राष्ट्रीय
ठाणे (महाराष्ट्र), 21 सितंबर (आईएएनएस)| मुंबई से करीब 60 किलोमीटर दूर उत्तर में बसे पावरलूम शहर भिवंडी में सोमवार तड़के तीन मंजिला इमारत के ढहने से 10 लोगों की मौत हो गई, जबकि कई अन्य घायल हो गए। वहीं दो दर्जन से अधिक लोग अभी भी मलबे में फंसे हुए हैं। यह जानकारी अधिकारियों ने दी। मारे गए लोगों में चार बच्चे शामिल हैं। घायलों को कल्याण, डोंबिवली, कल्वा और ठाणे के अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। एक शिशु सहित 25 लोगों को सुरक्षित बचा लिया गया है। वहीं इस दुर्घटना में 12 लोगों को चोटें आई हैं।
पटेल कम्पाउंड में स्थित 40 साल पुराने जिलानी बिल्डिंग की हालत जीर्ण शीर्ण थी। सोमवार सुबह करीब 3.45 बजे अचानक वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई। घटना के दौरान सभी पीड़ित नींद में थे।
स्थानीय लोगों ने कहा कि इमारत खराब हालत में थी और भिवंडी-निजामपुर नगर निगम द्वारा उसे नोटिस भी जारी किया गया था, लेकिन उसकी लोगों ने अनदेखी की।
शहर के भीड़भाड़ वाले इलाके में स्थित इमारत में लीकेज और सीपेज की भी समस्याएं थीं, जिससे इमारत का ढांचा कमजोर हुआ होगा।
ठाणे पुलिस की टीमें, बीएनएमसी और पड़ोसी शहरों की फायर ब्रिगेड इकाइयां और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल घटना स्थल पर पहुंच गए और राहत व बचाव कार्य जारी है।
सुबह 9 बजे तक करीब 25 लोगों को बचा लिया गया था, जबकि अन्य दो दर्जन लोगों के अभी भी मलबे के नीचे फंसे होने की आशंका है।
नई दिल्ली, 21 सितंबर (आईएएनएस)| देश में 24 घंटे में कोरोनावायरस के 86,961 नए मामले और 1,130 नई मौतें दर्ज हुई हैं। इसके साथ ही सोमवार को देश में कोरोना मामलों का आंकड़ा 55 लाख के करीब पहुंच गया। वहीं अब तक 87,882 लोग इस बीमारी से अपनी जान गंवा चुके हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों ने सोमवार को ये जानकारी दी। वर्तमान में देश में 10,03,299 सक्रिय मामले हैं और कुल 43,96,399 लोग ठीक हो चुके हैं।
भारत कोरोनावायरस मामलों की संख्या में केवल अमेरिका से पीछे है। साथ ही यह इस बीमारी को मात देकर ठीक होने वाले रोगियों की संख्या में यह अमेरिका से आगे है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश में रिकवरी दर 79.68 प्रतिशत और मृत्यु दर 1.61 प्रतिशत है।
सबसे अधिक प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में 12,08,642 मामले और 32,671 मौतें दर्ज हो चुकी हैं। इसके बाद सूची में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश हैं।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने रविवार को 7,31,534 सैंपल टेस्ट किए, जिसके बाद परीक्षणों की कुल संख्या 64,392,594 हो गई है।
दुनिया में अमेरिका 67,99,044 मामले और 1,99,474 मौतों के साथ सबसे अधिक प्रभावित देश है। वहीं दुनिया में कुल मामलों की संख्या 30,9,18,269 और मृत्यु संख्या 9,59,332 हो चुकी है।
मामलों की संख्या में अमेरिका और भारत के बाद ब्राजील (45,44,629), रूस (10,98,958), पेरू (7,62,865), कोलम्बिया (7,58,398), मैक्सिको (6,97,663), दक्षिण अफ्रीका (6,61,211), स्पेन (6,40,040), अर्जेंटीना (6,31,365), फ्रांस (4,67,614), चिली (4,46,274), ईरान (4,22,140), यूके (3,96,744), बांग्लादेश (3,48,918), सऊदी अरब (3,29,754) और इराक (3,19,035) हैं।
हापुड़ (उप्र), 21 सितम्बर (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के हापुड़ में जबरन वसूली करने वाले एक रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है। यह लोगों को पैसे नहीं देने पर दुष्कर्म के झूठे मामले में फंसा देने की धमकी देकर ब्लैकमैल करता था। पुलिस ने कहा कि एक पुरुष और एक महिला संगीता (जिसे गुड्डी के नाम से भी जाना जाता है) को एक पीड़ित की शिकायत के बाद गिरफ्तार किया गया है। दो संदिग्ध तानिया और हरकेश फरार हैं।
रिपोर्टों के मुताबिक, हाल ही में एक शख्स ने फेसबुक पर 'माही राणा' नाम की महिला से दोस्ती की। कुछ दिनों तक ऑनलाइन चैट करने के बाद, दोनों 15 सितंबर को महिला द्वारा चुने गए स्थान पर मिलने के लिए सहमत हुए।
बताई गई जगह पहुंचने पर, शख्स को एहसास हुआ कि यह एक जाल था। दो महिलाओं सहित चार लोग उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। गिरोह ने दुष्कर्म के झूठे मामले में नहीं फंसाने के लिए शख्स से 5 लाख रुपये की मांग की।
उसने घबराकर 1 लाख रुपये नकद, एक सोने की चेन और एक अंगूठी दे दी। हालांकि, जबरन वसूली बंद नहीं हुई।
आखिरकार, उसने पुलिस से संपर्क किया और गिरोह के दो सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने आगे की जानकारी का खुलासा करने से इनकार करते हुए कहा, "हमारा मानना है कि एक बड़ा गिरोह शामिल है और हम फिलहाल इस बारे में विस्तार से जानकारी बाहर नहीं आने देना चाहते हैं।"
नई दिल्ली, 21 सितम्बर (आईएएनएस)| कृषि विधेयकों को लेकर राज्यसभा में रविवार को मचे हंगामे के बाद सोमवार को तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रियेन समेत आठ सांसदों को सदन से निलंबित कर दिया गया। जिन सांसदों को निलंबित किया गया है उनमें डेरेक के अलावा, राजीव सातव, संजय सिंह, रिपुन बोरा, डोला सेन, नासिर हुसैन, के.के. रागेश के नाम शामिल हैं।
बता दें कि रविवार को कृ षि से जुड़े विधेयकों पर बहस के दौरान राज्यसभा में कुछ सांसदों ने जबरदस्त हंगामा किया था। हंगामे के बीच ही कृषि से जुड़े दो विधेयक ध्वनिमत से पारित कर दिए गए।
श्रीनगर, 21 सितंबर (आईएएनएस)| जम्मू और कश्मीर में सोमवार से कक्षा 9वीं से 12 वीं के स्कूल फिर से खुल रहे हैं लेकिन छात्रों की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी अभिभावकों की होगी। स्कूल शिक्षा निदेशालय ने ऐसा तरीका अपनाया है जिसमें बच्चों की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी माता-पिता पर डाल दी गई है।
इसके तहत निदेशालय अभिभावकों से जो लिखित अनुमति ले रहा है, उसमें लिखा गया है कि "मैं जिम्मेदारी लेता हूं कि मैं कोविड-19 संक्रमण की किसी भी घटना के लिए स्कूल में किसी को भी दोषी नहीं ठहराऊंगा।" यह स्वीकृति उन सभी अभिभावकों को हस्ताक्षर करके देनी होगी जो कक्षा 9वीं से 12 वीं के बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं।
इन निर्देशों में यह भी कहा गया है कि माता-पिता फेस मास्क, सैनिटाइजर देने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करेंगे की बच्चे बेल्ट, अंगूठी, घड़ी आदि न पहनें।
5 अगस्त, 2019 को राज्य में अनुच्छेद 370 निरस्त करने के बाद भी शैक्षणिक संस्थान बंद कर दिए गए थे। इन्हें इस साल मार्च में फिर से खोलने का निर्णय लिया गया था, लेकिन कोविड-19 संक्रमण को रोकने के लिए स्कूल बंद करने पड़े।
केन्द्रशासित प्रदेश में कोविड मामलों की बढ़ती संख्या के बाद भी स्कूलों को फिर से खोलने के निर्णय की खासी आलोचना हो रही है।
यहां आम धारणा है कि महामारी को देखते हुए अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने से हिचक रहे हैं।
नई दिल्ली, 21 सितम्बर (आईएएनएस)| तेल विपणन कंपनियों ने डीजल के दाम में सोमवार को लगातार पांचवें दिन कटौती की जबकि पेट्रोल के भाव में लगातार तीसरे दिन स्थिरता बनी रही। उधर, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में बढ़त के साथ कारोबार चल रहा था। डीजल के दाम में दिल्ली, कोलकाता और मुंबई में 15 पैसे जबकि चेन्नई में 14 पैसे प्रति लीटर की कटौती की गई है, जबकि पेट्रोल के दाम में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
देश की राजधानी दिल्ली में लगातार पांच दिनों में डीजल 1.13 रुपये प्रति लीटर सस्ता हो गया है।
इंडियन ऑयल की वेबसाइट के अनुसार, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में डीजल का भाव घटकर क्रमश: 71.43 रुपये, 74.94 रुपये, 77.87 रुपये और 76.85 रुपये प्रति लीटर पर आ गया है। जबकि चारों महानगरों में पेट्रोल का दाम क्रमश: 81.14 रुपये, 82.67 रुपये, 87.82 रुपये और 84.21 रुपये प्रति लीटर पर स्थिर बना हुआ है।
अंतर्राष्ट्रीय वायदा बाजार इंटर कांटिनेंटल एक्सचेंज (आईसीई) पर ब्रेंट क्रूड के नवंबर डिलीवरी अनुबंध में सोमवार को पिछले सत्र के मुकाबले 0.16 फीसदी की तेजी के साथ 43.22 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा था।
