विचार / लेख

इंसानियत की भी जान ले रहा है कोरोना
06-May-2021 6:20 PM
इंसानियत की भी जान ले रहा है कोरोना

-डॉ. संजय शुक्ला

महामारी के भयावहता के बीच देश में गंगा-जमुनी तहजीब के उदाहरण मिल रहे हैं। अनेक मुस्लिम युवकों ने रमजान का पवित्र रोजा तोडक़र कोरोना के बहुत गंभीर मरीजों को अपना प्लाज्मा डोनेट कर उनकी जीवन रक्षा किया है तो यह कौम जरूरतमंदों को मुफ्त ऑक्सीजन सिलेंडर भी  उपलब्ध करा रहा है।  राजनीतिक, धर्मार्थ, सामाजिक और युवा संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं द्वारा भी महामारी की  जोखिम के बावजूद कोरोना संक्रमितों को चौबीसों घंटे अस्पताल पहुंचाने, ऑक्सीजन उपलब्ध कराने, प्लाज्मा डोनेट करने और लोगों को सूखा अनाज, भोजन व दवाईयां बांटने जैसे कार्य कर रहे हैं।

भारत सदियों से समूची दुनिया के लिए मानवता, अहिंसा, परोपकार और सेवा-सुश्रुषा जैसे मानवीय गुणों के प्रेरणास्रोत रहा है। देश इन दिनों कोरोना महामारी के भीषण त्रासदी के दौर से गुजर रहा है। कोरोना महामारी जहाँ बीते एक साल से धर्म और विज्ञान को लगातार चुनौती दे रहा है वहीं यह आपदा  मनुष्यता और मानवता की भी कड़ी परीक्षा ले रहा है। त्रासदी भरे दौर में लोग जहाँ अपनों के सांसों के लिये जद्दोजहद कर रहे हैं वहीं ऑक्सीजन और दवाई के आभाव में अपने प्रिय को दम तोड़ते भी देख रहे हैं।

इस खौफनाक मंजर के बीच कुछ लोगों का अमानवीय चेहरा भी समाज के सामने है जो बेहद पीड़ादायक है। देश की अमूमन पूरी आबादी इस महामारी की संत्रास को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर भोग रहा है। विडंबना है कि महामारी की दूसरी लहर ‘आपदा में अवसर’ तलाशने वाले कुछ लोगों के लिए इंसानियत का गला घोंटकर पैसा कमाने का जरिया बन चुका है इनके करतूतों से मानवता शर्मसार हो रही है। यह महामारी चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े कुछ लोगों के लिए  के लिए जमाखोरी, मुनाफाखोरी और कालाबाजारी का अवसर लेकर आया है। दुखद यह कि कुछ लोगों के कारण चिकित्सा जैसा मुकद्दस पेशा बदनाम हो रहा है जबकि धरती के भगवान यानि डॉक्टर और मेडिकल स्टॉफ बीते एक साल से लोगों की सांस थामने दिनरात अस्पतालों में जूझ रहे हैं।

गौरतलब है कि कोरोना संक्रमितों के बढ़ते मामलों के कारण सबसे ज्यादा दबाव स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े अस्पतालों, टेस्टिंग लैब,ऑक्सीजन प्रदाता कंपनियों, दवा कंपनियों और विक्रेताओं, एंबुलेंस सेवाओं पर पड़ा है। अस्पतालों में बिस्तर, ऑक्सीजन,वेंटिलेटर और जीवन रक्षक दवाओं के आभाव में सैकड़ों लोगों के सांसों की डोर टूट रही है, परंंतु इस त्रासदी के बीच  कुछ अस्पताल और डायग्नोस्टिक सेंटर कोरोना संक्रमितों और उनके परिजनों से अवैध पैसे ऐंठ रहें हैं। केंद्र और राज्य सरकारों ने कोविड मरीजों के  टेस्टिंग और उपचार के लिए निजी क्षेत्रों के लिए दरें तय कर दी है लेकिन शायद ही देश के किसी शहर में इन दरों पर टेस्टिंग और उपचार हो रहा है। कोविड संक्रमण के जांच के लिए जरूरी आरटीपीसीआर ,एंटीजन और सीटी स्कैन की शुल्क सरकार द्वारा तय दर से तिगुना और पांच गुना वसूल रहे हैं।देश के कतिपय निजी अस्पतालों द्वारा कोविड मरीजों से ऑक्सीजन बेड और वेंटिलेटर के नाम पर लाखों रुपये वसूलने और पैसों के आभाव में मृतकों के शवों को बंधक बनाने जैसे अमानवीय खबरें मन को विचलित कर रही हैं। इन अस्पतालों में फार्मेसी और डिस्पोजेबल आइटम्स के नाम पर अनाप-शनाप शुल्क लिए जा रहे हैं जिसमें पारदर्शिता का आभाव है। देश और प्रदेश में कोविड संक्रमितों के जीवन रक्षा के लिए जरूरी रेमडेसिविर इंजेक्शन की काफी किल्लत है तथा इसके कालाबाजारी और जमाखोरी की खूब शिकायतें आ रहीं हैं। मध्यप्रदेश और राजस्थान के कुछ शहरों से चंद पैसों के लालच में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बनाने और बेचने जैसी खबरें समाज में नैतिक पतन की पराकाष्ठा को इंगित कर रहा है। आश्चर्यजनक तौर पर मरीजों के सांसों का सौदा करने वालों में असमाजिक तत्वों के साथ डॉक्टर, मेडिकल स्टॉफ, दवा विक्रेता और  मेडिकल रिप्रेंजेटेटिव की संलिप्तता उजागर हो रही है। दूसरी ओर सांसों के संकट को अवसर मान कर ऑक्सीजन की कालाबाजारी करने वालों का गोरखधंधा बदस्तूर जारी है। ऑक्सीजन सिलेंडर दुगने - तिगुने दाम पर बिक रहे हैं, संकट इतना है कि अनेक शहरों से ऑक्सीजन  सिलेंडर के लूट की खबरें आ रही हैं। आपदा को कमाई का अवसर मानने वालों में एंबुलेंस संचालक भी पीछे नहीं है और वे मरीजों को अस्पताल पहुंचाने का मनमाना  किराया वसूल रहे हैं तो कोरोना संक्रमितों या शवों का किराया प्रशासन द्वारा निर्धारित दर से छह गुना वसूल रहे हैं। हाल ही में एक राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक चैनल के दिल्ली में स्टिंग ऑपरेशन के दौरान एंबुलेंस संचालकों द्वारा कोरोना मरीज को घर से अस्पताल पहुंचाने के एवज में 25,000 से 50,000 रूपये वसूलने का वाकया प्रकाश में आया है।बहरहाल इस आफत ने देश के उस मिथक को तेजी से तोड़ा है जिसमें चिकित्सा को सबसे बड़ा पुण्यप्रद सेवा का क्षेत्र माना जाता था।

