार बात का बतंगड़ बनेगा। इतना कहने के बाद कलेक्टर से लेकर अधिाकरी तक सभी अपने वादे भी भूल गए। फोन पर ऐसी बात हुए पंद्रह दिन बीत गये हैं, लेकिन अधिकारियों के वादे तो वादे होते हैं, वादों का क्या?
यह तस्वीर जिला मुख्यालय के पास ही छह किलोमीटर दूर स्थित सोरिद स्कूल की तस्वीर है। आज ‘छत्तीसगढ़’ वहां पहुंचा, तो टेबलकुर्सी के अभाव में सातवीं कक्षा के बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई कर रहे थे। वहीं स्टेशन पारा स्कूल के प्राचार्य टेबल पर बैठकर अपना काम निपटा रहे थे।
मतगणना के वक्त जिला प्रशासन ने शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला सोरिद से 60, बम्हनी हायर सेकंड्री स्कूल से 60, लाफिन खुर्द हाई स्कूल से 30, मिडिल स्कूल लाफिन खुर्द से 33, शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला स्टेशनपारा से 39 कुर्सी-टेबल की व्यवस्था की थी। बच्चों की इन कुर्सियों के भरोसे जिला प्रशासन ने मतगणना भी करा दी और कुर्सी टेबलों को स्कूलों में पहुंचाने की कोशिश तक नहीं की।
तमाम स्कूल के शिक्षकों ने बातचीत में कहा कि 4 जून को मतगणना के बाद से कुर्सी टेबल को स्कूूलों तक पहुंचाने की मांग की जा रही है। लेकिन अधिकारियों की लापरवाही देखिये कि मतगणना के बाद 16 जून स्कूल खुलने के वक्त तक उनके पास पूरे 12 दिन थे कुर्सियों को स्कूलों तक पहुंचाने के लिए।
ठीक है कि गर्मी की छुट्टी के बाद स्कूल खुल गए। लेकिन बारिश शुरू हुई, तब भी अधिकारियों को बच्चों की हालत पर तरस नहीं आई।
आज 24 जुलाई है और अब तक कुर्सियों को स्कूलों तक नहीं पहुंचाया गया है। उन्हें इस खबर को किसी अखबार में छप जाने की चिंता भी नहीं है। खबर प्रकाशन के बाद शायद उनकी तंद्रा टूूटे और बच्चों को कुर्सी टेबल नसीब हो सके। बहरहाल देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चे गीली जमीन पर बैठकर पढ़ाई करने मजबूर हैं।
वन विभाग ने प्रस्ताव तैयार किया
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 3 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। बस्तर के जलप्रपात तीरथगढ़ में सरकार कांच का पुल बनाने जा रही है। वन विभाग ने इसकी योजना तैयार की है। कांच का पुल करीब सौ मीटर लंबा होगा। विभागीय अफसरों का मानना है कि कांच का पुल बनने से पर्यटकों की संख्या में काफी इजाफा होगा।
बताया गया कि बिहार के नालंदा जिले के राजगीर शहर में कांच का पहला पुल बना है। यह पुल चीन के हांगझोऊ ब्रिज की तर्ज पर बनाया गया है। कांच के पुल की वजह से पर्यटन में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। कुछ इसी तरह तीरथगढ़ जल प्रपात में कांच का पुल बनाने की योजना तैयार की गई है।
तीरथगढ़ जल प्रपात को देखने के लिए बड़े पैमाने पर पर्यटक आते हैं। कांच का पुल बनने से पर्यटकों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हो सकती है। पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) सुधीर अग्रवाल ने बताया कि कांच के पुल के साइड सलेक्शन कर लिया गया है। पुल करीब 5 सौ मीटर की ऊंचाई पर होगा।
बताया गया कि राजगीर का पुल करीब 2 सौ मीटर पर है। कांच का पुल काफी सुरक्षित भी है, और एक समय में 50 से अधिक लोग आ-जा सकते हैं। तीरथगढ़ के पुल को यू-शेप में बनाने की योजना है। इस पर करीब 3 करोड़ का खर्च अनुमानित है। प्रस्ताव को मंजूरी मिलते ही पुल तैयार करने के लिए वर्क ऑर्डर जारी किया जाएगा।
80 फीसदी दिव्यांग, राशन कार्ड है, मतदाता भी
विशेष रिपोर्ट : उत्तरा विदानी
महासमुंद, 16 जून (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता )। जिले के भलेसर गांव में एक परिवार रहता है। इस परिवार के सदस्यों का राशन कार्ड है। मतदान भी करने जाते हैं लेकिन सर्वे सूची में नाम नहीं होने के कारण इस परिवार को प्रधानमंत्री आवास समेत कई योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है।
इस घर का एकमात्र कमाऊ युवक 80 फीसदी दिव्यांग है। सामने बरसात का मौसम है। कच्चे मकान के छप्पर में कवेलू कम छेद ज्यादा है। दीवारों में जगह जगह दरारें हैं, ऐसे में अपने मासूम बच्चों के साथ अनहोनी के डर से उक्त युवक ने यू-ट्यूब के जरिए प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से गुहार लगाई है। पंचायत से, जनपद से, जिला प्रशासन से गुहार लगा चुके शिव को मुख्यमंत्री से उम्मीद है कि किसी न किसी तरह से उनके रहने के लिए ठिकाना जरूर बनाएंगे।
वायरल यू ट्यूब वाली वीडियो की हकीकत जानने आज ‘छत्तीसगढ़’ शिव के घर पहुंचा। भलेसर गांव महासमुंद जिला मुख्यालय से लगा हुआ लगभग तीन किलोमीटर दूरी पर है। यहां पुराना पारा और नयापारा को मिलाकर लगभग दो हजार की आबादी है। गांव में अनुसूचित जाति के लोगों के लिए अलग बस्ती है नयापारा। शिव का परिवार इसी नयापारा बस्ती में रहता है। इनकी पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं। परिवार में माता-पिता और छोटे भाई-बहन हैं। भाई-बहनों की शादी हो चुकी है। शिव अपने परिवार का सबसे बड़ा बेटा है।
बारहवीं कक्षा तक पढ़ा शिव पक्के मकानों में रंग रोंगन का काम करता था। आठ साल पहले देर शाम महासमुंद से काम करके घर लौट रहा था कि रास्ते में ही सडक़ दुर्घटना में वह गंभीर रूप से घायल हो गया। काफी इलाज के बाद भी शिव के कमर से नीचे का हिस्सा बेजान ही रहा।
अंतत: शिव ने इसे ही अपनी किस्मत मान समाज कल्याण विभाग से मिले मोटराइज्ड ट्राइसाइकिल के सहारे चौक चौराहों पर नगाड़ा, खिलौने आदि बेचने लगा। पत्नी किसी तरह शिव को जमीन से उठाकर ट्राइसाइकिल में बिठाती है और शिव बच्चों के रोटी की जुगाड़ में निकल जाता है।
शिव को एक ही चिंता है कि बारिश में उसका कच्चा मकान साथ नहीं देगा, ऐसे में परिवार का क्या होगा? ऐसा नहीं है कि गरीब, विकलांग और अनुसूचित जाति को मिलने वाली सरकरी योजनाओं की जानकारी शिव को नहीं है। वह पढ़ा लिखा है और इस हालत में वह दफ्तरों के चक्कर लगाता है। सभी जगह एक ही जवाब मिलता है कि सर्वे सूची में नाम नहीं है, इसलिए उसे प्रधानमंत्री आवास समेत किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला है।
शिव ने मुख्यमंत्री श्री साय से जो निवेदन किया है वह इस तरह है..
मुख्यमंत्री महोदय, मैं आपका वोटर हूं। आपके प्रदेश के महासमुंद जिले में भलेसर गांव है, वहीं रहता हूं तीन चार पीढियों से। सर्वे सूची में पता नहीं क्यों मेरे परिवार का नाम नहीं है? मैं इतना जानता हूं बहुत कोशिशों के बाद मैं जिंदा हूं और अचल होकर भी परिवार का पालन पोषण करता हूं। मेरे हालात अपने आप मेरी कहानी कहता है। मैं दर-दर भटकता हूं। मुझे विकलांग पेंशन तक नहीं मिलता। आपके अधिकारियों को और क्या सबूत दूं?