वहीं, न्यूयार्क मर्केंटाइल एक्सचेंज (नायमैक्स) पर वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) के नवंबर डिलीवरी वायदा अनुबंध में पिछले सत्र के मुकाबले 0.15 फीसदी की तेजी के साथ 41.38 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार चल रहा था।
लखनऊ, 21 सितम्बर (आईएएनएस)| गोरखपुर के डॉ. कफील खान ने योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ अपनी लड़ाई को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा दिया है। खान को हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत लगे आरोपों के बाद जेल से रिहा किया गया है और अब वो जयपुर में रह रहे हैं। खान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएसआरसी) को एक पत्र लिखकर "भारत में अंतर्राष्ट्रीय मानव सुरक्षा मानकों के व्यापक उल्लंघन और असहमति की आवाज को दबाने के लिए एनएसए और यूएपीए जैसे सख्त कानूनों के दुरुपयोग किए जाने की बात कही है"।
अपने पत्र में खान ने संयुक्त राष्ट्र के इस निकाय को "शांतिपूर्ण तरीके से सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने" वाले कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किए जाने के बाद उनके मानवाधिकारों की रक्षा करने के लिए भारत सरकार से आग्रह करने के मसले पर धन्यवाद दिया और यह भी कहा कि सरकार ने "उनकी अपील नहीं सुनी"।
खान ने लिखा, "मानव अधिकार के रक्षकों के खिलाफ पुलिस शक्तियों का उपयोग करते हुए आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों के तहत आरोप लगाए जा रहे हैं। इससे भारत का गरीब और हाशिए पर रहने वाला समुदाय प्रभावित होगा।"
बता दें कि 26 जून को संयुक्त राष्ट्र के निकाय ने कफील खान और शर्जील इमाम समेत अन्य लोगों पर लगाए गए 11 मामलों का उल्लेख करते हुए भारत सरकार को लिखा था, "मानवाधिकारों के उल्लंघन के गंभीर आरोप, जिनमें से कई गिरफ्तारी के दौरान यातना और दुर्व्यवहार करने के हैं"।
जेल में बिताए दिनों के बारे में खान ने लिखा, "मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया और कई दिनों तक भोजन-पानी से भी वंचित रखा गया और क्षमता से अधिक कैदियों वाली मथुरा जेल में 7 महीने की कैद के दौरान मुझसे अमानवीय व्यवहार किया गया। सौभाग्य से, हाई कोर्ट ने मुझ पर लगाए गए एनएसए और 3 एक्सटेंशन को खारिज कर दिया।"
इसके अलावा खान ने अपने पत्र में 10 अगस्त, 2017 को गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी के कारण कई बच्चों की जान जाने के मामले का भी उल्लेख किया।
उच्च न्यायालय ने 25 अप्रैल, 2018 के अपने आदेश में कहा था कि "उसके खिलाफ चिकित्सा लापरवाही का कोई सबूत नहीं मिला और वह ऑक्सीजन की टेंडर प्रक्रिया में भी शामिल नहीं था"।
हालांकि खान अपनी नौकरी से अब भी निलंबित हैं।
लखनऊ। यूपी में समूह ख और ग की सरकारी नौकरियों में 5 साल संविदा पर रखे जाने के योगी सरकार के प्रस्ताव का चौतरफा विरोध हो रहा है। प्रतियोगी छात्रों और राजनीतिक दलों के विरोध से घिरी यूपी की योगी सरकार अब बैकफुट पर आ गई है। सरकार न सिर्फ इससे मुकर गई है, बल्कि यह भी साफ़ कर दिया है कि सरकारी नौकरियों में नये नियम लागू किये जाने का कभी कोई फैसला ही नहीं हुआ।
सरकार की तरफ से सूबे के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि 5 साल तक संविदा पर रखे जाने की बात पूरी तरह गलत और अफवाह है। सरकार ने न तो इस तरह का कोई फैसला लिया है और न ही भविष्य में ऐसा करने का फिलहाल कोई विचार है। उन्होंने 50 साल की उम्र में सरकारी कर्मचारियों को रिटायर किये जाने की चर्चाओं को भी कोरी अफवाह करार दिया है। उनके मुताबिक़ संविदा पर नौकरी शुरू कराए जाने और 50 साल में रिटायर किये जाने की बातें विपक्षियों की साजिश है।
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का कहना है कि विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए वह अफवाह फैलाकर युवाओं को गुमराह कर रहा है। अपने गृह नगर प्रयागराज में एक कार्यक्रम में केशव मौर्य ने कहा कि उनकी सरकार ज़्यादा से ज़्यादा युवाओं को नौकरी व रोज़गार के दूसरे साधन मुहैया कराने की योजना पर काम कर रही है। अलग-अलग विभागों में किन्ही वजहों से रुकी हुई भर्तियों को जल्द शुरू कराया जाएगा।
बता दें कि दोनों ही फैसलों को लेकर योगी सरकार की काफी किरकिरी हुई है। संविदा पर भर्ती के फैसले को लेकर प्रयागराज व वाराणसी सहित राज्यभर में युवाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर विरोध जताया था। इसके अलावा युवा ताली थाली बजाकर भी योगी सरकार के फैसलों का विरोध कर चुके हैं। 17 सितंबर को पीएम मोदी का जन्मदिन है इस दिन को विरोध स्वरूप देशव्यापी तौर पर राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस के रूप में मनाया गया था। (sabrangindia)
नई दिल्ली, 21 सितंबर (आईएएनएस)| भारत और चीन के शीर्ष सैन्य कमांडर एक बार फिर सोमवार को मोल्दो में बैठक करेंगे, जिसमें सीमा विवाद पर, खास तौर से पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग झील इलाके पर चर्चा होगी। रक्षा सूत्रों के मुताबिक, इस बार की बैठक में विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) नवीन श्रीवास्तव भी भारतीय प्रतिनिधिमंडल सदस्य के रूप में शामिल होंगे।
प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व 14वें कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह करेंगे। दो मेजर जनरल अभिजीत बापट और पदम शेखावत भी उनके साथ बैठक में हिस्सा लेंगे।
भोपाल, 21 सितंबर (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश में विधानसभा उपचुनाव की गर्माहट बढ़ने के साथ बयानों में तल्खी आने लगी है। जुबानी जंग इतनी तेज हो चली है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ किसान कर्जमाफी के मुद्दे पर खुली बहस को भी तैयार हैं। मुख्यमंत्री शिवराज ने पूर्ववर्ती सरकार पर हमला बोला। उन्होंने कहा, "मंदसौर जिले में पिछले साल बाढ़ से भारी तबाही हुई थी। मैंने मुख्यमंत्री कमल नाथ से कहा कि आप भी देख लीजिए कितना नुकसान हुआ है। वो नहीं आए और बोले हम तो बंगले में बैठे-बैठे ही देख लेते हैं। मंदसौर में ही राहुल गांधी ने ये घोषणा की थी कि 10 दिनों में किसानों का हर प्रकार का दो लाख रुपये तक का कर्ज माफ करेंगे। लेकिन जब सरकार बन गई, तो कर्जमाफी में कई शर्ते लगा दीं। रंग-बिरंगे फॉर्म भरवाने लगे। कटऑफ की तारीख बदल दी। कांग्रेस की सरकार ने किसानों को धोखा दिया। कमल नाथ कहीं भी बहस कर लें, क्योंकि किसानों को कर्जमाफी के झूठे प्रमाणपत्र बांटे, बैंकों को पैसा नहीं दिया।"
पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने ग्वालियर में कहा था कि राज्य में 26 लाख किसानों का कर्ज माफ किया गया। साथ ही मुख्यमंत्री को चुनौती देते हुए कहा था, "किसान कर्जमाफी पर शिवराज से कहीं भी बहस के लिए तैयार मैं तैयार हूं। एक-एक किसान का फोन नंबर और नाम भी उनके सामने रखूंगा।"
नई दिल्ली, 21 सितंबर (आईएएनएस)| पूर्वोत्तर के राज्यों के कुछ हिस्सों में जाने के लिए जरूरी इनर लाइन परमिट(आईएलपी) को हटाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। केंद्र सरकार ने रविवार को यह बात स्पष्ट कर दी। केंद्र सरकार ने लोकसभा में हुए एक सवाल के जवाब में बताया है कि अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड के हिस्सों में लागू इनर लाइन परमिट को हटाने की कोई तैयारी नहीं है। सरकार के जवाब से साफ है कि इन राज्यों के संबंधित हिस्सों में जाने के लिए भारतीयों को भी इनर लाइन परमिट लेना जरूरी रहेगा।
दरअसल, आंध्र प्रदेश के लोकसभा सांसद तालारी रंगैय्या ने रविवार को गृहमंत्री से एक अतारांकित सवाल में पूछा था कि क्या सरकार इनर-लाइन परमिट को पूरी तरह से खत्म करना चाहती है? पूर्वोत्तर भारत के राज्यों, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड की यात्रा के लिए इनर लाइन परमिट प्राप्त करने की आवश्यकता के पीछे क्या कारण हैं? सांसद ने यह भी सवाल उठाया कि आजादी के 74 साल बाद भी इनर लाइन परमिट(बंगाल पूर्वी सीमान्त विनियमन अधिनियम 1873 का विस्तार) को न हटाने के क्या कारण हैं?
गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने इस सवाल का रविवार को लिखित में जवाब देते हुए बताया कि इनर लाइन परमिट(आईएलपी) सिस्टम को खत्म करने का सरकार के पास कोई प्रस्ताव नहीं है। वर्ष 1873 में बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्यूलेशन के साथ आईएलपी सिस्टम अस्तित्व में आया। यह अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड के कुछ हिस्सों में अस्तित्व में है।
उन्होंने बताया कि जनजातियों की संस्कृति और परंपरा को संरक्षित करने और जनजातीय भूमि पर उनके स्वामित्व की रक्षा करने और संसाधनों को बचाने के लिए इनर लाइन परमिट व्यवस्था लागू की गई थी।
क्या है इनर लाइन परमिट?
इनर लाइन परमिट को एक प्रकार से वीजा ऑन अराइवल कह सकते हैं। देश में आज भी कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां भारतीयों को भी जाने के लिए अनुमति लेनी होती है। इसी अनुमति को इनर लाइन परमिट कहते हैं। यह एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज होता है। पूर्वोत्तर भारत में नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के कुछ हिस्सों में आज भी यह व्यवस्था चली आ रही है। कोई भारतीय बगैर अनुमति लिए इन राज्यों में इनर लाइन परमिट वाले हिस्से में नहीं घुस सकता। इस व्यवस्था को वन नेशन, वन पीपुल की भावना के खिलाफ माना जाता है। पिछले साल जब मोदी सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया था, तब से इनर लाइन परमिट के भविष्य पर भी बहस छिड़ी थी। हालांकि, उस समय भी गृहमंत्रालय ने साफ किया था कि नागालैंड आदि राज्यों से इनर लाइन परमिट हटाने की कोई योजना नहीं है।
नई दिल्ली, 21 सितंबर (आईएएनएस)| असम में जांच के बाद 86 हजार से अधिक लोग विदेशी घोषित हुए हैं। वहीं राज्य में 83 हजार से अधिक मामले संदिग्ध वोटर्स के सामने आए हैं। यह जानकारी केंद्र सरकार ने रविवार को लोकसभा में हुए एक सवाल के जवाब में दी है। केंद्र सरकार ने डिटेंशन सेंटर और उसमे डिटेन लोगों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध न होने की बात कही। सरकार का कहना है कि राज्य सरकारों की ओर से घुसपैठियों के लिए बनाए गए डिटेंशन सेंटर का ब्यौरा केंद्रीय स्तर पर नहीं रखा जाता है।
दरअसल, तृणमूल कांग्रेस के लोकसभा सांसद प्रो. सौगत रॉय ने रविवार को गृह मंत्री से एक तारांकित सवाल में पूछा था कि पिछले पांच वर्षों के दौरान देश में कितने लोग राज्यवार विदेशी घोषित किए गए हैं। देश में कितने डिटेंशन सेंटर स्थापित किए गए हैं और वहां कितने लोग डिटेन हैं।
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने सवाल का लिखित जवाब देते हुए बताया कि वर्तमान में केवल असम में फॉरेन ट्रिब्यूनल कार्य कर रहे हैं। असम सरकार ने बताया है कि फॉरेन ट्रिब्यूनल में राज्य में संदिग्ध वोटरों के 83008 मामले लंबित हैं। वहीं वर्ष 2015 से 30 जून 2020 तक असम में 86756 लोग विदेशी घोषित किए गए हैं।
गृह राज्य मंत्री ने बताया, "वर्ष 2005 की एक रिट पर उच्चतम न्यायालय की ओर से 28 फरवरी 2012 को दिए आदेश के बाद गृह मंत्रालय ने 7 मार्च 2012 को राज्य सरकारों को डिटेंशन सेंटर को लेकर निर्देश दिए थे। राज्य सरकारों की ओर से डिटेंशन सेंटर उन अवैध घुसपैठियों और विदेशी नागरिकों को मूल देश में वापस भेजने तक डिटेन करने के लिए स्थापित किए जाते हैं, जिन्होंने सजा पूरी कर ली है। गृह राज्य मंत्री ने बताया कि राज्य सरकारों की ओर से स्थापित डिटेंशन सेंटर और इसमें डिटेन(निरुद्ध) व्यक्तियों के ब्यौरे केंद्रीय स्तर पर नहीं रखे जाते।"
नई दिल्ली, 21 सितंबर (आईएएनएस)| देश में पशुओं को भी आधार नंबर देने का कार्य तेजी से चल रहा है। सरकार ने योजना का विस्तार करते हुए भेड़, बकरी और सुअर को भी 'पशु आधार' देना शुरू किया है। जिससे अब देश में 53.5 करोड़ पशुओं को 12 अंकों का आधार कार्ड मिलेगा। सरकार का कहना है कि इससे कई तरह के लाभ होंगे। पशुओं और रोगों की पहचान सुनिश्चित होगी। 53.5 करोड़ पशुओं का आधार नंबर बन जाने के बाद भारत के पास पशुओं का सबसे बड़ा डेटाबेस होगा। इस डेटाबेस में पशुओं की नस्ल, दूध उत्पादन, कृत्रिम गर्भाधान टीकाकरण और पोषण से जुड़ी जानकारियां होंगी। दरअसल, लोकसभा सांसद विनोद कुमार सोनकर, भोला सिंह, संगीता कुमारी सिंह देव, सुकांत मजूमदार, जयंत कुमार राय, राजा अमरेश्वर नाईक ने लोकसभा में रविवार को एक अतारांकित सवाल कर मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री से पूछा था कि क्या सरकार ने अंतरराष्ट्रीय संगठन के साथ परामर्श कर पशुओं को 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या(यूआईडी) देने काम काम शुरू किया है। इसके लिए क्या सरकार ने ने पशु संजीवनी योजना आरंभ की है?