हालांकि स्वास्थ्य क्षेत्र में जारी मुनाफाखोरी और लूट के लिए सीधे तौर पर डॉक्टरों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि अधिकांश बड़े निजी अस्पतालों का संचालन कार्पोरेट घराने या व्यवसायिक समूह कर रहें हैं जिनका उद्देश्य अर्थ उपार्जन है।

बहरहाल देश के लोग इस विभिषिका के दौर में केवल सेहत के नाम पर ही नहीं लूट रहे हैं बल्कि अन्य कारोबारियों के लूट से भी वे हलाकान हैं। कालाबाजारी रोकने के तमाम प्रशासनिक दावों के बावजूद लॉकडाउन के ठीक पहले अनाज, तेल, मसालों, जरूरी समानों, सब्जियों और फलों के कारोबारियों ने उपभोक्ताओं से जमकर मुनाफाखोरी की लेकिन प्रशासनिक अमला उदासीन बना रहा। हालिया लॉकडाउन के दौरान भी जब प्रशासन ने फेरीवालों के द्वारा राशन, अनाज, सब्जी और फल बेचने की अनुमति दी है किराना कारोबारी और स्ट्रीट वेंडर राशन सहित आलू-प्याज, सब्जियां और फल मनमाने दर पर बेच रहे हैं लेकिन प्रशासन स्ट्रीट वेंडरों पर कार्रवाई का कोई प्रावधान नहीं होने का दलील दे रही है। बहरहाल महामारी के इस आपदाकाल में जरूरत की उपभोक्ता वस्तुएं और फल व सब्जी की कीमतों में बीस से तीस फीसदी का इजाफा हो चुका है। महंगाई और मुनाफाखोरी का यह बोझ उन परिवारों के लिए बेहद त्रासदीदायक साबित हो रहा है जिनका रोजगार और व्यवसाय इस महामारी ने छीन लिया है। बहरहाल आज के दौर में सिर्फ लोगों की सिर्फ सांसें ही नहीं टूट रही है बल्कि मानवता और व्यवस्था से भी उनका भरोसा टूटने लगा है। प्रशासनिक व्यवस्था जहाँ इस लूट के सामने किंकर्तव्यविमूढ़ है वहीं समाज के हिस्से से संवेदनशीलता, सहानुभूति, सहयोग , परोपकार और उदारता के भाव लगातार क्षीण हो रहे हैं।

हालांकि इस मुश्किल दौर में ‘पीडि़त मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है’  इस मान्यता को साकार करने के लिए भी समाज के कुछ हाथ उठे हैं जो इस आपदा में सुकून दिला रहे हैं। महामारी के भयावहता के बीच देश में गंगा-जमुनी तहजीब के उदाहरण मिल रहे हैं अनेक मुस्लिम युवकों ने रमजान का पवित्र रोजा तोडक़र कोरोना के बहुत गंभीर मरीजों को अपना प्लाज्मा डोनेट कर उनकी जीवन रक्षा किया है तो यह कौम जरूरतमंदों को मुफ्त ऑक्सीजन सिलेंडर भी  उपलब्ध करा रहा है।  राजनीतिक, धर्मार्थ, सामाजिक और युवा संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं द्वारा भी महामारी की  जोखिम के बावजूद कोरोना संक्रमितों को चौबीसों घंटे अस्पताल पहुंचाने, ऑक्सीजन उपलब्ध कराने, प्लाज्मा डोनेट करने और लोगों को सूखा अनाज, भोजन व दवाईयां बांटने जैसे कार्य कर रहे हैं। बहरहाल हालिया दौर में मुनाफाखोरी और कालाबाजारी करने वाले मानवता के दुश्मनों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने कि लिए देश में कानूनों को सख्ती से अमल में लाने और ऐसे मामलों के लिए फास्टट्रैक कोर्ट की जरूरत है।

( लेखक शासकीय आयुर्वेद कालेज, रायपुर में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)

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