थक हारकर आपसे गुजारिश कर रहा हूं कि कम से कम मेरे परिवार के लिए आवास और मेरे लिए विकलांग पेंशन की व्यवस्था कर दीजिए, वरना मिट्टी का जर्जर मकान मेरे परिवार को कभी भी खत्म कर देगा। मेरी बात आप सुन सकते हैं तो कहना चाहूंगा कि सर्वे सूची में नाम नहीं होने से किसी को मृत समझ लेना अन्याय है। मेरे जिंदा होने का सबूत है कि मैं अपने परिवार के साथ मतदान करने जरूर जाता हूं।
शिवकुमार टाण्डेकर के पिता विजय टांडेकर बताते हैं कि शिव के रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण वह अचल है। इसके बाद से उसकी पत्नी, बच्चों और परिवार की हालत खराब है। जैसे तैसे जीवन यापन हो रहा है। अब कच्चा मकान भी जर्जर हालत में है। सर्वे सूची में नाम नहीं है, इसलिए आवास योजना और विकलांग पेंशन योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा हैं। प्रत्येक चुनाव में हम मतदान करते हैं।
लोकसभा चुनाव
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट : शशांक तिवारी
रायपुर, 6 जून (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। केंद्र में सरकार चाहे किसी की भी हो, राज्य गठन के बाद के अब तक के लोकसभा चुनाव में जनता का मिजाज खालिस भाजपा समर्थक का रहा है। इस बार भी भाजपा ने अपना दबदबा बरकरार रख 10 सीटें जीती है। जबकि कांग्रेस को एकमात्र कोरबा सीट पर ही जीत मिल पाई। खास बात यह है कि कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन पिछले लोकसभा चुनाव में रहा, जब पार्टी दो सीट जीतने में कामयाब रही।
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद वर्ष-2004 में लोकसभा के चुनाव हुए। उस वक्त प्रदेश में भाजपा की सरकार थी, और डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री थे। राज्य में विधानसभा चुनाव के छह महीने के बाद ही लोकसभा के चुनाव होते हैं। चूंकि राज्य गठन में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की भूमिका थी। इसका फायदा पहले चुनाव में मिला।
भाजपा प्रदेश की 11 लोकसभा सीटों में से 10 सीट जीतने में कामयाब रही। ये अलग बात है कि छत्तीसगढ़ की जनता के भरपूर समर्थन के बाद भी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की वापसी नहीं हो पाई, और केन्द्र में सत्ता परिवर्तन हो गया। उस वक्त प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले काफी उठा पटक हुआ था।
भाजपा विधायक खरीद-फरोख्त की कोशिश में तत्कालीन सीएम अजीत जोगी को कांग्रेस ने निलंबित कर दिया था। इसकी सीबीआई जांच हुई थी। उनकी लोकसभा चुनाव के ठीक पहले वापसी हुई, और कांग्रेस ने महासमुंद सीट से प्रत्याशी बनाया। महासमुंद में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में थे। चुनाव प्रचार के बीच जोगी का एक्सीडेंट हो गया। इससे उपजी सहानुभूति के चलते जोगी को बड़ी जीत हासिल हुई।
राज्य गठन के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉ. चरणदास महंत जांजगीर लोकसभा सीट से हार गए। हारने वालों में अविभाजित मप्र कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष परसराम भारद्वाज, रायपुर से पूर्व सीएम श्यामाचरण शुक्ल, बस्तर से महेंद्र कर्मा प्रमुख थे। अकेले अजीत जोगी प्रदेश से लोकसभा के सदस्य रहे।
वर्ष-2009 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को सफलता मिली थी, और डॉ. रमन सिंह फिर मुख्यमंत्री बने। केन्द्र में उस वक्त डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार थी। मनमोहन सिंह सरकार ने मनरेगा जैसी योजनाएं लाकर लोकप्रियता हासिल की थी। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने विपक्ष में रहकर जोर शोर केंद्र की उपलब्धियों को प्रचारित भी किया था। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 38 सीटें मिली थी। लेकिन छत्तीसगढ़ में केन्द्र सरकार की उपलब्धियों का कोई खास फायदा नहीं हुआ। लोकसभा चुनाव में एकमात्र कोरबा सीट से डॉ. चरणदास महंत ही जीत पाए। बाकी सभी सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। जनता ने भाजपा को भरपूर समर्थन दिया।
हारने वालों में कांग्रेस नेताओं में बिलासपुर से डॉ. रेणु जोगी, भूपेश बघेल रायपुर से, देवव्रत सिंह प्रमुख थे। जबकि भाजपा से रमेश बैस, दिलीप सिंह जुदेव, सरोज पाण्डेय, बलीराम कश्यप आदि नेताओं ने अच्छी जीत हासिल की थी। इससे परे वर्ष-2014 के लोकसभा चुनाव में यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल था, और नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने लहर थी।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले विधानसभा के चुनाव में फिर भाजपा ने सरकार बनाई, और रमन सिंह के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनी। मगर कांग्रेस का प्रदर्शन भी बेहतर रहा, और 39 सीटें जीतने में कामयाब रहीं। लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन एकदम फीका रहा, और एकमात्र दुर्ग सीट से ताम्रध्वज साहू चुनाव जीतने में सफल रहे। हारने वाले कांग्रेस नेताओं में अजीत जोगी महासमुंद से, रायपुर से सत्यनारायण शर्मा और कोरबा से डॉ. चरणदास महंत प्रमुख थे। उस वक्त डॉ. महंत केन्द्रीय मंत्री थे। भाजपा से सरोज पाण्डेय हारने वाली एकमात्र प्रत्याशी थीं।
वर्ष-2019 के चुनाव में अलग ही तरह का माहौल था। प्रदेश में 15 साल की भाजपा सरकार की बुरी हार हुई थी, और भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। कांग्रेस को कुल 90 सीटों में से 68 विधानसभा सीटों पर सफलता हासिल हुई थी। मगर 6 महीने के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा।
कांग्रेस के कोरबा से ज्योत्सना महंत, और बस्तर से दीपक बैज ही चुनाव जीतने में कामयाब रहे। भाजपा ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस, अभिषेक सिंह सहित सभी 10 सांसदों की टिकट काटकर नए चेहरे को प्रत्याशी बनाया गया। भाजपा की यह रणनीति कामयाब रही, और 9 सीटें जीतने में कामयाब रही। भाजपा से जीतने वालों में दुर्ग से विजय बघेल, रेणुका सिंह, और अरुण साव प्रमुख थे। खुद भूपेश बघेल सीएम रहते उनके लोकसभा क्षेत्र दुर्ग में कांग्रेस की सबसे बड़ी हार हुई। भूपेश अपने विधानसभा क्षेत्र पाटन से भी कांग्रेस को बढ़त नहीं दिला पाए।
प्रदेश में इस बार यानी 2024 के चुनाव नतीजों में भाजपा का दबदबा कायम रहा।
ये अलग बात है कि देश के कई राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। जनता ने भाजपा का समर्थन किया, और कोरबा संसदीय सीट को छोडक़र बाकी सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाब रही। हारने वालों में पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी हैं। भाजपा से पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पाण्डेय को कोरबा सीट से हार झेलनी पड़ी है। यानी इस बार भी जनता का भरपूर समर्थन मिला है, और विधानसभा चुनाव से ज्यादा समर्थन दिया है।
सात सीट में कांग्रेस को नहीं मिली सफलता
राज्य बनने के बाद से अब तक के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 7 लोकसभा सीट नहीं जीत सकी है। इनमें रायपुर, बिलासपुर, कांकेर, रायगढ़, नांदगांव, जांजगीर-चांपा, और सरगुजा सीट है। हालांकि इनमें राजनांदगांव सीट में वर्ष-2004 के आम चुनाव में कांग्रेस हारी थी, लेकिन दो साल बाद सांसद प्रदीप गांधी की बर्खास्तगी के बाद उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन वर्ष-2009 के आम चुनाव में भाजपा यह सीट जीतने में कामयाब रही।
कांग्रेस को वर्ष-2004 में महासमुंद, दुर्ग, बस्तर और कोरबा सीट पर ही सफलता मिली है। इनमें से कोरबा सीट परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आई, और अब तक के चार चुनाव में 3 बार कांग्रेस का कब्जा रहा है। कोरबा में पहले डॉ. चरणदास महंत, और पिछले दो चुनाव से उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत चुनाव जीत रही है।
साय-बैस तीन बार जीते, भूपेश हारे
राज्य बनने के बाद सीएम विष्णुदेव साय और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़े, और तीनों बार उन्हें भारी वोटों से जीत मिली। विष्णुदेव साय एक बार राज्य बनने से पहले और तीन बार बाद में रायगढ़ से सांसद रहे। इससे परे पूर्व सीएम भूपेश बघेल तीन बार लोकसभा का चुनाव लड़े, और तीनों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