इस सवाल का लिखित जवाब देते हुए मंत्री डॉ. संजीव कुमार बालियान ने कहा कि राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड ने पशु उत्पादकता और स्वास्थ्य के लिए सूचना प्रणाली विकसित की है। पशुओं को मिलने वाले 12 अंकों के विशिष्ट पहचान संख्या(यूआइडी) का उपयोग राष्ट्रीय डेटाबेस में हो रहा है।
मंत्री ने बताया कि भारत सरकार पशुओं के वैज्ञानिक प्रजनन, रोगों के फैलाव को रोकने, दुग्ध उत्पादों का व्यापार बढ़ाने के उद्देश्य से 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या(पशु आधार) का उपयोग कर दुधारु गोवंशों और भैसों की पहचान कर रही है।
इसे पशु संजीवनी घटक स्कीम के तहत लागू किया जा रहा है, जिसे अब राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत शामिल किया गया। मंत्री ने बताया कि पशु आधार की सुविधा अब भेड़, बकरी और सुअर को भी जोड़ा जा रहा है। इस प्रकार 53.5 करोड़ पशुओं को आधार नंबर दिया जा रहा है। सितंबर 2019 में शुरू हुए राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत आधार नंबर से पशुओं की पहचान करना आसान हो गया है। इस योजना के तहत प्रत्येक पशु के कान पर एक 12-अंकों के यूआईडी वाला थर्मोप्लास्टिकपॉलीयूरेथेन टैग लगाया जाता है।
नई दिल्ली, 21 सितंबर (आईएएनएस)| सरकार ने रविवार को सदन में विपक्ष के जबरदस्त हंगामे के बाद अपने शीर्ष छह मंत्रियों को आगे कर दिया। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा विपक्ष पर हमला बोलते हुए कहा कि राज्यसभा के उपसभापति के प्रति सदस्यों के व्यवहार न सिर्फ 'खराब' थे बल्कि 'शर्मनाक' भी थे। उन्होंने यह भी कहा कि जहां तक हरिवंश सिंह के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का सवाल है, यह राज्यसभा के सभापित वेंकैया नायडू का विशेषाधिकार है।
राजनाथ सिंह ने बिना किसी का नाम लिए कहा, "जहां तक मैं जानता हूं, ऐसा राज्यसभा और लोकसभा के इतिहास में कभी नहीं हुआ। राज्यसभा में होने वाली यह बहुत बड़ी घटना है। अफवाहों के आधार पर किसानों को गुमराह करने की कोशिश की गई है। जो हुआ वह सदन की गरिमा के खिलाफ था।"
राज्यसभा में रविवार को काफी हो-हंगामा देखने को मिला। टीएमसी के डेरेक ओ'ब्रायन सभापति के समीप आ गए और काला कानून बताकर दस्तावेजों को फाड़ दिया। उन्हें यह भी कहते सुना गया कि 'आप ऐसा नहीं कर सकते।' आप के सासंद संजय सिंह को भी वेल में देखा गया।
केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने विपक्ष के व्यवहार को हिसक बताया। उन्होंने कहा कि सभापित के बार-बार कहने पर भी वे अपने सीट पर वापस नहीं गए।
राजनाथ सिंह ने कहा कि वह खुद एक किसान हैं और न ही एमएसपी और न ही एपीएमसी समाप्त होने जा रहा है।
प्रेस कांफ्रेंस में सिंह और नकवी के अलावा, प्रकाश जावड़कर, थावरचंद गहलोत, पीयूष गोयल और प्रह्लाद जोशी मौजूद थे।
नई दिल्ली, 21 सितंबर (आईएएनएस)| दिल्ली के सबसे बड़े पुतला बाजार में रावण ने इस बार दस्तक नहीं दी है। टैगोर गार्डन से सटे तितारपुर बाजार में पुतला कारोबारियों में मायूसी नजर आ रही है। हर साल इस बाजार में इस समय रावण, कुंभकर्ण व मेघनाद के पुतले बनने शुरू हो जाया करते थे। तितारपुर में इन दिनों सड़क के किनारे, फुटपाथ, पार्को व छतों पर पुतला बनाने वाले कारीगर व्यस्त नजर आते थे। लेकिन इस बार नजारा बिल्कुल बदला हुआ है।
कोविड-19 से परेशान कारोबारियों को इस बार एक अच्छे कारोबार की उम्मीद थी, क्योंकि पिछले साल पटाखों पर रोक लगने के चलते कई जगह रावण दहन नहीं हुआ था। इस वजह से कारोबारियों को नुकसान झेलना पड़ा था।
प्रधानमंत्री द्वारा राममंदिर के लिए भूमिपूजन किए जाने के बाद पुतला कारोबारियों में उम्मीद जागी थी कि इस बार दशहरा का त्योहार भव्य तरीके से आयोजित होगा, लेकिन ऐसा बिल्कुल न हो सका।
दिल्ली के तितारपुर में हर साल दशहरे से पहले बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा से कारीगर आकर दिन-रात पुतला बनाने में जुट जाते थे।
कारोबारियों के अनुसार, दिल्ली में करीब हजारों की संख्या में हर साल रावण का पुतला फूंका जाता रहा है, लेकिन इस बार कारोबारियों को एक भी ऑर्डर नहीं मिला है। इस कारण सभी कारीगर हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए हैं।
तितारपुर में रावण बनाने वाले 45 वर्षीय पवन 12 वर्ष की उम्र से रावण का पुतला बनाते चले आ रहे हैं। वह 5 फुट से लेकर 60 फूट का रावण हर साल बनाते आए हैं। यही नहीं, उनके द्वारा बनाया गया रावण ऑस्ट्रेलिया तक भेजा गया है। हर साल पवन 50 से अधिक रावण बनाते हैं, जिन्हें देशभर के विभिन्न जगहों पर दहन करने के लिए लोग ले जाया करते हैं।
पवन ने आईएएनएस को बताया, "मेरे पास हर साल अब तक कई जगहों से रावण बनाने के लिए ऑर्डर आ जाया करते थे। लेकिन इस वर्ष अब तक एक भी फोन नहीं आया। कोरोना के चलते हमारे काम बिल्कुल ठप हो गए। हम हर साल दशहरे पर ही पूरे साल की कमाई करते थे। लेकिन इस वर्ष ऐसा बिल्कुल नहीं हो सका।"
उन्होंने बताया, "मेरा पूरा परिवार इसी काम को करता रहा है, हम सभी इसी सीजन का इंतजार करते हैं। लेकिन इस बार हम सभी घरों पर बैठने को मजबूर हैं। हमें डर है कि पूरे वर्ष का खर्चा कैसे निकलेगा और हम अपना जीवन कैसे बिताएंगे।"
पवन ने आगे कहा, "पिछले साल पटाखे पर बैन होने का हमारे व्यापार पर असर पड़ा, और उसका कर्जा मैं आज तक चुका रहा हूं। इस साल मुझे ज्यादा उम्मीद थी, क्योंकि राम जन्मभूमि का पूजन भी हुआ, जिस वजह से हमें लगा था कि दशहरा भव्य तरीके से मनाया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं दिख रहा है।"
राम गोपाल भी रावण का पुतला बनाते हैं, उन्होंने आईएएनएस को बताया, "हिमाचल प्रदेश, मुरादाबाद, बरेली, हरियाणा, एमपी, राजस्थान से हर साल लेबर और कारीगर यहां आकर रावण बनाया करते थे। लेकिन इस बार सभी अपने-अपने राज्य में ही मौजूद हैं।"
उन्होंने बताया, "हमें इसके अलावा कोई और काम नहीं आता, न ही हम इसके अलावा कोई और काम कर सकते हैं। इस वक्त के सीजन का हम बेसब्री से इंतजार करते हैं, इसीसे हमारे परिवार का गुजर- बसर होता है। हम केंद्र सरकार से उम्मीद करते हैं कि हमारे बारे में कुछ सोचेगी।"
हालांकि दिल्ली में हर साल सबसे ज्यादा रावण दहन किए जाते हैं। लेकिन कोरोना वायरस के चलते यह कह पाना थोड़ा मुश्किल है कि सरकार दशहरे पर रावण दहन करने की इजाजत देगी या नहीं।
नयी दिल्ली,20 सितंबर (वार्ता) कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी केंद्र सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं चूकते हैं और रविवार को उन्होंने किसान संबंधी विधेयकों को लेकर हमला बोलते हुए कहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों को पूँजीपतियों का ‘ग़ुलाम' बना रहे हैं जिसे देश कभी सफल नहीं होने देगा।
कांग्रेस कृषि से जुड़े तीन विधेयकों को लेकर हमलावर बनी हुई है। यह विधेयक लोकसभा में पारित हो चुके हैं और इन्हें आज राज्यसभा में पेश किया गया है।
वायनाड से सांसद कांग्रेस नेता ने आज ट्वीट कर कहा," मोदी सरकार के कृषि-विरोधी ‘काले क़ानून’ से किसानों को कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी)किसान मार्केट ख़त्म होने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एमएसपी) कैसे मिलेगा और एमएसपी की गारंटी क्यों नहीं? मोदी जी किसानों को पूँजीपतियों का ‘ग़ुलाम' बना रहे हैं जिसे देश कभी सफल नहीं होने देगा।"
मिश्रा आशा
वार्ता
चंडीगढ़, 20 सितंबर (आईएएनएस)| शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने रविवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से कृषि विधेयकों पर हस्ताक्षर न करने का आग्रह किया। उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि विधेयकों को पुनर्विचार के लिए संसद में वापस भेजा जाए।
बादल ने एक बयान में कहा, "कृपया किसानों, 'किसान मजदूरों', 'आढ़तियों' (एजेंटों), मजदूरों और दलितों के साथ खड़े हों।"
उन्होंने कहा, "कृपया उनकी ओर से सरकार के इस रुख पर हस्तक्षेप करें, अन्यथा वे हमें कभी माफ नहीं करेंगे।"
बादल ने आगे कहा कि अन्नदाता या किसानों को भूखा न रहने दें और न ही सड़कों पर न सोने दें।
बादल की पार्टी सत्तारूढ़ भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगियों में से एक है और सत्तारूढ़ राजग का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि दोनों विधेयकों का पारित होना देश के लाखों लोगों के लिए और लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन है।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का अर्थ है आम सहमति, न कि बहुसंख्यक उत्पीड़न।