भूपेश बघेल वर्ष-2004 में दुर्ग सीट से लड़े थे। उन्हें भाजपा के ताराचंद साहू ने हराया। इसके बाद वर्ष-2009 में रायपुर सीट से चुनाव लड़े, और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस ने उन्हें हराया। इस बार पूर्व सीएम बघेल राजनांदगांव सीट से चुनाव मैदान में थे। जहां विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था। मगर यहां भी भूपेश को भाजपा के संतोष पांडेय ने 44 हजार से अधिक वोटों से हराया।
नहीं पहुंच पाए शुक्ल बंधु संसद
पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल 9 बार लोकसभा के सदस्य रहे। इनमें से 7 बार महासमुंद, और दो बार रायपुर से सांसद बने। इसी तरह अविभाजित मप्र के पूर्व सीएम श्यामाचरण शुक्ल राज्य बनने के पहले महासमुंद से सांसद रहे, लेकिन इसके बाद पहले चुनाव में वर्ष-2004 में वो रायपुर से चुनाव लड़े, और उन्हें पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस ने बुरी तरह हरा दिया। इसी चुनाव के ठीक पहले पूर्व केन्द्रीय मंत्री शुक्ल भाजपा में शामिल हो गए, और भाजपा ने उन्हें महासमुंद सीट से प्रत्याशी बनाया। लेकिन उन्हें पूर्व सीएम अजीत जोगी से हार का सामना करना पड़ा।
महंत दंपत्ति तीन बार जीते
पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. चरणदास महंत तीन बार सांसद रहे। एक बार उन्हें वर्ष-2004 में जांजगीर-चांपा सीट से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद वर्ष-2009 में कोरबा लोकसभा सीट से जीते, और केंद्र में मंत्री भी बने। मगर 2014 के मोदी लहर में वो 41 सौ वोटों से हार गए। इससे परे उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ी, और उन्हें जीत हासिल हुई। ज्योत्सना को पिछले चुनाव में ज्यादा वोटों से जीत हासिल हुई है।
वीरेश, खेलसाय दोनों बार हारे
कांकेर से कांग्रेस प्रत्याशी वीरेश ठाकुर को लगातार दो चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। दोनों बार नजदीकी मुकाबले में हारे हैं। वर्ष-2019 में साढ़े 6 हजार वोटों से पीछे थे, तो इस बार 1884 वोटों से हार गए।
स्वास्थ्य मंत्री अपने इलाके से नहीं दिला पाए बढ़त
प्रदेश में सबसे ज्यादा एक लाख से अधिक वोटों की बढ़त रायपुर ग्रामीण
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 5 जून (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। लोकसभा चुनाव में भाजपा को 66 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली, जबकि कांग्रेस 14 सीटों पर ही बढ़त बना पाई। प्रदेश में सर्वाधिक बढ़त रायपुर ग्रामीण से एक लाख से अधिक वोटों की रही जो कि भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल को मिली। दिलचस्प बात यह है कि सरकार के मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल अपनी विधानसभा सीट मनेन्द्रगढ़ से भाजपा प्रत्याशी को बढ़त नहीं दिला पाए।
स्वास्थ्य मंत्री जायसवाल से परे सीएम और बाकी मंत्रियों की सीटों से पार्टी प्रत्याशी को बढ़त मिली है। सीएम विष्णु देव साय, वित्तमंत्री ओ.पी.चौधरी, बृजमोहन अग्रवाल, रामविचार नेताम, लखन लाल देवांगन, टंकराम वर्मा, और दयालदास बघेल के क्षेत्र से पार्टी प्रत्याशी को विधानसभा चुनाव से ज्यादा बढ़त मिली है। मसलन, सीएम विष्णु देव साय खुद 27 हजार वोटों से जीते थे, लेकिन लोकसभा चुनाव में उनके विधानसभा क्षेत्र कुनकुरी से भाजपा प्रत्याशी राधेश्याम राठिया को 40 हजार से अधिक वोटों की बढ़त मिली है।
इसी तरह बृजमोहन अग्रवाल अपने क्षेत्र रायपुर दक्षिण से 89 हजार से अधिक वोटों की बढ़त हासिल की। वित्तमंत्री ओ.पी. चौधरी खुद करीब 65 हजार वोटों से जीते थे, लेकिन रायगढ़ सीट से भाजपा प्रत्याशी को चौधरी की विधानसभा सीट रायगढ़ शहर से करीब 70 हजार मतों की बढ़त मिली। इसी तरह उद्योग मंत्री लखन लाल देवांगन की विधानसभा सीट कोरबा से भाजपा प्रत्याशी को 47 हजार वोटों की बढ़त हासिल हुई। इसी तरह राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा की बलौदाबाजार सीट से भाजपा प्रत्याशी को करीब 59 हजार मतों की बढ़त मिली। इसके अलावा रामविचार नेताम और दयालदास बघेल की सीट में भी पार्टी प्रत्याशी का प्रदर्शन बेहतर रहा है।
दोनों डिप्टी सीएम पिछड़े
सरकार के दोनों डिप्टी सीएम अरूण साव और विजय शर्मा की सीट क्रमश: लोरमी व कवर्धा में पार्टी प्रत्याशी का प्रदर्शन फीका रहा। बिलासपुर लोकसभा की लोरमी सीट से भाजपा प्रत्याशी तोखन साहू मात्र 484 वोटों की बढ़त मिल पाई जबकि खुद अरूण साव करीब 49 हजार से अधिक वोटों से चुनाव जीते थे।
इसी तरह विजय शर्मा की सीट कवर्धा में भाजपा प्रत्याशी संतोष पांडे मात्र साढ़े 10 हजार वोटों की बढ़त बना पाए। जबकि विजय शर्मा खुद करीब 40 हजार वोटों से चुनाव जीते थे। इसी तरह महिला बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े के क्षेत्र सरगुजा के भटगांव से पार्टी प्रत्याशी चिंतामणि महाराज को करीब 17 हजार वोटों की बढ़त मिल पाई। जबकि लक्ष्मी राजवाड़े खुद 43 हजार वोटों से चुनाव जीती थी। इसी तरह वनमंत्री केदार कश्यप के विधानसभा क्षेत्र नारायणपुर से भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप को करीब साढ़े 4 हजार वोट की ही बढ़त मिल पाई। जबकि खुद केदार 11 हजार से अधिक वोटों से चुनाव जीते थे। मंत्रियों में अकेले श्याम बिहारी जायसवाल के क्षेत्र मनेन्द्रगढ़ से भाजपा प्रत्याशी सरोज पांडेय को बढ़त नहीं मिल पाई। जबकि खुद जायसवाल 15 हजार से अधिक वोटों से चुनाव जीते थे।
दिग्गजों के इलाके से कांग्रेस पिछड़ी
नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरण दास महंत, पूर्व सीएम भूपेश बघेल और प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के इलाके से भी कांग्रेस पिछड़ गई। यही नहीं, बस्तर लोकसभा प्रत्याशी कवासी लखमा खुद अपनी विधानसभा सीट कोंटा से पिछड़ गए।
नेता प्रतिपक्ष डॉ.महंत की विधानसभा सीट सक्ती से कांग्रेस प्रत्याशी डॉ.शिव डहरिया करीब 16 हजार वोटों से पीछे रह गए। जबकि डॉ. महंत खुद 12 हजार मतों से चुनाव जीते थे। यही नहीं, पूर्व सीएम भूपेश बघेल की विधानसभा सीट पाटन से भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल को 25 हजार से अधिक वोटों की बढ़त मिली। जबकि भूपेश खुद विधानसभा चुनाव में विजय बघेल से करीब 19 हजार से अधिक वोटों से जीते थे।
कांग्रेस को जिन 14 सीटों पर बढ़त मिली है उनमें जांजगीर-चाम्पा लोकसभा की जैजैपुर, पामगढ़, और बिलाईगढ़ है। इसके अलावा राजनांदगांव लोकसभा की मानपुर-मोहला, खुज्जी सीट पर बढ़त मिली है। कांकेर लोकसभा की भानुप्रतापपुर, डौंडीलोहारा सीट पर ही बढ़त मिली। बस्तर में बीजापुर और बस्तर से कांग्रेस को बढ़त मिली। इसी तरह कोरबा के एकमात्र रामपुर सीट कांग्रेस के पास थी जहां से कांग्रेस प्रत्याशी ज्योत्सना महंत बढ़त बनाने में कामयाब रही है।
मितानीनों ने भरसक प्रयास किया, परन्तु स्थिति होती जा रही है गंभीर
विशेष रिपोर्ट : चंद्रकांत पारगीर
बैकुंठपुर (कोरिया), 24 मई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता )। मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (एमसीबी) जिले के भरतपुर तहसील में ‘छत्तीसगढ़’ ने बैगा और आदिवासी परिवारों की ऐसी तीन बालिकाओं को खोजा, जो जन्म से ही ऐसी बीमारी से ग्रसित है, जिनका इलाज संभव होने के बाद भी वो ठीक नहीं हो पाई है।
बेहद गरीब परिवार होने के कारण परिजन उन्हें रायपुर जैसी बड़े शहरों में ले जाकर इलाज कराने में असमर्थ है। ऐसे में तीनों बालिकाएं बीमारियों को कष्ट सह रही है, परिवार वालों ने भी उन्हें भगवान भरोसे छोड़ रखा है।
दूरस्थ भरतपुर तहसील वैसे तो कई तरह के विकास से आज भी अछूता है, यहां स्वास्थ्य की स्थिति वर्षों से बदहाल है। यहां के ज्यादातर लोग अपना इलाज करवाने मध्यप्रदेश के शहडोल पर निर्भर हैं। गंभीर रूप से घायल होने के पर शहडोल के बाद लोगों को रीवा मेडिकल कॉलेज का रूख करना होता है।