तीन में से दो कृषि विधेयक रविवार को राज्यसभा द्वारा पारित कर दिए गए, ये विधेयक कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020 और कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 हैं। इन्हें इस सप्ताह की शुरुआत में लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।
नरेंद्र मोदी सरकार में पार्टी की एकमात्र मंत्री हरसिमरत कौर बादल कृषि विधेयक का विरोध जताने के लिए 17 सितंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे चुकी हैं।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 20 सितंबर (आईएएनएस)| फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मसले पर किसान सरकार से महज वादे नहीं, बल्कि एमएसपी से नीचे किसी फसल की बिक्री न हो, इस बात की गारंटी चाहते हैं। सरकार कृषि के क्षेत्र में सुधार के नए कार्यक्रमों को लागू करने के लिए जिसे ऐतिहासिक विधेयक बता रही है, दरअसल किसान उस विधेयक को एमएसपी की गारंटी के बगैर बेकार बता रहे हैं। कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020 और कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 रविवार को राज्यसभा में पारित होने के बाद दोनों विधेयकों को संसद की मंजूरी मिल गई है।
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जहां एमएसपी पर गेहूं और धान की सरकारी खरीद व्यापक पैमाने पर होती है वहां के किसान इन विधेयकों का सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं।
पंजाब में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के प्रदेश अध्यक्ष और ऑल इंडिया कोर्डिनेशन कमेटी के सीनियर कोर्डिनेटर अजमेर सिंह लखोवाल ने आईएएनएस से कहा कि ये विधेयक किसानों के हित में नहीं हैं क्योंकि इनमें एमएसपी को लेकर कोई जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा कि किसान चाहते हैं कि उनकी कोई भी फसल एमएसपी से कम भाव पर न बिके। भाकियू नेता ने कहा कि खरीद की व्यवस्था किए बगैर एमएसपी की घोषणा से किसानों का भला नहीं होगा।
बिहार में एमएसपी पर सिर्फ धान और गेहूं की खरीद होती है। बिहार के मधेपुरा जिला के किसान पलट प्रसाद यादव ने कहा कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिश पर सरकार हर साल 22 फसलों का एमएसपी और गन्ने का लाभकारी मूल्य यानी एफआरपी तय करती है, लेकिन पूरे देश में कुछ ही किसानों को कुछ ही फसलों का एमएसपी मिलता है। उन्होंने कहा कि सरकार को किसानों के हित में यह जरूर सुनिश्चित करना चाहिए कि उनको तमाम अनुसूचित फसलों का एमएसपी मिले।
उन्होंने कहा कि शांता कुमार समिति की रिपोर्ट ने भी बताया है कि देश के सिर्फ छह फीसदी किसानों को एमएसपी का लाभ मिलता है, लिहाजा देश के सभी किसानों की फसलें कम से कम एमएसपी पर बिक पाए, इस व्यवस्था की दरकार है।
किसानों की इस शिकायत का जिक्र राज्यसभा में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सांसद सतीश चंद्र मिश्रा ने भी किया। उन्होंने कहा कि आज किसान जो आंदोलन कर रहे हैं उनकी सिर्फ एक आशंका है कि इस विधेयक के बाद उनको एमएसपी मिलना बंद हो जाएगा। बसपा सांसद ने कहा, अगर विधेयक में किसानों को इस बात का आश्वासन दिया गया होता कि उनको न्यूनतम समर्थन मूल्य अवश्य मिलेगा तो शायद यह आज चर्चा का विषय नहीं होता।
कृषि विधेयकों पर किसानों के साथ-साथ मंडी के कारोबारी भी खड़े हैं क्योंकि कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020 और कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन में एपीएमसी से बाहर होने वाली फसलों की बिक्री पर कोई शुल्क नहीं है, जिस कारण से उन्हें एपीएमसी मंडियों की पूरी व्यवस्था समाप्त होने का डर सता रहा है। हालांकि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों और व्यापारियों को आश्वस्त किया है कि इन विधेयकों से न तो एमएसपी पर किसानों से फसल की खरीद पर कोई फर्क पड़ेगा और न ही एपीएमसी कानून के तहत संचालित मंडी के संचालन पर।
जबकि राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार संघ के चेयरमैन बाबूलाल गुप्ता कहते हैं कि जब मंडी के बाहर कोई शुल्क नहीं लगेगा तो मंडी में कोई क्यों आना चाहेगा। ऐसे में मंडी का कारोबार प्रभावित होगा।
हरियाणा में कृषि विधेयकों को लेकर किसानों ने प्रदेशभर में सड़कों पर जाम लगाकर विरोध प्रदर्शन किया। भाकियू के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष गुराम सिंह ने आईएएनएस को बताया कि पूरे प्रदेश में रविवार को किसानों ने विधेयक का विरोध किया है और विधेयक के पास होने के बाद अब विरोध-प्रदर्शन और तेज होगा।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 20 सितंबर | कुछ धनी देशों ने कोरोनावायरस वैक्सीन का 50 फीसदी से ज्यादा खुराक खरीद ली हैं। इन धनी देशों में दुनिया की 13 फीसदी आबादी रहती है। यह दावा ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। ऑक्सफैम का कहना है कि यदि ये पांचों कंपनियां वैक्सीन बनाने में सफल् रहती है, तब भी दुनिया की दो तिहाई आबादी लगभग 61 फीसदी तक यह वैक्सीन की खुराक 2022 तक के अंत तक भी नहीं पहुंच पाएगी।
ऑक्सफैम ने एनालिटिक्स कंपनी एयरफिनिटी द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों के आधार पर किया है।
वर्तमान में वैक्सीन बना रही पांच कंपनियों और विभिन्न देशों के बीच हुए सौदों की समीक्षा के बाद ऑक्सफैम ने यह जानकारी दी है। जिन पांच वैक्सीन का विश्लेषण किया गया है, उनमें एस्ट्राजेनेका, गामालेया/स्पुतनिक, मॉडर्न, फाइजर और सिनोवैक शामिल हैं। इन पांचों कंपनियों के वैक्सीन ट्रायल के अंतिम दौर पर चल रही है।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट बताती है कि इन पांचों कंपनियों की वैक्सीन उत्पादन क्षमता लगभग 5.9 बिलियन (अरब) खुराक की है। यह 3 बिलियन (अरब) लोगों के लिए काफी है, क्योंकि एक व्यक्ति को वैक्सीन की दो खुराक दिए जाने की संभावना है। इनमें से 5.3 बिलियन खुराक की डील हो चुकी है और इसमें से 2.7 बिलियन खुराक की डील कुछ अमीर देशों ने की है, जहां दुनिया की मात्र 13 फीसदी आबादी ही रहती है।(DOWNTOEARTH)
नई दिल्ली, 20 सितंबर (आईएएनएस)| बांग्लादेश को आजाद कराने में भारतीय जासूस एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की भूमिका के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। लेकिन, अगस्त 1975 में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद रॉ के जासूसों को जिन चुनौतियों का करना पड़ा, इस बारे में ज्यादा जानकारी अभी तक सामने नहीं आई है। खोजी पत्रकार यतीश यादव की एक नई किताब के मुताबिक, एक वरिष्ठ रॉ अधिकारी ए.के. वर्मा (वर्मा बाद में रॉ के प्रमुख बने) का मानना है कि शेख मुजीबुर रहमान की हत्या में अमेरिकी खुफिया संगठन सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी (सीआईए) का हाथ हो सकता है। पत्रकार यतीश यादव की नई किताब में मुजीबुर रहमान की हत्या के साजिशकर्ताओं के साथ ढाका स्थित अमेरिकी दूतावास के बीच संबंधों का खुलासा किया गया है।
वेस्टलैंड पब्लिकेशंस द्वारा 'रॉ : ए हिस्ट्री ऑफ इंडियाज कवर्ट ऑपरेशंस' नामक किताब हाल ही में जारी की गई है।
पुस्तक में उल्लिखित रॉ नोट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि षड्यंत्रकारियों में से एक ने अमेरिकी दूतावास में शरण ली थी।
किताब में कहा गया है, "तख्तापलट में शामिल मेजर रैंक के अधिकारियों में से एक ने 20 अगस्त, 1975 को ढाका स्थित अमेरिकी दूतावास में शरण ली थी, जब उसने खुद को कुछ खतरे के बारे में बताया और ढाका स्थित अमेरिकी दूतावास ने उसकी ओर से सेना के अधिकारियों के सामने सिफारिश की और उसकी सुरक्षा संबंधी आश्वासन पाया।"
किताब में लिखा गया है, "अतीत में बांग्लादेश की सशस्त्र सेनाओं के साथ अमेरिकियों का कुछ खास लेना-देना नहीं था। मकसद था ढाका में अमेरिकी दूतावास और सैन्य पक्ष के बीच संबंध और उस चीज को सुगम बनाना जिससे अमेरिकी साजिशकर्ताओं में से एक की ओर से समस्या का समाधान किया जा सके। यह बात निश्चित रूप से संदेह पैदा करती है कि 'क्या अमेरिकी दूतावास की भूमिका एक ईमानदार दलाल से कहीं ज्यादा थी?'