इस तहसील में बैगा जनजाति के लोगों के साथ गोंड आदिवासी समाज की बाहुल्यता है। ऐसे में ‘छत्तीसगढ़’ ने कई गांव के दौरे के बाद तीन ऐसी बालिकाओं को खोजा, जो गंभीर बीमारियों से जूझ रही हैं। जन्म से ही वो इसकी शिकार हंै, माता पिता की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उनका इलाज बड़े शहरों में नहीं हो पा रहा है। माता-पिता ने उन्हें उनके हाल पर घर में रखा हुआ है।
पीठ में घाव, पैर से मवाद
गोंड आदिवासी परिवार में 16 वर्ष पहले जन्मी ज्ञानवती के पीठ के नीचे छोटा घाव था, जो अब बढक़र काफी बड़ा हो गया है। ज्ञानवती के पिता बताते हंै कि एक साल पहले वो चल फिर सकती थी, परन्तु अब एक साल से उसका चलना फिरना बंद हो गया है, पीठ में घाव है और उसका मवाद उसके दाएं पैर से निकलता है, पहले पैर में सभी उंगलियां थी, परन्तु मवाद के निकलते रहने से दाएं पैर की उंगलियां भी गल गई हैं।
परिवार भरतपुर तहसील के ग्राम पंचायत रामगढ़ के आश्रित ग्राम गिरवानी में रहता है। आदिवासी परिवार खेती-बाड़ी करके अपना गुजर-बसर कर रहा है। पहले पहल बालिका के इलाज के लिए भाग-दौड़ की गई, परन्तु अब उसे उसके हाल पर छोड़ दिया गया है, ज्ञानवती दिनभर बिस्तर में पड़ी रहती है।
चेहरे पर बड़ा सिस्ट
बैगा जनजाति के सुखराम बैगा की बेटी का जन्म डेढ़ वर्ष पूर्व हुआ था, उन्होंने प्यार से उसका नाम गणेशिया रखा, जन्म के समय उसके चेहरे पर छोटा सा सिस्ट था, परन्तु अब बढक़र वो एक किलो से ज्यादा हो गया है, उसकी आंख और नाक उसके समा गयी है। गणेशिया उसे लेकर चुपचाप इधर उधर लुढक़ती रहती है।
बैगा परिवार भरतपुर तहसील के ग्राम पंचायत भगवानपुर में निवास करता है, उनका घर भगवानपुर के आवास पारा में है। पिता सुखराम ने एक बार गणेशिया को डॉक्टर को दिखाया था, तब उन्होंने थोड़ा और वजन होने के बाद लाने को कहा था, परन्तु अब वो उसे ले जाकर इलाज करवाने में असमर्थ है, और गणेशिया के चेहरे का सिस्ट लगातार बढ़ते जा रहा है।
बढ़ रहा है सिर का आकार
भरतपुर तहसील के ग्राम पंचायत देवगढ़ के आश्रित ग्राम छपराटोला निवासी मुकेस बैगा की बेटी अंजली बैगा का सिर उपर की ओर से बड़ा और कठोर होता जा रहा है, ऐसा जन्म के बाद से हो रहा है। उनकी उम्र लगभग 2 वर्ष होने को है, पहले वो सुनती भी थी, परन्तु अब उसको सुनाई देना बंद कर दिया हैै। मुकेश की आर्थिक स्थित मजबूत नहीं है, जिसके कारण उसने एक-दो बार उसके इलाज की कोशिश की, परन्तु अब उसके इलाज के लिए प्रयास नहीं कर पा रहा है।
आपत्तियों का निराकरण अब तक नहीं
‘छत्तीसगढ़’ की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 20 मई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। नवा रायपुर बसाने के लिए सरकार ने हजारों करोड़ खर्च किए हैं, लेकिन पिछले दस साल से इन खर्चों की ऑडिट नहीं हुई है। बताया गया कि स्टेट ऑडिट विभाग ने शुरूआत के पांच सालों के खर्चों की ऑडिट की थी। इसमें करोड़ों की अनियमित भुगतान का खुलासा हुआ है। खास बात यह है कि ज्यादातर ऑडिट आपत्तियों का निराकरण भी नहीं किया गया है।
एनआरडीए के चेयरमैन एस.एस.बजाज ने ‘छत्तीसगढ़’ से कहा कि नवा रायपुर के स्मार्टसिटी मद के खर्च की ऑडिट एजी कर रही है। मगर इससे पहले के खर्च की ऑडिट लोकल फंड ऑडिट करता आया है। लेकिन पिछले दस सालों के खर्च की ऑडिट हुई है या नहीं, इसकी जानकारी लेंगे।
भूपेश सरकार के मंत्री मोहम्मद अकबर ने पदभार संभालते ही नवा रायपुर के खर्चों की ऑडिट कराने के आदेश दिए थे। मगर इस दिशा में कांग्रेस सरकार में भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। पिछले पांच साल में एनआरडीए के आधा दर्जन से अधिक सीईओ बदले गए। इसी बीच नवा रायपुर में निर्माण कार्य और अन्य योजनाओं के मद में अरबों रूपए खर्च हुए हैं, लेकिन इन खर्चों की कोई पड़ताल नहीं हुई।
दिलचस्प बात यह है कि लोकल फंड ऑडिट ने वर्ष 2005-06 से 2011-12 तक नवा रायपुर में खर्च की ऑडिट में करोड़ों की गड़बड़ी पकड़ी है। इसमें कई कंपनियों को अनियमित भुगतान का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में पैरामाऊंट प्लेसमेंट एजेंसी को 10 लाख से अधिक अनियमित भुगतान का खुलासा हुआ है। इसी तरह दिल्ली की कंपनी कंसलटिंग इंजीनियरिंग सर्विस के एग्रीमेंट और कार्य के भुगतान की मूल नस्ती ही गायब पाई गई है। सीईएस कंपनी को एक करोड़ 14 लाख से अधिक की राशि निरर्थक कार्य का भुगतान होना पाया गया।
रिपोर्ट में उक्त कंपनी को 30 लाख रूपए संदिग्ध भुगतान पाया गया। यही नहीं, इसी कंपनी से 12 लाख 40 हजार की राशि वसूली योग्य माना गया है। मुम्बई के आर्किटेक्ट उत्तमचंद जैन को नवा रायपुर में डिजाइन के लिए नियुक्त किया गया था। उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया को विसंगतिपूर्ण माना गया है, और 52 लाख से अधिक का भुगतान अनियमित पाया गया।
रिपोर्ट में नवा रायपुर में सलाहकारों को एक करोड़ 19 लाख से अधिक भुगतान का खुलासा किया गया। यह कहा गया कि सलाहकारों के भुगतान के दस्तावेज भी नहीं हैं। इसी तरह नवा रायपुर के फोरलेन सडक़ के निर्माण में कार्य से अधिक भुगतान का मामला भी पकड़ा है। करीब 45 लाख से अधिक का भुगतान किया गया है।
मुआवजा भुगतान में अनियमितता
नवा रायपुर में जमीन के अधिग्रहण के एवज में किसानों को अनियमित भुगतान का मामला भी सामने आया है। लोकल फंड ऑडिट में असिंचित जमीन को सिंचित बताकर लाखों रूपए अधिक भुगतान किया गया। कई किसानों से वसूली अपेक्षित किया है। दो दर्जन से अधिक प्रकरणों में लाखों रूपए त्रुटिपूर्ण भुगतान का मामला सामने आया है।
आरआई को संदिग्ध अग्रिम भुगतान
रिपोर्ट में राजस्व निरीक्षक पी.एल.साहू को 12 लाख से अधिक के अग्रिम भुगतान को संदिग्ध बताया है। इसी तरह नवा रायपुर के कर्मचारियों को मोबाइल भत्ता के नाम पर अधिक भुगतान किया जाना पाया गया है। करीब सवा लाख से अधिक की राशि की वसूली अपेक्षित है।
देश में पहली बार लीथियम का खनन होगा
विशेष रिपोर्ट : शशांक तिवारी
रायपुर, 19 मई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। केन्द्र सरकार ने छत्तीसगढ़ के लीथियम की खदान की नीलामी करा रही है। बताया गया कि कटघोरा स्थित लीथियम की खदान के लिए आधा दर्जन से अधिक कंपनियों ने बोली लगाई थी, और जून के पहले पखवाड़े में टेंडर ओपन होगा। खास बात यह है कि देश की पहली खदान होगी जहां लीथियम का खनन शुरू होगा।
जीएसआई के सर्वे में कोरबा जिले के कटघोरा में लीथियम खदान होने की पुष्टि हुई थी। इसके बाद से केन्द्र सरकार ने सर्वे को आगे बढ़ाकर नीलामी की दिशा में कदम बढ़ाया है। कोरबा जिले के कटघोरा इलाके के करीब दो सौ हेक्टेयर क्षेत्र में लीथियम मिलने की पुष्टि हुई है। इसके बाद केन्द्र सरकार ने कम्पोजिट लाईसेंस जारी कर नीलामी को मंजूरी दी है।
सूत्रों के मुताबिक कटघोरा के लीथियम खदान की ऑनलाईन नीलामी की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। चुनाव आचार संहिता की वजह से टेंडर ओपन नहीं किए गए हैं। बताया गया कि आधा दर्जन कंपनियां, जिनमें अडानी, टाटा, जेएसपीएल, और वेदांता आदि ने लीथियम खदान की नीलामी में बोली लगाई है। अब जून के पहले पखवाड़े में टेंडर ओपन किए जाएंगे।
विभागीय सूत्रों के मुताबिक चयनित कंपनी को कम्पोजिट लाईसेंस जारी किए जाएंगे जिसमें पीएल (प्रॉस्पेक्टिंग के बाद) के बाद माइनिंग भी कर सकेगी। कहा जा रहा है कि देश की पहली खदान होगी, जहां लीथियम का खनन होगा।
लीथियम की डिमांड
लीथियम के मामले में भारत अब तक चीन पर निर्भर रहा है। इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी में लीथियम का उपयोग होता है। इसकी वजह से दुनिया भर में लीथियम की भारी डिमांड है।
पिछले कुछ वर्षों में देश के कई राज्यों में लीथियम की खदान होने की पुष्टि हुई है, यह बात जीएसआई के सर्वे में सामने आई है। लीथियम को केन्द्र सरकार ने क्रिटिकल मिनरल की श्रेणी में रखा है, और इसकी नीलामी भी सीधे केन्द्र सरकार कर रही है। राज्य को उत्खनन से भारी-भरकम राजस्व मिलने की उम्मीद है।
इस साल राज्य सरकार ने खनिज मद से 15 हजार करोड़ रूपए के राजस्व का लक्ष्य तय किया है। इसकी पूर्ति के लिए ऐसे ही खनिजों के खदानों को ओपन किया जाना है। पिछले सप्ताह केन्द्रीय खनन सचिव कांता राव ने रायपुर प्रवास के दौरान इस श्रेणी के सभी खदानों को सूचीबद्ध कर केन्द्र को भेजने के निर्देश दिए थे।
चंद्रकांत पारगीर की विशेष रिपोर्ट-
बैकुंठपुर, 17 मई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। भरतपुर के सीमावर्ती क्षेत्रों से मध्यप्रदेश का हरा सोना कहा जाने वाला तेंदूपत्ता छत्तीसगढ़ में खपाया जा रहा है। सीमावर्ती क्षेत्रों में तेंदूपत्ता माफिया सक्रिय है, मध्यप्रदेश के तेंदूपत्ता को 350 रू प्रति गड्डी लेकर छत्तीसगढ़ में ग्रामीणों के कार्ड में 10 हजार से 20 हजार गड्डी की एंट्री कर दी जा रही है।
मनेन्द्रगढ़ वन मंडल के जनकपुर और कुंवारपुर परिक्षेत्र के साथ कोरिया जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों के कई फड़ों में खपाया जा रहा है। यदि एक एक कार्ड की जांच हो तो कई खुलासे हो सकते हंै कि एक दिन में 10 हजार से ज्यादा गड्डी कोई एक परिवार कैसे तोड़ सकता है।
इस संबंध में जनकपुर परिक्षेत्र के परिक्षेत्राधिकारी चंद्रकेश्वर सिंह का कहना है कि कल भी हम लोगों ने रात्रि गश्त किया है, पूरी कोशिश है कि मध्यप्रदेश से तेंदूपत्ता यहां नहीं आ पाए, पूरी निगरानी बरती जा रही है। कई क्षेत्रों में हमने बैरियर भी लगाए है। आप बता रहे हंै तो और गश्ती तेज कर देते हंै।
वनमंडल मनेन्द्रगढ अंतर्गत परिक्षेत्र जनकपुर और कुंवारपुर में इन दिनों तेंदूपत्ता में बड़ा गड़बड़झाला किया जा रहा है। मध्यप्रदेश के सीधी जिले से तेंदूपत्ता की पत्तियों को छत्तीसगढ़ के फड़ों में आसानी से खपाया जा रहा है, इनमें बड़वाही यहां दो फड़ है, इसके अलावा जेवमठ, जेवा, दुबरी, बिंटरपुरी, चिनरावाह, महदौली, माड़ीसरई, घुघरी, हरचौका, पटेराटोला, हरदी, दंदरी, कोटा, पिपरहा, हर्रहा, गिजोहर, लवाही, पनखोड़ा फड़ों में रोजाना 30 से 40 हजार तेंदूपत्ता की गड्डी मध्यप्रदेष से लाकर खपाई जा रही है। छत्तीसगढ़ का यह क्षेत्र मध्यप्रदेश के सीधी जिले की सीमा से लगा हुआ है। यहां एक एक कार्ड में 10 हजार से 20 हजार गड्डियों की एंट्री की जा रही है।
रात में 12 बजे के बाद आ रहा
सीधी क्षेत्र से आने वाला तेंदूपत्ता का खेल रात 12 बजे के बाद शुरू होता है, इसके लिए इसमे शामिल माफिया गर्मी के मौसम का पूरा फायदा उठा रहे हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों में जंगलों से छत्तीसगढ़ पहुंचने के कई रास्ते हैं, जिनसे आसानी से पहुंचा जा सकता है।
छोटे नदी नालों में पानी कम हो गया है, बाइक में तेंदूपत्ता बांध कर नदी पार कर यहां लेकर आ रहे हंै, रात 12 बजे से लेकर सुबह 4 बजे तक यह खेल जारी रहता है। इस खेल में फड़ में किसको कितनी गड्डी दी जानी है, इसकी पूरी सेंटिंग पहले से की जा चुकी होती है। रातोंरात में लाकर तय घरों में तेंदूपत्ता की गड्डियों वितरित कर दी जाती है।
पार्क में प्रतिबंधित
गुरू घासीदास नेशनल पार्क में तेंदूपत्ता के तोडऩे पर प्रतिबंध लगा हुआ है, यहां ग्रामीणों को नकद राशि प्रोत्साहन के रूप में प्रदान की जाती है, परन्तु बावजूद इसके यहां ग्रामीण बड़ी मात्रा में तेंदूपत्ता तोड़ते हंै और तोड़े हुए पत्तों को जनकपुर कुंवारपुर परिक्षेत्र के अलावा कोरिया जिले के सीमा पर स्थित तेंदूपत्ता फड़ों में जाकर बेच देते हंै, वहीं सीधी जिले में स्थित संजय गांधी नेशनल पार्क मेंं स्थानीय लोगों को तेंदूपत्ता तोडऩे की अनुमति दे दी गई है, और वहां दर कम होने के कारण वहां का पत्ता छत्तीसगढ़ आ रहा है। जिसे लेकर वन विभाग किसी भी तरह रोक लगाने की कोशिश नहीं कर पाता है। इस दिनों दोनों नेशनल पार्क से काफी मात्रा में तेंदूपत्ता आ रहा है।
मध्यप्रदेश में 4000 तो छत्तीसगढ़ में 5500
मध्यप्रदेश में तेंदूपत्ता की दर 4000 रू मानक बोरा है, जबकि छत्तीसगढ़ में इस बार भाजपा की सरकार ने 5500 मानक बोरा दिए जाने की घोषणा की है, यही कारण है कि मध्यप्रदेश के सीमावर्ती जिलों से तेंदूपत्ता लाकर छत्तीसगढ़ में खपाया जा रहा है, इसके तेंदूपत्ता माफिया सक्रिय है।
डेढ़ हजार का फर्क होने के कारण बड़ी मात्रा में तेदूपत्ता छत्तीसगढ़ पहुंच रहा है, जिस पर अब तक किसी की नजर नहीं पड़ी है, ऐसा कोरिया जिले के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में भी ऐसा हो रहा है, जो सीधी की सीमा से लगे हुए हंै। इसी तरह पूर्व में मध्यप्रदेश का धान भी छत्तीसगढ लाकर खपाया जा चुका है।
रायगढ़ दौरे से लौटकर शशांक तिवारी की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 5 मई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। रायगढ़ में इस बार ‘महल’ और ‘हल’ के बीच मुकाबला है। ‘महल’ यानी सारंगढ़ रियासत की सदस्य कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. मेनका सिंह इस सीट को हथियाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं। वैसे तो डॉ. मेनका सिंह की टक्कर छोटे किसान भाजपा प्रत्याशी राधेश्याम राठिया से है, लेकिन यहां सीएम विष्णुदेव साय के साथ ही रायगढ़ के विधायक और वित्त मंत्री ओपी चौधरी की प्रतिष्ठा दांव पर है। दिग्गजों के साथ रहने से छोटे किसान राठिया भी दमदार नजर आ रहे हैं।
राज्य गठन के बाद से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रायगढ़ लोकसभा सीट भाजपा के कब्जे में है। आखिरी बार कांग्रेस को वर्ष-98 में जीत हासिल हुई थी। तब अजीत जोगी यहां से चुनाव जीते थे। रायगढ़ से सारंगढ़ राजपरिवार की सदस्य और अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. राजा नरेशचंद्र की पुत्री पुष्पा देवी सिंह दो बार सांसद रही हैं। इस बार उनकी बहन श्रीमती डॉ. मेनका सिंह को कांग्रेस ने चुनाव मैदान में उतारा है।
डॉ. मेनका सिंह की पहचान एक प्रतिष्ठित चिकित्सक के रूप में भी है। उन्होंने सारंगढ़, और जशपुर इलाके में काफी काम किया है। भाजपा ने धरमजयगढ़ के राधेश्याम राठिया की टिकट काफी पहले ही घोषित कर दी थी। राठिया आरएसएस के पसंदीदा हैं। वो विधानसभा टिकट के दावेदार थे। खास बात यह है कि इस लोकसभा क्षेत्र की कुनकुरी सीट से सीएम विष्णुदेव साय विधायक हैं। इसके अलावा साय सरकार में ताकतवर मंत्री ओपी चौधरी रायगढ़ विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में स्वाभाविक रूप से राठिया एक प्रत्याशी के रूप में गौण हो गए हैं।
रायगढ़ लोकसभा की विधानसभा सीटों में से जशपुर जिले की तीनों सीट जशपुर, कुनकुरी, और पत्थलगांव के साथ ही रायगढ़ सीट भी भाजपा के पास है। कांग्रेस के पास धरमजयगढ़, लैलूंगा, सारंगढ़ और खरसिया सीट है। लोकसभा की बात करें, तो यहां कांग्रेस-भाजपा को मिलाकर कुल 13 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं।
रायगढ़ विधानसभा के शहरी इलाके में अभी भी भाजपा की पकड़ बरकरार दिख रही है। हालांकि ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस की चर्चा है। मतदान में दो दिन बाकी रह गए हैं, और शहर में चुनाव का माहौल नजर नहीं आता है। विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस कार्यकर्ता मायूस है, और यह मायूसी अब तक नहीं गई है।
रायगढ़ से आगे खरसिया के डोमनारा गांव में ग्रामीण चुनाव में चर्चा से परहेज करते हैं। थोड़ा कुरेदने पर स्थानीय विधायक उमेश पटेल को लेकर नाराजगी दिखती है। उनका कहना था कि चुनाव जीतने के बाद से उमेश पटेल अब तक नहीं आए हैं। भाजपा प्रत्याशी भी गांव में नहीं आए, लेकिन भाजपा के लोग घर-घर वोट मांगने पहुंचे हैं। डोमनारा से फरकानारा गांव के एक चाय दुकान में इस संवाददाता की दुर्गेश राठिया से मुलाकात हुई।
निर्दलीय प्रत्याशी दुर्गेश राठिया वोट मांगते हुए
दुर्गेश बी.कॉम तक शिक्षित हैं, और वो खुद भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं। उन्हें एयरकंडीशनर चुनाव चिन्ह मिला है, जो कि आसपास गांव के किसी के घर में भी नहीं है। दुर्गेश ने बताया कि वो इसी गांव के रहने वाले हैं, और गांव में राठिया समाज के लोग सबसे ज्यादा संख्या में हैं। शर्मीले स्वभाव के दुर्गेश का कहना है कि वो विकास के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। उन्हें अपने समाज के लोगों पर भरोसा है।
भाजपा ने राठिया समाज से प्रत्याशी उतारा है। इसका फायदा उन्हें कई जगहों पर मिलता दिखता है। राठिया बाहुल्य क्षेत्रों में भाजपा के पक्ष में थोड़ा माहौल नजर आता है। यद्यपि खरसिया सीट भाजपा अब तक जीत नहीं पाई है, लेकिन लोकसभा चुनाव में कई बार बढ़त मिल चुकी है। इस बार भी दोनों ही पार्टी यहां बढ़त के लिए भरसक कोशिश कर रही है।