किताब एक चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन करती है, जो तख्तापलट और इसके बाद के ऐतिहासिक परिणाम को बदल देती है।
लगता है कि अमेरिका को अब यह अहसास हो गया है कि 1975 के तख्तापलट में शामिल लोगों को समर्थन देना शायद समझदारी नहीं थी और हालिया रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका में शरण पाने वाले साजिशकर्ताओं में से एक को निर्वासित किए जाने की संभावना है।
यादव ने यह भी लिखा कि तख्तापलट और शेख मुजीबुर की हत्या के बाद, पाकिस्तान, चीन और अमेरिका ने बांग्लादेश पर प्रभाव डालना शुरू कर दिया था और खोंडकर मुस्ताक अहमद के नेतृत्व में भारत विरोधी रेजीम शुरू कर दिया गया, जिन्होंने प्रमुख पदों पर पाकिस्तान समर्थक अधिकारियों को नियुक्त किया था।
बांग्लादेश में खोई हुई जमीन फिर से पाने के लिए, रॉ ने चार प्रमुख उद्देश्यों के साथ गुप्त अभियानों की एक सीरीज शुरू की थी। पहला- राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य क्षेत्रों में भारतीय विरोधी गतिविधियों के लिए संचालन के आधार के रूप में बांग्लादेश का इस्तेमाल करने से भारतीय विरोधी विदेशी शक्तियों को रोकना। दूसरा- बांग्लादेश में ऐसी स्थिति बनने से रोकना जो हिंदू बहुसंख्यकों को भारत में माइग्रेट करने के लिए मजबूर कर सकता है, ढाका में एक दोस्ताना सरकार और अंत में संभव के रूप में कई पारस्परिक रूप से लाभप्रद लिंक बनाना और बांग्लादेश को भारत के साथ अधिक से अधिक जोड़ना।
रॉ ने गुप्त अभियानों के अलावा, निर्वासन अवधि में बांग्लादेशी सरकार बनाने की भी कोशिश की थी, लेकिन भारत समर्थक नेताओं के उत्साह में कमी के कारण योजना को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा था।
अभियानों की श्रृंखला के बीच, जियाउर रहमान के बारे में किताब में एक महत्वपूर्ण गुप्त युद्ध पर प्रकाश डाला गया, सैन्य कमांडर बांग्लादेश के राष्ट्रपति बने, जो अमेरिका के करीबी थे, लेकिन वह और उनकी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) में भारत विरोधी दृष्टिकोण था।
किताब में एक रॉ अधिकारी के हवाले से कहा गया कि बीएनपी और उसके समर्थक भ्रष्ट हो गए थे और बहुत कम समय में कट्टरपंथी हो गए थे। जिया के शासन में बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्षता के लिए कोई जगह नहीं थी और सेना के भीतर एक समूह जो मुक्ति के लिए लड़े थे, उनके शासन से असहमत थे।
जनरल इरशाद के शासन के दौरान भी, रॉ का ऑपरेशन जारी रहा, क्योंकि जमात-ए-इस्लामी से खतरे वास्तविक हो गए थे। इरशाद और उनकी सेना बांग्लादेश में भारत के प्रभाव से सावधान थे।
फरवरी, 1982 की एक घटना से पता चला कि बांग्लादेशी ढाका में भारतीय अधिकारियों की मौजूदगी को लेकर लगभग उन्मादी से थे। उच्चायोग में तैनात भारतीय राजनयिक कर्मचारियों पर निगरानी थी। 25 फरवरी, 1982 को बांग्लादेशी सुरक्षाकर्मियों ने ढाका की सड़कों पर भारतीय उच्चायुक्त मुचकुंद दुबे की कार को टक्कर मार दी थी।
किताब में एक रॉ अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि जमात खुद को मुख्यधारा की ताकत में बदल सकती है और बांग्लादेश में जब भी चुनाव होंगे, महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
लेखक ने जासूसों की पहचान गोपनीय रखने के लिए कोडनेम (सांकेतिक नाम) का इस्तेमाल किया है। इरशाद शासन को सत्ता से बाहर करने के लिए बांग्लादेश में एक और महत्वपूर्ण गुप्त ऑपरेशन शुरू किया गया था। इसे कोडनेम दिया गया था- ऑपरेशन फेयरवेल।
किताब में ऑपरेशन में शामिल एक जासूस के हवाले से कहा गया कि भारतीय खुफिया एजेंसी का उद्देश्य बहुत सरल था कि जो भी ढाका पर शासन करने जा रहा है, उसके पास भारत के लिए एक अनुकूल दृष्टिकोण होना चाहिए।
पुस्तक में दावा किया गया है कि मार्च 1990 में, रॉ एजेंटों ने एक जबरदस्त सफलता हासिल की जब इरशाद के अधीन सेना के एक शीर्ष कमांडर ने भारतीय जासूस एजेंसी को आईएसआई और सीआईए अधिकारियों के नामों का खुलासा किया, जिन्होंने शासन पर काफी प्रभाव डाला था।
यादव ने आरोप लगाया कि सीआईए ने यह सुनिश्चित करने के लिए स्लश फंड का इस्तेमाल किया कि इरशाद की पश्चिम समर्थक नीति आने वाले दशकों तक जारी रहे। बेनजीर भुट्टो के प्रति वफादार तत्कालीन आईएसआई प्रमुख शमसुर रहमान कल्लू, अमेरिकियों की मदद से पाकिस्तानी नेटवर्क का विस्तार करने में सक्षम था और इस सांठगांठ ने रॉ के लिए एक भयानक खतरा उत्पन्न कर दिया था। ऑपरेशन फेयरवेल ने इन तत्वों को एक-एक करके निष्प्रभावी कर दिया और इरशाद शासन के खिलाफ सार्वजनिक और राजनीतिक विद्रोह को वित्त पोषित किया।
यादव ने लिखा है, "कोई भी देश बिना खुफिया सपोर्ट के अपनी वैश्विक पहुंच नहीं बढ़ा सकता। भारत ने अपने कद में काफी प्रगति की है और यह प्रभाव रॉ की सफलता का प्रमाण है।"
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 20 सितंबर (आईएएनएस)| भारत में कोविड-19 महामारी के कारण हुआ लॉकडाउन अब राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए सिरदर्द बन रहा है। महामारी के दौरान नौकरी गवां चुके युवाओं के प्रतिबंधित उग्रवादी समूहों जैसे युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) में बड़ी तादाद में शामिल होने की सूचना मिली है।
इसके साथ ही रिपोर्ट के अनुसार, चीन द्वारा निर्मित हथियारों की एक बड़ी खेप म्यांमार के अलगाववादी कट्टरपंथी समूहों के हाथों में पहुंच रही है, जिनका भारत के पूर्वोत्तर में आतंकवादी समूहों के साथ घनिष्ठ संबंध है।
राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठान के वरिष्ठ अधिकारियों ने सरकारी सुरक्षा नियमों का हवाला देते हुए, नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि उभरता परिदृश्य भारतीय सुरक्षा और खुफिया अधिकारियों द्वारा सालों की कड़ी मेहनत के दौरान बनाए गए संतुलन के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है।
म्यांमार के राखाइन राज्य में सक्रिय अराकन आर्मी (एए) को चीनी हथियारों का ताजा खेप मिल चुका है और यह पूर्वोत्तर भारत में विद्रोही समूहों को हथियारों और गोला-बारूद के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं में से एक माना जाता है।
अधिकारियों ने कहा कि एए भारत के कलादान मल्टी मोडल प्रोजेक्ट का विरोध करता है, जो मिजोरम जैसे राज्यों को म्यांमार में सिट्टवे बंदरगाह के माध्यम से समुद्र के लिए एक आउटलेट प्रदान करता है। दिलचस्प बात यह है कि एए ने चीन-म्यांमार इकॉनोमिक कॉरिडोर का विरोध नहीं किया है।
सुरक्षा एजेंसियों ने सरकार से कहा है कि भारत-म्यांमार सीमा पर सक्रिय उग्रवादी समूह कोविड-19 महामारी लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हुए युवाओं को आसानी से समूह में भर्ती कर सकता है।
अधिकारी ने कहा, "एए द्वारा चीन निर्मित हथियारों को पा लेने से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सुरक्षा स्थिति पर असर पड़ेगा, क्योंकि इनमें से अधिकांश हथियार पूर्वोत्तर के कुछ उग्रवादी समूहों तक पहुंचने के लिए अपना रास्ता तलाश रहे हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "नए हथियार पूर्वोत्तर समूहों को हमले की क्षमता प्रदान करते हैं, जिनकी संख्या महामारी के कारण बेरोजगार हुए युवाओं को भर्ती करने से बढ़ती जा रही है।"