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद धर्मांतरण को लेकर कानून बनाने की बात कही गई है। इससे विशेषकर मतांतरित आदिवासियों में नाराजगी दिख रही है। जशपुर इलाके में आदिवासी और मतांतरित आदिवासियों के बीच कई बार संघर्ष की स्थिति बन चुकी है। ऐसे में संभावना दिख रही है कि मतांतरित आदिवासी कुछ हद तक कांग्रेस के पक्ष में लामबंद हो सकते हैं।
कुनकुरी में ईसाई आदिवासियों की संख्या सर्वाधिक है। मगर यह सीएम का विधानसभा क्षेत्र भी है। भाजपा को मतांतरित आदिवासियों की नाराजगी का भी अंदाजा है। लिहाजा, लुंड्रा के विधायक प्रबोध मिंज को इस इलाके में विशेष तौर पर भेजा गया था। मिंज भी ईसाई आदिवासी समाज के हैं। यही नहीं, कांग्रेस और कई संगठनों ने संविधान बदलने की आशंका जताई है। और इसे चुनाव में प्रचारित किया है। इसका भी असर देखने को मिल रहा है। फिर भी सीएम का विधानसभा क्षेत्र होने की वजह से भाजपा यहां बड़ी बढ़त की उम्मीद से है। जशपुर में भाजपा बेहतर है, लेकिन पत्थलगांव में कांग्रेस मजबूत स्थिति में हैं। यही वजह है कि प्रचार खत्म होने के पहले तक भाजपा ने यहां अपनी पूरी ताकत झोंकी है।
दूसरी तरफ, लैलूंगा और सारंगढ़ में कांग्रेस थोड़ी बेहतर स्थिति में है। दोनों ही दलों के स्टार प्रचारक यहां दौरा कर चुके हैं। चुनाव शुरू होने से ठीक पहले कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की न्याय यात्रा ओडिशा से खरसिया, रायगढ़ होते हुए आगे निकली थी। भाजपा के राष्ट्रीय नेता प्रचार के लिए आ चुके हैं। ऐसे में मतदान नजदीक आते तक भाजपा के लिए सीट आसान नहीं रह गई है।
कोरबा के दौरे से लौटकर शशांक तिवारी की रिपोर्ट
भाजपा को महतारी वंदन, कांग्रेस को नारी न्याय योजना का सहारा
रायपुर, 4 मई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। कोरबा लोकसभा भाजपा और कांग्रेस की महिला नेत्री की वजह से हॉट सीट बन गई है। यहां भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पाण्डेय को जिताने के लिए कई राज्यों के कार्यकर्ता दम लगा रहे हैं, तो दिग्गज कांग्रेस नेता डॉ. चरणदास महंत यहां अपनी पत्नी, मौजूदा सांसद ज्योत्सना महंत का कब्जा बरकरार के लिए पसीना बहा रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही दलों के प्रत्याशियों को ‘अपनों’ से ही खतरा दिख रहा है। प्रचार के आखिरी चरण में दोनों ही दलों ने ग्रामीण इलाकों में ताकत झोंकी है।
कोरबा ऐसी सीट है जहां पिछले चुनावों में मुकाबला नजदीकी रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में ज्योत्सना महंत ने करीब 26 हजार वोटों से सीट जीती थी। उनकी जीत इस मायने में महत्वपूर्ण रही कि मध्य भारत की जिन 3 सीटों पर कांग्रेस को कामयाबी मिली थी, उनमें कोरबा सीट भी थी। इस सीट से मौजूदा कांग्रेस प्रत्याशी ज्योत्सना महंत के पति पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. महंत भी सांसद रहे हैं।
भाजपा ने इस सीट को जीतने के लिए पार्टी की राष्ट्रीय नेत्री, और पूर्व राज्यसभा सदस्य सरोज पाण्डेय को चुनाव मैदान में उतारा है। सरोज के उतरते ही मुकाबला रोचक हो गया है। सरोज के प्रत्याशी बनने के बाद से उन्हें बाहरी करार देने में कांग्रेस के लोग जुटे हैं। यद्यपि पार्टी ने सरोज को यहां की ‘पालक’ सांसद बनाया था। महंत दबदबे वाले इस इलाके में सरोज ने माहौल को अपने अनुकूल करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है।
करीब 16 लाख मतदाताओं वाली इस सीट की पालीतानाखार, रामपुर, मरवाही, और भरतपुर-सोनहट विधानसभा सीट आदिवासी आरक्षित सीट है। बाकी चार सीटें मनेन्द्रगढ़, कटघोरा, कोरबा, और बैकुंठपुर अनारक्षित है। विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा है, और यहां 6 सीटों पर भाजपा, रामपुर कांग्रेस और पाली-तानाखार सीट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के खाते में गई है। इस लोकसभा क्षेत्र के 40 फीसदी से अधिक मतदाता आदिवासी वर्ग के हैं, लिहाजा यहां आदिवासी समाज के वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। वैसे तो यहां 27 प्रत्याशी मैदान में हैं। मगर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है।
कांग्रेस और भाजपा से परे गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने भी प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं। गोंगपा से श्याम लाल सिंह मरकाम प्रत्याशी हैं। जो कि भरतपुर-सोनहत के रहने वाले हैं। मरकाम ने विधानसभा चुनाव में भरतपुर-सोनहत से करीब 33 हजार वोट हासिल किए थे। इस लोकसभा सीट की विधानसभा सीटों पर गोंडवाना की ताकत काफी बढ़ी है। लोकसभा चुनाव में भी कई इलाकों में दमदार मौजूदगी का अहसास करा रहे हैं।
इस संवाददाता ने कोरबा जिले की सबसे रामपुर इलाके में मतदाताओं से चर्चा कर उनका रूख जानने की कोशिश की। रामपुर से कांग्रेस के एकमात्र विधायक फूलसिंह राठिया हैं, और वो ज्योत्सना महंत को भारी बढ़त दिलाने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। यहां आदिवासी समाज के कंवर और राठिया बिरादरी के मतदाता ज्यादा संख्या में हैं। इसके अलावा पिछड़े वर्ग के लोग भी अच्छी खासी संख्या में हैं। बुंदेली गांव के राठिया समाज के युवक मनोहर का कहना है कि उनके गांव में पंजा छाप का जोर है। साहू समाज के लोग भी हैं, जो कि कमल के पक्ष में दिख रहे हैं।
फूलसिंह राठिया का समाज में अच्छी पकड़ है। इसको भांपकर भाजपा ने राठिया समाज के कई लोगों को अपनी पार्टी में प्रवेश दिलवाया है। पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर भी मेहनत कर रहे हैं। इसी तरह जोगीपाली और आसपास के गांव में भी कांग्रेस का भी दबदबा कायम दिख रहा है, लेकिन हाल के दिनों में रामपुर में सरोज और भाजपा के रणनीतिकारों ने काफी मेहनत की है। सरोज पाण्डेय खुद तकरीबन हर पंचायतों में जा चुकी है, और वो अपनी बढ़त को लेकर आश्वस्त भी है। जबकि महंत से जुड़े लोग रामपुर में बड़ी बढ़त की उम्मीद से हैं। पिछले चुनाव में भी यहां से कांग्रेस को अच्छी बढ़त मिली थी, मगर इस बार ज्योत्सना महंत को यहां बड़ी बढ़त के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है।
रामपुर की तरह पाली-तानाखार और मरवाही भी कांग्रेस का गढ़ रहा है। यद्यपि मरवाही विधानसभा सीट भाजपा के खाते में चली गई। यहां जोगी पार्टी के गुलाब सिंह राज दूसरे नंबर पर रहे। अब गुलाब सिंह राज, कांग्रेस में शामिल हो गए। यहां पेंड्रा, गौरेला, और मरवाही कस्बे में तो भाजपा की पकड़ दिखती है, लेकिन गांवों में कांग्रेस की पकड़ बरकरार है।
पाली तानाखार से भाजपा के सबसे बड़ी सिरदर्द दिख रही है। यह एक ऐसी विधानसभा सीट है जहां भाजपा कभी बढ़त हासिल नहीं कर पाई। पिछले लोकसभा सीट में सबसे ज्यादा 61 हजार की बढ़त यहां कांग्रेस को मिली थी। ज्योत्सना महंत ने पाली तानाखार और रामपुर के बूते पर लोकसभा फतह हासिल करने में सफल रहीं। इस बार गोंगपा भी दमदार है, यहां से विधायक तुलेश्वर हीरा सिंह मरकाम हैं। मगर कांग्रेस अब भी बेहतर स्थिति में हैं।
पिछले चुनावों से सबक लेकर भाजपा यहां विशेष ध्यान दे रही है, और अलग-अलग सेक्टर बनाकर पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा की कोशिश है कि यहां कांग्रेस की बढ़त न्यूनतम रहे।
इससे परे कोरबा और कटघोरा में भाजपा की स्थिति बेहतर दिख रही है। तकरीबन हर लोकसभा चुनाव में इन दोनों सीटों पर भाजपा को बढ़त मिलती रही है। मगर इस बार बस्तियों में नारी न्याय योजना यानी हर महीने 8333 रुपये की गूंज है। भाजपा सरकार ने महतारी वंदन योजना की एक-एक हजार की तीन किश्त जारी की है, लेकिन कांग्रेस के लोक लुभावन न्याय योजना से विशेषकर गरीब महिलाएं काफी प्रभावित दिख रही हैं। कटघोरा के ग्रामीण इलाकों में भी इसका असर दिख रहा है। यहां कोयला खानों में काम करने वाले मजदूरों की संख्या अच्छी खासी है और उनमें नारी न्याय योजना की काफी चर्चा है।
कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि नारी न्याय योजना का जबर्दस्त फायदा मिलेगा। यह दावा किया जा रहा है कि 10 लाख फॉर्म भरवाए गए हैं, और उनसे वादा किया गया है कि कांग्रेस की सरकार बनने पर 8333 रूपए महिलाओं के खाते में जाएंगे। कांग्रेस के लोग बकायदा फोन लगाकर महिलाओं से संपर्क कर रहे हैं, और उन्हें कांग्रेस को वोट देने की अपील भी कर रहे हैं। नारी न्याय योजना के चलते भाजपा में बेचैनी दिख रही है। फिर भी अयोध्या में राम मंदिर और मोदी फैक्टर का शहर में कुछ हद तक प्रभाव दिख रहा है।
सरोज की टिकट से भाजपा के कई और दावेदार खिन्न रहे हैं और ऊपरी तौर पर काम करते दिख रहे हैं। मगर ज्यादा मेहनत नहीं हो रही है। सरोज को इस बात का अंदाजा भी है, और यही वजह है कि कमजोर इलाकों में उनके करीबी लोग मॉनिटरिंग कर रहे हैं। सरोज पार्टी की बड़ी नेता है, और उनके लिए मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, और हैदराबाद से भी कई लोग आए हैं, और प्रचार की मॉनिटरिंग कर रहे हैं।
दूसरी तरफ, डॉ.महंत अनुभवी नेता हैं, और भाजपा के कई बड़े नेता उनके प्रशंसक रहे हैं। पिछले चुनावों में असंतुष्ट नेताओं से जिस तरह मदद मिलती रही है, उतना शायद इस बार न मिल पाए। एक खतरा और है कि उनके कई करीबी नेताओं की सहानुभूति सरोज पांडेय के लिए हो सकती है। हालांकि सरोज पांडेय को बाहरी बताने की कोशिश भी हुई है और वो इसका माकूल जवाब भी दे रही हैं। वैसे तो कांग्रेस से भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू और देवेन्द्र यादव भी अपने क्षेत्र से बाहर की सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन बाहरी की हवा सरोज के लिए ज्यादा बन रही है। सरोज यह बताने में पीछे नहीं है कि खुद ज्योत्सना महंत भी जांजगीर-चांपा की रहने वाली हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में अविभाजित कोरिया जिले की तीनों सीट भरतपुर-सोनहत, बैकुंठपुर, और मनेन्द्रगढ़ में भाजपा को बढ़त मिली थी। इस बार भी बढ़त को बरकरार रखने की कोशिश हो रही है। हालांकि डॉ. महंत और उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत भरसक प्रयास कर रहे हैं। मनेन्द्रगढ़ और चिरमिरी का शहरी इलाका भाजपामय है तो ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस की पकड़ दिख रही है। बैकुंठपुर में भाजपा में कलह दिख रही है। सीएम की एक सभा में भीड़ नहीं जुटी तो पूर्व मंत्री भैयालाल राजवाड़े को इसके लिए फटकार सुननी पड़ी। फिर भी यहां भाजपा बेहतर स्थिति में दिख रही है।
भरतपुर-सोनहत में कांटे का मुकाबला है। जहां पूर्व विधायक गुलाब कमरो खूब मेहनत कर रहे हैं। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रत्याशी श्याम लाल सिंह मरकाम यहीं के रहने वाले हैं। लिहाजा गोंगपा को सबसे ज्यादा उम्मीदें इसी इलाके से है। कुल मिलाकर यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच बराबरी की टक्कर है।
पिछले चुनाव में कोरबा में मुकाबला नजदीकी रहा है। इस बार भी कुछ ऐसी ही स्थिति बन रही है। हार-जीत का अंतर बहुत कम रहने का अनुमान है।
‘छत्तीसगढ़’ एक्सक्लूजिव
चुनावी दौरा कर लौटे शशांक तिवारी की विशेष रिपोर्ट
रायपुर, 3 मई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। जांजगीर-चाम्पा लोकसभा के सक्ती में वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खरगे के भगवान शिव और राम पर विवादित बयान से भले ही भाजपा और कांग्रेस में वाकयुद्ध चल रहा है लेकिन इससे मतदाता बेपरवाह हैं। यहां तकरीबन हर जगह महतारी वंदन और कहीं-कहीं नारी न्याय योजना का शोर है। इससे परे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस लोकसभा सीट पर ‘हाथी’ की धीमी चाल से चुनावी समीकरण गड़बड़ाने के आसार दिख रहे हैं।
सक्ती की जनसभा में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे ने कांग्रेस प्रत्याशी डॉ.शिवकुमार डहरिया का नाम लेकर कहा था, इनका नाम भी शिव है, ये बराबर में राम का मुकाबला कर सकते हैं क्योंकि ये शिव हैं। मेरा नाम भी मल्लिकार्जुन है यानी मैं भी शिव हूं।
मल्लिकार्जुन खरगे के बयान से सियासी तापमान बढ़ गया है। भाजपा हमलावर है, और सभाओं में खरगे का जिक्र कर भाजपा नेता यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि कांग्रेसी प्रभु राम को अपना शत्रु मानते हंै। खरगे का बयान भले ही राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है लेकिन जांजगीर लोकसभा के मतदाताओं के बीच इस पर ज्यादा कोई चर्चा नहीं हो रही है।
करीब 20 लाख मतदाताओं वाली जांजगीर लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के बाद से भाजपा के पास है। यह सीट राज्य बनने के बाद से कांग्रेस अब तक नहीं जीत पाई है। जबकि इससे पहले कांग्रेस के कद्दावर नेता डॉ.चरण दास महंत यहां से लगातार दो बार सांसद रहे हैं। कांग्रेस ने पूर्व नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ.शिवकुमार डहरिया को टिकट दी है। उनके मुकाबले भाजपा ने सक्ती की महिला नेत्री श्रीमती कमलेश जांगड़े को प्रत्याशी बनाया है। इन सबके बीच बसपा से डॉ.रोहित डहरिया चुनाव मैदान में हैं। वैसे तो कुल डेढ़ दर्जन प्रत्याशी चुनाव मैदान में हंै लेकिन मुकाबला कांग्रेस, भाजपा और बसपा में ही है।
जांजगीर-चाम्पा सीट ऐसी है जहां बसपा का अच्छा-खासा आधार है। यहां दो सीट पामगढ़ और जैजैपुर से बसपा के विधायक रहे हैं। लेकिन हाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा, और बसपा का सूपड़ा साफ हो गया, और लोकसभा की सभी 8 सीटें जांजगीर-चाम्पा, सक्ती, अकलतरा, पामगढ़, जैजैपुर, चन्द्रपुर, बिलाईगढ़, और कसडोल कांग्रेस की झोली में चली गई है। वह भी तब जब प्रदेश में कांग्रेस बुरी तरह चुनाव हार गई, और सरकार से बाहर हो गई।
दूसरी तरफ, इस चुनाव में बसपा की कोई बड़ी सभा नहीं हुई है। विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती का प्रवास हुआ था। इस लोकसभा में बसपा को डेढ़ लाख तक वोट मिलते रहे हैं। विधानसभा चुनाव में पार्टी का जनाधार गिरा है, और बसपा के परम्परागत वोटर कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हुए हैं। इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिला। कांग्रेस, विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन लोकसभा में दोहराने के लिए भरसक कोशिश कर रही है। जबकि भाजपा इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। बसपा की दमदार मौजूदगी के चलते इस लोकसभा में भाजपा की राह आसान होती रही है। वजह यह है कि कांग्रेस के परंपरागत सतनामी समाज के वोट पर बसपा ने सेंधमारी की थी, मगर इस बार बसपा ज्यादा प्रभावी नहीं दिख रही है। इसको भांपकर भाजपा ने रणनीति के तहत मौजूदा सांसद गुहाराम अजगले की टिकट काटी, और महिला वोटरों को अपने पाले में करने के लिए कमलेश जांगड़े को चुनाव मैदान में उतारा है।
इस संवाददाता ने जांजगीर-चांपा लोकसभा का दौरा कर मतदाताओं को टटोलने की कोशिश की। इस लोकसभा के अकलतरा विधानसभा का माहौल कुछ अलग तरह का ही था। अकलतरा के तिलई गांव, जहां करीब साढ़े 7 हजार मतदाता हैं, यहां मतदाताओं की राय काफी बटी हुई है। यहां सबसे ज्यादा कुर्मी (कौशिक), सतनामी, और यादव व अन्य समाज के लोग ज्यादा हैं। कभी इस गांव से बसपा को अच्छे खासे वोट मिलते थे। मगर इस बार उनका रूख बदला दिख रहा है।
पान ठेला चलाने वाले मनहर का कहना है कि बसपा हमारी पार्टी है, लेकिन वोट देकर थक चुके हैं। बसपा यहां से जीत नहीं पाई है। उनका गुस्सा पूर्व विधायक डॉ. सौरभ सिंह को लेकर भी है। सौरभ सिंह एक बार बसपा से विधायक रहे हैं। फिर भाजपा में चले गए, और भाजपा से भी विधायक बने। मगर इस विधानसभा चुनाव में अपने ही भतीजे राघवेन्द्र सिंह से बुरी तरह हार गए।
सौरभ सिंह को लेकर शिकायत रही है कि जीतने के बाद उनका रूख एकदम बदल गया था। जबकि राघवेन्द्र को वो भला व्यक्ति मानते हैं। कई और स्थानीय लोगों की नाराजगी सौरभ सिंह के प्रति देखने को मिली है। हालांकि भाजपा ने चुनाव के ठीक पहले पूर्व विधायक चुन्नीलाल साहू को अपने पाले में कर यहां से बढ़त बनाने की कोशिश की है। अकलतरा में साहू वोटरों की आबादी अच्छी खासी है। चुन्नीलाल की अपने समाज को वोटरों पर पकड़ भी है। इन सबके बावजूद अकलतरा नगरीय इलाके में भाजपा का प्रभाव दिख रहा है।
कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. शिवकुमार डहरिया से अकलतरा के लोग परिचित हैं। वो एक बार जांजगीर-चाम्पा लोकसभा से चुनाव भी लड़ चुके हैं। बसपा वोटों में सेंधमारी, और राघवेन्द्र की सक्रियता से कांग्रेस यहां बराबरी का टक्कर देती दिख रही है। इससे परे अकलतरा से सटे जांजगीर-चांपा विधानसभा का नजारा थोड़ा अलग है। जांजगीर-चांपा शहरी इलाके में भाजपा का साफ असर दिखता है। लोग अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं।