म्यांमार से बाहर स्थित पूर्वोत्तर का प्रतिबंधित उग्रवादी समूह खापलांग गुट नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन-के) नई भर्तियों से मजबूत और पुनर्जीवित हो रहा है और भारत-म्यांमार बॉर्डर पर भारतीय सेना के खिलाफ हमलों की योजना बना रहा है।
गौरतलब है कि साल 2016 में एनएससीएन (के) ने भारतीय सेना के 18 सैनिकों को मार डाला था और भारत को म्यांमार में शरण लेने वाले आतंकवादी ठिकानों पर हमला करने के लिए मजबूर किया।
भारत के लिए चिंता की बात यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार के प्रयासों के बावजूद नागा उग्रवादी समूहों के साथ शांति वार्ता विफल रही है।
एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि पीपल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्बी लोंगरी (पीडीसीके) जैसे समूहों ने असम में 15 नए कैडर नियुक्त किए हैं। सूत्र ने कहा, "आउटफिट में कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर द्वारा 10-15 कैडर की भर्ती की गई है।"
इसके अलावा यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) ने मेघालय के संगठन में 15-20 युवाओं की भर्ती की है।
वहीं खुफिया इनपुट ने बताया कि त्रिपुरा में नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (एनएलएफटी) के चरमपंथी परिमल देबब्रमा अपने समूह को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं और संगठन में शामिल हुए कुछ नए सदस्यों ने बांग्लादेश के खगरात्रि जिले के एक ठिकाने में अपना बुनियादी प्रशिक्षण पूरा कर लिया है।
सूत्र ने आगे कहा, "ये कैडर ऑपरेशन के लिए भारत में घुसपैठ करने की योजना बना रहे हैं।"
खुफिया एजेंसियों ने यह भी कहा कि उग्रवादी समूहों की उपस्थिति के कारण भारत-म्यांमार सीमा खतरे के मद्देनजर अतिसंवेदनशील है।
सूत्र ने कहा, "कई उग्रवादी समूह म्यांमार में डेरा डाले हुए हैं और अरुणाचल प्रदेश के तिरप, लोंगडिंग और चांगलांग जिलों और नगालैंड के मोन जिले और असम के चराइदेव जिले के माध्यम से घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे हैं।"
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नई दिल्ली, 20 सितम्बर (आईएएनएस)| कोरोना संक्रमण के कारण जहां एक ओर पूरे देश भर में स्कूल कॉलेज समेत सभी शिक्षण संस्थान बंद है। वहीं कोरोना संक्रमण का असर अब रामलीला जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर भी पड़ने लगा है। लाल किला मैदान पर होने वाली ऐसी रामलीलाएं जिनमें स्वयं प्रधानमंत्री भी शामिल होते रहे हैं, उन्हें भी इस साल अभी तक रामलीला की अनुमति नहीं मिली है। लाल किला मैदान पर होने वाली देश की सबसे बड़ी रामलीला में से एक, 'लव कुश रामलीला' के सचिव अर्जुन कुमार ने कहा, रामलीला तो आयोजित की जानी है। अभी हमें दिल्ली पुलिस से एनओसी नहीं मिली है। जमीन की मंजूरी भी अभी तक नहीं मिल सकी है। लाल किला का यह मैदान आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अंतर्गत आता है। इस भूमि पर रामलीला करने के लिए हम जल्द ही संस्कृति मंत्री एवं मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात करेंगे।
इसके साथ ही दिल्ली में होने वाली कई बड़ी रामलीलाओं के पदाधिकारी गृह मंत्रालय एवं पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से भी संपर्क कर रहे हैं।
अर्जुन कुमार ने कहा, मौजूदा नियम के तहत केवल 100 व्यक्ति ही ऐसे किसी कार्यक्रम में एकत्रित हो सकते हैं। हम केंद्र सरकार से इसमें कुछ और छूट की अपील करेंगे इसके साथ ही रामलीला के आयोजन के लिए अन्य विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं।
लाल किला पर होने वाली लव कुश रामलीला के उपाध्यक्ष गौरव सूरी ने रामलीला की तैयारियों को लेकर कहा, हम चाहते हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग के साथ कुछ और अधिक लोगों को रामलीला में आने की अनुमति मिल सके। रामलीला में शिरकत करने के लिए केंद्र सरकार जो नियम तय करेगी हम उसका पालन करेंगे। लेकिन हमारी अपील है कि रामलीला में आने के लिए अधिक लोगों को अनुमति दी जाए। बीते वर्षो के दौरान सामान्य दिनों में कई बार एक लाख के आसपास लोग रामलीला में पहुंचते थे। कोरोना को देखते हुए लोगों की इतनी बड़ी भीड़ जुटाना सही नहीं है। हमें कम से कम 5 हजार लोगों की अनुमति मिले। यदि ऐसी अनुमति मिलती है तो हम सोशल डिस्टेंसिंग के साथ पूरी व्यवस्था करने में सक्षम रहेंगे।
गौरतलब है कि दिल्ली की अधिकांश बड़ी रामलीलाओं की तैयारी 3 महीना पहले ही शुरू कर दी जाती है। इन रामलीला में भव्य स्टेज, आकर्षक गेट, खाने-पीने के सैकड़ों स्टॉल और मनोरंजन के लिए झूले इत्यादि की व्यापक व्यवस्था होती है।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 20 सितंबर (आईएएनएस)| तीन कृषि विधेयकों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसानों के विरोध को देखते हुए दिल्ली की अंतर्राज्यीय सीमाओं पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। रविवार को एक पुलिस अधिकारी ने यह जानकारी दी। एहतियात के तौर पर सिंघू सीमा और जीटी-करनाल रोड समेत कई सीमावर्ती क्षेत्रों में अधिक पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया है। आशंका है कि आसपास के राज्यों के किसान अपना विरोध जताने के लिए दिल्ली आ सकते हैं। दरअसल, विभिन्न किसान संगठनों ने इन विधेयकों पर विरोध प्रदर्शन करने की अपील की है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, "हम पंजाब और हरियाणा के साथ लगी सीमाओं पर नजर रख रहे हैं। किसानों को दिल्ली में प्रवेश करने से रोकने के लिए व्यवस्था की गई है।"
दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर भी एहतियाती कदम उठाए गए हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के प्रवेश को रोकने के लिए गाजीपुर और अशोक नगर की ओर सुरक्षा बलों की दो कंपनियां तैनात की गई हैं।
पुलिस उपायुक्त (पूर्व) जसमीत सिंह ने कहा, "हमने दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर एहतियात के तौर पर सीमा चौकियां बनाई हैं। हमारी टीमें अलर्ट पर हैं।"
बता दें कि कई राज्यों के किसान तीनों कृषि विधेयकों --कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा विधेयक और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक का विरोध कर रहे हैं।
--आईएएनएस
चंडीगढ़, 20 सितंबर | मोदी सरकार ने खेती और किसानों से जुड़े जो तीन अध्यादेश लाए उससे नाराज़ होकर शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल ने गुरुवार को केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफ़ा दे दिया था.
शिरोमणि अकाली दल बहुत लंबे समय से बीजेपी की सहयोगी पार्टी रही है. लेकिन मोदी कैबिनेट से इस्तीफ़ा देकर हरसिमरत कौर ने इस मामले में पार्टी के 'कड़े रुख़' का संकेत दिया है.
हालांकि, अकालियों के आलोचक कह रहे हैं कि हरसिमरत कौर ने पंजाब के किसानों के बड़े विरोध प्रदर्शनों के दबाव में आकर यह निर्णय लिया, वरना पहले अकाली दल इन अध्यादेशों का समर्थन कर रहा था.
I have resigned from Union Cabinet in protest against anti-farmer ordinances and legislation. Proud to stand with farmers as their daughter & sister.
— Harsimrat Kaur Badal (@HarsimratBadal_) September 17, 2020
अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने हाल ही में ट्विटर पर लिखा कि "ये अध्यादेश क़रीब 20 लाख किसानों के लिए तो एक झटका है ही, साथ ही मुख्य तौर पर शहरी हिन्दू कमीशन एजेंटों जिनकी संख्या तीस हज़ार बताई जाती है, उनके लिए और क़रीब तीन लाख मंडी मज़दूरों के साथ-साथ क़रीब 30 लाख भूमिहीन खेत मज़दूरों के लिए भी यह बड़ा झटका साबित होगा."
उन्होंने यह भी लिखा कि 'सरकार 50 साल से बनी फ़सल ख़रीद की व्यवस्था को बर्बाद कर रही है और उनकी पार्टी इसके ख़िलाफ़ है.'
इस पूरे मामले पर अकाली दल की राय और हरसिमरत कौर के निर्णय को बेहतर ढंग से समझने के लिए बीबीसी संवाददाता अरविंद छाबड़ा ने उनसे बात की.
सवाल: आपके इस्तीफ़े पर पंजाब के मुख्यमंत्री का कहना कि ये 'टू लिटिल, टू लेट' है.
जवाब: मैंने इस्तीफ़ा दे दिया है, अब आप भी कुछ करिए. क्या आपके सांसद इस्तीफ़ा देंगे इसके विरोध में. मैंने कैप्टन साहब कुछ कर दिखाया, आपने झूठे नारों और बातों के अलावा किया क्या.
सवाल: आपने इस्तीफ़ा क्यों दिया?
जवाब: मैंने इस्तीफ़ा पंजाब के किसानों के लिए दिया है. मैं पिछले ढाई महीनों से कोशिश कर रही थी कि किसानों की जो शंकाएं हैं उन्हें दूर किया जा सके. पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के किसानों के मन में शंकाएं थीं. मैं चाहती थी कि ऐसा क़ानून लाया जाए जो इनकी शंकाओं को दूर करे.
लेकिन बहुत प्रयास करने के बावजूद जब मैं किसानों को नहीं समझा पाई और मुझे लगा कि ऐसे क़ानून को संख्या के दम पर लोगों पर थोपा जा रहा है, तब मैंने निर्णय लिया कि मैं ऐसी सरकार का हिस्सा नहीं बन सकती जो ऐसा क़ानून मेरे अपनों पर थोप दें, जिससे इनका भविष्य ख़राब हो सकता है.
सवाल: पहले आप और आपकी पार्टी इन विधेयकों का समर्थन कर रहे थे, अब इस यू-टर्न का क्या कारण है?
जवाब: ये यू-टर्न नहीं है. मैं लोगों और सरकार के बीच ब्रिज का काम करती हूँ. मेरा काम है कि लोगों के ऐतराज़ को सरकार तक पहुँचाया जाए. तो मैंने इसके लिए काफ़ी कोशिश की, किसानों की बात उनके पास रखी.
सवाल: जिन किसानों के समर्थन में आपने इस्तीफ़ा दिया है, वो किसान ये भी माँग कर रहे हैं कि आप बीजेपी से रिश्ता तोड़ लें, एनडीए गठबंधन को छोड़ दें. क्या आप ऐसा करेंगी?
जवाब: मैं पार्टी की एक आम वर्कर हूँ. इस तरह के फ़ैसले पार्टी का शीर्ष नेतृत्व और कोर कमेटी करती है. लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि तीन दशक पहले जो ये गठबंधन प्रकाश सिंह बादल और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच हुआ था, ये उस समय के काले दौर और पड़ोसी दुश्मन देश की हरक़तों के मद्देनज़र पंजाब की तरक्की और भाईचारे के लिए किया गया था जो हम अभी तक निभाते भी आ रहे हैं. आज भी वो पड़ोसी दुश्मन अपनी हरक़तों से बाज़ नहीं आया है. इसलिए पंजाब की अमन-शांति और भाईचारा आज भी ज़रूरी हैं लेकिन इसके बराबर या शायद इससे ज़्यादा ज़रूरी पंजाब की किसानी है.
सवाल: जैसा आप बता रही हैं कि भाईचारे की ज़रूरत आज भी है, तो क्या गठबंधन भी आज ज़रूरी है.
जवाब: ये जो गठबंधन था वो पंजाब की अमन शांति और भाईचारे के लिए था, लेकिन जब बात किसानों की आएगी तो मुझे नहीं लगता कि अकाली दल को इस बारे में सोचने की ज़रूरत पड़ेगी. ये फ़ैसला अकाली दल के लिए बिल्कुल साफ़ होगा. लेकिन ये फ़ैसला मेरा नहीं, ये फ़ैसला पार्टी की लीडरशिप को करना है. हम उनके फ़ैसले का इंतज़ार करेंगे.
सवाल: राज्य के किसान इस वक़्त गुस्से में हैं. सड़कों पर हैं और आपके घर के बाहर भी प्रदर्शन कर रहे हैं, तो क्या आप इनके प्रदर्शन में शामिल होंगी?
जवाब: बिल्कुल. मैंने इस्तीफ़ा किस लिए दिया है. पहले मेरा फ़र्ज था कि मैं सरकार में रहकर किसानों की माँगों को पूरा करवाने का काम करूं. लेकिन जब उसमें मैं असफल हो गई, तो अब मैं किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ूंगी.
सवाल: आपका बीजेपी के साथ इतना पुराना रिश्ता रहा है. आपकी बिल को देरी से पेश करने की जो माँग थी, उसको सुना क्यों नहीं गया?
जवाब: ये बात मुझे भी समझ में नहीं आयी. जिन अफ़सरों ने क़मरे में बंद होकर इस क़ानून को बनाया है, वो ज़मीन से जुड़े हुए नहीं हैं और बहुत से विरोध करने वाले भी ऐसे ही हैं. उनमें भी कमी रह गई इसका कारण बताने में. ज़रूर ज़मीनी लेवल पर इनका कनेक्ट नहीं है, ये कमी रह गई है.
सवाल: पीएम मोदी ने कहा कि किसानों को ग़लत जानकारी दी गई है और बिल किसानों के हित का ही है, क्या आप ये बात मानती हैं?
जवाब: मैं जब इस्तीफ़ा देने वाली थी तो मुझे ये कहा गया कि किसान कुछ दिनों में शांत हो जाएंगे. मैंने उनसे कहा कि ये तो आप ढाई महीने से कह रहे हैं. ये आग पूरे देश में फ़ैल जाएगी, हमें क्या ज़रूरत है इस क़ानून की. ये आपकी ग़लतफ़हमी है. मैंने एक दिन पहले तक उन्हें समझाने की कोशिश की. अगर हम किसानों को इतना मासूम समझे कि वो किसी की बातों में आकर विरोध कर रहे हैं, तो हम उनको शांत भी तो कर सकते हैं. अगर उन्हें कोई और उठा रहा है, तो सही बात बताकर आप उन्हें समझाएं. सरकार चलाने का ये तरीका नहीं होता. जिन लोगों ने हमें यहाँ भेजा है, चुना है, तो हम क्या कर रहे हैं.(BBCNEWS)
कांग्रेस बोली-लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाया
नई दिल्ली, 20 सितंबर (एजेंसी)। अहमद पटेल ने कहा इतिहास में आज का दिन काले दिन के तौर पर याद किया जाएगा। अहमद पटेल ने कहा कि जिस तरह से संसद में बिल पास हो रहे हैं वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है। 12 विपक्षी पार्टियों ने राज्य सभा के उपसभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है।
अविश्वास प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अहमद पटेल ने कहा कि उन्हें (राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश) को लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा करनी चाहिए, लेकिन इसके बजाय, उनके रवैये ने आज लोकतांत्रिक परंपराओं और प्रक्रियाओं को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि हरवंश के इस रवैये को देखते हुए हमने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया।
इससे पहले राज्यसभा में कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सरलीकरण) विधेयक-2020 तथा कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 को मंजूरी मिल गई। ध्वनिमत से पारित होने से पहले इन विधेयकों पर सदन में खूब हंगामा हुआ। नारेबाजी करते हुए सांसद वेल तक पहुंच गए। कोविड-19 के खतरे को भुलाते हुए धक्का-मुक्की भी हुई। विपक्ष ने इसे काला दिन बताया। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि यह लोकतंत्र की हत्या है।
दूसरी ओर कृषि विधेयक पास होने पर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने किसानों को पिछले 70 सालों के अन्याय से मुक्त करा दिया है। उन्होंने राज्यसभा में हंगामे पर कहा, विपक्षी दल किसान-विरोधी हैं। प्रक्रिया का हिस्सा बनने के बजाय, उन्होंने किसानों की मुक्ति को रोकने की कोशिश की। बीजेपी उनकी हरकतों की निंदा करती है।