कांग्रेस यहां जांजगीर-चांपा में अंदरूनी कलह से जूझ रही है। यहां व्यास कश्यप कांग्रेस के विधायक हैं। उन्होंने विधानसभा चुनाव में नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल को हराया था। मगर यहां कांग्रेस के दूसरे प्रभावशाली नेता मोतीलाल देवांगन सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। मोतीलाल देवांगन दो बार विधायक रह चुके हैं। उन्होंने व्यास कश्यप के अधीनस्थ काम करने से मना कर दिया। इससे कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है। नगरीय इलाकों से परे गांवों में कांग्रेस की पकड़ दिखती है। कुल मिलाकर भाजपा यहां बेहतर स्थिति में है।
जांजगीर-चांपा से ठीक उलट जैजैपुर विधानसभा का हाल है। यह विधानसभा सीट अब तक भाजपा नहीं जीत पाई है। यहां कांग्रेस से बालेश्वर साहू विधायक हैं। इससे पहले दो बार बसपा के केशव चंद्रा विधायक रहे हैं। यहां चंद्रा, और साहू के साथ-साथ सतनामी समाज के वोटर निर्णायक भूमिका में हैं।
केशव चंद्रा हाल में भाजपा में आ गए हैं। इससे बसपा के परम्परागत वोटर खफा हैं। यहां बसपा के परम्परागत वोटबैंक पर कांग्रेस सेंधमारी करते दिख रही है। जैजैपुर के तकरीबन 10 हजार आबादी वाले बम्हनीडीह पंचायत में लोगों से चर्चा में कांग्रेस के प्रति रूझान साफ दिखा। ऐसे लोग भी थे जिन्होंने नारी न्याय योजना का फार्म महिलाओं को भरवाया था, और उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस की जीत के बाद हर महीने 8333 रूपए मिलेंगे। हालांकि महतारी वंदन योजना से संतुष्ट भी दिखे।
जैजैपुर में पूर्व विधायक केशव चंद्रा अपने समर्थकों के साथ भाजपा का प्रचार करते नजर आए। उन्होंने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में दावा किया कि जैजैपुर से भाजपा को बढ़त मिलेगी।
जैजैपुर से परे सक्ती में कांग्रेस के लिए थोड़ी अलग तरह की समस्या है। यहां के बड़े नेता और विधायक डॉ. चरणदास महंत कोरबा लोकसभा क्षेत्र में सक्रिय हैं। कोरबा में उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत चुनाव लड़ रही हैं। इससे परे सक्ति में पीएम नरेन्द्र मोदी, और चाम्पा में मल्लिाकार्जुन खरगे की सभा हो चुकी है। यहां महंत की गैर मौजूदगी से कांग्रेस थोड़ी पिछड़ती दिख रही है। यही नहीं, पूर्व विधायक सरोजा और उनके पति मनहर राठौर कांग्रेस छोडक़र भाजपा में चले गए हैं। इससे भाजपा को फायदा मिलता दिख रहा है। यहां आदिवासी इलाकों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का भी प्रभाव है। फिर भी कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. शिवकुमार डहरिया ने यहां ऐड़ी चोटी का जोर लगाया है।
पामगढ़ का नजारा इस बार बदला हुआ है। यह सीट पहले बसपा के पास रही है, लेकिन वर्तमान में कांग्रेस की शेषराज हरवंश यहां से विधायक हैं। बसपा से यहां के बड़े और लोकप्रिय नेता पूर्व विधायक दुजराम बौद्ध कोरबा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इस वजह से यहां बसपा थोड़ी कमजोर दिख रही है। शिवरीनारायण की धार्मिक पहचान है और यहां भाजपा का दबदबा दिखता है। इन सबके बावजूद इस विधानसभा में कांग्रेस, भाजपा और बसपा एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में दिख रहे हैं।
बाकी छह विधानसभा से अलग बिलाईगढ़, और कसडोल में दोनों ही दल कांग्रेस और भाजपा अपनी ज्यादा ताकत झोंक रहे हैं। बिलाईगढ़ अजा आरक्षित सीट है। यह कांग्रेस के पास है। खास बात यह है कि बिलाईगढ़ से 2009 में डॉ. शिवकुमार डहरिया विधायक रहे हैं। भाजपा के चुनाव संचालक, और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल बिलाईगढ़ के ही रहने वाले हैं। वो कसडोल से दो बार विधायक रहे हैं। इस इलाके में उनकी पैठ है। विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें कसडोल से टिकट नहीं दी थी। और यह सीट बुरी तरह हार गई। दिलचस्प बात यह है कि लोकसभा के कुल वोटरों में से 37 फीसदी वोटर कसडोल और बिलाईगढ़ विधानसभा में हैं। कसडोल प्रदेश की सबसे बड़ी विधानसभा सीट है।
खास बात यह है कि विलोपित हो चुकी पलारी विधानसभा सीट का ज्यादातर हिस्सा कसडोल विधानसभा में चला गया है। पलारी से डॉ. शिवकुमार डहरिया विधायक रह चुके हैं। ऐसे में इन दोनों जगहों पर उन्हें पहचान का संकट नहीं है। कांग्रेस के रणनीतिकार दोनों सीटों से बढ़त की उम्मीद पाले हैं। जबकि भाजपा ने इन दोनों सीटों पर अपनी बढ़त बनाने के लिए ताकत झोंक दी है। सीएम विष्णुदेव साय, डिप्टी सीएम अरूण साव की सभाएं हो चुकी है। अगले दो दिन भाजपा की यहां सारे संसाधन झोंककर बढ़त बनाने की कोशिश है। बहरहाल, कांग्रेस और भाजपा का मुकाबला नजदीकी हो चला है। और हार-जीत का अंतर कम मतों से होने का अनुमान है।
1996 के लोस चुनाव में गीतादेवी की कसम से शिवेन्द्र को मिली थी हार
विशेष रिपोर्ट : प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 20 अप्रैल (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। कांग्रेस की सियासत में राजनांदगांव लोकसभा के सांसद रहे स्व. शिवेन्द्र बहादुर की गिनती 80-90 के दशक में धाकड़ नेताओं में की जाती थी। राजनीतिक रूप से शिवेन्द्र को जिद्दी और ताकतवर माना जाता था। अपनी बात मनवाने के लिए शिवेन्द्र राष्ट्रीय नेताओं से भी भिडऩे से गुरेज नहीं करते थे। शिवेन्द्र के राजनीतिक जीवन में 1996 का चुनाव उनकी पतन की वजह बना। इसके पीछे उनकी धर्मपत्नी स्व. गीतादेवी सिंह की वह कसम सुर्खियों में रही, जब उन्होंने शिवेन्द्र की हार के लिए मां बम्लेश्वरी से बाल खुले रखने की मन्नत रखी।
शिवेन्द्र की हार के बाद ही उन्होंने बाल को सहेजा। यह चुनाव शिवेन्द्र बहादुर के लिए राजनीतिक तौर पर काफी नुकसानदायी साबित हुआ। शिवेन्द्र का इस चुनाव के दौरान कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं से छत्तीस का आंकड़ा था। राजनांदगांव के कई प्रमुख नेता शिवेन्द्र के खिलाफ हो गए थे, लेकिन तीन बार सांसद रहे शिवेन्द्र ने अपनी जिद के सामने किसी की नहीं सुनी। नतीजतन भाजपा के अशोक शर्मा ने शिवेन्द्र जैसे कद्दावर नेता को पटखनी दी। इस चुनाव के बाद शिवेन्द्र की राजनीतिक पकड़ कमजोर हो गई। समूचे लोकसभा में न सिर्फ जनता, बल्कि उनके परिवार से भी विद्रोह की आग भडक़ गई।
1996 में हार के बाद 1998 में कांग्रेस ने शिवेन्द्र का पत्ता काट दिया। उनकी जगह मोतीलाल वोरा को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव में शिवेन्द्र ने जनता दल उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमाया, लेकिन वह बुरी तरह से हार गए। शिवेन्द्र के कार्यकाल की आज भी सियासी जगत में चर्चा होती है। शिवेन्द्र के सांसद रहते हुए पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने जहां मानपुर जैसे पिछड़े इलाके में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। वहीं शिवेन्द्र बहादुर के आग्रह पर राजीव गांधी प्रधानमंत्री की हैसियत से भोरमदेव में एक बड़ी सभा में शिरकत की थी।
राजनीतिक वर्चस्व के लिए खैरागढ़ रियासत के शिवेन्द्र और उनकी पत्नी गीतादेवी के बीच जंग जैसी स्थिति रही। काफी समय तक गीतादेवी डोंगरगढ़ के एक सरकारी गेस्ट हाउस में रही। गीतादेवी के साथ घरेलू विवाद राजनीति की आबो हवा में घुल गया। 1996 में गीतादेवी ने खुलकर शिवेन्द्र की हार के लिए बाल खुले रखने की कसम खाई। चुनावी नतीजे शिवेन्द्र के खिलाफ चले गए। इसके बाद उन्होंने खुले बाल जुड़े में बदला।
गीतादेवी के खुले बगावत से शिवेन्द्र की राजनीतिक जमीन में दरार पड़ गई। बताया जाता है कि शिवेन्द्र और गीतादेवी ताउम्र आपसी रूप से एक-दूसरे के खिलाफ रहे। डोंगरगढ़ के लाल निवास में शिवेन्द्र की हिदायत के चलते गीतादेवी को महल में दाखिला नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने विरोध के लिए सीधे मोर्चा खोल दिया। राजनंादगांव लोकसभा का यह चुनाव काफी चर्चित रहा। शिवेन्द्र के खिलाफ जाने से गीतादेवी को लोगों की सहानुभूति मिली। कांग्रेसी नेताओं ने भी इस मुद्दे को हवा दिया। परिणाम में शिवेन्द्र की बुरी हार हुई।